परिवार
परिचय
एक व्यस्त पिताजी अपनी बेटी के मनोरंजन का तरीका ढूँढ रहे थे। उन्होंने एक किताब में विश्व के नक्शे को देखकर उसे टुकडो में काटने की शुरूवात की। उसने कागज के टुकडों को देकर कहा कि इसे वापस जोड़ दो ताकि विश्व का नक्शा फिर से ठीक दिखाई दे।
कुछ समय बाद बेटी ने कहा कि उसने दिये हुए काम को पूरा कर दिया है। पिताजी आश्चर्यचकित हुए कि इतनी जल्दी बेटी ने इसे कैसे पूरा कर दिया। उन्होने पूछा इतनी जल्दी इन कागज के टुकड़ो को ठीक से जोड़ना कैसा संभव हुआ। बेटी ने जवाब दिया कि जब आप पुस्तक में से यह कागज फाड़ रहे थे तब मैनें देखा कि इस कागज के पीछे एक स्त्री और पुरुष का चित्र था; मैने सोचा कि अगर इस स्त्री और पुरुष के चित्र को ठीक से चिपका दूँ तो विश्व का नक्शा ठीक से दिखाई देगा।
वैवाहिक और परिवारिक जीवन बहुत महत्वपूर्ण है। यह परमेश्वर की प्राकृतिक व्यवस्था का एक हिस्सा है और समाज में इसकी बहुत एहमियत है। पोप जॉन पॉल ने एक बार लिखा था कि परिवार समाज की ‘नींव’ है और समाज को निरंतर पोषण देती है।
निक्की और सीला ली ने अपना जीवन को शादियों और परिवारों को मजबूत बनाने में व्यतीत किया है। उनके पाठ्यक्रम और किताबें; जैसे “द मैरिज बुक एंड द पैरेन्टिंग बुक' ने हमारी कलीसिया के हजारों लोगों पर बहुत प्रभाव डाला है और अब विश्व के अनेक देशों में भी प्रभाव डाल रही है। हाल ही में एक देश के सरकारी अफसर ने निक्की और सीला से कहा, ‘एक मजबूत समाज मजबूत परिवार पर निर्भर है और एक मजबूत परिवार निर्भर है मजबूत वैवाहिक जीवन पर। इसलिए आपके कार्य हमें पसंद हैं’।
पवित्र शास्त्र पारीवारिक जीवन पर अनेक बातें कहता है। केवल क्लीसिया के रूप में एक परिवार नहीं बल्कि मसीह में हम कलीसिया का एक हिस्सा हैं, जिसे नया नियम ‘परमेश्वर के परिवार’ के रूप में देखता है।
भजन संहिता 102:18-28
18 उन बातों को लिखो ताकि भविष्य के पीढ़ी पढ़े।
और वे लोग आने वाले समय में यहोवा के गुण गायेंगे।
19 यहोवा अपने ऊँचे पवित्र स्थान से नीचे झाँकेगा।
यहोवा स्वर्ग से नीचे धरती पर झाँकेगा।
20 वह बंदी की प्रार्थनाएँ सुनेगा।
वह उन व्यक्तियों को मुक्त करेगा जिनको मृत्युदण्ड दिया गया।
21 फिर सिय्योन में लोग यहोवा का बखान करेंगे।
यरूशलेम में लोग यहोवा का गुण गायेंगे।
22 ऐसा तब होगा जब यहोवा लोगों को फिर एकत्र करेगा,
ऐसा तब होगा जब राज्य यहोवा की सेवा करेंगे।
23 मेरी शक्ति ने मुझको बिसार दिया है।
यहोवा ने मेरा जीवन घटा दिया है।
24 इसलिए मैंने कहा, “मेरे प्राण छोटी उम्र में मत हरा।
हे परमेश्वर, तू सदा और सर्वदा अमर रहेगा।
25 बहुत समय पहले तूने संसार रचा!
तूने स्वयं अपने हाथों से आकाश रचा।
26 यह जगत और आकाश नष्ट हो जायेंगे,
किन्तु तू सदा ही जीवित रहेगा!
वे वस्त्रों के समान जीर्ण हो जायेंगे।
वस्त्रों के समान ही तू उन्हें बदलेगा। वे सभी बदल दिये जायेंगे।
27 हे परमेश्वर, किन्तु तू कभी नहीं बदलता:
तू सदा के लिये अमर रहेगा।
28 आज हम तेरे दास है,
हमारी संतान भविष्य में यही रहेंगी
और उनकी संताने यहीं तेरी उपासना करेंगी।”
समीक्षा
संतान और अगली पीढी
हर पीढी या वंशावली की जिम्मेदारी है कि वह भविष्य के बारे में सोचे और भविष्य के लिए कार्य करें। हमारे इस को या इस पीढी को लेकर ही नहीं बल्कि हमारी अगली पीढी के बारे में भी हमें ध्यान देना है। भजनकार अगली पीढ़ी के बारे में चिंता करता ''यहाँ बात आने वाली पीढी के लिए लिखी जाएगी”; और एक जाति जो सिरजी जाएगी वही परमेश्वर की स्तुती करेगी (व.18)।
यीशु हर एक पीढी की कुंजी हैं। दिलचस्प बात यह है कि वचन 25-27 में लेखक इसे लिखता है और इन बातों को यीशु पर लागू करके दिखाता है (इब्रानियो 1:10-12)। 'यीशु आज और युगानयुग एक सा है' (इब्रानियो 13:8)। आदी में तो परमेश्वर ने पृथ्वी की नींव डाली और आकाश तेरे हाथों का बनाया हुआ है (भजन संहिता 102:25, , MSG)। यीशु युगानुयुग रहेंगे: ‘वर्ष के बाद वर्ष आप नये के समान हो’ (व.27, , MSG)।
अगली पीढी के लिए गीतकार एक आशा के साथ इस प्रकार समाप्त करता है, 'तेरे दासो की संतान बनी रहेगी; और उनका वंश तेरे सामने स्थिर रहेगा' (व.28, MSG)।
यहाँ एक आशा है, एक प्रार्थना और कुछ हद तक एक वायदा भी है। हर किसी की जिंदगी का जिम्मेदार वह व्यक्ति स्वंय है, लेकिन परमेश्वर लोगों को परिवार के रुप में देखते हैं और बर्ताव करते हैं; इसमे एक खास विषेशता और अर्थ है। हम आशा रख सकते हैं, प्रार्थना कर सकते हैं और विश्वास भी कर सकते हैं कि हमारी संतान उनकी उपस्थिती में स्थिर बनी रहेगी (व.28)।
प्रार्थना
प्रभु; इस आशा के लिए धन्यवाद जो हमारे अंदर हमारी संतानो के लिए है। मैं अपने परिवार और कलीसिया के लिए प्रार्थना करता हूँ कि ये सभी आपकी उपस्थिती में सदा बने रहें और हमारी संतान इस तरह से प्रगती करे कि वे आपको जानें, आप से प्यार करें, सेवकाई करें और आपके सम्मुख में हमेशा बने रहें।
1 कुरिन्थियों 16:5-24
पौलुस की योजनाएँ
5 मैं जब मकिदुनिया होकर जाऊँगा तो तुम्हारे पास भी आऊँगा क्योंकि मकिदुनिया से होते हुए जाने का कार्यक्रम मैं निश्चित कर चुका हूँ। 6 हो सकता है मैं कुछ समय तुम्हारे साथ ठहरूँ या सर्दियाँ ही तुम्हारे साथ बिताऊँ ताकि जहाँ कहीं मुझे जाना हो, तुम मुझे विदा कर सको। 7 मैं यह तो नहीं चाहता कि वहाँ से जाते जाते ही बस तुमसे मिल लूँ बल्कि मुझे तो आशा है कि मैं यदि प्रभु ने चाहा तो कुछ समय तुम्हारे साथ रहूँगा भी। 8 मैं पिन्तेकुस्त के उत्सव तक इफिसुस में ही ठहरूँगा।
9 क्योंकि ठोस काम करने की सम्भावनाओं का वहाँ बड़ा द्वारखुला है और फिर वहाँ मेरे विरोधी भी तो बहुत से हैं।
10 यदि तिमुथियुस आ पहुँचे तो ध्यान रखना उसे तुम्हारे साथ कष्ट न हो क्योंकि मेरे समान ही वह भी प्रभु का काम कर रहा है। 11 इसलिए कोई भी उसे छोटा न समझे। उसे उसकी यात्रा पर शान्ति के साथ विदा करना ताकि वह मेरे पास आ पहुँचे। मैं दूसरे भाइयों के साथ उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा हुँ।
12 अब हमारे भाई अपुल्लौस की बात यह है कि मैंने उसे दूसरे भाइयों के साथ तुम्हारे पास जाने को अत्यधिक प्रोत्साहित किया है। किन्तु परमेश्वर की यह इच्छा बिल्कुल नहीं थी कि वह अभी तुम्हारे पास आता। सो अवसर पाते ही वह आ जायेगा।
पौलुस के पत्र की समाप्ति
13 सावधान रहो। दृढ़ता के साथ अपने विश्वास में अटल बने रहो। साहसी बनो, शक्तिशाली बनो। 14 तुम जो कुछ करो, प्रेम से करो।
15 तुम लोग स्तिफनुस के घराने को तो जानते ही हो कि वे अरवाया की फसल के पहले फल हैं। उन्होंने परमेश्वर के पुरुषों की सेवा का बीड़ा उठाया है। सो भाइयो। तुम से मेरा निवेदन है कि 16 तुम लोग भी अपने आप को ऐसे लोगों की और हर उस व्यक्ति की अगुवाई में सौंप दो जो इस काम से जुड़ता है और प्रभु के लिये परिश्रम करता है।
17 स्तिफ़नुस, फुरतुनातुस और अखइकुस की उपस्थिति से मैं प्रसन्न हूँ।क्योंकि मेरे लिए जो तुम नहीं कर सके, वह उन्होंने कर दिखाया। 18 उन्होंने मेरी तथा तुम्हारी आत्मा को आनन्दित किया है। इसलिए ऐसे लोगों का सम्मान करो।
19 एशिया प्रान्त की कलीसियाओं की ओर से तुम्हें प्रभु में नमस्कार। अक्विला और प्रिस्किल्ला। उनके घर पर एकत्र होने वाली कलीसिया की ओर से तुम्हें हार्दिक नमस्कार। 20 सभी बंधुओं की ओर से तुम्हें नमस्कार। पवित्र चुम्बन के साथ तुम आपस में एक दूसरे का सत्कार करो।
21 मैं, पौलुस, तुम्हें अपने हाथों से नमस्कार लिख रहा हूँ। 22 यदि कोई प्रभु में प्रेम नहीं रखे तो उसे अभिशाप मिले!
हे प्रभु, आओ!
23 प्रभु यीशु का अनुग्रह तुम्हें प्राप्त हो।
24 यीशु मसीह में तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम सबके साथ रहे।
समीक्षा
परिवार और घर
सीडनी आस्ट्रेलिया में हिलसाँन्ग चर्च के बाहर एक बड़ी लिखावट है जो कहता है, ‘घर में स्वागत है’ ब्रायन और बाँबी ह्युस्टन; जो वरिष्ठ पासवान हैं, उनका यह दर्शन है कि जो कोई कलीसिया में आए, उसका स्वागत हो, उसे प्यार दिया जाए और ऐसा माहौल और अतिथी सत्कार दिया जाए जैसे हम अपने घर पर आने वाले मेहमानों को प्यार देते हैं।
हमें नये नियम के इस दर्शन को अपनाना चाहिये कि कलीसिया एक घर है, इस पर हमें फिर से गौर करना जरूरी है। सच बात है कि पहले के मसीह लोगों की कलीसिया की इमारतें नहीं थीं। वे घर पर मिलते थे (व.19, , MSG)। पौलुस कुरिंथियो को लिखता है। अगर तिमुथियुस आता है, तो उसका अच्छा ख्याल रखें। आपके बीच में वह घर जैसा कुशल माहौल महसूस करें (व.10, , MSG)।
कलीसिया परमेश्वर का परिवार है। परमेश्वर हमारे पिता हैं। पौलुस पूरी कलीसिया को परिवार के रूप में देखता है। वह अन्य मसीही लोगों को अपने भाई और बहन के रूप में देखता है (व.15)। कलीसिया एक संस्था नहीं है, जिसमें आप सहभागिता करते हैं; यह एक परिवार है, जो आपका है और आप इसमें शामिल हैं।
पौलुस अकेला था और उसकी पत्नी नहीं और संतान भी नहीं थे। वह कुरिंथियो को प्यार करता और उन्हें अपना परिवार समझता। जब वह उनके साथ समय बिताता था तो वह आत्मिक प्रोत्साहन और ताजगी पाता था (व.17)। वह अपने पत्र को समाप्त करता था, यह कहकर कि “मैं आप सभी से प्यार करता हूँ” (व.24, , MSG)। वह चाहता है कि वे सब परमेश्वर से प्यार करें (व.22) और एक दूसरे से भी प्यार करें। वे अपने प्यार को इस प्रकार से प्रकट करें कि एक दूसरे को पवित्र चुम्बन दें (व.20)।
यह केवल कहे जाने वाला सिध्दांत नहीं है बल्कि यह व्यक्तिगत है। वह उन्हें देखने की आस रखता है (व.5) वह जानता है कि वे उसकी ‘मदद’ करेंगे (व.6) वह उनके साथ कुछ समय नहीं बल्कि यदि प्रभु चाहें तो उनके साथ लंबा समय बिताना चाहते हैं (व.7)। उसकी पत्री में पौलुस का संदेश है कि कलीसिया में लोग आपस में प्रेम रखें और एक दूसरे का ख्याल रखें। वह जो कहता था उसका पालन भी करता था जब उसने लिखा “सबकुछ प्यार से करो” (व.14)।
एक ही कारण, पौलुस जल्दी नहीं आ रहा है, इसलिए कि बड़ी द्वार; प्रबल सेवकाई के लिए खुली हुई है और विद्रोह करने वाले बहुत हैं(व.9) ऐसा जान पडता है कि जब कभी अच्छे कामों के लिए परमेश्वर भले मौको का द्वार खोलते हैं तब हमें यहाँ भी अपेक्षा करनी है कि विरोध करने वाले लोग भी यहां वहां थोडे खिल उठेंगे (व.9, , MSG)। जब अवसरों का द्वार खुलता है तब इन छोटे-मोटे विरोध को देखकर आप डगमगाइये मत बल्कि इस खुले द्वार का पूरी तरह से लाभ उठाइये।
वह तीमुथियुस के बारे में आगे कहता है, जिसे वह किसी अन्य जगहों पर प्रभु में अपने मित्र के रूप में बताता है (4:17)। उसके बाद अपने भाई अपोलुस के बारे में बातें कहता है (16:12) और फिर स्थिफुनुस के परिवार के बारे में कहना शुरू करता है (व.15, MSG)। नये करार में यह एक सामान्य बात दिखाई देती है कि पूरा परिवार यीशु को ग्रहण करे और एक साथ बपतिस्मा ले।
इस लेखांश में हम विवाहित परिवार द्वारा साथ सेवकाई करने का उदाहरण पढ़ते हैं। अक्विला और प्रिस्का अपने घर में कलीसिया चलाते थे (व.19)। यहाँ अक्विला का नाम पहले लिया गया है। लेकिन पौलुस ज्यादातर पहले प्रिस्का का ही नाम संबोधित करते थे (रोमियों 6:3)। यहाँ साफ और सरल बात यह है कि वे साथ मिलकर कलीसिया चलाते थे।
कलीसिया का परिवार पौलुस जैसे अकेले व्यक्ति द्वारा बनाए गए, उदाहण के लिए विवाहित दंपति प्रिस्का और अकीला; तथा पूरे परिवार समेत यानि स्थिफुनुस की तरह। ये साथ मिलकर अपने परमेश्वर के परिवार का निर्माण करते थे।
जैसा कि पौलुस लिखता है; इसे हम सब के जीवन में लागू किया जा सकता है “जागते रहो, विश्वास में स्थिर रहो, पुरूषार्थ करो, बलवंत हो जाओ”। जो कुछ करते हो उसे प्रेम से करो (1कुरिंथियो 16:13-14, MSG)।
प्रार्थना
प्रभु आप हमें प्यार एक दूसरे के प्रति ऐसा दीजिए कि, चाहें हम अकेले हों या विवाहित हों, हम सब आप के परिवार का सदस्य बनकर आपकी महिमा और तरोताजगी का अनुभव करते रहें।
2 इतिहास 24:1-25:28
योआश फिर मन्दिर बनाता है
24योआश जब राजा बना सात वर्ष का था। उसने यरूशलेम में चालीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माँ का नाम सिब्या था। सिब्या बेर्शेबा नगर की थी। 2 योआश यहोवा के सामने तब तक ठीक काम करता रहा जब तक याजक यहोयादा जीवित रहा। 3 यहोयादा ने योआश के लिये दो पत्नियाँ चुनीं। यहोआश के पुत्र और पुत्रियाँ थीं।
4 तब कुछ समय बाद, योआश ने यहोवा का मन्दिर दुबारा बनाने का निश्चय किया। 5 योआश ने याजकों और लेवीवंशियों को एक साथ बुलाया। उसने उनसे कहा, “यहूदा के नगरों में जाओ और उस धन को इकट्ठा करो जिसका भुगतान इस्राएल के लोग हर वर्ष करते हैं। उस धन का उपयोग परमेश्वर के मन्दिर को दुबारा बनाने में करो। शीघ्रता करो औऱ इसे पूरा कर लो।” किन्तु लेवीवंशियों ने शीघ्रता नहीं की।
6 इसलिये राजा योआश ने प्रमुख याजक यहोयादा को बुलाया। राजा ने कहा, “यहोयादा, तुमने लेवीवंशियों को यहूदा और यरूशलेम से कर का धन लाने को प्रेरित क्यों नहीं किया यहोवा के सेवक मूसा औऱ इस्राएल के लोगों ने पवित्र तम्बू के लिये इस कर के धन का उपयोग किया था।”
7 बीते काल में अतल्याह के पुत्र, परमेश्वर के मन्दिर में बलपूर्वक घुस गए थे। उन्होंने यहोवा के मन्दिर की पवित्र चीज़ों का उपयोग अपने बाल देवताओं की पूजा के लिये किया था। अतल्याह एक दुष्ट स्त्री थी।
8 राजा योआश ने एक सन्दूक बनाने और उसे यहोवा के मन्दिर के द्वार के बाहर रखने का आदेश दिया। 9 तब लेवीवंशियों ने यहूदा और यरूशलेम में यह घोषणा की। उन्होंने लोगों से कर का धन यहोवा के लिये लाने को कहा। यहोवा के सेवक मूसा ने इस्राएल के लोगों से मरुभूमि में रहते समय जो कर के रुप में धन माँगा था उतना ही यह धन है। 10 सभी प्रमुख और सभी लोग प्रसन्न थे। वे धन लेकर आए और उन्होंने उसे सन्दूक में डाला। वे तब तक देते रहे जब तक सन्दूक भर नहीं गया। 11 तब लेवीवंशियों को राजा के अधिकारियों के सामने सन्दूक ले जाना पड़ा। उन्होंने देखा कि सन्दूक धन से भऱ गया है। राजा के सचिव और प्रमुख याजक के अधिकारी आए और उन्होंने धन को सन्दूक से निकाला। तब वे सन्दूक को अपनी जगह पर फिर वापस ले गए। उन्होंने यह बार—बार किया और बहुत धन बटोरा। 12 तब राजा योआश और यहोयादा ने वह धन उन लोगों को दिया जो यहोवा के मन्दिर को बनाने का कार्य कर रहे थे और यहोवा के मन्दिर को बनाने में कार्य करने वालों ने यहोवा के मन्दिर को दुबारा बनाने के लिये कुशल बढ़ई और लकड़ी पर खुदाई का काम करने वालों को मजदूरी पर रखा। उन्होंने यहोवा के मन्दिर को दुबारा बनाने के लिये कांसे और लोहे का काम करने की जानकारी रखने वालों को भी मजदूरी पर रखा।
13 काम की निगरानी रखने वाले व्यक्ति विश्वसनीय थे। यहोवा के मन्दिर को दुबारा बनाने का काम सफल हुआ। उन्होंने परमेश्वर के मन्दिर को जैसा वह पहले था, वैसा ही बनाया और पहले से अधिक मजबूत बनाया। 14 जब कारीगरों ने काम पूरा कर लिया तो वे उस धन को जो बचा था, राजा योआश और यहोयादा के पास ले आए। उसका उपयोग उन्होंने यहोवा के मन्दिर के लिये चीज़ें बनाने के लिये किया। वे चीज़ें मन्दिर के सेवाकार्य में और होमबलि चढ़ाने में काम आती थीं। उन्होंने सोने और चाँदी के कटोरे और अन्य वस्तुएँ बनाईं। याजकों ने यहोवा के मन्दिर में हर एक संध्या को होमबलि तब तक चढ़ाई जब तक यहोयादा जीवित रहा।
15 यहोयादा बूढ़ा हुआ। उसने बहुत लम्बी उम्र बिताई तब वह मरा। यहोयादा जब मरा, वह एक सौ तीस वर्ष का था। 16 लोगों ने यहोयादा को दाऊद के नगर में वहाँ दफनाया जहाँ राजा दफनाए जाते हैं। लोगों ने यहोयादा को वहाँ दफनाया क्योंकि अपने जीवन में उसने परमेश्वर और परमेश्वर के मन्दिर के लिये इस्राएल में बहुत अच्छे कार्य किये।
17 यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के प्रमुख आए और वे राजा योआश के सामने झुके। राजा ने इन प्रमुखों की सुनी। 18 राजा औऱ प्रमुखों ने उस यहोवा, परमेश्वर के मन्दिर को अस्वीकार कर दिया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे। उन्होंने अशेरा—स्तम्भ और अन्य मूर्तियों की पूजा आरम्भ की। परमेश्वर यहूदा और यरूशलेम के लोगों पर क्रोधित हुआ क्योंकि राजा औऱ वे प्रमुख अपराधी थे। 19 परमेश्वर ने लोगों के पास नबियों को उन्हें यहोवा की ओर लौटाने के लिये भेजा। नबियों ने लोगों को चेतावनी दी। किन्तु लोगों ने सुनने से इन्कार कर दिया।
20 परमेश्वर की आत्मा जकर्याह पर उतरी। जकर्याह का पिता याजक यहोयादा था। जकर्याह लोगों के सामने खड़ा हुआ और उसने कहा, “जो यहोवा कहता है वह यह है: ‘तुम लोग यहोवा का आदेश पालन करने से क्यों इन्कार करते हो तुम सफल नहीं होगे। तुमने यहोवा को छोड़ा है। इसलिये यहोवा ने भी तुम्हें छोड़ दिया है!’”
21 लेकिन लोगों ने जकर्याह के विरुद्ध योजना बनाई। राजा ने जकर्याह को मार डालने का आदेश दिया, अत: उन्होंने उस पर तब तक पत्थर मारे जब तक वह मर नहीं गया। लोगों ने यह मन्दिर के आँगन में किया। 22 राजा योआश ने अपने ऊपर यहोयादा की दयालुता को भी याद नहीं रखा। यहोयादा जकर्याह का पिता था। किन्तु योआश ने यहोयादा के पुत्र जकर्याह को मार डाला। मरने के पहले जकर्याह ने कहा, “यहोवा उस पर ध्यान दे जो तुम कर रहे हो और तुम्हें दण्ड दे!”
23 वर्ष के अन्त में अराम की सेना योआश के विरुद्ध आई। उन्होंने यहूदा और यरूशलेम पर आक्रमण किया और लोगों के सभी प्रमुखों को मार डाला। उन्होंने सारी कीमती चीज़ें दमिश्क के राजा के पास भेज दीं। 24 अराम की सेना बहुत कम समूहों में आई थी किन्तु यहोवा ने उसे यहूदा की बहुत बड़ी सेना को हराने दिया। यहोवा ने यह इसलिये किया कि यहूदा के लोगों ने यहोवा परमेश्वर को छोड़ दिया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे। इस प्रकार योआश को दण्ड मिला। 25 जब अराम के लोगों ने योआश को छोड़ा, वह बुरी तरह घायल था। योआश के अपने सेवकों ने उसके विरुद्ध योजना बनाई। उन्होंने ऐसा इसलिये किया कि योआश ने याजक यहोयादा के पुत्र जकर्याह को मार डाला था। सेवकों ने योआश को उसकी अपनी शैया पर ही मार डाला। योआश के मरने के बाद लोगों ने उसे दाऊद के नगर में दफनाया। किन्तु लोगों ने उसे उस स्थान पर नहीं दफनाया जहाँ राजा दफनाये जाते हैं।
26 जिन सेवकों ने योआश के विरुद्ध योजना बनाई, वे ये हैं जाबाद और यहोजाबाद। जाबाद की माँ का नाम शिमात था। शिमात अम्मोन की थी। यहोजाबाद की माँ का नाम शिम्रित था। शिम्रित मोआब की थी। 27 योआश के पुत्रों की कथा, उसके विरुद्ध बड़ी भविष्यवाणियाँ और उसने फिर परमेश्वर का मन्दिर कैसे बनाया, राजाओं के व्याख्या नामक पुस्तक में लिखा है। उसके बाद अमस्याह नया राजा हुआ। अमस्याह योआश का पुत्र था।
यहूदा का राजा अमस्याह
25अमस्याह राजा बनने के समय पच्चीस वर्ष का था। उसने यरूशलेम में उन्त्तीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माँ का नाम यहोअद्दान था। यहोअद्दान यरूशलेम की थी। 2 अमस्याह ने वही किया जो यहोवा उससे करवाना चाहता था। किन्तु उसने उन्हें पूरे हृदय से नहीं किया। 3 अमस्याह के हाथ में राज्यसत्ता सुदृढ़ हो गयी। तब उसने उन अधिकारियों को मार डाला जिन्होंने उसके पिता राजा को मारा था। 4 किन्तु अमस्याह ने उन अधिकारियों के बच्चों को नहीं मारा। क्यों? क्योंकि उसने मूसा के पुस्तक में लिखे नियमों को माना। यहोवा ने आदेश दिया था, “पिताओं को अपने पुत्रों के पाप के लिये नहीं मारना चाहिए। बच्चों को अपने पिता के पापों के लिये नहीं मरना चाहिए। हर एक व्यक्ति को अपने स्वयं के पाप के लिये मरना चाहिए।”
5 अमस्याह ने यहूदा के लोगों को इकट्ठा किया। उसने उनके परिवारों का वर्ग बनाया और उन वर्गों के अधिकारी सेनाध्यक्ष और नायक नियुक्त किये। वे प्रमुख यहूदा और बिन्यामीन के सभी सैनिकों के अधिकारी हुए। सभी लोग जो सैनिक होने के लिये चुने गए, बीस वर्ष के या उससे अधिक के थे। वे सब तीन लाख प्रशिक्षित सैनिक भाले और ढाल के साथ लड़ने वाले थे। 6 अमस्याह ने एक लाख सैनिकों को इस्राएल से किराये पर लिया। उसने पौने चार टन चाँदी का भुगतान उन सैनिकों को किराये पर लेने के लिये किया। 7 किन्तु परमेश्वर का एक व्यक्ति अमस्याह के पास आया। परमेश्वर के व्यक्ति ने कहा, “राजा, अपने साथ इस्राएल की सेना को न जाने दो। परमेश्वर इस्राएल के साथ नहीं है। परमेश्वर एप्रैम के लोगों के साथ नहीं है। 8 सम्भव है तुम अपने को शक्तिशाली बनाओ औऱ युद्ध की तैयारी करो, किन्तु परमेश्वर तुम्हें जिता या हरा सकता है।” 9 अमस्याह ने परमेश्वर के व्यक्ति से कहा, “किन्तु हमारे धन का क्या होगा जो मैंने पहले ही इस्राएल की सेना को दे दिया है” परमेश्वर के व्यक्ति ने उत्तर दिया, “यहोवा के पास बहुत अधिक है। वह उससे भी अधिक तुमको दे सकता है!”
10 इसलिए अमस्याह ने इस्राएल की सेना को वापस घर एप्रैम को भेज दिया। वे लोग राजा और यहूदा के लोगों के विरुद्ध बहुत क्रोधित हुए। वे बहुत अधिक क्रोधित होकर अपने घर लौटे।
11 तब अमस्याह बहुत साहसी हो गया और वह अपनी सेना को एदोम देश में नमक की घाटी में ले गया। उस स्थान पर अमस्याह की सेना ने सेईर के दस हज़ार सैनिकों को मार डाला। 12 यहूदा की सेना ने सेईर से दस हज़ार आदमी पकड़े। वे उन लोगों को सेईर से एक ऊँची चट्टान की चोटी पर ले गए। वे लोग तब तक जीवित थे। तब यहूदा की सेना ने उन व्यक्तियों को उस ऊँची चट्टान की चोटी से नीचे फेंक दिया और उनके शरीर नीचे की चट्टनों पर चूर चूर हो गए।
13 किन्तु उसी समय इस्राएली सेना यहूदा के कुछ नगरों पर आक्रमण कर रही थी। वे शोमरोन से बेथोरोन नगर तक के नगरों पर आक्रमण कर रहे थे। उन्होंने तीन हज़ार लोगों को मार डाला और वे बहुत सी कीमती चीज़ें ले गए। उस सेना के लोग इसलिये क्रोधित थे क्योंकि अमस्याह ने उन्हें युद्ध में अपने साथ सम्मिलित नहीं होने दिया।
14 अमस्याह एदोमी लोगों को हराने के बाद घर लौटा। वह सेईर के लोगों की उन देवमूर्तियों को लाया जिनकी वे पूजा करते थे। अमस्याह ने उन देवमूर्तियों को पूजना आरम्भ किया। उसने उन देवताओं को प्रणाम किया और उनको सुगन्धि भेंट की। 15 यहोवा अमस्याह पर बहुत क्रोधित हुआ। यहोवा ने अमस्याह के पास एक नबी भेजा। नबी ने कहा, “अमस्याह, तुमने उन देवताओं की क्यों पूजा की जिन्हें वे लोग पूजते थे वे देवता तो अपने लोगों की भी तुमसे रक्षा न कर सके!”
16 जब नबी ने यह बोला, अमस्याह ने नबी से कहा, “हम लोगों ने तुम्हें कभी राजा का सलाहकार नहीं बनाया! चुप रहो! यदि तुम चुप नहीं रहे तो मार डाले जाओगे।” नबी चुप हो गया, किन्तु उसने तब कहा, “परमेश्वर ने सचमुच तुमको नष्ट करने का निश्चय कर लिया है। क्योंकि तुम वे बुरी बातें करते हो और मेरी सलाह नहीं सुनते।”
17 यहूदा के राजा अमस्याह ने अपने सलाहकार के साथ सलाह की। तब उसने योआश के पास सन्देश भेजा। अमस्याह ने योआश से कहा, “हम लोग आमने—सामने मिलें।” योआश यहोआहाज का पुत्र था। यहोआहाज येहू का पुत्र था। येहू इस्राएल का राजा था।
18 तब योआश ने अपना उत्तर अमस्याह को भेजा। योआश इस्राएल का राजा था औऱ अमस्याह यहूदा का राजा था। योआश ने यह कथा सुनाई: “लेबानोन की एक छोटी कटीली झाड़ी ने लबानोन के एक विशाल देवदारु के वृक्ष को सन्देश भेजा। छोटी कटीली झाड़ी ने कहा, ‘अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र के साथ कर दो,’ किन्तु एक जंगली जानवर निकला और उसने कटीली झाड़ी को कुचला और उसे नष्ट कर दिया। 19 तुम कहते हो, ‘मैंने एदोम को हराया है!’ तुम्हें उसका घमंड है औऱ उसकी डींग हाँकते हो। किन्तु तुम्हें घर में घुसे रहना चाहिए। तुम्हें खतरा मोल लेने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम मुझसे युद्ध करोगे ते तुम औऱ यहूदा नष्ट हो जाओगे।”
20 किन्तु अमस्याह ने सुनने से इन्कार कर दिया। यह परमेश्वर की ओर से हुआ। परमेश्वर ने यहूदा को इस्राएल द्वारा हराने की योजना बनाई क्योंकि यहूदा के लोग उन देवताओं का अनुसरण कर रहे थे जिनका अनुसरण एदोम के लोग करते थे। 21 इसलिये इस्राएल का राजा योआश बेतशेमेश नगर में यहूदा के राजा अमस्याह से आमने—सामने मिला। बेतशेमेश यहूदा में है। 22 इस्राएल ने यहूदा को हराया। यहूदा का हर एक व्यक्ति अपने घरों को भाग गया। 23 योआश ने अमस्याह को बेतशेमेश में पकड़ा और उसे यरूशलेम ले गया। अमस्याह के पिता का नाम योआश था। योआश के पिता का नाम यहोआहाज था। योआश ने छ: सौ फुट लम्बी यरूशलेम की उस दीवार को जो एप्रैम फाटक से कोने के फाटक तक थी, गिरा दिया। 24 तब योआश ने परमेश्वर के मन्दिर का सोना, चाँदी तथा कई अन्य सामान ले लिये। ओबेदेदोम मन्दिर में उन चीज़ों की सुरक्षा का उत्तरदायी था। किन्तु योआश ने उन सभी चीजों को ले लिया। योआश ने राजमहल से भी कीमती चीज़ों को लिया। तब योआश ने कुछ व्यक्तियों को बन्दी बनाया और शोमरोन लौट गया।
25 अमस्याह योआश के मरने के बाद पन्द्रह वर्ष जीवित रहा। अमस्याह का पिता यहूदा का राजा योआश था। 26 अमस्याह ने आरम्भ से अन्त तक अन्य जो कुछ किया वह सब इस्राएल और यहूदा के राजा के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है। 27 जब अमस्याह ने यहोवा की आज्ञा का पालन करना छोड़ दिया, यरूशलेम के लोगों ने उसके विरुद्ध एक योजना बनाई। वह लाकीश नगर को भाग गया। किन्तु लोगों ने लाकीश में व्यक्तियों को भेजा और उन्होंने अमस्याह को वहाँ मार डाला। 28 तब वे अमस्याह के शव को घोड़ों पर ले गए और उसे उसके पूर्वजों के साथ यहूदा में दफनाया।
समीक्षा
माता पिता और संतान
जीवन में अच्छी परवरिश का बड़ा फायदा है। योआश के पिता बचपन में ही गुजर गये थे। केवल सात साल की आयु में वह राजा बन गए। उनकी माता ने यह ध्यान रखा कि वह याजक यहोयाद द्वारा शिक्षा और प्रक्षिक्षण भी पाएं (व.2, MSG)। उसने पूरी तरह से अच्छी शिक्षा की प्राप्ती की और जब तक यहोयादा याजक जीवित रहा; तब तक योआश वह काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टी में ठीक है (व.3, MSG)। योआश का खुद का परिवार था और उसके बेटे-बेटियाँ भी थे (व.3 , MSG)।
परमेश्वर ने दाऊद और उसके परिवार पर आशीष देने की प्रतिज्ञा की। आने वाली पीढ़ी को राजपद मिलता रहा। हालांकि परमेश्वर का प्रेम अपरंपार है फिर भी हर व्यक्ति की यह जिम्मेदारी है कि वह इस प्रेम की सही प्रतिक्रिया करे और उन्हें अपनाए। मूसा की पुस्तक (शायद व्यवस्था को प्रकट करने का तरीका था); (पुराने नियम की पहली पाँच पुस्तकें) इस बात की सहमति देती है कि ‘पुत्र के कारण पिता न मार डाल जाए, और न ही पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए’, जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए (25:4)। हम व्यक्तिगत तौर पर अपने पापों का दंड चुकाते हैं।
यहां पर हम इस सिध्दांत को कार्य करते हुए देखते हैं। योआश ने शुरूआत अच्छी तरह से की। परमेश्वर की नजर में जो ‘सही’ था, वही किया (24:2)। उसने ‘निर्णय’ लिया कि वह परमेश्वर के भवन को फिर से बनाएगा (व.4)। तो सब हाकिम और प्रजा के सब लोग आनन्दित हो धन लाकर सन्दूक में तब तक डालते गए जब तक यह पूरी तरह से न भर गया (व.10)। और उन्होने परमेश्वर का भवन जैसा था वैसा ही बनाकर इसे मजबूत कर दिया (व.13)। (आराधना का स्थान मायने रखता है और यदि सभी शामिल हो जाएं तो इसका पुनर्निमाण भी किया जा सकता है)।
दु:खद रूप से कि योआश के राज्य का अंत सही नहीं हुआ (व.17-27)। हम कैसी शुरूवात करते हैं, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम इसका अंत कैसे करते हैं।
दु:खद रूप से यही प्रारूप उसके बेटे अमस्याह के जीवन में भी दोहराया गया। उसने शुरूआत अच्छी की (25:2), परंतु समाप्ति अच्छी नहीं हुई। वह फूला न समाया और डींगे मारता रहा (व.19) और परमेश्वर के पीछे चलने से दूर हो गया (व.27)।
प्रार्थना
प्रभु, आप हमारी सहायता कीजिए कि हम अच्छा उदाहरण बनें और सही तरह से समाप्ति रहें। मैं प्रार्थना करता हूँ कि हमारा परिवारिक जीवन एक बार फिर से नींव बने हमारे समाज का निरंतर पोषण करने के लिए। विवाह के पतन में बदलाव आए और परिवारों में पुनर्गठन हो और वे मजबूत हो जाएं।
पिप्पा भी कहते है
2इतिहास 24:1-25:28
अच्छी सलाह से संतान महान कार्य की स्थापना कर सकते हैं। हमें उन्हें तुच्छ नहीं समझना चाहिए।
योआश सात साल की उम्र में राजा बनाया गया। यहोयादा याजक की सलाह के द्वारा योआश ने भवन का पुन:निर्माण किया। उसके साथ अच्छा सलाहकार होने से उसे बहुत कामयाबी मिली। लेकिन उसके सलाहकार की मृत्यु के बाद उसका मार्ग अलग हो गया। हमें हमेशा अच्छे सलाहकारों की सलाह लेनी चाहिए और हम सब को अगली युवा पीढी को प्रोत्साहन देना चाहिये।
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संदर्भ
एक मजबूत समाज मजबूत परिवार पर निर्भर है और एक मजबूत परिवार निर्भर है मजबूत वैवाहिक जीवन पर। - चीनी सरकार की ओर से अधिकारिक कथन।जिन वचनों को (एएमपी) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।