दूसरा अवसर देने वाले परमेश्वर
परिचय
'दूसरा जीवन' अपना वर्णन ऐसे एक स्थान के रूप में करता है जहाँ 'संपर्क, खरीदारी, काम, प्रेम, खोज करते हैं, अलग बनते हैं, स्वयं बनते हैं, अपने आपको स्वत्रंत करते हैं, अपने आपको बदलते हैं, अपने दिमाग को बदलते हैं, अपने रूप को बदलते हैं, अपने रूप से प्रेम करते हैं, अपने जीवन से प्रेम करते हैं।'
'दूसरा जीवन' यह लगभग वैसा ही जीवन है। बीस लाख से अधिक लोगों ने दूसरा जीवन चरित्र का निर्माण किया है, जिसके द्वारा वे इस नये विश्व में जी सकते हैं। वे जीवन में दूसरे मौके को खोज रहे हैं।
यह नया विश्व एक नई शुरुवात के लिए बहुतों की लालसा का यह स्पष्ट प्रमाण है। फिर भी, वास्तव में, परमेश्वर, दूसरा मौका और तीसरा मौका, और चौथा, और पाँचवा, छठा बहुत बहुत से मौके देने वाले परमेश्वर हैं। फिर से उनकी ओर मुड़ने और उनके प्रेम का आनंद लेने के लिए वह हमें अनगिनत मौके देते हैं। परमेश्वर सिर्फ हमें 'दूसरा जीवन' नहीं देते हैं – वह हमारे पास आते हैं और हमारे असली जीवन को बदलते हैं।
भजन संहिता 85:1-7
संगीत निर्देशक के लिये कोरह वंशियों का एक स्तुति गीत।
85हे यहोवा, तू अपने देश पर कृपालु हो।
विदेश में याकूब के लोग कैदी बने हैं। उन बंदियों को छुड़ाकर उनके देश में वापस ला।
2 हे यहोवा, अपने भक्तों के पापों को क्षमा कर।
तू उनके पाप मिटा दे।
3 हे यहोवा, कुपित होना त्याग।
आवेश से उन्मत मत हो।
4 हमारे परमेश्वर, हमारे संरक्षक, हम पर तू कुपित होना छोड़ दे
और फिर हमको स्वीकार कर ले।
5 क्या तू सदा के लिये हमसे कुपित रहेगा?
6 कृपा करके हमको फिर जिला दे!
अपने भक्तों को तू प्रसन्न कर दे।
7 हे यहोवा, तू हमें दिखा दे कि तू हमसे प्रेम करता है।
हमारी रक्षा कर।
समीक्षा
एक नई शुरुवात कीजिए
हममें से बहुतों की तरह, भजनसंहिता के लेखक जीवन में एक नई शुरुवात का अवसर चाहते हैं। वह परमेश्वर को पुकारते हैं, 'एक नई शुरूवात करने में हमारी सहायता कीजिए' (व.6, एम.एस.जी.)।
परमेश्वर अस्पष्ट विचारों वाले नहीं हैं। वह पाप से नफरत करते हैं। एक सत्यनिष्ठ क्रोध होता है (व.5)। यह परमेश्वर के प्रेम का एक पहलू है। लेकिन भजनसंहिता के लेखक जानते हैं कि सत्यनिष्ठ क्रोध परमेश्वर के असफल न होने वाले प्रेम के विपरीत नहीं है, और इस भजन में हम दोनों को एक-एक करके देखते हैं।
परमेश्वर क्षमा करते हैं:'तू ने अपनी प्रजा के पाप को क्षमा किया है; और उसके सब पापों को ढाँक दिया है...तू ने अपने रोष को शांत किया है, और अपने भड़के हुए कोप को दूर किया है' (वव.2-3, एम.एस.जी)।
जब आप परमेश्वर की ओर मुड़ते हैं तब वह अपने 'अनंत प्रेम' के द्वारा आपको सुधारते और पुनर्जीवित करते हैं (व.7)। भजनसंहिता के लेखक कहते हैं, 'हम को पुन:स्थापित कर...क्या तू हम को फिर न जिलाएगा' (वव.4-6)।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आप हमें बहुत से मौके देते हैं। मुझे फिर से स्थापित करिए और जिलाइए, ताकि मैं आपमें आनंद मनाऊँ।
रोमियों 2:1-16
तुम लोग भी पापी हो
2सो, न्याय करने वाले मेरे मित्र तू चाहे कोई भी है, तेरे पास कोई बहाना नहीं है क्योंकि जिस बात के लिये तू किसी दूसरे को दोषी मानता है, उसी से तू अपने आपको भी अपराधी सिद्ध करता है क्योंकि तू जिन कर्मों का न्याय करता है उन्हें आप भी करता है। 2 अब हम यह जानते हैं कि जो लोग ऐसे काम करते हैं उन्हें परमेश्वर का उचित दण्ड मिलता है। 3 किन्तु हे मेरे मित्र क्या तू सोचता है कि तू जिन कामों के लिए दूसरों को अपराधी ठहराता है और अपने आप वैसे ही काम करता है तो क्या तू सोचता है कि तू परमेश्वर के न्याय से बच जायेगा। 4 या तू उसके महान अनुग्रह, सहनशक्ति और धैर्य को हीन समझता है? और इस बात की उपेक्षा करता है कि उसकी करुणा तुझे प्रायश्चित्त की तरफ़ ले जाती है।
5 किन्तु अपनी कठोरता और कभी पछतावा नहीं करने वाले मन के कारण उसके क्रोध को अपने लिए उस दिन के वास्ते इकट्ठा कर रहा है जब परमेश्वर का सच्चा न्याय प्रकट होगा। 6 परमेश्वर हर किसी को उसके कर्मों के अनुसार फल देगा। 7 जो लगातार अच्छे काम करते हुए महिमा, आदर और अमरता की खोज में हैं, उन्हें वह बदले में अनन्त जीवन देगा। 8 किन्तु जो अपने स्वार्थीपन से सत्य पर नहीं चल कर अधर्म पर चलते हैं उन्हें बदले में क्रोध और प्रकोप मिलेगा। 9 हर उस मनुष्य पर दुःख और संकट आएंगे जो बुराई पर चलता है। पहले यहूदी पर और फिर ग़ैर यहूदी पर। 10 और जो कोई अच्छाई पर चलता है उसे महिमा, आदर और शांति मिलेगी। पहले यहूदी को और फिर ग़ैर यहूदी को 11 क्योंकि परमेश्वर किसी का पक्षपात नहीं करता।
12 जिन्होंने व्यवस्था को पाये बिना पाप किये, वे व्यवस्था से बाहर रहते हुए नष्ट होंगे। और जिन्होंने व्यवस्था में रहते हुए पाप किये उन्हें व्यवस्था के अनुसार ही दण्ड मिलेगा। 13 क्योंकि वे जो केवल व्यवस्था की कथा सुनते हैं परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी नहीं है। बल्कि जो व्यवस्था पर चलते है वे ही धर्मी ठहराये जायेंगे।
14 सो जब ग़ैर यहूदी लोग जिनके पास व्यवस्था नहीं है स्वभाव से ही व्यवस्था की बातों पर चलते हैं तो चाहे उनके पास व्यवस्था नहीं है तो भी वे अपनी व्यवस्था आप हैं। 15 वे अपने मन पर लिखे हुए, व्यवस्था के कर्मों को दिखाते हैं। उनका विवेक भी इसकी ही साक्षी देता है और उनका मानसिक संघर्ष उन्हें अपराधी बताता है या निर्दोष कहता है।
16 ये बातें उस दिन होंगी जब परमेश्वर मनुष्य की छूपी बातों का, जिसका मैं उपदेश देता हूँ उस सुसमाचार के अनुसार यीशु मसीह के द्वारा न्याय करेगा।
समीक्षा
जीवन में मूलभूत बदलाव का आनंद लें
परमेश्वर आपसे प्रेम करते हैं। वह आपके जीवन के लिए सर्वश्रेष्ठ चाहते हैं। वह नहीं चाहते हैं कि आप अपना जीवन खराब कर लें। पाप हमें 'एक अंधेरे यानि नीचे के रास्ते पर' ले जाता है (व.1, एम.एस.जी.)। परमेश्वर दयालु हैं, लेकिन वह कोमल नहीं हैं। अपनी दयालुता में वह अपने हाथों से हमें दृढ़ करते हैं और हमारे जीवन में बदलाव लाते हैं (व.4, एम.एस.जी)।
पौलुस परमेश्वर के 'क्रोध' के बारे में बताते हैं (वव.5-8)। पाप के विरूद्ध यह परमेश्वर का प्रेमी, सत्यनिष्ठ क्रोध है। लेकिन पौलुस परमेश्वर के 'क्रोध' से शुरुवात नहीं करते हैं। वह 'उनकी दयालुता, सहनशीलता और धीरज के साथ' शुरुवात करते हैं (व.4)। परमेश्वर प्रेम हैं। उनका क्रोध उनके लिए अंतिम स्थान है – जो 'स्वार्थी हैं और जो सत्य को नकारते और बुराई के पीछे जाते हैं' (व.8)।
परमेश्वर सभी से प्रेम करते हैं। वह 'पक्षपात नहीं दिखाते हैं' (व.11)। वह यहूदी और युनानी दोनों को एक समान प्रेम करते हैं। परमेश्वर पक्षपात नहीं करते हैं। वह एक सत्यनिष्ठ न्यायी हैं।
हम सभी ने पाप किया है और निरूत्तर हैं:' जिस बात में तू दूसरे पर दोष लगाता है उसी बात में अपने आप को भी दोषी ठहराता है, इसलिये कि तू जो दोष लगाता है स्वयं ही वह काम करता है' (व.1, एम.एस.जी.)।
दूसरों पर दोष लगाना बहुत आसान बात है, उन चीजों के लिए जो हम खुद करते हैं। हम अपने आपको एक सूक्ष्मदर्शी चश्मे से देखते हैं और दूसरों को एक बड़ा करके दिखाने वाले चश्मे से देखते हैं। एक दोष लगाने वाला दिमाग इस बात पर अधिक ध्यान देता है कि दूसरों में क्या गलत है, इसके बजाय कि क्या सही है।
पुराने नियम के आरंभिक पाँच पुस्तक परमेश्वर के साथ उनके लोगों के संबंध को स्थापित करते हैं और निर्देश देते हैं कि किस प्रकार जीना है। लेकिन 'सिर्फ परमेश्वर की व्यवस्था को सुनना समय बरबाद करना है यदि आप उनकी आज्ञाओं को करते नहीं हैं' (व.13, एम.एस.जी.)। इसलिए हम सब का न्याय इस बात से किया जाएगा कि हम क्या जानते हैं। कुछ के लिए, यह परमेश्वर का नियम होगा, दूसरों के लिए उनका खुद का विवेक'वे व्यवस्था की बातें अपने अपने हृदयों में लिखी हुई दिखाते हैं और उनके विवेक भी गवाही देते हैं, और उनके विचार परस्पर दोष लगाते या उन्हें निर्दोष ठहराते हैं' (व.15, एम.एस.जी.)।
हम सभी को मन फिराने की आवश्यकता है। परमेश्वर की दयालुता हमसे मन फिराव करवाने के लिए है। जिस क्षण आप मन फिराते हैं और परमेश्वर की ओर फिरते हैं, तब आपको दूसरा मौका मिलता है, एक नये जीवन की संभावना। मन फिराव केवल पाप से मुड़ना नहीं है, लेकिन परमेश्वर की ओर मुडना है।
प्रार्थना
परमेश्वर, मुझे ऐसे समयों के लिए क्षमा कीजिए जब मैंने दूसरों पर दोष लगाया। आपका धन्यवाद क्योंकि हर दिन एक नई शुरुवात, दूसरे मौके के लिए एक अवसर है।
योना 1:1-4:11
परमेश्वर का बुलावा और योना का भागना
1अमित्तै के पुत्र योना से यहोवा ने कहा। यहोवा ने कहा, 2 “नीनवे एक बड़ा नगर है। वहाँ के लोग जो पाप कर्म कर रहे हैं, उनमें बहुत से कुकर्मों के बारे में मैंने सुना है। इसलिये तू उस नगर में जा और वहाँ के लोगों को बता कि वे उन बुरे कर्मों का करना त्याग दें।”
3 योना परमेश्वर की बातें नहीं मानना चाहता था, सो योना ने यहोवा से कहीं दूर भाग जाने का प्रयत्न किया। सो योना यापो की ओर चला गया। योना ने एक नौका ली जो सुदूर नगर तर्शीश को जा रही थी। योना ने अपनी यात्रा के लिये धन दिया और वह नाव पर जा चढ़ा। योना चाहता था कि इस नाव पर वह लोगों के साथ तर्शीश चला जाये और यहोवा से कहीं दूर भाग जाये।
भयानक तूफान
4 किन्तु यहोवा ने सागर में एक भयानक तूफान उठा दिया। आँधी से सागर में थपेड़े उठने लगे। तूफान इतना प्रबल था कि वह नाव जैसे बस टूक टूक होने जा रही थी। 5 लोग चाहते थे कि नाव को डूबने से बचाने के लिये उसे कुछ हलका कर दिया जाये। सो वे नाव के सामान को उठाकर समुद्र में फेंकने लगे। मल्लाह बहुत डरे हुए थे। हर व्यक्ति अपने अपने देवता से प्रार्थना करने लगा।
योना सोने के लिये नीचे चला गया था। योना सो रहा था। 6 नाव के प्रमुख खिवैया ने योना को इस रूप में देख कर कहा, “उठ! तू क्यों सो रहा है अपने देवता से प्रार्थना कर! हो सकता है, तेरा देवता तेरी प्रार्थना सुन ले और हमें बचा ले!”
यह तूफान क्यों आया
7 लोग फिर आपस में कहने लगे, “हमें यह जानने के लिये कि हम पर ये विपत्तियाँ किसके कारण पड़ रही हैं, हमें पासे फेंकने चाहियें।”
सो लोगों ने पासे फेंके। पासों से यह प्रकट हुआ कि यह विपत्ति योना के कारण आई है। 8 इस पर लोगों ने योना से कहा, “यह किसका दोष है, जिसके कारण यह विपत्ति हम पर पड़ रही है! सो तूने जो किया है, उसे तू हमें बता। हमें बता तेरा काम धन्धा क्या है तू कहाँ से आ रहा है तेरा देश कौन सा है तेरे अपने लोग कौन हैं”
9 योना ने लोगों से कहा, “मैं एक हीब्रू (यहूदी) हूँ और स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा की उपासना करता हूँ। वह वही परमेश्वर है, जिसने सागर और धरती को रचा है।”
10 योना ने लोगों से कहा कि, वह यहोवा से दूर भाग रहा है। जब लोगों को इस बात का पता चला, तो वह बहुत अधिक डर गये। लोगों ने योना से पूछा, “तूने अपने परमेश्वर के विरूद्ध क्या बुरी बात की है”
11 उधर आँधी तूफान और समुद्र की लहरें प्रबल से प्रबलतर होती चली जा रही थीं। सो लोगों ने योना से कहा, “हमें अपनी रक्षा के लिये क्या करना चाहिये समुद्र को शांत करने के लिये तेरे साथ क्या करना चाहिये”
12 योना ने लोगों से कहा, “मैं जानता हूँ कि मेरे कारण ही समुद्र में यह तूफान आया है। सो तुम लोग मुझे समुद्र में फेंक दो। इससे तूफान शांत हो जायेगा।”
13 किन्तु लोग योना को समुद्र में फेंकना नहीं चाहते थे। लोग नाव को तट पर वापस लाने के लिये, उसे खेने का प्रयत्न करने लगे। किन्तु वे वैसा नहीं कर पाये, क्योंकि आँधी, तूफान और सागर की लहरें बहुत शक्तिशाली थीं और वे प्रबल से प्रबल होती चली जा रही थीं!
योना का दण्ड
14 सो लोगों ने यहोवा को पुकारते हुए कहा, “हे यहोवा, इस पुरूष को हम इसके उन बुरे कामों के लिए समुद्र में फेंक रहे हैं, जो इसने किये हैं। कृपा कर के, तू हमें किसी निरपराध व्यक्ति का हत्यारा मत कहना। इसके वध के लिये तू हमें मत मार डालना। हम जानते हैं कि तू यहोवा है और तू जैसा चाहेगा, वैसा ही करेगा। किन्तु कृपा करके हम पर दयालु हो।”
15 सो लोगों ने योना को समुद्र में फेंक दिया। तूफान रूक गया, सागर शांत हो गया! 16 जब लोगों ने यह देखा, तो वे यहोवा से डरने लगे और उसका सम्मान करने लगे। लोगों ने एक बलि अर्पित की, और यहोवा से विशेष मन्नते माँगी।
17 योना जब समुद्र में गिरा, तो यहोवा ने योना को निगल जाने के लिये एक बहुत बड़ी मछली भेजी। योना तीन दिन और तीन रात तक उस मछली के पेट में रहा।
2योना जब मछली के पेट में था, तो उसने अपने परमेश्वर यहोवा की प्रार्थना की। योना ने कहा,
2 “मैं गहरी विपत्ति में था।
मैंने यहोवा की दुहाई दी
और उसने मुझको उत्तर दिया!
मैं गहरी कब्र के बीच था हे यहोवा,
मैंने तुझे पुकारा
और तूने मेरी पुकार सुनी!
3 “तूने मुझको सागर में फेंक दिया था।
तेरी शक्तिशाली लहरों ने मुझे थपेड़े मारे मैं सागर के बीच में,
मैं गहरे से गहरा उतरता चला गया।
मेरे चारों तरफ बस पानी ही पानी था।
4 फिर मैंने सोचा,
‘अब मैं, जाने को विवश हूँ, जहाँ तेरी दृष्टि मुझे देख नहीं पायेगी।”
किन्तु मैं सहायता पाने को तेरे पवित्र मन्दिर को निहारता रहूँगा।
5 “सागर के जल ने मुझे निगल लिया है।
पानी ने मेरा मुख बन्द कर दिया,
और मेरा साँस घुट गया।
मैं गहन सागर के बीच मैं उतरता चला गया
मेरे सिर के चारों ओर शैवाल लिपट गये हैं।
6 मैं सागर की तलहटी पर पड़ा था,
जहाँ पर्वत जन्म लेते हैं।
मुझको ऐसा लगा, जैसे इस बन्दीगृह के बीच सदा सर्वदा के लिये मुझ पर ताले जड़े हैं।
किन्तु हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तूने मुझको मेरी इस कब्र से निकाल लिया!
हे परमेश्वर, तूने मुझको जीवन दिया!
7 “जब मैं मूर्छित हो रहा था।
तब मैंने यहोवा का स्मरण किया हे यहोवा,
मैंने तुझसे विनती की
और तूने मेरी प्रार्थनाएं अपने पवित्र मन्दिर में सुनी।
8 “कुछ लोग व्यर्थ के मूर्तियों की पूजा करते हैं,
किन्तु उन मूर्तियों ने उनको कभी सहारा नहीं दिया।
9 मुक्ति तो बस केवल यहोवा से आती है!
हे यहोवा, मैं तुझे बलियाँ अर्पित करूँगा,
और तेरे गुण गाऊँगा।
मैं तेरा धन्यवाद करूँगा।”
मैं तेरी मन्नते मानूँगा और अपनी मन्नतों को पूरा करूँगा।”
10 फिर यहोवा ने उस मछली से कहा और उसने योना को सूखी धरती पर अपने पेट से बाहर उगल दिया।
परमेश्वर का बुलावा और योना का आज्ञापालन
3इसके बाद यहोवा ने योना से फिर कहा। यहोवा ने कहा, 2 “तू नीनवे के बड़े नगर में जा और वहाँ जा कर, जो बातें मैं तुझे बताता हूँ, उनकी शिक्षा दे।”
3 सो यहोवा की आज्ञा मान कर योना नीनवे को चला गया। निनवे एक विशाल नगर था। वह इतना विशाल था, कि उस नगर में एक किनारे से दूसरे किनारे तक व्यक्ति को पैदल चल कर जाने में तीन दिन का समय लगता था।
4 सो योना ने नगर की यात्रा आरम्भ की और सारे दिन चलने के बाद, उसने लोगों को उपदेश देना आरम्भ कर दिया। योना ने कहा, “चालीस दिन बाद नीनवे तबाह हो जायेगा!”
5 परमेश्वर की ओर से मिले इस सन्देश पर, नीनवे के लोगों ने विश्वास किया और उन लोगों ने कुछ समय के लिए खाना छोड़कर अपने पापों पर सोच—विचार करने का निर्णय लिया। लोगों ने अपना दु:ख व्यक्त करने के लिये विशेष प्रकार के वस्त्र धारण कर लिये। नगर के सभी लोगों ने चाहे वे बहुत बड़े या बहुत छोटे हो, ऐसा ही किया।
6 नीनवे के राजा ने ये बातें सुनीं और उसने भी अपने बुरे कामों का शोक मनाया। इसके लिये राजा ने अपना सिंहासन छोड़ दिया। उसने अपने राजसी वस्त्र हटा दिये और अपना दु:ख व्यक्त करने के लिये शोकवस्त्र धारण कर लिये। इसके बाद वह राजा धूल में बैठ गया। 7 राजा ने एक विशेष सन्देश लिखवाया और उस सन्देश की सारे नगर में घोषणा करवा दी:
राजा और उसके बड़े शासकों की ओर से आदेश था:
कुछ समय के लिये कोई भी पुरूष अथवा कोई भी पशु कुछ भी नहीं खायेगा। किसी रेवड़ या पशुओं के झुण्ड को चरागाहों में नहीं जाने दिया जायेगा। नीनवे के सजीव प्राणी न तो कुछ खायेंगे और न ही जल पीयेंगे। 8 बल्कि हर व्यक्ति और हर पशु टाट धारण करेंगे जिससे यह दिखाई दे कि वे दु:खी हैं। लोग ऊँचे स्वर में परमेश्वर को पुकारेंगे। हर व्यक्ति को अपना जीवन बदलना होगा और उसे चाहिये कि वह बुरे कर्म करना छोड़ दे। 9 तब हो सकता है कि परमेश्वर की इच्छा बदल जाये और उसने जो योजना रच रखी है, वैसी बातें न करे। हो सकता है परमेश्वर की इच्छा बदल जाये और कुपित न हो। तब हो सकता है कि हमें दण्ड न दिया जाये।
10 लोगों ने जो बातें की थी, उन्हें परमेश्वर ने देखा। परमेश्वर ने देखा कि लोगों ने बुरे कर्म करना बन्द कर दिया है। सो परमेश्वर ने अपना मन बदल लिया और जैसा करने की उसने योजना रची थी, वैसा नहीं किया। परमेश्वर ने लोगों को दण्ड नहीं दिया।
परमेश्वर की करूणा से योना कुपित
4योना इस बात पर प्रसन्न नहीं था कि परमेश्वर ने नगर को बचा लिया था। योना क्रोधित हुआ। 2 उसने यहोवा से शिकायत करते हुए कहा, “मैं जानता था कि ऐसा ही होगा! मैं तो अपने देश में था, और तूने ही मुझसे यहाँ आने को कहा था। उसी समय मुझे यह पता था कि तू इस पापी नगर के लोगों को क्षमा कर देगा। मैंने इसलिये तर्शीश भाग जाने की सोची थी। मैं जानता था कि तू एक दयालु परमेश्वर है! मैं जानता था कि तू करूणा दर्शाता है और लोगों को दण्ड देना नहीं चाहता! मुझे पता था कि तू करूणा से पूर्ण है! मुझे ज्ञान था कि यदि इन लोगों ने पाप करना छोड़ दिया तो तू इनके विनाश की अपनी योजनाओं को बदल देगा। 3 सो हे यहोवा, अब मैं तुझसे यही माँगता हूँ, कि तू मुझे मार डाल। मेरे लिये जीवित रहने से मर जाना उत्तम है!”
4 इस पर यहोवा ने कहा, “क्या तू सोचता है कि बस इसलिए कि मैं ने उन लोगों को नष्ट नहीं किया, तेरा क्रोध करना उचित है”
5 इन सभी बातों से योना अभी भी कुपित था। सो वह नगर के बाहर चला गया। योना एक ऐसे स्थान पर चला गया था जो नगर के पूर्वी प्रदेश के पास ही था। योना ने वहाँ अपने लिये एक पड़ाव बना लिया। फिर उसकी छाया में वहीं बैठे—बैठे वह इस बात की बाट जोहने लगा कि देखें इस नगर के साथ क्या घटता है
रेंड़ का पौधा और कीड़ा
6 उधर यहोवा ने रेंड़ का एक ऐसा पौधा लगाया जो बहुत तेज़ी से बढ़ा और योना पर छा गया। इसने योना को बैठने के लिए एक शीतल स्थान बना दिया। योना को इससे और अधिक आराम प्राप्त हुआ। इस पौधे के कारण योना बहुत प्रसन्न था।
7 अगले दिन सुबह उस पौधे का एक भाग खा डालने के लिये परमेश्वर ने एक कीड़ा भेजा। कीड़े ने उस पौधे को खाना शुरू कर दिया और वह पौधा मुरझा गया।
8 सूरज जब आकाश में ऊपर चढ़ चुका था, परमेश्वर ने पुरवाई की गर्म हवाएँ चला दीं। योना के सिर पर सूरज चमक रहा था, और योना एक दम निर्बल हो गया था। योना ने परमेश्वर से चाहा कि वह वह उसे मौत दे दे। योना ने कहा, “मेरे लिये जीवित रहने से अच्छा है कि मैं मर जाऊँ।”
9 किन्तु परमेश्वर ने यहोवा से कहा, “बता, तेरे विचार में क्या सिर्फ इसलिए कि यह पौधा सूख गया है, तेरा क्रोध करना उचित है”
योना ने उत्तर दिया, “हाँ मेरा क्रोध करना उचित ही है! मुझे इतना क्रोध आ रहा है कि जैसे बस मैं अपने प्राण ही दे दूँ!”
10 इस पर यहोवा ने कहा, “देख, उस पौधे के लिये तूने तो कुछ भी नहीं किया! तूने उसे उगाया तक नहीं। वह रात में फूटा था और अगले दिन नाश हो गया और अब तू उस पौधे के लिये इतना दु:खी है। 11 यदि तू उस पौधे के लिए व्याकुल हो सकता है, तो देख नीनवे जैसे बड़े नगर के लिये जिसमें बहुत से लोग और बहुत से पशु रहते हैं, जहाँ एक लाख बीस हजार से भी अधिक लोग रहते हैं और जो यह भी नहीं जानते कि वे कोई गलत काम कर रहे हैं, उनके लिये क्या मैं तरस न खाऊँ!”
समीक्षा
दूसरे मौके को पकड़ लीजिए
बाकी सभी दूसरे भविष्यवक्ताओं की तुलना में योना बहुत अलग हैं। जैसा कि यूजन पिटरसन लिखते हैं, ' वह एक बहुत बड़े हीरो नहीं हैं और पहचाने जाने के लिए शक्तिशाली नहीं हैं – वह कुछ भी महान नहीं करते हैं।'
पुस्तक की शुरूवात में योना परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते हैं और अंत में शिकायत करते हैं कि परमेश्वर ने क्या कर दिया। वह ऐसे एक व्यक्ति हैं जिन्होंने तीक्ष्ण उदासी से कष्ट उठाया। परमेश्वर योना की कमजोरी में उसके आस-पास काम करते हैं अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए।
चार छोटे अध्यायों में से हर एक हमें परमेश्वर के प्रेम के विषय में कुछ बताता हैः
- परमेश्वर का प्रेम आपको कभी नहीं छाड़ेगा (अध्याय 1)
आप सफलतापूर्वक परमेश्वर या उनकी बुलाहट से भाग नहीं सकते हैं। योना एक प्रसिद्ध प्रचारक थे (2राजाओं 14:25)। उन्हें नीनवे नगर में जाने के लिए कहा गया (योना 1:2)। इसके बजाय, वह तर्शीश में भाग जाते हैं –स्पेन में दक्षिणी-पश्चिमी... (एक छुट्टी बिताने के लिए नहीं!)
आप परमेश्वर से दूर भाग सकते हैं, लेकिन आप छिप नहीं सकते हैं। योना एक परेशानी में पड़ जाते हैं। यह सोचना सरल बात है कि हमारी अनज्ञाकारिता किसी दूसरे को प्रभावित नहीं करेगी, लेकिन सिर्फ हमें प्रभावित करेगी। यह कहानी दिखाती है कि हमारी अनज्ञाकारिता से दूसरों को परिणाम भोगने पड़ेंगे।
कभी कभी जीवन में हम जिस तूफान का सामना करते हैं, वह हमारी अनज्ञाकारिता का परिणाम है। जैसे ही तूफान प्रचंड होता जाता है और योना जानते हैं कि यह उनकी गलती है। वह मरने के तैयार हो जाते हैं और उन्हें समुद्र में फेंक देने के लिए कहते हैं, लेकिन 'परमेश्वर ने एक बड़ी मछली भेजी' (व.17)। परमेश्वर का प्रेम उन्हें जाने नहीं देगा।
- परमेश्वर का प्रेम आप तक पहुँच सकता है, इससे अंतर नहीं पड़ता है कि आप कितना अधिक गिर चुके हैं (अध्याय 2)
इससे अंतर नहीं पड़ता है कि आपकी स्थिति कितनी उदास या निराशाजनक दिखाई देती है, कभी भी बहुत देर नहीं हुई है। जब वह चट्टान से टकाराये, मछली के पेट में से योना ने प्रार्थना कीः 'मैं ने संकट में पड़े हुए यहोवा की दोहाई दी...और उस ने मेरी सुन ली है' (2:2)।
उन्हेंने जान लिया कि हम आशीषों से चूक जाते हैं जब हम परमेश्वर के पीछे चलते हैं। 'जो लोग धोखे की व्यर्थ वस्तुओं पर मन लगाते हैं, वे अपने करुणानिधान को छोड़ देते हैं' (व.8)। परमेश्वर के अलावा दूसरी चीजों पर भरोसा करना बहुत आसान बात है। हम अक्सर पैसे, सफलता, प्रसिद्धी या यौन संबंध की 'मूर्तियों' पर भरोसा रख सकते हैं। जो चीज आपको परमेश्वर से दूर करती है, वह आपको उस अनुग्रह को ग्रहण करने से रोकती है जो आपका हो सकता है।
ऐसी कोई स्थिति नहीं है जिसमें से परमेश्वर आपको छुड़ा नहीं सकते हैं, यदि आप उनकी दोहाई दें।
- परमेश्वर के प्रेम का अर्थ है कि आपको दूसरा मौका मिलता है (अध्याय 3)
परमेश्वर लगातार योना को दूसरा मौका दे रहे थे और जब योना ने दूसरा मौका लिया, तब बहुत से लोगों के जीवन में एक अनंत प्रभाव आया।
फिर परमेश्वर का वचन दुबारा योना के पास आयाः'उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और जो बात मैं तुझ से कहूँगा, उसका प्रचार कर' (3:2)। पहली बार उन्होंने इसे बिगाड़ दिया; दूसरी बार परमेश्वर ने महान रूप से उनका इस्तेमाल किया।
ना केवल परमेश्वर ने योना को दूसरा मौका दिया, उन्होंने नीनवे शहर को भी दूसरा मौका दिया।
नीनवे एक बड़ा शहर था (1:2;3:2)। इसमें 120000 से अधिक लोग रहते थे (4:11)। योना के संदेश के परिणामस्वरूप लोगों ने मन फिराया; उन्होंने विश्वास किया (3:5)। राजा ने विश्वास किया (वव.7-9)। एक व्यक्ति के प्रचार से पुनर्जीवन आया। हजारों लोग बच गए (व.10)।
- परमेश्वर का प्रेम सभी के लिए है (अध्याय 4)
परमेश्वर सभी से प्रेम करते हैं और हर एक व्यक्ति, शहर और देश पर दया करना चाहते हैं।
उनके प्रचार कैम्पेन की सफलता के बाद, योना फिर से बड़ी निराशा में पड़ गये। वह परमेश्वर से क्रोधित हो गए (4:1)। योना जल्दी क्रोधित हो जाते थे, लेकिन परमेश्वर ऐसे नहीं है, वह 'अनुग्रहकारी और दयालु परमेश्वर हैं, और विलम्ब से कोध्र करने वाले करूणानिधान हैं, और दुख देने से प्रसन्न नहीं होते' (व.2, एम.एस.जी.)।
अब हम देखते हैं कि क्यों योना पहली बार भाग गये थे। वह क्रोधित थे कि उन्होंने मन फिराया। नीनवे के लोग क्रूर अत्याचारी थे। वे कालाजादू, सताव लालच और वेश्वावृत्ति करते थे। फिर भी उन्होंने मन फिराया और परमेश्वर ने उन्हें क्षमा किया। आज भी कुछ लोगों को कठिनाई होती है परंतु सच में जब बुरे लोग पछताते हैं तो परमेश्वर उन्हें क्षमा करते हैं।
परमेश्वर ने एक दिखाई देने वाले उदाहरण से योना की सहायता की। उन्होंने एक पेड़ लगाया जिससे योना को छाया मिले। वह इससे बहुत रोमांचित हुए। फिर परमेश्वर ने इसे नष्ट कर दिया (व.7)। लेकिन परमेश्वर ने सभी लोगों के लिए अपने महान प्रेम को बताया (योना की चिंता की तरह नहीं, जो कि सकरी और स्वार्थी थी, वव.10-11)।
परमेश्वर की एक अद्भुत विशेषता है दया। दया का अर्थ है उन लोगों के प्रति नम्र होना जो इसके लायक नहीं हैं। यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर ने आप पर और मुझ पर अपनी दया दिखाई है और उनकी दया कभी समाप्त नहीं होती है।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपके महान प्रेम के लिए आपका धन्यवाद। आपका धन्यवाद क्योंकि जब मैं चीजों को खराब कर देता हूँ, आप तब भी मुझे दूसरा मौका देते हैं। मेरी सहायता कीजिए कि आपके प्रेम के अच्छे समाचार को मैं दूसरो तक ले जाऊँ ताकि वे भी आपके प्रेम की ओर फिरे।
पिप्पा भी कहते है
योना 1:1-4:11
हजारों लोगों के जीवन को बचाने से अधिक योना को अच्छा दिखने के विषय में अधिक चिंता थी।
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संदर्भ
सेकंड लाईफ कोट सिटेड इन, रॉबर्ट एम. गेरसी, वर्च्युअली सॅकरेड मिथ एण्ड मिनिंग नइ वर्ल्ड ऑफ वॉरक्राफ्ट एण्ड सेकंड लाईफ, (ओयुपी यु.एस.ए,2014), पी.101
युजन पिटरसन, द मैसेज, 'योना का परिचय' (नवप्रेस, 1993), पी.1265
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
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