अच्छा चुनाव कैसे करें
परिचय
चार्ल्स फिने, वकील और सुसमाचार प्रचारक, 1830 के दशक में न्यू यॉर्क की एक कलीसिया में प्रचार कर रहे थे. हरएक शाम के अंत में, उन्होंने लोगों को मौका दिया कि वे कमरे से बाहर आएं और अपने जीवन को यीशु को समर्पित करें. कई महान वकील उन्हें सुनने के लिए आए. एक रात, न्यू यॉर्क के मुख्य न्यायाधीश गैलरी में बैठे हुए थे. जब उन्होंने फिने को सुसमाचार का प्रचार करते हुए सुना तो उन्होंने यकीन किया कि यह सत्य था.
फिर उनके मन में यह सवाल आया: 'क्या आप अन्य साधारण लोगों की तरह आगे जाएंगे?' किसी तरह से उनके मन में आया कि उनकी प्रतिष्ठापूर्ण सामाजिक पदवी (न्यू यॉर्क के कानूनी पदक्रम में सबसे ऊपर होने) के कारण ऐसा करना अनुचित होगा. वह अपना निर्णय लेने के बारे में विचार करते हुए वहाँ बैठे रहे. फिर उन्होंने सोचा, 'क्यों नहीं? मैंने सत्य पर दृढ़ता से यकीन किया है....... मुझे अन्य लोगों के जैसा क्यों नहीं करना चाहिये?'
वह गैलरी में अपनी सीट से उठे, सीढ़ियों से नीचे उतरे और वापस चढ़कर ऊपर गए जहाँ फिने प्रचार कर रहे थे. फिने ने, अपने प्रचार के बीच में, महसूस किया कि कोई उनकी जैकेट को झटके से खींच रहा है. वह मुड़े. मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'श्रीमान फिने, यदि तुम लोगों को आगे बुलाओगे तो मैं आऊँगा.' फिने ने अपनी बात रोककर कहा, 'मुख्य न्यायाधीश कहते हैं कि यदि मैं लोगों को आगे बुलाऊँगा, तो मैं आऊँगा. मैं आपको अभी आगे आने के लिए कहता हूँ.'
मुख्य न्यायाधीश आगे गए. रोचेस्टर, न्यू यॉर्क के लगभग सभी वकील, ने उनका अनुसरण किया! ऐसा कहा जाता है कि अगले बारह महीनों में उस क्षेत्र में 100,000 लोगों ने यीशु को ग्रहण किया. एक व्यक्ति के निर्णय ने कई लोगों के जीवन को प्रभावित किया.
जीवन चुनावों से भरा हुआ है. हम अपने जीवन में हरदिन चुनाव करते हैं. आप गलत चुनाव कर सकते हैं या अच्छे चुनाव कर सकते हैं. आपके चुनाव मायने रखते हैं. कुछ चुनाव जीवन बदल देने वाले होते हैं.
भजन संहिता 55:12-23
12 यदि यह मेरा शत्रु होता
और मुझे नीचा दिखाता तो मैं इसे सह लेता।
यदि ये मेरे शत्रु होते,
और मुझ पर वार करते तो मैं छिप सकता था।
13 ओ! मेरे साथी, मेरे सहचर, मेरे मित्र,
यह किन्तु तू है और तू ही मुझे कष्ट पहूँचाता है।
14 हमने आपस में राज की बातें बाँटी थी।
हमने परमेश्वर के मन्दिर में साथ—साथ उपासना की।
15 काश मेरे शत्रु अपने समय से पहले ही मर जायें।
काश उन्हें जीवित ही गाड़ दिया जायें,
क्योंकि वे अपने घरों में ऐसे भयानक कुचक्र रचा करते हैं।
16 मैं तो सहायता के लिए परमेश्वर को पुकारुँगा।
यहोवा उसका उत्तर मुझे देगा।
17 मैं तो अपने दु;ख को परमेश्वर से प्रात,
दोपहर और रात में कहूँगा। वह मेरी सुनेगा।
18 मैंने कितने ही युद्धों में लड़ायी लड़ी है।
किन्तु परमेश्वर मेरे साथ है, और हर युद्ध से मुझे सुरक्षित लौटायेगा।
19 वह शाश्वत सम्राट परमेश्वर मेरी सुनेगा
और उन्हें नीचा दिखायेगा।
20 मेरे शत्रु अपने जीवन को नहीं बदलेंगे।
वे परमेश्वर से नहीं डरते, और न ही उसका आदर करते।
21 मेरे शत्रु अपने ही मित्रों पर वार करते।
वे उन बातों को नहीं करते, जिनके करने को वे सहमत हो गये थे।
22 मेरे शत्रु सचमुच मीठा बोलते हैं, और सुशांति की बातें करते रहते हैं।
किन्तु वास्तव में, वे युद्ध का कुचक्र रचते हैं।
उनके शब्द काट करते छुरी की सी
और फिसलन भरे हैं जैसे तेल होता है।
23 अपनी चिंताये तुम यहोवा को सौंप दो।
फिर वह तुम्हारी रखवाली करेगा।
यहोव सज्जन को कभी हारने नहीं देगा।
समीक्षा
चिंता के बदले भरोसा करने का चुनाव करें
जैसा कि कोरी टोन ने लिखा है, 'चिंता कल के दु:ख को खाली नहीं करती. यह आज की अपनी ताकत को खाली करती है.' परेशानियों, संघर्षों और चिंता के कारणों का सामना किये बिना कोई भी जीवन नहीं जीता.
दाऊद ने अपने जीवन में कई परेशानियों का सामना किया. यहाँ दाऊद अपने जीवन के दु:खदायी संघर्ष के बारे में बताते हैं (व.18ब). उनका सबसे अच्छा दोस्त' (व.13ब, एमएसजी) उनके विरूद्ध हो गया था और उनका विरोध करने वाले कई लोगों के साथ जुड़ गया था (व.18क). अवश्य ही, जब उनके शत्रुओं ने उनकी नामधाराई की, तब दाऊद को ज्यादा परेशानी हुई' (व.12अ), जैसे हमें भी होती है.
जैसा कि युद्ध में हमारे पास 'चुनाव' रहता है कि हम कैसे प्रतिक्रिया करें. दाऊद ने परमेश्वर की ओर फिरने और 'सुबह, दोपहर और शाम' को उन्हें पुकारने का चुनाव किया (वव.16-17). यदि आप अपने करीबी दोस्त या परिवार के सदस्य से विरोध का सामना कर रहे हैं. तो शांति और सामर्थ के लिए परमेश्वर की ओर मुड़ें. दाऊद ने ऐसा ही किया था और इसके परिणामस्वरूप उसने परमेश्वर की शांति का अनुभव किया. उन्होंने लिखा है, 'जो लड़ाई मेरे विरुद्ध मची थी उससे उसने मुझे कुशल के साथ बचा लिया है।' (व.18).
दाऊद के खुद के अनुभव से वह यह सुझाव दे रहे हैं: 'अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा' (व.22अ). इस वचन की प्रतिक्रिया में हर साल मैंने अपनी बाइबल की मार्जिन में लिखा है 'अपना बोझ यहोवा पर डाल दे' तो 'वह तुझे सम्भालेगा.' इनमें से ज्यादातर (हालाँकि सभी नहीं) हल हो गई हैं.
जब आप जीवन में चिंता, संघर्ष और निराशा का सामना करते हैं, तो इन्हें खुद पर हावी होने मत दीजिये. दाऊद की तरह, प्रभु की ओर फिरें, अपना बोझ उन पर डालें और फिर कहें, 'जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं आप पर भरोसा करता हूँ (व.23ब).
प्रार्थना
प्रभु, आज मैं अपनी चिंता आपके पास लाता हूँ..... और इन बातों का बोझ आप पर डालता हूँ और मैं आप पर भरोसा करता हूँ.
यूहन्ना 3:22-36
यूहन्ना द्वारा यीशु का बपतिस्मा
22 इसके बाद यीशु अपने अनुयायियों के साथ यहूदिया के इलाके में चला गया। वहाँ उनके साथ ठहर कर, वह लोगों को बपतिस्मा देने लगा। 23 वहीं शालेम के पास ऐनोन में यूहन्ना भी बपतिस्मा दिया करता था क्योंकि वहाँ पानी बहुतायत में था। लोग वहाँ आते और बपतिस्मा लेते थे। 24 यूहन्ना को अभी तक बंदी नहीं बनाया गया था।
25 अब यूहन्ना के कुछ शिष्यों और एक यहूदी के बीच स्वच्छताकरण को लेकर बहस छिड़ गयी। 26 इसलिये वे यूहन्ना के पास आये और बोले, “हे रब्बी, जो व्यक्ति यरदन के उस पार तेरे साथ था और जिसके बारे में तूने बताया था, वही लोगों को बपतिस्मा दे रहा है, और हर आदमी उसके पास जा रहा है।”
27 जवाब में यूहन्ना ने कहा, “किसी आदमी को तब तक कुछ नहीं मिल सकता जब तक वह उसे स्वर्ग से न दिया गया हो। 28 तुम सब गवाह हो कि मैंने कहा था, ‘मैं मसीह नहीं हूँ बल्कि मैं तो उससे पहले भेजा गया हूँ।’ 29 दूल्हा वही है जिसे दुल्हन मिलती है। पर दूल्हे का मित्र जो खड़ा रहता है और उसकी अगुवाई में जब दूल्हे की आवाज़ को सुनता है, तो बहुत खुश होता है। मेरी यही खुशी अब पूरी हुई है। 30 अब निश्चित है कि उसकी महिमा बढ़े और मेरी घटे।
वह जो स्वर्ग से उतरा
31 “जो ऊपर से आता है वह सबसे महान् है। वह जो धरती से है, धरती से जुड़ा है। इसलिये वह धरती की ही बातें करता है। जो स्वर्ग से उतरा है, सबके ऊपर है; 32 उसने जो कुछ देखा है, और सुना है, वह उसकी साक्षी देता है पर उसकी साक्षी को कोई ग्रहण नहीं करना चाहता। 33 जो उसकी साक्षी को मानता है वह प्रमाणित करता है कि परमेश्वर सच्चा है। 34 क्योंकि वह, जिसे परमेश्वर ने भेजा है, परमेश्वर की ही बातें बोलता है। क्योंकि परमेश्वर ने उसे आत्मा का अनन्त दान दिया है। 35 पिता अपने पुत्र को प्यार करता है। और उसी के हाथों में उसने सब कुछ सौंप दिया है। 36 इसलिए वह जो उसके पुत्र में विश्वास करता है अनन्त जीवन पाता है पर वह जो परमेश्वर के पुत्र की बात नहीं मानता उसे वह जीवन नहीं मिलेगा। इसके बजाय उस पर परम पिता परमेश्वर का क्रोध बना रहेगा।”
समीक्षा
यीशु को चुनें
यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले प्रसिद्ध हो गए थे. उनकी सेविकाई शानदार थी. उनके पास लागातार लोग बपतिस्मा लेने आते थे (व.23). यूहन्ना के मानने वाले बहुत ही प्रतिस्पर्धात्मक थे. वे यीशु की सफलता से जलन रखते थे. वे यूहन्ना के पास आये और यीशु के बारे में कहा, 'हे रब्बी, जो व्यक्ति यरदन के पार तेरे साथ था, और जिस की तू ने गवाही दी है देख, वह बपतिस्मा देता है, और सब उसके पास आते हैं' (व.26).
यूहन्ना ने निर्णय लिया था कि किस तरह से प्रतिक्रिया करनी है. यूहन्ना ने अपने शिष्यों को बताया कि, 'जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए तब तक वह कुछ नहीं पा सकता' (व.28).
यूहन्ना को अपनी स्थिति अच्छी लगती थी, 'दूल्हे का मित्र उसकी सुनता है' (जिसे हम 'सबसे अच्छा पुरूष' कह सकते हैं). दूल्हे के पहुँचने से घबराने के बजाय, वह उसी का इंतजार कर रहा था और वह उससे खुश था. उसी तरह से, यूहन्ना समझाते हैं कि वह यीशु के लिए इंतजार कर रहे थे. और वह 'यीशु की सेविकाई से प्रसन्न हैं.' यीशु, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के वारिस थे. यूहन्ना यीशु से कहते हैं: 'अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूं' (व.30).
कभी-कभी हम सब की इच्छा ज्यादा महान, ज्यादा महत्वपूर्ण, ज्यादा उन्नतशील या ज्यादा शिक्षित बनने की होती है. ये सभी अपने आप में बुरे उद्देश्य नहीं हैं, लेकिन हमारे दैनिक चुनाव इन अभिलाषाओं की प्रभुता में आ जाएंगे. आपको चुनना होगा कि आप अपना जीवन कैसे जीएंगे. क्या आप अपना ध्यान पदोन्नती पर लगाए हुए हैं या यीशु पर? क्या आपकी अभिलाषा स्वयं आपके लिए ज्यादा है या यीशु के लिए?
कभी-कभी हमने अलग-अलग मसीही सेविकाओं को एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हुए देखा है. ऐसा कभी नहीं होना चाहिये.
इन शब्दों को अपने दिल में दोहराते रहें: 'अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूं' (व.30). अंत में, आपका ध्यान खुद पर नहीं रहेगा – यह हमेशा यीशु पर रहेगा. हमारी अभिलाषा हमेशा लोगों को यीशु के दर्शाने पर होनी चाहिये.
यूहन्ना असली मामले पर जोर देते हैं: ' जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है' (व.36).
यह सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है – मैं यीशु को चुनूँ या उन्हें इंकार करूँ?
प्रार्थना
प्रभु, मैं अपने दिल में यह कहने का चुनाव करता हूँ कि, ' वह बढ़े और मैं घटूं' (व.30). मुझे पवित्र आत्मा से भर दें ताकि मैं परमेश्वर के वचन को कह सकूँ, ताकि अन्य लोग पुत्र पर विश्वास कर सकें.
यहोशू 23:1-24:33
यहोशू लोगों को उत्साहित करता है
23यहोवा ने इस्राएल को उसके चारों ओर के उनके शत्रुओं से शान्ति प्रदान की। योहवा ने इस्रएल को सुरक्षित बनाया। वर्ष बीते और यहोशू बहुत बूढ़ा हो गया। 2 इस समय यहोशू ने इस्राएल के सभी प्रमुखों, शासको और न्यायाधीशों की बैठक बुलाई। यहोशू ने कहा, “मैं बहुत बूढ़ा हो गया हूँ। 3 तुमने वह देखा जो यहोवा ने हमारे शत्रुओं के साथ किया। उसने यह हमारी सहायता के लिये किया। तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे लिये युद्ध किया। 4 याद रखो मैंने तुम्हें यह कहा था कि तुम्हारे लोग उस प्रदेश को पा सकते हैं, जो यरदन नदी और पश्चिम के बड़े सागर के मध्य है। यह वही प्रदेश है जिसे देने का वचन मैंने दिया था, किन्तु अब तक तुम उस प्रदेश का थोड़ा सा भाग ही ले पाए हो। 5 तुम्हारा परमेश्वर यहोवा वहाँ के निवासियों को उस स्थान को छोड़ने के लिये विवश करेगा। तुम उस प्रदेश में प्रवेश करोगे और यहोवा वहाँ के निवासियों को उस प्रदेश को छोड़ने के लिये विवश करेगा। तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुमको यह वचन दिया है।
6 “तुम्हें उन सब बातों का पालन करने में सावधान रहना चाहिए जो यहोवा ने हमे आदेश दिया है। उस हर बात, का पालन करो जो मूसा के व्यवस्था की किताब में लिखा है। उस व्यवस्था के विपरीत न जाओ। 7 हम लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस्राएल के लोग नहीं हैं। वे लोग अपने देवताओं की पूजा करते हैं। उन लोगों के मित्र मत बनो। उन देवताओं की सेवा, पूजा न करो 8 तुम्हें सदैव अपने परमेश्वर यहोवा का अनुसरण करना चाहिये। तुमने यह भूतकाल में किया है और तुम्हें यह करते रहना चाहिये।
9 “यहोवा ने अनेक शक्तिशाली राष्ट्रों को हराने में तुम्हारी सहायता की है। यहोवा ने उन लोगों को अपना देश छोड़ने को विवश किया है। कोई भी राष्ट्र तुमको हराने में समर्थ न हो सका। 10 यहोवा की सहायता से इस्राएल का एक व्यक्ति एक हजार व्यक्तियों को हरा सकता है। इसका कारण यह है कि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे लिये युद्ध करता है। यहोवा ने यह करने का वचन दिया है। 11 इसलिए तुम्हें अपने परमेश्वर यहोवा की भक्ति करते रहना चाहिए। अपनी पूरी आत्मा से उससे प्रेम करो।
12 “यहोवा के मार्ग से कभी दूर न जाओ। उन अन्य लोगों से मित्रता न करो जो अभी तक तुम्हारे बीच तो हैं किन्तु जो इस्राएल के अंग नहीं हैं। उनमें से किसी के साथ विवाह न करो। किन्तु यदि तुम इन लोगों के मित्र बनोगे, 13 तब तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे शत्रुओं को हराने में तुम्हारी सहायता नहीं करेगा। इस प्रकार ये लोग तुम्हारे लिये एक जाल बन जायेंगे। परन्तु वे तुम्हारी पीठ के लिए कोड़े और तुम्हारी आँख के लिए काँटा बन जायेंगे। और तुम इस अच्छे देश से विदा हो जाओगे। यह वही प्रदेश है जिसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें दिया है, किन्तु यदि तुम इस आदेश को नहीं मानोगे तो तुम अच्छे देश को खो दोगे।
14 “यह करीब—करीब मेरे मरने का समय है। तुम जानते हो और सचमुच विश्वास करते हो कि यहोवा ने तुम्हारे लिये बहुत बड़े काम किये हैं। तुम जानते हो कि वह अपने दिये वचनों में से किसी को पूरा करने में असफल नहीं रहा है। यहोवा ने उन सभी वचनों को पूरा किया है, जो उसने हमें दिये हैं। 15 वे सभी अच्छे वचन जो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने हमको दिये हैं, पूरी तरह सच हुए हैं। किन्तु यहोवा, उसी तरह अन्य वचनों को भी सत्य बनाएगा। उसने चेतावनी दी है कि यदि तुम पाप करोगे तब तुम्हारे ऊपर विपत्तियाँ आएंगी। उसने चेतावनी दी है कि वह तुम्हें उस देश को छोड़ने के लिये विवश करेगा जिसे उसने तुमको दिया है। 16 यह घटित होगा, यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा के साथ की गई वाचा का पालन करने से इन्कार करोगे। यदि तुम अन्य देवताओं के पास जाओगे और उनकी सेवा करोगे तो तुम इस देश को खो दोगे। यदि तुम ऐसा करोगे तो यहोवा तुम पर बहुत क्रोधित होगा। तब तुम इस अच्छे देश से शीघ्रता से चले जाओगे जिसे उसने तुमको दिया है।”
यहोशू अलविदा कहता है
24तब इस्राएल के सभी परिवार समूह शकेम में इकट्ठे हुए। यहोशू ने उन सभी को वहाँ एक साथ बुलाया। तब यहोशू ने इस्राएल के प्रमुखों, शासकों और न्यायाधीशों को बुलाया। ये ब्यक्ति परमेश्वर के सामने खड़े हुए।
2 तब यहोशू ने सभी लोगों से बातें कीं। उसने कहा, “मैं वह कह रहा हूँ जो यहोवा, इस्राएल का परमेश्वर तुमसे कह रहा है: ‘वहुत समय पहले तुम्हारे पूर्वज परात नदी की दूसरी ओर रहते थे। मैं उन व्यक्तियों के विष्य में बात कर रहा हूँ, जो इब्राहीम और नाहोर के पिता तेरह की तरह थे। उन दिनों तुम्हारे पूर्वज अन्य देवताओं की पूजा करते थे। 3 किन्तु मैं अर्थात् यहोवा, तुम्हारे पूर्वज इब्राहीम को नदी की दूसरी ओर के प्रदेश से बाहर लाया। मैं उसे कनान प्रदेश से होकर ले गया और उसे अनेक सन्तानें दीं। मैंने इब्राहीम को इसहाक नामक पुत्र दिया 4 और मैंने इसहाक को याकूब और एसाव नामक दो पुत्र दिये। मैंने सेईर पर्वत के चारों ओर के प्रदेश को एसाव को दिया। किन्तु याकूब और उसकी सन्तानें वहाँ नहीं रहीं। वे मिस्र देश में रहने के लिए चले गए।
5 “‘तब मैंने मूसा और हारून को मिस्र भेजा। मैं उनसे यह चाहता था कि मेरे लोगों को मिस्र से बाहर लाएँ। मैंने मिस्र के लोगों पर भयंकर विपत्तियाँ पड़ने दीं। तब मैं तुम्हारे लोगों को मिस्र से बाहर लाया। 6 इस प्रकार मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र के बाहर लाया। वे लाल सागर तक आए और मिस्र के लोग उनका पीछा कर रहे थे। उनके साथ रथ और घुड़सवार थे। 7 इसलिये लोगों ने मुझसे अर्थात् यहोवा से सहायता माँगी और मैंने मिस्र के लोगों पर बहुत बड़ी विपत्ति आने दी। मैंने अर्थात् यहोवा ने समुद्र में उन्हें डुबा दिया। तुम लोगों ने स्वयं देखा कि मैंने मिस्र की सेना के साथ क्या किया।
“‘उसके बाद तुम मरूभूमि में लम्बे समय तक रहे। 8 तब मैं तुम्हें एमोरी लोगों के प्रदेश में लाया। यह यरदन नदी के पूर्व में था। वे लोग तुम्हारे विरूद्ध लड़े, किन्तु मैंने तुम्हें उनको पराजित करने दिया। मैंने तुम्हें उन लोगों को नष्ट करने के लिए शक्ति दी। तब तुमने उस देश पर अधिकार किया।
9 “‘तब सिप्पोर के पुत्र मोआब के राजा बालाक ने इस्राएल के लोगों के विरुद्ध लड़ने की तैयारी की। राजा ने बोर के पुत्र बिलाम को बुलाया। उसने बिलाम से तुमको अभिशाप देने को कहा। 10 किन्तु मैंने अर्थात् तुम्हारे यहोवा ने बिलाम की एक न सुनी। इसलिए बिलाम ने तुम लोगों के लिये अच्छी चीज़ें होने की याचना की! उसने तुम्हें मुक्त भाव से आशीर्वाद दिये। इस प्रकार मैंने तुम्हें बालाक से बचाया।
11 “‘तब तुमने यरदन नदी के पार तक यात्रा की। तुम लोग यरीहो प्रदेश में आए। यरीहो नगर में रहने वाले लोग तुम्हारे विरूद्ध लड़े। एमोरी, परिज्जी, कनानी, हित्ती, गिर्गाशी, हिव्वी और यबूसी लोग भी तुम्हारे विरुद्ध लड़े। किन्तु मैंने तुम्हें उन सबको हराने दिया। 12 जब तुम्हारी सेना आगे बढ़ी तो मैंने उनके आगे बर्रो भेजीं। इन बर्रों के समूह ने लोगों को भागने के लिये विवश किया। इसलिये तुम लोगों ने अपनी तलवारों और धनुष का उपयोग किये बिना ही उन पर अधिकार कर लिया।
13 “‘यह मैं, ही था, जिसने तुम्हें वह प्रदेश दिया! मैंने तुम्हें वह प्रदेश दिया जहाँ तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ा। मैंने तुम्हें नगर दिये जिन्हें तुम्हें बनाना नहीं पड़ा। अब तुम उस प्रदेश और उन नगरों में रहते हो। तुम्हारे पास अंगूर की बेलें और जैतून के बाग हैं, किन्तु उन बागों को तुम ने नहीं लगाया था।’”
14 तब यहोशू ने लोगों से कहा, “अब तुम लोगों ने यहोवा का कथन सुन लिया है। इसलिये तुम्हें यहोवा का सम्मान करना चाहिए और उसकी सच्ची सेवा करनी चाहिए। उन असत्य देवताओं को फेंक दो जिन्हें तुम्हारे पूर्वज पूजते थे। यह सब कुछ बहुत समय पहले फरात नदी की दूसरी ओर, मिस्र में भी हुआ था। अब तुम्हें यहोवा की सेवा करनी चाहिये।
15 “किन्तु संभव है कि तुम यहोवा की सेवा करना नहीं चाहते। तुम्हें स्वयं ही आज यह चुन लेना चाहिए। तुम्हें आज निश्चय कर लेना चाहिए कि तुम किसकी सेवा करोगे। तुम उन देवताओं की सेवा करोगे जिनकी सेवा तुम्हारे पूर्वज उस समय करते थे जब वे नदी की दूसरी ओर रहते थे? या तुम उन एमोरी लोगों के देवताओं की सेवा करना चाहते हो जो यहाँ रहते थे? किन्तु मैं तुम्हें बताता हूँ कि मैं क्या करूँगा। जहाँ तक मेरी और मेरे परिवार की बात है, हम यहोवा की सेवा करेंगे!”
16 तब लोगों ने उत्तर दिया, “नहीं, हम यहोवा का अनुसरण करना कभी नहीं छोड़ेंगे। नहीं, हम लोग कभी अन्य देवताओं की सेवा नहीं करेंगे! 17 हम जानते हैं कि वह परमेश्वर यहोवा था जो हमारे लोगों को मिस्र से लाया। हम लोग उस देश में दास थे। किन्तु यहोवा ने हम लोगों के लिये वहाँ बड़े—बड़े काम किये। वह उस देश से हम लोगों को बाहर लाया और उस समय तक हमारी रक्षा करता रहा जब तक हम लोगों ने अन्य देशों से होकर यात्रा की। 18 तब यहोवा ने उन एमोरी लोगों को हराने में हमारी सहायता की जो उस प्रदेश में रहते थे जिसमें आज हम रहते हैं। इसलिए हम लोग यहोवा की सेवा करते रहेंगे। क्यों? क्योंकि वह हमारा परमेश्वर है।”
19 तब यहोवा ने कहा, “तुम यहोवा की पर्याप्त सेवा अच्छी तरह नहीं कर सकोगे। यहोवा, पवित्र परमेश्वर है और परमेश्वर अपने लोगों द्वारा अन्य देवताओं की पूजा से घृणा करता है। यदि तुम उस तरह परमेश्वर के विरुद्ध जाओगे तो परमेश्वर तुमको क्षमा नहीं करेगा। 20 तुम यहोवा को छोड़ोगे और अन्य देवताओं की सेवा करोगे तब यहोवा तुम पर भंयकर विपत्तियाँ लायेगा। यहोवा तुमको नष्ट करेगा। यहोवा तुम्हारे लिये अच्छा रहा है, किन्तु यदि तुम उसके विरूद्ध चलते हो तो वह तुम्हें नष्ट कर देगा।”
21 किन्तु लोगों ने यहोशू से कहा, “नहीं! हम यहोवा की सेवा करेंगे।”
22 तब यहोशू ने कहा, “स्वयं अपने और अपने साथ के लोगों के चारों ओर देखो। क्या तुम जानते हो और स्वीकार करते हो कि तुमने यहोवा की सेवा करना चुना है? क्या तुम सब इसके गवाह हो?”
लोगों ने उत्तर दिया, “हाँ, यह सत्य है!हम लोग ध्यान रखेंगे कि हम लोगों ने यहोवा की सेवा करना चुना है।”
23 तब यहोशू ने कहा, “इसलिए अपने बीच जो असत्य देवता रखते हो उन्हें फेंक दो। अपने पूरे हृदय से इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो।”
24 तब लगों ने यहोशू से कहा, “हम लोग यहोवा, अपने परमेश्वर की सेवा करेंगे। हम लोग उसकी आज्ञा का पालन करेंगे।”
25 इसलिये यहोशू ने लोगों के लिये उस दिन एक वाचा की। यहोशू ने इस वाचा को उन लोगों द्वारा पालन करने के लिये एक नियम बना दिया। यह शकेम नामक नगर में हुआ। 26 यहोशू ने इन बातों को परमेश्वर के व्यवस्था की किताब में लिखा। तब यहोशू एक बड़ी शिला लाया। यह शिला इस वाचा का प्रमाण थी। उसने उस शिला को यहोवा के पवित्र तम्बू के निकट बांज के पेड़े के नीचे रखा।
27 तब योहशू ने सभी लोगों से कहा, “यह शिला तुम्हें उसे याद दिलाने में सहायक होगी जो कुछ हम लोगों ने आज कहा है। यह शिला तब यहाँ थी जब परमेश्वर हम लोगों से बात कर रहा था। इसलिये यह शिला कुछ ऐसी रेहेगी जो तुम्हें यह याद दिलाने में सहायता करेगी कि आज के दिन क्या हुआ था। यह शिला तुम्हारे प्रति एक साक्षी बनी रहेगी। यह तुम्हें तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के विपरीत जाने से रोकेगी।”
28 तब यहोशू ने लोगों से अपने घरों को लौट जाने को कहा तो हर एक व्यक्ति अपने प्रदेश को लौट गया।
यहोशू की मृत्यु
29 उसके बाद नून का पुत्र यहोशू मर गया। वह एक सौ दस वर्ष का था। 30 यहोशू अपनी भूमि तिम्नत्सेरह में दफनाया गया। यह गाश पर्वत के उत्तर में एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में था।
31 इस्राएल के लोगों ने यहोशू के जीवन काल में यहोवा की सेवा की और यहोशू के मरने के बाद भी, लोग यहोवा की सेवा करते रहे। इस्राएल के लोग तब तक यहोवा की सेवा करते रहे जब तक उनके नेता जीवित रहे। ये वे नेता थे, जिन्होंने वह सब कुछ देखा था जो यहोवा ने इस्राएल के लिये किया था।
यूसुफ दफनाया गया
32 जब इस्राएल के लोगों ने मिस्र छोड़ा तब वे यूसुफ के शरीर की हड्डियाँ अपने साथ लाए थे। इसलिए लोगों ने यूसुफ की हड्डियाँ शकेम में दफनाईं। उन्होंने हड्डियों को उस प्रदेश के क्षेत्र में दफनाया जिसे याकूब ने शकेम के पिता हमोर के पुत्रों से खरीदा था। याकूब ने उस भूमि को चाँदी के सौ सिक्कों से खरीदा था। यह प्रदेश यूसुफ की सन्तानों का था।
33 हारून का पुत्र एलीआज़ार मर गया। वह गिबा में दफनाया गया। गिबा एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में एक नगर था। वह नगर एलीआज़र के पुत्र पीनहास को दिया गया था।
समीक्षा
प्रभु की सेवा करने का चुनाव करें
परमेश्वर की आराधना और सेवा करना जीवन को परिपूर्ण करने का एक तरीका है. अन्य देवताओं के पीछे चलते हुए अपना जीवन व्यर्थ न गवाएं, जैसा कि संत सीप्रियान ने लिखा है, 'मनुष्य परमेश्वर से ज्यादा जो जिसे भी पसंद करता है, वह उसे खुद का परमेश्वर बनाता है.' आजकल चारों तरफ अनेक प्रभु हैं – शायद सबसे ज्यादा 'धन, कामुकता और ताकत.'
सभी युद्धों के बाद इस्रालियों ने काफी लंबे समय तक विश्राम किया (23:1). यहोशू, 'एक सम्मानित वृद्ध' (व.1, एमएसजी) ने अपने जीवन के आखिरी पड़ाव में, सभी लोगों को एक साथ बुलाकर उनसे कहा. यहोशू ने उन लोगों से कहा कि उन्हें यह तय करना होगा कि उन्हें बाकी का जीवन कैसे बिताना है.
यहोशू ने लोगों को बताया कि परमेश्वर ने उनके लिए क्या-क्या किया है और उन सभी तरीको को भी बताया जिस तरह से परमेश्वर ने उन्हें आशीषित किया है (23:14; 24:10). अब यहोशू उनसे कहते हैं कि वे लोग 'पूरे समर्पण से' अपने प्रभु परमेश्वर की आराधना करें (व.10, एमएसजी).
प्रभु ने तुम्हारे लिए जो किया है उसकी प्रतिक्रिया में आपको 'प्रभु से प्रेम करने(व.23:11), आराधना करने और उनकी सेवा करने के लिए बुलाया गया है.' यहोशू कहते हैं, 'आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे,' (24:15). वह उनके सामने विकल्प रखते हैं (वव.14-15):
पराये देवी-देवता (उनके पुर्वजों के देवता या विजयी लोगों के देवता), या इस्राएल के परमेश्वर, जो कि सच्चे परमेश्वर हैं.
विजयी लोगों के देवता आधुनिक और वैज्ञानिक होने का दावा करते हैं - खेती, उपज और कामुकता पर सच्चा नियंत्रण रखने वाले. कनानी लोगों ने स्वयं विवेकशीलता और सांस्कृतिक रूप से इस्रालियों से बहुत पहले यह महसूस कर लिया था. लेकिन यहोशू 'पराए देवताओं' की कमियों की तुलना में परमेश्वर की भलाई और सामर्थ पर जोर देते हैं.
आपको निर्णय लेना होगा. आप बहाव नहीं ला सकते. कई लोग जीवन में बहते रहते हैं, और अपने निर्णय के बारे में कभी सचेत नहीं होते.
यहोशू, अन्य लीडरों की तरह, उदाहरण से नेतृत्व करते हैं. वह प्रभु की आराधना करने और सेवा करने का व्यक्तिगत रूप से चुनाव करते हैं. वह कहते हैं, 'परन्तु मैं तो अपने घराने समेत यहोवा की सेवा नित करूंगा' (व.15).
लोगों ने जवाब दिया, 'हम भी यहोवा की सेवा करेंगे, क्योंकि हमारा परमेश्वर वही है' (वव.18,21,24). यहोशू ने कहा, 'तुम ने यहोवा की सेवा करनी अंगीकार कर ली है' (व.22). इसके परिणामस्वरूप 'यहोशू के पूरे जीवन में इस्रालियों ने परमेश्वर की सेवा की' (व.31). जबकि यहोशू और पुरनिये – अनुमानत: उनके द्वारा प्रशिक्षित – इस्राएल की अगुआई कर रहे थे, इस्राएल ने प्रभु की सेवा की. अगुआई करना एक कुंजी है.
यहोशू ने लोगों को मन फिराने और विश्वास करने के लिए कहा. यह हमेशा से परमेश्वर की जरूरत है. पहले मन फिराव: 'पराये देवी-देवताओं को दूर करो (व.23अ). बुरी चीजो को नष्ट करो. दूसरा, विश्वास करो: 'अपना अपना मन इस्राएल के परमेश्वर की ओर लगाओ' (व.23ब) – अपना पूरा जीवन प्रभु के हाथों में दे दो.
प्रार्थना
प्रभु, मैं अपना मन आप पर लगाने का चुनाव करता हूँ. अपने जीवन में अच्छा चुनाव करने में मेरी मदद कीजिये.
पिप्पा भी कहते है
यहोशू 24:15
' मैं तो अपने घराने समेत यहोवा की सेवा नित करूंगा'
यह मेरा पारिवारिक वचन है. पिछले सालों में यहाँ पर कई बार आई हूँ. हम एक ऐसा परिवार बनाना चाहते हैं जो परमेश्वर की सेवा करता हो.

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संदर्भ
नोट्स:
कोरी टेन बूम, क्लिपर्स फ्रोम माई नोटबुक (थोमस नेल्सन इन्को, 1982).
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