एक बड़ा स्थान
परिचय
जॉन न्यूटन (1735-1801) एक लड़ाकू नास्तिक, दबंग और ईश्वरनिंदक थे. वह एक उग्र और गुस्सैल व्यक्ति थे. अठारह वर्ष की उम्र में उन्हें अनिवार्य रूप से नौसेना में भर्ती किया गया, जहाँ पर उन्होंने नियमों को इतनी लापरवाही से तोड़ा कि उन्हें भगौड़े सिपाही के रूप में लोगों के सामने कोड़ो से पीटा गया. उनके सहकर्मी उनसे नफरत करते थे और डरते थे और वह एक गुलाम व्यापारी बन गए.
तेईस वर्ष की उम्र में, दोनेगल के समुद्रतट पर किन्युटन की जहाज का सामना एक प्रचंड तूफान से हुआ और जहाज लगभग डूब गया था. जैसे ही जहाज पानी से भर गया, उन्होंने परमेश्वर की गुहार लगाई और उस दिन,10मार्च 1748 को परमेश्वर ने उन्हें बचाया. उन्होंने एक नये जीवन की शुरुवात की. उन्होंने प्रार्थना करना और बाईबल पढ़ना शुरु किया. आखिर में वह गुलामों के व्यापार को मिटाने के लिए कैम्पेन में विलियम विबफोर्स से जुड़ गए और उस कैम्पेन में एक प्रकाश बन गए.
न्यूटन को 'अद्भुत अनुग्रह' गीत के रचयिता के रूप में जाना जाता हैः
अद्भुत अनुग्रह! कितनी मधुर धुन
जिसने मुझ जैसे अभागे को बचाया!
मैं खो चुका था पर अब मिल गया हूँ,
अंधा था, लेकिन अब मैं देखता हूँ.
छुडाए जाने का अर्थ है बचाया जाना, मुक्त किया जाना, खतरा. प्रहार या हानि से छुड़ाना. यीशु आपको छुड़ाते हैं और आपको एक 'बड़े स्थान' में लाते हैं (2शमुएल 22:20).
भजन संहिता 73:15-28
15 हे परमेश्वर, मैं ये बातें दूसरो को बताना चाहता था।
किन्तु मैं जानता था और मैं ऐसे ही तेरे भक्तों के विरूद्ध हो जाता था।
16 इन बातों को समझने का, मैंने जतन किया
किन्तु इनका समझना मेरे लिए बहुत कठिन था,
17 जब तक मैं तेरे मन्दिर में नहीं गया।
मैं परमेश्वर के मन्दिर में गया और तब मैं समझा।
18 हे परमेश्वर, सचमुच तूने उन लोगों को भयंकर परिस्थिति में रखा है।
उनका गिर जाना बहुत ही सरल है। उनका नष्ट हो जाना बहुत ही सरल है।
19 सहसा उन पर विपत्ति पड़ सकती है,
और वे अहंकारी जन नष्ट हो जाते हैं।
उनके साथ भयंकर घटनाएँ घट सकती हैं,
और फिर उनका अंत हो जाता है।
20 हे यहोवा, वे मनुष्य ऐसे होंगे
जैसे स्वप्न जिसको हम जागते ही भुल जाते हैं।
तू ऐसे लोगों को हमारे स्वप्न के भयानक जन्तु की तरह
अदृश्य कर दे।
21-22 मैं अज्ञान था।
मैंने धनिकों और दुष्ट लोगों पर विचारा, और मैं व्याकुल हो गया।
हे परमेश्वर, मैं तुझ पर क्रोधित हुआ!
मैं निर्बुद्धि जानवर सा व्यवहार किया।
23 वह सब कुछ मेरे पास है, जिसकी मुझे अपेक्षा है। मैं तेरे साथ हरदम हूँ।
हे परमेश्वर, तू मेरा हाथ थामें है।
24 हे परमेश्वर, तू मुझे मार्ग दिखलाता, और मुझे सम्मति देता है।
अंत में तू अपनी महिमा में मेरा नेतृत्व करेगा।
25 हे परमेश्वर, स्वर्ग में बस तू ही मेरा है,
और धरती पर मुझे क्या चाहिए, जब तू मेरे साथ है
26 चाहे मेरा मन टूट जाये और मेरी काया नष्ट हो जाये
किन्तु वह चट्टान मेरे पास है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ।
परमेश्वर मेरे पास सदा है!
27 परमेश्वर, जो लोग तुझको त्यागते हैं, वे नष्ट हो जाते है।
जिनका विश्वास तुझमें नहीं तू उन लोगों को नष्ट कर देगा।
28 किन्तु, मैं परमेश्वर के निकट आया।
मेरे साथ परमेश्वर भला है, मैंने अपना सुरक्षास्थान अपने स्वामी यहोवा को बनाया है।
हे परमेश्वर, मैं उन सभी बातों का बखान करूँगा जिनको तूने किया है।
समीक्षा
आपके लिए एक बड़ा स्थान
क्या आपने कभी पाप के फिसलने वाले ढ़लान का अनुभव किया है? आप अपने आपको उस रास्ते में आगे और आगे फिसलते हुए पाते हैं, जहाँ पर आप सच में नही होना चाहते हैं.
भजनसंहिता के लेखक ने अपने आपको फिसलने वाले ढ़लान पर पायाः'मेरे डग तो उखड़ना चाहते थे, मेरे डग फिसलने ही पर थे. क्योंकि जब मैं दुष्टों का कुशल देखता था, तब उन घमंडियो के विषय में डाह करता था ' (वव.2-3).
आपका संपूर्ण दृष्टिकोण बदल जाता है जब आप 'परमेश्वर के पवित्र स्थान में' प्रवेश करते हैं (व.17अ): 'तब, मैंने उनकी अंतिम मंजिल को जान लिया' (व.17ब). यह अक्खड़ और दुष्ट लोग हैं जो 'फिसलने वाली जमीन' पर है (व.18). यद्पि वह बाहर से सफल और समृद्ध दिखाई दें, वे उस रास्ते पर हैं जो विनाश की ओर जाता है (वव.19-20).
यह 'बेतुका और अज्ञानी' है (व.22) कि 'अविश्वासियों' से डाह करें. जब आपके पास एक उचित दृष्टिकोण होता है, तब आप समझते हैं कि आप कितने अधिक आशीषित हैं (वव.23-26).
इससे बढ़कर कुछ नहीं हे कि परमेश्वर के साथ एक संबंध में चले, उनकी उपस्थिति को जाने, उनके मार्गदर्शन और उनकी सामर्थ और उनके वायदे को जाने कि वह आपको महिमा में ले जाएँगे. आप 'अविश्वासी' से कही ज्यादा बेहतर हैं, इस जीवन में भी और भविष्य में भी. परमेश्वर आपको अपने 'बड़े स्थान' में लाते हैं.
जब आप देखते हैं कि आप किस चीज से छुड़ाए गए हैं, तब आप समझते हैं कि परमेश्वर के नजदीक होना कितनी अच्छी बात है (व.28), और आप दूसरों तक अच्छे समाचार को पहुंचाना चाहते हैं:
'लेकिन मैं परमेश्वर की उपस्थिति में हूँ –
ओह, यह कितना ताजा करता है!
मैंने प्रभु परमेश्वर को मेरा घर बना लिया है.
परमेश्वर, मैं विश्व को आपके कामों को बताता हूँ' (व.28, एम.एस.जी.).
प्रार्थना
परमेश्वर आपका धन्यवाद क्योंकि आपने मुझे फिसलने वाली ढ़लान से बचाया है और मुझे एक बड़े स्थान में ला दिया है.
प्रेरितों के काम 9:1-31
शाऊल का हृदय परिवर्तन
9शाऊल अभी प्रभु के अनुयायियों को मार डालने की धमकियाँ दिया करता था। वह प्रमुख याजक के पास गया 2 और उसने दमिश्क के आराधनालयों के नाम माँग कर अधिकार पत्र ले लिया जिससे उसे वहाँ यदि कोई इस पंथ का अनुयायी मिले, फिर चाहे वह स्त्री हो, चाहे पुरुष, तो वह उन्हें बंदी बना सके और फिर वापस यरूशलेम ले आये।
3 सो जब चलते चलते वह दमिश्क के निकट पहुँचा, तो अचानक उसके चारों ओर आकाश से एक प्रकाश कौंध गया 4 और वह धरती पर जा पड़ा। उसने एक आवाज़ सुनी जो उससे कह रही थी, “शाऊल, अरे ओ शाऊल! तू मुझे क्यों सता रहा है?”
5 शाऊल ने पूछा, “प्रभु, तू कौन है?”
वह बोला, “मैं यीशु हूँ जिसे तू सता रहा है। 6 पर तू अब खड़ा हो और नगर में जा। वहाँ तुझे बता दिया जायेगा कि तुझे क्या करना चाहिये।”
7 जो पुरुष उसके साथ यात्रा कर रहे थे, अवाक् खड़े थे। उन्होंने आवाज़ तो सुनी किन्तु किसी को भी देखा नहीं। 8 फिर शाऊल धरती पर से खड़ा हुआ। किन्तु जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो वह कुछ भी देख नहीं पाया। सो वे उसे हाथ पकड़ कर दमिश्क ले गये। 9 तीन दिन तक वह न तो कुछ देख पाया, और न ही उसने कुछ खाया या पिया।
10 दमिश्क में हनन्याह नाम का एक शिष्य था। प्रभु ने दर्शन देकर उससे कहा, “हनन्याह।”
सो वह बोला, “प्रभु, मैं यह रहा।”
11 प्रभु ने उससे कहा, “खड़ा हो और सीधी कहलाने वाली गली में जा। और वहाँ यहूदा के घर में जाकर तरसुस निवासी शाऊल नाम के एक व्यक्ति के बारे में पूछताछ कर क्योंकि वह प्रार्थना कर रहा है। 12 उसने एक दर्शन में देखा है कि हनन्याह नाम के एक व्यक्ति ने घर में आकर उस पर हाथ रखे हैं ताकि वह फिर से देख सके।”
13 हनन्याह ने उत्तर दिया, “प्रभु मैंने इस व्यक्ति के बारे में बहुत से लोगों से सुना हूँ। यरूशलेम में तेरे संतों के साथ इसने जो बुरी बातें की हैं, वे सब मैंने सुनी हूँ। 14 और यहाँ भी यह प्रमुख याजकों से तेरे नाम में सभी विश्वास रखने वालों को बंदी बनाने का अधिकार लेकर आया है।”
15 किन्तु प्रभु ने उससे कहा, “तू जा क्योंकि इस व्यक्ति को विधर्मियों, राजाओं और इस्राएल के लोगों के सामने मेरा नाम लेने के लिये, एक साधन के रूप में मैंने चुना है। 16 मैं स्वयं उसे वह सब कुछ बताऊँगा, जो उसे मेरे नाम के लिए सहना होगा।”
17 सो हनन्याह चल पड़ा और उस घर के भीतर पहुँचा और शाऊल पर उसने अपने हाथ रख दिये और कहा, “भाई शाऊल, प्रभु यीशु ने मुझे भेजा है, जो तेरे मार्ग में तेरे सम्मुख प्रकट हुआ था ताकि तू फिर से देख सके और पवित्र आत्मा से भावित हो जाये।” 18 फिर तुरंत छिलकों जैसी कोई वस्तु उसकी आँखों से ढलकी और उसे फिर दिखाई देने लगा। वह खड़ा हुआ और उसने बपतिस्मा लिया। 19 फिर थोड़ा भोजन लेने के बाद उसने अपनी शक्ति पुनः प्राप्त कर ली।
शाऊल का दमिश्क में प्रचार कार्य
वह दमिश्क में शिष्यों के साथ कुछ समय ठहरा। 20 फिर वहतुरंत यहूदी आराधनालयों में जाकर यीशु का प्रचार करने लगा। वह बोला, “यह यीशु परमेश्वर का पुत्र है।”
21 जिस किसी ने भी उसे सुना, चकित रह गया और बोला, “क्या यह वही नहीं है, जो यरूशलेम में यीशु के नाम में विश्वास रखने वालों को नष्ट करने का यत्न किया करता था। और क्या यह उन्हें यहाँ पकड़ने और प्रमुख याजकों के सामने ले जाने नहीं आया था?”
22 किन्तु शाऊल अधिक से अधिक शक्तिशाली होता गया और दमिश्क में रहने वाले यहूदियों को यह प्रमाणित करते हुए कि यह यीशु ही मसीह है, पराजित करने लगा।
शाऊल का यहूदियों से बच निकलना
23 बहुत दिन बीत जाने के बाद यहूदियों ने उसे मार डालने का षड्यन्त्र रचा। 24 किन्तु उनकी योजनाओं का शाऊल को पता चल गया। वे नगर द्वारों पर रात दिन घात लगाये रहते थे ताकि उसे मार डालें। 25 किन्तु उसके शिष्य रात में उसे उठा ले गये और टोकरी में बैठा कर नगर की चारदिवारी से लटका कर उसे नीचे उतार दिया।
यरूशलेम में शाऊल का पहुँचना
26 फिर जब वह यरूशलेम पहुँचा तो वह शिष्यों के साथ मिलने का जतन करने लगा। किन्तु वे तो सभी उससे डरते थे। उन्हें यह विश्वास नहीं था कि वह भी एक शिष्य है। 27 किन्तु बरनाबास उसे अपने साथ प्रेरितों के पास ले गया और उसने उन्हें बताया कि शाऊल ने प्रभु को मार्ग में किस प्रकार देखा और प्रभु ने उससे कैसे बातें कीं और दमिश्क में किस प्रकार उसने निर्भयता से यीशु के नाम का प्रचार किया।
28 फिर शाऊल उनके साथ यरूशलेम में स्वतन्त्रतापूर्वक आते जाते रहने लगा। वह निर्भीकता के साथ प्रभु के नाम का प्रवचन किया करता था। 29 वह यूनानी भाषा-भाषी यहूदियों के साथ वाद-विवाद और चर्चाएँ करता किन्तु वे तो उसे मार डालना चाहते थे। 30 किन्तु जब बंधुओं को इस बात का पता चला तो वे उसे कैसरिया ले गये और फिर उसे तरसुस पहुँचा दिया।
31 इस प्रकार समूचे यहूदिया, गलील और सामरिया के कलीसिया का वह समय शांति से बीता। वह कलीसिया और अधिक शक्तिशाली होने लगी। क्योंकि वह प्रभु से डर कर अपना जीवन व्यतीत करती थी, और पवित्र आत्मा ने उसे और अधिक प्रोत्साहित किया था सो उसकी संख्या बढ़ने लगी।
समीक्षा
चर्च के लिए एक बड़ा स्थान
क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो मसीहों और मसीह विश्वास के प्रति बहुत ही विरोधी हैं? शाऊल ऐसे थे. जॉन न्यूटन ऐसे थे. मैं वैसा था. जब हम शाऊल के मन फिराने के विषय में पढ़ते हैं, तब यह हमें आशा प्रदान करता है कि परमेश्वर सबसे अनपेक्षित लोगों को भी बदल सकते हैं.
इस लेखांश में हम एक दुगने बचाव को देखते हैं. शाऊल के प्रहारों के द्वारा लाए गए अंधकार से चर्च बचाया जाता है, और शाऊल स्वयं के आंतरिक अंधकार से छुड़ा लिया गया है. परमेश्वर की बदलने वाली सामर्थ में पौलुस को चर्च के एक सताने वाले से बदलकर, चर्च के सबसे बड़े वकील में बदल दिया गया.
शाऊल का पारिवारिक स्तर बहुत ही सुविधाजनक था. वह तरसुस का एक रोमी नागरिक था. उसने उच्च रूप से शिक्षा प्राप्त की थी. वह एक शिक्षित वकील थे. वह एक गहरे 'धार्मिक' व्यक्ति थे, जो परमेश्वर में मजबूत विश्वास रखते थे.
फिर भी, शाऊल ऐसी एक सड़क के अंधकार में जी रहे थे जो विनाश की ओर ले जाता है. वह 'हत्या करने के लिए' निकले थे (व.1, एम.एस.जी). वह मसीहों को गिरफ्तार करने और उन्हें बंदीगृह में रखने की कोशिश कर रहे थे(व.2). मसीहों के बीच में वह भयानक रूप से जाने जाते थे क्योंकि उन्होंने (उनके) प्रति बहुत अधिक हानि (की थी) (व.13) और यह तथ्य कि वह यीशु के अनुयायियों के बीच में 'तबाही' मचा रहे थे (व.21).
परन्तु चलते - चलते जब वह दमिश्क के निकट पहुँचा, तो एकाएक आकाश से उसके चारों ओर ज्योति चमकी (व.3, एम.एस.जी). यीशु उसे दिखाई दिए और कहा, 'शाऊल, शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?' (व.4). जैसा कि शाऊल उनसे पहले कभी नहीं मिले थे, तो वह कैसे यीशु को सता सकते हैं? उस क्षण, उसने अवश्य ही समझा होगा कि चर्च यीशु है. यह उनका शरीर है. मसीहों को सताने में, वह वास्तव में यीशु को सता रहे थे. बाद में, उन्होंने अपनी समझ को विकसित किया कि यह चर्च मसीह की देह है (1कुरिंथियो 12-14 देखे).
शाऊल का भौतिक अंधापन उस समय उनके जीवन में आत्मिक अंधकार का प्रतीक था. जब हनन्याह ने उस पर हाथ रखा, तब उसकी आँखे खुल गई और वह आत्मा से भर गए (प्रेरितों के काम 9:17): ' और तुरन्त उसकी आँखों से छिलके – से गिरे और वह देखने लगा' (व.18). वह भौतिक और आत्मिक अंधकार से छुड़ाए गए.
ना केवल यीशु ने शाऊल को अंधकार से छुड़ाया, उन्होंने उसे उनके 'चुने हुए उपकरण' के रूप में भी नियुक्त किया. उन्होंने हनन्याह से कहा, ' 'तू चला जा; क्योंकि वह तो अन्यजातियों और राजाओं और इस्रालियों के सामने मेरा नाम प्रकट करने के लिये मेरा चुना हुआ उपकरण है' (व.15).
किंतु, परमेश्वर ने पौलुस से एक सरल जीवन का वायदा नहीं किया. महान सुविधा के साथ कष्ट आएँगे, ' और मै उसे बताउँगा कि मेरे नाम के लिये कैसा दुःख उठाना पड़ेगा' (व.16).
एक ही बार में, पौलुस ने प्रचार करना शुरु किया कि यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं (व.20). वह 'अधिक और अधिक शक्तिशाली होते गए...साबित करते हुए कि यीशु मसीह हैं' (व.22). एक वकील की तरह, उन्होंने प्रमाणों को उत्पन्न किया दिखाने के लिए कि इतिहास में कुछ हुआ था. यीशु क्रूस पर चढ़ाए गए, मरे हुओं में से जी उठे और मसीह हैं.
पौलुस को बचाने के द्वारा, चर्च भी बच गयाः ' इस प्रकार सारे यहूदिया, और गलील, और सामरिया में कलीसिया को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई; और वह प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती गई' (व.31, एम.एस.जी.). परमेश्वर ने चर्च को एक बड़े स्थान में ला दिया था और उन्होंने शांती और आशीष के एक समय का आनंद लिया.
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप हमारे देश में चर्च को एक बड़े स्थान में ला देंगे, जो कि पवित्र आत्मा के द्वारा मजबूत और उत्साहित है, यह शांती के एक समय का आनंद लेगा और संख्या में बढ़ेगा.
2 शमूएल 22:1-23:7
यहोवा की स्तुति के लये दाऊद का गीत
22यहोवा ने दाऊद को शाऊल तथा अन्य सभी शत्रुओं से बचाया था। दाऊद ने उस समय यह गीत गाया,
2 यहोवा मेरी चट्टान, मरा गढ़ मेरा शरण—स्थल है।
3 मैं सहायता पाने को परमेश्वर तक दौड़ूँगा।
वह मेरी सुरक्षा—चट्टान है।
परमेश्वर मेरा ढाल है।
उसकी शक्ति मेरी रक्षक है।
यहोवा मेरी ऊँचा गढ़ है,
और मेरी सुरक्षा का स्थान है।
मेरा रक्षक कष्टों से मेरी रक्षा करता है।
4 उन्होंने मेरा उपहास किया।
मैंने सहायता के लिये यहोवा को पुकारा,
यहोवा ने मुझे मेरे शत्रुओं से बचाया!
5 मेरे शत्रु मुझे मारना चाहते थे।
मृत्यु—तरंगों ने मुझे लपेट लिया।
6 विपत्तियाँ बाढ़—सी आईं, उन्होंने मुझे भयभीत किया।
कब्र की रस्सियाँ मेरे चारों ओर लिपटीं, मैं मृत्यु के जाल में फँसा।
7 मैं विपत्ति में था, किन्तु मैंने यहोवा को पुकारा।
हाँ, मैंने अपने परमेश्वर को पुकारा वह अपने उपासना गृह में था,
उसने मेरी पुकार सुनी,
मेरी सहायता की पुकार उसके कानों में पड़ी।
8 तब धरती में कम्पन हुआ, धरती डोल उठी,
आकाश के आधार स्तम्भ काँप उठे।
क्यों? क्योंकि यहोवा क्रोधित था।
9 उसकी नाक से धुआँ निकला,
उसके मुख से जलती चिन्गारियाँ छिटकी,
उससे दहकते अंगारे निकल पड़े।
10 यहोवा ने आकाश को फाड़ कर खोल डाला,
और नीचे आया, वह सघन काले मेघ पर खड़ा हुआ!
11 यहोवा करूब (स्वर्गदूत) पर बैठा, और उड़ा,
वह पवन के पंखों पर चढ़ कर उड़ गया।
12 यहोवा ने तुम्बू—से काले मेघों को अपने चारों ओर लपेट लिया,
उसने सघन मेघों से जल इकट्ठा किया।
13 उसका तेज इतना प्रखर था,
मानो बिजली की मचक वहीं से आई हो।
14 यहोवा गगन से गरज! परमेश्वर,
अति उच्च, बोला।
15 यहोवा ने बाण से शत्रुओं को बिखराया,
यहोवा ने बिजली भेजी, और लोग भय से भागे।
16 धरती की नींव का आवरण हट गया,
तब लोग सागर की गहराई देख सकते थे।
वे हटे, क्योंकि यहोवा ने बातें कीं,
उसकी अपनी नाक से तप्त वायु निकलने के कारण।
17 यहोवा गगन से नीचे पहुँचा, यहोवा ने मुझे पकड़ लिया,
उसने मुझे गहरे जल (विपत्ति) से निकाल लिया।
18 उसने उन लोगों से बचाया, जो घृणा करते थे,
मुझसे मेरे शत्रु मुझसे अधिक शक्तिशाली थे, अत: उसने मेरी रक्षा की।
19 मैं विपत्ति में था, जब मेरे शत्रुओं का मुझ पर आक्रमण हुआ,
किन्तु मेरे यहोवा ने मेरी साहयता की।
20 यहोवा मुझे सुरक्षा में ले आया, उसने मेरी रक्षा की,
क्योंकि वह मुझसे प्रेम करता है।
21 यहोवा मुझे पुरस्कार देता है, क्योंकि मैंने उचित किया।
यहोवा मुझे पुरस्कार देता है, क्योंकि मेरे हाथ पाप रहित हैं।
22 क्यों? क्योंकि मैंने यहोवा के नियमों का पालन किया।
मैंने अपने परमेश्वर के विरुद्ध पाप नहीं किया।
23 मैं सदा याद करता हूँ यहोवा का निर्णय,
मैं उसके नियमों को मानता हूँ।
24 यहोवा जानता है—मैं अपराधी नहीं हूँ,
मैं अपने को पापों से दूर रखता हूँ।
25 यही कारण है कि यहोवा मुझे पुरस्कार देता है, मैं न्यायोचित रहता हूँ।
यहोवा देखता है, कि मैं स्वच्छ जीवन बिताता हूँ।
26 यदि कोई व्यक्ति तुझसे प्रेम करेगा तो तू, अपनी प्रेमपूर्ण दया उस पर करेगा।
यदि कोई तेरे प्रति सच्चा है, तब तू भी उसके प्रति सच्चा होगा!
27 यदि कोई तेरे लिये अच्छा जीवन बिताता है, तब तू भी उसके लिये अच्छा बनेगा।
किन्तु यदि कोई व्यक्ति तेरे विरुद्ध होता है, तब तू भी उसके विरुद्ध होगा।
28 तू विपत्ति में विन्रम लोगों को बचायेगा,
किन्तु तू घमण्डी को नीचा करेगा।
29 यहोवा तू मेरा दीपक है,
यहोवा मेरे चारों ओर के अंधेरे को प्रकाश में बदलता है।
30 तू सैनिकों के दल को हराने में, मेरी सहायता करता है।
परमेश्वर की शक्ति से मैं दीवर के ऊपर चढ़ सकता हूँ।
31 परमेश्वर की शक्ति पूर्ण है।
यहोवा के वचन की जाँच हो चुकी है।
यहोवा रक्षा के लिये, अपने पास भागने वाले हर व्यक्ति की ढाल है।
32 यहोवा के अतिरिक्त कोई अन्य परमेश्वर नहीं,
हमारे परमेश्वर के अतिरिक्त अन्य कोई आश्रय—शिला नहीं।
33 परमेश्वर मेरा दृढ़ गढ़ है
वह निर्दोषों की शुद्ध आत्माओं की सहायता करता है।
34 यहोवा मेरे पैरों को हिरन के पैरों—सा तेज बनाता है,
वह उच्च स्थानों पर मुझे दृढ़ करता है।
35 यहोवा मुझे युद्ध की शिक्षा देता है, अत:
मेरी भुजायें पीतल के धनुष को चला सकती हैं।
36 तू ढाल की तरह, मेरी रक्षा करता है।
तेरी सहायता ने मुझे विजेता बनाया है।
37 तूने मेरा मार्ग विस्तृत किया है,
जिससे मेरे पैर फिसले नहीं।
38 मैंने अपने शत्रुओं का पीछा किया, मैंने उन्हें नष्ट किया,
मैं तब तक नहीं लौटा, जब तक शत्रु नष्ट न हुए।
39 मैंने अपने शत्रुओं को नष्ट किया है,
मैंने उन्हें पूरी तरह नष्ट किया है।
वे फिर उठ नहीं सकते,
हाँ मेरे शत्रु मेरे पैरों के तले गिरे।
40 परमेश्वर तूने मुझे युद्ध के लिये, शक्तिशाली बनाया।
तूने मेरे शत्रुओं को हराया है।
41 तूने मेरे शत्रुओं को भगाया है,
अत: मैं उन लोगों को हरा सकता हूँ जो मुझसे घृणा करते हैं।
42 मेरे शत्रुओं ने सहायता चाही,
किन्तु उनका रक्षक कोई नहीं था।
उन्होंने यहोवा से सहायता माँगी,
लेकिन उसने उत्तर नहीं दिया।
43 मैं अपने शत्रुओं को कूटकर टुकड़े—टुकड़े करता हूँ,
वे भूमि पर धूलि से हो जाते हैं।
मैंने उन्हें सड़क की कीचड़ की
तरह रौंद दिया।
44 तूने तब भी मुझे बचाया है, जब मेरे लोगों ने मेरे विरुद्ध लड़ाई की।
तूने मुझे राष्ट्रों का शासक बनाये रखा,
वे लोग भी मेरी सेवा करेंगे, जिन्हें मैं नहीं जानता।
45 अन्य देशों के लोग मेरी आज्ञा मानते हैं,
जैसे ही सुनते हैं, तो शीघ्र ही मेरी आज्ञा स्वीकार करते हैं।
46 अन्य देशों के लोग भयभीत होंगे,
वे अपने छिपने के स्थानों से भय से काँपते निकलेंगे।
47 यहोवा शाश्वत है,
मेरी आश्रय चट्टान की स्तुति करो!
परमेश्वर महान है! वह आश्रय—चट्टान है, जो मेरा रक्षक है।
48 वह परमेश्वर है, जो मेरे शत्रुओं को मेरे लिये दण्ड देता है।
वह लोगों को मेरे अधीन करता है।
49 वह मुझे मेरे शत्रुओं से मुक्त करता है।
हाँ, तूने मुझे मेरे शत्रुओं से ऊपर उठाया।
तू मुझे, प्रहार करने के इच्छुकों से बचाता है।
50 यहोव, इसी कारण, हे यहोवा मैंने राष्ट्रों के बीच में तुझ को धन्यवाद दिया,
यही कारण है कि मैं तेरे नाम की महिमा गाता हूँ।
51 यहोवा अपने राजा की सहायता, युद्ध में विजय पाने में करता है,
योहवा अपने चुने हुये राजा से प्रेम दया करता है।
वह दाऊद और उसकी सन्तान पर सदा दयालु रहेगा।
दाऊद के अन्तिम शब्द
23यिशै के पुत्र दाऊद के अन्तिम शब्द हैं, दाऊद ने यह गीत गाया:
“परमेश्वर द्वारा महान बना व्यक्ति कहता है,
वह याकूब के परमेश्वर द्वारा चुना गया राजा है,
वह इस्राएल का मधुर गायक है।
2 यहोवा की आत्मा मेरे माध्यम से बोला।
उसके शब्द मेरी जीभ पर थे।
3 इस्राएल के परमेश्वर ने बातें कीं।
इस्राएल की आश्रय, चट्टान ने मुझसे कहा,
‘वह व्यक्ति जो लोगों पर न्यायपूर्ण शासन करता है,
वह व्यक्ति जो परमेश्वर को सम्मान देकर शासन करता है।
4 वह उषाकाल के प्रकाश—सा होगा,
वह व्यक्ति मेघहीन प्रात: की तरह होगा,
वह व्यक्ति उस वर्षा के बाद की धूप सा होगा;
वर्षा जो भूमि में कोमल घासें उगाती है।’
5 “परमेश्वर ने मेरे परिवार को शक्तिशाली बनाया था।
परमेश्वर ने मेरे साथ सदैव के लिये एक वाचा की,
परमेश्वर ने यह वाचा पक्की की, और वह इसे नहीं तोड़ेगा,
यह वाचा मेरी मुक्ति है, यह वाचा वह सब है,
जो मैं चाहता हूँ।
सत्य ही, यहोवा मेरे परिवार को शक्तिशाली बनने देगा।
6 “किन्तु सभी बुरे व्यक्ति काँटों की तरह हैं।
लोग काँटों को धारण नहीं करते,
वे उन्हें दूर फेंक देते हैं।
7 यदि कोई व्यक्ति उन्हें छूता है,
तो वे उस भाले के दंड की तरह चुभते हैं जो लकड़ी तथा लोहे से बना हो।
वे लोग काँटो की तरह होंगे।
वे आग में फेंक दिये जाएंगे,
और वे पूरी तरह भस्म हो जायेंगे।”
समीक्षा
सर्वदा के लिए एक बड़ा स्थान
जैसे ही दाऊद अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर होते हैं, वह परमेश्वर की स्तुति करते हैं कि परमेश्वर ने बार-बार उन्हें उनके शत्रुओं से और मृत्यु और विनाश से बचाया (अध्याय 22 – भजनसंहिता 18 में गीत है). परमेश्वर उनका 'छुड़ाने वाला' है (2शमुएल 22:2, एम.एस.जी.).
अपने संकट में मैं ने यहोवा को पुकारा;
और अपने परमेश्वर के सम्मुख रोया.
उसने मेरी बात को अपने मंदिर में से सुन लिया,
और मेरी दोहाई उसके कानों में पहुँची (व.7, एम.एस.जी).
बहुत सी बार उन्होंने परमेश्वर की दोहाई दी, और परमेश्वर ने उनकी आवाज सुनी. 'उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया, और मुझे गहरे जल में से खींचकर बाहर निकाला' (व.17). 'उसने मुझे मेरे शक्तिशाली शत्रु से छुड़ाया...' (व.18). 'उसने मुझे निकालकर चौड़े स्थान में पहुँचाया; उसने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझ से प्रसन्न था' (व.20, व.49 भी देखें).
जब परमेश्वर आपको छुड़ाते हैं तब वह नहीं चाहते हैं कि आप वैसे ही बने रहे जैसे कि आप हैं:'जब मैंने अपने कामों को शुद्ध किया, तब उसने मुझे एक ताजी शुरुवात दी...परमेश्वर ने मेरे जीवन की कहानी को फिर से लिखा' (वव.21,25, एम.एस.जी). वह चाहते हैं कि आप एक निर्दोष जीवन जीएँ और अपने आपको पाप से दूर रखें (व.24). वह चाहते हैं कि आप 'वफादार' (व.26), शुद्ध (व.27) और दीन (व.28) बनें.
परमेश्वर की सहायता से, आप एक सेना के सामने जीत सकते हैं; अपने परमेश्वर की सहायता से मैं शरपनाह को फाँद जाता हूँ' (व.30). परमेश्वर आपको सामर्थ देते हैं (व.33) और ऊँचाई पर खड़े रहने के लिए आपको सक्षम करते हैं (व.34). वह आपके नीचे के रास्ते को चौड़ा करते हैं ताकि आपके पैर न फिसले (व.37).
जिस किसी चीज का आप सामना कर रहे हैं – एक कठिन बॉस, एक कठिन विवाह, एक कठिन बच्चे को बढ़ाना –परमेश्वर आपको सामर्थ देते हैं ताकि आप इसके साथ बने रह सकें.
दाऊद अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर, परमेश्वर और जीवन के अपने अनुभव को व्यक्त करते हैं (अध्याय 23). परमेश्वर ने उन्हें बचाया था. परमेश्वर ने उन्हें अभिषिक्त किया था (23:1): 'यहोवा का आत्मा मुझ में होकर बोला, और उसी का वचन मेरे मुंह में आया' (व.2).
परमेश्वर ने उन्हें छुड़ाया था और उन्हें बचाया था. फिर भी, आगे और चीजे आने वाली थीः 'तब भी मेरा पूर्ण उद्धार और पूर्ण अभिलाषा का विषय यही है' (व.5). उद्धार के परमेश्वर की बचाव योजना एक दिन पूरी होगी. उस दिन बचाव कार्य पूरा होगा और आप सर्वदा के लिए एक बड़े स्थान का आनंद लेंगे.
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आपने हमें क्रूस और यीशु के पुनरूत्थान के द्वारा छुड़ाया है. आपका धन्यवाद क्योंकि एक दिन बचाव कार्य पूरा होगा, जब यीशु वापस आयेंगे और हम उनके साथ सर्वदा के लिए एक 'बड़े स्थान' में होंगे.
पिप्पा भी कहते है
2शमुएल 22:33
'यह वही ईश्वर हैं, जिसने मुझे अति दृढ़ किया है, वह खरे मनुष्य को अपने मार्ग में लिए चलता है.'
यह उत्साहित करता है जब मैं अक्सर चीजों को बिगाड़ देता हूँ.

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संदर्भ
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।