दिन 12

डर से कैसे लड़ें

बुद्धि नीतिवचन 1:20-33
नए करार मत्ती 10:1-31
जूना करार उत्पत्ति 25:1-26:35

परिचय

एक स्तर तक डर लाभदायक है। ‘डर’ एक भावना है जिसे संभावित एक खतरे द्वारा प्रेरित किया जाता है। यह एक स्वाभाविक मानव भावना है। यह परमेश्वर द्वारा दिया गया है। यह मूलभूत जीवन रक्षा तंत्र है। यह हमें जीवित रखता है। यह हमें खतरे से बचाता है।

हालाँकि, हानिकारक डर जैसी चीज़ भी है। नये नियम में सामान्य रूप से प्रयोग किया गया ग्रीक शब्द फोबोस है – जो हमें ‘फोबिया’ से मिलता है। यह हानिकारक डर है। यह आनेवाले खतरे के असमानुपाती होता है। यह ‘गलत प्रमाण है जो सही दिखाई देता है’। यह तब होता है जब मैं ज़्यादा खतरे का अनुमान लगाता हूँ और इससे लड़ने की क्षमता को कम समझने लगता हूँ।

सामान्य डर में बीमारी, धन, असफलता, बूढ़ा होना, मृत्यु, अकेलापन, तिरस्कार, गड़बड़ी, लोगों में बोलना, उड़ान, ऊँचाई, सांप, और मकड़ी आदि से सबंधित डर शामिल हैं। इनमें ये चीज़ें भी शामिल हैं जिसे आजकल FOMO बुलाया जाता है – चूकने का डर, कोई खास न होने का डर।

मेरे खुद के जीवन में मैंने कई डरों को अनुभव किया है – ऊँचाई के डर से लेकर दु:खदायी दौरा और अन्य अनजान डर, प्रचार करने के बारे में डर और कोई ऐसी चीज़ें करने का डर जो यीशु के नाम को अपमानित करे।

जबकि परमेश्वर का आत्मा नकारात्मक डर पैदा नहीं करता, यह एक तरह से लाभकारी डर है – परमेश्वर का भय इसका मतलब परमेश्वर से डरना नहीं है। वास्तव में, इसका मतलब ठीक उल्टा है। इसका मतलब परमेश्वर को समझना है जो हमसे संबंधित हैं। इसका मतलब आदर, प्रमाणिकता, श्रद्धायुक्त भय, सम्मान, गहरा प्रेम और आराधना है, बल्कि इसे परमेश्वर के प्रति प्रेम के रूप में भी अनुवादित किया जा सकता है। इसकी पहचान परमप्रधान परमेश्वर की सामर्थ, महिमा और पवित्रता से है। यह हमें परमेश्वर का आदर करने में मदद करता है और यह बाकी के सभी डर और भय का प्रतिकार है जिसका अनुभव हम जीवन में करते हैं। परमेश्वर का भय मानो और आपको कभी भी किसी से भी डरने की ज़रूरत नहीं है।

यह संयोग नहीं है कि हमारे समाज में परमेश्वर का भय कम हो गया है, और बाकी के सभी डर बढ़ गए हैं। हमें परमेश्वर के साथ सही संबंध की ओर वापस आना है।

अभिव्यक्ति ‘मत डर’, यह आज्ञा बाइबल में सबसे ज़्यादा दी गई है। हमारे आज के पद्यांश में चार घटनाएं बताई गई हैं।

बुद्धि

नीतिवचन 1:20-33

चेतावनी: बुद्धिहीन मत बनो

20 बुद्धि! तो मार्ग में ऊँचे चढ़ पुकारती है,
 चौराहों पर अपनी आवाज़ उठाती है।
21 शोर भरी गलियों के नुक्कड़ पर पुकारती है,
 नगर के फाटक पर निज भाषण देती है:

22 “अरे भोले लोगों! तुम कब तक अपना मोह सरल राहों से रखोगे?
 उपहास करनेवालों, तुम कब तक उपहासों में आनन्द लोगे? अरे मूर्खो,
 तुम कब तक ज्ञान से घृणा करोगे?
23 यदि मेरी फटकार तुम पर प्रभावी होती
 तो मैं तुम पर अपना हृदय उंडेल देती और
 तुम्हें अपने सभी विचार जना देती।
24 “किन्तु क्योंकि तुमने तो मुझको नकार दिया जब मैंने तुम्हें पुकारा,
 और किसी ने ध्यान न दिया, जब मैंने अपना हाथ बढ़ाया था।
25 तुमने मेरी सब सम्मत्तियाँ उपेक्षित कीं
 और मेरी फटकार कभी नहीं स्वीकारीं!
26 इसलिए, बदले में, मैं तेरे नाश पर हसूँगी।
 मैं उपहास करूँगी जब तेरा विनाश तुझे घेरेगा!
27 जब विनाश तुझे वैसे ही घेरेगा जैसे भीषण बबूले सा बवण्डर घेरता है,
 जब विनाश जकड़ेगा,
 और जब विनाश तथा संकट तुझे डुबो देंगे।

28 “तब, वे मुझको पुकारेंगे किन्तु मैं कोई भी उत्तर नहीं दूँगी।
 वे मुझे ढूँढते फिरेगें किन्तु नहीं पायेंगे।
29 क्योंकि वे सदा ज्ञान से घृणा करते रहे,
 और उन्होंने कभी नहीं चाहा कि वे यहोवा से डरें।
30 क्योंकि वे, मेरा उपदेश कभी नहीं धारण करेंगे,
 और मेरी ताड़ना का तिरस्कार करेंगे।
31 वे अपनी करनी का फल अवश्य भोगेंगे,
 वे अपनी योजनाओं के कुफल से अघायेंगे!
32 “सीधों की मनमानी उन्हें ले डूबेगी,
 मूर्खों का आत्म सुख उन्हें नष्ट कर देगा।
33 किन्तु जो मेरी सुनेगा वह सुरक्षित रहेगा,
 वह बिना किसा हानि के भय से रहित वह सदा चैन से रहेगा।”

समीक्षा

कोई डर नहीं, कोई नुकसान नहीं

यह पद्यांश आपको ‘आतंक और घबराहट’ हटाने के लिए एक कुंजी है (पद - 26, ए.एम.पी.) और ‘वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा’ (पद - 33, ए.एम.पी.)।

‘परमेश्वर का भय’ मानना नीतिवचन के विषय की कुंजी है और यह इस पुस्तक में 21 बार दिखाई देता है। यह एक चुनाव है जो आप करते हैं। यदि आप बुद्धिमान हैं, तो आप ‘परमेश्वर का भय मानना चुनेंगे ’ (पद - 29) और उनकी सुनेंगे। और वह वादा करते हैं कि आप ‘ सुरक्षित और सुख से रहेंगे’ (पद - 33)।

नीतिवचन की पुस्तक में बुद्धि पर ज़ोर दिया गया है (पद - 20)। जब हम इसे नये नियम की दृष्टि से पढ़ते हैं, तो हम जान जाते हैं कि यीशु ही ‘परमेश्वर की बुद्धि हैं’ (1 कुरिंथियों 1:24)।

यह पद्यांश (नीतिवचन 1:20-30) हमें प्रभु की आवाज़ की अवहेलना और ‘स्वच्छंदता’ तथा ‘परितोष’ के मार्ग पर चलने के विरूद्ध चेतावनी देता है (पद - 32)।

इसके बजाय परमेश्वर का भय मानने, उनकी सुनने और जब वह आपको सही करें तो मन फिराने के लिए कहता है। यदि आप ऐसा करेंगे, तो परमेश्वर आपको आपकी कल्पना से ज़्यादा प्रकाशन देंगे। ‘मैं \[बुद्धि\] अपनी आत्मा तुम्हारे लिये उण्डेल दूंगी; मैं तुम को अपने वचन बताऊंगी।’ (पद - 23अ, ए.एम.पी.)। वह अपने वचनों में बुद्धि के छिपे ख़ज़ाने को आपको प्रकट करेंगे। परमेश्वर का भय मानो और आप ‘अच्छे हाथों में होंगे’ (पद – 33, एम.एस.जी.) और डर के नुकसान से मुक्ति पाएंगे।

प्रार्थना

प्रभु, मैं परमेश्वर का भय मानने और एक ऐसा जीवन जीने का चुनाव करता हूँ जो आपकी सामर्थ, महिमा और पवित्रता के सम्मान और आदर में हो। केवल आपका भय मानते हुए जीने के लिए मेरी मदद कीजिये।

नए करार

मत्ती 10:1-31

सुसमाचार के प्रचार के लिए प्रेरितों को भेजना

10सो यीशु ने अपने बारह शिष्यों को पास बुलाकर उन्हें दुष्टात्माओं को बाहर निकालने और हर तरह के रोगों और संतापों को दूर करने की शक्ति प्रदान की।

2 उन बारह प्रेरितों के नाम ये हैं: सबसे पहला शमौन, (जो पतरस कहलाया), और उसका भाई अंद्रियास, जब्दी का बेटा याकूब और उसका भाई यूहन्ना, 3 फिलिप्पुस, बरतुल्मै, थोमा, कर वसूलने वाला मत्ती, हलफै का बेटा याकूब और तद्दै, 4 शमौन जिलौत और यहूदा इस्करियोती (जिसने उसे धोखे से पकड़वाया था)।

5 यीशु ने इन बारहों को बाहर भेजते हुए आज्ञा दी, “गै़र यहूदियों के क्षेत्र में मत जाओ तथा किसी भी सामरी नगर में प्रवेश मत करो। 6 बल्कि इस्राएल के परिवार की खोई हुई भेड़ों के पास ही जाओ 7 और उन्हें उपदेश दो, ‘स्वर्ग का राज्य निकट है।’ 8 बीमारों को ठीक करो, मरे हुओं को जीवन दो, कोढ़ियों को चंगा करो और दुष्टात्माओं को निकालो। तुमने बिना कुछ दिये प्रभु की आशीष और शक्तियाँ पाई हैं, इसलिये उन्हें दूसरों को बिना कुछ लिये मुक्त भाव से बाँटो। 9 अपने पटुके में सोना, चाँदी या ताँबा मत रखो। 10 यात्रा के लिए कोई झोला तक मत लो। कोई फालतू कुर्ता, चप्पल और छड़ी मत रखो क्योंकि मज़दूर का उसके खाने पर अधिकार है।

11 “तुम लोग जब कभी किसी नगर या गाँव में जाओ तो पता करो कि वहाँ विश्वासयोग्य कौन है। फिर तब तक वहीं ठहरे रहो जब तक वहाँ से चल न दो। 12 जब तुम किसी घर-बार में जाओ तो परिवार के लोगों का सत्कार करते हुए कहो, ‘तुम्हें शांति मिले।’ 13 यदि घर-बार के लोग योग्य होंगे तो तुम्हारा आशीर्वाद उनके साथ साथ रहेगा और यदि वे इस योग्य न होंगे तो तुम्हारा आशीर्वाद तुम्हारे पास वापस आ जाएगा। 14 यदि कोई तुम्हारा स्वागत न करे या तुम्हारी बात न सुने तो उस घर या उस नगर को छोड़ दो। और अपने पाँव में लगी वहाँ की धूल वहीं झाड़ दो। 15 मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि जब न्याय होगा, उस दिन उस नगर की स्थिति से सदोम और अमोरा नगरों की स्थिति कहीं अच्छी होगी।

अपने प्रेरितों को यीशु की चेतावनी

16 “सावधान! मैं तुम्हें ऐसे ही बाहर भेज रहा हूँ जैसे भेड़ों को भेड़ियों के बीच में भेजा जाये। सो साँपों की तरह चतुर और कबूतरों के समान भोले बनो। 17 लोगों से सावधान रहना क्योंकि वे तुम्हें बंदी बनाकर यहूदी पंचायतों को सौंप देंगे और वे तुम्हें अपने आराधनालयों में कोड़ों से पिटवायेंगे। 18 तुम्हें शासकों और राजाओं के सामने पेश किया जायेगा, क्योंकि तुम मेरे अनुयायी हो। तुम्हें अवसर दिया जायेगा कि तुम उनकी और ग़ैर यहूदियों को मेरे बारे में गवाही दो। 19 जब वे तुम्हें पकड़े तो चिंता मत करना कि, तुम्हें क्या कहना है और कैसे कहना है। क्योंकि उस समय तुम्हें बता दिया जायेगा कि तुम्हें क्या बोलना है। 20 याद रखो बोलने वाले तुम नहीं हो, बल्कि तुम्हारे परम पिता की आत्मा तुम्हारे भीतर बोलेगी।

21 “भाई अपने भाईयों को पकड़वा कर मरवा डालेंगे, माता-पिता अपने बच्चों को पकड़वायेंगे और बच्चे अपने माँ-बाप के विरुद्ध हो जायेंगे। वे उन्हें मरवा डालेंगे। 22 मेरे नाम के कारण लोग तुमसे घृणा करेंगे किन्तु जो अंत तक टिका रहेगा उसी का उद्धार होगा। 23 वे जब तुम्हें एक नगर में सताएँ तो तुम दूसरे में भाग जाना। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि इससे पहले कि तुम इस्राएल के सभी नगरों का चक्कर पूरा करो, मनुष्य का पुत्र दुबारा आ जाएगा।

24 “शिष्य अपने गुरु से बड़ा नहीं होता और न ही कोई दास अपने स्वामी से बड़ा होता है। 25 शिष्य को गुरु के बराबर होने में और दास को स्वामी के बराबर होने में ही संतोष करना चाहिये। जब वे घर के स्वामी को ही बैल्जा़बुल कहते हैं, तो उसके घर के दूसरे लोगों के साथ तो और भी बुरा व्यवहार करेंगे!

प्रभु से डरो, लोगों से नहीं

26 “इसलिये उनसे डरना मत क्योंकि जो कुछ छिपा है, सब उजागर होगा। और हर वह वस्तु जो गुप्त है, प्रकट की जायेगी। 27 मैं अँधेरे में जो कुछ तुमसे कहता हूँ, मैं चाहता हूँ, उसे तुम उजाले में कहो। मैंने जो कुछ तुम्हारे कानों में कहा है, तुम उसकी मकान की छतों पर चढ़कर, घोषणा करो।

28 “उनसे मत डरो जो तुम्हारे शरीर को नष्ट कर सकते हैं किन्तु तुम्हारी आत्मा को नहीं मार सकते। बस उस परमेश्वर से डरो जो तुम्हारे शरीर और तुम्हारी आत्मा को नरक में डालकर नष्ट कर सकता है। 29 एक पैसे की दो चिड़ियाओं में से भी एक तुम्हारे परम पिता के जाने बिना और उसकी इच्छा के बिना धरती पर नहीं गिर सकती। 30 अरे तुम्हारे तो सिर का एक एक बाल तक गिना हुआ है। 31 इसलिये डरो मत तुम्हारा मूल्य तो वैसी अनेक चिड़ियाओं से कहीं अधिक है।

समीक्षा

लोगों का कोई डर नहीं

इस पद्यांश में यीशु ने तीन बार कहा है, ‘मत डरो’ (पद - 26,28,31)।

प्रकरण यह है कि यीशु अपने शिष्यों को सुसमाचार सुनाने और बीमारों को चंगा करने के लिए भेजते हैं। जैसे ही यीशु अपने बारह शिष्यों को बुलाते हैं, तब वह उन्हें मिशन पर भेजते हैं (सैद्धांतिक प्रशिक्षण तुरंत व्यवहार में लाना चाहिये!)।

अपने आदर्श का अनुसरण करने के लिए वह उन्हें (और हमें) भेजते हैं:

  • प्रचार करो: ‘स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है’ (पद - 7)

  • दिखाओ : ‘बीमारों को चंगा करो’ (पद - 8)।

जब यीशु उन्हें बाहर भेजते हैं तो उन्हें चेतावनी देते हैं कि उन्हें विरोध का सामना करना पड़ेगा: ‘मैं तुम्हें भेड़ों की नाईं भेडिय़ों के बीच में भेजता हूं’ उन्हें शुद्ध - बुद्धि की ज़रूरत है (‘सो सांपों की नाईं बुद्धिमान और कबूतरों की नाईं भोले बनो ’, पद - 16ब)।

‘स्थानीय महासभाओं’ में उनका विरोध होगा (पद - 17), और उनसे नफरत की जाएगी (पद - 22), उन्हें सताया जाएगा (पद - 23), और उन्हें शैतान कहेंगे (पद - 25)। इस प्रकरण में यीशु तीन बार कहते हैं ‘मत डरना’ (पद - 26,28,31)।

  1. मत डरो कि तुम्हें क्या कहना है
  • वह कहते हैं, ‘उनसे मत डरना ’ (पद - 26)। आपको दूसरों से डरने की जरूरत नहीं है, चाहें वे कितने भी ताकतवर क्यों न हों (उदाहरण के लिए स्थानीय महासभाएं, शासक और राजा, (पद - 17-18) : ‘तुम मेरे लिये हाकिमों और राजाओं के सामने उन पर, और अन्यजातियों पर गवाह होने के लिये पहुंचाए जाओगे। जब वे तुम्हें पकड़वाएंगे तो यह चिन्ता न करना, कि हम किस रीति से; या क्या कहेंगे: क्योंकि जो कुछ तुम को कहना होगा, वह उसी घड़ी तुम्हारे पिता का आत्मा तुम्हें बता देगा’ (पद - 18,19, एम.एस.जी.)।
  1. मत डरो कि अन्य लोग तुम्हारे साथ क्या करेंगे
  • ‘जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उन से मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नाश कर सकता है’ (पद - 28)।
  1. मत डरना कि तुम्हारा क्या होग
  • वह कहते हैं यदि आप परमेश्वर का भय मानेंगे तो आपको किसी और से डरने की ज़रूरत नहीं है। परमेश्वर का पूरा नियंत्रण है: ‘क्या पैसे मे दो गौरैये नहीं बिकतीं? तौभी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उन में से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती’ (पद - 29)। उनका पूरा नियंत्रण ही नहीं है, बल्कि वह आपसे गहरा प्रेम करते हैं: ‘तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। इसलिये, डरो नहीं; तुम बहुत गौरैयों से बढ़कर हो। ’ (पद - 30-31)। जितना आप अपनी खुद की चिंता नहीं करते, परमेश्वर उससे ज़्यादा आपकी चिंता करते हैं (पद - 30, एम.एस.जी.)।

प्रार्थना

प्रभु, आपका धन्यवाद, आपने मुझे बताया कि मुझे डरने की ज़रूरत नहीं है। आपका धन्यवाद कि आप मुझे बहुत ज़्यादा महत्त्व देते हैं और मुझ से प्रेम करते हैं। आपके प्रेम को जानने, आप पर भरोसा करने और कभी न डरने के लिए मेरी मदद कीजिये।

जूना करार

उत्पत्ति 25:1-26:35

इब्राहीम का परिवार

25इब्राहीम ने फिर विवाह किया। उसकी नई पत्नी का नाम कतूरा था। 2 कतूरा ने जिम्रान, योक्षान, मदना, मिद्यान, यिशबाक और शूह को जन्म दिया। 3 योक्षान, शबा और ददान का पिता हुआ। ददान के वंशज अश्शूर और लुम्मी लोग थे। 4 मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीद और एल्दा थे। ये सभी पुत्र इब्राहीम और कतूरा से पैदा हुए। 5-6 इब्राहीम ने मरने से पहले अपनी दासियों के पुत्रों को कुछ भेंट दिया। इब्राहीम ने पुत्रों को पूर्व को भेजा। उसने इन्हें इसहाक से दूर भेजा। इसके बाद इब्राहीम ने अपनी सभी चीज़ें इसहाक को दे दीं।

7 इब्राहीम एक सौ पचहत्तर वर्ष की उम्र तक जीवित रहा। 8 इब्राहीम धीरे—धीरे कमज़ोर पड़ता गया और भरे—पूरे जीवन के बाद चल बसा। उसने लम्बा भरपूर जीवन बिताया और फिर वह अपने पुरखों के साथ दफनाया गया। 9 उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने उसे मकपेला की गुफा में दफनाया। यह गुफा सोहर के पुत्र एप्रोन के खेत में है। यह मम्रे के पूर्व में थी। 10 यह वही गुफा है जिसे इब्राहीम ने हित्ती लोगों से खरीदा था। इब्राहीम को उसकी पत्नी सारा के साथ दफनाया गया। 11 इब्राहीम के मरने के बाद परमेश्वर ने इसहाक पर कृपा की और इसहाक लहैरोई में रहता रहा।

12 इश्माएल के परिवार की यह सूची है। इश्माएल इब्राहीम और हाजिरा का पुत्र था। (हाजिरा सारा की मिस्री दासी थी।) 13 इश्माएल के पुत्रों के ये नाम हैं पहला पुत्र नबायोत था, तब केदार पैदा हुआ, तब अदबेल, मिबसाम, 14 मिश्मा, दूमा, मस्सा, 15 हदर, तेमा, यतूर, नापीश और केदमा हुए। 16 ये इश्माएल के पुत्रों के नाम थे। हर एक पुत्र के अपने पड़ाव थे जो छोटे नगर में बदल गए। ये बारह पुत्र अपने लोगों के साथ बारह राजकुमारों के समान थे। 17 इश्माएल एक सौ सैंतीस वर्ष जीवित रहा। 18 इश्माएल के लोग हवीला से लेकर शूर के पास मिस्र की सीमा और उससे भी आगे अश्शूर के किनारे तक, घूमते रहे और अपने भाईयों और उनसे सम्बन्धित देशों में आक्रमण करते रहे।

इसहाक का परिवार

19 यह इसहाक की कथा है। इब्राहीम का एक पुत्र इसहाक था। 20 जब इसहाक चालीस वर्ष का था तब उसने रिबका से विवाह किया। रिबका पद्दनराम की रहने वाली थी। वह अरामी बतूएल की पुत्री थी और लाबान की बहन थी। 21 इसहाक की पत्नी बच्चे नहीं जन सकी। इसलिए इसहाक ने यहोवा से अपनी पत्नी के लिए प्रार्थना की। यहोवा ने इसहाक की प्रार्थना सुनी और यहोवा ने रिबका को गर्भवती होने दिया।

22 जब रिबका गर्भवती थी तब वह अपने गर्भ के बच्चों से बहुत परेशान हुई, लड़के उसके गर्भ में आपस में लिपट के एक दूसरे को मारने लगे। रिबका ने यहोवा से प्रार्थना की और बोली, “मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है।” 23 यहोवा ने कहा,

  “तुम्हारे गर्भ में दो राष्ट्र हैं।
  दो परिवारों के राजा तुम से पैदा होंगे
  और वे बँट जाएंगे।
  एक पुत्र दूसरे से बलवान होगा।
  बड़ा पुत्र छोटे पुत्र की सेवा करेगा।”

24 और जब समय पूरा हुआ तो रिबका ने जुड़वे बच्चों को जन्म दिया। 25 पहला बच्चा लाल हुआ। उसकी त्वचा रोंएदार पोशाक की तरह थी। इसलिए उसका नाम एसाव पड़ा। 26 जब दूसरा बच्चा पैदा हुआ, वह एसाव की एड़ी को मज़बूती से पकड़े था। इसलिए उस बच्चे का नाम याकूब पड़ा। इसहाक की उम्र उस समय साठ वर्ष की थी। जब याकूब और एसाव पैदा हुए।

27 लड़के बड़े हुए। एसाव एक कुशल शिकारी हुआ। वह मैदानों में रहना पसन्द करने लगा। किन्तु याकूब शान्त व्यक्ति था। वह अपने तम्बू में रहता था। 28 इसहाक एसाव को प्यार करता था। वह उन जानवरों को खाना पसन्द करता था जो एसाव मारकर लाता था। किन्तु रिबका याकूब को प्यार करती थी।

29 एक बार एसाव शिकार से लौटा। वह थका हुआ और भूख से परेशान था। याकूब कुछ दाल पका रहा था।

30 इसलिए एसाव ने याकूब से कहा, “मैं भूख से कमज़ोर हो रहा हूँ। तुम उस लाल दाल में से कुछ मुझे दो।” (यही कारण है कि लोग उसे एदोम कहते हैं।)

31 किन्तु याकूब ने कहा, “तुम्हें पहलौठा होने का अधिकार मुझको आज बेचना होगा।”

32 एसाव ने कहा, “मैं भूख से मरा जा रहा हूँ। यदि मैं मर जाता हूँ तो मेरे पिता का सारा धन भी मेरी सहायता नहीं कर पाएगा। इसलिए तुमको मैं अपना हिस्सा दूँगा।”

33 किन्तु याकूब ने कहा, “पहले वचन दो कि तुम यह मुझे दोगे।” इसलिए एसाव ने याकूब को वचन दिया। एसाव ने अपने पिता के धन का अपना हिस्सा यकूब को बेच दिया। 34 तब याकूब ने एसाव को रोटी और भोजन दिया। एसाव ने खाया, पिया और तब चला गया। इस तरह एसाव ने यह दिखाया कि वह पहलौठे होने के अपने हक की परवाह नहीं करता।

इसहाक अबीमेलेक से झूठ बोलता है

26एक बार अकाल पड़ा। यह अकाल वैसा ही था जैसा इब्राहीम के समय में पड़ा था। इसलिए इसहाक गरार नगर में पलिश्तियों के राजा अबीमेलेक के पास गया। 2 यहोवा ने इसहाक से बात की। यहोवा ने इसहाक से यह कहा, “मिस्र को न जाओ। उसी देश में रहो जिसमें रहने का आदेश मैंने तुम्हें दिया है। 3 उसी देश में रहो और मैं तुम्हारे साथ रहूँगा। मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा। मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार को यह सारा प्रदेश दूँगा। मैं वही करूँगा जो मैंने तुम्हारे पिता इब्राहीम को वचन दिया है। 4 मैं तुम्हारे परिवार को आकाश के तारागणों की तरह बहुत से बनाऊँगा और मैं सारा प्रदेश तुम्हारे परिवार को दूँगा। पृथ्वी के सभी राष्ट्र तुम्हारे परिवार के कारण मेरा आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। 5 मैं यह इसलिए करूँगा कि तुम्हारे पिता इब्राहीम ने मेरी आज्ञा का पालन किया और मैंने जो कुछ कहा, उसने किया। इब्राहीम ने मेरे आदेशों, मेरी विधियों और मेरे नियमों का पालन किया।”

6 इसहाक ठहरा और गरार में रहा। 7 इसहाक की पत्नी रिबका बहुत ही सुन्दर थी। उस जगह के लोगों ने इसहाक से रिबका के बारे में पूछा। इसहाक ने कहा, “यह मेरी बहन है।” इसहाक यह कहने से डर रहा था कि रिबका मेरी पत्नी है। इसहाक डरता था कि लोग उसकी पत्नी को पाने के लिए उसको मार डालेंगे।

8 जब इसहाक वहाँ बहुत समय तक रह चुका, अबीमेलेक ने अपनी खिड़की से बाहर झाँका और देखा कि इसहाक, रिबका के साथ छेड़खानी कर रहा है। 9 अबीमेलेक ने इसहाक को बुलाया और कहा, “यह स्त्री तुम्हारी पत्नी है। तुमने हम लोगों से यह क्यों कहा कि यह मेरी बहन है।”

इसहाक ने उससे कहा, “मैं डरता था कि तुम उसे पाने के लिए मुझे मार डालोगे।”

10 अबीमेलेक ने कहा, “तुमने हम लोगों के लिए बुरा किया है। हम लोगों का कोई भी पुरुष तुम्हारी पत्नी के साथ सो सकता था। तब वह बड़े पाप का दोषी होता।”

11 इसलिए अबीमेलेक ने सभी लोगों को चेतावनी दी। उसने कहा, “इस पुरुष और इस स्त्री को कोई चोट नहीं पहुँचाएगा। यदि कोई इन्हें चोट पहुँचाएगा तो वह व्यक्ति जान से मार दिया जाएगा।”

इसहाक धनी बना

12 इसहाक ने उस भूमि पर खेती की और उस साल उसे बहुत फसल हुई। यहोवा ने उस पर बहुत अधिक कृपा की। 13 इसहाक धनी हो गया। वह अधिक से अधिक धन तब तक बटोरता रहा जब तक वह धनी नहीं हो गया। 14 उसके पास बहुत सी रेवड़े और मवेशियों के झुण्ड थे। उसके पास अनेक दास भी थे। सभी पलिश्ती उससे डाह रखते थे। 15 इसलिए इए पलिश्तियों ने उन सभी कुओं को नष्ट कर दिया जिन्हें इसहाक के पिता इब्राहीम और उसके साथियों ने वर्षों पहले खोदा था। पलिश्तीयों ने उन्हें मिट्टी से भर दिया। 16 और अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, “हमारा देश छोड़ दो। तुम हम लोगों से बहुत अधिक शक्तिशाली हो गए हो।”

17 इसलिए इसहाक ने वह जगह छोड़ दी और गरार की छोटी नदी के पास पड़ाव डाला। इसहाक वहीं ठहरा और वहीं रहा। 18 इसके बहुत पहले इब्राहीम ने कई कुएँ खोदे थे। जब इब्राहीम मरा तो पलिश्तीयों ने मिट्टी से कुओं को भर दिया। इसलिए वहीं इसहाक लौटा और उन कुओं को फिर खोद डाला। 19 इसहाक के नौकरों ने छोटी नदी के पास एक कुआँ खोदा। उस कुएँ से एक पानी का सोता फूट पड़ा। 20 तब गरार के गड़ेंरिए उस कुएँ की वजह से इसहाक के नौकरों से झगड़ा करने लगे। उन्होंने कहा, “यह पानी हमारा है।” इसलिए इसहाक ने उसका नाम एसेक रखा। उसने यह नाम इसलिए दिया कि उसी जगह पर उन लोगों ने उससे झगड़ा किया था।

21 तब इसहाक के नौकरों ने दूसरा कुआँ खोदा। वहाँ के लोगों ने उस कुएँ के लिए भी झगड़ा किया। इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम सित्रा रखा।

22 इसहाक वहाँ से हटा और दूसरा कुआँ खोदा। उस कुएँ के लिए झगड़ा करने कोई नहीं आया। इसलिए इसहाक ने उस कुएँ का नाम रहोबोत रखा। इसहाक ने कहा, “यहोवा ने यहाँ हमारे लिए जगह उपलब्ध कराई है। हम लोग बढ़ेंगे और इसी भूमि पर सफल होंगे।”

23 उस जगह से इसहाक बेर्शेबा को गया। 24 यहोवा उस रात इसहाक से बोला, “मैं तुम्हारे पिता इब्राहीम का परमेश्वर हूँ। डरो मत। मैं तुम्हारे साथ हूँ और मैं तुम्हें आशीर्वाद दूँगा। मैं तुम्हारे परिवार को महान बनाऊँगा। मैं अपने सेवक इब्राहीम के कारण यह करूँगा।” 25 इसलिए इसहाक ने उस जगह यहोवा की उपासना के लिए एक वेदी बनाई। इसहाक ने वहाँ पड़ाव डाला और उसके नौकरों ने एक कुआँ खोदा।

26 अबीमेलेक गरार से इसहाक को देखने आया। अबीमेलेक अपने साथ सलाहकार अहुज्जत और सेनापति पीकोल को लाया।

27 इसहाक ने पूछा, “तुम मुझे देखने क्यों आए हो? तुम इसके पहले मेरे साथ मित्रता नहीं रखते थे। तुमने मुझे अपना देश छोड़ने को विवश किया।”

28 उन्होंने जवाब दिय, “अब हम लोग जानते हैं कि यहोवा तुम्हारे साथ है। हम चाहते हैं कि हम तुम्हारे साथ एक वाचा करें। हम चाहते हैं कि तुम हमें एक वचन दो। 29 हम लोगों ने तुम्हें चोट नहीं पहुँचाई, अब तुम्हें यह वचन देना चाहिए कि तुम हम लोगों को चोट नहीं पहुँचाओगे। हम लोगों ने तुमको भेजा। लेकिन हम लोगों ने तुम्हें शान्ति से भेजा। अब साफ है कि यहोवा ने तुम्हें आशीर्वाद दिया है।”

30 इसलिए इसहाक ने उन्हें दावत दी। सभी ने खाया और पीया। 31 दूसरे दिन सवेरे हर एक व्यक्ति ने वचन दिया और शपथ खाई। तब इसहाक ने उनको शान्ति से विदा किया और वे सकुशल उसके पास से चले आए।

32 उस दिन इसहाक के नौकर आए और उन्होंने अपने खोदे हुए कुएँ के बारे में बताया। नौकरों ने कहा, “हम लोगों ने उस कुएँ से पानी पिया।” 33 इसलिए इसहाक ने उसका नाम शिबा रखा और वह नगर अभी भी बेर्शेबा कहलाता है।

एसाव की पत्नियाँ

34 जब एसाव चालीस वर्ष का हुआ, उसने हित्ती स्त्रियों से विवाह किया। एक बेरी की पुत्री यहूदीत थी। दूसरी एलोन की पुत्री बाशमत थी। 35 इन विवाहों ने इसहाक और रिबका का मन दुःखी कर दिया।

समीक्षा

मृत्यु का कोई डर नहीं

जीवन कभी आसान नहीं होता। यह इसहाक के लिए आसान नहीं था। अन्य परेशानियों के बीच, उसने अपने बच्चे के जन्म के लिए बीस साल तक इंतज़ार किया (25:20-26)। फिर जब जुड़वा बच्चे जन्में तो भाइयों में झगड़े हुए। वह पलिश्ती दुश्मनों के बीच रहे और उसका एक बेटा ‘दु:ख का कारण बना’ (26:35), ‘और रिबका के मन को खेद हुआ’ (पद - 35, एम.एस.जी.)।

इसहाक ने अपने पिता के समान ही पाप किया – अपनी पत्नी को अपनी बहन के रूप में देने का (पद - 7-11)। हालाँकि, ऐसा लगता है कि इसहाक ने अपने पिता की ग़लतियों से कुछ सीखा था। जब रिबका को कोई बच्चा नहीं हो रहा था – तो चीज़ों को खुद से हल करने के लिए अब्राहम द्वारा हाज़िरा से नाशवान संबंध बनाने के विपरीत – इसहाक ने एक चमत्कार के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की (25:21)।

परमेश्वर इसहाक के सामने आए और वादा किया कि, ‘मैं तेरे संग रहूंगा …. और ये सब देश मैं तुझ को, और तेरे वंश को दूंगा। ’ (26:3-4)।

फिर भी, इसहाक डर गया। उसे डर लगा कि वह मर सकता है: ‘यदि मैं उसको अपनी पत्नी कहूं, तो यहां के लोग उसके कारण जो परम सुन्दरी है मुझ को मार डालेंगे’ (पद - 7,9ब)।

जब अबिमेलेक ने इसहाक को ‘अपनी पत्नी के साथ क्रीड़ा’ करते देखा, तो उसने पूछा, ‘वह तो निश्चय तेरी पत्नी है; फिर तू ने क्योंकर उसको अपनी बहिन कहा?’ (पद - 8-9अ)। ‘इसहाक ने उत्तर दिया, मैं ने सोचा था, क्योंकि ….’ (पद - 9ब)।

परमेश्वर ने इसहाक से कहा, ‘मत डर, क्योंकि मैं तेरे साथ हूं’ (पद - 24)। इसहाक परमेश्वर से ज़्यादा लोगों से डरता था, फिर भी उसे याद दिलाया गया कि उसे डरना नहीं चाहिये क्योंकि परमेश्वर उसके साथ हैं। जब आपको डर सताए, तो इसी सच्चाई को याद रखिये: परमेश्वर आपके साथ हैं। यदि परमेश्वर आपके साथ हैं, तो आपको कभी भी किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है।

इसहाक लोगों से डरता था, इसके बावजूद, परमेश्वर ने उसे आशीष दी। परमेश्वर कहते हैं, ‘मैं तुझे आशीष दूँगा और तेरे वंश को बढ़ाऊँग़ा ….’ (पद - 24)। परमेश्वर की आशीष का मतलब है बढ़ना, और बार - बार फसल लाना। वह आपके जीवन से भी यही चाहते हैं।

‘अपने पिता, अब्राहम के समय में जो कुएं खोदे गए थे इसहाक ने उन्हें फिर से खोला, जिसे पलिश्तीयों ने भर दिया था ’ (पद - 18)। (शायद यह हमारे लिए चर्चों को फिर से खोलने के बराबर है जो जीवन के जल का स्रोत हैं!)। जब इसहाक का विरोध किया गया और उसे रोका गया, तो वह आगे बढ़ा जब तक कि उसने दूसरे कुएं को फिर से खोलने के लिए खोज नहीं लिया। इस तरह से, परमेश्वर ने उसे फलने - फूलने के लिए मौका दिया (पद - 22)।

इनमें से एक भी आसान नहीं था, लेकिन प्रभु आप से जो कहते हैं उसे याद रखिये: ‘मत डरना, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ’ (पद - 24)।

प्रार्थना

प्रभु, आप मेरे साथ हैं, इस वायदे के लिए आपका धन्यवाद। आपका धन्यवाद क्योंकि आप मुझे बार - बार कहते हैं कि यदि मैं आपका भय मानूँ, तो मुझे कभी भी किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है।

पिप्पा भी कहते है

उत्पत्ति 26:34

जिस प्रकार से इसहाक और एसाव ने अपनी पत्नी को चुना इसमें काफी फर्क है। इसहाक के लिए, विश्वास की इस स्त्री को खोजने के लिए बहुत सी प्रार्थना और मार्गदर्शन करने वाले संकेत लगे, जबकि ऐसा लगता है कि एसाव ने बुद्धिमानी से चुनाव किया। पर यह ‘इसहाक और रिबका के लिए खेद का कारण बना’। सही पति/पत्नी चुनना और अपने लिए, अपने बच्चों और अपने दोस्तों के लिए प्रार्थना करना बहुत महत्त्वपूर्ण है कि परमेश्वर उन्हें सही व्यक्ति तक पहुँचा दें।

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संदर्भ

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (ए.एम.पी.) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है. (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

संपादकीय नोट:

‘डर मानवीय अनुभव का एक अनिवार्य हिस्सा है। निराशा, डर और भय हमें घेरने के लिए सूक्जित करते हैं…. क्योंकि हमें सिखाया गया है कि डर दिखाना कमजोरी है, कि कायर लोग तिरस्कृत होते हैं, और यह कि हीरो का मतलब है कोई डर नहीं, हम अपने डर और निराशा को छिपाने की कोशिश करते हैं। खुद को अपराधी महसूस करने से हमारी आत्म-छवि हमारे आत्म-सम्मान के साथ अत्यधिक गिर जाती है।

एड यंग, नो योर फियर: फेसिंग लाइफस् सिक्स मोस्ट कॉमन फोबियास (बी एंड एच पब्लिशिंग, 2003)।**

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