मुसीबतों के अंतिम शब्द नहीं होते
परिचय
जॉर्ज मॅथसन का जन्म ग्लास्गो में हुआ था, आठ बच्चों में सबसे बड़ा. एक लड़के के रूप में उसकी दृष्टि केवल आंशिक थी. बीस साल की उम्र तक वह पूरी तरह से अंधा हो गया. जब उसकी मंगेतर को पता चला कि वह अंधा हो रहा है और डॉक्टर कुछ नहीं कर पा रहे थे, तो उसने उससे कहा कि वह एक अंधे के साथ जीवन नहीं बिता सकती. उसने कभी शादी नहीं की.
पूरी सेविकाई में एक समर्पित बहन ने उसकी मदद की. उसके अध्ययन में उसकी मदद करने के लिए उसने ग्रीक, लैटिन और इब्रानी सीखी. अपने अंधेपन के बावजूद, ग्लास्को एकेडमी और चर्च ऑफ स्कॉटलैंड सेमिनारी में मॅथसन की प्रगति शानदार रही.
जब बन चालीस साल के थे, तो कुछ अजीब सा उनके साथ हुआ. उनकी बहन की शादी हुई. इसका मतलब सिर्फ यह नहीं था कि उसके साथ इनकी सहभागिता नहीं रही – इसने उन्हें बड़ी मसीबत की याद भी दिलायी. उनके गहन दु:ख के बीच, उनकी बहन की शादी के समय, उन्होंने क्रिश्चियन चर्च के लिए सबसे लोकप्रिय और सबसे प्रिय भक्ति गीत लिखा – 'हे प्रिय, यह कुम्हलाना मुझे जाने नहीं देता. उन्होंने सारा कार्य सिर्फ पाँच मिनट में किया और कभी भी इसका संपादन, सशोधन या सुधार नहीं किया. उन्होंने लिखा, 'यह ऊँचाई से एक अरूणोदय के समान आया,'
वह आनंद जो मुझे दर्द में भी खोजता है,
मैं तुम्हारे प्रति अपने दिल को बंद नहीं कर सकता;
मैं वर्षा में इंद्र धनुष को देखता हूँ,
और महसूस करता हूँ कि यह वायदा व्यर्थ नहीं गया कि,
शोक, अश्रुरहित बन जाएगा.
मुसीबतें जीवन का हिस्सा हैं. यीशु ने मुसीबतों का सामना किया और उसी तरह से प्रेरितों, दाऊद और परमेश्वर के सभी लोगों ने भी. मगर, जैसा कि मॅथसन का भक्ति गीत सुंदरता से स्पष्ट करता है, कि मुसीबतों के अंतिम शब्द नहीं होते.
भजन संहिता 71:19-24
19 हे परमेश्वर, तेरी धार्मिकता आकाशों से ऊँची है।
हे परमेश्वर, तेरे समान अन्य कोई नहीं।
तूने अदभुत आश्चर्यपूर्ण काम किये हैं।
20 तूने मुझे बुरे समय और कष्ट देखने दिये।
किन्तु तूने ही मुझे उन सब से बचा लिया और जीवित रखा है।
इसका कोई अर्थ नहीं, मैं कितना ही गहरा डूबा तूने मुझको मेरे संकटों से उबार लिया।
21 तू ऐसे काम करने की मुझको सहायता दे जो पहले से भी बड़े हो।
मुझको सुख चैन देता रह।
22 वीणा के संग, मैं तेरे गुण गाऊँगा।
हे मेरे परमेश्वर, मैं यह गाऊँगा कि तुझ पर भरोसा रखा जा सकता है।
मैं उसके लिए गीत अपनी सितार पर बजाया करूँगा जो इस्रएल का पवित्र यहोवा है।
23 मेरे प्राणों की तूने रक्षा की है।
मेरा मन मगन होगा और अपने होंठों से, मैं प्रशंसा का गीत गाऊँगा।
24 मेरी जीभ हर घड़ी तेरी धार्मिकता के गीत गाया करेगी।
ऐसे वे लोग जो मुझको मारना चाहते हैं,
वे पराजित हो जायेंगे और अपमानित होंगे।
समीक्षा
1. कई मुसीबतों के बाद बहाली
परमेश्वर आपके लिए आसान मार्ग का वायदा नहीं करते. जीवन अत्यंत कठिन हो सकता है. भजन लिखने वाला 'अनेक संकटों और कष्टों में था' (व.20). उसकी मुसीबतें, दबाव और चिंताएं कभी आकस्मिक या मामूली नहीं थीं. वे अनेक और गंभीर थीं. वह आपको एक उदाहरण बताते हैं कि इन परिस्थितियों में हमें कैसी प्रतिक्रिया करनी चाहिये.
- भरोसा बनाए रखें
जब चीजें अच्छी चल रही हों, तब परमेश्वर पर भरोसा रखना आसान होता है. मुसीबतों के बीच परमेश्वर पर भरोसा रखना चुनौती है. परमेश्वर की भलाई पर विश्वास करना कभी न छोड़ें: 'हे परमेश्वर, तेरा धर्म अति महान है॥ तू जिसने महाकार्य किए हैं, हे परमेश्वर तेरे तुल्य कौन है?' (व.19).
- आशा बनाए रखें
आपकी मुसीबत हमेशा तक नहीं बनी रहेगी. परेशानियों के बीच, आशा है: 'अब तू फिर से हम को जिलाएगा; और पृथ्वी के गहिरे गड़हे में से उबार लेगा। तू मेरी बड़ाई को बढ़ाएगा, और फिर से मुझे शान्ति देगा' (वव.20-21ब). परमेश्वर आपकी परेशानियों का उपयोग अच्छाई के लिए करेंगे. वह इनके द्वारा आपके चरित्र को नया आकार देंगे. इसके परिणामस्वरूप, वह आपकी इज्जत बढ़ाएंगे. वह उनके द्वारा आपको विश्राम देंगे ताकि आप दूसरों को आराम पहुँचायें (2 कुरिंथिंयों 1:4).
- आराधना करते रहें
परेशानियों के बावजूद परमेश्वर की स्तुती करते रहें: 'हे मेरे परमेश्वर, मैं भी तेरी सच्चाई का धन्यवाद सारंगी बजाकर गाऊंगा; हे इस्राएल के पवित्र मैं वीणा बजा कर तेरा भजन गाऊंगा। जब मैं तेरा भजन गाऊंगा, तब अपने मुंह से और अपने प्राण से भी जो तू ने बचा लिया है, जयजयकार करूंगा' (71:22-23).
प्रार्थना
प्रभु, आपको धन्यवाद, हालाँकि मैं अनेक परेशानियों और कड़वाहटों को देख सकता था, पर आपके वायदे ने मेरे जीवन को फिर से बहाल कर दिया. आपकी विश्वासयोग्यता के लिए मैं आपकी स्तुती करता हूँ.
प्रेरितों के काम 6:1-7:19
विशेष कार्य के लिए सात पुरूषों का चुना जाना
6उन्ही दिनों जब शिष्यों की संख्या बढ़ रही थी, तो यूनानी बोलने वाले और इब्रानी बोलने वाले यहूदियों में एक विवाद उठ खड़ा हुआ क्योंकि वस्तुओं के दैनिक वितरण में उनकी विधवाओं के साथ उपेक्षा बरती जा रही थी।
2 सो बारहों प्रेरितों ने शिष्यों की समूची मण्डली को एक साथ बुला कर कहा, “हमारे लिये परमेश्वर के वचन की सेवा को छोड़ कर भोजन का प्रबन्ध करना उचित नहीं है। 3 सो बंधुओ अच्छी साख वाले पवित्र आत्मा और सूझबूझ से पूर्ण सात पुरूषों को अपने में से चुन लो। हम उन्हें इस काम का अधिकारी बना देंगे। 4 और अपने आपको प्रार्थना और वचन की सेवा के कामों में समर्पित रखेंगे।”
5 इस सुझाव से सारी मण्डली बहुत प्रसन्न हुई। (सो उन्होंने विश्वास और पवित्र आत्मा से युक्त) स्तिफनुस नाम के व्यक्ति को और फिलिप्पुस, प्रखुरूप, नीकानोर, तिमोन, परमिनास और (अन्ताकिया के निकुलाऊस को, जिसने यहूदी धर्म अपना लिया था,) चुन लिया। 6 और इन लोगों को फिर उन्होंने प्रेरितों के सामने उपस्थित कर दिया। प्रेरितों ने प्रार्थना की और उन पर हाथ रखे।
7 इस प्रकार परमेश्वर का वचन फैलने लगा और यरूशलेम में शिष्यों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गयी। याजकों का एक बड़ा समूह भी इस मत को मानने लगा था।
यहूदियों द्वारा स्तिफनुस का विरोध
8 स्तिफनुस एक ऐसा व्यक्ति था जो अनुग्रह और सामर्थ्य से परिपूर्ण था। वह लोगों के बीच बड़े-बड़े आश्चर्य कर्म और अद्भुत चिन्ह प्रकट किया करता था। 9 किन्तु तथाकथित स्वतन्त्र किये गये लोगों के आराधनालय के कुछ लोग जो कुरेनी और सिकन्दरिया से तथा किलिकिया और एशिया से आये यहूदी थे, वे उसके विरोध में वाद-विवाद करने लगे। 10 किन्तु वह जिस बुद्धिमानी और आत्मा से बोलता था, वे उसके सामने नहीं ठहर सके।
11 फिर उन्होंने कुछ लोगों को लालच देकर कहलवाया, “हमने मूसा और परमेश्वर के विरोध में इसे अपमानपूर्ण शब्द कहते सुना है।” 12 इस तरह उन्होंने जनता को, बुजुर्ग यहूदी नेताओं को और यहूदी धर्मशास्त्रियों को भड़का दिया। फिर उन्होंने आकर उसे पकड़ लिया और सर्वोच्च यहूदी महासभा के सामने ले आये।
13 उन्होंने वे झूठे गवाह पेश किये जिन्होंने कहा, “यह व्यक्ति इस पवित्र स्थान और व्यवस्था के विरोध में बोलते कभी रुकता ही नहीं है। 14 हमने इसे कहते सुना है कि यह नासरी यीशु इस स्थान को नष्ट-भ्रष्ट कर देगा और मूसा ने जिन रीति-रिवाजों को हमें दिया है उन्हें बदल देगा।” 15 फिर सर्वोच्च यहूदी महासभा में बैठे हुए सभी लोगों ने जब उसे ध्यान से देखा तो पाया कि उसका मुख किसी स्वर्गदूत के मुख के समान दिखाई दे रहा था।
स्तिफनुस का भाषण
7फिर महायाजक ने कहा, “क्या यह बात ऐसे ही है?” 2 उसने उत्तर दिया, “बंधुओं और पितृतुल्य बुजुर्गो! मेरी बात सुनो। हारान में रहने से पहले अभी जब हमारा पिता इब्राहीम मिसुपुतामिया में ही था, तो महिमामय परमेश्वर ने उसे दर्शन दिये 3 और कहा, ‘अपने देश और अपने लोगों को छोड़कर तू उस धरती पर चला जा, जिसे तुझे मैं दिखाऊँगा।’
4 “सो वह कसदियों की धरती को छोड़ कर हारान में जा बसा जहाँ से उसके पिता की मृत्यु के बाद परमेश्वर ने उसे इस देश में आने की प्रेरणा दी जहाँ तुम अब रह रहे हो। 5 परमेश्वर ने यहाँ उसे उत्तराधिकार में कुछ नहीं दिया, डग भर धरती तक नहीं। यद्यपि उसके कोई संतान नहीं थी किन्तु परमेश्वर ने उससे प्रतिज्ञा की कि यह देश वह उसे और उसके वंशजों को उनकी सम्पत्ति के रूप में देगा।
6 “परमेश्वर ने उससे यह भी कहा, ‘तेरे वंशज कहीं विदेश में परदेसी होकर रहेंगे और चार सौ साल तक उन्हें दास बनाकर, उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाएगा।’ 7 परमेश्वर ने कहा, ‘दास बनाने वाली उस जाति को मैं दण्ड दूँगा और इसके बाद वे उस देश से बाहर आ जायेंगे और इस स्थान पर वे मेरी सेवा करेंगे।’
8 “परमेश्वर ने इब्राहीम को ख़तने की मुद्रा से मुद्रित करके करार-प्रदान किया। और इस प्रकार वह इसहाक का पिता बना। उसके जन्म के बाद आठवें दिन उसने उसका ख़तना किया। फिर इसहाक से याकूबऔर याकूब से बारह कुलों के आदि पुरुष पैदा हुए।
9 “वे आदि पुरूष यूसुफ़ से ईर्ष्या रखते थे। सो उन्होंने उसे मिसर में दास बनने के लिए बेच दिया। किन्तु परमेश्वर उसके साथ था। 10 और उसने उसे सभी विपत्तियों से बचाया। परमेश्वर ने यूसुफ़ को विवेक दिया और उसे इस योग्य बनाया जिससे वह मिसर के राजा फिरौन का अनुग्रह पात्र बन सका। फिरौन ने उसे मिसर का राज्यपाल और अपने घर-बार का अधिकारी नियुक्त किया। 11 फिर समूचे मिसर और कनान देश में अकाल पड़ा और बड़ा संकट छा गया। हमारे पूर्वज खाने को कुछ नहीं पा सके।
12 “जब याकूब ने सुना कि मिसर में अन्न है, तो उसने हमारे पूर्वजों को वहाँ भेजा-यह पहला अवसर था। 13 उनकी दूसरी यात्रा के अवसर पर यूसुफ़ ने अपने भाइयों को अपना परिचय दे दिया और तभी फिरौन को भी यूसुफ़ के परिवार की जानकारी मिली। 14 सो यूसुफ़ ने अपने पिता याकूब और परिवार के सभी लोगों को, जो कुल मिलाकर पिचहत्तर थे, बुलवा भेजा। 15 तब याकूब मिसर आ गया और उसने वहाँ वैसे ही प्राण त्यागे जैसे हमारे पूर्वजों ने वहाँ प्राण त्यागे थे। 16 उनके शव वहाँ से वापस सेकेम ले जाये गये जहाँ उन्हें मकबरे में दफना दिया गया। यह वही मकबरा था जिसे इब्राहीम ने हमोर के बेटों से कुछ धन देकर खरीदा था।
17 “जब परमेश्वर ने इब्राहीम को जो वचन दिया था, उसके पूरा होने का समय निकट आया तो मिसर में हमारे लोगों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गयी। 18 आख़िरकार मिसर पर एक ऐसे राजा का शासन हुआ जो यूसुफ़ को नहीं जानता था। 19 उसने हमारे लोगों के साथ धूर्ततापूर्ण व्यवहार किया। उसने हमारे पूर्वजों को बड़ी निर्दयता के साथ विवश किया कि वे अपने बच्चों को बाहर मरने को छोड़ें ताकि वे जीवित ही न बच पायें।
समीक्षा
उसे उसकी सारी मुसीबतों से बचाया
कभी-कभी इच्छा होती है कि आरंभिक कलीसिया के जीवन को आदर्श मान लें – जैसा कि ये सिद्ध कलीसिया थी और इनमें जरा भी परेशानियाँ नहीं थीं. हमें प्ररितों के कार्य 2 में चर्च के शांतिपूर्ण जीवन के साथ प्रेरितों के कार्य 6 की घटनाओं को भी पढ़ना जरूरी है, अवश्य ही, पौलुस की सभी परेशानियों को भूलना भी नहीं चाहिये जो उन्होंने अपनी पत्री में लिखी हैं. आरंभिक कलीसिया पर कई मुसीबतें आईं थीं. आजकल के चर्चों में इनमें से किसी परेशानी को देखकर आश्चर्यचकित न होना:
- शिकायत करना:
परमेश्वर के अगुआओं ने अपनी लड़ाइयों को सावधानी पूर्वक निपटाया. वे हरचीज में शामिल नहीं हुए, लेकिन उन्होंने हरचीज की जिम्मेदारी जरूर ली. प्रेरितों ने न्यायोचित शिकायत का सामना किया कि, 'प्रतिदिन की सेवकाई में हमारी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती' (6:1). फिर भी उन्हें अपने मुख्य कार्य पर ध्यान देना जरूरी था: ' प्रार्थना में और वचन की सेवा में' (व.4). समाधान प्रभावशाली नियुक्ति में था (जैसा कि अक्सर नहीं होता).
प्रेरितों ने कुछ लोगों को अलग रखकर इस मामले को निपटाया जो 'खिलाने पिलाने की सेवा में लगे रहे' (व.2). उन्होंने उन लोगों को चुना 'जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण थे' (व.3). इसके परिणाम स्वरूप वे अपना ध्यान 'परमेश्वर के वचन के प्रचार' पर लगा सके और शिष्यों की आश्चर्यजनक ढंग़ से संख्या बढ़ गई (व.7). अच्छे अगुआओं की नियुक्ति और दूसरों को परमेश्वर द्वारा दिये गए वरदानों और सेविकाईयों के लिए मुक्त करना.
- संघर्ष
चर्च के विरोधी दलों ने 'लोगों को परेशान किया' (व.12). और उनके विरूद्ध झूठे गवाह खड़े किये (व.13). उन्होंने स्तुफनिस के शब्दों को घुमा फिराकर कहा, 'कि यह मनुष्य इस पवित्र स्थान और व्यवस्था के विरोध में बोलना नहीं छोड़ता' (व.13).
- बदलने का डर
कुछ विरोधी बदलाव के डर से सामने आए. उन्होंने कहा, 'हम ने उसे यह कहते सुना है, कि यही यीशु नासरी इस जगह को ढ़ा देगा, और उन रीतों को बदल डालेगा जो मूसा ने हमें सौंपी हैं' (व.14).
उन्होंने पाया कि वे स्तीफुनिस से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहे थे, 'जिसका मुखड़ा उन्होंने स्वर्गदूत का सा देखा' (व.15). उसने अपने बचाव में कहा. उसने परमेश्वर के लोगों के इतिहास की निंदा की और इतिहास के उस भाग को दोहराया जो उसकी परिस्थिति से संबंधित थी. उसने यूसुफ के बारे में कहा, 'उसकी पहली मुसीबत से ही परमेश्वर उसके साथ थे'. परमेश्वर ने यूसुफ को बुद्धि दी....' (7:9-10), ठीक उसी तरह से परमेश्वर स्तीफुनिस को बुद्धि दे रहे थे (6:10 देखें).
स्तीफुनिस का खुद का बचाव केवल बलिदान होने में से आया. उसने 'परमेश्वर की महिमा देखी और यीशु परमेश्वर की दाहिनी तरफ खड़े थे' (7:55) और स्तीफुनिस को अनंत काल के लिए बचा लिया गया.
प्रार्थना
प्रभु, मेरी मदद कीजिये कि मैं अपनी मुसीबतों से हार न मानूँ बल्कि स्तीफुनिस की तरह, विश्वास और पवित्र आत्मा से भरा रहूँ. हम परमेश्वर का वचन प्रचार होते हुए देखें और आपके अनुयायियों की संख्या हरदिन ज्यादा से ज्यादा बढ़ती जाए.
2 शमूएल 15:13-16:14
दाऊद को अबशालोम के योजना की सूचना
13 एक व्यक्ति दाऊद को सूचना देने आया। उस व्यक्ति ने कहा, “इस्राएल के लोग अबशालोम का अनुसरण करना आरम्भ कर रहे हैं।”
14 तब दाऊद ने यरूशलेम में रहने वाले अपने सभी सेवकों से कहा, “हम लोगों को बच निकलना चाहिये! यदि हम बच नहीं निकलते तो अबशालोम हम लोगों को निकलने नहीं देगा। अबशालोम द्वारा पकड़े जाने के पहले हम लोग शीघ्रता करें। नहीं तो वह हम सभी को नष्ट कर देगा और वह यरूशलेम के लोगों को मार डालेगा।”
15 राजा के सेवकों ने राजा से कहा, “जो कुछ भी आप कहेंगे, हम लोग करेंगे।”
दाऊद और उसके आदमी बच निकलते हैं
16 राजा दाऊद अपने घर के सभी लोगों के साथ बाहर निकल गया। राजा ने घर की देखभाल के लिये अपनी दस पत्नियों को वहाँ छोड़ा। 17 राजा अपने सभी लोगों को साथ लेकर बाहर निकला। वे नगर के अन्तिम मकान पर रुके। 18 उसके सभी सेवक राजा के पास से गुजरे, और सभी करेती, सभी पलेती और गती (गत से छः सौ व्यक्ति) राजा के पास से गुजरे।
19 राजा ने गत के इत्तै से कहा, “तुम लोग भी हमारे साथ क्यों जा रहे हो? लौट जाओ और नये राजा (अबशालोम) के साथ रहो। तुम विदेशी हो। यह तुम लोगों का स्वदेश नहीं है। 20 अभी कल ही तुम हमारे साथ जुडे। क्या मैं आज ही विभिन्न स्थानों पर जहाँ भी जा रहा हूँ, तुम्हें अपने साथ ले जाऊँ। नहीं! लौटो और अपने भाईयों को अपने साथ लो। मेरी प्रार्थना है कि तुम्हारे प्रति दया और विश्वास दिखाया जाये।”
21 किन्तु इत्तै ने राजा को उत्तर दिया, “यहोवा शाश्वत है, और जब तक आप जीवित हैं, मैं आपके साथ रहूँगा। मैं जीवन—मरण आपके साथ रहूँगा।”
22 दाऊद ने इत्तै से कहा, “आओ, हम लोग किद्रोन नाले को पार करें।”
अत: गत का इत्तै और उसके सभी लोग अपने बच्चों सहित किद्रोन नाले के पार गए। 23 सभी लोग जोर से रो रहे थे। राजा दाऊद ने किद्रोन नाले को पार किया। तब सभी लोग मरुभूमि की ओर बढ़े। 24 सादोक और उसके साथ के लेवीवंशी परमेश्वर के साक्षीपत्र के सन्दूक को ले चल रहे थे। उन्होंने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को नीचे रखा। एब्यातार ने तब तक प्रार्थना की जब तक सभी लोग यरूशलेम से बाहर नहीं निकल गए।
25 राजा दाऊद ने सादोक से कहा, “परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को यरूशलेम लौटा ले जाओ। यदि यहोवा मुझ पर दयालु है तो वह मुझे वापस लौटाएगा, और यहोवा मुझे अपना पवित्र सन्दूक और वह स्थान जहाँ वह रखा है, देखने देगा। 26 किन्तु यदि यहोवा कहता है कि वह मुझ पर प्रसन्न नहीं है तो वह मेरे विरुद्ध, जो कुछ भी चाहता है, कर सकता है।”
27 राजा ने याजक सादोक से कहा, “तुम एक दुष्टा हो। शान्तिपूर्वक नगर को जाओ। अपने पुत्र अहीमास और एब्यातार के पुत्र योनातन को अपने साथ लो। 28 मैं उन स्थानों के निकट प्रतीक्षा करूँगा जहाँ से लोग मरुभूमि में जाते हैं। मैं वहाँ तब तक प्रतीक्षा करूँगा जब तक तुमसे कोई सूचना नहीं मिलती।”
29 इसलिये सादोक और एब्यातार परमेश्वर का पवित्र सन्दूक वापस यरूशलेम ले गए और वहीं ठहरे।
अहीतोपेल के विरुद्ध दाऊद की प्रार्थना
30 दाऊद जैतूनों के पर्वत पर चढ़ा। वह रो रहा था। उसने अपना सिर ढक लिया और वह बिना जूते के गया। दाऊद के साथ के सभी व्यक्तियों ने भी अपना सिर ढक लिया। वे दाऊद के साथ रोते हुए गए।
31 एक व्यक्ति ने दाऊद से कहा, “अहीतोपेल लोगों में से एक है जिसने अबशालोम के साथ योजना बनाई।” तब दाऊद ने प्रार्थना की, “हे यहोवा, मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू अहीतोपेल की सलाह को विफल कर दे।” 32 दाऊद पर्वत की चोटी पर आया। यही वह स्थान था जहाँ वह प्राय: परमेश्वर से प्रार्थना करता था। उस समय एरेकी हूशै उसके पास आया। हूशै का अंगरखा फटा था और उसके सिर पर धूलि थी।
33 दाऊद ने हूशै से कहा, “यदि तुम मेरे साथ चलते हो तो तुम देख—रेख करने वाले अतिरिक्त व्यक्ति होगे। 34 किन्तु यदि तुम यरूशलेम को लौट जाते हो तो तुम अहीतोपेल की सलाह को व्यर्थ कर सकते हो। अबशालोम से कहो, ‘महाराज, मैं आपका सेवक हूँ। मैंने आपके पिता की सेवा की, किन्तु अब मैं आपकी सेवा करूँगा।’ 35 याजक सादोक और एब्यातार तुम्हारे साथ होंगे। तुम्हें वे सभी बातें उसने कहनी चाहिए जिन्हें तुम राजमहल में सुनो। 36 सादोक का पुत्र अहीमास और एब्यातार का पुत्र योनातन उनके साथ होंगे। तुम उन्हें, हर बात जो सुनो, मुझसे कहने के लिये भेजोगे।”
37 तब दाऊद का मित्र हूशै नगर में गया, और अबशालोम यरूशलेम आया।
सीबा दाऊद से मिलता है
16दाऊद जैतून पर्वत की चोटी पर थोड़ी दूर चला। वहाँ मपीबोशेत का सेवक सीबा, दाऊद से मिला। सीबा के पास काठी सहित दो खच्चर थे। खच्चरों पर दो सौ रोटियाँ, सौ किशमिश के गुच्छे, सौ ग्रीष्मफल और दाखमधु से भरी एक मशक थी। 2 राजा दाऊद ने सीबा से कहा, “ये चीजें किस लिये हैं?”
सीबा ने उतत्र दिया, “खच्चर राजा के परिवार की सवारी के लिये है। रोटी और ग्रीष्म फल सेवकों को खाने के लिये हैं और यदि कोई व्यक्ति मरुभूमि में कमजोरी महसूस करे तो वह दाखमधु पी सकेगा।”
3 राजा ने पूछा, “मपीबोशेत कहाँ है?”
सीबा ने राजा को उत्तर दिया, “मपीबोशेत यरूशलेम में ठहरा है क्योंकि वह सोचता है, ‘आज इस्राएली मेरे पितामह का राज्य मुझे वापस दे देंगे।’”
4 तब राजा ने सीबा से कहा, “बहुत ठीक। जो कुछ मपीबोशेत का है उसे अब मैं तुम्हें देता हूँ।”
सीबा ने कहा, “मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मैं आशा करता हूँ कि मैं आपको सदा प्रसन्न कर सकूँगा।”
शिमी दाऊद को शाप देता है
5 दाऊद बहूरीम पहुँचा। शाऊल के परिवार का एक व्यक्ति बहूरीम से बाहर निकला। इस व्यक्ति का नाम शिमी था जो गेरा का पुत्र था। शिमी दाऊद को बुरा कहता हुआ बाहर आया, और वह बुरी—बुरी बातें बार—बार कहता रहा।
6 शिमी ने दाऊद और उसके सेवकों पर पत्थर फैंकना आरम्भ किया। किन्तु लोग और सैनिक दाऊद के चारों ओर इकट्ठे हो गए—वे उसके चारों ओर थे। 7 शिमी ने दाऊद को शाप दिया। उसने कहा, “ओह हत्यारे! भाग जाओ, निकल जाओ, निकल जाओ। 8 यहोवा तुम्हें दण्ड दे रहा है। क्यों? क्योंकि तुमने शाऊल के परिवार के व्यक्तियों को मार डाला। तुमने शाऊल के राजपद को चुराया। किन्तु अब यहोवा ने राज्य तुम्हारे पुत्र अबशालोम को दिया है। अब वे ही बुरी घटनायें तुम्हारे लिये घटित हो रही हैं। क्यों? क्योंकि तुम हत्यारे हो।”
9 सरूयाह के पुत्र अबीशै ने राजा से कहा, “मेरे प्रभु, राजा! यह मृत कुत्ता आपको शाप क्यों दे रहा है? मुझें आगे जाने दें और शिमी का सिर काट लेने दें।”
10 किन्तु राजा ने उत्तर दिया, “सरूयाह के पुत्रो। मैं क्या कर सकता हूँ? निश्चय ही शिमी मुझे शाप दे रहा है। किन्तु यहोवा ने उसे मुझे शाप देने को कहा।” 11 दाऊद ने अबीशै और अपने सभी सेवकों से यह भी कहा, “देखो मेरा अपना पुत्र ही (अबशालोम) मुझे मारने का प्रयत्न कर रहा है। यह व्यक्ति (शिमी), जो बिन्यामीन परिवार समूह का है, मुझको मार डालने का अधिक अधिकारी है। उसे अकेला छोड़ो। उसे मुझे बुरा—भला कहने दो। यहोवा ने उसे ऐसा करने को कहा हैं। 12 संभव है कि उन बुराइयों को जो मरे साथ हो रही हैं, यहोवा देखे। तब संभव है कि यहोवा मुझे आज शिमी द्वारा कही गई हर एक बात के बदले, कुछ अच्छा दे।”
13 इसलिये दाऊद और उसके अनुयायी अपने रास्ते पर नीचे सड़क से उतर गए। किन्तु शिमी दाऊद के पीछे लगा रहा। शिमी सड़क की दूसरी ओर चलने लगा। शिमी अपने रास्ते पर दाऊद को बुरा—भला कहता रहा। शिमी ने दाऊद पर पत्थर और धूलि भी फैंकी।
14 राजा दाऊद और उसके सभी लोग यरदन नदी पहुँचे। राजा और उसके लोग थक गए थे। अत: उन्होंने बहूरीम में विश्राम किया।
समीक्षा
मुसीबतों के बीच खुश रहना
दाऊद का खुद का बेटा अबशालोम उसके विरूद्ध हो गया था, और दाऊद ने बताया कि ' इस्राएली मनुष्यों के मन अबशालोम की ओर हो गए हैं' (15:13). यह अवश्य ही बुरी खबर रही होगी. दाऊद, परमेश्वर का महान जब, परमेश्वर के लोगों के लिए राजा और एक तरह का 'मसीहा' (अवश्य ही, मसीह के पूर्वज), ने अपने जीवन में कई मुसीबतों का सामना किया. यदि आप अपने जीवन में इस तरह की तकलीफों का सामना करें, तो इनके द्वारा अचंभित मत होइये या ऐसा मत सोचिये कि आपने कुछ तो गलत किया है. कभी-कभी परेशानियाँ कुछ सही करने के लिए आती हैं.
- आँसू
हम देखते हैं कि दाऊद कितना निराश था. 'तब दाऊद जलपाइयों के पहाड़ की चढ़ाई पर सिर ढांके, नंगे पांव, रोता हुआ चढ़ने लगा' (व.30). ' और जितने लोग उसके संग थे, वे भी सिर ढांके रोते हुए चढ़ गए' (व.30). अवश्य ही, 'सब रहने वाले चिल्ला चिल्लाकर रोए' (व.23).
- निराशा
केवल दाऊद का पुत्र ही उसके विरोध में नहीं हुआ बल्कि मपीबोशेत भी उसके साथ अविश्वासयोग्य हो गया, बल्कि दाऊद ने सलीक से हटकर उसकी मदद की थी. वह यरूशलेम में रह गया क्योंकि उसने सोचा, 'अब इस्राएल का घराना मुझे मेरे पिता का राज्य फेर देगा' (16:3). विश्वासघात हमेशा निराशाजनक होती है.
- बदनामी
शिमी शाप देता, और उस पर पत्थर और धूली फेंकता हुआ चला गया. फिर भी उसने इस मामले को परमेश्वर के हाथ में सौंपने का निर्णय लिया. (वव.11-12).
- थकान
'निदान राजा अपने संग के सब लोगों समेत अपने ठिकाने पर थका हुआ पहुंचा; और वहां विश्राम किया' (व.14). जब हम पढ़ते हैं कि दाऊद पर क्या गुजरी थी तो इसमे आश्चर्य की बात नहीं है कि वह सच में थक गया था.
मसीही जीवन कभी भी बिना परेशानी, आँसू, दु:ख और निराशा के नहीं होता. मगर, परमेश्वर के लोगों का परमेश्वर के साथ संबंध ही उन्हें अलग करता है.
अपनी परेशानियों के बीच, दाऊद प्रार्थना करता है, ' हे परमेश्वर, अहीतोपेल की सम्मति को मूर्खता बना दे।' (15:31). उसकी प्रार्थना का उत्तर दिया गया – लेकिन उसकी अपेक्षा के अनुसार नहीं. अहीतोपेल अच्छा सुझाव देता है, लेकिन इसे मना कर दिया जाता है. इसलिए परमेश्वर ने प्रार्थना की भावना का उत्तर दिया (17:14 देखें).
थकान के बीच, दाऊद ने खुद को तरोताजा किया (16:14). ' दाऊद सब लोगों समेत अपने ठिकाने पर थका हुआ पहुंचा; और वहां विश्राम किया' (व.14). आत्मिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से फुर्तिला होने के लिए कभी-कभी आपको विश्राम की जरूरत पड़ती है. हमें यह नहीं बताया गया कि दाऊद ने यह कैसे किया. मगर, यदि भजन संहिता किसी के बारे में कुछ कहता है, तो हम जानते हैं कि परमेश्वर के साथ उसके घनिष्ठ संबंध की वजह से उसने विश्राम पाया.
इसमें कोई शक नहीं है कि अपने दोस्तों सादोक (15:24), हुशै (15:37), सीबा (16:1-4) और इत्तै की विश्वासयोग्यता के कारण दाऊद को भावनात्मक रूप से शांति मिली, जिन्होंने उससे कहा, 'मेरे प्रभु राजा के जीवन की शपथ, जिस किसी स्थान में मेरा प्रभु राजा रहेगा, चाहे मरने के लिये हो चाहे जीवित रहने के लिये, उसी स्थान में तेरा दास भी रहेगा' (15:21).
प्रार्थना
प्रभु, आपको धन्यवाद कि इस जीवन में ऐसी कोई मुसीबत नहीं है जिसमें से आप मुझे बाहर नहीं निकाल सकते, अंत में आपकी उपस्थिति में अनंत जीवन के साथ. आपको धन्यवाद कि, मेरी मुसीबतों के बीच, मैं आपसे प्रार्थना कर सकता हूँ और परमेश्वर की उपस्थिति में आराम पा सकता हूँ (प्रेरितों के कार्य 3"19).
पिप्पा भी कहते है
भजन संहिता 71:24
'मैं तेरे धर्म की चर्चा दिन भर करता रहूंगा.'
चार साल पहले मैंने लिखा था, 'पोस्ट ऑफिस जाते समय मैंने परमेश्वर से सभी अद्भुत चीजों के बारे में बात करने की कोशिश की जो उन्होंने की हैं, मैंने ठीक-ठीक शुरूवात की पर फिर विचलित हो गई. मैं 'दिन भर बातें करती हूँ.'
और इस साल भी मैं कुछ बेहतर नहीं कर रही हूँ!
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संदर्भ
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जिन वचनों को \[आरएसवी RSV\] से चिन्हित किया गया है वे बाइबल के रिवाइज्ड स्टैंडर्ड संस्करण से लिए गए हैं, कॉपीराइट © 1946, 1952, और 1971 युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरीका में द डिविजन ऑफ एज्युकेशन ऑफ द नैशनल काउंसिल ऑफ द चर्चेस. अनुमति द्वारा उपयोग किये गए हैं. सभी अधिकार सुरक्षित.