दिन 125

अपनी दुनिया बदलें

बुद्धि नीतिवचन 11:9-18
नए करार यूहन्ना 4:1-26
जूना करार न्यायियों 1:1-2:5

परिचय

मार्टिन लूथर किंग जूनियर (1929-1968) समाज को बदलता हुआ देखने के लिए जीये और मरे. वह सन 1964 में सबसे कम उम्र के नोबल पुरस्कार विजेता रहे – सामाजिक अलगाव और पक्षपात को खत्म करने के लिए.

उन्होंने अपने स्वप्न के बारे में प्रभावशाली और यादगार ढंग से लोगों को बताया, ऐसे देश में रहते हुए जहाँ उनके बच्चों को 'उनकी त्वचा के रंग पर नहीं बल्कि उनके चरित्र पर परखा जाएगा'.

उन्होंने परिवर्तित दुनिया का स्वप्न देखा था जहाँ सभी लोग हाथ से हाथ मिलाकर कहेंगे, 'अंत में आजाद हो गए! धन्यवाद पराक्रमी परमेश्वर, अंत में आजाद हो गए!'

मार्टिन किंग लूथर यीशु पर विश्वास करते थे. उनका विषय था परमेश्वर का राज्य. परमेश्वर का राज्य किसी खास व्यक्ति के बारे में नहीं था – हालाँकि यह महत्वपूर्ण है – बल्कि यह समाज के परिवर्तन के बारे में था.

बुद्धि

नीतिवचन 11:9-18

9 भक्तिहीन की वाणी अपने पड़ोसी को ले डूबती है,
 किन्तु ज्ञान द्वारा धर्मी जन तो बच निकलता है।

10 धर्मी का विकास नगर को आनन्दित करता
 जबकि दुष्ट का नाश हर्ष—नाद उपजाता।

11 सच्चे जन की आशीष नगर को ऊँचा उठा देती
 किन्तु दुष्टों की बातें नीचे गिरा देती हैं।

12 ऐसा जन जिसके पास विवेक नहीं होता,
 वह अपने पड़ोसी का अपमान करता है,
 किन्तु समझदार व्यक्ति चुप चाप रहता है।

13 जो चतुरायी करता फिरता है,
 वह भेद प्रकट करता है,
 किन्तु विश्वासी जन भेद को छिपाता है।

14 जहाँ मार्ग दर्शन नहीं वहाँ राष्ट्र पतित होता,
 किन्तु बहुत सलाहकार विजय को सुनिश्चित करते हैं।

15 जो अनजाने का जामिन बनता है,
 वह निश्चय ही पीड़ा उठायेगा,
 किन्तु अपने हाथों को बंधक बनाने से जो मना कर देता है,
 वह सुरक्षित रहता है।

16 दयालु स्त्री तो आदर पाती है
 जबकि क्रूर जन का लाभ केवल धन है।

17 दयालु मनुष्य स्वयं अपना भला करता है,
 जबकि दयाहीन स्वयं पर विपत्ति लाता है।

18 दुष्ट जन कपट भरी रोजी कमाता है,
 किन्तु जो नेकी को बोता रहता है,
 उसको तो सुनिश्चत प्रतिफल का पाना है।

समीक्षा

अपने देश के लिए एक आशीष बनें

आपके जीवन का प्रभाव पड़ सकता है, सिर्फ आपके परिवार और स्थानीय समाज पर ही नहीं, बल्कि आपके शहर और पूरे देश पर भी.

नीतिवचन के लेखक यह बताते हैं कि हम जिस तरह से अपना जीवन बिताते हैं वह केवल हम पर ही प्रभाव नहीं डालता बल्कि हमारी आसपास की दुनिया पर भी अच्छा या बुरा प्रभाव डालता है.

एक तरफ, 'जब धर्मियों का कल्याण होता है, तब नगर के लोग प्रसन्न होते हैं' (व.10). और 'सीधे लोगों के आशीर्वाद से नगर की बढ़ती होती है' (व.11अ). दूसरी तरफ, 'परन्तु दुष्टों के मुंह की बात से वह ढाया जाता है' (व.11ब). और 'जहां बुद्धि की युक्ति नहीं, वहां प्रजा विपत्ति में पड़ती है' (व.14).

फिर आपको कैसे जीना चाहिये? अपने पड़ोसी को तुच्छ न जानें, बल्कि नियंत्रण रखें और चुपचाप रहें (व.12). 'जो लुतराई करता फिरता वह भेद प्रकट करता है, परन्तु विश्वासयोग्य मनुष्य बात को छिपा रखता है' (व.13).

अच्छी सलाह पाने के लिए हम सभी के आसपास बुद्धिमान और परमेश्वर का भय मानने वाले लोग होने चाहिये: ' जहां बुद्धि की युक्ति नहीं, वहां प्रजा विपत्ति में पड़ती है; परन्तु सम्मति देने वालो की बहुतायत के कारण बचाव होता है' (व.14). यदि आपके पास बुद्धिमान सलाहकार हैं, तो उनसे अक्सर सुझाव मांगें. यदि आपके पास नहीं हैं, तो परमेश्वर से कहें कि वह आपको ऐसे सलाहकार दें.

कृपालु बनें और सत्यनिष्ठा का बीज बोएं (व.18). यदि आप इस तरह से जीवन बिताएंगे, तो आपके आसपास की सारी दुनिया आप से प्रभावित होगी.

प्रार्थना

प्रभु, अपने शहर और अपने देश पर मेरा अच्छा प्रभाव पड़ने के लिए मेरी मदद कीजिये, ताकि मैं अपने आसपास की दुनिया को बदलता हुआ देखूँ।

नए करार

यूहन्ना 4:1-26

यीशु और सामरी स्त्री

4जब यीशु को पता चला कि फरीसियों ने सुना है कि यीशु यूहन्ना से अधिक लोगों को बपतिस्मा दे रहा है और उन्हें शिष्य बना रहा है। 2 (यद्यपि यीशु स्वयं बपतिस्मा नहीं दे रहा था बल्कि यह उसके शिष्य कर रहे थे।) 3 तो वह यहूदिया को छोड़कर एक बार फिर वापस गलील चला गया। 4 इस बार उसे सामरिया होकर जाना पड़ा।

5 इसलिये वह सामरिया के एक नगर सूखार में आया। यह नगर उस भूमि के पास था जिसे याकूब ने अपने बेटे यूसुफ को दिया था। 6 वहाँ याकूब का कुआँ था। यीशु इस यात्रा में बहुत थक गया था इसलिये वह कुएँ के पास बैठ गया। समय लगभग दोपहर का था। 7 एक सामरी स्त्री जल भरने आई। यीशु ने उससे कहा, “मुझे जल दे।” 8 शिष्य लोग भोजन खरीदने के लिए नगर में गये हुए थे।

9 सामरी स्त्री ने उससे कहा, “तू यहूदी होकर भी मुझसे पीने के लिए जल क्यों माँग रहा है, मैं तो एक सामरी स्त्री हूँ!” (यहूदी तो सामरियों से कोई सम्बन्ध नहीं रखते।)

10 उत्तर में यीशु ने उससे कहा, “यदि तू केवल इतना जानती कि परमेश्वर ने क्या दिया है और वह कौन है जो तुझसे कह रहा है, ‘मुझे जल दे’ तो तू उससे माँगती और वह तुझे स्वच्छ जीवन-जल प्रदान करता।”

11 स्त्री ने उससे कहा, “हे महाशय, तेरे पास तो कोई बर्तन तक नहीं है और कुआँ बहुत गहरा है फिर तेरे पास जीवन-जल कैसे हो सकता है? निश्चय तू हमारे पूर्वज याकूब से बड़ा है! 12 जिसने हमें यह कुआँ दिया और अपने बच्चों और मवेशियों के साथ खुद इसका जल पिया था।”

13 उत्तर में यीशु ने उससे कहा, “हर एक जो इस कुआँ का पानी पीता है, उसे फिर प्यास लगेगी। 14 किन्तु वह जो उस जल को पियेगा, जिसे मैं दूँगा, फिर कभी प्यासा नहीं रहेगा। बल्कि मेरा दिया हुआ जल उसके अन्तर में एक पानी के झरने का रूप ले लेगा जो उमड़-घुमड़ कर उसे अनन्त जीवन प्रदान करेगा।”

15 तब उस स्त्री ने उससे कहा, “हे महाशय, मुझे वह जल प्रदान कर ताकि मैं फिर कभी प्यासी न रहूँ और मुझे यहाँ पानी खेंचने न आना पड़े।”

16 इस पर यीशु ने उससे कहा, “जाओ अपने पति को बुलाकर यहाँ ले आओ।”

17 उत्तर में स्त्री ने कहा, “मेरा कोई पति नहीं है।”

यीशु ने उससे कहा, “जब तुम यह कहती हो कि तुम्हारा कोई पति नहीं है तो तुम ठीक कहती हो। 18 तुम्हारे पाँच पति थे और तुम अब जिस पुरुष के साथ रहती हो वह भी तुम्हारा पति नहीं है इसलिये तुमने जो कहा है सच कहा है।”

19 इस पर स्त्री ने उससे कहा, “महाशय, मुझे तो लगता है कि तू नबी है। 20 हमारे पूर्वजों ने इस पर्वत पर आराधना की है पर तू कहता है कि यरूशलेम ही आराधना की जगह है।”

21 यीशु ने उससे कहा, “हे स्त्री, मेरा विश्वास कर कि समय आ रहा है जब तुम परम पिता की आराधना न इस पर्वत पर करोगे और न यरूशलेम में। 22 तुम सामरी लोग उसे नहीं जानते जिसकी आराधना करते हो। पर हम यहूदी उसे जानते हैं जिसकी आराधना करते हैं। क्योंकि उद्धार यहूदियों में से ही है। 23 पर समय आ रहा है और आ ही गया है जब सच्चे उपासक पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई में करेंगे। परम पिता ऐसा ही उपासक चाहता है। 24 परमेश्वर आत्मा है और इसीलिए जो उसकी आराधना करें उन्हें आत्मा और सच्चाई में ही उसकी आराधना करनी होगी।”

25 फिर स्त्री ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह (यानी “ख्रीष्ट”) आने वाला है। जब वह आयेगा तो हमें सब कुछ बताएगा।”

26 यीशु ने उससे कहा, “मैं जो तुझसे बात कर रहा हूँ, वही हूँ।”

समीक्षा

हर तरह की रूकावटों को नष्ट कर दें

हरएक चर्च संयुक्त चर्च होना चाहिये क्योंकि परमेश्वर का प्रेम शानदार तरीके से विस्तृत है. चर्च अपने प्रेम के लिए प्रसिद्ध होना चाहिये. हमें लिंग, जाति या जीवनशैली का भेदभाव किये बिना लोगों का स्वागत करना चाहिये. यीशु हमारे समाज में हर एक रूकावटो को नष्ट करने के लिए आए हैं.

यीशु की लोकप्रियता बढ़ रही थी. ' फरीसियों ने सुना, कि यीशु यूहन्ना से अधिक चेले बनाता, और उन्हें बपतिस्मा देता है' (वव. 1-2).

यीशु बराबरी, लोकप्रियता या प्रतियोगिता में दिलचस्पी नहीं रखते थे: ' तब यहूदियों को छोड़कर फिर गलील को चला गया' (व.3). उन्होंने एक सामरी स्त्री की मदद करने में दिलचस्पी दिखाई. उन्होंने उसकी सेविकाई करने के लिए समय दिया. मदर टेरेसा ने कहा है, 'गिनती के बारे में कभी चिंता न करें. एक बार में एक ही व्यक्ति की मदद करें और हमेशा अपने नजदीकी व्यक्ति से शुरु करें.'

इस बातचीत में यीशु ने दिखाया कि एक तरीका है जिससे पूरा समाज बदल जाएगा, वह है - विभाजन खत्म करने के द्वारा.

लिंगों के बीच संघर्ष का अंत

यीशु लोगों के बीच उस महिला के साथ काफी देर तक बातचीत करते रहें. इससे उस समय की परंपरा का पहलू खत्म हो गया. कठोर गुरू, किसी उस गुरू का भी तिरस्कृत करते थे जो जनता में किसी महिला का सम्मान करते थे, उससे वह अकेले में बात कर रहे थे. जब चेले वापस आए, तो अचम्भा करने लगे, कि वह स्त्री से बातें कर रहा है (व.27).

जैसा कि जॉन स्टॉट लिखते हैं, 'बिना किसी कोलाहल या प्रचार के यीशु ने पतन के श्राप को नष्ट किया, और उस महिला की श्रेष्ठता को फिर से बहाल किया, और उसके नए राज्य के समुदाय के लिए उसका फिर से दावा किया जो कि सृष्टि में लैंगिक समानता की आशीष का मूल है.'

स्त्री-पुरुष को लेकर युद्ध (संघर्ष) नहीं होने चाहिये. जैसा कि पोप बेनेडिक्ट लिखते हैं, 'मसीह में प्रतिद्वंदिता, शत्रुता और हिंसा जिसने स्त्रियों और पुरूषों के बीच संबंधों को बिगाड़ दिया है उसे जीता जा सकता है और जीता जा चुका है. '

नस्लवाद, भेदभाव और रंगभेद का अंत

यहूदियों और सामरियों के बीच विभाजन काफी समय तक रहा. सामरी अधिकारहीन और तुच्छ अल्पसंख्यक थे – नीचे दबे हुए और बिना किसी मूल्य के. यूहन्ना समझाते हैं कि '' (व.9).

यीशु ने असत्य से कोई समझौता नहीं किया: 'उद्धार यहूदियों में से है' (व.22). फिर भी वह सामरी स्त्री के पास गए. ऐसा करते हुए उन्होंने जाति मतभेद और रंगभेद के श्राप को तोड़ा. समाज के बदलाव में जाति मतभेद और रंगभेद को तोड़ना जरूरी है.

वर्ग भेद और सामाजिक विभाजन का अंत

परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं चाहें आपकी पिछली जीवनशैली या वर्तमान जीवनशैली कैसी भी क्यों न हो. परमेश्वर का धन्यवाद हो कि वह दोषयुक्त मनुष्य से भी प्रेम करते हैं.

यीशु ने उससे पानी मांगकर हमें दर्शाया कि जो लोग टूटे हुए और दु:खी हैं उन तक कैसे पहुँचा जाए – दंभपूर्ण दया से नहीं कि वह किसी से बेहतर हैं, बल्कि एक भिखारी की तरह नम्रता दिखाते हुए.

शायद इस स्त्री को समाज से बाहर कर दिया होगा. टूटे हुए संबंधों, तिरस्कार और अपनो के द्वारा अपमानित होने के कारण, वह दोपहर में अकेले पानी भरने के लिए आया करती थी. 'मेरा कोई पति नहीं है' (व.17) – यह अकेलेपन, दोष भावना और संताप का रूदन है.

यीशु ने केवल एक सामरी स्त्री से नहीं बल्कि एक 'पापी' से भी बातचीत की. वह स्त्री अनैतिक जीवन जी रही थी. 'क्योंकि तू पांच पति कर चुकी है, और जिस के पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं; यह तू ने सच कहा है' (व.18). उसका कई बार तलाक हो चुका था और अब वह जिसके साथ रहती थी उससे भी शादी नहीं की थी. यीशु सत्य को लेकर समझौता नहीं करते, बल्कि उसकी जीवन शैली या सामाजिक अवस्था के कारण उन्होंने उस सामरी स्त्री पर न तो दंड की आज्ञा दी, न उस पर दोष लगाया और ना ही उसे तिरस्कृत किया (सीएफ. मरकुस 2:17; यूहन्ना 8:10-11).

'धर्मी' लोग 'पापीयों' के साथ मिलते जुलते नहीं थे. स्वच्छंद रूप से यौन क्रिया करने वाली इस स्त्री से बातचीत करने के द्वारा, यीशु एक और प्रतिबंध को तोड़ते हैं. उनका प्रेम समाज के हरएक हिस्से तक पहुँचता है – वर्ग भेद, जीवन शैली और सामाजिक अवस्था के प्रतिबंध के आरपार.

अंत में, पवित्र आत्मा ही हैं जो सामाज में बदलाव ला सकते हैं. केवल पवित्र आत्मा ही लिंग भेद, जाति भेद और सामाजिक अवस्था को तोड़ते हुए समाज में एकता लाते हैं. जिनमें पवित्र आत्मा निवास करते हैं उन लोगों को लिंग भेद, जाति भेद से लड़ते हुए समाज में बराबरी को लाना चाहिये.

इस स्त्री से यीशु की बातचीत पवित्र आत्मा के बारे में ही थी. उसे भाषण की जरूरत नहीं थी; उसे जीवन के जल की जरूरत थी. वह उससे कहते हैं, 'जो कोई यह जल पीयेगा वह फिर प्यासा होगा।
14 परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा: वरन जो जल मैं उसे दूंगा, वह उस में एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा' (वव.13-14).

यीशु स्वीकरण, संबंधों की प्यास बुझाने और इसे अर्थ देने के लिए आए. हम जो जीवन देते हैं, वही जीवन पाते हैं. हम दूसरों के लिए जीवन का स्रोत बन जाते हैं.

पवित्र आत्मा के द्वारा हमारे जीवन में आए बदलाव के कारण समाज में बदलाव आता है. इसकी शुरुवात जीवन का जल पीने से होती है जिसे यीशु उन लोगों को देते हैं जो उन पर विश्वास करते हैं. जब पवित्र आत्मा आप में निवास करने के लिए आते हैं, तो आपके संपूर्ण जीवन से अनंत काल तक जीवन का झरना बहने लगता है.

आप पवित्र आत्मा के द्वारा और परमेश्वर के साथ आपके व्यक्तिगत संबंध के द्वारा बदल जाते हैं. यहाँ 'आराधना' शब्द का अर्थ है 'प्रेमपूर्ण घनिष्ठ संबंध पाने के लिए अपने घुटनों पर जाना' (व.24).

प्रार्थना

प्रभु, आज मैं जीवन का जल पीने के लिए आपके पास आता हूँ. मेरे हृदय से यह झरना बहने लगे और आप मेरे सभी संबंधों को बदल दें.

जूना करार

न्यायियों 1:1-2:5

यहूदा के लोग कनानियों से युद्ध करते हैं

1यहोशू मर गया। तब इस्राएल के लोगों ने यहोवा से प्रार्थना की। उन्होंने कहा, “हमारे परिवार समूह में से कौन प्रथम जाने वाला तथा कनानी लोगों से हम लोगों के लिये युद्ध करने वाला होगा?”

2 यहोवा ने इस्राएली लोगों से कहा, “यहूदा का परिवार समूह जाएगा। मैं उनको इस प्रदेश को प्राप्त करने दूँगा।”

3 यहूदा के लोगों ने शिमोन परिवार समूह के अपने भाइयों से सहायता माँगी। यहूदा के लोगों ने कहा, “भाइयो यहोवा ने हम सभी को कुछ प्रदेश देने का वचन दिया है। यदि तुम लोग हम लोगों के प्रदेश के लिए युद्ध करने में हमारे साथ आओगे और सहायता करोगे तो हम लोग तुम्हारे प्रदेश के लिये तुम्हारे साथ जायेंगे और युद्ध करेंगे।” शिमोन के लोग यहूदा के अपने भाइयों के युद्ध में सहायता करने को तैयार हो गए।

4 यहोवा ने यहूदा के लोगों को कनानियों और परिज्जी लोगों को हराने में सहायता की। यहूदा के लोगों ने बेजेक नगर में दस हजार व्यक्तियों को मार डाला। 5 बेजेक नगर में यूहदा के लोगों ने अदोनीबेजेक के शासक को पाया और उससे युद्ध किया। यहूदा के लोगों ने कनानियों और परिज्जी लोगों को हराया।

6 अदोनीबेजेक के शासक ने भाग निकलने का प्रयत्न किया। किन्तु यहूदा के लोगों ने उसका पीछा किया और उसे पकड़ लिया। जब उन्होंने उसे पकड़ा तब उन्होंने उसके हाथ और पैर के अंगूठों को काट डाला। 7 तब अदोनीबेजेक के शासक ने कहा, “मैंने सत्तर राजाओं के हाथ और पैर के अंगूठे काटे और उन राजाओं को वही भोजन करना पड़ा जो मेरी मेज से टुकड़ों में गिरा। अब यहोवा ने मुझे उसका बदला दिया है जो मैंने उन राजाओं के साथ किया था।” यहूदा के लोग बेजेक के शासक को यरूशलेम ले गए और वह वहीं मरा।

8 यहूदा के लोग यरूशलेम के विरुद्ध लड़े और उस पर अधिकार कर लिया। यहूदा के लोगों ने यरूशलेम के लोगों को मारने के लिये तलवार का उपयोग किया। उन्होंने नगर को जला दिया। 9 उसके बाद यहूदा के लोग कुछ अन्य कनानी लोगों से युद्ध करने के लिए गए। वे कनानी पहाड़ी प्रदेशों, नेगेव और समुद्र के किनारे की पहाड़ियों मे रहते थे।

10 तब यहूदा के लोग उन कनानी लोगों के विरूद्ध लड़ने गए जो हेब्रोन नगर में रहते थे। (हेब्रोन को किर्यतर्बा कहा जाता था।) यहूदा के लोगों ने शेशै, अहीमन और तल्मै कहे जाने वाले लोगों को हराया।

कालेब और उसकी पुत्री

11 यहूदा के लोगों ने उस स्थान को छोड़ा। वे दबीर नगर, वहाँ के लोगों के विरुद्ध युद्ध करने गए। (दबीर को किर्यत्सेपेर कहा जाता था।) 12 यहूदा के लोगों द्वारा युद्ध आरम्भ करने के पहले कालेब ने लोगों से एक प्रतिज्ञा की। कालेब ने कहा, “मैं अपनी पुत्री अकसा को उस व्यक्ति को पत्नी के रूप में दूँगा जो किर्यत्सेपेर नगर पर आक्रमण करता है और उस पर अधिकार करता है।”

13 कालेब का एक छोटा भाई था जिसका नाम कनज था। कनज का एक पुत्र ओत्नीएल नाम का था। (ओत्नीएल कालेब का भतीजा था। ) ओत्नीएल ने किर्यत्सेपेर नगर को जीत लिया। इसलिए कालेब ने अपनी पुत्री अकसा को पत्नी के रूप में ओत्नीएल को दिया।

14 जब अकसा ओत्नीएल के पास आई तब ओत्नीएल ने उससे कहा कि वह अपने पिता से कुछ भूमि माँगे। अकसा अपने पिता के पास गई। अत: वह अपने गधे से उतरी और कालेब ने पूछा, “क्या कठिनाई है?”

15 अकसा ने कालेब को उत्तर दिया, “आप मुझे आशीर्वाद दें। आपनें मुझे नेगेव की सूखी मरुभूमि दी है। कृपया मुझे कुछ पानी के सोते वाली भूमि दें।” अत: कालेब ने उसे वह दिया जो वह चाहती थी। उसने उसे उस भूमि के ऊपर और नीचे के पानी के सोते दे दिये।

16 केनी लोगों ने ताड़वृक्षों के नगर (यरीहो) को छोड़ा और यहूदा के लोगों के साथ गए। वे लोग यहूदा की मरुभूमि में वहाँ के लोगों के साथ रहने गए। यह नेगेव में अराद नगर के पास था। (केनी लोग मूसा के ससुर के परिवार से थे।)

17 कुछ कनानी लोग सपत नगर में भी रहते थे। इसलिए यहूदा के लोग और शिमोन के परिवार समूह के लोगों ने उन कनानी लोगों पर आक्रमण किया। उन्होंने नगर को पूर्णत: नष्ट कर दिया। इसलिये उन्होंने नगर का नाम होर्मा रखा।

18 यहूदा के लोगों ने अज्जा के नगर और उसके चारों ओर के छोटे नगरों पर भी अधिकार किया। यहूदा के लोगों ने अशकलोन और एक्रोन नगरों और उनके चारों ओर के छोटे नगरों पर भी अधिकार किया।

19 यहोवा उस समय यहूदा के लोगों के साथ था, जब वे युद्ध कर रहे थे। उन्होंने पहाड़ी प्रदेश की भूमि पर अधिकार किया। किन्तु यहूदा के लोग घाटियों की भूमि लेने में असफल रहे क्योंकि वहाँ के निवासियों के पास लोहे के रथ थे।

20 मूसा ने कालेब को हेब्रोन के पास की भूमि देने का वचन दिया था। अत: वह भूमि कालेब के परिवार समूह को दी गई। कालेब के लोगों ने अनाक के तीन पुत्रों को वह स्थान छोड़ने को विवश किया। बिन्यामीन लोग यरूशलेम में बसते हैं।

21 बिन्यामीन परिवार के लोग यबूसी लोगों को यरूशलेम छोड़ने के लिये विवश न कर सके। उस समय से लेकर अब तक यबूसी लोग यरूशलेम में बिन्यामीन लोगों के साथ रहते आए हैं।

यूसुफ के लोग बेतेल पर अधिकार जमाते हैं

22 यूसुफ के परिवार समूह के लोग भी बेतेल नगर के विरुद्ध लड़ने गए। (बेतेल, लूज कहा जाता था।) यहोवा यूसुफ के परिवार समूह के लोगों के साथ था। 23 यूसुफ के परिवार के लोगों ने कुछ जासूसों को बेतेल नगर को भेजा। (इन व्यक्तियों ने बेतेल नगर को हराने के उपाय का पता लगाया।) 24 जब वे जासूस बेतेल नगर को देख रहे थे तब उन्होंने एक व्यक्ति को नगर से बाहर आते देखा। जासूसों ने उस व्यक्ति से कहा, “हम लोगों को नगर में जाने का गुप्त मार्ग बताओ। हम लोग नगर पर आक्रमण करेंगे। किन्तु यदि तुम हमारी सहायता करोगे तो हम तुम्हें चोट नहीं पहुँचायेंगे।”

25 उस व्यक्ति ने जासूसों को नगर में जाने का गुप्त मार्ग बताया। यूसुफ के लोगों ने बेतेल के लोगों को मारने के लिये अपनी तलवार का उपयोग किया। किन्तु उन्होंने उस व्यक्ति को चोट नहीं पहुँचाई जिसने उन्हें सहायता दी थी और उन्होंने उसके परिवार के लोगों को चोट नहीं पहुँचाई। उस व्यक्ति और उसके परिवार को स्वतन्त्र जाने दिया गया। 26 वह व्यक्ति उस प्रदेश में गया जहाँ हित्ती लोग रहते थे और वहाँ उसने एक नगर बसाया। उसने उस नगर का नाम लूज रखा और वह आज भी वहाँ है।

अन्य परिवार समूह कनानियों से युद्ध करते हैं

27 कनानी लोग बेतशान, तानाक, दोर, यिबलाम, मगिद्दो और उनके चारों ओर के छोटे नगरों में रहते थे। मनश्शे के परिवार समूह के लोग उन लोगों को उन नगरों को छोड़ने के लिये विवश नहीं कर सके थे। इसलिए कनानी लोग वहाँ टिके रहे। उन्होने अपना घर छोड़ने से इन्कार कर दिया। 28 बाद में इस्राएल के लोग अधिक शक्तिशाली हुए और कनानी लोगों को दासों की तरह अपने लिए काम करने के लिये विवश किया। किन्तु इस्राएल के लोग सभी कनानी लोगों से उनका प्रदेश न छुड़वा सके।

29 यही बात एप्रैम के परिवार समूह के साथ हुई। कनानी लोग गेजेर में रहते थे और एप्रैम के लोग सभी कनानी लोगों से उनका देश न छुड़वा सके। इसलिए कनानी लोग एप्रैम के लोगों के साथ गेजेर में रहते चले आए।

30 जबूलून के परिवार समूह के साथ भी यही बात हुई। कित्रोन और नहलोल नगरों मे कुछ कनानी लोग रहते थे। जबूलून के लोग उन लोगों से उनका देश न छुड़वा सके। वे कनानी लोग टिके रहे और जबूलून लोगों के साथ रहते चले आए। किन्तु जबूलून के लोगों ने उन लोगों को दासों की तरह काम करने को विवश किया।

31 आशेर के परिवार समूह के साथ भी यही बात हुई। आशेर के लोग उन लोगों से अक्को, सीदोन, अहलाब, अकजीब, हेलबा, अपीक और रहोब नगरों को न छुड़वा सके। 32 आशेरके लोग कनानी लोगों से अपना देश न छुडवा सके। इसलिए कनानी लोग आशेर के लोगों के साथ रहते चले आए।

33 नप्ताली के परिवार समूह के साथ भी यही बात हुई। नप्ताली परिवार के लोग उन लोगों से बेतशेमेश और बेतनात नगरों को न छुड़वा सके। इसलिए नप्ताली के लोग उन नगरों में उन लोगों के साथ रहते चले आए। वे कनानी लोग नप्ताली लोगों के लिए दासों की तरह काम करते रहे।।

34 एमोरी लोगों ने दान के परिवार समूह के लोगों को पहाड़ी प्रदेश में रहने के लिये विवश कर दिया। दान के लोगों को पहाड़ियों मे ठहरना पड़ा क्योंकि एमोरी लोग उन्हें घाटियों में उतर कर नहीं रहने देते थे। 35 एमोरी लोगों ने हेरेस पर्वत, अय्यलोन तथा शालबीम में ठहरने का निश्चय किया। बाद में, यूसुफ का परिवार समूह शाक्तिशाली हो गया। तब उन्होंने एमोरी लोगों से दासों की तरह काम लिया। 36 एमोरी लोगों का प्रदेश बिच्छू दर्रे से सेला और सेला के परे पहाड़ी प्रदेश तक था।

बोकीम में यहोवा का दूत

2यहोवा का दूत गिलगाल नगर से बोकीम नगर को गया। दूत ने यहोवा का एक सन्देश इस्राएल के लोगों को दिया। सन्देश यह था: “तुम मिस्र में दास थे। किन्तु मैंने तुम्हें स्वतन्त्र किया और मैं तुम्हें मिस्र से बाहर लाया। मैं तुम्हें इस प्रदेश में लाया जिसे तुम्हारे पूर्वजों को देने के लिये मैंने प्रतिज्ञा की थी। मैंने कहा, मैं तुमसे अपनी वाचा कभी नहीं तोड़ूँगा। 2 किन्तु इसके बदले में तुम्हें इस प्रदेश के निवासियों के साथ समझौता नहीं करना होगा। तुम्हें इन लोगों की वेदियाँ नष्ट करनी चाहिए। यह मैंने तुमसे कहा किन्तु तुम लोगों ने मेरी आज्ञा नहीं मानी। तुम ऐसा कैसे कर सकते हो?

3 “अब मैं तुमसे यह कहता हूँ, ‘मैं इस प्रदेश से अब और लोगों को बाहर नहीं हटाऊँगा। ये लोग तुम्हारे लिये समस्या बनेंगे। वे तुम्हारे लिए बनाया गया जाल बनेंगे। उनके असत्य देवता तुम्हें फँसाने के लिए जाल बनेंगे।’”

4 स्वर्गदूत इस्राएल के लोगों को यहोवा का सन्देश जब दे चुका, तब लोग जोर से रो पड़े। 5 इसलिए इस्राएल के लोगों ने उस स्थान को बोकीम नाम दिया जहाँ वे रो पड़े थे। बोकीम में इस्राएल के लोगों ने यहोवा को भेंट चढ़ाई।

समीक्षा

अच्छे लीडरशिप के लिए परमेश्वर को पुकारें

हम अव्यवस्था और गड़बड़ी की दुनिया में रहते हैं – जो कि न्यायियों की पुस्तक में उल्लेखित किसी तरह से अलग नहीं है.

न्यायियों की पुस्तक में प्रवेश करना काफी अचंभित कर देने वाला है. हम यहाँ पर कामुकता, हिंसा, बलात्कार, नरसंहार, क्रूरता, छल और तबाही का मिश्रण पाते हैं. हम देखते हैं जब वे वायदे के देश में स्थिर हो जाते हैं तब लोग किस प्रकार से मूर्ति पूजा और पाप पर जय पाने में असफल होते हैं. परमेश्वर की चेतावनी के बावजूद, उन्होंने आसपास के लोगों के धार्मिक और नैतिक परंपरा के साथ समझौता किया (2:1-2). जो बाद में उनके लिए कांटे और फंदे ठहरे (व.3).

परमेश्वर आपको बुरी चीजों के प्रति कठोर बनने के लिए बुलाते हैं. वह नहीं चाहते कि हम समझौता करें. वह नहीं चाहते कि आप अपने जीवन का वह हिस्सा काट दें जो आपको लगता है कि गलत है, बल्कि उन्हें पूरी तरह से काटकर उनके प्रति कठोर होना चाहिये.

लोग अपने आपको अवज्ञा के चक्र में फंसा हुआ और अपने शत्रुओं द्वारा दबा हुआ पाते हैं, फिर वे मदद के लिए परमेश्वर को पुकारते हैं.

परमेश्वर न्यायियों (लीडर्स) को भेजकर उन्हें जवाब देते हैं. वह लीडर्स के रूप में हर तरह के लोगों का उपयोग करते हैं – जो हम सबको बड़ा प्रोत्साहन देता है. पवित्र आत्मा द्वारा सामर्थ प्राप्त ये लीडर्स उन्हें छुड़ाते हैं और उनकी दुनिया को बदल देते हैं.

प्रार्थना

प्रभु, आज मैं मदद के लिए आपको पुकारता हूँ. कृपया हमारे शहर और हमारी संस्कृति में अच्छे लीडर्स को खड़ा कीजिये जो हमारी दुनिया को बदल कर रख दें और यीशु के नाम को सम्मान दिलायें.

पिप्पा भी कहते है

पीपा विज्ञापन

यूहन्ना 4:1-26

बाकी के लोगों के साथ समय बिताने के बजाय यीशु सबसे निम्न स्तर की स्त्री के साथ समय बिताना पसंद करते हैं. यीशु के खरे राज्य में, यीशु उन लोगों को प्रतिष्ठा देते हैं जो कुछ भी नहीं हैं.

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संदर्भ

नोट्स:

जॉन स्टॉट, इश्यूस फेसिंग क्रिश्चियन टुडे, (ज़ॉन्डरवॅन, 2006).

युजीन पीटरसन, द मैसेज, (नाव प्रेस, 2005) प. 292

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

एक साल में बाइबल

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