आज युद्ध यीशु के आस-पास है
परिचय
मैं बीस सालों से अल्फा में एक छोटे समूह की सहायता करने में या उनका नेतृत्व करने में जुड़ा हुआ हूँ. इस समय के दौरान, मैंने हमारी संस्कृति में एक बदलाव को देखा है. यीशु के प्रति व्यवहार में एक बदलाव है, विशेष रूप से जवान लोगों के बीच में. बहुत से लोग कहेंगे कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं और पवित्र आत्मा के विचारों के लिए भी खुले हुए हैं. लेकिन ज्यादातर लोग कहते हैं यीशु उनके लिए अड़चन बन गए हैं. वे इस तरह की बातें कहते हैं, 'मुझे यीशु समझ नहीं आते.'
जैसा कि फादर रेनियरो कॅन्टालमेसा ने अक्सर कहा है, 'आज युद्ध यीशु के आस-पास है.'
क्या यीशु सार्वभौमिक उद्धारकर्ता हैं? यह पहली शताब्दी की तरह ही युद्ध है. आज लोग खुशी से यीशु को स्वीकार करते हैं जैसा कि 'बहुतों में से एक'. यह यीशु की अद्वितीयता है जो ठोकर खिलाती है. आज के लेखांश में हम देखते हैं कि जब हम पूरी बाईबल में कुछ उल्लेखनीय लोगों से मिलते हैं, जैसे कि मूसा, यहोशू, एलिय्याह और यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला, इनमें से कोई भी यीशु की तरह नहीं था. यीशु अद्वितीय हैं. वह सार्वभौमिक उद्धारकर्ता हैं.
भजन संहिता 53:1-6
महलत राग पर संगीत निर्देशक के लिए दाऊद का एक भक्ति गीत।
53बस एक मूर्ख ही ऐसे सोचता है कि परमेश्वर नहीं होता।
ऐसे मनुष्य भ्रष्ट, दुष्ट, द्वेषपूर्ण होते हैं।
वे कोई अच्छा काम नहीं करते।
2 सचमुच, आकाश में एक ऐसा परमेश्वर है जो हमें देखता और झाँकता रहता है।
यह देखने को कि क्या यहाँ पर कोई विवेकपूर्ण व्यक्ति
और विवेकपूर्ण जन परमेश्वर को खोजते रहते हैं?
3 किन्तु सभी लोग परमेश्वर से भटके हैं।
हर व्यक्ति बुरा है।
कोई भी व्यक्ति कोई अच्छा कर्म नहीं करता,
एक भी नहीं।
4 परमेश्वर कहता है, “निश्चय ही, वे दुष्ट सत्य को जानते हैं।
किन्तु वे मेरी प्रार्थना नहीं करते।
वे दुष्ट लोग मेरे भक्तों को ऐसे नष्ट करने को तत्पर हैं, जैसे वे निज खाना खाने को तत्पर रहते हैं।
5 किन्तु वे दुष्ट लोग इतने भयभीत होंगे,
जितने वे दुष्ट लोग पहले कभी भयभीत नहीं हुए!
इसलिए परमेश्वर ने इस्राएल के उन दुष्ट शत्रु लोगों को त्यागा है।
परमेश्वर के भक्त उनको हरायेंगे
और परमेश्वर उन दुष्टो की हड्डियों को बिखेर देगा।
6 इस्राएल को, सिय्योन में कौन विजयी बनायेगा? हाँ,
परमेश्वर उनकी विजय को पाने में सहायता करेगा।
परमेश्वर अपने लोगों को बन्धुआई से वापस लायेगा,
याकूब आनन्द मनायेगा।
इस्राएल अति प्रसन्न होगा।
समीक्षा
यीशु जैसा कोई नहीं
निपोलियन बोनापार्टे ने कहा, 'मैं मनुष्यों को जानता हूँ और मैं आपको बताता हूँ कि यीशु मसीह साधारण मनुष्य नहीं हैं. उनमें और विश्व के किसी भी दूसरे व्यक्ति के बीच में तुलना जैसे शब्द की कोई संभावना नहीं है.' यीशु हर दूसरे मनुष्य से अलग हैं जो कभी इस पृथ्वी पर जीए.
दाऊद कहते हैं, 'ऐसा कोई नहीं है जो अच्छा करता है' (व.1). परमेश्वर ने स्वर्ग पर से मनुष्यों के ऊपर दृष्टि की, वह देखते हैं कि 'कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं' (व.3).
दाऊद एक उद्धारकर्ता की आशा करते हैं:'क्या कोई है जो इस्राएल का उद्धार करेगा?' (व.6अ, एम.एस.जी.). निश्चित ही, उनकी लालसा यीशु में पूरी हो गई. यीशु अपनी संपूर्ण अच्छाई में अद्वितीय थे. पौलुस प्रेरित इस भजन में से बताते हैं, हर मनुष्य के लिए एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता को दिखाने के लिए (रोमियो 3:10-12).
जैसे ही पौलुस इस विश्व में विभिन्न लोगों का परिक्षण करते हैं -यहूदी और अन्यजाति, नैतिक और अनैतिक – वह निष्कर्ष निकालते हैं कि इनमें से ऐसा कोई नही है जिसे परमेश्वर अच्छा और सत्यनिष्ठ कह सकें. वह लिखते हैं, 'इसलिए परमेश्वर की दृष्टि में कोई भी सत्यनिष्ठ नहीं ठहरेगा...' (व.20).
सुसमाचार की अद्भुतता है कि हम, जो कि सत्यनिष्ठ हैं, यीशु की सिद्ध सत्यनिष्ठा के द्वारा सत्यनिष्ठ घोषित किए जा सकते हैं. ' परमेश्वर की वह सत्यनिष्ठा जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये है' (व.22).
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि अब परमेश्वर की वह सत्यनिष्ठा जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये है, मेरे लिए उपलब्ध है.
यूहन्ना 1:1-28
यीशु का आना
1आदि में शब्द था। शब्द परमेश्वर के साथ था। शब्द ही परमेश्वर था। 2 यह शब्द ही आदि में परमेश्वर के साथ था। 3 दुनिया की हर वस्तु उसी से उपजी। उसके बिना किसी की भी रचना नहीं हुई। 4 उसी में जीवन था और वह जीवन ही दुनिया के लोगों के लिये प्रकाश (ज्ञान, भलाई) था। 5 प्रकाश अँधेरे में चमकता है पर अँधेरा उसे समझ नहीं पाया।
6 परमेश्वर का भेजा हुआ एक मनुष्य आया जिसका नाम यूहन्ना था। 7 वह एक साक्षी के रूप में आया था ताकि वह लोगों को प्रकाश के बारे में बता सके। जिससे सभी लोग उसके द्वारा उस प्रकाश में विश्वास कर सकें। 8 वह खुद प्रकाश नहीं था बल्कि वह तो लोगों को प्रकाश की साक्षी देने आया था। 9 उस प्रकाश की, जो सच्चा था, जो हर मनुष्य को ज्ञान की ज्योति देगा, जो धरती पर आने वाला था।
10 वह इस जगत में ही था और यह जगत उसी के द्वारा अस्तित्व में आया पर जगत ने उसे पहचाना नहीं। 11 वह अपने घर आया था और उसके अपने ही लोगों ने उसे अपनाया नहीं। 12 पर जिन्होंने उसे अपनाया उन सबको उसने परमेश्वर की संतान बनने का अधिकार दिया। 13 परमेश्वर की संतान के रूप में वह कुदरती तौर पर न तो लहू से पैदा हुआ था, ना किसी शारीरिक इच्छा से और न ही माता-पिता की योजना से। बल्कि वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ।
14 उस आदि शब्द ने देह धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने परम पिता के एकमात्र पुत्र के रूप में उसकी महिमा का दर्शन किया। वह करुणा और सत्य से पूर्ण था। 15 यूहन्ना ने उसकी साक्षी दी और पुकार कर कहा, “यह वही है जिसके बारे में मैंने कहा था, ‘वह जो मेरे बाद आने वाला है, मुझसे महान है, मुझसे आगे है क्योंकि वह मुझसे पहले मौजूद था।’”
16 उसकी करुणा और सत्य की पूर्णता से हम सबने अनुग्रह पर अनुग्रह प्राप्त किये। 17 हमें व्यवस्था का विधान देने वाला मूसा था पर करुणा और सत्य हमें यीशु मसीह से मिले। 18 परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा किन्तु परमेश्वर के एकमात्र पुत्र ने, जो सदा परम पिता के साथ है उसे हम पर प्रकट किया।
यूहन्ना की यीशु के विषय में साक्षी
19 जब यरूशलेम के यहूदियों ने उसके पास लेवियों और याजकों को यह पूछने के लिये भेजा, “तुम कौन हो?” 20 तो उसने साक्षी दी और बिना झिझक स्वीकार किया, “मैं मसीह नहीं हूँ।”
21 उन्होंने यूहन्ना से पूछा, “तो तुम कौन हो, क्या तुम एलिय्याह हो?”
यूहन्ना ने जवाब दिया, “नहीं मैं वह नहीं हूँ।”
यहूदियों ने पूछा, “क्या तुम भविष्यवक्ता हो?”
उसने उत्तर दिया, “नहीं।”
22 फिर उन्होंने उससे पूछा, “तो तुम कौन हो? हमें बताओ ताकि जिन्होंने हमें भेजा है, उन्हें हम उत्तर दे सकें। तुम अपने विषय में क्या कहते हो?”
23 यूहन्ना ने कहा,
“मैं उसकी आवाज़ हूँ जो जंगल में पुकार रहा है:
‘प्रभु के लिये सीधा रास्ता बनाओ।’”
24 इन लोगों को फरीसियों ने भेजा था। 25 उन्होंने उससे पूछा, “यदि तुम न मसीह हो, न एलिय्याह हो और न भविष्यवक्ता तो लोगों को बपतिस्मा क्यों देते हो?”
26 उन्हें जवाब देते हुए यूहन्ना ने कहा, “मैं उन्हें जल से बपतिस्मा देता हूँ। तुम्हारे ही बीच एक व्यक्ति है जिसे तुम लोग नहीं जानते। 27 यह वही है जो मेरे बाद आने वाला है। मैं उसके जूतों की तनियाँ खोलने लायक भी नहीं हूँ।”
28 ये घटनाएँ यरदन के पार बैतनिय्याह में घटीं जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा देता था।
समीक्षा
यीशु एक और एकमात्र हैं
मैं हाल ही में जीन वेनियर के द्वारा लिखित, 'यूहन्ना के सुसमाचार द्वारा यीशु के रहस्य में खिंचे चले जाना' पढ़ रहा था. यह एक अद्भुत पुस्तक है, जिसकी मैं बिल्कुल सलाह दूंगा. मैं गहराई से उनका आभारी हूँ कुछ सामग्रीयों के लिए जिसे मैंने इस साल पढ़ा है.
यीशु मसीह एक ही हैं और एकमात्र हैं. कम से कम वह एक बात पर टिके हैं, अनोखे. यदि परमेश्वर यीशु की तरह हैं, तो परमेश्वर में विश्वास किया जा सकता है, ' जर्नलिस्ट ऍन्थोनी बर्गेस ने लिखा.
यूहन्ना का संपूर्ण सुसमाचार, शुरुवात से लेकर अंत तक इस प्रश्न का उत्तर है, 'यीशु कौन हैं?' यूहन्ना का उत्तर है परमेश्वर यीशु की तरह है और वह विश्वास करने योग्य है. यीशु पूरी तरह से अद्वितीय हैं. वह 'एक और एकमात्र' हैं (वव.14,18). वह परमेश्वर का एक प्रत्यक्ष रूप हैं (व.18, एम.एस.जी.). यूहन्ना के सुसमाचार का उद्देश्य है आपको यीशु के साथ मित्रता के द्वारा परमेश्वर के साथ कम्युनियन का अनुभव कराना.
आप यीशु के मित्र हैं. लेकिन यीशु कौन हैं?
- परमेश्वर का अद्वितीय वचन
यूहन्ना का सुसमाचार यीशु के एक उल्लेखनीय वर्णन के साथ शुरु होता है, 'वचन' के रूप में. हमें यह एक विचित्र विचार लगता है, लेकिन यहून्ना के असली पाठकों के लिए यह बहुत ही परिचित लगता होगा. 'परमेश्वर के वचन' का विचार यहूदी पाठकों के लिए महत्वपूर्ण रहा होगा. उन्होंने सृष्टि के निर्माण में परमेश्वर के वचनों को याद किया होगा (उत्पत्ति 1), और जो कुछ भविष्यवक्ता 'परमेश्वर के वचन' के विषय में कहना चाहते थे (उदाहरण के लिए यशायाह 40:6-8 और यिर्मयाह 23:29).
ग्रीक पाठकों के लिए 'वचन' का विचार, जीवन के अर्थ की खोज के साथ मिला हुआ होगा. फिलोसोफर्स ने अक्सर 'वचन' का इस्तेमाल किया है, ब्रह्मांड के पीछे के अज्ञात अर्थ और उद्देश्य को बताने के लिए एक सरल तरीके के रूप में.
यूहन्ना के आरंभिक वचन दोनों समूहों को आकर्षित करते होंगे. वह कह रहे थे, 'मैं तुम्हें वह बताने जा रहा हूँ जिसे तुम अब तक ढूंढ़ रहे थे.'
यह बिल्कुल स्पष्ट है कि यूहन्ना जो 'वचन' लिख रहे हैं वह यीशु के विषय में हैः'वचन देहधारी हुआ और हमारे बीच में निवास किया' (यूहन्ना 1:14अ, एम.एस.जी.). यीशु ना केवल आरंभ में परमेश्वर के साथ थेः 'वचन परमेश्वर था' (व.1, एम.एस.जी). यीशु परमेश्वर थे और हैं.
- सभी वस्तुओं का अद्वितीय रचयिता
'सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ, और जो कुछ उत्पन्न हुआ है उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न नहीं हुई' (व.3, एम.एस.जी.).
यीशु के द्वारा संपूर्ण ब्रह्मांड अस्तित्व में आया. ' क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हों अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएँ, क्या अधिकार, सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसकी के लिये सृजी गई हैं' (कुलुस्सियो 1:16).
- अद्वितीय विश्व की ज्योति
'उनमें जीवन था और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था. ज्योति अन्धकार में चमकती है, और अन्धकार ने उसे ग्रहण नहीं किया' (यूहन्ना 1:4).
प्रकाश, अच्छाई और सच्चाई का एक प्रतीक है. अंधकार, बुराई और झूठ का समानार्थी है. प्रकाश और अंधकार विपरीत हैं, लेकिन बराबर नहीं. एक छोटी सी मोमबत्ती अंधकार से भरे पूरे कमरे को प्रकाश दे सकती है और इसके द्वारा बूझेगी नहीं. प्रकाश अंधकार से अधिक मजबूत है; अंधकार प्रकाश के विरूद्ध प्रबल नहीं हो सकता है.
- जीवन को बदलने वाला अद्वितीय
'परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं. वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं '(वव12-13). यीशु में विश्वास सबसे बड़े और अत्यधिक महत्वपूर्ण बदलाव को लाती है. जैसे ही आप अपने जीवन में यीशु को ग्रहण करते हैं, वैसे ही परमेश्वर आपको अपने परिवार में ग्रहण करते हैं.
- परमेश्वर का अद्वितीय प्रकटीकरण
'परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में है, उसी ने प्रकट किया' (व.18).
पुराने नियम में हर वस्तु यीशु में परमेश्वर के मुख्य प्रकटीकरण की ओर ले जा रही थी. 'क्योंकि उसकी परिपूर्णता में से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात् अनुग्रह पर अनुग्रह. इसलिये कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई, परन्तु अनुग्रह और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुँची' (वव.16-17, एम.एस.जी.). यही कारण है कि पुराने नियम में हम जो कुछ पढ़ते हैं उसे यीशु के प्रकाश में समझे जाने की आवश्यकता है.
यीशु की तुलना यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के साथ की गई. इस बात पर जोर दिया गया कि यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला क्या नहीं है. वह 'प्रकाश' नहीं है (व.8). वह अनंत नहीं है (व.15). वह मसीह नहीं है (व.20). वह एलिय्याह नहीं है (व.21). वह भविष्यवक्ता नहीं है (व.21).
यद्पि यीशु यूहन्ना के विषय में कहते हैं, ' स्त्रियों से जन्मे हैं, उनमें से यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले से कोई बड़ा नहीं हुआ' (मत्ती 11:11), यूहन्ना बपतिस्मा देने वाला यीशु के विषय में कहता है, 'वह मेरे बाद आने वाला है, जिसकी जूती का बन्ध मैं खोलने के योग्य नहीं' (यूहन्ना 1:27). यूहन्ना बपस्तिमा देने वाले का कार्य, हम सभी की तरह, अपने आपसे ध्यान हटाकर एक और एकमात्र यीशु की ओर संकेत करना जोकि परमेश्वर का अद्वितीय वचन, सभी वस्तुओं का निर्माता, विश्व का प्रकाश, जीवन को बदलने वाला और परमेश्वर को प्रकट करने वाला है.
प्रार्थना
यीशु, मैं आपकी आराधना करता हूँ, परमेश्वर के अद्वितीय वचन. मैं आज प्रार्थना करता हूँ आप कौन हैं इस विषय में ताजे प्रकटीकरण के लिए और परमेश्वर की संतान होने का क्या अर्थ है, इसकी गहरी समझ के लिए.
यहोशू 15:1-16:10
यहूदा के लिये प्रदेश
15यहूदा को जो प्रदेश दिया गया वह हर एक परिवार समूह में बँटा। वह प्रदेश एदोम की सीमा तक और दक्षिण में सीन के सिरे पर सीन मरुभूमि तक लगातार फैला हुआ था। 2 यहूदा के प्रदेश की दक्षिणी सीमा मृत सागर के दक्षिणी छोर से आरम्भ होती थी। 3 यह सीमा बिच्छू दर्रा के दक्षिण तक जाती थी और सीन तक बढ़ी हुई थी। तब यह सीमा कादेशबर्ने के दक्षिण तक लगातार गई थी। यह सीमा हेस्रोन के परे अद्दार रक चलती चली गई थी। अद्दार से सीमा मुड़ी थी और कर्काआ तक गई थी। 4 यह सीमा मिस्र के अम्मोन से होती हुई मिस्र की नहर तक लगातार चल कर भूमध्य सागर तक पहुँचती थी। वह प्रदेश उनकी दक्षिणी सीमा थी।
5 पूर्वी सीमा मृत सागर (खारा समुद्र) के तट से लेकर उस क्षेत्र तक थी, जहाँ यरदन नदी समुद्र में गिरती थी।
उत्तरी सीमा उस क्षेत्र से आरम्भ होती थी जहाँ यरदन नदी मृत सागर में गिरती थी। 6 तब उत्तरी सीमा बेथोग्ला से होती हुई और बेतराबा तक चली गई थी। यह सीमा लगातार बोहन की चट्टान तक गई थी। (बोहन रूबेन का पुत्र था।) 7 तब उत्तरी सीमा आकोर की घाटी से होकर दबीर तक गई थी। वहाँ सीमा उत्तर को मुड़ती थी और गिलगाल तक जाती थी। गिलगाल उस सड़क के पार है जो अदुम्मीम पर्वत से होकर जाती है। अर्थात् स्रोत के दक्षिण की ओर। यह सीमा एनशेमेश जलाशयों के साथ लगातार गई थी।एन रोगेल पर सीमा समाप्त थी। 8 तब यह सीमा यबूसी नगर की दक्षिण की ओर से बेन हिन्नोम घाटी से होकर गई थी। उस यबूसी नगर को (यरूशलेम) कहा जाता था। (उस स्थान पर सीमा हिन्नोम घाटी की उत्तरी छोर पर थी।) 9 उस स्थान से सीमा नेप्तोह के पानी के सोते के पास जाती थी। उसके बाद सीमा एप्रोन पर्वत के निकट के नगरों तक जाती थी। उस स्थान पर सीमा मुड़ती थी और बाला को जाती थी (बाला को किर्यत्यारीम भी कहते हैं।) 10 बाला से सीमा पश्चिम को मुड़ी और सेईर के पहाड़ी प्रदेश को गई। यारीम पर्वत के उत्तर के छोर के साथ सीमा चलती रही (इसको कसालोन भी कहा जाता है) और बेतशमेश तक गई। वहाँ से सीमा तिम्ना के पार गई। 11 तब सिवाना के उत्तर में पहाड़ियों को गई। उस स्थान से सीमा शिक्करोन को मुड़ी और वाला पर्वत के पार गई। यह सीमा लगातार यब्नेल तक गई और भूमध्य सागर पर समाप्त हुई। 12 भूमध्य सागर यहूदा प्रदेश की पश्चिमी सीमा था। इस प्रकार, यहूदा का प्रदेश इन चारों सीमाओं के भीतर था। यहूदा का परिवार समूह इस प्रदेश में रहता था।
13 यहोवा ने यहोशू को आदेश दिया था कि वह यपुन्ने के पुत्र कालेब को यहूदा की भूमि में से हिस्सा दे। इसलिए यहोशू ने कालेब को वह प्रदेश दिया जिसके लिये परमेश्वर ने आदेश दिया था। यहोशू ने उसे किर्यतर्बा का नगर दिया जो हेब्रोन भी कहा जाता था। (अर्बा अनाक का पिता था।) 14 कालेब ने तीन अनाक परिवारों को हेब्रोन, जहाँ वे रह रहे थे, छोड़ने को विवश किया। वे परिवार शेशै, अहीमन और तल्मै थे। वे अनाक के परिवार के थे। 15 कालेब दबीर में रहने वाले लोगों से लड़ा। (भूतकाल में दबीर भी किर्यत्सेपेर कहा जाता था) 16 कालेब ने कहा, “कोई व्यक्ति जो किर्यत्सेपेर पर आक्रमण करेगा और उस नगर को हरायेगा, वही मेरी पुत्री अकसा से विवाह कर सकेगा। मैं उसे अपनी पुत्री को भेंट के रुप में दूँगा।”
17 कालेब के भाई कनजी के पुत्र ओत्नीएल ने उस नगर को हराया। इसलिये कालेब ने अपनी पुत्री अकसा को उसे उसकी पत्नी होने के लिये प्रदान की। 18 ओत्नीएल ने अकसा से कहा कि वह अपने पिता से कुछ अधिक भूमि माँगे। अकसा अपने पिता के पास गई। जब वह अपने गधे से उतरी तो उसके पिता ने उससे पूछा, “तुम क्या चाहती हो?”
19 अकसा ने उत्तर दिया, “मैं आप से एक आशीर्वाद पाना चाहूँगी। मैं पानी वाली भूमि चाहती हूँ जो भूमि हमें आप ने नेगेव में दी है, वह बहुत सूखी है, इसलिए मुझे ऐसी भूमि दें जिस में पानी के सोते हों।” इसलिए कालेब ने उस भूमि के ऊपरी और निचले भाग में सोतों के साथ भूमि दी।
20 यहूदा के परिवार समूह ने उस भूमि को पाया जिसे परमेश्वर ने उन्हें देने का वचन दिया था। हर एक परिवार समूह ने भूमि का भाग पाया।
21 यहूदा के परिवार समूह ने नेगेव के दक्षिणी भाग के सभी नगरों को पाया। ये नगर एदोम की सीमा के पास थे। यह उन नगरों की सूची हैः
कबसेल, एदेर, यागूर, 22 कीना, दीमोना, अदादा, 23 केदेश, हासोर, यित्नान, 24 जीप, तेलेम, बालोत, 25 हासोर्हदत्ता, करिय्योत—हेस्रोन (हासोर भी कहा जाता था।), 26 अमाम, शमा, मोलादा, 27 हसर्गद्दा, हेशमोन, बेत्पालेत, 28 हसर्शूआल, बेर्शेबा, बिज्योत्या, 29 बाला, इय्यीम, एसेम 30 एलतोलद, कसील, होर्मा, 31 सिकलग, मदमन्ना, सनसन्ना, 32 लबाओत, शिल्हीम, ऐन तथा रिम्मोन। सब मिलाकर उन्तीस नगर और उनके सभी खेत थे।
33 यहूदा के परिवार समूह ने पश्चिमी पहाड़ियों की तलहटी में भी नगर पाए। उन नगरों की सूची यहाँ है:
एशताओल, सोरा, अशना, 34 जानोह, एनगन्नीम, तप्पूह, एनाम, 35 यर्मूत, अदुल्लाम, सोको, अजेका, 36 शारैम, अदीतैम और गदेरा (गदेरोतैम भी कहा जाता था)। सब मिलाकर वहाँ चौदह नगर और उनके सारे खेत थे।
37 यहूदा के परिवार को ये नगर भी दिये गये थेः
सनान, हदाशा, मिगदलगाद, 38 दिलान, मिस्पे, योक्तेल, 39 लाकीश, बोस्कत, एगलोन, 40 कब्बोन, लहमास, कितलीश, 41 गेदोरेत, बेतदागोन, नामा, और मक्केदा। सब मिलाकर वहाँ सोलह नगर और उनके सारे खेत थे।
42 अन्य नगर जो यहूदा के लोग पाए वे ये थे:
लिब्ना, ऐतेर, आशान, 43 यिप्ताह, अशना, नसीब, 44 कीला, अकजीब और मारेशा। सब मिलाकर ये नौ नगर और उनके सारे खेत थे। 45 यहूदा के लोगों ने एक्रोन नगर और निकट के छोटे नगर तथा सारे खेत भी पाए। 46 उन्होंने एक्रोन के पश्चिम के क्षेत्र, सारे खेत और अशदोद के निकट के नगर भी पाए। 47 अशदोद की चारों ओर के क्षेत्र और वहाँ के छोटे नगर यहूदा प्रदेश के भाग थे। यहूदा के लोगों ने गाजा के चारों ओर के क्षेत्र, खेत और नगर प्राप्त किये। उनका प्रदेश मिस्र की सीमा पर बहने वाली नदी तक था और उनका प्रदेश भूमध्य सागर के तट के सहारे लगातार था। 48 यहूदा के लोगों को पहाड़ी प्रदेश में भी नगर दिये गए। यहाँ उन नगरों की सूची हैः शामीर, यत्तीर, सोको, 49 दन्ना, किर्यत्सन्ना (इसे दबीर भी कहते थे), 50 अनाब, एशतमो, आनीम, 51 गोशेन, होलोन और गीलो सब मिलाकर ग्यारह नगर और उनके खेत थे।
52 यहूदा के लोगों को ये नगर भी दिये गे थे:
अराब, दूमा, एशान, 53 यानीम, बेत्तप्पूह, अपेका, 54 हुमता, किर्यतर्बा (हेब्रोन) और सीओर ये नौ नगर और इनके सारे खेत थे:
55 यहूदा के लोगों को ये नगर भी दिये गये थे:
माओन, कर्मेल, जीप, यूता, 56 यिज्रेल, योकदाम, जानोह, 57 कैन, गिबा और तिम्ना। ये सभी दस नगर और उनके सारे खेत थे।
58 यहूदा के लोगों को ये नगर भी दिए गए थे:
हलहूल, बेतसूर, गदोर, 59 मरात, बेतनोत और एलतकोन सभी छ: नगर और उनके सारे खेत थे।
60 यहूदा के लोगों के दो नगर रब्बा और किर्यतबाल (इसे किर्यत्यारीम भी कहा जाता था।) दिए गए थे।
61 यहूदा के लोगों को मरुभूमि में नगर दिये गये थे। उन नगरों की सूची यह है:
बेतराबा, मिद्दीन, सकाका, 62 निबशान, लवण नगर और एनगादी। सब मिलाकर छः नगर और उनके सारे खेत थे।
63 यहूदा की सेना यरूशलेम में रहने वाले यबूसी लोगों को बलपूर्वक बाहर करने में समर्थ नहीं हुई। इसलिए अब तक यबूसी लोगो यरूशलेम में यहूदा लोगों के बीच रहते हैं।
एप्रैम तथा मनश्शे के लिये प्रदेश
16यह वह प्रदेश है जिसे यूसुफ के परिवार ने पाया। यह प्रदेश यरदन नदी के निकट यरीहो से आरम्भ हुआ और यरीहो के पूर्वी जलाशयों तक पहुँचा। (यह ठीक यरीहो के पूर्व था) सीमा यरीहो से बेतेल के मरू पहाड़ी प्रदेश तक चली गई थी। 2 सीमा लगातार बेतेल (लूज) से लेकर अतारोत पर एरेकी सीमा तक चली गई थी। 3 तब सीमा पश्चिम में यपलेतियों लोगों की सीमा तक चली गई थी। यह सीमा लगातार निचले बेथोरोन तक चली गई थी। यह सीमा गेजेर तक गई और समुद्र तक चलती चली गई।
4 इस प्रकार मनश्शे और एप्रैम ने अपना प्रदेश पाया। (मनश्शे और एप्रैम यूसुफ के पुत्र थे।)
5 यह वह प्रदेश है जिसे एप्रैम के लोगों को दिया गयाः उनकी पूर्वी सीमा ऊपरी बेथोरोन के निकट अत्रोतदार पर आरम्भ हुई थी। 6 और यह सीमा वहाँ से सागर तक जाती थी। सीमा पूर्व की ओर मिकमतात उनके उत्तर में था, तानतशीलो को मुड़ी और लगातार यानोह तक चली गई थी। 7 तब सीमा यानोह से अतारोत और नारा तक चली गई। यह सीमा लगातार चलती हुई यरीहो छूती है और यरदन नदी पर समाप्त हो जाती है। यह सीमा तप्पूह से काना खाड़ी के पश्चिम की ओर जाती है और सागर पर समाप्त हो जाती है। 8 यह सीमा तप्पूह से काना नदी के पश्चिम की ओर सागर पर समाप्त होती है। यह वह प्रदेश है जो एप्रैम के लोगों को दिया गया। उस परिवार समूह के हर एक परिवार ने इस भूमि का भाग पाया। 9 एप्रैम के बहुत से सीमा के नगर वस्तुत: मनश्शे की सीमा में थे किन्तु एप्रैम के लोगों ने उन नगरों और अपने खेतों को प्राप्त किया। 10 किन्तु एप्रैमी लोग कनानी लोगों को गेजेर नगर छोड़ने को विवश करने में समर्थ न हो सके। इसलिए कनानी लोग अब तक एप्रैमी लोगों के बीच रहते हैं। किन्तु कनानी लोग एप्रैमी लोगों के दास हो गए थे।
समीक्षा
यीशु अद्वितीय उद्धारकर्ता हैं
यहोशू और कालेब ही असली समूह के ऐसे दो लोग थे जिन्होंने वाचा की भूमि में प्रवेश किया क्योंकि केवल उन्होंने ही परमेश्वर की आज्ञा मानी और पूरे हृदय से उनके पीछे चले. (यहोशू के नाम का अर्थ है 'यह बचाता है, ' या 'परमेश्वर बचाता है'). 'यहोशू', 'यीशु' का इब्रानी प्रकार है). यहोशू यीशु की परछाई है. यहोशू और कालेब उल्लेखनीय थे, लेकिन यीशु की तरह वे अद्वितीय नहीं थे.
यहूदा की भूमि का एक भाग, हेब्रोन को यहोशू ने कालेब को दिया (15:13) लेकिन तब भी उसे अंदर जाकर इसे लेना था (व.14). इसी तरह से, उद्धार, सबसे बड़ी आशीष हमारे पास अनुग्रह के द्वारा एक उपहार के रूप में आती है, तब भी हमें इसे ग्रहण करने की आवश्यकता है और विश्वास के द्वारा इसे पकड़ने की आवश्यकता है. 'अनुग्रह और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा आई' (यूहन्ना 1:17) – हमें यह उपहार दिया गया है.
पूरी बाईबल में, परमेश्वर आपके उत्तर को देख रहे हैं. वह देख रहे हैं कि आप 'परमेश्वर को खोजे' (भजनसंहिता 53:2) और 'परमेश्वर को पुकारें' (व.4). आपको दिए गए उपहार को लेना है और यीशु में विश्वास करना है. जब आप ऐसा करते हैं, तब आपको परमेश्वर की एक संतान बनने का अधिकार दिया जाता है (यूहन्ना 1:12).
यीशु अद्वितीय उद्धारकर्ता हैं. यीशु में विश्वास करने के द्वारा उद्धार को लेने और यीशु के साथ एक मित्र बनने से अधिक कुछ भी अद्भुत बात नहीं है.
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं आज आपको खोजना चाहता हूँ. आपका धन्यवाद क्योंकि आपने अपने आपको यीशु मसीह में प्रगट किया है –अनुग्रह और सच्चाई से भरे हुए. मेरी सहायता कीजिए कि एक ऐसा जीवन जीऊँ जो अनुगह और सच्चाई से भरा हुआ है. मैं आपसे सहायता मॉंगता हूँ हर उस काम में जो मैं करता हूँ और हर उस शब्द में जो मैं बोलता हूँ –होने दीजिए कि मैं अनुग्रह और सच्चाई से भरा रहूँ.
पिप्पा भी कहते है
यहोशू 15:16-17
और कालेब ने कहा, 'जो किर्यत्सेपेर को मारकर ले उससे मैं अपनी बेटी अकसा का विवाह कर दूंगा.' तब कालेब के भाई ओत्नीएल कनजी ने उसे ले लिया; और उस ने उससे अपनी बेटी अकसा का विवाह कर दिया.
आवश्यकरूप से यह विवाह का सही हिस्सा नहीं है, लेकिन लोगों ने विचित्र कारणों की वजह से विवाह किए हैं. निकी और सिलाली के द्वारा लिखित विवाह पुस्तक में अध्याय 'विवाह के लिए तैयार है?' बहुत ही सहायक है –लेकिन मुझे नहीं लगता है कि वहाँ पर आपको कोई शर्तें मिलेंगी, 'क्या तुमने किर्यत्सेपेर को मारा है?'
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संदर्भ
नोट्स:
जीन वेनियर के द्वारा लिखित, 'यूहन्ना के सुसमाचार द्वारा यीशु के रहस्य में खिंचे चले जाना' (डार्टन, लॉगमैन एण्ड टॉड एल.टी.डा2004)
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