एकता की ताकत
परिचय
ब्युचनवर्ल्ड कॉन्संट्रेशन कैंम्प में, शासन करने वाली राजनीतिक दल ने 56000 लोगों को मार दिया, जो कि मसीह विश्वास को इसकी अपनी विचारधारा के लिए खतरा समझते थे. कैम्प में सलाखों से बना कैदखाना ऐसे कैदियों के लिए आरक्षित था जिन्हें विशेषरूप से खतरनाक या ध्यान देने योग्य समझा जाता था. पॉल सेनेदर, एक लुथरन पास्टर जिन्हें ' ब्युचनवल्ड का प्रचारक कहा जाता था, ' उन्हें इस विशेष सलाखों में रखा गया क्योंकि अपनी कोठरी की छोटी सी खिड़की से भी वह जोर से यीशु मसीह के सुसमाचार का प्रचार करते थे –गेस्टापो पहरेदारों की आज्ञा का उल्लंघन करते हुए.
ओटो,न्युरुरर, एक कैथलिक याजक, यहूदियों और दूसरे 'जिनकी इच्छा नहीं की जा सकती' के प्रति उनके कार्य ने उन्हें नाजी वारलॉर्डस के लिए एक खतरा बना दिया था, उन्हें भी इस स्थान में रखा गया था. उन्होंने भी कॉन्संट्रेशन कैम्प में अपने साथियों के लिए यीशु के नाम का प्रचार किया था, बाद में उल्टे क्रूस पर चढ़ा दिया गया था.
एकता में, इन दो मनुष्यों ने, एक कैथलिक और दूसरा एक प्रोटेस्टंट ने एक साथ मिलकर प्रभु यीशु मसीह की गवाही दी. एकता बहुत शक्तिशाली है.
भजन संहिता 68:7-14
7 हे परमेश्वर, तूने निज भक्तों को मिस्र से निकाला
और मरूभूमि से पैदल ही पार निकाला।
8 इस्राएल का परमेश्वर जब सिय्योन पर्वत पर आया था,
धरती काँप उठी थी, और आकाश पिघला था।
9 हे परमेश्वर, वर्षा को तूने भेजा था,
और पुरानी तथा दुर्बल पड़ी धरती को तूने फिर सशक्त किया।
10 उसी धरती पर तेरे पशु वापस आ गये।
हे परमेश्वर, वहाँ के दीन लोगों को तूने उत्तम वस्तुएँ दी।
11 परमेश्वर ने आदेश दिया
और बहुत जन सुसन्देश को सुनाने गये;
12 “बलशाली राजाओं की सेनाएं इधर—उधर भाग गयी!
युद्ध से जिन वस्तुओं को सैनिक लातें हैं, उनको घर पर रूकी स्त्रियाँ बाँट लेंगी। जो लोग घर में रूके हैं, वे उस धन को बाँट लेंगे।
13 वे चाँदी से मढ़े हुए कबुतर के पंख पायेंगे।
वे सोने से चमकते हुए पंखों को पायेंगे।”
14 परमेश्वर ने जब सल्मूल पर्वत पर शत्रु राजाओं को बिखेरा,
तो वे ऐसे छितराये जैसे हिम गिरता है।
समीक्षा
लोग और भूमि
दाऊद निर्गमन, सिनाई पर्वत और कनान पर विजय को दर्शाते हैं. यें परमेश्वर के लोगों के इतिहास के कुछ ऊँचे बिंदु थे, जब वे सच में एकता में थे.
यह लेखांश इस बात को पहचानने के विषय में है कि उनकी आशीष और एकता परमेश्वर की ओर से आयी थी. यह परमेश्वर के लिए धन्यवादिता और स्तुति का एक भजन है, उन सभी चीजों के लिए जो उसने की थी. यह उनकी लीडरशिप का उत्सव मनाता है (व.7), उनकी सामर्थ और प्रावधान (वव.8-9), उनकी उदारता, उनका न्याय (व.10) और उनकी विजय (वव.11-14).
परमेश्वर लोगों को वाचा की भूमि में लेकर गए थे. फिर भी आज, इसी क्षेत्र में एकता की बड़ी चुनौती है. मध्य पूर्व में शांति की खोज, हमारे विश्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.
प्रार्थना
परमेश्वर, सभी के लिए और आपके प्रेम के लिए आपका धन्यवाद. मध्यपूर्वी देशों जहाँ पर युद्ध हो रहे हैं, उसमें मैं शांती और एकता के लिए प्रार्थना करता हूँ. आपका धन्यवाद क्योंकि आप एकता का स्त्रोत और नींव हैं.
यूहन्ना 17:6-26
6 “जगत से जिन मनुष्यों को तूने मुझे दिया, मैंने उन्हें तेरे नाम का बोध कराया है। वे लोग तेरे थे किन्तु तूने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे वचन का पालन किया। 7 अब वे जानते हैं कि हर वह वस्तु जो तूने मुझे दी है, वह तुझ ही से आती है। 8 मैंने उन्हें वे ही उपदेश दिये हैं जो तूने मुझे दिये थे और उन्होंने उनको ग्रहण किया। वे निश्चयपूर्वक जानते हैं कि मैं तुझसे ही आया हूँ। और उन्हें विश्वास हो गया है कि तूने मुझे भेजा है। 9 मैं उनके लिये प्रार्थना कर रहा हूँ। मैं जगत के लिये प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ बल्कि उनके लिए कर रहा हूँ जिन्हें तूने मुझे दिया है, क्योंकि वे तेरे हैं। 10 वह सब कुछ जो मेरा है, वह तेरा है और जो तेरा है, वह मेरा है। और मैंने उनके द्वारा महिमा पायी है।
11 “मैं अब और अधिक समय जगत में नहीं हूँ किन्तु वे जगत में है अब मैं तेरे पास आ रहा हूँ। हे पवित्र पिता अपने उस नाम की शक्ति से उनकी रक्षा कर जो तूने मुझे दिया है ताकि जैसे तू और मैं एक हैं, वे भी एक हो सकें। 12 जब मैं उनके साथ था, मैंने तेरे उस नाम की शक्ति से उनकी रक्षा की, जो तूने मुझे दिया था। मैंने रक्षा की और उनमें से कोई भी नष्ट नहीं हुआ सिवाय उसके जो विनाश का पुत्र था ताकि शास्त्र का कहना सच हो।
13 “अब मैं तेरे पास आ रहा हूँ किन्तु ये बातें मैं जगत में रहते हुए कह रहा हूँ ताकि वे अपने हृदयों में मेरे पूर्ण आनन्द को पा सकें। 14 मैंने तेरा वचन उन्हें दिया है पर संसार ने उनसे घृणा की क्योंकि वे सांसारिक नहीं हैं। वैसे ही जैसे मैं संसार का नहीं हूँ।
15 “मैं यह प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ कि तू उन्हें संसार से निकाल ले बल्कि यह कि तू उनकी दुष्ट शैतान से रक्षा कर। 16 वे संसार के नहीं हैं, वैसे ही जैसे मैं संसार का नहीं हूँ। 17 सत्य के द्वारा तू उन्हें अपनी सेवा के लिये समर्पित कर। तेरा वचन सत्य है। 18 जैसे तूने मुझे इस जगत में भेजा है, वैसे ही मैंने उन्हें जगत में भेजा है। 19 मैं उनके लिए अपने को तेरी सेवा में अर्पित कर रहा हूँ ताकि वे भी सत्य के द्वारा स्वयं को तेरी सेवा में अर्पित करें।
20 “किन्तु मैं केवल उन ही के लिये प्रार्थना नहीं कर रहा हूँ बल्कि उनके लिये भी जो इनके उपदेशों द्वारा मुझ में विश्वास करेंगे। 21 वे सब एक हों। वैसे ही जैसे हे परम पिता तू मुझ में है और मैं तुझ में। वे भी हममें एक हों। ताकि जगत विश्वास करे कि मुझे तूने भेजा है। 22 वह महिमा जो तूने मुझे दी है, मैंने उन्हें दी है; ताकि वे भी वैसे ही एक हो सकें जैसे हम एक हों। 23 मैं उनमें होऊँगा और तू मुझमें होगा, जिससे वे पूर्ण एकता को प्राप्त हों और जगत जान जाये कि मुझे तूने भेजा है और तूने उन्हें भी वैसे ही प्रेम किया है जैसे तू मुझे प्रेम करता है।
24 “हे परम पिता। जो लोग तूने मुझे सौंपे हैं, मैं चाहता हूँ कि जहाँ मैं हूँ, वे भी मेरे साथ हों ताकि वे मेरी उस महिमा को देख सकें जो तूने मुझे दी है। क्योंकि सृष्टि की रचना से भी पहले तूने मुझसे प्रेम किया है। 25 हे धार्मिक-पिता, जगत तुझे नहीं जानता किन्तु मैंने तुझे जान लिया है। और मेरे शिष्य जानते हैं कि मुझे तूने भेजा है। 26 न केवल मैंने तेरे नाम का उन्हें बोध कराया है बल्कि मैं इसका बोध कराता भी रहूँगा ताकि वह प्रेम जो तूने मुझ पर दर्शाया है उनमें भी हो। और मैं भी उनमें रहूँ।”
समीक्षा
चर्च और विश्व
सुसमाचार में, हम अक्सर यीशु के प्रार्थना जीवन के विषय में पढ़ते हैं. लेकिन हमें बताया गया है कि उन्होंने किस विषय में प्रार्थना की. क्रूस का सामना करने के लिए जाने से पहले, यीशु की इस महान प्रार्थना में, हम उनकी प्राथमिकताओं को देखते हैं.
यीशु ना केवल अपने चेलों के लिए प्रार्थना करते हैं, लेकिन उनके लिए भी जो भविष्य में विश्वास करते हैं – इसका अर्थ है, वह संपूर्ण चर्च के लिए प्रार्थना करते हैं – जिसमें आप और मैं शामिल हैं (व.20).
यह प्रार्थना एकता के विषय के द्वारा नियंत्रित है. यीशु ना केवल अपने चेलों के बीच में एकता के लिए प्रार्थना करते हैं (व.11), लेकिन चर्च के लिए भी प्रार्थना करते हैं (व.20). वह एकता के लिए प्रार्थना करते हैं इस तरह से जो त्रिएक्य को एकत्व में रखती हैः'ताकि वे भी एक हो, जैसे कि हम एक हैं' (व.11, ए.एम.पी.).
- एकता का उद्देश्य है यीशु का महान आयोग
यीशु ने पूर्ण एकता के लिए प्रार्थना की ताकि दुनिया विश्वास करे (व.23) और परमेश्वर के साथ एकत्व को जाने (वव.21,24). विश्वास में सबसे बड़ी अड़चन है चर्च में फूट. राजनीति में, जिस क्षण राजनैतिक दल में फूट पड़ जाती है, तब इसकी प्रसिद्धी कम हो जाती है. यह लौकिक विश्व में होता है और चर्च में और भी अधिक. यीशु कहते हैं कि उन्होंने अपने चेलों को सुरक्षित रखा और उनकी रक्षा की ताकि 'वे एक हों' (व.12). अब वह प्रार्थना करते हैं, 'उन्हें उस दुष्ट से बचा' (व.15) जो उनमें फूट डालने का प्रयास करता है.
जब चर्च एक दूसरे से लड़ते हैं, तब लोगों की रुचि कम हो जाती है. इसके विपरीत, जब चर्च एकत्व में आ जाते हैं तब यह बहुत आकर्षित करता है. यह आनंद का स्त्रोत है. यीशु के अनुयायियों को दुखद चीजें नही करनी चाहिए. यीशु प्रार्थना करते हैं कि 'वे मेरा आनंद अपने में पूरा पाएं' (व.13). आनंद एकता से आता है. फूट आनंद को चुरा लेती है. एकता शक्तिशाली है.
- यीशु की पवित्र आत्मा, एकता का माध्यम है
यीशु हम आपकी पवित्रता के लिए प्रार्थना करते हैं. यीशु प्रार्थना करते है, ' सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर : तेरा वचन सत्य है' (व.17). पवित्रता सत्य से आती है. सच्चाई परमेश्वर के वचन में पायी जाती है. यही कारण है कि अपने आपको परमेश्वर के वचन में भिगोना सबसे महत्वपूर्ण चीज है.
पवित्रता आती है जैसे ही हम पवित्र आत्मा का स्वागत करते हैं, जो कि है सत्य का आत्मा, जो हमारे अंदर रहने के लिए आते हैं.
यीशु प्रार्थना करते हैं, 'कि मैं उनमें रहूँ' (व.26). नये नियम के विषय में यह सबसे असाधारण सच्चाई है –कि पवित्र आत्मा के द्वारा यीशु आपमें रहने के लिए आते हैं. वही पवित्र आत्मा सभी मसीहों में रहता है, वह व्यक्ति चाहे जिस चर्च या समुदाय का हो. पवित्र आत्मा हमें एकता में लाता है.
- एकता का चिह्न है यीशु का प्रेम
यीशु प्रार्थना करते हैं, ' जो प्रेम तुझ को मुझ से था वह उनमें रहे' (व.26). पिता परमेश्वर अपने पुत्र यीशु से जो प्रेम करते हैं, उस प्रेम से बढ़कर कौन सा प्रेम आपके पास हो सकता है? आपके लिए यीशु की प्रार्थना है कि दूसरे मसीहों के लिए, मसीह की देह के दूसरे भागों के लिए आपके हृदय में आपके पास वही प्रेम हो जो प्रेम पिता परमेश्वर यीशु से करते हैं.
- एकता का माप है यीशु की दृश्यता
कभी कभी लोग 'अदृश्य एकता' के विषय में बात करते हैं. लेकिन यीशु ने अदृश्य एकता के विषय में प्रार्थना नहीं की. ना ही उन्होंने प्रार्थना की कि हम 'लगभग एकता में आ जाएं'. उन्होंने प्रार्थना की कि हम ' वे सिध्द होकर एक हो जाएँ, और संसार जाने कि तू ने ही मुझे भेजा है' (व.23). वह चाहते हैं कि चर्च पूरी तरह से और दृश्य रूप से एकत्व में आ जाएँ.
एक दिन यह हो जाएगा (इफिसियो 1:9-11 देखे). तब तक, जैसे ही हम पुल बनाते हैं, एक साथ काम करते हैं और चर्च के विभिन्न भागों से दूसरे मसीहों के साथ इकट्ठा होते हैं, जैसे यीशु के साथ संगति में हृदय और दिमाग एक हो जाते हैं, जैसा कि हम ब्युचनवल्ड में देख सकते हैं, हमारी अदृश्य एकता का दृश्य चिह्न.
प्रार्थना
परमेश्वर, जिस तरह से पवित्र आत्मा हमें एक साथ ला रहे हैं, उसके लिए आपका धन्यवाद. होने दीजिए कि हम दृश्य एकता के बढ़ते हुए चिह्नों को देख पाएं, ताकि जगत विश्वास कर सकें.
1 शमूएल 19:1-20:42
योनातान का दाऊद की सहायता करना
19शाऊल ने अपने पुत्र योनातान और अपने अधिकारियों से दाऊद को मार डालने के लिये कहा। किन्तु योनातान दाऊद को बहुत चाहता था। 2-3 योनातान ने दाऊद को सावधान किया, “सावधान रहो! शाऊल तुमको मार डालने के अवसर की तलाश में है। सवेरे मैदान में जाकर छिप जाओ। मैं अपने पिता के साथ मैदान में जाऊँगा। हम मैदान में वहाँ खड़े रहेंगे जहाँ तुम छिपे होगे। मैं तुम्हारे बारे में अपने पिता से बातें करूँगा। तब जो मुझे ज्ञात होगा मैं तुमको बताऊँगा।”
4 योनातान ने अपने पिता शाऊल से बातें कीं। योनातान ने दाऊद के बारे में अच्छी बातें कहीं। योनातान ने कहा, “आप राजा हैं। दाऊद आपका सेवक है। दाऊद ने आपको कोई हानि नहीं पहुँचाई है। इसलिए उसके साथ कुछ बुरा न करें। दाऊद सदा आपके प्रति अच्छा रहा है। 5 दाऊद अपने जीवन पर खेला था जब उसने पलिश्ती (गोलियत) को मारा था। यहोवा ने सारे इस्राएल के लिये एक बड़ी विजय प्राप्त की थी। आपने उसे देखा और आप उस पर बड़े प्रसन्न थे। आप दाऊद को हानि क्यों पहुँचाना चाहते हैं? वह निरपराध है। उसे मार डालने का कोई कारण नहीं है!”
6 शाऊल ने योनातान की बात सुनी। शाऊल ने प्रतिज्ञा की। शाऊल ने कहा, “यहोवा के अस्तित्व के अटल सत्य की तरह, दाऊद भी मारा नहीं जाएगा।”
7 अत: योनातान ने दाऊद को बुलाया। तब उसने दाऊद से वह सब कहा जो कहा गया था। तब योनातान, दाऊद को शाऊल के पास लाया। इस प्रकार शाऊल के साथ दाऊद पहले की तरह हो गया।
शाऊल, दाऊद को मारने का फिर प्रयत्न करता है
8 युद्ध फिर आरम्भ हुआ और दाऊद पलिश्तियों से युद्ध करने गया। उसने पलिश्तियों को हराया और वे उसके आगे भाग खड़े हुए। 9 किन्तु यहोवा द्वारा शाऊल पर भेजी दुष्टात्मा उतरी। शाऊल अपने घर में बैठा था। शाऊल के हाथ में उसका भाला था। दाऊद वीणा बजा रहा था। 10 शाऊल ने अपने भाले को दाऊद के शरीर पर चला कर उसे दीवार पर टाँक देने का प्रयत्न किया। दाऊद भाले के रास्त से कूद कर बच निकला और भाला दीवार से टकरा कर रह गया। अतः उसी रात दाऊद वहाँ से भाग निकला।
11 शाऊल ने लोगों को दाऊद के घर भेजा। लोगों ने दाऊद के घर पर निगरानी रखी। वे रात भर वहीं ठहरे। वे सवेरे दाऊद को मार डालने की प्रतीक्षा कर रहे थे। किन्तु उसकी पत्नी मीकल ने उसे सावधान कर दिया। उसने कहा, “तुम्हें आज की रात भाग निकलना चाहिये और अपने जीवन की रक्षा करनी चाहिए। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे, तो कल मार दिये जाओगे।” 12 तब मीकल ने एक खिड़की से उसे नीचे उतार दिया। दाऊद बच गया और वहाँ से भाग निकला। 13 मीकल ने अपने पारिवारिक देवता की मूर्ति को लिया और उसे बिस्तर पर लिटा दिया। मीकल ने उस मूर्ति पर कपड़े डाल दिये। उसने उसके सिर पर बकरी के बाल भी लगा दिये।
14 शाऊल ने दाऊद को बन्दी बनाने के लिये दूत भेजे। किन्तु मीकल ने कहा, “दाऊद बीमार है।”
15 सो वे लोग वहाँ से चले गये और उन्होंने शाऊल से जाकर यह बता दिया, किन्तु उसने दूतों को दाऊद को देखने के लिये वापस भेजा। शाऊल ने इन लोगों से कहा, “दाऊद को मेरे पास लाओ। यदि आवश्यकता पड़े तो उसे अपने बिस्तर पर लेटे हुये ही उठा लाओ। मैं उसे मार डालूँगा।”
16 सो दूत फिर दाऊद के घर गये। वे दाऊद को पकड़ने भीतर गये, किन्तु वहाँ उन्होंने देखा कि बिस्तर पर केवल एक मूर्ति थी। उन्होंने देखा कि उसके बाल तो बस बकरी के बाल थे।
17 शाऊल ने मीकल से कहा, “तुमने मुझे इस प्रकार धोखा क्यों दिया? तुमने मेरे शत्रु को भाग जाने दिया। दाऊद भाग गया है!”
मीकल ने शाऊल को उत्तर दिया, “दाऊद ने मुझसे कहा था कि वह मुझे मार डालेगा यदि मैं भाग जाने में उसकी सहायता नहीं करुँगी।”
दाऊद का रामा के डेरों में जाना
18 दाऊद बच निकला। दाऊद शमूएल के पास रामा में भागकर पहुँचा। दाऊद ने शमूएल से वह सब बताया जो शाऊल ने उसके साथ किया था। तब दाऊद और शमूएल उन डेरों में गये जहाँ भविष्यवक्ता रहते थे। दाऊद वहीं रुका।
19 शाऊल को पता चला कि दाऊद रामा के निकट डेरों में था। 20 शाऊल ने दाऊद को बन्दी बनाने के लिये लोगों को भेजा। किन्तु जब वे डेरों में आए तो उस समय नबियों का एक समूह भविष्यवाणी कर रहा था। शमूएल समूह का मार्ग दर्शन करता हुआ वहाँ खड़ा था। परमेश्वर की आत्मा शाऊल के दूतों पर उतरी और वे भविष्यवाणी करने लगे।
21 शाऊल ने इस बारे में सुना, अत: उसने वहाँ अन्य दूत भेजे। किन्तु वे भी भविष्यवाणी करने लगे। इसलिये शाऊल ने तीसरी बार दूत भेजे और वे भी भविष्यवाणी करने लगे। 22 अन्तत:, शाऊल स्वयं रामा पहुँचा। शाऊल सेकू में खलिहान के समीप एक बड़े कुँए के पास आया। शाऊल ने पूछा, “शमूएल और दाऊद कहाँ हैं?”
लोगों ने उत्तर दिया, “रामा के निकट डेरे में।”
23 तब शाऊल रामा के निकट डेरे में गया। परमेश्वर की आत्मा शाऊल पर भी उतरी और शाऊल ने भविष्यवाणी करनी आरम्भ की। शाऊल रामा के डेरे तक अधिकाधिक भविष्यवाणियाँ लगातार करता गया। 24 तब शाऊल ने अपने वस्त्र उतारे। इस प्रकार शाऊल भी शमूएल के सामने भविष्यवाणी कर रहा था। शाऊल वहाँ सारे दिन और सारी रात नंगा लेटा रहा।
यही कारण है कि लोग कहते हैं, “क्या शाऊल नबियों में से कोई एक है?”
दाऊद और योनातान एक सन्धि करते हैं
20दाऊद रामा के निकट के डेरे से भाग गया। दाऊद योनातान के पास पहुँचा और उससे पूछा, “मैंने कौन सी गलती की है? मेरा अपराध क्या है? तुम्हारा पिता मुझे मारने का प्रयत्न क्यों कर रहा है?”
2 योनातान ने उत्तर दिया, “मेरे पिता तुमको मारने का प्रयत्न नहीं कर रहे हैं! मेरे पिता मुझसे पहले कहे बिना कुछ नहीं करते। यह महत्वपूर्ण नहीं कि वह बात बहुत महत्वपूर्ण हो या तुच्छ, मेरे पिता सदा मुझे बताते हैं। मेरे पिता मुझसे यह बताने से क्यों इन्कार करेंगे कि वे तुमको मार डालना चाहते हैं? नहीं, यह सत्य नहीं है!”
3 किन्तु दाऊद ने उत्तर दिया, “तुम्हारे पिता अच्छी तरह जानते हैं कि मैं तुम्हारा मित्र हूँ। तुम्हारे पिता ने अपने मन में यह सोचा है, ‘योनातान को इस विषय में जानकारी नहीं होनी चाहिये। यदि वह जानेगा तो दाऊद से कह देगा।’ किन्तु जैसे यहोवा का होना सत्य है और तुम जीवित हो, उसी प्रकार यह भी सत्य है कि मैं मृत्यु के बहुत निकट हूँ!”
4 योनातान ने दाऊद से कहा, “मैं वह सब कुछ करूँगा जो तुम मुझसे करवाना चाहो।”
5 तब दाऊद ने कहा, “देखो, कल नया चाँद का महोत्सव है और मुझे राजा के साथ भोजन करना है। किन्तु मुझे सन्ध्या तक मैदान में छिपे रहने दो। 6 यदि तुम्हारे पिता को यह दिखाई दे कि मैं चला गया हूँ, तो उनसे कहो कि, ‘दाऊद अपने घर बेतलेहेम जाना चाहता था। उसका परिवार इस मासिक बलि के लिए स्वयं ही दावत कर रहा है। दाऊद ने मुझसे पूछा कि मैं उसे बेतलेहेम जाने और उसके परिवार से उसे मिलने दूँ,’ 7 यदि तुम्हारे पिता कहते हैं, ‘बहुत अच्छा हुआ,’ तो मैं सुरक्षित हूँ। किन्तु यदि तुम्हारे पिता क्रोधित होते हैं तो समझो कि मेरा बुरा करना चाहते हैं। 8 योनातान मुझ पर दया करो। मैं तुम्हारा सेवक हूँ। तुमने यहोवा के सामने मेरे साथ सन्धि की है। यदि मैं अपराधी हूँ तो तुम स्वयं मुझे मार सकते हो! किन्तु मुझे अपने पिता के पास मत ले जाओ।”
9 योनातान ने उत्तर दिया, “नहीं, कभी नहीं! यदि मैं जान जाऊँगा कि मेरे पिता तुम्हारा बुरा करना चाहते हैं तो तुम्हें सावधान कर दूँगा।”
10 दाऊद ने कहा, “यदि तुम्हारे पिता तुम्हें कठोरता से उत्तर देते हैं तो उसके बारे में मुझे कौन बताएगा?”
11 तब योनातान ने कहा, “आओ, हम लोग मैदान मे चलें।” सो योनातान और दाऊद एक साथ एक मैदान में चले गए।
12 योनातान ने दाऊद से कहा, “मैं इस्राएल का परमेश्वर यहोवा के सामने यह प्रतिज्ञा करता हूँ। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं पता लागाऊँगा कि मेरे पिता तुम्हारे प्रति कैसा भाव रखते हैं। मैं पता लगाऊँगा कि वे तुम्हारे बारे में अच्छा भाव रखते हैं या नहीं। तब तीन दिन में, मैं तुम्हें मैदान में सूचना भेजूँगा। 13 यदि मेरे पिता तुम पर चोट करना चाहते हैं तो मैं तुम्हें जानकारी दूँगा। मैं तुमको यहाँ से सुरक्षित जाने दूँगा। यहोवा मुझे दण्ड दे यदि मैं ऐसा न करूँ। यहोवा तुम्हारे साथ रहे जैसे वह मेरे पिता के साथ रहा है। 14 जब तक मैं जीवित रहूँ मेरे ऊपर दया रखना और जब मैं मर जाऊँ तो 15 मेरे परिवार पर दया करना बन्द न करना। यहोवा तुम्हारे सभी शत्रुओं को पृथ्वी पर से नष्ट कर देगा। 16 यदि उस समय योनातान का परिवार दाऊद के परिवार से पृथक किया जाना ही हो, तो उसे हो जाने देना। दाऊद के शत्रुओं को यहोवा दण्ड दे।”
17 तब योनातान ने दाऊद से कहा कि वह उसके प्रति प्रेम की प्रतिज्ञा को दुहराये। योनातान ने यह इसलिए किया क्योंकि वह दाऊद से उतना ही प्रेम करता था जितना अपने आप से।
18 योनातान ने दाऊद से कहा, “कल नया चाँद का उत्सव है। तुम्हारा आसन खाली रहेगा। इसलिए मेरे पिता समझ जाएंगे कि तुम चले गये हो। 19 तीसरे दिन उसी स्थान पर जाओ जहाँ तुम इस परेशानी के प्रारम्भ होने के समय छिपे थे। उस पहाड़ी की बगल में प्रतीक्षा करो। 20 तीसरे दिन, मैं उस पहाड़ी पर ऐसे जाऊँगा जैसे मैं किसी लक्ष्य को बेध रहा हूँ। मैं कुछ बाणों को छोड़ूँगा। 21 तब मैं, बाणों का पता लगाने के लिये, अपने शस्त्रवाहक लड़के से जाने के लिये कहूँगा। यदि सब कुछ ठीक होगा तो मैं लड़के से कहूँगा, ‘तुम बहुत दूर निकल गए हो! बाण मेरे करीब ही है। लौटो और उन्हें उठा लाओ।’ यदि मैं ऐसा कहूँ तो तुम छिपने के स्थान से बाहर आ सकते हो। मैं वचन देता हूँ कि जैसे यहोवा शाश्वत है वैसे ही तुम सुरक्षित हो। कोई भी खतरा नहीं है। 22 किन्तु यदि खतरा होगा तो मैं लड़के से कहूँगा। ‘बाण बहुत दूर है, जाओ और उन्हें लाओ।’ यदि मैं ऐसा कहूँ तो तुम्हें चले जाना चाहिये। यहोवा तुम्हें दूर भेज रहा है। 23 तुम्हारे और मेरे बीच की इस सन्धि को याद रखो। यहोवा सदैव के लिये हमारा साक्षी है!”
24 तब दाऊद मैदान में जा छिपा।
उत्सव में शाऊल के इरादे
नया चाँद के उत्सव का समय आया और राजा भोजन करने बैठा। 25 राजा दीवार के निकट वहीं बैठा जहाँ वह प्राय: बैठा करता था। योनातान शाऊल के दूसरी ओर सामने बैठा। अब्नेर शाऊल के बाद बैठा। किन्तु दाऊद का स्थान खाली था। 26 उस दिन शाऊल ने कुछ नहीं कहा। उसने सोचा, “सम्भव है दाऊद को कुछ हुआ हो और वह शुद्ध न हो।”
27 अगले दिन, महीने के दूसरे दिन, दाऊद का स्थान फिर खाली था। तब शाऊल ने अपने पुत्र योनातान से पूछा, “यिशै का पुत्र नया चाँद के उत्सव में कल या आज क्यों नहीं आया?”
28 योनातान ने उत्तर दिया, “दाऊद ने मुझसे बेतलेहेम जाने देने के लिये कहा था। 29 उसने कहा, ‘मुझे जाने दो। मेरा परिवार बेतलेहेम में एक बलि—भेंट कर रहा है। मेरे भाई ने वहाँ रहने का आदेश दिया है। अब यदि मैं तुम्हारा मित्र हूँ तो मुझे जाने दो और भाईयों से मिलने दो।’ यही कारण है कि दाऊद राजा की मेज पर नहीं आया है।”
30 शाऊल योनातान पर बहुत क्रोधित हुआ। उसने योनातान से कहा, “तुम उस एक दासी के पुत्र हो, जो आज्ञा पालन करने से इन्कार करती है और तुम ठीक उसी तरह के हो। मैं जानता हूँ कि तुम दाऊद के पक्ष में हो। तुम अपनी माँ और अपने लिये लज्जा का कारण हो। 31 जब तक यिशै का पुत्र जीवित रहेगा तब तक तुम कभी राजा नहीं बनोगे, न तुम्हारा राज्य होगा। अब दाऊद को हमारे पास लाओ। वह एक मरा व्यक्ति है!”
32 योनातान ने अपने पिता से पूछा, “दाऊद को क्यों मार डाला जाना चाहिये? उसने क्या अपराध किया है?”
33 किन्तु शाऊल ने अपना भाला योनातान पर चलाया और उसे मार डालने का प्रयन्त किया। अत: योनातान ने समझ लिया कि मेरा पिता दाऊद को निश्चित रूप से मार डालने का इच्चुक है। 34 योनातान क्रोधित हुआ और उसने मेज छोड़ दी। योनातान इतना घबरा गया और अपने पिता पर इतना क्रोधित हुआ कि उसने दावत के दूसरे दिन कुछ भी भोजन करना अस्वीकार कर दिया। योनातान इसलिये क्रोधित हुआ क्योंकि शाऊल ने उसे अपमानित किया था और शाऊल दाऊद को मार डालना चाहता था।
दाऊद और योनातान का विदा लेना
35 अगली सुबह योनातान मैदान में गया। वह दाऊद से मिलने गया, जैसा उन्होंने तय किया था। योनातान एक शस्त्रवाहक लड़के को अपने साथ लाया। 36 योनातान ने लडके से कहा, “दौड़ो, और जो बाण मैं चलाता हूँ, उनहें लाओ।” लड़के ने दौड़ना आरम्भ किया और योनातान ने उसके सिर के ऊपर से बाण चलाए। 37 लड़का उस स्थान को दौड़ा, जहाँ बाण गिरा था। किन्तु योनातान ने पुकारा, “बाण बहुत दूर है!” 38 तब योनातान जोर से चिल्लाया “जल्दी कारो! उन्हें लाओ! वहीं पर खड़े न रहो!” लड़के ने बाणों को उठाया और अपने स्वामी के पास वापस लाया। 39 लड़के को कुछ पता न चला कि हुआ क्या। केवल योनातान और दाऊद जान सके। 40 योनातान ने अपना धनुष बाण लड़के को दिया। तब योनातान ने लड़के से कहा, “नगर को लौट जाओ।”
41 लड़का चल पड़ा, और दाऊद अपने उस छिपने के स्थान से बाहर आया जो पहाड़ी के दूसरी ओर था। दाऊद ने भूमि तक अपने सिर को झुकाकर योनातान के सामने प्रणाम किया। दाऊद तीन बार झुका। तब दाऊद और योनातान ने एक दूसरे का चुम्बन लिया। वे दोनों एक साथ रोये, किन्तु दाऊद योनातान से अधिक रोया।
42 योनातान ने दाऊद से कहा, “शान्तिपूर्वक जाओ। हम लोगों ने यहोवा का नाम लेकर मित्र होने की प्रतिज्ञा की थी। हम लोगों ने कहा था कि यहोवा हम लोगों और हमारे वंशजों के बीच सदा साक्षी रहेगा।”
समीक्षा
मित्र और प्रतिद्वंदी
राजनीती में, व्यवसाय में या यहाँ तक कि चर्च जीवन में, दो लोग जो घनिष्ठ मित्र हैं, वह उसी समय में एक ही काम के लिए प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं. कैसे हम अपने अभिप्रायों और हमारी मित्रता के बीच संघर्ष से निपट सकते हैं?
दाऊद और योनातन के बीच मित्रता उल्लेखनीय थी. वे सिंहासन के लिए प्रतिद्वंदी थे. एक दूसरे से ईर्ष्या करने और एक दूसरे से नफरत करने के लिए उनके पास कारण था. फिर भी योनातन ने दाऊद से ऐसा प्रेम रखा 'जैसा वह अपने आपसे प्रेम करता था' (20:17). इस प्रकार का प्रेम, जिसकी यीशु ने आज्ञा दी है, यह सबसे ऊँचा प्रेम है जिसे एक व्यक्ति को दूसरे से करना चाहिए (मत्ती 22:39).
दूसरी ओर, शाऊल ईर्ष्या से भरा हुआ था. ईर्ष्या की शुरुवात होती है दूसरों के साथ अपनी तुलना करने से – अपने आस-पास के लोगों के साथ अपनी उपलब्धियों की तुलना करना. ईर्ष्या में सामर्थ है किसी व्यक्ति को थोडे समय के लिए उसकी इंद्रियों से वंचित कर देने की. जब योनातन अपने पिता शाऊल को बताते हैं कि दाऊद ने उनके साथ कुछ गलत नहीं किया है और महान रूप से उनका लाभ किया है और एक निर्दोष व्यक्ति को मारना बहुत गलत बात होगी, तब शाऊल कहते हैं, 'यहोवा के जीवन की शपथ, दाऊद मार डाला न जाएगा' (1शमुएल 19:6).
उचित और तर्कसंगत विवाद ऐसे एक व्यक्ति को राजी कर सकते हैं जो उस समय ईर्ष्या से भरा हुआ है. किंतु, ईर्ष्या इतनी शक्तिशाली है कि जैसे ही यह एक व्यक्ति को जकड़ लेती है, जैसा कि शाऊल के साथ हुआ, तब इसे रोका नहीं जा सकता है. जैसा कि शेक्सपियर इसे बताते हैं, 'यह हरी आँखवाला राक्षस है जो उस माँस पर हँसता है जिसे वह खाता है.'
दाऊद और योनातन एक-दूसरे से प्रेम करते थे. योनातन दाऊद से बहुत प्रसन्न था (व.1) और उसने 'दाऊद के विषय में अच्छी बाते कही' (व.4). यहाँ तक कि योनातन ने दाऊद से कहा, 'जो कुछ तेरा जी चाहे वही मैं तेरी लिये करुँगा' (20:4). एक मित्र से की गई कितनी महान कटिबद्धता! एक दूसरे के प्रति उनकी कटिबद्धता ने एक 'वाचा' का रूप ले लिया (व.16), जिसमें उनके वारिस भी शामिल थे (व.42). और योनातन दाऊद से प्रेम रखता था, और उसने उसको फिर शपथ खिलाई; क्योंकि वह उससें अपने प्राण के बराबर प्रेम रखता था (वव.16-17).
इसके परिणामस्वरूप, शाऊल की ईर्ष्या भड़क कर क्रोध बन गईः शाऊल का कोप योनातन पर भड़क उठा' (व.30). योनातन जानते थे कि उनके पिता दाऊद को मार डालना चाहते थे (व.33). तब योनातन क्रोध से जलता हुआ मेज पर से उठ गया (व.34).
शाऊल के क्रोध और योनातन के क्रोध में यह अंतर था कि शाऊल का क्रोध अप्रसन्न होने और ईर्ष्या के द्वारा उत्पन्न हुआ था. योनातन का क्रोध सत्यनिष्ठ क्रोध था; 'वह बहुत खेदित था, इसलिये कि उसके पिता ने दाऊद का अनादर किया था' (व.34). क्रोध हमेशा गलत नहीं होता है – लेकिन अपने उद्देश्य को सावधानीपूर्वक जाँचियेगा.
दाऊद और योनातन एक दूसरे के प्रति अपने स्नेह को दिखाने में लज्जित नहीं थेः'...उन्होंने एक दूसरे को चूमा, और एक दूसरे के साथ रोए' (व.41). पश्चिमी लोगों की तरह हम अक्सर रोने को कमजोरी दिखाने के रुप में देखते हैं. मुक्त रूप से रोने में और एक दूसरे के प्रति अपने प्रेम को दिखाने में वे लज्जित महसूस नहीं कर रहे थे. यह मित्रता, प्रेम और एकता का एक शक्तिशाली नमूना है. विवाह अकेलेपन के लिए परमेश्वर का उत्तर है. घनिष्ठ मित्रता दूसरा उत्तर है.
यह प्रेम और मित्रता थी जिसने योनातन को पूरी तरह से ईमानदार, सहायक और बचाने वाला बनाया, इस तथ्य के बावजूद कि वह सिंहासन के लिए एक प्रतिद्वंदी उम्मीदवार था.
प्रार्थना
परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि हमारे मित्रों और पड़ोसियों को अपनी ही तरह प्रेम करने में हम इच्छुक और सक्षम बने. होने दीजिए कि प्रेम, स्नेह और चर्च समुदाय की एकता में लोग अकेलेपन के लिए उत्तर को प्राप्त करें.
पिप्पा भी कहते है
1शमुएल 19:1-2
'शाऊल ने अपने पुत्र योनातन और अपने सब कर्मचारियों से दाऊद को मार डालने की चर्चा की. परंतु शाऊल का पुत्र योनातन दाऊद से बहुत प्रसन्न था. योनातन ने दाऊद को बताया, 'मेरा पिता तुझे मरवा डालना चाहता है; इसलिए तू सवेरे सावधान रहना, और किसी गुप्त स्थान में बैठा हुआ छिपा रहना.'
दाऊद कठिन समय से गुजर रहे थे. वह वफादारी से परमेश्वर और राजा शाऊल की सेवा कर रहे थे. चाहे उन्होंने जो किया इससे वह अपने बॉस (शाऊल) को प्रसन्न नहीं कर सके. एकमात्र वस्तु जो दाऊद कर सकते थे वह था निरंतर सही चीज को करते रहना. उन्होंने बदला लेने या न्याय पाने की कोशिश नहीं की. अंत में, पमरेश्वर ने उसे प्रमाणिक किया.
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संदर्भ
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