केवल जीतिव मत रहो, फूलो फूलो
परिचय
आज कुछ लोग जीवन को शेक्सपियर मेकबेथ के तीन चुड़ैल में बताते हैं,”दुगुना, दुगुना परिश्रम और परेशानी।” जीवन के प्रति मेरा दृष्टिकोण बदल गया जब एक मित्र ने बुद्धिमानी से मुझे बताया कि यह जीवन परेशानी सुधारने के अभ्यास की एक श्रृंखला है। इस जीवन में कभी भी हम परेशानियों के बिना नहीं होंगे। यदि सभी चुनौतियों के बीच में, आप स्थिती में फलना-फूलना नहीं सीख सकते हैं, तो आप कभी भी संतुष्टि नहीं पायेंगे।
सभोपदेशक के लेखक कहते हैं,”हर एक मनुष्य जिसे परमेश्वर ने धन संपत्ति दी हो, और उनसे आनंद भोगने और उसमें से अपना भाग लेने और परिश्रम करते हुए आनंद करने की शक्ति भी दी होः यह परमेश्वर का वरदान है” (सभोपदेशक 5:19, एम.एस.जी)। वर्तमान समय में जीवन का आनंद लेना सीखिए। यदि आप नहीं करेंगे, तो जीवन बीतता जाएगा और आप कभी भी उसका आनंद नहीं लेंगे जहाँ पर आप अभी हैं।
नीतिवचन 19:23-20:4
23 यहोवा का भय सच्चे जीवन की राह दिखाता,
इससे व्यक्ति शांति पाता है और कष्ट से बचता है।
24 आलसी का हाथ चाहे थाली में रखा हो
किन्तु वह उसको मुँह तक नहीं ला सकता।
25 उच्छृंखल को पीट, जिससे सरल जन
बुद्धि पाये बुद्धिमान को डाँट, वह और ज्ञान पायेगा।
26 ऐसा पुत्र जो निन्दनीय कर्म करता है घर का अपमान होता है,
वह ऐसा होता है जैसे पुत्र कोई निज पिता से छीने और घर से असहाय माँ को निकाल बाहर करे।
27 मेरे पुत्र यदि तू अनुशासन पर ध्यान देना छोड़ देगा,
तो तू ज्ञान के वचनों से भटक जायेगा।
28 भ्रष्ट गवाह न्याय की हँसी उड़ाता है,
और दुष्ट का मुख पाप को निगल जाता।
29 उच्छृंखल दण्ड पायेगा,
और मूर्ख जन की पीठ कोड़े खायेगी।
20मदिरा और यवसुरा लोगों को काबू में नहीं रहने देते।
वह मजाक उड़वाती है और झगड़े करवाती है।
वह मदमस्त हो जाते हैं और बुद्धिहीन कार्य करते हैं।
2 राजा का सिंह की दहाड़ सा कोप होता है,
जो उसे कुपित करता प्राण से हाथ धोता है।
3 झगड़ो से दूर रहना मनुष्य का आदर है;
किन्तु मूर्ख जन तो सदा झगड़े को तत्पर रहते।
4 ऋतु आने पर अदूरदर्शी आलसी हल नहीं डालता है
सो कटनी के समय वह ताकता रह जाता है और कुछ भी नहीं पाता है।
समीक्षा
परमेश्वर पर भरोसा करिए, आदर और सम्मान करिए
नीतिवचन के लेखक के अनुसार, परेशानी का उत्तर है,”परमेश्वर का भय” (19:23अ) –अर्थात परमेश्वर के साथ एक संबंध में जीना, उन पर भरोसा करना, उनका आदर और सम्मान करना। वह लिखते हैं,”यहोवा का भय मानने से जीवन बढ़ता है; और उसका भय मानने वाला ठिकाना पाकर सुखी रहता है; उस पर विपत्ति नहीं पड़ेगी” (व.23)।
वह आगे परेशानी के कुछ कारण बताते हैं:
- आलसीपन
अ.इस लेखांश में आलस को भविष्य में आने वाली परेशानी का एक कारण बताया गया हैः”आलसी मनुष्य शीत के कारण हल नहीं जोतता; इसलिये कटनी के समय वह कुछ नहीं कर पाता” (20:4, एम.एस.जी; 19:24 भी देखें)।
- आलोचना
ठट्ठा करना (19:25,29) एक प्रकार की दोष दर्शिता है। आज हमारी संस्कृति में यह बहुत ही सामान्य बात है। यह चर्च को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन यह एक अच्छी चीज नहीं है। यह सिर्फ परेशानी को लाता है।
- द्वेष
बेईमानी परेशानी का दूसरा कारण है।यह लूटना “शर्म और अपमान को लाता है” (व.26)। “बुरी साक्षी न्याय को ठट्ठो में उड़ाती है, और दुष्ट लोग अनर्थ काम निगल लेते हैं” (व.28, एम.एस.जी)।
- पदार्थ निंदा
”दाखमधु ठट्ठा करने वाला और मदिरा हल्ला मचाने वाली हैं, जो कोई उसके कारण चूक करता है, वह बुद्धिमान नहीं” (20:1, एम.एस.जी)। लोगों के शराब पीने के कारण बहुत परेशानी होती है। समाज में बहुत से अपराध जो होते हैं वह शराब या ड्रग्स के प्रभाव के कारण होते हैं।
- झगड़ा (व.3)।
”मुकदमें से हाथ उठाना, पुरुष की महिमा ठहरती है, परंतु सब मूढ़ झगड़ने को तैयार होते हैं” (व.3, एम.एस.जी)।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आपके साथ एक संबंध जीवन और संतुष्टि दिलाता है। मेरी सहायता कीजिए कि अनावश्यक परेशानी के कारणों से दूर रहूँ।
1 कुरिन्थियों 7:17-35
जैसे हो, वैसे जिओ
17 प्रभु ने जिसको जैसा दिया है और जिसको जिस रूप में चुना है, उसे वैसे ही जीना चाहिये। सभी कलीसियों में मैं इसी का आदेश देता हूँ। 18 जब किसी को परमेश्वर के द्वारा बुलाया गया, तब यदि वह ख़तना युक्त था तो उसे अपना ख़तना छिपाना नहीं चाहिये। और किसी को ऐसी दशा में बुलाया गया जब वह बिना ख़तने के था तो उसका ख़तना कराना नहीं चाहिये। 19 ख़तना तो कुछ नहीं है, और न ही ख़तना नहीं होना कुछ है। बल्कि परमेश्वर के आदेशों का पालन करना ही सब कुछ है। 20 हर किसी को उसी स्थिति में रहना चाहिये, जिसमें उसे बुलाया गया है। 21 क्या तुझे दास के रूम में बुलाया गया है? तू इसकी चिंता मत कर। किन्तु यदि तू स्वतन्त्र हो सकता है तो आगे बढ़ और अवसर का लाभ उठा। 22 क्योंकि जिसे प्रभु के दास के रूप में बुलाया गया, वह तो प्रभु का स्वतन्त्र व्यक्ति है। इसी प्रकार जिसे स्वतन्त्र व्यक्ति के रूप में बुलाया गया, वह मसीह का दास है। 23 परमेश्वर ने कीमत चुका कर तुम्हें खरीदा है। इसलिए मनुष्यों के दास मत बनो। 24 हे भाईयों, तुम्हें जिस भी स्थिति में बुलाया गया है, परमेश्वर के सामने उसी स्थिति में रहो।
विवाह करने सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर
25 अविवाहितों के सम्बन्ध में प्रभु की ओर से मुझे कोई आदेश नहीं मिला है। इसीलिए मैं प्रभु की दया प्राप्त करके विश्वासनीय होने के कारण अपनी राय देता हूँ। 26 मैं सोचता हूँ कि इस वर्तमान संकट के कारण यही अच्छा है कि कोई व्यक्ति मेरे समान ही अकेला रहे। 27 यदि तुम विवाहित हो तो उससे छुटकारा पाने का यत्न मत करो। यदि तुम स्त्री से मुक्त हो तो उसे खोजो मत। 28 किन्तु यदि तुम्हारा जीवन विवाहित है तो तुमने कोई पाप नहीं किया है। और यदि कोई कुँवारी कन्या विवाह करती है, तो कोई पाप नहीं करती है किन्तु ऐसे लोग शारीरिक कष्ट उठायेंगे जिनसे मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ।
29 हे भाइयो, मैं तो यही कह रहा हूँ, वक्त बहुत थोड़ा है। इसलिए अब से आगे, जिनके पास पत्नियाँ हैं, वे ऐसे रहें, मानो उनके पास पत्नियाँ हैं ही नहीं। 30 और वे जो बिलख रहे हैं, वे ऐसे रहें, मानो कभी दुखी ही न हुए हों। और जो आनान्दित हैं, वे ऐसे रहें, मानो प्रसन्न ही न हुए हों। और वे जो वस्तुएँ मोल लेते हैं, ऐसे रहें मानो उनके पास कुछ भी न हो। 31 और जो सांसारिक सुख-विलासों का भोग कर रहे हैं, वे ऐसे रहें, मानों वे वस्तुएँ उनके लिए कोई महत्व नहीं रखतीं। क्योंकि यह संसार अपने वर्तमान स्वरूप में नाशामान है।
32 मैं चाहता हूँ आप लोग चिंताओं से मुक्त रहें। एक अविवाहित व्यक्ति प्रभु सम्बन्धी विषयों के चिंतन में लगा रहता है कि वह प्रभु को कैसे प्रसन्न करे। 33 किन्तु एक विवाहित व्यक्ति सांसारिक विषयों में ही लिप्त रहता है कि वह अपनी पत्नी को कैसे प्रसन्न कर सकता है। 34 इस प्रकार उसका व्यक्तित्व बँट जाता है। और ऐसे ही किसी अविवाहित स्त्री या कुँवारी कन्या को जिसे बस प्रभु सम्बन्धी विषयों की ही चिंता रहती है। जिससे वह अपने शरीर और अपनी आत्मा से पवित्र हो सके। किन्तु एक विवाहित स्त्री सांसारिक विषयभोगों में इस प्रकार लिप्त रहती है कि वह अपने पति को रिझाती रह सके। 35 ये मैं तुमसे तुम्हारे भले के लिये ही कह रहा हूँ तुम पर प्रतिबन्ध लगाने के लिये नहीं। बल्कि अच्छी व्यवस्था को हित में और इसलिए भी कि तुम चित्त की चंचलता के बिना प्रभु को समर्पित हो सको।
समीक्षा
पूरी तरह से परमेश्वर के लिए समर्पित रहें
हमारी पीढ़ी के साथ मुख्य परेशानी है चिंता और सूची में न होना, जो नियमित रूप से तुलना करने और वंचित रहने के डर से आता है।
वंचित रहने के डर का उत्तर मिलता है उन शब्दों में जिससे पौलुस आज के लेखांश की शुरुवात करते हैं:” जैसा प्रभु ने हर एक को बाँटा है, और जैसा परमेश्वर ने हर एक को बुलाया है, वैसा ही वह चलें” (व.17, एम.एस.जी)। पौलुस सिद्धांत को बताते हैं जिससे उनकी सभी प्रार्थनाएं बहती हैं (वव.17-24)। एक नये मसीह को उस तरह से रहना चाहिए, जैसे वह तब थे, परिवर्तित होने के समय पर।
वह तीन उदाहरण देते हैं: विवाह, खतना और दासत्व। (इतिहास के अनुसार, प्रथम मसीह एक छोटी संख्या थे और दासत्व को समाप्त करने के पद पर नहीं थे।)
किंतु, यह व्यापक रूप से लागू होता है। जब तक उनका कार्य गैरकानूनी या अनैतिक न हो, जो मसीह बनते हैं उन्हें अपनी नौकरी नहीं छोडनी चाहिए, जब तक किसी नये काम में उन्हें एक स्पष्ट बुलाहट नहीं मिलती है। परमेश्वर आपको वस्तुओं में बुलाते हैं, नाकि उनसे बाहर।
पौलुस लोगों को बचाना चाहते हैं “इस जीवन में बहुत सी परेशानियो से” (व.28)। “अनावश्यक रूप से अपने जीवन को जटिल मत बनाईए” (व.29, एम.एस.जी)। उनकी सबसे बड़ी चिंता, जैसे ही वह विवाह और कुँवारा रहने के प्रश्न को देखते हैं,”यह परमेश्वर के लिए पूरी तरह से समर्पित रहना है” (व.35) – आपके जीवन का सबसे ऊँचा लक्ष्य।
पौलुस कुँवारा रहने के लाभों को लिखते हैं। निश्चित ही, यीशु कुँवारे थे और उन्होंने इस तथ्य के बारे में बताया कि कुछ लोगों के लिए इच्छा विरूद्ध है, जबकि दूसरों के लिए यह राज्य के लिए एक चुनाव है (मत्ती 19:12)। इच्छा विरूद्ध विवाह न करना मुश्किल और दर्दनाक विषय है, लेकिन मत्ती 19 में यीशु इस बारे में नहीं बता रहे हैं, नाही यहाँ पर पौलुस इस बारे में बता रहे है। पौलुस बता रहे हैं राज्य के लिए विवाह न करना। यह अस्थायी या स्थायी हो सकता है।
विवाह न करने का नुकसान स्पष्ट है। शायद से कुँवारे मसीह के लिए तीन कठिन चीजें हैं, पहला, विवाह में संगति से वंचित रहना और अकेलापन जो आ सकता है; दूसरा, यौन-संबंध की परिपूर्णता की कमी; तीसरा, संतान न होना।
किंतु, यहाँ पर पौलुस दो कारण भी देते हैं कि क्यों यह एक लाभ हो सकता हैः
- जीवन की संक्षिप्तता
वह लिखते हैं कि “व्यर्थ कार्य करने के लिए कोई समय नहीं” (1कुरिंथियो 7:29, एम.एस.जी), इसलिए अनावश्यक रूप से अपने जीवन को जटिल मत बनाइए। इसे सरल रखिए –विवाह, शोक, आनंद, चाहे जिस किसी में। यहाँ तक कि साधारण चीजों में भी– और खरीदारी करने की अपनी दैनिक प्रक्रिया में भी। विश्व जिन चीजों के लिए आपको विवश करता है, उनके साथ जहाँ तक संबंध हो सावधानी से रहिए (वव.29-31, एम.एस.जी)।
वह विवाह करने से मना नहीं कर रहे हैं नाही हँसी, शोक करने या खरीदारी करने से मना कर रहे हैं। इसके बजाय वह कह रहे हैं कि परमेश्वर की सेवा करने की महिमा के सामने बाकी सबकुछ महत्वहीन दिखने लगता है। हमें विश्व की चीजों से अलग होने की आवश्यकता है। यह आसान होगा यदि एक व्यक्ति का विवाह नहीं हुआ हो।
- व्यवधान से स्वतंत्रता
यह विशेष रूप से सताव के समय में लागू होता है, जो इस लेखांश के लिए संदर्भ प्रदान करता है,”वर्तमान मुसीबत के कारण” (व.26)।
पौलुस लिखते हैं,” अत: मैं यह चाहता हूँ कि तुम्हें चिन्ता न हो। अविवाहित पुरुष प्रभु की बातों की चिन्ता में रहता है कि प्रभु को कैसे प्रसन्न रखें। परन्तु विवाहित मनुष्य संसार की बातों की चिन्ता में रहता है कि अपनी पत्नी को किस रीति से प्रसन्न रखें। ...मैं यह बात तुम्हारे ही लाभ के लिये कहता हूँ, न कि तुम्हें फँसाने के लिये, वरन् इसलिये कि जैसा शोभा देता है वैसा ही किया जाए, कि तुम एक चित्त होकर प्रभु की सेवा में लगे रहो” (वव.32-35, एम.एस.जी)।
हमारे पास सीमित समय, ऊर्जा और पैसा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि विवाह में बहुत सी माँगे हैं। पौलुस अविवाहित रहने के एक सकारात्मक दृष्टिकोण की माँग करते हैं - चाहे अस्थायी या स्थायी। वह कह रहे हैं कि यह परिपूर्ण और स्वतंत्र करता है –जैसा कि यह यीशु के लिए था।
दूसरी जगह वह लिखते हैं कि विवाह, मसीह और चर्च के बीच में संबंध का एक चित्र है (इफीसियो 5)। वास्तविकता मसीह में मिलती है। विवाहित होना या अविवाहित रहना दोनों ही उपहार हैं। “परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण” सबसे महत्वपूर्ण है (1कुरिंथियो 7:35)। हम अक्सर अनुमान लगाते हैं कि विवाह जीवन का सबसे सर्वश्रेष्ठ और स्पष्ट जीने का तरीका है। यह लेखांश हमें याद दिलाता है कि अविवाहित रहने के लाभों को नजरअंदाज मत करिए।
अविवाहित रहना उतना ही उचित है, और यह बहुत फलदायी और परिपूर्ण करने वाला अनुभव हो सकता है।
प्रार्थना
परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि हर स्थिति में हम जीवन और संतुष्टि को पायें –वह जीवन जीते हुए जो “परमेश्वर को प्रसन्न करता है”। होने दीजिए कि हम परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण में सही तरीके से जीएँ (व.35)।
सभोपदेशक 4:1-6:12
क्या मर जाना श्रेष्ठ है?
4मैंने फिर यह भी देखा है कि कुछ लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। मैंने उनके आँसू देखे हैं और फिर यह भी देखा है कि उन दुःखी लोगों को ढाढ़स बँधाने वाला भी कोई नहीं है। मैंने देखा है कि कठोर लोगों के पास समूची शक्ति है और ये लोग जिन लोगों को क्षति पहुँचाते हैं उन्हें ढाढ़स बँधाने वाला भी कोई नहीं है। 2 मैं इस निर्णय पर पहुँचा हूँ कि ये बातें उन व्यक्तियों के लिये ज्यादा अच्छी हैं जो मर चुके हैं बजाये उनके लिये जो अभी तक जी रहे हैं। 3 उन लोगों के लिये तो ये बातें और भी अच्छी हैं जो जन्म लेते ही मर गए! क्यों? क्योकि, उन्होंने इस संसार में जो बुराइयाँ हो रही हैं, उन्हें देखा ही नहीं।
इतना कठिन परिश्रम क्यों?
4 फिर मैंने सोचा, “लोग इतनी कड़ी मेहनत क्यों करते हैं?” मैंने देखा है कि लोग सफल होने और दूसरे लोगों से और अधिक ऊँचा होने के प्रयत्न में लगे रहते हैं। ऐसा इसलिये होता है कि लोग ईष्यालु हैं। वे नहीं चाहते कि जितना उनके पास है, दूसरे के पास उससे अधिक हो। यह सब अर्थहीन है। यह वैसा ही है जैसे वायु को पकड़ना।
5 कुछ लोग कहा करते हैं कि हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहना और कुछ नहीं करना मूर्खता है। यदि तुम काम नहीं करोगे तो भूखे मर जाओगे। 6 जो कुछ मुठ्ठी भर तुम्हारे पास है उसमें संतुष्ट रहना अच्छा है बजाय इसके कि अधिकाधिक पाने की ललक में जूझते हुए वायु के पीछे दौड़ा जाता रहे।
7 फिर मैंने एक और बात देखी, जिसका कोई अर्थ नहीं है: 8 एक व्यक्ति परिवार विहीन हो सकता है। हो सकता है उसके कोई पुत्र और यहाँ तक कि कोई भाई भी न हो किन्तु वह व्यक्ति कठिन से कठिन परिश्रम करने में लगा रहता है और जो कुछ उसके पास होता है, उससे कभी संतुष्ट नहीं होता। सो मैं भी इतनी कड़ी मेहनत क्यों करता हूँ? मैं स्वयं अपने जीवन का आनन्द क्यों नहीं लेता हूँ? अब देखो यह भी एक दुःख भरी और व्यर्थ की बात है।
मित्रों और परिवार से शक्ति मिलती है
9 एक व्यक्ति से दो व्यक्ति उत्तम होते हैं। जब दो व्यक्ति मिलकर साथ—साथ काम करते हैं तो जिस काम को वे करते हैं, उस काम से उन्हें अधिक लाभ मिलता है।
10 यदि एक व्यक्ति गिर जाये तो दूसरा व्यक्ति उसकी मदद कर सकता है। किन्तु किसी व्यक्ति के लिये अकेला रहना अच्छा नहीं है क्योंकि जब वह गिरता है तो उसकी सहायता के लिये वहाँ कोई और नहीं होता।
11 यदि दो व्यक्ति एक साथ सोते हैं तो उनमें गरमाहट रहती है किन्तु अकेला सोता हुआ कभी गर्म नहीं हो सकता।
12 अकेले व्यक्ति को शत्रु हरा सकता है किन्तु वही शत्रु दो व्यक्तियों को नहीं हरा सकता है और तीन व्यक्तियों की शक्ति तो और भी अधिक होती है। वे एक ऐसे रस्से के समान होते हैं, जिसकी तीन लटें आपस में गुंथी हुई होती है, जिसे तोड़ पाना बहुत कठिन है।
लोग, राजनीति और प्रसिद्धि
13 एक गरीब किन्तु बुद्धिमान युवा नेता, एक वृद्ध किन्तु मूर्ख राजा से अच्छा है। वह वृद्ध राजा चेतावनियों पर ध्यान नहीं देता। 14 हो सकता है वह युवा शासक उस राज्य में गरीबी में पैदा हुआ हो और हो सकता है वह कारागर से छूटकर देश पर शासन करने के लिये आया हो। 15 किन्तु इस जीवन में मैंने लोगों को देखा है और मैं यह जानता हूँ कि लोग उस दूसरे युवानेता का ही अनुसरण करते हैं और वही नया राजा बन जाता हैं। 16 बहुत से लोग इस युवक के पीछे हो लेते हैं। किन्तु आगे चलकर वे लोग भी उसे पसन्द नहीं करते इसलिये यह सब भी व्यर्थ हैं। यह वैसे ही है जैसा कि वायु को पकड़ने का प्रयत्न करना।
मनौती मनाने में सावधानी
5जब परमेश्वर की उपासना के लिये जाओ तो बहुत अधिक सावधान रहो। अज्ञानियों के समान बलियाँ चढ़ाने की अपेसा परमेश्वर की आज्ञा मानना अधिक उत्तम है। अज्ञानी लोग प्राय: बुरे काम किया करते हैं और उसे जानते तक नहीं हैं। 2 परमेश्वर से मनन्त मानते समय सावधान रहो। परमेश्वर से जो कुछ कहो उन बातों के लिये सावधान रहो। भावना के आवेश में, जल्दी में कुछ मत कहो। परमेश्वर स्वर्ग में है और तुम धरती पर हो। इसलिये तुम्हें परमेश्वर से बहुत थोड़ा बोलने की आवश्यकता है। यह कहावत सच्ची है:
3 अति चिंता से बुरे स्वपन आया करते हैं।
और अधिक बोलने से मूर्खता उपजती है।
4 यदि तुम परमेश्वर से कोई मनौती माँगते हो तो उसे पूरा करो। जिस बात की तुमने मनौती मानी है उसे पूरा करने में देरी मत करो। परमेश्वर मूर्ख व्यक्तियों से प्रसन्न नहीं रहता। तूमने परमेश्वर को जो कुछ अर्पित करने का वचन दिया है उसे अर्पित करो। 5 यह अच्छा है कि तुम कोई मनौती मानो ही नहीं बजाय इसके कि कोई मनौती मानो और उसे पूरा न कर पाओ। 6 इसलिये अपने शब्दों को तुम स्वयं को पाप में मत ढकेलने दो। याजक से ऐसा मत बोलो कि, “जो कुछ मैंने कहा था उसका यह अर्थ नहीं है!” यदि तुम ऐसा करोगे तो परमेश्वर तुम्हारे शब्दों से रूष्ट होकर जिन वस्तुओं के लिये तुमने कर्म किया है, उन सबको नष्ट कर देगा। 7 अपने बेकार के सपनों और डींग मारने से विपत्तियों में मत पड़ों। तुम्हें परमेश्वर का सम्मान करना चाहिये।
प्रत्येक अधिकारी के ऊपर एक अधिकारी है
8 कुछ देशों में तुम ऐसे दीन—हीन लोगों को देखोगे जिन्हें कड़ी मेहनत करने को विवश किया जाता है। तुम देख सकते हो कि निर्धन लोगों के साथ यह व्यवहार उचित नहीं है। यह गरीब लोगों के अधिकारों के विरूद्ध है। किन्तु आश्चर्य मत करो। जो अधिकारी उन व्यक्तियों को कार्य करने के लिये विवश करता है, और वे दोनों अधिकारी किसी अन्य अधिकारी द्वारा विवश किये जाते हैं। 9 इतना होने पर भी किसी खेती योग्य भूमि पर एक राजा का होना देश के लिये लाभदायक है।
धन से प्रसन्नता खरीदी नहीं जा सकती
10 वह व्यक्ति जो धन को प्रेम करता है वह उस धन से जो उसके पास है कभी संतुष्ट नहीं होता। वह व्यक्ति जो धन को प्रेम करता है, जब अधिक से अधिक धन प्राप्त कर लेता है तब भी उसका मन नहीं भरता। सो यह भी व्यर्थ है।
11 किसी व्यक्ति के पास जितना अधिक धन होगा उसे खर्च करने के लिये उसके पास उतने ही अधिक मित्र होंगे। सो उस धनी मनुष्य को वास्तव में प्राप्त कुछ नहीं होता है। वह अपने धन को बस देखता भर रह सकता है।
12 एक ऐसा व्यक्ति जो सारे दिन कड़ी मेहनत करता है, अपने घर लौटने पर चैन के साथ सोता है। यह महत्व नहीं रखता है कि उसके पास खाने कों कम हैं या अधिक है। एक धनी व्यक्ति अपने धन की चिंताओं में डूबा रहता है और सो तक नहीं पाता।
13 बहुत बड़े दुःख की बात है एक जिसे मैंने इस जीवन में घटते देखा है। देखो एक व्यक्ति भविष्य के लिये धन बचा कर रखता है। 14 और फिर कोई बुरी बात घट जाती है और उसका सब कुछ जाता रहता है और व्यक्ति के पास अपने पुत्र को देने के लिये कुछ भी नहीं रहता।
15 एक व्यक्ति संसार में अपनी माँ के गर्भ से खाली हाथ आता है और जब उस व्यक्ति की मृत्यु होती है तो वह बिना कुछ अपने साथ लिये सब यहीं छोड़ चला जाता है। वस्तुओं को प्राप्त करने के लिये वह कठिन परिश्रम करता है। किन्तु जब वह मरता है तो अपने साथ कुछ नहीं ले जा पाता। 16 यह बड़े दुःख की बात है। यह संसार उसे उसी प्रकार छोड़ना होता है जिस प्रकार वह आया था। इसलिये “हवा को पकड़ने की कोशिश” करने से किसी व्यक्ति के हाथ क्या लगता है? 17 उसे यदि कुछ मिलता है तो वह है दुःख और शोक से भरे हुए दिन। सो आखिरकार वह हताश, रोगी और चिड़चिड़ा हो जाता है!
अपने जीवन के कर्म का रस लो
18 मैंने तो यह देखा है कि मनुष्य जो कर सकता है उसमें सबसे उत्तम यह है—एक व्यक्ति को चाहिये कि वह खाए—पीए और जिस काम को वह इस धरती पर अपने छोटे से जीवन के दौरान करता है उसका आनन्द ले। परमेश्वर ने ये थोड़े से दिन दिये हैं और बस यही तो उसके पास है।
19 यदि परमेश्वर किसी को धन, सम्पत्ति, और उन वस्तुओं का आनन्द लेने की शक्ति देता है तो उस व्यक्ति को उनका आनन्द लेना चाहिये। उस व्यक्ति को जो कुछ उसके पास है उसे स्वीकार करना चाहिये और अपने काम के जो परमेश्वर की ओर से एक उपहार है उसका रस लेना चाहिये। 20 सो ऐसा व्यक्ति कभी यह सोचता ही नहीं कि जीवन कितना छोटा सा है। क्योंकि परमेश्वर उस व्यक्ति को उन कामों में ही लगाये रखता है, जिन कामों के कारने में उस व्यक्ति की रूचि होती है।
धन से प्रसन्नता नहीं मिलती
6मैंने जीवन में एक और बात देखी जो ठीक नहीं है। यह समझना बहुत कठिन है कि 2 परमेश्वर किसी व्यक्ति को बहुत सा धन देता है, सम्पत्तियाँ देता है और आदर देता है। उस व्यक्ति के पास उसकी आवश्यकता की वस्तु होती है और जो कुछ भी वह चाह सकता है वह भी होता है। किन्तु परमेश्वर उस व्यक्ति को उन वस्तुओं का भोग नहीं करने देता। तभी कोई अजनबी आता है और उन सभी वस्तुओं को छीन लेता है। यह एक बहुत बुरी और व्यर्थ बात है।
3 कोई व्यक्ति बहुत दिनों तक जीता है और हो सकता है उसके सौ बच्चे हो जाये। किन्तु यदि वह व्यक्ति उन अच्छी वस्तुओं से संतुष्ट नहीं होता और यदि उसकी मृत्यु के बाद कोई उसे याद नहीं करता है मैं कहता हूँ कि 4 उस व्यक्ति से तो वह बच्चा ही अच्छा है जो जन्म लेते ही मर जाता है। 5 उस बच्चे ने कभी सूरज तो देखा ही नहीं। उस बच्चे ने कभी कुछ नहीं जाना किन्तु उस व्यक्ति की किस्मत जिसने परमेश्वर की दी हुई वस्तुओं का कभी आनन्द नहीं लिया, उस बच्चे को अधिक चैन मिलता है। 6 वह व्यक्ति चाहे दो हजार वर्ष जिए किन्तु वह जीवन का आनन्द नहीं उठाता तो वह बच्चा जो मरा ही पैदा हुआ हो, उस एक जैसे अंत अर्थात् मृत्यु को आसानी से पाता है।
7 एक व्यक्ति निरन्तर काम करता ही रहता है क्यों? क्योंकि उसे अपनी इच्छाएँ पूरी करनी है। किन्तु वह सन्तुष्ट तो कभी नहीं होता। 8 इस प्रकार से एक बुद्धिमान व्यक्ति भी एक मूर्ख मनुष्य से किसी प्रकार उत्तम नहीं है। ऐसे दीन—हीन मनुष्य होने का भी क्या फायदा हो सकता। 9 वे वस्तुएँ जो तुम्हारे पास है, उनमें सन्तोष करना अच्छा है बजाय इसके कि और लगन लगी रहे। सदा अधिक की कामना करते रहना निरर्थक है। यह वैसा ही है जैसे वायु को पकड़ने का प्रयत्न करना।
10-11 जो कुछ घट रहा है उसकी योजना बहुत पहले बन चुकी होती है। एक व्यक्ति बस वैसा ही होता है कि जैसा होने के लिए उसे बनाया गया है। हर कोई जानता है लोग कैसे होते हैं। सो इस विषय में परमेश्वर से तर्क करना बेकार है क्योंकि परमेश्वर किसी भी व्यक्ति से अधिक शक्तिशाली है।
12 कौन जानता है कि इस धरती पर मनुष्य के छोटे से जीवन में उसके लिये सबसे अच्छा क्या है? उसका जीवन तो छाया के समान ढल जाता है। बाद में क्या होगा कोई नहीं बता सकता।
समीक्षा
काम और संबंधों की आशीष का आनंद लीजिए
लेखक जीवन के खालीपन और इसकी व्यर्थता के विषय को जारी रखते हैं। वह जीवन को परेशानी,”सताव” और “परिश्रम” से भरा हुआ देखते हैं (4:1-6)।
वह उन लोगों के खालीपन के बारे में बताते हैं जो ऊँचे पद पर हैं (वव.13-16)। वह संग्रहणशील जीवन के खालीपन के बारे में भी बताते हैं (5:16-17) और इच्छा जो आसानी से पकड़ में नहीं आती (6:9)। जीवन के इस निराशावादी और उदास करने वाले नजरिये के बीच में, वह परिश्रम और परेशानी के बीच में फलने फूलने की पूंजी बताते हैं।
- काम
काम की कमी एक बुरी वस्तु हैः”मूर्ख छाती पर हाथ रखे रहता, और अपना मांस खाता है” (4:5)। दूसरी ओर, अत्यधिक कठिन परिश्रम मत कीजिएः”उसके परिश्रम का अंत नहीं होता, न उसकी आँखे धन से संतुष्ट होती हैं। और न वह कहता है, मैं किसके लिये परिश्रम करता और अपने जीवन को सुखरहित रखता हूँ? यह भी व्यर्थ और बहुत दुखभरा काम है” (व.8, एम.एस.जी)।
आशावादी होना उदार कार्य हैः”चैन के साथ एक मुट्ठि उन दो मुट्ठियों से अच्छी है, जिनके साथ परिश्रम और मन का कुढ़ना हो” (व.6)। वह आगे कहते हैं,”परिश्रम करने वाला चाहे थोड़ा खाए या बहुत, तब भी उसकी नींद सुखदाई होती है” (5:12)।
- संबंध
वह आगे संबंधो के महत्वपूर्ण महत्व को बताते हैं: विवाह, मित्रता और समूह (4:9-12)। पहली यहाँ पर संगती है। “एक से दो अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है” (व.9, एम.एस.जी.)। एक समूह के रूप में कार्य करना बहुत सक्षम हो सकता है।
दूसरा, आपसी सहयोग से लाभ होता है। “क्योंकि यदि उनमें से एक गिरे, तो दूसरा उसको उठाएगा; परंतु हाय उन पर जो अकेला होकर गिरे और उनका कोई उठाने वाला ना हो” (व.10)।
तीसरा, इसमें भौतिक और आत्मिक सहयोग का लाभ हैः”जो डोरी तीन धागे से बटी हो वह जल्दी नहीं टूटती” (व.12)।
एक मजबूत मित्रता या एक मजबूत विवाह की पूंजी है तीसरी डोरी –जिसके विषय में आज का लेखांश बताता है “परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण” (व.1कुरिंथियो 7:35) और “परमेश्वर का भय” (नीतिवचन 19:23अ)।
प्रार्थना
परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि हम अनावश्यक “परिश्रम और परेशानी” से दूर रहें और परमेश्वर के प्रति पूरे समर्पित रहें, केवल जीवित रहने के लिए नहीं, लेकिन फलने-फूलने और जीवन का आनंद लेने के लिए और जीवन की बहुतायतता का आनंद लेने के लिए भी।
पिप्पा भी कहते है
सभोपदेशक 4:4
“तब मैं ने सब परिश्रम के काम और सब सफल कामों को देखा जो लोग अपने पड़ोसी से जलन के कारण करते हैं।”
यह चीजों को देखने का एक दोषदर्शी तरीका है। ईर्ष्या विनाशकारी है, लेकिन कभी कभी एक छोटी सी स्वस्थ स्पर्धा बहुत उत्साहित करती है।

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संदर्भ
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।