दिन 141

मुसीबत में कैसे शांति को खोजे

बुद्धि नीतिवचन 12:18-27
नए करार यूहन्ना 11:45-12:11
जूना करार 1 शमूएल 5:1-7:17

परिचय

2000 सालों से, यीशु के अनुयायियों ने मुसीबत, विरोध और सताव का सामना किया है. सालो से मैंने और पीपा ने जिन देशों में यात्रा की है, वहाँ पर मसीह भौतिक सताव का सामना करते हैं.

इस समय हम पश्चिम में भौतिक सताव का सामना नहीं करते हैं. किंतु, जैसा कि हम कुछ संदेशों को देखते हैं जो कि उन लोगों से आ रहे हैं जो बताते हैं कि 'विश्वास को पूर्णत नष्ट करना' उनका अभिप्राय है, तो यह स्पष्ट है कि प्रहार से उपद्रव और उग्रता बढ़ेगी.

विरोध निश्चय ही होगा. जो 'मसीह में एक भक्तिमय जीवन बिताना चाहते हैं वह सताये जाएँगे' (2 तीमुथियुस 3:12). विरोध दोनों तरफ से आता है, जो हमसे दूर हैं उनसे (आज के लिए पुराने नियम के लेखांश में फिलिस्तिनियों से), और दुखद रूप से, कभी कभी घर के नजदीकी लोगों से (नये नियम के लेखांश में फरीसियों से). मुसीबत में आप शांती को कैसे खोजते हैं?

बुद्धि

नीतिवचन 12:18-27

18 अविचारित वाणी तलवार सी छेदती,
 किन्तु विवेकी की वाणी घावों को भरती है।

19 सत्यपूर्ण वाणी सदा सदा टिकी रहती है,
 किन्तु झूठी जीभ बस क्षण भर को टिकती है।

20 उनके मनों में छल—कपट भरा रहता है,
 जो कुचक्र भरी योजना रचा करते हैं।
 किन्तु जो शान्ति को बढ़ावा देते हैं, आनन्द पाते हैं।

21 धर्मी जन पर कभी विपत्ति नहीं गिरेगी,
 किन्तु दुष्टों को तो विपत्तियाँ घेरेंगी।

22 ऐसे होठों से यहोवा घृणा करता है जो झूठ बोलते हैं,
 किन्तु उन लोगों से जो सत्य से पूर्ण हैं, वह प्रसन्न रहता है।

23 ज्ञानी अधिक बोलता नहीं है,
 चुप रहता है किन्तु मूर्ख अधिक बोल बोलकर अपने अज्ञान को दर्शाता है।

24 परिश्रमी हाथ तो शासन करेंगे,
 किन्तु आलस्य का परिणाम बेगार होगा।

25 चिंतापूर्ण मन व्यक्ति को दबोच लेता है;
 किन्तु भले वचन उसे हर्ष से भर देते हैं।

26 धर्मी मनुष्य मित्रता में सतर्क रहता है,
 किन्तु दुष्टों की चाल उन्हीं को भटकाती है।

27 आलसी मनुष्य निज शिकार ढूँढ नहीं पाता
 किन्तु परिश्रमी जो कुछ उसके पास है, उसे आदर देता है।

समीक्षा

शांति को बढ़ाये

विरोध और बुराई का ईलाज है विपरीत आत्मा में चलना – ऐसा व्यक्ति बनना जो 'शांती को बढ़ाता है'. लेखक 'बुराई करने वालों के हृदय में धोखा' (व.20अ) और 'शांती को बढ़ाने वालों के लिए आनंद' (व.20ब) के बीच अंतर स्पष्ट करते हैं. आप इसे कैसे कर सकते हैं?

  1. चंगाई लाएं

अ.अपने वचनों से शांती को बढ़ाये. 'ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोच-विचार कर बोलना तलवार के समान चुभता है, परंतु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं' (व.18,एम.एस.जी.). वचन बहुत शक्तिशाली हैं; वे गहराई से चोट पहुँचा सकते हैं लेकिन वे चंगा भी कर सकते हैं.

  1. सच्चे बने

अ.'सच्चाई सदा बनी रहेगी, परंतु झूठ पल भर ही का होता है' (व.19). सच्चाई के वचन ना केवल भाव विरोचक हैं, बल्कि वे एक अनंत प्रभाव भी बनाते हैं – वे 'सर्वदा बने रहते हैं' (व.19).

  1. नियंत्रण रखे

अ.'मूर्ख अपनी मूर्खता को दिखाते हैं' (व.23ब). 'लेकिन चतुर मनुष्य ज्ञान को प्रगट नहीं करता' (व.23अ, ए.एम.पी.). ज्ञान एक जाँघिये की तरह है – इसे पहनना लाभदायक है, लेकिन दिखाना आवश्यक नहीं है! साधारण तथ्य कि आपको उत्तर पता है, इसका यह अर्थ नहीं है कि आपको इसे बताना ही है. मैं हमेशा अल्फा के मेजबानों और सहायकों के नियंत्रण से मोहित हो जाता हूँ.

  1. नम्र बनें

अ.'उदास मन दब जाता है' (व.25अ). परमेश्वर चाहते हैं कि आप जीवन का आनंद लें, दूसरों की सहायता करें, चिंता के द्वारा दब न जाएँ. 'नम्र वचन' दूसरों के हृदय को प्रसन्न करते हैं (व.25ब). एक उत्साहित करने वाले वचन के द्वारा आप एक व्यक्ति का दिन बदल सकते हैं या उनका जीवन भी बदल सकते हैं.

प्रार्थना

परमेश्वर, ऐसा एक व्यक्ति बनने में मेरी सहायता कीजिए जो शांती को बढ़ाता है और जो चंगाई, सत्य, नियंत्रण और दयालुता के वचनों को बोलता है.

नए करार

यूहन्ना 11:45-12:11

यहूदी नेताओं द्वारा यीशु की हत्या का षड़यन्त्र

45 इसके बाद मरियम के साथ आये यहूदियों में से बहुतों ने यीशु के इस कार्य को देखकर उस पर विश्वास किया। 46 किन्तु उनमें से कुछ फरीसियों के पास गये और जो कुछ यीशु ने किया था, उन्हें बताया। 47 फिर महायाजकों और फरीसियों ने यहूदियों की सबसे ऊँची परिषद बुलाई। और कहा, “हमें क्या करना चाहिये? यह व्यक्ति बहुत से आश्चर्य चिन्ह दिखा रहा है। 48 यदि हमने उसे ऐसे ही करते रहने दिया तो हर कोई उस पर विश्वास करने लगेगा और इस तरह रोमी लोग यहाँ आ जायेंगे और हमारे मन्दिर व देश को नष्ट कर देंगे।”

49 किन्तु उस वर्ष के महायाजक कैफा ने उनसे कहा, “तुम लोग कुछ भी नहीं जानते। 50 और न ही तुम्हें इस बात की समझ है कि इसी में तुम्हारा लाभ है कि बजाय इसके कि सारी जाति ही नष्ट हो जाये, सबके लिये एक आदमी को मारना होगा।”

51 यह बात उसने अपनी तरफ़ से नहीं कही थी पर क्योंकि वह उस साल का महायाजक था उसने भविष्यवाणी की थी कि यीशु लोगों के लिये मरने जा रहा है। 52 न केवल यहूदियों के लिये बल्कि परमेश्वर की संतान जो तितर-बितर है, उन्हें एकत्र करने के लिये।

53 इस तरह उसी दिन से वे यीशु को मारने के कुचक्र रचने लगे। 54 यीशु यहूदियों के बीच फिर कभी प्रकट होकर नहीं गया और यरूशलेम छोड़कर वह निर्जन रेगिस्तान के पास इफ्राईम नगर जा कर अपने शिष्यों के साथ रहने लगा।

55 यहूदियों का फ़सह पर्व आने को था। बहुत से लोग अपने गाँवों से यरूशलेम चले गये थे ताकि वे फ़सह पर्व से पहले अपने को पवित्र कर लें। 56 वे यीशु को खोज रहे थे। इसलिये जब वे मन्दिर में खड़े थे तो उन्होंने आपस में एक दूसरे से पूछना शुरू किया, “तुम क्या सोचते हो, क्या निश्चय ही वह इस पर्व में नहीं आयेगा।” 57 फिर महायाजकों और फरीसियों ने यह आदेश दिया कि यदि किसी को पता चले कि यीशु कहाँ है तो वह इसकी सूचना दे ताकि वे उसे बंदी बना सकें।

यीशु बैतनिय्याह में अपने मित्रों के साथ

12फ़सह पर्व से छह दिन पहले यीशु बैतनिय्याह को रवाना हो गया। वहीं लाज़र रहता था जिसे यीशु ने मृतकों में से जीवित किया था। 2 वहाँ यीशु के लिये उन्होंने भोजन तैयार किया। मारथा ने उसे परोसा। यीशु के साथ भोजन के लिये जो बैठे थे लाज़र भी उनमें एक था। 3 मरियम ने जटामाँसी से तैयार किया हुआ कोई आधा लीटर बहुमूल्य इत्र यीशु के पैरों पर लगाया और फिर अपने केशों से उसके चरणों को पोंछा। सारा घर सुगंध से महक उठा।

4 उसके शिष्यों में से एक यहूदा इस्करियोती ने, जो उसे धोखा देने वाला था कहा, 5 “इस इत्र को तीन सौ चाँदी के सिक्कों में बेचकर धन गरीबों को क्यों नहीं दे दिया गया?” 6 उसने यह बात इसलिये नहीं कही थी कि उसे गरीबों की बहुत चिन्ता थी बल्कि वह तो स्वयं एक चोर था। और रूपयों की थैली उसी के पास रहती थी। उसमें जो डाला जाता उसे वह चुरा लेता था।

7 तब यीशु ने कहा, “रहने दो। उसे रोको मत। उसने मेरे गाड़े जाने की तैयारी में यह सब किया है। 8 गरीब लोग सदा तुम्हारे पास रहेंगे पर मैं सदा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।”

लाज़र के विरूद्ध षड़यन्त्र

9 फ़सह पर्व पर आयी यहूदियों की भारी भीड़ को जब यह पता चला कि यीशु वहीं बैतनिय्याह में है तो वह उससे मिलने आयी। न केवल उससे बल्कि वह उस लाज़र को देखने के लिये भी आयी थी जिसे यीशु ने मरने के बाद फिर जीवित कर दिया था। 10 इसलिये महायाजकों ने लाज़र को भी मारने की योजना बनायी। 11 क्योंकि उसी के कारण बहुत से यहूदी अपने नेताओं को छोड़कर यीशु में विश्वास करने लगे थे।

समीक्षा

शांती में जीओ

परमेश्वर सार्वभौमिक हैं. वह बुरी चीजों को भी अच्छाई में बदल देते हैं. मुख्य रूप से, हम इसे क्रूस पर देखते हैः सबसे बदतर षड़यंत्र –निर्दोष परमेश्वर के पुत्र का सताव और हत्या – इसे परमेश्वर ने संपूर्ण मानव जाति के लिए उद्धार को लाने के लिए इस्तेमाल किया.

ऐसा होने पर, आप शांती में जी सकते हैं, भरोसा करते हुए कि परमेश्वर उन बदतर चीजों को भी जिसका आप जीवन में सामना करते हैं, आपकी भलाई में बदल सकते हैं (रोमियो 8:28).

यीशु ने बुरे षड़यंत्र का सामना किया. अभिप्राय ईर्ष्या दिखाई देती है (एक पाप, धार्मिक लोग जिसे करते हैं). लोग यीशु से ईर्ष्या कर रहे थे क्योंकि उनके बहुत से अनुयायी थे और वह धार्मिक लीडर्स से अधिक 'सफल' थे. ईर्ष्या के कारण, प्रधान याजक और फरीसियों ने एक महासभा बुलाई (यूहन्ना 11:47अ).

महासभा उस देश का मुख्य न्यायालय था. इसमें इकहत्तर सदस्य थे जिनमें महायाजक शामिल थे. महायाजक बहुमत से थे और फरीसी एक प्रभावी संख्या में थे. उन्होंने पूछा, 'हम क्या करते हैं?' (व.47ब). यह एक बहुत अच्छा प्रश्न था! वह यीशु की प्रसिद्धी से ईर्ष्या करते थे और उसे मार डालने का षड़यंत्र करने लगे (व.53).

वे बुराई करना चाहते थे. परमेश्वर भलाई करना चाहते थे. कैफा (जो ए.डी 18 से ए.डी 36 तक महायाजक थे) ने भविष्यवाणी की, ' तुम्हारे लिये यह भला है कि हमारे लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और सारी जाति नष्ट न हो' (व.50). परमेश्वर एक अनजान एजेंट के द्वारा बोल सकते हैं.

यूहन्ना कहते हैं, 'यह बात उसने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यवाणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा; और न केवल उस जाति के लिये, वरन् इसलिये भी कि परमेश्वर की तितर-बितर सन्तानों को एक कर दे' (वव.51-52, एम,एस.जी.).

शायद से वह उनके विरोध में षड़यंत्र के बारे में जानते थे, ' इसलिये यीशु उस समय से प्रकट होकर न फिरा...वहाँ से चला गया; और अपने चेलों के साथ वहीं रहने लगा' (व.54). लेकिन यह उन विरोधों का अंत नहीं था जिनका यीशु सामना कर रहे थे.

सबसे अधिक दर्दनाक विरोध यहूदा से आया. जब मरियम यीशु के पैरों पर इत्र ऊँडेलती हैं, यहूदा विरोध करता है, ' यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर कंगालों को क्यों न दिया गया' (12:5). यह देखने पर, एक सिद्ध रूप से सही विरोध लगता है, लेकिन हम पढ़ते हैं, ' उसने यह बात इसलिये नहीं कही कि उसे कंगालों की चिन्ता थी' (व.6).

अवश्य ही यह बात यीशु को बहुत उदास करती होगी कि उनका मित्र और चेला, यहूदा, असल में उदार दानियों के द्वारा यीशु और उनके चेलों को दिए गए उपहारों में से चोरी कर रहा था (लूका 8:2-3).

यीशु सरलतापूर्वक यहूदा के विरोध के प्रति उत्तर देते हैं, ' क्योंकि कंगाल तो तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा नहीं रहूँगा' (यूहन्ना 12:8).

यीशु निश्चित ही गरीबों के विषय में आत्मसंतोष नहीं दिखा रहे थे. यह तथ्य कि हम कभी भी विश्व में से गरीबी को नहीं मिटा पायेंगे, इसका यह अर्थ नहीं है कि हमें कोशिश नहीं करनी चाहिए – वास्तव में, गरीबों के प्रति करुणा यीशु की सेवकाई का केंद्र था. इसके बजाय, यीशु अपने चेलों का ध्यान मरियम के कार्य के महत्व की ओर ले जा रहे थे.

जब यह सब हो रहा था, तब यीशु के विरूद्ध योजनाएँ बनाई जा रही थी (वव.9-11). ईर्ष्या हत्या तक ले जा सकती है. ना केवल उन्होंने यीशु को मार डालने का षड्यंत्र किया (11:53), उन्होंने लाजर की हत्या करने की भी योजना बनाई, क्योंकि वह बहुतों को विश्वास में ला रहा था (12:10-11).

इस लेखांश के विषय में असाधारण चीज है कि हम किस तरह से परमेश्वर के हाथों के कामों को देखते हैं. विरोध और गलत कामों के बावजूद, परमेश्वर की योजना पूरी हुई. यीशु के विरोधी जो बुराई करना चाहते थे, उसका परमेश्वर ने भलाई के लिए इस्तेमाल किया.

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि मैं शांती में जी सकता हूँ, यह जानते हुए कि सारी वस्तुएँ मिलकर भलाई को ही उत्पन्न करती है, उनके लिए जो आपसे प्रेम करते हैं.

जूना करार

1 शमूएल 5:1-7:17

पवित्र सन्दूक पलिश्तियों को परेशान करता है

5पलिश्तियों ने परमेश्वर का पवित्र सन्दूक एबनेजेर से उसे असदोद ले गए। 2 पलिश्ती परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को दागोन के मन्दिर में ले गए। उन्होंने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को दागोन की मूर्ति के बगल में रखा। 3 अशदोदी के लोग अगली सुबह उठे। उन्होंने देखा कि दागोन मुँह के बल पड़ा है। दागोन यहोवा की सन्दूक के सामने गिरा पड़ा था।

अशदोद के लोगों ने दागोन की मूर्ति को उसके पूर्व—स्थान पर रखा। 4 किन्तु अगली सुबह जब अशदोद के लोग उठे तो उन्होंने दागोन को फिर जमीन पर पाया। दागोन फिर यहोवा के पवित्र सन्दूक के सामने गिरा पड़ा था। दागोन के हाथ और पैर टूट गए थे और डेवढ़ी पर पड़े थे। केवल दागोन का शरीर एक खण्ड के रूप में था। 5 यही कारण है, कि आज भी दागोन के याजक या अशदोद में दागोन के मन्दिर में घुसने वाले अन्य व्यक्ति डेवढ़ी पर चलने से इन्कार करते हैं।

6 यहोवा ने अशदोद के लोगों तथा उनके पड़ोसियों के जीवन को कष्टपूर्ण कर दिया। यहोवा ने उनको कठिनाईयों में डाला। उसने उनमें फोड़े उठाए। यहोवा ने उनके पास चूहे भेजे। चूहे उनके सभी जहाजों और भूमि पर दौड़ते थे। नगर में सभी लोग बहुत डर गए थे। 7 अशदोद के लोगों ने देखा कि क्या हो रहा है। उनहोंने कहा, “इस्राएल के परमेश्वर का सन्दूक यहाँ नहीं रह सकता! परमेश्वर हमें और हमारे देवता, दागोन को भी दण्ड दे रहा है।”

8 अशदोद के लोगों ने पाँच पलिश्ती शासकों को एक साथ बुलाया। अशदोद के लोगों ने शासकों से पूछा, “हम लोग इस्राएल के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक का क्या करें?”

शासकों ने उत्तर दिया, “इस्राएल के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को गत नगर ले जाओ।” अत: पलिश्तियों ने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को हटा दिया।

9 किन्तु जब पलिश्तियों ने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को गत को भेज दिया था, तब यहोवा ने उस नगर को दण्ड दिया। लोग बहुत भयभीत हो गए। परमेश्वर ने सभी बच्चों व बूढ़ों के लिये अनेक कष्ट उत्पन्न किये। परमेश्वर ने गत के लोगों के शरीर में फोड़े उत्पन्न किये। 10 इसलिए पलिश्तियों ने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को एक्रोन भेज दिया।

किन्तु जब परमेश्वर का पवित्र सन्दूक एक्रोन आया, एक्रोन के लोगों ने शिकायत की। उन्होंने कहा, “तुम लोग इस्राएल के परमेश्वर का सन्दूक हमारे नगर एक्रोन में क्यों ला रहे हो? क्या तुम लोग हमें और हमारे लोगों को मारना चाहते हो?” 11 एक्रोन के लोगों ने सभी पलिश्ती सेनापतियों को एक साथ बुलाया।

एक्रोन के लोगों ने सेनापतियों से कहा, “इस्राएल के परमेश्वर के सन्दूक को, उसके पहले कि वह हमें और हमारे लोगों को मार डाले। इसके पहले के स्थान पर भेज दो!” एक्रोन के लोग बहुत भयभीत थे। परमेश्वर ने उस स्थान पर उनके जीवन को बहुत कष्टमय बना दिया। 12 बहुत से लोग मर गए और जो लोग नहीं मरे उनको फोड़े निकले। एक्रोन के लोगों ने जोर से रोकर स्वर्ग को पुकारा।

परमेश्वर का पवित्र सन्दूक अपने घर लौटाया गया

6पलिश्तियों ने पवित्र सन्दूक को अपने देश में सात महीने रखा। 2 पलिश्तियों ने अपने याजक और जादूगरों को बुलाया। पलिश्तियों ने कहा, “हम यहोवा के सन्दूक का क्या करें? बताओ कि हम कैसे सन्दूक को वापस इसके घर भेजें?”

3 याजकों और जादूगरों ने उत्तर दिया, “यदि तुम इस्राएल के परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को भेजते हो तो, इसे बिना किसी भेंट के न भेजो। तुम्हें इस्राएल के परमेश्वर को भेंटें चढ़ानी चाहिये। जिससे इस्राएल का परमेश्वर तुम्हारे पापों को दूर करेगा। तब तुम स्वस्थ हो जाओगे। तुम पवित्र हो जाओगे। तुम्हें यह इसलिए करना चाहिए जिससे कि परमेश्वर तुम लोगों को दण्ड देना बन्द करे।”

4 पलिश्तयों ने पूछा, “हम लोगों को कौन सी भेंट, अपने को क्षमा कराने के लिये इस्राएल के परमेश्वर को भेजनी चाहिये?”

याजकों और जादूगरों ने कहा, “यहाँ पाँच पलिश्ती प्रमुख हैं। हर एक नगर के लिये एक प्रमुख है। तुम सभी लोगों और तुम्हारे प्रमुखों की एक ही समस्या है। इसलिए तुम्हे पाँच सोने के ऐसे नमूने जो पाँच फोड़ों के रुप में दिखने वाले बनाने चाहिये और पाँच नमूने पाँच चूहों के रूप में दिखने वाले बनाने चाहिए। 5 इस प्रकार फोड़ों के नमूने बनाओ और चूहों के नमूने बनाओ जो देश को बरबाद कर रहे हैं। इस्राएल के परमेश्वर को इन सोने के नमूनों को भुगतान के रूप में दो। तब यह संभव है कि इस्राएल का परमेश्वर तुमको, तुम्हारे देवताओं को, और तुम्हारे देश को दण्ड देना रोक दे। 6 फ़िरौन और मिस्रियों की तरह हठी न बनो। परमेश्वर ने मिस्रियों को दण्ड दिया। यही कारण था कि मिस्रियों ने इस्राएलियों को मिस्र छोड़ने दिया।

7 “तुम्हें एक नई बन्द गाड़ी बनानी चाहिए और दो गायें जिन्होंने अभी बछड़े दिये हों लानी चाहिए। ये गायें ऐसी होनी चाहिये जिन्होंने खेतों में काम न किया हो। गायों को बन्द गाड़ी में जोड़ो और बछड़ों को घर लौटा ले जाओ। बछड़ों को गौशाला में रखो। उन्हें अपनी माताओं के पीछे न जाने दो। 8 यहोवा के पवित्र सन्दूक को बन्द गाड़ी में रखो। तुम्हें सोने के नमूनों को थैले में सन्दूक के बगल में रखना चाहिये। तुम्हारे पापों को क्षमा करने के लिये सोने के नमूने परमेश्वर के लिये तुम्हारी भेंट हैं। बन्द गाड़ी को सीधे इसके रास्ते पर भेजो। 9 बन्द गाड़ी को देखते रहो। यदि बन्द गाड़ी बेतशेमेश की ओर इस्राएल की भूमि में जाती है, तो यह संकेत है कि यहोवा ने हमें यह बड़ा रोग दिया है। किन्तु यदि गायें बेतशेमेश को नहीं जातीं, तो हम समझेंगे कि इस्राएल के परमेश्वर ने हमें दण्ड नहीं दिया है। हम समझ जायेंगे कि हमारी बीमारी स्वतः ही हो गई।”

10 पलिश्तियों ने वही किया जो याजकों और जादूगरों ने कहा। पलिश्तियों ने वैसी दो गायें लीं जिनहोने शीघ्र ही बछड़े दिये थे। पलिश्तिययों ने गायों को बन्द गाड़ी से जोड़ दिया। पलिश्तियों ने बछडों को घर पर गौशाला में रखा। 11 तब पलिश्तियों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक को बन्द गाड़ी में रखा। 12 गायें सीधे बेतशेमेश को गईं। गायें लगातार रंभाती हुई सड़क पर टिकी रहीं। गायें दायें या बायें नहीं मुड़ीं। पलिश्ती शासक गायों के पीछे बेतशेमेश की नगर सीमा तक गए।

13 बेतशेमेश के लोग घाटी में अपनी गेहूँ की फसल काट रहे थे। उन्होंने निगाह उठाई और पवित्र सन्दूक को देखा। वे सन्दूक को फिर देखकर बहुत प्रसन्न हुए। वे उसे लेने के लिये दौड़े। 14-15 बन्द गाड़ी उस खेत में आई जो बेतशेमेश के यहोशू का था। इस खेत में बन्द गाड़ी एक विशाल चट्टान के सामने रूकी। बेतशेमेश के लोगों ने बन्द गाड़ी को काट दिया। तब उन्होंने गायों को मार डाला। उन्होंने गायों की बलि यहोवा को दी।

लेवीवंशियों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक को उतारा। उन्होंने उस थैले को भी उतारा जिसमें सोने के नमूने रखे थे। लेवीवंशियों ने यहोवा के सन्दूक और थैले को विशाल चट्टान पर रखा।

उस दिन बेतशेमेश के लोगों ने यहोवा को होमबलि चढ़ाई।

16 पाँचों पलिश्ती शासकों ने बेतशेमेश के लोगों को यह सब करते देखा। तब वे पाँचों पलिश्ती शासक उसी दिन एक्रोन लौट गए।

17 इस प्रकार, पलिश्तियों ने यहोवा को अपने पापों के लिये, अपने फोड़ों के सोने के नमूने भेंट के रूप में भेजे। उन्होंने हर एक पलिश्ती नगर के लिये फोड़े का एक सोने का नमूना भेजा। ये पलिश्ती नगर अशदोद, अज्जा, अश्कलोन, गत और एक्रोन थे। 18 पलिश्तियों ने चूहों के सोने के नमूने भी भेजे। सोने के चूहे की संख्या उतनी ही थी जितनी संख्या पाँचों पलिश्ती शासकों के नगरों की थी। इन नगरों के चारों ओर चहारदीवारी थी और हर नगर के चारों ओर गाँव थे।

बेतशेमेश के लोगों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक को एक चट्टान पर रखा। वह चट्टान अब भी बेतशेमेश के यहोशू के खेत में है। 19 किन्तु जिस समय बेतशेमेश के लोगों ने यहोवा के पवित्र सन्दूक को देखा उस समय वहाँ कोई याजक न था। इसलिये परमेश्वर ने बेतशेमेश के सत्तर व्यक्तियों को मार डाला। बेतशेमेश के लोग विलाप करने लगे क्योंकि यहोवा ने उन्हें इतना कठोर दण्ड दिया। 20 इसलिये बेतशेमेश के लोगों ने कहा, “याजक कहाँ है जो इस पवित्र सन्दूक की देखभाल कर सके? यहाँ से सन्दूक कहाँ जाएगा?”

21 किर्यत्यारीम में एक याजक था। बेतशेमेश के लोगों ने किर्यत्यारीम के लोगों के पास दूत भेजे। दूतों ने कहा, “पलिश्तियों ने यहोवा का पवित्र सन्दूक लौटा दिया है। आओ और इसे अपने नगर में ले जाओ।”

7किर्यत्यारीम के लोग आए और यहोवा के पवित्र सन्दूक को ले गए। वे यहोवा के सन्दूक को पहाड़ी पर अबीनादाब के घर ले गए। उन्होंने अबीनादाब के पुत्र एलीआजार को यहोवा के सन्दूक की रक्षा करने के लिये तैयार करने हेतु एक विशेष उपासना की। 2 सन्दूक किर्यत्यारीम में बहुत समय तक रखा रहा। यह वहाँ बीस वर्ष तक रहा।

यहोवा इस्राएलियों की रक्षा करता है:

इस्राएल के लोग फिर यहोवा का अनुसरण करने लगे। 3 शमूएल ने इस्राएल के लोगों से कहा, “यदि तुम सचमुच यहोवा के पास सच्चे हृदय से लौट रहे हो तो तुम्हें विदेशी देवताओं को फेंक देना चाहिये। तुम्हें अश्तोरेत की मूर्तियों को फेंक देना चाहिये और तुम्हें पूरी तरह यहोवा को अपना समर्पण करना चाहिये! तुम्हें केवल यहोवा की ही सेवा करनी चाहिये। तब यहोवा तुम्हें पलिश्तियों से बचायेगा।”

4 इसलिये इस्राएलियों ने अपने बाल और अश्तोरेत की मूर्तियों को फेंक दिया। इस्राएली केवल यहोवा की सेवा करने लगे।

5 शमूएल ने कहा, “सभी इस्राएली मिस्पा में इकट्ठे हों। मैं तुम्हारे लिये यहोवा से प्रार्थना करूँगा।”

6 इस्राएली मिस्पा में एक साथ इकट्ठे हुए। वे जल लाये और यहोवा के सामने वह जल चढ़ाया। इस प्रकार उन्होंने उपवास का समय आरम्भ किया। उन्होने उस दिन भोजन नहीं किया और उन्होंने अपने पापों को स्वीकार किया। उन्होंने कहा, “हम लोगों ने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है।” इस प्रकार शमूएल ने मिस्पा में इस्राएल के न्यायाधीश के रूप में काम किया।

7 पलिश्तियों ने यह सुना कि इस्राएली मिस्पा में इकट्ठा हो रहे हैं। पलिश्ती शासक इस्राएलियों के विरूद्ध आक्रमण करने गये। इस्राएलियों ने सुना कि पलिश्ती आ रहे हैं, और वे डर गए। 8 इस्राएलियों ने शमूएल से कहा, “हमारे परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना हमारे लिये करना बन्द मत करो। यहोवा से माँगो कि वह पलिश्तियों से हमारी रक्षा करे!”

9 शमूएल ने एक मेमना लिया। उसने यहोवा की होमबलि के रुप में मेमने को जलाया। शमूएल ने यहोवा से इस्राएल के लिये प्रार्थना की । यहोवा ने शमूएल की प्रार्थना का उत्तर दिया। 10 जिस समय शमूएल बलि जला रहा था, पलिश्ती इस्राएल से लड़ने आये। किन्तु यहोवा ने पलिश्तियों के समीप प्रचण्ड गर्जना उत्पन्न की। इसने पलिश्तियों को अस्त व्यस्त कर दिया। गर्जना ने पलिश्तियों को भयभीत कर दिया और वे अस्त व्यस्त हो गये। उनके प्रमुख उन पर नयन्त्रण न रख सके। इस प्रकार पलिश्तियों को इस्राएलियों ने युद्ध में पराजित कर दिया। 11 इस्राएल के लोग मिस्पा से बाहर दौड़े और पलिश्तियों का पीछा किया। उन्होंने लगातार बेत कर तक उनका पीछा किया। उन्होंने पूरे रास्ते पलिश्ती सैनिकों को मारा।

इस्राएल में शान्ति स्थापित हुई

12 इसके बाद, शमूएल ने एक विशेष पत्थर स्थापित किया। उसने यह इसलिऐ किया कि लोग याद रखें कि परमेश्वर ने क्या किया। शमूएल ने पत्थर को मिस्पा और शेन के बीच रखा। शमूएल ने पत्थर का नाम “सहायता का पत्थर” रखा। शमूएल ने कहा, “यहोवा ने लगातार पूरे रास्ते इस स्थान तक हमारी सहायता की।”

13 पलिश्ती पराजित हुए। वे इस्राएल देश में फिर नहीं घुसे। शमूएल के शेष जीवन में, यहोवा पलिश्तियों के विरुद्ध रहा। 14 पलिश्तियों ने इस्राएल के नगर ले लिये थे। पलिश्तियों ने एक्रोन से गत तक के क्षेत्र के नगरों को ले लिया था। किन्तु इस्राएलियों ने इन्हें जीत कर वापस ले लिया और इस्राएल ने इन नगरों के चारों ओर की भूमि को भी वापस ले लिया।

और इस्राएलियों और एमोरियों के बीच भी शान्ति हो गई।

15 शमूएल ने अपने पूरे जीवन भर इस्राएल का मार्ग दर्शन किया। 16 शमूएल एक स्थान से दूसरे स्थान तक इस्राएल के लोगों का न्याय करता हुआ गया। हर वर्ष उसने देश के चारों ओर यात्रा की। वह गिलगाल, बेतेल और मिस्पा को गया। अत: उसने इन सभी स्थानों पर इस्राएली लोगों का न्याय और उन पर शासन किया। 17 किन्तु शमूएल का घर रामा में था। इसलिए शमूएल सदा रामा को लौट जाता था। शमूएल ने उसी नगर से इस्राएल का न्याय और शासन किया और शमूएल ने रामा में यहोवा के लिये एक वेदी बनाई।

समीक्षा

शांती के लिए प्रार्थना करें

परमेश्वर कभी भी आपकी प्रार्थना को नहीं भूलते हैं, हो सकता है कि शायद से आप भूल जाएं. हो सकता है कि चीजें जो आज आपके साथ हैं उन प्रार्थनाओं के कारण जो आपने सालों पहले की थी और आप उनके विषय में सबकुछ भूल गए हैं. लेकिन परमेश्वर अब भी अपने समय में उन पर काम कर रहे हैं. प्रार्थनाओं का संग्रह करते रहे. लगातार प्रार्थना प्रबल होती है.

पुराने नियम में, परमेश्वर का संदूक वह स्थान था जहाँ पर परमेश्वर मुख्य रूप से उपस्थित थे, और यह परमेश्वर की महिमा का स्थान था. कल हमने पढ़ा कि 'इस्राएल से महिमा चली गई है क्योंकि परमेश्वर के संदूक को ले लिया गया है' (4:22).

कभी कभी हमें बहुत देर तक रूकना पड़ता है ताकि परमेश्वर कार्य करें और हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दें. 'बहुत दिन हुए, अर्थात् बीस वर्ष बीत गए, और इस्राएल का सारा घराना विलाप करता हुआ यहोवा के पीछे चलने लगा' (7:2). मैं सोचता हूँ कि हमने बहुत देर तक प्रार्थना की है यदि हमने एक सप्ताह प्रार्थना की है, लेकिन उन्होंने अपने देश के लिए बीस वर्ष प्रार्थना की तब परमेश्वर ने कार्य किया.

छुटकारे के मार्ग की अक्सर शुरुवात हेती है जब हम अपने पूरे हृदय से परमेश्वर के पास वापस लौटते हैं. शमुएल ने कहा, 'यदि तुम अपने पूर्ण मन से यहोवा की ओर फिरे हों, तो पराए देवताओं और अश्तोरेत देवियों को अपने बीच में से दूर करो, और यहोवा की ओर अपना मन लगाकर केवल उसी की उपासना करो, तब वह तुम्हें पलिश्तियों के हाथ से छुड़ाएगा.' उन्होंने ऐसा किया. 'तब इस्रालियों ने बाल देवताओं और अश्तोरेत देवियों को दूर किया, और केवल यहोवा की उपासना करने लगे' (7:3-4, एम.एस.जी.).

पहली चीज जो आपको अपने जीवन में करने की आवश्यकता है जब आप परमेश्वर की उपस्थिति और सहायता को खोज रहे हैं, तो हर उस चीज को दूर करें जो परमेश्वर से आपके ध्यान को हटाता है.

परमेश्वर की ओर फिरने के बाद, वहाँ पर घोषणा और पश्चाताप के एक समय की आवश्यकता थी, जो कि उनके उपवास के द्वारा दिखाया गयाः'उस दिन उपवास किया, और वहाँ कहने लगे, 'हमने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है' (व.6).

अंत में, यह शमुएल की मध्यस्थता और प्रार्थना में बीस वर्षों तक लगातार बने रहना था जिसने परमेश्वर के लोगों को विजय दिलाई. शमुएल ने कहा, 'मैं तुम्हारे लिए परमेश्वर से विनती करुंगा' (व.5). उन्होंने कहा, 'हमारे लिये हमारे परमेश्वर यहोवा की दोहाई देना न छोड़, जिससे वह हम को पलिश्तियों के हाथ से बचाए' (व.8, एम.एस.जी). शमुएल 'ने इस्रालियों के लिये यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने उनकी सुन ली' (व.9).

उन्होंने पहचाना कि प्रार्थना का एक अद्भुत उत्तर थाः'यहाँ तक यहोवा ने हमारी सहायता की है' (व.12). 'पलिश्तीयों की ताकत से वे छुड़ाए गए और उस देश में शांति आ गई' (व.13).

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं फिर से अपने आपको आपके हाथों में सौंपता हूँ ताकि केवल आपकी सेवा करुँ. मेरे और सभी लोगों के पापों को क्षमा करें. मैं आपसे छुटकारे और शांती की दोहाई देता हूँ. होने दीजिए कि इस देश में बहुत से लोग यीशु में अपना विश्वास रखने पाए.

पिप्पा भी कहते है

1शमुएल 5:4

'फिर अगले दिन जब वे तड़के उठे, तब क्या देखा कि दागोन यहोवा के संदूक के सामने औंधे मुंह भूमि पर गिर पड़ा है; और दागोन का सिर और दोनों हथेलियाँ डेवढ़ी पर कटी हुई पड़ी हैं; इस प्रकार दागोन का केवल धड़ समूचा रह गया.'

जब परमेश्वर की उपस्थिति एक स्थान में होती है, तब परमेश्वर की सामर्थ मुक्त होती है और झूठी मूर्तियाँ गिरकर जमीन पर गिर जाती हैं.

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संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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