दिन 139

अपनी आत्मा को तृप्त करें

बुद्धि भजन संहिता 63:1-11
नए करार यूहन्ना 10:22-42
जूना करार 1 शमूएल 1:1-2:26

परिचय

बेमहार्ड लॅन्गर अपनी पीढ़ी के एक सर्वश्रेष्ठ गॉल्फर थे, यू.एस. मास्टर में दो बार विजेता रहे और 1986 में विश्व गॉल्फ श्रेणी में प्रथम आए थे. उन्होंने कहा, 'मैंने पाँच महाद्वीपों में सात बार जय पायी है; मैं विश्व में नंबर एक था और मेरी एक सुंदर पत्नी थी. फिर भी किसी वस्तु की कमी थी.

जो जीवनशैली हम सभी (विशेषरूप से हम खिलाड़ी) जी रहे हैं - यह केवल पैसे के विषय में है और आप कौन हैं और आप किसे जानते हैं और आपके पास क्या है और यें चीजे वास्तव में महत्वपूर्ण वस्तुएँ नहीं हैं. मैं सोचता हूँ कि जिन लोगों के पास ये चीजें हैं, वे समझते हैं कि...अब भी उनके जीवन में किसी वस्तु की कमी है और मैं विश्वास करता हूँ कि वह यीशु मसीह हैं.'

आत्मिक खालीपन जिसका वर्णन बर्नहार्ड लैंगर कर रहे हैं, वह सारी मानवता के लिए सामान्य बात है. एक जवान महिला ने मुझसे कहा कि उसे महसूस हो रहा था कि 'उनके प्राण में एक छोटे से हिस्से की कमी थी.' आप केवल शरीर और दिमाग नहीं हैं. आप एक आत्मा हैं जो परमेश्वर के साथ संबंध के लिए बनाये गए हैं. तो आप अपनी आत्मा को कैसे तृप्त करते हैं?

बुद्धि

भजन संहिता 63:1-11

दाऊद का उस समय का एक पद जब वह यहूदा की मरूभूमि में था।

63हे परमेश्वर, तू मेरा परमेश्वर है।
  वैसे कितना मैं तुझको चाहता हूँ।
 जैसे उस प्यासी क्षीण धरती जिस पर जल न हो
  वैसे मेरी देह और मन तेरे लिए प्यासा है।
2 हाँ, तेरे मन्दिर में मैंने तेरे दर्शन किये।
 तेरी शक्ति और तेरी महिमा देख ली है।
3 तेरी भक्ति जीवन से बढ़कर उत्तम है।
 मेरे होंठ तेरी बढाई करते हैं।
4 हाँ, मैं निज जीवन में तेरे गुण गाऊँगा।
 मैं हाथ उपर उठाकर तेरे नाम पर तेरी प्रार्थना करूँगा।
5 मैं तृप्त होऊँगा मानों मैंने उत्तम पदार्थ खा लिए हों।
 मेरे होंठ तेरे गुण सदैव गायेंगे।
6 मैं आधी रात में बिस्तर पर लेटा हुआ
 तुझको याद करूँगा।
7 सचमुच तूने मेरी सहायता की है!
 मैं प्रसन्न हूँ कि तूने मुझको बचाया है!
8 मेरा मन तुझमें समता है।
 तू मेरा हाथ थामे हुए रहता है।

9 कुछ लोग मुझे मारने का जतन कर रहे हैं। किन्तु उनको नष्ट कर दिया जायेगा।
 वे अपनी कब्रों में समा जायेंगे।
10 उनको तलवारों से मार दिया जायेगा।
 उनके शवों को जंगली कुत्ते खायेंगे।
11 किन्तु राजा तो अपने परमेश्वर के साथ प्रसन्न होगा।
 वे लोग जो उसके आज्ञा मानने के वचन बद्ध हैं, उसकी स्तुति करेंगे।
 क्योंकि उसने सभी झूठों को पराजित किया।

समीक्षा

दिन रात परमेश्वर को खोजने का प्रयत्न करें

आत्मिक 'भोजन' भौतिक भोजन जितना ही वास्तविक है और यह हमें ऐसे तृप्त करता है, जैसा कि कोई भौतिक भोजन हमें तृप्त नहीं कर सकता है.

दाऊद जंगल में थे. वह जानते थे कि भौतिक प्यास और भूख क्या होती है. लेकिन वे आत्मिक प्यास को भी जानते थे और इसका अनुभव किया थाः'सूखी और निर्जल ऊसर भूमि पर, मेरा मन तेरा प्यासा है, मेरा शरीर तेरा अति अभिलाषी है' (व.1). और वह जानते थे कि उनकी आत्मिक भूख के तृप्त होने का क्या अर्थ हैः'मेरी जीभ मानों चर्बी और चिकने भोजन से तृप्त होगी' (व.5अ).

उनकी आत्मिक भूख और प्यास तृप्त हो गई, जैसे ही उन्होंने परमेश्वर की आराधना कीः'इस प्रकार से मैंने पवित्रस्थान में तुझ पर दृष्टि की, कि तेरी सामर्थ और महिमा को देखूँ' (व.2, एम.एस.जी.).

वह अपने हाथों को उठाते हैं, आराधना, सम्मान और समर्पण को दर्शाते हुएः'क्योंकि तेरी करुणा जीवन से भी उत्तम है, मैं तेरी प्रशंसा करुँगा. इसी प्रकार मैं जीवन भर तुझे धन्य कहता रहूँगा; और तेरा नाम लेकर अपने हाथ उठाऊँगा' (वव.3-4). अपने हाथों को उठाना, प्रार्थना का पुराना तरीका है. जैसा कि पोप ऐमेरिटस बेनेडिक्ट लिखते हैं, 'यह आराधना का मूलभूत तरीका है...अपने आपको परमेश्वर के लिए खोलना, अपने आपको पूरी तरह से उनके लिए समर्पित करना.'

आप क्या करते हैं जब आप सो नहीं पाते हैं या आप रात में अचानक से जाग जाते हैं? दाऊद कहते हैं कि वह परमेश्वर की स्तुति और आराधना करते हैं, 'जब मैं बिछौने पर पड़ा तेरा स्मरण करुँगा, तब रात के एक एक पहर में तुझ पर ध्यान करुँगा' (व.6, ए.एम.पी.).

जैसे ही वह दिन रात परमेश्वर की आराधना करते हुए अपने हृदय को ऊँडेलते हैं, वैसे ही दाऊद सामर्थ और सहायता को प्राप्त करते हैं. वह लिखते हैं, 'क्योंकि तू मेरा सहायक बना है, इसलिये मैं तेरे पंखो की छाया में जयजयकार करुँगा. मेरा मन तेरे पीछे पीछे लगा रहता है, और मुझे तो तू अपने दाहिने हाथ से थामे रखता है' (वव.7-8).

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं आज आपको खोजता हूँ. आपका धन्यवाद क्योंकि आप मेरी आत्मा को उत्तम भोजन से तृप्त करते हैं और मेरी आत्मिक प्यास बुझाते हैं. आपका धन्यवाद क्योंकि आपका प्रेम जीवन से बेहतर है.

नए करार

यूहन्ना 10:22-42

यहूदी यीशु के विरोध में

22 फिर यरूशलेम में समर्पण का उत्सव आया। सर्दी के दिन थे। 23 यीशु मन्दिर में सुलैमान के दालान में टहल रहा था। 24 तभी यहूदी नेताओं ने उसे घेर लिया और बोले, “तू हमें कब तक तंग करता रहेगा? यदि तू मसीह है, तो साफ-साफ बता।”

25 यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम्हें बता चुका हूँ और तुम विश्वास नहीं करते। वे काम जिन्हें मैं परम पिता के नाम पर कर रहा हूँ, स्वयं मेरी साक्षी हैं। 26 किन्तु तुम लोग विश्वास नहीं करते। क्योंकि तुम मेरी भेड़ों में से नहीं हो। 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज को जानती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ। वे मेरे पीछे चलती हैं और 28 मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। उनका कभी नाश नहीं होगा। और न कोई उन्हें मुझसे छीन पायेगा। 29 मुझे उन्हें सौंपने वाला मेरा परम पिता सबसे महान है। मेरे पिता से उन्हें कोई नहीं छीन सकता। 30 मेरा पिता और मैं एक हैं।”

31 फिर यहूदी नेताओं ने यीशु पर मारने के लिये पत्थर उठा लिये। 32 यीशु ने उनसे कहा, “पिता की ओर से मैंने तुम्हें अनेक अच्छे कार्य दिखाये हैं। उनमें से किस काम के लिए तुम मुझ पर पथराव करना चाहते हो?”

33 यहूदी नेताओं ने उसे उत्तर दिया, “हम तुझ पर किसी अच्छे काम के लिए पथराव नहीं कर रहे हैं बल्कि इसलिए कर रहें है कि तूने परमेश्वर का अपमान किया है और तू, जो केवल एक मनुष्य है, अपने को परमेश्वर घोषित कर रहा है।”

34 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या यह तुम्हारे विधान में नहीं लिखा है, ‘मैंने कहा तुम सभी ईश्वर हो?’ 35 क्या यहाँ ईश्वर उन्हीं लोगों के लिये नहीं कहा गया जिन्हें परम पिता का संदेश मिल चुका है? और धर्मशास्त्र का खंडन नहीं किया जा सकता। 36 क्या तुम ‘तू परमेश्वर का अपमान कर रहा है’ यह उसके लिये कह रहे हो, जिसे परम पिता ने समर्पित कर इस जगत को भेजा है, केवल इसलिये कि मैंने कहा, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ’? 37 यदि मैं अपने परम पिता के ही कार्य नहीं कर रहा हूँ तो मेरा विश्वास मत करो 38 किन्तु यदि मैं अपने परम पिता के ही कार्य कर रहा हूँ, तो, यदि तुम मुझ में विश्वास नहीं करते तो उन कार्यों में ही विश्वास करो जिससे तुम यह अनुभव कर सको और जान सको कि परम पिता मुझ में है और मैं परम पिता में।”

39 इस पर यहूदियों ने उसे बंदी बनाने का प्रयत्न एक बार फिर किया। पर यीशु उनके हाथों से बच निकला।

40 यीशु फिर यर्दन नदी के पार उस स्थान पर चला गया जहाँ पहले यूहन्ना बपतिस्मा दिया करता था। यीशु वहाँ ठहरा, 41 बहुत से लोग उसके पास आये और कहने लगे, “यूहन्ना ने कोई आश्चर्यकर्म नहीं किये पर इस व्यक्ति के बारे में यूहन्ना ने जो कुछ कहा था सब सच निकला।” 42 फिर वहाँ बहुत से लोग यीशु में विश्वासी हो गये।

समीक्षा

यीशु के द्वारा परमेश्वर से बातचीत करें

कैसे आप और मैं परमेश्वर के साथ बातचीत करते हैं?

यीशु के साथ बातचीत परमेश्वर के साथ बातचीत है. जो लोग यीशु से मिले, वे समझ गए कि वह अपने आपको परमेश्वर बता रहे थे (व.33). जब उन्होंने कहा, 'मैं और पिता एक हैं' (व.30) और 'पिता मुझमें है और मैं पिता में हूँ' (व.38), तब उनके सुनने वालों में कोई अनेकार्थता की स्थिति नहीं थी. उनके विरोधियों ने इसे परमेश्वर की निंदा समझा -'क्योंकि तुम, एक साधारण मनुष्य अपने आपको परमेश्वर के समान बताते हो' (व.33) – और उन्होंने उन पर पथराव करने के लिए पत्थर उठा लिये (वव.31-33).

यीशु ने अपने चेलों से बातचीत की और वह अब भी हमसे बातचीत करते हैं, वह कहते हैं, 'मेरी भीड़ मेरी आवाज पहचानती है; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे आती हैं' (व.27). यहाँ पर हम एक सच्चे मसीह के चिह्न को देखते हैं:

  1. यीशु में विश्वास करना

अ.इस लेखांश में उन दो लोगों के बीच में तुलना की गई है जिन्होंने 'यीशु में विश्वास किया' (व.42) और जो 'विश्वास नहीं करते हैं' (वव.25-26). यीशु में विश्वास करने का अर्थ है उनमें विश्वास करना जब वह कहते हैं, 'मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ' (व.36) और उनमें अपना भरोसा रखना.

  1. यीशु को जानना

अ. यीशु कहते हैं, 'मेरी भेड़े मेरी आवाज को पहचानती हैं. मैं उन्हें जानता हूँ...' (व.27). एक मसीह बनने का अर्थ है यीशु की आवाज को पहचानना और इसके पीछे चलना. यही है जो एक मसीह को परिभाषित करता है -यीशु के विषय में अत्यधिक ज्ञान नहीं, लेकिन वास्तव में उन्हें जानना. बाद में अद्भुत घोषणा के द्वारा इसके विषय में बताया गया कि यीशु भी हमें जानते हैं.

  1. यीशु के पीछे चलना

यीशु कहते हैं, 'वे मेरे पीछे आती हैं' (व.27). यह आपके जीवन को प्रभावित करता है. जैसा कि यीशु ने कही और कहा है, 'उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे' (मत्ती 7:16,20). याकूब ने लिखा, 'वैसे ही विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपका स्वभाव मरा हुआ है' (याकूब 2:17). विश्वास का प्राथमिक प्रमाण प्रेम है. जो लोग यीशु के पीछे चलते हैं, वह उनके प्रेम के उदाहरण के पीछे चलेंगे.

यीशु हर सच्चे मसीह से वायदा करते हैः'मैं उन्हें अनंत जीवन देता हूँ' (यूहन्ना 10:28). यह जीवन की मात्रा के विषय में नहीं है; यह गुणवत्ता के विषय में भी है. यीशु हमारी आत्मिक भूख और प्यास को बुझाते हैं. यीशु के साथ एक संबंध में हम इसे गहरे आत्मा की तृप्ति को प्राप्त करते हैं, जो हमें कहीं और नहीं मिल सकती है.

यीशु वायदा करते हैं कि उनके साथ यह संबंध सर्वदा बना रहेगा. यह अभी शुरु होता है, लेकिन यह 'अनंत' है (व.28). जो लोग यीशु के पीछे चलते हैं, 'वह कभी नष्ट नहीं होगे' (व.28). यह एक उपहार है ('मैं उन्हें अनंत जीवन देता हूँ', व.28). इसे कमाया नहीं जा सकता है, नाही यह खो सकता है. यीशु वायदा करते हैं, ' कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन नहीं लेगा... कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता' (वव.28-29).

हो सकता है कि रास्ते में बहुत से संघर्ष और प्रलोभनें आएँ लेकिन आखिरकार यीशु के हाथ और पिता के हाथ मिलकर आपकी रक्षा कर रहे हैं. हो सकता है कि एक मसीह अपनी नौकरी, अपना पैसा, अपना परिवार, अपनी स्वतंत्रता और यहाँ तक कि अपना जीवन खो दे, लेकिन वे कभी भी अनंत जीवन को नहीं खोयेंगे.

प्रार्थना

धन्यवाद परमेश्वर, क्योंकि मैं आपकी आवाज को सुन सकता हूँ, क्योंकि मैं आपको जान सकता हूँ और आप मुझे अनंत जीवन देते हैं. आपका धन्यवाद क्योंकि आप वायदा करते हैं कि मैं कभी नष्ट नहीं होऊँगा और कोई मुझे आपके हाथों से छिन नहीं सकता है. आपका धन्यवाद क्योंकि इस संबंध में मैं अभी और सर्वदा की आत्मा की तृप्ति प्राप्त करता हूँ.

जूना करार

1 शमूएल 1:1-2:26

एल्काना और उसका परिवार शीलो में आराधना करता है

1एल्काना नामक एक व्यक्ति था। वह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के रामातैमसोपीम का निवासी था। एल्काना सूप परिवार का था। एलकाना यरोहाम का पुत्र था। यरोहाम एलीहू का पुत्र था। एलीहू तोहू का पुत्र था और तोहू सूप का पुत्र था, जो एप्रैम के परिवार समूह से था।

2 एल्काना की दो पत्नियाँ थीं। एक का नाम हन्ना था और दूसरी का नाम पनिन्ना था। पनिन्ना के बच्चे थे, किन्तु हन्ना के कोई बच्चा नहीं था।

3 एल्काना हर वर्ष अपने नगर रामातैमसोपीम को छोड़ देता था और शीलो नगर जाता था। एल्काना सर्वशक्तिमान यहोवा की उपासना शीलो में करता था और वहाँ यहोवा को बलि भेंट करता था। शीलो वह स्थान था, जहाँ होप्नी और पीनहास यहोवा के याजक के रूप में सेवा करते थे। होप्नी और पीनहास एली के पुत्र थे। 4 जब कभी एल्काना अपनी बलि भेंट करता था, वह भेंट का एक अंश अपनी पत्नी पनिन्ना को देता था। एल्काना भेंट का एक अंश पनिन्ना के बच्चों को भी देता था। 5 एल्काना भेंट का एक बराबर का अंश हन्ना को भी सदा दिया करता था। एल्काना यह तब भी करता रहा जब यहोवा ने हन्ना को कोई सन्तान नहीं दी थी। एल्काना यह इसलिये करता था कि हन्ना उसकी वह पत्नी थी जिससे वह सच्चा प्रेम करता था।

पनिन्ना हन्ना को परेशान करती है

6 पनिन्ना हन्ना को सदा खिन्नता और परेशानी का अनुभव कराती थी। पनिन्ना यह इसलिये करती थी क्योंकि हन्ना कोई बच्चा पैदा नहीं कर सकती थी। 7 हर वर्ष जब उनका परिवार शीलो में यहोवा के आराधनालय में जाता, पनिन्ना, हन्ना को परेशानी में डाल देती थी। एक दिन जब एल्काना बलि भेंट अर्पित कर रहा था। हन्ना परेशानी का अनुभव करने लगी और रोने लगी। हन्ना ने कुछ भी खाने से इन्कार कर दिया। 8 उसके पति एलकाना ने उस से कहा, “हन्ना, तुम रो क्यों रही हो? तुम खाना क्यों नहीं खाती? तुम दुःखी क्यों हो? मैं, तुम्हारा पति, तुम्हारा हूँ। तुम्हें सोचना चाहिए कि मैं तुम्हारे लिए तुम्हारे दस पुत्रों से अच्छा हूँ।”

हन्ना की प्रार्थना

9 खाने और पीने के बाद हन्ना चुपचाप उठी और यहोवा से प्रार्थना करने गई। यहोवा के पवित्र आराधनालय के द्वार के निकट कुर्सी पर याजक एली बैठा था। 10 हन्ना बहुत दुःखी थी। वह बहुत रोई जब उसने यहोवा से प्रार्थना की। 11 उसने परमेश्वर से विशेष प्रतिज्ञा की। उसने कहा, “सर्वशक्तिमान यहोवा, देखो मैं कितनी अधिक दु:खी हूँ। मुझे याद रखो! मुझे भूलो नहीं। यदि तुम मुझे एक पुत्र दोगे तो मैं पूरे जीवन के लिये उसे तुमको अर्पित कर दूँगी। यह नाजीर पुत्र होगा: वह दाखमधु या तेज मदिरा नहीं पीएगा और कोई उसके बाल नहीं काटेगा।”

12 हन्ना ने बहुत देर तक प्रार्थना की। जिस समय हन्ना प्रार्थना कर रही थी, एली ने उसका मुख देखा। 13 हन्ना अपने हृदय में प्रार्थना कर रही थी। उसके होंठ हिल रहे थे, किन्तु कोई आवाज नहीं निकल रही थी। 14 एली ने समझा कि हन्ना दाखमधु से मत्त है। एली ने हन्ना से कहा, “तुम्हारे पास पीने को अत्याधिक था! अब समय है कि दाखमधु को दूर करो।”

15 हन्ना ने उत्तर दिया, “मैंने दाखमधु या दाखरस नहीं पिया है। मैं बहुत अधिक परेशान हूँ। मैं यहोवा से प्रार्थना करके अपनी समस्याओं का निवेदन कर रही थी। 16 मत सोचो कि मैं बुरी स्त्री हूँ। मैं इतनी देर तक इसलिए प्रार्थना कर रही थी कि मुझे अनेक परेशानियाँ हैं और में बहुत दुःखी हूँ।”

17 एली ने उत्तर दिया, “शान्तिपूर्वक जाओ। इस्राएल का परमेश्वर तुम्हें वह दे, जो तुमने मांगा है।”

18 हन्ना ने कहा, “मुझे आशा है कि आप मुझसे प्रसन्न हैं।” तब हन्ना गई और उसने कुछ खाया। वह अब दु:खी नहीं थी।

19 दूसरे दिन सवेरे एल्काना का परिवार उठा। उन्होंने परमेस्वर की उपासना की और वे अपने घर रामा को लौट गए।

शमूएल का जन्म

एल्काना ने अपनी पत्नी हन्ना के साथ शारीरिक सम्बन्ध किया, यहोवा ने हन्ना की प्रार्थना को याद रखा। 20 हन्ना गर्भवती हुई और उसे एक पुत्र हुआ। हन्ना ने उसका नाम शमूएल रखा। उसने कहा, “इसका नाम शमूएल है क्योंकि मैंने इसे यहोवा से माँगा है।”

21 उस वर्ष एल्काना बलि—भेंट देने और परमेश्वर के सामने की गई प्रतिज्ञा को पूरा करने शीलो गया। वह अपने परिवार को अपने साथ ले गया। 22 किन्तु हन्ना नहीं गई। उसने एल्काना से कहा, “जब लड़का ठोस भोजन करने योग्य हो जायेगा, तब मैं इसे शीलो ले जाऊँगी। तब मैं उसे यहोवा को दूँगी। वह एक नाजीर बनेगा और वह शीलो में रहेगा।”

23 हन्ना के पति एल्काना ने उससे कहा, “वही करो जिसे तुम उत्तम समझती हो। तुम तब तक घर में रह सकती हो जब तक लड़का ठोस भोजन करने योग्य बड़ा नहीं हो जाता। यहोवा वही करे जो तुमने कहा है।” इसलिए हन्ना अपने बच्चे का पालन पोषण तब तक करने के लिये घर पर ही रह गई जब तक वह ठोस भोजन करने योग्य बड़ा नहीं हो जाता।

हन्ना शमूएल को शीलो में एली के पास ले जाती है

24 जब लड़का ठोस भोजन करने योग्य बड़ा हो गया, तब हन्ना उसे शीलो में यहोवा के आराधनालय पर ले गई। हन्ना अपने साथ तीन वर्ष का एक बैल, बीस पौंड आटा और एक मशक दाखमधु भी ले गई।

25 वे यहोवा के सामने गए। एल्काना ने यहोवा के लिए बलि के रूप में बैल को मारा जैसा वह प्राय: करता था तब हन्ना लड़के को एली के पास ले आई। 26 हन्ना ने एली से कहा, “महोदय, क्षमा करें। मैं वही स्त्री हूँ जो यहोवा से प्रार्थना करते हुए आप के पास खड़ी थी। मैं वचन देती हूँ कि मैं सत्य कह रही हूँ। 27 मैंने इस बच्चे के लिये प्रार्थना की थी। यहोवा ने मुझे यह बच्चा दिया 28 और अब मैं इस बच्चे को यहोवा को दे रही हूँ। यह पूरे जीवन यहोवा का रहेगा।”

तब हन्ना ने बच्चे को वहीं छोड़ा और यहोवा की उपासना की।

हन्ना धन्यवाद देती है

2हन्ना ने कहा:

 “यहोवा, में, मेरा हृदय प्रसन्न है!
  मैं अपने परमेश्वर में शक्तिमती अनुभव करती हूँ!
 मैं अपनी विजय से पूर्ण प्रसन्न हूँ!
  और अपने शत्रुओं की हँसी उड़ाई हूँ।
2 यहोवा के सदृश कोई पवित्र परमेश्वर नहीं।
 तेरे अतिरिक्त कोई परमेश्वर नहीं!
 परमेश्वर के अतिरिक्त कोई आश्रय शिला नहीं।
3 बन्द करो डींगों का हाँकना!
  घमण्ड भरी बातें न करो! क्यों?
 क्योंकि यहोवा परमेश्वर सब कुछ जानता है,
  परमेश्वर लोगों को राह दिखाता है और उनका न्याय करता है।
4 शक्तिशाली योद्धाओं के धनुष टूटते हैं!
 और दुर्बल शक्तिशाली बनते हैं!
5 जो लोग बीते समय में बहुत भोजन वाले थे,
 उन्हें अब भोजन पाने के लिये काम करना होगा।
  किन्तु जो बीते समय में भूखे थे,
 वे अब भोजन पाकर मोटे हो रहे हैं!
  जो स्त्री बच्चा उत्पन्न नहीं कर सकती थी
 अब सात ब्च्चों वाली है!
  किन्तु जो बहुत बच्चों वाली थी,
 दु:खी है क्योंकि उसके बच्चे चले गये।

6 यहोवा लोगों को मृत्यु देता है,
 और वह उन्हें जीवित रहने देता है।
  यहोवा लोगों को मृत्युस्थल व अधोलोक को पहुँचाता है,
 और पुन: वह उन्हें जीवन देकर उठाता है।
7 यहोवा लोगों को दीन बनाता है,
 और यहोवा ही लोगों को धनी बनाता है।
  यहोवा लोगों को नीचा करता है,
 और वह लोगों को ऊँचा उठाता है।
8 यहोवा कंगालों को धूलि से उठाता है।
 यहोवा उनके दुःख को दूर करता है।
  यहोवा कंगालों को राजाओं के साथ बिठाता है।
 यहोवा कंगालों को प्रतिष्ठित सिंहासन पर बिठाता है।
  पूरा जगत अपनी नींव तक यहोवा का है!
 यहोवा जगत को उन खम्भों पर टिकाया है!

9 यहोवा अपने पवित्र लोगों की रक्षा करता है।
 वह उन्हें ठोकर खाकर गिरने से बचाता है।
  किन्तु पापी लोग नष्ट किये जाएंगे।
 वे घोर अंधेरे में गिरेंगे।
  उनकी शक्ति उन्हें विजय प्राप्त करने में सहायक नहीं होगी।
10 यहोवा अपने शत्रुओं को नष्ट करता है।
 सर्वोच्च परमेश्वर लोगों के विरुद्ध गगन में गरजेगा।
  यहोवा सारी पृथ्वी का न्याय करेगा।
 यहोवा अपने राजा को शक्ति देगा।
  वह अपने अभीषिक्त राजा को शक्तिशाली बनायेगा।”

11 एल्काना और उसका परिवार अपने घर रामा को गया। लड़का शीलो में रह गया और याजक एली के अधीन यहोवा की सेवा करता रहा।

एली के बुरे पुत्र

12 एली के पुत्र बुरे व्यक्ति थे। वे यहोवा की परवाह नहीं करते थे। 13 वे इसकी परवाह नहीं करते थे कि याजकों से लोगों के प्रति कैसे व्यवहार की आशा की जाती है। याजकों को लोगों के लिये यह करना चाहिए: जब कभी कोई व्यक्ति बलि—भेंट लाये, तो याजक को एक बर्तन में माँस को उबालना चाहिये। याजक के सेवक को अपने हाथ में विशेष काँटा जिसके तीन नोंक हैं, लेकर आना चाहिए। 14 याजक के सेवक को काँटे को बर्तन या पतीले में डालना चाहिए। काँटें से जो कुछ बर्तन के बाहर लाये वह माँस याजक का होगा। यह याजकों द्वारा उन इस्राएलियों के लिये किया जाना चाहिये जो शीलो में बलि भेंट करने आयें। 15 किन्तु एली के पुत्रों ने यह नहीं किया। चर्बी को वेदी पर जलाये जाने के पहले ही उनके सेवक लोगों के पास बलि—भेंट करते जाते थे। याजक के सेवक कहा करते थे, “याजक को कुछ माँस भूनने के लिये दो। याजक तुमसे उबला हुआ माँस नहीं लेंगे।”

16 बलि—भेंट करने वाला व्यक्ति यह कह सकता था, “पहले चर्बी जलाओ, तब तुम जो चाहो ले सकते हो।” यदि ऐसा होता तो याजक का सेवक उत्तर देता: “नहीं, मुझे अभी माँस दो, यदि तुम मुझे यह नहीं देते हो तो मैं इसे तुमसे ले ही लूँगा।”

17 इस प्रकार, होप्नी और पीनहास यह दिखाते थे कि वे यहोवा को भेंट की गई बलि के प्रति श्रद्धा नहीं रखते थे। यह यहोवा के विरुद्ध बहुत बुरा पाप था!

18 किन्तु शमूएल यहोवा की सेवा करता था। शमूएल सन का बना एक विशेष एपोद पहनता था। 19 हर वर्ष शमूएल की माँ एक छोटा चोंगा शमूएल के लिये बनाती थी। वह हर वर्ष जब अपने पति के साथ बलि—भेंट करने शीलो जाती थी तो वह छोटा चोंगा शमूएल के लिये ले जाती थी।

20 एली, एल्काना और उसकी पत्नी को आशीर्वाद देता था। एली ने कहा, “यहोवा तुम्हें हन्ना द्वारा सन्तान देकर बदला दे। ये बच्चे उस लड़के का स्थान लेंगे जिसके लिये हन्ना ने प्रार्थना की थी और यहोवा को दिया था।”

तब एल्काना और हन्ना घर लौटे, और 21 यहोवा ने हन्ना पर दया की। उसके तीन पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं और लड़का शमूएल यहोवा के पास बड़ा हुआ।

एली अपने पापी पुत्रों पर नियन्त्रण करने में असफल

22 एली बहुत बूढ़ा था। वह बार बार उन बुरे कामों के बारे में सुनता था जो उसके पुत्र शीलो में सभी इस्राएलियों के साथ कर रहे थे। एली ने यह भी सुना कि जो स्त्रियाँ मिलापवाले तुम्बू के द्वार पर सेवा करती थीं, उनके साथ वे सोते थे।

23 एली ने अपने पुत्रों से कहा, “तुमने जो कुछ बुरा किया है उसके बारे में लोगों ने यहाँ मुझे बताया है। तुम लोग ये बुरे काम क्यों करते हो? 24 पुत्रो, इन बुरे कामों को मत करो। यहोवा के लोग तुम्हारे विषय में बुरी बातें कह रहे हैं। 25 यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध पाप करता है, तो परमेश्वर उसकी मध्यस्थता कर सकता है। किन्तु यदि कोई व्यक्ति यहोवा के ही विरुद्ध पाप करता है तो उस व्यक्ति की मध्यस्थता कौन कर सकता है?”

किन्तु एली के पुत्रों ने एली की बात सुनने से इन्कार कर दिया। इसलिए यहोवा ने एली के पुत्रों को मार डालने का निश्चय किया।

26 बालक शमूएल बढ़ता रहा। उसने परमेश्वर और लोगों को प्रसन्न किया।

समीक्षा

परमेश्वर के लिए अपने हृदय और आत्मा को ऊँडेल दीजिए

क्या आप परमेश्वर से कुछ चाहते हैं?

यह लगभग अपरिहार्य है कि हमारे जीवन में हम कभी कभी 'आत्मा की उदासी' को महसूस करते हैं (1:10, ए.एम.पी.). कभी भी कड़वाहट को आपके हृदय में घर न बनाने दे – लेकिन, हन्ना की तरह, इसे परमेश्वर के सामने ऊँडेल दे. 'वह मन में व्याकुल होकर यहोवा से प्रार्थना करने और बिलख बिलखकर रोने लगी' (व.10, एम.एस.जी.).

परमेश्वर के सामने अपने हृदय को ऊँडेलने से बढ़कर कुछ भी अत्यधिक राहत नहीं पहुँचाता है –परमेश्वर को बताना कि आपकी परेशानियाँ क्या हैं, परेशानियों को अपने साथ लेकर घूमने के बजाय – और उनसे समाधान को माँगना, और परमेश्वर की शांती को ग्रहण करना (फिलिप्पियो 4:6-7).

अपनी प्रार्थना का उत्तर देखने के पहले ही, अपनी वेदना से हन्ना को राहत मिलती है.

हृदय की गहराई से हृदयस्पर्शी प्रार्थना का यह एक सुंदर चित्र है. 'जब वह यहोवा के सामने ऐसी प्रार्थना कर रही थी, तब एली उसके मुँह की ओर ताक रहा था. हन्ना मन ही मन कह रही थी; उसके होंठ तो हिलते थे परंतु उसका शब्द नहीं सुन पड़ता था' (1शमुएल 1:12-13अ). एलि सोचते हैं कि वह नशे में है. वह उत्तर देती है, 'नहीं, हे मेरे प्रभु...मैं तो दुखिया हूँ;मैं ने अपने मन की बात खोलकर यहोवा से कही है...जो कुछ मैंने अब तक कहा है, वह बहुत ही शोकित होने और चिड़ाए जाने के कारण कहा है' (वव.15-16).

एली उससे कहते हैं, 'कुशल से चली जा, इस्राएल का परमेश्वर तुझे मन चाहा वर दे' (व.17). और जैसे ही वह चली गई उसका चेहरा अब उदास नहीं थाः'उसने खाना खाया और उसका चेहरा चमक रहा था' (व.18, एम.एस.जी.). वह जानती थी कि परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना को सुना है और सच में, 'परमेश्वर ने उसकी सुधि ली' (व.19). वास्तव में, परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना से अधिक उसे दिया. ना केवल उसने उसे संतान दी जो वह माँग रही थी, उसने छह बच्चों को जन्म दिया (2:21).

जबकि, 'शमूएल बालक बढ़ता गया और यहोवा और मनुष्य दोनों उससे प्रसन्न रहते थे' (व.26). यह प्रार्थना है जिसे हमने अपने बच्चों के लिए अक्सर की है.

शमूएल के जन्म के लिए हन्ना की प्रार्थना आत्मा की तृप्ति का एक स्पष्ट प्रदर्शन है, जिसका वह अनुभव करती है परमेश्वर के साथ अपने संबंध के द्वारा. वह प्रार्थना करती है और परमेश्वर का धन्यवाद देती है कि 'जो भूखे थे वे अब भूखे नहीं हैं' (व.5).

हन्ना की प्रार्थना में अद्भुत चीज यह है कि उसके आनंद का परम स्त्रोत उसका बच्चा नहीं है लेकिन परमेश्वर हैं. वह कहती है, 'मेरा हृदय परमेश्वर में आनंद मनाता है' (व.1). वह आत्मा की तृप्ति का स्त्रोत हैः

'मैं हवा पर चल रही हूँ... परमेश्वर जीवन देते हैं...वह उदास जीवन को ताजी आशा से भर देते हैं, उनके जीवन में आदर और सम्मान को वापस लाते हुए' (वव.1,6,8, एम.एस.जी.).

प्रार्थना

परमेश्वर, प्रार्थना के लिए अद्भुत उत्तरों के लिए आपका धन्यवाद, जो आप देते हैं जब मैं अपने हृदय को आपके सामने ऊँडेलता हूँ. आपका धन्यवाद क्योंकि कभी कभी आप उल्लेखनीय तरीकों से मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं. लेकिन जो मैंने माँगा है, चाहे वह मुझे मिले या न मिले, आपका धन्यवाद क्योंकि आप मुझे शांति देने का वायदा करते हैं.

पिप्पा भी कहते है

1शमुएल 1:1-2:26

मैंने अक्सर हन्ना और शमुएल के लिए चिंता महसूस की है. हन्ना को अपने बेटे को दे देना पड़ा. शमुएल को जाकर बूढ़े याजक और उनके दो दुष्ट बेटों के साथ रहना पड़ा – जो कि एक आदर्श पालन-पोषण की स्थिति नहीं है.

मैं ने आश्चर्य किया है कि कितने वर्ष हन्ना ने शमुएल का दूध पीना छोड़ने के बाद उसे भोजन खिलाया होगा. आशावादी रूप से, यह कम से कम दस वर्ष का था! फिर भी, इस तथ्य के बावजूद कि यह एक आदर्श पालन-पोषण की स्थिति नहीं थी – शायद से फुटबॉल और परिवार खेल नहीं थे – वह परमेश्वर के साथ बड़ा हुआ, परमेश्वर को जानते हुए और उनकी आवाज को सुनना सीखते हुए.

यह एक राहत की बात है कि बच्चे अच्छा कर सकते हैं, यदि हमारा पालन-पोषण सिद्ध न हो तब भी.

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संदर्भ

बर्नहार्ड लॅन्गर, http://www.thegoal.com/players/golf/langer\\_bernhard/langer\\_bernhard.html \[last accessed December 2014).

जोसफ कार्डिनल रैटजिंगर, द स्पिरीट ऑफ लिटरगाय, (सॅन फ्रांसिस्कोः इग्नाटियस प्रेस,2000), पी.पी203-4

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स्पिरीट ऑफ लिटरगाय (पीपी.203-4) रॅटजिंगर

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