परमेश्वर आपको आश्चर्यचकित करना चाहते हैं
परिचय
अठ्ठारह साल की उम्र में मसीहत को अमान्य करने के लिए मैंने पूरे नये नियम को पढ़ डाला. जब मैंने इसे पढ़ा, तो मैं यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि मैंने यकीन कर लिया कि यह सत्य है. आखिरी चीज जो मैं करना चाहता था वह, 'एक मसीही बनना.' मुझे लगा कि यह मेरे जीवन को बरबाद कर रहा है और यह मुझे जिंदगी का मजा लेने से रोक रहा है और इसे उबाऊ बना रहा है. फिर भी, अपने दिल में यह जानते हुए कि यह सत्य है, मुझे लगा कि मेरे 'यीशु को हाँ बोलने' के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा है.
जिस पल मैंने ऐसा किया, मैं आनंद से आश्चर्यचकित हो गया – इन शब्दों का उपयोग सी.एस. लेविस ने यीशु के साथ अपनी पहली मुलाकात के अनुभव में बयान करते हुए किया था.
परमेश्वर आश्चर्य के परमेश्वर हैं. यीशु ने लगातार अपने शिष्यों और मानने वालों को आश्चर्यचकित किया और वह आपको आश्चर्यचकित करते रहना चाहते हैं.
भजन संहिता 54:1-7
तार वाले वाद्यों पर संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का समय का एक भक्ति गीत जब जीपियों में जाकर शाऊल से कहा था, हम सोचते हैं दाऊद हमारे लोगों के बीच छिपा है।
54हे परमेश्वर, तू अपनी निज शक्ति को प्रयोग कर के काम में ले
और मुझे मुक्त करने को बचा ले।
2 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुन।
मैं जो कहता हूँ सुन।
3 अजनबी लोग मेरे विरूद्ध उठ खड़े हुए और बलशाली लोग मुझे मारने का जतन कर रहे हैं।
हे परमेश्वर, ऐसे ये लोग तेरे विषय में सोचते भी नहीं।
4 देखो, मेरा परमेश्वर मेरी सहायता करेगा।
मेरा स्वामी मुझको सहारा देगा।
5 मेरा परमेश्वर उन लोगों को दण्ड देगा, जो मेरे विरूद्ध उठ खड़े हुए हैं।
परमेश्वर मेरे प्रति सच्चा सिद्ध होगा, और वह उन लोगों को नष्ट कर देगा।
6 हे परमेश्वर मैं स्वेच्छा से तुझे बलियाँ अर्पित करुँगा।
हे परमेश्वर, मैं तेरे नेक भजन की प्रशंसा करुँगा।
7 किन्तु, मैं तुझसे विनय करता हूँ, कि मुझको तू मेरे दू;खों से बचा ले।
तू मुझको मेरे शत्रुओं को हारा हुआ दिखा दे।
समीक्षा
परमेश्वर की मदद द्वारा आश्चर्यचकित
भले ही यह आक्रमण न्यायोचित हो या आंशिक रूप से न्यायोचित हो, जब यह उन लोगों की तरफ से होता है जिन्हें हम नहीं जानते. दाऊद कहते हैं, 'परदेशी मेरे विरुद्ध उठे हैं' (व.3अ). मुझे याद है जब मैंने पहले इसे पढ़ा तो यह कितना आश्चर्यचकित कर देने वाला था, क्योंकि तब तक अल्फा, एचटीबी और कभी कभी वक्तिगत रूप से मुझ पर आक्रमण नहीं हुए थे. आश्चर्यचकित कर देने वाले हमले पड़ोसी, सहकर्मी या अन्य स्रोतों से आ सकते हैं.
मैं और भी आश्चर्यचकित तब हुआ जब परमेश्वर ने हमारी मदद करने के लिए हस्तक्षेप किया: ' देखो, परमेश्वर मेरा सहायक हैं;' (व.4) और ' प्रभु मेरे प्राण के संभालने वालों के संग हैं' (व.4ब) और 'उन्होने मुझे सब दुखों से छुड़ाया है' (व.7).
जब मैं अपने खुद के अनुभव को देखता हूँ, तो छुटकारा हमेशा तुरंत नहीं मिलता; कभी-कभी इसमें कई महीने या साल भी लग जाते हैं. फिर भी दाऊद की प्रतिक्रिया से मुझे प्रेरणा मिलती है. हमलों के बीच में, वह कहता है, ' मैं तुझे स्वेच्छाबलि चढ़ाऊंगा; हे प्रभु, मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा, क्योंकि यह उत्तम है' (व.6).
'स्वेच्छाबलि' में बात यह है कि इस बलि में कोई शर्त नहीं रखी है. दाऊद ऐसा नहीं कहता कि वह केवल तब बलि चढ़ाएगा जब परमेश्वर उसे बचा लेंगे. आक्रमण के परिणाम पर ध्यान दिये बिना, वह परमेश्वर को उनकी भलाई के लिए धन्यवाद देते हैं.
यदि आप इस वक्त किसी आक्रमण का सामना कर रहे हैं, परमेश्वर पर भरोसा रखिये, और विश्वास कीजिये कि वह आपकी मदद करना चाहते हैं और पहले से ही उनका धन्यवाद कीजिये.
प्रार्थना
प्रभु, आपको धन्यवाद कि एक दिन मैं पीछे देख सकूँगा और यह जान पाऊँगा कि आपने सभी तकलीफों से मुझे छुड़ाया है.
यूहन्ना 2:1-25
काना में विवाह
2गलील के काना में तीसरे दिन किसी के यहाँ विवाह था। यीशु की माँ भी मौजूद थी। 2 शादी में यीशु और उसके शिष्यों को भी बुलाया गया था। 3 वहाँ जब दाखरस खत्म हो गया, तो यीशु की माँ ने कहा, “उनके पास अब और दाखरस नहीं है।”
4 यीशु ने उससे कहा, “यह तू मुझसे क्यों कह रही हो? मेरा समय अभी नहीं आया।”
5 फिर उसकी माँ ने सेवकों से कहा, “वही करो जो तुमसे यह कहता है।”
6 वहाँ पानी भरने के पत्थर के छह मटके रखे थे। ये मटके वैसे ही थे जैसे यहूदी पवित्र स्नान के लिये काम में लाते थे। हर मटके में कोई बीस से तीस गैलन तक पानी आता था।
7 यीशु ने सेवकों से कहा, “मटकों को पानी से भर दो।” और सेवकों ने मटकों को लबालब भर दिया।
8 फिर उसने उनसे कहा, “अब थोड़ा बाहर निकालो, और दावत का इन्तज़ाम कर रहे प्रधान के पास उसे ले जाओ।”
और वे उसे ले गये। 9 फिर दावत के प्रबन्धकर्ता ने उस पानी को चखा जो दाखरस बन गया था। उसे पता ही नहीं चला कि वह दाखरस कहाँ से आया। पर उन सेवकों को इसका पता था जिन्होंने पानी निकाला था। फिर दावत के प्रबन्धक ने दूल्हे को बुलाया। 10 और उससे कहा, “हर कोई पहले उत्तम दाखरस परोसता है और जब मेहमान काफ़ी तृप्त हो चुकते हैं तो फिर घटिया। पर तुमने तो उत्तम दाखरस अब तक बचा रखा है।”
11 यीशु ने गलील के काना में यह पहला आश्चर्यकर्म करके अपनी महिमा प्रकट की। जिससे उसके शिष्यों ने उसमें विश्वास किया।
12 इसके बाद यीशु अपनी माता, भाईयों और शिष्यों के साथ कफ़रनहूम चला गया जहाँ वे कुछ दिन ठहरे।
यीशु मन्दिर में
13 यहूदियों का फ़सह का पर्व नज़दीक था। इसलिये यीशु यरूशलेम चला गया। 14 वहाँ मन्दिर में यीशु ने देखा कि लोग मवेशियों, भेड़ों और कबूतरों की बिक्री कर रहे हैं और सिक्के बदलने वाले सौदागर अपनी गद्दियों पर बैठे हैं। 15 इसलिये उसने रस्सियों का एक कोड़ा बनाया और सबको मवेशियों और भेड़ों समेत बाहर खदेड़ दिया। मुद्रा बदलने वालों के सिक्के उड़ेल दिये और उनकी चौकियाँ पलट दीं। 16 कबूतर बेचने वालों से उसने कहा, “इन्हें यहाँ से बाहर ले जाओ। मेरे परम पिता के घर को बाजार मत बनाओ!”
17 इस पर उसके शिष्यों को याद आया कि शास्त्रों में लिखा है:
“तेरे घर के लिये मेरी धुन मुझे खा डालेगी।”
18 जवाब में यहूदियों ने यीशु से कहा, “तू हमें कौन सा अद्भुत चिन्ह दिखा सकता है, जिससे तू जो कुछ कर रहा है, उसका तू अधिकारी है यह साबित हो सके?”
19 यीशु ने उन्हें जवाब में कहा, “इस मन्दिर को गिरा दो और मैं तीन दिन के भीतर इसे फिर बना दूँगा।”
20 इस पर यहूदी बोले, “इस मन्दिर को बनाने में छियालीस साल लगे थे, और तू इसे तीन दिन में बनाने जा रहा है?”
21 किन्तु अपनी बात में जिस मन्दिर की चर्चा यीशु ने की थी वह उसका अपना ही शरीर था। 22 आगे चलकर जब वह मौत के बाद फिर जी उठा तो उसके अनुयायियों को याद आया कि यीशु ने यह कहा था, और शास्त्रों पर और यीशु के शब्दों पर विश्वास किया।
23 फ़सह के पर्व के दिनों जब यीशु यरूशलेम में था, बहुत से लोगों ने उसके अद्भुत चिन्हों और कर्मों को देखकर उसमें विश्वास किया। 24 किन्तु यीशु ने अपने आपको उनके भरोसे नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब लोगों को जानता था। 25 उसे इस बात की कोई जरूरत नहीं थी कि कोई आकर उसे लोगों के बारे में बताए, क्योंकि लोगों के मन में क्या है, इसे वह जानता था।
समीक्षा
यीशु द्वारा आश्चर्यचकित होना
यीशु की सेविकाई आश्चर्यो से भरी थी. यीशु आपको उनके साथ अपने जीवन में और भी गहराई से जाने के लिए बुलाते हैं. वह आपको नए तरीकों से आश्चर्यचकित करना चाहते हैं.
बहुतायत का आश्चर्य
कुछ लोग आश्चर्य कर सकते हैं कि शादी के समारोह में केवल यीशु और उनके शिष्यो को ही आमंत्रित नहीं किया गया था, बल्कि वास्तव में उन्होंने यह निमंत्रण स्वीकार किया और साथ में वहाँ गए. उस समय शादी का समारोह एक सप्ताह तक चलता था. वह समय बड़े आनंद और उत्सव का होता था – जहाँ लोग सबसे अच्छे कपड़े पहनते थे, मजाक करते थे और बड़ी मस्ती करते थे. शायद ज्यादा आश्चर्य की बात यह हो सकती है कि वहाँ पर दाखरस की बुराई करने के बजाय यीशु ने 120 गैलन पानी को उत्तम दाखरस में बदल दिया था (व.10). यीशु चीजों को भरपूरी से करते हैं. वह आपको ज्यादा से ज्यादा जीवन और आनंद देना चाहते हैं.
यीशु को सिर्फ यह बताये जाने (' कि दाखरस घट गया है, व.3) और उनके आदेशो का पालन करने के द्वारा ('जो कुछ वह तुमसे कहे, वही करना'. व.5) यह चमत्कार संभव हो पाया. यीशु ने जरूरत को सिर्फ पूरा ही नहीं किया, बल्कि उन्होंने वह कर दिखाया जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी. समारोह का प्रधान इसे चखकर आश्चर्यचकित हो गया, ' भोज के प्रधान ने वह पानी चखा, जो दाखरस बन गया था' (व.9).
इसे अपने जीवन की तस्वीर के रूप में भी देखा जा सकता है; यीशु उनके बिना जीवन के जल को, उनके साथ जीवन के दाखरस में बदल देते हैं. मुझे लगा कि यीशु के पीछे चलना, यानि पानी पिलाने जैसा है. वास्तव में यह बिल्कुल उल्टा है. यीशु हमारे जीवन में भरपूरी लाने के द्वारा हमें लगातार आश्चर्यचकित करते हैं. विशेष रूप से, यहाँ हम देखते हैं कि उन्होंने शादी को, और अवश्य ही शादियों को, किस तरह से संपन्न किया है. वह साधारण विवाह के पानी को उत्तम दाखरस में बदल देते हैं.
यीशु कठिन और नीरस काम को संपूर्ण आनंद में बदल देते हैं.
इस चमत्कार के द्वारा यीशु ने 'अपनी महिमा प्रकट की और चेलों ने उन पर विश्वास किया' (व.11). कई लोगों के लिए यह बहुत आश्चर्यजनक प्रकाशन था.
आश्चर्यजनक अभिलाषा
यीशु ने हरएक को आश्चर्यचकित कर दिया था, जब उस ने मन्दिर में बैल और भेड़ और कबूतर के बेचने वालों और सर्राफों को बैठे हुए पाया (व.14). और रस्सियों का कोड़ा बनाकर, सब भेड़ों और बैलों को मन्दिर से निकाल दिया, और सर्राफों के पैसे बिथरा दिए, और पीढ़ों को उलट दिया. और कबूतर बेचने वालों से कहा; इन्हें यहां से ले जाओ: मेरे पिता के भवन को व्यापार का घर मत बनाओ. " (व.16). 'तब उसके चेलों को स्मरण आया कि लिखा है, तेरे घर की घुन मुझे खा जाएगी' (व.17).
हम व्यापारिक बुद्धि और आकर्षक तस्वीरों से घिरे हुए हैं. विशाल शॉपिंग सेंटर्स चर्चों को विस्थापित कर रहे हैं. इससे धन और वाणिज्य की उपासना करने का खतरा बना रहता है.
आजकल की तरह उस समय भी धन कमाने और परमेश्वर की आराधना में हस्तक्षेप का भयंकर प्रलोभन था. अवश्य ही, आजकल मंदिर और चर्चों में आराधना का व्यवहारिक पहलू भी है. फिर भी जब हमारा लक्ष्य धन बन जाता है, तब हम गंभीर परेशानी में पड़ जाते हैं. यीशु इस बारे में कितने भावुक थे इस बारे में उन्होंने लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया.
आश्चर्यचकित तरह से निवास करना
यीशु मंदिर को पुन:परिभाषित करते हैं. यीशु का शरीर एक सच्चा मंदिर है. यीशु उनसे कहते हैं, ' इस मन्दिर को ढा दो, और मैं उसे तीन दिन में खड़ा कर दूंगा' (व.19). असली मंदिर को ढा दिया जाएगा, लेकिन परमेश्वर इसे पुनरूत्थान द्वारा तीन दिनों में फिर से बना देंगे. वे आश्चर्यचकित हुए लेकिन यह न समझ सके – उन्होंने यीशु को पूछा क्या उन्हें लगता है कि वह धरती पर इसे सिर्फ तीन दिनों में बना देंगे. लेकिन यूहन्ना आगे लिखते हैं, 'परन्तु उस ने अपनी देह के मन्दिर के विषय में कहा था' (व.21).
मंदिर महत्वपूर्ण था क्योंकि यह परमेश्वर के निवास स्थान का प्रतीक था. यहाँ पर परमेश्वर और मानवता मिलते थे. यीशु के आश्चर्यचकित कर देने वाले ये शब्द हमें बताते हैं कि वह स्वयं नया मंदिर हैं. वह धरती पर परमेश्वर का निवास स्थान हैं.
यीशु के द्वारा, अब आपको घर में बुलाया गया है, जो कि परमेश्वर का निवास स्थान है. आपका शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर है (1 कुरिंथियों 6:19).
आश्चर्यचकित कर देने वाली बुद्धि
जब लोगों ने चमत्कार देखे, जो यीशु ने किये थे और जो वह कर रहे थे, तब कईयों ने 'उनके नाम पर विश्वास किया' (यूहन्ना 2:23). 'लेकिन' यूहन्ना हमें बताते हैं कि. ' परन्तु यीशु ने अपने आप को उन के भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता था। और उसे प्रयोजन न था, कि मनुष्य के विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप ही जानता था, कि मनुष्य के मन में क्या है' (वव.24-25).
यह जानकर आश्चर्य होता है कि यीशु ने तुरंत इन लोगों पर भरोसा नहीं किया – खासकर जब हम पढ़ते हैं कि 'प्रेम हमेशा भरोसा करता है' (1 कुरिंथियों 13:7). यीशु मानवीय स्वभाव के प्रति यथार्थवादी हैं. हम बिल्कुल सही जीवन साथी, सही माता-पिता, सही बच्चों, सही दोस्तों और सही चर्चों की तलाश में रहते हैं. लेकिन ये अस्तित्व में नहीं रहते. हम सभी दोषपूर्ण मानव हैं.
यह जानने से हमें ज्यादा यथार्थवादी बनने में और कम निराशा होने में और हमारे संबधों में ज्यादा क्षमाशील बनने में मदद मिलती है.
हमें अपने लेन देन और अपने संबंधों में यीशु की बुद्धि की जरूरत है. हमें निष्कपटता को संतुलित रखने और प्रेमपूर्ण संबंधों में बुद्धिमत्ता के साथ भरोसा करने और मानव हृदय को समझने की जरूरत है.
प्रार्थना
परमेश्वर, यीशु के लिए आपको धन्यवाद. मुझे अपनी नजरें उन पर बनाए रखने में मेरी मदद कीजिये, ताकि वह मुझे बिल्कुल नई बुद्धि, जोश, प्रेम और बहुतायत से आश्चर्यचकित कर सकें.
यहोशू 19:1-21:19
शिमोन के लिये प्रदेश
19यहोशू ने शिमोन के परिवार के हर एक परिवारह समूह को उनकी भूमि दी। यह भूमि, जो उन्हें मिली, यहूदा के अधिकार—क्षेत्र के भीतर थी। 2 यह वह भूमि थी जो उन्हें मिलीः बेर्शेबा(शेबा), मोलादा, 3 हसर्शूआल, बाला, एसेम, 4 एलतोलद, बतूल, होर्मा, 5 सिक्लग, बेत्मकर्काबोत, हसर्शूसा, 6 बेतलबाओत और शारूहने। ये तेरह नगर और उनके सारे खेत शिमोन के थे।
7 उनको ऐन, रिम्मोन, एतेर और आशान नगर भी मिले। ये चार नगर अपने सभी खेतों के साथ थे। 8 उन्होंने वे सारे खेत नगरों के साथ पाए जो बालत्बेर तक फैले थे। (यह नेगव क्षेत्र में रामा ही है।) इस प्रकार यह वह प्रदेश था, जो शिमोनी लोगों के परिवार समूह को दिया गया। हर एक ने इस भूमि को प्राप्त किया। 9 शिमोनी लोगों की भूमि यहूदा के प्रदेश के भाग से ली गई थी। यहूदा के पास उन लोगों की आवश्यकता से अधिक भूमि थी। इसलिए शिमोनी लोगों को उनकी भूमि का भाग मिला।
जबूलूनी के लिए प्रदेश
10 दूसरा परिवार समूह जिसे अपनी भूमि मिली वह जबूलून था। जबूलून के हर एक परिवार समूह ने दिये गए वचन के अनुसार भूमि पाई। जबूलून की सीमा सारीद तक जाती थी। 11 फिर वह पश्चिम में मरला से होती हुई गई और दब्बेशेत के क्षेत्र के निकट तक पहुँचती थी। तब यह सीमा संकरी घाटी से होते हुए योकनाम के क्षेत्र तक जाती थी। 12 तब यह सीमा पूर्व की ओर मुड़ी थी। यह सारीद से किसलोत्ताबोर के क्षेत्र तक पहुँचती थी। तब यह सीमा दाबरत और यापी तक चलती गई थी। 13 तब सीमा पूर्व में गथेपेर और इत्कासीन तक लगातार थी। यह सीमा रिम्मोन पर समाप्त हुई। तब सीमा मुड़ी और नेआ तक गई। 14 नेआ पर फिर सीमा मुड़ी और उत्तर की ओर गई। यह सीमा हन्नातोन तक पहुँची और लगातार यिप्तहेल की घाटी तक गई। 15 इस सीमा के भीतर कत्तात, नहलाल, शिम्रोन यिदला और बेतलेहेम नगर थे। सब मिलाकर ये बारह नगर अपने खेतों के साथ थे।
16 अत: ये नगर और क्षेत्र हैं जो जबूलून को दिये गए। जबूलून के हर एक परिवार समूह ने इस भूमि को प्राप्त किया।
इस्साकार के लिये प्रदेश
17 इस्साकार के परिवार समूह को चौथे हिस्से की भूमि दी गई। उस परिवार समूह में हर एक परिवार ने कुछ भूमि पाई। 18 उस परिवार समूह को जो भूमि दी गई थी वह यह है: यिज्रेल, कसुल्लोत, शूनेम 19 हपारैम, सीओन, अनाहरत, 20 रब्बीत, किश्योन, एबेस, 21 रेमेत, एनगन्नीम, एन हददा और बेतपस्सेस।
22 उनके प्रदेश की सीमा ताबोरशहसूमा और बेतशेमेश को छूती थी। यह सीमा यरदन नदी पर समाप्त होती थी। सब मिलाकर सोलह नगर और उनके खेत थे। 23 ये नगर और कस्बे इस्साकार परिवार समूह को दिये गए प्रदेश के भाग थे। हर एक परिवार ने इस प्रदेश का भाग प्राप्त किया।
आशेर के लिये प्रदेश
24 आशेर के परिवार समूह को पाँचवें भाग का प्रदेश दिया गया। इस परिवार समूह के प्रत्येक परिवार को कुछ भूमि मिली। 25 उस परिवारसमूह को जो भूमि दी गई वह यह हैः हेल्कत, हली, बेतेन, अक्षाप, 26 अलाम्मेल्लेक, अमाद और मिशाल।
पश्चिमी सीमा लगातार कर्म्मेल पर्वत और शीहोलिब्नात तक थी। 27 तब सीमा पूर्व की ओर मुड़ी। यह सीमा बेतदागोन तक गई। यह सीमा जबूलून और यिप्तहेल की घाटी को छू रही थी। तब यह सीमा बेतेमेक और नीएल के उत्तर को गई थी। यह सीमा काबूल के उत्तर से गई थी। 28 तब यह सीमा एब्रोन, रहोब, हम्मोन और काना को गई थी। यह सीमा लगातार बड़े सीदोन क्षेत्र तक चली गई थई। 29 तब यह सीमा दक्षिण की ओर मुड़ी रामा तक गई। यह सीमा लगातार शक्तिशाली नगर सोर तक गई थी। तब यह सीमा मुड़ती हई होसा तक जाती थी। यह सीमा अकजीब, 30 उम्मा, अपेक और रहोब के क्षेत्र में सागर पर समाप्त होती थी।
सब मिलाकर वहाँ बाईस नगर और उनके खेत थे। 31 ये नगर व उनके खेत आशेर परिवार समूह को दिये गए प्रदेश के भाग थे। उस परिवार समूह में हर एक परिवार ने इस भूमि का कुछ भाग पाया।
नप्ताली के लिये प्रदेश
32 नप्ताली के परिवार समूह को इस प्रदेश के छठे भाग की भूमि मिली। इस परिवार समूह के हर एक परिवार ने उस प्रदेश की कुछ भूमि पाई। 33 उनके प्रदेश की सीमा सानन्नीम के क्षेत्र में विशाल वृक्ष से आरम्भ हुई। यह हेलेप के निकट है। तब यह सीमा अदामी ने केब और यब्नेल से होकर गई। यह सीमा लक्कूम पर समाप्त हुई। 34 तब यह सीमा पश्चिम को अजनोत्ताबोर होकर गई। यह सीमा हुक्कोक पर समाप्त हुई। यह सीमा दक्षिण को जबूलून क्षेत्र तक गई थी। यह सीमा पश्चिम में आशेर के क्षेत्र तक पहुँचती थी। यह सीमा पूर्व में यरदन नदी पर यहूदा को जाती थी। 35 इस सीमा के भीतर कुछ बहुत शक्तिशाली नगर थे। ये नगर सिद्दीम, सेर, हम्मत, रक्कत, किन्नेरेत, 36 अदामा, रामा, हासोर, 37 केदेश, एद्रेई, अन्हासेर, 38 यिरोन, मिगदलेल, होरेम, बेतनात और बेतशेमेश थे। सब मिलाकर वहाँ उन्नीस नगर और उनके खेत थे।
39 ये नगर और उनकी चारों ओर के कस्बे उस प्रदेश में थे, जो नप्ताली के परिवार समूह को दिया गया था। उस परिवार समूह के हर एक परिवार ने इस भूमि का कुछ भाग पाया।
दान के लिये प्रदेश
40 तब दान के परिवार समूह को भूमि दी गई। उस परिवार समूह के हर एक परिवार ने इस भूमि का कुछ भाग पाया। 41 उनको जो प्रदेश दिया गया वह यह है: सोरा, एशताओल, ईरशेमेश, 42 शालब्बीन, अय्यालोन, यितला, 43 एलोन, तिम्ना, एक्रोन, 44 एलतके, गिब्बतोन, बालात, 45 यहूद, बेनेबराक, गत्रिम्मोन, 46 मेयकर्कोन, रक्कोन और यापो के निकट का क्षेत्र।
47 किन्तु दान के लोगों को अपना प्रदेश लेने में परेशानी उठानी पड़ी। वहाँ शक्तिशाली शत्रु थे और दान के लोग उन्हें सरलता से पराजित नहीं कर सकते थे। इसलिए दान के लोग गए और लेशेम के विरूद्ध लड़े। उन्होंने लेशेम को पराजित किया तथा जो लोग वहाँ रहते थे, उन्हें मार डाला। इसलिए दान के लोग लेशेम नगर में रहे। उन्होंने उसका नाम बदल कर दान कर दिया क्योंकि यह नाम उनके परिवार समूह के पूर्वज का था। 48 ये सभी नगर और खेत उस प्रदेश में थे जो दान के परिवार समूह को दिया गया था। हर एक परिवार को इस भूमि का भाग मिला।
यहोशू के लिये प्रदेश
49 इस प्रकार प्रमुखों ने प्रदेश का बँटवारा करना और विभिन्न परिवार समूहों को उन्हें देना पूरा किया। जब उन्होंने वह पूरा कर लिया तब इस्राएल के सब लोगों ने नून के पुत्र यहोशू को भी कुछ प्रदेश देने का निश्चय किया। ये वही प्रदेश थे जिन्हें उसको देने का वचन दिया गया था। 50 यहोवा ने आदेश दिया कि उसे यह प्रदेश मिले। इसलिए उन्होंने एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में यहोशू को विम्नत्सेरह नगर दिया। यही वह नगर था, जिसके लिये यहोशू ने कहा था कि मैं उसे चाहता हूँ। इसलिए यहोशू ने उस नगर को अधिक दृढ़ बनाया और वह उसमें रहने लगा।
51 इस प्रकार ये सारे प्रदेश इस्राएल के विभिन्न परिवार समूह को दिये गए। प्रदेश का बँटवारा करने के लिये शिलो में याजक एलीआज़र नून का पुत्र यहोशू और हर एक परिवार समूह के प्रमुख एकत्र हुए। वे यहोवा के सामने मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठे हुए थे। इस प्रकार उन्होंने प्रदेश का विभाजन पूरा कर लिया था।
सुरक्षा के नगर
20तब यहोवा ने यहोशू से कहा: 2 “मैंने मूसा का उपयोग तुम लोगों को आदेश देने के लिये किया। मूसा ने तुम लोगों से सुरक्षा के विशेष नगर बनाने के लिये कहा था। सो सुरक्षा के लिये उन नगरों का चुनाव करो। 3 यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को मार डालता है, किन्तु ऐसा संयोगवश होता है और उसका इरादा उसे मार डालने का नहीं होता तो वह मृत व्यक्ति के उन सम्बन्धियों से जो बदला लेने के लिए उसे मार डालना चाहते हैं, आत्मरक्षा के लिए सुरक्षा नगर में शरण ले सकता है।
4 “उस व्यक्ति को यह करना चाहिये। जब वह भागे और उन नगरों में से किसी एक में पहुँचे तो उसे नगर द्वार पर रूकना चाहिये। उसे नगर द्वार पर खड़ा रहना चाहिए और नगर प्रमुखों को बताना चाहिए कि क्या घटा है। तब नगर प्रमुख उसे नगर में प्रवेश करने दे सकते हैं। वे उसे अपने बीच रहने का स्थान देंगे। 5 किन्तु वह व्यक्ति जो उसका पीछा कर रहा है वह नगर तक उसका पीछा कर सकता है। यदि ऐसा होता है तो नगर प्रमुखों को उसे यूँ ही नहीं छोड़ देना चाहिए, बल्कि उन्हें उस व्यक्ति की रक्षा करनी चाहिए जो उनके पास सुरक्षा के लिये आया है। वे उस व्यक्ति की रक्षा इसलिए करेंगे कि उसने जिसे मार डाला है, उसे मार डालने का उसका इरादा नहीं था। यह संयोगवश हो गया। वह क्रोधित नहीं था और उस व्यक्ति को मारने का निश्चय नहीं किया था। यह कुछ ऐसा था, जो हो ही गया। 6 उस व्यक्ति को तब तक उसी नगर में रहना चाहिये जब तक उस नगर के न्यायालय द्वारा उसके मुकदमे का निर्णय नहीं हो जाता और उसे तब तक उसी नगर में रहना चाहिये जब तक महायाजक नहीं मर जाता। तब वह अपने घर उस नगर में लौट सकता है, जहाँ से वह भागता हुआ आया था।”
7 इसलिए इस्राएल के लोगों ने “सुरक्षा नगर” नामक नगरों को चुना। वे नगर ये थे: नप्ताली के पहाड़ी प्रदेश में गलील के केदेश; एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में शकेम; किर्य्यतर्बा (हेब्रोन) जो यहूदा के पहाड़ी प्रदेश में था। 8 रूबेन के प्रदेश की मरुभूमि में, यरीहो के निकट यरदन नदी के पूर्व में बेसेर; गाद के प्रदेश में गिलाद में रमोत; मनश्शे के प्रदेश में बाशान में गोलान।
9 कोई इस्राएली व्यक्ति या उनके बीच रहने वाला कोई भी विदेशी, यदि किसी को मार डालता है, किन्तु यह संयोगवश हो जाता है, तो वह उन सुरक्षा नगरों में से किसी एक में सुरक्षा के लिये भागकर जा सकता था। तब वह व्यक्ति वहाँ सुरक्षित हो सकता था और पीछा करने वाले किसी के द्वारा नही मारा जा सकता था। उस नगर में उस व्यक्ति के मुकदमे का निबटारा उस नगर के न्यायालय द्वारा होगा।
याजको तथा लेवीवंशियों के नगर
21लेवीवंशी परिवार समूह के शासक बातें करने के लिये याजक एलीआजर, नून के पुत्र यहोशू और इस्राएल के अन्य परिवार समूहों के शासकों के पास गए। 2 यह कनान प्रदेश में शीलो नगर में हुआ। लेवी शासकों ने उनसे कहा, “यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था। उसने आदेश दिया था कि तुम हम लोगों को रहने के लिये नगर दोगे और तुम हम लोगों को मैदान दोगे जिसमें हमारे जानवर चर सकेंगे।” 3 इसलिए लोगों ने यहोवा के इस आदेश को माना। उन्होंने लेवीवंशियों को ये नगर और क्षेत्र उनके पशुओं को दिये:
4 कहात परिवार लेवी परिवार समूह से था। कहात परिवार के एक भाग को तेरह नगर दिये गये। ये नगर उस क्षेत्र में थे जो यहूदा, शिमोन और बिन्यामीन का हुआ करता था। ये नगर उन कहातियों को दिये गये थे जो याजक हारून के वंशज थे।
5 कहात के दूसरे परिवार समूह को दस नगर दिये गए थे। ये दस नगर एप्रैम, दान और मनश्शे परिवार के आधे क्षेत्रों में थे।
6 गेर्शोन समूह के लोगों को तेरह नगर दिये गये थे। ये नगर उस प्रदेश में थे जो इस्साकार, आशेर, नप्ताली और बाशान में मनश्शे के आधे परिवार के थे।
7 मरारी समूह के लोगों को बारह नगर दिये गए। ये नगर उन क्षेत्रों में थे जो रूबेन, गाद और जबूलून के थे।
8 इस प्रकार इस्राएल के लोगों ने लेवीवंशियों को ये नगर और उनके चारों ओर के खेत दिये। उन्होंने यह यहोवा द्वारा मूसा को दिये गए आदेश को पूरा करने के लिये किया।
9 यहूदा और शिमोन के प्रदेश के नगरों के नाम ये थे। 10 नगर के चुनाव का प्रथम अवसर कहात परिवार समूह को दिया गया। (लेवीवंशी लोग) 11 उन्होंने उन्हें किर्यतर्बा हेब्रोन और इसके सब खेत दिये (यह हेब्रोन है जो एक व्यक्ति अरबा के नाम पर रखा गया है। अरबा अनाक का पिता था।) उन्हें वे खेत भी मिले जिनमें उनके जानवर उनके नगरों के समीप चर सकते थे। 12 किन्तु खेत और किर्यतर्बा नगर के चारों ओर के छोटे नगर यपुन्ने के पुत्र कालेब के थे। 13 इस प्रकार उन्होंने हेब्रोन नगर को हारून के परिवार के लोगों को दे दिया। (हेब्रोन सुरक्षा नगर था) उन्होने हारून के परिवार समूह को लिब्ना, 14 यत्तीर, एशतमो, 15 होलोन, दबीर, 16 ऐन, युत्ता और बेतशेमेश भी दिया। उन्होंने इन नगरों के चारों ओर के खेतों को भी दिया। इन दोनों समूहों को यहूदा और शिमोन द्वारा नौ नगर दिये गए थे।
17 उन्होंने हारून के लोगों को वे नगर भी दिये जो बिन्यामीन परिवार समूह के थे। ये नगर गिबोन, गेबा, 18 अनातोत और अल्मोन थे। उन्होंने ये चार नगर और इनके चारों ओर के सब खेत दिये। 19 इस प्रकार ये नगर याजकों को दिये गये। (ये याजक, याजक हारून के वंशज थे।) सब मिलाकर तेरह नगर और उनके सब खेत उनके जानवरों के लिये थे।
समीक्षा
इंसानियत द्वारा आश्चर्यचकित
जब मैं और पीपा पूरी दुनिया की यात्रा कर रहे थे, तब हम अक्सर स्थानीय बंदीगृहों में जाया करते थे. कुछ देशों में न्याय प्रणाली अपेक्षाकृत मानवीय नजर आती है. दूसरी जगहों में बंदीगृहों की स्थितियाँ और उन पर लगाए जाने वाले दंड अमानवीय नजर आ रहे थे.
हम अक्सर आश्चर्यचकित हुए, बल्कि अचंभित भी हुए, पुराने नियम के कुछ भाग से. इस्राएली लोग भी आश्चर्यचकित हुए थे, हाँलांकि किसी अलग तरह से, क्योंकि ये नियम समय के मापदंड के अनुसार आश्चर्यचकित रूप से मानवीय थे.
यदि ऐसी स्थिति आ जाती जहाँ मानव हत्या अप्रत्याशित नजर आती हो, तब उस व्यक्ति को शहर के आश्रय स्थान में भर्ती कर दिया जाता था. इसलिए वे कह सकते थे, यदि सुनवाई हो और बदला लेने वाला हत्या की बेगुनाही को साबित नहीं कर पाता था. तब उनकी सुरक्षा करना शहर की जिम्मेदारी होती थी, जब तक उनके वापस आने का समय नहीं हो जाता था. (यहोशू 20).
ये नियम मानव जीवन की निर्मलता की रक्षा करते थे. हरएक व्यक्ति का जीवन परमेश्वर के लिए असीमित रूप से मूल्यवान है. जब एक कैदी की मृत्यु हो जाती है, भले ही यह अकस्मात हुई हो, तो यह बहुत ही गंभीर मामला है. दूसरी तरफ, इन नियमों के बारे में मानवीयता है जो उस व्यक्ति की सुरक्षा करता है जिसने अप्रत्याशित रूप से किसी की हत्या की थी. यह मानवीयता शायद आज के लोगों को आश्चर्यचकित कर देगी.
जबकि आज परमेश्वर के लोगों को न्याय, उचित न्याय निर्धारण और अपराध को कम करने का प्रयास करना चाहिये. लेकिन हमें इस बात को सुनिश्चित करने का प्रयास भी करना चाहिये कि हमारी न्याय प्रणाली मानवीय हो.
प्रार्थना
प्रभु, मेरे खुद के जीवन में और समाज में भी न्याय और मानवता के प्रति कार्य करने में मेरी मदद कीजिये. आपके प्रेम, दया और करूणा के लिए आपको धन्यवाद.
पिप्पा भी कहते है
यूहन्ना 2:1-11
मुझे शादियाँ पसंद हैं. जब हमारे बच्चों की शादियाँ होती हैं, तो हर तरह की तैयारियों में कई दिन लग जाते हैं. यह लेखांश हमें याद दिलाता है कि केवल एक बात जो एक शादी में मायने रखती है वह यह है कि यीशु वहाँ उपस्थित हैं..... (और वह दाखरस जैसी व्यवहारिक बात का भी ख्याल रखते हैं).
यीशु और उनकी माँ के बीच हुई बातचीत बहुत ही संवेदनशील है. अपने पुत्र के प्रति मरियम का विश्वास हमने पहले ही देखा है.

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संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।