दिन 167

जब आप परमेश्वर को नहीं समझ पाते

बुद्धि भजन संहिता 74:1-9
नए करार प्रेरितों के काम 9:32-10:23a
जूना करार 2 शमूएल 23:8-24:25

परिचय

जॉन न्यूटन, जिनके जीवन को हमने कल देखा था, उन्होंने विलियम कॉपर नामक एक व्यक्ति को तैयार किया (1731-1800). कॉपर ने विडंबना का अनुभव किया था. जब वह छ: साल के थे तब उनकी माँ मर गई. जब वह छोटे थे तभी उनके पिता का भी देहांत हो गया. वह एक वकील थे. बाहर से वह सफल दिखाई देते थे. किंतु, वह गंभीर उदासी से कष्ट उठा रहे थे....वे प्रशासनिक पद के लिए अर्जी देते समय, जिसके लिए एक औपचारिक परीक्षा देनी पड़ती थी, वह परीक्षा की सफलता के विषय में इतने परेशान थे कि उन्होंने आत्महत्या करने का प्रयास किया. जीवनभर उन्होंने मानसिक बीमारी से कष्ट उठाया.

जब वह तीस वर्ष के थे, तब जॉन न्यूटन ने कॉपर को गीत बनाने के लिए उत्साहित किया. उन्होंने दैनिक जीवन के आनंद और दुख के विषय में शक्तिशाली रूप से लिखा. 1774 में, उन्होंने इतने तीक्ष्ण मानसिक रोग से कष्ट उठाया कि मॅरी उनविन से उनकी होने वाली शादी रूक गई. वह निराश हो चुके थे. थोड़े समय बाद, शायद से उनके सबसे प्रसिद्ध गीत में, उन्होंने लिखाः

परमेश्वर के कार्य करने का तरीका रहस्यमय है
उनके कार्य अद्भुत हैं

परमेश्वर भल्र् हैं. परमेश्वर प्रेम हैं. परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं. परमेश्वर ने अपने आपको मुख्य रूप से यीशु में दिखाया है. यह सब हम जानते हैं. तब आप बाईबल में लेखांश को पढ़ते हैं जो परमेश्वर के विषय में आपकी समझ के साथ उचित नहीं बैठता. जीवन में भी आपके ऐसे अनुभव हैं जो उचित नहीं लगते हैं.

आप परमेश्वर को एक बॉक्स में नहीं रख सकते हैं. वह उससे कही अधिक महान हैं जितना कि आप समझ सकते हैं. बाईबल में कुछ लेखांश रहस्यमय हैं. एक बार यीशु ने कहा, ' जो मैं करता हूँ, तू उसे अभी नहीं जानता, परन्तु इसके बाद समझेगा' (यूहन्ना 13:7). कभी –कभी वह समझ हमारे जीवनकाल में आएगी. कुछ चीजों को हम केवल तभी समझेंगे जब हम परमेश्वर से मिलेंगे.

आपको कैसे उत्तर देना चाहिए जब आप परमेश्वर को नहीं समझ पाते हैं?

बुद्धि

भजन संहिता 74:1-9

आसाप का एक प्रगीत।

74हे परमेश्वर, क्या तूने हमें सदा के लिये बिसराया है?
 क्योंकि तू अभी तक अपने निज जनों से क्रोधित है?
2 उन लोगों को स्मरण कर जिनको तूने बहुत पहले मोल लिया था।
 हमको तूने बचा लिया था। हम तेरे अपने हैं।
 याद कर तेरा निवास सिय्योन के पहाड़ पर था।
3 हे परमेश्वर, आ और इन अति प्राचीन खण्डहरों से हो कर चल।
 तू उस पवित्र स्थान पर लौट कर आजा जिसको शत्रु ने नष्ट कर दिया है।

4 मन्दिर में शत्रुओं ने विजय उद्घोष किया।
 उन्होंने मन्दिर में निज झंडों को यह प्रकट करने के लिये गाड़ दिया है कि उन्होंने युद्ध जीता है।
5 शत्रुओं के सैनिक ऐसे लग रहे थे,
 जैसे कोई खुरपी खरपतवार पर चलाती हो।
6 हे परमेश्वर, इन शत्रु सैनिकों ने निज कुल्हाडे और फरसों का प्रयोग किया,
 और तेरे मन्दिर की नक्काशी फाड़ फेंकी।
7 परमेश्वर इन सैनिकों ने तेरा पवित्र स्थान जला दिया।
 तेरे मन्दिर को धूल में मिला दिया,
 जो तेरे नाम को मान देने हेतु बनाया गया था।
8 उस शत्रु ने हमको पूरी तरह नष्ट करने की ठान ली थी।
 सो उन्होंने देश के हर पवित्र स्थल को फूँक दिया।

9 कोई संकेत हम देख नहीं पाये।
 कोई भी नबी बच नहीं पाया था।
 कोई भी जानता नहीं था क्या किया जाये।

समीक्षा

परमेश्वर के साथ ईमानदार बनें

क्या आपके जीवन में ऐसे समय भी आए हैं जब आपको समझ नहीं आता है कि आपके साथ कुछ चीजें क्यों हो रही है? क्या ऐसा लगता है कि परमेश्वर ने आपको नकार दिया है? यदि ऐसा है, तो परमेश्वर के लोगों के इतिहास में आपका अनुभव सामान्य है. इस भजन की शुरुवात इस प्रश्न के साथ होती हैः 'हे परमेश्वर, तू ने हमें क्यों सदा के लिये छोड़ दिया है?' (व.1).

कभी कभी ऐसा लग सकता है कि परमेश्वर चुप हैं और किसी भी तरह से आपकी सहायता करने के लिए हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं. जैसा कि भजनसंहिता के लेखक कहते हैं, 'हम को हमारे निशान नहीं देख पड़ते; अब कोई नबी नहीं रहा, न हमारे बीच कोई जानता है कि कब तक यह दशा रहेगी.' (व.9, एम.एस.जी.).

जब आप ऐसे समयों से गुजरते हैं, तब आप नहीं जानते हैं कि 'कब तक यह स्थिति' रहेगी (व.9). शायद से आपके पास प्रश्न हो कि क्यों आपके जीवन का एक भाग इस तरह से काम कर रहा है. या शायद से आप महसूस करें कि परमेश्वर दूर हैं. क्रूस के सेंट जॉन (1542-1591) ने ऐसे समयों को 'प्राण की अंधेरी रात' कहा.

ऐसे समय में आपको क्या करना चाहिए?

  1. यें प्रश्न पूछे

भजनसंहिता के लेखक झाड़ी के आस-पास नहीं लड़ते हैं. वह परमेश्वर के सामने अपने हृदय को ऊँडेलते हैं. वह परमेश्वर से कठिन प्रश्न पूछते हैं. 'हे परमेश्वर, तू ने हमें क्यों सदा के लिये छोड़ दिया है? तेरी कोपाग्नि का धुआं तेरी चराई की भेड़ो के विरूद्ध क्यों उठ रहा है' (व.1, एम.एस.जी.).

  1. उत्तर मांगे

'...इस सिय्योन पर्वत को भी, जिस पर तू ने वास किया था, स्मरण कर...' (वव.2-3, एम.एस.जी).

जब आप इस प्रकार के अनुभवों और भावनाओं को महसूस करते हैं, तब आप अकेले नहीं है. भजनसंहिता की एक महान आशीष यह है कि आप रहस्यमय कष्टो के समय उनकी ओर जा सकते हैं और अपने हृदय में इन प्रार्थनाओं को दोहरा सकते हैं.

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि जब मैं नहीं समझ पाता हूँ कि मेरे साथ क्या हो रहा है, तब प्रार्थना करते समय मैं आपके साथ ईमानदार हो सकता हूँ और आपके सामने अपने हृदय को ऊंडेल सकता हूँ.

नए करार

प्रेरितों के काम 9:32-10:23a

पतरस लिद्दा और याफा में

32 फिर उस समूचे क्षेत्र में घूमता फिरता पतरस लिद्दा के संतों से मिलने पहुँचा। 33 वहाँ उसे अनियास नाम का एक व्यक्ति मिला जो आठ साल से बिस्तर में पड़ा था। उसे लकवा मार गया था। 34 पतरस ने उससे कहा, “अनियास, यीशु मसीह तुझे स्वस्थ करता है। खड़ा हो और अपना बिस्तर ठीक कर।” सो वह तुरंत खड़ा हो गया। 35 फिर लिद्दा और शारोन में रहने वाले सभी लोगों ने उसे देखा और वे प्रभु की ओर मुड़ गये।

36 याफा में तबीता नाम की एक शिष्या रहा करती थी। जिसका यूनानी अनुवाद है दोरकास अर्थात् “हिरणी।” वह सदा अच्छे अच्छे काम करती और गरीबों को दान देती। 37 उन्हीं दिनों वह बीमार हुई और मर गयी। उन्होंने उसके शव को स्नान करा के सीढ़ियों के ऊपर कमरे में रख दिया। 38 लिद्दा याफा के पास ही था, सो शिष्यों ने जब यह सुना कि पतरस लिद्दा मैं है तो उन्होंने उसके पास दो व्यक्ति भेजे कि वे उससे विनती करें, “अनुग्रह कर के जल्दी से जल्दी हमारे पास आ जा!”

39 सो पतरस तैयार होकर उनके साथ चल दिया। जब पतरस वहाँ पहुँचा तो वे उसे सीढ़ियों के ऊपर कमरे में ले गये। वहाँ सभी विधवाएँ विलाप करते हुए और उन कुर्तियों और दूसरे वस्त्रों को जिन्हें दोरकास ने जब वह उनके साथ थी, बनाया था, दिखाते हुए उसके चारों ओर खड़ी हो गयीं। 40 पतरस ने हर किसी को बाहर भेज दिया और घुटनों के बल झुक कर उसने प्रार्थना की। फिर शव की ओर मुड़ते हुए उसने कहा, “तबीता-खड़ी हो जा!” उसने अपनी आँखें खोल दीं और पतरस को देखते हुए वह उठ बैठी। 41 उसे अपना हाथ देकर पतरस ने खड़ा किया और फिर संतों और विधवाओं को बुलाकर उन्हें उसे जीवित सौंप दिया।

42 समूचे याफा में हर किसी को इस बात का पता चल गया और बहुत से लोगों ने प्रभु में विश्वास किया। 43 फिर याफा में शमोन नाम के एक चर्मकार के यहाँ पतरस बहुत दिनों तक ठहरा।

पतरस और कुरनेलियुस

10कैसरिया में कुरनेलियुस नाम का एक व्यक्ति था। वह सेना के उस दल का नायक था जिसे इतालवी कहा जाता था। 2 वह परमेश्वर से डरने वाला भक्त था और उसका परिवार भी वैसा ही था। वह गरीब लोगों की सहायता के लिये उदारतापूर्वक दान दिया करता था और सदा ही परमेश्वर की प्रार्थना करता रहता था। 3 दिन के नवें पहर के आसपास उसने एक दर्शन में स्पष्ट रूप से देखा कि परमेश्वर का एक स्वर्गदूत उसके पास आया है और उससे कह रहा है, “कुरनेलियुस।”

4 सो कुरनेलियुस डरते हुए स्वर्गदूत की ओर देखते हुए बोला, “हे प्रभु, यह क्या है?”

स्वर्गदूत ने उससे कहा, “तेरी प्रार्थनाएँ और दीन दुखियों को दिया हुआ तेरा दान एक स्मारक के रूप में तुझे याद दिलानेके लिए परमेश्वर के पास पहुचें हैं। 5 सो अब कुछ व्यक्तियोंको याफा भेज और शमौन नाम के एक व्यक्ति को, जो पतरस भी कहलाता है, यहाँ बुलवा ले। 6 वह शमौन नाम के एक चर्मकार के साथ रह रहा है। उसका घर सागर के किनारे है।” 7 वह स्वर्गदूत जो उससे बात कर रहा था, जब चला गया तो उसने अपने दो सेवकों और अपने निजी सहायकों में से एक भक्त सिपाही को बुलाया 8 और जो कुछ घटित हुआ था, उन्हें सब कुछ बताकर याफा भेज दिया।

9 अगले दिन जब वे चलते चलते नगर के निकट पहुँचने ही वाले थे, पतरस दोपहर के समय प्रार्थना करने को छत पर चढ़ा। 10 उसे भूख लगी, सो वह कुछ खाना चाहता था। वे जब भोजन तैयार कर ही रहे थे तो उसकी समाधि लग गयी। 11 और उसने देखा कि आकाश खुल गया है और एक बड़ी चादर जैसी कोई वस्तु नीचे उतर रही है। उसे चारों कोनों से पकड़ कर धरती पर उतारा जा रहा है। 12 उस पर हर प्रकार के पशु, धरती के रेंगने वाले जीवजंतु और आकाश के पक्षी थे। 13 फिर एक स्वर ने उससे कहा, “पतरस उठ। मार और खा।”

14 पतरस ने कहा, “प्रभु, निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि मैंने कभी भी किसी तुच्छ या समय के अनुसार अपवित्र आहार को नहीं लिया है।”

15 इस पर उन्हें दूसरी बार फिर वाणी सुनाई दी, “किसी भी वस्तु को जिसे परमेश्वर ने पवित्र बनाया है, तुच्छ मत कहना!” 16 तीन बार ऐसा ही हुआ और वह वस्तु फिर तुरंत आकाश में वापस उठा ली गयी।

17 पतरस ने जिस दृश्य को दर्शन में देखा था, उस पर वह अभी चक्कर में ही पड़ा हुआ था कि कुरनेलियुस के भेजे वे लोग दरवाजे पर खड़े पूछ रहे थे कि शमौन का घर कहाँ है?

18 उन्होंने बाहर बुलाते हुए पूछा, “क्या पतरस कहलाने वाला शमौन अतिथि के रूप में यहीं ठहरा है?”

19 पतरस अभी उस दर्शन के बारे में सोच ही रहा था कि आत्मा ने उससे कहा, “सुन, तीन व्यक्ति तुझे ढूँढ रहे हैं। 20 सो खड़ा हो, और नीचे उतर बेझिझक उनके साथ चला जा, क्योंकि उन्हें मैंने ही भेजा है।” 21 इस प्रकार पतरस नीचे उतर आया और उन लोगों से बोला, “मैं वही हूँ, जिसे तुम खोज रहे हो। तुम क्यों आये हो?”

22 वे बोले, “हमें सेनानायक कुरनेलियुस ने भेजा है। वह परमेश्वर से डरने वाला नेक पुरुष है। यहूदी लोगों में उसका बहुत सम्मान है। उससे पवित्र स्वर्गदूत ने तुझे अपने घर बुलाने का निमन्त्रण देने को और जो कुछ तू कहे उसे सुनने को कहा है।” 23 इस पर पतरस ने उन्हें भीतर बुला लिया और ठहरने को स्थान दिया।

फिर अगले दिन तैयार होकर वह उनके साथ चला गया। और याफा के निवासी कुछ अन्य बन्धु भी उसके साथ हो लिये।

समीक्षा

परमेश्वर के सामने हृदय खुला रखें

यीशु ने अपने चेलों से बीमारों को चंगा करने, मरे हुओं को जिलाने और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए कहा. आरंभिक कलीसिया वही करती है जो यीशु ने उन्हें करने के लिए कहा था. जो कुछ हुआ था उसके द्वारा वे अवश्य ही आश्चर्यचकित हुए होंगे. फिर भी वह उनकी अगुवाई के प्रति खुले हुए थे.

  1. चंगाई का रहस्य

वे निरंतर परमेश्वर के कार्य करते हुए असाधारण सामर्थ को देखते हैं. पतरस ने उस व्यक्ति से कहा जो कि आठ वर्षों से बिस्तर पर पड़ा हुआ था, 'यीशु मसीह तुम्हें चंगा करते हैं' (9:34). वह तुरंत 'बिस्तर में से बाहर कूदा' (व.34, एम.एस.जी.). 'सभी ने जान लिया कि परमेश्वर जीवित हैं और उनके बीच में कार्य कर रहे हैं' (व.35, एम.एस.जी.).

फिर भी सभी लोग चंगे नहीं हुए. परमेश्वर ने सभी को क्यों चंगा नहीं किया? मैं नहीं जानता. कभी – कभी यह समझना बहुत मुश्किल हो जाता है कि क्यों परमेश्वर ने उस व्यक्ति को चंगा नहीं किया जिसके लिए हमने बहुत प्रार्थना की थी. यह एक रहस्य है.

  1. मरे हुओं को जीवित करने का रहस्य

फिर, पतरस ने मरे हुओं को जीवित किया! मरे हुओं को जीवित करने की घटना बाईबल में बहुत कम है. पुराने नियम में यह दो बार हुआ – एक बार एलिय्याह के साथ और एक बार एलिशा के साथ. यीशु ने तीन बार मरे हुओं को जीवित किया, पौलुस ने एक बार, और पतरस ने दोरकास को मरे हुओं में से जीवित किया. मरे हुओं को जीवित करने की आज्ञा केवल एक ही बार हुई (मत्ती 10:8).

लगभग हर मामलें में, एक जवान व्यक्ति को मरे हुओं में से जीवित किया गया. उनमें से कोई भी सर्वदा जीवित न रहा – लेकिन उनका जीवन बहुत जल्दी समाप्त नहीं हुआ. बहुत ही कम बार परमेश्वर इस तरह से हस्तक्षेप करते हैं. हम नहीं जानते हैं कि क्यों. यह एक रहस्य है.

यहाँ पर परमेश्वर ने हस्तक्षेप किया. दोरकास, 'जो हमेशा भले काम और गरीबों की सहायता करती थी' (प्रेरितों के काम 9:36), बीमार पड़ी और मर गई. पतरस ने घुटनों पर जाकर प्रार्थना की. उसने अपनी आँखे खोली, बैठ गई, और यीशु ने अपने हाथों से उसे पकड़कर खड़े होने में उनकी सहायता की! इसके परिणामस्वरूप, 'बहुतों ने परमेश्वर में विश्वास किया' (व.42).

  1. सुसमाचार का रहस्य

बाद में पौलुस प्रेरित समझाते हैं, ' अर्थात् यह कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजाती के लोग उत्तराधिकार में साझी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं' (इफीसियो 3:6).

प्रेरितों के काम की पुस्तक में अब तक, यीशु के सभी अनुयायी यहूदी थे. वास्तव में, उन्हें नहीं लगता था कि जो व्यक्ति यहूदी नहीं है उसका एक मसीह बनना संभव बात है. लेकिन परमेश्वर ने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया. उन्होंने पतरस को एक दर्शन के साथ तैयार किया. उसने देखा कि स्वर्ग खुल गया और उससे 'अशुद्ध' जानवरों और पक्षियों को मारने और खाने के लिए कहा गया. उनका उत्तर था, ' नहीं प्रभु, कदापि नहीं' (प्रेरितों के काम 10:14).

जो दर्शन दिखाई दिया था और परमेश्वर की आवाज दोनों ने पतरस को चुनौती दी कि वह शुद्ध और अशुद्ध भोजन में अंतर न देखे (वव.13-15). किंतु, पतरस ने यह भी समझा कि इस दर्शन का अर्थ है कि वह 'शुद्ध' और 'अशुद्ध' लोगों में अंतर न देखे – अर्थात्, यहूदी और अन्यजाति के लोग. कल के लेखांश में, हमने खोजा कि पतरस कहते हैं, 'कोई जाति दूसरे से बेहतर नहीं है' (व.28, एम.एस.जी).

उस समय, यह एक रहस्य था, 'पतरस, उलझन में पड़कर, बैठकर सोचने की कोशिश कर रहे थे कि इन सबका क्या अर्थ है' (व.17, एम.एस.जी). वह समझ नहीं पाये कि परमेश्वर क्या कर रहे थे. केवल बाद में उन्हें समझ आया. परमेश्वर के पास योजनाएँ थी जो उनकी योजनाओं से कही बड़ी थी. यीशु का अच्छा समाचार यहूदी लोगों तक सीमित नहीं था - यह विश्व में सभी के लिए था. धन्यवाद हो परमेश्वर का कि, पतरस परमेश्वर के मार्गदर्शन को उत्तर देने के लिए पर्याप्त खुले हुए थे, चाहे एक दर्शन के द्वारा या जब 'आत्मा ने धीरे से उनसे कहा' (व.19, एम.एस.जी.).

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि यद्पि हम जीवन में रहस्यों को नहीं समझते हैं, हम आप पर भरोसा कर सकते हैं और जान सकते हैं कि हमेशा आपके पास एक कारण होता है.

जूना करार

2 शमूएल 23:8-24:25

तीन महायोद्धा

8 दाऊद के सैनिकों के नाम ये हैं:

तहकमोनी का रहने वाला योशेब्यश्शेबेत। योशेब्यश्शेबेत तीन महायोद्धाओं का नायक था। उसे एस्नी अदीनी भी कहा जाता था। योशेब्यश्शेबेत ने एक बार में आठ सौ व्यक्तियों को मारा था।

9 दूसरा, अहोही, दोदै का पुत्र एलीआजार था। एलीआजार उन तीन वीरों में से एक था, जो दाऊद के साथ उस समय थे जब उन्होंने पलिश्तियों को चुनौती दी थी। पलिश्ती एक साथ युद्ध के लिये तब आये थे जब इस्राएली दूर चले गये थे। 10 एलीआज़ार पलिश्तियों के साथ तब तक लड़ता रहा जब तक वह बहुत थक नहीं गया। किन्तु वह अपनी तलवार को दृढ़ता से पकड़े रहा और युद्ध करता रहा। उस दिन यहोवा ने इस्राएलियों को बड़ी विजय दी। लोग तब आए जब एलीआज़ार युद्ध जीत चुका था। किन्तु वे केवल बहुमूल्य चीजें शत्रुओं से लेने आए।

11 उसके बाद हरार का रहने वाला आगे का पुत्र शम्मा था। पलिश्ती एक साथ लड़ने लेही में आये थे। उन्होंने मसूर के खेतों में युद्ध किया था। लोग पलिश्तियों के सामने भाग खड़े हुए थे। 12 किन्तु श्म्मा खेत के बीच खड़ा था। वह खेत के लिये लड़ा। उसने पलिश्तियों को मार डाला। उस समय यहोवा ने बड़ी विजय दी।

13 एक बार जब दाऊद अदुल्लाम की गुफा में था तीस योद्धोओं में से तीन दाऊद के पास आए। ये तीनों व्यक्ति अदुल्लाम की गुफा तक रेंगते हुये गुफा तक दाऊद के पास आए। पलिश्ती सेना ने अपना डेरा रपाईम की घाटी में डाला था।

14 उस समय दाऊद किले में था। कुछ पलिश्ती सैनिक वहाँ बेतलेहेम में थे। 15 दाऊद की बड़ी इच्छा थी कि उसे उस के नगर का पानी मिले जहाँ उसका घर था। दाऊद ने कहा, “ओह, मैं चाहता हूँ कि कोई व्यक्ति बेतलेहेम के नगर—द्वार के पास के कुँए का पानी मुझे दे।” दाऊद सचमुच यह चाहता नहीं था, वह बातें ही बना रहा था। 16 किन्तु तीनों योद्धा पलिश्ती सेना को चीरेते हुए निकल गये। इन तीनों वीरों ने बेतलेहेम के नगर—द्वार के पास के कुँए से पानी निकाला। तब तीनों वीर दाऊद के पास पानी लेकर आए। किन्तु दाऊद ने पानी पीने से इन्कार कर दिया। उसने योहवा के सामने उसे भूमि पर डाल दिया। 17 दाऊद ने कहा, “यहोवा, मैं इसे पी नहीं सकता। यह उन व्यक्तियों का खून पीने जैसा होगा जिन्होंने अपने जीवन को मेरे लिये खतरे में डाला।” यही कारण था कि दाऊद ने पानी पीना अस्वीकार किया। इन तीनों योद्धाओं ने उस प्रकार के अनेक कार्य किये।

अन्य बहादुर सैनिक

18 सरूयाह का पुत्र, योआब का भाई अबीशै तीनों योद्धाओं का प्रमुख था। अबीशै ने अपने भाले का उपयोग तीन सौ शत्रुओं पर किया और उन्हें मार डाला। वह इतना ही प्रसिद्ध हुआ जितने तीन योद्धा । 19 अबीशै ने शेष तीन योद्धाओं से अधिक सम्मान पाया। वह उनका प्रमुख हो गया। किन्तु वह तीन योद्धाओं का सदस्य नहीं बना।

20 यहोयादा का पुत्र बनायाह एक था। वह शक्तिशाली व्यक्ति का पुत्र था। वह कबसेल का निवासी था। बनायाह ने अनेक वीरता के काम किये। बनायाह ने मोआब के अरियल के दो पुत्रों को मार डाला। जब बर्फ गिर रही थी, बनायाह एक गक़े में नीचे गया और एक शेर को मार डाला। 21 बनायाह ने एक मिस्री को मारा जो शक्तिशाली योद्धा था। मिस्री के हाथ में एक भाला था। किन्तु बनायाह के हाथ में केवल एक लाठी थी। बनायाह ने मिस्री के हाथ के भाले को पकड़ लिया और उससे छीन लिया। तब बनायाह ने मिस्री के अपने भाले से ही मिस्री को मार डाला। 22 यहोयादा के पुत्र बनायाह ने उस प्रकार के अनेक काम किये। बनायाह तीन वीरों में प्रसिद्ध था। 23 बनायाह ने तीन योद्धाओं से भी अधिक सम्मान पाया, किन्तु वह तीन योद्धाओं का सदस्य नहीं हुआ। बनायाह को दाऊद ने अपने रक्षकों का प्रमुख बनाया।

तीस महायोद्धा

24 तीस योद्धाओं में से
 एक योआब का भाई असाहेल था।
 तीस योद्धाओं के समूह में अन्य व्यक्ति ये थे:
 बेतलेहेम के दोदो का पुत्र एल्हानन;
 25 हेरोदी शम्मा,
 हेरोदी एलीका,
 26 पेलेती, हेलेस;
 तकोई इक्केश का पुत्र ईरा,
 27 अनातोती का अबीएज़ेर;
 हूशाई मबुन्ने,
 28 अहोही, सल्मोन;
 नतोपाही महरै;
 29 नतोपाही के बाना का पुत्र हेलेब;
 गिबा के बिन्यामीन परिवार
 समूह रीबै का पुत्र हुत्तै;
 30 पिरातोनी, बनायाह;
 गाश के नालों का हिद्दै;
 31 अराबा अबीअल्बोन;
 बहूरीमी अजमावेत;
 32 शालबोनी एल्यहबा;
 याशेन के पुत्र योनातन; 33 हरारी शम्मा का पुत्र;
 अरारी शारार का पुत्र अहीआम;
 34 माका का अहसबै का पुत्र एलीपेलेप्त;
 गीलोई अहीतोपेल का पुत्र एलीआम;
 35 कर्म्मली हेस्रो;
 अराबी पारै;
 36 सोबाई के नातान का पुत्र यिगाल;
 गादी बानी;
 37 अम्मोनी सेलेक,
 बेरोती का नहरै; (नहरै सरुयाह के पुत्र योआब का कवच ले जाता था);
 38 येतेरी ईरा
 येतेरी गारेब;
 39 और हित्ती ऊरिय्याह
सब मिलाकर ये सैंतीस थे।

दाऊद अपनी सेना को गिनना चाहता है

24यहोवा फिर इस्राएल के विरुद्ध क्रोधित हुआ। यहोवा ने दाऊद को इस्राएलियों के विरुद्ध कर दिया। दाऊद ने कहा, “जाओ, इस्राएल और यहूदा के लोगों को गिनो।”

2 राजा दाऊद ने सेना के सेनापति योआब से कहा, “इस्राएल के सभी परिवार समूह में दान से बर्शेबा तक जाओ, और लोगों को गिनो। तब मैं जान सकूँगा कि वहाँ कितने लोग हैं।”

3 किन्तु योआब ने राजा से कहा, “यहोवा परमेश्वर आपको सौ गुणा लोग दे, और आपकी आँखेx यह घटित होता हुआ देख सकें। किन्तु आप यह क्यों करना चाहते हैं?”

4 राजा दाऊद ने दृढ़ता से योआब और सेना के नायको के लोगों की गणना करने का आदेश दिया। अत: योआब और सेना के नायक दाऊद के यहाँ से इस्राएल को लोगों को गिनने गए। 5 उन्होंने यरदन नदी को पार किया। उन्होंने अपना डेरा अरोएर में डाला। उनका डेरा नगर की दाँयी ओर था। (नगर गाद की घाटी के बीच में है। नगर याजेर जाने के रास्ते में भी है।)

6 तब वे तहतीम्होदशी के प्रदेश और गिलाद को गये। वे दान्यान और सीदोन के चारों ओर गए। 7 वे सोर के किले को गये। वे हिब्बियों और कनानियों के सभी नगरों को गये। वे दक्षिणी यहूदा में बेर्शेबा को गए। 8 नौ महीने बीस दिन बाद वे पूरे प्रदेश का भ्रमण कर चुके थे। वे नौ महीने बीस दिन बाद यरूशलेम आए।

9 योआब ने लोगों की सूची राजा को दी। इस्राएल में आठ लाख व्यक्ति थे जो तलवार चला सकते थे और यहूदा में पाँच लाख व्यक्ति थे।

यहोवा दाऊद को दण्ड देता है

10 तब दाऊद गिनती करने के बाद लज्जित हुआ। दाऊद ने यहोवा से कहा, “मैंने यह कार्य कर के बहुत बड़ा पाप किया! यहोवा, मैं प्रार्थना करता हूँ कि तू मेरे पाप को क्षमा कर। मैंने बड़ी मूर्खता की है।”

11 जब दाऊद प्रात: काल उठा, यहोवा का सन्देश गाद नबी को मिला जो कि दाऊद का दृष्टा था। 12 यहोवा ने गाद से कहा, “जाओ, और दाऊद से कहो, ‘यहोवा जो कहता है वह यह है। मैं तुमको तीन विकल्प देता हूँ। उनमें से एक को चुनो जिसे मैं तुम्हारे लिये करूँ।’”

13 गाद दाऊद के पास गया और उसने बात की। गाद ने दाऊद से कहा, “तीन में से एक को चुनो: तुम्हारे लिये और तुम्हारे देश के लिये सात वर्ष की भूखमरी। तुम्हारे शत्रु तुम्हारा पीछा तीन महीने तक करें। तुम्हारे देश में तीन दिन तक बीमारी फैले। इनके बारे में सोचो और निर्णय करो कि मैं इन में से यहोवा जिसने मुझे भेजा है, को कौन सी चीज बताऊँ।”

14 दाऊद ने गाद से कहा, “मैं सचमुच विपत्ति में हूँ! किन्तु यहोवा बहुत कृपालु है। इसलिये यहोवा को हमें दण्ड देने दो! मुझे मनुष्यों से दंडित न होने दो।”

15 इसलिये यहोवा ने इस्राएल में बीमारी भेजी। यह प्रातःकाल आरम्भ हुई और रुकने के निर्धारित समय तक रही। दान से बेर्शेबा तक सत्तर ं उनके लिये यहोवा बहुत दुःखी हुआ। यहोवा ने उस स्वर्गदूत से कहा जिसने लोगों को नष्ट किया, “बहुत हो चुका! अपनी भुजा नीचे करो।” यहोवा का स्वर्गदूत यबूसी अरौना के खलिहान के किनारे था।

दाऊद अरौना के खलिहान को खरीदता है

17 दाऊद ने उस स्वर्गदूत को देखा जिसने लोगों को मारा। दाऊद ने यहोवा से बातें कीं। दाऊद ने कहा, “मैंने पाप किया है। मैंने गलती की है। किन्तु इन लोगों ने मेरा अनुसरण भेड़ की तरह किया। उन्होंने कोई गलती नहीं की। कृपया दण्ड मुझे और मेरे पिता के परिवार को दें।”

18 उस दिन गाद दाऊद के पास आया। गाद ने दाऊद से कहा, “जाओ और एक वेदी यबूसी अरौना के खलिहान में यहोवा के लिये बनाओ।” 19 तब दाऊद ने वे काम किये जो गाद ने करने को कहा। दाऊद ने यहोवा के दिये आदेशों का पालन किया। दाऊद अरौना से मिलने गया। 20 जब अरौना ने निगाह उठाई, उसने राजा (दाऊद) और उसके सेवकों को अपने पास आते देखा। अरौना बाहर निकला और अपना माथा धरती पर टेकते हुए प्रणाम किया। 21 अरौना ने कहा, “मेरे स्वामी, राजा, मेरे पास क्यों आए हैं?”

दाऊद ने उत्तर दिया, “तुमसे खलिहान खरीदने। तब मैं यहोवा के लिये वेदी बना सकता हूँ। तब बीमारी रुक जायेगी।”

22 अरौना ने दाऊद से कहा, “मेरे स्वामी राजा, आप कुछ भी बलि—भेंट के लिये ले सकते हैं। ये कुछ गायें होमबलि के लिये हैं अग्नि की लकड़ी के लिये दंवरी के औजार तथा बैलों का जूआ भी है। 23 हे राजा! मैं आपको हर एक चीज देता हूँ।” अरौना ने राजा से यह भी कहा, “यहोवा आपका परमेश्वर आप पर प्रसन्न हो।”

24 किन्तु राजा ने अरौना से कहा, “नहीं! मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, मैं तुमसे भूमि को उसकी कीमत देकर खरीदूँगा। मैं यहोवा अपने परमेश्वर को कुछ भी ऐसी होमबलि नहीं चढ़ाऊँगा जिसका कोई मूल्य मैंने न दिया हो।”

इसलिये दाऊद ने खलिहान और गायों को चाँदी के पचास शेकेल से खरीदा। 25 तब दाऊद ने वहाँ यहोवा के लिये एक वेदी बनाई। दाऊद ने होमबलि और मेलबलि चढ़ाई।

यहोवा ने देश के लिये उसकी प्रार्थना स्वीकार की। यहोवा ने इस्राएल में बीमारी रोक दी।

समीक्षा

परमेश्वर के द्वारा रहस्यमय

पूरी बाईबल में यह एक बहुत ही रहस्यमय लेखांश है. सबकुछ अच्छा चल रहा था. दाऊद के आस-पास अच्छे लोग थे. उनके तीन शक्तिशाली पुरुष, और 'तीस' लोगों के एक बड़े आंतरिक समूह के द्वारा उन्हें महान रूप से सहायता और मदद मिलती थी.

फिर भी कुछ बहुत भयानक हुआ. जिसने दाऊद को अपने शूरवीरों को गिनने के लिए उकसाया? इस लेखांश में लगता है कि यह परमेश्वर हैं. फिर भी इतिहास में समांतर लेखांश में हमें बताया गया है, 'शैतान ने इस्राएल के विरूद्ध उठकर, दाऊद को उकसाया कि इस्रालियों की गिनती ले' (1इतिहास 21:1). यह केवल तीन बार में से एक है जिसमें पुराने नियम में शैतान का उल्लेख किया गया है.

दाऊद जानते थे कि जो वह कर रहे थे वह गलत था ('क्योंकि उन्होंने लोगों की गिनती की थी, विश्वास को आंकड़ों से बदलते हुए. 2शमुएल 24:10, एम.एस.जी.'). उनका 'विवेक –दुखित हो रहा था...और उन्होंने परमेश्वर से कहा, 'यह काम जो मैंने किया वह महापाप है. तो अब, हे यहोवा, अपने दास की बुराई दूर कर; क्योंकि मुझ से बड़ी मूर्खता हुई है' (व.10).

भविष्यवक्ता गाद के द्वारा बताए गए विभिन्न विकल्पों में से, दाऊद ने परमेश्वर के हाथों में पड़ना चुना, क्योंकि 'उनकी दया महान है' (व.14). उन्होंने ऐसी एक भेंट को चढ़ाना अस्वीकार कर दिया जो उन्हें मुफ्त में मिली हो (व.24). उनके बलिदान के बाद, 'यहोवा ने देश के निमित विनती सुन ली' (व.25).

यहाँ पर बहुत कुछ है जिसे समझना कठिन है. लेकिन लेखांश का अंत आशा और सुधरे हुए संबंध के साथ होता है.

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि उलझन में और अनिश्चितता के बीच में भी आप पर भरोसा कर सकूँ. आपका धन्यवाद क्योंकि, एक दिन, आपकी बुद्धि पूरी तरह से प्रकट होगी. आपका धन्यवाद क्योंकि आप भले हैं और आपका प्रेम सर्वदा बना रहता है.

पिप्पा भी कहते है

2शमुएल 24

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संदर्भ

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