वचन की सामर्थ
परिचय
बीसवीं शताब्दी पर सर विंस्टन चर्चिल के प्रभाव को अत्यधिक समझना कठिन बात है। एक तज्ञ वक्ता, चर्चिल शब्दों की सामर्थ को जानते थे। चर्चिल के अधिकारी जीवनी लेखक, ने एक किताब लिखी जिसका नाम है ® चर्चिल शब्दों की सामर्थ। चर्चिल के शब्द इस तरह से गाते हैं कि इंग्लिश पढ़ने वाले और राजनैतिज्ञों ने अब तक इससे मेल खाने की नाकाम कोशिश की है।
फिर भी, हम सभी के लिए, शब्द शक्तिशाली हैं। आपके शब्द शक्तिशाली हैं। नम्र और उत्साहित करने वाले वचनों के साथ, आप एक व्यक्ति के दिन को बदल सकते हैं - या उनके पूरे जीवन को बदल सकते हैं।
नीतिवचन 10:11-20
11 धर्मी का मुख तो जीवन का स्रोत होता है,
किन्तु दुष्ट के मुख से हिंसा ऊफन पड़ती है।
12 दुष्ट के मुख से घृणा भेद—
भावों को उत्तेजित करती है जबकि प्रेम सब दोषों को ढक लेता है।
13 बुद्धि का निवास सदा समझदार होठों पर होता है,
किन्तु जिसमें भले बुरे का बोध नहीं होता, उसके पीठ पर डंडा होता है।
14 बुद्धिमान लोग, ज्ञान का संचय करते रहते,
किन्तु मूर्ख की वाणी विपत्ति को बुलाती है।
15 धनी का धन, उनका मज़बूत किला होता,
दीन की दीनता पर उसका विनाश है।
16 नेक की कमाई, उन्हें जीवन देती है,
किन्तु दुष्ट की आय दण्ड दिलवाती।
17 ऐसे अनुशासन से जो जन सीखता है, जीवन के मार्ग की राह वह दिखाता है।
किन्तु जो सुधार की उपेक्षा करता है ऐसा मनुष्य तो भटकाया करता है।
18 जो मनुष्य बैर पर परदा डाले रखता है,
वह मिथ्यावादी है और वह जो निन्दा फैलाता है, मूढ़ है।
19 अधिक बोलने से, कभी पाप नहीं दूर होता
किन्तु जो अपनी जुबान को लगाम देता है, वही बुद्धिमान है।
20 धर्मी की वाणी विशुद्ध चाँदी है,
किन्तु दुष्ट के हृदय का कोई नहीं मोल।
समीक्षा
प्रेम के वचनो को बोलें
आपके वचनों में महान आशीष को लाने की सामर्थ हैः 'अच्छे व्यक्ति का मुंह एक जीवन देने वाला गहरा कुँआ है' (व.11अ, एम.एस.जी.)। लेकिन शब्द बहुत बड़ी हानि भी पहुँचा सकते हैं:'दुष्ट का मुंह निंदा की एक अंधेरी गुफा है' (व.11ब, एम.एस.जी.)।
शब्दों में संबंधो को नष्ट करने की सामर्थ हैः'नफरत लड़ाई को शुरु करती है' (व.12अ, एम.एस.जी.)। जबकि दूसरी ओर, उनमें संबंधों को सुधारने की सामर्थ हैः'लेकिन प्रेम सारी गलतियों को छिपा लेता है' (व.12ब)। 'प्रेम से सब अपराध ढँक जाते हैं' (व.12ब, एम.एस.जी.)।
जीभ को नियंत्रण में रखना महत्वपूर्ण है। 'जहाँ बहुत बातें होती हैं, वहाँ अपराध भी होता है, परंतु जो अपने मुँह को बंद रखता है वह बुद्धि से काम करता है' (व.19)। अब्राहम लिंकन ने कहा, 'बेहतर है कि चुप रहें और मूर्ख समझे जाएं, इसके बजाय कि बोलकर उनके सभी संदेह को दूर कर दें!'
इस पूरे लेखांश में, नीतिवचन के लेखक 'एक मूर्ख के मुँह' (व.14ब) और 'सत्यनिष्ठ के मुंह' (व.11अ) के बीच के अंतर को बताते हैं। एक नफरत की बातों को बोलता है (व12.अ)। दूसरा प्रेम (व12.ब)। और बुद्धि (व.13) की बातें बोलता है।
नफरत की बातें (व.12अ) हिंसा (व.11ब), असहमति (व.12अ), बरबाद (व.14ब) ओर झूठी निंदा (व.18ब) को लाता है।
प्रेम के शब्द (व.12ब) जीवन का झरना हैं (व.11अ); वे 'सभी गलतियों' को छिपा देते हैं (व.12ब) और 'उत्तम चाँदी' के समान हैं (व.20अ)। यदि किसी ने आपको चोट पहुँचाई है, तो बदले में उसे चोट मत पहुँचाईये। ऐसा कहा जाता है कि किसी के प्रति दुर्भावना रखना, ऐसा है मानो जैसे किसी को अपने सिर में बिना किराये के रहने देना। इसके बजाय, नफरत के बदले प्रेम करें। दूसरों के विषय में अच्छा बोले यहाँ तक कि जब वह सामने नहीं है और आप पायेंगे कि आपका प्रेम झगड़े को समाप्त करता है और संबंध को चंगा करता है।
प्रार्थना
परमेश्वर, आज मेरी सहायता कीजिए कि मैं अपनी जीभ पर नियंत्रण रख् सकूं –केवल प्रेम और जीवन के शब्दों को बोलूं। मेरी सहायता कीजिए कि मैं हमेशा मेरे विरूद्ध की गई गलत चीजों के बदले प्रेम के शब्दों के साथ उत्तर दूं।
लूका 21:5-38
मन्दिर का विनाश
5 कुछ लोग मन्दिर के विषय में चर्चा कर रहे थे कि वह सुन्दर पत्थरों और परमेश्वर को अर्पित की गयी मनौती की भेंटों से कैसे सजाया गया है।
6 तभी यीशु ने कहा, “ऐसा समय आयेगा जब, ये जो कुछ तुम देख रहे हो, उसमें एक पत्थर दूसरे पत्थर पर टिका नहीं रह पायेगा। वे सभी ढहा दिये जायेंगे।”
7 वे उससे पूछते हुए बोले, “गुरु, ये बातें कब होंगी? और ये बातें जो होने वाली हैं, उसके क्या संकेत होंगे?”
8 यीशु ने कहा, “सावधान रहो, कहीं कोई तुम्हें छल न ले। क्योंकि मेरे नाम से बहुत से लोग आयेंगे और कहेंगे, ‘वह मैं हूँ’ और ‘समय आ पहुँचा है।’ उनके पीछे मत जाना। 9 परन्तु जब तुम युद्धों और दंगों की चर्चा सुनो तो डरना मत क्योंकि ये बातें तो पहले घटेंगी ही। और उनका अन्त तुरंत नहीं होगा।”
10 उसने उनसे फिर कहा, “एक जाति दूसरी जाति के विरोध में खड़ी होगी और एक राज्य दूसरे राज्य के विरोध में। 11 बड़े-बड़े भूचाल आयेंगे और अनेक स्थानों पर अकाल पड़ेंगे और महामारियाँ होंगी। आकाश में भयानक घटनाएँ घटेंगी और महान संकेत प्रकट होंगे।
12 “किन्तु इन बातों के घटने से पहले वे तुम्हें बंदी बना लेंगे और तुम्हें यातनाएँ देंगे। वे तुम पर अभियोग चलाने के लिये तुम्हें यहूदी आराधनालयों को सौंप देंगे और फिर तुम्हें बन्दीगृहों में भेज दिया जायेगा। और फिर मेरे नाम के कारण वे तुम्हें राजाओं और राज्यपालों के सामने ले जायेंगे। 13 इससे तुम्हें मेरे विषय में साक्षी देने का अवसर मिलेगा। 14 इसलिये पहले से ही इसकी चिंता न करने का निश्चय कर लो कि अपना बचाव तुम कैसे करोगे। 15 क्योंकि मैं तुम्हें ऐसी बुद्धि और ऐसे शब्द दूँगा कि तुम्हारा कोई भी विरोधी तुम्हारा सामना और तुम्हारा खण्डन नहीं कर सकेगा। 16 किन्तु तुम्हारे माता-पिता, भाई बन्धु, सम्बन्धी और मित्र ही तुम्हें धोखे से पकड़वायेंगे और तुममें से कुछ को तो मरवा ही डालेंगे। 17 मेरे कारण सब तुमसे बैर करेंगे। 18 किन्तु तुम्हारे सिर का एक बाल तक बाँका नहीं होगा। 19 तुम्हारी सहनशीलता, तुम्हारे प्राणों की रक्षा करेगी।
यरूशलेम का नाश
20 “अब देखो जब यरूशलेम को तुम सेनाओं से घिरा देखो तब समझ लेना कि उसका तहस नहस हो जाना निकट है। 21 तब तो जो यहूदिया में हों, उन्हें चाहिये कि वे पहाड़ों पर भाग जायें और वे जो नगर के भीतर हों, बाहर निकल आयें और वे जो गाँवों में हों उन्हें नगर में नहीं जाना चाहिये। 22 क्योंकि वे दिन दण्ड देने के होंगे। ताकि जो लिखी गयी हैं, वे सभी बातें पूरी हों। 23 उन स्त्रियों के लिये, जो गर्भवती होंगी और उनके लिये जो दूध पिलाती होंगी, वे दिन कितने भयानक होंगे। क्योंकि उन दिनों इस धरती पर बहुत बड़ी विपत्ति आयेगी और इन लोगों पर परमेश्वर का क्रोध होगा। 24 वे तलवार की धार से गिरा दिये जायेंगे। और बंदी बना कर सब देशों में पहुँचा दिये जायेंगे और यरूशलेम गैंर यहूदियों के पैरों तले तब तक रौंदा जायेगा जब तक कि ग़ैर यहूदियों का समय पूरा नहीं हो जाता।
डरो मत
25 “सूरज, चाँद और तारों में संकेत प्रकट होंगे और धरती पर की सभी जातियों पर विपत्तियाँ आयेंगी और वे सागर की उथल-पुथल से घबरा उठेंगे। 26 लोग डर और संसार पर आने वाली विपदाओं के डर से मूर्छित हो जायेंगे क्योंकि स्वर्गिक शक्तियाँ हिलाई जायेंगी। 27 और तभी वे मनुष्य के पुत्र को अपनी शक्ति और महान् महिमा के साथ एक बादल में आते हुए देखेंगे। 28 अब देखो, ये बातें जब घटने लगें तो तुम खड़े होकर अपने सिर ऊपर उठा लेना। क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट आ रहा होगा।”
मेरा वचन अमर है
29 फिर उसने उनसे एक दृष्टान्त-कथा कही: “और सभी पेड़ों तथा अंजीर के पेड़ को देखो। 30 उन में जैसे ही कोंपले फूटती हैं, तुम अपने आप जान जाते हो कि गर्मी की ऋतु बस आ ही पहुँची है। 31 वैसे ही तुम जब इन बातों को घटते देखो तो जान लेना कि परमेश्वर का राज्य निकट है।
32 “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि जब तक ये सब बातें घट नहीं लेतीं, इस पीढ़ी का अंत नहीं होगा। 33 धरती और आकाश नष्ट हो जाएँगे, पर मेरा वचन सदा अटल रहेगा।
सदा तैयार रहो
34 “अपना ध्यान रखो, ताकि तुम्हारे मन कहीं डट कर पीने पिलाने और सांसारिक चिंताओं से जड़ न हो जायें। और वह दिन एक फंदे की तरह तुम पर अचानक न आ पड़े। 35 निश्चय ही वह इस समूची धरती पर रहने वालों पर ऐसे ही आ गिरेगा। 36 हर क्षण सतर्क रहो, और प्रार्थना करो कि तुम्हें उन सभी बातों से, जो घटने वाली हैं, बचने की शक्ति प्राप्त हो। और आत्म-विश्वास के साथ मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े हो सको।”
37 प्रतिदिन वह मन्दिर में उपदेश दिया करता था किन्तु, रात बिताने के लिए वह हर साँझ जैतून नामक पहाड़ी पर चला जाता था। 38 सभी लोग भोर के तड़के उठते ताकि मन्दिर में उसके पास जाकर, उसे सुनें।
समीक्षा
यीशु के द्वारा दिए गए वचनो को बोलें
यीशु के पास एक डिग्री या कोई ऑपचारिक प्रशिक्षण उन्होंने नहीं लिया था। यद्पि वह पवित्रशास्त्र को पूरा-पूरा जानते थे, वह कभी किसी सिद्धांत सिखाने वाले कॉलेज में नहीं गए थे। तब भी परमेश्वर के विषय में उनके शब्द और भाषा बहुत शक्तिशाली थी, पृथ्वी पर उनकी तीस वर्ष की आयु में, वह हर दिन मंदिर में सिखा सकते थे और भीड़ को इकट्ठा कर सकते थे।
यीशु के वचन सबसे शक्तिशाली वचन हैं जो कभी भी बोले गए थे। 'वह दिन में मंदिर में उपदेश देते थे...और भोर को तड़के सब लोग उनकी सुनने के लिये मंदिर में उनके पास आया करते थे' (वव.37-38, एम.एस.जी.)।
यीशु के वचन अनंत हैं। इस लेखांश में, यीशु ने अपने शब्दों की तुलना उन स्थायी वस्तुओं के साथ की जिसे उनके चेले आस-पास देख सकते थे। यीशु ने मंदिर के आने वाले विनाश के विषय में भविष्यवाणी की (वव.5-6) और यरूशलेम के विषय में (व.8 से लेकर), जो कि ए.डी.70 में हुआ। उन्होंने कहा, 'स्वर्ग और पृथ्वी टल जाएंगे, लेकिन मेरे वचन कभी नहीं टलेंगे' (वव.24,33)। दो हजार साल बाद विश्व भर में बहुत से लोग यीशु के वचनों के द्वारा प्रभावित हुए हैं।
यीशु की शिक्षा को व्यापक रूप से सबसे महान शिक्षा माना जाता है। हमने विज्ञान और तकनीकी में बहुत उन्नति की है। फिर भी पिछले दो हजार वर्षों में, किसी ने कभी भी यीशु की नैतिक शिक्षा को सुधारा नहीं है। वे सबसे महानतम वचन हैं जो कभी भी बोले गए। वे नम्र वचन हैं जो आप आशा करते हैं कि परमेश्वर बोलें।
यीशु धोखा देने वाली बातों के विरूद्ध चेतावनी देते हैं। वह कहते हैं, 'ध्यान दो कि तुम धोखा न खाओ। क्योंकि बहुत से मेरे नाम से आएँगे,यह कहते हुए कि 'मैं वही हूँ', और 'समय निकट है।' उनके पीछे मत जाना' (व.8)।
यीशु ने हमें बताया कि सभी से प्रेम करें – हमारे पड़ोसी और यहां तक कि हमारे शत्रुओं से भी। अब वह हमें चेतावनी देते हैं कि हमें सभी से प्रेम करना है, तब भी जब सभी लोग हमसे नफरत करें (व.17)।
यदि आपका सताव होता है, तो आपको इसे एक 'गवाह' (व.13) बनने के अवसर के रूप में देखना है। ऐसे समय पर यीशु कहते हैं, ' इसलिये अपने अपने मन में ठान लो कि हम पहले से उत्तर देने की चिन्ता नहीं करेंगे। क्योंकि मैं तुम्हें ऐसा बोल और बुद्धि दूँगा कि तुम्हारे सब विरोधी सामना या खण्डन नहीं कर सकेंगे' (वव.14-15)। ना केवल यीशु के वचन शक्तिशाली हैं, परंतु वह आपके मुँह में शक्तिशाली वचनों को रखने का वायदा भी करते हैं।
भाषा की बहुत सी चीजों का इस्तेमाल यीशु प्रेम और संबंध की भाषा में करते हैं। इसका लेना-देना आपके हृदय और आपकी प्रार्थना जीवन से है। वह कहते हैं 'इसलिये सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार, और मतवालेपन, और इस जीवन की चिंताओं से सुस्त हो जाएँ, और वह दिन तुम पर फंदे के समान अचानक आ पड़े' (व.34, एम.एस.जी.) 'जीवन की चिंताओं से दब मत जाईये' (व.34)। 'हमेशा ध्यान रखिए और प्रार्थना करिए' (व.36)।
प्रार्थना
परमेश्वर, कृपया मुझे हर अवसर के लिए शब्द और बुद्धि दीजिए, मेरी सहायता कीजिए कि प्रेम और प्रार्थना की भाषा को विकसित करुं और आपके नाम में शक्तिशाली शब्दों को बोलूँ।
यहोशू 1:1-2:24
परमेश्वर यहोशू को इस्राएल का नेतृत्व करने के लिये चुनता है
1मूसा यहोवा का सेवक था। नून का पुत्र यहोशू मूसा का सहायक था। मूसा के मरने के बाद, यहोवा ने यहोशू से बातें कीं। यहोवा ने यहोशू से कहा, 2 “मेरा सेवक मूसा मर गया। अब ये लोग और तुम यरदन नदी के पार जाओ। तुम्हें उस देश में जाना चाहिए जिसे मैं इस्राएल के लोगों को अर्थात् तुम्हें दे रहा हूँ। 3 मैंने मूसा को यह वचन दिया था कि यह देश मैं तुम्हें दूँगा। इसलिए मैं तुम्हें वह हर एक प्रदेश दूँगा, जिस किसी स्थान पर भी तुम जाओगे। 4 हित्तियों का पूरा देश, मरुभूमि और लबानोन से लेकर बड़ी नदी तक (परात नदी तक) तुम्हारा होगा और यहाँ से पश्चिम में भूमध्यसागर तक (सूर्य के डूबने के स्थान तक ) का प्रदेश तुम्हारी सीमा के भीतर होगा। 5 मैं मूसा के साथ था और मैं उसी तरह तुम्हारे साथ रहूँगा। तुम्हारे पूरे जीवन में, तुम्हें कोई भी व्यक्ति रोकने में समर्थ नहीं होगा। मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं। मैं कभी तुमसे दूर नहीं होऊँगा।
6 “यहोशू, तुम्हें दृढ़ और साहसी होना चाहिये! तुम्हें इन लोगों का अगुवा होना चाहिये जिससे वे अपना देश ले सकें। यह वही देश है जिसे मैंने उन्हें देने के लिये उनके पूर्वजों को वचन दिया था। 7 किन्तु तुम्हें एक दूसरी बात के विषय में भी दृढ़ और साहसी रहना होगा। तुम्हें उन आदेशों का पालन निश्चय के साथ करना चाहिए, जिन्हें मेरे सेवक मूसा ने तुम्हें दिया। यदि तुम उसकी शिक्षाओं का ठीक—ठीक पालन करोगे, तो तुम जो कुछ करोगे उसमें सफल होगे। 8 उस व्यवस्था की किताब में लिखी गई बातों को सदा यादा रखो। तुम उस किताब का अध्ययन दिन रात करो, तभी तुम उसमें लिखे गए आदेशों के पालन के विषय में विश्वस्त रह सकते हो। यदि तुम यह करोगे, तो तुम बुद्धिमान बनोगे और जो कुछ करोगे उसमें सफल होगे। 9 याद रखो, कि मैंने तुम्हें दृढ़ और साहसी बने रहने का आदेश दिया था। इसलिए कभी भयभीत न होओ, क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे साथ सभी जगह रहेगा, जहाँ तुम जाओगे।”
10 इसलिए यहोशू ने लोगों के प्रमुखों को आदेश दिया। उसने कहा, 11 “डेरे से होकर जाओ और लोगों को तैयार होने को कहो। लोगों से कहो, ‘कुछ भोजन तैयार कर लें। अब से तीन दिन बाद, हम लोग यरदन नदी पार करेंगे। हम लोग जाएंगे और उस देश को लेंगे जिसे तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुमको दे रहा है।’”
12 तब यहोशू ने रूबेन के परिवार समूह गाद और मनश्शे के परिवार समूह के आधे लोगों से बातें कीं। यहोशू ने कहा, 13 “उसे याद रखो, जो परमेश्वर के सेवक मूसा ने तुमसे कहा था। उसने कहा था कि परमेश्वर, तुम्हारा याहोवा तुम्हें आराम के लिये स्थान देगा। परमेश्वर यह देश तुम्हें देगा। 14 अब परमेश्वर ने यरदन नदी के पूर्व में यह देश तुम्हें दिया है। तुम्हारी पत्नियाँ, तुम्हारे बच्चे और तुम्हारे जानवर इस प्रदेश में रह सकते हैं। किन्तु तुम्हारे योद्धा तुम्हारे भाईयों के साथ यरदन नदी को अवश्य पार करेंगे। तुम्हें युद्ध के लिये तैयार रहना चाहिए और अपना देश लेने में अपने भाइयों की सहायता करनी चाहिये। 15 याहोवा ने तुम्हें आराम करने की जगह दी है, और वह तुम्हारे भाइयों के लिये भी वैसा ही करेगा। किन्तु तुम्हें अपने भाइयों की सहायता तब तक करनी चाहिये जब तक वे उस देश को नहीं ले लेते जिसे परमेश्वर, उनका यहोवा उन्हें दे रहा है। तब तुम यरदन नदी के पूर्व अपने देश में लौट सकते हो। वही वह प्रदेश है जिसे यहोवा के सेवक मूसा ने तुम्हें दिया था।”
16 तब लोगों ने यहोशू को उत्तर दिया, “जो भी करने के लिये तुम आदेश दोगे, हम लोग करेंगे! जिस स्थान पर भेजोगे, हम लोग जाएंगे! 17 हम लोगों ने पूरी तरह मूसा की आज्ञा मानी। उसी तरह हम लोग वह सब मानेंगे जो तुम कहोगे। हम लोग यहोवा से केवल एक बात चाहते हैं। हम लोग परमेश्वर यहोवा से यही माँग करते हैं कि वह तुम्हारे साथ वैसा ही रहे जैसे वह मूसा के साथ रहा। 18 तब, यदि कोई व्यक्ति तुमहारी आज्ञा मानने से इन्कार करता है या कोई व्यक्ति तुम्हारे विरुद्ध खड़ा होता है, वह मार डाला जाएगा। केवल दृढ़ और साहसी रहो!”
यरीहो में गुप्तचर
2नून का पुत्र यहोशू और सभी लोगों ने शित्तीम में डेरा डाला था। यहोशू ने दो गुप्तचरों को भेजा। किसी दूसरे व्यक्ति को यह पता नहीं चला कि यहोशू ने इन लोगों को भेजा था। यहोशू ने इन लोगों से कहा, “जाओ और प्रदेश की जाँच करो, यरीहो नगर को सावधानी से देखो।”
इसलिए वे व्यक्ति यरीहो गए। वे एक वेश्या के घर गए और वहाँ ठहरे। इस स्त्री का नाम राहाब था।
2 किसी ने यरीहो के राजा से कहा, “इस्राएल के कुछ व्यक्ति आज रात हमारी धरती पर गुप्तचरी करने आए हैं।”
3 इसलिए यरीहो के राजा ने राहाब के यहाँ यह खबर भेजी: “उन व्यक्तियों को छिपाओ नहीं जो आकर तुम्हारे घर में ठहरे हैं। उन्हें बाहर लाओ। वे भेद लेने अपने देश में आए हैं।”
4 स्त्री ने दोनों व्यक्तियों को छिपा रखा था। किन्तु स्त्री ने कहा, “वे दो व्यक्ति आए तो थे, किन्तु मैं नहीं जानती कि वे कहाँ से आए थे। 5 नगर द्वार बन्द होने के समय वे व्यक्ति शाम को चले गए। मैं नहीं जानती कि वे कहाँ गए। किन्तु यदि तुम जल्दी जाओगे, तो शायद तुम उन्हें पकड़ लोगे।” 6 (राहाब ने वह सब कहा, लेकिन वास्तव में स्त्री ने उन्हें छत पर पहुँचा दिया था, और उन्हें उस चारे में छिपा दिया था, जिसका ढेर उसने ऊपर लगाया था।)
7 इसलिए इस्राएल के दो आदमियों की खोज में राजा के व्यक्ति चले गए। राजा के व्यक्तियों द्वारा नगर छोड़ने के तुरन्त बाद नगर द्वार बन्द कर दिये गए। वे उन स्थानों पर गए जहाँ से लोग यरदन नदी को पार करते थे।
8 दोनों व्यक्ति रात में सोने की तैयारी में थे। किन्तु स्त्री छत पर गई और उसने उनसे बात की । 9 राहाब ने कहा, “मैं जानती हूँ कि यह देश याहोवा ने तुम्हारे लोगों को दिया है। तुम हम लोगों को भयभीत करते हो। इस देश में रहने वाले सभी तुम लोगों से भयभीत हैं। 10 हम लोग डरे हुए हैं क्योंकि हम सुन चुके हैं कि यहोवा ने तुम लोगों की सहायता कैसे की है। हमने सुना है कि तुम मिस्र से बाहर आए तो यहोवा न लाल सागर के पानी को सुखा दिया। हम लोगों ने यह भी सुना है कि तुम लोगो ने दो एमोरी राजाओं सीहोन और ओग के साथ क्या किया। हम लोगों ने सुना कि तुम लोगों ने यरदन नदी के पूर्व में रहने वाले उन दोनों राजाओं को कैसे नष्ट किया। 11 हम लोगों ने उन घटनाओं को सुना और बहुत अधिक डर गए और अब हम में से कोई व्यक्ति इतना साहसी नहीं कि तुम लोगों से लड़ सके। क्यों? क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा ऊपर स्वर्ग और नीचे धरती पर शासन करता है 12 तो अब, मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे वचन दो। मैंने तुम्हारी सहायता की है और तुम पर दया की है। इसलिए यहोवा के सामने वचन दो कि तुम हमारे परिवार पर दया करोगे। कृपया मुझे कहो कि तुम ऐसा करोगे। 13 मुझसे तुम यह कहो कि तुम मेरे परिवार को जीवित रहने दोगे जिसमें मेरे पिता, माँ, भाई, बहनें, और उनके परिवार होंगे। तुम प्रतिज्ञा करो कि तुम हमें मृत्यु से बचाओगे।”
14 उन व्यक्तियों ने उसे मान लिया। उनहोंने कहा, “हम तुम्हारे जीवन के लिये अपने जीवन की बाज़ी लगा देंगे। किसी व्यक्ति से न बताओ कि हम क्या कर रहे हैं। तब जब यहोवा हम लोगों को हमारा देश देगा, तब हम तुम पर दया करेंगे। तुम हम लोगों पर विश्वास कर सकते हो।”
15 उस स्त्री का घर नगर की दीवार के भीतर बना था। यह दीवार का एक हिस्सा था। इसलिए स्त्री ने उनके खिड़की में से उतरने के लिये रस्सी का उपयोग किया। 16 तब स्त्री ने उनसे कहा, “पश्चिम की पहाड़ियों में जाओ, जिससे राजा के व्यक्ति तुम्हें अचानक न पकड़ें। वहाँ तीन दिन छिपे रहो। राजा के व्यक्ति जब लौट आएं तब तुम अपने रास्ते जा सकते हो।”
17 व्यक्तियों ने उससे कहा, “हम लोगों ने तुमको वचन दिया है। किन्तु तुम्हें एक काम करना होगा, नहीं तो हम लोग अपने वचन के लिये उत्तरदायी नहीं होंगे। 18 तुम इस लाल रस्सी का उपयोग हम लोगों के बचकर भाग निकलने के लिये कर रही हो। हम लोग इस देश में लौटेंगे। उस समय तुम्हें इस रस्सी को अपनी खिड़की से अवश्य बांधना होगा। तुम्हे अपने पिता, अपनी माँ, अपने भाई, और अपने पूरे परिवार को अपने साथ इस घर में रखना होगा। 19 हम लोग हर एक व्यक्ति को सुरक्षित रखेंगे जो इस घर में होगा। यदि तुम्हारे घर के भीतर किसी को चोट पहुँचती है, तो उसके लिए हम लोग उत्तरदायी होंगे। यदि तुम्हारे घर से कोई व्यक्ति बाहर जाएगा, तो वह मार डाला जा सकता है। उस व्यक्ति के लिए हम उत्तरदायी नहीं होंगे। यह उसका अपना दोष होगा। 20 हम यह वादा तुम्हारे साथ कर रहे हैं। किन्तु यदि तुम किसी को बताओगी कि हम क्या कर रहे हैं, तो हम अपने इस वचन से स्वतन्त्र होंगे।”
21 स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं इसे स्वीकार करती हूँ।” स्त्री ने नमस्कार किया और व्यक्तियों ने उसका घर छोड़ा। स्त्री ने खिड़की से लाल रस्सी बांधी।
22 वे उसके घर को छोड़कर पहाड़ियों में चले गए। जहाँ वे तीन दिन रुके। राजा के व्यक्तियों ने पूरी सड़क पर उनकी खोज की। तीन दिन बाद राजा के व्यक्तियों ने खोज बन्द कर दी। वे उन्हें नहीं ढूँढ पाए, सो वे नगर में लौट आए 23 तब दोनों व्यक्तियों ने यहोशू के पास लौटना आरम्भ किया। व्यक्तियों ने पहाड़ियाँ छोड़ीं और नदी को पार किया। वे नून के पुत्र यहोशू के पास गए। उन्होंने जो कुछ पता लगाया था, यहोशू को बताया। 24 उन्होंने यहोशू से कहा, “यहोवा ने सचमुच सारा देश हम लोगों को दे दिया है। उस देश के सभी लोग हम लोगों से भयभीत हैं।”
समीक्षा
परमेश्वर के वचनों को बोलें
यहोशू मूसा का वारिस था। मूसा को 'परमेश्वर का दास कहा गया है' (1:1), और यहोशू परमेश्वर से यही शीर्षक पाता है। यह एक शीर्षक है जो भविष्यवक्ताओं के द्वारा उत्पन्न हुआ है (आमोस 3:7), पौलुस (रोमियों 1:1) और स्वयं यीशु (यशायाह 52:13)। 'परमेश्वर का एक सेवक बनना' अब एक आशीष है जिसका सभी मसीह आनंद लेते हैं। लेकिन हर आशीष जो परमेश्वर आपको देते हैं वह उत्तरदायित्व के साथ आती है। उस उत्तरदायित्व को गंभीरतापूर्वक लीजिए।
यहोशू को परमेश्वर के द्वारा बोले गए वचनों पर ध्यान देना था (यहोशू 1:7)। उसे उनकी आज्ञा माननी थी (व.7), उन्हें बोलना था (व.8अ), उन पर दिन-रात मनन करना था (व.8ब) और उनका अभ्यास करना था (व.8ब)। अपने दिमाग को परमेश्वर की सच्चाई से भरे, यहाँ तक कि रात में जब आप जागते हैं तब। यह आपकी सोच को प्रभावित करेगा –आपके विचार, सच्चाई, स्वतंत्रता, प्रेम, विजय और शांति के विचार होगें। यहोशू से सीधे बात करने के द्वारा परमेश्वर भी इसे रेखांकित करते हैं (व.1), दो मुख्य वायदों के साथ उसे उत्साहित करते हुए और मजबूत बनाते हुए।
पहला, परमेश्वर की शांति का वायदा हैः'जिस स्थान पर तुम पाँव रखोगे वह सब मैं तुम्हें दे देता हूँ' (व.3)। 'तेरे जीवन भर कोई तेरे सामने ठहर ना सकेगा' (व.5अ)। ' तुम्हारा प्रभु परमेश्वर तुम्हें शांति देता है' (व.13)। अब हमारे लिए विश्राम यीशु की ओर से आता है। विश्राम का अर्थ अपने पैरों को ऊपर करके आराम करना नहीं है, बल्कि अपनी परेशानियों को सुलझाना और यीशु कौन हैं, इस बात के कारण अपनी पहचान में शांति और सुरक्षा का एक गहरा बोध होना।
इब्रानियों के लेखक बताते हैं कि, ''क्योंकि यदि यहोशू उन्हें विश्राम में प्रवेश करा लेता, तो उसके बाद दूसरे दिन की चर्चा न होती' (इब्रानियों 4:8) – और वह 'दिन', इस दिन को यीशु ने संभव बनाया। जैसा कि यीशु ने स्वयं वायदा किया,' 'हे सब परिश्रम करने वालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा' (मत्ती 11:28)।
दूसरा, यहाँ पर परमेश्वर की व्यक्तिगत उपस्थिति का वायदा हैः'जैसा मैं मूसा के साथ था, वैसे ही तुम्हारे साथ रहूँगा; मैं ना तो कभी तुम्हें छोडूँगा और न कभी त्यागूंगा' (यहोशू 1:5ब)। यह सामर्थ और साहस को लाता हैः 'भयभीत मत हो' (व.9ब)। परमेश्वर हमें डर को महसूस करने के लिए नहीं कहते हैं। लेकिन वह हमसे कहते हैं कि इसमें हार मत मानों। डर को आपसे वह आशीष मत छीनने दें जो परमेश्वर आपको देना चाहते हैं। वह आगे कहते हैं, 'निराश मत हो, क्योंकि परमेश्वर यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा जहाँ कही तुम जाते हो' (व.9ब)।
दोबारा, अब आप यीशु के द्वारा उस वायदे का अनुभव करते हैं, आत्मा के कार्य के द्वारा। स्वर्ग में जाने से पहले यीशु के अंतिम शब्द थे, 'निश्चित ही, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, यहाँ तक कि जगत के अंत तक' (मत्ती 28:20)।
जैसे ही यहोशू परमेश्वर के वचनों के अधिकार के अंतर्गत आता है, वैसे ही उसके वचन में सामर्थ और अधिकार आ जाती है। लोगों ने जवाब दिया, 'जो कुछ तूने हमें आज्ञा दी है हम करेंगे...जैसा कि हमने पूरी रीति से मूसा की आज्ञा मानी है, वैसे ही हम तेरी आज्ञा मानेंगे' (यहोशू 1:16-17)। यदि आप परमेश्वर के वचनों को सुनते हैं और बोलते हैं, तो यहोशू की तरह ही, 'आपके वचन ' (व.18) शक्तिशाली वचन होंगे।
यदि यह सब तीव्रता, सुपर-आत्मिकता या स्वयं-सत्यनिष्ठा को बताता है, तो आज के लेखांश का समापन एक अद्भुत घटना से होता है कि कैसे परमेश्वर ने राहब नामक एक वेश्या का इस्तेमाल किया। परमेश्वर एक पापी को चुनते हैं, एक वेश्या को ताकि वह यीशु की उत्तराधिकारी बनें (मत्ती 1:5) और विश्वास की एक नायिका (इब्रानियो 11:31)। यह हमारे लिए एक प्रोत्साहन है कि अपने भूतकाल के द्वारा हम दब न जाएँ। जैसा कि जॉयस मेयर कहती है, 'हम सब का एक भूतकाल है। इससे अंतर नहीं पड़ता है कि आपका भूतकाल कितना भयानक था, आप भूतकाल को भूल सकते हैं। परमेश्वर आपको एक नई शुरुवात दे सकते हैं; वह महान रूप से आपका इस्तेमाल कर सकते हैं और आपको एक भविष्य दे सकते हैं।'
प्रार्थना
परमेश्वर, हर दिन मेरी सहायता कीजिए कि आपके वचनो पर मनन करुं, उनका पालन करुं, उनका अभ्यास करुं और पवित्र आत्मा की सामर्थ में उन्हें दूसरों को प्रदान करुं।
पिप्पा भी कहते है
यहोशू 1:6-9
इन वचनों का मेरे जीवन में बहुत महत्व है। 'मजबूत होना और साहसी होना' स्वाभाविक रूप से नहीं आता है। (मैं भौतिक रूप से बहुत मजबूत नहीं हूँ – मैं किसी वस्तु को दबा नहीं सकता हूँ!) यदि किसी मुश्किल स्थिति का सामना करता हूँ तो शायद इसके सामने झुक जाऊँ। मुझे बार-बार का प्रोत्साहन 'मजबूत और साहसी बनो' बहुत उत्साहित करता है।
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संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
2012 के लिए नोट्स
युजिन पिटरसन, द कंटेम्प्लेटिव पास्टर, पीपी.91-93