सही संबंध
परिचय
पूर्वी मलेशिया में हुए एक अल्फा कॉन्फरेंस में, पूरे एशिया से लोग आए थे। बहुत से लोगों का सताव हुआ था उनके विश्वास के कारण। एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि उसके पिता को छह साल की सजा हुई थी, सिर्फ इसलिए कि वह एक मसीह पास्टर थे। उसे भी एक साल की सजा हुई थी, उन्नीस वर्ष की उम्र में, क्योंकि वह अपने पिता के पक्ष में बोल रहे थे।
यह एक भयानक अन्याय है जब निर्दोषों पर दोष लगाया जाता है और बंदीगृह में डाल दिया जाता है – और भी बुरा होता है जब उन्हें मौत की सजा दी जाती है।
आज के नये नियम के लेखांश में हम मानवीय इतिहास में सबसे बड़े अन्याय के विषय में पढ़ेंगे। यीशु पूरी तरह से निर्दोष थे। वह एक 'सत्यनिष्ठ मनुष्य' थे (लूका 23:47)। फिर भी क्रूस पर चढ़ाए जाने के द्वारा उन्हें मृत्यु दंड दिया गया। प्रेरित पतरस इस तरह से इसे समझाते हैं:' इसलिये कि मसीह ने भी, अर्थात् दुष्टों के लिये सत्यनिष्ठ ने, पापों के कारण एक बार दुःख उठाया, ताकि हमें परमेश्वर के पास पहुँचाए' (1पतरस 3:18)।
शब्द 'सत्यनिष्ठ' अक्सर 'स्वयं-सत्यनिष्ठ' से जुड़ी हुआ है और लगभग निंदा का एक शब्द बन गया है। किंतु, बाईबल में 'सत्यनिष्ठा' एक अद्भुत शब्द है। यह संपूर्ण बाईबल के विषय में हमारी समझ के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। 'सत्यनिष्ठा' सही संबंधो के विषय में है – परमेश्वर के साथ सही संबंध और दूसरों के साथ सही संबंध। नये नियम में, हम समझते हैं कि यह सत्यनिष्ठा केवल यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा संभव है (रोमियों 3:21-4:25 देखे)।
नीतिवचन 10:21-30
21 धर्मी के मुख से अनेक का भला होता,
किन्तु मूर्ख समझ के अभाव में मिट जाते।
22 यहोवा के वरदान से जो धन मिलता है,
उसके साथ वह कोई दुःख नहीं जोड़ता।
23 बुरे आचार में मूढ़ को सुख मिलता,
किन्तु एक समझदार विवेक में सुख लेता है।
24 जिससे मूढ़ भयभीत होता, वही उस पर आ पड़ेगी,
धर्मी की कामना तो पूरी की जायेगी।
25 आंधी जब गुज़रती है, दुष्ट उड़ जाते हैं,
किन्तु धर्मी जन तो, निरन्तर टिके रहते हैं।
26 काम पर जो किसी आलसी को भेजता है,
वह बन जाता है जैसे अम्ल सिरका दाँतों को खटाता है,
और धुंआ आँखों को तड़पाता दुःख देता है।
27 यहोवा का भय आयु का आयाम बढ़ाता है,
किन्तु दुष्ट की आयु तो घटती रहती है।
28 धर्मी का भविष्य आनन्द—उल्लास है।
किन्तु दुष्ट की आशा तो व्यर्थ रह जाती है।
29 धर्मी जन के लिये यहोवा का मार्ग शरण स्थल है
किन्तु जो दुराचारी है, उनका यह विनाश है।
30 धर्मी जन को कभी उखाड़ा न जायेगा,
किन्तु दुष्ट धरती पर टिक नहीं पायेगा।
समीक्षा
सत्यनिष्ठ की आशीषें
नीतिवचन की पुस्तक 'मूर्ख' के जीवन और 'बुद्धिमान' के जीवन के बीच अंतर को स्पष्ट करती हैं। यह 'सत्यनिष्ठ' के जीवन और 'दुष्ट' के जीवन के बीच भी अंतर को स्पष्ट करती हैं। यहाँ पर हम कुछ आशीषों को देखते हैं जो 'सत्यनिष्ठ' को दी गई हैं।
- दूसरों के जीवन में अंतर पैदा करना
सत्यनिष्ठ के वचनों से बहुतों का पालन-पोषण होता है' (व.21अ)। हम अकेले सत्यनिष्ठ नहीं बन सकते हैं। सत्यनिष्ठा हमारे संबंध के विषय में है - यह दूसरों को आशीष देने के विषय में है। आज अपने वचनों से आप किसका 'पालन-पोषण' (भोजन देना, मार्गदर्शित करना, उत्सहित करना) कर सकते हैं?
- बुद्धि में आनंद मनायें
'जिनके पास अंतर्ज्ञान है वह बुद्धि में आनंद मनाते हैं' (व.23ब)। परमेश्वर के साथ एक संबंध के कारण एक वस्तु आती है, वह है ज्ञान और बुद्धि के लिए एक भूख। आज बुद्धि को मांगे। परमेश्वर आपको बुद्धि देने का वायदा करते हैं जब आप मांगते हैं (याकूब 1:5)।
- इच्छाएँ पूरी होती हैं
'सत्यनिष्ठ की इच्छा पूरी होगी' (नीतिवचन 10:24ब)। परमेश्वर की आत्मा आपकी इच्छा को उनकी इच्छा के साथ बदलना शुरु करते हैं (फिलिप्पियों 2:13) और, जैसे ही यह उनकी इच्छा के साथ मिल जाता है, वैसे ही परमेश्वर आपको आपके हृदय की इच्छाओं को देने का वायदा करते हैं (भजनसंहिता 37:4)।
- आनंद का विधान
'सत्यनिष्ठ को आशा रखने में आनंद आता है ' (नीतिवचन 10:28अ)। ' सत्यनिष्ठ सर्वदा स्थिर रहता है' (व.25ब); 'परमेश्वर का भय मानने से आयु बढ़ती है' (व.27अ) और ' सत्यनिष्ठ हमेशा अटल रहेगा' (व.30अ)। सही संबंध महान आनंद के स्रोत हैं। यीशु के साथ एक संबंध में आपका आनंद 'पूरा' होता है (यूहन्ना 15:11)। आपका विधान है अनंत आनंद।
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं आपकी बुद्धि के लिए प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरे मुंह पर नियंत्रण रखे, ताकि आपके वचनों का इस्तेमाल दूसरों का पालन-पोषण करने में और उन्हें मार्गदर्शित करने में हो सके।
लूका 23:26-56
यीशु का क्रूस पर चढ़ाया जाना
26 जब वे यीशु को ले जा रहे थे तो उन्होंने कुरैन के रहने वाले शमौन नाम के एक व्यक्ति को, जो अपने खेतों से आ रहा था, पकड़ लिया और उस पर क्रूस लाद कर उसे यीशु के पीछे पीछे चलने को विवश किया।
27 लोगों की एक बड़ी भीड़ उसके पीछे चल रही थी। इसमें कुछ ऐसी स्त्रियाँ भी थीं जो उसके लिये रो रही थीं और विलाप कर रही थीं। 28 यीशु उनकी तरफ़ मुड़ा और बोला, “यरूशलेम की पुत्रियों, मेरे लिये मत बिलखो बल्कि स्वयं अपने लिये और अपनी संतान के लिये विलाप करो। 29 क्योंकि ऐसे दिन आ रहे हैं जब लोग कहेंगे, ‘वे स्त्रियाँ धन्य हैं, जो बाँझ हैं और धन्य हैं, वे कोख जिन्होंने किसी को कभी जन्म ही नहीं दिया। वे स्तन धन्य हैं जिन्होंने कभी दूध नहीं पिलाया।’ 30 फिर वे पर्वतों से कहेंगे, ‘हम पर गिर पड़ो’ और पहाड़ियों से कहेंगे ‘हमें ढक लो।’ 31 क्योंकि लोग जब पेड़ हरा है, उसके साथ तब ऐसा करते है तो जब पेड़ सूख जायेगा तब क्या होगा?”
32 दो और व्यक्ति, जो दोनों ही अपराधी थे, उसके साथ मृत्यु दण्ड के लिये बाहर ले जाये जा रहे थे। 33 फिर जब वे उस स्थान पर आये जो “खोपड़ी” कहलता है तो उन्होंने उन दोनों अपराधियों के साथ उसे क्रूस पर चढ़ा दिया, एक अपराधी को उसके दाहिनी ओर दूसरे को बाँई ओर।
34 इस पर यीशु बोला, “हे परम पिता, इन्हें क्षमा करना क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।”
फिर उन्होंने पासा फेंक कर उसके कपड़ों का बटवारा कर लिया। 35 वहाँ खड़े लोग देख रहे थे। यहूदी नेता उसका उपहास करते हुए बोले, “इसने दूसरों का उद्धार किया है। यदि यह परमेश्वर का चुना हुआ मसीह है तो इसे अपने आप अपनी रक्षा करने दो।”
36 सैनिकों ने भी आकर उसका उपहास किया। उन्होंने उसे सिरका पीने को दिया 37 और कहा, “यदि तू यहूदियों का राजा है तो अपने आपको बचा ले।” 38 (उसके ऊपर यह सूचना अंकित कर दी गई थी, “यह यहूदियों का राजा है।”)
39 वहाँ लटकाये गये अपराधियों में से एक ने उसका अपमान करते हुए कहा, “क्या तू मसीह नहीं है? हमें और अपने आप को बचा ले।”
40 किन्तु दूसरे ने उस पहले अपराधी को फटकारते हुए कहा, “क्या तू परमेश्वर से नहीं डरता? तुझे भी वही दण्ड मिल रहा है। 41 किन्तु हमारा दण्ड तो न्याय पूर्ण है क्योंकि हमने जो कुछ किया, उसके लिये जो हमें मिलना चाहिये था, वही मिल रहा है पर इस व्यक्ति ने तो कुछ भी बुरा नहीं किया है।” 42 फिर वह बोला, “यीशु जब तू अपने राज्य में आये तो मुझे याद रखना।”
43 यीशु ने उससे कहा, “मैं तुझ से सत्य कहता हूँ, आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।”
यीशु का देहान्त
44 उस समय दिन के बारह बजे होंगे तभी तीन बजे तक समूची धरती पर गहरा अंधकार छा गया। 45 सूरज भी नहीं चमक रहा था। उधर मन्दिर में परदे फट कर दो टुकड़े हो गये। 46 यीशु ने ऊँचे स्वर में पुकारा, “हे परम पिता, मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों सौंपता हूँ।” यह कहकर उसने प्राण छोड़ दिये।
47 जब रोमी सेनानायक ने, जो कुछ घटा था, उसे देखा तो परमेश्वर की प्रशंसा करते हुए उसने कहा, “यह निश्चय ही एक अच्छा मनुष्य था!”
48 जब वहाँ देखने आये एकत्र लोगों ने, जो कुछ हुआ था, उसे देखा तो वे अपनी छाती पीटते लौट गये। 49 किन्तु वे सभी जो उसे जानते थे, उन स्त्रियों समेत, जो गलील से उसके पीछे पीछे आ रहीं थीं, इन बातों को देखने कुछ दूरी पर खड़े थे।
अरमतियाह का यूसुफ
50-51 अब वहीं यूसुफ नाम का एक पुरुष था जो यहूदी महासभा का एक सदस्य था। वह एक अच्छा धर्मी पुरुष था। वह उनके निर्णय और उसे काम में लाने के लिये सहमत नहीं था। वह यहूदियों के एक नगर अरमतियाह का निवासी था। वह परमेश्वर के राज्य की बाट जोहा करता था। 52 वह व्यक्ति पिलातुस के पास गया और यीशु के शव की याचना की। 53 उसने शव को क्रूस पर से नीचे उतारा और सन के उत्तम रेशमों के बने कपड़े में उसे लपेट दिया। फिर उसने उसे चट्टान में काटी गयी एक कब्र में रख दिया, जिसमें पहले कभी किसी को नहीं रखा गया था। 54 वह शुक्रवार का दिन था और सब्त का प्रारम्भ होने को था।
55 वे स्त्रियाँ जो गलील से यीशु के साथ आई थीं, यूसुफ के पीछे हो लीं। उन्होंने वह कब्र देखी, और देखा कि उसका शव कब्र में कैसे रखा गया। 56 फिर उन्होंने घर लौट कर सुगंधित सामग्री और लेप तैयार किये।
सब्त के दिन व्यवस्था के विधि के अनुसार उन्होंने आराम किया।
समीक्षा
दुष्ट के लिए सत्यनिष्ठ
यह लेखांश हम सभी को आशा प्रदान करता है। हम एक अपराधी के उदाहरण से देखते हैं, जिसे यीशु के साथ मृत्युदंड की आज्ञा हुई थी, कि जिस क्षण आप अपने पाप को मान लेते हैं और यीशु की ओर मुड़ते हैं, तब आप पूर्ण क्षमा को ग्रहण करते हैं और परमेश्वर के साथ एक 'सही संबंध' में आ जाते हैं। इस उपहार को कमाने के लिए इस आदमी ने कुछ भी नहीं किया। उसके पास बपतिस्मा लेने का अवसर भी नहीं था। फिर भी, तुरंत ही, इस अपराधी ने वायदे को ग्रहण किया कि उसी दिन वह यीशु के साथ स्वर्ग में होगा (व.43)। यह कैसे संभव है?
- यीशु की सत्यनिष्ठा
क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जिसने आपको चोट पहुँचाई है, और आपको उसे आज क्षमा करना चाहिए?
यीशु अपने शत्रुओं से प्रेम करने के स्तर को बहुत ऊँचा रखते हैं – हमारे आलोचक, जो निंदा करते हैं और हम पर हँसते हैं। हमारे चरित्र की परीक्षा यह है कि जब हम कष्ट उठाते हैं और दर्द में होते हैं तब हमारी प्रतिक्रिया क्या होती है। यीशु, जैसे ही क्रूस पर उनका सताव होता है, तब वह अपने सताने वालों के लिए प्रार्थना करते हैं:'पिता, उन्हें क्षमा करें, क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं (व.34)।
यीशु पिता के साथ एक सही संबंध में जी रहे थे। लूका के सुसमाचार में दर्ज उनके अंतिम वचन हैं:'पिता, आपके हाथों में मैं अपनी आत्मा सौंपता हूँ' (व.46)।
यहाँ तक कि रोमी सूबेदार, 'ने यह देखकर कि क्या हुआ है, परमेश्वर की स्तुती की और कहा, 'सच में यह एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति था' (व.47)।
- हम सभी की दुष्टता
यीशु की सत्यनिष्ठा उन लोगों से अलग थी जो खड़े होकर देख रहे थे, शासक जो यीशु पर हँस रहे थे (व.35), सैनिक जो उसका ठट्ठा उड़ा रहे थे (व.36) और जो लोग न्यायानुसार दण्ड पा रहे थे, क्योंकि वे अपने कामों का ठीक फल पा रहे थे (व.41)।
उनमें से एक ने यीशु का अपमान किया। दूसरे ने अपने साथी अपराधी को डाँटा और, यीशु की ओर फिरकर उसने अपने पाप को माना (हम तो न्यायअनुसार दंड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं, व.41अ) और यीशु की सत्यनिष्ठा (इस मनुष्य ने कुछ भी गलत नहीं किया है, व.41ब)। तब उसने कहा, 'यीशु जब तुम अपने राज्य में जाओगे तब मेरी सुधि लेना' (व.42)। यीशु ने उसे उत्तर दिया, 'मैं तुझ से सच कहता हूँ कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा' (व.43)।
- दुष्टों के लिए सत्यनिष्ठ मारा गया
यह लेखांश व्यंग्य से भरा हुआ है। जैसे ही शासक यीशु पर हँस रहे थे, कहते हुए, ' 'इसने दूसरों को बचाया, यदि यह परमेश्वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपने आप को बचा ले' (व.35)। सैनिक ठट्ठा कर रहे थे, 'यदि तू यहूदियों का राजा है तो अपने आपको बचा ले' (व.37)।
एक अपराधी उसे पुकारता हैः 'क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!' (व.39)। वास्तव में, वह उन लोगों को और हमें बचाने के लिए अपनी जान दे रहे थे। लेकिन ऐसा करने में वह अपने आपको नहीं बचा सके। 'दुष्टों के लिए सत्यनिष्ठ ने अपनी जान दी, ताकि हमें परमेश्वर के पास पहुँचाए' (1पतरस 3:18)।
मंदिर का पर्दा दो भागों में बँट गया (लूका 23:45)यह बताते हुए कि यीशु की मृत्यु के द्वारा परमेश्वर की उपस्थिति में अब सभी का जाना संभव हुआ है। यीशु ने इसे आपके लिए और मेरे लिए संभव बनाया कि परमेश्वर के साथ एक सही संबंध को हम रखे।
- ' सत्यनिष्ठा' या 'दुष्टता'?
दो अपराधियों के बीच के अंतर और यीशु के प्रति उनकी प्रतिक्रिया के बीच के अंतर में, लूका हमारे सामने वह निर्णय रखते हैं जो हम सभी को लेने की आवश्यकता है। आप यीशु को नकार सकते हैं, जैसा कि उनमें से एक ने किया। या आप उनमें अपना विश्वास रख सकते हैं, जैसा कि दूसरे व्यक्ति ने किया जब उसने यीशु की ओर मुड़कर कहा, 'यीशु, मुझे याद रखना' (व.42)।
लेकिन बहुतों ने उस समय यीशु को नकारा, तब भी दूसरों ने उन पर विश्वास किया। उदाहरण के लिए, अरिमतिया का युसूफ ' सज्जन और सत्यनिष्ठ पुरुष था' (व.50), वह यीशु में विश्वास करता था। वह महासभा के निर्णय से प्रसन्न नहीं था (व.51), और परमेश्वर के राज्य का इंतजार कर रहा था (व.51) और उसने यीशु के लिए सम्मानपूर्वक दफनाने की विधी का इंतजाम किया।
जो महिलाएँ यीशु के साथ आयी थी, उन्होंने भी यीशु में विश्वास किया। वह 'युसूफ के पीछे-पीछे गई और कब्र को देखा और कैसे उनके शरीर को लिटाया गया था यह देखा। तब वे घर गए और मसाले और इत्र तैयार किए। लेकिन आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने सब्त के दिन विश्राम किया' (वव.55-56)।
यदि आप कभी परमेश्वर के प्रेम को कमाने का बोझ महसूस करते हैं, तो आप इस लेखांश के द्वारा शांति पा सकते हैं कि परमेश्वर आपसे अधिक प्रेम करें इसके लिए आप कुछ नहीं कर सकते हैं और परमेश्वर आपसे कम प्रेम करें इसके लिए भी आप कुछ नहीं कर सकते हैं।
प्रार्थना
धन्यवाद परमेश्वर क्योंकि विश्वास के द्वारा आप मुझे सत्यनिष्ठा का उपहार देते हैं और परमेश्वर के साथ मुझे एक सही संबंध में रखते हैं।
यहोशू 9:16-10:43
16 तीन दिन बाद, इस्राएल के लोगों को पता चला कि वे लोग उनके डेरे के बहुत करीब रहते हैं। 17 इसलिए इस्राएल के लोगो वहाँ गये, जहाँ वे लोग रहते थे। तीसरे दिन, इस्राएल के लोग गिबोन, कपीरा, बेरोत और किर्यत्यारीम नगरों को आए। 18 किन्तु इस्राएल की सेना ने इन नगरों के विरुद्ध लड़ने का प्रयत्न नहीं किया। वे उन लोगों के साथ शान्ति—सन्धि कर चुके थे। उन्होंने उन लोगों के साथ इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के समाने प्रतिज्ञा की थी।
सभी लोग उन प्रमुखों के विरुद्ध शिकायत कर रहे थे, जिन्होंने सन्धि की थी। 19 किन्तु प्रमुखों ने उत्तर दिया, “हम लोगों ने प्रतिज्ञा की है। हम लोगों ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के सामने प्रतिज्ञा की है। हम उनके विरुद्ध अब लड़ नही सकते। 20 हम लोगों को केवल इतना ही करना चाहिये। हम उन्हें जीवित अवश्य रहने दें। हम उन्हें चोट नहीं पहुँचा सकते क्योंकि उनके साथ की गई प्रतिज्ञा को तोड़ने पर यहोवा का क्रोध हम लोगों के विरूद्ध होगा। 21 इसलिए इन्हें जीवित रहने दो। यह हमारे सेवक होंगे। वे हमारे लिये लकड़ियाँ काटेंगे और हम सबके लिए पानी लाएंगे।” इस प्रकार प्रमुखों ने इन लोगों के साथ की गई अपनी शान्ति—सन्धि को नहीं तोड़ा।
22 यहोशू ने गिबोनी लोगों को बुलाया। उसने कहा, “तुम लोगों ने हमसे झूठ क्यों बोला? तुम्हारा प्रदेश हम लोगों के डेरे के पास था। किन्तु तुम लोगों ने कहा कि हम लोग बहुत दूर देश के हैं। 23 अब तुम्हारे लोगो को बहुत कष्ट होगा। तुम्हारे सभी लोग दास होंगे उन्हें परमेश्वर के निवास के लिये लकड़ी काटनी और पानी लाना पड़ेगा।”
24 गिबोनी लोगों ने उत्तर दिया, “हम लोगों ने आपसे झूठ बोला क्योंकि हम लोगों को डर था कि आप कहीं हमें मार न डालें। हम लोगों ने सुना कि परमेश्वर ने अपने सेवक मूसा को यह आदेश दिया था कि वे तुम्हें यह सारा प्रदेश दे दे और परमेश्वर ने तुमसे उस प्रदेश में रहने वाले सभी लोगों को मार डालने के लिये कहा। यही कारण है कि हम लोगों ने आपसे झूठ बोला। 25 अब हम आपके सेवक हैं। आप हमारा उपयोग जैसा ठीक समझें, कर सकते हैं।”
26 इस प्रकार गिबोन के लोग दास हो गए। किन्तु यहोशू ने उनका जीवन बचाया। यहोशू ने इस्राएल के लोगों को उन्हें मारने नहीं दिया। 27 यहोशू ने गिबोन के लोगों को इस्राएल के लोगों का दास बनने दिया। वे इस्राएल के लोगों और यहोवा के चुने गए जिस किसी भी स्थान की वेदी के लिए लकड़ी काटते और पानी लाते थे। वे लोग अब तक दास हैं।
वह दिन जब सूर्य स्थिर रहा
10इस समय अदोनीसेदेक यरूशलेम का राजा था। इस राजा ने सुना कि यहोशू ने ऐ को जीता है और इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया है। राजा को यह पता चला कि यहोशू ने यरीहो और उसके राजा के साथ भी यही किया है। राजा को यह भी जानकारी मिली कि गिबोन ने इस्राएल के साथ, शान्ति—सन्धि कर ली है और वे लोग यरूशलेम के बहुत निकट रहते थे। 2 अत: अदोनीसेदेक और उसके लोग इन घटनाओं के कारण बहुत भयभीत थे। गिबोन ऐ की तरह छोटा नगर नहीं था। गिबोन एक शाही नगर जैसा बहुत बड़ा नगर था। और नगर के सभी पुरुष अच्छे योद्धा थे। अत: राजा भयभीत था। 3 यरूशलेम के राजा अदोनीसेदेक ने हेब्रोन के राजा होहाम से बातें कीं। उसने यर्मूत के राजा पिराम, लाकीश के राजा यापी, एग्लोन के राजा दबीर से भी बातचीत की। यरूशलेम के राजा ने इन व्यक्तियों से प्रार्थना की, 4 “मेरे साथ आएं और गिबोन पर आक्रमण करने में मेरी सहायता करें। गिबोन ने यहोशू और इस्राएल के लोगों के साथ शान्ति सन्धि कर ली है।”
5 इस प्रकार पाँच एमोरी राजाओं ने सेनाओं को मिलाया। (ये पाँचों यरूशलेम के राजा, हेब्रोन के राजा, यर्मूत के राजा, लाकीश के राजा, और एग्लोन के राजा थे।) वे सेनायें गिबोन गईं। सेनाओं ने नगर को घेर लिया और इसके विरूद्ध युद्ध करना आरम्भ किया।
6 गिबोन नगर में रहने वाले लोगों ने गिलगाल के डेरे में यहोशू को खबर भेजी: “हम तुम्हारे सेवक हैं! हम लोगों को अकेले न छोड़ो। आओ और हमारी रक्षा करो! शीघ्रता करो! हमें बचाओ! पहाड़ी प्रदेशों के सभी एमोरी राजा अपनी सेनायें एक कर चुके हैं। वे हमारे विरुद्ध युद्ध कर रहे हैं।”
7 इसलिए यहोशू गिलगाल से अपनी पूरी सेना के साथ युद्ध के लिये चला। यहोशू के उत्तम योद्धा उसके साथ थे। 8 यहोवा ने यहोशू से कहा, “उन सेनाओं से डरो नहीं । मैं तुम्हें उनको पराजित करने दूँगा। उन सेनाओं में से कोई भी तुमको हराने में समर्थ नहीं होगा।”
9 यहोशू और उसकी सेना रात भर गिबोन की ओर बढ़ती रही। शत्रु को पता नहीं था कि यहोशू आ रहा है। इसलिए जब उसने आक्रमण किया तो वे चौंक पड़े।
10 यहोवा ने उन सेनाओं को, इस्रएल की सेनाओं द्वारा आक्रमण के समय, किंकर्तव्य विमूढ़ कर दिया। इसलिये इस्रालियों ने उन्हें हरा कर भारी विजय पायी। इस्राएलियों ने पीछा करके उन्हें गिबोन से खदेड़ दिया। उन्होंने बेथोरोन तक जाने वाली सड़क तक उनका पीछा किया। इस्राएल की सेना ने अजेका और मक्केदा तक के पूरे रास्ते में पुरुषों को मारा। 11 इस्राएल की सेना ने बेथोरोन अजेका को जाने वाली सड़क तक शत्रुओं का पीछा किया। जब वे शत्रु का पीछा कर रहे थे तो यहोवा ने भारी ओलों की वर्षा आकाश से की। बहुत से शत्रु इन भारी ओलो से मर गए। इन ओसों से उससे अधिक शत्रु मारे गए जितने इस्राएलियों ने अपनी तलवारों से मारे थे।
12 उस दिन यहोवा ने इस्राएलियों द्वारा एमोरी लोगों को पराजित होने दिया और उस दिन यहोशू इस्राएल के सभी लोगों के सामने खड़ा हुआ और उसने यहोवा से कहाः
“हे सूर्य, गिबोन के आसमान में खड़े रह और हट नहीं।
हे चन्द्र तू अय्यालोन की घाटी के ऊपर आसमान में खड़े रह और हट नहीं।”
13 सूर्य स्थिर हो गया और चन्द्रमा ने भी तब तक चलना छोड़ दिया जब तक लोगों ने अपने शत्रुओं को पराजित नहीं कर दिया। यह सचमुच हुआ, यह कथा याशार की किताब में लिखी है। सूर्य आसमान के मध्य रुका। यह पूरे दिन वहाँ से नहीं हटा। 14 ऐसा उस दिन के पहले किसी भी समय कभी नहीं हुआ था और तब से अब तक कभी नहीं हुआ है। वही दिन था, जब यहोवा ने मनुष्य की प्रार्थना मानी। वास्तव में यहोवा इस्राएलियों के लिये युद्ध कर रहा था!
15 इसके बाद, यहोशू और उसकी सेना गिलगाल के डेरे में वापस हुई। 16 युद्ध के समय पाँचों राजा भाग गए। वे मक्केदा के निकट गुफा में छिप गए। 17 किन्तु किसी ने पाँचों राजाओं को गुफा में छिपे पाया। यहोशू को इस बारे में पता चला। 18 यहोशू ने कहा, “गुफा को जाने वाले द्वार को बड़ी शिलाओं से ढक दो। कुछ पुरुषों को गुफा की रखवाली के लिये वहाँ रखो। 19 किन्तु वहाँ स्वयं न रहो। शत्रु का पीछा करते रहो। उन पर पीछे से आक्रमण करते रहो। शत्रुओं को अपने नगर तक सुरक्षित न पहुँचने दो। तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें उन पर विजय दी है।”
20 इस प्रकार यहोशू और इस्राएल के लोगों ने शत्रु को मार डाला। किन्तु शत्रुओं में से जो कुछ अपने सुदृढ़ परकोटों से घिरे नगरों में पहुँच जाने में सफल हो गए और छिप गए। वे व्यक्ति नहीं मारे गए। 21 युद्ध के बाद, यहोशू के सैनिक मक्केदा में उनके पास आए। उस प्रदेश में किसी भी जाति के लोगों में से कोई भी इतना साहसी नहीं था कि वह लोगों के विरुद्ध कुछ कह सके।
22 यहोशू ने कहा, “गुफा के द्वार को रोकने वाली शिलाओं को हटाओ। उन पाँचों राजाओं को मेरे पास लाओ।” 23 इसलिए यहोशू के लोग पाँचों राजाओं को गुफा से बाहर लाए। ये पाँचों यरूशलेम, हेब्रोन, यर्मूत, लाकीश और एग्लोन के राजा थे। 24 अत: वे उन पाँचों राजाओं को यहोशू के पास लाए। यहोशू ने अपने सभी लोगों को वहाँ आने के लिये कहा। यहोशू ने सेना के अधिकारियों से कहा, “यहाँ आओ! इन राजाओं के गले पर अपने पैर रखो।” इसलिए यहोशू की सेना के अधिकारी निकट आए। उन्होंने राजाओं के गले पर अपने पैर रखे।
25 तब यहोशू ने अपने सैनिकों से कहा, “दृढ़ और साहसी बनो! डरो नहीं! मैं दिखाऊँगा कि यहोवा उन शत्रुओं के साथ क्या करेगा, जिनसे तुम भविष्य में युद्ध करोगे।”
26 तब यहोशू ने पाँचों राजाओं को मार डाला। उसने उनके शव पाँच पेड़ों पर लटकाये। यहोशू ने उन्हें सूरज ढलने तक वहीं लटकते छोड़े रखा। 27 सूरज ढले को यहोशू ने अपने लोगों से शवों को पेड़ों से उतारने को कहा। तब उन्होंने उन शवों को उस गुफा में फेंक दिया जिसमें वे छिपे थे। उन्होंने गुफा के द्वार को बड़ी शिलाओं से ढक दिया। जो आज तक वहाँ हैं।
28 उस दिन यहोशू ने मक्केदा को हराया। यहोशू ने राजा और उस नगर के लोगों को मार डाला। वहाँ कोई व्यक्ति जीवित न छोड़ा गया। यहोशू ने मक्केदा के राजा के साथ भी वही किया जो उसने यरीहो के राजा के साथ किया था।
दक्षिणी नगरों का लिया जाना
29 तब यहोशू और इस्राएल के सभी लोगों ने मक्केदा से यात्रा की। वे लिब्ना गए और उस नगर पर आक्रमण किया। 30 यहोवा ने इस्राएल के लोगों को उस नगर और उसके राजा को पराजित करने दिया। इस्राएल के लोगों ने उस नगर के हर एक व्यक्ति को मार डाला। कोई व्यक्ति जीवित नहीं छोड़ा गया और लोगों ने राजा के साथ वही किया जो उन्होंने यरीहो के राजा के साथ किया था।
31 तब यहोशू और इस्राएल के सभी लोगों ने लिब्ना को छोड़ा और उन्होंने लाकीश तक की यात्रा की। यहोशू और उसकी सेना ने लिब्ना के चारों ओर डेरे डाले और तब उन्होंने नगर पर आक्रमण किया। 32 यहोवा ने इस्राएल के लोगों द्वारा लाकीश नगर को पराजित करने दिया। दूसरे दिन उन्होंने उस नगर को हराया। इस्राएल के लोगों ने इस नगर के हर एक व्यक्ति को मार डाला यह वैसा ही था जैसा उसने लिब्ना में किया था। 33 इसी समय गेजेर का राजा होरोम लाकीश की सहायता करने आया। किन्तु यहोशू ने उसे और उसकी सेना को भी हराया। कोई व्यक्ति जीवित नहीं छोड़ा गया।
34 तब यहोशू और इस्राएल के सभी लोग लाकीश से एग्लोन गए। उन्होंने एग्लोन के चारों ओर डेरे डाले और उस पर आक्रमण किया। 35 उस दिन उन्होंने नगर पर अधिकार किया और नगर के सभी लोगों को मार डाला। यह वैसा ही किया जैसा उन्होंने लाकीश में किया था।
36 तब यहोशू और इस्राएल के सभी लोगों ने एग्लोन से हेब्रोन की यात्रा की। उन्होंने हेब्रोन पर आक्रमण किया। 37 उन्होंने नगर तथा हेब्रोन के निकट के सभी छोटे उपनगरों पर अधिकार कर लिया। इस्राएल के लोगों ने नगर के हर एक व्यक्ति को मार डाला। वहाँ कोई भी जीवित नहीं छोड़ा गया। यह वैसा ही था जैसा उन्होंने एग्लोन में किया था। उन्होंने नगर को नष्ट किया और उसके सभी व्यक्तियों को मार डाला।
38 तब यहोशू और इस्राएल के सभी लोग दबीर को गए और उस नगर पर आक्रमण किया। 39 उन्होंने उस नगर, उसके राजा और दबीर के निकट के सभी उपनगरों को जीता। उन्होंने उस नगर के सभी लोगों को मार डाला वहाँ कोई जीवित नहीं छोड़ा गया। इस्राएल के लोगों ने दबीर और उसके राजा के साथ वही किया जो उन्होंने हेब्रोन और उसके राजा के साथ किया था। यह वैसा ही था जैसा उन्होंने लिब्ना और उसके राजा के साथ किया था।
40 इस प्रकार यहोशू ने पहाड़ी प्रदेश नेगेव पश्चिमी और पूर्वी पहाड़ियों और तराई के नगरों के राजाओं को हराया। इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने यहोशू से सभी लोगों को मार डालने को कहा था। इसलिए यहोशू ने उन स्थानों पर किसी को जीवित नहीं छोड़ा।
41 यहोशू ने कादेशबर्ने से अज्जा तक के सभी नगरों पर अधिकार कर लिया। उसने मिस्र में गोशेन की धरती से लेकर गिबोन तक के सभी नगरों पर कब्जा कर लिया। 42 यहोशू ने एक अभियान में उन नगरों और उनके राजाओं को जीत लिया। यहोशू ने यह इसलिए किया कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा इस्राएल के लिये लड़ रहा था। 43 तब यहोशू और इस्राएल के सभी लोग गिलगाल के अपने डेरे में लौट आए।
समीक्षा
विश्वास के द्वारा सत्यनिष्ठ
यहोशू के लिए डरने के बहुत से कारण थे। लेकिन परमेश्वर ने यहोशू से कहा, जैसा कि वह आज आपसे और मुझसे कहते हैं, 'डरो मत; निराश मत हो। मजबूत और साहसी बनो' (10:25)।
यरूशलेम के राजा का नाम अदोनीसेदेक था (व.1)। 'सेदेक' का अर्थ है ' सत्यनिष्ठ' किंतु, सारी संभावना में वह सत्यनिष्ठा से दूर था। यह सामान्य बात है कि उस समय कनान में रहने वाले लोग सभी प्रकार के बालकों की बली और दूसरे बुरे अभ्यासों में शामिल थे।
दूसरी ओर, यहोशू परमेश्वर के साथ एक सही संबंध में जी रहा था। नया नियम इसे स्पष्ट करता है कि यहोशू की सत्यनिष्ठा, अब्राहम और पुराने नियम के दूसरे लोगों की तरह, 'विश्वास' के द्वारा आयी थी (रोमियों 3:21 – 4:25)। यहोशू विश्वास का मनुष्य था (इब्रानियों 11:30)।
यीशु की मृत्यु का परिणाम केवल उनके बाद जीने वालों तक सीमित नहीं था। यीशु की मृत्यु ने उन लोगों को भी प्रभावित किया जो उनसे पहले जीवित थे। यीशु ने अब्राहम, मूसा और यहोशू के लिए अपनी जान दी। वह क्रूस पर अपराधी के लिए मर गए। वह मेरे लिए मरे। वह आपके लिए मरे। हम सत्यनिष्ठ बना दिए गए हैं: 'परमेश्वर की वह सत्यनिष्ठा जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये है' (रोमियो 3:22)।
प्रार्थना
परमेश्वर आपका धन्यवाद क्योंकि आपने जान दी, सत्यनिष्ठ ने दुष्टों के लिए। मेरी सहायता कीजिए कि आज आपके साथ एक सही जीवन जी सकूँ और दूसरों के साथ एक सही जीवन जी सकूँ।
पिप्पा भी कहते है
लूका 23:55-56अ
महिलाएँ ईमानदार, बहादुर और प्रायोगिक थी। उन्होंने पता लगाया कि यीशु के शरीर को कहाँ रखा गया था और उन्होंने जाकर वह किया जो वह कर सकती थी। उन्होंने आर्थिक रूप से और प्रायोगिक रूप से यीशु के जीवनकाल में उनकी सहायता की थी, और वे अंत तक उनकी देखभाल करने वाले थे।
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संदर्भ
नोट्स:
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जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।