ईमानदार बने रहें
परिचय
सन 2007 में दक्षिणी कोरिया के मिशन के तेईस लोगों के दल को अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा बंदी बना लिया गया. वे भयभीत हो गए थे. तालिबान ने समूह को अलग कर दिया, उन्हें अकेला कर दिया और उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लिया. एक कोरियन महिला ने किसी तरह से अपनी बाईबल को पकड़े रखा. उसने इसे तेईस भागों में फाड़ दिया और चुपके से हर एक को इसका एक भाग दे दिया ताकि जहाँ कही वे हो, हर कोई वचन के एक भाग को पढ़ पाये जब कोई नहीं देख रहा हो.
समूह जानता था कि तालिबान ने उन्हें मार डालने का निर्णय ले लिया है. एक के बाद एक करके मिशनरीयों ने अपना जीवन यीशु को सौंप दिया, यह कहते हुए, 'परमेश्वर, यदि आप चाहते हो कि मैं आपके लिए मर जाऊँ, तो मैं मरुँगा.' तब पास्टर ने कहा,, 'मैंने (तालिबान) से बात की है, क्योंकि वे हमें मारना शुरु करने वाले हैं और मैंने उनके लीडर्स से कहा है कि यदि कोई मरेगा, तो मैं पहले मरुँगा क्योंकि मैं आपका पास्टर हूँ.' दूसरे ने कहा, 'नही, क्योंकि मैं भी एक पास्टर हूँ और मैं आपका प्राचीन हूँ. मैं पहले मरँगा.'
तब पास्टर वापस आए और कहा, 'आप नियुक्त नहीं किए गए हो, मैं नियुक्त किया गया हूँ, मैं पहले मरँगा.' और जल्द ही, वह पहले मर गए. और दो लोग मारे गए, फिर बाकी के सब बच निकले. उन्होंने परमेश्वर के प्रति और एक-दूसरे के प्रति असाधारण ईमानदारी दिखाई थी.
ईमानदारी प्रेम और वफादारी का एक मिश्रण है. यह एक गुण है, जिसकी आज हमारे समाज में कमी है. बेईमानी परिवार, चर्च, व्यवसाय, राजनैतिक दलों और यहाँ तक कि देश को नष्ट करती है.
नीतिवचन 14:15-24
15 सरल जन सब कुछ का विश्वास कर लेता है।
किन्तु विवेकी जन सोच—समझकर पैर रखता है।
16 बुद्धिमान मनुष्य यहोवा से डरता है और पाप से दूर रहता है।
किन्तु मूर्ख मनुष्य बिना विचार किये उतावला होता है— वह सावधान नहीं रहता।
17 ऐसा मनुष्य जिसे शीघ्र क्रोध आता है,
वह मूर्खतापूर्ण काम कर जाता है और वह मनुष्य जो छल—
छंदी होता है वह तो घृणा सब ही की पाता है।
18 सीधे जनों को बस मूढ़ता मिल पाती
किन्तु बुद्धिमान के सिर ज्ञान का मुकुट होता है।
19 दुर्जन सज्जनों के सामने सिर झुकायेंगे,
और दुष्ट सज्जन के द्वार माथा नवायेंगे।
20 गरीब को उसके पड़ेसी भी दूर रखते हैं;
किन्तु धनी जन के मित्र बहुत होते हैं।
21 जो अपने पड़ोसी को तुच्छ मानता है
वह पाप करता है किन्तु जो गरीबों पर दया करता है वह जन धन्य है।
22 ऐसे मनुष्य जो षड्यन्त्र रचते हैं क्या भटक नहीं जाते
किन्तु जो भली योजनाएँ रचते हैं, वे जन तो प्रेम और विश्वास पाते हैं।
23 परिश्रम के सभी काम लाभ देते हैं,
किन्तु कोरी बकवास बस हानि पहुँचाती है।
24 विवेकी को प्रतिफल में धन मिलता है
पर मूर्खो की मूर्खता मूढ़ता देती है।
समीक्षा
हमारी योजनाओं में परमेश्वर के प्रति ईमानदारी
हमारी पहली ईमानदारी परमेश्वर के प्रति है. उनकी कृपादृष्टि उन पर बनी रहती है जो 'परमेश्वर के प्रति ईमानदार' हैं (व.19, एम.एस.जी).
नीतिवचन की पुस्तक प्रायोगिक बुद्धि से भरी हुई है. उदाहरण के लिए, यह आपको उत्साहित करती है कि अपने विश्वास को जाँचेः 'भोला तो हर एक बात को सच मानता है, परंतु चतुर मनुष्य समझ बूझकर चलता है' (व.15, एम.एस.जी). बुद्धि इसके विषय में है कि आप परमेश्वर के साथ किस तरह से संबंध रखते हैः'बुद्धिमान डरकर बुराई से हटता है' (व.16).
'परमेश्वर का भय' अच्छे सम्मान और ईमानदारी का एक व्यवहार है. इसका अर्थ है उन्हें अपनी सभी योजनाओं में शामिल करना. हमें अपनी योजनाओं के विषय में बहुत सावधान होने की आवश्यकता है –कि वे अच्छाई के लिए हैं नाकि बुराई के लिए. अंत में, 'दुष्ट भी परमेश्वर के प्रति ईमानदार लोगों का सम्मान करेंगे' (व.19, एम.एस.जी).
'भली युक्ति निकालने वालों से करुणा और सच्चाई का व्यवहार किया जाता है' (व.22ब). 'पाते हैं' के लिए शब्द को कभी कभी 'दिखाना' अनुवादित किया गया है, दोनों सच है. जो लोग अच्छी योजना बनाते हैं, वे प्रेम और वफादारी को पाते हैं, वे प्रेम और वफादारी को दिखाते भी है. यह ईमानदारी है –प्रेम और वफादारी को दिखाना. इसकी तुलना उन लोगों से की गई है जो बुराई का षड़्यंत्र करते हैं और भटक जाते हैं.
प्रार्थना
परमेश्वर, मेरी सहायता करिए कि मैं बुद्धिमान और परमेश्वर के प्रति ईमानदारी की अपनी योजनाएँ बनाऊ. होने दीजिए कि हम परमेश्वर के प्रति ईमानदार लोगों के एक समूह के रूप में अच्छी योजनाएँ बनाये और प्रेम और वफादारी पायें.
प्रेरितों के काम 5:12-42
प्रमाण
12 प्रेरितों द्वारा लोगों के बीच बहुत से चिन्ह प्रकट हो रहे थे और आश्चर्यकर्म किये जा रहे थे। वे सभी सुलैमान के दालान में एकत्र थे। 13 उनमें सम्मिलित होने का साहस कोई नहीं करता था। पर लोग उनकी प्रशंसा अवश्य करते थे। 14 उधर प्रभु पर विश्वास करने वाले स्त्री और पुरूष अधिक से अधिक बढ़ते जा रहे थे। 15 परिणामस्वरूप लोग अपने बीमारों को लाकर चारपाइयों और बिस्तरों पर गलियों में लिटाने लगे ताकि जब पतरस उधर से निकले तो उनमें से कुछ पर कम से कम उसकी छाया ही पड़ जाये। 16 यरूशलेम के आसपास के नगरों से अपने बीमारों और दुष्टात्माओं से पीड़ित लोगों को लेकर ठट के ठट लोग आने लगे, और वे सभी अच्छे हो जाया करते थे।
यहूदियों का प्रेरितों को रोकने का जतन
17 फिर महायाजक और उसके साथी, यानी सदूकियों का दल, उनके विरोध में खड़े हो गये। वे ईर्ष्या से भरे हुए थे। 18 सो उन्होंने प्रेरितों को बंदी बना लिया और उन्हें सार्वजनिक बंदीगृह में डाल दिया। 19 किन्तु रात के समय प्रभु के एक स्वर्गदूत ने बंदीगृह के द्वार खोल दिये। उसने उन्हें बाहर ले जाकर कहा, 20 “जाओ, मन्दिर में खड़े हो जाओ और इस नये जीवन के विषय में लोगों को सब कुछ बताओ।” 21 जब उन्होंने यह सुना तो भोर के तड़के वे मन्दिर में प्रवेश कर गये और उपदेश देने लगे।
फिर जब महायाजक और उसके साथी वहाँ पहुँचे तो उन्होंने यहूदी संघ तथा इस्राएल के बुजुर्गों की पूरी सभा बुलायी। फिर उन्होंने बंदीगृह से प्रेरितों को बुलावा भेजा। 22 किन्तु जब अधिकारी बंदीगृह में पहुँचे तो वहाँ उन्हें प्रेरित नहीं मिले। उन्होंने लौट कर इसकी सूचना दी और 23 कहा, “हमें बंदीगृह की सुरक्षा के ताले लगे हुए और द्वारों पर सुरक्षा-कर्मी खड़े मिले थे किन्तु जब हमने द्वार खोले तो हमें भीतर कोई नहीं मिला।” 24 मन्दिर के रखवालों के मुखिया ने और महायाजकों ने जब ये शब्द सुने तो वे उनके बारे में चक्कर में पड़ गये और सोचने लगे, “अब क्या होगा।”
25 फिर किसी ने भीतर आकर उन्हें बताया, “जिन लोगों को तुमने बंदीगृह में डाल दिया था, वे मन्दिर में खड़े लोगों को उपदेश दे रहे हैं।” 26 सो मन्दिर के सुरक्षा-कर्मियों का मुखिया अपने अधिकारियों के साथ वहाँ गया और प्रेरितों को बिना बल प्रयोग किये वापस ले आया क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं लोग उन्हें (मन्दिर के सुरक्षाकर्मियों को) पत्थर न मारें।
27 वे उन्हें भीतर ले आये और सर्वोच्च यहूदी सभा के सामने खड़ा कर दिया। फिर महायाजक ने उनसे पूछते हुए कहा, 28 “हमने इस नाम से उपदेश न देने के लिए तुम्हें कठोर आदेश दिया था और तुमने फिर भी समूचे यरूशलेम को अपने उपदेशों से भर दिया है। और तुम इस व्यक्ति की मृत्यु का अपराध हम पर लादना चाहते हो।”
29 पतरस और दूसरे प्रेरितों ने उत्तर दिया, “हमें मनुष्यों की अपेक्षा परमेश्वर की बात माननी चाहिये। 30 उस यीशु को हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने मृत्यु से फिर जिला कर खड़ा कर दिया है जिसे एक पेड़ पर लटका कर तुम लोगों ने मार डाला था। 31 उसे ही प्रमुख और उद्धारकर्ता के रूप में महत्त्व देते हुए परमेश्वर ने अपने दाहिने स्थित किया है ताकि इस्राएलियों को मन फिराव और पापों की क्षमा प्रदान की जा सके। 32 इन सब बातों के हम साक्षी हैं और वैसे ही वह पवित्र आत्मा भी है जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है जो उसकी आज्ञा का पालन करते हैं।”
33 जब उन्होंने यह सुना तो वे आग बबूला हो उठे और उन्हें मार डालना चाहा। 34 किन्तु महासभा में से एक गमलिएल नामक फ़रीसी, जो धर्मशास्त्र का शिक्षक भी था, तथा जिसका सब लोग आदर करते थे, खड़ा हुआ और आज्ञा दी कि इन्हें थोड़ी देर के लिये बाहर कर दिया जाये। 35 फिर वह उनसे बोला, “इस्राएल के पुरूषो, तुम इन लोगों के साथ जो कुछ करने पर उतारू हो, उसे सोच समझ कर करना। 36 कुछ समय पहले अपने आपको बड़ा घोषित करते हुए थियूदास प्रकट हुआ था। और कोई चार सौ लोग उसके पीछे भी हो लिये थे, पर वह मार डाला गया और उसके सभी अनुयायी तितर-बितर हो गये। परिणाम कुछ नहीं निकला। 37 उसके बाद जनगणना के समय गलील का रहने वाला यहूदा प्रकट हुआ। उसने भी कुछ लोगों को अपने पीछे आकर्षित कर लिया था। वह भी मारा गया। उसके भी सभी अनुयायी इधर उधर बिखर गये। 38 इसीलिए इस वर्तमान विषय में मैं तुमसे कहता हूँ, इन लोगों से अलग रहो, इन्हें ऐसे अकेले छोड़ दो क्योंकि इनकी यह योजना या यह काम मनुष्य की ओर से है तो स्वयं समाप्त हो जायेगा। 39 किन्तु यदि यह परमेश्वर की ओर से है तो तुम उन्हें रोक नहीं पाओगे। और तब हो सकता है तुम अपने आपको ही परमेश्वर के विरोध में लड़ते पाओ!”
उन्होंने उसकी सलाह मान ली। 40 और प्रेरितों को भीतर बुला कर उन्होंने कोड़े लगवाये और यह आज्ञा देकर कि वे यीशु के नाम की कोई चर्चा न करें, उन्हें चले जाने दिया। 41 सो वे प्रेरित इस बात का आनन्द मनाते हुए कि उन्हें उसके नाम के लिये अपमान सहने योग्य गिना गया है, यहूदी महासभा से चले गये। 42 फिर मन्दिर और घर-घर में हर दिन इस सुसमाचार का कि यीशु मसीह है उपदेश देना और प्रचार करना उन्होंने कभी नहीं छोड़ा।
समीक्षा
हमारे वचनों में यीशु के प्रति ईमानदारी
जैसे ही प्रेरित बाहर गए और सुसमाचार का प्रचार किया, वैसे ही उन्होंने लोगों के बीच में बहुत से चिह्न और चमत्कार किए. ' विश्वास करने वाले बहुत से पुरुष और स्त्रियाँ प्रभु की कलीसिया में बड़ी संख्या में मिलते रहे' (व.14). इसके परिणामस्वरूप, 'भीड़ इकट्ठा हो गई... वे उनके बीमार लोगों को लाने लगी...और सभी लोग चंगे हो गए' (वव.15-16).
दुखद रूप से, उनकी सफलता के कारण धार्मिक लीडर 'डाह करने लगे' (व.17). एक बार फिर हम देखते हैं कि कैसे डाह हम जैसे लोगों के लिए एक परीक्षा है, जो कि धार्मिक लोगों की तरह जाने जाते हैं. अपनी डाह में उन्होंने प्रेरितों को गिरफ्तार किया और उन्हें बंदीगृह में डाल दिया (व.18). लेकिन एक बार फिर परमेश्वर ने एक चमत्कार किया. उन्होंने प्रभु के एक स्वर्गदूत को भेजा कि बंदीगृह को खोले और उन्हें बाहर निकालें.
बड़े साहस के साथ उन्होंने आज्ञा मानी कि 'जाकर मंदिर में खड़े होकर...लोगों को इस नये जीवन का संपूर्ण संदेश बताये' (व.20).
जब उन्हें वही करते हुए पकड़ लिया गया जो करने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया था, तब उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और महायाजक के सामने लाया गया, ताकि उनकी जाँच की जाए, महायाजक ने उनसे कहा, ' क्या हम ने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी कि तुम इस नाम में उपदेश न करना? तब भी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है और उस व्यक्ति का लहू हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो' (व.28).
पतरस और दूसरे प्रेरित परमेश्वर और उनकी बुलाहट के प्रति ईमानदार थे. उन्होंने जवाब दिया, 'मनुष्यों के बजाय हमें अवश्य ही परमेश्वर की आज्ञा माननी है' (व.29).
यीशु ने कहा, 'जो केसर का है वह केसर को, और जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को दो' (मत्ती 22:21). ऐसा कहकर, उन्होंने मनुष्यों के अधिकार की सीमा को और इसके प्रति हमारी ईमानदारी को परिभाषित किया. जब यह परमेश्वर से ईमानदारी के विरोध में आता है, तब परमेश्वर प्राथमिक स्थान ले लेते हैं. परमेश्वर के प्रति हमारी ईमानदारी, उन्होंने सुसमाचार का प्रचार करना जारी रखा-यहां तक कि जब उनकी परीक्षा की जा रही थी.
संक्षिप्त भाषण (इसमें केवल तीन वचन आते हैं – प्रेरितों के कार्य 5:30-32) यह यीशु के विषय में है. यह चकित करने वाली बात है कि वे इतनी छोटी प्रस्तुतिकरण में बहुत कुछ कह पाये. उन्होंने क्रूस, पुनरुत्थान और यीशु को महिमा दिए जाने के बारे में प्रचार किया. उन्होंने यीशु का वर्णन राजकुमार और उद्धारकर्ता के रूप में किया. इस बातचीत में उद्धार के मार्ग का वर्णन शामिल थाः मन फिराव और पापों की क्षमा.
इसके अतिरिक्त, वे संपूर्ण त्रिऐक्य को शामिल कर पायेः पिता परमेश्वर ('हमारे पूर्वजों के परमेश्वर', व.30), परमेश्वर पुत्र ('यीशु,व.30') और परमेश्वर 'पवित्र आत्मा' (व.32). इस भाषण ने इतना क्रोध उत्पन्न किया था, साउथ कोरियन मिशनरीयों की तरह, उन्होंने मृत्यु की धमकी का सामना किया.
किंतु, परमेश्वर के विधान में, वहाँ पर एक बुद्धिमान मनुष्य था, गमलीएल नामक एक फरीसी, जिसने अपने साथियों को बताया (हाल ही इतिहास में हुई घटनाओं का उदाहरण देते हुए) कि ' यदि उनका उद्देश्य या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा; परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे. कहीं ऐसा न हो कि तुम परमेश्वर से भी लड़ने वाले ठहरो' (वव.38-39).
यद्पि उनकी बात ने उन्हे राजी कर लिया, फिर भी प्रेरितों का मजाक उड़ाया गया और 'उन्हें आदेश दिया गया कि यीशु के नाम का प्रचार न करें' (व.40).
एक बार फिर, असाधारण साहस और परमेश्वर और उनकी बुलाहट के प्रति ईमानदारी के साथ, ' वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के सामने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये अपमानित होने के योग्य तो ठहरे. वे प्रतिदिन मन्दिर और घर – घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से कि यीशु ही मसीह हैं न रुके' (वव.41-42).
प्रार्थना
परमेश्वर, होने दीजिए कि हम प्रेरितों और उन साउथ कोरियन मिशनरीयों के उदाहरण के द्वारा जो उनके कदमों पर चले थे, उत्साहित हो. होने दीजिए कि हम कभी भी सुसमाचार को सिखाना और इसका प्रचार करना बंद न करे कि यीशु मसीह हैं.
2 शमूएल 14:1-15:12
योआब एक बुद्धिमती को दाऊद के पास भेजता है
14सरूयाह का पुत्र योआब जानता था कि राजा दाऊद अबशालोम के बारे में सोच रहा है। 2 इसलिये योआब ने तकोआ का एक दूत वहाँ से एक बुद्धिमती स्त्री को लाने के लिये भेजा। योआब ने इस बुद्धिमती स्त्री से कहा, “कृपया बहुत अधिक शोकग्रस्त होने का दिखावा करो। शोक—वस्त्र पहन लो, तेल न लगाओ। वैसी स्त्री का व्यवहार करो जो किसी मृत के लिये कई दिन से रो रही है। 3 राजा के पास जाओ और जो मैं कहता हूँ, उन्हीं शब्दों का उपयोग करते हुए उनसे बातें करो।” तब योआब ने उस बुद्धिमती स्त्री को क्या कहना है, यह बता दिया।
4 तब तकोआ की उस स्त्री ने राजा से बातें कीं। वह फर्श पर गिर पड़ी उसका ललाट फर्श पर जा टिका। वह झुकी और बोली, “राजा, मुझे सहायता दे!”
5 राजा दाऊद ने उससे कहा, “तुम्हारी समस्या क्या है?”
उस स्त्री ने कहा, “मैं विधवा हूँ। मेरा पति मर चुका है। 6 मेरे दो पुत्र थे। ये दोनों पुत्र बाहर मैदानों में लड़े। उन्हें कोई रोकने वाला न था। एक पुत्र ने दूसरे पुत्र को मार डाला। 7 अब सारा परिवार मेरे विरुद्ध है। वे मुझसे कहते थे, ‘उस पुत्र को लाओ जिसने अपने भाई को मार डाला। तब हम उसे मार डालेंगे, क्योंकि उसने अपने भाई को मार डाला था।’ इस प्रकार उसके उत्तराधिकारी से छुटकारा मिल सकता है। मेरा पुत्र अग्नि की आखिरी चिन्गारी की तरह होगा, और वह अन्तिम चिनगारी जलेगी और बुझ जाएगी। तब मेरे मृत पति का नाम और उसकी सम्पत्ति इस धरती से मिट जायेगी।”
8 तब राजा ने स्त्री से कहा, “घर जाओ। मैं स्वयं तुम्हारा मामला निपटाऊँगा।”
9 तकोआ की स्त्री ने राजा से कहा, “हे राजा मेरे स्वामी दोष मुझ पर आने दें! किन्तु आप और आपका राज्य निर्दोष है।”
10 राजा दाऊद ने कहा, “उस व्यक्ति को लाओ जो तुम्हें बुरा—भला कहता है। तब वह व्यक्ति तुम्हें फिर परेशान नहीं करेगा।”
11 स्त्री ने कहा, “कृपया अपने यहोवा परमेश्वर के नाम पर शपथ लें कि आप इन लोगों को रोकेंगे। तब वे लोग जो हत्यारे को दण्ड देना चहाते हैं मेरे पुत्र को दण्ड नहीं देंगे।”
दाऊद ने कहा, “यहोवा शाश्वत है, तुम्हारे पुत्र को कोई व्यक्ति चोट नहीं पहुँचायेगा। तुम्हारे पुत्र का एक बाल भी बाँका नहीं होगा।”
12 उस स्त्री ने कहा, “मेरे स्वामी, राजा कृपया मुझे आपसे कुछ कहने का अवसर दें।”
राजा ने कहा, “कहो”
13 तब उस स्त्री ने कहा, “आपने परमेश्वर के लोगों के विरुद्ध यह योजना क्यों बनाई है? हाँ, जब आप यह कहते हैं आप यह प्रकट करते हैं कि आप अपराधी हैं। क्यों? क्योंकि आप अपने पुत्र को वापस नहीं ला सके हैं जिसे आपने घर छोड़ने को विवश किया था। 14 यह सही है कि हम सभी किसी दिन मरेंगे। हम लोग उस पानी की तरह हैं जो भूमि पर फेंका गया है। कोई भी व्यक्ति भूमि से उस पानी को इकट्ठा नहीं कर सकता। किन्तु परमेश्वर माफ करता है। उसके पास उन लोगों के लिए एक योजना है जो अपना घर छोड़ने को विवश किये गए हैं—परमेश्वर उनको अपने से अलग नहीं करता। 15 मेर प्रभु, राजा मैं यह बात कहने आपके पास आई। क्यों? क्योंकि लोगों ने मुझे भयभीत किया। मैंने अपने मन में कहा कि, ‘मैं राजा से बात करूँगी। सम्भव है राजा मेरी सुनेंगे। 16 राजा मेरी सुनेंगे, और मेरी रक्षा उस व्यक्ति से करेंगे जो मुझे और मेरे पुत्र दोनों को मारना चाहते हैं और उन चीजों को प्राप्त करने से रोकना चाहते हैं जिन्हें परमेश्वर ने हमें दी है।’ 17 मैं जानती हूँ कि मेरे राजा मेरे प्रभु के शब्द मुझे शान्ति देंगे क्योंकि आप परमेश्वर के दूत के समान होंगे। आप समझेंगे कि क्या अच्छा और क्या बुरा है। यहोवा आपका परमेश्वर, आपके साथ होगा।”
18 राजा दाऊद ने उस स्त्री को उत्तर दिया, “तुम्हें उस प्रश्न का उत्तर देना चाहिये जिसे मैं तुमसे पूछूँगा”
उस स्त्री ने कहा, “मेरे प्रभु, राजा, कृपया अपना प्रश्न पूछें।”
19 राजा ने कहा, “क्या योआब ने ये सारी बातें तुमसे कहने को कहा है?”
उस स्त्री ने जवाब दिया, “मेरे प्रभु राजा, आपके जीवन की शपथ, आप सही हैं। आपके सेवक योआब ने ये बातें कहने के लिये कहा। 20 योआब ने यह इसलिये किया जिससे आप तथ्यों को दूसरी दृष्टी से देखेंगे। मेरे प्रभु आप परमेश्वर के दूत के समन बुद्धिमान हैं। आप सब कुछ जानते हैं जो पृथ्वी पर होता है।”
अबशालोम यरूशलेम लौटता है
21 राजा ने योआब से कहा, “देखो मैं वह करूँगा जिसके लिये मैंने वचन दिया है। अब कृपया युवक अबशालोम को वापस लाओ।”
22 योआब ने भूमि तक अपना माथा झुकाया। उसने राजा दाऊद के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा, “आज मैं समझता हूँ कि आप मुझ पर प्रसन्न हैं। मैं यह समझता हूँ क्योंकि आपने वही किया जो मेरी माँग थी।”
23 तब योआब उठा और गशूर गया तथा अबशालोम को यरूशलेम लाया। 24 किन्तु राजा दाऊद ने कहा, “अबशालोम अपने घर को लौट सकता है। वह मुझसे मिलने नहीं आ सकता।” इसलिये अबशालोम अपने घर को लौट गया। अबशालोम राजा से मिलने नहीं जा सका।
25 अबशालोम की अत्याधिक प्रशंसा उसके सुन्दर रूप के लिये थी। इस्राएल में कोई व्यक्ति इतना सुन्दर नहीं था जितना अबशालोम । अबशालोम के सिर से पैर तक कोई दोष नहीं था। 26 हर एक वर्ष के अन्त में अबशालोम अपने सिर के बाल काटता था और उसे तोलता था। बालों का तोल लगभग पाँच पौंड था। 27 अबशालोम के तीन पुत्र थे और एक पुत्री । उस पुत्री का नाम तामार था। तामार एक सुन्दर स्त्री थी।
अबशालोम योआब को अपने से मिलने के लिये विवश करता है
28 अबशालोम पूरे दो वर्ष तक, दाऊद से मिलने की स्वीकृति के बिना, यरूशलेम में रहा। 29 अबशालोम ने योआब के पास दूत भेजे। इन दूतों ने योआब से कहा कि तुम अबशालोम को राजा के पास भेजो। किन्तु योआब अबशालोम से मिलने नहीं आया। अबशालोम ने दूसरी बार सन्देश भेजा। किन्तु योआब ने फिर भी आना अस्वीकार किया।
30 तब अबशालोम ने अपने सेवकों से कहा, “देखो, योआब का खेत मेरे खेत से लगा है। उसके खेत में जौ की फसल है। जाओ और जौ को जला दो।”
इसलिये अबशालोम के सेवक गए और योआब के खेत में आग लगानी आरम्भ की । 31 योआब उठा और अबशालोम के घर आया। योआब ने अबशालोम से कहा, “तुम्हारे सेवकों ने मेरे खेत को क्यों जलाया?”
32 अबशालोम ने योआब से कहा, “मैंने तुमको सन्देश भेजा। मैंने तुमसे यहाँ आने को कहा। मैं तुम्हें राजा के पास भेजना चाहता था। मैं उससे पूछना चाहता था कि उसने गशूर से मुझे घर क्यों बुलाया। मैं उससे मिल नहीं सकता, अत: मेरे लिये गशूर में रहना कहीं अधिक अच्छा था। अब मुझे राजा से मिलने दो। यदि मैंने पाप किया है तो वह मुझे मार सकता है।”
अबशालोम दाऊद से मिलता है
33 तब योआब राजा के पास आया और अबशालोम का कहा हुआ सुनाया। राजा ने अबशालोम को बुलाया। तब अबशालोम राजा के पास आया। अबशालोम ने राजा के सामने भूमि पर माथा टेक कर प्रणाम किया, और राजा ने अबशालोम का चुम्बन किया।
अबशालोम बहुत—से मित्र बनाता है
15इसके बाद अबशालोम ने एक रथ और घोड़े अपने लिए लिये। जब वह रथ चलाता था तो अपने सामने पचास दौड़ते हुये व्यक्तियों को रखता था। 2 अबशालोम सवेरे उठ जाता और द्वार के निकट खड़ा होता। यदि कोई व्यक्ति ऐसा होता जिसकी कोई समस्या होती और न्याय के लिये राजा दाऊद के पास आया होता तो अबशालोम उससे पूछता, “तुम किस नगर के हो?” वह व्यक्ति उत्तर देता, “मैं अमुक हूँ और इस्राएल के अमुक परिवार समूह का हूँ।” 3 तब अबशालोम उन व्यक्तियों से कहा करता, “देखो, जो तुम कह रहे हो वह शुभ और उचित है किन्तु राजा दाऊद तुम्हारी एक नहीं सुनेगा।”
4 अबशालोम यह भी कहता, “काश! मैं चाहता हूँ कि कोई मुझे इस देश का न्यायाधीश बनाता। तब मैं उन व्यक्तियों में से हर एक की सहायता कर सकता जो न्याय के लिये समस्या लेकर आते।”
5 जब कोई व्यक्ति अबशालोम के पास आता और उसके सामने प्रणाम करने को झुकता तो अबशालोम आगे बढ़ता और उस व्यक्ति से हाथ मिलाता। तब वह उस व्यक्ति का चुम्बन करता। 6 अबशालोम ऐसा उन सभी इस्राएलियों के साथ करता जो राजा दाऊद के पास नयाय के लिये आते। इस प्रकार अबशालोम ने इस्राएल के सभी लोगों का हृदय जीत लिया।
अबशालोम द्वारा दाऊद के राज्य को लेने की योजना
7 चार वर्ष बाद अबशालोम ने राजा दाऊद से कहा, “कृपया मुझे अपनी विशेष प्रतिज्ञा को पूरी करने जाने दें जिसे मैंने हेब्रोन में यहोवा के सामने की थी। 8 मैंने यह प्रतिज्ञा तब की थी जब मैं गशूर अराम में रहता था। मैंने कहा था, ‘यदि यहोवा मुझे यरूशलेम लौटायेगा तो मैं यहोवा की सेवा करुँगा।’”
9 राजा दाऊद ने कहा, “शान्तिपूर्वक जाओ।”
अबशालोम हेब्रोन गया। 10 किन्तु अबशालोम ने इस्राएल के सभी परिवार समूहो में जासूस भेजे। इन जासूसों ने लोगों से कहा, “जब तुम तुरही की आवाज सुनो, तो कहो कि, ‘अबशालोम हेब्रोन में राजा हो गया।’”
11 अबशालोम ने दो सौ व्यक्तियों को अपने साथ चलने के लिये आमन्त्रित किया। वे व्यक्ति उसके साथ यरूशलेम से बाहर गए। किन्तु वे यह नहीं जानते थे कि उसकी योजना कया है। 12 अहीतोपेल दाऊद के सलाहकारों में से एक था। अहीतोपेल गीलो नगर का निवासी था। जब अबशालोम बलि—भेटों को चढ़ा रहा था, उसने अहीतोपेल को अपने गीलो नगर से आने के लिये कहा। अबशालोम की योजना ठीक ठीक चल रही थी और अधिक से अधिक लोग उसका समर्थन करने लगे।
समीक्षा
हमारे हृदय में एक दूसरे के प्रति ईमानदारी
ईमानदारी एक व्यक्ति में एक आकर्षित करने वाली विशेषता है. बेईमानी विनाशकारी है और भरोसे को तोड़ती है. बेईमानी चर्च में लीडरशिप को, व्यवसाय या यहाँ तक कि एक देश को क्षीण कर सकती है.
दाऊद के मामले में, बेईमानी उसके खुद के बेटे से आयी. यह अवश्य ही उनके लिए बहुत दर्दनाक रहा होगा. दाऊद ने अबशालोम से प्रेम कियाः 'राजा का मन अबशालोम की ओर लगा था' (14:1). तकोआ नगर से एक बुद्धिमान महिला के द्वारा परमेश्वर दाऊद से बात करते हैं. इसके परिणामस्वरूप दाऊद कहते हैं, 'तू जाकर उस जवान अबशालोम को लौटा ला' (व.21). जब वह वापस आया, 'तब राजा ने अबशालोम को चूमा' (व.33). दाऊद ने उसे एक ईमानदार पुत्र बनने के लिए दूसरा अवसर दिया.
अबशालोम के लिए दाऊद का प्रेम और ईमानदारी वापस नहीं आई. यहाँ पर हम एक शक्तिशाली विवरण को देखते हैं कि कैसे बेईमानी काम करती है.
बेईमानी के लिए हमेशा अवसर होते हैं. किसी भी स्थिति में –उदाहरण के लिए चाहे सरकार में, काम पर या चर्च में –ऐसे लोग होंगे जो शिकायत करते हैं (15:2). यदि आप एक ईमानदार व्यक्ति हैं, तो आप इन शिकायतों को सुलझाने में सहायता करेंगे और इन्हें खत्म करने का प्रयास करेंगे.
ऐसा कहा गया है कि, 'ईमानदारी का अर्थ है कि मैं तुम्हारे साथ हूँ चाहे तुम गलत हो या सही. लेकिन मैं तुम्हें बताऊँगा जब तुम गलत हो और इसे सही करने में तुम्हारी सहायता करुंगा.'
अबशालोम ईमानदारी की परीक्षा में असफल हो गए. वह शिकायत करने वालों से कहते थे, 'सुन, तेरा पक्ष तो ठीक और न्याय का है; परंतु राजा की ओर से तेरी सुनने वाला कोई नही है. फिर अबशालोम यह भी कहा करता था, भला होता कि मैं इस देश में न्यायी ठहराया जाता. तब जितने मुकद्दमा वाले होते वे सब मेरे ही पास आते, और मैं उनका न्याय चुकाता' (वव.3-4, एम.एस.जी).
निश्चित ही, यह पूरी तरह से बकवास है. लेकिन इस तरह का वायदा करना आसान बात है. बेईमान व्यक्ति कहता है, 'यदि मैं सब चीजों के ऊपर अधिकारी होता, तो सबकुछ बेहतर होता.' इस तरह से अबशालोम ने 'इस्रालियों के मन को हर लिया' (व.6). बेईमानी की शुरुवात हमारे हृदय में और हमारी सोच में होती है. इसी तरह से ईमानदारी भी है. अपने हृदय और अपनी सोच की निगरानी कीजिए और मत होने दीजिए कि आपका हृदय चुरा लिया जाएँ.
किंतु, यहाँ पर उन्हें अबशालोम के पास इकट्ठा होने का कारण मिला और 'राजद्रोह की गोष्ठी ने बल पकड़ा, क्योंकि अबशालोम के पक्ष के लोग बराबर बढ़ते गए' (व.12). जो लोग किसी स्थिति में असंतुष्टि को महसूस करते हैं, वह हमेशा इकट्ठा होने की बात को खोजते हैं. वे लीडरशिप समूह में से ऐसे व्यक्ति को ढूंढते हैं जिसके पास वे इकट्ठा हो सकें. यदि संपूर्ण लीडरशिप समूह वफादार बना रहता है, तो असंतुष्ट लोग असफल हो जाएँगे.
प्रार्थना
परमेश्वर, हमारी सहायता करिए कि हमारे लीडर्स के प्रति हम ईमानदार बने – हमारे राष्ट्रीय लीडर्स और सरकार, माता-पिता, चर्च लीडर्स और मालिक. परमेश्वर हमारे हृदय की रक्षा करिए, हमें ईमानदार बनाए रखिए, प्रेम करने वाले और आपके और एक दूसरे के प्रति वफादार बनाए रखिए.
पिप्पा भी कहते है
2शमुएल 14:1-15:12
बारह से सुंदर होना आपको अंदर से सुंदर नहीं बनाता है. अबशालोम सुंदर दिखते थे, लेकिन अंदर कुछ अलग ही चल रहा था. लोग जिम जाने में, पार्लर में, मेकअप में, कपड़े खरीदने में और बाहरी रूप को सँवारने में घंटो बिताते हैं. इस बात से अंतर पड़ता है कि अंदर क्या चल रहा है. हम सभी को अपनी आंतरिक सुंदरता पर काम करने की आवश्यकता है.
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संदर्भ
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