आपकी प्रार्थनाएँ अंतर पैदा करती हैं
परिचय
सेंट जॉन क्रिसोस्टम (349-407) ने लिखा, 'प्रार्थना...जड़ है, फव्वारा, हजारों आशीषों की माता है...प्रार्थना की शक्ति ने आग की सामर्थ को जीत लिया, इसने सिंहों के क्रोध को नियंत्रित किया है...लड़ाई खत्म कर दी, कारकों को शांत किया, शैतानों को बाहर निकाला, मृत्यु के बंधन को तोड़ दिया, स्वर्ग के फाटकों को चौड़ा किया, रोग को हटाया...शहरों को विनाश से बचाया...और बिजली गिरने से रोका.'
एच.टी.बी. में हमारे चर्च में चौबीसों घंटे का प्रार्थना रूम है. यह मेरे सप्ताह का एक... कि रूम में जाकर परमेश्वर के साथ अकेले में समय बिताऊँ. प्रार्थना सच में जड़ और उन सभी का फव्वारा है जो हम एच.टी.बी. में करते हैं. यह जानना उत्साह की बात है कि हर घंटे, दिन और रात, उस घर में कोई प्रार्थना कर रहा है.
नीतिवचन 15:1-10
15कोमल उत्तर से क्रोध शांत होता है
किन्तु कठोर वचन क्रोध को भड़काता है।
2 बुद्धिमान की वाणी ज्ञान की प्रशंसा करती है,
किन्तु मूर्ख का मुख मूर्खता उगलता है।
3 यहोवा की आँख हर कहीं लगी हुयी है।
वह भले और बुरे को देखती रहती है।
4 जो वाणी मन के घाव भर देती है, जीवन—वृक्ष होती है;
किन्तु कपटपूर्ण वाणी मन को कुचल देती है।
5 मूर्ख अपने पिता की प्रताड़ना का तिरस्कार करता है
किन्तु जो कान सुधार पर देता है बुद्धिमानी दिखाता है।
6 धर्मी के घर का कोना भरा पूरा रहता है
दुष्ट की कमाई उस पर कलेश लाती है।
7 बुद्धिमान की वाणी ज्ञान फैलाती है,
किन्तु मूर्खो का मन ऐसा नहीं करता है।
8 यहोवा दुष्ट के चढ़ावे से घृणा करता है
किन्तु उसको सज्जन की प्रार्थना ही प्रसन्न कर देती है।
9 दुष्टों की राहों से यहोवा घृणा करता है।
किन्तु जो नेकी की राह पर चलते हैं, उनसेवह प्रेम करता है।
10 उसकी प्रतीक्षा में कठोर दण्ड रहता है जो पथ—भ्रष्ट हो जाता,
और जो सुधार से घृणा करता है, वह निश्चय मर जाता है।
समीक्षा
प्रार्थना करें और आशीष दें
नीतिवचन के लेखक 'दुष्ट' की तुलना उनके साथ करते हैं जो प्रार्थना करते हैः'ईमानदार के घर में बहुत धन रहता है...वह सीधे लोगों की प्रार्थना से प्रसन्न होता है. दुष्ट के चालचलन से यहोवा को घृणा आती है, परंतु जो सत्यनिष्ठा का पीछा करता उस से वह प्रेम रखता है' (वव.6अ, 8ब,9, एम.एस.जी.). यदि हम इस तरह से जीएंगे तो हम दूसरों के जीवन में आशीष लायेंगे.
इसका एक महत्वपूर्ण पहलू है कि हम क्या कहते हैं. हमारे वचन जीवनों को बदल सकते हैं. जबकि 'शांती देने वाली बात जीवन-वृक्ष है, परंतु उलट फेर की बात से आत्मा दुखी होती है' (व.4, एम.एस.जी.). यहाँ तक कि जब दूसरे हमारे प्रति गुस्सा होते हैं, हमें बताया गया कि 'एक अच्छा उत्तर गुस्से को कम कर देता है' (व.1अ, एम.एस.जी.). दूसरों को चंगा करने, उनकी सहायता करने और उत्साहित करने के लिए अपने वचनों का इस्तेमाल कीजिएः' जो जीभ चंगाई लाती है वह जीवन का एक वृक्ष है' (व.4).
प्रार्थना
परमेश्वर, प्रार्थना करने में मेरी सहायता करिए और दूसरों तक आशीष लाने में अपने वचनों का इस्तेमाल कीजिए.
प्रेरितों के काम 11:19-12:19a
अन्ताकिया में सुसमाचार का आगमन
19 वे लोग जो स्तिफनुस के समय में दी जा रही यातनाओं के कारण तितर-बितर हो गये थे, दूर-दूर तक फीनिक, साइप्रस और अन्ताकिया तक जा पहुँचे। ये यहूदियों को छोड़ किसी भी और को सुसमाचार नहीं सुनाते थे। 20 इन्हीं विश्वासियों में से कुछ साइप्रस और कुरैन के थे। सो जब वे अन्ताकिया आये तो यूनानियों को भी प्रवचन देते हुए प्रभु यीशु का सुसमाचार सुनाने लगे। 21 प्रभु की शक्ति उनके साथ थी। सो एक विशाल जन समुदाय विश्वास धारण करके प्रभु की ओर मुड़ गया।
22 इसका समाचार जब यरूशलेम में कलीसिया के कानों तक पहुँचा तो उन्होंने बरनाबास को अन्ताकिया जाने को भेजा। 23 जब बरनाबास ने वहाँ पहुँच कर प्रभु के अनुग्रह को सकारथ होते देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उन सभी को प्रभु के प्रति भक्तिपूर्ण ह्रदय से विश्वासी बने रहने को उत्साहित किया। 24 क्योंकि वह पवित्र आत्मा और विश्वास से पूर्ण एक उत्तम पुरुष था। फिर प्रभु के साथ एक विशाल जनसमूह और जुड़ गया।
25 बरनाबास शाऊल को खोजने तरसुस को चला गया। 26 फिर वह उसे ढूँढ कर अन्ताकिया ले आया। सारे साल वे कलीसिया से मिलते जुलते और विशाल जनसमूह को उपदेश देते रहे। अन्ताकिया में सबसे पहले इन्हीं शिष्यों को “मसीही” कहा गया।
27 इसी समय यरूशलेम से कुछ नबी अन्ताकिया आये। 28 उनमें से अगबुस नाम के एक भविष्यवक्ता ने खड़े होकर पवित्र आत्मा के द्वारा यह भविष्यवाणी की सारी दुनिया में एक भयानक अकाल पड़ने वाला है (क्लोदियुस के काल में यह अकाल पड़ा था।) 29 तब हर शिष्य ने अपनी शक्ति के अनुसार यहूदिया में रहने वाले बन्धुओं की सहायता के लिये कुछ भेजने का निश्चय किया था। 30 सो उन्होंने ऐसा ही किया और उन्होंने बरनाबास और शाऊल के हाथों अपने बुजुर्गों के पास अपने उपहार भेजे।
हेरोदेस का कलीसिया पर अत्याचार
12उसी समय के आसपास राजा हेरोदेस ने कलीसिया के कुछ सदस्यों को सताना प्रारम्भ कर दिया। 2 उसने यूहन्ना के भाई याकूब की तलवार से हत्या करवा दी। 3 उसने जब यह देखा कि इस बात से यहूदी प्रसन्न होते हैं तो उसने पतरस को भी बंदी बनाने के लिये हाथ बढ़ाया (यह बिना ख़मीर की रोटी के उत्सव के दिनों की बात है) 4 हेरोदेस ने पतरस को पकड़ कर जेल में डाल दिया। उसे चार चार सैनिकों की चार पंक्तियों के पहरे के हवाले कर दिया गया। प्रयोजन यह था कि उस पर मुकदमा चलाने के लिये फसह पर्व के बाद उसे लोगों के सामने बाहर लाया जाये। 5 सो पतरस को जेल में रोके रखा गया। उधर कलीसिया ह्रदय से उसके लिये परमेश्वर से प्रार्थना करती रही।
जेल से पतरस का छुटकारा
6 जब हेरोदेस मुकदमा चलाने के लिये उसे बाहर लाने को था, उस रात पतरस दो सैनिकों के बीच सोया हुआ था। वह दो ज़ंजीरों से बँधा था और द्वार पर पहरेदार जेल की रखवाली कर रहे थे। 7 अचानक प्रभु का एक स्वर्गदूत वहाँ आकर खड़ा हुआ, जेल की कोठरी प्रकाश से जगमग हो उठी, उसने पतरस की बगल थपथपाई और उसे जगाते हुए कहा, “जल्दी खड़ा हो।” जंजीरें उसके हाथों से खुल कर गिर पड़ी। 8 तभी स्वर्गदूत ने उसे आदेश दिया, “तैयार हो और अपनी चप्पल पहन ले।” सो पतरस ने वैसा ही किया। स्वर्गदूत ने उससे फिर कहा, “अपना चोगा पहन ले और मेरे पीछे चला आ।”
9 फिर उसके पीछे-पीछे पतरस बाहर निकल आया। वह समझ नहीं पाया कि स्वर्गदूत जो कुछ कर रहा था, वह यथार्थ था। उसने सोचा कि वह कोई दर्शन देख रहा है। 10 पहले और दूसरे पहरेदार को छोड़ कर आगे बढ़ते हुए वे लोहे के उस फाटक पर आ पहुँचे जो नगर की ओर जाता था। वह उनके लिये आप से आप खुल गया। और वे बाहर निकल गये। वे अभी गली पार ही गये थे कि वह स्वर्गदूत अचानक उसे छोड़ गया।
11 फिर पतरस को जैसे होश आया, वह बोला, “अब मेरी समझ में आया कि यह वास्तव में सच है कि प्रभु ने अपने स्वर्गदूत को भेज कर हेरोदेस के पंजे से मुझे छुड़ाया है। यहूदी लोग मुझ पर जो कुछ घटने की सोच रहे थे, उससे उसी ने मुझे बचाया है।”
12 जब उसने यह समझ लिया तो वह यूहन्ना की माता मरियम के घर चला गया। यूहन्ना जो मरकुस भी कहलाता है। वहाँ बहुत से लोग एक साथ प्रार्थना कर रहे थे। 13 पतरस ने द्वार को बाहर से खटखटाया। उसे देखने रूदे नाम की एक दासी वहाँ आयी। 14 पतरस की अवाज़ को पहचान कर आनन्द के मारे उसके लिये द्वार खोले बिना ही वह उल्टी भीतर दौड़ गयी और उसने बताया कि पतरस द्वार पर खड़ा है। 15 वे उससे बोले, “तू पागल हो गयी है।” किन्तु वह बलपूर्वक कहती रही कि यह ऐसा ही है। इस पर उन्होंने कहा, “वह उसका स्वर्गदूत होगा।”
16 उधर पतरस द्वार खटखटाता ही रहा। फिर उन्होंने जब द्वार खोला और उसे देखा तो वे अचरज में पड़ गये। 17 उन्हें हाथ से चुप रहने का संकेत करते हुए उसने खोलकर बताया कि प्रभु ने उसे जेल से कैसे बाहर निकाला है। उसने कहा, “याकूब तथा अन्य बन्धुओं को इस विषय में बता देना।” और तब वह उस स्थान को छोड़कर किसी दूसरे स्थान को चला गया।
18 जब भोर हुई तो पहरेदारों में बड़ी खलबली फैल गयी। वे अचरज में पड़े सोच रहे थे कि पतरस के साथ क्या हुआ होगा। 19 इसके बाद हेरोदेस जब उसकी खोज बीन कर चुका और वह उसे नहीं मिला तो उसने पहरेदारों से पूछताछ की और उन्हें मार डालने की आज्ञा दी।
हेरोदेस की मृत्यु
हेरोदेस फिर यहूदिया से जा कर कैसरिया में रहने लगा। वहाँ उसने कुछ समय बिताया।
समीक्षा
जोश के साथ प्रार्थना करें
यह आज के लंदन, पैरिस या न्यूयॉर्क के समांतर था. अंताकिया का ग्रीक शहर धनवान, और पूर्व की बहु – राष्ट्रीय लोगों से बनी हुई राजधानी थी, जो इसकी ईमारतों और संस्कृति के लिए जानी जाती थी. यह एक बुरी चीज के लिए भी प्रसिद्ध है –वेश्याओं, नाईटक्लब, और शराबखानों से भरा हुआ. यह इसके लापरवाह नैतिक स्तरों और भ्रष्टाचार के लिए प्रसिद्ध था.
यह शहर बदल गया था, और यह एक प्रसिद्ध मसीह शहर बन गया और संपूर्ण अन्यजातियों के लिए मसीह मिशन के लिए स्प्रिंगबोर्ड बन गया. 'प्रभु का हाथ उन पर था, और बहुत लोग विश्वास करके प्रभु की ओर फिरे' (11:21).
परमेश्वर ने बरनबास का इस्तेमाल किया, जिसके नाम का अर्थ है 'उत्साह का पुत्र.' उत्साह, चापलूसी या खाली प्रशंसा नहीं है; यह शाब्दिक सूर्य के प्रकाश की तरह है. इसमें कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती है और यह दूसरों के हृदय को गरम करती है और उन्हें आशा और उनके विश्वास में निर्भीकता के साथ उत्साहित करती है. हमें उन लोगों की आवश्यकता है जो बरनबास की तरह हैं. और हम सभी दूसरों के लिए बरनबास की तरह बन सकते हैं.
बरनबास ने उन सभी को उत्साहित किया कि अपने पूरे दिल से परमेश्वर के प्रति सच्चे बने. वह एक अच्छा मनुष्य था, पवित्र आत्मा और विश्वास से भरा हुआ, और बहुतों ने परमेश्वर में विश्वास किया' (वव.23-24).
यह छुओ और भागों की मुलाकात नहीं थीः 'ऐसा हुआ कि वे एक वर्ष तक कलीसिया के साथ मिलते और बहुत लोगों को उपदेश देते रहे; और चेले सब से पहले अन्ताकिया ही में मसीही कहलाए' (व.26).
लोगों ने धन दिया. हर एक ने 'अपनी योग्यता के अनुसार...जरुरतमंदो की सहायता के लिए दिया' (व.29). यह मसीह समुदाय का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है - जो लोग सहायता कर सकते हैं वे उन्हें सहायता करें जिन्हें इसकी जरूरत है.
यह महान आशीष और व्यापक चर्च वृद्धि का एक समय था. किंतु, उन्होंने एक बड़े विरोध का भी सामना किया.
यहूदा के राजा हेरोदेस अग्रीपा (सी. 10 बीसी – एडी 44) का स्वभाव क्रूर था. वह मसीहों पर सताव करने लगे. वह एक बेईमान राजनैतिज्ञ थे जो लोगों में प्रसिद्ध होना चाहते थे (12:1-3). उन्होंने याकूब को मरवा डाला. पतरस बंदीगृह में थे और हेरोदेस ने उन्हें जनता द्वारा ही मरवा देने की योजना बनायी (व.4, एम.एस.जी.).
पतरस को चार-चार सिपाहियों के चार पहरों में रखा गया (व.4). वह दो जंजीरों से बंधा हुआ दो सिपाहियों के बीच में रखा गया था (व.6). पतरस 'एक बालक के समान सो रहे थे' (व.6, एम.एस.जी.). कोई भी तकिया एक स्पष्ट विवेक जितना नरम नहीं है!
चर्च ने असंभव दिखने वाली स्थिति का सामना किया था. आरंभिक कलीसिया का अस्तित्व खतरे में था. उन्होंने क्या किया? हमें ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए जो असंभव दिखाई देती हैं? 5वें वचन में हम उत्तर को देखते हैं:'चर्च जुझारू रूप से पतरस के लिए परमेश्वर से प्रार्थना कर रहे थे.'
- एक साथ प्रार्थना करें
'चर्च' (व.5) प्रार्थना में एक साथ जुड़ गया. 'बहुत से लोग इकट्ठा हुए थे और प्रार्थना कर रहे थे' (व.12). नया नियम व्यक्तिगत प्रार्थना के विषय में बहुत कुछ सिखाता है, लेकिन एक साथ प्रार्थना करने के विषय में बहुत कुछ है.
- जुझारू रूप से प्रार्थना करें
दो कारण हैं क्यों उन्होंने जरा भी प्रार्थना नहीं की. पहला, याकूब को मार डाला गया (व.2). याकूब के लिए परमेश्वर ने उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं दिया था; हम नहीं जानते हैं कि क्यों. लेकिन इस बात ने उन्हें प्रार्थना करने से नहीं रोका.
दूसरा, पतरस की स्थिति असंभव लगती थी. उनके पास चुनाव था कि या तो प्रार्थना करना छोड़ दें या जुझारू रूप से प्रार्थना करें. ग्रीक शब्द एकनोस (यहाँ पर 'जुझारू रूप से' अनुवादित किया गया) इसका इस्तेमाल एक घोड़े का वर्णन करने के लिए किया गया है जो सरपट दौड़ने के लिए तैयार किया गया है. यह चुस्त व्यक्ति की तनी हुई माँसपेशियों और एक खिलाड़ी के बने रहने वाले प्रयास को बताता है.
अपूर्ण काल बताता है कि उन्होंने थोड़े समय तक प्रार्थना नहीं की, लेकिन अधिक देर तक प्रार्थना की. वे लगातार बने रहे.
- परमेश्वर से प्रार्थना करें
जब आप प्रार्थना करते हैं, तब आप सिर्फ अपने आपसे बातें नहीं कर रहे हैं, या अपने सुनने वालों को मोहित करने के लिए बोलने में प्रभावी प्रार्थनाएं नहीं कर रहे हैं. परमेश्वर से प्रार्थना करने का अर्थ है परमेश्वर से सुनना. इसका अर्थ है वास्तव में परमेश्वर की उपस्थिति में आना – माँगना और ग्रहण करना.
- दूसरों के लिए प्रार्थना करें
उन्होंने पतरस के लिए प्रार्थना की (व.5). कई प्रकार की प्रार्थनाएँ होती हैं: आराधना, स्तुति, धन्यवादिता, याचना इत्यादि –लेकिन यहाँ पर हमने मध्यस्थता की प्रार्थना के विषय में पढ़ा. उन्होंने उनके लिए प्रार्थना की क्योंकि वे उनसे प्रेम करते थे. मध्यस्थता की प्रार्थना प्रेम का एक कार्य है.
यह एक असाधारण प्रार्थना सभा थी और परिणाम प्रत्यक्ष थे (वव.6-15). उनकी प्रार्थनाओं के उत्तर में परमेश्वर ने दैवीय रूप से कार्य किया. पतरस अपने मुकदमे से पहले रात में स्वतंत्र हो गये. परमेश्वर के उत्तर में दर्शन, स्वर्गदूत और सभी कार्य को तोड़ना शामिल था (वव.6-9). अड़चन हटा दिए गए. पहरेदारों ने कैदियों को भागने से नहीं रोका, और लोहे का फाटक जो शहर की ओर था वह उनके सामने खुल गया (व.10).
फिर पतरस प्रार्थना सभा में गए लेकिन वह इतने अद्भुत तरीके से मुक्त हुए कि रूदे, जिस लड़की ने दरवाजा खोला था वह उन्हें अंदर लेना भूल गई, और कोई विश्वास नहीं कर पाया कि यह पतरस था (वव.12-15)! उन्होंने रूदे से कहा कि वह पागल हो गई है (व.15) लेकिन वास्तव में उनकी जुझारू प्रार्थना के उत्तर में परमेश्वर ने वह किया था जो कि असंभव लग रहा था.
परमेश्वर का वचन बढ़ता गया और फैलता गया (व.24). इस अध्याय की शुरुवात होती है तब याकूब मर चुके हैं, पतरस बंदीगृह में हैं और हेरोदस विजयी हो रहा है; इसका अंत होता है तब हेरोदस मर चुका है, पतरस मुक्त है और परमेश्वर का वचन जय पा रहा है.
प्रार्थना
परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि आरंभिक कलीसिया की तरह प्रार्थना करें. होने दीजिए कि आपका हाथ हमारे साथ रहे. होने दीजिए कि हम भी बहुतों को विश्वास करते हुए और परमेश्वर की ओर फिरते हुए और परमेश्वर के वचन पर जय पाते हुए देखे.
1 राजा 2:13-3:15
13 इस समय हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह सुलैमान की माँ बतशेबा के पास गया। बतशेबा ने उससे पूछा, “क्या तुम शान्ति के भाव से आए हो”
अदोनिय्याह ने उत्तर दिया, “हाँ! यह शान्तिपूर्ण आगमन है। 14 मुझे आपसे कुछ कहना है।”
बतशेबा ने कहा, “तो कहो।”
15 अदोनिय्याह ने कहा, “तुम्हें याद है कि एक समय राज्य मेरा था। इस्राएल के सभी लोग समझते थे कि मैं उनका राजा हूँ। किन्तु स्थिति बदल गई। अब मेरा भाई राजा है। यहोवा ने उसे राजा होने के लिये चुना। 16 इसलिये मैं तुमसे एक चीज़ माँगता हूँ। कृपया इन्कार न करें।”
बतशेबा ने पूछा, “तुम क्या चाहते हो”
17 अदोनिय्याह ने उत्तर दिया, “मैं जानता हूँ कि राजा सुलैमान वह सब कुछ करेंगे जो तुम कहोगी। अत: कृपया उनसे शूनेमिन स्त्री अबीशग को मुझे देने को कहो। मैं उससे विवाह करना चाहता हूँ।”
18 तब बतशेबा ने कहा, “ठीक है, मैं तुम्हारे लिये राजा से बात करूँगी।”
19 अत: बतशेबा राजा सुलैमान के पास उससे बात करने गई। राजा सुलैमान ने उसे देखा और वह उससे मिलने के लिये खड़ा हुआ। तब वह उसके सामने प्रणाम करने झुका और सिंहासन पर बैठ गया। उसने सेवकों से, अपनी माँ के लिये दूसरा सिंहासन लाने को कहा। तब वह उसकी दायीं ओर बैठ गई।
20 बतशेबा ने उससे कहा, “मैं तुमसे एक छोटी चीज माँगती हूँ। कृपया इन्कार न करना।”
राजा ने उत्तर दिया, “माँ तुम जो चाहो, माँग सकती हो। मैं तुम्हें मना नहीं करूँगा।”
21 अत: बतशेबा ने कहा, “शूनेमिन स्त्री अबीशग को, अपने भाई अदोनिय्याह के साथ विवाह करने दो।”
22 राजा सुलैमान ने अपनी माँ से कहा, “तुम अबीशग को उसे देने के लिये मुझसे क्यों कहती हो तुम मुझसे यह क्यों नहीं कहती कि मैं उसे राजा भी बना दूँ क्योंकि वह मेरा बड़ा भाई है याजक एब्यातार और योआब उसका समर्थन करेंगे।”
23 तब सुलैमान ने यहोवा से एक प्रतिज्ञा की। उसने कहा, “मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मुझसे यह माँग करने के लिये मैं अदोनिय्याह से भुगतान कराऊँगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि उसे इसका मूल्य अपने जीवन से चुकाना पड़ेगा। 24 यहोवा ने मुझे इस्राएल का राजा होने दिया है। उसने वह सिंहासन मुझे दिया है जो मेरे पिता दाऊद का है। यहोवा ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की है और राज्य मुझे और मेरे परिवार को दिया है। मैं शाश्वत परमेश्वर के सामने, प्रतिज्ञा करता हूँ कि अदोनिय्याह आज मरेगा!”
25 राजा सुलैमान ने बनायाह को आदेश दिया। बनायाह बाहर गया और उसने अदोनिय्याह को मार डाला।
26 तब राजा सुलैमान ने याजक एब्यातार से कहा, “मुझे तुमको मार डालना चाहिये, किन्तु मैं तुम्हें अपने घर अनातोत में लौट जाने देता हूँ। मैं तुम्हें अभी मारूँगा नहीं क्योंकि मेरे पिता दाऊद के साथ चलते समय तुमने पवित्र सन्दूक को ले चलने में सहायता की थी जब तुम मेरे पिता दाऊद के साथ थे और मैं जानता हूँ कि उन सभी विपत्तियों के समय में मेरे पिता के समान तुमने भी हाथ बटाया।” 27 सुलैमान ने एब्यातार से कहा कि तुम याजक के रूप में यहोवा की सेवा करते नहीं रह सकते। यह सब वैसे ही हुआ, जैसा यहोवा ने होने के लिये कहा था। परमेश्वर ने याजक एली और उसके परिवार के बारे में शीलो में यह कहा था और एब्यातार एली के परिवार से था।
28 योआब ने इस बारे में सुना और वह डर गया। उसने अदोनिय्याह का समर्थन किया था, किन्तु अबशालोम का नहीं। योआब यहोवा के तम्बू की ओर दौड़ा और वेदी के सींगो को पकड़ लिया। 29 किसी ने राजा सुलैमान से कहा कि योआब यहोवा के तम्बू में वेदी के पास है। इसलिये सुलैमान ने बनायाह को जाने और उसे मार डालने का आदेश दिया।
30 बनायाह यहोवा के तम्बू में गया और योआब से कहा, “राजा कहते हैं, ‘बाहर आओ!’”
किन्तु योआब ने उत्तर दिया, “नहीं मैं यहीं मरूँगा।”
अत: बनायाह राजा के पास वापस गया और उससे वही कहा जो योआब ने कहा था। 31 तब राजा ने बनायाह को आदेश दिया, “वैसा ही करो जैसा वह कहता है। उसे वहीं मार डालो। तब उसे दफना दो। तब हमारा परिवार और हम योआब के दोष से मुक्त होंगे। यह अपराध इसलिये हुआ कि योआब ने निरपराध लोगों को मारा था। 32 योआब ने दो व्यक्तियों को मार डाला था जो उससे बहुत अधिक अच्छे थे। ये नेर का पुत्र अब्नेर और येतेर का पुत्र अमासा थे। अब्नेर इस्राएल की सेना का सेनापति था और उस समय मेरे पिता दाऊद यह नहीं जानते थे कि योआब ने उन्हें मार डाला था। इसलिये यहोवा योआब को उन व्यक्तियों के लिये दण्ड देगा जिन्हें उसने मार डाला था। 33 वह उनकी मृत्यु के लिये अपराधी होगा और उसका परिवार भी सदा के लिये दोषी होगा। किन्तु परमेश्वर की ओर से दाऊद को, उसके वंशजों, उसके राज परिवार और सिंहासन को सदा के लिये शान्ति मिलेगी।”
34 इसलिये यहोयादा के पुत्र बनायाह ने योआब को मार डाला। योआब मरुभूमि में अपने घर के पास दफनाया गया। 35 सुलैमान ने तब यहोयादा के पुत्र बनायाह को योआब के स्थान पर सेनापति बनाया। सुलैमान ने एब्यातार के स्थान पर सादोक को महायाजक बनाया। 36 इसके बाद रजा ने शिमी को बुलवाया। राजा ने उससे कहा, “यहाँ यरूशलेम में तुम अपने लिये एक घर बनाओ, उसी घर में रहो और नगर को मत छोड़ो। 37 यदि तुम नगर को छोड़ोगे और किद्रोन के नाले के पार जाओगे तो तुम मार डाले जाओगे और यह तुम्हारा दोष होगा।”
38 अत: शिमी ने उत्तर दिया, “मेरे राजा, आपने जो कहा, है ठीक है। मैं आपके आदेश का पालन करूँगा।” अत: शिमी यरूशलेम में बहुत समय तक रहा। 39 किन्तु तीन वर्ष बाद शिमी के दो सेवक भाग गए। वे गत के राजा के पास पहुँचे। उसका नाम आकीश था जो माका का पुत्र था। शिमी ने सुना कि उसके सेवक गत में हैं। 40 इसलिये शिमी ने अपनी काठी अपने खच्चर पर रखी और गत में राजा आकीश के पास गया। वह अपने सेवकों को प्राप्त करने गया। उसने उन्हें ढूँढ लिया और अपने घर वापस लाया।
41 किन्तु किसी ने सुलैमान से कहा, कि शिमी यरूशलेम से गत गया था और लौट आया है। 42 इसलिये सुलैमान ने उसे बुलवाया। सुलैमान ने कहा, “मैंने यहोवा के नाम पर तुमसे यह प्रतिज्ञा की थी कि यदि तुम यरूशलेम छोड़ोगे, तो मारे जाओगे। मैंने चेतावनी दी थी कि यदि तुम अन्य कहीं जाओगे तो तुम्हारे मारे जाने का दोष तुम्हारा होगा और मैंने जो कुछ कहा था तुमने उसे स्वीकार किया था। तुमने कहा कि तुम मेरी आज्ञा का पालन करोगे। 43 तुमने अपनी प्रतिज्ञा भंग क्यों की तुमने मेरे आदेश का पालन क्यों नहीं किया 44 तुम जानते हो कि तुमने मेरे पिता दाऊद के विरूद्ध बहुत से गलत काम किये, अब यहोवा उन गलत कामों के लिये तुम्हें दण्ड देगा। 45 किन्तु यहोवा मुझे आशीर्वाद देगा। वह दाऊद के सिंहासन की सदैव सुरक्षा करेगा।”
46 तब राजा ने बनायाह को शिमी को मार डालने का आदेश दिया और उसने इसे पूरा किया। अब सुलैमान अपने राज्य पर पूर्ण नियन्त्रण कर चुका था।
राजा सुलैमान
3सुलैमान ने मिस्र के राजा फ़िरौन की पुत्री के साथ विवाह करके उसके साथ सन्धि की। सुलैमान उसे दाऊद नगर को ले आया। इस समय अभी भी सुलैमान अपना महल तथा यहोवा का मन्दिर बनवा रहा था। सुलैमान यरूशलेम की चहारदीवारी भी बनवा रहा था। 2 मन्दिर अभी तक पूरा नहीं हुआ था। इसलिये लोग अभी भी उच्चस्थानों पर जानवरों की बलि भेंट कर रहे थे। 3 सुलैमान ने दिखाया कि वह यहोवा से प्रेम करता है। उसके अपने पिता दाऊद ने जो कुछ करने को कहा था, उसने उन सब का पालन किया किन्तु सुलैमान ने कुछ ऐसा भी किया जिसे करने के लिये दाऊद ने नहीं कहा था। सुलैमान अभी तक उच्चस्थानों का उपयोग बलिभेंट और सुगन्धि जलाने के लिये करता रहा।
4 राजा सुलैमान बलिभेंट करने गिबोन गया। वह वहाँ इसलिये गया क्योंकि वह सर्वाधिक महत्वपूर्ण उच्च स्थान था। सुलैमान ने एक हजार बलियाँ उस वेदी पर भेंट कीं। 5 जब सुलैमान गिबोन में था उस रात को उसके पास स्वपन में यहोवा आया। परमेश्वर ने कहा, “जो चाहते हो तुम माँगो, मैं उसे तुम्हें दूँगा।”
6 सुलैमान ने उत्तर दिया, “तू अपने सेवक मेरे पिता दाऊद पर बहुत दयालु रहा। उसने तेरा अनुसरण किया। वह अच्छा था और सच्चाई से रहा और तूने उसके प्रति तब सबसे बड़ी कृपा की जब तूने उसके पुत्र को उसके सिंहासन पर शासन करने दिया। 7 यहोवा मेरा परमेशवर, तूने मुझे अपने पिता के स्थान पर राजा होने दिया है। किन्तु मैं एक छोटे बालक के समान हूँ। मेरे पास, मुझे जो करना चाहिए उसे करने के लिये बुद्ध नहीं है। 8 तेरा सेवक, मैं यहाँ तेरे चुने लोगों, में हूँ। यहाँ बहुत से लोग हैं। वे इतने अधिक हैं कि गिने नहीं जा सकते। अत: शासक को उनके बीच अनेकों निर्णय लेने पड़ेंगे। 9 इसलिये मैं तुझसे माँगता हूँ कि तू मुझे बुद्धि दे जिससे मैं सच्चाई से लोगों पर शासन और उनका न्याय कर सकूँ। इससे मैं सही और गलत के अन्तर को जान सकूँगा। इस श्रेष्ठ बुद्धि के बिना इन महान लोगों पर शासन करना असंभव है।”
10 यहोवा प्रसन्न हुआ कि सुलैमान ने उससे यह माँगा। 11 इसलिये परमेश्वर ने उससे कहा, “तुमने अपने लिये दीर्घायु नहीं माँगी। तुमने अपने लिये सम्पत्ति नहीं माँगी। तुमने अपने शत्रुओं की मृत्यु नहीं माँगी। 12 इसलिये मैं तुम्हें वही दूँगा जो तुमने माँगा। मैं तुम्हें बुद्धिमान और विवेकी बनाऊँगा। मैं तुम्हारी बुद्धि को इतना महान बनाऊँगा कि बीते समय में कभी तुम्हारे जैसा कोई व्यक्ति नहीं हुआ है और भविष्य में तुम्हारे जैसा कभी कोई नहीं होगा। 13 और तुम्हें पुरस्कृत करने के लिये मैं तुम्हें वे चीजें भी दूँगा जिन्हें तुमने नहीं माँगी। तुम्हारे पूरे जीवन में सम्पत्ति और प्रतिष्ठा बनी रहेगी। संसार में तुम्हारे जैसा महान राजा दूसरा कोई नहीं होगा। 14 मैं तुमसे चाहता हूँ कि तुम मेरा अनुसरण करो और मेरे नियमों एवं आदेशों का पालन करो। यह उसी प्रकार करो जिस प्रकार तुम्हारे पिता दाऊद ने किया। यदि तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम्हें दीर्घायु भी करूँगा।”
15 सुलैमान जाग गया। वह जान गया कि परमेश्वर ने उसके साथ स्वप्न में बातें की हैं। तब सुलैमान यरूशलेम गया और यहोवा के साक्षीपत्र के सन्दूक के सामने खड़ा हुआ। सुलैमान ने एक होमबलि यहोवा को चढ़ाई और उसने यहोवा को मेलबलि दी। इसके बाद उसने उन सभी प्रमुखों और अधिकारियों को दावत दी जो शासन करने में उसकी सहायता करते थे।
समीक्षा
बुद्धि के लिए प्रार्थना करें
सुलैमान ने अपने लंबे कार्यकाल को सुनिश्चित किया, अपने शासन के आरंभ में ही अपने सभी शत्रुओं की हत्या करवा कर (अध्याय 2). यीशु की तुलना में दाऊद के पुत्र का यह कार्य कितना अलग था, 'दाऊद का पुत्र, जिसने सभी के पास जीवन को लाया और हमें सिखाया कि अपने शत्रुओं से प्रेम करो! वह अनंत रूप से राज्य करते हैं.
किंतु, कम से कम एक चीज थी जिसे सुलैमान ने निश्चित ही सही किया. परमेश्वर ने उससे कहा, 'जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूँ, वह माँग' (3:5). उसके उत्तर ने दीनता को दिखाया और परमेश्वर के लिए उसकी आवश्यकता की एक पहचान को. सुलैमान ने प्रार्थना की, 'तू अपने दास को अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये समझने की एक ऐसी शक्ति दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूं' (व.9).
परमेश्वर सुलैमान के उत्तर से प्रसन्न थे. उन्होंने उससे कहा, 'इसलिये कि तू ने यह वरदान माँगा है, और न तो दीर्घायु और न धन और न अपने शत्रुओं का नाश माँगा है, परंतु समझने के विवेक का वरदान माँगा है इसलिये सुन, मैं तेरे वचन के अनुसार करता हूँ, तुझे बुद्धि और विवेक से भरा मन देता हूँ; यहाँ तक कि तेरे समान न तो तुझ से पहले कोई हुआ, और न बाद में कोई कभी होगा. फिर जो तू ने नहीं माँगा, अर्थात् धन और महिमा, वह भी मैं तुझे यहाँ तक देता हूँ, कि तेरे जीवन भर कोई राजा तेरे तुल्य न होगा मैं तेरी आयु को भी बढाऊँगा (वव.10-14, एम,एस.जी.).
यीशु ने कहा, 'तुम पहले परमेश्वर के (आपके स्वर्गीय पिता) राज्य और उसके सत्यनिष्ठा की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी' (मत्ती 6:33). वास्तव में, बुद्धि के लिए प्रार्थना करके, सुलैमान पहले परमेश्वर के राज्य की खोज कर रहे थे. परमेश्वर ने उनसे कहा कि इसके परिणामस्वरूप, बाकी दूसरी चीजें भी उनकी हो जाएगी.
बुद्धि का प्रस्ताव केवल सुलैमान के लिए नहीं था. याकूब लिखते हैं, ' यदि तुम में से किसी को बुध्दि की घटी हो तो परमेश्वर से माँगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है, और उसको दी जाएगी' (याकूब 1:5).
प्रार्थना
परमेश्वर, मुझे आपकी बुद्धि की आवश्यकता है. जिस किसी स्थिति का मैं सामना करता हूँ उसमें मुझे एक बुद्धिमान और भले-बुरे में भेद करने वाला हृदय दें. परमेश्वर मैं उस बुद्धि के लिए प्रार्थना करता हूँ जो स्वर्ग से आती है और वह पहले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव और दया और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है (3:17).
पिप्पा भी कहते है
नीतिवचन 15:3
'यहोवा की आँखे सब स्थानों में लगी रहती है, वह बुरे भले दोनों को देखती रहती हैं.'
चाहे आपको लगता हो कि आप अच्छे हैं या बुरे हैं, परमेश्वर आपको देख रहे हैं...क्या यह शांती देता है या नहीं?
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संदर्भ
सेंट जॉन क्राइसोस्टोम ने लिओनार्ड रॅवेन्हिल में लिखा है, व्हाय रिवायवल टॅरीस (मिनेपोलिस: बेथनी फेलोशिप, 1959), प. 156
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