प्रार्थना की सामर्थ
परिचय
फरवरी 2016 में, कॅन्टरबरी और यॉर्क के मुख्यबिशप ने देश में सुसमाचार प्रचार करने के लिए पिंतेकुस्त रविवार के पहले सप्ताह के दौरान प्रार्थना की और एक बड़ी लहर को बुलाया . पिंतेकुस्त सप्ताह में यूनायटेड किंग्डम में छ मुख्य चर्च में सप्ताह संकेत करने वाली घटना बन गई. सभी चर्च भर गए थे. चौबीसों घंटे प्रार्थना के संस्थापक पिट ग्रेग ने वर्णन किया है, ' एक उभार; जमीनी स्तर पर ऊपर से एक आंदोलन - उन्होंने कहा कि वह एक लड़के की बात से बहुत स्पर्शित हो गए जिसने पाँच मित्रों के लिए प्रार्थना की थी, जिनमें से तीन मसीह बन चुके हैं!
जस्टिन वेल्बाय, कॅन्टरबरी के मुख्य बिशप ने लोगों को तीन चीजों के लिए प्रार्थना करने के लिए कहाः 'कि सभी मसीह यीशु मसीह में नया जीवन पायें...जिस किसी से आप मिलते हैं...वह यीशु को देख पायें...चर्च यीशु की उपस्थिति की वास्तविकता से ऊँमड़ने लगे.'
प्रार्थना आत्मिक पोषण है. जैसे कि बालक को भौतिक भोजन की आवश्यकता पड़ती है, वैसे ही आत्मा को आत्मिक भोजन की आवश्यकता पड़ती है. प्रार्थना हमें बदलती है. किंतु, बाईबल इससे कही आगे जाती है. प्रार्थना शक्तिशाली है. यह है, जैसा कि चार्ल्स हडॉन स्पर्जन इसे बताते हैं, 'पतली नस सर्वशक्तिसंपन्न की माँसपेशियों को हिलाता है.' प्रार्थना में परिस्थितियों को बदलने, लोगों और इतिहास की दिशा को बदलने की सामर्थ है.
नीतिवचन 15:21-30
21 भले—बुरे का ज्ञान जिसको नहीं होता है ऐसे मनुष्य को तो मूढ़ता सुख देती है,
किन्तु समझदार व्यक्ति सीधी राह चलता है।
22 बिना परामर्श के योजनायें विफल होती है।
किन्तु वे अनेक सलाहकारों से सफल होती है।
23 मनुष्य उचित उत्तर देने से आनन्दित होता है।
यथोचित समय का वचन कितना उत्तम होता है।
24 विवेकी जन को जीवन—मार्ग ऊँचे से ऊँचा ले जाता है,
जिससे वह मृत्यु के गर्त में नीचे गिरने से बचा रहे।
25 यहोवा अभिमानी के घर को छिन्न—भिन्न करता है;
किन्तु वह विवश विधवा के घर की सीमा बनाये रखता है।
26 दुष्टों के विचारों से यहोवा को घृणा है,
पर सज्जनों के विचार उसको सदा भाते हैं।
27 लालची मनुष्य अपने घराने पर विपदा लाता है
किन्तु वही जीवित रहता है जो जन घूस से घृणा भाव रखता है।
28 धर्मी जन का मन तौल कर बोलता है
किन्तु दुष्ट का मुख, बुरी बात उगलता है।
29 यहोवा दुष्टों से दूर रहता है,
अति दूर; किन्तु वह धर्मी की प्रार्थना सुनता है।
30 आनन्द भरी मन को हर्षाती,
अच्छा समाचार हड्डियों तक हर्ष पहुँचाता है।
समीक्षा
प्रार्थना परिस्थितियों को बदलती है
परमेश्वर 'करीबी रूप से ईमानदार लोगों की प्रार्थनाओं को सुनते हैं' (व.29, एम.एस.जी.). जो होता है, उसमें हमारी प्रार्थनाएँ एक अंतर पैदा कर सकती हैं. 'यहोवा दुष्टों से दूर रहते हैं, परंतु सत्यनिष्ठ की प्रार्थना सुनते हैं' (व.29). नीतिवचन के लेखक के अनुसार, सत्यनिष्ठा का अर्थ है 'सीधी चाल चलना' (व.21), सलाह को सुनना (व.22) और अपने विचारों में शुद्धता को बनाए रखना (व.26). इसका अर्थ है 'प्रार्थना भरे उत्तरो से' लोगों को उत्तर देना (व.28, एम.एस.जी).
प्रार्थना और सावधानीपूर्वक योजना एक दूसरे के विपरीत नहीं है. परमेश्वर से बात करने के साथ-साथ, यह बुद्धिमानी की बात है कि दूसरों से सलाह लें:'बिना सम्मति की कल्पनाएँ निष्फल हुआ करती हैं, परंतु बहुत से मंत्रियों की सम्मति से बात ठहरती है' (व.22).
यीशु के द्वारा, जो कोई विश्वास करता है, वह 'सत्यनिष्ठ' है (रोमियो 3:22). इसलिए, परमेश्वर आपकी प्रार्थनाओं को सुनते हैं. जहाँ कहीं आप जाते हैं वहाँ आप आशीष को लायेंगेः 'आँखो की चमक से मन को आनंद होता हे, और अच्छे समाचार से हड्डियाँ पुष्ट होती हैं' (व.30, ए.एम.पी.).
प्रार्थना
परमेश्वर आपका धन्यवाद क्योंकि बहुत सी बार आपने मेरी प्रार्थनाओं को सुना और उनका उत्तर दिया है. परमेश्वर, आज मैं करता हूँ...
प्रेरितों के काम 16:16-40
पौलुस और सिलास को बंदी बनाया जाना
16 फिर ऐसा हुआ कि जब हम प्रार्थना स्थल की ओर जा रहे थे, हमें एक दासी मिली जिसमें एक शकुन बताने वाली आत्मा समायी थी। वह लोगों का भाग्य बता कर अपने स्वामियों को बहुत सा धन कमा कर देती थी। 17 वह हमारे और पौलुस के पीछे पीछे यह चिल्लाते हुए हो ली, “ये लोग परम परमेश्वर के सेवक हैं। ये तुम्हें मुक्ति के मार्ग का संदेश सुना रहे हैं।” 18 वह बहुत दिनों तक ऐसा ही करती रही सो पौलुस परेशान हो उठा। उसने मुड़ कर उस आत्मा से कहा, “मैं यीशु मसीह के नाम पर तुझे आज्ञा देता हूँ, इस लड़की में से बाहर निकल आए।” सो वह उसमें से तत्काल बाहर निकल गयी।
19 फिर उसके स्वामियों ने जब देखा कि उनकी कमाई की आशा पर ही पानी फिर गया है तो उन्होंने पौलुस और सिलास को धर दबोचा और उन्हें घसीटते हुए बाजर के बीच अधिकारियों के सामने ले गये। 20 फिर दण्डनायक के पास उन्हें ले जाकर वे बोले, “ये लोग यहूदी हैं और हमारे नगर में गड़बड़ी फैला रहे हैं। 21 ये ऐसे रीति रिवाजों की वकालत करते हैं जिन्हें अपनाना या जिन पर चलना हम रोमियों के लिये न्यायपूर्ण नहीं है।”
22 भीड़ भी विरोध में लोगों के साथ हो कर उन पर चढ़ आयी। दण्डाधिकारी ने उनके कपड़े फड़वा कर उतरवा दिये और आज्ञा दी कि उन्हें पीटा जाये। 23 उन पर बहुत मार पड़ चुकने के बाद उन्होंने उन्हें जेल में डाल दिया और जेल के अधिकारी को आज्ञा दी कि उन पर कड़ा पहरा बैठा दिया जाये। 24 ऐसी आज्ञा पाकर उसने उन्हें जेल की भीतरी कोठरी में डाल दिया। उसने उनके पैर काठ में कस दिये।
25 लगभग आधी रात गये पौलुस और सिलास परमेश्वर के भजन गाते हुए प्रार्थना कर रहे थे और दूसरे क़ैदी उन्हें सुन रहे थे। 26 तभी वहाँ अचानक एक ऐसा भयानक भूकम्प हुआ कि जेल की नीवें हिल उठीं। और तुरंत जेल के फाटक खुल गये। हर किसी की बेड़ियाँ ढीली हो कर गिर पड़ीं। 27 जेल के अधिकारी ने जाग कर जब देखा कि जेल के फाटक खुले पड़े हैं तो उसने अपनी तलवार खींच ली और यह सोचते हुए कि कैदी भाग निकले हैं वह स्वयं को जब मारने ही वाला था तभी 28 पौलुस ने ऊँचे स्वर में पुकारते हुए कहा, “अपने को हानि मत पहुँचा क्योंकि हम सब यहीं हैं!”
29 इस पर जेल के अधिकारी ने मशाल मँगवाई और जल्दी से भीतर गया। और भय से काँपते हुए पौलुस और सिलास के सामने गिर पड़ा। 30 फिर वह उन्हें बाहर ले जा कर बोला, “महानुभावो, उद्धार पाने के लिये मुझे क्या करना चाहिये?”
31 उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु यीशु पर विश्वास कर। इससे तेरा उद्धार होगा-तेरा और तेरे परिवार का।” 32 फिर उसके समूचे परिवार के साथ उन्होंने उसे प्रभु का वचन सुनाया। 33 फिर जेल का वह अधिकारी उसी रात और उसी घड़ी उन्हें वहाँ से ले गया। उसने उनके घाव धोये और अपने सारे परिवार के साथ उनसे बपतिस्मा लिया। 34 फिर वह पौलुस और सिलास को अपने घर ले आया और उन्हें भोजन कराया। परमेश्वर में विश्वास ग्रहण कर लेने के कारण उसने अपने समूचे परिवार के साथ आनन्द मानाया।
35 जब पौ फटी तो दण्डाधिकारियों ने यह कहने अपने सिपाहियों को वहाँ भेजा कि उन लोगों को छोड़ दिया जाये।
36 फिर जेल के अधिकारी ने ये बातें पौलुस को बतायीं कि दण्डाधिकारी ने तुम्हें छोड़ देने के लिये कहलवा भेजा है। इसलिये अब तुम बाहर आओ और शांति के साथ चले जाओ।
37 किन्तु पौलुस ने उन सिपाहियों से कहा, “यद्यपि हम रोमी नागरिक हैं पर उन्होंने हमें अपराधी पाये बिना ही सब के सामने मारा-पीटा और जेल में डाल दिया। और अब चुपके-चुपके वे हमें बाहर भेज देना चाहते हैं, निश्चय ही ऐसा नहीं होगा। होना तो यह चाहिये के वे स्वयं आकार हमें बाहर निकालें!”
38 सिपाहियों ने दण्डाधिकारियों को ये शब्द जा सुनाये। दण्डाधिकारियों को जब यह पता चला कि पौलुस और सिलास रोमी हैं तो वे बहुत डर गये। 39 सो वे वहाँ आये और उनसे क्षमा याचना करके उन्हें बाहर ले गये और उनसे उस नगर को छोड़ जाने को कहा। 40 पौलुस और सिलास जेल से बाहर निकल कर लीदिया के घर पहुँचे। धर्म-बंधुओं से मिलते हुए उन्होंने उनका उत्साह बढ़ाया और फिर वहाँ से चल दिये।
समीक्षा
प्रार्थना लोगों को बदलती हैं
किस चीज ने आरंभिक कलीसिया को इतना शक्तिशाली बनाया? निश्चित ही, उत्तर का एक भाग है पहले विश्वासियों का प्रार्थना जीवन.
- नियमित रूप से प्रार्थना करें
ऐसा लगता है कि प्रार्थना एक नियमित आदत थी. ' जब हम प्रार्थना करने की जगह जा रहे थे...' (व.16). यह बताता है कि वे ना केवल अपने आपसे प्रार्थना करते थे, वे प्रार्थना करने के लिए एक साथ इकट्ठा भी होते थे.
- यीशु के नाम में प्रार्थना करें
मसीह प्रार्थना शक्तिशाली है क्योंकि हम अपने नाम में नहीं, बल्कि यीशु के नाम में प्रार्थना करते हैं.
फिलिप्पियों के नगर में एक 'भावी कहने वाली महिला' पौलुस के पीछे पीछे जाने लगी, जो स्पष्ट रूप से शैतानी प्रभावों से ग्रस्त थी, क्योंकि वह तंत्र-मंत्र में शामिल थी (व.17). अंत में, बहुत दिन तक ऐसा करने के बाद, पौलुस अब उसे और अपने पीछे नहीं आने दे सकते थे. उन्होंने पीछे मुड़कर कहा, ' मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूँ कि उसमें से निकल जा' (व.18). उसी क्षण दुष्ट आत्मा बाहर निकल गई.
यीशु का नाम बहुत शक्तिशाली है. शैतानी ताकत से निपटने का एकमात्र तरीका है यीशु का नाम. कोई शैतान यीशु के सामने खड़ा नहीं रह सकता है. यीशु हमें शैतानी बलों से स्वतंत्र करते हैं. उन्होंने स्पष्ट रूप से इस जवान महिला के जीवन को बदल दिया. शैतान 'उसमें से निकल गया' (व.18, एम.एस.जी.).
- सभी परिस्थितियों में प्रार्थना करें
वह महिला एक दासी थी जो अपने मालिक के लिए बहुत सा पैसा कमाती थी. उसके मालिक क्रोधित हो गए कि उसने अपनी दैवीय ताकत खो दी है. उन्होंने पौलुस और सिलास को पकड़ लिया, 'उनसे उग्र बर्ताव किया', 'उन्हें गिरफ्तार कर लिया (वव.19-20, एम.एस.जी) और उन्हें खींचकर न्यायालय में ले गए. उन्होंने उनके विरोध में भीड़ को भड़काया.
भीड़ 'प्रहार' में शामिल हो गई (व.22). जीवन हमेशा सरल नहीं होगा यदि हम एक अंतर को बनाना शुरु कर देंगे. हमारे कुछ मत शायद से बहुत ही अप्रसिद्ध या गैरकानूनी हो. 'प्रहार' आवश्यक रूप से असफलता का एक चिह्न नहीं है; वे सफलता के एक चिह्न हो सकते हैं.
न्यायधीश दबाव में झुक गए और आज्ञा दी कि उनके कपड़े उतारकर, उग्र रूप से उन्हें कोड़े मारे जाएं, और सख्त पहरे में बंदीगृह में डाल दिया जाए, जहाँ पर 'उनके पैर उनके पाँव काठ में ठोंक दिए गए' (व.24, एम.एस.जी).
बंदीगृह का अधिकारी इस बात का आदि होगा कि बंदीगृह में लोग गुस्सा होकर, श्राप देते हुए और शपथ खाते हुए आते हैं. इसके विपरीत, वह पौलुस और सिलास को प्रार्थना करते हुए, आराधना करते और परमेश्वर के लिए भजन गाते हुए सुनते हैं (व.25). प्रार्थना और आराधना के इस मिश्रण में महान सामर्थ है.
भूकंप ने बंदीगृह को हिला दिया और हर दरवाजा खुल गया. बंदीगृह का अधिकारी आत्महत्या करने वाला था, क्योंकि उसने सोचा कि उसके सभी कैदी भाग गए हैं और वह इसके परिणाम से डर रहा था. पौलुस ने स्वतंत्रता को देखकर, इसके बजाय रूकना चुना और जेलर को मसीह में लाना चुना.
जब पौलुस ने उसे आश्वासन दिलाया कि सभी कैदी अब भी वहाँ पर थे, तब उसने पूछा, 'उद्धार पाने के लिए मैं क्या करुं?' (व.30). यह 'एक सुसमाचार प्रचार करने का अवसर' कहलाता है. पौलुस ने समझाया कि बंदीगृह के अधिकारी को क्या करना था और इसलिए वह और बाद में उसका पूरा परिवार यीशु में विश्वास करते हैं और बपतिस्मा लेते हैं.
तुरंत ही, उनका जीवन बदलना शुरु हो जाता है. वह करुणा दिखाते हैं. वह पौलुस और सिलास के घावों को धोते हैं (व.33). वह उन्हें भोजन देते हैं (व.34). वह और उनका सारा परिवार 'आनंद से भर जाता है' (व.35). वह लोगों के सामने बताना चाहते हैं कि वह एक मसीह हैं. वे फिलिप्पियों में चर्च के शुरुवाती सदस्य बन गए.
यें घटनाएँ बहुत ही स्पष्ट रूप से दैवीय थी कि पौलुस ने अपने वचनों की मानवीय एजेंसी के पीछे परमेश्वर की चकित करने वाली सामर्थ को देखा.
इस कहानी के अंत में न्यायाधीश व्यक्तिगत रूप से पौलुस और सिलास से माफी मांगते हैं, क्योंकि उन्होंने नहीं पहचाना था कि वे रोमी नागरिक थे और इसलिए उनके साथ उस तरह से बर्ताव करना गैरकानूनी था, जैसा बर्ताव उन्होंने किया थाः 'हाकिम डर गए...व्यक्तिगत रूप से माफी माँगी, उन्हें बंदीगृह से बाहर निकाला...पौलुस और सिलासान्दीगृह से निकलकर लुदिया के यहाँ गए, और भाइयों से भेंट करके उन्हें शान्ति दी, और चले गए' (वव.38-40, एम.एस.जी).
प्रार्थना में सामर्थ है ना केवल हमारे जीवन को बदलने की लेकिन परिस्थितियों, घटनाओं और दूसरों के जीवन को भी बदलने की.
प्रार्थना
परमेश्वर, हमारी सहायता करिए कि आरंभिक कलीसिया की तरह हम बनें. हमारी सहायता करिए कि प्रार्थना करने के लिए हम नियमित रूप से मिले. यीशु के नाम की सामर्थ के लिए आपका धन्यवाद. परमेश्वर, होने दें कि प्रार्थना और आराधना हमारे हर काम को नैतिक समर्थन करने के लिए आधार देते हैं.
1 राजा 14:21-16:7
21 उस समय जब सुलैमान का लड़का रहूबियाम यहूदा का राजा बना, वह इकतालीस वर्ष का था। रहूबियाम ने यरूशलेम नगर मैं सत्रह वर्ष तक शासन किया। यह वही नगर है जिसमें यहोवा ने सम्मानित होना चुना। उसने इस्राएल के अन्य सभी नगरों में से इस नगर को चुना। रहूबियाम की नामा नामक माँ अम्मोन की थी।
22 यहूदा के लोगों ने भी पाप किये और उन कामों को किया जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था। लोगों ने अपने ऊपर यहोवा को क्रोधित करने के लिये और अधिक बुरे काम किये। वे लोग अपने उन पूर्वजों से भी बुरे थे जो उनके पहले वहाँ रहते थे। 23 लोगों ने उच्च स्थान, पत्थर के स्मारक और पवित्र स्तम्भ बनाये। उन्होंने उन्हें हर एक ऊँचे पहाड़ पर एवं प्रत्येक पेड़ के नीचे बनाये। 24 ऐसे भी लोग थे जिन्होंने अपने तन को शारीरिक सम्बन्धों के लिये बेचकर अन्य देवताओं की सेवा की। इस प्रकार यहूदा के लोगों ने अनेक बुरे काम किये। जो लोग उस देश में उनसे पहले रहते थे उन्होंने भी वे ही पापपूर्ण काम किये थे और परमेश्वर ने उन लोगों से वह देश ले लिया था और इस्राएल के लोगों को दे दिया था।
25 रहूबियाम के राज्य काल के पाँचवें वर्ष मिस्र का राजा शीशक यरूशलेम के विरुद्ध लड़ा। 26 शीशक ने यहोवा के मन्दिर और राजा के महल से खजाने ले लिये। उसने उन सुनहली ढालों को भी ले लिया जिन्हें दाऊद ने अराम के राजा हददजर के अधिकारियों से लिया था। दाऊद इन ढालों को यरूशलेम ले गया था। किन्तु शीशक ने सभी सुनहली ढालें ले लीं। 27 अत: राजा रहूबियाम ने उनके स्थान पर रखने के लिये अनेक ढालें बनवाई। किन्तु ये ढालें काँसे की थीं, सोने की नहीं। उसने ये ढालें उन पुरुषों को दीं जो महल के द्वारों की रक्षा करते थे। 28 जब कभी राजा यहोवा के मन्दिर को जाता था, द्वार रक्षक उसके साथ हर बार जाते थे। वे ढालें ले जाते थे। जब वे काम पूरा कर लेते थे तब वे रक्षक कक्ष में ढालों को लटका देते थे।
29 राजा रहूबियाम ने जो कुछ किया वह सब, यहूदा के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा हुआ है। 30 रहूबियाम और यारोबाम सदैव एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध करते रहे।
31 रहूबियाम मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। उसे उसके पूर्वजों के साथ दाऊद नगर में दफनाया गया। (उसकी माँ नामा, अम्मोन की थी।) रहूबियाम का पुत्र अबिय्याम उसके बाद नया राजा बना।
यहूदा का राजा अबिय्याम
15नाबात का पुत्र यारोबाम इस्राएल पर शासन कर रहा था। यारोबाम के राज्यकाल के अट्ठारहवें वर्ष, अबिय्याम यहूदा का नया राजा बना। 2 अबिय्याम ने तीन वर्ष तक शासन किया। उसकी माँ का नाम माका था। वह अबशालोम की पुत्री थी।
3 उसने वे सभी पाप किये जो उसके पिता ने उसके पहले किये थे। अबिय्याम अपने पितामह दाऊद की तरह यहोवा, अपने परमेश्वर का भक्त नहीं था। 4 यहोवा दाऊद से प्रेम करता था। अत: उसी के लिये यहोवा ने अबिय्याम को यरूशलेम में राज्य दिया और यहोवा ने उसे एक पुत्र दिया। यहोवा ने यरूशलेम को सुरक्षित भी रहने दिया। यह उसने दाऊद के लिये किया। 5 दाऊद ने सदैव ही उचित काम किये जिन्हें यहोवा चाहता था। उसने सदैव यहोवा के आदेशों का पालन किया था। केवल एक बार दाऊद ने यहोवा का आदेश नहीं माना था जब दाऊद ने हित्ती ऊरिय्याह के विरुद्ध पाप किया था।
6 रहूबियाम और यारोबाम हमेशा एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध लड़ते रहे। 7 जो कुछ अन्य काम अबिय्याम ने किये वह यहूदा के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है।
उसे सारे समय में जब अबिय्याम राजा था, यारोबाम और अबिय्याम के बीच युद्ध चलता रहा। 8 जब अबिय्याम मरा तो उसे दाऊद नगर में दफनाया गया। अबिय्याम का पुत्र “आसा” उसके बाद नया राजा हुआ।
यहूदा का राजा आसा
9 इस्राएल के ऊपर यारोबाम के राजा के रूप में शासन करने के बीसवें वर्ष में आसा यहूदा का राजा बना। 10 आसा ने यरूशलेम में इकतालीस वर्ष तक शासन किया। उसकी पितामही का नाम माका था और माका अबशालोम की पुत्री थी।
11 आसा ने अपने पूर्वज दाऊद की तरह उन कामों को किया जिन्हें यहोवा ने उचित कहा। 12 उन दिनों ऐसे लोग थे जो अपने तन को शारीरिक सम्बन्ध के लिये बेचकर अन्य देवताओं की सेवा करते थे। आसा ने उन लोगों को देश छोड़ने के लिये विवश किया। आसा ने उन देव मूर्तियों को भी दूर किया जो उसके पूर्वजों ने बनाईं थीं। 13 आसा ने अपनी पितामही माका को रानी पद से हटा दिया। माका ने देवी अशेरा की उन भंयकर मूर्तियों में से एक को बनाया था। उसने इस भंयकर मूर्ति को काट डाला। उसने उसे किद्रोन की घाटी में जलाया। 14 आसा ने उच्च स्थानों को नष्ट नहीं किया, किन्तु वह पूरे जीवन भर यहोवा का भक्त रहा। 15 आसा के पिता ने कुछ चीजें परमेश्वर को दी थीं। आसा ने भी परमेश्वर को कुछ भेंटे चढ़ाई थीं। उन्होंने, सोने चाँदी और अन्य चीजों की भेंटें दीं। आसा ने उन सभी चीजों को मन्दिर में जमा कर दिया।
16 जब तक राजा आसा यहूदा का राजा था, वह सदैव इस्राएल के राजा बाशा के विरुद्ध युद्ध करता रहा। 17 बाशा यहूदा के विरुद्ध लड़ता रहा। बाशा लोगों को, आशा के देश यहूदा से आने अथवा जाने से रोकना चाहता था। 18 अत: आसा ने यहोवा के मन्दिर और राजमहल के खजानों से सोना और चाँदी निकाला। उसने यह सोना—चाँदी अपने सेवकों को दिया और उन्हें अराम के राजा बेन्हदद के पास भेजा। बेन्हदद हेज्योन के पुत्र तब्रिम्मोन का पुत्र था। उसने दमिश्क नगर में शासन किया। 19 आसा ने यह सन्देश भेजा, “मेरे पिता और तुम्हारे पिता के मध्य एक शान्ति—सन्धि थी। अब मैं तुम्हारे और अपने बीच एक शान्ति—सन्धि करना चाहता हूँ। मैं तुम्हारे पास सोना—चाँदी की भेंट भेज रहा हूँ। इस्राएल के राजा बाशा के साथ अपनी सन्धि तोड़ दो। तब बाशा मेरे देश को छोड़ देगा।”
20 राजा बेन्हदद ने आसा के सन्देश को स्वीकार किया। अतः उसने इस्राएल के नगरों के विरुद्ध लड़ने के लिये अपनी सेना भेजी। बेन्हदद ने इय्योन, दान, आबेल्वेत्माका और गलीली झील के चारों ओर के नगरों को पराजित किया। उसने सारे नप्ताली क्षेत्र को हराया। 21 बाशा ने इन आक्रमणों के बारे में सुना। इसलिये उसने रामा को दृढ़ बनाना बन्द कर दिया। उसने उस नगर को छोड़ दिया और तिर्सा को लौट गया। 22 तब राजा आसा ने यहूदा के सभी लोगों को आदेश दिया कि हर एक व्यक्ति को सहायता देनी होगी। वे रामा को गए और उन्होंने उन पत्थरों और लकड़ियों को उठा लिया जिनका उपयोग बाशा नगर को दृढ़ बनाने के लिये कर रहा था। वे उन चीजों को बिन्यामीन प्रदेश में गेबा और मिस्पा को ले गए। तब आसा ने उन दोनों नगरों को बहुत अधिक दृढ़ बनाया।
23 आसा के बारे में अन्य बातें, व महान कार्य जो उसने किये और नगर जिन्हें उसने बनाया वह, यहुदा के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है। जब आसा बूढ़ा हुआ तो उसके पैर में एक रोग उत्पन्न हुआ। 24 आसा मरा और उसे उसके पूर्वज दाऊद के नगर में दफनाया गया। तब आसा का पुत्र यहोशापात उसके बाद नया राजा बना।
इस्राएल का राजा नादाब
25 यहूदा पर आसा के राज्य काल के दूसरे वर्ष में यारोबाम का पुत्र नादाब इस्राएल का राजा हुआ। नादाब ने इस्राएल पर दो वर्ष तक शासन किया। 26 नादाब ने यहोवा के विरुद्ध बुरे काम किये। उसने वैसे ही पाप किये जैसे उसके पिता यारोबाम ने किये थे और यारोबाम ने इस्राएल के लोगों से भी पाप कराये थे।
27 बाशा अहिय्याह का पुत्र था। वे इस्साकार के परिवार समूह से थे। बाशा ने राजा नादाब को मार डालने की एक योजना बनाई। यह वह समय था जब नादाब और सारा इस्राएल गिब्बतोन नगर के विरुद्ध युद्ध में लड़ रहे थे। यह एक पलिश्ती नगर था। उस स्थान पर बाशा ने नादाब को मार डाला। 28 यह यहूदा पर आसा के रज्यकाल के तीसरे वर्ष में हुआ और बाशा इस्राएल का अगला राजा बना।
इस्राएल का राजा बाशा
29 जब बाशा नया राजा हुआ तो उसने यारोबाम के परिवार के हर एक व्यक्ति को मार डाला। बाशा ने यारोबाम के परिवार में किसी व्यक्ति को जीवित नहीं छोड़ा। यह वैसे ही हुआ जैसा होने के लिये यहोवा ने कहा था। यहोवा ने शीलो के अपने सेवक अहिय्याह द्वारा यह कहा था। 30 यह हुआ, क्योंकि यारोबाम ने अनेक पाप किये थे और यारोबाम ने इस्राएल के लोगों से अनेक पाप कराये थे। यारोबाम ने यहोवा इस्राएल के परमेश्वर को बहुत क्रोधित कर दिया था।
31 नादाब ने जो अन्य काम किये वे इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा हुआ है। 32 पूरे समय, जब तक बाशा इस्राएल का शासक था, वह यहूदा के राजा आसा के विरुद्ध युद्ध में लड़ता रहा।
33 अहिय्याह का पुत्र बाशा, यहोदा पर आसा के राज्य काल के तीसरे वर्ष में इस्राएल का राजा हुआ था। बाशा तिर्सा में चौबीस वर्ष तक राजा रहा। 34 किन्तु बाशा ने वे कार्य किये जिन्हें यहोवा ने बुरा बाताया था। उसने वे ही पाप किये जो उसके पूर्वज यारोबाम ने किये थे। यारोबाम ने इस्राएल के लोगों से पाप कराये थे।
16तब यहोवा ने हनान के पुत्र येहू से बातें कीं। यहोवा राजा बाशा के विरुद्ध बातें कह रहा था। 2 “मैंने तुमको एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाया। मैंने तुमको अपने इस्राएल के लोगों के ऊपर राजा बनाया। किन्तु तुमने यारोबाम का अनुसरण किया है। तुमने मेरे लोगों, इस्राएलियों से पाप कराया है। उन्होंने अपने पापों से मुझे क्रोधित किया है। 3 इसलिए बाशा, मैं तुझे और तुम्हारे परिवार नष्ट करुँगा । मैं तुम्हारे साथ वही करूँगा जो मैंने नबात के पुत्र यारोबाम के परिवार के साथ किया। 4 तुम्हारे परिवार के लोग नगर की सड़कों पर मरेंगे और उनके शवों को कुत्ते खायेंगे। तुम्हारे परिवार के कुछ लोग मैदानों में मरेंगे और उनके शवों को पक्षी खायेंगे।”
5 बाशा के विषय में अन्य बातें और जो महान कार्य उसने किये सभी इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है। 6 बाशा मरा और तिर्सा में दफनाया गया। उसका पुत्र एला उसके बाद नया राजा बना।
7 अत: यहोवा ने येहू नबी को एक सन्देश दिया। यह सन्देश बाशा और उसके परिवार के विरुद्ध था। बाशा ने यहोवा के विरुद्ध बुरे कर्म किये थे। इससे यहोवा अत्यन्त क्रोधित हुआ। बाशा ने वही किया जो यारोबाम के परिवार ने उससे पहले किया था। यहोवा इसलिये भी क्रोधित था कि बाशा ने यारोबाम के पूरे परिवार को मार डाला था।
समीक्षा
प्रार्थना इतिहास को बदलती है
निश्चित ही, प्रार्थना भूतकाल को नहीं बदलती, लेकिन यह भविष्य की घटनाओं को बदल सकती है.
राजा की पुस्तक में लिखे परमेश्वर के लोगों का इतिहास मिश्रित है. हमने नियमित रूप से पढ़ा कि कैसे परमेश्वर के लोगों ने 'परमेश्वर की नजरों में बुराई की' (14:22; 15:56,34; 16:7). उन्होंने पाप किया (उदाहरण के लिए, 14:22ब; 15:26,30,34;16:2). उनमें वेश्याएँ थी (14:24अ); वे घृणित कामों में जुड़ गए (व.24ब); इस्राएल और यहूदा के बीच में निरंतर लड़ाई होती थी (व.30;15:6,32). अक्सर राजा 'परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से समर्पित नहीं थे' (व.3).
आसा उल्लेखनीय रूप से अलग था (15:9-24). 'आसा ने अपने मूलपुरुष दाऊद के समान वही किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था. उसने तो पुरुषगामियों को देश से निकाल दिया...' (वव.11-12अ, एम.एस.जी).
इन सब चीजों के बीच में, एक चौका देने वाली बात हैः 'तब भी दाऊद के कारण उनके परमेश्वर यहोवा ने यरूशलेम में उसे एक दीपक दिया अर्थात् उसके पुत्र को उसके बाद ठहराया और यरुशलेम को बनाए रखा. क्योंकि दाऊद वह किया करता था जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था और हित्ती ऊरिय्याह की बात के सिवाय और किसी बात में यहोवा की किसी आज्ञा से जीवन भर कभी नहीं मुड़ा' (वव.4-6).
अपनी मृत्यु के बहुत समय बाद भी दाऊद प्रभाव बना रहे थे. पीढ़ीयों के लिए परमेश्वर ने उनकी प्रार्थनाओं का सम्मान किया था.
परमेश्वर ने दाऊद से कहा था, 'वरन् तेरा घराना और तेरा राज्य मेरे सामने सदा अटल बना रहेगा; तेरी गद्दी सदैव बनी रहेगी' (2शमुएल 7:16). दाऊद ने प्रार्थना की थी, 'अब हे यहोवा परमेश्वर, तू ने जो वचन अपने दास के और उसके घराने के विषय में दिया है, उसे सदा के लिये स्थिर कर, और अपने कहने के अनुसार ही कर; और यह कर कि लोग तेरे नाम की महिमा सदा किया करें, कि सेनाओं का यहोवा इस्राएल के ऊपर परमेश्वर है; और तेरे दास दाऊद का घराना तेरे सामने अटल रहे' (वव.15-26).
परमेश्वर ने दाऊद की प्रार्थना को सुना. दाऊद की प्रार्थना का प्रभाव था कि इतिहास की दिशा को बदले. दाऊद ने एक सत्यनिष्ठ जीवन जीया था (ऊरिया और हित्ती के मामले के सिवाय). किंतु, नया नियम हमें बताता है कि जो कोई यीशु में विश्वास करता है, वह दाऊद से बेहतर अवस्था में है. यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा आप परमेश्वर के सम्मुख सत्यनिष्ठ हैं. परमेश्वर सत्यनिष्ठ की प्रार्थना को सुनते हैं. इसलिए यीशु के कारण, आपकी प्रार्थनाएँ भी इतिहास की दिशा को बदल सकती हैं.
प्रार्थना
परमेश्वर, आप हमारे शहर और हमारे देश को अपनी ओर फेर लीजिए. मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप ऐसे लीडर्स और राजनीतिज्ञों को उठायेंगे, जो पूरी तरह से आपके लिए समर्पित हैं, जो बुराई को दूर करेंगे और हमारे विश्व में शांति और न्याय को लायेंगे.
पिप्पा भी कहते है
सुलैमान संपूर्ण विश्व में सबसे बुद्धिमान मनुष्य रहे होंगे लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने पिता के रूप में एक अच्छा काम नहीं किया. उन्हे इस नीतिवचन को लगाना चाहिए था, जिसे उन्होंने लिखा है, 'लड़के को उसी मार्ग की शिक्षा दें जिसमें उसको चलना चाहिए' (नीतिवचन 22:6).
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संदर्भ
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