निर्बलता में सिद्ध किए गए
परिचय
मुझे ऐसे फोन आते रहे। वे अधिकतर चर्च लीडर्स की ओर से आते थे। वे चर्च के विभिन्न भागों से थे। हमेशा लंबी टेलीफोन पर बातचीत होती थी। वे सभी जानना चाहते थेः”कैसे आप शिक्षा के लिए चर्च के बाहरवालों को पा लेते हैं?” “अल्फा असल में क्या है?” “आप इसे कैसे चलाते हैं?”
मैंने सोचा कि सर्वश्रेष्ठ समाधान है कि मैं उन सभी को एक कमरें में बुलाऊँ और एक ही बार में सबकुछ बता दूं। इसके परिणामस्वरूप, हमने मई 1993 में पहला अल्फा कॉन्फरेंस किया। हमें आश्चर्य हुआ कि हजारों चर्च लीडर्स आये। मैं मसीह सेवकाई में नया था और हजारों चर्च लीडर्स के विचार से बहुत भयभीत हो गया था, जिनमें से बहुत सी सेवकाई में मुझसे ज्यादा अनुभवी थे।
पौलुस प्रेरित के शब्द इसे ठीक ठीक बताते हैं जो मैंने महसूस किया था। कॉन्फरेंस की शुरुवात में मैंने इसे आये हुए लोगों को पढ़कर सुनायाः
अ.” हे भाइयो, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो शब्दों या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। क्योंकि मैं ने यह ठान लिया था कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह वरन् क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूँ। मैं निर्बलता और भय में, और बहुत थरथराता हुआ तुम्हारे साथ रहा; और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में मनुष्य की बुद्धि की लुभानेवाली बातें नहीं, परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था, ताकि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो” (1कुरिंथियो 2:1-5)।
मैंने सोचा कि जैसे ही चर्च लीडर्स के इस समूह को अल्फा के बारे में बताऊँगा, तब इसके बाद मुझे किसी और को समझाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। लेकिन असल में, कॉन्फरेंस के अंत में हमें और अधिक कॉन्फरेंस करने के लिए आमंत्रित किया गया। सालों से हमने सैकड़ों कॉन्फरेंस किए हैं। हर अल्फा कॉन्फरेंस में, मैं 1कुरिंथियो 2:1-5 पढ़कर शुरुवात करता हूँ। मैं हमेशा ऐसा महसूस करता हूँ; मैं हमेशा उत्तेजित महसूस करता हूँ। वहाँ पर हमेशा “कमजोरी और डर, और...बहुत काँपने” का एक कारक होता है। लेकिन मैं परमेश्वर का धन्यवाद देता हूँ कि यह बुद्धि की लुभाने वाली बातें नहीं, परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था। और परमेश्वर की सामर्थ निर्बलता में सिद्ध होती है (2कुरिंथियो 12:9)।
“दुर्बलता”, “डर” और “काँपना”, इनका एक अच्छा पहलू है। एक बुरा पहलू भी है। आज के लेखांश में हम कमजोरी,डर काँपना के दोनों पहलुओं को देखते हैं।
भजन संहिता 91:1-8
91तुम परम परमेश्वर की शरण में छिपने के लिये जा सकते हो।
तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की शरण में संरक्षण पाने को जा सकते हो।
2 मैं यहोवा से विनती करता हूँ, “तू मेरा सुरक्षा स्थल है मेरा गढ़,
हे परमेश्वर, मैं तेरे भरोसे हूँ।”
3 परमेश्वर तुझको सभी छिपे खतरों से बचाएगा।
परमेश्वर तुझको सब भयानक व्याधियों से बचाएगा।
4 तुम परमेश्वर की शरण में संरक्षण पाने को जा सकते हो।
और वह तुम्हारी ऐसे रक्षा करेगा जैसे एक पक्षी अपने पंख फैला कर अपने बच्चों की रक्षा करता है।
परमेश्वर तुम्हारे लिये ढाल और दीवार सा तुम्हारी रक्षा करेगा।
5 रात में तुमको किसी का भय नहीं होगा,
और शत्रु के बाणों से तू दिन में भयभीत नहीं होगा।
6 तुझको अंधेरे में आने वाले रोगों
और उस भयानक रोग से जो दोपहर में आता है भय नहीं होगा।
7 तू हजार शत्रुओं को पराजित कर देगा।
तेरा स्वयं दाहिना हाथ दस हजार शत्रुओं को हरायेगा।
और तेरे शत्रु तुझको छू तक नहीं पायेंगे।
8 जरा देख, और तुझको दिखाई देगा
कि वे कुटिल व्यक्ति दण्डित हो चुके हैं।
समीक्षा
डर और विश्वास
“किसी भी चीज से मत डरो” (व.5, एम.एस.जी) भजनसंहिता के लेखक लिखते हैं। वह “डर” का उत्तर देते हैं विश्व के बुरे ज्ञान में। वह लिखते हैं, “तू न रात के भय से डरेगा, और न उस तीर से जो दिन को उड़ता है, न उस मरी से जो अंधेरे में फैलती है, और न उस महारोग से जो दिन –दुपहरी में उजाड़ता है” (वव.5-6)।
डर का उत्तर है परमेश्वर के साथ एक नजदीकी संबंध - “परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठे रहना” और “सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाना” (व.1)। डर का विपरीत है परमेश्वर पर भरोसा करना (व.2)।
जो आप सोचते हैं और जो आप कहते हैं, उनके बीच में एक मजबूत संबंध है। जो आप सोचते हैं वह आपके शब्दों में बाहर आयेगा। लेकिन आपके वचन आपकी सोच को भी प्रभावित कर सकते हैं। जो आप परमेश्वर से कहते हैं वह आपकी सोच को बदल सकता है। भजनसंहिता के लेखक हमसे कहते हैं कि परमेश्वर की भलाई का जोर से वर्णन करिए”इसे कहिये, परमेश्वर मेरे शरणस्थान हैं, मैं आपमें भरोसा करता हूँ और मैं सुरक्षित हूँ” (व.2, एम.एस.जी)।
वह वायदा करते हैं कि वह आपको बहेलिये के जाल से, और महामारी से बचायेंगे। वह बड़ा बढ़ाया हुआ हाथ आपको सुरक्षित रखता है – उनके नीचे आप पूरी तरह से सुरक्षित हैं’ उनके हाथ हमें सभी प्रकार के प्रहार से बचाते हैं” (वव.3-4, एम.एस.जी)।
डर वर्तमान में आपके आनंद को नष्ट कर सकता है। परमेश्वर ने यीशु को मृत्यु में से जीवित किया। ऐसा करके, उन्होंने आपको मृत्यु के डर से मुक्त किया और उन सभी डरों से जो इसके साथ आते हैं। “उनके पंखों तले आप शरण पाते हैं” (व.4)। आपको भविष्य के विषय में डरने की आवश्यकता नहीं है और आप बिना डर के वर्तमान का आनंद ले सकते हैं।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि मैं आपके शरणस्थान में रह सकता हूँ और आपकी छाया में विश्राम पा सकता हूँ। मैं आज आपसे कहता हूँ: आप मेरे शरणस्थान और मेरे गढ़ हैं (व.2)। मैं आप पर भरोसा करुँगा।
1 कुरिन्थियों 1:18-2:5
परमेश्वर की शक्ति और ज्ञान-स्वरूप मसीह
18 वे जो भटक रहे हैं, उनके लिए क्रूस का संदेश एक निरी मूर्खता है। किन्तु जो उद्धार पा रहे हैं उनके लिये वह परमेश्वर की शक्ति है। 19 शास्त्रों में लिखा है:
“ज्ञानियों के ज्ञान को मैं नष्ट कर दूँगा;
और सारी चतुर की चतुरता मैं कुंठित करूँगा।”
20 कहाँ है ज्ञानी व्यक्ति? कहाँ है विद्वान? और इस युग का शास्तार्थी कहाँ है? क्या परमेश्वर ने सांसारिक बुद्धिमानी को मूर्खता नहीं सिद्ध किया? 21 इसलिए क्योंकि परमेश्वरीय ज्ञान के द्वारा यह संसार अपने बुद्धि बल से परमेश्वर को नहीं पहचान सका तो हम संदेश की तथाकथित मूर्खता का प्रचार करते हैं।
22 यहूदी लोग तो चमत्कारपूर्ण संकेतों की माँग करते हैं और ग़ैर यहूदी विवेक की खोज में हैं। 23 किन्तु हम तो बस क्रूस पर चढ़ाये गये मसीह का ही उपदेश देते हैं। एक ऐसा उपदेश जो यहूदियों के लिये विरोध का कारण है और ग़ैर यहूदियों के लिये निरी मूर्खता। 24 किन्तु उनके लिये जिन्हें बुला लिया गया है, फिर चाहे वे यहूदी हैं या ग़ैर यहूदी, यह उपदेश मसीह है जो परमेश्वर की शक्ति है, और परमेश्वर का विवेक है। 25 क्योंकि परमेश्वर की तथाकथित मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से कहीं अधिक विवेकपूर्ण है। और परमेश्वर की तथाकथित दुर्बलता मनुष्य की शक्ति से कहीं अधिक सक्षम है।
26 हे भाइयो, अब तनिक सोचो कि जब परमेश्वर ने तुम्हें बुलाया था तो तुममें से बहुतेरे न तो सांसारिक दृष्टि से बुद्धिमान थे और न ही शक्तिशाली। तुममें से अनेक का सामाजिक स्तर भी कोई ऊँचा नहीं था। 27 बल्कि परमेश्वर ने तो संसार में जो तथाकथित मूर्खतापूर्ण था, उसे चुना ताकि बुद्धिमान लोग लज्जित हों। परमेश्वर ने संसार में दुर्बलों को चुना ताकि जो शक्तिशाली हैं, वे लज्जित हों।
28 परमेश्वर ने संसार में उन्हीं को चुना जो नीच थे, जिनसे घृणा की जाती थी और जो कुछ भी नहीं है। परमेश्वर ने इन्हें चुना ताकि संसार जिसे कुछ समझता है, उसे वह नष्ट कर सके। 29 ताकि परमेश्वर के सामने कोई भी व्यक्ति अभीमान न कर पाये। 30 किन्तु तुम यीशू मसीह में उसी के कारण स्थित हो। वही परमेश्वर के वरदान के रूप में हमारी बुद्धि बन गया है। उसी के द्वारा हम निर्दोष ठहराये गये ताकि परमेश्वर को समर्पित हो सकें और हमें पापों से छुटकारे मिल पाये 31 जैसा कि शास्त्र में लिखा है: “यदि किसी को कोई गर्व करना है तो वह प्रभु में अपनी स्थिति का गर्व करे।”
क्रूस पर चढ़े मसीह के विषय में संदेश
2हे भाइयों, जब मैं तुम्हारे पास आया था तो परमेश्वर के रहस्यपूर्ण सत्य का, वाणी की चतुरता अथवा मानव बुद्धि के साथ उपदेश देते हुए नहीं आया था 2 कयोंकि मैंने यह निश्चय कर लिया था कि तुम्हारे बीच रहते, मैं यीशु मसीह और क्रूस पर हुई उसकी मृत्यु को छोड़ कर किसी और बात को जानूँगा तक नहीं। 3 सो मैं दीनता के साथ भय से पूरी तरह काँपता हुआ तुम्हारे पास आया। 4 और मेरी वाणी तथा मेरा संदेश मानव बुद्धि के लुभावने शब्दों से युक्त नहीं थे बल्कि उनमें था आत्मा की शक्ति का प्रमाण 5 ताकि तुम्हारा विश्वास मानव बुद्धि के बजाय परमेश्वर की शक्ति पर टिके।
समीक्षा
दुर्बलता में सामर्थ
पौलुस प्रेरित लिखते हैं, “मैं मृत्यु से डर रहा था” (2:3, एम.एस.जी)। वह उस कार्य के लिए पूरी तरह से अपर्याप्त महसूस कर रहे थे जो परमेश्वर ने उन्हें करने के लिए बुलाया था, “लेकिन किसी तरह से संदेश आया, परमेश्वर की आत्मा और परमेश्वर की सामर्थ ने इसे किया” (व.4, एम.एस.जी)।
नैतिक दुर्बलता और कायरता गुण नहीं है। किंतु, जैसा कि हम इस लेखांश में देखते हैं, कमजोरी, डर और थरथराने का एक अच्छा पहलू है।
परमेश्वर चीजों को उलट देते हैं। क्रूस ने चीजों को उलट दियाः “ क्योंकि क्रूस का प्रचार किया जाना नाश होने वालों के लिये मूर्खता है, परन्तु हम उद्धार पाने वालों के लिये यह परमेश्वर की सामर्थ है” (1:18)।
राज्य के एक अपराधी के रूप में यीशु मर गए। सताने के लिए रोमी उपकरण पर वह मर गए – रोमी समाज में सबसे पद अवनति और तुच्छ माने गए के लिए आरक्षित मृत्यु। सैकड़ों सालों तक क्रूस मसीहत का एक प्रतीक नहीं बना था। क्रूस पर चढ़ाया जाना कमजोरी, अपमान और हार के विषय में था।
इस समय कुरिंथ विश्व का बुद्धि केंद्र था। यह विवाद करने वाले, भ्रमण करने वाले शिक्षक, शिक्षक और फिलोसफर का स्थान था। दिमाग और बुद्धि ऊँची मानी जाती थी।
जो सुसमाचार का संदेश हम सुनाते हैं वह उच्च रूप से बुद्धिमान लोगों को मूर्खता लगती हैः” परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं, जो यहूदियों के लिये ठोकर का कारण और अन्यजातियों के लिये मूर्खता है” (व.23)।
फिर भी, यह सरल संदेश विश्वास करने वालों को बचाता हैः” क्योंकि जब परमेश्वर की बुद्धि में संसार ने बुद्धि के द्वारा परमेश्वर को न जाना, तो परमेश्वर को यह अच्छा लगा कि इस प्रचार की मूर्खता के द्वारा विश्वास करने वालों को उद्धार दें... क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों की बुद्धि से अधिक बुद्धिमान है, और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत अधिक बलवान है” (वव.21,25)।
जैसे ही हम आस-पास देखते हैं हम देख सकते हैं कि आज भी यह सच है कि चर्च में बहुत से लोग “विद्वान और सर्वश्रेष्ठ” नहीं हैं। बहुत से “प्रभावी” नहीं हैं। और बहुत से “उच्च कुल परिवार” से नहीं हैं (व.26, एम.एस.जी)। लेकिन आज भी यह सच है कि परमेश्वर ने “विश्व की मूर्ख चीजों को चुना ताकि बुद्धिमान को लज्जित करें।” उन्होंने “विश्व की कमजोर चीजों को चुना ताकि बलवान को लज्जित करें” (व.27)।
बहुत ही सरल संदेश को बताने में लज्जित मत होईये, जो बहुत से लोगों को मूर्खता लगती है। इसे “ शब्दों या ज्ञान की उत्तमता के साथ “ लपेटने की आवश्यकता नहीं है (2:1)। “यीशु मसीह और उन्हें क्रूस पर चढाये जाने” के संदेश पर ध्यान दीजिए (व.2)। जैसा कि यूजन पीटरसन अनुवाद करता है, “मैंने जानबूझकर इसे सीधा और सरल रखा है; पहला यीशु और वह कौन हैं; फिर यीशु और उन्होंने क्या किया - यीशु को क्रूस पर चढ़ाया जाना” (व.2, एम.एस.जी)।
“दुर्बलता और डर, और...बहुत थरथराने” का अनुभव करना सामान्य बात है (व.3)। इससे अंतर नही पड़ता कि आप “ मनुष्य की बुद्धि की लुभाने वाली बातों” का इस्तेमाल करते हैं या नहीं लेकिन इससे अंतर पड़ता है कि आप “आत्मा की सामर्थ “ को दिखाते हैं या नहीं (व.4)। और उनकी सामर्थ हमारी दुर्बलता में सिद्ध होती है। अक्सर जब हम कमजोर महसूस करते हैं तब हम पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भर रहने के लिए तैयार रहते हैं। पौलुस पूरी तरह से पवित्र आत्मा पर निर्भर थे, उनके द्वारा बोलने के लिए। आप चाहे जितना सक्षम महसूस करें, यदि आप पवित्र आत्मा से मांगेगे कि वह आपके द्वारा बात करें, तो वह ऐसा करेंगे।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद यीशु के संदेश के लिए और उन्हें क्रूस पर चढ़या जाने, जो कि परमेश्वर की सामर्थ हैं। आपका धन्यवाद क्योंकि मुझे बुद्धि की लुभाने वाली बातों की आवश्यकता नहीं है। यद्यपि मैं कमजोरी और डर, और थरथराते हुए बोलता हूँ, मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप उस संदेश के प्रचार के साथ आत्मा की सामर्थ को भी दिखायें।
1 इतिहास 19:1-22:1
अम्मोनी दाऊद के लोगों को लज्जित करते हैं
19नाहाश अम्मोनी लोगों का राजा था। नाहाश मरा, और उसका पुत्र नया राजा बना। 2 तब दाऊद ने कहा, “नाहाश मेरे प्रति दयालु था, इसलिए मैं नाहाश के पुत्र हानून के प्रति दायालु रहूँगा।” अतः दाऊद ने अपने दूतों को उसके पिता की मृत्यु पर सांत्वना देने भेजे। दाऊद के दूत हानून को सांन्तवा देने अम्मोन देश को गए।
3 किन्तु अम्मोनी प्रमुखों ने हानून से कहा, “मूर्ख मत बनो। दाऊद ने सच्चे भाव से तुम्हें सांत्वना देने के लिये या तुम्हारे मृत पिता को सम्मान देने के लिये नहीं भेजा है! नहीं, दाऊद ने अपने सेवकों को तुम्हारी और तुम्हारे देश की जासूसी करने को भेजा है। दाऊद वस्तुतः तुम्हारे देश को नष्ट करना चाहता है!” 4 इसलिये हानून ने दाऊद के सेवकों को बन्दी बनाया और उनकी दाढ़ी मुड़ावा दी हानून ने कमर तक उनके वस्त्रों की छोर को कटवा दिया। तब उसने उन्हें विदा कर दिया।
5 दाऊद के व्यक्ति इतने लज्जित हुए कि वे घर को नहीं जा सकते थे। कुछ लोग दाऊद के पास गए और बताया कि उसके व्यक्तियों के साथ कैसा बर्ताव हुआ। इसलिये राजा दाऊद ने अपने लोगों के पास यह सूचना भेजा: “तुम लोग यरीहो नगर में तब तक रहो जब तक फिर दाढ़ी न उग आए। तब तुम घर वापस आ सकते हो।”
6 अम्मोनी लोगों ने देखा कि उन्होंने अपने आपको दाऊद का घृणित शत्रु बना दिया है। तब हानून और अम्मोनी लोगों ने पचहत्तर हजार पौंड चाँदी, रथ और सारथियों को मेसोपोटामियाँ से खरीदने में लगाया। उन्होंने अराम में अरम्माका और सोबा नगरों से भी रथ और सारथी प्राप्त किये। 7 अम्मोनी लोगों ने बत्तीस हजार रथ खरीदे। उन्होंने माका के राजा को और उसकी सेना को भी आने और सहायता करने के लिये भुगतान किया। माका का राजा और उसके लोग आए और उन्होंने मेदबा नगर के पास अपना डेरा डाला। अम्मोनी लोग स्वयं अपने नगरों से बाहर आए और युद्ध के लिये तैयार हो गये।
8 दाऊद ने सुना कि अम्मोनी लोग युद्ध के लिये तैयार हो रहे हैं। इसलिये उसने योआब और इस्राएल की पूरी सेना को अम्मोनी लोगों से युद्ध करने के लिये भेजा। 9 अम्मोनी लोग बाहर निकले तथा युद्ध के लिये तैयार हो गए। वे नगर द्वार के पास थे। जो राजा सहायता के लिये आए थे, वे स्वयं खुले मैदान में खड़े थे।
10 योआब ने देखा कि उसके विरुद्ध लड़ने वाली सेना के दो मोर्चे थे। एक मोर्चा उसके सामने था और दूसरा उसके पीछे था। इसलिये योआब ने इस्राएल के कुछ सर्वोत्तम योद्धाओं को चुना। उसने उन्हें अराम की सेना से लड़ने के लिये भेजा। 11 योआब ने इस्राएल की शेष सेना को अबीशै के सेनापतित्व में रखा। अबीशै योआब का भाई था। वे सैनिक अम्मोनी सेना के विरुद्ध लड़ने गये। 12 योआब ने अबिशै से कहा, “यदि अरामी सेना मेरे लिये अत्याधिक शक्तिशाली पड़े तो तुम्हें मेरी सहायता करनी होगी। किन्तु यदि अम्मोनी सेना तुम्हारे लिये अत्याधिक शक्तिशाली प्रामाणित होगी तो मैं तुम्हारी सहायता करूँगा। 13 हम अपने लोगों तथा अपने परमेश्वर के नगरों के लिये युद्ध करते समय वीर और दृढ़ बनें। यहोवा वह करे जिसे वह उचित मानता है।”
14 योआब और उसके साथ की सेना ने अराम की सेना पर आक्रमण किया। अराम की सेना योआब और उसकी सेना के सामने से भाग खड़ी हुई। 15 अम्मोनी सेना ने देखा कि अराम की सेना भाग रही है अतः वे भी भाग खड़े हुए। वे अबीशै और उसकी सेना के सामने से भाग खड़े हुए। अम्मोनी अपने नगरों को चले गये और योआब यरूशलेम को लौट गया।
16 अराम के प्रमुखों ने देखा कि इस्राएल ने उन्हें पराजित कर दिया। इसलिये उन्होंने परात नदी के पूर्व रहने वाले अरामी लोगों से सहायता के लिये दूत भेजे। शोपक हदरेजेर की अराम की सेना का सेनापति था। शोपक ने उन अन्य अरामी सैनिकों का भी संचालन किया।
17 दाऊद ने सुना कि अराम के लोग युद्ध के लिये इकट्ठा हो रहे हैं। इसलिये दाऊद ने इस्राएल के सभी सैनिकों को इकट्ठा किया। दाऊद उन्हें यरदन नदी के पार ले गया। वे अरामी लोगों के ठीक आमने सामने आ गए। दाऊद ने अपनी सेना को आक्रमण के लिये तैयार किया और अरामियों पर आक्रमण कर दिया। 18 अरामी इस्राएलियों के सामने से भाग खड़े हुए। दाऊद और उसकी सेना ने सात हजार सारथी और चालीस हजार अरामी सैनिकों को मार डाला। दाऊद और उसकी सेना ने अरामी सेना के सेनापति शोपक को भी मार डाला।
19 जब हदरेजेर के अधिकारियों ने देखा कि इस्राएल ने उनको हरा दिया तो उन्होंने दाऊद से सन्धि कर ली। वे दाऊद के सेवक बन गए। इस प्रकार अरामियों ने अम्मोनी लोगों को फिर सहायता करने से इन्कार कर दिया।
योआब अम्मोनियों को नष्ट करता है
20बसन्त में, योआब इस्राएल की सेना को युद्ध के लिये ले गया। यह वही समय था जब राजा युद्ध के लिये यात्रा करते थे, किन्तु दाऊद यरूशलेम में रहा। इस्राएल की सेना अम्मोन देश को गई थी। उसने उसे नष्ट कर दिया। तब वे रब्बा नगर को गये। सेना ने लोगों को अन्दर आने और बाहर जाने से रोकने के लिये नगर के चारों ओर डेरा डाला। योआब और उसकी सेना ने रब्बा नगर के विरुद्ध तब तक युद्ध किया जब तक उसे नष्ट नहीं कर डाला।
2 दाऊद ने उनके राजा का मुकुट उतार लिया। वह सोने का मुकुट तोल में लगभग पचहत्तर पौंड था। मुकुट में बहुमूल्य रत्न जड़े थे। मुकुट दाऊद के सिर पर रखा गया। तब दाऊद ने रब्बा नगर से बहुत सी मूल्यवान वस्तुएँ प्राप्त कीं। 3 दाऊद रब्बा के लोगों को साथ लाया और उन्हें आरों, लोहे की गैंती और कुल्हाड़ियों से काम करने को विवश किया। दाऊद ने अम्मोनी लोगों के सभी नगरों के साथ यही बर्ताव किया। तब दाऊद और सारी सेना यरूशलेम को वापस लौट गई।
पलिश्ती के दैत्य मारे जाते हैं
4 बाद में इस्राएल के लोगों का युद्ध गेजेर नगर में पलिश्तियों के साथ हुआ। उस समय हूशा के सिब्बकै ने सिप्पै को मार डाला। सिप्पै दैत्यों के पुत्रों में से एक था। इस प्रकार पलिश्ती के लोग इस्राएलियों के दास के समान हो गए।
5 अन्य अवसर पर, इस्राएल के लोगों का युद्ध फिर पलिश्तियों के विरुद्ध हुआ। याईर के पुत्र एल्हानान ने लहमी को मार डाला। लहमी गोल्यत का भाई था। गोल्यत गत नगर का था। लहमी का भाला बहुत लम्बा और भारी था। यह करघे के लम्बे हत्थे की तरह था।
6 बाद में, इस्रालियों ने गत नगर के पास पलिश्तियों के साथ दूसरा युद्ध किया। इस नगर में एक बहुत लम्बा व्यक्ति था। उसके हाथ और पैर की चौबीस उँगलियाँ थीं। उस व्यक्ति के हर हाथ में छः उँगलियाँ और हर पैर की भी छः ऊँगलियाँ थीं। वह दैत्य का पुत्र भी था। 7 इसलिये जब उसने इस्राएल का मज़ाक उड़ाया तो योनातान ने उसे मार डाला। योनातान शिमा का पुत्र था। शिमा दाऊद का भाई था।
8 वे पलिश्ती लोग गत नगर के दैत्यों के पुत्र थे। दाऊद और उसके सेवकों ने उन दैत्यों को मार डाला।
इस्राएलियों को गिनकर दाऊद पाप करता है
21शैतान इस्राएल के लोगों के विरुद्ध था। उसने दाऊद को इस्राएल के लोगों को गिनने का प्रोत्साहन दिया। 2 इलिये दाऊद ने योआब और लोगों के प्रमुखों से कहा, “जाओ और इस्राएल के सभी लोगों की गणना करो। बर्शेबा नगर से लेकर लगातार दान नगर तक देश के हर व्यक्ति को गिनो। तब मुझे बताओ, इससे मैं जान सकूँगा कि यहाँ कितने लोग हैं।”
3 किन्तु योआब ने उत्तर दिया, “यहोवा अपने राष्ट्र को सौ गुना विशाल बनाए। महामहिम इस्राएल के सभी लोग तेरे सेवक हैं। मेरे स्वामी यहोवा और राजा, आप यह कार्य क्यों करना चाहते हैं आप इस्राएल के सभी लोगों को पाप करने का अपराधी बनाएंगे!”
4 किन्तु राजा दाउद हठ पकड़े था। योआब को वह करना पड़ा जो राजा ने कहा। इसलिये योआब गया और पूरे इस्राएल देश में गणना करता हुआ घूमता रहा। तब योआब यरूशलेम लौटा 5 और दाऊद को बताया कि कितने आदमी थे। इस्राएल में ग्यारह लाख पुरुष थे और तलवार का उपयोग कर सकते थे और तलवार का उपयोग करने वाले चार लाख सत्तर हजार पुरुष यहूदा में थे। 6 योआब ने लेवी और बिन्यामीन के परिवार समूह की गणना नहीं की। योआब ने उन परिवार समूहों की गणना नहीं कि क्योंकि वह राजा दाऊद के आदेशों को पसन्द नहीं करता था। 7 परमेश्वर की दृष्टि में दाऊद ने यह बुरा काम किया था इसलिये परमेश्वर ने इस्राएल को दण्ड दिया।
परमेश्वर इस्राएल को दण्ड देता है
8 तब दाऊद ने परमेश्वर से कहा, “मैंने एक बहुत मूर्खतापूर्ण काम किया है। मैंने इस्राएल के लोगों की गणना करके बुरा पाप किया है। अब, मैं प्रार्थना करता हूँ कि तू इस सेवक के पापों को क्षमा कर दे।”
9-10 गाद दाऊद का दृष्टा था। यहोवा ने गाद से कहा, “जाओ और दाऊद से कहोः यहोवा जो कहता है वह यह हैः मैं तुमको तीन विकल्प दे रहा हूँ। तुम्हें उसमें से एक चुनना है और तब मैं तुम्हें उस प्रकार दण्डित करूँगा जिसे तुम चुन लोगो।”
11-12 तब गाद दाऊद के पास गया। गाद ने दाऊद से कहा, “यहोवा कहता है, ‘दाऊद, जो दण्ड चाहते हो उसे चुनोः पर्याप्त अन्न के बिना तीन वर्ष या तुम्हारा पीछा करने वाले तलवार का उपयोग करते हुए शत्रुओं से तीन महीने तक भागना या यहोवा से तीन दिन का दण्ड। पूरे देश में भयंकर महामारी फैलेगी और यहोवा का दूत लोगों को नष्ट करता हुआ पूरे देश में जाएगा।’ परमेश्वर ने मुझे भेजा है। अब, तुम्हें निर्णय करना है कि उसको कौन सा उत्तर दूँ।”
13 दाऊद ने गाद से कहा, “मैं विपत्ति में हूँ! मैं नहीं चाहता कि कोई व्यक्ति मेरे दण्ड का निश्चय करे। यहोवा बहुत दयालू है, अतः यहोवा को ही निर्णय करने दो कि मुझे कैसे दण्ड दे।”
14 अतः यहोवा ने इस्राएल में भयंकर महामारी भेजी, और सत्तर हजार लोग मर गए। 15 परमेश्वर ने एक स्वर्गदूत को यरूशलेम को नष्ट करने के लिए भेजा।किन्तु जब स्वर्गदूत ने यरूशलेम को नष्ट करना आरम्भ किया तो यहोवा ने देखा और उसे दुख हुआ। इसलिये यहोवा ने इस्राएल को नष्ट न करने का निर्णय किया। यहोवा ने उस दूत से, जो नष्ट कर रहा था कहा, “रुक जाओ! यही पर्याप्त है!” यहोवा का दूत उस समय यबूसी ओर्नान की खलिहान के पास खड़ा था।
16 दाऊद ने नजर उठाई और यहोवा के दूत को आकाश में देखा। स्वर्गदूत ने यरूशलेम पर अपनी तलवार खींच रखी थी। तब दाऊद और अग्रजों (प्रमुखों) ने अपने सिर को धरती पर टेक कर प्रणाम किया। दाऊद और अग्रज (प्रमुख) अपने दुःख को प्रकट करने के लिये विशेष वस्त्र पहने थे। 17 दाऊद ने परमेश्वर से कहा, “वह मैं हूँ जिसने पाप किया है! मैंने लोगों की गणना के लिये आदेश दिया था! मैं गलती पर था! इस्राएल के लोगों ने कुछ भी गलत नहीं किया। यहोवा मेरे परमेश्वर, मुझे और मेरे परिवार को दण्ड दे किन्तु उस भयंकर महामारी को रोक दे जो तेरे लोगों को मार रही है!”
18 तब यहोवा के दूत ने गाद से बात की। उस ने कहा, “दाऊद से कहो कि वह यहोवा की उपासना के लिये एक वेदी बनाए। दाऊद को इसे यबूसी ओर्नान की खलिहान के पास बनाना चाहिये।” 19 गाद ने ये बातें दाऊद को बताईं और दाऊद ओर्नान के खलिहान के पास गया।
20 ओर्नान गेहूँ दायं रहा था। ओर्नान मुड़ा और उसने स्वर्गदूत को देखा। ओर्नान के चारों पुत्र छिपने के लिये भाग गये। 21 दाऊद ओर्नान के पास गया। ओर्नान ने खलिहान छोड़ी। वह दाऊद तक पहुँचा और उसके सामने अपना माथा ज़मीन पर टेक कर प्रणाम किया।
22 दाऊद ने ओर्नान से कहा, “तुम अपना खलिहान मुझे बेच दो। मैं तुमको पूरी कीमत दूँगा। तब मैं यहोवा की उपासना के लिये एक वेदी बनाने के लिये इसका उपयोग कर सकता हूँ। तब भंयकर महामारी रुक जायेगी।”
23 ओर्नोन ने दाऊद से कहा, “इस खलिहान को ले लें! आप मेरे प्रभु और राजा हैं। आप जो चाहें, करें। ध्यान रखें, मैं भी होमबलि के लिये पशु दूँगा। मैं आपको लकड़ी के पर्दे वाले तख्ते दूँगा जिसे आप वेदी पर आग के लिये जला सकते हैं और मैं अन्नबलि के लिये गेहूँ दूँगा। मैं यह सब आपको दूँगा!”
24 किन्तु राजा दाऊद ने ओर्नान को उत्तर दिया, “नहीं, मैं तुम्हें पूरी कीमत दूँगा। मैं कोई तुम्हारी वह चीज नहीं लूँगा जिसे मैं यहोवा को दूँगा। मैं वह कोई भेंट नहीं चढ़ाऊँगा जिसका मुझे कोई मूल्य न देना पड़े।”
25 इसलिये दाऊद ने उस स्थान के लिये ओर्नोन को पन्द्र पौंड सोना दिया। 26 दाऊद ने वहाँ यहोवा की उपासाना के लिए एक वेदी बनाई। दाऊद ने होमबलि और मेलबलि चढ़ाई। दाऊद ने यहोवा से प्रार्थना की। यहोवा ने स्वर्ग से आग भेजकर दाऊद को उत्तर दिया। आग होमबलि की वेदी पर उतरी। 27 तब यहोवा ने स्वर्गदूत को आदेश दिया कि वह अपनी तलवार को वापस म्यान में रख ले।
28 दाऊद ने देखा कि यहोवा ने उसे ओर्नोन की खलिहान पर उत्तर दे दिया है, अतः दाऊद ने यहोवा को बलि भेंट की। 29 (पवित्र तम्बू और होमबलि की वेदी उच्च स्थान पर गिबोन नगर में थी। मूसा ने पवित्र तम्बू को तब बनाया था जब इस्राएल के लोग मरुभूमि में थे। 30 दाऊद पवित्र तम्बू में परमेश्वर से बातें करने नहीं जा सकता था, क्योंकि वह भयभीत था। दाऊद यहोवा के दूत और उसकी तलवार से भयभीत था।)
22दाऊद ने कहा, “यहोवा परमेश्वर का मन्दिर और इस्राएल के लोगों के लिये भेंटों को जलाने की वेदी यहाँ बनेगी।”
समीक्षा
डर और थरथराना
परमेश्वर के सामने “डरना और थरथराना” हमेशा गलत नहीं। सच में, यह कभी कभी उचित है।
इतिहासकार इसे स्पष्ट करते हैं, इस तरह से जैसे आरंभिक वर्णन ने नहीं किया, कि यह शैतान था जिसने “दाऊद को उकसाया कि इस्राएली की गिनती ले” (12:1)। योआब ने दाऊद को मनाने की कोशिश की कि ऐसा न करें (व.3)। लेकिन दाऊद ने उनकी बात नहीं मानी। “और यह बात परमेश्वर को बुरी लगी (मानवीय स्त्रोतों पर निर्भर रहना)” (व.7, ए.एम.पी)।
यह बात थोड़ी स्पष्ट नहीं है कि क्यों यह एक बड़ा पाप था, लेकिन निश्चित ही यह है क्योंकि दाऊद ने परमेश्वर से कहा, “यह काम जो मैंने किया, वह महापाप है। परंतु अब अपने दास की बुराई दूर कर; मुझ से तो बड़ी मूर्खता हुई है” (व.8)।
जो डरावना और थरथराने वाला लगता है उसके साथ वह कहते हैं, “मैं बड़े संकट में पड़ा हूँ; मैं यहोवा के हाथ में पडूं, क्योंकि उनकी दया बहुत बड़ी है” (व.13)।
जब वह परमेश्वर के सामने एक बलिदान चढ़ाने जाते हैं, वह कहते हैं, “नहीं, मैं अवश्य इसका पूरा दाम ही देकर इसे मोल लूँगा; जो तेरा है, उसे मैं यहोवा के लिये नहीं लूँगा, और न सेंतमेंत का होमबलि चढ़ाऊँगा” (व.24)। उन्होंने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर ने उन्हें उत्तर दिया “स्वर्ग से आग गिराकर” (व.26)।
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं आज आपके पास आता हूँ दुर्बलता में और बहुत थरथराते हुए और मांगता हूँ कि आपकी सामर्थ मेरी दुर्बलता में सिद्ध हो (2कुरिंथियो 12:9)।
पिप्पा भी कहते है
1कुरिंथियो 1:27
“परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों को चुन लिया है कि ज्ञानवानों को लज्जित करें, और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है कि बलवानों को लज्जित करें”
निश्चित ही मैं कमजोर और मूर्ख के वर्ग में आती हूँ। धन्यवाद परमेश्वर मुझे चुनने के लिए!
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संदर्भ
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जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।