क्यों और कैसे आराधना करे
परिचय
अपनी पुस्तक, दर्शन और प्रतिज्ञा, में पिट ग्रेग बताते हैं कि कैसे एक उल्लेखनीय कला के आलोचक, इटली के रेनेसेंस मास्टर फिलिपीनो लिपी के द्वारा अति उत्तम तस्वीर का अध्ययन कर रहे थे। वह लंदन के नॅशनल गॅलरी में पंद्रहवी शताब्दी की तस्वीर को खड़े होकर देख रहे थे, जिसे मरियम बालक यीशु को अपनी गोद में लिये है, और संत डोमनिक और जेरोम बगल में घुटनों पर बैठे हैं। लेकिन तस्वीर ने उन्हें परेशान किया। लिप्पी के हुनर में रंगो के उनके चुनाव या रचनामें कोई संदेह नहीं है। लेकिन तस्वीर का कुछ भाग थोड़ा गलत दिख रहा था। पीछे के दृश्य में पर्वत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाए गए दिखाई दे रहे थे, जैसे कि वे किसी भी समय ढाँचे में से निकलकर गॅलरी के फर्श पर लुढ़क जाएँगे। घुटनों पर बैठे हुए दो संत बेढंगे और असुविधाजन लग रहे थे।
कला आलोचक रॉबर्ट कुमींग, खराब दृष्टिकोण के लिए लीपी के काम की आलोचना करनेवाले पहले व्यक्ति नहीं थे, लेकिन ऐसा करनेवाले शायद से वह अंतिम व्यक्ति थे, क्योंकि उस समय उन्हें एक दर्शन मिल चुका था। अचानक से उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि शायद से परेशानी उनकी है। तस्वीर को एक गॅलरी के आसपास कही आने के लिए नहीं बनाया गया था। लिप्पी की तस्वीर प्रार्थना के एक स्थान में लटकाये जाने के लिए थी।
पब्लिक गॅलरी में तस्वीर के सामने सम्माननीय आलोचन अपने घटनों पर आ गए। अचानक उन्होंने वह देखा जिससे कला के आलोचकों की पीढ़ीयाँ चूक गई। उनके नए दृष्टिकोण से, रॉबर्ट कुमींग ने अपने आपको एक सिद्ध भाग को देखते हुए पाया। सामने का भाग प्राकृतिक रूप से पीछे के भाग में चला गया, जबकि संत बेढ़ंगेपन को सही कर चुके लग रहे थे, जैसे कि तस्वीर अनुग्रह में बदल गई हो। अब मरियम उद्देश्यपूर्वक और नम्रता से सीधे उनकी ओर देख रही थी जैसे ही वह संत डोमनिक और जेरोम के बीच घुटनो पर बैठे हुए थे।
इतने सालों से तस्वीर का दृष्टिकोण गलत नहीं था, बल्कि इसे देखनेवालों का दृष्टिकोण गलत था। घुटनों पर बैठे हुए रॉबर्ट कुमींग ने उस सुंदरता को पाया जो घमंडी कला आलोचक रॉबर्ट कुमींग नहीं पा सके। तस्वीर केवल उन लोगों के लिए जीवित हुई जो प्रार्थना में अपने घुटनों पर थे। सही दृष्टिकोण है, आराधना की अवस्था इस विश्व में ऐसी कोई वस्तु नहीं है।
भजन संहिता 84:8-12
8 सर्वशक्तिमान यहोवा परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुन!
याकूब के परमेश्वर तू मेरी सुन ले।
9 हे परमेश्वर, हमारे संरक्षक की रक्षा कर।
अपने चुने हुए राजा पर दयालु हो।
10 हे परमेश्वर, कहीं और हजार दिन ठहरने से
तेरे मन्दिर में एक दिन ठहरना उत्तम है।
दुष्ट लोगों के बीच वास करने से,
अपने परमेश्वर के मन्दिर के द्वार के पास खड़ा रहूँ यही उत्तम है।
11 यहोवा हमारा संरक्षक और हमारा तेजस्वी राजा है।
परमेश्वर हमें करूणा और महिमा के साथ आशीर्वद देता है।
जो लोग यहोवा का अनुसरण करते हैं
और उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, उनको वह हर उत्तम वस्तु देता है।
12 सर्वशक्तिमान यहोवा, जो लोग तेरे भरोसे हैं वे सचमुच प्रसन्न हैं!
समीक्षा
आराधना की आशीषों को खोजें
जो परमेश्वर की आराधना करने, उनके साथ एक नजदीकी संबंध में चलने और उनकी कृपादृष्टि का आनंद लेने के तुल्य हैं। भजनसंहिता के लेखक यह प्रार्थना करते हैं:'हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन...अपने अभिषिक्त का मुख देख' (वव.8-9)।
यह भजन परमेश्वर के निवासस्थान में उनकी आराधना करने के विषय में है (इस कालावधी में, यह यरूशलेम मंदिर था)। क्या ही धन्य है वे, जो तेरे भवन में रहते हैं, वे तेरी स्तुति निरंतर करते रहेंगे (व.4)।
भजनसंहिता के लेखक कहते हैं कि वह हजार दिन कहीं और बिताने के बजाय एक दिन परमेश्वर की उपिस्थति में बितायेंगेः'क्योंकि तेरे आँगनों का एक दिन, और कही और के हजार दिन से उत्तम है। दुष्टों के डेरों में वास करने से अपने परमेश्वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भाता है' (व.10, एम.एस.जी.)।
परमेश्वर की आराधना करना है, 'सूर्यप्रकाश' के रूप में उनका अनुभव करना (व.11, एम.एस.जी), जो हमें उनके प्रकाश से भर देते हैं, और एक 'ढ़ाल' जो हमें बुराई से बचाती है (व.11)।
वह इसके लिए प्रार्थना करते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि यह कितना अद्भुत हैः'यहोवा अनुग्रह करेगा, और महिमा देगा; और जो लोग खरी चाल चलते हैं, उनसे वह कोई अच्छी वस्तु रख न छोड़ेगा। हे सेनाओं के यहोवा, क्या ही धन्य है वह मनुष्य, जो तुझ पर भरोसा रखता है' (वव.11-12)।
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं आज आपकी आराधना करता हूँ। आपकी उपस्थिति में एक दिन, कही और हजार दिन से बेहतर हैं। मेरी सहायता करिए कि मैं निरंतर आप पर भरोसा करूँ और आपकी आराधना करुँ।
रोमियों 1:18-32
सबने पाप किया है
18 उन लोगों को जो सत्य की अधर्म से दबाते हैं, बुरे कर्मों और हर बुराई पर स्वर्ग से परमेश्वर का कोप प्रकट होगा। 19 और ऐसा हो रहा है क्योंकि परमेश्वर के बारे में वे पूरी तरह जानते है क्योंकि परमेश्वर ने इसे उन्हें बताया है।
20 जब से संसार की रचना हुई उसकी अदृश्य विशेषताएँ अनन्त शक्ति और परमेश्वरत्व साफ साफ दिखाई देते हैं क्योंकि उन वस्तुओं से वे पूरी तरह जानी जा सकती हैं, जो परमेश्वर ने रचीं। इसलिए लोगों के पास कोई बहाना नहीं।
21 यद्यपि वे परमेश्वर को जानते है किन्तु वे उसे परमेश्वर के रूप में सम्मान या धन्यवाद नहीं देते। बल्कि वे अपने बिचारों में निरर्थक हो गये। और उनके जड़ मन अन्धेरे से भर गये। 22 वे बुद्धिमान होने का दावा करके मूर्ख ही रह गये। 23 और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशवान मनुष्यों, चिड़ियाओं, पशुओं और साँपों से मिलती जुलती मूर्तियों में उन्होंने ढाल दिया।
24 इसलिए परमेश्वर ने उन्हें मन की बुरी इच्छाओं के हाथों सौंप दिया। वे दुराचार में पड़ कर एक दूसरे के शरीरों का अनादर करने लगे। 25 उन्होंने झूठ के साथ परमेश्वर के सत्य का सौदा किया और वे सृष्टि के बनाने वाले को छोड़ कर उसकी बनायी सृष्टि की उपासना सेवा करने लगे। परमेश्वर धन्य है। आमीन।
26 इसलिए परमेश्वर ने उन्हें तुच्छ वासनाओं के हाथों सौंप दिया। उनकी स्त्रियाँ स्वाभाविक यौन सम्बन्धों की बजाय अस्वाभाविक यौन सम्बन्ध रखने लगी। 27 इसी तरह पुरुषों ने स्त्रियों के साथ स्वाभाविक संभोग छोड़ दिया और वे आपस में ही वासना में जलने लगे। और पुरुष परस्पर एक दूसरे के साथ बुरे कर्म करने लगे। उन्हें अपने भ्रष्टाचार का यथोचित फल भी मिलने लगा।
28 और क्योंकि उन्होंने परमेश्वर को पहचानने से मना कर दिया सो परमेश्वर ने उन्हें कुबुद्धि के हाथों सौंप दिया। और ये ऐसे अनुचित काम करने लगे जो नहीं करने चाहिये थे। 29 वे हर तरह के अधर्म, पाप, लालच और वैर से भर गये। वे डाह, हत्या, लड़ाई-झगड़े, छल-छद्म और दुर्भावना से भरे हैं। वे दूसरों का सदा अहित सोचते हैं। वे कहानियाँ घड़ते रहते हैं। 30 वे पर निन्दक हैं, और परमेश्वर से घृणा करते हैं। वे उद्दण्ड हैं, अहंकारी हैं, बड़बोला हैं, बुराई के जन्मदाता हैं, और माता-पिता की आज्ञा नहीं मानते। 31 वे मुढ़, वचन-भंग करने वाले, प्रेम-रहित और निर्दय हैं। 32 चाहे वे परमेश्वर की धर्मपूर्ण विधि को जानते हैं जो बताती है कि जो ऐसी बातें करते हैं, वे मौत के योग्य हैं, फिर भी वे न केवल उन कामों को करते है, बल्कि वैसा करनेवालों का समर्थन भी करते हैं।
समीक्षा
केवल परमेश्वर की आराधना करें
जिसकी आप आराधना करते हैं उसकी तरह आप बनते जाते हैं। यदि हम व्यर्थहीन मूर्तियों की आराधना करेंगे, तो हमारा जीवन व्यर्थहीन हो जाएगा। यदि हम परमेश्वर की आराधना करेंगे, तो हम उनकी तरह बन जाएंगे।
इस लेखांश में पौलुस प्रेरित उसे प्रकट करते हैं जो विश्व में गलत हुआ है। परेशानी यह है कि मानवजाति ने ' सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य हैं' (व.25)।
निश्चित ही, परमेश्वर ने अपने आपको यहूदी देश पर प्रकट किया है। लेकिन उनके विषय में क्या जिन्होंने कभी भी सुसमाचार को नहीं सुना है? यहाँ पर पौलुस बताते हैं कि हम 'कोई बहाना नहीं दे सकते हैं' (व.20)।
परमेश्वर ने अपने आपको उनकी सृष्टि की हुई वस्तुओं में प्रकट किया हैः'इसलिये कि परमेश्वर के विषय का ज्ञान उनके मनों में प्रकट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रकट किया है। उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उसकी अनंत सामर्थ और दैवीय स्वभाव, जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं, यहाँ तक कि वे निरुत्तर हैं' (वव.19-20, एम.एस.जी.)।
परमेश्वर के प्रति यह ज्ञान केवल आधा और सीमित है। लेकिन, जैसा कि भजनसंहिता के लेखक इसे बताते हैं, 'आकाश परमेश्वर की महिमा का वर्णन कर रहा है; और आकाशमंडल उसकी हस्तकला को प्रकट कर रहा है' (भजनसंहिता 19:1)।
हमें केवल सृजे गए विश्व को देखना है और हम जान लेंगे कि अवश्य ही एक परमेश्वर हैं। विश्व की परेशानी यह है कि,परमेश्वर के इस ज्ञान के बावजूद, 'वे उनकी आराधना नहीं करते हैं' (रोमियो 1:21, एम.एस.जी)। 'उन्होंने ना तो परमेश्वर के रूप में उनकी महिमा की और नाही उनका धन्यवाद दिया' (व.21)। इसके बजाय,उन्होंने 'सृष्टि की उपासना और सेवा की' (व.25)।
इसलिए, पौलुस प्रेरित लिखते हैं, 'परमेश्वर ने उन्हें छोड़ दिया' (वव.24,26,28)। परमेश्वर ने हमें अपने रास्ते जाने दिया ताकि हम आखिरकार उन भयानक परिणामों से सीख जाएँ जो आने वाली थी। परमेश्वर की आराधना से मुड़ चुका जीवन आखिरकार व्यर्थ है। जैसा कि मैसेज अनुवाद इसे बताता है, यह 'ईश्वरहीन और प्रेमहीन है' (व.27,एम.एस.जी.)।
' जब उन्होंने परमेश्वर को पहचानना न चाहा, तो परमेश्वर ने भी उन्हें उनके निकम्मे मन पर छोड़ दिया कि वे अनुचित काम करें' (व.28, एम.एस.जी.)।
जैसे ही परमेश्वर की आराधना घटती जाती है, तो समाज की नैतिकता घटती जाती है, और इसके परिणामों को भोगती है। हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि जैसे ही हमारे देश में परमेश्वर की आराधना घटी है, वैसे ही इसके परिणामस्वरूप इस लेखांश में वर्णन की गई बहुत सी चीजें हुई हैं।
यदि आप सही दृष्टिकोण रखना चाहते हैं, तो अपनी आँखे यीशु पर केंद्रित रखें और आप अपने सृजनहार की निरंतर आराधना और सेवा करते रहे।
प्रार्थना
परमेश्वर, हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे समाज में एक बदलाव आये, सृष्टि की उपासना से लोग फिरकर, आपकी, सृजनहार की आराधना करें।
2 राजा 24:8-25:30
नबूकदनेस्सर यरूशलेम पर अधिकार करता है
8 यहोयाकीन जब शासन करने लगा तब वह अट्ठारह वर्ष का था। उसने यरूशलेम में तीन महीने तक शासन किया। उसकी माँ यरूशलेम के एलनातान की पुत्री नहुश्ता थी। 9 यहोयाकीन ने उन कामों को किया जिन्हें यहोवा ने बुरा बताया था। उसने वे ही सब काम किये जो उसके पिता ने किये थे।
10 उस समय बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के अधिकारी यरूशलेम आए उसे घेर लिया। 11 तब बाबेल का राजा नबूकदनेस्सर नगर में आया। 12 यहूदा का राजा यहोयाकीन बाबेल के राजा से मिलने बाहर आया। यहोयाकीन की माँ, उसके अधिकारी, प्रमुख और अन्य अधिकारी भी उसके साथ गये। तब बाबेल के राजा ने यहोयाकीन को बन्दी बना लिया। यह नबूकदनेस्सर के शासनकाल का आठवाँ वर्ष था।
13 नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम से यहोवा के मन्दिर का सारा खजाना और राजमहल का सारा खजाना ले लिया। नबूकदनेस्सर ने उन सभी स्वर्ण—पात्रों को टुकड़ों में काट डाला जिन्हें इस्राएल के राजा सुलैमान ने यहोवा के मन्दिर में रखा था। यह वैसा ही हुआ जैसा यहोवा ने कहा था।
14 नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम के सभी लोगों को बन्दी बनाया। उसने सभी प्रमुखों और अन्य धनी लोगों को बन्दी बना लिया। उसने दस हज़ार लोगों को पकड़ा और उन्हें बन्दी बनाया। नबूकदनेस्सर ने सभी कुशल मजदूरों और कारीगरों को ले लिया। कोई व्यक्ति, साधारण लोगों में सबसे गरीब के अतिरिक्त, नहीं छोड़ा गया। 15 नबूकदनेस्सर, यहोयाकीन को बन्दी के रूप में बाबेल ले गया। नबूकदनेस्सर राजा की माँ, उसकी पत्नियों, अधिकारी और देश के प्रमुख लोगों को भी ले गया। नबूकदनेस्सर उन्हें यरूशलेम से बाबेल बन्दी के रूप में ले गया। 16 बाबेल का राजा सारे सात हज़ार सैनिक और एक हज़ार कुशल मजदूर और कारीगर भी ले गया। ये सभी व्यक्ति प्रशिक्षित सैनिक थे और युद्ध में लड़ सकते थे। बाबेल का राजा उन्हें बन्दी के रूप में बाबेल ले गया।
राजा सिदकिय्याह
17 बाबेल के राजा ने मत्तन्याह को नया राजा बनाया। मत्तन्याह यहोयाकीन का चाचा था। बाबेल के राजा ने मत्तन्याह का नाम बदलकर सिदकिय्याह रख दिया। 18 सिदकिय्याह ने जब शासन करना आरम्भ किया तो वह इक्कीस वर्ष का था। उसने ग्यारह वर्ष यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ लिब्ना के यिर्मयाह की पुत्री हमूतल थी। 19 सिदकिय्याह ने वे काम किये जिन्हें यहोवा ने बुरा बताया था। सिदकिय्याह ने वे ही सारे काम किये जो यहोयाकीम ने किये थे। 20 यहोवा यरूशलेम और यहूदा पर इतना क्रोधित हुआ कि उसने उन्हें दूर फेंक दिया।
नबूकदनेस्सर, द्वारा सिदकिय्याह के शासन की समाप्ति
सिदकिय्याह ने बाबेल के राजा के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और उसकी आज्ञा मानने से इन्कार कर दिया।
25अतः बाबेल का राजा नबूकदनेस्सर अपनी सारी सेना के साथ यरूशलेम के विरूद्ध युद्ध करने आया। सिदकिय्याह के राज्य के नौवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन यह घटित हुआ। नबूकदेनस्सर ने यरूशलेम के चारों ओर डेरा डाला। उसने यह कार्य यरूशलेम के लोगों को बाहर से भीतर, और भीतर से बाहर आने जाने से रोकने के लिये किया। तब उन्होंने यरूशलेम के चारों ओर मिट्टी की दीवार खड़ी की।
2 नबूकदनेस्सर की सेना यरूशलेम के चारों ओर सिदकिय्याह के यहूदा में शासनकाल के ग्यारहवें वर्ष तक बनी रही। 3 नगर में भुखमरी की स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी। चौथे महीने के नौवें दिन साधारण लोगों के लिये कुछ भी भोजन नहीं रह गया था।
4 नबूकदनेस्सर की सेना ने नगर प्राचीर में एक छेद बनाया। उस रात को राजा सिदकिय्याह और उसके सारे सैनिक भाग गए। वे राजा के बाग के सहारे दो दीवारों के द्वार से बच निकले। बाबेल की सेना नगर के चारों ओर थी। किन्तु सिदकिय्याह और उसकी सेना मरूभूमि की ओर की सड़क पर भाग निकले। 5 बाबेल की सेना ने सिदकिय्याह का पीछा किया और उसे यरीहो के पास पकड़ लिया। सदिकिय्याह की सारी सेना भाग गई और उसे अकेला छोड़ दिया।
6 बाबेल सिदकिय्याह को रिबला में बाबेल के राजा के पास ले गये। बाबेल के राजा ने सिदकिय्याह को दण्ड देने का निर्णय किया। 7 उन्होंने सिदकिय्याह के सामने उसके पुत्रों को मार डाला। तब उन्होंने सिदकिय्याह की आँखें निकाल लीं। उन्होंने उसे जंजीर में जकड़ा और उसे बाबेल ले गए।
यरूशलेम नष्ट कर दिया गया
8 नबूकदनेस्सर के बाबेल के शाशनकाल के उन्नीसवें वर्ष के पाँचवें महीने के सातवें दिन नबूजरदान यरूशलेम आया। नबूकदनेसर के अंगरक्षकों का नायक नबूजरदान था। 9 नबूजरदान ने यहोवा का मन्दिर और राजमहल जला डाला। नबूजरदान ने यरूशलेम के सभी घरों को भी जला डाला। उसने बड़ी से बड़ी इमारतों को भी नष्ट किया।
10 तब नबूजरदान के साथ जो बाबेल की सेना थी उसने यरूशलेम के चारों ओर की दीवारों को गिरा दिया 11 और नबूजरदान ने उन सभी लोगों को पकड़ा जो तब तक नगर में बचे रह गए थे। नबूजरदान ने सभी लोगों को बन्दी बना लिया और उन्हें भी जिन्होंने आत्मसमपर्ण करने की कोशिश की। 12 नबूजरदान ने केवल साधारण व्यक्तियों में सबसे गरीब लोगों को वहाँ रहने दिया। उसने उन गरीब लोगों को वहाँ अंगूर और अन्य फसलों की देखभाल के लिये रहने दिया।
13 बाबल के सैनिकों ने यहोवा के मन्दिर के काँसे की वस्तुओं के टुकड़े कर डाले। उन्होंने काँसे के स्तम्भों, काँसे की गाड़ी को और काँसे के विशाल सरोवर के भी टुकड़े कर डाले, तब बाबेल के सैनिक उन काँसे के टुकड़ों को बाबेल ले गए। 14 कसदियों ने बर्तन, बेलचे, दीप—झारु चम्मच और काँसे के बर्तन जो यहोवा के मन्दिर में काम आती थी, को भी ले लिया। 15 नबूजरदान ने सभी कढ़ाहियों और प्यालों को ले लिया। उसने जो सोने के बने थे उन्हें सोने के लिये और चाँदी के बने थे उन्हें चाँदी के लिये लिया। 16-17 जो चीज़ें उसने लीं उनकी सूची यह है:दो काँसे के स्तम्भ, एक हौज और वह गाड़ी जिसे सुलैमान ने यहोवा के मन्दिर के लिये बनाया था।इन चीज़ों में लगा काँसा इतना भारी था कि उसे तोला नहीं जा सकता था। (हर एक स्तम्भ लगभग सत्ताईस फुट ऊँचा था। स्तम्भों के शीर्ष काँसे के बने थे। हर एक शीर्ष साढ़े चार फुट ऊँचा था। हर एक शीर्ष पर जाल और अनार का नमूना बना था। इसका सब कुछ काँसे का बना था। दोनों स्तम्भों पर एक ही प्रकार की आकृतियाँ थीं।
बन्दी बनाए गए यहूदा के लोग
18 तब नबूजरदान ने मन्दिर से महायाजक सरायाह, द्वितीय याजक सपन्याह और तीन द्वार रक्षकों को लिया।
19 नगर में नबूजरदान ने एक अधिकारी को लिया। वह सेना का सेनापति था। नबूजरदान ने राजा के पाँच सलाहकारों को भी लिया जो नगर में पाए गए और उसने सेनापति के सचिव को लिया। सेनापति का सचिव वह व्यक्ति था जो साधारण लोगों की गणना करता था और उनमें से कुछ को सैनिक के रूप में चुनता था। नबूजरदान ने साठ अन्य लोगों को भी लिया जो नगर में पाए गए।
20-21 तब नबूजरदान इन सभी लोगों को रिबला में बाबेल के राजा के पास ले गया। बाबेल के राजा ने हमात देश के रिबला में इन्हें मार डाला। इस प्रकार यहूदा के लोगों को कैदी बनाकर उन्हें, उनके देश से निर्वासित किया गया।
नबूकदनेस्सर गदल्याह को यहूदा का शासक बनाता है
22 बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने यहूदा देश में कुछ लोगों को छोड़ा। उसने अहीकाम के पुत्र गदल्याह को यहूदा के उन लोगों का शासक बनाया। अहीकाम शापान का पुत्र था।
23 जब सेना के सभी सेनापतियों और आदमियों ने सुना की बाबेल के राजा ने गदल्याह को शासक बनाया है तो वे गदल्याह के पास मिस्पा में आए। ये सेना के सेनापति नतन्याह का पुत्र इश्माएल, कारेहू का पुत्र योहानान, नतोपाई तन्हू मेत का पुत्र सरायाह तथा माकाई का पुत्र याजन्याह थे। 24 तब गदल्याह ने इन सेना के सेनापतियों और उनके आदमियों को वचन दिया। गदल्याह ने उनसे कहा, “बाबेल के अधिकारियों से डरो नहीं। इस देश में रहो और बाबेल के राजा की सेवा करो। तब तुम्हारे साथ सब कुछ ठीक रहेगा।”
25 किन्तु सातवें महीने राजा के परिवार का एलीशामा का पौत्र व नतन्याह का पुत्र इश्माएल दस पुरुषों के साथ आया और गदल्याह को मार डाला। इश्माएल और उसके दस आदमियों ने मिस्पा में गदल्याह के साथ जो यहूदी और कसदी थे, उन्हें भी मार डाला। 26 तब सभी लोग सबसे कम महत्वपूर्ण और सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथा सेना के नायक मिस्र को भाग गए। वे इसलिये भागे कि वे कसदियों से भयभीत थे।
27 बाद में राजा एवील्मरोदक यहूदा का राजा बना। उसने यहोयाकीन को बन्दीगृह से निकलने दिया। यह यहूदा के राजा यहोयाकीन के बन्दी बनाये जाने के सैंतीसवे वर्ष में हुआ। यह एवील्मरोदक के शासन आरम्भ करने के बारहवें महीने के सत्ताईसवें दिन हुआ। 28 एवील्मरोदक ने यहोयाकीन से दयापूर्वक बातें कीं। एवील्मरोदक ने यहोयाकीन को बाबेल में रहने वाले उसके सभी साथी राजाओं से अधिक उच्च स्थान प्रदान किया। 29 एवील्मरोदक ने यहोयाकीन के बन्दीगृह के वस्त्रों को पहनना बन्द करवाया। यहोयाकीन ने एवील्मरोदक के साथ एक ही मेज पर खाना खाया। उसने अपने शेष जीवन में हर एक दिन ऐसा ही किया। 30 इस प्रकार राजा एवील्मरोदक ने यहोयाकीन को जीवन पर्यन्त नियमित रूप से प्रतिदिन का भोजन प्रदान किया।
समीक्षा
आराधना में सुधार के लिए प्रार्थना करें
जब हम अपने समाज की ओर देखते हैं, तो कभी कभी लग सकता है कि हम एक प्रकार के निर्वासन में हैं। ऐसा लग सकता है कि चर्च टूट रहा है। इस लेखांश में, हम देखते हैं कि परमेश्वर के लोग भूतकाल में उदासी के समय से गुजरे थे। हम देखते हैं कि यहाँ पर भविष्य के लिए आशा हे।
जैसे ही राजाओं की पुस्तक का समापन होता है, हमने एक देश के भयानक परिणामों के विषय में पढ़ा है, जो ठीक वैसा ही जैसा कि पौलुस प्रेरित ने आज के लिए हमारे नये नियम के लेखांश में वर्णन किया है। वे परमेश्वर की उपासना छोड़कर मूर्तियों की उपासना करने लगे (सृष्टि की हुई वस्तुऍं)।
इसके परिणामस्वरूप, हम यरुशलेम और इसके मंदिर के विनाश को और लोगों को निर्वासन में जाते हुए देखते हैं।
जब यहोयाकीन राजा बना (597बी.सी), 'बेबीलोन के राजा नबूकदनेसर के कर्मचारियों ने यरुशलेम पर चढ़ाई करके नगर को घेर लिया' (24:10)। लोगों के लीडर्स को बंदी बना लिया गया (व.14)।
बेबीलोन के राजा ने अगले राजा को नियुक्त किया। सिदकिय्याह (597-587 बी.सी) कोई बेहतर राजा नहीं था और चीजें बुरी से बदतर हो गई, जैसे ही नबूकदनेसर ने फिर से यरूशलेम पर चढ़ाई की (अध्याय 25)। इस बार परिणाम और भी विनाशकारी था। नबूकदनेसर ने 'यहोवा के भवन और राजभवन और यरुशलेम के सब घरों को अर्थात् हर एक बड़े घर को आग लगाकर फूँक दिया' (25:9)। लोगों को 'बंदी बना लिया गया' (व.11), 'इस प्रकार यहूदी बंदी बनके अपने देश से निकाल दिए गए' (व.21, एम.एस.जी.)।
हमें बताया गया है, 'क्योंकि यहोवा के कोप के कारण यरूशलेम और यहूदा की ऐसी दशा हुई, कि अंत में उसने उनको अपने सामने से दूर किया' (24:20)।
इन सभी चीजों को यिर्मयाह और यहेजकेल की पुस्तक के साथ-साथ पढ़ना चाहिए – दो भविष्यवक्ता जो इस समय भविष्यवाणी कर रहे थे। (विशेषरूप से यिर्मयाह 13:8, अध्याय 39 और 52, यहेजकेल 12 और 24)। परमेश्वर के लोगों के लिए सबसे बड़ा नुकसान था मंदिर का विनाश। यह वह स्थान था जहाँ पर उन्होंने परमेश्वर की आराधना की और उनकी उपस्थिति का अनुभव किया। अब वे उनकी उपस्थिति के लिए 'प्यासे' थे (2राजाओं 24:20)। यह बंदी बनाये जाने का बदतर प्रभाव था।
फिर भी, राजाओं की पुस्तक का अंत आशा की एक छोटी सी किरण के साथ होता है। फिर यहूदा के राजा यहोयाकीन की कैद के तैंतीसवे वर्ष में, उन्हें बंदीगृह से मुक्त कर दिया गया (25:27)। उन्हें नित्य राजा के सम्मुख भोजन करने के लिए आमंत्रित किया गया (व.29)। कैद सर्वदा के लिए नहीं थी। यहाँ पर आने वाली बेहतर चीजों की आशा का एक उद्देश्य है। परमेश्वर के लोग कैद से मुक्त होंगे और फिर से मंदिर को बनायेंगे और फिर से परमेश्वर की उपस्थिति और परमेश्वर की आराधना का आनंद लेना शुरु करेंगे।
प्रार्थना
परमेश्वर, सुधार और पुनर्जीवन के लिए हम आपको पुकारते हैं। क्या आप इस देश में अपने चर्च को सुधारेंगे। फिर से हमें पुनर्जीवित करेंगे। होने दीजिए कि आपका देश आपकी ओर फिरे, फिर से आपकी आराधना करना शुरु करे, आपकी उपस्थिति का आनंद ले और आपके सामने अपने घुटनों पर, सही दृष्टिकोण से चीजों को देखे।
पिप्पा भी कहते है
भजनसंहिता 84:11ब
'जो लोग खरी चाल चलते हैं, उनसे वह कोई अच्छी वस्तु रख न छोड़ेगा'
मैं इस बात पर मनन कर रही थी। यह एक अद्भुत चीज है कि 'कोई अच्छी चीज (परमेश्वर) अपने पास रख नहीं लेते हैं।' लेकिन कभी कभी मैं चाहती हूँ कि यह कहे, 'जो लोग बहुत बुरा नहीं कर रहे हैं' क्योंकि 'खरी चाल चलना' बहुत ऊँचा स्तर लगता है। इसीलिए हमें क्रूस की आवश्यकता है, क्योंकि हम अपने आपसे इसे नहीं कर सकते हैं।
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संदर्भ
पीट ग्रेग, दर्शन और प्रतिज्ञा (किंग्सवे पब्लिकेशन, 2005) पीपी.17-18
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।