परमेश्वर की बातें सुनें
परिचय
सुनना बहुत ही महत्वपूर्ण चीज है। कुछ लोग इसमें बहुत अच्छे होते हैं। जनरल जॉर्ज मार्शा ने कहा, 'लोगों को सँभालने का नुस्खाः
- दूसरे व्यक्ति की कहानी को सुनें
- दूसरे व्यक्ति की पूरी कहानी को सुनें
- दूसरे व्यक्ति की कहानी को पहले सुनिये।
परमेश्वर की बातें सुनना, उनके साथ हमारे संबंध की एक पूंजी है। 'सुनने' का अर्थ है 'ध्यान देकर सुनना, ' 'ध्यान देना'। प्रार्थना का अर्थ है पहले परमेश्वर को हमारा पूर्ण ध्यान देना।
भजन संहिता 81:8-16
8 “मेरे लोगों, तुम मेरी बात सुनों। और मैं तुमको अपना वाचा दूँगा।
इस्राएल, तू मुझ पर अवश्य कान दे।
9 तू किसी मिथ्या देव जिनको विदेशी लोग पूजते हैं,
पूजा मत कर।
10 मैं, यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर हूँ।
मैं वही परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र से बाहर लाया था।
हे इस्राएल, तू अपना मुख खोल,
मैं तुझको निवाला दूँगा।
11 “किन्तु मेरे लोगों ने मेरी नहीं सुनी।
इस्राएल ने मेरी आज्ञा नहीं मानी।
12 इसलिए मैंने उन्हें वैसा ही करने दिया, जैसा वे करना चाहते थे।
इस्राएल ने वो सब किया जो उन्हें भाता था।
13 भला होता मेरे लोग मेरी बात सुनते, और काश! इस्राएल वैसा ही जीवन जीता जैसा मैं उससे चाहता था।
14 तब मैं फिर इस्राएल के शत्रुओं को हरा देता।
मैं उन लोगों को दण्ड देता जो इस्राएल को दु:ख देते।
15 यहोवा के शत्रु डर से थर थर काँपते हैं।
वे सदा सर्वदा को दण्डित होंगे।
16 परमेश्वर निज भक्तों को उत्तम गेहूँ देगा।
चट्टान उन्हें शहद तब तक देगी जब तक तृप्त नहीं होंगे।”
समीक्षा
भजनसंहिता के द्वारा परमेश्वर को आपसे बातें करते हुए सुनिये
हम सभी भौतिक भूख का अनुभव करते हैं, जो केवल भोजन के द्वारा तृप्त किया जा सकता है। आपके पास एक आत्मिक भूख भी है, जो केवल परमेश्वर की बातें सुनने से तृप्त हो सकती है। परमेश्वर कहते हैं, 'यदि केवल तुम मेरी सुनो...' (व.8ब)।
परमेश्वर के वचन आपकी आत्मिक भूख को तृप्त करते हैं। परमेश्वर वायदा करते हैं, 'तू अपना मुँह पसार, मैं उसे भर दूंगा' (व.10)। यदि आप उनकी बातें सुनेंगे, तो वह कहते हैं, 'मैं उनको उत्तम से उत्तम गेहूँ खिलाता, और मैं चट्टान में के मधु से उनको तृप्त करता' (व.16)।
एक ओर, वह कहते हैं, 'हे प्रियो सुनो' (व.8अ, एम.एस.जी.)। परमेश्वर आपके लिए सर्वश्रेष्ठ चाहते हैं, और उन्हें नजरअंदाज करने के खतरे के विरूद्ध चेतावनी देते हैं। वह आगे कहते हैं, 'परंतु मेरी प्रजा ने मेरी न सुनी; इस्राएल ने मुझ को न चाहा। इसलिये मैंने उसको उसके मन के हठ पर छोड़ दिया, कि वह अपनी ही युक्तियों के अनुसार चले' (वव.11-12)। परमेश्वर की बातें न सुनने का परिणाम यह है कि वह हमें हमारे कामों के परिणामों पर छोड़ देते हैं (रोमियों 1:24,26 भी देखें)।
दूसरी ओर, वह वायदा करते हैं कि यदि आप उनकी बातें सुनेंगे तो वह आपके पक्ष में कार्य करेंगेः'यदि मेरी प्रजा मेरी सुने, यदि इस्राएल मेरे मार्गों पर चले, तो मैं क्षण भर में उनके शत्रुओं को दबाऊँ' (भजनसंहिता 81:13-14अ)।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि हर दिन मैं आपकी बातें सुन सकता हूँ और 'उत्तम गेंहूँ' से तृप्त हो सकता हूँ।' मेरी सहायता कीजिए कि हर दिन आपकी बातें सुनूं, आपकी बातों पर ध्यान दूं, और आप पर भरोसा करुँ कि आप मेरे पक्ष में काम करेंगे।
प्रेरितों के काम 26:24-27:12
पौलुस द्वारा अग्रिप्पा का भ्रम दूर करने का यत्न
24 वह अपने बचाव में जब इन बातों को कह ही रहा था कि फेस्तुस ने चिल्ला कर कहा, “पौलुस, तेरा दिमागख़राब हो गया है! तेरी अधिक पढ़ाई तुझे पागल बनाये डाल रही है!”
25 पौलुस ने कहा, “हे परमगुणी फेस्तुस, मैं पागल नहीं हूँ बल्कि जो बातें मैं कह रहा हूँ, वे सत्य हैं और संगत भी। 26 स्वयं राजा इन बातों को जानता है और मैं मुक्त भाव से उससे कह सकता हूँ। मेरा निश्चय है कि इनमें से कोई भी बात उसकी आँखों से ओझल नहीं है। मैं ऐसा इसलिये कह रहा हूँ कि यह बात किसी कोने में नहीं की गयी। 27 हे राजन अग्रिप्पा! नबियों ने जो लिखा है, क्या तू उसमें विश्वास रखता है? मैं जानता हूँ कि तेरा विश्वास है।”
28 इस पर अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “क्या तू यह सोचता है कि इतनी सरलता से तू मुझे मसीही बनने को मना लेगा?”
29 पौलुस ने उत्तर दिया, “थोड़े समय में, चाहे अधिक समय में, परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है कि न केवल तू बल्कि वे सब भी, जो आज मुझे सुन रहे हैं, वैसे ही हो जायें, जैसा मैं हूँ, सिवाय इन ज़ंजीरों के।”
30 फिर राजा खड़ा हो गया और उसके साथ ही राज्यपाल, बिरनिके और साथ में बेठे हुए लोग भी उठ खड़े हुए। 31 वहाँ से बाहर निकल कर वे आपस में बात करते हुए कहने लगे, इस व्यक्ति ने तो ऐसा कुछ नहीं किया है, जिससे इसे मृत्युदण्ड या कारावास मिल सके। 32 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “यदि इसने कैसर के सामने पुनर्विचार की प्रार्थना न की होती, तो इस व्यक्ति को छोड़ा जा सकता था।”
पौलुस को रोम भेजा जाना
27जब यह निश्चय हो गया कि हमें जहाज़ से इटली जाना है तो पौलुस तथा कुछ दूसरे बंदियों को सम्राट की सेना के यूलियस नाम के एक सेनानायक को सौंप दिया गया। 2 अद्रमुत्तियुम से हम एक जहाज़ पर चढ़े जो एशिया के तटीय क्षेत्रों से हो कर जाने वाला था और समुद्र यात्रा पर निकल पड़े। थिस्सलुनीके निवासी एक मकदूनी, जिसका नाम अरिस्तर्खुस था, भी हमारे साथ था।
3 अगले दिन हम सैदा में उतरे। वहाँ यूलियस ने पौलुस के साथ अच्छा व्यवहार किया और उसे उसके मित्रों का स्वागत सत्कार ग्रहण करने के लिए उनके यहाँ जाने की अनुमति दे दी। 4 वहाँ से हम समुद्र-मार्ग से फिर चल पड़े। हम साइप्रस की आड़ लेकर चल रहे थे क्योंकि हवाएँ हमारे प्रतिकूल थीं। 5 फिर हम किलिकिया और पंफूलिया के सागर को पार करते हुए लुकिया और मीरा पहुँचे। 6 वहाँ सेनानायक को सिकन्दरिया का इटली जाने वाला एक जहाज़ मिला। उसने हमें उस पर चढ़ा दिया।
7 कई दिन तक हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बड़ी कठिनाई के साथ कनिदुस के सामने पहुँचे क्योंकि हवा हमें अपने मार्ग पर नहीं बने रहने दे रही थी, सो हम सलभौने के सामने से क्रीत की ओट में अपनी नाव बढ़ाने लगे। 8 क्रीत के किनारे-किनारे बड़ी कठिनाई से नाव को आगे बढ़ाते हुए हम एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जिसका नाम था सुरक्षित बंदरगाह। यहाँ से लसेआ नगर पास ही था।
9 समय बहुत बीत चुका था और नाव को आगे बढ़ाना भी संकटपूर्ण था क्योंकि तब तक उपवास का दिन समाप्त हो चुका था इसलिए पौलुस ने चेतावनी देते हुए उनसे कहा, 10 “हे पुरुषो, मुझे लगता है कि हमारी यह सागर-यात्रा विनाशकारी होगी, न केवल माल असबाब और जहाज़ के लिए बल्कि हमारे प्राणों के लिये भी।” 11 किन्तु पौलुस ने जो कहा था, उस पर कान देने के बजाय उस सेनानायक ने जहाज़ के मालिक और कप्तान की बातों का अधिक विश्वास किया। 12 और वह बन्दरगाह शीत ऋतु के अनुकूल नहीं था, इसलिए अधिकतर लोगों ने, यदि हो सके तो फिनिक्स पहुँचने का प्रयत्न करने की ही ठानी। और सर्दी वहीं बिताने का निश्चय किया। फिनिक्स क्रीत का एक ऐसा बन्दरगाह है जिसका मुख दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम दोनों के ही सामने पड़ता है।
समीक्षा
प्रेरितों के द्वारा परमेश्वर की बातों को सुनें
पौलुस प्रेरित परमेश्वर के संदेशवाहक थे। परमेश्वर ने उनके द्वारा बातें की। इस लेखांश में जो लोग पौलुस की बातें सुन रहे थे, उनके पास परमेश्वर को सुनने का अवसर था।
जब पौलुस पानी के रास्ते से रोम जा रहे थे, तब सूबेदार ने, 'पौलुस की बात सुनने के बजाय, कप्तान और जहाज के मालिक की सलाह को माना' (27:11)। पौलुस की बात न मानने से बहुत ही विनाशकारी परिणाम हुआ।
लेखांश के पहले भाग में हम पौलुस को फेस्तुस और अग्रिप्पा के सामने जंजीरों में बँधा हुआ देखते हैं। वह यीशु, उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान के विषय में सुसमाचार को बता रहे थे। फेस्तुस ने कहा, ' हे पौलुस, तू पागल है। बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है' (26:24)। वह कहते हैं, 'पौलुस, तुम पागल हो!' (व.24, एम.एस.जी.)। कुछ लोगों ने हमेशा सोचा है, और आज भी सोचते हैं कि मसीह थोड़े पागल होते हैं।
पौलुस का जवाब था, 'मैं पागल नहीं हूँ.. परन्तु सच्चाई और बुद्धि की बातें कहता हूँ' (व.25)। उन्होंने यह जवाब नहीं दिया, 'हाँ, यह सब थोड़ा पागलपन है लेकिन मैं इस पर विश्वास करता हूँ।' उन्होंने इस बात को मानना अस्वीकार कर दिया कि उनका विश्वास पागलपन था।
पौलुस ने विवाद किया कि विश्वास सच्चाई पर आधारित है। यह विश्वास करने के अच्छे कारण हैं कि यीशु मसीह मृत्यु में से जीवित हुए। हमारा विश्वास 'सच्चा और बुद्धियुक्त है' (व.25)। हमें तर्कसंगत और बुद्धि से पूर्ण वाद-विवाद को प्रस्तुत करने में घबराना नहीं चाहिए। हमें सुसमाचार को बुद्धिपूर्वक प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
किंतु, केवल कारण पर्याप्त नहीं हैं। मेरे मसीह बनने से पहले, मैंने विश्वास के लिए वाद-विवाद और कारणों को सुना था। मेरे सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले। फिर भी, यीशु के विषय में मैंने जो सीखा था उसके आधार पर मैंने विश्वास का कदम बढ़ाया। जिस क्षण मैंने विश्वास का कदम बढ़ाया, यह ऐसा था जैसे मेरी आँखे खुल गई हो और मैंने उस चीज को अधिकाधिक समझ लिया जो मैंने पहले कभी नही देखी थी।
कारण हमें केवल इतनी ही दूर तक ले जाएँगे। किंतु, जब हम लोगों को मनाने की कोशिश कर रहे है कि यीशु के पीछे चलो, जैसा कि पौलुस ने किया, तब यह बात महत्वपूर्ण है कि उन्हें समझाएँ कि यीशु के विषय में संदेश 'सच्चाई और बुद्धि से भरा हुए हैं।'
पौलुस के लिए अग्रीप्पा का उत्तर था, 'तू थोड़े ही समझाने से मुझे मसीही बनाना चाहता है?' पौलुस ने कहा, 'परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है कि क्या थोड़े में क्या बहुत में, केवल तू ही नहीं परन्तु जितने लोग आज मेरी सुनते हैं, इन बन्धनों को छोड़ वे मेरे समान हो जाए' (वव.28-29)।
पौलुस ने बुरा नहीं माना कि चाहे लोग एक संकट ('थोड़े समय') के द्वारा या एक प्रकिया ('लंबे समय') के द्वारा मसीह बन जाएँ। लेकिन उन्होंने वह सब किया जो उनकी सामर्थ में था ताकि वे मसीह बन जाँए, जैसे कि वह स्वयं थे। पौलुस यह प्रार्थना करने में शर्मिंदा नही थे कि लोग उनकी तरह बन जाएँ (गलातियों 4:12)।
मृत्यु या बंदीगृह में डाले जाने योग्य, पौलुस ने कुछ नहीं किया था (प्रेरितों के काम 26:31), फिर भी नागरिक अधिकारियों ने उन्हें मुक्त न करने का एक बेकार बहाना ढूंढ़ लिया था (व.32)। यह अवश्य ही अन्याय और तर्कहीन दिखाई देता होगा और अवश्य ही पौलुस को बहुत निराश कर रहा होगा।
फिर भी, लगभग 2000 साल के बाद, उस समय पौलुस के द्वारा बोले गए वचनों को सुन रहे हैं, और उनके द्वारा परमेश्वर से सुनने का अवसर प्राप्त कर रहे हैं।
प्रार्थना
परमेश्वर, होने दीजिए कि हम विश्वास और जोश में पौलुस की तरह बने। जैसे ही हम यीशु के विषय में सुसमाचार को बताते हैं, होने दीजिए कि लोगों के पास यह समझ हो कि हमें सुनने के द्वारा वे परमेश्वर को सुन रहे हैं।
2 राजा 16:1-17:41
आहाज यूहदा का राजा बनता है
16योताम का पुत्र आहाज इस्राएल के राजा रमल्याह के पुत्र पेकह के राज्यकाल के सत्रहवें वर्ष में यहूदा का राजा बना। 2 आहाज जब राजा बना वह बीस वर्ष का था। आहाज ने यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य किया। आहाज ने वे काम नहीं किये जिन्हें यहोवा ने अच्छा बताया था। उसने परमेश्वर की आज्ञा का पालन अपने पूर्वज दाऊद की तरह नहीं किया। 3 आहाज इस्राएल के राजाओं की तरह रहा। उसने अपने पुत्र तक की बलि आग में दी। उसने उन राष्ट्रों के घोर पापों की नकल की जिन्हें यहोवा ने देश छोड़ने को विवश तब किया था जब इस्राएली आए थे। 4 आहाज ने उच्च स्थानों, पहाड़ियों और हर एक हरे पेड़ के नीचे बलि चढ़ाई और सुगन्धि जलाई।
5 अराम के राजा रसीन और इस्राएल के राजा रमल्याह का पुत्र पेकह, दोनों यरूशलेम के विरुद्ध लड़ने आए। रसीन और पेकह ने आहाज को घेर लिया किन्तु वे उसे हरा नहीं सके। 6 उस समय अराम के राजा ने अराम के लिये एलत को वापस ले लिया। रसीन ने एलत में रहने वाले सभी यहूदा के निवासियों को जबरदस्ती निकाला। अरामी लोग एलत में बस गए और वे आज भी वहाँ रहते हैं।
7 अहाज ने अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर के पास सन्देशवाहक भेजे। सन्देश यह थाः “मैं आपका सेवक हूँ। मैं आपके पुत्र समान हूँ। आएँ, और मुझे अराम के राजा और इस्राएल के राजा से बचायें। वे मुझसे युद्ध करने आए हैं!” 8 आहाज ने यहोवा के मन्दिर और राजमहल के खजाने में जो सोना और चाँदी था उसे भी ले लिया। तब आहाज ने अश्शूर के राजा को भेंट भेजी। 9 अश्शूर के राजा ने उसकी बात मान ली। अश्शूर का राजा दमिश्क के विरुद्ध लड़ने गया। राजा ने उस नगर पर अधिकार कर लिया और लोगों को दमिश्क से बन्दी बनाकर फिर ले गया। उसने रसीन को भी मार डाला।
10 राजा आहाज अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर से मिलने दमिश्क गया। आहाज ने दमिश्क में वेदी को देखा। राजा आहाज ने इस वेदी का एक नमूना तथ उसकी व्यापक रूपरेखा, याजक ऊरिय्याह को भेजी। 11 तब याजक ऊरिय्याह ने राजा आहाज द्वारा दमिश्क से भेजे गए नमूने के समान ही एक वेदी बनाई। याजक ऊरिय्याह ने इस प्रकार की वेदी राजा आहाज के दमिश्क से लौटने के पहले बनाई।
12 जब राजा दमिश्क से लौटा तो उसने वेदी को देखा। उसने वेदी पर भेंट चढ़ाई। 13 वेदी पर आहाज ने होमबलि और अन्नबलि चढ़ाई। उसने अपनी पेय भेंट डाली और अपनी मेलबलि के खून को इस वेदी पर छिड़का।
14 आहाज ने उस काँसे की वेदी को जो यहोवा के सामने थी मन्दिर के सामने के स्थान से हटाया। यह काँसे की वेदी आहाज की वेदी और यहोवा के मन्दिर के बीच थी। आहाज ने काँसे की वेदी को अपने वेदी के उत्तर की ओर रखा। 15 आहाज ने याजक ऊरिय्याह को आदेश दिया। उसने कहा, “विशाल वेदी का उपयोग सवेरे की होमबलियों को जलाने के लिये, सन्ध्या की अन्नबलि के लिये और इस देश के सभी लोगों की पेय भेंट के लिये करो। होमबलि और बलियों का सारा खून विशाल वेदी पर छिड़को। किन्तु मैं काँसे की वेदी का उपयोग परमेश्वर से प्रश्न पूछने के लिये करूँगा।” 16 याजक ऊरिय्याह ने वह सब किया जिसे करने के लिये राजा आहाज ने आदेश दिये।
17 वहाँ पर काँसे के कवच वाली गाड़ियाँ और याजकों के हाथ धोने के लिये चिलमचियाँ थीं। तब राजा आहाज ने मन्दिर में प्रयुक्त काँसे की गाड़ियों को काट डाला और उनसे तख्ते निकाल लिये। उसने गाड़ियों में से चिलमचियों को ले लिया। उसने विशाल टंकी को भी काँसे के उन बैलों से हटा लिया जौ उसके नीचे खड़ी थी। उसने विशाल टंकी को एक पत्थर के चबूतरे पर रखा। 18 कारीगरों ने सब्त की सभा के लिये मन्दिर के अन्दर एक ढका स्थान बनाया था। आहाज ने सब्त के लिये ढके स्थान को हटा लिया। आहाज ने राजा के लिये बाहरी द्वार को भी हटा दिया। आहाज ने ये सभी चीज़ें यहोवा के मन्दिर से लीं। यह सब उसने अश्शूर के राजा को प्रसन्न करने के लिये किया।
19 आहाज ने जो बड़े काम किये वे यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 20 आहाज मरा और अपने पूर्वजों के साथ दाऊद नगर में दफनाया गया। आहाज का पुत्र हिजकिय्याह उसके बाद नया राजा हुआ।
होशे इस्राएल पर शासन करना आरम्भ करता है
17एला का पुत्र होशे ने शोमरोन में इस्राएल पर शासन करना आरम्भ किया। यह यहूदा के राजा आहाज के राज्यकाल के बारहवें वर्ष में हुआ। होशे ने नौ वर्ष तक शासन किया। 2 होशे ने वे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा कहा था। किन्तु होशे इस्राएल का उतना बुरा राजा नहीं था जितने वे राजा थे जिन्होंने उसके पहले शासन किया था।
3 अश्शूर का राजा शल्मनेसेर होशे के विरुद्ध युद्ध करने आया। शल्मनेसेर ने होशे को हराया और होशे शल्मनेसेर का सेवक बन गया। होशे शल्मनेसेर को अधीनस्थ कर देने लगा।
4 किन्तु बाद में अश्शूर के राजा को पता चला कि होशे ने उसके विरुद्ध षडयन्त्र रचा है। होशे ने मिस्र के राजा के पास सहायता माँगने के लिये राजदूत भेजे। मिस्र के राजा का नाम “सो” था। उस वर्ष होशे ने अश्शूर के राजा को अधीनस्थ कर उसी प्रकार नहीं भेजा जैसे वह हर वर्ष भेजता था। अतः अश्शूर के राजा ने होशे को बन्दी बनाया और उसे जेल में डाल दिया।
5 तब अश्शूर के राजा ने इस्राएल के विभिन्न प्रदेशों पर आक्रमण किया। वह शोमरोन पहुँचा। वह शोमरोन के विरुद्ध तीन वर्ष तक लड़ा। 6 अश्शूर के राजा ने, इस्राएल पर होशे के राज्यकाल के नवें वर्ष में, शोमरोन पर अधिकार जमाया। अश्शूर का राजा इस्राएलियों को बन्दी के रूप में अश्शूर को ले गया। उसने उन्हें हलह, हबोर नदी के तट पर गोजान और मदियों के नगरों में बसाया।
7 ये घटनायें घटीं क्योंकि इस्राएलियों ने अपने परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध पाप किये थे। यहोवा इस्राएलियों को मिस्र से बाहर लाया। यहोवा ने उन्हें राजा फ़िरौन के चंगुल से बाहर निकाला। किन्तु इस्राएलियों ने अन्य देवताओं को पूजना आरम्भ किया था। 8 इस्राएली वही सब करने लगे थे जो दूसरे राष्ट्र करते थे। यहोवा ने उन लोगों को अपना देश छोड़ने को विवश किया था जब इस्राएली आए थे। इस्राएलियों ने भी राजाओं से शासित होना पसन्द किया, परमेश्वर से शासित होना नहीं। 9 इस्राएलियों ने गुप्त रूप से अपने यहोवा परमेश्वर के विरुद्ध काम किया। जिसे उन्हें नहीं करना चाहिये था।
इस्राएलियों ने अपने सबसे छोटे नगर से लेकर सबसे बड़े नगर तक, अपने सभी नगरों में उच्च स्थान बनाये। 10 इस्राएलियों ने प्रत्येक ऊँची पहाड़ी पर हरे पेड़ के नीचे स्मृति पत्थर तथा अशेरा स्तम्भ लगाये। 11 इस्राएलियों ने पूजा के उन सभी स्थानों पर सुगन्धि जलाई। उन्होंने ये सभी कार्य उन राष्ट्रों की तरह किया जिन्हें यहोवा ने उनके सामने देश छोड़ने को विवश किया था। इस्राएलियों ने वे काम किये जिन्होंने यहोवा को क्रोधित किया। 12 उन्होंने देवमूर्तियों की सेवा की, और यहोवा ने इस्राएलियों से कहा था, “तुम्हें यह नहीं करना चाहिये।” 13 यहोवा ने हर एक नबी और हर एक दृष्टा का उपयोग इस्राएल और यहूदा को चेतावनी देने के लिये किया। यहोवा ने कहा, “तुम बुरे कामों से दूर हटो! मेरे आदेशों और नियमों का पालन करो। उन सभी नियमों का पालन करो जिन्हें मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिये हैं। मैंने अपने सेवक नबियों का उपयोग यह नियम तुम्हें देने के लिये किया।”
14 लेकिन लोगों ने एक न सुनी। वे अपने पूर्वजों की तरह बड़े हठी रहे। उनके पूर्वज यहोवा, अपने परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते थे। 15 लोगों ने, अपने पूर्वजों द्वारा यहोवा के साथ की गई वाचा और यहोवा के नियमों को मानने से इन्कार किया। उन्होंने यहोवा की चेतावनियों को सुनने से इन्कार किया। उन्होंने निकम्मे देवमूर्तियों का अनुसरण किया और स्वयं निकम्में बन गये। उन्होंने अपने चारों ओर के राष्ट्रों का अनुसरण किया। ये राष्ट्र वह करते थे जिसे न करने की चेतावनी इस्राएल के लोगों को यहोवा ने दी थी।
16 लोगों ने यहोवा, अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन करना बन्द कर दिया। उन्होंने बछड़ों की दो सोने की मूर्तियाँ बनाईं। उन्होंने अशेरा स्तम्भ बनाये। उन्होंने आकाश के सभी नक्षत्रों की पूजा की और बाल की सेवा की। 17 उन्होंने अपने पुत्र—पुत्रीयों की बलि आग में दी। उन्होंने जादू और प्रेत विद्या का उपयोग भविष्य को जानने के लिये किया। उन्होंने वह करने के लिये अपने को बेचा, जिसे यहोवा ने बताया था कि वह उसे क्रोधित करने वाली बुराई है। 18 इसलिये यहोवा इस्राएल पर बहुत क्रोधित हुआ और उन्हें अपनी निगाह से दूर ले गया। यहूदा के परिवार समूह के अतिरिक्त कोई इस्राएली बचा न रहा!
यहूदा के लोग भी अपराधी हैं
19 किन्तु यहूदा के लोगों ने भी यहोवा, अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन नहीं किया। यहूदा के लोग भी इस्राएल के लोगों की तरह ही रहते थे।
20 यहोवा ने इस्राएल के सभी लोगों को अस्वीकार किया। उसने उन पर बहुत विपत्तियाँ ढाईं। उसने लोगों को उन्हें नष्ट करने दिया और अन्त में उसने उन्हें उठा फेंका और अपनी दृष्टि से ओझल कर दिया। 21 यहोवा ने दाऊद के परिवार से इस्राएल को अलग कर डाला और इस्राएलियों ने नबात के पुत्र यारोबाम को अपना राजा बनाया। यारोबाम ने इस्राएलियों को यहोवा का अनुसरण करने से दूर कर दिया। यारोबाम ने इस्राएलियों से एक भीषण पाप कराया। 22 इस प्रकार इस्राएलियों ने उन सभी पापों का अनुसरण किया जिन्हें यारोबाम ने किया। उन्होंने इन पापों का करना तब तक बन्द नहीं किया 23 जब तक यहोवा ने इस्राएलियों को अपनी दृष्टि से दूर नहीं हटाया और यहोवा ने कहा कि यह होगा। लोगों को बताने के लिए कि यह होगा, उसने अपने नबियों को भेजा। इसलिए इस्राएली अपने देश से बाहर अश्शूर पहुँचाये गए और वे आज तक वहीं हैं।
शोमरोनी लोगों का आरम्भ
24 अश्शूर का राजा इस्राएलियों को शोमरोन से ले गया। अश्शूर का राजा बाबेल, कूता, अब्वाहमात और सपवैम से लोगों को लाया। उसने उन लोगों को शोमरोन में बसा दिया। उन लोगों ने शोमरोन पर अधिकार किया और उसके चारों ओर के नगरों में रहने लगे। 25 जब ये लोग शोमरोन में रहने लगे तो इन्होंने यहोवा का सम्मान नहीं किया। इसलिये यहोवा ने सिंहों को इन पर आक्रमण के लिये भेजा। इन सिंहों ने उनके कुछ लोगों को मार डाला। 26 कुछ लोगों ने यह बात अश्शूर के राजा से कही। “वे लोग जिन्हें आप ले गए और शोमरोन के नगरों में बसाया, उस देश के देवता के नियमों को नहीं जानते। इसलिये उस देवता ने उन लोगों पर आक्रमण करने के लिये सिंह भेजे। सिहों ने उन लोगों को मार डाला क्योंकि वे लोग उस देश के देवता के नियमों को नहीं जानते थे।”
27 इसलिए अश्शूर के राजा ने यह आदेश दियाः “तुमने कुछ याजकों को शोमरोन से लिया था। मैंने जिन याजकों को बन्दी बनाया था उनमें से एक को शोमरोन को वापस भेज दो। उस याजक को जाने और वहाँ रहने दो। तब वह याजक लोगों को उस देश के देवता के नियम सिखा सकता है।”
28 इसलिये अश्शूरियों द्वारा शोमरोन से लाये हुए याजकों में से एक बेतेल में रहने आया। उस याजक ने लोगों को सिखाया कि उन्हें यहोवा का सम्मान कैसे करना चाहिये।
29 किन्तु उन सभी राष्ट्रों ने निजी देवता बनाए और उन्हें शोमरोन के लोगों द्वारा बनाए गए उच्च स्थानों पर पूजास्थलों में रखा। उन राष्ट्रों ने यही किया, जहाँ कहीं भी वे बसे। 30 बाबेल के लोगों ने असत्य देवता सुक्कोतबनोत को बनाया। कूत के लोगों ने असत्य देवता नेर्गल को बनाया। हमात के लोगों ने असत्य देवता अशीमा को बनाया। 31 अव्वी लोगों ने असत्य देवत निभज और तर्त्ताक बनाए और सपवमी लोगों ने झूठे देवताओं अद्रम्मेलेक और अनम्मेलेक के सम्मान के लिये अपने बच्चों को आग में जलाया।
32 किन्तु उन लोगों ने यहोवा की भी उपासना की। उन्होंने अपने लोगों में से उच्च स्थानों के लिये याजक चुने। ये याजक उन पूजा के स्थानों पर लोगों के लिये बलि चढ़ाते थे। 33 वे यहोवा का सम्मान करते थे, किन्तु वे अपने देवताओं की भी सेवा करते थे। वे लोग अपने देवता की वैसी ही सेवा करते थे जैसी वे उन देशों में करते थे जहाँ से वे लाए गए थे।
34 आज भी वे लोग वैसे ही रहते हैं जैसे वे भूतकाल में रहते थे। वे यहोवा का सम्मान नहीं करते थे। वे इस्राएलियों के आदेशों और नियमों का पालन नहीं करते थे। वे उन नियमों या आदेशों का पालन नहीं करते थे जिन्हें यहोवा ने याकूब (इस्राएल) की सन्तानों को दिया था। 35 यहोवा ने इस्राएल के लोगों के साथ एक वाचा की थी। यहोवा ने उन्हें आदेश दिया, “तुम्हें अन्य देवताओं का सम्मान नहीं करना चाहिये। तुम्हें उनकी पूजा या सेवा नहीं करनी चाहिये या उन्हें बलि भेंट नहीं करनी चाहिये। 36 किन्तु तुम्हें यहोवा का अनुसरण करना चाहिये। यहोवा वही परमेश्वर है जो तुम्हें मिस्र से बाहर ले आया। यहोवा ने अपनी महान शक्ति का उपयोग तुम्हें बचाने के लिये किया। तुम्हें यहोवा की ही उपासना करनी चाहिये और उसी को बलि भेंट करनी चाहिये। 37 तुम्हें उसके उन नियमों, विधियों, उपदेशों और आदेशों का पालन करना चाहिये जिन्हें उसने तुम्हारे लिये लिखा। तुम्हें इनका पालन सदैव करना चाहिये। तुम्हें अन्य देवताओं का सम्मान नहीं करना चाहिये। 38 तुम्हें उस वाचा को नहीं भूलना चाहिये, जो मैंने तुम्हारे साथ किया। तुम्हें अन्य देवताओं का आदर नहीं करना चाहिये। 39 नहीं! तुम्हें केवल यहोवा, अपने परमेश्वर का ही सम्मान करना चाहिये। तब वह तुम्हें तुम्हारे सभी शत्रुओं से बचाएगा।”
40 किन्तु इस्राएलियों ने इसे नहीं सुना। वे वही करते रहे जो पहले करते चले आ रहे थे। 41 इसलिये अब तो वे अन्य राष्ट्र यहोवा का सम्मान करते हैं, किन्तु वे अपनी देवमूर्तियों की भी सेवा करते हैं। उनके पुत्र—पौत्र वही करते हैं, जो उनके पूर्वज करते थे। वे आज तक वही काम करते हैं।
समीक्षा
भविष्यवक्ताओं के द्वारा अपने लिए परमेश्वर की बातें सुनें
परमेश्वर ने इस्राएल को बंदी बना लिए जाने और निर्वासन में जाने दिया क्योंकि उन्होंने उनकी बातें सुनना अस्वीकार कर दिया था।
2राजाओं की पुस्तक में इस समय का इतिहास, इन शब्दों में बताया जा सकता है 'नही सुना': 'उन्होंने नही सुना...उन्होंने नही सुना' (17:14,40)। जैसा कि हमने कल देखा, राजाओं और परमेश्वर के लोगों ने जिस किसी परेशानियाँ का सामना किया, वह परमेश्वर की बात न सुनने का परिणाम था।
परमेश्वर ने अपने सेवक भविष्यवक्ताओं के द्वारा अपने लोगों से बात की। 'यहोवा ने सब भविष्यवक्ताओं और सब दर्शियों के द्वारा इस्राएल और यहूदा को यह कह कर चिताया था...परंतु उन्होंने न माना' (वव.13-14, एम.एस.जी.)।
यही कारण था कि वे निर्वासन में चले गएः'पाप के कारण निर्वासन आयाः इस्राएल के बच्चों ने परमेश्वर के विरूद्ध पाप किया...इस्रालियों ने कपट करके अपने परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध अनुचित काम किए' (वव.7-9, एम.एस.जी.)।
'उन्होंने आस-पास के देशों के कामों की नकल की, यद्यपि परमेश्वर ने उन्हें आदेश दिया था कि, 'उनकी तरह काम न करना' (व.15)। बात न मानने के कारण इस्राएल के लोगों ने परमेश्वर की उपस्थिति को खो दिया और अश्शूर में उन्हें निर्वासन के लिए भेज दिया गयाः'अंत में यहोवा ने इस्राएल को अपने सामने से दूर कर दिया' (वव.20,23)।
हमारी तरह, कई बार वह अपने जीवन में पाप के विषय में क्रूर थेः'वे परमेश्वर का सम्मान और उनकी उपासना करते थे, लेकिन केवल यही नहीं करते थे...वे वास्तव में परमेश्वर की उपासना नहीं करते थे वे इस बात को गंभीरतापूर्वक नहीं लेते थे कि परमेश्वर किस तरह से उन्हें बर्ताव करने और क्या विश्वास करने के लिए कहते हैं' (वव.32,34 एम.एस.जी.)। 'तब भी उन्होंने नही माना, परंतु वे अपनी पुरानी रीति के अनुसार करते रहे' (व.40, एम.एस.जी.)।
जॉयस मेयर लिखती हैं, 'क्या आप कभी वह करने में लापरवाह हो जाते हैं जो परमेश्वर ने आपको करने के लिए कहा है, पाप को अपने जीवन में रेंगने देते हुए? हमारे शत्रु, शैतान को आपको पाप और अनज्ञाकारिता के बंधन में मत ले जाने दीजिए; यह केवल विनाश की ओर ले जाता है।'
विडंबना यह है कि परमेश्वर की उनके लिए इच्छा यह थी कि उन्हें आशीष दें। उन्होंने उन्हें आज्ञाएँ और निर्देश दिए थे ताकि वे फले-फूलें (व्यवस्थाविवरण 6:1-3देखे)। हम इसे इस्राएल और यहूदा के विभिन्न राजाओं की संपत्ति में देख सकते हैं। 1और 2राजाओं की पुस्तक के लेखक हमें पूर्ण मूल्यांकन देते हैं कि इस्राएल के प्रत्येक राजा ने परमेश्वर की दृष्टि में सही किया या नहीं। इस्राएल के हर राजा का वर्णन 'परमेश्वर की नजरों में बुरा करने' के रूप में किया गया है (2राजाओं 17:2), और इससे आरंभिक राज्य का विनाश होता है (व.8)।
इसके विपरीत, यहूदा के लगभग आधे राजाओं का वर्णन व्यापक रूप से सकारात्मक शब्दों में किया गया है, और लगभग आधे का वर्णन व्यापक रूप से नकारात्मक शब्दों में किया गया है। 'अच्छे' राजाओं के अंतर्गत यहूदा फला फूला, और इसका इतिहास इस्राएल की तुलना में बहुत बड़ा और अत्यधिक सकारात्मक है। 'अच्छे' राजाओं का राज्यकाल सामान्य रूप से 'बुरे' राजाओं की तुलना में अधिक था। बारह बुरे राजाओं ने कुल मिलाकर 130वर्ष राज्य किया, जबकि दस अच्छे राजाओं ने कुल 343 वर्ष राज्य किया। 'अच्छे' राजाओं ने भी सभी प्रकार की कठिनाईयों और चुनौतियों का सामना किया, और परमेश्वर के पीछे चलना एक सरल जीवन की गारंटी नहीं है। फिर भी उनका उदाहरण, परमेश्वर की बातें मानने और उनके पीछे चलने की बुद्धि और आशीषों को एक शक्तिशाली रूप से स्मरण दिलाता है।
प्रार्थना
परमेश्वर, मेरी सहायता करिए कि आपकी बातों को सावधानीपूर्वक सुनूं। मुझे गुप्त पापों से छुड़ाइए। होने दीजिए कि मैं सहायता मॉंगने में शीघ्र बनूं –मैं अपने जीवन में पाप को कभी रेंगने न दूं। मेरी सहायता करिए कि वह काम न करुँ जो मेरे आस-पास के लोग करते हैं। इसके बजाय, मेरी सहायता कीजिए कि आपकी आवाज को सुनूं, आपके पीछे चलूं और आपकी उपस्थिति का आनंद ले सकूं।
पिप्पा भी कहते है
2 राजाओं 17:41
'यहाँ तक कि जब यें लोग परमेश्वर की उपासना कर रहे थे, वे तब अपने देवताओं की सेवा कर रहे थे।'
कभी कभी जब हम चर्च में आराधना कर रहे होते हैं, मैं सोचना शुरु करती हूँ कि किसी का जूता कितना अच्छा है या दोपहर के भोजन के लिए मैं मछली बनाऊँ या मुर्गी!
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संदर्भ
अल्फर्ड मोंटापर्ट, डिस्टिल्ड विस्डम एन एनसायक्लोपिडिया ऑफ विस्डम इन कॉन्डेंस्ड फॉर्म, (प्रिन्टाइस हॉल, 1964,) पी.241
जॉयस मेयर, द एव्रीडे लाईफ बाईबल, (फेथवर्ड्स, 2013) पी.593
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।