अपनी क्षमता को कैसे परिपूर्ण करें
परिचय
जीवन में, बहुत से लोग अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुँच पाते हैं। हरदिन बदलते रहने के बजाय हमें पुराने तौर - तरीकों में बने रहना आसान लगता है। फिर भी, परमेश्वर ने हमें अपनी पूरी क्षमता तक जीने के लिए इच्छाएँ प्रदान की हैं। शायद आपको यह प्रसिद्ध जीवनी याद होगी:
‘सौलोमन ग्रांडे... सोमवार को जन्मे... मंगलवार को नामकरण... बुधवार को विवाह... गुरुवार को बीमार पड़े... शुक्रवार को और ज़्यादा बीमार पड़े... शनिवार को मृत्यु... रविवार को गाड़े गए... और यह सॉलोमन ग्रांडे का अंत था।
कुछ लोगों के लिए यह केवल उनके जीवन को बयान करता है। और फिर भी वास्तव में हम यह महसूस करते हैं, कि ‘जीवन में और भी कुछ होना चाहिये’। यीशु कहते हैं, वास्तव में, ‘हाँ, ऐसा होता है!’ प्रत्येक मनुष्य की क्षमता अद्भुत है।
यीशु चाहते हैं कि आप उच्च - कोटि का फलदायी जीवन बिताएं। यीशु चाहते हैं कि जो बोया गया था उसका आप — तीस गुना, साठ गुना, “सौ गुना फल लायें (मत्ती 13:8)। यहाँ सबसे कम तीस गुना है। यह यीशु के साथ आपके संबंधों की कुंजी है — यह संबंध ऐसा है जैसे एक भाई या बहन या माँ के साथ होता है (मत्ती 12:50)। आप वास्तविक उद्देश्य का जीवन जी सकते हैं, क्योंकि जो आपने स्वीकार किया है उससे संसार में अंतर पड़ेगा (13:11,12,16)।
यह अपनी क्षमता को महत्तवाकांक्षा से या सफलता द्वारा संचालित करने के बारे में नहीं है; बल्कि परमेश्वर में आप कौन हैं, यह पहचानना ज़रूरी है। जब आप परमेश्वर की खोज करते हैं और उनके उद्देश्य के अनुसार जीवन बिताते हैं, तब आप बहुत फल लाते हैं। जितना ज़्यादा आप परमेश्वर की दी हुई क्षमता को पूरा करने का आरंभ करेंगे, वह आपको उतना ही ज़्यादा क्षमता देंगे। वे चाहते हैं कि आप बहुतायत का जीवन बिताएं (पद - 12)।
इस्राएल की क्षमता बहुत ही अद्भुत थी (उत्पत्ति 35:11)। परमेश्वर चाहते थे कि इस्राएल न केवल आशीषित हो, बल्कि अन्य राष्ट्रों के लिए भी आशीष का कारण बने। पुराने नियम में आपने जितना पढ़ा है, उससे कहीं ज़्यादा आपके पास अद्भुत आशीषों से भरा जीवन जीने के लिए अवसर है। यीशु कहते हैं, कि ‘धन्य हैं तुम्हारी आँखें, कि वे देखती हैं; और तुम्हारे कान, कि वे सुनते हैं। क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ कि बहुत से भविष्यवक्ताओं ने और धर्मियों ने चाहा कि जो बातें तुम देखते हो, देखें पर न देखीं; और जो बातें तुम सुनते हो, सुनें, पर न सुनीं (मत्ती 13:16,17)।
यीशु चेतावनी देते हुए कहते हैं कि हम सब के अंदर अद्भुत क्षमता है, परंतु साथ ही आगे कठिनाइयाँ भी हैं। कठिनाइयों को नज़रंदाज़ करते हुए आप अपनी क्षमता को कैसे पूरा करेंगे?
भजन संहिता 10:1-11
10हे यहोवा, तू इतनी दूर क्यों खड़ा रहता है?
कि संकट में पड़े लोग तुझे नहीं देख पाते।
2 अहंकारी दुष्ट जन दुर्बल को दु:ख देते हैं।
वे अपने षड़यन्त्रों को रचने रहते हैं।
3 दुष्ट जन उन वस्तुओं पर गर्व करते हैं, जिनकी उन्हें अभिलाषा है और लालची जन परमेश्वर को कोसते हैं।
इस प्रकार दुष्ट दर्शाते हैं कि वे यहोवा से घृणा करते हैं।
4 दुष्ट जन इतने अभिमानी होते हैं कि वे परमेश्वर का अनुसरण नहीं कर सकते। वे बुरी—बुरी योजनाएँ रचते हैं।
वे ऐसे कर्म करते हैं, जैसे परमेश्वर का कोई अस्तित्व ही नहीं।
5 दुष्ट जन सदा ही कुटिल कर्म करते हैं।
वे परमेश्वर की विवेकपूर्ण व्यवस्था और शिक्षाओं पर ध्यान नहीं देते।
हे परमेश्वर, तेरे सभी शत्रु तेरे उपदेशों की उपेक्षा करते हैं।
6 वे सोचते हैं, जैसे कोई बुरी बात उनके साथ नहीं घटेगी।
वे कहा करते हैं, “हम मौज से रहेंगे और कभी भी दण्डित नहीं होंगे।”
7 ऐसे दुष्ट का मुख सदा शाप देता रहता है। वे दूसरे जनों की निन्दा करते हैं
और काम में लाने को सदैव बुरी—बुरी योजनाएँ रचते रहते हैं।
8 ऐसे लोग गुप्त स्थानों में छिपे रहते हैं,
और लोगों को फँसाने की प्रतीक्षा करते हैं।
वे लोगों को हानि पहुँचाने के लिये छिपे रहते हैं और निरपराधी लोगों की हत्या करते हैं।
9 दुष्ट जन सिंह के समान होते हैं जो
उन पशुओं को पकड़ने की घात में रहते हैं। जिन्हें वे खा जायेंगे।
दुष्ट जन दीन जनों पर प्रहार करते हैं।
उनके बनाये गये जाल में असहाय दीन फँस जाते हैं।
10 दुष्ट जन बार—बार दीन पर घात करता
और उन्हें दु:ख देता है।
11 अत: दीन जन सोचने लगते हैं, “परमेश्वर ने हमको भुला ही दिया है!
हमसे तो परमेश्वर सदा—सदा के लिये दूर हो गया है।
जो कुछ भी हमारे साथ घट रहा, उससे परमेश्वर ने दृष्टि फिरा ली है!”
समीक्षा
1. नम्रता को बढ़ावा दें
अपनी पुस्तक, “फाइंडिंग हैपिनेस: मोनेस्टिक स्टेप्स फोर ए फुलफिलिग लाइफ”, में ऐबोट क्रिस्टोफर जैमिंसन, घमंड को ‘आत्म महत्व’ के रूप में परिभाषित करते हैं। वे लिखते हैं कि ‘नम्रता हमारे वास्तविक जीवन में उचित दृष्टिकोण है और वे यह भी मानते हैं कि हम अन्य लोगों की तुलना में ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।
इस भजन संहिता में भजनकार एक यात्रा का अनुभव करते हुए कहते हैं कि, ‘परमेश्वर संकट के समय में... बहुत दूर रहते हैं’ (पद - 1 से आगे) यह वास्तविकता का बोध कराता है (जिसके विषय में हम कल पढ़ेंगे) कि परमेश्वर निश्चित ही ऐसा करते हैं ‘संकट और दु:ख देखना’, ‘पीड़ित की पुकार सुनना’ और ‘अनाथ और दलितों’ का बचाव करना’ (पद - 14 से आगे)।
वास्तव में, ये ‘दुष्ट’ हैं, (पद - 2) जो खुद से दूरी बनाने का प्रयास करते हैं — ‘प्रभु की व्यवस्था उनके द्वारा अस्वीकार कर दी गई’ (पद - 5) वे सोचते हैं कि वे दूसरों से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं — खासकर के गरीब लोग, जिन्हें वे ‘अपने जाल में फाँसते हैं और कुचलते हैं’ (पद - 9-10 अ और ब)। यह वचन हमें ‘अभिमान’ की कठिनाइयों के विषय में बताता है (पद - 4)।
जब सब कुछ अच्छा होता रहता है, तो यह हमें प्रलोभन में डालता है कि ‘मुझे कोई दुर्बल नहीं कर सकता... मुझे कोई भी हानि नहीं पहुँचा सकता’ (पद - 6)। हम प्रलोभन में यह अनुभव करते हैं कि हमें परमेश्वर की कोई भी आवश्यकता नहीं है: ‘इसी अभिमान में दीन व्यक्ति परमेश्वर को नहीं खोजता; उसके विचारों में परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं होता’ (पद - 4)। अभिमानी और डींगमार (पद - 3) बनना आसान है। भजन संहिता हमें इसी बारे में सावधान करती है, और स्मरण कराती है कि हमें परमेश्वर की आवश्यकता है।
प्रार्थना
प्रभु, मुझे अभिमान, घमंड और स्वयं को महत्त्व देने से बचाए रखें। यह स्मरण करते हुए कि मुझे आपकी आवश्यकता है, और आप मुझे कभी नहीं भूलेंगे जिससे मैं अपने पूरे मन से आपकी खोज कर सकूँ।
मत्ती 12:46-13:17
यीशु के अनुयायी ही उसका परिवार
46 वह अभी भीड़ के लोगों से बातें कर ही रहा था कि उसकी माता और भाई-बन्धु वहाँ आकर बाहर खड़े हो गये। वे उससे बातें करने को बाट जोह रहे थे। 47 किसी ने यीशु से कहा, “सुन तेरी माँ और तेरे भाई-बन्धु बाहर खड़े हैं और तुझसे बात करना चाहते हैं।”
48 उत्तर में यीशु ने बात करने वाले से कहा, “कौन है मेरी माँ? कौन हैं मेरे भाई-बन्धु?” 49 फिर उसने हाथ से अपने अनुयायिओं की तरफ इशारा करते हुए कहा, “ये हैं मेरी माँ और मेरे भाई-बन्धु। 50 हाँ स्वर्ग में स्थित मेरे पिता की इच्छा पर जो कोई चलता है, वही मेरा भाई, बहन और माँ है।”
किसान और बीज का दृष्टान्त
13उसी दिन यीशु उस घर को छोड़ कर झील के किनारे उपदेश देने जा बैठा। 2 बहुत से लोग उसके चारों तरफ इकट्ठे हो गये। सो वह एक नाव पर चढ़ कर बैठ गया। और भीड़ किनारे पर खड़ी रही। 3 उसने उन्हें दृष्टान्तों का सहारा लेते हुए बहुत सी बातें बतायीं।
उसने कहा, “एक किसान बीज बोने निकला। 4 जब वह बुवाई कर रहा था तो कुछ बीज राह के किनारे जा पड़े। चिड़ियाएँ आयीं और उन्हें चुग गयीं। 5 थोड़े बीज चट्टानी धरती पर जा गिरे। वहाँ मिट्टी बहुत उथली थी। बीज तुरंत उगे, क्योंकि वहाँ मिट्टी तो गहरी थी नहीं; 6 इसलिये जब सूरज चढ़ा तो वे पौधे झुलस गये। और क्योंकि उन्होंने ज्यादा जड़ें तो पकड़ी नहीं थीं इसलिये वे सूख कर गिर गये। 7 बीजों का एक हिस्सा कँटीली झाड़ियों में जा गिरा, झाड़ियाँ बड़ी हुईं, और उन्होंने उन पौधों को दबोच लिया। 8 पर थोड़े बीज जो अच्छी धरती पर गिरे थे, अच्छी फसल देने लगे। फसल, जितना बोया गया था, उससे कोई तीस गुना, साठ गुना या सौ गुना से भी ज़्यादा हुई। 9 जो सुन सकता है, वह सुन ले।”
दृष्टान्त-कथाओं का प्रयोजन
10 फिर यीशु के शिष्यों ने उसके पास जाकर उससे पूछा, “तू उनसे बातें करते हुए दृष्टान्त कथाओं का प्रयोग क्यों करता है?”
11 उत्तर में उसने उनसे कहा, “स्वर्ग के राज्य के भेदों को जानने का अधिकार सिर्फ तुम्हें दिया गया है, उन्हें नहीं। 12 क्योंकि जिसके पास थोड़ा बहुत है, उसे और भी दिया जायेगा और उसके पास बहुत अधिक हो जायेगा। किन्तु जिसके पास कुछ भी नहीं है, उससे जितना सा उसके पास है, वह भी छीन लिया जायेगा। 13 इसलिये मैं उनसे दृष्टान्त कथाओं का प्रयोग करते हुए बात करता हूँ।
क्योंकि यद्यपि वे देखते हैं, पर वास्तव में उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता,
वे यद्यपि सुनते हैं पर वास्तव में न वे सुनते हैं, न समझते हैं।
14 इस प्रकार उन पर यशायाह की यह भविष्यवाणी खरी उतरती है:
‘तुम सुनोगे और सुनते ही रहोगे
पर तुम्हारी समझ में कुछ भी न आयेगा,
तुम बस देखते ही रहोगे
पर तुम्हें कुछ भी न सूझ पायेगा।
15 क्योंकि इनके हृदय जड़ता से भर गये।
इन्होंने अपने कान बन्द कर रखे हैं
और अपनी आखें मूँद रखी हैं
ताकि वे अपनी आँखों से कुछ भी न देखें
और वे कान से कुछ न सुन पायें या
कि अपने हृदय से कभी न समझें
और कभी मेरी ओर मुड़कर आयें और जिससे मैं उनका उद्धार करुँ।’
16 किन्तु तुम्हारी आँखें और तुम्हारे कान भाग्यवान् हैं क्योंकि वे देख और सुन सकते हैं। 17 मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, बहुत से भविष्यवक्ता और धर्मात्मा जिन बातों को देखना चाहते थे, उन्हें तुम देख रहे हो। वे उन्हें नहीं देख सके। और जिन बातों को वे सुनना चाहते थे, उन्हें तुम सुन रहे हो। वे उन्हें नहीं सुन सके।
समीक्षा
2. घनिष्ठता का प्रयास करें
कुछ भयानक धर्मों ने यीशु के शब्दों को तोड़ - मरोड़ दिया (मत्ती 12:50) और यह सिखाने के लिए कि मसीही बनना यानि अपने परिवार के साथ सारे रिश्तेदारों की सेवा करना। यह न केवल खतरनाक है, बल्कि बाइबल के विरुद्ध भी है। बाइबल में पाँचवी आज्ञा यह है कि ‘तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना’ (निर्गमन 20:12)। नए नियम में हमें यह कहा गया है, कि ‘यदि कोई अपनों की और निज करके अपने घराने की चिंता न करें, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी बुरा बन गया है (1 तिमुथियस 5:8)।
फिर भी, यहाँ पर यीशु बताते हैं कि अपने परिवार के साथ संबंधों से बढ़कर कुछ और भी महत्त्वपूर्ण है। यीशु के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना ही आपकी उच्चतम बुलाहट, जो कि ‘पिता की इच्छा को पूरी करना है’ (मत्ती 12:50)।
यीशु कहते हैं, ‘क्योंकि जो कोई मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चले वही मेरा भाई और बहन और माता है’ (पद - 50)। उनके शब्द घनिष्ठता, दृढ़ता और स्वीकार करने के विषय में बात करते हैं — यानि सबसे गहरे स्तर का संबंध। यीशु के साथ यह आश्चर्यजनक नज़दीकी आपके साथ भी हो सकती है। प्रतिदिन उनके समीप बने रहें और आप अपनी क्षमता को परिपूर्ण कर पाएंगे।
3. अपने जड़ों को मज़बूत करें
आत्मिक अनुभवों की श्रेष्ठता बहुत महत्त्वपूर्ण है, लेकिन यदि वे आत्मिक जड़ों से जुड़े नहीं हैं तो सतहीपन का खतरा बहुत ज़्यादा है; जो आपको नीचे की ओर ले जाएगा। इन कठिनाइयों के बारे में सावधान रहें। हम उचित चीज़ें करते हैं तब भी हम अपने मन में गिर सकते हैं।
यीशु उस बीज के विषय में कहते हैं, जो पत्थरीली भूमि पर गिरा। वे जल्दी उग आए, परंतु गहरी जड़ न होने के कारण सूख गए (13:6)। बाद में वे उसका अर्थ समझाते हैं, कि जिस व्यक्ति की जड़ें मज़बूत नहीं हैं, वे बहुत ही थोड़े समय के लिए रहते हैं, क्योंकि वे संकट या उपद्रव के कारण गिर जाते हैं (पद - 21)।
आपकी आत्मिक जड़ें आपके जीवन का हिस्सा हैं; जिसे कोई नहीं देख सकता — परमेश्वर के साथ आपका व्यक्तिगत जीवन। इसमें आपकी प्रार्थनाएँ, आपका देना और आपका विचारशील जीवन शामिल है। यदि आप अपनी क्षमता को पूरा करना चाहते हैं, तो आपको परमेएश्वर के साथ संबंधों में गहरी, सामर्थी और स्वस्थ जड़ों को विकसित करना होगा।
4. अपने मन की रक्षा कीजिये
जीवन की भाग-दौड़ से लोगों का ध्यान भटकना बहुत ही आसान है। आप अपने जीवन को कई प्रकार से भर सकते हैं। परमेश्वर, तथा कलीसिया के लिए समय निकालकर आप अपनी आत्मिक जड़ों को और भी तरीकों से विकसित कर सकते हैं। फिर एक बार, यह हमारे लिए भयानक है।
यीशु कटीली झाड़ियों के बारे में हमें सावधान करते हैं, कि वे पौधों को दबाते हैं (पद - 7)। बाद में उसे विस्तार से बताते हैं कि काँटे ‘संसार की चिंता’ और ‘धन का धोखा’ को दर्शाते हैं (पद - 22)।
प्रार्थना
पिता, मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मुझे यीशु के साथ व्यक्तिगत संबंध के लिए बुलाया है। मेरी सहायता कीजिए कि मैं अपनी जड़ों को और गहराई में ले जा सकूँ और मेरी आँखें आप पर केंद्रित कर सकूँ। मेरी सहायता कीजिए कि मैं इस संबंध का ध्यान रखूँ और उन बातों को जो मेरे जीवन को चारों तरफ से घेरकर दबाती हैं, अनुमति न दूँ, फिर चाहें वे कितनी भी अच्छी क्यों न हों।
उत्पत्ति 34:1-35:29
दीना के साथ कुकर्म
34दीना लिआ और याकूब की पुत्री थी। एक दिन दीना उस प्रदेश की स्त्रियों को देखने के लिए बाहर गई। 2 उस प्रदेस के राजा हमोर के पुत्र शकेम ने दीना को देखा। उसने उसे पकड़ लिया और अपने साथ शारीरीक सम्बन्ध करने के लिए उसे विवश किया। 3 शकेम दीना से प्रेम करने लगा और उससे विवाह करना चाहा। 4 शकेम ने अपने पिता से कहा, “कृपया इस लड़की को प्राप्त करें जिससे मैं इसके साथ विवाह कर सकूँ।”
5 याकूब ने यह जान लिया कि शकेम ने उसको पुत्री के साथ ऐसी बुरी बात की है। किन्तु याकूब के सभी पुत्र अपने पशुओं के साथ मैदान में गए थे। इसलिए वे जब तक नहीं आए, याकूब ने कुछ नहीं किया। 6 उस समय शकेम का पिता हमोर याकूब के साथ बात करने गया।
7 खेतों में याकूब के पुत्रों ने जो कुछ हुआ था, उसकी खबर सुनी। जब उन्होंने यह सुना तो वे बहुत क्रोधित हुए। वे पागल से हो गए क्योंकि शकेम ने याकूब की पुत्री के साथ सोकर इस्राएल को कलंकित किया था। शकेम ने बहुत घिनौनी बात की थी। इसलिए सभी भाई खेतों से घर लौटे।
8 किन्तु हमोर ने भाईयों से बात की। उसने कहा, “मेरा पुत्र शकेम दीना से बहुत प्रेम करता है। कृपया उसे इसके साथ विवाह करने दो। 9 यह विवाह इस बात का प्रमाण होगा कि हम लोगों ने विशेष सन्धि की है। तब हमारे लोग तुम लोगों की स्त्रियों और तुम्हारे लोग हम लोगों की स्त्रियों के साथ विवाह कर सकते हैं। 10 तुम लोग हमारे साथ एक प्रदेश में रह सकते हो। तुम भूमि के स्वामी बनने और यहाँ व्यापार करने के लिए स्वतन्त्र होगे।”
11 शकेम ने भी याकूब और भाईयों से बात की। शकेम ने कहा, “कृपया मुझे स्वीकार करें और मैंने जो किया उसके लिए क्षमा करें। मुझे जो कुछ आप लोग करने को कहेंगे, करूँगा। 12 मैं कोई भी भेंट जो तुम चाहोगे, दूँगा, अगर तुम मुझे दीना के साथ विवाह करने दोगे।”
13 याकूब के पुत्रों ने शकेम और उसके पिता से झूठ बोलने का निश्चय किया। भाई अभी भी पागल हो रहे थे क्योंकि शकेम ने उनकी बहन दीना के साथ ऐसा घिनौना व्यवहार किया था। 14 इसलिए भाईयों ने उससे कहा, “हम लोग तुम्हें अपनी बहन के साथ विवाह नहीं करने देंगे क्योंकि तुम्हारा खतना अभी नहीं हुआ है। हमारी बहन का तुमसे विवाह करना अनुचित होगा। 15 किन्तु हम लोग तुम्हें उसके साथ विवाह करने देंगे यदि तुम यही एक काम करो कि तुम्हारे नगर के हर पुरुष का खतना हम लोगों की तरह हो जाए। 16 तब तुम्हारे पुरुष हमारी स्त्रियों से विवाह कर सकते हैं और हमारे पुरुष तुम्हारी स्त्रियों से विवाह कर सकते हैं। तब हम एक ही लोग बन जाएँगे। 17 यदि तुम खतना कराना अस्वीकार करते हो तो हम लोग दीना को ले जाएँगे।”
18 इस सन्धि ने हमोर और शकेम को बहुत प्रसन्न किया। 19 दीना के भाईयों ने जो कुछ कहा उसे कहने में शकेम बहुत प्रसन्न हुआ।
शकेम परिवार का सबसे अधिक प्रतिष्ठित व्यक्ति था। 20 हमोर और शकेम अपने नगर के सभास्थल को गए। उन्होंने नगर के लोगों से बातें कीं और कहा, 21 “इस्राएल के ये लोग हमारे मित्र होना चाहते हैं। हम लोग उन्हें अपने प्रदेश में रहने देना चाहते हैं और अपने साथ शान्ति बनाए रखना चाहते हैं। हम लोग के पास अपने सभी लोगों के लिए काफी भूमि है। हम लोग इनकी स्त्रियों के साथ विवाह करने को स्वतन्त्र हैं और हम लोग अपनी स्त्रियाँ उनको विवाह के लिए देने में प्रसन्न हैं। 22 किन्तु एक बात है जिसे करने के लिए हम सभी को सन्धि करनी होगी। 23 यदि हम ऐसा करेंगे तो उनके पशुओं तथा जानवरों से हम धनी हो जाएँगे। इसलिए हम लोग उनके साथ यह सन्धि करें और वे यहीं हम लोगों के साथ रहेंगे।” 24 सभास्थल पर जिन लोगों ने यह बात सुनी वे हमोर और शकेम के साथ सहमत हो गए और उस समय हर एक पुरुष का खतना कर दिया गया।
25 तीन दिन बाद खतना कर दिए गए पुरुष अभी ज़ख्मी थे। याकूब के दो पुत्र शिमोन और लेवी जानते थे कि इस समय लोग कमज़ोर होगें, इसलिए वे नगर को गए और उन्होंने सभी पुरुषों को मार डाला। 26 दीना के भाई शिमोन और लेवी ने हमोर और उसके पुत्र शकेम को मार डाला। उन्होंने दीना को शकेम के घर से निकाल लिया और वे चले आए। 27 याकूब के अन्य पुत्र नगर में गए और उन्होंने वहाँ जो कुछ था, लूट लिया। शकेम ने उनकी बहन के साथ जो कुछ किया था, उससे वे तब तक क्रोधित थे। 28 इसलिए भाईयों ने उनके सभी जानवर ले लिए। उन्होंने उनके गधे तथा नगर और खेतों मे अन्य जो कुछ था सब ले लिया। 29 भाईयों ने उन लोगों का सब कुछ ले लिया। भाईयों ने उनकी पत्नियों और बच्चों तक को ले लिया।
30 किन्तु याकूब ने शिमोन और लेवी से कहा, “तुम लोगों ने मुझे बहुत कष्ट दिया है और इस प्रदेश के निवासियों के मन में घृणा उत्पन्न करायी। सभी कनानी और परिजी लोग हमारे विरुद्ध हो जाएँगे। यहाँ हम बहुत थोड़े हैं। यदि इस प्रदेश के लोग हम लोगों के विरुद्ध लड़ने के लिए इकट्ठे होंगे तो मैं नष्ट हो जाऊँगा और हमारे साथ हमारे सभी लोग नष्ट हो जाएंगे।”
31 किन्तु भाईयों ने उत्तर दिया, “क्या हम लोग उन लोगों को अपनी बहन के साथ वेश्या जैसा व्यवहार करने दें? नहीं हमारी बहन के साथ वैसा व्यवहार करने वाले लोग बुरे थे।”
याकूब बेतेल में
35परमेश्वर ने याकूब से कहा, “बेतेल नगर को जाओ, वहाँ बस जाओ और वहाँ उपासना की वेदी बनाओ। परमेश्वर को याद करो, वह जो तुम्हारे सामने प्रकट हुआ था जब तुम अपने भाई एसाव से बच कर भाग रहे थे। उस परमेश्वर की उपासना के लिए वहाँ वेदी बनाओ।”
2 इसलिए याकूब ने अपने परिवार और अपने सभी सेवकों से कहा, “लकड़ी और धातु के बने जो झूठे देवता तुम लोगों के पास हैं उन्हें नष्ट कर दो। अपने को पवित्र करो। साफ कपड़े पहनो। 3 हम लोग इस जगह को छोड़ेंगे और बेतेल को जाएँगे। उस जगह में अपने परमेश्वर के लिए एक वेदी बनायेंगे। यह वही परमेश्वर है जो मेरे कष्टों के समय में मेरी सहायता की और जहाँ कहीं मैं गया वह मेरे साथ रहा।”
4 इसलिए लोगों के पास जो झूठे देवता थे, उन सभी को उन्होंने याकूब को दे दिया। उन्होंने अपने कानों में पहनी दुई सभी बालियों को भी याकूब को दे दिया। याकूब ने शकेम नाम के शहर के समीप एक सिन्दूर के पेड़ के नीचे इन सभी चीज़ों को गाड़ दिया।
5 याकूब और उसके पुत्रों ने वह जगह छोड़ दी। उस क्षेत्र के लोग उनका पीछा करना चाहते थे और उन्हें मार डालना चाहते थे। किन्तु वे बहुत डर गए और उन्होंने याकूब का पीछा नहीं किया। 6 इसलिए याकूब और उसके लोग लूज पहुँचे। अब लूज को बेतेल कहते हैं। यह कनान प्रदेश में है। 7 याकूब ने वहाँ एक वेदी बनायी। याकूब ने उस जगह का नाम “एलबेतेल” रखा। याकूब ने इस नाम को इसलिए चुना कि जब वह अपने भाई के यहाँ से भाग रहा था, तब पहली बार परमेश्वर यहीं प्रकट हुआ था।
8 रिबका की धाय दबोरा यहाँ मरी थी, उन्होंने बेतेल में सिन्दूर के पेड़ के नीचे उसे दफनाया। उन्होंने उस स्थान का नाम अल्लोन बक्कूत रखा।
याकूब का नया नाम
9 जब याकूब पद्दनराम से लौटा तब परमेश्वर फिर उसके सामने प्रकट हुआ। परमेश्वर ने याकूब को आशीर्वाद दिया। 10 परमेश्वर ने याकूब से कहा, “तुम्हारा नाम याकूब है। किन्तु मैं उस नाम को बदलूँगा। अब तुम याकूब नहीं कहलाओगे। तुम्हारा नया नाम इस्राएल होगा।” इसलिए इसके बाद याकूब का नाम इस्राएल हुआ।
11 परमेश्वर ने उससे कहा, “मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ और तुमको मैं यह आशीर्वाद देता हूँ तुम्हारे बहुत बच्चे हों और तुम एक महान राष्ट्र बन जाओ। तुम ऐसा राष्ट्र बनोगे जिसका सम्मान अन्य सभी राष्ट्र करेंगे। अन्य राष्ट्र और राजा तुमसे पैदा होंगे। 12 मैंने इब्राहीम और इसहाक को कुछ विशेष प्रदेश दिए थे। अब वह प्रदेश मैं तुमको देता हूँ।” 13 तब परमेश्वर ने वह जगह छोड़ दी। 14-15 याकूब ने इस स्थान पर एक विशेष चट्टान खड़ी की। याकूब ने उस पर दाखरस और तेल चढ़ाकर उस चट्टान को पवित्र बनाया। वह एक विशेष स्थान था क्योंकि परमेश्वर ने वहाँ याकूब से बात की थी और याकूब ने उस स्थान का नाम बेतेल रखा।
राहेल जन्म देते समय मरी
16 याकूब और उसके दल ने बेतेल को छोड़ा। एप्राता (बेतलेहेम) आने से ठीक पहले राहेल अपने बच्चे को जन्म देने लगी। 17 लेकिन राहेल को इस जन्म से बहुत कष्ट होने लगा। उसे बहुत दर्द हो रहा था। राहेल की धाय ने उसे देखा और कहा, “राहेल, डरो नहीं। तुम एक और पुत्र को जन्म दे रही हो।”
18 पुत्र को जन्म देते समय राहेल मर गई। मरने के पहले राहेल ने बच्चे का नाम बेनोनी रखा। किन्तु याकूब ने उसका नाम बिन्यामीन रखा।
19 एप्राता को आनेवाली सड़क पर राहेल को दफनाया गया। (एप्राता बेतलेहेम है) 20 और याकूब ने राहेल के सम्मान में उसकी कब्र पर एक विशेष चट्टान रखी। वह विशेष चट्टान वहाँ आज तक है। 21 तब इस्राएल (याकूब) ने अपनी यात्रा जारी रखी। उसने एदेर स्तम्भ के ठीक दक्षिण में अपना डेरा डाला।
22 इस्राएल वहाँ थोड़े समय ठहरा। जब वह वहाँ था तब रूबेन इस्राएल की दासी बिल्हा के साथ सोया। इस्राएल ने इस बारे में सुना और बहुत क्रोधित हुआ।
इस्राएल का परिवार (याकूब)
याकूब (इस्राएल) के बारह पुत्र थे।
23 उसकी पत्नी लिआ से उसके छः पुत्र थे:
रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, जबूलून।
24 उसकी पत्नी राहेल से उसके दो पुत्र थे:
यूसुफ, बिन्यामीन।
25 राहेल की दासी बिल्हा से उसके दो पुत्र थे:
दान, नप्ताली।
26 और लिआ की दासी जिल्पा से उसके दो पुत्र थे:
गाद, आशेर।
ये याकूब (इस्राएल) के पुत्र हैं जो पद्दनराम में पैदा हुए थे।
27 मम्रे के किर्यतर्बा (हेब्रोन) में याकूब अपने पिता इसहाक के पास गया। यह वही जगह है जहाँ इब्राहीम और इसहाक रह चुके थे। 28 इसहाक एक सौ अस्सी वर्ष का था। 29 इसहाक बहुत वर्षों तक जीवित रहा। जब वह मरा, वह बहुत बुढ़ा था। उसके पुत्र एसाव और याकूब ने उसे वहीं दफनाया जहाँ उसके पिता को दफनाया गया था।
समीक्षा
5. स्वयं को पवित्र करें
इस पथ में हम भयानक, तीव्र बदले के विषय में चेतावनी पढ़ते हैं (करिनथियों 10:11 देखें)। एक डरावना अपराध (दीना के साथ कुकर्म, उत्पत्ति 34:2) दूसरे अपराध की ओर ले जाता है। जिसका कठोर दंड संतुलित नहीं था। परमेश्वर के लोगों ने पहले से अशंकित शहर पर आक्रमण किया और प्रत्येक पुरुष को मार दिया... यहाँ तक कि उनके बाल - बच्चों और स्त्रियों को ले गए (पद - 25-29)।
यह परिणाम बहुत ही भयानक था। याकूब ने कहा, ‘तुम लोगों ने उस देश के निवासियों के मन में घृणा उत्पन्न कराई है, और मुझे संकट में डाला है क्योंकि मेरे साथ थोड़े ही लोग हैं, अब वे इकट्ठे होकर मुझपर चढ़ाई करेंगे और मुझे मार डालेंगे, मैं अपने घराने समेत नष्ट हो जाऊँगा’ (पद - 30)। हिंसा, उग्रता और कठोरता का व्यवहार करने के लिए शिमौन और लेवी प्राणदंड के योग्य हैं (49:5-7 देखें)।
बदला लेना केवल शिमौन और लेवी के लिए मुश्किल ही नहीं था, बल्कि यह एक बार फिर हम सबके लिए प्रलोभन है। जब मैं अप्रसन्न होता हूँ, तो मुझे बदला चाहिए। पुराने नियम में, दंड को संतुलित रखा गया— ‘प्राण के बदले प्राण’, ‘आँख के बदले आँख’, ‘दाँत के बदले दाँत’, और इसी प्रकार आगे भी (निर्गमन 21:23-24)। यीशु (अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा यह संभव करते हैं) आज आपके संबंधों के लिए उच्च - कोटि का स्तर निर्धारित करते हैं। अपने शत्रुओं से प्रेम करो, और उन्हें क्षमा करो।
जॉयस मेयर, जो अक्सर उनके बचपन में हुए शोषण के विषय में कहती हैं, वे लिखती हैं, कि ‘क्या आप दीना की तरह निर्दोष और पीड़ित हैं? मैं आपको आश्वासन देती हूँ कि जीवन की बुरी परिस्थितियों में भी, परमेश्वर हमें क्षमा करने के लिए अनुग्रह देते हैं, जिससे हम जीवन में आगे बढ़ें’।
याकूब ने अपने घराने से कहा, ‘तुम्हारे बीच में जो पराये देवता हैं, उन्हें निकाल फेंको; और अपने को शुद्ध करो’ (उत्पत्ति 35:2)। परमेश्वर ने याकूब को दर्शन दिया (उसका नाम इस्राएल रखा, पद - 10) और कहा, ‘मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूँ; तू फूले - फले और बढ़े और तुझ से एक जाति वरन जातियों की एक मंडली भी उत्पन्न होगी’ (पद - 11)।
परमेश्वर की सामर्थ्य महान है। जैसा कि रिक वॉरेन कहते हैं, ‘सेवकाई में, निजी पवित्रता सार्वजनिक सामर्थ्य का स्रोत है।’ यह हम सभी के लिए सत्य है, फिर चाहें हम इसका उपयोग अपने परिवार में, काम के क्षेत्र में, समाज में या कलीसिया में करें। यदि हम चाहते हैं कि जगत में मसीह के लिए हम प्रभावशाली हों, तो हमें पवित्र रहने की ज़रूरत है।
प्रार्थना
प्रभु, मैं धन्यवाद करता हूँ कि मेरे जीवन के लिए परमेश्वर आपकी क्षमता विशाल है। धन्यवाद करता हूँ कि आप चाहते हैं कि मैं सच्चे उद्देश्य के साथ उच्च फलदायी जीवन बिताऊँ जो संसार में बदलाव लाएगा। सारी मुश्किलों को अनदेखा करते हुए मेरी क्षमता को परिपूर्ण करने में मेरी सहायता कीजिए, जिससे मैं तीस गुना, साठ गुना, और सौ गुना फल लाऊँ।
पिप्पा भी कहते है
'संकट के समय में क्यों छिपा रहता है?' (भजन संहिता 10:1)। अक्सर लगता है कि परमेश्वर दूर खड़े हैं और ऐसा नहीं कि वहाँ पर संकट पूर्ण बातें नहीं हो रही हैं। फिर भी उत्पत्ति 35:3 में याकूब कहता है, ‘प्रभु, जिसने संकट के दिन मेरी सुन ली, और जिस मार्ग से मैं चलता था, उस में मेरे संग रहा।’ हालाँकि कभी - कभी हमें लगता है कि वह नहीं हैं, पर वे हैं। हम जहाँ कहीं भी थे, वे हमारे संग थे।
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संदर्भ
नोट्स:
अबॉट क्रिस्टोफर जॅमिसन, फाइंडिंग हैपिनेस: मोनॅस्टिक स्टेप्स फोर ए फुलफुलिंग लाइफ, (फोनिक्स, 2009).
जॉयस मेयर, एवरीडे लाइफ बाइबल, (फेथवर्ड्स, 2013), पन्ना 59
रिक वारेन, @RickWarren, 10 December 2010, https://twitter.com/rickwarren/status/13199824941752321 \[Last accessed December 2015\]
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
संपादकीय नोट्स
‘नम्रता हमारे वास्तविक जीवन में उचित दृष्टिकोण है और वे यह भी मानते हैं कि हम अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हैं।’ (अबॉट क्रिस्टोफर जॅमिसन, फाइंडिंग हैपिनेस: मोनॅस्टिक स्टेप्स फोर ए फुलफुलिंग लाइफ, फोनिक्स, 2009).
‘क्या आप दीना की तरह निर्दोष और पीड़ित हैं? मैं आपको आश्वासन देती हूँ कि जीवन की बुरी परिस्थितियों में भी, परमेश्वर हमें क्षमा करने के लिए अनुग्रह देते हैं, जिससे हम जीवन में आगे बढ़ें’। जॉयस मेयर
‘सेवकाई में, निजी पवित्रता सार्वजनिक सामर्थ्य का स्रोत है।’ @RickWarren, 10 December 2010, https://twitter.com/rickwarren/status/13199824941752321 \[Last accessed December 2015\].