परमेश्वर के तरीके से करने के लिए उन पर भरोसा रखिए ।
परिचय
कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि काश मैंने डायरी में कुछ और भी लिखा होता. लेकिन मैं खुश हूँ कि मैंने कम से कम अपनी कुछ प्रार्थनाएं तो लिखी हैं. आज के लेखांश के वचन के अनुसार, 'हम नहीं जानते कि हमें क्या करना चाहिये, लेकिन हमारी आँखें आप पर टिकी हुई हैं' (2 इतिहास 20:13), मैंने कुछ दुर्गम परेशानियों और परिस्थितियों के बारे में लिखा है जिसका सामना हमने पिछले कुछ वर्षों में किया था. यह कितना अद्भुत और आश्चर्यजनक है कि कैसे परमेश्वर ने अपने समय पर अपने ही तरीके से हमें अनेक परेशानियों से छुड़ाया है।
हमें छुड़ाने की परमेश्वर की क्षमता को बारबार याद करने से हमारा विश्वास और भी बढ़ जाता है कि वह फिर से ऐसा कर सकते हैं. परमेश्वर सच में शक्तिमान हैं, वास्तव में, परमेश्वर सर्वसामर्थी हैं; वह सर्व व्यापी हैं. आप उन पर भरोसा कर सकते हैं.
भजन संहिता 102:12-17
12 किन्तु हे यहोवा, तू तो सदा ही अमर रहेगा।
तेरा नाम सदा और सर्वदा बना ही रहेगा।
13 तेरा उत्थान होगा और तू सिय्योन को चैन देगा।
वह समय आ रहा है, जब तू सिय्योन पर कृपालु होगा।
14 तेरे भक्त, उसके (यरूशलेम के) पत्यरों से प्रेम करते हैं।
वह नगर उनको भाता है।
15 लोग यहोवा के नाम कि आराधना करेंगे।
हे परमेश्वर, धरती के सभी राजा तेरा आदर करेंगे।
16 क्यों? क्योंकि यहोवा फिर से सिय्योन को बनायेगा।
लोग फिर उसके (यरूशलेम के) वैभव को देखेंगे।
17 जिन लोगों को उसने जीवित छोड़ा है, परमेश्वर उनकी प्रार्थनाएँ सुनेगा।
परमेश्वर उनकी विनतियों का उत्तर देगा।
समीक्षा
प्रार्थना का उत्तर पाने के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखें
प्रार्थना वह बारीक नस है जो सर्वशक्तिमान की मांसपेशियों को क्रियाशील रखती है' यह चार्ल्स स्पर्जन का प्रसिद्ध कथन है.
जब हम अपने समाज और अपनी कलीसिया में परेशानियों को देखते हैं, तो सबसे पहले हमारी प्रतिक्रिया क्या होती है? जब भजन लिखने वाला परमेश्वर के लोगों की परेशानियों को देखता है, सच्चाई यह थी कि उसका शहर नाश हो गया था, तब उसकी पहली प्रतिक्रिया थी, परमेश्वर से विनती करना.
भजन लिखने वाला परमेश्वर को उनकी सामर्थ और उनके प्यार का स्मरण दिलाता है और उनकी महानता का बखान करता है: ' परन्तु हे परमेश्वर, तू सदैव विराजमान रहेगा (भजन संहिता 102:12अ) सिय्योन पर दया करेगा (v.13)। क्योंकि तेरे दास उसके पत्थरों को चाहते है; और उसकी धूल पर तरस खाते हैं (v.14).' 'क्योंकि तेरे दास उसके (यरूशलेम के) पत्थरों को चाहते है; और उसकी धूल पर तरस खाते हैं।(v.14)'
आज जब मैं अपने देश पर नजर डालता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि कितनी सारी कलीसिया टूट गई हैं, लेकिन परमेश्वर इस द्विप में अपनी प्रजा की ताकत सदा बनाए रखने की सामर्थ रखते हैं।
आप परमेश्वर पर पूरा भरोसा रख सकते है कि वह आपकी प्रार्थनाओं का उत्तर जरूर देंगे। इसका मतलब यह नहीं कि आपकी प्रार्थना द्वारा आप परमेश्वर की सामर्थ पर नियंत्रण या काबू रख सकते हैं लेकिन यह कि परमेश्वर हमेशा सक्रिय हैं अपने लोगों के लिए और उनके बनाए हुए संसार के लिए। वह दीन व्यक्ति की प्रार्थना की ओर ध्यान देते हैं, और उसकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानते (v.17MSG) ।
प्रार्थना
परमेश्वर मैं प्रार्थना करता हूँ कि इस देश की कलीसिया को फिर से बनाइये. कृपया अपनी पवित्र आत्मा हम पर और हमारे देश पर फिर से उंडेलिये।
1 कुरिन्थियों 15:35-49
हमें कैसी देह मिलेगी?
35 किन्तु कोई पूछ सकता है, “मरे हुए कैसे जिलाये जाते हैं? और वे फिर कैसी देह धारण करके आते हैं?” 36 तुम कितने मूर्ख हो। तुम जो बोते हो वह जब तक पहले मर नहीं जाता, जीवित नहीं होता। 37 और जहाँ तक जो तुम बोते हो, उसका प्रश्न है, तो जो पौधा विकसित होता है, तुम उस भरेपुरे पौधे को तो धरती में नहीं बोते। बस केवल बीज बोते हो, चाहे वह गेहूँ का दाना हो और चाहे कुछ और। 38 फिर परमेश्वर जैसा चाहता है, वैसा रूप उसे देता है। हर बीज को वह उसका अपना शरीर प्रदान करता है। 39 सभी जीवित प्राणियों के शरीर एक जैसे नहीं होते। मनुष्यों का शरीर एक तरह का होता है जबकि पशुओं का शरीर दूसरी तरह का। चिड़ियाओं की देह अलग प्रकार की होती है और मछलियों की अलग। 40 कुछ देह दिव्य होती हैं और कुछ पार्थिव किन्तु दिव्य देह की आभा एक प्रकार की होती है और पार्थिव शरीरों की दूसरे प्रकार की। 41 सूरज का तेज एक प्रकार का होता है और चाँद का दूसरे प्रकार का। तारों में भी एक भिन्न प्रकार का प्रकाश रहता है। और हाँ, तारों का प्रकाश भी एक दूसरे से भिन्न रहता है।
42 सो जब मरे हुए जी उठेंगे तब भी ऐसा ही होगा। वह देह जिसे धरती में दफना कर “बोया” गया है, नाशमान है किन्तु वह देह जिसका पुनरुत्थान हुआ है, अविनाशी है। 43 वह काया जो धरती में “दफनाई” गयी है, अनादरपूर्ण है किन्तु वह काया जिसका पुनरुत्थान हुआ है, महिमा से मंडित है। वह काया जिसे धरती में “गाड़ा” गया है, दुर्बल है किन्तु वह काया जिसे पुनर्जीवित किया गया है, शक्तिशाली है। 44 जिस काया को धरती में “दफनाया” गया है, वह प्राकृतिक है किन्तु जिसे पुनर्जीवित किया गया है, वह आध्यात्मिक शरीर है।
यदि प्राकृतिक शरीर होते हैं तो आध्यात्मिक शरीरों का भी अस्तित्व है। 45 शास्त्र कहता है: “पहला मनुष्य (आदम) एक सजीव प्राणी बना।” किन्तु अंतिम आदम (मसीह) जीवनदाता आत्मा बना। 46 आध्यात्मिक पहले नहीं आता, बल्कि पहले आता है भौतिक और फिर उसके बाद ही आता है आध्यात्मिक। 47 पहले मनुष्य को धरती की मिट्टी से बनाया गया और दूसरा मनुष्य (मसीह) स्वर्ग से आया। 48 जैसे उस मनुष्य की रचना मिट्टी से हुई, वैसे ही सभी लोग मिट्टी से ही बने। और उस दिव्य पुरुष के समान अन्य दिव्य पुरुष भी स्वर्गीय हैं। 49 सो जैसे हम उस मिट्टी से बने का रूप धारण करते हैं, वैसे ही उस स्वर्गिक का रूप भी हम धारण करेंगे।
समीक्षा
पुनरूत्थान के लिए परमेश्वर पर भरोसा रखिए
जब हम अपने प्रिय जनों को खो देते हैं, तो यह बहुद दु:खदायी होता है। तथा अपनी मृत्यु का सामना करना और भी डरावना हो सकता है. यह लेखांश हमें अपने दु:ख और भय के बारे में नया दृष्टिकोण देता है। जब नया नियम परमेश्वर के प्रेम के बारे में बताता है, तो यह अक्सर यीशु के क्रूस (सलीब) को दर्शाता है। जब यह परमेश्वर की सामर्थ के बारे में बताता है तो यह अक्सर यीशु के पुनरूत्थान को दर्शाता है। यहाँ 'उनकी अतुलनीय महान सामर्थ' के बारे में कि यीशु जो मरे हुओ में से जी उठे (इफीसियो 1:19-20)।
यहां प्रेरित पौलुस बताते हैं कि कैसे वही सामर्थ आपके शरीर को भी फिर से जिला सकती है। वह गेहूँ के बीज की तुलना लेकर समझाते हैं। वह अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुँचते जब तक कि वह पहले मर कर; दफन नहीं हो जाते: “जो तू बोता है, जब तक वह न मरे जिलाया नहीं जाता है” (कुरिंथियो 15:36)। हालाँकि दोनों भी अलग दिखते हैं फिर भी बीज और गेहूँ में बहुत अंतर है।
यीशु के पुनरूत्थान के कारण, आप भरोसा रख सकते हैं कि परमेश्वर आप को भी जिलायेंगे - अपने तरीके से- जो हमारे सोच या कल्पना से भी परे और उत्तम होगा।
संशयवादी व्यक्ति पूछता है, "यहाँ पुनर्त्थानित शरीर कैसा दिखेगा?" उन्होंने उत्तर दिया, यदि तुम इस सवाल को ध्यान से देखो, तो तुम्हें एहसास होगा कि यह कितना बेतुका सवाल है.... जो कि बगीचा बनाने के अनुभव जैसा है। हम निष्प्राण बीज बोते हैं; और वह जल्द ही फलता-फूलता पौधा दिखाई देता है.... मृतक देह, वह शरीर है जिसे जमीन में दफनाया जाता है और जो पुर्नजीवित शरीर बाहर निकलता है; वह प्रभावशाली ढंग से अलग दिखाई देगा (v.35-38 MSG)।
वह परमेश्वर की सृष्टी की विविध रचनाओं को दर्शाता है, जो प्रसंगवश हमें सलाह देता है कि हमें किसी और व्यक्ति के जैसा बनने की जरूरत नहीं है। एक अलग किस्म का व्यक्ति बनकर रहना ही ठीक होगा; यह विविधता अच्छी है।
आप देख सकते हैं कि विभिन्न किस्मों के जीव (मनुष्य, जानवर, पक्षी, मछली) शानदार हैं। आपको पुनरूत्थान की विभिन्न महिमा की एक झलक मिलती है - केवल पृथ्वी के जनसमूह को देखकर ही नहीं परंतु आकाश के जनसमूहों को भी देखकर। सूर्य, चद्रँमा, तारे -यह सब प्रकाश और सुंदरता की किस्मे हैं। हम सिर्फ पुनरूत्थान के पहले के बीजों को देख रहे हैं - कौन कल्पना कर सकता है कि पुर्नजीवित या पुनरूत्थानित पौधा कैसा दिखेगा (vv.40-41,MSG)।
वह आगे कहता है, - मृत बीज को बोना और जीवित पौधे को देखना सबसे अच्छी कल्पना है; लेकिन यह पुर्नजीवित शरीर की गुत्थी सुलझाने में मदद कर सकता है - लेकिन आप केवल इस बात को ध्यान में रखें कि जब हम जिलाये जायेंगें तब भलाई के लिए सदा के लिए जिलाये जायेंगे!
'मुर्दों का जी उठना भी ऐसा ही है। शरीर नाशवान दशा में बोया जाता है, और अविनाशी रूप में जी उठता है। वह अनादर के साथ बोया जाता है, और तेज के साथ जी उठता है; निर्बलता के साथ बोया जाता है; और सामर्थ के साथ जी उठता है।स्वाभाविक देह बोई जाती है, और आत्मिक देह जी उठती है: जब कि स्वाभाविक देह है, तो आत्मिक देह भी है ' (वव.42-44) ।
पुर्नजीवित शरीर और आत्मिक शरीर एक ही अस्तित्व है; हालांकि वह अस्तित्व बदल जाते हैं। पुर्नजीवन एक रचना या सृष्ट है (एक्स वेटेरे (पुराने से); बल्कि एक्स नीहीलो (कुछ नहीं से)। पौधा बीज से उत्पन्न होता है। हमारा शरीर नये शरीर में नहीं बदलेगा; परंतु वह रुपांतरित होकर पुनरूत्थानित शरीर में बदल जायेगा।
यीशु अब भी अपने पीछे चलने वालो के लिए आसानी से पहचाने जाने योग्य थे (कुछ मदद् के साथ!)। उनके पुनरूत्थानित पुर्नजीवित शरीर में अब भी निरंतरता और अंतराल था (यीशु दीवार के बीच में से प्रवेश कर पाते थे; और मछली भी खा सकते थे)। जो यीशु के साथ हुआ वह आपके साथ भी होना संभव है। आपके पास आदम के समान प्राकृतिक शरीर है। लेकिन एक दिन आपको यीशु समान; जो कि दूसरे आदम हैं, आपको भी आत्मिक शरीर दिया जाएगा (व.44-48) जैसे हम ने उनका रूप जो मिट्टी का था धारण किया वैसे ही उन स्वर्गीय का रूप भी धारण करेंगे (v.49)।
प्रार्थना
प्रभु आपको धन्यवाद; जिस प्रकार यीशु मारे गए, गाड़े गए और फिर से जी उठे; उसी प्रकार आपकी सामर्थ के द्वारा हम भी जी उठेंगे और यीशु समान आत्मिक शरीर प्राप्त करेंगे।
2 इतिहास 18:28-21:3
अहाब गिलाद के रामोत में मारा गया
28 इसलिये इस्राएल के राजा अहोब और यहूदा के राजा यहोशापात ने गिलाद के रामोत नगर पर आक्रमण किया। 29 इस्राएल के राजा अहोब ने यहोशापात से कहो, “मैं युद्ध में जाने के पहले अपना रुप बदल लूँगा। किन्तु तुम अपने राजवस्त्र हो पहनों।” इसलिये इस्राएल के राजा अहोब ने अपना रुप बदल लिया और दोनों राजा युद्ध में गए।
30 अराम के राजा ने अपने रथों के रथपतियों को आदेश दिया। उसने उनसे कहो, “चाहे जितना बड़ा या छोटा कोई व्यक्ति हो उससे युद्ध न करो। किन्तु केवल इस्राएल के राजा अहाब से युद्ध करो।” 31 जब रथपतियों ने यहोशापात को देखा उन्ह ने सोचा, “वही इस्राएल का राजा अहाब है!” वे यहोशापात पर आक्रमण करने के लिये उसकी ओर मुड़े। किन्तु यहोशापात ने उद्घोष किया और यहोवा ने उसकी सहायात की। परमेश्वर ने रथपतियों को यहोशापात के सामने से दूर मुड़ जाने दिया। 32 जब उन्ह ने समझा कि यहोशापात इस्राएल का राजा नहो है उन्ह ने उसका पीछा करना छोड़ दिया।
33 किन्तु एक सैनिक से बिना किसी लक्ष्य बेध के धनुष से बाण छूट गया। उस बाण ने इस्राएल के राजा अहाब को बेध दिया। इसने, अहाब के कवच के खुले भाग में बेधा। अहाब ने अपने रथ के सारथी से कहा, “पीछे मुड़ो और मुझे युद्ध से बाहर ले चलो। मैं घायल हो गया हूँ!”
34 उस दिन युद्ध अधिक बुरी तरह लड़ा गया। अहाब ने अपने रथ में अरामियों का सामना करते हुए शाम तक अपने को संभाले रखा। तब अहाब सूर्य डूबने पर मर गया।
19यहूदा का राजा यहोशापात सुरक्षित यरूशलेम अपने घर लौटा। 2 दृष्टा येहू यहोशापात से मिलने गया। येहू के पिता का नाम हनानी था। येहू ने राजा यहोशापात से कहा, “तुम बुरे आदमियों की सहायता क्यों करते हो तुम उन लोगों से क्यों प्रेम करते हो जो यहोवा से घृणा करते हैं। यही कारण है कि यहोवा तुम पर क्रोधित है। 3 किन्तु तुम्हारे जीवन में कुछ अच्छी बातें हैं। तुमने अशेरा—स्तम्भों को इस देश से बाहर किया और तुमने हृदय से परमेश्वर का अनुसरण करने का निश्चय किया।”
यहोशापात न्यायाधीशों को चुनता है
4 यहोशापात यरूशलेम में रहता था। वह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में बेर्शोबा नगर के लोगों के साथ एक होने के लिये फिर वहाँ गया। यहोशापात ने उन लोगों को उस यहोवा परमेश्वर के पास लौटाया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे। 5 यहोशापात ने यहूदा में न्यायधीश चुने। उसने यहूदा के हर किले में रहने के लिये न्यायाधीश चुने। 6 यहोशापात ने इन न्यायाधीशों से कहा, “जो कुछ तुम करो उसमें सावधान रहो क्योंकि तुम, लोगों के लिये न्याय नही कर रहे अपितु यहोवा के लिये कर रहे हो। जब तुम निर्णय करोगे तब यहोवा तुम्हारे साथ होगा। 7 तुम में से हर एक को अब यहोवा से डरना चाहिए। जो करो उसमें सावधान रहो क्योंकि हमारा यहोवा परमेश्वर न्यायी है। वह किसी व्यक्ति को अन्य व्यक्ति से अधिक महत्वपूर्ण मानकर व्यवहार नही करता। वह अपने निर्णय को बदलने के लिये धन नही लेता।”
8 और यहोशापात ने यरूशलेम में, लेवीवंशियों, याजकों और इस्राएल के परिवार प्रमुखों को न्यायाधीश चुना। उन लोगों को यहोवा के नियमों का उपयोग यरूशलेम के लोगों की समस्याओं को निपटाने के लिये करना था। 9 यहोशापात ने उनको आदेश दिये। यहोशापात ने कहा, “तुम्हें अपने पूरे हृदय से विश्वसनीय काम करना चाहिए। तुम्हें यहोवा से अवश्य डरना चाहिए। 10 तुम्हारे पास हत्या, नियम, आदेश, शासन या किसी अन्य नियमों के मामले आ सकते हैं। ये सभी मामले नगरों में रहने वाले तुम्हारे भाईयों के यह से आएंगे। इन सभी मामलों में लोगों को इस बात की चेतावनी दो कि वे लोग यहोवा के विरुद्ध पाप न करें। यदि तुम विश्वास योग्यता के साथ यहोवा की सेवा नहीं करते तो तुम यहोवा के क्रोध को अपने ऊपर और अपने भाईयों के ऊपर लाने का कारण बनोगे। यह करो, तब तुम अपराधी नही होगे।
11 “अमर्याह मार्गदर्शक याजक है। वह यहोवा के सम्बन्ध की सभी बातों में तुम्हारे ऊपर रहेगा और राजा सम्बन्धी सभी विषयों में जबद्याह तुम्हारे ऊपर होगा। जबद्याह के पिता का नाम इश्माएल है। जबद्याह यहूदा के परिवार समूह में प्रमुख है। लेवीवंशी शास्त्रियों के रुप में भी तुम्हारी सेवा करेंगे। जो कुछ करो उसमें साहस रखो। यहोवा उन लोगों के साथ हो, जो वही करते हैं जो ठीक है।”
यहोशापात युद्ध का सामना करता है
20कुछ समय पश्चात मोआबी, अम्मोनी और कुछ मूनी लोग यहोशापात के साथ युद्ध आरम्भ करने आए। 2 कुछ लोग आए और उन्होने यहोशापात से कहा, “तुम्हारे विरुद्ध एदोम से एक विशाल सेना आ रही है। वे मृत सागर की दूसरी ओर से आ रहे हैं। वे हसासोन्तामार में पहले से ही हैं।” (हसासोन्तामार को एनगदी भी कहा जाता है) 3 यहोशापात डर गया और उसने यहोवा से यह पूछने का निश्चय किया कि मैं क्या करुँ उसने यहूदा में हर एक के लिये उपवास का समय घोषित किया। 4 यहूदा के लोग एक साथ यहोवा से सहायता माँगने आए। वे यहूदा के सभी नगरों से यहोवा की सहायता माँगने आए। 5 यहोशापात यहोवा के मन्दिर में नये आँगन के सामने था। वह यरूशलेम और यहूदा से आए लोगों की सभा में खड़ा हुआ। 6 उसने कहा,
“हे हमारे पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर, तू स्वर्ग में परमेश्वर है! तू सभी राष्ट्रों में सभी राज्यों पर शासन करता है! तू प्रभुता और शक्ति रखता है! कोई व्यक्ति तेरे विरुद्ध खड़ा नहीं हो सकता! 7 तू हमारा परमेश्वर है। तूने इस प्रदेश में रहने वालों को इसे छोड़ने को विवश किया। यह तूने अपने इस्राएली लोगों के सामने किया। तूने यह भूमि इब्राहाम के वंशजों को सदैव के लिये दे दी। इब्राहाम तेरा मित्र था। 8 इब्राहीम के वंशज इस देश में रहते थे और उन्होंने एक मन्दिर तेरे नाम पर बनाया। 9 उन्होंने कहा, ‘यदि हम लोगों पर आपत्ति आएगी जैसे तलवार, दण्ड, रोग या अकाल तो हम इस मन्दिर के सामने और तेरे सामने खड़े होंगे। इस मन्दिर पर तेरा नाम है। जब हम लोगों पर विपत्ति आएगी तो हम लोग तुझको पुकारेंगे। तब तू हमारी सुनेगा और हमारी रक्षा करेगा।’
10 “किन्तु इस समय यही अम्मोन, मोआब और सेईर पर्वत के लोग चढ़ आए हैं! तूने इस्राएल के लोगों को उस समय उनकी भूमि में नहीं जाने दिया जब इस्राएल के लोग मिस्र से आए। इसलिए इस्राएल के लोग मुड़ गए थे और उन लोगों ने उनको नष्ट नहीं किया था। 11 किन्तु देख कि वे लोग हमें उन्हें नष्ट न करने का किस प्रकार का पुरस्कार दे रहे हैं। वे हमें तेरी भूमि से बाहर होने के लिए विवश करने आए हैं। यह भूमि तूने हमें दी है। 12 हमारे परमेश्वर, उन लोगों को दण्ड दे! हम लोग उस विशाल सेना के विरुद्ध कोई शक्ति नहीं रखते जो हमारे विरुद्ध आ रही है! हम नहीं जानते कि क्या करें! यही कारण है कि हम तुझसे सहायता की आशा करते हैं।”
13 यहूदा के सभी लोग यहोवा के सामने अपने शिशुओं, पत्नियों और बच्चों के साथ खड़े थे। 14 तब यहोवा की आत्मा यहजीएल पर उतरी। यहजीएल जकर्याह का पुत्र था। (जकर्याह बनायाह का पुत्र था बनायाह यीएल का पुत्र था और यीएल मत्तन्याह का पुत्र था।) यहजीएल एक लेवीवंशी था और आसाप का वंशज था। 15 उस सभा के बीच यहजीएल ने कहा “राजा यहशापात तथा यहूदा और यरूशलेम में रहने वाले लोगो, मेरी सुनो! यहोवा तुमसे यह कहता है: ‘इस विशाल सेना से न तो डरो, न हों परेशान होओ क्योंकि यह तुम्हारा युद्ध नहीं है। यह परमेश्वर का युद्ध है! 16 कल तुम ही वहाँ जाओ और उन लोगों से लड़ो। वे सीस के दर्रे से होकर आएँगे। तुम लोग उन्हें घाटी के अन्त में यरूएल मरुभूमि की दूसरी ओर पाओगे। 17 इस युद्ध में तुम्हें लड़ना नहीं पड़ेगा। अपने स्थानों पर दृढ़ता से खड़े रहो। तुम देखोगे कि यहोवा ने तुम्हें बचा लिया। यहूदा और यरूशलेम के लोगो, डरो नही परेशान मत हो! यहोवा तुम्हारे साथ है अत: कल उन लोगों के विरुद्ध जाओ।’”
18 यहोशापात अति नम्रता से झुका। उसका सिर भूमि को छू रहा था और यहूदा तथा यरूशलेम में रहने वाले सभी लोग यहोवा के सामने गिर गए और उन सभी ने यहोवा की उपासना की। 19 कहाती परिवार समूह के लेवीवंशी और कहाती लोग, इस्राएल के यहोवा परमेश्वर की स्तुति के लिये खड़े हुए। उन्होंने अत्यन्त उच्च स्वर में स्तुति की।
20 यहोशापात की सेना तकोआ मरुभूमि में बहुत सवेरे गई। जब वे बढ़ना आरम्भ कर रहे थे, यहोशापात खड़ा हुआ और उसने कहा, “यहूदा और यरूशलेम के लोगो, मेरी सुनो। अपने यहोवा परमेश्वर में विश्वास रखो और तब तुम शक्ति के साथ खड़े रहोगे। यहोवा के नबियों में विश्वास रखो। तुम लोग सफल होगे!”
21 यहोशापात ने लोगों का सुझाव सुना। तब उसने यहोवा के लिये गायक चुने। वे गायक यहोवा की स्तुति के लिये चुने गए थे क्योंकि वह पवित्र और अद्भुत हैं। वे सेना के सामने कदम मिलाते हुए बढ़े और उन्होने यहोवा की स्तुति की। इन गायकों ने गाया,
“परमेश्वर को धन्यवाद दो
क्योंकि उसका प्रेम सदैव रहता है!”
22 ज्योंही उन लोगों ने गाना गाकर यहोवा की स्तुति आरम्भ की, यहोवा ने अज्ञात गुप्त आक्रमण अम्मोन, मोआब और सेईर पर्वत के लोगों पर कराया। ये वे लोग थे जो यहूदा पर आक्रमण करने आए थे। वे लोग पिट गए। 23 अम्मोनी और मोआबी लोगों ने सेईर पर्वत से आये लोगों के विरुद्ध युद्ध आरम्भ किया। अम्मोनी और मोआबी लोगों ने सेईर पर्वत से आए लोगों को मार डाला और नष्ट कर दिया। जब वे सेईर के लोगों को मार चुके तो उन्होंने एक दूसरे को मार डाला।
24 यहूदा के लोग मरुभूमि में सामना करने के बिन्दु पर आए। उन्होंने शत्रु की विशाल सेना को देखा। किन्तु उन्होंने केवल शवो को भूमि पर पड़े देखा। कोई व्यक्ति बचा न था। 25 यहोशापात और उसकी सेना शवों से बहुमूल्य चीजें लेने आई। उन्हें बहुत से जानवर, धन, वस्त्र और कीमती चीज़ें मिलीं। यहोशापात और उसकी सेना ने उन्हें अपने लिये ले लिया। चीज़ें उससे अधिक थीं जितना यहोशापात और उसकी सेना ले जा सकती थी। उनको शवों से कीमती चीज़ें इकट्ठी करने में तीन दिन लगे, क्योंकि वे बहुत अधिक थीं। 26 चौथे दिन यहोशापात और उसकी सेना बराका की घाटी में मिले। उन्होंने उस स्थान पर यहोवा की स्तुति की। यही कारण है कि उस स्थान का नाम आज तक “बराका की घाटी” है।
27 तब यहोशापात यहूदा और यरूशलेम के लोगों को यरूशलेम लौटा कर ले गया। यहोवा ने उन्हें अत्यन्त प्रसन्न किया क्योंकि उनके शत्रु पराजित हो गये थे। 28 वे यरूशलेम में वीणा सितार और तुरहियों के साथ आये और यहोवा के मन्दिर में गए।
29 सभी देशों के सारे राज्य यहोवा से भयभीत थे क्योंकि उन्होंने सुना कि यहोवा इस्राएल के शत्रुओं से लड़ा। 30 यही कारण है कि यहोशापात के राज्य में शान्ति रही। यहोशापात के परमेश्वर ने उसे चारों ओर से शान्ति दी।
यहोशापात के शासन का अन्त
31 यहोशापात ने यहूदा देश पर शासन किया। यहोशापात ने जब शासन आरम्भ किया तो वह पैंतीस वर्ष का था। उसने पच्चीस वर्ष यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ का नाम अजूबा था। अजूबा शिल्ही की पुत्री थी। 32 यहोशापात सच्चे मार्ग पर अपने पिता आसा की तरह रहा। यहोशापात, आसा के मार्ग का अनुसरण करने से मुड़ा नहीं। यहोशापात ने यहोवा की दृष्टि में उचित किया। 33 किन्तु उच्च स्थान नहीं हटाये गये और लोगों ने अपना हृदय उस परमेश्वर का अनुसरण करने में नहीं लगाया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे।
34 यहोशापात ने आरम्भ से अन्त तक जो कुछ किया वह येहू की रचनाओं में लिखा है। येहू के पिता का नाम हनानी था। ये बातें इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखी हुई हैं।
35 कुछ समय पश्चात यहूदा के राजा यहोशापात ने इस्राएल के राजा अहज्याह के साथ सन्धि की। अहज्याह ने बुरा किया। 36 यहोशापात ने अहज्याह का साथ तर्शीश नगर में जहाज जाने देने में दिया। उन्होंने जहाजों को एस्योन गेबेर नगर में बनाया। 37 तब एलीआजर ने यहोशापात के विरुद्ध कहा। एलीआजर के पिता का नाम दोदावाह था। एलीआजर मारेशा नगर का था। उसने कहा, “यहोशापात, तुम अहज्याह के साथ मिल गये हो, यही कारण है कि यहोवा तुम्हारे कार्य को नष्ट करेगा।” जहाज टूट गए, अत: यहोशापात और अहज्याह उन्हें तर्शीश नगर को न भेज सके।
21तब यहोशापात मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। उसे दाऊद के नगर में दफनाया गया। यहोराम यहोशापात के स्थान पर नया राजा हुआ। यहोराम यहोशापात का पुत्र था। 2 यहोराम के भाई अजर्याह, यहीएल, जकर्याह, अजर्याह, मीकाएल और शपत्याह थे। वे लोग यहोशापात के पुत्र थे। यहोशापात यहूदा का राजा था। 3 यहोशापात ने अपने पुत्रों को चाँदी, सोना और कीमती चीज़ें भेंट में दीं। उसने उन्हें यहूदा में शक्तिशाली किले भी दिये। किन्तु यहोशापात ने राज्य यहोराम को दिया क्योंकि यहोराम सबसे बड़ा पुत्र था।
समीक्षा
आपका युद्ध लड़ने के लिए परमेश्वर पर
आप अपने जीवन में कौनसे युद्ध का सामना कर रहे हैं? यहोशापात को अपनी लड़ाई लड़नी थी। उसे अनेक ‘नीयों’ का सामना करना पड़ा - मोआबियों, अम्मोनियों और मूनियों'।
जैसा कि जॉयस मेयर लिखती हैं, लेकिन हमारे साथ अनेक, ‘डेर-‘नीयो’ ’बीमार-नीयो’ ’गरीबी-नीयो’ खराब विवाह संबध-नीयों, ‘तनाव-नीयों’ ‘पड़ोसी झगडालू-नीयों’ ‘असुरक्षित-नीयों’ ‘बहिष्कार-नीयों’ ’वगैरह, वगैरह है।
अराम के राजा के विरोध में लड़ाई करते समय यहोशापात चिल्ला उठा और परमेश्वर ने उसकी सहायता की (18:31) इसमे हम परमेश्वर की श्रेष्ठता और प्रभुता को देखते हैं। परमेश्वर के अचानक चले एक तीर से इस्राएल के राजा को मरने दिया लेकिन यहोशापात को बचाया और उसकी रक्षा की जिसने उनकी दोहाई दी थी (वव.28-34)।
यहोशापात ने परमेश्वर के साथ लोगों का फिर से मेल-मिलाप करवाया (19:4)। उसने न्यायियों को नियुक्त किया। उसने उन्हें बुलाकर बताया कि वे ‘अन्याय, भेदभाव और कुटिलता’ से दूर रहें (v7)। अगर आज इस संसार में सभी हाकिम और न्यायधीश ऐसे ही बदल जाएंगे, तो हमारा देश कितना मनोहर बन जाएगा।
यहोशापात परमेश्वर के मार्ग पर चला, (वह अपने पिता आसा के मार्ग पर चला और उससे न मुड़ा, अर्थात जो यहोवा की दृष्टी में ठीक है वह वही करता रहा 20:32।) फिर भी उसे युद्ध का सामना करना पडा। क्योंकि अब आप अपने जीवन में मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। हम अक्सर जिंदगी में परेशानियों का सामना इसलिए करते हैं, ताकि आप सही हो जाएं।
उसके विरूद्ध एक बडी सेना आई (व.2)। यहोशापात ने घोषणा की, पूरा राज्य उपवास करेगा और बडी संख्या में प्रार्थना मण्डली बुलवाई, यहूदा के सब नगरों से लोगो को प्रार्थना और उपवास में बुलाया गया (v.3-4)।
उसने परमेश्वर से प्रार्थना की। उसने परमेश्वर की सामर्थ को पहचाना। 'तू जाति-जाति के सब राज्यों पर प्रभुता करता है।बल पुर पराक्रम तेरे हाथ में है पुर कोई तेरा सामना नही कर सकता है' (v.6)।
वह जान गया कि हमारे पास कुछ भी शक्ति नहीं है इतनी बडी सेना के विरोध में लडने के लिए; हमें पता नहीं करें तो क्या करें, लेकिन परमेश्वर हमारी आँखे आप पर लगी हैं (व.12)।
परमेश्वर ने भविष्यवक्ता द्वारा अपनी बातों को प्रकट किया। जब वे परमेश्वर के सामने इंतजार कर रहे थे; परमेश्वर का आत्मा उस पर उतर आया (व.14)।
उसने कहा तुम इस बड़ी भीड़ से मत डरो और तुम्हारा मन कच्चा न हो; क्योंकि युद्ध तुम्हारा नहीं’ परमेश्वर का है (व.15).। इस लड़ाई में तुम्हे लड़ना ना होगा; तुम कल उनका सामना करने के लिए जाना। तुम ठहरे रहना और खड़े होकर यहोवा की ओर से अपना बचाव देखना; यहोवा तुम्हारे साथ रहेंगे (v.17)।
यहोशापात ने परमेश्वर को दण्डवत किया (v.18)। वे उंचे स्वर से यहोवा की स्तुती करने लगे (v.19)। उसने लोगों से कहा, ‘पूरे इतिहास की पुस्तक को हम इन बातों से सारांशित कर सकते हैं कि ‘परमेश्वर यहोवा पर विश्वास रखो, तब तुम स्थिर रहोगे; उनेके नबियों की प्रतीति करो, तब तुम कृतार्थ हो जाओगे’’।(v.20)
उन्होंने यह कहकर परमेश्वर की स्तुती की; “परमेश्वर की स्तुती करो; उसकी करुणा सदा की है”(v.21)। स्तुती/आराधना एक हथियार है।जैसे उन्होने स्तुती की, परमेश्वर ने उन्हे छुटकारा और विजय दिलाई(v.22)।
प्रार्थना
प्रभु, आज मैं जिन संघर्षों का सामना कर रहा हूँ, उसमें मैं आप पर भरोसा करता हूँ। मैं नहीं जानता कि मुझे क्या करना है, लेकिन मेरी आँखें आप पर टिकी हुई हैं।
पिप्पा भी कहते है
1 कुरिंथियों 15:42
' मुर्दों का जी उठना भी ऐसा ही है। शरीर नाशमान दशा में बोया जाता है, और अविनाशी रूप में जी उठता है। '
रोमांचक! कुछ ऐसा जिसकी प्रतीक्षा है!
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संदर्भ
जॉयस मेयर: द एवरी डे लाइफ बाइबल, (फेथवर्ड्स, 2014) पन्ना 681.
संपादकीय नोट्स :
मिस प्रिज़्म एक्सचेंज को ट्रेन में पढ़ने के लिए कुछ संवेदनशील पठन में से लिया गया है: द डायरी ऑफ ए लाइफ टाइम लेखक गेल्स ब्रॅन्डविथ. (परिचय में) पन्ना ix.
जैसा कि जॉयस मेयर लिखती हैं: यह ‘डेर-‘नियो’ ’बीमार-नियो’ ’गरीबी-नियो’ खराब विवाह संबध-नियों, ‘तनाव-नियों’ ‘पडोसी झगडालू-नियों’ ‘असुरक्षित-नियों’ ‘बहिष्कार-नियों’ वगैरह, वगैरह है।
(द एवरी डे लाइफ बाइबल, (फेथवर्ड्स, 2014) पन्ना 681)
जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
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