अच्छी रीति से कैसे समाप्त करें
परिचय
आप अच्छी रीति से समाप्त कर सकते हैं. शायद से जीवन में आपकी शुरुवात बुरी थी. शायद से रास्ते में आपने सब बिगाड़ दिया. शायद से आपने गलतियाँ की. शायद आपको पछतावा है. लेकिन आप अच्छी रीति से समाप्त कर सकते हैं और इसी से अंतर पड़ता है.
कुछ लोग अच्छी शुरुवात करते हैं लेकिन असफल हो जाते हैं. मंहगाई में, बहुत सी कंपनियाँ असफल हो गई, जिसे जिम कॉलीन ने अपने अंतर्राष्ट्रीय सर्वदा बिक्री वाली पुस्तक, 'महानता के लिए अच्छे' में बताया. यहाँ तक कि सबसे 'शक्तिशाली' कंपनी असफल हो सकती है.
उनके हाल ही की पुस्तक , कैसे शक्तिशाली गिरते हैं, में वह बरबादी की ओर रास्ते का परीक्षण करते हैं. प्रक्रिया के पहले स्तर की शुरुवात होती है 'सफलता से जन्मे हूब्रीस'. जैसा कि आज के लेखांश में पुराने नियम में शाऊल के साथ था, यह अक्खड़पन है जो प्रक्रिया की शुरुवात करता है जिससे शक्तिशाली गिर जाते हैं. शाऊल ने अच्छी शुरुवात की लेकिन उसने अच्छी तरह से समाप्त नहीं किया.
अच्छी तरह से शुरुवात करने से अधिक महत्वपूर्ण है अच्छी तरह से समाप्त करना. नये नियम में, (तरसुस के) शाऊल ने बुरी तरह से शुरुवात की थी (यीशु के एक सताने वाले के रूप में) लेकिन उसने अच्छी रीति से समाप्त किया (महान प्रेरित पौलुस के रूप में).
हमेशा की तरह, यीशु हमें रास्ता दिखाते हैं. उनका जीवनकाल कम था. वह तीस वर्ष की उम्र में मर गए, फिर भी उन्होंने अच्छी रीति से समाप्त किया. उन्होंने वह काम पूरा किया जो पिता ने उन्हें दिया था (यूहन्ना 17:4). जीवन में यह मेरा अभिप्राय है. मैं वह काम पूरा करना चाहता हूँ जो परमेश्वर ने मुझे दिया है.
आप कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि आप अच्छी रीति से समाप्त करते हैं?
नीतिवचन 12:28-13:9
28 नेकी के मार्ग में जीवन रहता है,
और उस राह के किनारे अमरता बसती है।
13समझदार पुत्र निज पिता की शिक्षा पर कान देता,
किन्तु उच्छृंखल झिड़की पर भी ध्यान नहीं देता।
2 सज्जन अपनी वाणी के सुफल का आनन्द लेता है,
किन्तु दुर्जन तो सदा हिंसा चाहता हैं।
3 जो अपनी वाणी के प्रति चौकसी रहता है,
वह अपने जीवन की रक्षा करता है। पर जो गाल बजाता रहता है,
अपने विनाश को प्राप्त करता है।
4 आलसी मनोरथ पालता है पर कुछ नहीं पाता,
किन्तु परिश्रमी की जितनी भी इच्छा है, पूर्ण हो जाती है।
5 धर्मी उससे घृणा करता है,
जो झूठ है जबकि दुष्ट लज्जा और अपमान लाते हैं।
6 सच्चरित्र जन की रक्षक नेकी है जबकि बदी पापी को,
उलट फेंक देती है।
7 एक व्यक्ति जो धनी का दिखावा करता है;
किन्तु उसके पास कुछ भी नहीं होता है।
और एक अन्य जो दरिद्र का सा आचरण करता किन्तु उसके पास बहुत धन होता है।
8 धनवान को अपना जीवन बचाने उसका धन फिरौती में लगाना पड़ेगा
किन्तु दीन जन ऐसे किसी धमकी के भय से मुक्त है।
9 धर्मी का तेज बहुत चमचमाता किन्तु
दुष्ट का दीया बुझा दिया जाता है।
समीक्षा
दूर तक देखिये
नीतिवचन के लेखक हमें उत्साहित करते हैं कि हम दूर तक देखें और 'सत्यनिष्ठा' के मार्ग में बने रहें, जहाँ पर 'जीवन है'; इस रास्ते में 'अमरता' है (12:28). यहाँ पर और अभी पर, ध्यान देने के प्रलोभन को नकार दें, और अनंतता के प्रकाश में कार्य करें.
एक सत्यनिष्ठ जीवन कैसा दिखाई देता है?
- माता-पिता की सलाह को सुनें
एक बुद्धिमान बच्चा माता-पिता के निर्देश को सुनता है' (13:1). माता-पिता का सम्मान करना, परमेश्वर की प्राथमिकताओं की सूची में सबसे ऊँचे स्थान पर है. पारिवारिक जीवन और अच्छे माता-पिता बनना बहुत जरूरी है. मैं निकी और सीला ली के द्वारा लिखित पुस्तक 'माता-पिता बनने' की सलाह दूँगा.
- अपनी जुबान पर नियंत्रण रखें
'जो अपने मुँह की चौकसी करता है, वह अपने प्राण की रक्षा करता है' (व.3). अपने शब्दों और अपनी जीभ पर नियंत्रण रखने के महत्व को वास्तविकता से अधिक समझना असंभव लगता है.
- कठिन परिश्रम करें
'कामकाजी हृष्ट पुष्ट हो जाता है' (व.4). काम एक आशीष है. सफलता कठिन परिश्रम हो सकती है. इसमें परिश्रमी दृढ़ता की आवश्यकता हैं. विंस्टन चर्चिल ने कहा है, 'जोश को खोए बिना असफलता से असफलता में जाना ही सफलता है.'
- सत्य से प्रेम करें
'सत्यनिष्ठ झूठ से नफरत करते हैं' (व.5). हमें बेईमानी से नफरत करनी है और सत्य से प्रेम करना है. मार्क ट्विन ने एक बार कहा, 'यदि आप सच कहते हैं, तो आपको कुछ भी याद रखने की आवश्यकता नहीं है.'
- विश्वास के एक व्यक्ति बनें
'सत्यनिष्ठा खरी चाल चलने वाले की रक्षा करता है' (व.6). खराई का अर्थ, सिद्ध होना नहीं है. इसका अर्थ है, ईमानदार, वास्तविक और प्रमाणिक होना (यह कपट के विपरीत है). अपनी पुस्तक, 'खराई' में मनोवैज्ञानिक डॉ. हेनरी क्लाउड लिखते हैं कि खराई 'सफलता की कुँजी है. एक खरे व्यक्ति के पास दुर्लभ योग्यता है – हर वस्तु को एक साथ मिलाकर, इसे पूरा करने की, परिस्थिति चाहे कितनी चुनौतीपूर्ण क्यों न हो.'
प्रार्थना
परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि मैं बुद्धिमान बनूँ, माता-पिता का सम्मान करुँ, अपने होठो पर नियंत्रण रखूँ, कठिन परिश्रम करुँ, सच्चाई को बोलूँ और खराई का एक जीवन जीऊं.
यूहन्ना 14:1-31
यीशु का शिष्यों को समझाना
14“तुम्हारे हृदय दुःखी नहीं होने चाहिये। परमेश्वर में विश्वास रखो और मुझमें भी विश्वास बनाये रखो। 2 मेरे परम पिता के घर में बहुत से कमरे हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो मैं तुमसे कह देता। मैं तुम्हारे लिए स्थान बनाने जा रहा हूँ। 3 और यदि मैं वहाँ जाऊँ और तुम्हारे लिए स्थान तैयार करूँ तो मैं फिर यहाँ आऊँगा और अपने साथ तुम्हें भी वहाँ ले चलूँगा ताकि तुम भी वहीं रहो जहाँ मैं हूँ। 4 और जहाँ मैं जा रहा हूँ तुम वहाँ का रास्ता जानते हो।”
5 थोमा ने उससे कहा, “हे प्रभु, हम नहीं जानते तू कहाँ जा रहा है। फिर वहाँ का रास्ता कैसे जान सकते हैं?”
6 यीशु ने उससे कहा, “मैं ही मार्ग हूँ, सत्य हूँ और जीवन हूँ। बिना मेरे द्वारा कोई भी परम पिता के पास नहीं आता। 7 यदि तूने मुझे जान लिया होता तो तू परम पिता को भी जानता। अब तू उसे जानता है और उसे देख भी चुका है।”
8 फिलिप्पुस ने उससे कहा, “हे प्रभु, हमे परम पिता का दर्शन करा दे। हमें संतोष हो जायेगा।”
9 यीशु ने उससे कहा, “फिलिप्पुस मैं इतने लम्बे समय से तेरे साथ हूँ और अब भी तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है, उसने परम पिता को देख लिया है। फिर तू कैसे कहता है ‘हमें परम पिता का दर्शन करा दे।’ 10 क्या तुझे विश्वास नहीं है कि मैं परम पिता में हूँ और परम पिता मुझमें है? वे वचन जो मैं तुम लोगों से कहता हूँ, अपनी ओर से ही नहीं कहता। परम पिता जो मुझमें निवास करता है, अपना काम करता है। 11 जब मैं कहता हूँ कि मैं परम पिता में हूँ और परम पिता मुझमें है तो मेरा विश्वास करो और यदि नहीं तो स्वयं कामों के कारण ही विश्वास करो।
12 “मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ, जो मुझमें विश्वास करता है, वह भी उन कार्यों को करेगा जिन्हें मैं करता हूँ। वास्तव में वह इन कामों से भी बड़े काम करेगा। क्योंकि मैं परम पिता के पास जा रहा हूँ। 13 और मैं वह सब कुछ करूँगा जो तुम लोग मेरे नाम से माँगोगे जिससे पुत्र के द्वारा परम पिता महिमावान हो। 14 यदि तुम मुझसे मेरे नाम में कुछ माँगोगे तो मैं उसे करूँगा।
पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा
15 “यदि तुम मुझे प्रेम करते हो, तो मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे। 16 मैं परम पिता से विनती करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक देगा ताकि वह सदा तुम्हारे साथ रह सके। 17 यानी सत्य का आत्मा जिसे जगत ग्रहण नहीं कर सकता क्योंकि वह उसे न तो देखता है और न ही उसे जानता है। तुम लोग उसे जानते हो क्योंकि वह आज तुम्हारे साथ रहता है और भविष्य में तुम में रहेगा।
18 “मैं तुम्हें अनाथ नहीं छोड़ूँगा। मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ। 19 कुछ ही समय बाद जगत मुझे और नहीं देखेगा किन्तु तुम मुझे देखोगे क्योंकि मैं जीवित हूँ और तुम भी जीवित रहोगे। 20 उस दिन तुम जानोगे कि मैं परम पिता में हूँ, तुम मुझ में हो और मैं तुझमें। 21 वह जो मेरे आदेशों को स्वीकार करता है और उनका पालन करता है, मुझसे प्रेम करता है। जो मुझमें प्रेम रखता है उसे मेरा परम पिता प्रेम करेगा। मैं भी उसे प्रेम करूँगा और अपने आप को उस पर प्रकट करूँगा।”
22 यहूदा ने (यहूदा इस्करियोती ने नहीं) उससे कहा, “हे प्रभु, ऐसा क्यों है कि तू अपने आपको हम पर प्रकट करना चाहता है और जगत पर नहीं?”
23 उत्तर में यीशु ने उससे कहा, “यदि कोई मुझमें प्रेम रखता है तो वह मेरे वचन का पालन करेगा। और उससे मेरा परम पिता प्रेम करेगा। और हम उसके पास आयेंगे और उसके साथ निवास करेंगे। 24 जो मुझमें प्रेम नहीं रखता, वह मेरे उपदेशों पर नहीं चलता। यह उपदेश जिसे तुम सुन रहे हो, मेरा नहीं है, बल्कि उस परम पिता का है जिसने मुझे भेजा है।
25 “ये बातें मैंने तुमसे तभी कही थीं जब मैं तुम्हारे साथ था। 26 किन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे परम पिता मेरे नाम से भेजेगा, तुम्हें सब कुछ बतायेगा। और जो कुछ मैंने तुमसे कहा है उसे तुम्हें याद दिलायेगा।
27 “मैं तुम्हारे लिये अपनी शांति छोड़ रहा हूँ। मैं तुम्हें स्वयं अपनी शांति दे रहा हूँ पर तुम्हें इसे मैं वैसे नहीं दे रहा हूँ जैसे जगत देता है। तुम्हारा मन व्याकुल नहीं होना चाहिये और न ही उसे डरना चाहिये। 28 तुमने मुझे कहते सुना है कि मैं जा रहा हूँ और तुम्हारे पास फिर आऊँगा। यदि तुमने मुझसे प्रेम किया होता तो तुम प्रसन्न होते क्योंकि मैं परम पिता के पास जा रहा हूँ। क्योंकि परम पिता मुझ से महान है। 29 और अब यह घटित होने से पहले ही मैंने तुम्हें बता दिया है ताकि जब यह घटित हो तो तुम्हें विश्वास हो।
30 “और मैं अधिक समय तक तुम्हारे साथ बात नहीं करूँगा क्योंकि इस जगत का शासक आ रहा है। मुझ पर उसका कोई बस नहीं चलता। किन्तु ये बातें इसलिए घट रहीं हैं ताकि जगत जान जाये कि मैं परम पिता से प्रेम करता हूँ। 31 और पिता ने जैसी आज्ञा मुझे दी है, मैं वैसा ही करता हूँ।
“अब उठो, हम यहाँ से चलें।”
समीक्षा
यीशु के उत्तराधिकार में भरोसा करें
क्या आप परेशान, उदास या घबराए हुए हैं? यीशु नहीं चाहते हैं कि आप परेशान हो, बल्कि आपके हृदय में शांती हो (वव.1,27).
यीशु जानते थे कि पृथ्वी पर उनका जीवन समाप्त होने वाला था. वह अपने चेलों को छोड़कर जाने वाले थे (व.27); वह वापस पिता के पास जा रहे थे (व.3). फिर भी उन्होंने उनसे कहा, 'अपने हृदय को परेशान, उदास, घबराने मत दो' (व.1, ए.एम.पी.). 'मैं तुम्हें शांती देता हूँ' (व.27). यीशु आपको अकेले नहीं छोड़ते हैं बल्कि आपको एक अद्भुत विरासत देते हैं.
- आपके भविष्य के लिए यीशु के पास अच्छी योजनाएँ हैं
यीशु कहते हैं, ' मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं ...क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ' (व.2, एम.एस.जी.). मसीह में, आपका भविष्य पूरी तरह से सुरक्षित है.
- यीशु आपके लिए वापस आने वाले हैं
पृथ्वी पर के जीवन का अंत, अंत नहीं है. यीशु ने अपने अनुयायियों से कहा, ' फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाउँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो' (व.3). आप सर्वदा के लिए यीशु के साथ रहेंगे.
- यीशु ने आपके लिए रास्ता खोल दिया है ताकि आप परमेश्वर को जाने
थोमा पूछते हैं, 'हम मार्ग कैसे जानेंगे?' यीशु उत्तर देते हैं, ' मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता' (वव.5-6).
- यीशु आपके लिए पिता को प्रकट करते हैं
फिलिप्पुस कहते हैं, 'प्रभु, हमें पिता को दिखा दें' (व.8). यीशु उत्तर देते हैं, 'जिस किसी ने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है' (व.9). यदि आप जानना चाहते हैं कि परमेश्वर कैसे दिखते हैं तो यीशु को देखिये.
- यीशु आपके लिए और भी महान वस्तुएँ करेंगे
यीशु अपने चेलो के द्वारा उससे भी अधिक बड़े चमत्कार करेंगे, जितना की उन्होंने पृथ्वी पर रहते हुए किया था (व.12).
- यीशु आपकी प्रार्थनाओं का निरंतर उत्तर देंगे
' जो कुछ तुम मेरे नाम में माँगोगे, वही मैं करूँगा कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो. यदि तुम मुझ से मेरे नाम में कुछ माँगोगे, तो मैं उसे करूँगा' (वव.13-14, एम.एस.जी.).
- यीशु आपको कभी भी अकेले नहीं छोड़ेंगे
यीशु कहते हैं, 'मैं तुम्हें अनाथ नहीं छोड़ूँगा' (व.18). वह कहते हैं कि वह आपको दूसरा मित्र देंगे जो सर्वदा आपके साथ रहेगा. यह मित्र सत्य का आत्मा है...वह सदा आपके साथ रहता है और आपमें रहेगा! (वव.16-17, एम.एस.जी.).
- यीशु आपसे निरंतर प्रेम करेंगे
' और जो मुझ से प्रेम रखता है उससे मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उससे प्रेम रखूँगा और अपने आप को उस पर प्रकट करूँगा' (व.21ब).
- यीशु और पिता आपके साथ निवास करेंगे
यीशु ने कहा, ' यदि कोई मुझ से प्रेम रखेगा तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएँगे और उसके साथ वास करेंगे' (व.23).
- यीशु आपको शांती देते हैं
' मैं तुम्हें शांती दिए जाता हूँ ...तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे' (व.27). शांती आती है इस बात का भरोसा करने से कि यीशु हमारे साथ और हमारे अंदर हैं. यीशु हमारी शांती हैं.
यह सब कैसे संभव है? यीशु पवित्र आत्मा के द्वारा अपने उत्तराधिकार को आपको देते हैं. वह पवित्र आत्मा (पैरेक्लेट) को आपके हृदय में रहने के लिए भेजेंगेः' परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम में भेजेंगे, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा' (व.26, एम.एस.जी.). ग्रीक शब्द पैरक्लेटोस का शाब्दिक अर्थ है, 'एक व्यक्ति जो साथ जाने के लिए बुलाया गया है.' इसके बहुमुखी अर्थ हैं – सलाहकार, वकील, शांतीदाता, उत्साहित करने वाला, सहायक, स्टैण्डबाय, वह जो आपका मित्र है. एक माँ अपने बच्चे के लिए पैरेक्लेट है. वह अकेलेपन की पीड़ा को दूर करती है. वह उपस्थिति, सुरक्षा, शांती और संगति को लाती है.
पवित्र आत्मा अब हमारे अंदर रहते हैं, हमें नई सामर्थ और नया प्रेम देने के लिए – ताकि हम, चर्च में विश्व में यीशु के मिशन को ले जा सकें.
यीशु ने इस बारे में बहुत सावधानीपूर्वक सोचा और एक महान उत्तराधिकार की योजना बनाई!
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योकि आपने मुझे पवित्र आत्मा दी है ताकि वह मेरे अंदर रहें और सर्वदा मेरे साथ रहें. आपका धन्यवाद क्योंकि आप मुझे अपनी शांती देते हैं और आप मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर देने का वायदा करते हैं.
1 शमूएल 14:24-15:35
शाऊल दूसरी गलती करता है
24 किन्तु शाऊल ने उस दिन एक बड़ी गलती की। इस्राएली भूखे और थके थे। यह इसलिए हुआ कि शाऊल ने लोगों को यह प्रतिज्ञा करने को विवश कियाः शाऊल ने कहा, “यदि कोई व्यक्ति सन्ध्या होने से पहले भोजन करता है अथवा मेरे द्वारा शत्रु को पराजित करने के पहले भोजन करता है तो वह व्यक्ति दण्डित किया जाएगा!” इसलिए किसी भी इस्राएली सैनिक ने भोजन नहीं किया।
25-26 युद्ध के कारण लोग जंगलों में चले गए। उन्होंने वहाँ भूमि पर पड़ा एक शहद का छत्ता देखा। इस्राएली उस स्थान पर आए जहाँ शहद का छत्ता था। लोग भूखे थे, किन्तु उन्होंने तनिक भी शहद नहीं पिया। वे उस प्रतिज्ञा को तोड़ने से भयभीत थे। 27 किन्तु योनातान उस प्रतिज्ञा के बारे में नहीं जानता था। योनातान ने यह नहीं सुना था कि उसके पिता ने उस प्रतिज्ञा को करने के लिये लोगों को विवश किया है। योनातान के हाथ में एक छड़ी थी। उसने शहद के छत्ते में उसके सिरे को धंसाया। उसने कुछ शहद निकाला और उसे चाटा और उसने अपने को स्वस्थ अनुभव किया।
28 सैनिकों में से एक ने योनातान से कहा, “तुम्हारे पिता ने एक विशेष प्रतिज्ञा करने के लिये सैनिकों को विवश किया है। तुम्हारे पिता ने कहा है कि जो कोई आज खायेगा, दण्डित होगा। यही कारण है कि पुरुषों ने कुछ भी खाया नहीं। यही कारण है कि पुरुष कमजोर हैं।”
29 योनातान ने कहा, “मेरे पिता ने लोगों के लिये परेशानी उत्पन्न की है! देखो इस जरा से शहद को चाटने से मैं कितना स्वस्थ अनुभव कर रहा हूँ! 30 बहुत अच्छा होता कि लोग वह भोजन करते जो उन्होंने आज शत्रुओं से लिया था। हम बहुत अधिक पलिश्तियों को मार सकते थे!”
31 उस दिन इस्राएलियों ने पलिश्तियों को हराया। वे उनसे मिकमाश से अय्यालोन तक के पूरे मार्ग पर लड़े। क्योंकि लोग बहुत भूके और थके हुए थे। 32 उन्होंने पलिश्तियों से भेड़ें, गायें और बछड़े लिये थे। उस समय इस्राएल के लोग इतने भूखे थे कि उन्होंने उन जानवरों को जमीन पर ही मारा और उन्हें खाया। जानवरों में तब तक खून था!
33 एक व्यक्ति ने शाऊल से कहा, “देखो! लोग यहोवा के विरुद्ध पाप कर रहे हैं। वे ऐसा माँस खा रहे हैं जिसमें खून है!”
शाऊल ने कहा, “तुम लोगों ने पाप किया है! यहाँ एक विशान पत्थर लुढ़काकर लाओ।” 34 तब शाऊल ने कहा, “लोगों के पास जाओ और कहो कि हर एक व्यक्ति अपना बैल और भेड़ें मेरे पास यहाँ लाये। तब लोगों को अपने बैल और भेड़ें यहाँ मारनी चाहिये। यहोवा के विरुद्ध पाप मत करो। वह माँस न खाओ जिसमें खून हो।”
उस रात हर एक व्यक्ति अपने जानवरों को लाया और उन्हें वहाँ मारा। 35 तब शाऊल ने यहोवा के लिये एक वेदी बनाई। शाऊल ने यहोवा के लिये स्वयं वह वेदी बनानी आरम्भ की!
36 शाऊल ने कहा, “हम लोग आज रात को पलिश्तियों का पीछा करें। हम लोग हर वस्तु ले लेंगे। हम उन सभी को मार डालेंगे।”
सेना ने उत्तर दिया, “वैसे ही करो जैसे तुम ठीक समझते हो।”
किन्तु याजक ने कहा, “हमें परमेश्वर से पूछने दो।”
37 अत: शाऊल ने परमेश्वर से पूछा, “क्या मुझे पलिश्तियों का पीछा करने जाना चाहिए? क्या तू हमें पलिश्तियों को हराने देगा?” किन्तु परमेश्वर ने शाऊल को उस दिन उत्तर नहीं दिया।
38 इसलिए शाऊल ने कहा, “मेरे पास सभी प्रमुखों को लाओ। हम लोग मालूम करें कि आज किसने पाप किया है। 39 मैं इस्राएल की रक्षा करने वाले यहोवा की शपथ खा कर यह प्रतिज्ञा करता हूँ। यदि मेरे अपने पुत्र योनातान ने भी पाप किया हो तो वह अवश्य मरेगा।” सेना में किसी ने भी कुछ नहीं कहा।
40 तब शाऊल ने सभी इस्राएलियों से कहा, “तुम लोग इस ओर खड़े हो। मैं और मेरा पुत्र योनातान दूसरी ओर खड़े होगें।”
सैनिकों ने उत्तर दिया, “महाराज! आप जैसा चाहें।”
41 तब शाऊल ने प्रार्थना की, “इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, मैं तेरा सेवक हूँ आज तू मुझे उत्तर क्यों नहीं दे रहा है? यदि मैंने या मेरे पुत्र योनातान ने पाप किया है तो इस्राएल के परमेश्वर यहोवा तू उरीम दे और यदि तेरे लोग इस्राएलियों ने पाप किया है तो तुम्मिम दे।”
शाऊल और योनातान धर लिए गए और लोग छूट गए। 42 शाऊल ने कहा, “उन्हें फिर से फेंको कि कौन पाप करने वाला है मैं या मेरा पुत्र योनातान।” योनातान चुन लिया गया।
43 शाऊल ने योनातान से कहा, “मुझे बताओ कि तुमने क्या किया है?”
योनातान ने शाऊल से कहा, “मैंने अपनी छड़ी के सिरे से केवल थोड़ा सा शहद चाटा था। क्या मुझे वह करने के कारण मरना चाहिये?”
44 शाऊल ने कहा, “यदि मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरा नहीं करता हूँ तो परमेश्वर मेरे लिये बहुत बुरा करे। योनातान को मरना चाहिये!”
45 किन्तु सैनिकों ने शाऊल से कहा, “योनातान ने आज इस्राएल को बड़ी विजय तक पहुँचाया। क्या योनातान को मरना ही चाहिए? कभी नहीं! हम लोग परमेश्वर की शपथ खाकर वचन देते हैं कि योनातान का एक बाल भी बाँका नहीं होगा। परमेश्वर ने आज पलिश्तियों के विरुद्ध लड़ने में योनातान की सहायता की है!” इस प्रकार लोगों ने योनातान को बचाया। उसे मृत्यदणड नहीं दिया गया।
46 शाऊल ने पलिश्तियों का पीछा नहीं किया। पलिश्ती अपने स्थान को लौट गये।
शाऊल का इस्राएल के शत्रुओं से युद्ध
47 शाऊल ने इस्राएल पर पूरा अधिकार जमा लिया और दिखा दिया कि वह राजा है। शाऊल इस्राएल के चारों ओर रहने वाले शत्रुओं से लड़ा। शाऊल, अम्मोनी, मोआबी, सोबा के राजा एदोम और पलिश्तियों से लड़ा। जहाँ कहीं शाऊल गया, उसने इस्राएल के शत्रुओं को पराजित किया। 48 शाऊल बहुत वीर था। उसने अमालेकियों को हराया। शाऊल ने इस्राएल को उसके उन शत्रुओं से बचाया जो इस्राएल के लोगों से उनकी सम्पत्ति छीन लेना चाहते थे।
49 शाऊल के पुत्र थे योनातान, यिशवी और मलकीश। शाऊल की बड़ी पुत्री का नाम मेरब था। शाऊल की छोटी पुत्री का नाम मीकल था। 50 शाऊल की पत्नी का नाम अहीनोअम था। अहीनोअम अहीमास की पुत्री थी।
शाऊल की सेना के सेनापति का नाम अब्नेर था, जो नेर का पुत्र था। नेर शाऊल का चाचा था। 51 शाऊल का पिता कीश और अब्नेर का पिता नेर, अबीएल के पुत्र थे।
52 शाऊल अपने जीवन भर वीर रहा और पलिश्तियों के विरुद्ध दृढ़ता से लड़ा। शाऊल जब भी कभी किसी व्यक्ति को ऐसा वीर देखता जो शक्तिशाली होता तो वह उसे ले लेता और उसे उन सैनिकों की टुकड़ी में रखता जो उसके समीप रहते और उसकी रक्षा करते थे।
शाऊल का अमालेकियों को नष्ट करना
15शमूएल ने शाऊल से कहा, “यहोवा ने मुझे अपने इस्राएली लोगों पर राजा के रूप में तुम्हारा अभिषेक करने के लिये भेजा था। अब यहोवा का सन्देश सुनो। 2 सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है: ‘जब इस्राएली मिस्र से बाहर आये तब अमालेकियों ने उन्हें कनान पहुँचाने से रोकने का प्रयत्न किया। मैंने देखा कि अमालेकियों ने उन्हें क्या किया। 3 अब जाओ और अमालेकियों से युद्ध करो। तुम्हें अमालेकियों और उनकी सभी चीज़ों को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिये। कुछ भी जीवित न रहने दो, तुम्हें सभी पुरुषों और स्त्रियों को मार डालना चाहिये। तुम्हें सभी बच्चों और शिशुओं को मार डालना चाहिए। तुम्हें उनकी सभी गायों, भेड़ों, ऊँटों और गधों को मार डालना चाहिये।’”
4 शाऊल ने तलाईम में सेना एकत्रित की। उसमें दो लाख पैदल सैनिक और दस हजार अन्य सैन्य पुरुष थे। इनमें यहूदा के लोग भी सम्मिलित थे। 5 तब शाऊल अमालेक नगर को गया और वहाँ उसने घाटी में उनकी प्रतीक्षा की। 6 शाऊल ने केनियों से कहा, “चले जाओ, अमालेकियों को छोड़ दो। तब मैं तुम लोगों को अमालेकियों के साथ नष्ट नहीं करूँगा। तुम लोगों ने इस्राएलियों के प्रति दया दिखाई थी जब वे मिस्र से आये थे।” इसलिए केनी लोगों ने अमालेकियों को छोड़ दिया।
7 शाऊल ने अमालेकियों को हराया। उसने उनसे हवीला से मिस्र की सीमा शूर तक निरन्तर युद्ध किया। 8 शाऊल ने अगाग को जीवित पकड़ लिया। अगाग अमालेकियों का राजा था। अगाग की सेना के सभी व्यक्तियों को शाऊल ने मार डाला। 9 किन्तु शाऊल और इस्राएल के सैनिकों ने अगाग को जीवित रहने दिया। उन्होंने सर्वोत्तम भेड़ों, मोटी तगड़ी गायों और मेमनों को भी रख लिया। उन्होंने रखने योग्य सभी चीज़ों को रख लिया और उन्होंने उन सभी चीज़ों को नष्ट कर दिया जो किसी काम की न थीं।
शमूएल का शाऊल को उसके पाप के बारे में बताना
10 शमूएल को यहोवा का सन्देश आया। 11 यहोवा ने कहा, “शाऊल ने मेरा अनुसरण करना छोड़ दिया है। इसलिए मुझे इसका अफसोस है कि मैंने उसे राजा बनाया। वह उन कामों को नहीं कर रहा है जिन्हें करने का आदेश मैं उसे देता हूँ।” शमूएल भड़क उठा और फिर उसने रात भर यहोवा की प्रार्थना की।
12 शमूएल अगले सवेरे उठा और शाऊल से मिलने गया। किन्तु लोगों ने बताया, “शाऊल यहूदा में कर्मेल नामक नगर को गया है। शाऊल वहाँ अपने सम्मान में एक पत्थर की यादगार बनाने गया था। तब शाऊल ने कई स्थानों की यात्रा की और अन्त में गिलगाल को चला गया”
इसलिये शमूएल वहाँ गया जहाँ शाऊल था। शाऊल ने अमालेकियों से ली गई चीज़ों का पहला भाग ही भेंट में चढ़ाया था। शाऊल उन्हें होम बलि के रूप में यहोवा को भेंट चढ़ा रहा था। 13 शमूएल शाऊल के पास पुहँचा। शाऊल ने कहा, स्वागत, “यहोवा आपको आशीर्वाद दे! मैंने यहोवा के आदेशों का पालन किया है।”
14 किन्तु शमूएल ने कहा, “तो मैं ये आवाजें क्या सुन रहा हूँ? मैं भेड़ और पशुओं की आवाज क्यों सुन रहा हूँ?”
15 शाऊल ने उत्तर दिया, “सैनिकों ने उन्हें अमालेकियों से लिया। सैनिकों ने सर्वोत्तम भेड़ों और पशुओं को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को बलि के रूप में जलाने के लिए बचा लिया है। किन्तु हम लोगों ने अन्य सभी चीज़ों को नष्ट कर दिया है।”
16 शमूएल ने शाऊल से कहा, “रुको! मुझे तुमसे वही कहने दो जिसे पिछली रात यहोवा ने मुझसे कहा है।”
शाऊल ने उत्तर दिया, “मुझे बताओ।”
17 शमूएल ने कहा, “बीते समय में, तुमने यही सोचा था की तुम महत्वपूर्ण नहीं हो। किन्तु तब भी तुम इस्राएल के परिवार समूहों के प्रमुख बन गए। यहोवा ने तुम्हें इस्राएल का राजा चुना। 18 यहोवा ने तुम्हें एक विशेष सेवाकार्य के लिये भेजा। यहोवा ने कहा, ‘जाओ और उन सभी बुरे अमालेकियों को नष्ट करो! उनसे तब तक लड़ते रहो जब तक वे नष्ट न हो जायें!’ 19 किन्तु तुमने यहोवा की नहीं सुनी। तुम उन चीज़ों को रखना चाहते थे। इसलिये तुमने वह किया जिसे यहोवा ने बुरा कहा!”
20 शाऊल ने कहा, “किन्तु मैंने तो यहोवा की आज्ञा का पालन किया। मैं वहाँ गया जहाँ यहोवा ने मुझे भेजा। मैंने सभी अमालेकियों को नष्ट किया। मैं केवल उनके राजा अगाग को वापस लाया। 21 सैनिकों ने सर्वोतम भेड़ें और पशु गिलगाल में तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को बलि देने के लिये चुने।”
22 किन्तु शमूएल ने उत्तर दिया, “यहोवा को इन दो में से कौन अधिक प्रसन्न करता है: होमबलियाँ और बलियाँ या यहोवा की आज्ञा का पालन करना? यह अधिक अच्छा है कि परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया जाये इसकी अपेक्षा कि उसे बलि भेंट की जाये। यह अधिक अच्छा है कि परमेश्वर की बातें सुनी जायें इसकी अपेक्षा कि मेढ़ों से चर्बी—भेंट की जाये। 23 आज्ञा के पालन से इनकार करना जादूगरी करने के पाप जैसा है। हठी होना और मनमानी करना मूर्तियों की पूजा करने जैसा पाप है। तुमने यहोवा की आज्ञा मानने से इन्कार किया। इसी करण यहोवा अब तुम्हें राजा के रूप में स्वीकार करने से इन्कार करता है।”
24 तब शाऊल ने शमूएल से कहा, “मैंने पाप किया है। मैंने यहोवा के आदेशों को नहीं माना है और मैंने वह नहीं किया है जो तुमने करने को कहा। मैं लोगों से डरता था इसलिए मैंने वह किया जो उन्होंने कहा। 25 अब मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरे पाप को क्षमा करो। मेरे साथ लौटो जिससे मैं यहोवा की उपासना कर सकूँ।”
26 किन्तु शमूएल ने शाऊल से कहा, “मैं तुम्हारे साथ नहीं लौटूँगा। तुमने यहोवा के आदेश को नकारा है और अब यहोवा तुम्हें इस्राएल के राजा के रूप में नकार रहा है।”
27 जब शमूएल उसे छोड़ने के लिये मुड़ा, शाऊल ने शमूएल के लबादे को पकड़ लिया। लबादा फट गया। 28 शमूएल ने शाऊल से कहा, “तुमने मेरे लबादे को फाड़ दिया। इसी प्रकार यहोवा ने आज इस्राएल के राज्य को तुमसे फाड़ दिया है। यहोवा ने राज्य तुम्हारे मित्रों में से एक को दे दिया है। वह व्यक्ति तुमसे अच्छा है। 29 यहोवा इस्राएल का परमेश्वर है। यहोवा शाश्वत है। योहवा न तो झूठ बोलता है, न ही अपना मन बदलता है। यहोवा मनुष्य की तरह नहीं है जो अपने इरादे बदलते हैं।”
30 शाऊल ने उत्तर दिया, “ठीक है, मैंने पाप किया! किन्तु कृपया मेरे साथ लौटो। इस्राएल के लोगों और प्रमुखों के सामने मुझे कुछ सम्मान दो। मेरे साथ लौटो जिससे मैं तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की उपासना कर सकूँ।” 31 शमूएल शाऊल के साथ लौट गया और शाऊल ने यहोवा की उपासना की।
32 शमूएल ने कहा, “अमालेकियों के राजा अगाग, को मेरे पास लाओ।”
अगाग शमूएल के सामने आया। अगाग जंजीरों में बंधा था। अगाग ने सोचा, “निश्चय ही यह मुझे मारेगा नहीं।”
33 किन्तु शमूएल ने अगाग से कहा, “तुम्हारी तलवारों ने बच्चों को उनकी माताओं से छीना। अतः अब तुम्हारी माँ का कोई बच्चा नहीं रहेगा।” और शमूएल ने गिलगाल में यहोवा के सामने अगाग के टुकड़े टुकड़े कर डाले।
34 तब शमूएल वहाँ से चला और रामा पहुँचा और शाऊल अपने घर गिबा को गया। 35 उसके बाद शमूएल ने अपने पूरे जीवन में शाऊल को नहीं देखा। शमूएल शाऊल के लिये बहुत दुःखी रहा और यहोवा को बड़ा दुःख था कि उसने शाऊल को इस्राएल का राजा बनाया।
समीक्षा
अंत तक परमेश्वर का सम्मान करें
शाऊल ने अच्छी शुरुवात की. परमेश्वर ने उन्हें महान सफलता दी थी. आज के लेखांश में, हम शाऊल के लीडरशिप के आरंभिक दिनों में से अच्छे उदाहरण से सीख सकते हैं. जब जब शाऊल को कोई वीर या अच्छा योद्धा दिखाइ पड़ा, तब तब उसने उसे अपने पास रख लिया (14:52).
किंतु, अवज्ञाकारिता और अक्खड़पन के कारण उन्होंने एक अच्छा समापन नहीं किया. आधी आज्ञाकारिता भी अवज्ञाकारिता है. ना केवल उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया, बल्कि उन्होंने 'अपने लिये एक स्मारक भी खड़ा किया' (15:12, एम.एस.जी.). यह यीशु से कितना अलग है, जिनके बारे में हम आज के लेखांश में देखते हैं कि, उनके जीवन का केवल एक लक्ष्य था – अपने पिता को महिमा देना (यूहन्ना 14:13).
शमुएल शाऊल से कहते हैं, 'जब तू अपनी दृष्टि में छोटा था, तब क्या तू इस्राएली गोत्रों का प्रधान न हो गया...क्यों तूने परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी?...क्या यहोवा होमबलियों और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन, मानना तो बलि चढ़ाने से, और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है. देख, बलवा करना और भावी कहने वालो से पूछना एक ही समान पाप है, और हठ करना मूरतों और गृहदेवताओं की पूजा के तुल्य है. तू ने जो यहोवा की बात को तुच्छ जाना, इसलिये उसने तुझे राजा होने के लिये तुच्छ जाना है' (1शमुएल 15:17-23, एम.एस.जी).
ताकत बहुत खतरनाक है. इसमें भ्रष्ट करने की एक मजबूत प्रवृत्ति है. सफलता आसानी से घमंड और अक्खड़पन को ला सकती है. यह आगे मूर्तिपूजा की ओर ले जाती है.
प्रार्थना
परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि यीशु की आज्ञाकारिता और दीनता को मानूँ. होने दीजिए कि सत्य का आत्मा मेरी अगुवाई करे और मेरा मार्गदर्शन करे, और मुझे आपकी शांती प्रदान करे.
पिप्पा भी कहते है
यूहन्ना 14:1-3
जब मैं दफनाने की विधी पर इन वचनो को पढ़ते हुए सुनता हूँ, तब मैं उनकी सामर्थ को महसूस कर सकता हूँ जो कब्र की गहराई में पहुँचती हैं और हम तक शांती लाती हैं. हममें से हर एक के लिए यीशु स्थान को तैयार कर रहे हैं. यह आशा है जिसे मैं इन दुखी और कठिन समयों में पकड़े रहता हूँ. यीशु ने कहा, ' तुम्हारा मन व्याकुल न हो; परमेश्वर पर विश्वास रखो और मुझ पर भी विश्वास रखो. मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते तो मैं तुम से कह देता; क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने के लिए जाता हूँ. और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाउँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो.'
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संदर्भ
हेनरी क्लाउड, विश्वसनीयता, (हार्परबिजनेस, 2009).
जिम कॉलिन, कैसे शक्तिशाली गिरते हैं, (रैंडम हाऊस बिजनेस, 2009).
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
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जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।