दिन 185

आपके लिए परमेश्वर का उद्देश्य

बुद्धि नीतिवचन 16:8-17
नए करार प्रेरितों के काम 22:22-23:11
जूना करार 2 राजा 6:24-8:15

परिचय

1981 में, पीपा और मैंने महसूस किया कि परमेश्वर हमें इंग्लैंड के एक चर्च में पूरे समय के सेवक और मुझे एक नियुक्त सेवक बनने के लिए बुला रहे हैं। हमने यह भी महसूस किया कि हमें डुरहाम में प्रशिक्षण लेना चाहिए, जो सितंबर 1982 में शुरु होने वाला था। डुरहाम यूनिवर्सिटी के सिद्धांतवादी कॉलेज में वेटिंग लिस्ट में मेरा नाम सबसे ऊपर था। मुझे बताया गया कि निश्चित ही कोई ना कोई निकल जाएगा और मुझे एक स्थान मिलने की गारंटी है। इसके आधार पर मैंने व्यापक रूप से हमारी योजनाओं को बता दिया, सदन के लोगों को, जहाँ पर मैं एक वकील के रूप में काम करता था, उन्हें भी बता दिया कि मैं वहाँ से जाने वाला हूँ।

मैं शुरुवात करने ही जा रहा था कि हमें समाचार मिला की, ऐसा हुआ है कि कोई भी पढ़ाई छोड़कर नहीं गया है और हमारे लिए वहाँ पर जाना संभव बात नहीं होगी। उन्हें मनाने के लिए हमने सबकुछ किया ताकि वे अपना विचार बदल दें। हमने बहुत अधिक कोशिश की कि दूसरे सिद्धांतवादी कॉलेज को ढूँढ़ लें जो हमें स्वीकार करें। हमने प्रार्थना की और जितना जोर लगा सकते थे लगाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। दरवाजा दृढ़ रूप से बंद हो चुका था।

आने वाला साल बहुत ही कठिन था। मेरे सदन ने मुझे बहुत थोड़ा काम दिया, क्योंकि वे जानते थे कि मैं छोड़कर जाने वाला था, और इसकी वजह से मेरे कैरिअर को बनाने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं था। उस समय यह बहुत बड़ी निराशा और रहस्य जैसा था।

अंत में, पीपा और मैं आने वाले साल में अध्ययन करने के लिए ऑक्सफर्ड गए और आखिरकार 1986 में एच.टी.बी में एक संग्रहालय की शुरुवात की। अनुभव से, यदि हम डुरहाम में चले गए होते, तो उसके समय के कारण एच.टी.बी में एक संग्रहालय की शुरुवात करने की बात हम सोच भी नहीं सकते थे और हम वह नहीं कर रहे होते जो कि आज कर रहे हैं। मैं परमेश्वर का बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने अपनी योजनाओं को रोका और युक्तिकारक रूप से हमारे कदमों को निर्धारित किया।

यदि आप पीछे हटने या निराश होने की स्थिति से गुजर रहे हैं, तो याद रखिये कि आपके लिए उनका उद्देश्य 'भला, मनभावना और सिद्ध है' (रोमियो 12:2)। परमेश्वर की अनुमति के बिना कुछ नहीं होता है। परमेश्वर नियंत्रण में हैं और हर वस्तु में वह आपकी भलाई के लिए काम कर रहे हैं (8:28)।

बुद्धि

नीतिवचन 16:8-17

8 अन्याय से मिले अधिक की अपेक्षा,
 नेकी के साथ थोड़ा मिला ही उत्तम है।

9 मन में मनुष्य निज राहें रचता है,
 किन्तु प्रभु उसके चरणों को सुनिचश्चित करता है।

10 राजा जो बोलता नियम बन जाता है
 उसे चाहिए वह न्याय से नहीं चूके।

11 खरे तराजू और माप यहोवा से मिलते हैं,
 उसी ने ये सब थैली के बट्टे रचे हैं। ताकि कोई किसी को छले नहीं।

12 विवेकी राजा, बुरे कर्मो से घृणा करता है
 क्योंकि नेकी पर ही सिंहासन टिकता है।

13 राजाओं को न्याय पूर्ण वाणी भाती है,
 जो जन सत्य बोलता है, वह उसे ही मान देता है।

14 राजा का कोप मृत्यु का दूत होता है
 किन्तु ज्ञानी जन से ही वह शांत होगा।

15 राजा जब आनन्दित होता है तब सब का जीवन उत्तम होता है,
 अगर राजा तुझ से खुश है तो वह वासंती के वर्षा सी है।

16 विवेक सोने से अधिक उत्तम है,
 और समझ बूझ पाना चाँदी से उत्तम है।

17 सज्जनों का राजमार्ग बदी से दूर रहता है।
 जो अपने राह की चौकसी करता है, वह अपने जीवन की रखवाली करता है।

समीक्षा

मानवीय योजनाओं के द्वारा परमेश्वर आपके कदमों को निर्धारित करते हैं

योजना बनाना सही बात है। किंतु, हमें इसे आवश्यक दीनता के साथ करने की आवश्यकता है, यह पहचानते हुए कि हमारी योजनाएँ केवल तभी सफल होंगी 'यदि यह परमेश्वर की इच्छा है' (याकूब 4:13-15 देखे)। नीतिवचन के लेखक कहते हैं, 'मनुष्य मन में अपने मार्ग पर विचार करता है, परंतु यहोवा ही उसके पैरों को स्थिर करते हैं' (नीतिवचन 16:9)।

कभी-कभी हम अपनी योजनाओं को परमेश्वर के उद्देश्य के साथ मेल में लाते हैं। दूसरे समय पर – निश्चित रूप से मेरे अनुभव में – परमेश्वर हमारी योजनाओं को रद्द करते हैं। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हो सकता है कि हमने इसे गलत तरीके से किया हो और आखिर में, धन्यवाद देते हुए, यह परमेश्वर है जो हमारे कदमों को निर्धारित करते हैं।

परमेश्वर अक्सर अच्छे लीडरशिप के द्वारा अपने उद्देश्य को पूरा करते हैं। अच्छे लीडर्स दूसरों को उत्साहित करते हैं (व.10)। वे अपने निर्णयों को प्रचलित पर निर्भर नहीं करते हैं:' अच्छी लीडरशिप की नैतिक नींव होती है' (व.12ब, एम.एस.जी)। वे एक पारदर्शिता के वातावरण को विकसित करते हैं:'अच्छे लीडर्स सच्ची बातें बोलते हैं; उन्हे ऐसे सलाहकार पसंद हैं जो उन्हें सच बताते हैं' (व.13, एम.एस.जी.)। वे 'जीवन में शक्ति भरते हैं; वे बरसात के अंत की घटा के समान होते हैं' (व.15, एम.एस.जी)।

प्रार्थना

आपका धन्यवाद परमेश्वर, क्योंकि यदि मैं अपने हृदय में योजनाएँ बनाऊँ, आखिर में आप मेरे कदमों को निर्धारित करते हैं।

नए करार

प्रेरितों के काम 22:22-23:11

22 इस बात तक वे उसे सुनते रहे पर फिर ऊँचे स्वर में पुकार कर चिल्ला उठे, “ऐसे मनुष्य से धरती को मुक्त करो। यह जीवित रहने योग्य नहीं है।” 23 वे जब चिल्ला रहे थे और अपने कपड़ों को उतार उतार कर फेंक रहे थे तथा आकाश में धूल उड़ा रहे थे, 24 तभी सेनानायक ने आज्ञा दी कि पौलुस को किले में ले जाया जाये। उसने कहा कि कोड़े लगा लगा कर उससे पूछ-ताछ की जाये ताकि पता चले कि उस पर लोगों के इस प्रकार चिल्लाने का कारण क्या है। 25 किन्तु जब वे उसे कोड़े लगाने के लिये बाँध रहे थे तभी वहाँ खड़े सेनानायक से पौलुस ने कहा, “किसी रोमी नागरिक को, जो अपराधी न पाया गया हो, कोड़े लगाना क्या तुम्हारे लिये उचित है?”

26 यह सुनकर सेनानायक सेनापति के पास गया और बोला, “यह तुम क्या कर रहे हो? क्योंकि यह तो रोमी नागरिक है।”

27 इस पर सेनापति ने उसके पास आकर पूछा, “मुझे बता, क्या तू रोमी नागरिक है?”

पौलुस ने कहा, “हाँ।”

28 इस पर सेनापति ने उत्तर दिया, “इस नागरिकता को पाने में मुझे बहुत सा धन खर्च करना पड़ा है।”

पौलुस ने कहा, “किन्तु मैं तो जन्मजात रोमी नागरिक हूँ।”

29 सो वे लोग जो उससे पूछताछ करने को थे तुरंत पीछे हट गये और वह सेनापति भी यह समझ कर कि वह एक रोमी नागरिक है और उसने उसे बंदी बनाया है, बहुत डर गया।

यहूदी नेताओं के सामने पौलुस का भाषण

30 क्योंकि वह सेनानायक इस बात का ठीक ठीक पता लगाना चाहता था कि यहूदियों ने पौलुस पर अभियोग क्यों लगाया, इसलिये उसने अगले दिन उसके बन्धन खोलदिए। फिर प्रमुख याजकों और सर्वोच्च यहूदी महासभा को बुला भेजा और पौलुस को उनके सामने लाकर खड़ा कर दिया।

23पौलुस ने यहूदी महासभा पर गम्भीर दृष्टि डालते हुए कहा, “मेरे भाईयों! मैंने परमेश्वर के सामने आज तक उत्तम निष्ठा के साथ जीवन जिया है।” 2 इस पर महायाजक हनन्याह ने पौलुस के पास खड़े लोगों को आज्ञा दी कि वे उसके मुँह पर थप्पड़ मारें। 3 तब पौलुस ने उससे कहा, “अरे सफेदी पुती दीवार! तुझ पर परमेश्वर की मार पड़ेगी। तू यहाँ व्यवस्था के विधान के अनुसार मेरा कैसा न्याय करने बैठा है कि तू व्यवस्था के विरोध में मेरे थप्पड़ मारने की आज्ञा दे रहा है।”

4 पौलुस के पास खड़े लोगों ने कहा, “परमेश्वर के महायाजक का अपमान करने का साहस तुझे हुआ कैसे।”

5 पौलुस ने उत्तर दिया, “मुझे तो पता ही नहीं कि यह महायाजक है। क्योंकि शासन में लिखा है, ‘तुझे अपनी प्रजा के शासक के लिये बुरा बोल नहीं बोलना चाहिये।’ ”

6 फिर जब पौलुस को पता चला कि उनमें से आधे लोग सदूकी हैं और आधे फ़रीसी तो महासभा के बीच उसने ऊँचे स्वर में कहा, “हे भाईयों, मैं फ़रीसी हूँ एक फ़रीसी का बेटा हूँ। मरने के बाद फिर से जी उठने के प्रति मेरी मान्यता के कारण मुझ पर अभियोग चलाया जा रहा है!”

7 उसके ऐसा कहने पर फरीसियों और सदूकियों में एक विवाद उठ खड़ा हुआ और सभा के बीच फूट पड़ गयी। 8 (सदूकियों का कहना है कि पुनरुत्थान नहीं होता न स्वर्गदूत होते हैं और न ही आत्माएँ। किन्तु फरीसियों का इनके अस्तित्त्व में विश्वास है।) 9 वहाँ बहुत शोरगुल मचा। फरीसियों के दल में से कुछ धर्मशास्त्रि उठे और तीखी बहस करते हुए कहने लगे, “इस व्यक्ति में हम कोई खोट नहीं पाते हैं। यदि किसी आत्मा ने या किसी स्वर्गदूत ने इससे बातें की हैं तो इससे क्या?”

10 क्योंकि यह विवाद हिंसक रूप ले चुका था, इससे वह सेनापति डर गया कि कहीं वे पौलुस के टुकड़े-टुकड़े न कर डालें। सो उसने सिपाहियों को आदेश दिया कि वे नीचे जा कर पौलुस को उनसे अलग करके छावनी में ले जायें।

11 अगली रात प्रभु ने पौलुस के निकट खड़े होकर उससे कहा, “हिम्मत रख, क्योंकि तूने जैसे दृढ़ता के साथ यरूशलेम में मेरी साक्षी दी है, वैसे ही रोम में भी तुझे मेरी साक्षी देनी है।”

समीक्षा

मानवीय विरोध के बावजूद परमेश्वर आपके कदमों को निर्धारित करते हैं

क्या आप अपने भविष्य के विषय में चिंतित हैं? क्या आप कठिनाई और विरोध का सामना कर रहे हैं या संकट के एक समय में हैं? क्या आपके विरोध में योजनाएँ बनायी गई हैं?

इस कहानी में बहुत सी स्पर्धा करने वाली योजनाएँ हैं। यें चीजे परमेश्वर के उद्देश्य के साथ कैसे संबंध रखती हैं?

  1. भीड़

भीड़ पौलुस को 'मार डालने' की योजना बनाते हैं (22:22) इसके कारण पौलुस को कठिनाई का सामना करना पड़ता है, आखिर में यह योजना असफल हो जाती है क्योंकि उनकी योजनाएँ परमेश्वर के उद्देश्य के विरोध में हैं।

  1. पलटन का सरदार

अ.'पलटन का सरदार, ' सेना पर अधिकार रखने वाला व्यक्ति, पौलुस को कोड़े मारने की योजना बनाता है (व.24)। पौलुस को पीड़ा देने वाले गढ़ में ले जाया जाता है लेकिन योजना असफल हो जाती है क्योंकि अपराध साबित होने से पहले एक रोमी नागरिक को कोड़े लगवाना गैरकानूनी बात थी, और पलटन का सरदान नहीं जानता था कि पौलुस एक रोमी नागरिक है।

  1. न्यायालय

धार्मिक अधिकारियों ने, पौलुस को मार डालने की योजना बनायी (23:12)। पौलुस को न्यायालय में ले जाया गया और महासभा के सामने खड़ा कर दिया गया (22:30)। वह बताते हैं कि वह निर्दोष हैं:' हनन्याह महायाजक ने उनको जो उसके पास खड़े थे, उसके मुँह पर थप्पड़ मारने की आज्ञा दी' (23:2)। पौलुस जवाब देते हैं, ' 'हे चूना फिरी हुई भीत, परमेश्वर तुझे मारेगा' (व.3)।

पौलुस न्यायालय के लोगों के बीच में फूट डाल देते हैं (वव.7-8), जिसमें फरीसी थे (जो मरे हुओं के जी उठने में विश्वास करते थे) और सदूकी थे (जो इसमें विश्वास नहीं करते थे)। पौलुस 'उनके परस्पर विरोध' का उपयोग करने का निर्णय लेते हैं (व.6, एम.एस.जी)। पौलुस कहते हैं, ' 'हे भाइयो, मैं फरीसी और फरीसियों के वंश का हूँ, मरे हुओं की आशा और पुनरुत्थान के विषय में मेरा मुकद्दमा हो रहा है' (व.6)।

  1. संकट

इन सभी चीजों के बीच में, पौलुस अपनी योजना को परमेश्वर की योजना के साथ मेल में लाने का प्रयास करते हैं। वह परमेश्वर के द्वारा मार्गदर्शित थे। उन्होंने आत्मा में ठाना कि यरूशलेम जाऊँ और फिर रोम जाऊँ (19:21)। किंतु, इन चीजों के बावजूद वे एक के बाद एक संकट का सामना करते हैं।

अवश्य ही पौलुस ने आश्चर्य किया होगा कि क्या वह परमेश्वर की योजना से चूक गए हैं। लेकिन इस 'संकट' के बीच में, परमेश्वर ने पौलुस के नजदीक खड़े रहकर कहा, 'हे पौलुस, ढाढ़स बाँध; क्योंकि जैसी तू ने यरूशलेम में मेरी गवाही दी, वैसी ही तुझे रोम में भी गवाही देनी होगी।'

जैसे परमेश्वर पौलुस के साथ थे, वैसे ही परमेश्वर आपके कदमों को निर्धारित करेंगे। परमेश्वर की सार्वभौमिकता का अर्थ है कि हमें परिणाम की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर पूर्ण नियंत्रण में हैं, यद्यपि शायद से उस समय ऐसा देखना सरल बात न हो।

परमेश्वर का उद्देश्य है कि आप पौलुस की तरह एक गवाह बनें। जहाँ कही आप जाते हैं, एक गवाह बनें। जब उचित हो, अपनी गवाही दीजिए। यहाँ तक कि जब आप नहीं बोल रहे हैं, तब आपका जीवन एक गवाही है। सबकुछ अच्छा होने का इंतजार मत कीजिए। असल में, कठिनाई के समय में कभी कभी आपकी गवाही बहुत शक्तिशाली हो जाती है।

प्रार्थना

परमेश्वर, मुझे वही साहस दीजिए जो आपने पौलुस प्रेरित को दिया, ताकि जहाँ कही मैं जाऊँ वहाँ पर आपके विषय में गवाही दूँ।

जूना करार

2 राजा 6:24-8:15

भयंकर भुखमरी शोमरोन को कष्ट देती है

24 जब यह सब हो गया तो अराम के राजा बेन्हदद ने अपनी सारी सेना इकट्ठा की और वह शोमरोन नगर पर घेरा डालने और उस पर आक्रमण करने गया। 25 सैनिकों ने लोगों को नगर में भोजन सामग्री भी नहीं लाने दी। इसलिये शोमरोन में भयंकर भूखमरी का समय आ गया। यह शोमरोन में इतना भयंकर था कि एक गधे का सिर चाँदी के अस्सी सिक्कों में बिकने लगा और कबूतर की एक पिन्ट बीट की कीमत पाँच चाँदी के सिक्के थे।

26 इस्राएल का राजा नगर की प्राचीर पर घूम रहा था। एक स्त्री ने चिल्लाकर उसे पुकारा। उस स्त्री ने कहा, “मेरे प्रभु और राजा, कृपया मेरी सहायता करें!”

27 इस्राएल के राजा ने कहा, “यदि यहोवा तुम्हारी सहायता नहीं करता तो मैं कैसे तुमको सहायता दे सकता हूँ मेरे पास तुमको देने को कुछ भी नहीं है। खलिहानों से कोई अन्न नहीं आया, या दाखमधु के कारखाने से कोई दाखमधु नहीं आई।” 28 तब इस्राएल के राजा ने उस स्त्री से पूछा, “तुम्हारी परेशानी क्या है?”

स्त्री ने जवाब दिया, “इस स्त्री ने मुझसे कहा, ‘अपने पुत्र को मुझे दो जिससे हम उसे मार डालें और उसे आज खा लें। तब हम अपने पुत्र को कल खायेंगे।’ 29 अत: हम ने अपने पुत्र को पकाया और खाया। तब दूसरे दिन मैंने इस स्त्री से कहा, ‘अपने पुत्र को दो जिससे हम उसे मार सकें और खा सकें।’ किन्तु उसने अपने पुत्र को छिपा दिया है।”

30 जब राजा ने उस स्त्री की बातें सुनीं तो उसने अपने वस्त्रों को अपनी परेशानी व्यक्त करने के लिये फाड़ डाला। जब राजा प्राचीर से होकर चला तो लोगों ने देखा कि वह अपने पहनावे के नीचे मोटे वस्त्र पहने था जिससे पता चलता था कि वह बहुत दुःखी और परेशान है।

31 राजा ने कहा, “परमेश्वर मुझे दण्डित करे यदि शापात के पुत्र एलीशा का सिर इस दिन के अन्त तक भी उसके धड़ पर रह जाये।”

32 राजा ने एलीशा के पास एक सन्देशवाहक भेजा। एलीशा अपने घर में बैठा था और अग्रज (प्रमुख) उसके साथ बैठे थे। सन्देशवाहक के आने से पहले एलीशा ने प्रमुखों से कहा, “देखो, वह हत्यारे का पुत्र (इस्राएल का राजा) लोगों को मेरा सिर काटने को भेज रहा है। जब सन्देशवाहक आये तो दरवाजा बन्द कर लेना। दरवाजे को बन्द रखो और उसे घुसने मत दो। मैं उसके पीछे उसके स्वामी के आने वाले कदमों की आवाज सुन रहा हूँ!”

33 जिस समय एलीशा अग्रजों (प्रमुखों) से बातें कर ही रहा था, सन्देशवाहक उसके पास आया। सन्देश यह थाः “यह विपत्ति यहोवा की ओर से आई है! मैं यहोवा की प्रतीक्षा आगे और क्यों करुँ”

7एलीशा ने कहा, “यहोवा की ओर से सन्देश सुनो! यहोवा कहता हैः ‘लगभग इसी समय कल बहुत सी भोजन सामग्री हो जाएगी और यह फिर सस्ती भी हो जाएगी। शोमरोन के फाटक के साथ बाजार में लोग एक डलिया अच्छा आटा या दो डलिया जौ एक शेकेल में खरीद सकेंगें।’”

2 तब उस अधिकारी ने जो राजा का विश्वासपात्र था, परमेश्वर के जन (एलीशा) से बातें कीं। अधिकारी ने कहा, “यदि यहोवा आकाश में खिड़कियाँ भी बना दे तो भी यह नहीं होगा!”

एलीशा ने कहा, “इसे तुम अपनी आँखों से देखोगे। किन्तु उस भोजन में से तुम कुछ भी नहीं खाओगे।”

कुष्ठ रोगी, अरामी डेरे को खाली पाते हैं

3 नगर के द्वार के पास चार व्यक्ति कुष्ठरोग से पीड़ित थे। उन्होंने आपस में बातें कीं, “हम यहाँ मरने की प्रतीक्षा करते हुए क्यों बैठे हैं 4 शोमरोन में कुछ भी खाने के लिये नहीं है। यदि हम लोग नगर के भीतर जाएंगे तो वहाँ हम भी मर जाएंगे। इसलिये हम लोग अरामी डेरे की ओर चलें। यदि वे हमें जीवित रहने देते हैं तो हम जीवित रहेंगे। यदि वे हमें मार डालते हैं तो मर जायेंगे।”

5 इसलिए उस शाम को चारों कुष्ठ रोगी अरामी डेरे को गए। वे अरामी डेरे की छोर तक पहुँचे। वहाँ लोग थे ही नहीं। 6 यहोवा ने अरामी सेना को, रथों, घोड़ों और विशाल सेना का उद्घोष, सुनाया था। अतः अरामी सैनिकों ने आपस में बातें कीं, “इस्राएल के राजा ने हित्ती राजाओं और मिस्रियों को हम लोगों के विरुद्ध किराये पर बुलाया है!”

7 अरामी सैनिक उस सन्ध्या के आरम्भ में ही भाग गए। वे सब कुछ अपने पीछे छोड़ गए। उन्होंने अपने डेरे, घोड़े, गधे छोड़े और अपना जीवन बचाने को भाग खड़े हुए।

कुष्ठ रोगी अरामी डेरे में

8 जब ये कुष्ठ रोगी उस स्थान पर आए जहाँ से अरामी डेरा आरम्भ होता था, वे एक डेरे में गए। उन्होंने खाया और मदिरा पान किया। तब चारों कुष्ठ रोगी उस डेरे से चाँदी, सोना और वस्त्र ले गए। उन्होंने चाँदी, सोना और वस्त्रों को छिपा दिया। तब वे लौटे और दूसरे डेरे में गए। उस डेरे से भी वे चीज़ें ले आए। वे बाहर गए और इन चीज़ों को छिपा दिया। 9 तब इन कुष्ठ रोगियों ने आपस में बातें कीं, “हम लोग बुरा कर रहे हैं। आज हम लोगों के पास शुभ सूचना है। किन्तु हम लोग चुप हैं। यदि हम लोग सूरज के निकलने तक प्रतीक्षा करेंगे तो हम लोगों को दण्ड मिलेगा। अब हम चलें और उन लोगों को शुभ सूचना दें जो राजा के महल में रहते हैं।”

कुष्ठ रोगी शुभ सूचना देते हैं

10 अतः ये कुष्ठ रोगी नगर के द्वार पाल के पास गए। कुष्ठ रोगियों ने द्वारापालों से कहा, “हम अरामी डेरे में गए थे। किन्तु हम लोगों ने किसी व्यक्ति को वहाँ नहीं पाया। वहाँ कोई भी नहीं था। घोड़े और गधे तब भी बंधे थे और डेरे वैसे के वैसे लगे थे। किन्तु सभी लोग चले गए थे।”

11 तब नगर के द्वारपाल जोर से चीखे और राजमहल के व्यक्तियों को यह बात बताई। 12 रात का समय था, किन्तु राजा अपने पलंग से उठा। राजा ने अपने अधिकारियों से कहा, “मैं तुम लोगों को बताऊँगा कि अरामी सैनिक हमारे साथ क्या कर रहे हैं। वे जानते हैं कि हम भूखे हैं। वे खेतों में छिपने के लिये, डेरों को खाली कर गए हैं। वे यह सोच रहे हैं, ‘जब इस्राएली नगर के बाहर आएंगे, तब हम उन्हें जीवित पकड़ लेंगे और तब हम नगर में प्रवेश करेंगे।’”

13 राजा के अधिकारियों में से एक ने कहा, “कुछ व्यक्तियों को नगर में अभी तक बचे पाँच घोड़ों को लेने दें। निश्चय ही ये घोड़े भी शीघ्र ही ठीक वैसे ही मर जाएंगे, जैसे इस्राएल के वे सभी लोग जो अभी तक बचे रह गए हैं, मरेंगे। इन व्यक्तियों को यह देखने को भेजा जाये कि क्या घटित हुआ है।”

14 इसलिये लोगों ने घोड़ों के साथ दो रथ लिये। राजा ने इन लोगों को अरामी सेना के पीछे लगाया। राजा ने उनसे कहा, “जाओ और पता लगाओ कि क्या घटना घटी।”

15 वे व्यक्ति अरामी सेना के पीछे यरदन नदी तक गए। पूरी सड़क पर वस्त्र और अस्त्र—शस्त्र फैले हुये थे। अरामी लोगों ने जल्दी में भागते समय उन चीज़ों को फेंक दिया था। सन्देशवाहक शोमरोन को लौटे और राजा को बताया।

16 तब लोग अरामी डेरे की ओर टूट पड़े, और वहाँ से उन्होंने कीमती चीज़ें ले लीं। हर एक के लिये वहाँ अत्याधिक था। अतः वही हुआ जो यहोवा ने कहा था। कोई भी व्यक्ति एक डलिया अच्छा आटा या दो डलिया जौ केवल एक शेकेल में खरीद सकता था।

17 राजा ने अपने व्यक्तिगत सहायक अधिकारी को द्वार की रक्षा के लिये चुना। किन्तु लोग शत्रु के डेरे से भोजन पाने के लिये दौड़ पड़े। लोगों ने अधिकारी को धक्का देकर गिरा दिया और उसे रौंदते हुए निकल गए और वह मर गया। अतः वे सभी बातें वैसी ही ठीक घटित हुईं जैसा परमेश्वर के जन (एलीशा) ने तब कहा था जब राजा एलीशा के घर आया था। 18 एलीशा ने कहा था, “कोई भी व्यक्ति शोमरोन के नगरद्वार के बाजार में एक शेकेल में एक डलिया अच्छा आटा या दो डलिया जौ खरीद सकेगा।” 19 किन्तु परमेश्वर के जन को उस अधिकारी ने उत्तर दिया था, “यदि यहोवा स्वर्ग में खिड़कियाँ भी बना दे, तो भी वैसा नहीं हो सकेगा” और एलीशा ने उस अधिकारी से कहा था, “तुम ऐसा अपनी आँखों से देखोगे। किन्तु तुम उस भोजन का कुछ भी नहीं खा पाओगे।” 20 अधिकारी के साथ ठीक वैसा ही घटित हुआ। लोगों ने नगरद्वार पर उसे धक्का दे गिरा दिया, उसे रौंद डाला और वह मर गया।

राजा और शूनेमिन स्त्री

8एलीशा ने उस स्त्री से बातें कीं जिसके पुत्र को उसने जीवित किया था। एलिशा ने कहा, “तुम्हें और तुम्हारे परिवार को किसी अन्य देश में चले जाना चाहिये । क्यों क्योंकि यहोवा ने निश्चय किया है कि यहाँ भुखमरी का समय आएगा। इस देश में यह भूखमरी का समय सात वर्ष का होगा।”

2 अतः उस स्त्री ने वही किया जो परमेश्वर के जन ने कहा। वह अपने परिवार के साथ सात वर्ष पलिश्तियों के देश में रहने चली गई। 3 जब सात वर्ष पूरे हो गए तो वह स्त्री पलिश्तियों के देश से लौट आई।

वह स्त्री राजा से बातें करने गई। वह चाहती थी कि वह उसके घर और उसकी भूमि को उसे लौटाने में उसकी सहायता करे।

4 राजा परमेश्वर के जन (एलीशा) के सेवक गेहजी से बातें कर रहा था। राजा ने गेहजी से पूछा, “कृपया वे सभी महान कार्य हमें बतायें जिन्हें एलीशा ने किए हैं।”

5 गेहजी राजा को एलीशा के बारे में एक मृत व्यक्ति को जीवित करने की बात बता रहा था। उसी समय वह स्त्री राजा के पास गई जिसके पुत्र को एलीशा ने जिलाया था। वह चाहती थी कि वह अपने घर और अपनी भूमि को वापस दिलाने में उससे सहायता माँगे।। गेहजी ने कहा, “मेरे प्रभु राजा, यह वही स्त्री है और यह वही पुत्र है जिसे एलीशा ने जिलाया था।”

6 राजा ने पूछा कि वह क्या चाहती है। उस स्त्री ने अपनी इच्छा बताई।

तब राजा ने एक अधिकारी को उस स्त्री की सहायता के लिये चुना। राजा ने कहा, “इस स्त्री को वह सब कुछ दो जो इसका है और इसकी भूमि की सारी फसलें जब से इसने देश छोड़ा तब से अब तक की, इसे दो।”

बेन्हदद हजाएल को एलीशा के पास भेजता है

7 एलीशा दमिश्क गया। अराम का राजा बेन्हदद बीमार था। किसी व्यक्ति ने बेन्हदद से कहा, “परमेश्वर का जन यहाँ आया है।”

8 तब राजा बेन्हदद ने हजाएल से कहा, “भेंट साथ में लो और परमेश्वर के जन से मिलने जाओ। उसको कहो कि वह यहोवा से पूछे कि क्या मैं अपनी बीमारी से स्वस्थ हो सकता हूँ।”

9 इसलिये हजाएल एलीशा से मिलने गया। हजाएल अपने साथ भेंट लाया। वह दमिश्क से हर प्रकार की अच्छी चीज़ें लाया। इन सबको लाने के लिये चालीस ऊँटों की आवश्यकता पड़ी। हजाएल एलीशा के पास गया। हजाएल ने कहा, “तुम्हारे अनुयायी अराम के राजा बेन्हदद ने मुझे आपके पास भेजा है। वह पूछता है कि क्या मैं अपनी बीमारी से स्वस्थ होऊँगा।”

10 तब एलीशा ने हजाएल से कहा, “जाओ और बेन्हदद से कहो, ‘तुम जीवित रहोगे।’ किन्तु यहोवा ने सचमुच मुझसे यह कहा है, ‘वह निश्चय ही मरेगा।’”

एलीशा हजाएल के बारे में भविष्यवाणी करता है

11 एलीशा हजाएल को तब तक देखता रहा जब तक हजाएल संकोच का अनुभव नहीं करने लगा। तब परमेश्वर का जन चीख पड़ा। 12 हजाएल ने कहा, “महोदय, आप चीख क्यों रहे हैं”

एलीशा ने उत्तर दिया, “मैं चीख रहा हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम इस्राएलियों के लिये क्या कुछ बुरा करोगे। तुम उनके दृढ़ नगरों को जलाओगे। तुम उनके युवकों को तलवार के घाट उतारोगे। तुम उनके बच्चों को मार डालोगे। तुम उनकी गर्भवती स्त्रियों के गर्भ को चीर निकालोगे।”

13 हजाएल ने कहा, “मैं कोई शक्तिशाली व्यक्ति नहीं हूँ! मैं इन बड़े कामों को नहीं कर सकता!”

एलीशा ने उत्तर दिया, “यहोवा ने मुझे बताया है कि तुम अराम के राजा होगे।”

14 तब हजाएल एलीशा के यहाँ से चला गया और अपने राजा के पास गया। बेन्हदद ने हजाएल से पूछा, “एलीशा ने तुमसे क्या कहा”

हजाएल ने उत्तर दिया, “एलीशा ने मुझसे कहा कि तुम जीवित रहोगे।”

हजाएल बेन्हदद की हत्या करता है

15 किन्तु अगले दिन हजाएल ने एक मोटा कपड़ा लिया और इसे पानी से गीला कर लिया। तब उसने मोटे कपड़े को बेन्हदद के मुँह पर डाल कर उसकी साँस रोक दी। बेन्हदद मर गया। अतः हजाएल नया राजा बना।

समीक्षा

मानवीय एजेंट के द्वारा परमेश्वर आपके कदमों को निर्धारित करते हैं

मानवीय एजेंसी के द्वारा परमेश्वर अपने उद्देश्य को पूरा करते हैं।

सामरिया के लोगों का कष्ट असहनीय थाः अकाल, भोजनवस्तु की कीमतें बहुत ज्यादा बढ़ रही थी और यहाँ तक कि लोग नरभक्षी हो गए थे (6:24-31)। इस्राएल के राजा ने उस महिला की मदद न करने के लिए एक बेकार बहाना बनाया, जो उसे पुकार कर कह रही थी, 'हे प्रभु, हे राजा, बचा' (व.26)। उसने जवाब दिया, 'यदि यहोवा तुझे न बचाए, तो मैं कहाँ से तुझे बचाऊँ?' (व.27)। यह गलत प्रतिक्रिया है।

परमेश्वर की सार्वभौमिकता और उनकी योजनाएँ, मानवीय कार्य के लिए एक बहाना नहीं है। परमेश्वर मानवीय एजेंट के द्वारा काम करते हैं। जब आप जरुरतों को देखते हैं, तब आप परमेश्वर के वह हाथ हैं जिसे उन जरुरतों को पूरा करना है। एलीशा ने यही किया। परमेश्वर ने एलीशा का इस्तेमाल किया। उसने भविष्यवाणी की, 'परमेश्वर का वचन सुनो! अकाल समाप्त हो चुका है। आज ही के समय में कल भोजन बहुतायत में होगा' (7:1, एम.एस.जी)।

परमेश्वर ने चार कोढ़ी का इस्तेमाल किया, जिन्होंने खोजा कि यह बहुतायत का भोजन कहाँ पर था। जैसे ही वे खा-पी रहे थे, उन्होंने एक दूसरे से कहा, 'जो हम कर रहे हैं वह अच्छा काम नहीं है, यह आनंद के समाचार का दिन है, परंतु हम किसी को नहीं बताते' (व.9)। एक रात में भोजन वस्तु की कीमतें गिर गई। एलीशा की हर बात सच साबित हुई।

विश्व हर एक के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन करता है, फिर भी इस पृथ्वी में आठ में से एक व्यक्ति भूख के दर्द में जी रहा है। यदि हम केवल खुद खाऍं 'तो हम सही नहीं कर रहे हैं' (व.9)। हमारी पीढ़ी में अत्यधिक गरीबी को समाप्त करने के लिए, हमें वह सब अवश्य ही करना चाहिए जो हम कर सकते हैं।

दूसरों को यीशु के विषय में अच्छा समाचार बताने के लिए यह भी हमारे अभिप्राय का एक अद्भुत उदाहरण है। इन भूखे मनुष्यों को भोजन का एक पहाड़ मिल गया। उन्होंने समझा कि परमेश्वर ने उन्हें उनके शत्रुओं से छुड़ाया था। वे अच्छे समाचार को अपने तक सीमित रख सकते थे, लेकिन यह बहुत ही स्वार्थी बात होती।

फिर भी उन्हें ऐसा करने का प्रलोभन हुआ। उनसे अधिक बेहतर समाचार हमारे पास है - यीशु और सुसमाचार का अच्छा समाचार। इसे अपने पास सीमित न रखे। आप वह मानवीय एजेंट हैं, जो परमेश्वर की योजना को लेकर जाने के लिए उत्तदायी है।

इसी तरह से, शहर में लोग अपनी खोई हुई स्थिति में वहीं पर रह सकते थे, अच्छे समाचार पर विश्वास करना अस्वीकार करते हुए। सच में, पहले तो राजा ने सकारात्मक रूप से उत्तर नहीं दिया। उन्हें यह जाल लगता है (व.12)। इसी तरह से आज, कुछ लोग जीवन के उस प्रस्ताव के प्रति उत्तर नहीं देते हैं जो कि यीशु हर मनुष्य से करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि कोई जाल है।

ना केवल परमेश्वर मनवीय एजेंट के द्वारा अपने उद्देश्य को पूरा करते हैं, वह कभी कभी इन योजनाओं को अपने भविष्यवक्ताओं पर प्रकट करते हैं। अकाल के समय में एलीशा ने भविष्यवाणी की कि चौबीस घंटो के अंदर भोजन बहुतायत मात्रा में उपलब्ध होगा (व.1)। उस समय यह बिल्कुल असंभव बात लग रही थी (व.2), लेकिन परमेश्वर ने अपने लोगों का बचाव किया (व.6)। एलीशा की भविष्यवाणी पूरी हुई, 'जैसा कि परमेश्वर ने कहा था' (व.16)। परमेश्वर ने एलीशा को यह भी बताया कि राजा के साथ क्या होने वाला था (8:8,13,15)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि मेरे जीवन के लिए आपके पास अच्छी योजनाएँ हैं और आपके उद्देश्य अंत में प्रबल होंगे। हमारी सहायता करिए कि विश्व के लिए हम एक आशीष बनें, भूखे को भोजन देते हुए और यीशु के अच्छे समाचार को विश्व में लाते हुए, जिसे भौतिक और आत्मिक भोजन की अत्यधिक आवश्यकता है।

पिप्पा भी कहते है

2 राजाओं 6:24-8:15

अरामियों के छोड़े हुए कैंम्प को खोजने के लिए परमेश्वर अत्यधिक उपेक्षित (चार कोढ़ियों) का इस्तेमाल करते हैं। उनको कितना मजा आया होगा, जब वे अपने भूखे शरीर को स्वादिष्ट भोजन दे रहे थे, और सुंदर कपड़े पहन रहे थे। उन्हें पहले सर्वश्रेष्ठ मिला।

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संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

क्रिश्चन एड लिंक

'विश्व हर एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन करता है, फिर भी इस पृथ्वी में आठ में एक व्यक्ति भूख के दर्द में जी रहा है' (क्रिश्चन एड, आय.एफ. कैम्पेन)।

http://www.christianaid.org.uk/ActNow/if-enough-food/issues.aspx

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