परमेश्वर के साथ यह संभव है
परिचय
मैं अठारह वर्ष का था जब मैं पहली बार यीशु से मिला. मुझे याद है कि इसके बाद मैंने एक मसीह लीडर से बातचीत की थी. मैंने कहा कि मैं कितना खुश था कि मैं पहले मसीह नहीं बना था, क्योंकि मैं उस अंतर को महसूस कर पा रहा था जो परमेश्वर के साथ जीवन और परमेश्वर के बिना जीवन में अंतर है. उन्होंने मुझे ऐसी सोच की भ्रामकता के बारे में बताया और सलाह दी कि जितनी जल्दी हम परमेश्वर के साथ जीवन का अनुभव करते हैं, उतना बेहतर होता है.
अपने जीवन के भूतकाल में देखते हुए, अब मैं उनके शब्दों की बुद्धि को देखता हूँ. मैं परमेश्वर का बहुत आभारी हूँ कि हमारे बच्चे अपने जीवन के भूतकाल में देखकर कह सकते हैं कि ऐसा कभी समय नहीं आया कि वे 'परमेश्वर के बिना' थे.
सालों से, मैं सैकड़ो लोगों से मिला हूँ जिन्होंने अल्फा में यीशु से मुलाकात की है. वे परमेश्वर के बिना जीवन और परमेश्वर के साथ जीवन के बीच में अंतर को बताते हैं. महान आनंद और राहत महसूस होती है, और अक्सर पछतावा होता है कि उन्होंने पहले क्यों परमेश्वर के साथ अपने जीवन की शुरुवात नहीं की.
हम परमेश्वर के साथ एक संबंध में जीने के लिए निर्माण किए गए हैं. इसके बिना, जीवन किसी काम का नहीं. परमेश्वर के साथ होना उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि आप परमेश्वर के लिए क्या करते हैं. परमेश्वर के साथ, सबकुछ संभव है.
भजन संहिता 60:5-12
5 तू अपने महाशक्ति का प्रयोग करके हमको बचा ले!
मेरी प्रार्थना का उतर दे और उस जन को बचा जो तुझको प्यारा है!
6 परमेश्वर ने अपने मन्दिर में कहा:
“मेरी विजय होगी और मैं विजय पर हर्षित होऊँगा।
मैं इस धरती को अपने लोगों के बीच बाँटूंगा।
मैं शकेम और सुक्कोत
घाटी का बँटवारा करूँगा।
7 गिलाद और मनश्शे मेरे बनेंगे।
एप्रेम मेरे सिर का कवच बनेगा।
यहूदा मेरा राजदण्ड बनेगा।
8 मैं मोआब को ऐसा बनाऊँगा, जैसा कोई मेरे चरण धोने का पात्र।
एदोम एक दास सा जो मेरी जूतियाँ उठता है।
मैं पलिश्ती लोगों को पराजित करूँगा और विजय का उद्धोष करूँगा।”
9-10 कौन मुझे उसके विरूद्ध युद्ध करने को सुरक्षित दृढ़ नगर में ले जायेगा मुझे कौन एदोम तक ले जायेगा
हे परमेश्वर, बस तू ही यह करने में मेरी सहायता कर सकता है।
किन्तु तूने तो हमको बिसरा दिया! परमेश्वर हमारे साथ में नहीं जायेगा!
और वह हमारी सेना के साथ नहीं जायेगा।
11 हे परमेश्वर, तू ही हमको इस संकट की भूमि से उबार सकता है!
मनुष्य हमारी रक्षा नहीं कर सकते!
12 किन्तु हमें परमेश्वर ही मजबूत बना सकता है।
परमेश्वर हमारे शत्रुओं को परजित कर सकता है!
समीक्षा
विजय प्राप्त करें
परमेश्वर की सहायता के साथ यदि तुलना की जाएँ, तो मानवीय सहायता व्यर्थ है. दाऊद कहते हैं, 'परमेश्वर के साथ हम विजय को प्राप्त करेंगे' (व.12). वह भौतिक लड़ाईयों के विषय में बात कर रहे थे. पौलुस प्रेरित लिखते हैं कि हमारी मुख्य लड़ाई भौतिक नहीं है. वे 'माँस और लहू के विरूद्ध नहीं है, लेकिन...स्वर्गीय स्थानों में बुराई के आत्मिक बलों से है' (इफीसियों 6:12).
दाऊद प्रार्थना करते हैं, 'तू अपने दाहिने हाथ से बचा, और हमारी सुन ले कि तेरे प्रिय छुड़ाए जाएँ...शत्रु के विरूद्ध हमारी सहायता कर, क्योंकि मनुष्य का किया हुआ छुटकारा व्यर्थ होता है. परमेश्वर की सहायता से हम वीरता दिखाएँगे' (भजनसंहिता 60:5,11-12अ).
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आप हमारे साथ हो तो मैं निर्भीक हूँ. जिस किसी लड़ाई का मैं आज सामना करता हूँ, मैं आज आप पर भरोसा करता हूँ.
यूहन्ना 8:12-30
जगत का प्रकाश यीशु
12 फिर वहाँ उपस्थित लोगों से यीशु ने कहा, “मैं जगत का प्रकाश हूँ। जो मेरे पीछे चलेगा कभी अँधेरे में नहीं रहेगा। बल्कि उसे उस प्रकाश की प्राप्ति होगी जो जीवन देता है।”
13 इस पर फ़रीसी उससे बोले, “तू अपनी साक्षी अपने आप दे रहा है, इसलिये तेरी साक्षी उचित नहीं है।”
14 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “यदि मैं अपनी साक्षी स्वयं अपनी तरफ से दे रहा हूँ तो भी मेरी साक्षी उचित है क्योंकि मैं यह जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। किन्तु तुम लोग यह नहीं जानते कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। 15 तुम लोग इंसानी सिद्धान्तों पर न्याय करते हो, मैं किसी का न्याय नहीं करता। 16 किन्तु यदि मैं न्याय करूँ भी तो मेरा न्याय उचित होगा। क्योंकि मैं अकेला नहीं हूँ बल्कि परम पिता, जिसने मुझे भेजा है वह और मैं मिलकर न्याय करते हैं। 17 तुम्हारे विधान में लिखा है कि दो व्यक्तियों की साक्षी न्याय संगत है। 18 मैं अपनी साक्षी स्वयं देता हूँ और परम पिता भी, जिसने मुझे भेजा है, मेरी ओर से साक्षी देता है।”
19 इस पर लोगों ने उससे कहा, “तेरा पिता कहाँ है?”
यीशु ने उत्तर दिया, “न तो तुम मुझे जानते हो, और न मेरे पिता को। यदि तुम मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जान लेते।” 20 मन्दिर में उपदेश देते हुए, भेंट-पात्रों के पास से उसने ये शब्द कहे थे। किन्तु किसी ने भी उसे बंदी नहीं बनाया क्योंकि उसका समय अभी नहीं आया था।
यहूदियों का यीशु के विषय में अज्ञान
21 यीशु ने उनसे एक बार फिर कहा, “मैं चला जाऊँगा और तुम लोग मुझे ढूँढोगे। पर तुम अपने ही पापों में मर जाओगे। जहाँ मैं जा रहा हूँ तुम वहाँ नहीं आ सकते।”
22 फिर यहूदी नेता कहने लगे, “क्या तुम सोचते हो कि वह आत्महत्या करने वाला है? क्योंकि उसने कहा है तुम वहाँ नहीं आ सकते जहाँ मैं जा रहा हूँ।”
23 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “तुम नीचे के हो और मैं ऊपर से आया हूँ। तुम सांसारिक हो और मैं इस जगत से नहीं हूँ। 24 इसलिये मैंने तुमसे कहा था कि तुम अपने पापों में मरोगे। यदि तुम विश्वास नहीं करते कि वह मैं हूँ, तुम अपने पापों में मरोगे।”
25 फिर उन्होंने यीशु से पूछा, “तू कौन है?”
यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं वही हूँ जैसा कि प्रारम्भ से ही मैं तुमसे कहता आ रहा हूँ। 26 तुमसे कहने को और तुम्हारा न्याय करने को मेरे पास बहुत कुछ है। पर सत्य वही है जिसने मुझे भेजा है। मैं वही कहता हूँ जो मैंने उससे सुना है।”
27 वे यह नहीं जान पाये कि यीशु उन्हें परम पिता के बारे में बता रहा है। 28 फिर यीशु ने उनसे कहा, “जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊँचा उठा लोगे तब तुम जानोगे कि वह मैं हूँ। मैं अपनी ओर से कुछ नहीं करता। मैं यह जो कह रहा हूँ, वही है जो मुझे परम पिता ने सिखाया है। 29 और वह जिसने मुझे भेजा है, मेरे साथ है। उसने मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा क्योंकि मैं सदा वही करता हूँ जो उसे भाता है।” 30 यीशु जब ये बातें कह रहा था, तो बहुत से लोग उसके विश्वासी हो गये।
समीक्षा
परमेश्वर को प्रसन्न करें
क्या आप जानते हैं कि आप परमेश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं? यीशु कहते हैं, 'मैं सर्वदा वही काम करता हूँ जिससे वह प्रसन्न होता है' (व.29). जीवन में यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए – परमेश्वर को प्रसन्न करना.
यीशु हमें परमेश्वर के साथ एक जीवन को दिखाते हैं. वह कहते हैं, 'मैं अकेला नहीं, परन्तु मैं हूँ, और पिता हैं जिसने मुझे भेजा' (व.16). वह कहते हैं, 'मेरा भेजने वाला मेरे साथ है; उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा' (व.29अ). इस पूरे लेखांश में, हम पिता के साथ यीशु के संबंध के विषय में कुछ खोजते हैं.
यीशु कहते हैं, 'मैं जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जाता हूँ' (व.14). बहुत से लोग जीवन में संघर्ष करते हैं क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि वे कहाँ से आ रहे हैं या कहाँ पर जा रहे हैं. वे अपने जीवन में उद्देश्य और दिशा की कमी के साथ संघर्ष करते हैं. परमेश्वर के साथ एक नजदीकी संबंध में, आप जान सकते हैं कि आप कहाँ से आये हैं और कहाँ पर जा रहे हैं.
पिता के साथ यीशु का संबंध भी उनके उद्देश्य और दिशा का स्त्रोत था. वह कहते हैं, 'मैं अपने आप से कुछ नहीं करता परन्तु जैसे मेरे पिता ने मुझे सिखाया वैसे ही ये बातें कहता हूँ' (व.28). वह कहते हैं, 'मेरा भेजने वाला मेरे साथ है; उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा' (व.29अ).
यह हमारे लिए एक नमूना है. परमेश्वर यीशु के साथ थे. यीशु जानते थे कि वह कभी भी अकेले नहीं थे. परमेश्वर के बिना उन्होंने एक भी चीज नहीं की. हर समय उनकी इच्छा है कि परमेश्वर को प्रसन्न करेः 'मैं सर्वदा वही काम करता हूँ जिससे वह प्रसन्न होते हैं' (व.29ब). इसी चीज ने उनके जीवन को ऐसी सामर्थ और प्रभावशीलता दी. 'वह ये बातें कह ही रहा था कि बहुतों ने उस पर विश्वास किया' (व.30).
ना केवल यीशु परमेश्वर के साथ थे, वह परमेश्वर थे.
आज के लेखांश में दो बार यीशु कहते हैं, 'मैं वह हूँ' (8:24,28). अनुवादित शब्द 'मैं वह हूँ' वही शब्द है जिनका इस्तेमाल निर्गमन 3:14-16 में ग्रीक अनुवाद में किया गया है. वहाँ पर, परमेश्वर ने अपने आपको मूसा पर प्रकट किया, 'मैं हँ जो हूँ' के रूप में. यह नाम परमेश्वर की पहचान और उनके लोगों के साथ उनकी नजदीकी को बताता है.
यीशु अपने लिए इस नाम का इस्तेमाल करते हैं. हम अस्तिव के अधिकारी नहीं है. हम पैदा होते हैं और हम मरते हैं. हम अपने अस्तित्व को ग्रहण करते हैं. यीशु अस्तित्व हैं. वह लोगों को बता रहे हैं कि परमेश्वर एक बार फिर यीशु में उनके पास आये हैं. यीशु ईम्मानुएल हैं, परमेश्वर हमारे साथ.
यह ऐसा है जैसे ही हम क्रूस की ओर देखते हैं तो यीशु कहते हैं कि हम उनकी पहचान के स्पष्ट प्रदर्शन को पाते हैं:'इसलिए यीशु ने कहा, 'जब तुम मनुष्य के पुत्र को उँचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ' (यूहन्ना 8:28).
यीशु को अपनी पहचान में पूर्ण निर्भीकता थी. यीशु की निर्भीकता और पहचान की कुँजी, पिता के साथ उनके संबंध में है. यही आपके लिए भी सच होगा. जैसे ही आप प्रार्थना में, आराधना में, या वचनों को पढ़ने में पिता के साथ समय बिताते हैं, वैसे ही परमेश्वर में पहचान और निर्भीकता का आपका बोध बढ़ जाएगा. आप जान पायेंगे कि आप कहाँ से आये हैं और कहाँ पर जा रहे हैं.
इससे अंतर नहीं पड़ता है कि लोग आपके विषय में क्या कहते हैं, आप सिर ऊँचा उठाकर निर्भीकतापूर्वक चल सकते हैं. आपकी पहचान मसीह में है. इसकी जड़ उसमें हैं कि वह आपके विषय में क्या कहते हैं और आपके साथ उनकी उपस्थिति में.
प्रार्थना
पिता आपका धन्यवाद क्योंकि आप मेरे साथ हैं, आपने मुझे अकेला नहीं छोड़ा है. यीशु की तरह मेरी सहायता कीजिए कि मैं हमेशा वह करुं जो आपको प्रसन्न करता है और हमेशा वह बोलूं जो आपने मुझे सिखाया है.
न्यायियों 18:1-19:30
दान लैश नगर पर अधिकार करता है
18उस समय इस्राएल के लोगों का कोई राजा नहीं था और उस समय दान का परिवार समूह, अपना कहे जाने योग्य रहने के लिये भूमि की खोज में था। इस्राएल के अन्य परिवार समूहों ने पहले ही अपनी भूमि प्राप्त कर ली थी। किन्तु दान का परिवार समूह अभी अपनी भूमि नहीं पा सका था।
2 इसलिए दान के परिवार समूह ने पाँच सैनिकों को कुछ भूमि खोजने के लिये भेजा। वे रहने के लिये अच्छा स्थान खोजने गए। वे पाँचों व्यक्ति जोरा और एश्ताओल नगरों के थे। वे इसलिए चुने गए थे कि वे दान के सभी परिवार समूह में से थे। उनसे कहा गया था, “जाओ और किसी भूमि की खोज करो।”
पाँचों व्यक्ति एप्रैम प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में आए। वे मीका के घर आए और वहीं रात बिताई। 3 जब पाँचों व्यक्ति मीका के घर के समीप आए तो उन्होंने लेवीवंश के परिवार समूह के युवक की आवाज सुनी। उन्होंने उसकी आवाज पहचानी, इसीलिये वे मीका के घर ठहर गए। उन्होंने लेवीवंशी युवक से पूछा, “तुम्हें इस स्थान पर कौन लाया है? तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुम्हारा यहाँ क्या काम है?”
4 उसने उनसे कहा, “मीका ने मेरी नियुक्ति की है। मैं उसका याजक हूँ।”
5 उन्होंने उससे कहा, “कृपया परमेश्वर से हम लोगों के लिये कुछ मांगो। हम लोग कुछ जानना चाहते हैं। क्या हमारे रहने के लिये भूमि की खोज सफल होगी?”
6 याजक ने पाँचों व्यक्तियों से कहा, “शान्ति से जाओ। यहोवा तुम्हारा मार्ग दर्शन करेगा।”
7 इसलिए पाँचों व्यक्ति वहाँ से चले। वे लैश नगर को आए। उन्होंने देखा कि उस नगर के लोग सुरक्षित रहते हैं। उन पर सीदोन के लोगों का शासन था। सीदोन भूमध्यसागर के तट पर एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली नगर था। वे शान्ति और सुरक्षा के साथ रहते थे। लोगों के पास हर एक चीज़ बहुत अधिक थी और उन पर प्रहार करने वाला पास में कोई शत्रु नहीं था और वे सीदोन नगर के लोगों से बहुत अधिक दूर रहते थे और अरामके लोगों से भी उनका कोई व्यापार नहीं था।
8 पाँचों व्यक्ति सोरा और एश्ताओल नगर को वापस लौटे। उनके सम्बन्धियों ने पूछा, “तुमने क्या पता लगाया?”
9 पाँचों व्यक्तियों ने उत्तर दिया, “हम लोगों ने प्रदेश देखा है और वह बहुत अच्छा है। हमें उन पर आक्रमण करना चाहिये। प्रतीक्षा न करो। हम चलें और उस प्रदेश को ले लें। 10 जब तुम उस प्रदेश में चलोगे तो देखोगे कि वहाँ पर बहुत अधिक भूमि है। वहाँ सब कुछ बहुत अधिक है। तुम यह भी पाओगे कि वहाँ के लोगों को आक्रमण की आशंका नहीं है। निश्चय ही परमेश्वर ने वह प्रदेश हमको दिया है।”
11 इसलिए दान के परिवार समूह के छ: सौ व्यक्तियों ने सोरा और एश्ताओल के नगरों को छोड़ा। वे युद्ध के लिये तैयार थे। 12 लैश नगर की यात्रा करते समय वे यहूदा प्रदेश में किर्य्यत्यारीम नगर में रूके। उन्होंने वहाँ डेरा डाला। यही कारण है किर्य्यत्यारीम के पश्चिम का प्रदेश आज तक महनेदान कहा जाता है। 13 उस स्थान से छ: सौ व्यक्तियों ने एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश की यात्रा की। वे मीका के घर आए।
14 तब उन पाँचों व्यक्तियों ने जिन्होंने लैश की खोज की थी, अपने भाईयों से कहा, “क्या तुम्हें मालूम है कि इन घरों में से एक में एपोद, अन्य घरेलू देवता, एक खुदाईवाली मूर्ति तथा एक ढाली गई मूर्ति है? अब तुम समझते हो कि तुम्हें क्या करना है। जाओ और उन्हें ले आओ।” 15 इसलिये वे मीका के घर रूके जहाँ लेवीवंशी युवक रहता था। उन्होंने युवक से पूछा कि वह प्रसन्न है। 16 दान के परिवार समूह के छ: सौ लोग फाटक के द्वार पर खड़े रहे। उनके पास सभी हथियार थे तथा वे युद्ध के लिये तैयार थे। 17-18 पाँचों गुप्तचर घर में गए। उन्होंने खुदाई वाली मूर्ति, एपोद, घरेलू मूर्तियों और ढाली गई मूर्ति को लिया। जब वे ऐसा कर रहे थे तब लेवीवंशी युवक याजक और युद्ध के लिये तैयार छः सौ व्यक्ति फाटक के द्वार के साथ खड़े थे। लेवीवंशी युवक याजक ने उनसे पूछा, “तुम क्या कर रहे हो?”
19 पाँचों व्यक्तियों ने कहा, “चुप रहो, एक शब्द भी न बोलो। हम लोगों के साथ चलो। हमारे पिता और याजक बनो। तुम्हें स्वयं चुनना चाहिये कि तुम किसे अधिक अच्छा समझते हो? क्या यह तुम्हारे लिये अधिक अच्छा है कि तुम एक व्यक्ति के याजक रहो? या उससे कहीं अधिक अच्छा यह है कि तुम इस्राएल के लोगों के एक पूरे परिवार समूह के याजक बनो?”
20 इससे लेवीवंशी प्रसन्न हुआ। इसलिये उसने एपोद, घरेलू मूर्तियों तथा खुदाई वाली मूर्ति को लिया। वह दान के परिवार समूह के उन लोगों के साथ गया।
21 तब दान परिवार समूह के छ: सौ व्यक्ति लेवीवंशी के साथ मुड़े और उन्होंने मीका के घर को छोड़ा। उन्होंने अपने छोटे बच्चों, जानवरों और अपनी सभी चीज़ों को अपने सामने रखा।
22 दान के परिवार समूह के लोग उस स्थान से बुहत दूर गए और तब मीका के पास रहने वाले लोग चिल्लाने लगे। तब उन्होंने दान के लोगों का पीछा किया और उन्हें जा पकड़ा। 23 मीका के लोग दान के लोगों पर बरस पड़ रहे थे। दान के लोग मुड़े। उन्होंने मीका से कहा, “समस्या क्या है? तुम चिल्ला क्यों रहे हो?”
24 मीका ने उत्तर दिया, “दान के तुम लोग, तुमने मेरी मूर्तियाँ ली है। मैंने उन मूर्तियों को अपने लिये बनाया है। तुमने हमारे याजक को भी ले लिया है। तुमने छोड़ा ही क्या है? तुम मुझे कैसे पूछ सकते हो, ‘समस्या क्या है?’”
25 दान के परिवार समूह के लोगों ने उत्तर दिया, “अच्छा होता, तुम हमसे बहस न करते। हममें से कुछ व्यक्ति गर्म स्वभाव के हैं। यदि तुम हम पर चिल्लाओगे तो वे गर्म स्वाभाव वाले लोग तुम पर प्रहार कर सकेत हैं। तुम और तुम्हारा परिवार मार डाला जा सकता है।”
26 तब दान के लोग मुड़े और अपने रास्ते पर आगे बढ़ गए। मीका जानता था कि वे लोग उसके लिये बहुत अधिक शक्तिशाली हैं। इसलिए वह घर लौट गया।
27 इस प्रकार दान के लोगों ने वे मूर्तियाँ ले लीं जो मीका ने बनाई थीं। उन्होंने मीका के साथ रहने वाले याजक को भी ले लिया। तब वे लैश पहुँचे। उन्होंने लैश में शान्तिपूर्वक रहने वाले लोगों पर आक्रमण किया। लैश के लोगों को आक्रमण की आशंका नहीं थी। दान के लोगों ने उन्हें अपनी तलवारों के घाट उतारा। तब उन्होंने नगर को जला डाला। 28 लैश में रहने वालों की रक्षा करने वाला कोई नहीं था। वे सीदोन के नगर से इतने अधिक दूर थे कि वे लोग इनकी सहायता नहीं कर सकते थे और लैश के लोग अराम के लोगों से कोई व्यवहारिक सम्बन्ध नहीं रखते थे। लैश नगर बेत्रहोब प्रदेश के अधिकार में एक घाटी में था। दान के लोगों ने उस स्थान पर एक नया नगर बसाया और वह नगर उनका निवास स्थान बना। 29 दान के लोगों ने लैश नगर का नया नाम रखा। उन्होंने उस नगर का नाम दान रखा। उन्होंने अपने पूर्वज दान के नाम पर नगर का नाम रखा। दान इस्राएल नामक व्यक्ति का पुत्र था। पुराने समय में इस नगर का नाम लैश था।
30 दान के परिवार समूह के लोगों ने दान नगर में मूर्तियों की स्थापना की। उन्होंने गेर्शोम के पुत्र योनातान को अपना याजक बनाया। गेर्शोम मूसा का पुत्र था। योनातान और उसके पुत्र दान के परिवार समूह के तब तक याजक रहे, जब तक इस्राएल के लोगों को बन्दी बना कर बाबेल नहीं ले जाया गया। 31 दान के लोगों ने उन मूर्तियों की पूजा की जिन्हें मीका ने बनाया था। वे उस पूरे समय उन मूर्तियों को पूजते रहे जब तक शिलों में परमेश्वर का स्थान रहा।
लेवीवंशी और उसकी रखैल
19उन दिनों इस्राएल के लोगों का कोई राजा नहीं था। एक लेवीवंशी व्यक्ति एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के बहुत दूर के क्षेत्र में रहता था। उस व्यक्ति ने एक स्त्री को अपनी दासी बना रखा था जो उसकी पत्नी की तरह थी। वह यहूदा प्रदेश के बेतलेहेम नगर की निवासी थी। 2 किन्तु उस दासी का लेवीवंशी के साथ वाद—विवाद हो गया था। उसने उसे छोड़ दिया और यहूदा प्रदेश के बेतलेहेम नगर में अपने पिता के घर चली गई। वह वहाँ चार महीने रही। 3 तब उसका पति उसके पास गया। वह उससे प्रेम से बात करना चाहता था, जिससे वह उसके पास लौट जाये। वह अपने साथ अपने नौकर और दो गधों को ले गया। लेवीवंशी व्यक्ति उस स्त्री के पिता के घर आया। उसके पिता ने लेवीवंशी व्यक्ति को देखा और उसका स्वागत करने के लिये प्रसन्नता से बाहर आया। 4 युवती के पिता ने उसे ठहरने के लिये आमन्त्रित किया। इसलिए लेवीवंशी तीन दिन ठहरा। उसने खाया, पिया और वह अपने ससुर के घर सोया।
5 चौथे दिन बहुत सवेरे वह उठा। लेवीवंशी चल पड़ने की तैयारी कर रहा था। किन्तु युवती के पिता ने अपने दामाद से कहा, “पहले कुछ खाओ। जब तुम भोजन कर लो तो तुम जा सकते हो।” 6 इसलिये लेवीवंशी व्यक्ति और उसका ससुर एक साथ खाने और मदिरा पीने के लिये बैठे। उसके बाद युवती के पिता ने उस लेवीवंशी से कहा, “कृपया आज भी ठहरें। आराम करो और आनन्द मनाओ। दोपहर के बाद तक जाने के लिये प्रतीक्षा करो।” इस प्रकार दोनों व्यक्तियों ने एक साथ खाया। 7 जब लेवी पुरूष जाने को तैयार हुआ तो उसके ससुर ने उसे वहाँ रात भर रुकने का आग्रह किया।
8 लेवी पुरुष पाँचवे दिन जाने के लिये सवेरे उठा। वह जाने को तैयार था कि उस जवान लड़की के पिता ने कहा, “पहले कुछ खा पी लो, फिर आराम करो और दोपहर तक रूक जाओ।” अत: दोनों ने फिर से एक साथ भोजन किया।
9 तब लेविवंशी व्यक्ति, उसकी रखैल और उसका नौकर चलने के लिये उठे। किन्तु युवती के पिता, उसके ससुर ने कहा, “लगभग अंधेरा हो गया है। दिन लगभग बीत चुका है। रात यहीं बिताओ और आनन्द मनाओ। कल बहुत सवेरे तुम उठ सकते हो और अपना रास्ता पकड़ सकते हो।”
10 किन्तु लेवीवंशी व्यक्ति एक और रात वहाँ ठहरना नहीं चाहता था। उसने अपने काठीवाले दो गधों और अपनी रखैल को लिया। वह यबूस नगर तक गया। (यबूस यरूशलेम का ही दूसरा नाम है।) 11 दिन लगभग छिप गया, वे यबूस नगर के पास थे। इसलिए नौकर ने अपने स्वामी लेवीवंशी से कहा, “हम लोग इस नगर में रूक जायें। यह यबूसी लोगों का नगर है। हम लोग यहीं रात बितायें।”
12 किन्तु उसके स्वामी लेवीवंशी ने कहा, “नहीं हम लोग अपरिचित नगर मे नहीं जाएंगे। वे लोग इस्राएल के लोगों में से नहीं हैं। हम लोग गिबा नगर तक जाएंगे।” 13 लेवीवंशी ने कहा, “आगे बढ़ो। हम लोग गिबा या रामा तक पहुँचने की कोशिश करें। हम उन नगरों में से किसी एक में रात बिता सकते हैं।”
14 इसलिए लेवीवंशी और उसके साथ के लोग आगे बढ़े। जब वे गिबा नगर के पास आए तो सूरज डूब रहा था। गिबा बिन्यामीन के परिवार समूह के प्रदेश में है। 15 इसलिये वे गिबा में ठहरे। उन्होंने उस नगर में रात बिताने की योजना बनाई। वे नगर में मुख्य सार्वजनिक चौराहे में गए और वहाँ बैठ गए। किन्तु किसी ने उन्हें रात बिताने के लिए अपने घर आमन्त्रित नहीं किया।
16 उस सन्ध्या को एक बूढ़ा व्यक्ति अपने खेतों से नगर में आया। उसका घर एप्रैम प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में था। किन्तु अब वह गिबा नगर में रह रहा था। (गिबा के लोग बिन्यामीन के परिवार समूह के थे।) 17 बूढ़े व्यक्ति ने यात्रियों (लेवीवंशी व्यक्ति) को सार्वजनिक चौराहे पर देखा। बूढ़े व्यक्ति ने पूछा, “तुम कहाँ जा रहे हो? तुम कहाँ से आये हो?”
18 लेवीवंशी व्यक्ति ने उत्तर दिया, “यहूदा प्रदेश के बेतलेहेम नगर से हम लोग यात्रा कर रहे हैं। हम अपने घर जा रहे हैं। हम एप्रैम प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र के दूर के भाग के निवसी हैं। मैं यहूदा प्रदेश में बेतलेहेम को गया था। अब मैं अपने घर जा रहा हूँ। 19 हम लोगों के पास अपने गधों के लिये पुआल और भोजन है। हम लोगों के पास रोटी और दाखमधु है। हम लोगों में से कोई—मैं, युवती या मेरा नौकर, कुछ भी नही चाहता।”
20 बूढ़े ने कहा, “तुम्हारा स्वागत है। तुम मेरे यहाँ ठहरो। तुम को आवश्यकता की सभी चीज़ें मैं दूँगा। तुम सार्वजनिक चौराहे में रात व्यतीत मत करो” 21 तब वह बूढ़ा व्यक्ति लेविवंशी व्यक्ति और उसके साथ के व्यक्तियों को अपने साथ अपने घर ले गया। बूढ़े व्यक्ति ने उसके गधों को खिलाया। उन्होंने अपने पैर धोए। तब उसने उन्हें कुछ खाने और कुछ दाखमधु पीने को दिया।
22 जब लेवीवंशी व्यक्ति और उसके साथ के व्यक्ति आनन्द ले रहे थे, तभी उस नगर के कुछ लोगों ने उस घर को घेर लिया। वे बहुत बुरे व्यक्ति थे। वे ज़ोर से दरवाज़ा पीटने लगे। वे उस बूढ़े व्यक्ति से, जिसका वह घर था, चिल्लाकर बोले, “उस व्यक्ति को अपने घर से बाहर करो। हम उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध करना चाहते हैं।”
23 बूढ़ा व्यक्ति बाहर गया और उन दुष्ट लोगों से कहा, “भाईयो, नहीं, ऐसा बुरा काम न करो। वह व्यक्ति मेरे घर में अतिथि है। यह भयंकर पाप न करो। 24 सुनो, यहाँ मेरी पुत्री है। उसने पहले कभी शारीरिक सम्बन्ध नहीं किया है। मैं उसे और इस पुरुष की रखैल को तुम्हारे पास बाहर लाता हूँ। तुम उसका उपयोग जैसे चाहो कर सकते हो। किन्तु इस व्यक्ति के विरुद्ध ऐसा भंयकर पाप न करो।”
25 किन्तु उन दूष्ट लोगों ने उस बूढ़े व्यक्ति की एक न सुनी। इसलिये लेवीवंशी व्यक्ति ने अपनी रखैल को उन दुष्ट व्यक्तियों के साथ बाहर कर दिया। उन दूष्ट व्यक्तियों ने पूरी रात उसके साथ कुकर्म किया और बुरी तरह गालियाँ दीं। तब सवेरे उसे जाने दिया। 26 सवेरे वह स्त्री वहाँ लौटी जहाँ उसका स्वामी ठहरा था। वह सामने दरवाजे पर गिर पड़ी। वह तब तक पड़ी रही जब तक पूरा दिन नहीं निकल आया।
27 सवेरे लेवीवंशी व्यक्ति उठा और उसने घर का दरवाजा खोला। वह अपने रास्ते जाने के लिये बाहर निकला। किन्तु वहाँ उसकी रखैल पड़ी थी। वह घर के रास्ते पर पड़ी थी। उसके हाथ दरवाज़े की ड्योढ़ी पर थे। 28 तब लेवीवंशी व्यक्ति ने उससे कहा, “उठो, हम लोग चलें।”
किन्तु उसने उत्तर नहीं दिया। इसलिए उसने उसे अपने गधे पर रखा और घर गया। 29 जब लेवीवंशी व्यक्ति अपने घर आया तब उसने एक छुरी निकाली और अपनी रखैल को बारह टुकड़ों में काटा। तब उसने स्त्री के उन बारह भागों को उन सभी क्षेत्रों में भेजा जहाँ इस्राएल के लोग रहते थे। 30 जिसने यह देखा उन सबने कहा, “ऐसा कभी नहीं हुआ था जब से इस्राएल के लोग मिस्र से आए, तब से अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ। तय करो कि क्या करना है और हमें बताओ?”
समीक्षा
परमेश्वर के प्रकाश को चमकाए
दायेश के द्वारा किया गया हैरान कर देने वाला अत्याचार –निर्दोषों का सर कटवा देना और उन्हें क्रूस पर चढ़ाना, बच्चों का व्यापक दुरुपयोग, मानवीय तस्करी की भयानक दुष्टता और आधुनिक दिन का दासत्व – हम एक अंधेर विश्व में रहते हैं. लेकिन हम आशाहीन नहीं हैं. परमेश्वर के साथ, प्रकाश अंधकार को बाहर निकाल सकता है.
इस्राएल इतिहास में एक अंधेर समय था. लोगों से परमेश्वर के साथ एक नजदीकी संबंध में चलने के लिए कहा गया था –अपने राजा के रूप में परमेश्वर के राज्य और शासन के अंतर्गत. यदि उन्होंने इस तरह से जीया होता, तो उन्हें एक मानवीय राजा की आवश्यकता नहीं पड़ती.
किंतु, अब वे बदतर स्थिति में जी रहे थे. वे परमेश्वर के राज्य में नहीं जी रहे थे, और उनके पास एक मानवीय राजा भी नही था जो सबकुछ व्यवस्था में रख सके और गड़बड़ी को रोके.
ये निराशाजनक दिन थे. 'उन दिनों इस्रालियों का कोई राजा नहीं था' (18:1;19:1). वे मूर्तिपूजा की ओर झुके (अध्याय 18). हम व्यवस्थारहित देश की अत्यधिक बुराई का भयंकर और निराशाजनक लेखा देखते हैं. हम डरावना बलात्कार और शोषण और स्त्रीयों के अंग विच्छेद के बारे में पढते हैं, ' जितनों ने उसे देखा, वे सब आपस में कहने लगे, इस्रालियों के मिस्र देश में चले आने के समय से ले कर आज के दिन तक ऐसा कुछ कभी नहीं हुआ, और न देखा गया; सो इस को सोचकर सम्मति करो, और बताओ' (19:30). यह परमेश्वर के बिना घोर अंधकार का समय था.
यह घोर अत्याचार था, यह दुनिया के इतिहास में कोई अनोखा नहीं है. जब समाज परमेश्वर और उनकी व्यवस्था को नकारता है, तो नृशंस अत्याचार हो सकते हैं. कभी-कभी यह बेहद अव्यवस्था में बदल जाता है.
एल.टी. जेन रोमियो दलेर, जो रांडा में यू.एन. मिशन के भाग थे और उन्होने जातिसंहार का अनुभव किया था, उनसे पूछा गया कि वह अब भी परमेश्वर में विश्वास कैसे कर सकते हैं. उन्होंने जवाब दियाः 'मैं जानता हूँ कि रांडा में परमेश्वर हैं क्योंकि मैंने शैतान से हाथ मिलाया. मैंने उसे देखा है, मैंने उसे सूँघा है और मैंने उसे छुआ है. मैं जानता हूँ कि शैतान है, और इसलिए मैं जानता हूँ कि एक परमेश्वर भी हैं.'
बाईबल की भाषा में, 'अंधकार' केवल रात नहीं है लेकिन बुराई के बल भी है जो हमें प्रलोभित कर सकते हैं और हमें सही दिशा में चलने से भटका सकते हैं, जीवन के प्रकाश की ओर - यीशु जो इस अंधेरे विश्व में प्रकाश को लाते हैं.
एक डगमगाने वाले दाँवे में, यीशु स्वाभाविक रूप से अपने आपको परमेश्वर के स्थान में रखते हैं, और कहते हैं कि वह 'विश्व की ज्योति हैं' (यूहन्ना 8:12). परमेश्वर के बिना एक विश्व, अंधकार का एक विश्व है. फिर भी यीशु ने कहा, 'जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा' (व.12).
जब आप यीशु के पास आते हैं तब आप परमेश्वर के बिना जीवन के अंधकार से बाहर निकलकर परमेश्वर के साथ प्रकाश के जीवन में आते हैं. वह हमें अंधकार, संघर्ष और मृत्यु में से बाहर निकालकर जीवन और प्रेम के प्रकाश में लाते हैं. वह आपके जीवन को अर्थ और दिशा प्रदान करते हैं. ना केवल इतना, लेकिन जैसे ही हम परमेश्वर के साथ जीवन जीते हैं, उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हुए, वैसे ही हम हमारे अंधेरे विश्व में प्रकाश को लाने के लिए 'जीवन के प्रकाश' को एक साथ रखते हैं.
आप सच में अपने आस-पास के विश्व में एक अंतर पैदा कर सकते हैं. मसीह में आपका जीवन, आपके आस-पास के विश्व में आत्मिक अंधकार में प्रकाश की तरह चमक सकता है. जैसा कि मार्टिन लुथर किंग इसे बताते हैं, 'अंधकार अंधकार को दूर नहीं कर सकता है; केवल प्रकाश इसे दूर कर सकता है. नफरत नफरत को दूर नहीं कर सकती है; केवल प्रेम इसे कर सकता है.'
प्रार्थना
परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि ऐसा एक समुदाय बने जो एक अंधकार विश्व में आपके प्रकाश को लाता है.एक व्यक्ति के रूप में और एक चर्च के रूप में हमारी सहायता कीजिए कि हम आपके साथ रहें, आपको प्रसन्न करने के लिए और आज अपने आस-पास के लोगों तक जीवन, प्रेम और आनंद का प्रकाश लाने के लिए.
पिप्पा भी कहते है
न्यायियों 19
मैं आश्चर्य करता हूँ जिस तरह से पुराने नियम में महिलाओं के साथ बर्ताव किया जाता था ( आज भी विश्व के कुछ भागों में ऐसा किया जाता है). धन्यवाद हो परमेश्वर का कि जब यीशु आए तब उन्होंने महिलाओं के सम्मान को वापस लौटाया और आज के लिंग संबंधी चुनौती को तोड़ दिया.

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संदर्भ
मार्टिन लुथर किंग, प्रेम करने के लिए सामर्थ, (फोर्ट्रेस प्रेस, 2010 गिफ्ट एडिशन), पी.47
रोमियों दलेर, शैतान के साथ हाज्ञ मिलायें रांडा में मानवता की असफलता (रैंडम हाउस 2003), प्रिफेस
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