सामर्थ से सामना किया जाता है
परिचय
कुछ सालों पहले, डेविड (यह उनका असली नाम नहीं है), एक युवा वकील, अल्फा के हमारे छोटे समूह में थे. पहली रात में उन्होंने हमें बताया कि वह एक नास्तिक थे और छोटे समूह की व्यवस्था को भंग करने के उद्देश्य से आये थे, और हर बार जब आते थे तब यही करने का प्रयास करते थे. बहुत से लोग जिस व्यवहार के साथ आते हैं, उनमें से यह पूरी शिक्षा में थोड़ा भी नहीं बदले.
'मैं कैसे बुराई को रोक सकता हूँ' के विषय में बातचीत के बाद, एक युवा महिला, सारा (यह उनका असली नाम नहीं है), जो एक मसीह नहीं थी, उसने कहा कि वह बुराई की सामर्थ में विश्वास नहीं करती थी. यह मुख्य अड़चन थी उनके मसीह बनने में.
लेकिन उस शाम के बाद डेविड बिना किसी कारण के बहुत क्रोधित हो गए, इस तरह से जैसे शैतानी ताकत ने उनका नियंत्रण ले लिया हो, उन्होंने एक भयानक तरीके से हमारे समूह के एक सहायक को भौतिक रूप से डराया. सारा ने इस घटना को देखा. उसने सहायक की स्तंभित कर देनेवाली प्रतिक्रिया पर परमेश्वर की सामर्थ को सौम्यता से नियंत्रित करते हुए देखा. उसकी आँखे आत्मिक विश्व के लिए खुल गई. उस रात उन्होंने यीशु में विश्वास किया.
जॉन विम्बर ने परिभाषित किया 'सामर्थ से सामना होता है' परमेश्वर के राज्य और शैतान के राज्य के बीच टक्कर के रूप में.
पौलुस प्रेरित लिखते हैं, 'हमारी लड़ाई माँस और लहू के विरोध में नहीं है, लेकिन...बुराई के आत्मिक बलों के विरोध में है' (इफीसियो 6:12). आपमें परमेश्वर की सामर्थ बुराई की सामर्थ से बड़ी है.
भजन संहिता 78:32-39
32 फिर भी लोग पाप करते रहे!
वे उन अदूभुत कर्मो के भरोसा नहीं रहे, जिनको परमेश्वर कर सकता है।
33 सो परमेश्वर ने उनके व्यर्थ जीवन को
किसी विनाश से अंत किया।
34 जब कभी परमेश्वर ने उनमें से किसी को मारा, वे बाकि परमेश्वर की ओर लौटने लगे।
वे दौड़कर परमेश्वर की ओर लौट गये।
35 वे लोग याद करेंगे कि परमेश्वर उनकी चट्टान रहा था।
वे याद करेंगे कि परम परमेश्वर ने उनकी रक्षा की।
36 वैसे तो उन्होंने कहा था कि वे उससे प्रेम रखते हैं।
उन्हेंने झूठ बोला था। ऐसा कहने में वे सच्चे नहीं थे।
37 वे सचमुच मन से परमेश्वर के साथ नहीं थे।
वे वाचा के लिये सच्चे नहीं थे।
38 किन्तु परमेश्वर करूणापूर्ण था।
उसने उन्हें उनके पापों के लिये क्षमा किया, और उसने उनका विनाश नहीं किया।
परमेश्वर ने अनेकों अवसर पर अपना क्रोध रोका।
परमेश्वर ने अपने को अति कुपित होने नहीं दिया।
39 परमेश्वर को याद रहा कि वे मात्र मनुष्य हैं।
मनुष्य केवल हवा जैसे है जो बह कर चली जाती है और लौटती नहीं।
समीक्षा
बुराई के स्वभाव को समझे
परमेश्वर चाहते हैं कि हम अपनी गलतियों से सीख लें और उसी पाप को बार-बार दोहराते नहीं रहे. परमेश्वर के लोगों का इतिहास यह है कि, परमेश्वर ने उनके लिए जो कुछ किया, 'उन सभी चीजों के बावजूद' 'वे निरंतर पाप करते रहे' (32अ).
परमेश्वर, हमारे लिए उनके प्रेम में, हमारी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं. यद्पि उनके पास सामर्थ है हमारी स्वतंत्रता को रद्द करने की, पर वह ऐसा नहीं करते हैं.
'परमेश्वर के आश्चर्यकर्में के बावजूद, उन्होंने विश्वास नहीं किया' (व.32ब). उन्होंने अपने लोगों के प्रति दैवीय रूप से काम किया. उन्होंने उन्हें अनुशासित किया और वे उसके पास आए (व.34). 'तब भी उन्होंने उसकी चापलूसी की; वे उस से झूठ बोले. क्योंकि उनका हृदय उसकी ओर दृढ़ न था; न वे उसकी वाचा के विषय में सच्चे थे' (वव.36-37, एम.एस.जी). 'परंतु वह जो दयालु हैं, वह उनकी बुराई को ढाँकते, और उन्हें नष्ट नहीं करते; वह बार बार अपने क्रोध को ठंडा करते हैं, और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देते' (व.38).
क्यों परमेश्वर की सामर्थ के बावजूद अक्सर बुराई प्रबल होती हुई दिखाई देती है? शायद से यह लेखांश हमें उत्तर का भाग देता है. यह केवल परमेश्वर की दैवीय सामर्थ और बुराई की दैवीय सामर्थ के बीच एक टक्कर नहीं है. मनुष्य और मानवीय स्वतंत्रता समीकरण का भाग है. जैसा कि प्रेरित याकूब लिखते हैं, ' परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा से खिंचकर और फँसकर परीक्षा में पड़ता है' (याकूब 1:14).
जैसे ही आप इस भजन में परमेश्वर की सामर्थ के बारे में पढ़ते हैं, याद रखिये कि पवित्र आत्मा के द्वारा, वह सामर्थ अब आपमें रहती है.
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद आपकी दया और क्षमा के लिए और मुझमें रहने वाली पवित्र आत्मा की सामर्थ के लिए. मेरी सहायता करिए कि हमेशा आपके प्रति मैं ईमानदार रहूँ (भजनसंहिता 78:37).
प्रेरितों के काम 18:9-19:13
9 एक रात सपने में प्रभु ने पौलुस से कहा, “डर मत, बोलता रह और चुप मत हो। 10 क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ। सो तुझ पर हमला करके कोई भी तुझे हानि नहीं पहुँचायेगा क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं।” 11 सो पौलुस, वहाँ डेढ़ साल तक परमेश्वर के वचन की उनके बीच शिक्षा देते हुए, ठहरा।
पौलुस का गल्लियों के सामने लाया जाना
12 जब अखाया का राज्यपाल गल्लियो था तभी यहूदी एक जुट हो कर पौलुस पर चढ़ आये और उसे पकड़ कर अदालत में ले गये। 13 और बोले, “यह व्यक्ति लोगों को परमेश्वर की उपासना ऐसे ढंग से करने के लिये बहका रहा है जो व्यवस्था के विधान के विपरीत है।”
14 पौलुस अभी अपना मुँह खोलने को ही था कि गल्लियो ने यहूदियो से कहा, “अरे यहूदियों, यदि यह विषय किसी अन्याय या गम्भीर अपराध का होता तो तुम्हारी बात सुनना मेरे लिये न्यायसंगत होता। 15 किन्तु क्योंकि यह विषय शब्दों नामों और तुम्हारी अपनी व्यवस्था के प्रश्नों से सम्बन्धित है, इसलिए इसे तुम अपने आप ही निपटो। ऐसे विषयों में मैं न्यायाधीश नहीं बनना चाहता।” 16 और फिर उसने उन्हें अदालत से बाहर निकाल दिया।
17 सो उन्होंने आराधनालय के नेता सोस्थिनेस को धर दबोचा और अदालत के सामने ही उसे पीटने लगे। किन्तु गल्लियो ने इन बातों पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया।
पौलुस की वापसी
18 बहुत दिनों बाद तक पौलुस वहाँ ठहरा रहा। फिर भाइयों से विदा लेकर वह नाव के रास्ते सीरिया को चल पड़ा। उसके साथ प्रिसकिल्ला तथा अक्विला भी थे। पौलुस ने किंखिया में अपने केश उतरवाये क्योंकि उसने एक मन्नत मानी थी। 19 फिर वे इफिसुस पहुँचे और पौलुस ने प्रिसकिल्ला और अक्विला को वहीं छोड़ दिया। और आप आराधनालय में जाकर यहूदियों के साथ बहस करने लगा। 20 जब वहाँ के लोगों ने उससे कुछ दिन और ठहरने को कहा तो उसने मना कर दिया। 21 किन्तु जाते समय उसने कहा, “यदि परमेश्वर की इच्छा हुई तो मैं तुम्हारे पास फिर आऊँगा।” फिर उसने इफिसुस से नाव द्वारा यात्रा की।
22 फिर कैसरिया पहुँच कर वह यरूशलेम गया और वहाँ कलीसिया के लोगों से भेंट की। फिर वह अन्ताकिया की ओर चला गया। 23 वहाँ कुछ समय बिताने के बाद उसने विदा ली और गलातिया एवम् फ्रूगिया के क्षेत्रों में एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करते हुए सभी अनुयायिओं के विश्वास को बढ़ाने लगा।
इफिसुस में अपुल्लोस
24 वहीं अपुल्लोस नाम का एक यहूदी था। वह सिकंदरिया का निवासी था। वह विद्वान वक्ता था। वह इफिसुस में आया। शास्त्रों का उसे सम्पूर्ण ज्ञान था। 25 उसे प्रभु के मार्ग की दीक्षा भी मिली थी। वह हृदय में उत्साह भर कर प्रवचन करता तथा यीशु के विषय में बड़ी सावधानी में उपदेश देता था। यद्यपि उसे केवल यूहन्ना के बपतिस्मा का ही ज्ञान था। 26 यहूदी आराधनालय में वह निर्भय हो कर बोलने लगा। जब प्रिस्किल्ला और अक्विला ने उसे बोलते सुना तो वे उसे एक ओर ले गये और अधिक बारीकी के साथ उसे परमेश्वर के मार्ग की व्याख्या समझाई।
27 सो जब उसने अखाया को जाना चाहा तो भाइयों ने उसका साहस बढ़ाया और वहाँ के अनुयायिओं को उसका स्वागत करने को लिख भेजा। जब वह वहाँ पहुँचा तो उनके लिये बड़ा सहायक सिद्ध हुआ जिन्होंने परमेश्वर के अनुग्रह से विश्वास ग्रहण कर लिया था। 28 क्योंकि शास्त्रों से यह प्रमाणित करते हुए कि यीशु ही मसीह है, उसने यहूदियों को जनता के बीच जोरदार शब्दों में बोलते हुए शास्त्रार्थ में पछाड़ा था।
पौलुस इफ़िसुस में
19ऐसा हुआ कि जब अपुल्लोस कुरिन्थुस में था तभी पौलुस भीतरी प्रदेशों से यात्रा करता हुआ इफिसुस में आ पहुँचा। वहाँ उसे कुछ शिष्य मिले। 2 और उसने उनसे कहा, “क्या जब तुमने विश्वास धारण किया था तब पवित्र आत्मा को ग्रहण किया था?”
उन्होंने उत्तर दिया, “हमने तो सुना तक नहीं है कि कोई पवित्र आत्मा है भी।”
3 सो वह बोला, “तो तुमने कैसा बपतिस्मा लिया है?”
उन्होंने कहा, “यूहन्ना का बपतिस्मा।”
4 फिर पौलुस ने कहा, “यूहन्ना का बपतिस्मा तो मनफिराव का बपतिस्मा था। उसने लोगों से कहा था कि जो मेरे बाद आ रहा है, उस पर अर्थात यीशु पर विश्वास करो।”
5 यह सुन कर उन्होंने प्रभु यीशु के नाम का बपतिस्मा ले लिया। 6 फिर जब पौलुस ने उन पर अपने हाथ रखे तो उन पर पवित्र आत्मा उतर आया और वे अलग अलग भाषाएँ बोलने और भविष्यवाणियाँ करने लगे। 7 कुल मिला कर वे कोई बारह व्यक्ति थे।
8 फिर पौलुस यहूदी आराधनालय में चला गया और तीन महीने निडर होकर बोलता रहा। वह यहूदियों के साथ बहस करते हुए उन्हें परमेश्वर के राज्य के विषय में समझाया करता था। 9 किन्तु उनमें से कुछ लोग बहुत हठी थे उन्होंने विश्वास ग्रहण करने को मना कर दिया और लोगों के सामने पंथ को भला बुरा कहते रहे। सो वह अपने शिष्यों को साथ ले उन्हें छोड़ कर चला गया। और तरन्नुस की पाठशाला में हर दिन विचार विमर्श करने लगा। 10 दो साल तक ऐसा ही होता रहा। इसका परिणाम यह हुआ कि सभी एशिया निवासी यहूदियों और ग़ैर यहूदियों ने प्रभु का वचन सुन लिया।
स्कीवा के बेटे
11 परमेश्वर पौलुस के हाथों अनहोने आश्चर्य कर्म कर रहा था। 12 यहाँ तक कि उसके छुए रूमालों और अँगोछों को रोगियों के पास ले जाया जाता और उन की बीमारियाँ दूर हो जातीं तथा दुष्टात्माएँ उनमें से निकल भागतीं।
13-14 कुछ यहूदी लोग, जो दुष्टात्माएँ उतारते इधर-उधर घूमा फिरा करते थे। यह करने लगे कि जिन लोगों में दुष्टात्माएँ समायी थीं, उन पर प्रभु यीशु के नाम का प्रयोग करने का यत्न करते और कहते, “मैं तुम्हें उस यीशु के नाम पर जिसका प्रचार पौलुस करता है, आदेश देता हूँ।” एक स्कीवा नाम के यहूदी महायाजक के सात पुत्र जब ऐसा कर रहे थे।
समीक्षा
बुराई की सामर्थ के ऊपर अधिकार लें
पवित्र आत्मा की सामर्थ से भरकर, प्रेरित पौलुस ने बुराई को दूर किया. उन्होंने एक 'सामूहिक प्रहार' का सामना किया (18:12). एक रात परमेश्वर ने पौलुस से एक दर्शन में बात कीः ' मत डर, वरन् कहे जा और चुप मत रह; क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ, और कोई तुझ पर चढ़ाई करके तेरी हानि न करेगा; क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं' (वव.9-10). 'इसमें बने रहने के लिए उसे इसीकी आवश्यकता थी' (व.11, एम.एस.जी).
संभवत:व्यत परमेश्वर ने पौलुस से इस तरह से बात की क्योंकि बुराई के सामने उनकी परीक्षा हो रही थी (दोष लगाकर फिर घसीटते हुए न्यायालय में ले जाने के कारण) कि डर जाए, बोलना छोड़ दें और चुप हो जाए. विरोध के सामने हार न माने.
पौलुस ने देखा कि अच्छाई और बुराई के बीच में सामर्थ टकराती हैः ' परमेश्वर पौलुस अपने हाथों से सामर्थ के अनोखे काम दिखाता था. यहाँ तक कि रूमाल और अंगोछे उसकी देह से स्पर्श करा कर बीमारों पर डालते थे, और उनकी बीमारियाँ चली जाती थीं; और दुष्टात्माएँ उनमें से निकल जाया करती थीं' (19:11-12).
पौलुस की सेवकाई में परमेश्वर की सामर्थ इतनी आकर्षित करने वाली थी कि यहाँ तक कि जो लोग मसीह नहीं थे, उन्होंने 'प्रभु यीशु का नाम उन लोगों पर इस्तेमाल करना शुरु कर दिया जो दुष्टात्मा से ग्रस्त थे. वे कहते थे, 'यीशु के नाम में, जिसका प्रचार पौलुस करते हैं, मैं तुम्हें बाहर निकलने का आदेश देता हूँ' (व.13). कल हम इस प्रयास के खतरे को देखेंगे (वव.14-16). इन यहूदी ओझाओं के द्वारा यीशु के नाम की 'सामर्थ का इस्तेमाल' करने के प्रयास का परिणाम बहुत बुरा हुआ.
चमत्कारों को करने की यीशु की सामर्थ के द्वारा पौलुस ने बुराई की सामर्थ पर जय पायी. यह बहुमूखी तरीके का भाग जिसमें पवित्र आत्मा ने उनके साथ उनकी सेवकाई में कार्य कियाः
- शिक्षा
'इसलिये वह उनमें परमेश्वर का वचन सिखाते हुए डेढ़ वर्ष तक रहा' (18:11, एम.एस.जी.).
- सिखाना
पौलुस ने 'सभी चेलों को मजबूत करते हुए' समय बिताया (व.23). प्रिस्किल्ला और अक्विला शायद से वे लोग थे जिन्हें उसने सिखाया. अक्सर जो अच्छी तरह से सिखाए गए हैं, वह सर्वश्रेष्ठ सिखाने वाले बनते हैं.
उदाहरण के लिए, प्रिस्किल्ला और अक्विला ने अपुल्लोस को सिखाया. अपुल्लोस 'जो विद्वान पुरुष था और पवित्रशास्त्र को अच्छी तरह से जानता था, इफिसुस में आया. उसने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक ठीक सुनाता और सिखाता था' (वव.24-25, एम.एस.जी).
प्रिस्किल्ला और अक्विला ने उसे अलग से लिया. ' वे उसे अपने यहाँ ले गए और परमेश्वर का मार्ग उसको और भी ठीक ठीक बताया' (व.26). तब वह और अधिक प्रभावी बन गए. 'वह उन लोगों के लिए एक बड़ी सहायता थे, जिन्होंने अनुग्रह के द्वारा विश्वास किया था' (व.27).
- 'सेवकाई'
हम पवित्र आत्मा की सामर्थ में 'सेवकाई' के एक उदाहरण को देखते हैं. जब पौलुस ने उन पर हाथ रखे, तो पवित्र आत्मा उन पर उतरा, और वे भिन्न – भिन्न भाषा बोलने और भविष्यद्वाणी करने लगे (19:6). हर अल्फा सप्ताह में हमारे पास लोगों पर हाथ रखने और उनके लिए प्रार्थना करने की महान सुविधा होती है कि वे पवित्र आत्मा से भर जाए.
- चर्चा
पौलुस 'प्रतिदिन तुरन्नुस की पाठशाला में वाद-विवाद किया करता था' (व.9). अल्फा में छोटे समूह की चर्चा शायद से शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण भाग है. यह लोगों को छान बीन करने और हर मामले के विषय में चर्चा करने और अपने प्रश्नों का उत्तर पाने का अवसर प्रदान करता है.
- पाशंसक-विद्या
अ. चर्चा के भाग में शामिल था 'क्षमा-याचना'. यह शब्द 'अपोलोजिया' से लिया गया है', जिसका इस्तेमाल पौलुस जाँच के समय करते हैं, जब वह कहते हैं, 'मैं अपना बचाव (अपोलोजिया) करता हूँ' (26:2). इसका अर्थ है विरोधों और गलत तरीके से प्रस्तुतिकरण के विरोध में मसीह विश्वास के लिए एक तर्क संगत आधार प्रस्तुत करना.
ब.पौलुस ने उनके साथ 'तर्क वितर्क किया' (18:19). वह आराधनालय में जाकर तीन महीने तक निडर होकर बोलता रहा, और परमेश्वर के राज्य के विषय में वाद विवाद करता और समझाता रहा (19:8, ए.एम.पी). उन्होंने अपुल्लोस को सिखाया, जो लोगों के साथ वाद-विवाद में जुड़ गए थे, 'वचनों से बताते हुए कि यीशु मसीह थे' (18:28).
यहाँ पर हम सेवकाई के विभिन्न क्षेत्रों को देखते हैं जहाँ पर हमें प्रशिक्षण की आवश्यकता है और जिन्हें हमारे सिद्धांतवादी कॉलेज, प्रशिक्षण विद्यालय और सभी चर्च सदस्य के चेलों को लेने की आवश्यकता है.
प्रार्थना
परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि पौलुस की तरह सेवकाई कर पाये आत्मा की सामर्थ में परमेश्वर के वचन की घोषणा करते हुए और यीशु के नाम के द्वारा बुराई की ताकतों पर जय पाते हुए.
1 राजा 20:1-21:29
बेन्हदद और अहाब युद्ध में उतरते हैं
20बेन्हदद अराम का राजा था। उसने अपनी सारी सेना इकट्ठी की। उसके साथ बत्तीस राजा थे। उनके पास घोड़े और रथ थे। उन्होंने शोमरोन पर आक्रमण किया और उसके विरुद्ध लड़े। 2 राजा ने नगर में इस्राएल के राजा अहाब के पास दूत भेजे। 3 सूचना यह थी, “बेन्हदद कहता है, ‘तुम्हें अपना सोना—चाँदी मुझे देना पड़ेगा। तुम्हें अपनी पत्नियाँ और बच्चे भी मुझको देने होंगे।’”
4 इस्राएल के राजा ने उत्तर दिया, “ऐ मेरे स्वामी राजा! मैं स्वीकार करता हूँ कि अब मैं आपके अधीन हूँ और जो कुछ मेरा है वह आपका है।”
5 तब दूत अहाब के पास वापस आया। उन्होंने कहा, “बेन्हदद कहता है, ‘मैंने पहले ही तुमसे कहा था कि तुम्हें सारा सोना चाँदी तथा अपनी स्त्रियों, बच्चों को मुझको देना पड़ेगा। 6 अब मैं अपने व्यक्तियों को भेजना चाहता हूँ जो महल में सर्वत्र और तुम्हारे आधीन शासन करने वाले और अधिकारियों के घरों में खोज करेंगे। मेरे व्यक्ति जो चाहेंगे लेंगे।’”
7 अत: राजा अहाब ने अपने देश के सभी अग्रजों (प्रमुखों) की एक बैठक बुलाई। अहाब ने कहा, “देखो बेन्हदद विपत्ति लाना चाहता है। प्रथम तो उसने मुझसे यह माँग की है कि मैं उसे अपनी पत्नियाँ, अपने बच्चे और अपना सोना—चाँदी दे दूँ। मैंने उसे वे चीजें देनी स्वीकार कर लीं और अब वह सब कुछ लेना चाहता है।”
8 किन्तु अग्रजों (प्रमुखों) और सभी लोगों ने कहा, “उसका आदेश न मानो। वह न करो जिसे करने को वह कहता है।”
9 इसलिये अहाब ने बेन्हदद को सन्देश भेजा। अहाब ने कहा, “मैं वह कर दूँगा जो तुमने पहले कहा था। किन्तु मैं तुम्हारे दूसरे आदेश का पालन नहीं कर सकता।”
राजा बेन्हदद के दूत सन्देश राजा तक ले गये। 10 तब वे बेन्हदद के अन्य सन्देश के साथ लौटे। सन्देश यह था, “मैं शोमरोन को पूरी तरह नष्ट करूँगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि उस नगर का कुछ भी नहीं बचेगा। उस नगर का इतना कुछ भी नहीं बचेगा कि वह हमारे व्यक्तियों के लिये नगर की यादगार के रूप में अपने घर ले जाने को पर्याप्त हो। परमेश्वर मुझे नष्ट कर दे यदि मैं ऐसा करूँ।”
11 राजा अहाब ने उत्तर दिया, “बेन्हदद से कहो कि उस व्यक्ति को, जिसने अपना कवच धारण किया हो, उस व्यक्ति की तरह डींग नहीं हाँकनी चाहिये जो उसे उतारने के लिये लम्बा जीवन जीता है।”
12 राजा बेन्हदद अपने अन्य प्रशासकों के साथ अपने तम्बू में मदिरा पान कर रहा था। उसी समय दूत आया और उसने राजा अहाब का सन्देश दिया। राजा बेन्हदद ने अपने व्यक्तियों को नगर पर आक्रमण करने के लिये तैयार होने को कहा। अत: सैनिक युद्ध के लिये अपना स्थान लेने बढ़े।
13 इसी समय, एक नबी, राजा अहाब के पास पुहँचा। नबी ने कहा, “राजा अहाब यहोवा तुमसे कहता है, ‘क्या तुम उस बड़ी सेना को देखते हो! मैं यहोवा, आज तुम्हें उस सेना को हराने दूँगा। तब तुम जानोगे कि मैं यहोवा हूँ।’”
14 अहाब ने कहा, “उन्हें पराजित करने के लिये तुम किसका उपयोग करोगे”
नबी ने उत्तर दिया, “यहोवा कहता है, ‘सरकारी अधिकारियों के युवक सहायक।’”
तब राजा ने पूछा, “मुख्य सेना का सेनापतित्व कौन सम्भालेगा”
नबी ने उत्तर दिया, “तुम सम्भालेगा।”
15 अत: अहाब ने सरकारी अधिकारियों के युवक सहायकों को इकट्ठा किया। सब मिलाकर ये दो सौ बत्तीस युवक थे। तब राजा ने इस्राएल की सेना को एक साथ बुलाया। सारी संख्या सात हजार थी।
16 दोपहर को, राजा बेन्हदद और उसके सहायक बत्तीस राजा अपने डेरे में मदिरा पान कर रहे थे और मद मत्त हो रहे थे। इसी समय राजा अहाब का आक्रमण आरम्भ हुआ। 17 युवक सहायकों ने प्रथम आक्रमण किया। बेन्हदद के व्यक्तियों ने उससे कहा कि सैनिक शोमरोन से बाहर निकल आये हैं। 18 अत: बेन्हदद ने कहा, “वे युद्ध करने के लिये आ रहे होंगे या वे शान्ति—सन्धि करने आ रहे होंगे। उन्हें जीवित पकड़ लो।”
19 राजा अहाब के युवक आक्रमण की पहल कर रहे थे। इस्राएल की सेना उनके पीछे चल रही थी। 20 किन्तु इस्राएल के हर एक व्यक्ति ने उस पुरुष को मार डाला जो उसके विरुद्ध आया। अत: अराम के सैनिकों ने भागना आरम्भ किया। इस्राएल की सेना ने उनका पीछा किया। राजा बेन्हदद अपने रथों के एक घोड़े पर बैठकर भाग निकला। 21 राजा अहाब सेना को लेकर आगे बढ़ा और उसने अराम की सेना के सारे घोड़ों और रथों को ले लिया। इस प्रकार राजा अहाब ने अरामी सेना को भारी पराजय दी।
22 तब नबी राजा अहाब के पास पहुँचा और कहा, “अराम का राजा बेन्हदद अगले बसन्त में तुमसे युद्ध करने के लिये फिर आयेगा। अत: तुम्हें अब घर लौट जाना चाहिये और अपनी सेना को पहले से अधिक शक्तिशाली बनाना चाहिये और उसके विरुद्ध सुरक्षा की सुनियोजित योजना बनानी चाहिये।”
बेन्हदद पुन: आक्रमण करता है
23 राजा बेन्हदद के अधिकारियों ने उससे कहा, “इस्राएल के देवता पर्वतीय देवता है। हम लोग पर्वतीय क्षेत्र में लड़े थे। इसलिये इस्राएल के लोग विजयी हुए। अतः हम लोग उनसे समतल मैदान में युद्ध करें। तब हम विजय पाएंगे। 24 तुम्हें यही करना चाहिए। बत्तीस राजाओं को सेना का सेनापतित्व करने को अनुमति न दो। सेनापतियों को ही अपनी सेना का संचालन करने दो। 25 अब तुम वैसी ही सेना बनाओ जो नष्ट हुई सेना की तरह हो। उसी सेना की तरह घोड़े और रथ इकट्ठे करो। तब हम लोग इस्राएलियों से समतल मैदान में युद्ध करें। तब हम विजय प्राप्त करेंगे।” बेन्हदद ने उनकी सलाह मान ली। उसने वही किया जो उन्होंने कहा।
26 अत: बसन्त में बेन्हदद ने अराम के लोगों को इकट्ठा किया। वह इस्राएल के विरुद्ध युद्ध करने अपेक गया।
27 इस्राएलियों ने भी युद्ध की तैयारी की। इस्राएल के लोग अराम की सेना से लड़ने गये। उन्होंने अपने डेरे अराम के डेरे के सामने डाले। शुत्र की तुलना में इस्राएली बकरियों के दो छोटे झुण्डों के समान दिखाई पड़ते थे किन्तु अराम की सेना सारे क्षेत्र को ढकी थी।
28 परमेश्वर का एक व्यक्ति इस सन्देश के साथ इस्राएल के राजा के पास आया: “यहोवा ने कहा है, ‘अराम के लोगों ने कहा है कि मैं अर्थात् यहोवा पर्वतों का परमेश्वर हूँ। वे समझते हैं कि घाटियों का परमेश्वर मैं नहीं हूँ। इसलिए मैं तुम्हें इस विशाल सेना को पराजित करने दूँगा। तब तुम समझोगे कि मैं यहोवा सर्वत्र हूँ।’”
29 सेनायें सात दिन तक एक दूसरे के आमने सामने डेरा डाले रहीं। सातवें दिन युद्ध आरम्भ हुआ। इस्राएलियों ने एक दिन में अराम के एक लाख सैनिकों को मार डाला। 30 बचे हुए सैनिक अपेक नगर को भाग गए। नगर प्राचीर उन सत्ताईस हजार सैनिकों पर गिर पड़ी। बेन्हदद भी नगर को भाग गया। वह एक कमरे में छिप गया। 31 उसके सेवकों ने उससे कहा, “हम लोगों ने सुना है कि इस्राएल कुल के राजा लोग दयालु हैं। हम लोग मोटे वस्त्र पहने और सिर पर रस्सी डाले। तब हम लोग इस्राएल के राजा के पास चलें। सभंव है, वह हमें जीवित रहने दे।”
32 उन्होंने मोटे वस्त्र पहने और रस्सी सिर पर डाली। वे इस्राएल के राजा के पास आए। उन्होंने कहा, “तुम्हारा सेवक बेन्हदद कहता है, ‘कृपया मुझे जीवित रहने दे।’”
अहाब ने उत्तर दिया, “क्या वह अभी तक जीवित है वह मेरा भाई है।”
33 बेन्हदद के व्यक्ति राजा अहाब से ऐसा कुछ कहलवाना चाहते थे, जिससे यह पता चले कि वह बेन्हदद को नहीं मारेगा। जब अहाब ने बेन्हदद को भाई कहा तो सलाहकारों ने तुरन्त कहा, “हाँ! बेन्हदद आपका भाई है।”
अहाब ने कहा, “उसे मेरे पास लाओ।” अत: बेन्हदद राजा अहाब के पास आया। राजा अहाब ने अपने साथ उसे अपने रथ में बैठने को कहा।
34 बेन्हदद ने उससे कहा, “अहाब मैं उन नगरों को तुम्हें दे दूँगा जिन्हें मेरे पिता ने तुम्हारे पिता से ले लिये थे और तुम दमिश्क में वैसे ही दुकाने रख सकते हो जैसे मेरे पिता ने शोमरोन में रखी थीं।”
अहाब ने उत्तर दिया, “यदि तुम इसे स्वीकार करते हो तो मैं तुम्हें जाने के लिये स्वतन्त्र करता हूँ।” अत: दोनों राजाओं ने एक शान्ति—सन्धि की। तब राजा अहाब ने बेन्हदद को जाने के लिये स्वतन्त्र कर दिया।
एक नबी अहाब के विरुद्ध भविष्यवाणी करता है
35 नबियों में से एक ने दूसरे नबी से कहा, “मुझ पर चोट करो!” उसने उससे यह करने के लिये कहा क्योंकि यहोवा ने ऐसा आदेश दिया था। किन्तु दूसरे नबी ने उस पर चोट करने से इन्कार कर दिया। 36 इसलिये पहले नबी ने कहा, “तुमने यहोवा के आदेस का पालन नहीं किया। अत: जब तुम इस स्थान को छोड़ोगे, एक सिंह तुम्हें मार डालेगा।” दूसरे नबी ने उस स्थान को छोड़ा और उसे एक सिंह ने मार डाला।
37 प्रथम नबी दूसरे व्यक्ति के पास गया और कहा, “मुझ पर चोट करो।” उस व्यक्ति ने उस पर चोट की। नबी को चोट आई। 38 अत: नबी ने अपने चेहरे पर एक वस्र लपेट लिया। इस प्रकार कोई यह नहीं समझ सकता था कि वह कौन है। वह नबी गया और उसने सड़क के किनारे राजा की प्रतीक्षा आरम्भ की। 39 राजा उधर से निकला और नबी ने उससे कहा, “मैं युद्ध में लड़ने गया था। हमारे व्यक्तियों में से मेरे पास शत्रु सैनिक को लाया। उस व्यक्ति ने कहा, ‘इस व्यक्ति की पहरेदारी करो। यदि यह भाग गया तो इसके स्थान पर तुम्हें अपना जीवन देना होगा या तुम्हें पचहत्तर पौंड चाँदी जुर्माने में देनी होगी।’ 40 किन्तु मैं अन्य कामों में व्यस्त हो गया। अतः वह व्यक्ति भाग निकला।”
इस्राएल के राजा ने कहा, “तुमने कहा है कि तुम सैनिक को भाग जाने देने के अपराधी हो। अत: तुमको उत्तर मालूम है। तुम्हें वही करना चाहिये जिसे करने को उस व्यक्ति ने कहा है।”
41 तब नबी ने अपने मुख से कपड़े को हटाया। इस्राएल के राजा ने देखा और यह जान लिया कि वह नबियों में से एक है। 42 तब नबी ने राजा से कहा, “यहोवा तुमसे यह कहता है, ‘तुमने उस व्यक्ति को स्वतन्त्र किया जिसे मैंने मर जाने को कहा। अत: उसका स्थान तुम लोगे, तुम मर जाओगे और तुम्हारे लोग दुश्मनों का स्थान लेंगे, तुम्हारे लोग मरेंगे।’”
43 तब राजा अपने घर शोमरोन लौट गया। वह बहुत परेशान और घबराया हुआ था।
नाबोत के अंगूर का बाग
21राजा अहाब का महल शोमरोन में था। महल के पास एक अंगूरों का बाग था। यिज्रेल नाबोत नामक व्यक्ति इस फलों के बाग का स्वामी था। 2 एक दिन अहाब ने नाबोत से कहा, “अपना यह फलों का बाग मुझ दे दो। मैं इसे सब्जियों का बाग बनाना चाहता हूँ। तुम्हारा बाग मेरे महल के पास है। मैं इसके बदले तुम्हें इससे अच्छा अंगूर का बाग दूँगा या, यदि तुम पसन्द करोगे तो इसका मूल्य मैं सिक्कों में चुकाऊँगा।”
3 नाबोत ने उत्तर दिया, “मैं अपनी भूमि तुम्हें कभी नहीं दूँगा। यह भूमि मेरे परिवार की है।”
4 अत: अहाब अपने घर गया। वह नाबोत पर क्रोधित और बिगड़ा हुआ था। उसने उस बात को पसन्द नहीं किया जो यिज्रेल के व्यक्ति ने कही थी। (नाबोत ने कहा था, “मैं अपने परिवार की भूमि तुम्हें नहीं दूँगा।”)
अहाब अपने बिस्तर पर लेट गया। उसने अपना मुख मोड़ लिया और खाने से इन्कार कर दिया।
5 अहाब की पत्नी ईज़ेबेल उसके पास गई। ईज़ेबेल ने उससे कहा, “तुम घबराये क्यों हो तुमने खाने से इन्कार क्यों किया है” 6 अहाब ने उत्तर दिया, “मैंने यिज्रेल के नाबोत से उसकी भूमि माँगी। मैंने उससे कहा कि मैं उसकी पूरी कीमत चुकाऊँगा, या, यदि वह चाहेगा तो मैं उसे दूसरा बाग दूँगा। किन्तु नाबोत ने अपना बाग देने से इन्कार कर दिया।”
7 ईज़ेबेल ने उत्तर दिया, “किन्तु तुम तो पूरे इस्राएल के राजा हो अपने बिस्तर से उठो। कुछ भोजन करो, तुम अपने को स्वस्थ अनुभव करोगे। मैं नाबोत का बाग तुम्हारे लिये ले लूँगी।”
8 तब ईजेबेल ने कुछ पत्र लिखे। उसने पत्रों पर अहाब के हस्ताक्षर बनाये। उसने अहाब की मुहर पत्रों को बन्द करने के लिये उन पर लगाई। तब उसने उन्हें अग्रजों (प्रमुखों) और विशेष व्यक्तियों के पास भेजे जो उसी नगर में रहते थे जिसमें नाबोत रहता था। 9 पत्र में यह लिखा था:
“यह घोषणा करो कि एक ऐसा दिन होगा जिस दिन लोग कुछ भी भोजन नहीं करेंगे। तब नगर के सभी लोगों की एक साथ एक बैठक बुलाओ। बैठक में हम नाबोत के बारे में बात करेंगे। 10 किसी ऐसे व्यक्ति का पता करो जो नाबोत के विषय में झूठ बोले। वे लोग यह कहें कि उन्होंने सुना कि नाबोत ने राजा और परमेश्वर के विरुद्ध कुछ बातें कहीं। तब नाबोत को नगर के बाहर ले जाओ और उसे पत्थरों से मार डालो।”
11 अतः यिज्रेल के अग्रजों (प्रमुखों) और विशेष व्यक्तियों ने उस आदेश का पालन किया। 12 प्रमुखों ने घोषणा की कि एक दिन ऐसा होगा जब सभी व्यक्ति कुछ भी भोजन नहीं करेंगे। उस दिन उन्होंने सभी लोगों की बैठक एक साथ बुलाई। उन्होंने नाबोत को विशेष स्थान पर लोगों के सामने रखा। 13 तब दो व्यक्तियों ने लोगों से कहा कि उन्होंने नाबोत को परमेश्वर और राजा के विरुद्ध बातें करते सुना है। अत: लोग नाबोत को नगर के बाहर ले गए। तब उन्होंने उसे पत्थरों से मार डाला। 14 तब प्रमुखों ने एक सन्देश ईज़ेबेल को भेजा। सन्देश था: “नाबोत पत्थरों से मार डाला गया।”
15 जब ईज़ेबले ने यह सुना तो उसने अहाब से कहा, “नाबोत मर गया। अब तुम जा सकते हो और उस बाग को ले सकते हो जिसे तुम चाहते थे।” 16 अत: अहाब अंगूरों के बाग में गया और उसे अपना बना लिया।
17 इस समय यहोवा ने एलिय्याह से बातें कीं। (एलिय्याह तिशबी का नबी था।) 18 यहोवा ने कहा, “राजा अहाब के पास शोमरोन को जाओ। अहाब नाबोत के अंगूरों के बाग में होगा। वह वहाँ पर उस बाग को अपना बनाने के लिये होगा। 19 अहाब से कहो, मैं यहोवा उससे कहता हूँ, ‘अहाब! तुमने नाबोत नामक व्यक्ति को मार डाला है। अब तुम उसकी भूमि ले रहे हो। अत: मैं तुमसे कहता हूँ, तुम भी उसी स्थान पर मरोगे जिस स्थान पर नाबोत मरा। जिन कुत्तों ने नाबोत के खून को चाटा, वे ही तुम्हारा खून उस स्थान पर चाटेंगे।’”
20 अत: एलिय्याह अहाब के पास गया। अहाब ने एलिय्याह को देखा और कहा, “तुमने मुझे फिर पा लिया है। तुम सदा मेरे विरुद्ध हो।”
एलिय्याह ने उत्तर दिया, “हाँ, मैंने तुम्हें पुन: पा लिया है। तुमने सदा अपने जीवन का उपयोग यहोवा के विरुद्ध पाप करने में किया। 21 अत: यहोवा तुमसे कहता है, ‘मैं तुम्हें नष्ट कर दूँगा। 22 मैं तुम्हें और तुम्हारे परिवार के हर एक पुरुष सदस्य को मार डालूँगा। तुम्हारे परिवार की वही दशा होगी जो दशा नाबोत के पुत्र यारोबाम के परिवार की हुई और तुम्हारा परिवार बाशा के परिवार की तरह होगा। ये दोनों पूरी तरह नषट कर दिये गये थे। मैं तुम्हारे साथ यही करूँगा क्योंकि तुमने मुझे क्रोधित किया है। तुमने इस्राएल के लोगों से पाप कराया है,’ 23 और यहोवा यह भी कहता है, ‘तुम्हारी पत्नी ईजेबेल का शव यिज्रेल नगर में कुत्ते खायेंगे। 24 तुम्हारे परिवार के किसी भी सदस्य को जो नगर में मरेगा, कुत्ते खायेंग। जो व्यक्ति मैदानों में मरेगा वह पक्षियों द्वारा खाया जाएगा।’”
25 कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसने उतने बुरे काम या पाप किये हों जितने अहाब ने किये। उसकी पत्नी ईज़ेबेल ने उससे ये काम कराये। 26 अहाब ने बहुत बुरा पाप किया और उसने उन काष्ठ के कुंदों (देव मूर्तियों) को पूजा। यह वही काम था जिसे एमोरी लोग करते थे और यहोवा ने उनसे प्रदेश छीन लिया था और इस्राएल के लोगों को दे दिया था।
27 एलिय्याह के कथन के पूरा होने पर अहाब बहुत दुःखी हुआ। उसने अपने वस्त्रों को यह दिखाने के लिये फाड़ डाला कि उसे दुःख है। तब उसने शोक के विशेष वस्त्र पहन लिये। अहाब ने खाने से इन्कार कर दिया। वह उन्हीं विशेष वस्त्रों को पहने हुए सोया। अहाब बहुत दुःखी और उदास था।
28 यहोवा ने एलिय्याह नबी से कहा, 29 “मैं देखता हूँ कि अहाब मेरे सामने विनम्र हो गया है। अत: उसके जीवन काल में मैं उस पर विपत्ति नहीं आने दूँगा। मैं तब तक प्रतीक्षा करूँगा जब तक उसका पुत्र राजा नहीं बन जाता। तब मैं अहाब के परिवार पर विपत्ति आने दूँगा।”
समीक्षा
बुराई का सामना करने के लिए तैयार हो जाईये
हममें से बहुत से सामना करना पसंद नहीं करते हैं. लेकिन कभी –कभी परमेश्वर हमें बुराई का सामना करने के लिए बुलाते हैं.
इस लेखांश में हम अहाब के विषय में पढ़ते हैं, जो 'अपनी पत्नी के कहने पर, परमेश्वर की खुले रूप से आज्ञा न मानते हुए, बुराई का बहुत बड़ा व्यापार करते हुए रिकॉर्ड बनाते हैं' (21:25, एम.एस.जी).
पहला, हमने बुराई और बुराई के बीच में लड़ाई के विषय में पढ़ा. अरामियों के राजा बेन्हदद ने अहाब पर प्रहार किया. एक बुरे मनुष्य के मुंह से बुद्धि के वचन आएः 'जो हथियार बाँधता हो वह उसके समान न फूले जो उन्हें उतारता हो' (20:11). जो होने वाला है उसके विषय में घमंड करना एक अच्छा विचार नहीं है. बेहतर है कि बाद में इसके बारे में बतायें!
फिर, हम देखते हैं कि कैसे परमेश्वर की सामर्थ अराम की सामर्थ से बढ़कर है (अध्याय 20).
फिर, हम देखते हैं कि अहाब और ईजेबेल कितनी बुरी तरह से नबोत के साथ बर्ताव करते हैं (अध्याय 21). उनकी भूमि को चुराने के लिए उन्होंने षड़्यंत्र रचा कि उसे बाहर ले जाकर उस पर पथराव किया जाए. तब उन्होंने उसकी दाख की बारी हथिया ली.
एलिय्याह एक साहसी मनुष्य था. बुराई के सामने वह बिल्कुल निडर था. परमेश्वर ने उससे कहा था जाकर 'अहाब का सामना करो' (व.18, एम.एस.जी). निडर होकर एलिय्याह ने उस पर चोरी और हत्या का आरोप लगाया और उससे कहा कि 'वह परमेश्वर का विरोध करते हुए बुराई का व्यापार कर रहा है' (व.20, एम.एस.जी). उसने उसे चेतावनी दी कि परमेश्वर का न्याय उस पर पड़ने वाला है.
एलिय्याह के वचन इतने शक्तिशाली थे कि जब अहाब ने उन्हें सुना, तब उसने पछतावा कियाः'उसने अपने वस्त्र फाड़े और अपनी देह पर टाट लपेटकर उपवास करने और टाट को ही ओढ़े पड़ा रहने लगा, और दबे पाँवो चलने लगा' (व.27). उल्लेखनीय रूप से, परमेश्वर ने उस पर दया दिखाई (व.29). इससे अंतर नहीं पड़ता है कि हमने क्या किया है, कभी भी पछतावा करने और परमेश्वर की दया को खोजने के लिए बहुत देर नहीं होती है.
प्रार्थना
परमेश्वर, एलिय्याह और पौलुस प्रेरित की तरह हमारी सहायता करें, कि बुराई की ताकतों पर जय पाने में डरे नहीं. बुराई के सामने हमें साहस दे. हमें अपनी पवित्र आत्मा से भर दें.
पिप्पा भी कहते है
1राजा 21
एक अच्छा पति या पत्नी चुने. ईजेबेल सबसे दुष्ट महिला है जिसके बारे में हमने बाईबल में सुना. अहाब इतना बुरा नहीं करता यदि उसके पास एक अच्छी पत्नी होती.
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संदर्भ
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।