अपने विश्व को बदल दो
परिचय
'मर्सिडीज और पोर्श जैसी महॅंगी गाड़ीयों से बिल्ले को काटने' के द्वारा उन्होंने शुरुवात की। डेरल टनिंग्ले ने बाद में बताया, 'यह डरावनी बात है कितनी जल्दी आप मार्स बार्स (Mars bars) को चुराने से गाड़ियों तक पहुँच सकते हैं।'
वह एक नशेबाज बन गएः'जब मैंने हेरोईन का इस्तेमाल करना शुरु किया तब मैं सच में मानता था कि मैं नियंत्रण में रहूँगा और वह नशा कभी भी मुझे नियंत्रित नहीं करेगा। मैं कितना गलत था!' जल्द ही, डेरल ने खुद ड्रग बेचना शुरु कर दिया। आखिर में हथियार की चोरी के जुर्म में उन्हें साढ़े पाँच वर्षों तक जेल में रहना पड़ा।
जेल में उन्होंने अल्फा में जाने के बारे में सोचा, मुख्यरूप से 'मुफ्त कॉफी और बिस्कुट' के प्रस्ताव के कारण। उनकी मुलाकात यीशु मसीह से हुई। डेरल 2कुरिंथियों 5:17 को दोहराते हैं:'इसका यह अर्थ है कि जो कोई मसीह में है वह एक नई सृष्टि है। पुराना जीवन चला गया है; एक नये जीवन की शुरुवात हो चुकी है!' वह पवित्र आत्मा से भर गए।
'जीवन पहले कभी भी इतना अच्छा नहीं था, मेरी खिड़कियों पर रोक लगी हुई थी लेकिन मैंने कभी भी इतना स्वतंत्र महसूस नहीं किया था, ' वह लिखते हैं। वह जेल में अल्फा चलाने लगे। 'जेल में बहुत से लोग मसीह बन रहे थे और रविवार की सभा में लोगों की संख्या बढ़ती जा रही थी। बहुत से लोग व्यसन मुक्त जीवन जीना चुन रहे थे।'
4अगस्त 2000को, डेरल जेल से छूटे और परमेश्वर की मंडली के साथ एक प्रमाणिक सेवक बन गए। वह रिबेका नामक एक युवा महिला से मिले और तब से एक पति और एक पिता बन गए।
अपने जीवन के विषय में उनकी पुस्तक 'जिस तक पहुँचा न जा सके' में, डेरल लिखते हैं, 'यदि आपने इसलिये इस किताब को पढ़ा है क्योंकि आप महसूस करते हैं कि आपका जीवन नीचे जा रहा है तो रुकिये, वह सपना देखने का साहस कीजिए जो शायद से परमेश्वर के पास आपके लिए है। याद रखिये कि एक हेरोईन का व्यसनी, जिस पर हथियार की चोरी करने का इंजाम लगा था, परमेश्वर उसके जीवन में आये, उसे एक ऐसा भविष्य दिया, जिसका उसने कभी भी सपना नहीं देखा होगा।'
भजन संहिता 79:1-13
आसाप का एक स्तुति गीत।
79हे परमेश्वर, कुछ लोग तेरे भक्तों के साथ लड़ने आये हैं।
उन लोगों ने तेरे पवित्र मन्दिर को ध्वस्त किया,
और यरूशलेम को उन्होंने खण्डहर बना दिया।
2 तेरे भक्तों के शवों को उन्होंने गिद्धों को खाने के लिये डाल दिया।
तेरे अनुयायिओं के शव उन्होंने पशुओं के खाने के लिये डाल दिया।
3 हे परमेश्वर, शत्रुओं ने तेरे भक्तों को तब तक मारा जब तक उनका रक्त पानी सा नहीं फैल गया।
उनके शव दफनाने को कोई भी नहीं बचा।
4 हमारे पड़ोसी देशों ने हमें अपमानित किया है।
हमारे आस पास के लोग सभी हँसते हैं, और हमारी हँसी उड़ाते हैं।
5 हे परमेश्वर, क्या तू सदा के लिये हम पर कुपित रहेगा?
क्या तेरे तीव्र भाव अग्नि के समान धधकते रहेंगे?
6 हे परमेश्वर, अपने क्रोध को उन राष्ट्रों के विरोध में जो तुझको नहीं पहचानते मोड़,
अपने क्रोध को उन राष्ट्रों के विरोध में मोड़ जो तेरे नाम की आराधना नहीं करते।
7 क्योंकि उन राष्ट्रों ने याकूब को नाश किया।
उन्होंने याकूब के देश को नाश किया।
8 हे परमेश्वर, तू हमारे पूर्वजों के पापों के लिये कृपा करके हमको दण्ड मत दे।
जल्दी कर, तू हम पर निज करूणा दर्शा!
हम को तेरी बहुत उपेक्षा है!
9 हमारे परमेश्वर, हमारे उद्धारकर्ता, हमको सहारा दे!
अपने ही नाम की महिमा के लिये हमारी सहायता कर!
हमको बचा ले! निज नाम के गौरव निमित्त
हमारे पाप मिटा।
10 दूसरी जाति के लोगों को तू यह मत कहने दे,
“तुम्हारा परमेश्वर कहाँ है? क्या वह तुझको सहारा नहीं दे सकता है?”
हे परमेश्वर, उन लोगों को दण्ड दे ताकि उस दण्ड को हम भी देख सकें।
उन लोगों को तेरे भक्तों को मारने का दण्ड दे।
11 बंदी गृह में पड़े हुओं कि कृपया तू कराह सुन ले!
हे परमेश्वर, तू निज महाशक्ति प्रयोग में ला और उन लोगों को बचा ले जिनको मरने के लिये ही चुना गया है।
12 हे परमेश्वर, हम जिन लोगों से घिरे हैं,
उनको उन अत्यचारों का दण्ड सात गुणा दे।
हे परमेश्वर, उन लोगों को इतनी बार दण्ड दे जितनी बार वे तेरा अपमान किये है।
13 हम तो तेरे भक्त हैं। हम तेरे रेवड़ की भेड़ हैं।
हम तेरा गुणगान सदा करेंगे।
हे परमेश्वर अंत काल तक तेरा गुण गायेंगे।
समीक्षा
अपने देश में बदलाव के लिए प्रार्थना करें
बदलाव संभव है। परमेश्वर लोगों के जीवन को बदल सकते हैं। वह शहरों और देशों को भी बदल सकते हैं।
मसीह के आने से पहले छठी शताब्दी में परमेश्वर के लोग निर्वासन में चले गएः 'हे परमेश्वर, अन्यजातियाँ तेरे निज भाग में घुस आई; उन्होंने तेरे पवित्र मंदिर को अशुद्ध किया; और यरूशलेम को खंडहर बना दिया है।...पड़ोसियों के बीच हमारी नामधराई हुई; चारों ओर के रहने वाले हम पर हँसते, और ठट्टा करते हैं' (वव.1,4, एम.एस.जी)। जैसे ही भजनसंहिता के लेखक मंदिर के विनाश और निर्वासन पर ध्यान देते हैं, वह देखते हैं कि परमेश्वर के नाम का अपमान हुआ है।
आज यू.के. में, हम देखते हैं कि चर्च बंद होते हैं और परमेश्वर के नाम का अपमान होता है। फिर एक बार परमेश्वर के लोगों का तिरस्कार और अपमान होता है।
भजनसंहिता के लेखक प्रार्थना करते हैं कि, 'हे यहोवा, तू कब तक लगातार क्रोध करता रहेगा?...तेरी दया हम पर शीघ्र हो, क्योंकि हम बड़ी दुर्दशा में पड़े हैं। हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, अपने नाम की महिमा के निमित्त हमारी सहायता कर; और अपने नाम के निमित्त हम को छुड़ाकर हमारे पापों को ढाँक दे' (वव.5,8-9, एम.एस.जी)।
यह आशारहित स्थिति में की गई एक प्रार्थना है। यह विश्वास की भी एक प्रार्थना है। परमेश्वर के पास स्थिति को बदलने की सामर्थ है। ऐसे एक समय का सपना देखने का साहस करें जब परमेश्वर देश के लिए आपकी प्रार्थना का उत्तर देते हैं:'तब हम आपके लोग...सर्वदा आपकी स्तुति करेंगे' (व.13)।
प्रार्थना
परमेश्वर, जैसे ही हम अपने शहर और अपने देश को देखते हैं, हम आपसे सहायता को माँगते हैं। होने दे कि यह देश ऐसा एक स्थान बने, जहाँ पर एक बार फिर आपके नाम का सम्मान हो।
प्रेरितों के काम 21:27-22:21
27 जब वे सात दिन लगभग पूरे होने वाले थे, कुछ यहूदियों ने उसे मन्दिर में देख लिया। उन्होंने भीड़ में सभी लोगों को भड़का दिया और पौलुस को पकड़ लिया। 28 फिर वे चिल्ला कर बोले, “इस्राएल के लोगो सहायता करो। यह वही व्यक्ति है जो हर कहीं हमारी जनता के, हमारी व्यवस्था के और हमारे इस स्थान के विरोध में लोगों को सिखाता फिरता है। और अब तो यह विधर्मियों को मन्दिर में ले आया है। और इसने इस प्रकार इस पवित्र स्थान को ही भ्रष्ट कर दिया है।” 29 (उन्होंने ऐसा इसलिये कहा था कि त्रुफिमुस नाम के एक इफिसी को नगर में उन्होंने उसके साथ देखकर ऐसा समझा था कि पौलुस उसे मन्दिर में ले गया है।)
30 सो सारा नगर विरोध में उठ खड़ा हुआ। लोग दौड़-दौड़ कर चढ़ आये और पौलुस को पकड़ लिया। फिर वे उसे घसीटते हुए मन्दिर के बाहर ले गये और तत्काल फाटक बंद कर दिये गये। 31 वे उसे मारने का जतन कर ही रहे थे कि रोमी टुकड़ी के सेनानायक के पास यह सूचना पहुँची कि समुचे यरूशलेम में खलबली मची हुई है। 32 उसने तुरंत कुछ सिपाहियों और सेना के अधिकारियों को अपने साथ लिया और पौलुस पर हमला करने वाले यहूदियों की ओर बढ़ा। यहूदियों ने जब उस सेनानायक और सिपाहियों को देखा तो उन्होंने पौलुस को पीटना बंद कर दिया।
33 तब वह सेनानायक पौलुस के पास आया और उसे बंदी बना लिया। उसने उसे दो ज़ंजीरों में बाँध लेने का आदेश दिया। फिर उसने पूछा कि वह कौन है और उसने क्या किया है? 34 भीड़ में से कुछ लोगों ने एक बात कही तो दूसरों ने दूसरी। इस हो-हुल्लड़ में क्योंकि वह यह नहीं जान पाया कि सच्चाई क्या है, इसलिये उसने आज्ञा दी कि उसे छावनी में ले चला जाये। 35-36 पौलुस जब सीढ़ियों के पास पहुँचा तो भीड़ में फैली हिंसा के कारण सिपाहियों को उसे अपनी सुरक्षा में ले जाना पड़ा। क्योंकि उसके पीछे लोगों की एक बड़ी भीड़ यह चिल्लाते हुए चल रही थी कि इसे मार डालो।
37 जब वह छावनी के भीतर ले जाया जाने वाला ही था कि पौलुस ने सेनानायक से कहा, “क्या मैं तुझसे कुछ कह सकता हूँ?”
सेनानायक बोला, “क्या तू यूनानी बोलता है? 38 तो तू वह मिस्री तो नहीं है न जिसने कुछ समय पहले विद्रोह शुरू कराया था और जो यहाँ रेगिस्तान में चार हज़ार आतंकवादियों की अगुवाई कर रहा था?”
39 पौलुस ने कहा, “मैं सिलिकिया के तरसुस नगर का एक यहूदी व्यक्ति हूँ। और एक प्रसिद्ध नगर का नागरिक हूँ। मैं तुझसे चाहता हूँ कि तू मुझे इन लोगों के बीच बोलने दे।”
40 उससे अनुमति पा कर पौलुस ने सीढ़ियों पर खड़े होकर लोगों की तरफ़ हाथ हिलाते हुए संकेत किया। जब सब शांत हो गये तो पौलुस इब्रानी भाषा में लोगों से कहने लगा।
पौलुस का भाषण
22पौलुस ने कहा, “हे भाइयो और पितृ तुल्य सज्जनो! मेरे बचाव में अब मुझे जो कुछ कहना है, उसे सुनो।”
2 उन्होंने जब उसे इब्रानी भाषा में बोलते हुए सुना तो वे और अधिक शांत हो गये। फिर पौलुस ने कहा,
3 “मैं एक यहूदी व्यक्ति हूँ। किलिकिया के तरसुस में मेरा जन्म हुआ था और मैं इसी नगर में पल-पुस कर बड़ा हुआ। गमलिएल के चरणों में बैठ कर हमारे परम्परागत विधान के अनुसार बड़ी कड़ाई के साथ मेरी शिक्षा-दीक्षा हुई। परमेश्वर के प्रति मैं बड़ा उत्साही था। ठीक वैसे ही जैसे आज तुम सब हो। 4 इस पंथ के लोगों को मैंने इतना सताया कि उनके प्राण तक निकल गये। मैंने पुरुषों और स्त्रियों को बंदी बनाया और जेलों में ठूँस दिया।
5 “स्वयं महायाजक और बुजुर्गों की समूची सभा इसे प्रमाणित कर सकती है। मैंने दमिश्क में इनके भाइयों के नाम इनसे पत्र भी लिया था और इस पंथ के वहाँ रह रहे लोगों को पकड़ कर बंदी के रूप में यरूशलेम लाने के लिये मैं गया भी था ताकि उन्हें दण्ड दिलाया जा सके।
पौलुस का मन कैसे बदला
6 “फिर ऐसा हुआ कि मैं जब यात्रा करते-करते दमिश्क के पास पहुँचा तो लगभग दोपहर के समय आकाश से अचानक एक तीव्र प्रकाश मेरे चारों ओर कौंध गया। 7 मैं धरती पर जा पड़ा। तभी मैंने एक आवाज़ सुनी जो मुझसे कह रही थी, ‘शाऊल, ओ शाऊल! तू मुझे क्यों सता रहा है?’
8 “तब मैंने उत्तर में कहा, ‘प्रभु, तू कौन है?’ वह मुझसे बोला, ‘मैं वही नासरी यीशु हूँ जिसे तू सता रहा है।’ 9 जो मेरे साथ थे, उन्होंने भी वह प्रकाश देखा किन्तु उस ध्वनि को जिस ने मुझे सम्बोधित किया था, वे समझ नहीं पाये।
10 “मैंने पूछा, ‘हे प्रभु, मैं क्या करूँ?’ इस पर प्रभु ने मुझसे कहा, ‘खड़ा हो, और दमिश्क को चला जा। वहाँ तुझे वह सब बता दिया जायेगा, जिसे करने के लिये तुझे नियुक्त किया गया है।’ 11 क्योंकि मैं उस तीव्र प्रकाश की चौंध के कारण कुछ देख नहीं पा रहा था, सो मेरे साथी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे ले चले और मैं दमिश्क जा पहुँचा।
12 “वहाँ हनन्याह नाम का एक व्यक्ति था। वह व्यवस्था का पालन करने वाला एक भक्त था। वहाँ के निवासी सभी यहूदियों के साथ उसकी अच्छी बोलचाल थी। 13 वह मेरे पास आया और मेरे निकट खड़े होकर बोला, ‘भाई शाऊल, फिर से देखने लग’ और उसी क्षण में उसे देखने योग्य हो गया।
14 “उसने कहा, ‘हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने तुझे चुन लिया है कि तू उसकी इच्छा को जाने, उस धर्म-स्वरूप को देखे और उसकी वाणी को सुने। 15 क्योंकि तूने जो देखा है और जो सुना है, उसके लिये सभी लोगों के सामने तू उसकी साक्षी होगा। 16 सो अब तू और देर मत कर, खड़ा हो बपतिस्मा ग्रहण कर और उसका नाम पुकारते हुए अपने पापों को धो डाल।’
17 “फिर ऐसा हुआ कि जब मैं यरूशलेम लौट कर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था तभी मेरी समाधि लग गयी। 18 और मैंने देखा वह मुझसे कह रहा है, ‘जल्दी कर और तुरंत यरूशलेम से बाहर चला जा क्योंकि मेरे बारे में वे तेरी साक्षी स्वीकार नहीं करेंगे।’
19 “सो मैंने कहा, ‘प्रभु ये लोग तो जानते हैं कि तुझ पर विश्वास करने वालों को बंदी बनाते हुए और पीटते हुए मैं यहूदी आराधनालयों में घूमता फिरा हूँ। 20 और तो और जब तेरे साक्षी स्तिफनुस का रक्त बहाया जा रहा था, तब भी मैं अपना समर्थन देते हुए वहीं खड़ा था। जिन्होंने उसकी हत्या की थी, मैं उनके कपड़ों की रखवाली कर रहा था।’
21 “फिर वह मुझसे बोला, ‘तू जा, क्योंकि मैं तुझे विधर्मियों के बीच दूर-दूर तक भेजूँगा।’”
समीक्षा
अपने जीवन में बदलाव की गवाही दें
यीशु ने आपके जीवन में जो बदलाव लाए हैं, उसके विषय में आपके पास एक गवाही है। शायद से यह डेरल टनिंगले की कहानी या पौलुस प्रेरित की तरह दिलचस्प न हो। फिर भी, यीशु के साथ एक संबंध की आपकी कहानी शक्तिशाली है।
एक बार फिर, पौलुस परेशानी में थे। भीड़ 'को उकसाया गया था' (प्रेरितों के काम 21:27)। लोगों ने उनके विषय में गलत धारणाएँ बना ली थी (व.29); वे 'उन्हें मार डालने' की कोशिश कर रहे थे (व.31)। उन्होंने उन्हें पीटा (व.32) और उन्हें गिरफ्तार किया (व.33)। वह 'दो जंजीरों से बाँध दिए गए' (व.33, ए.एम.पी.)। उन्होंने भीड़ की हिंसा का सामना किया (व.35)। उन्होंने कैसे उत्तर दिया?
उन्होंने उन्हें यीशु के बारें में बताया। हमेशा की तरह, उन्होंने अपनी गवाही बतायी, बताते हुए कि यीशु ने उनके जीवन में क्या किया था। यह एक बहुत ही अच्छा नमूना है कि कैसे आपको अपनी गवाही बतानी है, जब कभी अवसर मिलता है। पवित्र आत्मा आपमें रहते हैं और वह हमेशा हमारे जीवन में बदलाव को लाते हैं, जैसे ही वह हमें यीशु के स्वरूप में बदलते जाते हैं (2कुरिंथियो 3:18)। जब आपके पास एक अवसर है अपनी गवाही को बताने के लिए, तब आपको क्या कहना चाहिए?
- लोगों को अपना परिचय दें
उन्हें बताईये कि पहले आप कैसे थे। पौलुस लोगों को हाथ से संकेत करके कहते हैं। वह इब्रानी भाषा में बोलते हैं (प्रेरितों के काम 21:40)। वह अपने जीवन के भाग को बताते हैं ताकि यरूशलेम के लोग उनसे परिचित हो जाएँ। क्योंकि वह यहूदियों से बात कर रहे हैं, इसलिए वह केवल अपनी यहूदी शिक्षा के बारे में बताते हैं: 'मैं तो यहूदी मनुष्य हूँ...और परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो' (22:3, एम.एस.जी)।
पौलुस बताते हैं कि वह मसीहों का सताव करते थे उन्हें बाँधकर, घसीटते हुए बंदीगृह में डालते थे (वव.4-20), ठीक जैसा कि उस समय वे उसके साथ करने का प्रयास कर रहे थे।
जब आप अपनी गवाही देते हैं, तब अपने सुनने वालों के साथ संपर्क के बिंदु को खोजिये। उदाहरण के लिए, अल्फा की गवाहियों की शुरुवात अक्सर उनकी कहानियों से होती है जिससे दूसरे संबंध रख सकते हैं, या जो मेहमानों के दिमाग में इसका चित्र बना सकते हैं। वे इस तरह से शुरुवात करते हैं, 'मैं नास्तिक था...मैं एक शराबी था...मैं एक नशेबाज था...मैं चर्च का विरोधी था।'
- उन्हें बताईये कि आपके साथ क्या हुआ
पौलुस एक-एक बात बताते हैं कि यीशु से मिलने पर उनके साथ क्या हुआ। दमस्कुस जाते समय रास्ते में जब यीशु उनके सामने प्रकट हुए, तब उसने उनकी आवाज सुनी। यीशु ने उनसे प्रश्न पूछे और उन्हें आज्ञा दी। पौलुस ने सुना और यीशु के निर्देशानुसार काम किया।
हम लोगों को उत्साहित करते हैं कि बहुत ही निश्चित तरीके से अपने परिवर्तन का वर्णन करें, जैसा कि पौलुस इस लेखांश में करते हैं। यह विवरण है जो इसे वास्तविक और शक्तिशाली बनाता है।
- उस अंतर का वर्णन कीजिए जो यीशु ने आपके जीवन में किया है
हनन्याह ने पौलुस से कहा कि 'क्योंकि तू उसकी ओर से सब मनुष्यों के सामने उन बातों का गवाह होगा जो तू ने देखी और सुनी हैं। अब क्यों देर करता है? उठ, बपतिस्मा ले, और उसका नाम लेकर अपने पापों को धो डाल' (वव.15-16, एम.एस.जी.)। एक व्यक्ति जो जगह जगह मसीहों का सताव कर रहा था, उसे अन्यजातियों को सुसमाचार प्रचार करने के लिए बुलाया गया (व.21)।
दोबारा, हम उन लोगों को उत्साहित करते हैं जो अपनी गवाही बताते हैं कि उस बदलाव का एक निश्चित तरीके से वर्णन करें, जो यीशु ने उनके जीवन में किया है। एक बदले हुए जीवन की कहानी में महान सामर्थ है। अपनी कहानी को बताना एक तरीका है, जिससे आप अपने आस-पास के विश्व को बदलने में एक भूमिका निभा सकते हैं।
प्रार्थना
परमेश्वर, एक गवाही की सामर्थ के लिए आपका धन्यवाद। मेरी सहायता कीजिए कि मैं कभी भी उस बदलाव का वर्णन करने में थक न जाऊँ, जो यीशु ने मेरे जीवन में किया है।
2 राजा 4:38-6:23
एलीशा और जहरीला शोरवा
38 एलीशा फिर गिलगाल आ गया। उस समय देश में भुखमरी का समय था। नबियों का समूह एलीशा के सामने बैठा था। एलीशा ने अपने सेवक से कहा, “बड़े बर्तन को आग पर रखो और नबियों के समूह के लिये कुछ शोरवा बानाओ।”
39 एक व्यक्ति खेतों में साग सब्जी इकट्ठा करने गया। उसे एक जंगली बेल मिली। उसने कुछ जंगली लौकियाँ इस बेल से तोड़ीं और उनसे अपने लबादे की जेब को भर लिया। तब वह आया और उसने जंगली लौकियों को बर्तन में डाल दिया। किन्तु नबियों का समूह नहीं जानता था कि वे कैसी लौकियाँ हैं।
40 तब उन्होंने कुछ शोरवा व्यक्तियों को खाने के लिये दिया। किन्तु जब उन्होंने शोरवे को खाना आरम्भ किया, तो उन्होंने एलीशा से चिल्लाकर कहा, “परमेश्वर के जन! बर्तन में जहर है!” वे उस बर्तन से कुछ नहीं खा सके क्योंकि भोजन खाना खतरे से रहित नहीं था।
41 किन्तु एलीशा ने कहा, “कुछ आटा लाओ।” वे एलीशा के पास आटा ले आए और उसने उसे बर्तन में डाल दिया। तब एलीशा ने कहा, “शोरवे को लोगों के लिये डालो जिससे वे खा सकें।”
तब शोरवे में कोई दोष नहीं था!
एलीशा नबियों के समूह को भोजन कराता है
42 एक व्यक्ति बालशालीशा से आया और पहली फसल से परमेश्वर के जन (एलीशा) के लिये रोटी लाया। यह व्यक्ति बीस जौ की रोटियाँ और नया अन्न अपनी बोरी में लाया। तब एलीशा ने कहा, “यह भोजन लोगों को दो, जिसे वे खा सकें।”
43 एलीशा के सेवक ने कहा, “आपने क्या कहा यहाँ तो सौ व्यक्ति हैं। उन सभी व्यक्तियों को यह भोजन मैं कैसे दे सकता हूँ”
किन्तु एलीशा ने कहा, “लोगों को खाने के लिए भोजन दो। यहोवा कहता है, ‘वे भोजन कर लेंगे और भोजन बच भी जायेगा।’”
44 तब एलीशा के सेवक ने नबियों के समूह के सामने भोजन परोसा। नबियों के समूह के खाने के लिये भोजन पर्याप्त हुआ और उनके पास भोजन बचा भी रहा। यह वैसा ही हुआ जैसा यहोवा ने कहा था।
नामान की समस्या
5नामान अराम के राजा की सेना का सेनापति था। नामान अपने राजा के लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण था। नामान इसलिये अत्याधिक महत्वपूर्ण था क्योंकि यहोवा ने उसका उपयोग अराम को विजय दिलाने के लिए किया था। नामान एक महान और शक्तिशाली व्यक्ति था, किन्तु वह विकट चर्मरोग से पीड़ित था।
2 अरामी सेना ने कई सेना की टुकड़ियों को इस्राएल में लड़ने भेजा। सैनिकों ने बहुत से लोगों को अपना दास बना लिया। एक बार उन्होंने एक छोटी लड़की को इस्राएल देश से लिया। यह छोटी लड़की नामान की पत्नी की सेविका हो गई। 3 इस लड़की ने नामान की पत्नी से कहा, “मैं चाहती हूँ कि मेरे स्वामी (नामान) उस नबी (एलीशा) से मिलें जो शोमरोन में रहता है। वह नबी नामान के विकट चर्मरोग को ठीक कर सकता है।”
4 नामान अपने स्वामी (अराम के राजा) के पास गया। नामान ने अराम के राजा को वह बात बताई जो इस्राएली लड़की ने कही थी।
5 तब अराम के राजा ने कहा, “अभी जाओ और मैं एक पत्र इस्राएल के राजा के नाम भेजूँगा।”
अतः नामान इस्राएल गया। नामान अपने साथ कुछ भेंट ले गया। नामान साढ़े सात सौ पौंड चाँदी, छः हज़ार स्वर्ण मुद्राएं, और दस बार बदलने के वस्त्र ले गया। 6 नामान इस्राएल के राजा के लिये अराम के राजा का पत्र भी ले गया। पत्र में यह लिखा था: “यह पत्र यह जानकारी देने के लिये है कि मैं अपने सेवक नामान को तुम्हारे यहाँ भेज रहा हूँ। उसके विकट चर्मरोग को ठीक करो।”
7 जब इस्राएल का राजा उस पत्र को पढ़ चुका तो उसने अपनी चिन्ता और परेशानी को प्रकट करने के लिये अपने वस्त्र फाड़ डाले। इस्राएल के राजा ने कहा, “क्या मैं परमेश्वर हूँ नहीं! जीवन और मृत्यु पर मेरा कोई अधिकार नहीं। तब अराम के राजा ने मेरे पास विकट चर्मरोग के रोगी को स्वस्थ करने के लिये क्यों भेजा इसे जरा सोचो और तुम देखोगे कि यह एक चाल है। अराम का राजा युद्ध आरम्भ करना चाहता है।”
8 परमेश्वर के जन (एलीशा) ने सुना कि इस्राएल का राजा परेशान है और उसने अपने वस्त्र फाड़ डाले हैं। एलीशा ने अपना सन्देश राजा के पास भेजाः “तुमने अपने वस्त्र क्यों फाड़े नामान को मेरे पास आने दो। तब वह समझेगा कि इस्राएल में कोई नबी भी है।”
9 अतः नामान अपने घोड़ों और रथों के साथ एलीशा के घर आया और द्वार के बाहर खड़ा रहा। 10 एलीशा ने एक सन्देशवाहक को नामान के पास भेजा। सन्देशवाहक ने कहा, “जाओ, और यरदन नदी में सात बार नहाओ। तब तुम्हारा चर्मरोग स्वस्थ हो जाएगा और तुम पवित्र तथा शुद्ध हो जाओगे।”
11 नामान क्रोधित हुआ और वहाँ से चल पड़ा। उसने कहा, “मैंने समझा था कि कम से कम एलीशा बाहर आएगा, मेरे सामने खड़ा होगा और यहोवा, अपने परमेश्वर के नाम कुछ कहेगा। मैं समझ रहा था कि वह मेरे शरीर पर अपना हाथ फेरेगा और कुष्ठ को ठीक कर देगा। 12 दमिश्क की नदियाँ अबाना और पर्पर इस्राएल के सभी जलाशयों से अच्छी हैं! मैं दमिश्क की उन नदियों में क्यों नहीं नहाऊँ और पवित्र हो जाऊँ” इसलिये नामान वापस चला गया। वह क्रोधित था।
13 किन्तु नामान के सेवक उसके पास गए और उससे बातें कीं। उन्होंने कहा, “पिता यदि नबी ने आपसे कोई महान काम करने को कहा होता तो आप उसे जरुर करते। अतः आपको उसकी आज्ञा का पालन करना चाहिये यदि वह कुछ सरल काम करने को भी कहता है और उसने कहा, ‘नहाओ और तुम पवित्र और शुद्ध हो जाओगे।’”
14 इसलिये नामान ने वह काम किया जो परमेश्वर के जन (एलीशा)ने कहा, नामान नीचे उतरा और उसने सात बार यरदन नदी में स्नान किया और नामान पवित्र और शुद्ध हो गया। नामान की त्वचा बच्चे की त्वचा की तरह कोमल हो गई।
15 नामान और उसका सारा समूह परमेश्वर के जन (एलीशा) के पास आया। वह एलीशा के सामने खड़ा हुआ और उससे कहा, “देखिये, अब मैं समझता हूँ कि इस्राएल के अतिरिक्त पृथ्वी पर कहीं परमेश्वर नहीं है! अब कृपया मेरी भेंट स्वीकार करें!”
16 किन्तु एलीशा ने कहा, “मैं यहोवा की सेवा करता हूँ। यहोवा की सत्ता शाश्वत है, उसकी साक्षी मान कर मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं कोई भेंट नहीं लूँगा।”
नामान ने बहुत प्रयत्न किया कि एलीशा भेंट ले किन्तु एलीशा ने इन्कार कर दिया। 17 तब नामान ने कहा, “यदि आप इस भेंट को स्वीकार नहीं करते तो कम से कम आप मेरे लिये इतना करें। मुझे इस्राएल की इतनी पर्याप्त धूलि लेने दें जिससे मेरे दो खच्चरों पर रखे टोकरे भर जायें। क्यों क्योंकि मैं फिर कभी होमबिल या बलि किसी अन्य देवता को नहीं चढ़ाऊँगा। मैं केवल यहोवा को ही बलि भेंट करूँगा। 18 और अब मैं प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा मुझे इस बात के लिये क्षमा करेगा कि भविष्य में मेरा स्वामी (अराम का राजा) असत्य देवता की पूजा करने के लिये, रिम्मोन के मन्दिर में जाएगा। राजा सहारे के लिये मुझ पर झुकना चाहेगा, अतः मुझे रिम्मोन के मन्दिर में झुकना पड़ेगा। अब मैं यहोवा से प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे क्षमा करे जब वैसा हो।”
19 तब एलीशा ने नामान से कहा, “शान्तिपूर्वक जाओ।”
अतः नामान ने एलीशा को छोड़ा और कुछ दूर गया। 20 किन्तु परमेश्वर के जन एलीशा का सेवक गेहजी बोला, “देखिये, मेरे स्वामी (एलीशा) ने अरामी नामान को, उसकी लाई हुई भेंट को स्वीकार किये बिना ही जाने दिया है। यहोवा शाश्वत है, इसको साक्षी मान कर मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि नामान के पीछे दौड़ूँगा और उससे कुछ लाऊँगा!” 21 अतः गेहजी नामान की ओर दौड़ा।
नामान ने अपने पीछे किसी को दौड़कर आते देखा। वह गेहजी से मिलने को अपने रथ से उतर पड़ा। नामान ने पूछा, “सब कुशल तो है” 22 गेहजी ने कहा, “हाँ, सब कुशल है। मेरे स्वामी एलीशा ने मुझे भेजा है। उसने कहा, ‘देखो, एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के नबियों के समूह से दो युवक नबी मेरे पास आये हैं। कृपया उन्हें पच्हत्तर पौंड चाँदी और दो बार बदलने के वस्त्र दे दो।’”
23 नामान ने कहा, “कृपया डेढ़ सौ पौंड ले लो!” नामान ने गेहजी को चाँदी लेने के लिये मनाया। नामान ने डेढ़ सौ पौंड चाँदी को दो बोरियों में रखा और दो बार बदलने के वस्त्र लिये। तब नामान ने इन चीज़ों को अपने सेवकों में से दो को दिया। सेवक उन चीज़ों को गेहजी के लिये लेकर आए। 24 जब गेहजी पहाड़ी तक आया तो उसने उन चीज़ों को सेवकों से ले लिया। गेहजी ने सेवकों को लौटा दिया और वे लौट गए। तब गेहजी ने उन चीज़ों को घर में छिपा दिया।
25 गेहजी आया और अपने स्वामी एलीशा के सामने खड़ा हुआ। एलीशा ने गेहजी से पूछा, “गेहजी, तुम कहाँ गए थे”
गेहजी ने कहा, “मैं कहीं भी नहीं गया था।”
26 एलीशा ने गेहजी से कहा, “यह सच नहीं है! मेरा हृदय तुम्हारे साथ था जब नामान अपने रथ से तुमसे मिलने को मुड़ा। यह समय पैसा, कपड़े, जैतून, अंगूर, भेड़, गायें या सेवक—सेविकायें लेने का नहीं है। 27 अब तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को नामान की बीमारी लग जाएगी। तुम्हें सदैव विकट चर्मरोग रहेगा!”
जब गहेजी एलीशा से विदा हुआ तो गेहजी की त्वचा बर्फ की तरह सफेद हो गई थी। गेहजी को कुष्ठ हो गया था।
एलीशा और लौह फलक
6नबियों के समूह ने एलीशा से कहा, “हम लोग वहाँ उस स्थान पर रह रहे हैं। किन्तु वह हम लोगों के लिये बहुत छोटा है। 2 हम लोग यरदन नदी को चलें और कुछ लकड़ियाँ काटें। हम में से प्रत्येक एक लट्ठा लेगा और हम लोग अपने लिये रहने का एक स्थान वहाँ बनायें।”
एलीशा ने कहा, “बहुत अच्छा, जाओ और करो।”
3 उनमें से एक व्यक्ति ने कहा, “कृपया हमारे साथ चलें।”
एलीशा ने कहा, “बहुत अच्छा, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।”
4 अतः एलीशा नबियों के समूह के साथ गया। जब वे यरदन नदी पर पहुँचे तो उन्होंने कुछ पेड़ काटने आरम्भ किये। 5 किन्तु जब एक व्यक्ति एक पेड़ को काट रहा था तो कुल्हाड़ी का लौह फलक कुल्हाड़ी से निकल गया और पानी में गिर पड़ा। तब वह व्यक्ति चिल्लाया, “हे स्वामी! मैंने वह कुल्हाड़ी उधार ली थी!”
6 परमेश्वर के जन (एलीशा) ने कहा, “वह कहाँ गिरी”
उस व्यक्ति ने एलीशा को वह स्थान दिखाया जहाँ लौह फलक गिरा था। तब एलीशा ने एक डंडी काटी और उस डंडी को पानी में फेंक दिया। उस डंडी ने लौह फलक को तैरा दिया। 7 एलीशा ने कहा, “लौह फलक को पकड़ लो।” तब वह व्यक्ति आगे बढ़ा और उसने लौह फलक को ले लिया।
अराम का राजा इस्राएल के राजा को फँसाने का प्रयत्न करता है
8 अराम का राजा इस्राएल के विरुद्ध युद्ध कर रहा था। उसने सेना के अधिकारियों के साथ परिषद बैठक बुलाई। उसने आदेश दिया, “इस स्थान पर छिप जाओ और इस्राएलियों पर तब आक्रमण करो जब यहाँ से होकर निकलें।”
9 किन्तु परमेश्वर के जन (एलीशा) ने इस्राएल के राजा को एक संदेश भेजा। एलीशा ने कहा, “सावधान रहो! उस स्थान से होकर मत जाओ। वहाँ अरामी सैनिक छिपे हैं!”
10 इस्राएल के राजा ने उस स्थान पर जिसके विषय में परमेश्वर के जन (एलीशा) ने चेतावनी दी थी, अपने व्यक्तियों को संदेश भेजा और इस्राएल के राजा ने बहुत से पुरुषों को बचा लिया।
11 अराम का राजा इससे बहुत घबराया। अराम के राजा ने अपने सैनिक अधिकारियों को बुलाया, और उनसे पूछा, “मुझे बताओ कि इस्राएल के राजा के लिये जासूसी कौन कर रहा है।”
12 अराम के राजा के सैनिक अधिकारियों में से एक ने कहा, “मेरे प्रभु और राजा, हम में से कोई भी जासूस नहीं है! एलीशा, इस्राएल का नबी इस्राएल के राजा को अनेक गुप्त सूचनाएं दे सकता है, यहाँ तक कि आप जो अपने बिस्तर में कहेंगे, उसकी भी!”
13 अराम के राजा ने कहा, “एलीशा का पता लगाओ और मैं उसे पकड़ने के लिये आदमियों को भेजूँगा।”
सेवकों ने अराम के राजा से कहा, “एलीशा दोतान में है!”
14 तब अराम के राजा ने घोड़े, रथ और विशाल सेना को दोतान को भेजा। वे रात को पहुँचे और उन्होंने नगर को घेर लिया। 15 एलीशा के सेवक उस सुबह को जल्दी उठे। एक सेवक बाहर गया और उसने एक सेना को घोड़ों और रथों के साथ नगर के चारों ओर देखा।
एलीशा के सेवक ने एलीशा से कहा, “ओह, मेरे स्वामी हम क्या कर सकते हैं”
16 एलीशा ने कहा, “डरो नहीं! वह सेना जो हमारे लिये युद्ध करती है, उस सेना से बड़ी है जो अराम के लिये युद्ध करती है!”
17 तब एलीशा ने प्रार्थना की और कहा, “यहोवा, मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि तू मेरे सेवक की आँखें खोल जिससे वह देख सके।”
यहोवा ने युवक की आँखे खोलीं और सेवक ने देखा कि पूरा पर्वत अग्नि के घोड़ों और रथों से ढका पड़ा था। वे सभी एलीशा के चारों ओर थे!
18 ये आग के घोड़े और रथ एलीशा के पास आए। एलीशा ने यहोवा से प्रार्थना की और कहा, “मैं प्रार्थना करता हूँ कि तू इन लोगों को अन्धा कर दे।”
तब यहोवा ने अरामी सेना को अन्धा कर दिया, जैसे एलीशा ने प्रार्थना की थी। 19 एलीशा ने अरामी सेना से कहा, “यह उचित मार्ग नहीं है। यह उपयुक्त नगर नहीं है। मेरे पीछे आओ। मैं उस व्यक्ति के पास तुम्हें ले जाऊँगा जिसकी खोज तुम कर रहे हो।” तब एलीशा अरामी सेना को शोमरोन ले गया।
20 जब वे शोमरोन पहुँचे तो एलीशा ने कहा, “यहोवा, इन लोगों की आँखे खोल दे जिससे ये देख सकें।”
तब यहोवा ने उनकी आँखें खोल दीं और अरामी सेना ने देखा कि वह शोमरोन नगर में थे। 21 इस्राएल के राजा ने अरामी सेना को देखा। इस्राएल के राजा ने एलीशा से पूछा, “मेरे पिता, क्या मैं इन्हें मार डालूँ क्या मैं इन्हें मार डालूँ”
22 एलीशा ने उत्तर दिया, “नहीं, इन्हें मारो मत। तुम उन लोगों को नहीं मारते जिन्हें तुम युद्ध में अपनी तलवार और धनुष—बाण के बल से पकड़ते हो। अरामी सेना को कुछ रोटी—पानी दो। उन्हें खाने—पीने दो। तब इन्हें अपने स्वामी के पास लौट जाने दो।”
23 इस्राएल के राजा ने अरामी सेना के लिये बहुत सा भोजन तैयार कराया। अरामी सेना ने खाया—पीया। तब इस्राएल के राजा ने अरामी सेना को उनके घर वापस भेज दिया। अरामी सेना अपने स्वामी के पास घर लौट गई। अरामी लोगों ने इसके बाद इस्राएल पर आक्रमण करने के लिये फिर कोई सेना नहीं भेजी।
समीक्षा
पहचानें कि बदलाव अनुग्रह का एक कार्य है
एलीशा के द्वारा परमेश्वर ने बहुत से चमत्कार किए। भोजन खिलाने का चमत्कार हुआ (4:38-44), कुल्हाड़ी का सिर ऊपर तैर रहा था (6:1-7) और अंधे अरामी (वव.8-23)। ना केवल उनके द्वारा चमत्कार हुए, लेकिन उनके पास उल्लेखनीय भविष्यवाणी के वरदान भी थेः 'एलीशा जो इस्राएल में भविष्यवक्ता हैं, वह इस्राएल के राजा को वे बातें भी बताया करता है, जो तू शयन की कोठरी में बोलता है' (व.12)। इन घटनाओं के बीच में हम सीरिया के एक सेनापति के जीवन में उल्लेखनीय बदलाव के विषय में पढ़ते हैं।
अराम के राजा का नामान नामक सेनापति था। वह 'सच में एक महान पुरुष था' (5:1, एम.एस.जी)। लेकिन उसे एक परेशानी थी; 'उसे कोढ़ था' (व.1)। एक छोटी लड़की के द्वारा जो दासी थी, वह परमेश्वर की सामर्थ से चंगा होने की संभावना के विषय में सुनते हैं (वव.2-4)।
वह अपनी सामर्थ और अपने पैसे से चीजों को करवाने के आदी थेः'तब वह दस किक्कार चाँदी और छ हजार टुकड़े सोना, और दस जोड़े कपड़े साथ लेकर रवाना हो गये' (व.5, एम.एस.जी.)।
जब वह आखिरकार एलीशा के दूत से मिलते हैं, तब उन्हें बताया जाता है कि, 'तू जाकर यरदन में सात बार डुबकी मार, तब तेरा शरीर ज्यों का ज्यों हो जाएगा, और तू शुद्ध हो जायेगा' (व.10, एम.एस.जी)। शुरुवात में, उन्हें गुस्सा आता है और वह चले जाते हैं (वव.11-12)। वह एक शानदार और दीन ना होने के तरीके से चंगा होने की आशा कर रहे थे। घमंड आपको वह सब ग्रहण करने से रोक सकता है, जो कि परमेश्वर आपको देना चाहते हैं।
किंतु, उनके सेवक के द्वारा उत्साहित होकर, वह सात बार यरदन नदी में डुबकी लगाते हैं और 'उनका शरीर छोटे लड़के का सा हो जाता है और वह शुद्ध हो जाते हैं' (व.14)। वह पूरी तरह से बदल जाते हैं। वह कहते हैं, 'अब मैंने जान लिया है कि समस्त पृथ्वी में इस्राएल को छोड़ और कहीं परमेश्वर नहीं हैं' (व.15)।
वह अपनी चंगाई के लिए दाम चुकाने का प्रस्ताव रखते हैं। एलीशा कुछ भी लेने से मना कर देते हैं। गहेजी परमेश्वर के अनुग्रह से पैसा कमाने की कोशिश करते हुए भयानक गलती करते हैं (वव.19-27)। अनुग्रह के द्वारा चंगाई और बदलाव परमेश्वर की ओर से एक उपहार है। उन्हें कमाया नहीं जा सकता है।
प्रार्थना
पिता, चंगा करने और बचाने के लिए आपकी चमत्कारी सामर्थ के लिए आपका धन्यवाद। मेरी सहायता कीजिए कि एलीशा की तरह बर्ताव करुँ और कभी भी अपने लिए कोई उधार लेने की कोशिश न करुँ, चाहे भौतिक या कोई दूसरा। आपका धन्यवाद क्योंकि बदलाव अनुग्रह से आता है। यह आपके प्रेम का एक उपहार है।
पिप्पा भी कहते है
2 राजाओं 6:16
भविष्यवक्ता ने कहा, 'मत डर; क्योंकि जो हमारी ओर है, वह उनसे अधिक है, जो उनकी ओर है।'
यदि आप कठिनाईयों और प्रहार से घिरा हुआ महसूस करते हैं, तो याद रखिये कि जब सबकुछ आपके विरोध में दिखाई देता है, तब परमेश्वर के पास एक शक्तिशाली सेना है जो आकर आपको छुड़ा सकती है।
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संदर्भ
डेरल टनिंगले, जिस तक पहुँचा न जा सके, (सोवरन वर्ल्ड, 2011)
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।