परीक्षा और प्रलोभन
परिचय
जॉन विम्बर, यूएस पासवान और विनयार्ड मूवमेंट के पथ प्रदर्शक ने, पूरी दुनिया के चर्चों को प्रभावित किया। त्रेसठ वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया। उनके लिए जीवन बेहद कठिन हो गया था।
उनका बहुत अपमान किया गया। मुझे याद है एक बार वह मुझ से कह रहे थे, 'बदनामी थोड़े समय का मजाक है, लेकिन इसके बाद यह सिर्फ एक परेशानी बनकर रह जाती है.' लेकिन शायद उनका दिल इसलिए टूट गया क्योंकि उनके तीन सबसे करीबी लोगों ने, जिन्हें उन्होंने अपने बेटे जैसा समझा था, वे सभी प्रलोभन और नैतिक असफलता में पड़ गये।
परमेश्वर ने असाधारण तरीके से जॉन विम्बर का उपयोग किया था। लेकिन उन्होंने और उनकी टीम ने अनेक परीक्षाओं और प्रलोभनों का सामना किया था। जीवन ऐसा ही है और बाइबल इस बारे में जरा भी निष्कपट नहीं है। सामान्य रूप से जब हम एक संघर्ष से उभरते हैं, तो दूसरे कोने में एक और शुरु हो जाता है। यह जीवन की चुनौती है।
भजन संहिता 71:1-8
71हे यहोवा, मुझको तेरा भरोसा है,
इसलिए मैं कभी निराश नहीं होऊँगा।
2 अपनी नेकी से तू मुझको बचायेगा। तू मुझको छुड़ा लेगा।
मेरी सुन। मेरा उद्धार कर।
3 तू मेरा गढ़ बन।
सुरक्षा के लिए ऐसा गढ़ जिसमें मैं दौड़ जाऊँ।
मेरी सुरक्षा के लिए तू आदेश दे, क्योंकि तू ही तो मेरी चट्टान है; मेरा शरणस्थल है।
4 मेरे परमेश्वर, तू मुझको दुष्ट जनों से बचा ले।
तू मुझको क्रूरों कुटिल जनों से छुड़ा ले।
5 मेरे स्वामी, तू मेरी आशा है।
मैं अपने बचपन से ही तेरे भरोसे हूँ।
6 जब मैं अपनी माता के गर्भ में था, तभी से तेरे भरोसे था।
जिस दिन से मैंने जन्म धारण किया, मैं तेरे भरोसे हूँ।
मैं तेरी प्रर्थना सदा करता हूँ।
7 मैं दूसरे लोगों के लिए एक उदाहरण रहा हूँ।
क्योंकि तू मेरा शक्ति स्रोत रहा है।
8 उन अद्भुत कर्मो को सदा गाता रहा हूँ, जिनको तू करता है।
समीक्षा
प्रभु में विश्वास रखें
यह भजन मुश्किलों और विरोधों से भरा हुआ है। फिर भी इन सबके बीच, लेखक लिखता है कि, 'मैं गर्भ से निकलते ही, तुझ से सम्भाला गया; मुझे मां की कोख से तू ही ने निकाला; इसलिये मैं नित्य तेरी स्तुति करता रहूंगा' (व.6)। इस भजन में हम तीन मुख्य पहलुओं को देखते हैं कि, परमेश्वर पर विश्वास करने में क्या शामिल है:
- प्रार्थना करें
यहाँ पर एक प्रार्थना है जिसे आप कर सकते हैं: 'हे यहोवा मैं तेरा शरणागत हूँ...... मुझे इस दुर्दशा से छुड़ा' (वव.1-2, एमएसजी)।
- धीरज रखें
जब आप मदद के लिए परमेश्वर को पुकारें और अपनी परेशानियाँ परमेश्वर पर डाल दें, तो अगला कदम है उन पर भरोसा करना (व.5): 'मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूँ; बचपन से मेरा आधार तू है' (वव.5-6)।
- स्तुती करना
युद्ध में जाने से पहले, युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद आप परमेश्वर की स्तुती कर सकते हैं: ' मेरे मुंह से तेरे गुणानुवाद, और दिन भर तेरी शोभा का वर्णन बहुत हुआ करे' (व.8)।
प्रार्थना
प्रभु, आपको धन्यवाद कि जब मैं अपने भविष्य और संघर्षों को देखता हूँ, तो मैं आप पर भरोसा कर सकता हूँ।
प्रेरितों के काम 4:1-22
पतरस और यूहन्ना: यहूदी सभा के सामने
4अभी पतरस और यूहन्ना लोगों से बात कर रहे थे कि याजक, मन्दिर के सिपाहियों का मुखिया और कुछ सदूकी उनके पास आये। 2 वे उनसे इस बात पर चिड़े हुए थे कि पतरस और यूहन्ना लोगों को उपदेश देते हुए यीशु के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा पुनरुत्थान का प्रचार कर रहे थे। 3 सो उन्होंने उन्हें बंदी बना लिया और क्योंकि उस समय साँझ हो चुकी थी, इसलिये अगले दिन तक हिरासत में रख छोड़ा। 4 किन्तु जिन्होंने वह संदेश सुना उनमें से बहुतों ने उस पर विश्वास किया और इस प्रकार उनकी संख्या लगभग पाँच हजार पुरूषों तक जा पहुँची।
5 अगले दिन उनके नेता, बुजुर्ग और यहूदी धर्मशास्त्री यरूशलेम में इकट्ठे हुए। 6 महायाजक हन्ना, कैफ़ा, यूहन्ना, सिकन्दर और महायाजक के परिवार के सभी लोग भी वहाँ उपस्थित थे। 7 वे इन प्रेरितों को उनके सामने खड़ा करके पूछने लगे, “तुमने किस शक्ति या अधिकार से यह कार्य किया?”
8 फिर पवित्र आत्मा से भावित होकर पतरस ने उनसे कहा, “हे लोगों के नेताओ और बुजुर्ग नेताओं! 9 यदि आज हमसे एक लँगड़े व्यक्ति के साथ की गयी भलाई के बारे में यह पूछताछ की जा रही है कि वह अच्छा कैसे हो गया 10 तो तुम सब को और इस्राएल के लोगों को यह पता हो जाना चाहिये कि यह काम नासरी यीशु मसीह के नाम से हुआ है जिसे तुमने क्रूस पर चढ़ा दिया और जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से पुनर्जीवित कर दिया है। उसी के द्वारा पूरी तरह से ठीक हुआ यह व्यक्ति तुम्हारे सामने खड़ा है। 11 यह यीशु वही,
‘वह पत्थर जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने नाकारा ठहराया था,
वही अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पत्थर बन गया है।’
12 किसी भी दूसरे में उद्धार निहित नहीं है। क्योंकि इस आकाश के नीचे लोगों को कोई दूसरा ऐसा नाम नहीं दिया गया है जिसके द्वारा हमारा उद्धार हो पाये।”
13 उन्होंने जब पतरस और यूहन्ना की निर्भीकता को देखा और यह समझा कि वे बिना पढ़े लिखे और साधारण से मनुष्य हैं तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। फिर वे जान गये कि ये यीशु के साथ रह चुके लोग हैं। 14 और क्योंकि वे उस व्यक्ति को जो चंगा हुआ था, उन ही के साथ खड़ा देख पा रहे थे सो उनके पास कहने को कुछ नहीं रहा।
15 उन्होंने उनसे यहूदी महासभा से निकल जाने को कहा और फिर वे यह कहते हुए आपस में विचार-विमर्श करने लगे, 16 “इन लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया जाये? क्योंकि यरूशलेम में रहने वाला हर कोई जानता है कि इनके द्वारा एक उल्लेखनीय आश्चर्यकर्म किया गया है और हम उसे नकार भी नहीं सकते। 17 किन्तु हम इन्हें चेतावनी दे दें कि वे इस नाम की चर्चा किसी और व्यक्ति से न करें ताकि लोगों में इस बात को और फैलने से रोका जा सके।”
18 सो उन्होंने उन्हें अन्दर बुलाया और आज्ञा दी कि यीशु के नाम पर वे न तो किसी से कोई ही चर्चा करें और न ही कोई उपदेश दें। 19 किन्तु पतरस और यूहन्ना ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम ही बताओ, क्या परमेश्वर के सामने हमारे लिये यह उचित होगा कि परमेश्वर की न सुन कर हम तुम्हारी सुनें? 20 हम, जो कुछ हमने देखा है और सुना है, उसे बताने से नहीं चूक सकते।”
21-22 फिर उन्होंने उन्हें और धमकाने के बाद छोड़ दिया। उन्हें दण्ड देने का उन्हें कोई रास्ता नहीं मिल सका क्योंकि जो घटना घटी थी, उसके लिये सभी लोग परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे। जिस व्यक्ति पर अच्छा करने का यह आश्चर्यकर्म किया गया था, उसकी आयु चालीस साल से ऊपर थी।
समीक्षा
यीशु के साथ होने से निर्भीक होना
प्रमाणिक मसीहत में किसी न किसी तरह का विरोध होना और संकट आना जरूरी है। यहाँ, चेलों को बंदीगृह में डाल दिया गया था और वे पूरी तरह से संकट में थे। प्रभावशाली तरीके से, उन पर मसीही होने का दोष लगाया गया था (हालाँकि उस समय वे इस नाम से नहीं गए थे)। चर्च के इतिहास में ऐसा एक भी समय नहीं था जब दुनिया में कहीं न कहीं मसीही लोगों पर इस अपराध के कारण परेशानी नहीं आई थी।
इस बात पर विवाद नहीं हुआ था कि लोगों को चंगाई मिली थी। सुसमाचार में यीशु ही हैं जिन्होंने यह चमत्कार किये थे; प्रेरितों के कार्य में साधारण लोग भी उनके नाम से चमत्कार करते थे। जब पूछा गया, ' कि तुम ने यह काम किस सामर्थ से और किस नाम से किया है? ' (व.7)। तब पतरस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर पतरस ने कहा। यीशु मसीह नासरी के नाम से जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, और परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया' (व.10)। आज, आप भी इस सामर्थी तरीके से प्रार्थना कर सकते हैं।
पतरस के पास यह साहस था वह अपने न्याय करने वालों से कह सके कि तुमने दुनिया के उद्धारकर्ता को क्रूस पर चढ़ाने का अपराध किया है। उन्होंने यीशु का तिरस्कार किया और उन्हें क्रूस पर चढ़ाया। पतरस उस दासी से यह कहने से भी डर रहा था कि वह यीशु को जानता है। अब, वह बदल गया है। और वह लोगों के बीच उस न्यायालय में यीशु का और उनके पुनरूत्थान का प्रचार कर रहा था, जहाँ उन पर मुकदमा चलाया गया था और जहाँ से 500 यार्ड दूरी पर उन्हें क्रूस पर चढ़ाया गया था।
मुख्य बात यह है कि पतरस ने फिर से जी उठे यीशु से मुलाकात की थी और अब वह पवित्र आत्मा से भर गया था (व.8)। अब वह जानता था कि यीशु क्या करने आए थे और पवित्र आत्मा के द्वारा, यीशु उसके साथ थे और उसकी मदद कर रहे थे।
पतरस आगे कहता है, ' किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें' (व.12)।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वे उससे नजरें नहीं हटा सक़े – पतरस और यूहन्ना बड़े साहस से खड़े थे, और वे खुद के बारे में बहुत ही निश्चिंत थे! उनकी मुग्धता और भी बढ़ गई जब उन्हें पता चला कि ये दोनों साधारण व्यक्ति हैं जिन्हें कोई भी आत्मिक प्रशिक्षण या औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी। वे यीशु के साथी के रूप में जाने जाते थे (व.13)।
शायद पतरस और यूहन्ना को ज्यादा औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी, लेकिन वे 'यीशु के स्कूल' में थे। वे यीशु के शिष्य थे। वे 'परमेश्वर के वचन के' महाविद्यालय में गए थे। और अब वे 'पवित्र आत्मा के विश्वविद्यालय' में शिक्षा पा रहे थे। ऐसे कई लोग हैं जिनका परमेश्वर ने महान रीति से उपयोग किया है लेकिन उनकी औपचारिक शिक्षा काफी कम थी।
पतरस और यूहन्ना को धमकी दी गई कि वे यीशु के बारे में न कहें। लेकिन उन्होंने जवाब दिया कि, ' यह तो हम से हो नहीं सकता, कि जो हम ने देखा और सुना है, वह न कहें' (व.20)।
जब उन्होंने न्याय करने वालों का सामना किया, तब उन्होंने इस सच्चाई से बड़ी मदद पाई कि जिससे सभी लोग देख सकें कि कौन सा अद्भुत चमत्कार हुआ है। चालीस साल का चंगाई प्राप्त आदमी यीशु के सामर्थ की गवाही के रूप में वहाँ पर खड़ा था (वव.14-21)।
प्रार्थना
प्रभु, मुझे अपनी पवित्र आत्मा से भर दीजिये और पतरस और यूहन्ना जैसा साहस दीजिये ताकि मैं यीशु का प्रचार कर सकूँ, चाहें इसकी कीमत कुछ भी क्यों ना चुकानी पड़े और चाहें जो भी विरोध हो। हम असाधारण चमत्कार देखें जैसा कि आपने अपने पहले शिष्यों के द्वारा किया था।
2 शमूएल 11:1-12:31
दाऊद बतशेबा से मिलता है
11बसन्त में, जब राजा युद्ध पर निकलते हैं, दाऊद ने योआब उसके अधिकारियों और सभी इस्राएलियों को अम्मोनियों को नष्ट करने के लिये भेजा। योआब की सेना ने रब्बा (राजधानी) पर भी आक्रमण किया।
किन्तु दाऊद यरूशलेम में रुका। 2 शाम को वह अपने बिस्तर से उठा। वह राजमहल की छत पर चारों ओर घूमा। जब दाऊद छत पर था, उसने एक स्त्री को नहाते देखा। स्त्री बहुत सुन्दर थी। 3 इसलिये दाऊद ने अपने सेवकों को बुलाया और उनसे पूछा कि वह स्त्री कौन थी? एक सेवक ने उत्तर दिया, “वह स्त्री एलीआम की पुत्री बतशेबा है। वह हित्ती ऊरिय्याह की पत्नी है।”
4 दाऊद ने बतशेबा को अपने पास बुलाने के लिये दूत भेजे। जब वह दाऊद के पास आई तो उसने उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध किया। उसने स्नान किया और वह अपने घर चली गई। 5 किन्तु बतशेबा गर्भवती हो गई। उसने दाऊद को सूचना भेजी। उसने उससे कहा, “मैं गर्भवती हूँ।”
दाऊद अपने पाप को छिपाना चाहता है
6 दाऊद ने योआब को सन्देश भेजा, “हित्ती ऊरिय्याह को मेरे पास भेजो।”
इसलिये योआब ने ऊरिय्याह को दाऊद के पास भेजा। 7 ऊरिय्याह दाऊद के पास आया। दाऊद ने ऊरिय्याह से बात की। दाऊद ने ऊरिय्याह से पूछा कि योआब कैसा है, सैनिक कैसे हैं और युद्ध कैसे चल रहा है। 8 तब दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, “घर जाओ और आराम करो।”
ऊरिय्याह ने राजा का महल छोड़ा। राजा ने ऊरिय्याह को एक भेंट भी भेजी। 9 किन्तु ऊरिय्याह अपने घर नहीं गया। ऊरिय्याह राजा के महल के बाहर द्वारा पर सोया। वह उसी प्रकार सोया जैसे राजा के अन्य सेवक सोये। 10 सेवकों ने दाऊद से कहा, “उरिय्याह अपने घर नहीं गया।”
तब दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, “तुम लम्बी यात्रा से आए। तुम घर क्यों नहीं गए?”
11 ऊरिय्याह ने दाऊद से कहा, “पवित्र सन्दूक तथा इस्राएल और यहूदा के सैनिक डेरों में ठहरे हैं। मेरे स्वामी योआब और मेरे स्वामी (दाऊद) के सेवक बाहर मैदानों में खेमा डाले पड़े हैं। इसलिये यह अच्छा नहीं कि मैं घर जाऊँ, खाऊँ, पीऊँ, और अपनी पत्नी के साथ सोऊँ।”
12 दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, “आज यहीं ठहरो। कल मैं तुम्हें युद्ध में वापस भेजूँगा।”
ऊरिय्याह उस दिन यरूशलेम में ठहरा। वह अगली सुबह तक रुका। 13 तब दाऊद ने उसे आने और खाने के लिये बुलाया। ऊरिय्याह ने दाऊद के साथ पीया और खाया। दाऊद ने ऊरिय्याह को नशे में कर दिया। किन्तु ऊरिय्याह, फिर भी घर नहीं गया। उस शाम को ऊरिय्याह राजा के सेवकों के साथ राजा के द्वार के बाहर सोया।
दाऊद ऊरिय्याह की मृत्यु की योजना बनाता है
14 अगले प्रातःकाल, दाऊद ने योआब के लिये एक पत्र लिखा। दाऊद ने ऊरिय्याह को वह पत्र ले जाने को दिया। 15 पत्र में दाऊद ने लिखा: “ऊरिय्याह को अग्रिम पंक्ति में रखो जहाँ युद्ध भयंकर हो। तब उसे अकेले छोड़ दो और उसे युद्ध में मारे जाने दो।”
16 योआब ने नगर के घेरे बन्दी के समय यह देखा कि सबसे अधिक वीर अम्मोनी योद्धा कहाँ है। उसने ऊरिय्याह को उस स्थान पर जाने के लिये चुना। 17 नगर (रब्बा) के आदमी योआब के विरुद्ध लड़ने को आये। दाऊद के कुछ सैनिक मारे गये। हित्ती ऊरिय्याह उन लोगों में से एक था।
18 तब योआब ने दाऊद को युद्ध में जो हुआ, उसकी सूचना भेजी। 19 योआब ने दूत से कहा कि वह राजा दाऊद से कहे कि युद्ध में क्या हुआ। 20 “सम्भव है कि राजा क्रुद्ध हो । संभव है कि राजा पूछे, ‘योआब की सेना नगर के पास लड़ने क्यों गई? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि लोग नगर के प्राचीर से भी बाण चला सकते हैं? 21 क्या तुम नहीं जानते कि यरूब्बेशेत के पुत्र अबीमेलेक को किसने मारा? वहाँ एक स्त्री नगर—दीवार पर थी जिसने अबीमेलेक के ऊपर चक्की का ऊपरी पाट फेंका। उस स्त्री ने उसे तेबेस में मार डाला। तुम दीवार के निकट क्यों गये?’ यदि राजा दाऊद यह पूछता है तो तुम्हें उत्तर देना चाहिये, ‘आपका सेवक हित्ती ऊरिय्याह भी मर गया।’”
22 दूत गया और उसने दाऊद को वह सब बताया जो उसे योआब ने कहने को कहा था। 23 दूत ने दाऊद से कहा, “अम्मोन के लोग जीत रहे थे बाहर आये तथा उन्होंने खुले मैदान में हम पर आक्रमण किया। किन्तु हम लोग उनसे नगर—द्वार पर लड़े। 24 नगर दीवार के सैनिकों ने आपके सेवकों पर बाण चलाये। आपके कुछ सेवक मारे गए। आपका सेवक हित्ती ऊरिय्याह भी मारा गया।”
25 दाऊद ने दूत से कहा, “तुम्हें योआब से यह कहना है: ‘इस परिणाम से परेशान न हो। हर युद्ध में कुछ लोग मारे जाते हैं यह किसी को नहीं मालूम कि कौन मारा जायेगा। रब्बा नगर पर भीषण आक्रमण करो। तब तुम उस नगर को नष्ट करोगे।’ योआब को इन शब्दों से प्रोत्साहित करो।”
दाऊद बतशेबा से विवाह करता है
26 बतशेबा ने सुना कि उसका पति ऊरिय्याह मर गया। तब वह अपने पति के लिये रोई। 27 जब उसने शोक का समय पूरा कर लिया, तब दाऊद ने उसे अपने घर में लाने के लिये सेवकों को भेजा। वह दाऊद की पत्नी हो गई, और उसने दाऊद के लिये एक पुत्र उत्पन्न किया। दाऊद ने जो बुरा काम किया यहोवा ने उसे पसन्द नहीं किया।
नातान दाऊद से बात करता है
12यहोवा ने नातान को दाऊद के पास भेजा। नातान दाऊद के पास गया। नातान ने कहा, “नगर में दो व्यक्ति थे। एक व्यक्ति धनी था। किन्तु दूसरा गरीब था। 2 धनी आदमी के पास बहुत अधिक भेड़ें और पशु थे। 3 किन्तु गरीब आदमी के पास, एक छोटे मादा मेमने के अतिरिक्त जिसे उसने खरीदा था, कुछ न था। गरीब आदमी उस मेमने को खिलाता था। यह मेमना उस गरीब आदमी के भोजन में से खाता था और उसके प्याले में से पानी पीता था। मेमना गरीब आदमी की छाती से लग कर सोता था। मेमना उस व्यक्ति की पुत्री के समान था।
4 “तब एक यात्री धनी व्यक्ति से मिलने के लिये वहाँ आया। धनी व्यक्ति यात्री को भोजन देना चाहता था। किन्तु धनी व्यक्ति अपनी भेड़ या अपने पशुओं में से किसी को यात्री को खिलाने के लिये नहीं लेना चाहता था। उस धनी व्यक्ति ने उस गरीब से उसका मेमना ले लिया। धनी व्यक्ति ने उसके मेमने को मार डाला और अपने अतिथि के लिये उसे पकाया।”
5 दाऊद धनी आदमी पर बहुत क्रोधित हुआ। उसने नातान से कहा, “यहोवा शाश्वत है, निश्चय जिस व्यक्ति ने यह किया वह मरेगा। 6 उसे मेमने की चौगुनी कीमत चुकानी पड़ेगी क्योंकि उसने यह भयानक कार्य किया और उसमें दया नहीं थी।”
नातान, दाऊद को उसके पाप के बारे में बताता है
7 तब नातान ने दाऊद से कहा, “तुम वो धनी पुरुष हो! यहोवा इस्राएल का परमेश्वर यह कहता है: ‘मैंने तुम्हारा अभिषेक इस्राएल के राजा के रूप में किया। मैंने तुम्हे शाऊल से बचाया। 8 मैंने उसका परिवार और उसकी पत्नियाँ तुम्हें लेने दीं, और मैंने तुम्हें इस्राएल और यहूदा का राजा बनाया। जैसे वह पर्याप्त नहीं हो, मैंने तुम्हें अधिक से अधिक दिया। 9 फिर तुमने यहोवा के आदेश की उपेक्षा क्यों की? तुमने वह क्यों किया जिसे वह पाप कहता है। तुमने हित्ती ऊरिय्याह को तलवार से मारा और तुमने उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बनाने के लिये लिया। हाँ, तुमने ऊरिय्याह को अम्मोनियों की तलवार से मार डाला। 10 इसलिये सदैव तुम्हारे परिवार में कुछ लोग ऐसे होगें जो तलवार से मारे जायेंगे। तुमने ऊरिय्याह हित्ती की पत्नी ली। इस प्रकार तुमने यह प्रकट किया कि तुम मेरी परवाह नहीं करते।’
11 “यही है जो यहोवा कहता है: ‘मैं तुम्हारे विरुद्ध आपत्तियाँ ला रहा हूँ। यह आपत्ति तुम्हारे अपने परिवार से आएंगी। मैं तुम्हारी पत्नियों को ले लूँगा और उसे दूँगा जो तुम्हारे बहुत अधिक समीप है। यह व्यक्ति तुम्हारी पत्नियों के साथ सोएगा और इसे हर एक जानेगा। 12 तुम बतशेबा के साथ गुप्त रूप में सोये। किन्तु मैं यह करूँगा जिससे इस्राएल के सारे लोग इसे देख सकें।’”
13 तब दाऊद ने नातान से कहा, “मैंने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।”
नातान ने दाऊद से कहा, “यहोवा तुम्हें क्षमा कर देगा, यहाँ तक की इस पाप के लिये भी तुम मरोगे नहीं। 14 किन्तु इस पाप को जो तुमने किया है उससे यहोवा के शत्रुओं ने यहोवा का सम्मान करना छोड़ दिया है। अत: इस कारण जो तुम्हारा पुत्र उत्पन्न हुआ है, मर जाएगा।”
दाऊद और बतशेबा का बच्चा मर जाता है
15 तब नातान अपने घर गया और यहोवा ने दाऊद और ऊरिय्याह की पत्नी से जो पुत्र उत्पन्न हुआ था उसे बहुत बीमार कर दिया। 16 दाऊद ने बच्चे के लिये परमेश्वर से प्रार्थना की। दाऊद ने खाना—पीना बन्द कर दिया। वह अपने घर में गया और उसमें ठहरा रहा। वह रातभर भूमि पर लेटा रहा।
17 दाऊद के परिवार के प्रमुख आये और उन्होंने उसे भूमि से उठाने का प्रयत्न किया। किन्तु दाऊद ने उठना अस्वीकार किया। उसने इन प्रमुखों के साथ खाना खाने से भी इन्कार कर दिया। 18 सातवें दिन बच्चा मर गया। दाऊद के सेवक दाऊद से यह कहने से डरते थे कि बच्चा मर गया। उन्होंने कहा, “देखो, हम लोगों ने दाऊद से उस समय बात करने का प्रयत्न किया जब बच्चा जीवित था। किन्तु उसने हम लोगों की बात सुनने से इन्कार कर दिया। यदि हम दाऊद से कहेंगे कि बच्चा मर गया तो हो सकता है वह अपने को कुछ हानि कर ले।”
19 किन्तु दाऊद ने अपने सेवकों को कानाफूसी करते देखा। तब उसने समझ लिया कि बच्चा मर गया। इसलिये दाऊद ने अपने सेवकों से पूछा, “क्या बच्चा मर गया?”
सेवको ने उत्तर दिया, “हाँ वह मर गया”
20 दाऊद फर्श से उठा। वह नहाया। उसने अपने वस्त्र बदले और तैयार हुआ। तब वह यहोवा के गृह में उपासना करने गया। तब वह घर गया और कुछ खाने को माँगा। उसके सेवकों ने उसे कुछ खाना दिया और उसने खाया।
21 दाऊद के नौकरों ने उससे कहा, “आप यह क्यों कर रहे हैं? जब बच्चा जीवित था तब आपने खाने से इन्कार किया। आप रोये। किन्तु जब बच्चा मर गया तब आप उठे और आपने भोजन किया।”
22 दाऊद ने कहा, “जब बच्चा जीवित रहा, मैंने भोजन करना अस्वीकार किया, और मैं रोया क्योंकि मैंने सोचा, ‘कौन जानता है, संभव है यहोवा मेरे लिये दुःखी हो और बच्चे को जीवित रहने दे।’ 23 किन्तु अब बच्चा मर गया। इसलिये मैं अब खाने से क्यो इन्कार करूँ? क्या मैं बच्चे को फिर जीवित कर सकता हूँ? नहीं! किसी दिन मैं उसके पास जाऊँगा, किन्तु वह मेरे पास लौटकर नहीं आ सकता।”
सुलैमान उत्पन्न होता है
24 तब दाऊद ने अपनी पत्नी बतशेबा को सान्त्वाना दी। वह उसके साथ सोया और उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध किया। बतशेबा फिर गर्भवती हुई। उसका दूसरा पुत्र हुआ। दाऊद ने उस लड़के का नाम सुलैमान रखा। यहोवा सुलैमान से प्रेम करता था। 25 यहोवा ने नबी नातान द्वारा सन्देश भेजा। नातान ने सुलैमान का नाम यदीद्याह रखा। नातान ने यह यहोवा के लिये किया।
दाऊद रब्बा पर अधिकार करता है
26 रब्बा नगर अम्मोनियों की राजधानी था। योआब रब्बा के विरुद्ध में लड़ा। उसने नगर को ले लिया। 27 योआब ने दाऊद के पास दूत भेजा और कहा, “मैंने रब्बा के विरुद्ध युद्ध किया है। मैंने जल के नगर को जीत लिया है। 28 अब अन्य लोगों को साथ लायें और इस नगर (रब्बा) पर आक्रमण करें। इस नगर पर अधिकार कर लो, इसके पहले कि मैं इस पर अधिकार करूँ। यदि इस नगर पर मैं अधिकार करता हूँ तो उस नगर का नाम मेरे नाम पर होगा।”
29 तब दाऊद ने सभी लोगों को इकट्ठा किया और रब्बा को गया। वह रब्बा के विरुद्ध लड़ा और नगर पर उसने अधिकार कर लिया। 30 दाऊद ने उनके राजा के सिर से मुकुट उतार दिया। मुकुट सोने का था और वह तौल में लगभग पचहत्तर पौंड था। इस मुकुट में बहुमूल्य रत्न थे। उन्होंने मुकुट को दाऊद के सिर पर रखा। दाऊद नगर से बहुत सी कीमती चीजें ले गया।
31 दाऊद रब्बा नगर से भी लोगों को बाहर लाया। दाऊद ने उन्हें आरे, लोहे की गैती और कुल्हाड़ियों से काम करवाया। उसने उन्हें ईटों से निर्माण करने के लिये भी विवश किया। दाऊद ने वही व्यवहार सभी अम्मोनी नगरों के साथ किया। तब दाऊद और उसकी सारी सेना यरूशलेम लौट गई।
समीक्षा
परमेश्वर को प्रसन्न करने का ध्यान रखें
आधुनिक सभ्यता में, 'तुम ही वह मनुष्य हो!' (12:7) शब्द, शायद तारीफ के शब्द हो सकते हैं! लेकिन पूरी बाइबल में ये शब्द सबसे ज्यादा दोहराए जाने वाले शब्द हैं। दाऊद पाया गया था। वह प्रलोभन के कारण पाप में गिर गया था। यह उसने गुप्त में किया था और उसने सोचा कि उसे किसी ने नहीं देखा। लेकिन परमेश्वर ने सबकुछ देख लिया था। बाइबल के श्रेष्ठ कथन में हमें बताया गया है कि, ‘दाऊद नो जो किया उससे प्रभु अप्रसन्न हुए’ (11:27)।
क्या गलत हुआ था?
अक्सर यह बाताया गया कि दाऊद की पहली गलती यह थी कि वह यरूशलेम में ठहरा रहा (व.1)। यदि वह अपने लोगों के साथ युद्ध में लड़ने गया होता, तो घर में बैठकर लालसा से अभिभूत होने के बजाय वह जरूर कुछ करता। जॉन अक्सर कहा करते थे, ‘खाली बैठकर अच्छे बने रहना मुश्किल है।’ जब हम पूरी तरह से व्यस्त हों और सही स्थान पर हों तो लालसा में पड़ने का अवसर काफी कम होता है।
दाऊद धीरे-धीरे फिसलता गया। ‘छत पर से उसको एक स्त्री, जो अति सुन्दर थी, नहाती हुई देख पड़ी’ (व। 2)। उसने अब तक कोई पाप नहीं था, केवल लालसा थी। फिर भी उसे वासना से भरे व्यभिचार को त्याग देना चाहिये था, क्योंकि उसने उसके साथ सोने के लिए एक योजना बनाई, और उसने एक घिनौना पाप किया।
हालाँकि उस समय के हिसाब से अन्य राजाओं ने जो किया था उसके मुकाबले यह कुछ भी नहीं था। फिर उसने इसे छिपाने के लिए एक और योजना बनाई जो सफल नहीं हुई। आखिरकार इसका अंत ऊरिय्याह की हत्या से हुआ। जैसाकि अक्सर होता है, पाप और बड़ा पाप कराता है – और इसे छिपाना मूल पाप से भी बुरा था।
दाऊद नातान के शब्दों से पूरी तरह पिस गया होगा: ‘तू ही वह मनुष्य है। इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता है, कि मैं ने तेरा अभिषेक किया....। मैं ने तुझे बचाया....। मैंने तुझे सबकुछ दिया...... और यदि यह थोड़ा था, तो मैं तुझे और भी बहुत कुछ देने वाला था। तू ने यहोवा की आज्ञा तुच्छ जान कर क्यों वह काम किया, जो उसकी दृष्टि में बुरा है?’ (12:7-9)। दाऊद केवल बुरी तरह से चूका नहीं था बल्कि उसे यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिये था।
आश्चर्यजनक रूप से, परमेश्वर ने दाऊद के इस घिनौने पाप को क्षमा कर दिया (व.13)। ऐसा कोई भी पाप या पतन नहीं है जिसे परमेश्वर क्षमा नहीं कर सकते या ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है जहाँ परमेश्वर का अनुग्रह नहीं पहुँच सकता। चाहें आपने कुछ भी क्यों न किया हो।
उस क्षमा को पाने की कुंजी है, अपने अपराध को कबूल करना और आपने जो बुरा किया है उसके लिए पश्चाताप करना। दाऊद (जब दाऊद के पाप करने पर प्रभु ने उसे क्षमा कर दिया था) और शाऊल (जिसे प्रभु ने क्षमा नहीं किया था) के बीच यही फर्क है। जबकि शाऊल ने खुद को न्यायोचित बताने की कोशिश की (शमुएल 15 देखें), दाऊद ने सबकुछ कबूल कर लिया। उसने कहा, “मैंने परमेश्वर के विरूद्ध पाप किया है” (2 शमूएल 12:13)। वास्तव में उसने बस इतना कहा, ‘प्रभु मुझे क्षमा करें!’
क्षमा पाना यानि हमारे कार्य के परिणामों को दूर करना नहीं है। दाऊद के लिए इसका परिणाम बहुत भारी था। इसके परिणाम स्वरूप उसका बच्चा मर गया (वव। 13-14), और परमेश्वर ने उसे चेतावनी दी कि उसके हिंसक कार्य के कारण, ‘अब यह तलवार तेरे घर से कभी दूर न होगी’ (व.10)। दाऊद के पाप का परिणाम बहुत लंबे समय तक रहा।
फिर भी, यह दाऊद का अंत नहीं था। परमेश्वर ने उसे त्यागा नहीं। हालाँकि उसका बेटा मर गया, फिर भी आशा बनी रही। एक दिन वे फिर से इकठ्ठा हो जाएंगे: ‘मैं तो उसके पास जाऊंगा, परन्तु वह मेरे पास लौट न आएगा’ (व। 23)। केवल इतना ही नहीं, परमेश्वर ने दाऊद को एक और पुत्र दिया और ‘और वह परमेश्वर का प्रिय था’ (व। 24)।
यह घटना एक चेतावनी और प्रोत्साहन है। यह हमारे लिए चेतावनी है कि हम अपने जीवन की जिम्मेदारी लें, अपने चारों ओर सीमा बांधने की, परीक्षा में पड़ने से पहले प्रार्थना करने और मदद पाने की।
यदि आप गिर गए हैं, तो दाऊद की तरह अपना पाप कबूल कीजिये, पश्चाताप कीजिये, यदि जरूरत पड़े तो शोक मनाइये और फिर अपने जीवन में आगे बढ़िये - वह पाने के लिए जो परमेश्वर ने आपके लिए रखा है। हम सब अक्सर गड़बड़ी करते हैं। परमेश्वर क्षमा कर देंगे। वह आपको फिर से बहाल करेंगे। वह हमें फिर से आशीष करेंगे।
प्रार्थना
प्रभु, मेरे मन की और अपने सभी लोगों के मन की रक्षा कीजिये, ताकि हम आपके प्रति विश्वासयोग्य बने रहें।
पिप्पा भी कहते है
2 शमूएल 11-12
हम अपनी असफलताओं को ढंकना चाहते हैं, लेकिन परमेश्वर ये सब देखते हैं।
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संदर्भ
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