विरोध अवसर में बदल गया
परिचय
स्टिफन लुंगू हमारे घर आये और अपनी कहानी बतायी। जिम्बाब्वे की बस्ती की एक टीनेजर माता के वह सबसे बड़े बेटे थे। धोखे से उनकी शादी एक ऐसे व्यक्ति से कर दी गई थी जो उससे बीस साल बड़े थे। बहुत ज्यादा शराब पीकर उसने अपने संघर्षों का सामना किया।
एक दिन, जब स्टिफन तीन साल के थे, तब उनकी माँ उन्हें, उनके भाई और छोटी सी बहन को नगर में ले गई। इन्हें शौचालय जाना है, ऐसा कहकर स्टिफन की माँ उनकी बहन को हाथों में पकड़ाकर शहर के व्यस्त चौंक में चली गई, और उनका भाई जॉन जमीन पर खेल रहा था। दो घंटे बाद, वह वापस नहीं आयी। उनकी माँ भाग गई थी, तीन बच्चों को एक बूढ़ी औरत के पास छोड़कर। ग्यारह वर्ष की आयु में, स्टिफन भी भाग गए – सड़कों पर रहने लगे।
बढते हुए, स्टिफन ने परमेश्वर के विरूद्ध बहुत अधिक कड़वाहट को विकसित कर लिया था। एक टीनेजर के रूप में वह एक शहरी गिरोह में भर्ती हो गए, जिसे काली परछाई कहा जाता था, जो जिम्बाब्वे की सड़को पर हिंसा, चोरी और विनाश करते थे।
जब एक यात्रा करने वाले सुसमाचार प्रचारक एक बड़े तंबू में हजारों लोगों को यीशु के बारे में बताने के लिए नगर में आये, तब स्टिफन सभा में बम फोड़ने के लिए गए। वह बम से भरे एक बैग को लेकर गए। वह सभा पर प्रहार करना चाहते थे क्योंकि वह परमेश्वर पर प्रहार करना चाहते थे। जैसे ही स्टिफन प्रहार करने के लिए समय का इंतजार कर रहे थे, वैसे ही, शद्रक मलोका, एक साऊथ अफ्रीकी सुसमाचार प्रचारक मंच पर गए और घोषणा की कि पवित्र आत्मा ने उन्हें चेतावनी दी है कि वहाँ पर आए हुओं में से बहुत से लोग मसीह के बिना जल्द ही मर सकते हैं। चकित होकर, काली परछाई के लोगों ने सोचा कि किसी ने उनकी योजना का पता लगा लिया है। स्टिफन लुंगू प्रचार से मोहित हो गए थे।
आज के लिए हर लेखांश में हम विभिन्न प्रकार के प्रहारों को देखते हैं और देखते हैं कि कैसे परमेश्वर विरोध को अवसर में बदल देते हैं।
भजन संहिता 80:1-7
वाचा की कुमुदिनी धुन पर संगीत निर्देशक के लिये आसाप का एक स्तुति गीता।
80हे इस्राएल के चरवाहे, तू मेरी सुन ले।
तूने यूसुफ के भेड़ों (लोगों) की अगुवाई की।
तू राजा सा करूब पर विराजता है।
हमको निज दर्शन दे।
2 हे इस्राएल के चरवाहे, एप्रैम, बिन्यामीन और मनश्शे के सामने तू अपनी महिमा दिखा,
और हमको बचा ले।
3 हे परमेश्वर, हमको स्वीकार कर।
हमको स्वीकार कर और हमारी रक्षा कर!
4 सर्वशक्तिमान परमेश्वर यहोवा,
क्या तू सदा के लिये हम पर कुपित रहेगा हमरी प्रार्थनाओं को तू कब सुनेगा
5 अपने भक्तों को तूने बस खाने को आँसू दिये है।
तूने अपने भक्तों को पीने के लिये आँसुओं से लबालब प्याले दिये।
6 तूने हमें हमारे पड़ोसियों के लिये कोई ऐसी वस्तु बनने दिया जिस पर वे झगड़ा करे।
हमारे शत्रु हमारी हँसी उड़ाते हैं।
7 हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, फिर हमको स्वीकार कर।
हमको स्वीकार कर और हमारी रक्षा कर।
समीक्षा
परमेश्वर की उपस्थिति
जब आप जीवन में कठिनाईयों का सामना करते हैं – विरोध और प्रहार – तब परमेश्वर की उपस्थिति के बोध से अधिक कुछ भी अधिक शांति देने वाली चीज नहीं है; यह जानना कि वह आपके साथ हैं, उनका चेहरा आपको देखकर मुस्कुरा रहा है।
भजनसंहिता के लेखक ने पड़ोसियों और शत्रुओं से निंदा और ठट्टा उड़ाये जाने का सामना किया (व.6)। इन प्रहारों ने बहुत सा दुख दिया 'आँसुओं का आहार' (व.5, एम.एस.जी.)। परमेश्वर के लोगों को 'आँसुओं की रोटी खिलाई गई है; तूने उन्हें कटोरा भर आँसू पिलाया है' (व.5)।
जीवन में आप जिस किसी कठिनाईयों का सामना कर रहे हैं, परमेश्वर विरोध को अवसर में बदल सकते हैं। परमेश्वर को पुकारियेः
प्रार्थना
हे परमेश्वर, हम को ज्यों का त्यों कर दीजिए;
और अपने मुख का प्रकाश चमकाइए,तब
हमारा उद्धार हो जाएगा (वव.3,7 से लिया गया)
प्रेरितों के काम 23:12-35
कुछ यहूदि की पौलुस को मारने की योजना
12 फिर दिन निकले। यहूदियों ने एक षड्यन्त्र रचा। उन्होंने शपथ उठायी कि जब तक वे पौलुस को मार नहीं डालेंगे, न कुछ खायेंगे, न पियेंगे। 13 उनमें से चालीस से भी अधिक लोगों ने यह षड्यन्त्र रचा था। 14 वे प्रमुख याजकों और बुजुर्गों के पास गये और बोले, “हमने सौगन्ध उठाई है कि हम जब तक पौलुस को मार नहीं डालते हैं, तब तक न हमें कुछ खाना है, न पीना। 15 तो अब तुम और यहूदी महासभा, सेनानायक से कहो कि वह उसे तुम्हारे पास ले आए यह बहाना बनाते हुए कि तुम उसके विषय में और गहराई से छानबीन करना चाहते हो। इससे पहले कि वह यहाँ पहुँचे, हम उसे मार डालने को तैयार हैं।”
16 किन्तु पौलुस के भाँन्जे को इस षड्यन्त्र की भनक लग गयी थी, सो वह छावनी में जा पहुँचा और पौलुस को सब कुछ बता दिया। 17 इस पर पौलुस ने किसी एक सेनानायक को बुलाकर उससे कहा, “इस युवक को सेनापति के पास ले जाओ क्योंकि इसे उससे कुछ कहना है।” 18 सो वह उसे सेनापति के पास ले गया और बोला, “बंदी पौलुस ने मुझे बुलाया और मुझसे इस युवक को तेरे पास पहुँचाने को कहा क्योंकि यह तुझसे कुछ कहना चाहता है।”
19 सेनापति ने उसका हाथ पकड़ा और उसे एक ओर ले जाकर पूछा, “बता तू मुझ से क्या कहना चाहता है?”
20 युवक बोला, “यहूदी इस बात पर एकमत हो गये हैं कि वे पौलुस से और गहराई के साथ पूछताछ करने के बहाने महासभा में उसे लाये जाने की तुझ से प्रार्थना करें। 21 इसलिये उनकी मत सुनना। क्योंकि चालीस से भी अधिक लोग घात लगाये उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने यह कसम उठाई है कि जब तक वे उसे मार न लें, उन्हें न कुछ खाना है, न पीना। बस अब तेरी अनुमति की प्रतीक्षा में वे तैयार बैठे हैं।”
22 फिर सेनापति ने युवक को यह आदेश देकर भेज दिया, “तू यह किसी को मत बताना कि तूने मुझे इसकी सूचना दे दी है।”
पौलुस का कैसरिया भेजा जाना
23 फिर सेनापति ने अपने दो सेनानायकों को बुलाकर कहा, “दो सौ सैनिकों, सत्तर घुड़सवारों और सौ भालैतों को कैसरिया जाने के लिये तैयार रखो। रात के तीसरे पहर चल पड़ने के लिये तैयार रहना। 24 पौलुस की सवारी के लिये घोड़ों का भी प्रबन्ध रखना और उसे सुरक्षा पूर्वक राज्यपाल फ़ेलिक्स के पास ले जाना।” 25 उसने एक पत्र लिखा जिसका विषय था:
26 महामहिम राज्यपाल फ़ेलिक्स को
क्लोदियुस लूसियास का
नमस्कार पहुँचे।
27 इस व्यक्ति को यहूदियों ने पकड़ लिया था और वे इसकी हत्या करने ही वाले थे कि मैंने यह जानकर कि यह एक रोमी नागरिक है, अपने सैनिकों के साथ जा कर इसे बचा लिया। 28 मैं क्योंकि उस कारण को जानना चाहता था जिससे वे उस पर दोष लगा रहे थे, उसे उनकी महा-धर्म सभा में ले गया। 29 मुझे पता चला कि उनकी व्यवस्था से संबंधित प्रश्नों के कारण उस पर दोष लगाया गया था। किन्तु उस परकोई ऐसा अभियोग नहीं था जो उसे मृत्यु दण्ड के योग्य या बंदी बनाये जाने योग्य सिद्ध हो। 30 फिर जब मुझे सूचना मिली कि वहाँ इस मनुष्य के विरोध में कोई षड्यन्त्र रचा गया है तो मैंने इसे तुरंत तेरे पास भेज दिया है। और इस पर अभियोग लगाने वालों को यह आदेश दे दिया है कि वे इसके विरुद्ध लगाये गये अपने अभियोग को तेरे सामने रखें।
31 सो सिपाहियों ने इन आज्ञाओं को पूरा किया और वे रात में ही पौलुस को अंतिपतरिस के पास ले गये। 32 फिर अगले दिन घुड़-सवारों को उसके साथ आगे जाने के लिये छोड़ कर वे छावनी को लौट आये। 33 जब वे कैसरिया पहुँचे तो उन्होंने राज्यपाल को वह पत्र देते हुए पौलुस को उसे सौंप दिया।
34 राज्यपाल ने पत्र पढ़ा और पौलुस से पूछा कि वह किस प्रदेश का निवासी है। जब उसे पता चला कि वह किलिकिया का रहने वाला है 35 तो उसने उससे कहा, “तुझ पर अभियोग लगाने वाले जब आ जायेंगे, मैं तभी तेरी सुनवाई करूँगा।” उसने आज्ञा दी कि पौलुस को पहरे के भीतर हेरोदेस के महल में रखा जाये।
समीक्षा
परमेश्वर की सुरक्षा
ग्युस्टव फ्लाबर्ट ने एक बार लिखा, 'आप एक मनुष्य का मूल्य इस बात से जान सकते हैं कि उसके कितने शत्रु हैं, और कला के कार्य की महत्ता को इस बात से कि इस पर कितना प्रहार होता है।' बाईबल में और आज चर्च में लोगों पर बहुत प्रहार होने का कारण यह है कि जो काम आप करते हैं वह बहुत महत्वपूर्ण है। नाही यह किसी मसीह के जीवन की एक दुर्लभ घटना है। कभी कभी आप थोड़ी शांति के समय से गुजरते हैं। लेकिन आगे प्रहार लगभग अपरिहार्य होते हैं।
आप जिस किसी प्रहार का सामना करते हैं, परमेश्वर नियंत्रण में हैं। जैसा कि हमने कल के लेखांश के अंत में देखा, परमेश्वर पौलुस के सामने प्रकट हुए और कहा, 'सबकुछ सही होगा। सबकुछ सर्वश्रेष्ठ हो जाएगा। यहाँ यरुशलेम में तुम मेरे एक अच्छा गवाह ठहरे हो। अब रोम में तुम मेरे गवाह बनोगे' (व.11, एम.एस.जी)।
पौलुस को बंदीगृह में रखा गया, जबकि रोमी नियम में उन पर ऐसा कोई आरोप नहीं लगा था जिससे उन्हें बंदीगृह में रखा जा सके। उनके शत्रुओं ने उनकी हत्या करने का निर्णय ले लिया था और उनकी हत्या करने की योजना बना ली थी (व.12) जैसा कि अक्सर हिंसा, झूठ और धोखे के साथ होता है (व.15)।
असल में, पौलुस पर प्रहार करने वाले सभी व्यक्ति बेईमान थे। सरदार क्लौदियुस लूसियास भी 'सच्चाई पर परदा डालते हैं' (वव.26-30)। वह अपने पत्र में फेलिक्स को नहीं बताते हैं कि उन्होंने खुद गैरकानूनी रूप से पौलुस को बाँध रखा है और एक रोमी नागरिक को सताने वाले थे, जिन पर कोई आरोप साबित नहीं हुआ है।
'लेकिन' शक्तिशाली छोटा सा शब्द है जो अब कहानी में प्रवेश करता है (व.16)। परमेश्वर ने अपने विधान में पौलुस की रक्षा कीः 'पौलुस के भांजे ने सुना कि वे उसकी घात में हैं, तो गढ़ में जाकर पौलुस को सन्देश दिया' (व.16)। जब पौलुस का भांजा उन्हें षड्यंत्र के बारे में बताता है, तब पौलुस उस सूबेदार को बताने का प्रबंध कर लेता है, जो पौलुस की यात्रा की सुरक्षा का प्रबंध करता था। इस तरह से परमेश्वर पौलुस की रक्षा करते हैं।
परमेश्वर ने पौलुस के भांजे, पौलुस की प्रवीणता और एक रोमी सूबेदार के मिश्रण का इस्तेमाल किया। कभी कभी परमेश्वर का विधान और सुरक्षा, उन लोगों से आता है जो आवश्यक रूप से मसीह नहीं हैं।
सूबेदार की ओर से एक पत्र के साथ पौलुस को सुरक्षित रूप से जाँच के लिए ले जाया जाता है। यद्यपि परमेश्वर ने पूरी तरह से पौलुस को बचाने के लिए हस्तक्षेप नहीं किया, और वह अब भी गिरफ्तार थे। परमेश्वर ने उनकी रक्षा की और उस स्थिति में उनका इस्तेमाल किया जिसमें पौलुस ने अपने आपको पाया था। परमेश्वर का उद्देश्य था कि पौलुस जाकर यरुशलेम में और रोम में गवाही दें। ठीक वही हुआ। विरोध अवसर में बदल गया।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आप किसी भी स्थिति में लोगों को अपने उद्देश्य के लिए तैयार कर सकते हैं। अपने राज्य को बढ़ाने के लिए जैसे आपने पौलुस का इस्तेमाल किया, परमेश्वर मैं प्रार्थना करता हूँ कि आज आप मेरा इस्तेमाल करिए। आपका राज्य आए। आपकी इच्छा पूरी हो।
2 राजा 8:16-9:37
यहोराम अपना शासन आरम्भ करता है
16 यहोशापात का पुत्र यहोराम यहूदा का राजा था। यहोराम ने अहाब के पुत्र योराम के इस्राएल के राज्यकाल के पाँचवें वर्ष में शासन आरम्भ किया। 17 यहोराम बत्तीस वर्ष का था, जब उसने शासन करना आरम्भ किया। उसने यरूशलेम में आठ वर्ष शासन किया। 18 किन्तु यहोराम इस्राएल के राजाओं की तरह रहा और उन कामों को किया जिन्हें यहोवा ने बुरा बताया था। यहोराम अहाब के परिवार के लोगों की तरह रहता था। यहोराम इस तरह रहा क्योंकि उसकी पत्नी अहाब की पुत्री थी। 19 किन्तु यहोवा ने उसे नष्ट नहीं किया क्योंकि उसने अपने सेवक दाऊद से प्रतिज्ञा की थी कि उसके परिवार का कोई न कोई सदैव राजा होगा।
20 यहोराम के समय में एदोम यहूदा के शासन से स्वतन्त्र हो गया। एदोम के लोगों ने अपने लिये एक राजा चुन लिया।
21 तब यहोराम और उसके सभी रथ साईर को गए। एदोमी सेना ने उन्हें घेर लिया। यहोराम और उसके अधिकारियों ने उन पर आक्रमण किया और बच निकले और घर पहुँचे। 22 इस प्रकार एदोमी यहूदा के शसन से स्वतन्त्र हो गए और वे आज तक यहूदा के शासन से स्वन्त्र हैं।
उसी समय लिब्ना भी यहूदा के शासन से स्वतन्त्र हो गया।
23 यहोराम ने जो कुछ किया वह सब यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है।
24 यहोराम मरा और अपने पूर्वजों के साथ दाऊद नगर में दफनाया गया। यहोराम का पुत्र अहज्याह नया राजा हुआ।
अहज्याह अपना शासन आरम्भ करता है
25 यहोराम का पुत्र अहज्याह, अहाब के पुत्र इस्राएल के राजा योराम के राज्यकाल के बारहवें वर्ष में यहूदा का राजा हुआ। 26 शासन आरम्भ करने के समय अहज्याह बाईस वर्ष का था। उसने यरूशलेम में एक वर्ष शासन किया। उसकी माँ का नाम अतल्याह था। वह इस्राएल के राजा ओम्री की पुत्री थी। 27 अहज्याह ने वे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा बताया था। अहज्याह ने अहाब के परिवार के लोगों की तरह बहुत से बुरे काम किये। अहज्याह उस प्रकार रहता था क्योंकि उसकी पत्नी अहाब के परिवार से थी।
योराम हजाएल के विरुद्ध युद्ध में घायल हो जाता है
28 योराम अहाब के परिवार से था। अहज्याह योराम के साथ अराम के राजा हजाएल से गिलाद के रामोत में युद्ध करने गया। अरामियों ने योराम को घायल कर दिया। 29 राजा योराम इस्राएल को वापस इसलिये लौट गया कि उस स्थान पर लगे घावों से वह स्वस्थ हो जाये। योराम यिज्रेल के क्षेत्र में गया। यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह योराम को देखने यिज्रेल गया।
एलीशा एक युवा नबी को येहू का अभिषेक करने को कहता है
9एलीशा नबी ने नबियों के समूह में से एक को बुलाया। एलीशा ने इस व्यक्ति से कहा, “तैयार हो जाओ और अपने हाथ में तेल की इस छोटी बोतल को ले लो। गिलाद के रामोत को जाओ। 2 जब तुम वहाँ पहुँचो तो निमशी के पौत्र अर्थात् यहोशापात के पुत्र येहू से मिलो। तब अन्दर जाओ और उसके भाईयों में से उसे उठाओ। उसे किसी भीतरी कमरे में ले जाओ। 3 तेल की छोटी बोतल ले जाओ और येहू के सिर पर उस तेल को डालो। यह कहो, ‘यहोवा कहता हैः मैंने तुम्हारा अभिषेक इस्राएल का नया राजा होने के लिये किया है।’ तब दरवाजा खोलो और भाग चलो। वहाँ प्रतीक्षा न करो!”
4 अतः यह युवा नबी गिलाद के रामोत गया। 5 जब युवक पहुँचा, उसने सेना के सेनापतियों को बैठे देखा। युवक ने कहा, “सेनापति, मैं आपके लिये एक सन्देश लाया हूँ।”
येहु ने कहा, “हम सभी यहाँ है। हम लोगों में से किसके लिये सन्देश है”
युवक ने कहा, “सेनापति, सन्देश आपके लिये है।”
6 येहू उठा और घर में गया। तब युवा नबी ने उस तेल को येहू के सिर पर डाल दिया। युवा नबी ने येहू से कहा, “इस्राएल का परमेश्वर, यहोवा कहता है, ‘मैं यहोवा के लोगों, इस्राएलियों पर नया राजा होने के लिये तुम्हारा अभिषेक करता हूँ। 7 तुम्हें अपने राजा अहाब के परिवार को नष्ट कर देना चाहिये। इस प्रकार मैं ईज़ेबेल को, अपने सेवकों, नबियों तथा यहोवा के उन सभी सेवकों की मृत्यु के लिये जिनकी हत्या कर दी गई है, दण्डित करूँगा। 8 इस प्रकार अहाब का सारा परिवार मर जाएगा। मैं अहाब के परिवार के किसी लड़के को जीवित नहीं रहने दूँगा। इसका कोई महत्व नहीं होगा कि वह लड़का दास है या इस्राएल का स्वतन्त्र व्यक्ति है। 9 मैं अहाब के परिवार को, नबात के पुत्र यारोबाम या अहिय्याह के पुत्र बाशा के परिवार जैसा कर दूँगा। 10 यिज्रेल के क्षेत्र में ईज़ेंबेल को कुत्ते खायेंगे। ईज़ेंबेल को दफनाया नहीं जाएगा।’”
तब युवक नबी ने दरवाजा खोला और भाग गया।
सेवक येहू को राजा घोषित करते हैं
11 येहू अपने राजा के अधिकारियों के पास लौटा। अधिकारियों में से एक ने येहू से कहा, “क्या सब कुशल तो है यह पागल आदमी तुम्हारे पास क्यों आया था”
येहू ने सेवकों को उत्तर दिया, “तुम उस व्यक्ति को और जो पागलपन की बातें वह करता है, जानते हो।”
12 अधिकारियों ने कहा, “नहीं! हमें सच्ची बात बताओ। वह क्या कहता है” येहू ने अधिकारियों को वह बताया जो युवक नबी ने कहा था। येहू ने कहा, “उसने कहा ‘यहोवा यह कहता हैः मैंने इस्राएल का नया राजा होने के लिये तुम्हारा अभिषेक किया है।’”
13 तब हर एक अधिकारी ने शीघ्रता से अपने लबादे उतारे और येहू के सामने पैड़ियों पर उन्हें रखा। तब उन्होंने तुरही बजाई और यह घोषणा की, “येहू राजा है!”
येहू यिज्रैल जाता है
14 इसलिये येहू ने, जो निमशी का पौत्र और यहोशापात का पुत्र था योराम के विरुद्ध योजनायें बनाईं।
उस समय योराम और इस्राएली, अराम के राजा हजाएल से, गिलाद के रामोत की रक्षा का प्रयत्न कर रहे थे। 15 किन्तु राजा योराम को अरामियों द्वारा किये गये घाव से स्वस्थ होने के लिये इस्राएल आना पड़ा था। अरामियों ने योराम को तब घायल किया था जब उसने अराम के राजा हजाएल के विरुद्ध युद्ध किया था।
अतः येहू ने अधिकारियों से कहा, “यदि तुम लोग स्वीकार करते हो कि मैं नया राजा हूँ तो नगर से किसी व्यक्ति को यिज्रैल में सूचना देने के लिये बचकर निकलने न दो।”
16 योराम यिज्रैल में आराम कर रहा था। अत: येहू रथ में सवार हुआ और यिज्रैल गया। यहूदा का राजा अहज्याह भी योराम को देखने यिज्रैल आया था।
17 एक रक्षक यिज्रैल में रक्षक स्तम्भ पर खड़ा था। उसने येहू के विशाल दल को आते देखा। उसने कहा, “मैं लोगों के एक विशाल दल को देख रहा हूँ!”
योराम ने कहा, “किसी को उनसे मिलने घोड़े पर भेजो। इस व्यक्ति से यह कहने के लिये कहो, ‘क्या आप शान्ति की इच्छा से आए हैं?’”
18 अतः एक व्यक्ति येहू से मिलने के लिये घोड़े पर सवार होकर गया। घुड़सवार ने कहा, “राजा योराम पूछते हैं, ‘क्या आप शान्ति की इच्छा से आए हैं?’”
येहू ने कहा, “तुम्हें शान्ति से कुछ लेना—देना नहीं। आओ और मेरो पीछे चलो।”
रक्षक ने योराम से कहा, “उस दल के पास सन्देशवाहक गया, किन्तु वह लौटकर अब तक नहीं आया।”
19 तब योराम ने एक दूसरे व्यक्ति को घोड़े पर भेजा। वह व्यक्ति येहू के दल के पास आया और उसने कहा, “राजा योराम कहते हैं, ‘शान्ति।’”
येहू ने उत्तर दिया, “तुम्हें शान्ति से कुछ भी लेना देना नहीं! आओ और मेरे पीछे चलो।”
20 रक्षक ने योराम से कहा, “दूसरा व्यक्ति उस दल के पास गया, किन्तु वह अभी तक लौटकर नहीं आया। रथचालक रथ को निमशी के पौत्र येहू की तरह चला रहा है। वह पागलों जैसा चला रहा है।”
21 योराम ने कहा, “मेरे रथ को तैयार करो!”
इसलिये सेवक ने योराम के रथ को तैयार किया। इस्राएल का राजा योराम तथा यहूदा का राजा अहज्याह निकल गए। हर एक राजा अपने—अपने रथ से येहू से मिलने गए। वे येहू से यिज्रैली नाबोत की भूमि के पास मिले।
22 योराम ने येहू को देखा और उससे पूछा, “येहू क्या तुम शान्ति के इरादे से आए हो”
येहू ने उत्तर दिया, “जब तक तुम्हारी माँ ईज़ेबेल वेश्यावृत्ति और जादू टोना करती रहेगी तब तक शान्ति नहीं हो सकेगी।”
23 योराम ने भाग निकलने के लिये अपने घोड़ों की बाग मोड़ी। योराम ने अहज्याह से कहा, “अहज्याह! यह एक चाल है।”
24 किन्तु येहू ने अपनी पूरी शक्ति से अपने धनुष को खींचा और योराम की पीठ में बाण चला दिया। बाण योराम के हृदय को बेधता हुआ पार हो गया। योराम अपने रथ में मर गया।
25 येहू ने अपने सारथी बिदकर से कहा, “योराम के शव को उठाओ और यिज्रेली नाबोत के खेत में फेंक दो। याद करो, जब हम और तुम योराम के पिता अहाब के साथ चले थे। तब यहोवा ने कहा था कि इसके साथ ऐसा ही होगा। 26 यहोवा ने कहा था, ‘कल मैंने नाबोत और उसके पुत्रों का खून देखा था। अतः मैं अहाब को इसी खेत में दण्ड दूँगा।’ यहोवा ने ऐसा कहा था। अतः जैसा यहोवा ने आदेश दिया है—योराम के शव को खेत में फेंक दो!”
27 यहूदा के राजा अहज्याह ने यह देखा, अतः वह भाग निकला। वह बारी के भवन के रास्ते से होकर भागा। येहू ने उसका पीछा किया। येहू ने कहा, “अहज्याह को भी उसके रथ में मार डालो।”
अतः येहू के लोगों ने यिबलाम के पास गूर को जाने वाली सड़क पर अहज्याह पर प्रहार किया। अहज्याह मगिद्दो तक भागा, किन्तु वहाँ वह मर गया। 28 अहज्याह के सेवक अहज्याह के शव को रथ में यरूशलेम ले गए। उन्होंने अहज्याह को, उसकी कब्र में, उसके पूर्वजों के साथ दाऊद नगर में दफनाया।
29 अहज्याह, इस्राएल पर योराम के राज्यकाल के ग्यारहवें वर्ष में यहूदा का राजा बना था।
ईज़ेबेल की भयंकर मृत्यु
30 येहू यिज्रैल गया और ईज़ेबेल को यह सूचना मिली। उसने अपनी सज्जा की और अपने केशों को बाँधा। तब वह खिड़की के सहारे खड़ी हुई और बाहर को देखने लगी। 31 येहू ने नगर में प्रवेश किया। ईज़ेबेल ने कहा, “नमस्कार ओ जिम्री! तुमने ठीक उसकी ही तरह स्वामी को मार डाला!”
32 येहू ने ऊपर खिड़की की ओर देखा। उसने कहा, “मेरी तरफ कौन है कौन?”
दो या तीन खोजों ने खिड़की से येहू को देखा। 33 येहू ने उनसे कहा, “ईज़ेबेल को नीचे फेंको!”
तब खोजों ने ईज़ेबेल को नीचे फेंक दिया। ईज़ेबेल का कुछ रक्त दीवार और घोड़ों पर छिटक गया। घोड़ों ने ईज़ेबेल के शरीर को कुचल डाला। 34 येहू महल में घुसा और उसने खाया और दाखमधु पिया। तब उसने कहा, “अब इस अभिशापित स्त्री के बारे में यह करो। उसे दफना दो क्योंकि वह एक राजा की पुत्री है।”
35 कुछ लोग ईज़ेबेल को दफनाने गए। किन्तु वे उसके शव को न पा सके। वे केवल उसकी खोपड़ी, उसके पैर और उसके हाथों की हथेलियाँ पा सके। 36 इसलिये वे लोग लौटे और उन्होंने येहू से कहा। तब येहू ने कहा, “यहोवा ने अपने सेवक तिशबी एलिय्याह से यह सन्देश देने को कहा था। एलिय्याह ने कहा थाः ‘यिज्रैल के क्षेत्र में ईज़ेबेल के शव को कुत्ते खायेंगे। 37 ईज़ेबेल का शव यिज्रैल के क्षेत्र में खेत के गोबर की तरह होगा। लोग ईज़ेबेल के शव को पहचान नहीं पाएंगे।’”
समीक्षा
परमेश्वर की शांति
हर मानवीय हृदय की गहराई में शांति की लालसा रहती है। हम इस लालसा को परमेश्वर के लोगों के इतिहास में एक भयानक कालावधि के दौरान देखते हैं। फिर भी यहूदा का दूसरा राजा, यहोराम एक 'बुरा मनुष्य था, वह एक बुरा जीवन जीता था' (8:18, एम.एस.जी.)। उनके बाद अहज्याह राज्य करने लगा जो 'परमेश्वर की नजरों में बुरे काम करता था' (व.27, एम.एस.जी.)।
एक क्षण के लिए आशा की एक किरण दिखाई देती है। एलीशा, यहोशापात के पुत्र येहू को अभिषिक्त राजा बनाने का प्रबंध करते हैं (9:1-3)। एक युवा भविष्यवक्ता येहू के सिर पर तेल ऊंडेलता है और घोषणा करता है, 'इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यों कहता हैः 'मैं अपनी प्रजा इस्राएल पर राजा होने के लिये तेरा अभिषेक कर देता हूँ' (व.6)। दिलचस्प रूप से, येहू के साथी अधिकारी भविष्यवक्ता को 'पागल' समझते हैं (व.11)। बाद में, स्वयं येहू अपने रथ को 'एक पागल के समान' चलाते हुए दिखाई देते हैं (व.20)।
जब येहू उनके निर्देश को पूरा करना शुरु करते हैं, तब योराम तीन बार दूतों को यह पूछने के लिए भेजते हैं कि, 'क्या सब कुशल है?' (वव.17,19,22)। येहू उत्तर देते हैं, 'जब तक तेरी माता ईजेबेल छिनालपन और टोना करती रहे, तब तक कुशल कहाँ' (व.22)। ईजेबेल ने भी यही प्रश्न पूछा, 'क्या सब कुशल है?' (व.31)। जवाब था 'नहीं'। ईजेबेल एक भयानक मौत मरी, एलिय्याह ने जो भविष्यवाणी की थी वह पूरी हुई (1राजाओं 21:23)।
यह बुराई, मृत्यु और फूट पड़ने के दिन थे। येहू की घोषणा कि जब तक इस्राएल में ईजेबेल की दुष्टता चलती रहेगी, तब तक शांती नहीं होगी, यह बात हमें याद दिलाती है कि सच्ची शांति केवल परमेश्वर में पायी जाती है। इन लेखांश की लड़ाईयाँ याद दिलाते हैं कि उन्हें उद्धार और शांति लाने की आवश्यकता है - यीशु की आवश्यकता।
यीशु ने कहा, ' मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ' (यूहन्ना 14:27)। आरंभिक कलीसिया ने 'यीशु मसीह के द्वारा शांति के अच्छे समाचार का प्रचार किया' (प्रेरितों के काम 10:36)। संत पौलुस ने लिखा, 'हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हम परमेश्वर के साथ शांति में हैं' (रोमियों 5:1)। 'आत्मा के द्वारा नियंत्रित दिमाग जीवन और शांति है' (8:6)। वह अपने बहुत से पत्रों की शुरुवात इससे करते हैं, 'तुम्हें अनुग्रह और शांति मिले' (1कुरिंथियो 1:3;2कुरिंथियो 1:2; गलातियो 1:3, और इत्यादि)।
स्टिफन लुंगू की कहानी में वापस जाते हुए, उपदेशक के वचनों ने उसे उसके पाप का बोध करवाया और उसे यीशु के पास ले आये। उन्होंने परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव किया। उन्होंने परमेश्वर के अनुग्रह और शांति के बारे में सुना।
स्टिफन लुंगू डगमगाते हुए आगे मंच पर आये, उपदेशक के पैरों को पकड़कर रोने लगे। उस शाम, वह यीशु मसीह के एक अनुयायी बन गए।
अगली सुबह उन्होंने अपने आपको स्थानीय पुलिस स्टेशन में प्रस्तुत किया और अपने अपराधों को कबूल किया। मेज पर बैठे पुलिस ने लंबी चार्जशिट देखी, उनकी कहानी को सुना और उन्हें छोड़ दिया। सुबह के दैनिक यात्रियों के साथ एक बस में चढ़ते हुए, स्टिफन बहुत खुश थे कि वह बस में दूसरों को सुसमाचार सुनाने के लिए उत्साहित थे। तब से, वह लागों को यीशु के बारे में बता रहे हैं।
स्टिफन अफ्रीका में एक पूर्ण समय के प्रचारक है, बहुत सी सभाओं में प्रचार करते हैं। कुछ सालों पहले एक सभा में, एक बूढ़ी महिला आगे आयी, जो यीशु के पीछे चलना चाहती थी। वह महिला उनकी खुद की माँ निकली, जिन्होंने इतने वर्ष उन्हें छोड़ दिया था!
परमेश्वर की उपस्थिति, सुरक्षा और शांति एक शक्तिशाली मिश्रण है। जैसा कि स्टिफनुस खुद कहते हैं, 'क्योंकि में अपने आपको परमेश्वर के अनुग्रह के एक चमत्कार के रूप में देखता हूँ, इसलिए मैं विश्वास करता हूँ कि पापियों को बचाने के लिए यीशु मसीह की सामर्थ अब भी उपलब्ध है। यदि वह मुझे बदल सके, तो वह किसी को भी बदल सकते हैं।'
प्रहारों के बीच में, चाहे पड़ोसियों से या शत्रुओं से या अधिकारियों से, आप शांति में हो सकते हैं, यह जानते हुए कि परमेश्वर घटनाओं और इतिहास को नियंत्रित करते हैं और विरोध को अवसर में बदलते हैं।
प्रार्थना
परमेश्वर, आज मैं धन्यवादिता के साथ अपने निवेदनों को आपके पास लाता हूँ और मैं प्रार्थना करता हूँ कि परमेश्वर की शांति, जो सारी समझ से परे है, मसीह यीशु में मेरे दिमाग और हृदय को सुरक्षित रखेगी (फिलिप्पियों 4:6-7)।
पिप्पा भी कहते है
2 राजाओं 9:1-37
हमें कैसे पता चलेगा जब हमें अगुवाई करने के लिए बुलाया गया है? येहू भूतकाल से निराश हो गए थे और बदलाव की लालसा कर रहे थे। उनके पास उपहार और पद था। उनके पास परमेश्वर से एक वचन था। उनके मित्र/ सहकर्मीयों ने सोचा कि यह एक अच्छा विचार है (व.13)। जब वह अगुवाई करने के लिए उठे, तब वे उनके पीछे चलने लगे।
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संदर्भ
ग्युस्टव फ्लाबर्ट, लेटर टू लॉइस कोलेट, 14जून 1853
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
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काली परछाई में सेः स्टिफन लुंगु में अद्भुत बदलाव
'आप एक व्यक्ति का मूल्य इससे जान सकते है कि उसके कितने शत्रु है, और कला के कार्य की महत्ता को इस बात से कि इसपर कितना प्रहार होता है, ' 14 जून 1853 को लुईस कॉलेट को एक पत्र में ग्युस्टव फ्लाबर्ट ने लिखा (1821-1880)