दिन 172

हृदय से अंतर पड़ता है

बुद्धि नीतिवचन 15:11-20
नए करार प्रेरितों के काम 14:8-28
जूना करार 1 राजा 8:22-9:9

परिचय

पॉल स्वाला जाम्बिया में बंदीगृह में थे. उन पर गद्दारी का आरोप लगाया गया था. उन पर आरोप लगा था कि वह सरकार का तख्ता पलटने में शामिल थे. बंदीगृह में उन्होंने अल्फा शुरु किया. वह यीशु से मिले और परमेश्वर से माँगा कि वह उन्हें बचायें. उन्होंने कहा, 'मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और मेरा हृदय शांति से भर गया.'

असाधारण रूप से, आरोपित उन्हत्तर के समूह में से वह एकमात्र व्यक्ति थे, जो रिहा हुए. रॉयल एल्बर्ट हॉल में हमारी लीडरशिप कॉन्फरेंस में, पिछले वर्ष उन्होंने अपनी कहानी बतायी. उनके चेहरे पर परमेश्वर के आनंद की चमक थी. अब वह जाम्बिया के हर बंदीगृह में जाकर यीशु मसीह के सुसमाचार के बारे में बताते हैं और बताते हैं कि कैसी बुरी स्थिति में भी, यीशु आशा ला सकते हैं और हृदयों को बदल सकते हैं. उन्होंने कहा, 'मैंने यीशु जैसा दोस्त कहीं नहीं देखा.' परमेश्वर ने सच में उनके हृदय को आनंद से भर दिया है.

शब्द 'हृदय' आज के लेखांश में कम से कम सत्रह बार दिखाई देता है. 'हृदय' के विषय में इब्रानी समझ में भावनाएँ शामिल हैं, लेकिन इसमें दिमाग, विवेक और इच्छा भी शामिल है. इसका अर्थ है सबकुछ जो आपके अंदर चल रहा है.

सभी पुरुष और महिलाएँ जिन्हें महान रूप से इस्तेमाल करने के लिए परमेश्वर ने चुना, उनकी कमजोरियां थी और उन्होंने गलतियाँ की. लेकिन परमेश्वर ने देखा कि उनके हृदय परमेश्वर की ओर फिर गए. यह आपका हृदय है जिससे अंतर पड़ता है. आपका हृदय 'परमेश्वर के सामने खुला हुआ है' (नीतिवचन 15:11). केवल परमेश्वर हर मनुष्य के हृदय को देखते और जानते हैं (1राजा 8:39).

बुद्धि

नीतिवचन 15:11-20

11 जबकि यहोवा के समझ मृत्यु और विनाश के रहस्य खुले पड़े हैं।
 सो निश्चित रूप से वह जानता है कि लोगों के दिल में क्या हो रहा है।

12 उपहास करने वाला सुधार नहीं अपनाता है।
 वह विवेकी से परामर्श नहीं लेता।

13 मन की प्रसन्नता मुख को चमकाती,
 किन्तु मन का दर्द आत्मा को कुचल देता है।

14 जिस मन को भले बुरे का बोध होता है
 वह तो ज्ञान की खोज में रहता है किन्तु मूर्ख का मन, मूढ़ता पर लगता है।

15 कुछ गरीब सदा के लिये दुःखी रहते हैं,
 किन्तु प्रफुल्लित चित उत्सव मनाता रहता है।

16 बैचेनी के साथ प्रचुर धन उत्तम नहीं,
 यहोवा का भय मानते रहने से थोड़ा भी धन उत्तम है।

17 घृणा के साथ अधिक भोजन से,
 प्रेम के साथ थोड़ा भोजन उत्तम है।

18 क्रोधी जन मतभेद भड़काता रहता है,
 जबकि सहनशील जन झगड़े को शांत करता।

19 आलसी की राह कांटों से रुधी रहती,
 जबकि सज्जन का मार्ग राजमार्ग होता है।

20 विवेकी पुत्र निज पिता को आनन्दित करता है,
 किन्तु मूर्ख व्यक्ति निज माता से घृणा करता।

समीक्षा

आपका चेहरा आपके हृदय को दिखाता है

कुछ लोगों का चेहरा प्रेम और आनंद दर्शाता है. उनकी मुस्कान हमें आराम दिलाती है और हमें उत्साहित करती है. दूसरों के चेहरे पर शायद से चिड़चिड़ा भाव होता है और यह हमें बहुत ही असुविधाजनक बना सकता है.

आपका चेहरा अक्सर आपके हृदय को दिखाता है. 'मन आनंदित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है' (व.13). मुझे याद है कि एक उपदेशक ने कहा था कि जो जीवन हमने जीया है वह आखिर में हमारे चेहरे पर दिखाई देता है और, इसलिए चालीस वर्ष से अधिक की उम्र वाले सभी लोग अपने चेहरे के लिए उत्तरदायी हैं'!

यहाँ तक ज्ब आप अपने आस-पास के लोगों से अपने हृदय को छिपा लेते हैं, तब भी परमेश्वर इसे देख सकते हैं: 'जब कि अधोलोक और विनाशलोक यहोवा के सामने खुले रहते हैं, तो निश्चय मनुष्यों के मन भी' (व.11, एम.एस.जी).

परमेश्वर आपके हृदय में रूचि रखते हैं. यह लेखांश कुछ बुद्धिमान सलाह देते हैं कि कैसे आप अपने हृदय को भोजन दे सकते हैं:'समझ वाले का मन ज्ञान की खोज में रहता है' (व.14); 'जिसका मन प्रसन्न रहता है, वह मानो नित्य भोज में जाता है' (व.15ब, एम.एस.जी). लेखक एक उदाहरण देते हैं कि कैसे अंदर की वस्तु, बाहरी वस्तु से कितनी अधिक महत्वपूर्ण हैः 'प्रेम वाले घर में सागपात का भोजन, बैर वाले घर में पले हुए बैल का माँस खाने से उत्तम है' (व.17, एम.एस.जी). प्रेम और मित्रता शाम को मजेदार बनाती है. भोजन की गुणवत्ता कम महत्वपूर्ण है.

प्रार्थना

धन्यवाद परमेश्वर, क्योंकि आप बाहरी दिखावे के परे मेरे हृदय में देखते हैं. मेरे अंदर अपनी आत्मा के द्वारा, मेरे हृदय को आनंद से भर दीजिए. होने दीजिए कि मेरा चेहरा उस प्रेम और आनंद को दर्शायें जिसे आपने मेरे हृदय में रखा है और जिस किसी से मैं मिलता हूँ उसे उत्साह और निर्भीकता मिले.

नए करार

प्रेरितों के काम 14:8-28

लिस्तरा और दिरबे में पौलुस

8 लिस्तरा में एक व्यक्ति बैठा हुआ था। वह अपने पैरों से अपंग था। वह जन्म से ही लँगड़ा था, चल फिर तो वह कभी नहीं पाया। 9 इस व्यक्ति ने पौलुस को बोलते हुए सुना था। पौलुस ने उस पर दृष्टि गड़ाई और देखा कि अच्छा हो जाने का विश्वास उसमें है। 10 सो पौलुस ने ऊँचे स्वर में कहा, “अपने पैरों पर सीधा खाड़ा हो जा!” सो वह ऊपर उछला और चलने-फिरने लगा।

11 पौलुस ने जो कुछ किया था, जब भीड़ ने उसे देखा तो लोग लुकाउनिया की भाषा में पुकार कर कहने लगे, “हमारे बीच मनुष्यों का रूप धारण करके, देवता उतर आये है!” 12 वे बरनाबास को “ज़ेअस” और पौलुस को “हिरमेस” कहने लगे। पौलुस को हिरमेस इसलिये कहा गया क्योंकि वह प्रमुख वक्ता था। 13 नगर के ठीक बाहर बने ज़ेअस के मन्दिर का याजक नगर द्वार पर साँड़ों और मालाओं को लेकर आ पहुँचा। वह भीड़ के साथ पौलुस और बरनाबास के लिये बलि चढ़ाना चाहता था।

14 किन्तु जब प्रेरित बरनाबास और पौलुस ने यह सुना तो उन्होंने अपने कपड़े फाड़ डाले और वे ऊँचे स्वर में यह कहते हुए भीड़ में घुस गये, 15 “हे लोगो, तुम यह क्यों कर रहे हो? हम भी वैसे ही मनुष्य हैं, जैसे तुम हो। यहाँ हम तुम्हें सुसमाचार सुनाने आये हैं ताकि तुम इन व्यर्थ की बातों से मुड़ कर उस सजीव परमेश्वर की ओर लौटो जिसने आकाश, धरती, सागर और इनमें जो कुछ है, उसकी रचना की।

16 “बीते काल में उसने सभी जातियों को उनकी अपनी-अपनी राहों पर चलने दिया। 17 किन्तु तुम्हें उसने स्वयं अपनी साक्षी दिये बिना नहीं छोड़ा। क्योंकि उसने तुम्हारे साथ भलाइयाँ की। उसने तुम्हें आकाश से वर्षा दी और ऋतु के अनुसार फसलें दी। वही तुम्हें भोजन देता है और तुम्हारे मन को आनन्द से भर देता है।”

18 इन वचनों के बाद भी वे भीड़ को उनके लिये बलि चढ़ाने से प्रायः नहीं रोक पाये।

19 फिर अन्ताकिया और इकुनियुम से आये यहूदियों ने भीड़ को अपने पक्ष में करके पौलुस पर पथराव किया और उसे मरा जान कर नगर के बाहर घसीट ले गये। 20 फिर जब शिष्य उसके चारों ओर इकट्ठे हुए, तो वह उठा और नगर में चला आया और फिर अगले दिन बरनाबास के साथ वह दिरबे के लिए चल पड़ा।

सीरिया के अन्ताकिया को लौटना

21-22 उस नगर में उन्होंने सुसमाचार का प्रचार करके बहुत से शिष्य बनाये। और उनकी आत्माओं को स्थिर करके विश्वास में बने रहने के लिये उन्हें यह कह कर प्रेरित किया “हमें बड़ी यातनाएँ झेल कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना है,” वे लिस्तरा, इकुनियुम और अन्ताकिया लौट आये। 23 हर कलीसिया में उन्होंने उन्हें उस प्रभु को सौंप दिया जिसमें उन्होंने विश्वास किया था।

24 इसके पश्चात पिसिदिया से होते हुए वे पम्फूलिया आ पहुँचे। 25 और पिरगा में जब सुसमाचार सुना चुके तो इटली चले गये। 26 वहाँ से वे अन्ताकिया को जहाज़ द्वारा गये जहाँ जिस काम को अभी उन्होंने पूरा किया था, उस काम के लिये वे परमेश्वर के अनुग्रह को समर्पित हो गये।

27 सो जब वे पहुँचे तो उन्होंने कलीसिया के लोगों को इकट्ठा किया और परमेश्वर ने उनके साथ जो कुछ किया था, उसका विवरण कह सुनाया। और उन्होंने घोषणा की कि परमेश्वर ने विधर्मियों के लिये भी विश्वास का द्वार खोल दिया है। 28 फिर अनुयायियों के साथ वे बहुत दिनों तक वहाँ ठहरे रहे।

समीक्षा

बाहरी परिस्थितियों के बावजूद आपका हृदय आनंद से भर सकता है

आनंद हृदय से आता है और यह आवश्यकरूप से आपकी बाहरी परिस्थितियों से जुड़ा हुआ नहीं है. कभी – कभी आप जीवन में कठिनाईयों का सामना करते हैं, इसलिए नहीं कि आप कुछ गलत कर रहे हैं, लेकिन इसलिए क्योंकि आप कुछ सही कर रहे हैं.

पौलुस ने बहुत सी कठिनाईयों का सामना किया लेकिन वह आनंद से भरे हुए थे क्योंकि वह कुछ सही कर रहे थे और विश्व में एक बड़ा अंतर पैदा कर रहे थे.

वह अन्यजाति विश्व में पहला विश्वबेदारी कैम्पेन चला रहे थे. यही कार्य था जिसने मसीहत को ना केवल एक यहूदी संप्रदाय बनाया, लेकिन एक विश्व 'धर्म' बना दिया. परमेश्वर ने ' अन्यजातियों के लिये विश्वास का द्वार खोल दिया' (व.27, एम.एस.जी.).

पौलुस 'उन सभी चीजों के बारें में बताते हैं जो परमेश्वर ने उनके द्वारा की थी' (व.27). फिर भी बाहर से अड़चने उनके विरोध में आ रही थी. वह बहुत ही अनाकर्षित दिखाई देते थे (2कुरिंथियो 10:10). इस समय (दूसरी –शताब्दी के 'पौलुस के कार्य') पौलुस की भौतिक दशा का वर्णन इस तरह से करता है, 'एक मनुष्य जो कद में छोटा है, सिर पर पतले बाल हैं, पैर निर्बल, शरीर की अच्छी दशा, आँखो की भोहे जुड़ी हुई, और नाक हुक जैसी, अनुग्रह से भरी हुई कभी –कभी वह एक मनुष्य की तरह दिखाई देते थे, और कभी-कभी उनका चेहरा एक स्वर्गदूत जैसा दिखाई देता था.'

वह ना केवल अनाकर्षित दिखाई देते थे लेकिन वह किसी भौतिक बीमारी से भी कष्ट उठा रहे थे (गलातियों 4:13). इन सभी के अतिरिक्त, उनका शरीर अवश्य ही घायल हुआ होगा उन भौतिक सतावों से जिनसे उन्होंने कष्ट उठाया था. इस बार भीड़ ने पौलुस पर पथराव किया, और मरा समझकर उन्हें नगर के बाहर घसीट कर ले गए (प्रेरितों के कार्य 14:19).

बहुत से लोगों की तरह जो पौलुस के कदमों पर चले, उनके सभी भौतिक कष्टों के बावजूद, उनका हृदय आनंद से भरा हुआ था और परमेश्वर ने उनके द्वारा काम किया. परमेश्वर ने पौलुस की कमजोरी में उनका इस्तेमाल किया. यह विश्वास करने में हमें उत्साहित करता है कि परमेश्वर हमारी कमजोरी में भी हमारे द्वारा काम कर सकते हैं.

यह हृदयस्पर्शित आनंद, विभिन्न प्रकार के हृदय का एक प्रकार है जिसे हम इस लेखांश में देखते हैं:

  1. विश्वास से भरा हृदय

अ. पौलुस प्रभु के उदाहरण के पीछे चले और हृदय को देखा. उन्होंने देखा कि ' एक मनुष्य बैठा था, जो पाँवों का निर्बल था. वह जन्म ही से लंगड़ा था और कभी नहीं चला था' (व.8). जैसे पौलुस ने उसकी ओर देखा, ' कि उसे चंगा हो जाने का विश्वास है' (व.9).

ब. कभी – कभी परमेश्वर हमें लोगों के हृदय में देखने के लिए सक्षम करते हैं -यह देखने के लिएकिउन्हें चंगा होने का विश्वास है, आत्मा से भरने का या कोई वरदान ग्रहण करने का. बाद में हमने पढ़ा कि कैसे परमेश्वर ने 'अज्यजातियों के लिए विश्वास के दरवाजें को खोला' (व.27). विश्वास उद्धार की पूंजी है.

  1. अस्थिर हृदय

अ. जब भीड़ ने देखा कि मनुष्य चंगा हो गया था तब उन्होंने पौलुस और बरनबास को ईश्वर की तरह पूजना शुरु कर दिया. उन्होंने कहा, 'हम ईश्वर नहीं हैं!' और यह कि वे केवल मनुष्य हैं, और 'जीवित परमेश्वर' के सुसमाचार को लेकर जा रहे हैं, जिसे उन्हें सुनने की आवश्यकता है (व.15). किंतु, भीड़ का हृदय अस्थिर था. जल्द ही पौलुस के विरोधियों ने उन्हें अपनी ओर कर लिया और तुरंत ही वे पौलुस के लिए बलिदान चढ़ाने लगे ताकि उस पर पथराव कर पायें (वव.18-19).

  1. आनंद से भरे हृदय

यह बहुत सी 'कठिनाईयों' (व.22) में से एक था जिससे पौलुस और उनके साथी गुजरे. फिर भी पौलुस बताते हैं कि कैसे परमेश्वर 'आपके हृदय को आनंद से भरते हैं' (व.17). फिर से वह बता रहे हैंहे कि अंदर की चीज, बाहरी चीजों से अधिक महत्वपूर्ण है.

पौलुस ने लिस्त्रा, इकुनियुम और अंताकिया में चेलों को 'मजबूत' किया और 'उत्साहित' किया (वव.21-22). मसीह जीवन सरल है, ऐसा कहकर उन्होनें उन्हें उत्साहित और मजबूत नहीं किया. पौलुस उन्हें बताते हैं कि यद्पि उनके पाप उनके पीछे थे, उनकी परेशानियाँ उनके आगे थी. वह कहते हैं, ' हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा' (व.22, एम.एस.जी). यीशु जीवन को सरल बनाने नहीं आये; वह लोगों को महान बनाने आये.

प्रार्थना

परमेश्वर आपका बहुत बहुत धन्यवाद, पौलुस प्रेरित जैसे महान व्यक्ति के उत्साही करने वाले उदाहरण के लिए. बाहरी रूप या परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, होने दीजिए कि मेरा हृदय आनंद से भर जाएं होने दीजिए कि मैं लोगों को या स्थितियों को देख कर अनुमान नहीं लगाऊँ कि वे बाहर से कैसे दिखाई देते हैं, लेकिन आपकी तरह हमेशा हृदय को देखूं.

जूना करार

1 राजा 8:22-9:9

22 तब सुलैमान यहोवा की वेदी के सामने खड़ा हुआ। सभी लोग उसके सामने खड़े थे। राजा सुलैमान ने अपने हाथों को फैलाया और आकाश की ओर देखा।

23 उसने कहा,

“हे यहोवा इस्राएल के परमेश्वर तेरे समान धरती पर या आकाश में कोई ईश्वर नहीं है। तूने अपने लोगों के साथ वाचा की क्योंकि तू उनसे प्रेम करता है और तूने अपनी वाचा को पूरा किया। तू उन लोगों के प्रति दयालू और स्नेहपूर्ण है जो तेरा अनुसरण करते हैं। 24 तूने अपने सेवक मेरे पिता दाऊद से, एक प्रतिज्ञा की थी और तूने वह पूरी की है। तूने वह प्रतिज्ञा स्वयं अपने मुँह से की थी और तूने अपनी महान शक्ति से उस प्रतिज्ञा को आज सत्य घटित होने दिया है। 25 अब, यहोवा इस्राएल का परमेश्वर, उन अन्य प्रतिज्ञाओं को पूरा कर जो तूने अपने सेवक, मेरे पिता दाऊद से की थीं। तूने कहा था, ‘दाऊद जैसा तुमने किया वैसे ही तुम्हारी सन्तानों को मेरी आज्ञा का पालन सावाधानी से करना चाहिये। यदि वे ऐसा करेंगे तो सदा कोई न कोई तुम्हारे परिवार का व्यक्ति इस्राएल के लोगों पर शासन करेगा’ 26 और हे यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर, मैं फिर तुझसे माँगता हूँ कि तू कृपया मेरे पिता के साथ की गई प्रतिज्ञा को पूरी करता रहे।

27 “किन्तु परमेस्वर, क्या तू सचमुच इस पृथ्वी पर हम लोगों के साथ रहेगा तुझको सारा आकाश और स्वर्ग के उच्चतम स्थान भी धारण नहीं कर सकते। निश्चय ही यह मन्दिर भी, जिसे मैंने बनाया है, तुझको धारण नहीं कर सकता। 28 किन्तु तू मेरी प्रार्थना और मेरे निवेदन पर ध्यान दे। मैं तेरा सेवक हूँ और तू मेरा यहोवा परमेश्वर है। इस प्रार्थना को तू स्वीकार कर जिसे आज मैं तुझसे कर रहा हूँ। 29 बीते समय में तूने कहा था, ‘मेरा वहाँ सम्मान किया जायेगा।’ इसलिये कृपया इस मन्दिर की देख रेख दिन—रात कर। उस प्रार्थना को तू स्वीकार कर, जिसे मैं तुझसे इस समय मन्दिर में कह रहा हूँ। 30 यहोवा, मैं और तेरे इस्राएल के लोग इस मन्दिर में आएंगे और प्रार्थना करेंगे। कृपया इन प्रार्थनाओं पर ध्यान दे। हम जानते हैं कि तू स्वर्ग में रहता है। हम तुझसे वहाँ से अपनी प्रार्थना सुनने और हमें क्षमा करने की याचना करते हैं।

31 “यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध कोई अपराध करेगा तो वह यहाँ तेरी वेदी के पास लाया जायेगा। यदि वह व्यक्ति दोषी नहीं है तो वह एक शपथ लेगा। वह शपथ लेगा कि वह निर्दोष है। 32 उस समय तू स्वर्ग में सुन और उस व्यक्ति के साथ न्याय कर। यदि वह व्यक्ति अपराधी है तो कृपया हमें स्पष्ट कर कि वह अपराधी है और यदि व्यक्ति निरपराध है तो हमें स्पष्ट कर कि वह अपराधी नहीं है।

33 “कभी—कभी तेरे इस्राएल के लोग तेरे विरुद्ध पाप करेंगे और उनके शत्रु उन्हें पराजित करेंगे। तब लोग तेरे पास लौटेंगे और वे लोग इस मन्दिर में तेरी प्रार्थना करेंगे। 34 कृपया स्वर्ग से उनकी प्रार्थना को सुन। तब अपने इस्राएली लोगों के पापों को क्षमा कर और उनकी भूमि उन्हें फिर से प्राप्त करने दे। तूने यह भूमि उनके पूर्वजों को दी थी।

35 “कभी—कभी वे तेरे विरुद्ध पाप करेंगे, और तू उनकी भूमि पर वर्षा होना बन्द कर देगा। तब वे इस स्थान की ओर मुँह करके प्रार्थना करेंगे और तेरे नाम की स्तुति करेंगे। तू उनको कष्ट सहने देगा और वे अपने पापों के लिये पश्चाताप करेंगे। 36 इसलिये कृपया स्वर्ग में उनकी प्रार्थना को सुन। तब हम लोगों को हमारे पापों के लिये क्षमा कर। लोगों को सच्चा जीवन बिताने की शिक्षा दे। हे यहोवा तब कृपया तू उस भूमि पर वर्षा कर जिसे तूने उन्हें दिया है।

37 “भूमि बहुत अधिक सूख सकती है और उस पर कोई अन्न उग नहीं सकेगा या संभव है लोगों में महामारी फैले। संभव है सारा पैदा हुआ अन्न कीड़े मकोड़ों द्वारा नष्ट कर दिया जाये या तेरे लोग अपने शत्रुओं के आक्रमण के शिकार बनें या तेरे अनेक लोग बीमार पड़ जायें। 38 जब इनमें से कुछ भी घटित हो, और एक भी व्यक्ति अपने पापों के लिये पश्चाताप करे, और अपने हाथों को इस मन्दिर की ओर प्रार्थना में फैलाये तो 39 कृपया उसकी प्रार्थना को सुन। उसकी प्रार्थना को सुन जब तू अपने निवास स्थान स्वर्ग में है। तब लोगों को क्षमा कर और उनकी सहायता कर। केवल तू यह जानता है कि लोगों के मन में सचमुच क्या है अतः हर एक साथ न्याय कर और उनके प्रति न्यायशील रह। 40 यह इसलिये कर कि तेरे लोग डरें और तेरा सम्मान तब तक सदैव करें जब तक वे इस भूमि पर रहें जिसे तूने हमारे पूर्वजों को दिया था।

41-42 “अन्य स्थानों के लोग तेरी महानता और तेरी शक्ति के बारे में सुनेंगे। वे बहुत दूर से इस मन्दिर में प्रार्थना करने आएंगे। 43 कृपया अपने निवास स्थान, स्वर्ग से उनकी प्रार्थना सुन। कृपया तू वह सब कुछ प्रदान कर जिसे अन्य स्थानों के लोग तुझसे माँगें। तब वे लोग भी इस्राएली लोगों की तरह ही तुझसे डरेंगे और तेरा सम्मान करेंगे।

44 “कभी—कभी तू अपने लोगों को अपने शत्रुओं के विरुद्ध जाने और उनसे युद्ध करने का आदेश देगा। तब तेरे लोग तेरे चुने हुए इस नगर और मेरे बनाये हुए मन्दिर की ओर अभिमुख होंगे। जिसे मैंने तेरे सम्मान में बनाया है और वे तेरी प्रार्थना करेंगे। 45 उस समय तू अपने निवास स्थान स्वर्ग से उनकी प्रार्थनाओं को सुन और उनकी सहायता कर।

46 “तेरे लोग तेरे विरुद्ध पाप करेंगे। मैं इसे इसलिये जानता हूँ क्योंकि हर एक व्यक्ति पाप करता है और तू अपने लोगों पर क्रोधित होगा। तू उनके शत्रुओं को उन्हें हराने देगा। उनके शत्रु उन्हें बनदी बनाएंगे और उन्हें किसी बहुत दूर के देश में ले जाएंगे। 47 उस दूर के देश में तेरे लोग समझेंगे कि क्या हो गया है। वे अपने पापों के लिये पश्चाताप करेंगे और तुझसे प्रार्थना करेंगे। वे कहेंगे, ‘हमने पाप और अपराध किया है।’ 48 वे उस दूर के देश में रहेंगे। किन्तु यदि वे इस देश जिसे तूने उनके पूर्वजों को दिया और तेरे चुने नगर और इस मन्दिर जिसे मैंने तेरे सम्मान में बनाया है। उसकी ओर मुख करके तुझसे प्रार्थना करेंगे। 49 तो तू कृपया अपने निवास स्थान स्वर्ग से उनकी सुन। 50 अपने लोगों को सभी पापों के लिये क्षमा कर दे और तू अपने विरोध में हुए पाप के लिये उन्हें क्षमा कर उनके शत्रुओं को उनके प्रति दयालु बना। 51 याद रख कि वे तेरे लोग हैं, याद रख कि तू उन्हें मिस्र से बाहर लाया। यह वैसा ही था जैसा तूने जलती भट्टी से उन्हें पकड़ कर खींच लिया हो!

52 “यहोवा परमेश्वर, कृपया मेरी प्रार्थना और अपने इस्राएली लोगों की प्रार्थना सुन। उनकी प्रार्थना, जब कभी वे तेरी सहायता के लिये करें, सुन। 53 तूने उन्हें पृथ्वी के सारे मनुष्यों में से अपना विशेष लोग होने के लिये चुना है। यहोवा तूने उसे हमारे लिये करने की प्रतिज्ञा की है। तूने हमारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर लाते समय यह प्रतिज्ञा अपने सेवक मूसा के माध्यम से की थी।”

54 सुलैमान ने परमेश्वर से यह प्रार्थना की। वह वेदी के सामने अपने घुटनों के बल था। सुलैमान ने स्वर्ग की ओर भुजायें उठाकर प्रार्थना की। तब सुलैमान ने प्रार्थना पूरी की और वह उठ खड़ा हुआ। 55 तब उसने उच्च स्वर में इस्राएल के सभी लोगों को आशीर्वाद देने के लिये परमेश्वर से याजना की। सुलैमान ने कहा:

56 “यहोवा की स्तुति करो! उसने प्रतिज्ञा की, कि वह अपने इस्राएल के लोगों को शान्ति देगा और उसने हमें शान्ति दी है! यहोवा ने अपने सेवक मूसा का उपयोग किया और इस्राएल के लोगों के लिये बहुत सी अच्छी प्रतिज्ञायें कीं और यहोवा ने उन हर एक प्रतिज्ञाओं को पूरा किया है। 57 मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा, हमारा परमेश्वर हम लोगों के साथ उसी तरह रहेगा जैसे वह हमारे पूर्वजों के साथ रहा। मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा हमे कभी नहीं त्यागेगा। 58 मैं प्रार्थना करता हूँ कि हम उसकी ओर अभिमुख होंगे और उसका अनुसरण करेंगे। तब हम लोग उसके सभी नियमों, निर्णयों और आदेशों का पालन करेंगे जिन्हें उसने हमारे पूर्वजों को दिया। 59 मैं आशा करता हूँ कि यहोवा हमारा परमेश्वर सदैव इस प्रार्थना को और जिन वस्तुओं की मैंने याचना की है, याद रखेगा। मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा अपने सेवक राजा और अपने लोग इस्राएल के लिये ये सब कुछ करेगा। मैं प्रार्थना करता हूँ कि वह प्रतिदिन यह करेगा। 60 यदि यहोवा इन कामों को करेगा तो संसार के सभी व्यक्ति यह जानेंगे कि मात्र यहोवा ही सत्य परमेश्वर है। 61 ऐ लोगो, तुम्हें यहोवा, हमारे परमेश्वर का भक्त और उसके प्रति सच्चा होना चाहिये। तुम्हें उसके सभी नियमों और आदेशों का अनुसरण और पालन करना चाहिये। तुम्हें इस समय की तरह, भविष्य में भी उसकी आज्ञा का पालन करते रहना चाहिये।”

62 तब राजा सुलैमान और उसके साथ के इस्राएल के लोगों ने यहोवा को बलि—भेंट की। 63 सुलैमान ने बाईस हजार पशुओं और एक लाख बीस हजार भेड़ों को मारा। ये सहभागिता भेटों के लिये थीं। यही पद्धति थी जिससे राजा और इस्राएल के लोगों ने मन्दिर का समर्पण किया अर्थात् उन्होंने यह प्रदर्शित किया कि उन्होंने मन्दिर को यहोवा को अर्पित किया।

64 उसी दिन राजा सुलैमान ने मन्दिर के सामने का आँगन समर्पित किया। उसने होमबलि, अन्नबलि और मेलबलि के रूप में काम आये जानवरों की चर्बी की भेंटें चढ़ाई। राजा सुलैमान ने ये भेंटें आँगन में चढ़ाई। उसने यह इसलिये किया कि इन सारी भेंटों को धारण करने के लिये यहोवा के सामने की काँसे की वेदी अत्याधिक छोटी थी।

65 इस प्रकार मन्दिर में राजा सुलैमान और इस्राएल के सारे लोगों ने पर्व मनाया। सारा इस्राएल, उत्तर में हमात दर्रे से लेकर दक्षिण में मिस्र की सीमा तक, वहाँ था। वहाँ असंख्य लोग थे। उन्होंने खाते पीते, सात दिन यहोवा के साथ मिलकर आनन्द मनाया। तब वे अगले सात दिनों तक वहाँ ठहरे। उन्होंने सब मिलाकर चौदह दिनों तक उत्सव मनाया। 66 अगले दिन सुलैमान ने लोगों से घर जाने को कहा। सभी लोगों ने राजा को धन्यवाद दिया, विदा ली और वे घर चले गये। वे प्रसन्न थे क्योंकि यहोवा ने अपने सेवक दाऊद के लिये और इस्राएल के लोगों के लिये बहुत सारी अच्छी चीज़ें की थीं।

परमेश्वर सुलैमान के पास पुन: आता है

9इस प्रकार सुलैमान ने यहोवा के मन्दिर और अपने महल का बनाना पूरा किया। सुलैमान ने उन सभी को बनाया जिनका निर्माण वह करना चाहता था। 2 तब यहोवा सुलैमान के सामने पुनः वैसे ही प्रकट हुआ जैसे वह इसके पहले गिबोन में हुआ था। 3 यहोवा ने उससे कहा:

“मैंने तुम्हारी प्रार्थना सुनी। मैंने तुम्हारे निवेदन भी सुने जो तुम मुझसे करवाना चाहते हो। तुमने इस मन्दिर को बनाया और मैंने इसे एक पवित्र स्थान बनाया है। अतः यहाँ मेरा सदैव सम्मान होगा। मैं इस पर अपनी दृष्टि रखूँगा और इसके विषय में सदैव ध्यान रखूँगा। 4 तुम्हें मेरी सेवा वैसे ही करनी चाहिये जैसी तुम्हारे पिता दाऊद ने की। वह निष्पक्ष और निष्कपट था और तुम्हें मेरे नियमों और उन आदेशों का पालन करना चाहिये जिन्हें मैंने तुम्हें दिया है। 5 यदि तुम यह सब कुछ करते रहोगे तो मैं यह निश्चित देखूँगा कि इस्राएल का राजा सदैव तुम्हारे परिवार में से ही कोई हो। यही प्रतिज्ञा है जिसे मैंने तुम्हारे पिता दाऊद से की थी। मैंने उससे कहा था कि इस्राएल पर सदैव उसके वंशजों में से एक का शासन होगा।

6-7 “किन्तु यदि तुम या तुम्हारी सन्तानें मेरा अनुसरण करना छोड़ते हो, मेरे दिये गए नियमों और आदेशों का पालन नहीं करते और तुम दूसरे देवता की सेवा और पूजा करते हो तो मैं इस्राएल को वह देश छोड़ने को विवश करूँगा जिसे मैंने उन्हें दिया है। इस्राएल अन्य लोगों के लिये उदाहरण होगा। अन्य लोग इस्राएल का मजाक उड़ाएंगे। मैंने मन्दिर को पवित्र किया है। यह वह स्थान है जहाँ लोग मेरा सम्मान करते हैं। किन्तु यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं करते तो इसे मैं नष्ट कर दूँगा। 8 यह मन्दिर नष्ट कर दिया जायेगा। हर एक व्यक्ति जो इसे देखेगा चकित होगा। वे पूछेंगे, ‘यहोवा ने इस देश के प्रति और इस मन्दिर के लिये इतना भयंकर कदम क्यों उठाया’ 9 अन्य लोग उत्तर देंगे, ‘यह इसलिये हुआ कि उन्होंने यहोवा अपने परमेश्वर को त्याग दिया। वह उनके पूर्वजों को मिस्र से बाहर लाया था। किन्तु उन्होंने अन्य देवताओं का अनुसरण करने का निश्चय किया। उन्होंने उन देवताओं की सेवा और पूजा करनी आरम्भ की। यही कारण है कि यहोवा ने उनके लिये इतना भयंकर कार्य किया।’”

समीक्षा

आपके हृदय को पूरी तरह से परमेश्वर के लिए कटिबद्ध होना चाहिए

जैसे ही सुलैमान मंदिर को समर्पित करते हैं, वह परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, 'आपके जैसा कोई परमेश्वर नहीं है...आपके जो दास अपने संपूर्ण मन से अपने को आपके सम्मुख जानकर चलते हैं' (8:23).

परमेश्वर का स्वयं का हृदय उनके लोगों के लिए है और वह सभी लोगों के हृदय को देखते और जानते हैं:'केवल आप सभी मनुष्यों के हृदय को जानते हैं' (व.39).

सुलैमान की प्रार्थना इस तथ्य को पहचानती है कि हम असफल होते हैं. हम पाप करते हैं. वह नहीं कहते हैं कि 'यदि' वे पाप करें. इसके बजाय वह कहते हैं, कि 'जब वे आपके विरोध में पाप करते हैं – क्योंकि ऐसा कोई नहीं है जो पाप नहीं करता है' (व.46, रोमियों 3:23 भी देखें).

धन्यवाद हो परमेश्वर का कि अब भी आशा है. 'हृदय का बदलना' संभव बात है (1राजा 8:47, एम.एस.जी.). यह संभव है कि हमारे हृदय परमेश्वर की ओर फिरें (व.48). वह प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर 'हमारे हृदय को उनकी ओर फेरेंगे' (व.58). परमेश्वर दया और क्षमा से भरा हुए हैं (वव.28,30,34,36,39,50). वह प्रेम करते हैं और अपने वचन को पूरा करते हैं (व.23, एम.एस.जी).

जितना बेहतर आप परमेश्वर को जानते हैं – उनके हृदय, उनके चरित्र और आपके लिए उनके प्रेम को – अपने पूरे हृदय से उनका आज्ञापालन करना उतना ही सरल बन जाता है.

कभी भी दूसरे सर्वश्रेष्ठ के लिए समझौता मत कीजिए. जैसा कि सुलैमान इसे बताते हैं, 'आपके हृदय को अवश्य ही हमारे प्रभु परमेश्वर के लिए पूरी तरह से कटिबद्ध होना चाहिए' (व.61). परमेश्वर चाहते हैं कि आप उनके सम्मुख 'मन की खराई और सीधाई' से चलें (9:4). लोगों ने दृढ़संकल्प किया कि वे इस तरह से चलेंगे और 'आनंदित और हृदय में मगन होकर' घर चले गए (8:66). चेलों की तरह, उनके हृदय आनंद से भरे थे.

प्रार्थना

परमेश्वर, आप मेरे हृदय को देखते हैं. होने दीजिए कि मेरा हृदय आपके लिए पूरी तरह से कटिबद्ध हो. आप जानते हैं कि मैं कितनी बार असफल हो जाता हूँ. कृपया मुझे क्षमा करें और मुझ पर दया करें. आपका धन्यवाद क्योंकि आपने मुझे सक्षम किया है कि हर दिन आपकी ओर फिरुं. आपका धन्यवाद क्योंकि आप आनंद से मेरे हृदय को भरते हैं. मेरी सहायता कीजिए कि हर दिन पूरे हृदय से आपके पीछे चलूं.

पिप्पा भी कहते है

नीतिवचन 15:13

'एक आनंदित हृदय से चेहरे पर प्रसन्नता आती है...'

एक मुस्कान चेहरे को बदल देती है. यदि जीवन कठिन है तो मुस्कराना मुश्किल हो जाता है. जब अफ्रीका के नगरों में हम मिलने के लिए गए तब एक चीज जो मुझे हमेशा हैरान करती थी, वह है बच्चों के चेहरे पर मुस्कान. अक्सर उनके पास कुछ नहीं होता है, लेकिन फिर भी उनके चेहरे पर सुंदर मुस्कान होती है.

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संदर्भ

पौलुस के कार्य 3, 'पौलुस के कार्य और...' अनुच्छेद 2, जे, के एलियोट, द ऐपोक्रिफल न्यु टेस्टामेंट (ऑक्सफर्ड क्लॅरेंडन, 1993), पी.364

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