प्रेम की सोलह विशेषताएँ
परिचय
मैंने एक मिशनरी के उदाहरण पर चलने की कोशिश की, जिनके बारे में मैंने एक बार सुना था जो, हर दिन, आज के नये नियम के लेखांश में से चार वचन पढ़ती थी, जो प्रेम की सोलह विशेषताओं की सूची बताते हैं। शब्द 'प्रेम' के लिए वह अपना खुद का नाम इस्तेमाल करती थी। जब वह ऐसी एक विशेषता पर पहुँचती, जिसके बारे में वह जानती थी कि यह उनके विषय में सच नहीं है, वह रूक जाती थी। उनका लक्ष्य था कि एक दिन, पूरी सूची को पूरा करें।
'प्रेम धैर्यवान है' के साथ चार वचनो (1कुरिंथियो 13:4-7) की शुरुवात होती है। तो मैंने इसमें अपना नाम रखा और शुरुवात की 'निकी धैर्यवान है।' मुझे नही लगता कि उन लोगों को इस बात से हैरानी होगी जो मुझे अच्छी तरह से जानते हैं कि मुझे वहाँ पर रुकना पड़ा!
महान सुसमाचार प्रचारक डी.एल. मूडी एक बार इंग्लैंड में मित्रों के एक समूह के साथ रह रहे थे। एक शाम उन्होंने हेनरी ड्रमोंड को पढ़ने और वचन के एक भाग को समझाने के लिए कहा। थोड़ा चिताने के बाद, हेनरी ने अपनी जेब से एक छोटा नया नियम निकाला, इसे खोला 1कुरिंथियो 13 और प्रेम के विषय में बताने लगे। डी.एल.मूडी ने जवाब में लिखाः
'मुझे ऐसा लगता है कि मैंने पहले कभी इतनी सुंदर बातें नहीं सुनी हैं। हमारे जीवन में सबसे बड़ी जरुरत है प्रेम, परमेश्वर से और एक दूसरे के साथ अत्यधिक प्रेम। आशा करता हूँ कि हम सभी उस प्रेम अध्याय में जाएँ और वहाँ पर रहें।'
हमें एक विचार प्राप्त होता है कि हेनरी ड्रमोंड ने उस शाम क्या कहा होगा, उनकी पुस्तक से जो है 'विश्व की सबसे महान वस्तु।' वह लिखते हैं: 'बड़े परमेश्वर क्या हैं? आपके सामने जीवन है। आप इसे केवल एक बार जी सकते हैं। इच्छा का सबसे उच्च गुण क्या है, लालच करने के लिए सबसे बड़ा उपहार? 1कुरिंथियो 13 में पौलुस हमें मसीहत के स्त्रोत में ले जाते हैं; और वहाँ पर हम देखते हैं 'इनमें सबसे बड़ा प्रेम है।'
परमेश्वर प्रेम हैं। हम अपने आपको धोखा देते हैं यदि हम सोचते हैं कि हम परमेश्वर से प्रेम कर सकते हैं और दूसरो से नफरत कर सकते हैं (1यूहन्ना 4:20)। आपकी आत्मिक प्राथमिक सूची में प्रेम नंबर एक पर होना चाहिए। इसे आपके जीवन में मुख्य वस्तु होनी चाहिए। संत पौलुस के शब्दों में, यह 'सबसे सर्वश्रेष्ठ तरीका' है (1कुरिंथियो 12:31)।
भजन संहिता 100:1-5
धन्यवाद का एक गीत।
100हे धरती, तुम यहोवा के लिये गाओ।
2 आनन्दित रहो जब तुम यहोवा की सेवा करो।
प्रसन्न गीतों के साथ यहोवा के सामने आओ।
3 तुम जान लो कि वह यहोवा ही परमेश्वर है।
उसने हमें रचा है और हम उसके भक्त हैं।
हम उसकी भेड़ हैं।
4 धन्यवाद के गीत संग लिये यहोवा के नगर में आओ,
गुणगान के गीत संग लिये यहोवा के मन्दिर में आओ।
उसका आदर करो और नाम धन्य करो।
5 यहोवा उत्तम है।
उसका प्रेम सदा सर्वदा है।
हम उस पर सदा सर्वदा के लिये भरोसा कर सकते हैं!
समीक्षा
अपने लिए परमेश्वर के प्रेम का आनंद लीजिए
भजनसंहिता के लेखक हमें उत्साहित करते हैं कि 'परमेश्वर के लिए आनंद से जयजयकार करो... आनन्द से यहोवा की आराधना करो! जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ' (वव.1-2)। वह हमसे कहते हैं कि ' उनके फाटकों से धन्यवाद, और उनके आँगनों में स्तुती करते हुए प्रवेश करो, उनका धन्यवाद करो, और उनके नाम को धन्य कहो' (व.4); गुप्त शब्द के साथ प्रवेश करोः 'धन्यवाद' (व.4, एम.एस.जी); 'आभारी रहो और उनका धन्यवाद करो' (व.4, ए.एम.पी.)।
क्यों? ऐसे आनंद, धन्यवादिता और स्तुती का क्या कारण है? वचन 5 में भजनसंहिता के लेखक उत्तर देते हैं: ' क्योंकि यहोवा भले हैं, उनकी करुणा सदा के लिये, और उनकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।'
परमेश्वर अच्छे हैं और वह आपसे प्रेम करते हैं। इसमें संपूर्ण बाईबल का संदेश समाविष्ट है। यह उनका प्रेम है जो हमारे प्रेम का स्त्रोत हैः'हम प्रेम करते हैं क्योंकि पहले उन्होंने प्रेम किया' (1यूहन्ना 4:19)। समझिये, विश्वास कीजिए और स्वीकार कीजिए कि वह आपसे प्रेम करते हैं और उनके प्रेम का आनंद लीजिए।
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं आपका धन्यवाद देता हूँ और आपकी स्तुती करता हूँ मेरे लिए आपके अद्भुत प्रेम के लिए। आपका धन्यवाद कि आपका प्रेम सर्वदा बना रहता है। आज मेरी सहायता कीजिए कि आपके प्रेम का आनंद ले सकूं।
1 कुरिन्थियों 12:27-13:13
27 इस प्रकार तुम सभी लोग मसीह का शरीर हो और अलग-अलग रूप में उसके अंग हो। 28 इतना ही नहीं परमेश्वर ने कलीसिया में पहले प्रेरितों को, दूसरे नबियों को, तीसरे उपदेशकों को, फिर आश्चर्यकर्म करने वालों को, फिर चंगा करने की शक्ति से युक्त व्यक्तियों को, फिर उनको जो दूसरों की सहायता करते हैं, प्रस्थापित किया है, फिर अगुवाई करने वालों को और फिर उन लोगों को जो विभिन्न भाषाएँ बोल सकते हैं। 29 क्या ये सभी प्रेरित हैं? ये सभी क्या नबी हैं? क्या ये सभी उपदेशक हैं? क्या ये सभी आश्चर्यकार्य करते हैं? 30 क्या इन सब के पास चंगा करने की शक्ति है? क्या ये सभी दूसरी भाषाएँ बोलते हैं? क्या ये सभी अन्यभाषाओं की व्याख्या करते हैं? 31 हाँ, किन्तु तुम आत्मा के और बड़े वरदान पाने कि लिए यत्न करते रहो। और इन सब के लिए उत्तम मार्ग तुम्हें अब मैं दिखाऊँगा।
प्रेम महान है
13यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की भाषाएँ तो बोल सकूँ किन्तु मुझमें प्रेम न हो, तो मैं एक बजता हुआ घड़ियाल या झंकारती हुई झाँझ मात्र हूँ। 2 यदि मुझमें परमेश्वर की ओर से बोलने की शक्ति हो और मैं परमेश्वर के सभी रहस्यों को जानता होऊँ तथा समूचा दिव्य ज्ञान भी मेरे पास हो और इतना विश्वास भी मुझमें हो कि पहाड़ों को अपने स्थान से सरका सकूँ, किन्तु मुझमें प्रेम न हो 3 तो मैं कुछ नहीं हूँ। यदि मैं अपनी सारी सम्पत्ति थोड़ी-थोड़ी कर के ज़रूरत मन्दों के लिए दान कर दूँ और अब चाहे अपने शरीर तक को जला डालने के लिए सौंप दूँ किन्तु यदि मैं प्रेम नहीं करता तो। इससे मेरा भला होने वाला नहीं है।
4 प्रेम धैर्यपूर्ण है, प्रेम दयामय है, प्रेम में ईर्ष्या नहीं होती, प्रेम अपनी प्रशंसा आप नहीं करता। 5 वह अभिमानी नहीं होता। वह अनुचित व्यवहार कभी नहीं करता, वह स्वार्थी नहीं है, प्रेम कभी झुँझलाता नहीं, वह बुराइयों का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता। 6 बुराई पर कभी उसे प्रसन्नता नहीं होती। वह तो दूसरों के साथ सत्य पर आनंदित होता है। 7 वह सदा रक्षा करता है, वह सदा विश्वास करता है। प्रेम सदा आशा से पूर्ण रहता है। वह सहनशील है।
8 प्रेम अमर है। जबकि भविष्यवाणी का सामर्थ्य तो समाप्त हो जायेगा, दूसरी भाषाओं को बोलने की क्षमता युक्त जीभें एक दिन चुप हो जायेंगी, दिव्य ज्ञान का उपहार जाता रहेगा, 9 क्योंकि हमारा ज्ञान तो अधूरा है, हमारी भविष्यवाणियाँ अपूर्ण हैं। 10 किन्तु जब पूर्णता आयेगी तो वह अधूरापन चला जायेगा।
11 जब मैं बच्चा था तो एक बच्चे की तरह ही बोला करता था, वैसे ही सोचता था और उसी प्रकार सोच विचार करता था, किन्तु अब जब मैं बड़ा होकर पुरूष बन गया हूँ, तो वे बचपने की बातें जाती रही हैं। 12 क्योंकि अभी तो दर्पण में हमें एक धुँधला सा प्रतिबिंब दिखायी पड़ रहा है किन्तु पूर्णता प्राप्त हो जाने पर हम पूरी तरह आमने-सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान आंशिक है किन्तु समय आने पर वह परिपूर्ण होगा। वैसे ही जैसे परमेश्वर मुझे पूरी तरह जानता है। 13 इस दौरान विश्वास, आशा और प्रेम तो बने ही रहेंगे और इन तीनों में भी सबसे महान् है प्रेम।
समीक्षा
प्रेम के एक जीवन को अपनाईये
हेनरी ड्रमोंड समझाते हैं कि इस अध्याय की शुरुवात में प्रेम की तुलना की गई है; प्रेम का मूल्यांकन किया गया और अंत में मुख्य उपहार के रूप में प्रेम की रक्षा की गई है।
- प्रेम की तुलना करना
1कुरिंथियो 13 में प्रेम का वर्णन सूंपर्ण नये नियम में एक बहुत ही सुंदर और विख्यात लेखांश है। बहुत से चर्च में न जाने वाले इसे पहचानते हैं, जब विवाह में इसे पढ़ा जाता है। पौलुस इसे अपनी शिक्षा के मध्य में रखते हैं, मसीह की देह में और पवित्र आत्मा के वरदान के विषय में।
1कुरिंथियों 12:27-30 में वह नौ वरदान की सूची लिखते हैं। अध्याय 12 की शुरुवात में उन्होंने नौ वरदान भी लिखे। यहाँ पर पाँच एक समान हैं। तो कुल मिलाकर पवित्र आत्मा के तेरह वरदान लिखे गए हैं। पौलुस इन वरदानों की महत्ता का वर्णन कर रहे थे ताकि मसीह की देह परिपूर्णता तक काम कर सके।
प्रेम के विषय में बात करने के द्वारा वह वरदान के महत्व को घटा नहीं रहे हैं। इसके बजाय, वह कह रहे हैं,'वरदान जरुरी है लेकिन प्रेम उससे भी ज्यादा जरुरी है।' हमें पवित्र आत्मा के वरदानों की अत्यधिक आवश्यकता है कि आज चर्च में उचित रीति से इन्हें काम में लाया जाएं। किंतु, जैसा कि पौलुस के दिनों में, प्रेम इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह 'सबसे श्रेष्ठ तरीका है' (व.31)।
असल में, पौलुस कहते हैं कि यदि हमारे पास सारे नौ वरदान हैं और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूँ, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं' (13:1-3)। वह वरदानों के इस्तेमाल की आलोचाना नहीं कर रहे हैं, जैसे कि अन्यभाषाओं में बोलना और भविष्यवाणी (वव.1-2), नाही वह शहीदों की आलोचना कर रहे हैं (व.3)। वह सरलतापूर्वक केवल इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जो कुछ आप करते हैं उसे प्रेम से किया जाना चाहिए।
- प्रेम का मूल्यांकन
फिर पौलुस प्रेम की सोलह विशेषताओं को बताते हैं। हर बार मैं जब इस सूची को पढ़ता हूँ तब मैं गहराई से चुनौती महसूस करता हूँ। मैं जानता हूँ इन सभी विशेषताओं में मैं कहाँ कम पड़ता हूँ – केवल पहले वाला नहीं –मैं अक्सर नाकाम होता हूँ। मुझे मैसेज अनुवाद पसंद हैः
'प्रेम कभी हार नहीं मानता (प्रेम धैर्यवान है, एन.आई.व्ही)
प्रेम अपने से अधिक दूसरों की चिंता करता है
प्रेम वह नहीं चाहता जो उसके पास नहीं है
प्रेम अकड़ता नहीं,
फूलता नहीं,
दूसरों पर थोपता नहीं,
हमेशा 'पहले मैं' नहीं कहता,
डींगे नहीं मारता,
दूसरों के पाप नहीं गिनता,
दूसरों के गिरने से प्रसन्न नहीं होता,
सच्चाई के बढ़ने से आनंदित होता है,
सबकुछ सह लेता है,
हमेशा परमेश्वर पर भरोसा करता है,
हमेशा सर्वश्रेष्ठ चाहता है,
कभी पीछे नहीं देखता,
लेकिन आगे बढ़ता रहता है' (वव.4-7, एम.एस.जी)
प्रेम की रक्षा
प्रेम अस्थायी है। बाकी सब स्थायी है। एक दिन आत्मा के सभी वरदान अनावश्यक बन जाएँगे। कुछ लोगों ने विवाद किया है कि यहाँ पर पौलुस कह रहे हैं कि आत्मा के वरदान (जैसे की अन्यभाषाओं में बोलना) इतिहास के एक समय में बंद हो जाएंगे। असल में, वह बिल्कुल विपरीत कह रहे हैं। वह कह रहे हैं कि आत्मा के वरदान समाप्त नहीं होगे जब तक हम यीशु को 'आमने- सामने ' न देख लें (व.12)। अभी हम यीशु को 'आमने सामने' नहीं देखते हैं और इसलिए आत्मा के वरदान अभी समाप्त नहीं हुए हैं। अब भी हमें उनकी बहुत जरुरत है।
लेकिन, विश्व में सबसे महान वस्तु प्रेम है। पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थायी हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है (व.13)।
प्रार्थना
परमेश्वर, आज हमें चर्च में इस प्रकार के प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। प्रेम में बढ़ने में मेरी सहायता कीजिए ताकि उस तरीके को दर्शाऊँ जिसका वर्णन पौलुस ने किया है। होने दीजिए कि आपके लिए और दूसरों के लिए मैं अपने प्रेम को, मेरे जीवन की सबसे ऊँची प्राथमिकता बनाऊँ।
श्रेष्ठगीत 5:1-8:14
पुरुष का वचन
5मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, मैंने अपने उपवन में
अपनी सुगध सामग्री के साथ प्रवेश किया। मैंने अपना रसगंध एकत्र किया है।
मैं अपना मधु छत्ता समेत खा चुका।
मैं अपना दाखमधु और अपना दूध पी चुका।
स्त्रियों का वचन प्रेमियों के प्रति
हे मित्रों, खाओ, हाँ प्रेमियों, पियो!
प्रेम के दाखमधु से मस्त हो जाओ!
स्त्री का वचन
2 मैं सोती हूँ
किन्तु मेरा हृदय जागता है।
मैं अपने हृदय—धन को द्वार पर दस्तक देते हुए सुनती हूँ।
“मेरे लिये द्वार खोलो मेरी संगिनी, ओ मेरी प्रिये! मेरी कबूतरी, ओ मेरी निर्मल!
मेरे सिर पर ओस पड़ी है
मेरे केश रात की नमी से भीगें हैं।”
3 “मैंने निज वस्त्र उतार दिया है।
मैं इसे फिर से नहीं पहनना चाहती हूँ।
मैं अपने पाँव धो चुकी हूँ,
फिर से मैं इसे मैला नहीं करना चाहती हूँ।”
4 मेरे प्रियतम ने कपाट की झिरी में हाथ डाल दिया,
मुझे उसके लिये खेद हैं।
5 मैं अपने प्रियतम के लिये द्वार खोलने को उठ जाती हूँ।
रसगंध मेरे हाथों से
और सुगंधित रसगंध मेरी उंगलियों से ताले के हत्थे पर टपकता है।
6 अपने प्रियतम के लिये मैंने द्वार खोल दिया,
किन्तु मेरा प्रियतम तब तक जा चुका था!
जब वह चला गया
तो जैसे मेरा प्राण निकल गया।
मैं उसे ढूँढती फिरी
किन्तु मैंने उसे नहीं पाया;
मैं उसे पुकारती फिरी
किन्तु उसने मुझे उत्तर नहीं दिया!
7 नगर के पहरुओं ने मुझे पाया।
उन्होंने मुझे मारा
और मुझे क्षति पहुँचायी।
नगर के परकोटे के पहरुओं ने
मुझसे मेरा दुपट्टा छीन लिया।
8 यरूशलेम की पुत्रियों, मेरी तुमसे विनती है
कि यदि तुम मेरे प्रियतम को पा जाओ तो उसको बता देना कि मैं उसके प्रेम की भूखी हूँ।
यरूशलेम की पुत्रियों का उसको उत्तर
9 क्या तेरा प्रिय, औरों के प्रियों से उत्तम है स्त्रियों में तू सुन्दरतम स्त्री है।
क्या तेरा प्रिय, औरों से उत्तम है
क्या इसलिये तू हम से ऐसा वचन चाहती है
यरूशलेम की पुत्रियों को उसको उत्तर
10 मेरा प्रियतम गौरवर्ण और तेजस्वी है।
वह दसियों हजार पुरुषों में सर्वोत्तम है।
11 उसका माथा शुद्ध सोने सा,
उसके घुँघराले केश कौवे से काले अति सुन्दर हैं।
12 ऐसी उसकी आँखे है जैसे जल धार के किनारे कबूतर बैठे हों।
उसकी आँखें दूध में नहाये कबूतर जैसी हैं।
उसकी आँखें ऐसी हैं जैसे रत्न जड़े हों।
13 गाल उसके मसालों की क्यारी जैसे लगते हैं,
जैसे कोई फूलों की क्यारी जिससे सुगंध फैल रही हो।
उसके होंठ कुमुद से हैं
जिनसे रसगंध टपका करता है।
14 उसकी भुजायें सोने की छड़ जैसी है
जिनमें रत्न जड़े हों।
उसकी देह ऐसी हैं
जिसमें नीलम जड़े हों।
15 उसकी जाँघे संगमरमर के खम्बों जैसी है
जिनको उत्तम स्वर्ण पर बैठाया गया हो।
उसका ऊँचा कद लबानोन के देवदार जैसा है
जो देवदार वृक्षों में उत्तम हैं!
16 हाँ, यरूशलेम की पुत्रियों, मेरा प्रियतम बहुत ही अधिक कामनीय है,
सबसे मधुरतम उसका मुख है।
ऐसा है मेरा प्रियतम,
मेरा मित्र।
यरूशलेम की पुत्रियों का उससे कथन
6स्त्रियों में सुन्दरतम स्त्री,
बता तेरा प्रियतम कहाँ चला गया
किस राह से तेरा प्रियतम चला गया है
हमें बता ताकि हम तेरे साथ उसको ढूँढ सके।
यरूशलेम की पुत्रियों को उसका उत्तर
2 मेरा प्रिय अपने उपवन में चला गया,
सुगंधित क्यारियों में,
उपवन में अपनी भेड़ चराने को
और कुमुदिनियाँ एकत्र करने को।
3 मैं हूँ अपने प्रियतम की
और वह मेरा प्रियतम है।
वह कुमुदिनियों के बीच चराया करता है।
पुरुष का वचन स्त्री के प्रति
4 मेरी प्रिय, तू तिर्सा सी सुन्दर है,
तू यरूशलेम सी मनोहर है, तू इतनी अद्भुत है
जैसे कोई दिवारों से घिरा नगर हो।
5 मेरे ऊपर से तू आँखें हटा ले!
तेरे नयन मुझको उत्तेजित करते हैं!
तेरे केश लम्बे हैं और वे ऐसे लहराते है
जैसे गिलाद की पहाड़ी से बकरियों का झुण्ड उछलता हुआ उतरता आता हो।
6 तेरे दाँत ऐसे सफेद है
जैसे मेंढ़े जो अभी—अभी नहा कर निकली हों।
वे सभी जुड़वा बच्चों को जन्म दिया करती हैं
और उनमें से किसी का भी बच्चा नहीं मरा है।
7 घूँघट के नीचे तेरी कनपटियाँ
ऐसी हैं जैसे अनार की दो फाँके हों।
8 वहाँ साठ रानियाँ,
अस्सी सेविकायें
और नयी असंख्य कुमारियाँ हैं।
9 किन्तु मेरी कबूतरी, मेरी निर्मल,
उनमें एक मात्र है।
जिस मां ने उसे जन्म दिया
वह उस माँ की प्रिय है।
कुमारियों ने उसे देखा और उसे सराहा।
हाँ, रानियों और सेविकाओं ने भी उसको देखकर उसकी प्रशंसा की थी।
स्त्रियों द्वारा उसकी प्रशंसा
10 वह कुमारियाँ कौन है
वह भोर सी चमकती है।
वह चाँद सी सुन्दर है,
वह इतनी भव्य है जितना सूर्य,
वह ऐसी अद्भुत है जैसे आकाश में सेना।
स्त्री का वचन
11 मैं गिरीदार पेड़ों के बगीचे में घाटी की बहार को
देखने को उतर गयी,
यह देखने कि अंगूर की बेले कितनी बड़ी हैं
और अनार की कलियाँ खिली हैं कि नहीं।
12 इससे पहले कि मैं यह जान पाती, मेरे मन ने मुझको राजा के व्यक्तियों के रथ में पहुँचा दिया।
यरूशलेम की पुत्रियों को उसको बुलावा
13 वापस आ, वापस आ, ओ शुलेम्मिन!
वापस आ, वापस आ, ताकि हम तुझे देख सके।
क्यों ऐसे शुलेम्मिन को घूरती हो
जैसे वह महनैम के नृत्य की नर्तकी हो
पुरुष द्वारा स्त्री सौन्दर्य का वर्णन
7हे राजपुत्र की पुत्री, सचमुच तेरे पैर इन जूतियों के भीतर सुन्दर हैं।
तेरी जंघाएँ ऐसी गोल हैं जैसे किसी कलाकार के ढाले हुए आभूषण हों।
2 तेरी नाभि ऐसी गोल है जैसे कोई कटोरा,
इसमें तू दाखमधु भर जाने दे।
तेरा पेट ऐसा है जैसे गेहूँ की ढेरी
जिसकी सीमाएं घिरी हों कुमुदिनी की पंक्तियों से।
3 तेरे उरोज ऐसे हैं जैसे किसी जवान कुरंगी के
दो जुड़वा हिरण हो।
4 तेरी गर्दन ऐसी है जैसे किसी हाथी दाँत की मीनार हो।
तेरे नयन ऐसे है जैसे हेशबोन के वे कुण्ड
जो बत्रब्बीम के फाटक के पास है।
तेरी नाक ऐसी लम्बी है जैसे लबानोन की मीनार
जो दमिश्क की ओर मुख किये है।
5 तेरा सिर ऐसा है जैसे कर्मेल का पर्वत
और तेरे सिर के बाल रेशम के जैसे हैं।
तेरे लम्बे सुन्दर केश
किसी राजा तक को वशीभूत कर लेते हैं!
6 तू कितनी सुन्दर और मनमोहक है,
ओ मेरी प्रिय! तू मुझे कितना आनन्द देती है!
7 तू खजूर के पेड़
सी लम्बी है।
तेरे उरोज ऐसे हैं
जैसे खजूर के गुच्छे।
8 मैं खजूर के पेड़ पर चढ़ूँगा,
मैं इसकी शाखाओं को पकड़ूँगा,
तू अपने उरोजों को अंगूर के गुच्छों सा बनने दे।
तेरी श्वास की गंध सेब की सुवास सी है।
9 तेरा मुख उत्तम दाखमधु सा हो,
जो धीरे से मेरे प्रणय के लिये नीचे उतरती हो,
जो धीरे से निद्रा में अलसित लोगों के होंठो तक बहती हो।
स्त्री के वचन पुरुष के प्रति
10 मैं अपने प्रियतम की हूँ
और वह मुझे चाहता है।
11 आ, मेरे प्रियतम, आ!
हम खेतों में निकल चलें
हम गावों में रात बिताये।
12 हम बहुत शीघ्र उठें और अंगूर के बागों में निकल जायें।
आ, हम वहाँ देखें क्या अंगूर की बेलों पर कलियाँ खिल रही हैं।
आ, हम देखें क्या बहारें खिल गयी हैं
और क्या अनार की कलियाँ चटक रही हैं।
वहीं पर मैं अपना प्रेम तुझे अर्पण करूँगी।
13 प्रणय के वृक्ष निज मधुर सुगंध दिया करते हैं,
और हमारे द्वारों पर
सभी सुन्दर फूल, वर्तमान, नये और पुराने—मैंने तेरे हेतु,
सब बचा रखें हैं, मेरी प्रिय!
8काश, तुम मेरे शिशु भाई होते, मेरी माता की छाती का दूध पीते हुए!
यदि मैं तुझसे वहीं बाहर मिल जाती
तो तुम्हारा चुम्बन मैं ले लेती,
और कोई व्यक्ति मेरी निन्दा नहीं कर पाता!
2 मैं तुम्हारी अगुवाई करती और तुम्हें मैं अपनी माँ के भवन में ले आती,
उस माता के कक्ष में जिसने मुझे शिक्षा दी।
मैं तुम्हें अपने अनार की सुगंधित दाखमधु देती,
उसका रस तुम्हें पीने को देती।
स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति
3 मेरे सिर के नीचे मेरे प्रियतम का बाँया हाथ है
और उसका दाँया हाथ मेरा आलिंगन करता है।
4 यरूशलेम की कुमारियों, मुझको वचन दो,
प्रेम को मत जगाओ,
प्रेम को मत उकसाओ, जब तक मैं तैयार न हो जाऊँ।
यरूशलेम की पुत्रियों का वचन
5 कौन है यह स्त्री
अपने प्रियतम पर झुकी हुई जो मरुभूमि से आ रही है
स्त्री का वचन पुरुष के प्रति
मैंने तुम्हें सेब के पेड़ तले जगाया था,
जहाँ तेरी माता ने तुझे गर्भ में धरा
और यही वह स्थान था जहाँ तेरा जन्म हुआ।
6 अपने हृदय पर तू मुद्रा सा धर।
जैसी मुद्रा तेरी बाँह पर है।
क्योंकि प्रेम भी उतना ही सबल है जितनी मृत्यु सबल है।
भावना इतनी तीव्र है जितनी कब्र होती है।
इसकी धदक
धधकती हुई लपटों सी होती है!
7 प्रेम की आग को जल नहीं बुझा सकता।
प्रेम को बाढ़ बहा नहीं सकती।
यदि कोई व्यक्ति प्रेम को घर का सब दे डाले
तो भी उसकी कोई नहीं निन्दा करेगा!
उसके भाईयों का वचन
8 हमारी एक छोटी बहन है,
जिसके उरोज अभी फूटे नहीं।
हमको क्या करना चाहिए
जिस दिन उसकी सगाई हो
9 यदि वह नगर का परकोटा हो
तो हम उसको चाँदी की सजावट से मढ़ देंगे।
यदि वह नगर हो
तो हम उसको मूल्यवान देवदारु काठ से जड़ देंगे।
उसका अपने भाईयों को उत्तर
10 मैं परकोट हूँ,
और मेरे उरोज गुम्बद जैसे हैं।
सो मैं उसके लिये शांति का दाता हूँ!
पुरुष का वचन
11 बाल्हामोन में सुलैमान का अगूंर का उपवनथा।
उसने अपने बाग को रखवाली के लिए दे दिया।
हर रखवाला उसके फलों के बदले में चाँदी के एक हजार शेकेल लाता था।
12 किन्तु सुलैसान, मेरा अपना अंगूर का बाग मेरे लिये है।
हे सुलैमान, मेरे चाँदी के एक हजार शेकेल सब तू ही रख ले,
और ये दो सौ शेकेल उन लोगों के लिये हैं
जो खेतों में फलों की रखवाली करते हैं!
पुरुष का वचन स्त्री के प्रति
13 तू जो बागों में रहती है,
तेरी ध्वनि मित्र जन सुन रहे हैं।
तू मुझे भी उसको सुनने दे!
स्त्री का वचन पुरुष के प्रति
14 ओ मेरे प्रियतम, तू अब जल्दी कर!
सुगंधित द्रव्यों के पहाड़ों पर तू अब चिकारे या युवा मृग सा बन जा!
समीक्षा
सुनिश्चित कीजिए कि प्रेम सबसे मुख्य वस्तु है
शब्द 'प्रेम' या 'प्रेमी' श्रेष्ठगीत में बार-बार दिखाई देता है। यह एक प्रेम और उसके प्रिय के बीच में एक रूमानी प्रेम है। वे एक दूसरे के लिए प्रेम के द्वारा जीत लिए गए हैं। प्रेमिका कहती है कि वह 'उसके लिए प्रेम में रोगी हैं' (5:8, एम.एस.जी)।
भौतिक और वासनायुक्त प्रेम का एक मजबूत कारक है। दोनों ही उनके विवाह साथी की भौतिक सुंदरता का वर्णन करते हैं (5:10-16;6:4-9)। जैसा कि एक समालोचना करने वाले ने इसे कहा, 'श्रेष्ठगीत एक लंबा, गीतात्मक कविता है वासना प्रेम और यौन-संबंध की इच्छा के विषय में – एक कविता जिसमें शरीर इच्छा का केंद्र और आनंद का स्त्रोत है और प्रेमी एक खोजने और पाने के निरंतर खेल में शामिल है ...यौन-संबंधी तृप्ति।'
लेकिन उनका प्रेम भौतिक और वासना के परे है। प्रेमिका कहती है,' यही मेरा प्रेमी और यही मेरा मित्र है।' (5:16क)। विवाह में इससे बढ़कर कुछ नहीं कि कोई आपका साथी, आपका प्रेम और आपका सर्वश्रेष्ठ मित्र हो।
कल के लेखांश में प्रेमी कहता है,' तू बारियों का सोता है, फूटते हुए जल का कुआँ, और लबानोन से बहती हुई धाराएँ हैं' (4:15)। हर मनुष्य के पास एक कभी न खत्म होने वाला सुंदर और अद्भुत स्त्रोतों का झरना है।
जैसे ही श्रेष्ठगीत समाप्त होने पर है, यहाँ पर प्रेम के कभी न खत्म होने वाले गुणो का एक सुंदर वर्णन हैः' मुझे नगीने के समान अपने हृदय पर लगा कर रख, और ताबीज के समान अपनी बाँह पर रख; क्योंकि प्रेम मृत्यु के तुल्य सामर्थी है, और ईर्ष्या कब्र के समान निर्दयी है।' (8:6)। और अब, यीशु के पुनरुत्थान के बाद, हम कह सकते हैं कि प्रेम मृत्यु से भी ताकतवर हैः 'प्रेम कभी असफल नहीं होता' (1कुरिंथियो 13:8)।
फिर से, मुझे मैसेज अनुवाद पसंद हैः
' उसकी ज्वाला अग्नि की दमक है वरन् परमेश्वर ही की ज्वाला है। पानी की बाढ़ से भी प्रेम नहीं बुझ सकता, और न महानदी से डूब सकता है। यदि कोई अपने घर की सारी सम्पत्ति प्रेम के बदले दे दे तब भी वह अत्यन्त तुच्छ ठहरेगी ' (8:6क -7, एम.एस.जी)।
प्रार्थना
परमेश्वर आपका धन्यवाद कि मेरे लिए आपका प्रेम आग की तरह है जो किसी चीज के सामने रूकती नहीं। होने दीजिए कि मेरे जीवन में आपका प्रेम सबसे उच्च प्राथमिकता हो। आपका धन्यवाद कि आपके प्रेम को खरीदा नहीं जा सकता या कमाया नहीं जा सकता, लेकिन केवल आभार के साथ और दीनता के साथ ग्रहण किया जा सकता है।
पिप्पा भी कहते है
1कुरिंथियो 13:1-7
इन असाधारण वचनो को नियमित रूप से घरों में, विद्यालयों में, व्यवसाय में हर जगह...पढ़ा जाना चाहिए। उनका अध्ययन किया जाना चाहिए, सीखना और अभ्यास किया जाना चाहिए।
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संदर्भ
हेनरी ड्रमोंड, विश्व में सबसे महान वस्तु, (रेवेल, 2011), पीपी.10,13
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।