आपके जीवन का प्रेम
परिचय
फरवरी 1977 में, बिशप फेस्टो किवेंगर चर्च लीडर्स समूह के एक भाग थे, जिन्होंने विरोध के एक पत्र को तानाशाह शासक, एदि आमिन तक पहुँचाया, उस समय युगांडा में होने वाली पिटाई, मनमानी हत्या और लोगों के लापता होने के विरोध में बोलते हुए। अगले दिन, फेस्टो किवेंजर के मित्र और लीडर, प्रधानबिशप जनानी लुवूम की हत्या करवा दी गई एदि अमिन के द्वारा और बिशप छिप गए और फिर निर्वासित हो गए।
थोड़े समय बाद, फेस्टो किवेंगर ने 'मैं एलि आमिन से प्रेम करता हूँ' नामक पुस्तक प्रकाशित की। पुस्तक में उन्होने असाधारण शीर्षक को समझायाः 'पवित्र आत्मा ने मुझे दिखाया कि मैं अपनी आत्मा में कठोर बनता जा रहा था...इसलिए मुझे परमेश्वर से क्षमा माँगनी पड़ी और प्रेसीडेंट आमिन को और अधिक प्रेम करने के लिए अनुग्रह को मांगना पड़ा...यह मेरी थकी आत्मा के लिए ताजी हवा थी। मैं जानता था कि मैंने परमेश्वर को देखा था और मुक्त हो चुका थाः मेरा हृदय प्रेम से भर गया।'
प्रेम एक एहसास या एक भावना से बढ़कर है। यह एक निर्णय है कि हम एक –दूसरे के साथ किस तरह से बर्ताव करते हैं। विश्व के इतिहास में यीशु प्रेम के मुख्य उदाहरण थे। वह हमें कहते हैं कि परमेश्वर से प्रेम करो, एक दूसरे से प्रेम करो (यूहन्ना 13:34-35), अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो और अपने शत्रुओं से भी प्रेम करो। उन्होंने अपने जीवन में इन सभी चीजों को दिखाया, सभी से प्रेम करने के द्वारा (यहाँ तक कि यहूदा से जिसने उसे पकड़वाया था, जैसा कि हमने आज के लेखांश में देखा है), और प्रेम में हम सभी के लिए अपना जीवन देने के द्वारा।
भजन संहिता 66:13-20
13-14 इसलिए में तेरे मन्दिर में बलियाँ चढ़ाने लाऊँगा।
जब मैं विपति में था, मैंने तेरी शरण माँगी
और मैंने तेरी बहुतेरी मन्नत मानी।
अब उन सब वस्तुओं को जिनकी मैंने मन्नत मानी, अर्पित करता हूँ।
15 तुझको पापबलि अर्पित कर रहा हूँ,
और मेढ़ों के साथ सुगन्ध अर्पित करता हूँ।
तुझको बैलों और बकरों की बलि अर्पित करता हूँ।
16 ओ सभी लोगों, परमेश्वर के आराधकों।
आओ, मैं तुम्हें बताऊँगा कि परमेश्वर ने मेरे लिए क्या किया है।
17-18 मैंने उसकी विनती की।
मैंने उसका गुणगान किया।
मेरा मन पवित्र था,
मेरे स्वामी ने मेरी बात सुनी।
19 परमेश्वर ने मेरी सुनी।
परमेश्वर ने मेरी विनती सुन ली।
20 परमेश्वर के गुण गाओ।
परमेश्वर ने मुझसे मुँह नहीं मोड़ा। उसने मेरी प्रार्थना को सुन लिया।
परमेश्वर ने निज करूणा मुझपर दर्शायी।
समीक्षा
परमेश्वर से प्रेम करें
जब आप परेशानी में होते हैं तब क्या आप एक वायदा करते हैं कि यदि परमेश्वर आपकी प्रार्थना का उत्तर दें तो आप कुछ करेंगे (...या आप कोई ऐसी चीज फिर कभी नहीं करेंगे!)? भजनसंहिता के लेखक ने ऐसा एक वायदा किया – और जब उनकी प्रार्थना का उत्तर आया तब उन्होंने वायदे को पूरा किया। उन्होंने लिखा, 'मैं उन मन्नतों को आपके लिये पूरी करुँगा, जो मैंने मुँह खोलकर मांगी, और संकट के समय कही थी' (वव.13-14)।
परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं। वह आपसे अपने प्रेम को दूर नहीं रखते हैं। भजनसंहिता के लेखक परमेश्वर की स्तुति करते हैं:'धन्य हैं परमेश्वर, जिन्होने न तो मेरी प्रार्थना अनसुनी की, और न मुझ से अपनी करुणा दूर की' (व.20, एम.एस.जी.)। परमेश्वर के लिए और दूसरों के लिए आपका प्रेम, आपके लिए परमेश्वर के प्रेम का एक उत्तर है।
'हम प्रेम करते हैं क्योंकि उन्होने पहले हमसे प्रेम किया' (1यूहन्ना 4:19)। परमेश्वर, आपके लिए अपने प्रेम में, आपकी प्रार्थनाओं को सुनते हैं और उत्तर देते हैं। यदि आप परिपूर्णता तक परमेश्वर के प्रेम का आनंद लेना चाहते हैं, प्रार्थनाओं के उत्तर अनुभव करना चाहते हैं और परमेश्वर के लिए अपने प्रेम को दिखाना चाहते हैं, तो आपको एक चीज मना करनी हैः भजनसंहिता के लेखक लिखते हैं, 'यदि मैं मन में अनर्थ की बात सोचता, तो प्रभु मेरी न सुनता' (भजनसंहिता 66:18)।
यदि भूतकाल में कोई पाप हुआ है,तो आप इसे मान सकते हैं और पश्चाताप कर सकते हैं और क्षमा पा सकते हैं। यदि हम भविष्य में सोच-समझकर पाप करने की योजना बनाते हैं, तो यह परमेश्वर के साथ हमारे संबंध में बाधा डालता है। तब हम एक स्पष्ट विवेक के साथ परमेश्वर की उपस्थिति में नहीं आ सकते हैं। यह उनके प्रेम के अनुभव में बाधा डालता है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने अपने प्रेम में 'परमेश्वर ने तो सुना है; उसने मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दिया है' (व.19), इसके प्रति उत्तर में भजनसंहिता के लेखक चाहते हैं कि दूसरे उनकी सुनेः'हे परमेश्वर के सब डरवैयो, आकर सुनो, मैं बताऊँगा कि उसने मेरे लिये क्या क्या किया है' (व.16)। लोगों की गवाहियों को सुनना बहुत उत्साहित करता है कि परमेश्वर ने उनके जीवन में क्या क्या किया है। यह हम सभी को उत्साहित करता है और हमारे विश्वास को बढ़ाता है।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपकी क्षमा, दया और प्रेम के लिए आपका धन्यवाद। उन बहुत से समयों के लिए आपका धन्यवाद जब आपने प्रार्थना में मेरी आवाज को सुना है और उत्तर दिया है (व.19)। 'धन्य है परमेश्वर, जिसने न तो मेरी प्रार्थना अनसुनी की, और न मुझ से अपनी करुणा दूर की है' (व.20)।
यूहन्ना 13:18-38
18 “मैं तुम सब के बारे में नहीं कह रहा हूँ। मैं उन्हें जानता हूँ जिन्हें मैंने चुना है (और यह भी कि यहूदा विश्वासघाती है) किन्तु मैंने उसे इसलिये चुना है ताकि शास्त्र का यह वचन सत्य हो, ‘वही जिसने मेरी रोटी खायी मेरे विरोध में हो गया।’ 19 अब यह घटित होने से पहले ही मैं तुम्हें इसलिये बता रहा हूँ कि जब यह घटित हो तब तुम विश्वास करो कि वह मैं हूँ। 20 मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ कि वह जो किसी भी मेरे भेजे हुए को ग्रहण करता है, मुझको ग्रहण करता है। और जो मुझे ग्रहण करता है, उसे ग्रहण करता है जिसने मुझे भेजा है।”
यीशु का कथन: मरवाने के लिये उसे कौन पकड़वायेगा
21 यह कहने के बाद यीशु बहुत व्याकुल हुआ और साक्षी दी, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, तुम में से एक मुझे धोखा देकर पकड़वायेगा।”
22 तब उसके शिष्य एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। वे निश्चय ही नहीं कर पा रहे थे कि वह किसके बारे में कह रहा है। 23 उसका एक शिष्य यीशु के निकट ही बैठा हुआ था। इसे यीशु बहुत प्यार करता था। 24 तब शमौन पतरस ने उसे इशारा किया कि पूछे वह कौन हो सकता है जिस के विषय में यीशु बता रहा था।
25 यीशु के प्रिय शिष्य ने सहज में ही उसकी छाती पर झुक कर उससे पूछा, “हे प्रभु, वह कौन है?”
26 यीशु ने उत्तर दिया, “रोटी का टुकड़ा कटोरे में डुबो कर जिसे मैं दूँगा, वही वह है।” फिर यीशु ने रोटी का टुकड़ा कटोरे में डुबोया और उसे उठा कर शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा को दिया। 27 जैसे ही यहूदा ने रोटी का टुकड़ा लिया उसमें शैतान समा गया। फिर यीशु ने उससे कहा, “जो तू करने जा रहा है, उसे तुरन्त कर।” 28 किन्तु वहाँ बैठे हुओं में से किसी ने भी यह नहीं समझा कि यीशु ने उससे यह बात क्यों कही। 29 कुछ ने सोचा कि रुपयों की थैली यहूदा के पास रहती है इसलिए यीशु उससे कह रहा है कि पर्व के लिये आवश्यक सामग्री मोल ले आओ या कह रहा है कि गरीबों को वह कुछ दे दे।
30 इसलिए यहूदा ने रोटी का टुकड़ा लिया। और तत्काल चला गया। यह रात का समय था।
अपनी मृत्यु के विषय में यीशु का वचन
31 उसके चले जाने के बाद यीशु ने कहा, “मनुष्य का पुत्र अब महिमावान हुआ है। और उसके द्वारा परमेश्वर की महिमा हुई है। 32 यदि उसके द्वारा परमेश्वर की महिमा हुई है तो परमेश्वर अपने द्वारा उसे महिमावान करेगा। और वह उसे महिमा शीघ्र ही देगा।”
33 “हे मेरे प्यारे बच्चों, मैं अब थोड़ी ही देर और तुम्हारे साथ हूँ। तुम मुझे ढूँढोगे और जैसा कि मैंने यहूदी नेताओं से कहा था, तुम वहाँ नहीं आ सकते, जहाँ मैं जा रहा हूँ, वैसा ही अब मैं तुमसे कहता हूँ।
34 “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक दूसरे से प्रेम करो। जैसा मैंने तुमसे प्यार किया है वैसे ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम करो। 35 यदि तुम एक दूसरे से प्रेम रखोगे तभी हर कोई यह जान पायेगा कि तुम मेरे अनुयायी हो।”
यीशु का वचन-पतरस उसे पहचानने से इन्कार करेगा
36 शमौन पतरस ने उससे पूछा, “हे प्रभु, तू कहाँ जा रहा है?”
यीशु ने उसे उत्तर दिया, “तू अब मेरे पीछे नहीं आ सकता। पर तू बाद में मेरे पीछे आयेगा।”
37 पतरस ने उससे पूछा, “हे प्रभु, अभी भी मैं तेरे पीछे क्यों नहीं आ सकता? मैं तो तेरे लिये अपने प्राण तक त्याग दूँगा।”
38 यीशु ने उत्तर दिया, “क्या? तू अपना प्राण त्यागेगा? मैं तुझे सत्य कहता हूँ कि जब तक तू तीन बार इन्कार नहीं कर लेगा तब तक मुर्गा बाँग नहीं देगा।”
समीक्षा
एक - दूसरे से प्रेम करें
मसीहों के बीच में प्रेम की कमी से बढ़कर कुछ भी यीशु के संदेश में अड़चन नहीं डालता है। यदि हमारे देश को बदलना है, यदि लोगों को यीशु के पीछे ले जाना है, तो हमें अवश्य ही एक दूसरे से प्रेम करना शुरु करना है। इसका अर्थ है विभिन्न चर्च, समुदाय, संस्कृति के मसीहों से प्रेम करना।
इसका अर्थ है स्थानीय कलीसिया में एक – दूसरे से प्रेम करना।यह को फूट नष्ट करती है। प्रेम जोड़ता है। प्रेम दूसरों को यीशु के व्यक्तित्व की ओर आकर्षित करता है। परमेश्वर से प्रेम करना और यीशु के नाम में एक दूसरे से प्रेम करना, सबसे अधिक हमारा अभिप्राय होना चाहिए। यही प्रेम का वह प्रकार है जो विश्व को बदल सकता है।
यहाँ पर तीन मनुष्य हैं (यहूदा, पतरस और यूहन्ना के सुसमाचार का लेखक) जो यीशु के साथ एक अलग संबंध में था। हमारे जीवन में अलग समय पर वे हममें से हर एक को दर्शाते हैं।
यूहन्ना के सुसमाचार के लेखक यीशु के प्रेम को एक बहुत ही घनिष्ठ तरीके से जानते थे। सभी चेलों में, वह यीशु के नजदीकी मित्र थे। वह उनकी बगल में बैठते थे (व.23)। इस सुसमाचार में, चार बार, यूहन्ना अपना वर्णन 'चेला जिससे यीशु ने प्रेम किया' के रूप में करते हैः यहाँ पर (व.23), क्रूस पर (19:26), खाली कब्र पर (20:2) और जी उठे यीशु के साथ (21:20)। वह प्रकट करते हैं कि हम यीशु के साथ नजदीकी संगति में बुलाए गए हैं।
यीशु के प्रेम के इस आत्मिक अनुभव के कारण, यूहन्ना का सुसमाचार और पत्रियाँ प्रेम के विषय में बहुत कुछ बताते हैं। वह बताते हैं कि यीशु ने अपने चेलों से कहा, ' मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ कि एक दूसरे से प्रेम रखो; जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो' (13:34-35)।
विभिन्न कारणों से लोग प्रेम करने में असफल हो जाते हैं। यीशु के बहुत नजदीकी होने के बावजूद यहूदा यीशु को पकड़वाते हैं:' जो मेरी रोटी खाता है, उसने मुझ पर लात उठाई' (व.18)। शैतान ने उसमें प्रवेश किया (व.27)। यहाँ पर हम प्रेम की विपरीत स्थिति को देखते हैं। यहूदा ने प्रेम से नफरत की। उसने यीशु के विरूद्ध विद्रोह किया। फिर भी यीशु यहूदा से प्रेम करते थे।
पतरस ने यीशु से प्रेम किया। लेकिन वह यीशु के मानवीय दर्शन और उनके मिशन का एक बहुत ही जटिल व्यक्तित्व था। पतरस ने कहा कि वह यीशु के लिए अपनी जान दे देंगे (व.37), लेकिन यीशु उनसे कहते हैं, 'तू तीन बार मुझे नकारेगा' (व.38)। और पतरस ने यही किया (18:15-18,25-27)। फिर भी यीशु ने पतरस से प्रेम किया।
यीशु हमारे सामने यह अद्भुत चुनौती रखते हैं:'जैसा मैंने तुमसे प्रेम किया है, वैसे ही तुम्हें भी एक –दूसरे से प्रेम करना है' (13:34)। आपके लिए अपना जीवन देने के द्वारा यीशु ने आपसे प्रेम किया। वह कहते हैं कि आपको उनके उदाहरण के पीछे चलना है और स्वयं –बलिदान वाला प्रेम दर्शाना है। यह एक सच्चे मसीह का चिह्न है। ' यदि आपस में प्रेम रखोगे, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो' (व.35)।
प्रेम, सुसमाचार के प्रचार का सबसे प्रभावशाली माध्यम है। जब लोग सच्चे प्रेम को देखते हैं तब वे परमेश्वर को देखते हैं। लोगों को यीशु के बारे में बताने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है उनसे प्रेम करना और यीशु के दूसरे अनुयायियों से प्रेम करना।
सामान्य रूप से, विश्व में, लोग उन लोगों के साथ समूह में जुड़ते हैं जिनसे वे स्वाभाविक रूप से आकर्षित होते हैं और जो उनकी तरह ही सोचते हैं। हम अलग हैं। यीशु मसीह का चर्च विभिन्न लोगों को एक साथ लाता है, विभिन्न परिवार वाले, विभिन्न रूची रखने वाले, विभिन्न उम्र वाले, जाति, प्रजाति, दृष्टिकोण, जीवनशैली, राय और नजरीये वाले लोग सभी जो एक दूसरे से प्रेम रखते हैं।
प्रार्थना
परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि हम एक दूसरे से प्रेम करें जैसा कि आपने हमसे प्रेम किया है। होने दीजिए कि हम सभी चर्च में, समुदायों में और स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चर्च की संस्कृति में मसीहों के बीच में एक नये प्रेम को देखें। होने दीजिए कि हमारे प्रेम के द्वारा विश्व बदल जाए।
1 शमूएल 13:1-14:23
शाऊल अपनी पहली गलती करता है
13अब तक, शाऊल एक वर्ष तक राज्य कर चुका था और फिर जब शाऊल इस्राएल पर दो वर्ष शासन कर चुका, 2 उसने इस्राएल से तीन हजार व्यक्ति चुने। उनमें दो हजार वे व्यक्ति थे जो बेतेल के पहाड़ी प्रदेश के मिकमाश में उसके साथ ठहरे थे और एक हजार वे व्यक्ति थे जो बिन्यामीन के अंतर्गत गिबा में योनातान के साथ ठहरे थे। शाऊल ने सेना के अन्य सैनिकों को उनके अपने घर भेज दिया।
3 योनातान ने गिबा में जाकार पलिश्तियों को उनके डेरे में हराया। पलिश्तियों ने इसके बारे में सुना। उन्होंने कहा, “हिब्रुओं ने विद्रोह किया है।”
शाऊल ने कहा, “जो कुछ हुआ है उसे हिब्रू लोगों को सुनाओ।” अत: शाऊल ने लोगों से कहा कि वे पूरे इस्राएल देश में तुरही बजायें। 4 सभी इस्राएलियों ने वह समाचार सुना। उन्होने कहा, “शाऊल ने पलिश्ती सेना प्रमुख को मार डाला है। अब पलिश्ती सचमुच इस्राएलियों से घृणा करते हैं!”
इस्राएली लोगों को शाऊल से जुड़ने के लिये गिलगाल में बुलाया गया। 5 पलिश्ती इस्राएल से लड़ने के लिए इकट्ठे हुए। पलिश्तियों के पास छ: हजार रथ और तीन हजार घुड़सवार थे। वहाँ इतने अधिक पलिश्तिी सैनिक थे जितने सागर तट पर बालू के कण। पलिश्तियों ने मिकमाश में डेरा डाला। (मिकमाश बेतावेन के पूर्व है।)
6 इस्राएलियों ने देखा कि वे मुसीबत में हैं। उन्होंने अपने को जाल में फँसा अनुभव किया। वे गुफाओं और चट्टानों, के अन्तरालों में छिपने के लिए भाग गये। वे चट्टानों, कुँओं और जमीन के अन्य गढ्ढों में छिप गये। 7 कुछ हिब्रू यरदन नदी पार कर गाद और गिलाद प्रदेश में भी भाग गए। शाऊल तब तक गिलगाल में था। उसकी सेना के सभी सैनिक भय से काँप रहे थे।
8 शमूएल ने कहा कि वह शाऊल से गिलगाल में मिलेगा। शाऊल ने वहाँ सात दिन तक प्रतीक्षा की। किन्तु शमूएल तब भी गिलगाल नहीं पहुँचा था और सैनिक शाऊल को छोड़ने लगे। 9 इसलिए शाऊल ने कहा, “मेरे लिए होमबलि और मेलबलि लाओ।” तब शाऊल ने होमबलि चढ़ायी। 10 ज्योंही शाऊल ने बलि भेंट चढ़ानी समाप्त की, शमूएल आ गया। शाऊल उससे मिलने गया।
11 शमूएल ने पूछा, “यह तुमने क्या कर दिया?” शाऊल ने उत्तर दिया, “मैंने सैनिकों को अपने को छोड़ते देखा और तुम तब तक यहाँ नहीं थे, और पलिश्ती मिकमाश में इकट्ठा हो रहे थे।” 12 मैंने अपने मन में सोचा, “पलिश्ती यहाँ गिलगाल में आकर मुझ पर आक्रमण करेंगे और मैंने अब तक यहोवा से हमारी सहायता करने के लिये याचना नहीं की है। अत: मैंने अपने को विवश किया और मैंने होमबलि चढ़ाई।”
13 शमूएल ने कहा, “तुमने मूर्खता का काम किया! तुमने अपने परमेश्वर यहोवा के आदेश का पालन नहीं किया। यदि तुमने परमेश्वर के आदेश का पालन किया होता तो परमेश्वर ने तुम्हारे परिवार को सदा के लिये इस्राएल पर शासन करने दिया होता। 14 किन्तु अब तुम्हारा राज्य आगे नहीं चलेगा। यहोवा ऐसे व्यक्ति की खोज में था जो उसकी आज्ञा का पालन करना चाहता हो। यहोवा ने उस व्यक्ति को पा लिया है और यहोवा उसे अपने लोगों का नया प्रमुख होने के लिये चुनेगा। तुमने यहोवा के आदेश का पालन नहीं किया इसलिए यहोवा नया प्रमुख चुनेगा।” 15 तब शमूएल उठा और उसने गिलगाल को छोड़ दिया।
मिकमाश का युद्ध
शाऊल और उसकी बची सेना ने गिलगाल को छोड़ दिया। वे बिन्यामीन में गिबा को गये। शाऊल ने उन व्यक्तियों को गिना जो आब तक उसके साथ थे। वहाँ लगभग छः सौ पुरुष थे। 16 शाऊल, उसका पुत्र योनातान और सैनिक बिन्यामीन में गिबा को गए।
पलिश्तियों ने मिकमाश में डेरा डाला था। 17 पलिश्तियों ने उस क्षेत्र में रहने वाले इस्राएलियों को दण्ड देने का निश्चय किया। अत: उनकी शक्तिशाली सेना ने आक्रमण करने के लिए अपना स्थान छोड़ दिया। पलिश्ती सेना तीन टुकड़ियों में बँटी थी। एक टुकड़ी उत्तर को ओप्रा को जाने वाली सड़क से शुआल के क्षेत्र में गई। 18 दूसरी टुकड़ी दक्षिण—पूर्व बेथोरोन को जाने वाली सड़क पर गई और तीसरी टुकड़ी पूर्व में सीमा तक जाने वाली सड़क से गई। यह सड़क सबोईम की घाटी में मरुभूमि की ओर खुलती थी।
19 इस्राएली लोगों में से कोई भी लोहे की चीजें नहीं बना सकता था। उन दिनों इस्राएल में लोहार नहीं थे। पलिश्ती इस्राएलियों को लोहे की चीज़ें बनाना नहीं सिखाते थे क्योंकि पलिश्ती डरते कि इस्राएली कहीं लोहे की तलवारें और भाले न बनाने लग जायें। 20 केवल पलिश्ती ही लोहे के औजारों पर धार चढ़ा सकते थे। अत: यदि इस्राएली अपने हल की फली, कुदाली, कुल्हाड़ी या दँराती पर धार चढ़ाना चाहते तो उन्हें पलिश्तियों के पास जाना पड़ता था। 21 पलिश्ती लोहार एक तिहाई औंस चाँदी हल की फली और कुदाली पर धार चढ़ाने के लिये लेते थे और एक छटाई औंस चाँदी फावड़ी, कुल्हाड़ी और बैलों को चलाने की साँटी के लोहे के सिरे पर धार चढ़ाने के लिये लेते थे। 22 इसलिए युद्ध के दिन शाऊल के इस्राएली सैनिकों में से किसी के पास लोहे की तलवार या भाले नहीं थे। केवल शाऊल और उसके पुत्र योनातान के पास लोहे के शस्त्र थे।
23 पलिश्ती सैनिकों की एक टुकड़ी मिकमाश के दर्रे की रक्षा कर रही थी।
योनातान पलिश्तियों पर आक्रमण करता है
14उस दिन, शाऊल का पुत्र योनातान उस युवक से बात कर रहा था, जो उसके शस्त्रों को ले कर चलता था। योनातान ने कहा, “हम लोग घाटी की दूसरी ओर पलिश्तियों के डेरे पर चलें।” किन्तु योनातान ने अपने पिता को नहीं बताया।
2 शाऊल एक अनार के पेड़ के नीचे पहाड़ी के सिरे पर मिग्रोन में बैठा था। यह उस स्थान पर खलिहान के निकट था। शाऊल के साथ उस समय लगभग छः सौ योद्धा थे। एक व्यक्ति का नाम अहिय्याह था। 3 एली शीलो में यहोवा का याजक रह चुका था। अब वह अहिय्याह याजक था। अहिय्याह अब एपोद पहनता था। अहिय्याह ईकाबोद के भाई अहीतूब का पुत्र था। ईकाबोद पीनहास का पूत्र था। पीनहास एली का पुत्र था।
4 दर्रे के दोनों ओर एक विशाल चट्टान थी। योनातान ने पलिश्ती डेरे में उस दर्रे से जाने की योजना बनाई। विशाल चट्टान के एक तरफ बोसेस था और उस विशाल चट्टान के दूसरी तरफ सेने था। 5 एक विशाल चट्टान उत्तर की मिकमाश को देखती सी खड़ी थी। दूसरी विशाल चट्टान दक्षिण की तरफ गिबा की ओर देखती सी खड़ी थी।
6 योनातान ने अपने उस युवक सहायक से कहा जो उस के शस्त्र को ले चलता था, “आओ, हम उन विदेशियों के डेरे में चले। संभव है यहोवा हम लोगों का उपयोग इन लोगों को पराजित करने में करे। यहोवा को कोई नहीं रोक सकता इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता है कि हमारे पास बहुत से सैनिक हैं या थोड़े से सैनिक।”
7 योनातान के शस्त्र वाहक युवक ने उससे कहा, “जैसा तुम सर्वोत्तम समझो करो। मैं सब तरह से तुम्हारे साथ हूँ।”
8 योनातान ने कहा, “हम चलें! हम लोग घाटी को पार करेंगे और उन पलिश्ती रक्षकों तक जायेंगे। हम लोग उन्हें अपने को देखने देंगे। 9 यदि वे हमसे कहते हैं ‘तुम वहीं रुको जब तक हम तुम्हारे पास आते हैं,’ तो हम लोग वहीं ठहरेंगे, जहाँ हम होंगे। हम उनके पास नहीं जायेंगे। 10 किन्तु यदि पलिश्ती लोग यह कहते हैं, ‘हमारे पास आओ’ तो हम उनके पास तक चढ़ जायेंगे। क्यों? क्योंकि यह परमेश्वर की ओर से एक संकेत होगा। उसका अर्थ यह होगा कि यहोवा हम लोगों को उन्हें हराने देगा।”
11 इसलिये योनातान और उसके सहायक ने अपने को पलिश्ती द्वारा देखने दिया। पलिश्ती रक्षकों ने कहा, “देखो! हिब्रू उन गकों से निकल कर आ रहे हैं जिनमें वे छिपे थे।” 12 किले के पलिश्ती योनातान और उसके सहायक के लिये चिल्लाये “हमारे पास आओ। हम तुम्हें अभी पाठ पढ़ाते हैं!”
योनातान ने अपने सहायक से कहा, “पहाड़ी के ऊपर तक मेरा अनुसरण करो। यहोवा ने इस्राएल के लिये पलिश्तियों को दे दिया है!”
13-14 इसलिये योनातान ने अपने हाथ और पैरों का उपयोग पहाड़ी पर चढ़ने के लिये किया। उसका सहायक ठीक उसके पीछे चढ़ा। योनातान और उसके सहायक ने उन पलिश्तियों को पराजित किया। पहले आक्रमण में उन्होंने लगभग आधे एकड़ क्षेत्र में बीस पलिश्तियों को मारा। योनातान उन लोगों से लड़ा जो सामने से आक्रमण कर रहे थे और योनातान का सहायक उसके पीछे से आया और उन व्यक्तियों को मारता चला गया जो अभी केवल घायल थे।
15 सभी पलिश्ती सैनिक, रणक्षेत्र के सैनिक, डेरे के सैनिक और किले के सैनिक आतंकित हो गये। यहाँ तक की सर्वाधिक वीर योद्धा भी आतंकित हो गये। धरती हिलने लगी और पलिश्ती सैनिक भयानक ढंग से डर गये!
16 शाऊल के रक्षकों ने बिन्यामीन देश में गिबा के पलिश्ती सैनिकों को विभिन्न दिशाओं में भागते देखा। 17 शाऊल ने अपने साथ की सेना से कहा, “सैनिकों को गिनो। मैं यह जानना चाहता हूँ कि डेरे को किसने छोड़ा।”
उन्होंने सैनिकों को गिना। योनातान और उसका सहायक चले गये थे।
18 शाऊल ने अहिय्याह से कहा, “परमेश्वर का पवित्र सन्दूक लाओ!” (उस समय परमेश्वर का पवित्र सन्दूक इस्राएलियों के साथ था।) 19 शाऊल याजक अहिय्याह से बातें कर रहा था। शाऊल परमेश्वर के मार्गदर्शन की प्रतीक्षा कर रहा था। किन्तु पलिश्ती डेरे में शोर और अव्यवस्था लगातार बढ़ती जा ही थी। शाऊल धैर्य खो रहा था। अन्त में शाऊल ने याजक अहिय्याह से कहा, “काफी हो चुका! अपने हाथ को नीचे करो और प्रार्थना करना बन्द करो!”
20 शाऊल ने अपनी सेना इकट्ठी की और युद्ध में चला गया। पलिश्ती सैनिक सचमुच घबरा रहे थे! वे अपनी तलवारों से आपस में ही एक दूसरे से युद्ध कर रहे थे।
21 वहाँ हिब्रू भी थे जो इसके पूर्व पलिश्तियों की सेवा में थे और जो पलिश्ती डेरे में रुके थे। किन्तु अब उन हिब्रुओं ने शाऊल और योनातान के साथ के इस्राएलियों का साथ दिया। 22 उन इस्राएलियों ने जो एप्रैम के पहाड़ी क्षेत्र में छिपे थे, पलिश्ती सैनिकों के भागने की बात सुनी। सो इन इस्राएलियों ने भी युद्ध में साथ दिया और पलिश्तियों का पीछा करना आरम्भ किया।
23 इस प्रकार यहोवा ने उस दिन इस्राएलियों की रक्षा की। युद्ध बेतावेन के परे पहुँच गया। सारी सेना शाऊल के साथ थी, उसके पास लगभग दस हजार पुरुष थे। एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के हर नगर में युद्ध का विस्तार हो गया था।
समीक्षा
परमेश्वर जैसा प्रेम करें
आपके जीवन में ऐसे समय आते हैं जब आप परेशानियों से घिरा हुआ महससू करते हैं – बीमारी, प्रलोभन, आपके विश्वास पर प्रहार और इसी तरह से –लेकिन परमेश्वर आपको बचा सकते हैं जब वह आपके पक्ष में कार्य करते हैं। चाहे आप अपने शत्रुओं के द्वारा कितने ही क्यों न घिर गए हो, जब परमेश्वर आपके पक्ष में कार्य करते हैं तब आप बच जाएँगे।
परमेश्वर पर भरोसा कीजिए केवल तब नहीं जब चीजें अच्छी तरह से हो रही हैं, किंतु कठिन समयों में भी। परमेश्वर विश्वास के पुरुषों और महिलाओं को खेज रहे हैं।
शमुएल ने कहा, 'यहोवा ने अपने लिये एक ऐसे पुरुष को ढूँढ लिया है जो उसके मन के अनुसार है; और यहोवा ने उसी को अपनी प्रजा पर प्रधान होने के लिए ठहराया है' (13:14)।
परमेश्वर का हृदय प्रेम, करुणा, दया, न्याय और रचनात्मकता से भरा हुआ है। वह ऐसे लोगों को खोज रहे हैं जो उनकी तरह हैं - यीशु की तरह। हमारे हृदय में पवित्र आत्मा का कार्य है जो हमें यीशु की तरह बना सकता है।
शाऊल असफल हो गए। परमेश्वर ने शाउल को शमुएल के आने तक रूकने के लिए कहा था। जब शमुएल को आने में देर हो गई, तब लोग बेचैन होने लगे। शाऊल ने इस बात की अधिक चिंता की कि लोग क्या सोचेंगे, इसके बजाय कि परमेश्वर क्या सोचेंगे। वह धैर्यहीन हो गए और घबराने लगे (वव.6-12), जैसा कि अक्सर हम हो जाते हैं। और अधिक धीरज रखना सीखें –परमेश्वर के कार्य करने का इंतजार करें –और यदि छोटी सी वस्तुएँ गलत हो जाती हैं, तो घबराईये मत। कठिन समय में जल्दबाजी में कठोर निर्णय ना लें।
दूसरी ओर, योनातान ने पूरी तरह से परमेश्वर के प्रेम पर भरोसा किया। उसने कहा, 'क्या जाने यहोवा हमारी सहायता करें; क्योंकि यहोवा के लिये कोई रूकावट नहीं, कि चाहे तो बहुत लोगों के द्वारा चाहे थोड़े लोगों के द्वारा छुटकारा दें' (14:6)।
प्रार्थना
परमेश्वर, कृपया मुझे अपने जैसा एक हृदय दें – प्रेम का एक हृदय। आपके असफल न होने वाले प्रेम पर भरोसा करने में मेरी सहायता कीजिए। आपका धन्यवाद क्योंकि आपका प्रेम पवित्र आत्मा के द्वारा मेरे हृदय में ऊँडेला गया है, जो कि मुझे दिया गया है (रोमियो 5:5)। परमेश्वर, कृपया आज अपना प्रेम मेरे हृदय में ऊँडेल दें।
पिप्पा भी कहते है
यूहन्ना 13:35
' यदि आप आपस में प्रेम रखोगे, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो'
मुझे याद है जब पहली बार मैं एक युवा मसीहों के समूह से मिला जो एक साथ काम कर रहे थे। मेरे प्रति और एक दूसरे के प्रति उनके बिना शर्त के प्रेम के द्वारा मैं बहुत ही आश्चर्यचकित हो गया कि मैं उस समूह का एक भाग बनना चाहता था। आशा करता हूँ कि लोग इसी चीज का अनुभव कर रहे हैं जब वे रविवार की सभा में आते हैं, अल्फा में आते हैं और चर्च के दूसरे समूहों में जुड़ते हैं।

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संदर्भ
फेस्टो किवेंगर, मैं एदि आमिन से प्रेम करता हूँ, (मार्शल, मोर्गन एण्ड स्कॉट, 1977)
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