अपने जीवन की योजना कैसे बनांए
परिचय
लगभग हर कोई योजना बनाता है. हम योजना बनाते हैं कि कैसे अपनी शाम बितानी है, अपनी साप्ताहिक छुट्टियों या हमारी छुट्टियों को कैसे बिताना है. कुछ लोग योजना बनाते हैं कि वे कितने बच्चे पैदा करने वाले हैं; वे अपनी पढ़ाई के लिए योजना बनाते हैं. हमें अपने धन और हमारे दान के विषय में योजना बनाने की आवश्यकता है. लोगों के पास योजनायें हैं. व्यवसाय में योजनाएँ होती है. चर्च में योजनाएँ होनी चाहिए.
एक वर्ष में मेरी बाईबल में मुझे इन लेखांशों से प्रेम है. 1992 में, इस वचन के साथ-साथ कि 'अपने कामों को यहोवा पर डाल दें, इस से तेरी योजनाएँ सिद्ध होगी' (नीतिवचन 16:3), मैंने 92/93 के लिए योजनाएँ लिखी. हमारे माँगने या कल्पना करने से अधिक परमेश्वर ने इन योजनाओं को आशीष दी. इसके बाद से हर साल मैंने आने वाले वर्ष के लिए योजनाएँ बनायी है. मुझे यह बात बहुत ही उत्साहित करने वाली और विश्वास को बढ़ाने वाली लगती है कि पीछे मुड़कर देखूँ, और देखूं कि सालभर में परमेश्वर ने हमारे लिए कितना किया है. उनकी दयालुता और वफादारी को भूलना बहुत ही आसान बात है.
नीतिवचन 15:31-16:7
31 जो जीवनदायी डाँट सुनता है,
वही बुद्धिमान जनों के बीच चैन से रहेगा।
32 ऐसा मनुष्य जो प्रताड़ना की उपेक्षा करता,
वह तो विपत्ति को स्वयं अपने आप पर बुलाता है;
किन्तु जो ध्यान देता है सुधार पर, समझ—बूझ पाता है।
33 यहोवा का भय लोगों को ज्ञान सिखाता है।
आदर प्राप्त करने से पहले नम्रता आती है।
16मनुष्य तो निज योजना को रचता है,
किन्तु उन्हें यहोवा ही कार्य रूप देता है।
2 मनुष्य को अपनी राहें पाप रहित लगती है
किन्तु यहोवा उसकी नियत को परखता है।
3 जो कुछ तू यहोवा को समर्पित करता है
तेरी सारी योजनाएँ सफल होंगी।
4 यहोवा ने अपने उद्देश्य से हर किसी वस्तु को रचा है
यहाँ तक कि दुष्ट को भी नाश के दिन के लिये।
5 जिनके मन में अहंकार भरा हुआ है, उनसे यहोवा घृणा करता है।
इसे तू सुनिश्चित जान, कि वे बिना दण्ड पाये नहीं बचेगें।
6 खरा प्रेम और विश्वास शुद्ध बनाती है,
यहोवा का आदर करने से तू बुराई से बचेगा।
7 यहोवा को जब मनुष्य की राहें भाती हैं,
वह उसके शत्रुओं को भी साथ शांति से रहने को मित्र बना देता।
समीक्षा
हमारी योजनाएं
हम हमेशा इसे सही नहीं करते हैं (निश्चित ही मैं नहीं करता हूँ). लेकिन योजनाएँ बनाना गलत बात नहीं है. सच में, पहले से योजना बनाना अच्छी बात है. जैसा कि बताया गया है, बरसात नहीं हो रही थी जब नूह जहाज बना रहे थे! नीतिवचन के लेखक कहते हैं, 'मन की युक्ति मनुष्य के वश में रहती है...अपने कामों को यहोवा पर डाल दे, इस से तेरी योजनाएँ सिद्ध होगी' (16:1,3).
यहाँ पर, हम सफलता की पूंजी को देखते हैं. आपकी योजनाओं को कभी भी परमेश्वर से अलग नहीं बनाना चाहिए. आप उनके साथ संबंध में बुलाए गए हैं. आपकी योजनाओं को उनकी योजनाओं के साथ मेल में होना चाहिए. आपके दर्शन और आपकी योजनाओं को आत्मा की अगुवाई में होना चाहिए. उन्हें परमेश्वर के पास लायें. उन्हें उनके सामने डाल दीजिए. तब परमेश्वर वायदा करते हैं 'आपकी योजनाएँ सफल होगी' (व.3). जो कुछ आप करते हैं, उसे परमेश्वर को सौंपने का क्या अर्थ है?
- सहयोग करना
सौंपने के लिए इब्रानी शब्द का एक अनुवाद 'आगे की ओर धकेलना है.' जीवन में चलने के लिए दो रास्ते हैं. एक है निर्णय लेना कि हम अपने जीवनों को चलाने में सक्षम हैं – परमेश्वर के बिना. अपने आपको प्रसन्न करने के लिए हम परमेश्वर के बिना योजनाएँ बनाते हैं. यह घमंड (व.5) और आत्मनिर्भरता का तरीका है. घमंडी को कुछ नहीं बताया जा सकता है क्योंकि वे सोचते हैं कि उन्हें पहले से ही पता है.
दूसरा है, अपनी खुद की इच्छाओं को अलग रखने के लिए तैयार होना. यह विश्वास और दीनता का तरीका हैः 'सम्मान से पहले दीनता आती है' (15:33).
परमेश्वर के पास आपके जीवन के लिए अच्छी योजनाएँ हैं (यिर्मयाह 28:11; रोमियो 12:2; इफीसियो 2:10). दीनता के साथ उनसे सहयोग करें, हर उस वस्तु को छोड़ने के लिए तैयार होकर जो आपके लिए उनकी योजना के बीच में आती है.
- विश्वास रखना
अपनी योजनाओं को परमेश्वर को सौंपने का अर्थ है उनसे उनकी योजनाओं के विषय में बात करना – उनके साथ बैठकर योजनाएँ बनाना. हर दिन की शुरुवात में आप अपनी योजनाओं को उन्हें सौंप सकते हैं. मुझे लगता है कि छुट्टियाँ अच्छा समय है आगे की योजनाएँ बनाने के लिए और महीनों, या आगे आने वाले साल को परमेश्वर को सौंपने के लिए.
मुझे याद है जब मैं नायक डेविड सुचेट की बातें सुन रहा था, जब वह हाल ही में एक मसीह बने थे, रेडियों पर जब उनसे पूछा गया कि क्या कोई ऐसी भूमिकाएँ है जिन्हें वह अब नहीं करेंगे. उन्होंने जवाब दिया, 'यह एक बहुत ही कठिन प्रश्न है. अब मैं केवल यह बता सकता हूँ कि जब मुझे एक भूमिका का प्रस्ताव दिया जाता है तब मैं जाकर इसके विषय में प्रार्थना करता हूँ और यदि मुझे महसूस होता है कि यह गलत है, तब मैं इसे मना कर देता हूँ, जबकि इससे पहले मैं पूछता था, 'कितना मिलेगा?'
- सलाह लें
परमेश्वर कहते हैं, 'हाय उन बलवा करने वाले लड़को पर जो युक्ति तो करते परंतु मेरी ओर से नहीं...वे मुझ से बिन पूछे मिस्र को जाते हैं' (यशायाह 30:1-2अ). परमेश्वर को सौंपने का अर्थ है उनकी सलाह लेना और उनके साथ अपनी योजनाओं की चर्चा करना और उनकी बुद्धि और सलाह को खोजना (नीतिवचन 15:33अ). जब बड़े निर्णय लेने होते हैं, तब एक बुद्धिमान मनुष्य दूसरों से सलाह लेगा यह देखने के लिए कि आपने परमेश्वर से सटीक रूप से सुना है (वव.31-32).
परमेश्वर को अपनी योजनाएँ सौंपने के बाद, आप सफलता के उनके वायदे पर भरोसा कर सकते हैं. परमेश्वर आपकी योजनाओं पर सार्वभौमिक हैं. 'मन की युक्ति मनुष्य के वश में रहती है, परंतु मुँह से कहना यहोवा की ओर से होता है' (16:1, एम.एस.जी.). 'मनुष्य मन में अपने मार्ग पर विचार करता है, परंतु यहोवा ही उसके पैरों को स्थिर करता है' (व.9).
परमेश्वर आपको योजनाएँ बनाने के लिए स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व देते हैं. आपके लिए यह सकारात्मक रूप से सही है कि यह करें. और तब भी, परमेश्वर आपकी योजनाओं को आपके भविष्य में जोड़ते हैं. यह सक्रिय या भाग्यवादी होने का एक कारण नहीं है, इसके बजाय यह एक उत्साह है कि आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि परमेश्वर पूरी तरह से आपके जीवन को नियंत्रित कर रहे हैं. आपको निर्णय न लेने की अवस्था में ठंडे होने की आवश्यकता नहीं है.
आप भरोसा कर सकते हैं कि परमेश्वर सभी चीजें उनके लिए भलाई में बदल देंगे जो उनसे प्रेम करते हैं (वव.6ब, 7; रोमियो 8:28).
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं उन अद्भुत तरीकों के लिए आपकी स्तुति करता हूँ और आपका धन्यवाद देता हूँ, जिस तरह से आप उन योजनाओं को आशीष देते हैं, जो मैं आपको सौंपता हूँ. इस वर्ष मैं आपको भविष्य के लिए अपनी सभी योजनाओं को सौंपना चाहता हूँ.
प्रेरितों के काम 19:14-41
13-14 कुछ यहूदी लोग, जो दुष्टात्माएँ उतारते इधर-उधर घूमा फिरा करते थे। यह करने लगे कि जिन लोगों में दुष्टात्माएँ समायी थीं, उन पर प्रभु यीशु के नाम का प्रयोग करने का यत्न करते और कहते, “मैं तुम्हें उस यीशु के नाम पर जिसका प्रचार पौलुस करता है, आदेश देता हूँ।” एक स्कीवा नाम के यहूदी महायाजक के सात पुत्र जब ऐसा कर रहे थे।
15 तो दुष्टात्मा ने (एक बार) उनसे कहा, “मैं यीशु को पहचानती हूँ और पौलुस के बारे में भी जानती हूँ, किन्तु तुम लोग कौन हो?”
16 फिर वह व्यक्ति जिस पर दुष्टात्मा सवार थीं, उन पर झपटा। उसने उन पर काबू पा कर उन दोनों को हरा दिया। इस तरह वे नंगे ही घायल होकर उस घर से निकल कर भाग गये।
17 इफिसुस में रहने वाले सभी यहूदियों और यूनानियों को इस बात का पता चल गया। वे सब लोग बहुत डर गये थे। इस प्रकार प्रभु यीशु के नाम का आदर और अधिक बढ़ गया। 18 उनमें से बहुत से जिन्होंने विश्वास ग्रहण किया था, अपने द्वारा किये गये बुरे कामों को सबके सामने स्वीकार करते हुए वहाँ आये। 19 जादू टोना करने वालों में से बहुतों ने अपनी अपनी पुस्तकें लाकर वहाँ इकट्ठी कर दीं और सब के सामने उन्हें जला दिया। उन पुस्तकों का मूल्य पचास हजार चाँदी के सिक्कों के बराबर था। 20 इस प्रकार प्रभु का वचन अधिक प्रभावशाली होते हुए दूर दूर तक फैलने लगा।
पौलुस की यात्रा योजना
21 इन घटनाओं के बाद पौलुस ने अपने मन में मकिदुनिया और अखाया होते हुए यरूशलेम जाने का निश्चय किया। उसने कहा, “वहाँ जाने के बाद मुझे रोम भी देखना चाहिए।” 22 सो उसने अपने तिमुथियुस और इरासतुस नामक दो सहायकों को मकिदुनिया भेज दिया और स्वयं एशिया में थोड़ा समय और बिताया।
इफ़िसुस में उपद्रव
23 उन्हीं दिनों इस पँथ को लेकर वहाँ बड़ा उपद्रव हुआ। 24 वहाँ देमेत्रियुस नाम का एक चाँदी का काम करने वाला सुनार हुआ करता था। उसने अरतिमिस के चाँदी के मन्दिर बनवाता था जिससे कारीगरों को बहुत कारोबार मिलता था।
25 उसने उन्हें और इस काम से जुड़े हुए दूसरे कारीगरों को इकट्ठा किया और कहा, “देखो लोगो, तुम जानते हो कि इस काम से हमें एक अच्छी आमदनी होती है। 26 तुम देख सकते हो और सुन सकते हो कि इस पौलुस ने न केवल इफिसुस में बल्कि लगभग एशिया के समूचे क्षेत्र में लोगों को बहका फुसला कर बदल दिया है। वह कहता है कि मनुष्य के हाथों के बनाये देवता सच्चे देवता नहीं है। 27 इससे न केवल इस बात का भय है कि हमारा व्यवसाय बदनाम होगा बल्कि महान देवी अरतिमिस के मन्दिर की प्रतिष्ठा समाप्त हो जाने का भी डर है। और जिस देवी की उपासना समूचे एशिया और संसार द्वारा की जाती है, उसकी गरिमा छिन जाने का भी डर है।”
28 जब उन्होंने यह सुना तो वे बहुत क्रोधित हुए और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे, “इफ़िसियों की देवी अरतिमिस महान है!” 29 उधर सारे नगर में अव्यवस्था फैल गयी। सो लोगों ने मकिदुनिया से आये तथा पौलुस के साथ यात्रा कर रहे गयुस और अरिस्तर्रवुस को धर दबोचा और उन्हें रंगशाला में ले भागे। 30 पौलुस लोगों के सामने जाना चाहता था किन्तु शिष्यों ने उसे नहीं जाने दिया। 31 कुछ प्रांतीय अधिकारियों ने जो उसके मित्र थे, उससे कहलवा भेजा कि वह वहाँ रंगशाला में आने का दुस्साहस न करे।
32 अब देखो कोई कुछ चिल्ला रहा था, और कोई कुछ, क्योंकि समूची सभा में हड़बड़ी फैली हुई थी। उनमें से अधिकतर यह नहीं जानते थे कि वे वहाँ एकत्र क्यों हुए हैं। 33 यहूदियों ने सिकन्दर को जिसका नाम भीड़ में से उन्होंने सुझाया था, आगे खड़ा कर रखा था। सिकन्दर ने अपने हाथों को हिला हिला कर लोगों के सामने बचाव पक्ष प्रस्तुत करना चाहा। 34 किन्तु जब उन्हें यह पता चला कि वह एक यहूदी है तो वे सब कोई दो घण्टे तक एक स्वर में चिल्लाते हुए कहते रहे, “इफिसुसियों की देवी अरतिमिस महान है।”
35 फिर नगर लिपिक ने भीड़ को शांत करके कहा, “हे इफिसुस के लोगों क्या संसार में कोई ऐसा व्यक्ति है जो यह नहीं जानता कि इफिसुस नगर महान देवी अतरिमिस और स्वर्ग से गिरी हुई पवित्र शिला का संरक्षक है? 36 क्योंकि इन बातों से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसलिए तुम्हें शांत रहना चाहिए और बिना विचारे कुछ नहीं करना चाहिए।
37 “तुम इन लोगों को पकड़ कर यहाँ लाये हो यद्यपि उन्होंने न तो कोई मन्दिर लूटा है और न ही हमारी देवी का अपमान किया है। 38 फिर भी देमेत्रियुस और उसके साथी कारीगरों को किसी के विरुद्ध कोई शिकायत है तो अदालतें खुली हैं और वहाँ राज्यपाल हैं। वहाँ आपस में एक दूसरे पर वे अभियोग चला सकते हैं।
39 “किन्तु यदि तुम इससे कुछ अधिक जानना चाहते हो तो उसका फैसला नियमित सभा में किया जायेगा। 40 जो कुछ है उसके अनुसार हमें इस बात का डर है कि आज के उपद्रवों का दोष कहीं हमारे सिर न मढ़ दिया जाये। इस दंगे के लिये हमारे पास कोई भी हेतु नहीं है जिससे हम इसे उचित ठहरा सकें।” 41 इतना कहने के बाद उसने सभा विसर्जित कर दी।
समीक्षा
पौलुस की योजनाएँ
पौलुस एक युक्तिकारक सोचने वाले व्यक्ति थे. उन्होंने सावधानीपूर्वक योजनाएँ बनायी. जब ये बातें हो चुकीं तो पौलुस ने आत्मा में ठाना कि मकिदुनिया और अखाया से होकर यरूशलेम को जाउँ, और कहा, 'वहाँ जाने के बाद मुझे रोम को भी देखना अवश्य है.' इसलिये अपनी सेवा करने वालों में से तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया भेजकर वह कुछ दिन आसिया में रह गया' (वव.21-22).
पौलुस का दर्शन, मिशन और योजनाएँ संपूर्ण विश्व में सुसमाचार प्रचार करने के ईर्द-गिर्द घूम रहा था. उनकी युक्ति शहरों पर केंद्रित थीः यरूशलेम, रोम, कुरिंथ और इफीसुस.
जितने लोगों तक संभव हो सके, सुसमाचार का प्रचार करते हुए उन्होंने शहरों में बहुत समय बिताया, चाहें आराधनालय में या व्याखान वाले सभागृह में.
उनका विरोध हुआ. दिलचस्प रूप से, इफीसुस में विरोध शिक्षा संबंधी या नीतिशास्त्र संबंधी नहीं था लेकिन आर्थिक था. देमेत्रियुस ने सोचा कि पौलुस के प्रचार के कारण उसका पैसे का नुकसान हो जाएगा. इसलिए उसने विरोध को भड़काया (वव.24-29).
लेकिन परमेश्वर के पास भी एक योजना थी. आज के लिए दूसरा नीतिवचन हमें बताता है कि, 'परमेश्वर ने सब वस्तुएँ विशेष उद्देश्य के लिये बनाई हैं' (नीतिवचन 16:4). इस घटना में, परमेश्वर ने नगर के मंत्री के द्वारा काम किया (वव.35-36), उनके कार्य ने फिर भी बलवे को रोका. परमेश्वर अक्सर उन लोगों के द्वारा काम करते हैं जो विश्वासी नहीं हैं, ताकि अपनी योजनाओं को पूरा करें.
प्रार्थना
परमेश्वर, पौलुस की योजना, युक्ति और बड़े विरोध के सामने साहस के उदाहरण के लिए आपका धन्यवाद. आपका धन्यवाद क्योंकि आपने सारी चीजों को अपने विशेष उद्देश्य के अनुसार बनाया हैं. कृपया मेरी सभी योजनाओं में मेरा मार्गदर्शन करिए. युक्तिकारक और साहसी बनने में मेरी सहायता करिए.
1 राजा 22:1-53
मीकायाह अहाब को चेतावनी देता है
22अगले दो वर्षों के भीतर इस्राएल और अराम के बीच शान्ति रही। 2 तब तीसरे वर्ष यहूदा का राजा यहोशापात इस्राएल के राजा अहाब से मिलने गया।
3 इस समय अहाब ने अपने अधिकारियों से पूछा, “तुम जानते हो कि अराम के राजा ने गिलाद में रामोत को हम से ले लिया था। हम लोगों ने रामोत वापस लेने का कुछ भी प्रयत्न क्यों नहीं किया यह हम लोगों का नगर होना चाहिये।” 4 इसलिये अहाब ने यहोशापात से पूछा, “क्या आप हमारे साथ होंगे और रामोत में अराम की सेना के विरुद्ध युद्ध करेंगे”
यहोशापात ने उत्तर दिया, “हाँ, मैं तुम्हारा साथ दूँगा। मेरे सैनिक और मेरे घोड़े तुम्हारी सेना के साथ मिलने के लिये तैयार हैं। 5 किन्तु पहले हम लोगों को यहोवा से सलाह ले लेनी चाहिये।”
6 अत: अहाब ने नबियों की एक बैठक बुलाई। उस समय लगभग चार सौ नबी थे। अहाब ने नबियों से पूछा, “क्या मैं जाऊँ और रामोत में अराम की सेना के विरुद्ध युद्ध करुँ या मैं किसी अन्य अवसर की प्रतीक्षा करुँ” नबियों ने उत्तर दिया, “तुम्हें अभी युद्ध करना चाहिये। यहोवा तुम्हें विजय पाने देगा।”
7 किन्तु यहोशापात ने कहा, “क्या यहाँ यहोवा के नबियों में से कोई अन्य नबी है यदि कोई है तो हमें उससे पूछना चाहिये कि परमश्वर क्या कहता है।”
8 राजा अहाब ने उत्तर दिया, “एक अन्य नबी है। वह यिम्ला का पुत्र मीकायाह है। किन्तु उससे मैं घृणा करता हूँ। जब कभी वह यहोवा का माध्यम बनता है तब वह मेरे लिये कुछ भी अच्छा नहीं कहता। वह सदैव वही कहता है जिसे मैं पसन्द नहीं करता।”
यहोशापात ने कहा, “राजा अहाब, तुम्हें ये बातें नहीं कहनी चाहिये!”
9 अत: राजा अहाब ने अपने अधिकारियों में से एक से जाने और मीकायाह को खोज निकालने को कहा।
10 उस समय दोनों राजा अपना राजसी पोशाक पहने थे। वे सिंहासन पर बैठे थे। यह शोमरोन के द्वार के पास खुले स्थान पर था। सभी नबी उनके सामने खड़े थे। नबी भविष्यवाणी कर रहे थे। 11 नबियों में से एक सिदकिय्याह नामक व्यक्ति था। वह कनाना का पुत्र था। सिदकिय्याह ने कुछ लोहे की सींगें बनाईं। तब उसने अहाब से कहा, “यहोवा कहता है, ‘तुम लोहे की इन सींगों का उपयोग अराम की सेना के विरुद्ध लड़ने में करोगे। तुम उन्हें हराओगे और उन्हें नष्ट करोगे।’” 12 सभी अन्य नबियों ने असका समर्थन किया जो कुछ सिदकिय्याह ने कहा। नबियों ने कहा, “तुम्हारी सेना अभी कूच करे। उन्हें रामोत में अराम की सेना के साथ युद्ध करना चाहिये। तुम युद्ध जीतोगे। यहोवा तुम्हें विजय पाने देगा।”
13 जब यह हो रहा था तभी अधिकारी मीकायाह को खोजने गया। अधिकारी ने मीकायाह को खोज निकाला और उससे कहा, “सभी अन्य नबियों ने कहा है कि राजा को सफलता मिलेगी। अत: मैं यह कहता हूँ कि यही कहना तुम्हारे लिये सर्वाधिक अनुकूल होगा।”
14 किन्तु मीकायाह ने उत्तर दिया, “नहीं! मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि यहोवा की शक्ति से वही कहूँगा जो कहने के लिये यहोवा कहेगा!”
15 तब मीकायाह राजा अहाब के सामने खड़ा हुआ। राजा ने उससे पुछा, “मीकायाह, क्या मुझे और राजा यहोशापात को अपनी सेनायें एक कर लेनी चाहिये और क्या हमें अराम की सेना से रामोत में युद्ध करने के लिये अभी कुछ करना चाहिये या नहीं”
मीकायाह ने उत्तर दिया, “हाँ! तुम्हें जाना चाहिये और उनसे अभी युद्ध करना चाहिये। यहोवा तुम्हें विजय देगा।”
16 किन्तु अहाब ने पूछा, “तुम यहोवा की शक्ति से नहीं बता रहे हो। तुम अपनी निजी बात कह रहे हो। अत: मुझसे सत्य कहो। कितनी बार मुझे तुमसे कहना पड़ेगा मुझसे वह कहो जो यहोवा कहता है।”
17 अत: मीकायाह ने उत्तर दिया, “मैं जो कुछ होगा, देख सकता हुँ। इस्राएल की सेना पहाड़ियों में बिखर जायेगी। वे उन भेड़ों की तरह होंगी जिनका कोई भी संचालक न हो। यही यहोवा कहता है, ‘इन व्यक्तियों का दिशा निर्देशक कोई नहीं है। उन्हें घर जाना चाहिये और युद्ध नहीं करना चाहिये।’”
18 तब अहाब ने यहोशापात से कहा, “देख लो! मैंने तुम्हें बताया था! यह नबी मेरे बारे में कभी कोई अच्छी बात नहीं कहता। यह सदा वही बात कहता है जिसे मैं सनना नहीं चाहता।”
19 किन्तु मीकायाह यहोवा का माध्यम बना कहता ही रहा। उसने कहा, “सुनो! ये वे शब्द हैं जिन्हें यहोवा ने कहा है। मैंने यहोवा को स्वर्ग में अपने सिंहासन पर बैठे देखा। उसके दूत उसके समीप खड़े थे। 20 यहोवा ने कहा, ‘क्या तुममें से कोई राजा अहाब को चकमा दे सकता है मैं उसे रामोत में अराम की सेना के विरुद्ध युद्ध करने के लिये जाने देना चाहता हूँ। तब वह मारा जाएगा।’ स्वर्गदूतों को क्या करना चाहिये, इस पर वे सहमत न हो सके। 21 तब एक स्वर्गदूत यहोवा के पास गया और उसने कहा, ‘मैं उसे चकमा दूँगा!’ 22 यहोवा ने पूछा, ‘तुम राजा अहाब को चकमा कैसे दोगे’ स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ‘मैं अहाब के सभी नबियों को भ्रमित कर दूँगा। मैं नबियों को अहाब से झूठ बोलने के लिये कहूँगा। नबियों के सन्देश झूठे होंगे।’ अत: यहोवा ने कहा, ‘बहुत अच्छा! जाओ और राजा अहाब को चकमा दो। तुम सफल होगे।’”
23 मीकायाह ने अपनी कथा पूरी की। तब उसने कहा, “अत: यहाँ यह सब हुआ। यहोवा ने तुम्हारे नबियों से तुम्हें झूठ बुलवा दिया है। योहवा ने स्वयं निर्णय लिया है कि तुम पर बड़ी भारी विपत्ति लाए।”
24 तब सिदकिय्याह नबी मीकायाह के पास गया। सिदकिय्याह ने मीकायाह के मुँह पर मारा। सिदकिय्याह ने कहा, “क्या तुम सचमुच विश्वास करते हो कि यहोवा की शक्ति ने मुझे छोड़ दिया है और वह तुम्हारे माध्यम से बात कर रहा है।”
25 मीकाया ने उत्तर दिया, “शीघ्र ही विपत्ति आएगी। उस समय तुम भागोगे और एक छोटे कमरे में छिपोगे और तब तुम समझोगे कि मैं सत्य कह रहा हूँ।”
26 तब राजा अहाब ने अपने अधिकारियों में से एक को मीकायाह को बन्दी बनाने का आदेश दिया। राजा अहाब ने कहा, “इसे बन्दी बना लो और इसे नगर के प्रसाशक आमोन और राजकुमार योआश के पास ले जाओ। 27 उनसे कहो कि मीकायाह को बन्दीगृह में डाल दे। उसे खाने को केवल रोटी और पानी दो। उसे वहाँ तब तक रखो जब तक मैं युद्ध से घर न आ जाऊँ।”
28 मीकायाह न जोर से कहा, “आप सभी लोग सुने जो मैं कहता हूँ। राजा अहाब, यदि तुम युद्ध से घर जीवित लौट आओगे, तो समझना कि योहवा ने मेरे मुँह से अपना वचन नहीं कहा था।”
29 तब राजा अहाब और राजा यहोशापात रामोत में अराम की सेना से युद्ध करने गए। यह गिलाद नामक क्षेत्र में था। 30 अहाब ने यहोशापात से कहा, “हम युद्ध की तैयारी करेंगे। मैं ऐसे वस्त्र पहनूँगा जो मुझे ऐसा रूप देंगे कि मैं ऐसा लगूँगा कि मैं राजा नहीं हूँ। किन्तु तुम अपने विशेष वस्त्र पहनो जिससे तुम ऐसे लगो कि तुम राजा हो।” इस प्रकार इस्राएल के राजा ने युद्ध का आरम्भ उस व्यक्ति की तरह वस्त्र पहनकर किया जो राजा न हो।
31 अराम के राजा के पास बत्तीस रथ—सेनापति थे। उस राजा ने इन बत्तीस रथ—सेनापतियों को आदेश दिया कि वे इस्राएल के राजा को खोज निकाले। अराम के राजा ने सेनापतियों से कहा कि उन्हें राजा को अवश्य मार डालना चाहिये। 32 अत: युद्ध के बीच इन सेनापतियों ने राजा यहोशापात को देखा। सेनापतियों ने समझा कि वही इस्राएल का राजा है। अत: वे उसे मारने गए। यहोशापत ने चिल्लाना आरम्भ किया। 33 सेनापतियों ने समझ लिया कि वह राजा अहाब नहीं है। अत: उन्होंने उसे नहीं मारा।
34 किन्तु एक सैनिक ने हवा में बाण छोड़ा, वह किसी विशेष व्यक्ति को अपना लक्ष्य नहीं बना रहा था। किन्तु उसका बाण इस्राएल के राजा अहाब को जा लगा। बाण ने राजा को उस छोटी जगह में बेधा, जो शरीर का भाग उसके कवच से ढका नहीं था। अत: राजा अहाब ने अपने सारथी से कहा, “मुझे एक बाण ने बेध दिया है! इस क्षेत्र से रथ को बाहर ले चलो। हमें युद्ध से दूर निकल जाना चाहिये।”
35 सेनायें युद्ध में लड़ती रहीं। राजा अहाब अपने रथ में ठहरा रहा। वह रथ के सहारे एक ओर झुका हुआ था। वह अराम की सेना को देख रहा था। उसका खून नीचे बहता रहा और उसने रथ के तले को ढक लिया। बाद में, शाम को राजा मर गया। 36 सन्ध्या के समय इस्राएल की सेना के सभी पुरुषों को अपने नगर और प्रदेश वापस लौटने का आदेश दिया गया।
37 अत: राजा अहाब इस प्रकार मरा। कुछ व्यक्ति उसके शव को शोमरोन ले आए। उन्होंने उसे वहीं दफना दिया। 38 लोगों ने अहाब के रथ को शोमरोन में जल के कुंड में धोया। राजा अहाब के खून को रथ से, कुत्तों ने चाटा और वेश्याओं ने पानी का उपयोग नहाने के लिये किया। ये बातें वैसे ही हुई जैसा यहोवा ने होने को कहा था।
39 अपने राज्यकाल में अहाब ने जो कुछ किया वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है। उसी पुस्तक में राजा ने अपने महल को अधिक सुन्दर बनाने के लिये जिस हाथी—दाँत का उपयोग किया था, उसके बारे में कहा गया है और उस पुस्तक में उन नगरों के बारे में भी लिखा गया है जिसे उसने बनाया था। 40 अहाब मरा, और अपने पूर्वजों के पास दफना दिया गया। उसका पुत्र अहज्याह राजा बना।
यहूदा का राजा यहोशापात
41 इस्राएल के राजा अहाब के राज्यकाल के चौथे वर्ष यहोशापात यहूदा का राजा हुआ। यहोशापात आसा का पुत्र था। 42 यहोशापात जब राजा हुआ तब वह पैंतीस वर्ष का था। यहोशापात ने यरूशलेम में पच्चीस वर्ष तक राज्य किया। यहोशापात की माँ का नाम अजूबा था। अजूबा शिल्ही की पुत्री थी। 43 यहोशापात अच्छा व्यक्ति था। उसने अपने पूर्व अपने पिता के जैसे ही काम किये। वह उन सबका पालन करता था जो यहोवा चाहता था। किन्तु यहोशापात ने उच्च स्थानों को नष्ट नहीं किया। लोगों ने उन स्थानों पर बलि—भेंट करना और सुगन्धि जलाना जारी रखा।
44 यहोशापात ने इस्राएल के राजा के साथ एक शान्ति—सन्धि की। 45 यहोशापात बहुत वीर था और उसने कई युद्ध लड़े। जो कुछ उसने किया वह, यहूदा के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है।
46 यहोशापात ने उन स्त्री पुरुषों को, जो शारीरिक सम्बन्ध के लिये अपने शरीर को बेचते थे, पूजास्थानों को छोड़ने के लिये विवश किया। उन व्यक्तियों ने उन पूजास्थानों पर तब सेवा की थी जब उसका पिता आसा राजा था।
47 इस समय के बीच एदोम देश का कोई राजा न था। वह देश एक प्रशासक द्वारा शासित होता था। प्रशासक यहूदा के राजा द्वारा चुना जाता था।
48 राजा यहोशापात ने ऐसे जहाज बनाए जो महासागर में चल सकते थे। यहोशापात ने ओपीर प्रदेश में जहाजों को भेजा। वह चाहता था कि जहाज सोना लाएँ। किन्तु जहाज एश्योनगेबेर में नष्ट हो गए। जहाज कभी सोना प्राप्त करने में सफल न हो सके। 49 इस्राएल का राजा अहज्याह यहोशापात को सहायता देने गया। अहज्याह ने यहोशापात से कहा था कि वह कुछ ऐसे व्यक्तियों को उनके लिये प्राप्त करेगा जो जहाजी काम में कुशल हों। किन्तु यहोशापात ने अहज्याह के व्यक्तियों को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया।
50 यहोशापात मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। वह दाऊद नगर में अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। तब उसका पुत्र यहोराम राजा बना।
इस्राएल का राजा अहज्याह
51 अहज्याह अहाब का पुत्र था। वह राजा योहशापात के यहूदा पर राज्यकाल के सत्रहवें वर्ष में राजा बना। अहज्याह ने शोमरोन में दो वर्ष तक राज किया। 52 अहज्याह ने यहोवा के विरुद्ध पाप किये। उसने वे ही पाप किये जो उसके पिता अहाब उसकी माँ ईजेबेल और नबात के पुत्र यारोबाम ने किये थे। ये सभी शासक इस्राएल के लोगों को और अधिक पाप की ओर ले गए। 53 अहज्याह ने अपने से पूर्व अपने पिता के समान असत्य देवता बाल की पूजा और सेवा की। अत: अहज्याह ने यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर को बहुत अधिक क्रोधित किया। यहोवा अहज्याह पर वैसा ही क्रोधित हुआ जैसा उसके पहले वह उसके पिता पर क्रोधित हुआ था।
समीक्षा
परमेश्वर की योजनाएँ
परमेश्वर को चालाकी से मात देने की कोशिश करना एक अच्छा विचार नहीं है! यह अहाब की परेशानी थी. वह परमेश्वर की योजनाओं को असफल करने के लिए लोगों और घटनाओं को फँसाने की कोशिश कर रहे थे.
यहोशापात ने बुद्धिपूर्वक उससे कहा कि अरामियों से लड़ने के लिए युद्ध में जाने से पहले उसे परमेश्वर की सम्मति लेने का प्रयास करना चाहिएः 'कुछ भी करने से पहले, परमेश्वर से मार्गदर्शन लें' (व.5, एम.एस.जी). यह महत्वपूर्ण सिद्धांत का दूसरा उदाहरण है. यदि आप चाहते हैं कि आपकी योजनाएँ सफल हो तो अपनी योजनाएँ बनाते समय आपको परमेश्वर से उनके मार्गदर्शन को माँगने की आवश्यकता है.
400 'कठपुतली' भविष्यवक्ता शायद से नौकरी करने वाले तोतें थे, जो केवल वह करते थे जिनके लिए उन्हें दाम दिया जाता था – अर्थात् वह कहना जो राजा चाहता है कि वे कहें.
किंतु, यहोशापात जानते हैं कि यह सच्ची भविष्यवाणी नहीं है और पूछते हैं, 'क्या यहाँ यहोवा का और भी कोई नबी नहीं है जिससे हम पूछ लें?' (व.7). राजा उत्तर देते हैं, 'हाँ, यिम्ला का पुत्र मीकायाह एक पुरुष और है जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछ सकते हैं. परंतु मैं उससे घृणा करता हूँ, क्योंकि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं वरन् हानि ही की भविष्वाणी करता है' (व.8).
मीकायाह, जो एक सच्चा भविष्यवक्ता है, उनसे यहोवा का वचन कहता है. जबकि 400 भविष्यवक्ताओं ने प्रचलित राय दी, मीकायाह केवल ऐसा पुरुष था जो परमेश्वर के विचार को जानता था. हमें अवश्य ही प्रचलित राय से भटकना नहीं चाहिए, यदि यह परमेश्वर की ओर से नहीं आती है. यह तथ्य कि शायद से हम संख्या में कम होगे, यह निर्णायक नहीं है.
मीकायाह सच्चाई को बोलने में पर्याप्त साहसी हैः'यहोवा के जीवन की शपथ जो कुछ यहोवा मुझ से कहे, वही मैं कहूँगा' (व.14, एम.एस.जी). वह उन्हें परमेश्वर की योजनाओं के विरोध में जाने के खतरे के विरुद्ध चेतावनी देते हैं. उसे परेशान करने के लिए उसे बंदीगृह में केवल रोटी और पानी पर रखा गया (व.27).
अहाब ने परमेश्वर की आवाज को न सुनने का निर्णय लिया. वह अपनी चालाकी को जारी रखता है. वह सोचता है कि वह भेष बदलने के द्वारा परमेश्वर को चकमा दे सकता है (व.30). लेकिन, जैसा कि हमने पढ़ा, 'परमेश्वर सबकुछ अपने विशेष उद्देश्य के लिए बनाते हैं' (नीतिवचन 16:4).
हम इस सिद्धांत को काम करते हुए देखते हैं, जैसे ही 'किसी ने अटकल से एक तीर चलाया और वह इस्राएल के राजा के झिलम और निचले वस्त्र के बीच छेदकरके लगा...राजा मर गया...और कुत्तों ने उसका लहू चाट लिया, जैसा कि यहोवा के वचन ने कहा था' (1राजाओं22:34,37-38).
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आप सार्वभौमिक परमेश्वर हैं और आप इतिहास की घटनाओं को नियंत्रित करते हैं.
प्रार्थना
परमेश्वर, उन समयों के लिए मुझे क्षमा कीजिए, जब मुझे शायद से पता था कि मैं गलत रास्ते पर हूँ लेकिन तब भी घटनाओं को मात देने की कोशिश की. मेरी सहायता करिए कि हमेशा आपकी योजना के साथ मेल में रहूँ. होने दीजिए कि मेरी योजनाएँ आपकी योजनाएँ हो, और यें योजनाएँ सफल हो.
पिप्पा भी कहते है
नीतिवचन 16:2
'मनुष्य का सारा चाल-चलन अपनी दृष्टि में पवित्र ठहरता है, परंतु यहोवा मन को तौलता है.'
हमारा अभिप्राय कभी कभी थोड़ा मिश्रित हो सकता है.
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संदर्भ
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।