बाईबल के अनंत खजानों को कैसे खोजें
परिचय
बाईबल को पढ़ने के द्वारा मैंने पहली बार यीशु से मुलाकात की. तब से, मैंने अपने जीवन के हर दिन इसे पढ़ा है. यद्पि मैंने बाईबल के हर एक लेखांश को बहुत सी बार पढ़ा है, तब भी मैं नियमित रूप से नई चीजों को देख रहा हूँ और खोज रहा हूँ. बाईबल आपके लिए अनंत खजाने से भरी हुई है ताकि आप इसे पढ़ें और पचायें, और इसके द्वारा ही आप परमेश्वर से मुलाकात कर सकते हैं.
फिर भी, यह समझने में हमेशा एक आसान पुस्तक नहीं है. बाईबल को बेहतर समझने के लिए एक मुख्य सामग्री है भाषा को पहचानना और लेखक किस शैली का इस्तेमाल कर रहे हैं –साहित्य का प्रकार और इसमें लेखक क्या कहना चाहते हैं.
भजन संहिता 75:1-10
‘नष्ट मत कर’ नामक धुन पर संगीत निर्देशक के लिये आसाप का एक स्तुति गीत।
75हे परमेश्वर, हम तेरी प्रशंसा करते हैं!
हम तेरे नाम का गुणगान करते हैं!
तू समीप है और लोग तेरे उन अद्भत कर्मो का जिनको तू करता है, बखान करते हैं।
2 परमेश्वर, कहता है, “मैंने न्याय का समय चुन लिया,
मैं निष्पक्ष होकर के न्याय करूँगा।
3 धरती और धरती की हर वस्तु डगमगा सकती है और गिरने को तैयार हो सकती है,
किन्तु मैं ही उसे स्थिर रखता हूँ।
4 “कुछ लोग बहुत ही अभिमानी होते हैं,
वे सोचते रहते है कि वे बहुत शाक्तिशाली और महत्वपूर्ण है।
5 लेकिन उन लोगों को बता दो, ‘डींग मत हाँकों!’
‘इतने अभिमानी मत बने रह!’”
6 इस धरती पर सचुमच,
कोई भी मनुष्य नीच को महान नहीं बना सकता।
7 परमेश्वर न्याय करता है।
परमेश्वर इसका निर्णय करता है कि कौन व्यक्ति महान होगा।
परमेश्वर ही किसी व्यक्ति को महत्वपूर्ण पद पर बिठाता है। और किसी दूसरे को निची दशा में पहुँचाता है।
8 परमेश्वर दुष्टों को दण्ड देने को तत्पर है।
परमेश्वर के पास विष मिला हुआ मधु पात्र है।
परमेश्वर इस दाखमधु (दण्ड) को उण्डेलता है
और दुष्ट जन उसे अंतिम बूँद तक पीते हैं।
9 मैं लोगों से इन बातों का सदा बखान करूँगा।
मैं इस्राएल के परमेश्वर के गुण गाऊँगा।
10 मैं दुष्ट लोगों की शक्ति को छीन लूँगा,
और मैं सज्जनों को शक्ति दूँगा।
समीक्षा
शक्तिशाली अलंकार
कोई चीज 'सच' हो सकती है, 'शाब्दिक' हुए बिना. इस भजन में हम सच्चाई के उदाहरणों को देखते हैं जो कि अलंकार में व्यक्त किए गए हैं.
परमेश्वर का न्याय हमारे ब्रह्मांड की नींव है. आज के भजन में हमें परमेश्वर के न्याय के विषय में कम से कम चार अलंकार मिलते हैं.
- बुराई और इसके प्रभाव
भजनसंहिता के लेखक जानते थे, और हम भी जानते हैं कि पृथ्वी खंभों पर नहीं खड़ी है. वह सोच-समझकर अलंकारीय भाषा का उपयोग कर रहे हैं, जिसे इस तरह से पढ़े जाने की आवश्यकता है. यह कविता की भाषा है और यह पूरी तरह से 'शाब्दिक सच्चाई' की तरह ही सच है.
पृथ्वी का काँपना (व.3अ) और इसके लोग, यह बुराई के प्रभाव का अलंकार है.अनैतिकता पृथ्वी और समाज की स्थिरता को कमजोर करता है. प्रभु घोषणा करते हैं कि वह अनुग्रही रूप से सृष्टि को पकड़े रहते हैः 'मैं ही उसके खम्भों को स्थिर करता हूँ' (व.3ब).
- सामर्थ और इसकी परेशानियाँ
अ.'सींग' (व.4) सामर्थ का प्रतीक है. दुबारा अलंकारीय रूप से शब्द का इस्तेमाल किया गया है; यह कविता की भाषा है. परमेश्वर दुष्टों के सब सींगो (सामर्थ) को काट देते हैं, परंतु सत्यनिष्ठ के सींग (सामर्थ) ऊँचे करते हैं (व.10). सामर्थ आसानी से भ्रष्ट हो सकती है और अक्खड़पन को ला सकती है. परमेश्वर अक्खड़ व्यक्ति से कहते हैं, 'और घमंड मत करो' (व.4).
- सेवकाई और इसकी शक्ति
'परमेश्वर के हाथ' (व.8) का इस्तेमाल शक्ति और सामर्थ के एक प्रतीक के रूप में किया गया है. यह मानवरूपी भाषा हैः शब्द जिनका इस्तेमाल मानवीय रूप या गुणों को बताने के लिए किया गया है, ऐसी वस्तु के लिए जो कि मानवीय नहीं है.
जब हम सेवकाई में 'हाथों को रखते' हैं –हमारे हाथ अपने आपसे बहुत थोड़ा कर सकते हैं, लेकिन वह हमारे द्वारा परमेश्वर के सामर्थी काम का प्रतीक है.
- न्याय और यीशु
परमेश्वर के न्याय को 'एक प्याले' के समान बताना, दूसरा अलंकार है. 'यहोवा के हाथ में एक कटोरा है, जिसमें का दाखमधु झागवाला है; उसमें मसाला मिला है, और वह उसमें से ऊंडेलता है, निश्चय उसकी तलछट तक पृथ्वी के सब दुष्ट लोग पी जाएंगे' (व.8, एम.एस.जी).
क्रूस पर, यीशु ने अपने शरीर पर परमेश्वर के न्याय के कटोरे को ले लिया. उसने पहले ही इसकी घोषणा कर दी थी (मरकुस 10:38; लूका 22:42; यूहन्ना 18:11), और उस दंड को अपने ऊपर ले लिया जिसके हम योग्य थे.
प्रार्थना
हे परमेश्वर, हम आपका धन्यवाद करते हैं, हम आपके नाम का धन्यवाद करते हैं; क्योंकि आपका नाम प्रगट हुआ है (भजनसंहिता 75:1). आपका धन्यवाद क्योंकि एक दिन आप इस वश्व से सभी बुराईयों को दूर करेंगे, और भलाई और सत्यनिष्ठा हमेशा के लिए प्रबल होगी.
प्रेरितों के काम 13:13-41
पौलुस और बरनाबास का साइप्रस से प्रस्थान
13 फिर पौलुस और उसके साथी पाफुस से नाव के द्वारा पम्फूलिया के पिरगा में आ गये। किन्तु यूहन्ना उन्हें वहीं छोड़ कर यरूशलेम लौट आया। 14 उधर वे अपनी यात्रा पर बढ़ते हुए पिरगा से पिसिदिया के अन्ताकिया में आ पहुँचे।
फिर सब्त के दिन यहूदी आराधनालय में जा कर बैठ गये। 15 व्यवस्था के विधान और नबियों के ग्रन्थों का पाठ कर चुकने के बाद यहूदी प्रार्थना सभागार के अधिकारियों ने उनके पास यह संदेश कहला भेजा, “हे भाईयों, लोगों को शिक्षा देने के लिये तुम्हारे पास कहने को कोई और वचन है तो उसे सुनाओ।”
16 इस पर पौलुस खड़ा हुआ और अपने हाथ हिलाते हुए बोलने लगा, “हे इस्राएल के लोगों और परमेश्वर से डरने वाले ग़ैर यहूदियों सुनो: 17 इन इस्राएल के लोगों के परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को चुना था और जब हमारे लोग मिसरमें ठहरे हुए थे, उसने उन्हें महान् बनाया था और अपनी महान शक्ति से ही वह उनको उस धरती से बाहर निकाल लाया था। 18 और लगभग चालीस वर्ष तक वह जंगल में उनकी साथ रहा। 19 और कनान देश की सात जातियों को नष्ट करके उसने वह धरती इस्राएल के लोगों को उत्तराधिकार के रूप में दे दी। 20 इस सब कुछ में कोई लगभग साढ़े चार सौ वर्ष लगे।
“इसके बाद शमूएल नबी के समय तक उसने उन्हें अनेक न्यायकर्ता दिये। 21 फिर उन्होंने एक राजा की माँग की, सो परमेश्वर ने बिन्यामीन के गोत्र के एक व्यक्ति कीश के बेटे शाऊल को चालीस साल के लिये उन्हें दे दिया। 22 फिर शाऊल को हटा कर उसने उनका राजा दाऊद को बनाया जिसके विषय में उसने यह साक्षी दी थी, ‘मैंने यिशे के बेटे दाऊद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में पाया है, जो मेरे मन के अनुकूल है। जो कुछ मैं उससे कराना चाहता हूँ, वह उस सब कुछ को करेगा।’
23 “इस ही मनुष्य के एक वंशज को अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार परमेश्वर इस्राएल में उद्धारकर्ता यीशु के रूप में ला चुका है। 24 उसके आने से पहले यूहन्ना इस्राएल के सभी लोगों में मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार करता रहा है। 25 यूहन्ना जब अपने काम को पूरा करने को था, तो उसने कहा था, ‘तुम मुझे जो समझते हो, मैं वह नहीं हूँ। किन्तु एक ऐसा है जो मेरे बाद आ रहा है। मैं जिसकी जूतियों के बन्ध खोलने के लायक भी नहीं हूँ।’
26 “भाईयों, इब्राहीम की सन्तानो और परमेश्वर के उपासक ग़ैर यहूदियो! उद्धार का यह सुसंदेश हमारे लिए ही भेजा गया है। 27 यरूशलेम में रहने वालों और उनके शासकों ने यीशु को नहीं पहचाना। और उसे दोषी ठहरा दिया। इस तरह उन्होंने नबियों के उन वचनों को ही पूरा किया जिनका हर सब्त के दिन पाठ किया जाता है। 28 और यद्यपि उन्हें उसे मृत्यु दण्ड देने का कोई आधार नहीं मिला, तो भी उन्होंने पिलातुस से उसे मरवा डालने की माँग की।
29 “उसके विषय में जो कुछ लिखा था, जब वे उस सब कुछ को पूरा कर चुके तो उन्होंने उसे क्रूस पर से नीचे उतार लिया और एक कब्र में रख दिया। 30 किन्तु परमेश्वर ने उसे मरने के बाद फिर से जीवित कर दिया। 31 और फिर जो लोग गलील से यरूशलेम तक उसके साथ रहे थे वह उनके सामने कई दिनों तक प्रकट होता रहा। ये अब लोगों के लिये उसकी साक्षी हैं।
32 “हम तुम्हें उस प्रतिज्ञा के विषय में सुसमाचार सुना रहे हैं जो हमारे पूर्वजों के साथ की गयी थी। 33 यीशु को मर जाने के बाद पुनर्जीवित करके, उनकी संतानों के लिये परमेश्वर ने उसी प्रतिज्ञा को हमारे लिए पूराकिया है। जैसा कि भजन संहिता के दूसरे भजन में लिखा भी गया है:
‘तू मेरा पुत्र है,
मैं ने तुझे आज ही जन्म दिया है।’
34 और उसने उसे मरे हुओं में से जिला कर उठाया ताकि क्षय होने के लिये उसे फिर लौटाना न पड़े। उसने इस प्रकार कहा था:
‘मैं तुझे वे पवित्र और अटल आशीश दूँगा जिन्हें देने का वचन मैंने दाऊद को दिया था।’
35 इसी प्रकार एक अन्य भजन संहिता में वह कहता है:
‘तू अपने उस पवित्र जन को क्षय का अनुभव नहीं होने देगा।’
36 “फिर दाऊद अपने युग में परमेश्वर के प्रयोजन के अनुसार अपना सेवा-कार्य पूरा करके चिर-निद्रा में सो गया। उसे उसके पूर्वजों के साथ दफना दिया गया और उसका क्षय हुआ। 37 किन्तु जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं के बीच से जिला कर उठाया उसका क्षय नहीं हुआ। 38-39 सो हे भाईयों, तुम्हें जान लेना चाहिये कि यीशु के द्वारा ही पापों की क्षमा का उपदेश तुम्हें दिया गया है। और इसी के द्वारा हर कोई जो विश्वासी है, उन पापों से छुटकारा पा सकता है, जिनसे तुम्हें मूसा की व्यवस्था छुटकारा नही दिला सकती थी। 40 सो सावधान रहो, कहीं नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम पर न घट जाये:
41 ‘निन्दा करने वालो, देखो,
भोचक्के हो कर मर जाओ;
क्योंकि तुम्हारे युग में
एक कार्य ऐसा करता हूँ,
जिसकी चर्चा तक पर तुमको कभी परतीति नहीं होने की।’”
समीक्षा
ऐतिहासिक तथ्य
आप कैसे सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप क्षमा कर दिए गए हैं? आप कैसे जान सकते हैं कि मृत्यु अंत नहीं है? आप कैसे आश्वस्त हो सकते हैं कि आपको अनंत जीवन मिलेगा?
आप इन सभी के विषय में सुनिश्चित हो सकते हैं, जीवन, मृत्यु और यीशु की पुनरुत्थान के विषय में ऐतिहासिक तथ्यों के कारण.
लूका इतिहास लिख रहे थे. उनके दो खंडो की शुरुवात में (लूका और प्रेरितों के कार्य), लूका कहते हैं कि 'आँखो देखी गवाही' की घटना का प्रमाण उन्हें सौंपा गया है. उन्होंने सावधानीपूर्वक सभी चीजों की जाँच-पड़ताल की और क्रमानुसार 'घटनाओं का विवरण' लिख दिया, ताकि 'तू यह जान ले कि वे बातें जिनकी तू ने शिक्षा पाई है, कैसे अटल हैं' (लूका 1:3-4).
आज का लेखांश पौलुस की यात्रा के इतिहास का वर्णन करता है और उनके भाषण को बताता है. इसी तरह से, उनके भाषण में, पौलुस ऐतिहासिक तथ्यों के विषय में बताते हैं. वह परमेश्वर के लोगों के इतिहास को बताते हैः निर्गमन,जंगल में वर्ष, कनान पर जीत, न्यायों और राजाओं के ऐतिहासिक तथ्य – सभी दाऊद तक, जिनके वंश से ऐतिहासिक यीशु आएँगे.
तब पौलुस मृत्यु के ऐतिहासिक तथ्य पर ध्यान देते हैं, विशेष रूप से, यीशु के पुनरुत्थान पर. वह पुनरुत्थान के विषय में चार कथन बताते हैं:
- परमेश्वर का कार्य
अ.'उसे क्रूस पर से उतारकर कब्र में रखा. परन्तु परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया' (प्रेरितों के कार्य 13:29-30, एम.एस.जी). पुराने नियम में परमेश्वर ने जो वायदा किया था, उसे उन्होंने नये नियम में पूरा किया, 'यीशु को मरे हुओं में से जिलाने' के द्वारा (व.33). पुराने नियम में इसके बारे में भविष्यवाणी की गई थी (व.34). 'उन्होंने यीशु को मृत्यु में से जीवित किया, ठीक वैसा जैसा कि दूसरे भजन में बताया गया है' (व.33, एम.एस.जी).
- ऐतिहासिक तथ्य
'तथ्य कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जीवित किया...' (व.34). पुनरुत्थान एक अलंकार नहीं है. यह ऐसा कुछ नहीं है जो कि हमारे हृदय में केवल जीवित रहते हुए अनुभव किया जा सकता है. पौलुस कहते हैं कि यह एक ऐतिहासिक तथ्य है. यीशु का भौतिक पुनरुत्थान वास्तव में हुआ. यीशु मृत्यु में से सदेह जीवित हुए.
'और वह उन्हें जो उसके साथ गलील से यरूशलेम आए थे, बहुत दिनों तक दिखाई देता रहा; लोगों के सामने अब वे ही उसके गवाह हैं' (व.31, एम.एस.जी.).
- अद्वितीय घटना
यीशु का पुनरुत्थान इतिहास में एक अद्वितीय घटना थी. पौलुस यीशु और दाऊद में अंतर स्पष्ट करते हैं, जो कि 'कब्र में, मिट्टी और राख में, लंबे समय से थे' (व.3ब, एम.एस.जी). दूसरो को शायद से चेतना में लाया गया (और बाद में वह मर गए), लेकिन यीशु का पुनरुत्थान हुआ और उनका शरीर कभी सड़ा नहीः ' उसके इस रीती से मरे हुओं में से जिलाने के विषय में भी कि वह कभी न सड़े' (व.34अ, एम.एस.जी).
- अच्छा समाचार
यह अच्छा समाचार है (व.32) जिसका पौलुस ने प्रचार किया. पुनरुत्थान का अर्थ है कि क्रूस प्रभावी था, और पापों की क्षमा संभव है (व.38). जो कोई विश्वास करता है वह निर्दोष ठहरता है (व.39). आपके अतीत से निपट लिया गया है और आप परमेश्वर के साथ एक सही संबंध में जी सकते हैं.
पुनरूत्थान के ऐतिहासिक तथ्य का आपके जीवन और आपके भविष्य के लिए बहुत महत्व है. यदि यीशु मरे, गाड़े गए और परमेश्वर ने उन्हें जीवित किया, तो इसका अर्थ है कि एक दिन, जो लोग उनमें विश्वास करते हैं और मर चुके हैं, वह अनंत जीवन के लिए परमेश्वर के द्वारा जीवित किए जाएँगे (1कुरिंथियो 15 और 1 थिस्सलुनिकियों 4:13-18 देखें).
प्रार्थना
पुनरूत्थान के अद्भुत अच्छे समाचार के लिए प्रभु आपका धन्यवाद. आपका धन्यवाद क्योंकि मेरे पाप क्षमा किए गए हैं, और मैं निर्दोष ठहरा हूँ और अब मुझे मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं है. दाऊद की तरह, मेरी सहायता कीजिए कि अपनी पीढ़ी में आपके उद्देश्य को पूरा करुं, इस संदेश का प्रचार लोगों के सामने करते हुए.
1 राजा 6:1-7:22
सुलैमान मन्दिर बनाता है
6तब सुलैमान ने मन्दिर बनाना आरम्भ किया। यह इस्राएल के लोगों द्वारा मिस्र छोड़ने के चार सौ अस्सीवाँ वर्ष बाद था। यह राजा सुलैमान के इस्राएल पर शासन के चौथे वर्ष में था। यह वर्ष के दूसरे महीने जिव के माह में था। 2 मन्दिर नब्बे फुट लम्बा, तीस फुट चौड़ा और पैंतालीस फुट ऊँचा था। 3 मन्दिर का द्वार मण्डप तीस फुट लम्बा और पन्द्रह फुट चौड़ा था। यह द्वारमण्डप मन्दिर के ही मुख्य भाग के सामने तक फैला था। इसकी लम्बाई मन्दिर की चौड़ाई के बराबर थी। 4 मन्दिर में संकरी खिड़कियाँ थीं। ये खिड़कियाँ बाहर की ओर संकरी और भीतर की ओर चौड़ी थीं। 5 तब सुलैमान ने मन्दिर के मुख्य भाग के चारों ओर कमरों की एक पंक्ति बनाई। ये कमरे एक दूसरे की छत पर बने थे। कमरों की यह पंक्ति तीन मंजिल ऊँची थी। 6 कमरे मन्दिर की दीवार से सटे थे किन्तु उनकी शहतीरें उसकी दीवार में नहीं घुसी थीं। शिखर पर, मन्दिर की दीवार पतली हो गई थी। इसलिये उन कमरों की एक ओर की दीवार उसके नीचे की दीवार से पतली थी। नीचे की मंजिल के कमरे साढ़े सात फुट चौड़े थे। बीच की मंजिल के कमरे नौ फुट चौड़े थे। उसके ऊपर के कमरे दस—बारह फुट चौड़े थे। 7 कारीगरों ने दीवारों को बनाने के लिये बड़े पत्थरों का उपयोग किया। कारीगरों ने उसी स्थान पर पत्थरों को काटा जहाँ उन्होंने उन्हें जमीन से निकाला। इसलिए मन्दिर में हथौड़ी, कुल्हाड़ियों और अन्य किसी भी लोहे के औजार की खटपट नहीं हुई।
8 नीचे के कमरों का प्रवेश द्वार मन्दिर के दक्षिण की ओर था। भीतर सीढ़ियाँ थीं जो दूसरे मंजिल के कमरों और तब तीसरे मंजिल के कमरों तक जाती थी। 9 इस प्रकार सुलैमान ने मन्दिर बनाना पूरा किया। मन्दिर का हर एक भाग देवदारु के तख्तों से मढ़ा गया था। 10 सुलैमान ने मन्दिर के चारों ओर कमरों का बनाना भी पूरा किया। हर एक मंजिल साढ़े सात फुट ऊँची थी। उन कमरों की शहतीरें मन्दिर को छूती थीं।
11 यहोवा ने सुलैमान से कहा, 12 “यदि तुम मेरे सभी नियमों और आदेशों का पालन करोगे तो मैं वह सब करूँगा जिसके लिये मैंने तुम्हारे पिता दाऊद से प्रतिज्ञा की थी 13 और मैं इस्राएल के लोगों को कभी छोड़ूँगा नहीं।”
14 इस प्रकार सुलैमान ने मन्दिर का निर्माण पूरा किया। 15 मन्दिर के भीतर पत्थर की दीवारें, देवदारु के तख्तों से मढ़ी गई थीं। देवदारु के तख्ते फर्श से छत तक थे। पत्थर का फर्श चीड़ के तख्तों से ढका था। 16 उन्होंने मन्दिर के पिछले गहरे भाग में एक कमरा तीस फुट लम्बा बनाया। उन्होंने इस कमरे की दीवारों को देवदारु के तख्तों से मढ़ा। देवदारू के तख्ते फर्श से छत तक थे। यह कमरा सर्वाधिक पवित्र स्थान कहा जाता था। 17 सर्वाधिक पवित्र स्थान के सामने मन्दिर का मुख्या भाग था। यह कमरा साठ फुट लम्बा था। 18 उन्होंने इस कमरे की दीवारों को देवदारू के तख्तों से मढ़ा, दीवार का कोई भी पत्थर नहीं देखा जा सकता था। उन्होंने फूलों और कद्दू के चित्र देवदारु के तख्तों में नक्काशी की।
19 सुलैमान ने मन्दिर के पीछे भीतर गहरे कमरे को तैयार किया। यह कमरा यहोवा के साक्षीपत्र के सन्दूक के लिये था। 20 यह कमरा तीस फुट लम्बा तीस फुट चौड़ा और तीस फुट ऊँचा था। 21 सुलैमान ने इस कमरे को शुद्ध सोने से मढ़ा। उसने इस कमरे के सामने एक सुगन्ध वेदी बनाई। उसने वेदी को सोने से मढ़ा और उसके चारों ओर सोने की जंजीरें लपेटीं। 22 सारा मन्दिर सोने से मढ़ा था और सर्वाधिक पवित्र स्थान के सामने वेदी सोने से मढ़ी गई थी।
23 कारीगरों ने पंख सहित दो करूब (स्वर्गदूतों) की मूर्तियाँ बनाईं। कारीगरों ने जैतून की लकड़ी से मूर्तियाँ बनाई। ये करूब (स्वर्गदूत) सर्वाधिक पवित्र स्थान में रखे गये। हर एक स्वर्गदूत पन्द्रह फुट ऊँचा था। 24-26 वे दोनों करुब(स्वर्गदूत) एक ही माप के थे और एक ही शैली में बने थे। हर एक करूब(स्वर्गदूत) के दो पंख थे। हर एक पंख साढ़े सात फुट लम्बा था। एक पंख के सिरे से दूसरे पंख के सिरे तक पन्द्रह फुट था और हर एक करूब(स्वर्गदूत) पन्द्रह फुट ऊँचा था। 27 ये करूब (स्वर्गदूत) सर्वाधिक पवित्र स्थान में रखे गए थे। वे एक दूसरे की बगल में खड़े थे। उनके पंख एक दूसरे को कमरे के मध्य में छूते थे। अन्य दो पंख हर एक बगल की दीवार को छूते थे। 28 दोनों करूब(स्वर्गदूत) सोने से मढ़े गए थे।
29 मुख्य कक्ष और भीतरी कक्ष के चारों ओर की दीवारों पर करूब (स्वर्गदूतों) ताड़ के वृक्षों और फूल के चित्र उकेरे गए थे। 30 दोनों कमरों की फर्श सोने से मढ़ी गई थी।
31 कारीगरों ने जैतून की लकड़ी के दो दरवाजे बनाये। उन्होंने उन दोनों दरवाजों को सर्वाधिक पवित्र स्थान के प्रवेश द्वार में लगाया। दरवाजों के चारों ओर की चौखट पाँच पहलदार बनी थी। 32 उन्होंने दोनों दरवाजों को जैतून की लकड़ी का बनाया। कारीगरों ने दरवाजों पर करूब (स्वर्गदूतों), ताड़ के वृक्षों और फूलों के चित्रों को उकेरा। तब उन्होंने दरवाजों को सोने से मढ़ा।
33 उन्होंने मुख्य कक्ष में प्रवेश के लिये भी दरवाजे बनाये। उन्होंने एक वर्गाकार दरवाजे की चौखट बनाने के लिये जैतून की लकड़ी का उपयोग किया। 34 तब उन्होने दरवाजा बनाने के लिये चीड़ की लकड़ी का उपयोग किया। 35 वहाँ दो दरवाजे थे। हर एक दरवाजे के दो भाग थे, अत: दोनों दरवाजे मुड़कर बन्द होते थे। उन्होंने दरवाजों पर करूब (स्वर्गदूत) ताड़ के वृक्षों और फूलों के चित्रों को उकेरा। तब उन्होंने उन्हें सोने से मढ़ा।
36 तब उन्होंने भीतरी आँगन बनाया। उन्होंने इस आँगन के चारों ओर दीवारें बनाईं। हर एक दीवार कटे पत्थरों की तीन पँक्तियों और देवदारू की लकड़ी की एक पंक्ति से बनाई गई।
37 उन्होंने वर्ष के दूसरे महीने जिब माह में मन्दिर का निर्माण आरम्भ किया। इस्राएल के लोगों पर सुलैमान के शासन के चौथे वर्ष में यह हुआ। 38 मन्दिर का निर्माण वर्ष के आठवें महीने बूल माह मे पूरा हुआ। लोगों पर सुलैमान के शासन के ग्यारहवे वर्ष में यह हुआ था। मन्दिर के निर्माण में सात वर्ष लगे। मन्दिर ठीक उसी प्रकार बना था जैसा उसे बनाने की योजना थी।
सुलैमान का महल
7राजा सुलैमान ने अपने लिये एक महल भी बनवाया। सुलैमान के महल के निर्माण को पूरा करने में तेरह वर्ष लगे। 2 उसने उस इमारत को भी बनाया जिसे, “लबानोन का वन” कहा जाता है। यह डेढ़ सौ फुट लम्बा, पचहत्तर फुट चौड़ा, और पैंतालीस फुट ऊँचा था। इसमें देवदारू के स्तम्भों की चार पंक्तियाँ थीं। हर एक पंक्ति के सिरे पर एक देवदारु का शीर्ष था। 3 स्तम्भों की पंक्तियों के आर पार जाती हुई देवदारु की शहतीरें थीं। उन्होंने देवदारू के तख्तों को छत के लिये इन शहतीरों पर रखा था। स्तम्भों के हर एक विभाग के लिये पन्द्रह शहतीरें थीं। सब मिलाकर पैंतालीस शहतीरें थीं। 4 बगल की हर एक दीवार में खिड़कियों की तीन पंक्तियाँ थीं। खिड़कियाँ परस्पर आमने—सामने थीं। 5 हर एक के अन्त में तीन दरवाजें थे। सभी दरवाजों के द्वार और चौखटे वर्गाकार थें।
6 सुलैमान ने “स्तम्भों का प्रवेश द्वार मण्डप” भी बनाया। यह पच्हत्तर फुट लम्बा और पैंतालीस फुट चौड़ा था। प्रवेश द्वारा मण्डप के साथ साथ स्तम्भों पर टिकी एक छत थी।
7 सुलैमान ने एक सिंहासन कक्ष बनाया जहाँ वह लोगों का न्याय करता था। वह इसे “न्याय महाकक्ष” कहता था। कक्ष फर्श से लेकर छत तक देवदारू से मढ़ा था।
8 जिस भवन में सुलैमान रहता था, वह न्याय महाकक्ष के पीछ दूसरे आँगन में था। यह महल वैसे ही बना था जैसा न्याय महाकक्ष बना था। उसने अपनी पत्नी जो मिस्र के राजा की पुत्री थी, के लिये भी वैसा ही महल बनाया।
9 ये सभी इमारतें बहुमूल्य पत्थर के टुकडों से बनी थीं। ये पत्थर समुचित आकार में आरे से काटे गये थे। ये बहुमूल्य पत्थर नींव से लेकर दीवार की ऊपरी तह तक लगे थे। आँगन के चारों ओर की दीवार भी बहुमूल्य पत्थर के टुकड़ों से बनी थी। 10 नींव विशाल बहुमूल्य पत्थरों से बनीं थीं। कुछ पत्थर पन्द्रह फुट लम्बे थे, और अन्य बारह फुट लम्बे थे। 11 उन पत्थरों के शीर्ष पर अन्य बहुमूल्य पत्थर और देवदारू की शहतीरें थीं। 12 महल के आँगन, मन्दिर के आँगन और मन्दिर के प्रवेश द्वार मण्डप के चारों ओर दीवारें थीं। वे दीवारें पत्थर की तीन पंक्तियों और देवदारु लकड़ी की एक पंक्ति से बनीं थीं।
13 राजा सुलैमान ने हीराम नामक व्यक्ति के पास सोर में संदेश भेजा। सुलैमान हीराम को यरूशलेम लाया। 14 हीराम की माँ नप्ताली परिवार समूह से इस्राएली थी। उसका मृत पिता सोर का था। हीराम काँसे से चीज़ें बनाता था। वह बहुत कुशल और अनुभवी कारीगर था। अत: राजा सुलैमान ने उसे आने के लिये कहा और हीराम ने उसे स्वीकार किया। इसलिये राजा सुलैमान ने हीराम को काँसे के सभी कामों का अधीक्षक बनाया। हीराम ने काँसे से निर्मित सभी चीज़ों को बनाया।
15 हीराम ने काँसे के दो स्तम्भ बनाए। हर एक स्तम्भ सत्ताईस फुट लम्बा और अट्ठारह फुट गोलाई वाला था। स्तम्भ खोखले थे और धातु तीन इंच मोटी थी।
16 हीराम ने दो काँसे के शीर्ष भी बनाए जो साढ़े सात फुट ऊँचे थे। हीराम ने इन शीर्षों को स्तम्भों के सिरों पर रखा। 17 तब उसने दोनों स्तम्भों के ऊपर के शीर्षों को ढकने के लिये जंजीरों के दो जाल बनाए। 18 तब उसने अलंकरण की दो पंक्तियाँ बनाईं जो अनार की तरह दिखते थे। उन्होंने इन काँसे के अनारों को हर एक स्तम्भ के जालों में, स्तम्भों के सिरों के शीर्षों को ढकने के लिये रखा। 19 साढ़े सात फुट ऊँचे स्तम्भों के सिरों के शीर्ष फूल के आकार के बने थे। 20 शीर्ष स्तम्भों के सिरों पर थे। वे कटोरे के आकार के जाल के ऊपर थे। उस स्थान पर शीर्षों के चारों ओर पंक्तियों में बीस अनार थे। 21 हीराम ने इन दोनों काँसे के स्तम्भों को मन्दिर के प्रवेश द्वार पर खड़ा किया। द्वार के दक्षिण की ओर एक स्तम्भ तथा द्वार के उत्तर की ओर दूसरा स्तम्भ खड़ा किया गया। दक्षिण के स्तम्भ का नाम याकीन रखा गया। उत्तर के स्तम्भ का नाम बोआज रखा गया। 22 उन्होंने फूल के आकार के शीर्षों को स्तम्भों के ऊपर रखा। इस प्रकार दोनों स्तम्भों पर काम पूरा हुआ।
समीक्षा
प्रतीकात्मक प्रस्तुतिकरण
क्या आपने कभी आश्चर्य किया है कि क्या परमेश्वर सच में आपके जीवन के हर विवरण में रूचि रखते हैं? जैसा कि हमने मंदिर के निर्माण के लिए बहुमूल्य निर्देशों को पढ़ा, हम देखते हैं कि परमेश्वर ने कितनी सावधानी से उस महान मंदिर को तैयार किया, इसका पूर्वानुमान किया और इसे आकार दिया, जो कि नये नियम में प्रकट हुआ. यदि परमेश्वर एक ईमारत के विवरण के विषय में इतनी चिंता करते हैं, तो आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि वह आपके जीवन के विषय में और भी अधिक रूचि रखते हैं. यदि आपको किसी वस्तु से अंतर पड़ता है, तो परमेश्वर को इससे अंतर पड़ता है.
सामान्य प्राणियों या पदार्थो का अध्ययन या व्याख्या प्रतीकात्मक प्रस्तुतिकरण के विषय में है. मसीहों के रूप में पुराने नियम के विषय में यह हमारी समझ का एक मुख्य भाग है. नये नियम की कुछ महान सच्चाईयाँ, उद्धार के बारे में पुराने नियम के इतिहास में बताये गए हैं. उदाहरण के लिए, आदम को एक प्रकार के मसीह के रूप में बताया गया है (रोमियो 5:14, एन.ए.एस.बी.).
पुराने नियम में मंदिर को नये नियम में (परमेश्वर के लोग) मंदिर के 'एक प्रकार' के रूप में देखा जा सकता था. इस लेखांश में, हमें मंदिर का एक वर्णन दिया गया है, जिसे बनाने में सुलैमान को सात वर्ष लगे (1राजाओं 6:38). यह पृथ्वी पर परमेश्वर की उपस्थिति के लिए निवासस्थान बनने के लिए डिजाईन किया गया थाः 'मैं व्यक्तिगत रूप से निवास करुँगा' (व.13, एम.एस.जी).
इसलिए, श्रेष्ठता सबसे महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह परमेश्वर की उपस्थिति का स्थान था. परमेश्वर का नाम दाव पर था. उन्होंने वह सब किया जो वह संभव रूप से कर सकते थे. यह 'चमक रहा था' (व.22, एम.एस.जी) और 'खर्च में कोई कमी नहीं थी' (7:9 एम.एस.जी). यदि श्रेष्ठता को वे इतना मूल्य देते थे, तो हमारे लिए यह और भी अधिक मूल्यवान होना चाहिए, क्योंकि (7: 9) परमेश्वर की उपस्थिति हमारे अंदर है.
यह बात जानने योग्य है कि परमेश्वर जल्दी में नहीं है! इस्रालियों के मिस्र में से बाहर आने के बाद चार सौ अस्सी वर्ष में, सुलैमान के शासनकाल के चौथे वर्ष में..उन्होंने परमेश्वर के मंदिर का निर्माण कार्य शुरु किया (6:1).
पुराने नियम में मंदिर परमेश्वर के लोगों की ओर इशारा करता है. हम परमेश्वर का मंदिर हैं. परमेश्वर हममें से हर एक में रहते हैं. आपका शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर है (1कुरिंथियो 6:19). आज चर्च परमेश्वर का पवित्र मंदिर है, जिसमें परमेश्वर अपनी आत्मा के द्वारा रहते हैं (इफीसियों 2:21-22). यह आज परमेश्वर का 'घर' है
प्रार्थना
परमेश्वर, मेरी आँखे खोलिये ताकि आपके वचन में अनंत खजाने को देख सकूँ. बाईबल की सच्चाई को पढ़ने, चिह्न लगाने, सीखने और अंदर से पचाने में मेरी सहायता करें, जो कि इसके विभिन्न भाषाओं में और चित्रों में व्यक्त किए गए हैं. इन सबसे अधिक, मेरी सहायता करें कि क्रूस पर चढ़ाए गए और मृत्यु में से जीवित हुए यीशु को देख सकूँ – जिनके विषय में पूरी बाईबल लिखी गई है.
पिप्पा भी कहते है
प्रेरितों के कार्य 13:38ब-39
'तुम जान लो कि इसी के द्वारा पापों की क्षमा का समाचार तुम्हें दिया जाता है; और जिन बातों में तुम मूसा की व्यवस्था के द्वारा निर्दोष नहीं ठहर सकते थे, उन्हीं सब में हर एक विश्वास करने वाला उसके द्वारा निर्दोष ठहरता है.'
हम कभी भी पर्याप्त अच्छे नहीं हो सकते हैं, चाहे हम कितनी भी कोशिश कर लें. क्रूस का चमत्कार यह है कि हर चीज को पूरी तरह से क्षमा किया जा सकता है.
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संदर्भ
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी', बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।