दिन 241

बस प्रेम

बुद्धि नीतिवचन 21:5-16
नए करार 2 कुरिन्थियों 1:23-2:11
जूना करार 2 इतिहास 31:2-33:20

परिचय

बंदीगृह की गवर्नर एक बहुत ही आकर्षक, गतिशील, विद्वान और युवा अफ्रीकन – अमेरिका की महिला थी जो ’प्रमुख-जेनिफर' के रूप में जानी जाती थी।

मुलाकात की शुरुवात में हमारा समूह इकट्ठा हुआ, उन लोगों के साथ जो बंदीगृह चलाते थे। प्रधान जेनिफर ने इन शब्दों के साथ हमारा स्वागत कियाः’हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के नाम में अभिवादन।'

उन्होंने हमें बताया कि वहाँ पर यू.एस.ए में बंदीगृह में 2.5 मिलियन लोग थे, हर एक पर साल में करदाता का 24,000 डॉलर खर्च होता था। केवल 3 प्रतिशत लोग जीवनभर बंदीगृह में रहते थे। 97 प्रतिशत, मुक्त होकर समाज में वापस चले जाएँगे। इस वजह से, उनके जीवन में बदलाव देखने के लिए वहाँ पर अच्छा उत्साह था, एक मसीह के रूप में उनकी खुद की इच्छा के अतिरिक्त, कि वे छुटकारे का अनुभव करें।

बंदीगृह ना केवल न्याय के साथ चलता था, लेकिन प्रेम के साथ भी। सभी गलत व्यवहारों और कार्यों का सामना प्रेम से किया जाता था। वहाँ पर कोई बुरी भाषा, अभद्रता नहीं थी और एक सीखा गया सम्मानजनक व्यवहार था। हमने मनुष्यों के एक समूह के साथ थोड़ा समय बिताया जिन्होंने हाल ही में वहाँ पर अल्फा पूरा किया था और उनके बदले हुए जीवन की गवाही को सुना।

परमेश्वर प्रेम हैं। वह न्यायी भी हैं। अपनी पुस्तक ’प्रेम में न्याय' में निकोलस वोल्टरस्टोर्फ बताते हैं कि प्रेम की उचित रीति से बनाई गई किसी धारणा का न्याय एक आवश्यक भाग है।

बुद्धि

नीतिवचन 21:5-16

5 परिश्रमी की योजनाएँ लाभ देती हैं यह वैसे ही निश्चित है
 जैसे उतावली से दरिद्रता आती है।

6 झूठ बोल—बोल कर कमाई धन दौलत भाप सी अस्थिर है,
 और वह घातक फंदा बन जाती है।

7 दुष्ट की हिंसा उन्हें खींच ले डूबेगी क्योंकि
 वे उचित कर्म करना नहीं चाहते।

8 अपराधी का मार्ग कुटिलता — पूर्ण होता है किन्तु जो सज्जन हैं
 उसकी राह सीधी होती हैं।

9 झगड़ालू पत्नी के संग घर में निवास से,
 छत के किसी कोने पर रहना अच्छा है।

10 दुष्ट जन सदा पाप करने को इच्छुक रहता,
 उसका पड़ोसी उससे दया नहीं पाता।

11 जब उच्छृंखल दण्ड पाता है तब सरल जन को बुद्धि मिल जाती है;
 किन्तु बुद्धिमान तो सुधारे जाने पर ही ज्ञान को पाता है।

12 न्यायपूर्ण परमेश्वर दुष्ट के घर पर आँख रखता है,
 और दुष्ट जन का वह नाश कर देता है।

13 यदि किसी गरीब की, करुणा पुकार पर कोई मनुष्य निज कान बंद करता है,
 तो वह जब पुकारेगा उसकी पुकार भी नहीं सुनी जायेगी।

14 गुप्त रुप से दिया गया उपहार क्रोध को शांत करता,
 और छिपा कर दी गई घूंस भंयकर क्रोध शांत करती है।

15 न्याय जब पूर्ण होता धर्मी को सुख होता,
 किन्तु कुकर्मियों को महा भय होता है।

16 जो मनुष्य समझ—बूझ के पथ से भटक जाता है,
 वह विश्राम करने के लिये मृतकों का साथी बनता है।

समीक्षा

न्याय और गरीब

एक समाज बिना न्याय और नियम के नियंत्रण के बिना रहने के लिए एक भयानक स्थान है। बुराई रोकी नहीं जा सकती है। विशेष रूप से गरीब कष्ट उठाते हैं। हम विश्व भर में बहुत से समाजों में न्याय की कमी के भयानक परिणामों को देखते हैं।

जहाँ पर नियम का शासन चलता है, वहाँ पर दुगुना लाभ होता है। जब न्याय होता है, यह ’सत्यनिष्ठ को आनंद' देता है (व.15अ)। यह बुराई करने वालों को भी रोकता है। यह ’बुराई करने वालों को आतंकित' करता है (व.15ब)। ’ न्याय का काम करना सत्यनिष्ठ को तो आनन्द, परन्तु अनर्थकारियों का विनाश ही का कारण जान पड़ता है' (व.15, एम.एस.जी)।

न्याय ऐसे एक समाज का निर्माण करता है जहाँ पर लोग सुरक्षित और रक्षित महसूस करते हैं – विशेष रूप से गरीब। शायद से हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर न आने का कारण है कि हमने गरीबों की चिल्लाहटों को नहीं सुना हैः’ जो कंगाल की दोहाई पर कान न दें, वह आप पुकारेगा और उसकी सुनी न जाएगी' (व.13)।

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं अपने विश्व में न्याय के लिए प्रार्थना करता हूँ। मैं उन लोगों के लिए प्रार्थना करता हूँ जो उन भागों में न्याय लाने का प्रयास कर रहे हैं जहाँ पर अन्याय का राज्य है।

नए करार

2 कुरिन्थियों 1:23-2:11

23 साक्षी के रूप में परमेश्वर की दुहाई देते हुए और अपने जीवन की शपथ लेते हुए मैं कहता हूँ कि मैं दोबारा कुरिन्थुस इसलिए नहीं आया था कि मैं तुम्हें पीड़ा से बचाना चाहता था। 24 इसका अर्थ यह नहीं है कि हम तुम्हारे विश्वास पर काबू पाना चाहते हैं। तुम तो अपने विश्वास में अड़िग हो। बल्कि बात यह है कि हम तो तुम्हारी प्रसन्नता के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं।

2इसीलिए मैंने यह निश्चय कर लिया था कि तुम्हें फिर से दुःख देने तुम्हारे पास न आऊँ। 2 क्योंकि यदि मैं तुम्हें दुःखी करूँगा तो फिर भला ऐसा कौन होगा जो मुझे सुखी करेगा? सिवाय तुम्हें जिन्हें मैंने दुःख दिया है। 3 यही बात तो मैंने तुम्हें लिखी है कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँ तो जिनसे मुझे आनन्द मिलना चाहिए, उनके द्वारा मुझे दुःख न पहुँचाया जाये। क्योंकि तुम सब में मेरा यह विश्वास रहा है कि मेरी प्रसन्नता में ही तुम सब प्रसन्न होगे। 4 क्योंकि तुम्हें मैंने दुःख भरे मन और वेदना के साथ आँसू बहा-बहा कर यह लिखा है। पर तुम्हें दुःखी करने के लिये नहीं, बल्कि इसलिए कि तुम्हारे प्रति जो मेरा प्रेम है, वह कितना महान है, तुम इसे जान सको।

बुरा करने वाले को क्षमा कर

5 किन्तु यदि किसी ने मुझे कोई दुःख पहुँचाया है तो वह मुझे ही नहीं, बल्कि किसी न किसी मात्रा में तुम सब को पहुँचाया है। 6 ऐसे व्यक्ति को तुम्हारे समुदाय ने जो दण्ड दे दिया है, वही पर्याप्त है। 7 इसलिए तुम तो अब उसके विपरीत उसे क्षमा कर दो और उसे प्रोत्साहित करो ताकि वह कहीं बढ़े चढ़े दुःख में ही डूब न जाये। 8 इसलिए मेरी तुमसे विनती है कि तुम उसके प्रति अपने प्रेम को बढ़ाओ। 9 यह मैंने तुम्हें यह देखने के लिये लिखा है कि तुम परीक्षा में पूरे उतरते हो कि नहीं और सब बातों में आज्ञाकारी रहोगे या नहीं। 10 किन्तु यदि तुम किसी को किसी बात के लिये क्षमा करते हो तो उसे मैं भी क्षमा करता हूँ और जो कुछ मैंने क्षमा किया है (यदि कुछ क्षमा किया है), तो वह मसीह की उपस्थिति में तुम्हारे लिये ही किया है। 11 ताकि हम शैतान से मात न खा जाये। क्योंकि उसकी चालों से हम अनजान नहीं हैं।

समीक्षा

न्याय और क्षमा

हममें से बहुत से सामना नहीं करना चाहते हैं। मुझे इसमें कठिनाई होती है। यह ना केवल नकारे जाने का डर है या सम्मान खोने का, यह डर है कि शायद से मैं स्थिति को और बदतर बना दूँगा, गुस्से और नाराजगी की आग में ईंधन डालने के द्वारा।

दूसरे सकारात्मक रूप से सामना करने का आनंद लेते हैं। यदि हम सामना करने की बाट जोहे, यदि हमें यह सरल लगता है कि दूसरों को सही ठहराये, सही करें और निंदा करें, तो यह संभव है कि हम प्रेम में काम नहीं कर रहे हैं।

पौलुस गहराई से कुरिंथियों से प्रेम करते थे। फिर भी वह सामना करने से शर्माए नहीं। उनके प्रेम ने विवश किया कि सामना करें, यद्यपि इससे उन्हें ’बहुत दुख' , 'हृदय की वेदना' और ’बहुत आँसू बहाने' पड़े (2:4)। ’ बड़े क्लेश और मन के कष्ट से मैं ने बहुत से आँसू बहा बहाकर तुम्हें लिखा था, इसलिये नहीं कि तुम उदास हो परन्तु इसलिये कि तुम उस बड़े प्रेम को जान लो, जो मुझे तुम से है' (व.4, एम.एस.जी)।

लोगों को सच का सामना करवाना शायद से दर्दभरा हो। सर्जरी की तरह, सच चोट पहुंचा सकती है, लेकिन यह चंगा भी करती है। इस तरह के ऑपरेशन को प्रेम के साथ किया जाना चाहिए। हम नहीं जानते हैं कि यहाँ पर पौलुस किसके बारे में या क्या बात कर रहे हैं। किंतु, शायद से वह आदमी हो सकता है जिसके बारे में पौलुस ने 1कुरिंथियो 5:1-5 में बताया (जो अपने पिता की पत्नी को रखता था)।

पौलुस ने आग्रह किया कि उसे चर्च से बाहर निकाल दिया जाए। किंतु, अब वह कह रहे हैं कि इस मनुष्य को काफी दंड मिल चुका है। वह उन्हें चिताते हैं कि उसे क्षमा करें और उसे शांति दें और उसके लिए अपने प्रेम को फिर से बताये (2कुरिंथियो 2:7-8)। न्याय कर दिया गया है। अब दया, अनुग्रह और क्षमा का समय था।

पौलुस क्षमा करने में शीघ्र थेः’10 जिसको तुम क्षमा करते हो उसे मैं भी क्षमा करता हूँ, क्योंकि मैं ने भी जो कुछ क्षमा किया है, यदि किया है, तो तुम्हारे कारण मसीह की जगह में होकर क्षमा किया है' (व.10)। जब पौलुस ने क्षमा किया, तब वे भूल गए – उन्हें याद भी नही कि वहाँ पर क्षमा करने लायक कुछ था।

अमेरिकन रेड क्रॉस की संस्थापक, क्लारा बार्टन को किसी मित्र ने याद दिलाया कि सालों पहले उनके साथ कोई क्रूर घटना घटी थी। क्लारा घटना को याद नहीं कर पा रही थी।

’क्या तुम्हें याद नहीं जो गलत चीज तुम्हारे साथ हुई थी?' मित्र ने हठ करते हुए पूछा।

’नहीं, ' क्लारा ने शांति से जवाब दिया । ’उसे भूलना मुझे स्पष्ट रूप से याद है।'

क्षमा करना मसीह चर्च में सबसे महत्वपूर्ण चीज है। क्षमा न करना एक तरीका है जिससे शैतान अंदर आ सकता है - यह उसकी चालों के लिए दरवाजा खोल देता है। क्योंकि हम उसकी चालों से अनजान नहीं (व.11)।

प्रार्थना

परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि हम शैतान की चालों को निष्फल कर दें। हमारी सहायता कीजिए कि क्षमा करने में शीघ्र बने और एक दूसरे से प्रेम करें और शैतान को चर्च के बाहर ही रखें।

जूना करार

2 इतिहास 31:2-33:20

2 राजा हिजकिय्याह ने फिर याजकों और लेवीवंशियों को समूहों में बाँटा और प्रत्येक समूह को अपना विशेष कार्य करना होता था। अत: राजा हिजकिय्याह ने उन समूहों को अपना कार्य फिर से आरम्भ करने को कहा। अत: याजकों और लेवीवंशियों का फिर से होमबलि और मेलबलि चढ़ाने का काम था। उन का काम मन्दिर में सेवा करना, गाना और यहोवा के भवन के द्वार पर परमेश्वर की स्तुति करना था। 3 हिजकिय्याह ने अपने पशुओं में से कुछ को होमबलि के लिये दिया। ये पशु प्रतिदिन प्रात: और सन्ध्या को होमबलि के लिये प्रयोग में आते थे। ये पशु सब्त के दिनों में और नवचन्द्र के समय और अन्य विशेष उत्सवों पर दी जाती थीं। यह वैसे ही किया जाता था जैसा यहोवा की व्यवस्था में लिखा है।

4 हिजकिय्याह ने यरूशलेम में रहने वाले लोगों को आदेश दिया कि जो हिस्सा याजकों और लेवीवंशियों का है वह उन्हें दें। तभी याजक और लेवीवंशी पूरे समय अपने को यहोवा के नियम के अनुसार दे सकते हैं। 5 देश के चारों ओर के लोगों ने इस आदेश के बारे में सुना। अत: इस्राएल के लोगों ने अपने अन्न, अंगूर, तेल, शहद और जो कुछ भी वे अपने खेतों में उगाते थे उन सभी फसलों का पहला भाग दिया। वे स्वेच्छा से इन सभी चीजों का दसवाँ भाग लाए। 6 इस्राएल और यहूदा के लोग जो यहूदा के नगरों में रहते थे, अपने पशुओं और भेड़ों का दसवाँ भाग भी लाए। वे उन चीज़ों का दसवाँ भाग भी लाए जो उस विशेष स्थान में रखी जाती थी जो केवल यहोवा के लिये था। वे उन सभी चीज़ों को अपने यहोवा, परमेश्वर के लिय ले कर आए। उन्होंने उन सभी चीज़ों को ढेरों में रखा।

7 लोगों ने तीसरे महीने (मई/जून) में अपनी चीज़ों के संग्रह को लाना आरम्भ किया और उन्होंने संग्रह का लाना सातवें महीने (सित्मबर/अक्टूबर) में पूरा किया। 8 जब हिजकिय्याह और प्रमुख आए तो उन्होंने संग्रह की गई चीज़ों के ढेरों को देखा। उन्होंने यहोवा की स्तुति की और इस्राएल के लोगों अर्थात् यहोवा के लोगों की प्रशंसा की।

9 तब हिजकिय्याह ने याजकों और लेवीवंशियों से ढेरों के सम्बन्ध में पूछा। 10 सादोक परिवार के मुख्य याजक अजर्याह ने हिजकिय्याह से कहा, “क्योंकि लोगों ने भेंटों को यहोवा के मन्दिर में लाना आरम्भ कर दिया है अत: हम लोगों के पास खाने के लिये बहुत अधिक है। हम लोगों ने पेट भर खाया और अभी तक हम लोगों के पास बहुत बचा है! यहोवा ने अपने लोगों को सच में आशीष दी है। इसलिये हम लोगों के पास यह सब बचा है।”

11 तब हिजकिय्याह ने याजकों को आदेश दिया कि वे यहोवा के मन्दिर में भण्डार गृह तैयार रखें। अत: यह किया गया। 12 तब याजक भेंटें दशमांश और अन्य वस्तुएं लाए जो केवल यहोवा को दी जानी थीं। वे सभी संग्रह की गई चीज़ें मन्दिर के भण्डारगृहों में रख दी गईं। लेवीवंशी कोनन्याह सभी संग्रह की गई चीजों का अधीक्षक था। शिमी उन चीज़ों का उपाधीक्षक था। शिमी कोनन्याह का भाई था। 13 कोनन्याह और उसका भाई इन व्यक्तियों के निरीक्षक थे: अहीएल, अजज्याह, नहत, असाहेल, यरीमेत, योजाबाद, एलीएल, यिस्मक्याह, महत और बनायाह। राजा हिजकिय्याह और यहोवा के मन्दिर का अधीक्षक अधिकारी अजर्याह ने उन व्यक्तियों को चुना।

14 कोरे उन भेंटों का अधीक्षक था जिन्हें लोग स्वेच्छा से यहोवा को चढ़ाते थे। वह उन संग्रहों को देने का उत्तरदायी था जो यहोवा को चढ़ाये जाते थे और वह उन उपहारों को वितरित करने का उत्तरदायी था जो यहोवा के लिये पवित्र बनाई जाती थीं। कोरे पूर्वी द्वार का द्वारपाल था। उसके पिता का नाम यिम्ना था जो लेवीवंशी था। 15 एदेन, मिन्यामीन, येशू, शमायाह, अमर्याह और शकन्याह कोरे की सहायता करते थे। वे लोग ईमानदारी से उन नगरों में सेवा करते थे जहाँ याजक रहते थे। वे संग्रह की गई चीज़ों को हर एक याजकों के समूह में उनके सम्बन्धियों को देते थे। वे वही चीज़ें, अधिक या कम महत्व के हर व्यक्ति को देते थे।

16 ये लोग संग्रह की हुई चीज़ों को तीन वर्ष के लड़के और उससे अधिक उम्र के उन लड़कों को भी देते थे जिनका नाम लेवीवंश के इतिहास में होता था। इन सभी पुरुषों को यहोवा के मन्दिर में अपनी नित्य सेवाओं को करने के लिये जाना होता था जिनको करना उनका उत्तरदायित्व था। लेवीवंशियों के हर एक समूह का अपना उत्तरदायित्व था। 17 याजकों को संग्रह का उनका हिस्सा दिया जाता था। यह परिवार के क्रम से वैसे ही किया जाता था जैसे वे अपने परिवार इतिहास में लिखे रहते थे। बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के लेवीवंशियों को संग्रह का उनका हिस्सा दिया जाता था। यह उनके उत्तरदायित्व और वर्ग के अनुसार किया जाता था। 18 लेविवंशियों के बच्चे, पत्नियाँ, पुत्र तथा पुत्रियाँ भी संग्रह का अपना हिस्सा पाते थे। यह उन सभी लेवीवंशियों के लिये किया जाता था जो परिवार के इतिहास में अंकित थे। यह इसलिये हुआ कि लेवीवंशी अपने को पवित्र और सेवा के लिये तैयार रखने में दृढ़ विश्वास रखते थे।

19 याजक हारून के कुछ वंशजों के पास कुछ कृषि योग्य खेत नगर के समीप वहाँ थे जहाँ लेवीवंशी रहते थे और हारून के वंशजों में से कुछ नगरों में भी रहते थे। उन नगरों में से हर एक में हारून के इन वंशजों को संग्रह का हिस्सा देने के लिये व्यक्ति नामांकन द्वारा चुने जाते थे। पुरुष तथा वे सभी जिनका नाम लेवीवंश के इतिहास में था सभी संग्रह का हिस्सा पाते थे।

20 इस प्रकार राजा हिजकिय्याह ने पूरे यहूदा में वे सब अच्छे कार्य किये। उसने वही किया जो यहोवा, उसके परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा, ठीक और विश्वास योग्य था। 21 उसने जो भी कार्य परमेश्वर के मन्दिर की सेवा में, नियमों व आज्ञाओं का पालन करने में और अपने परमेश्वर का अनुसरण करने में किये उसमें उसे सफलता मिली। हिजकिय्याह ने ये सभी कार्य अपने पूरे हृदय से किये।

अराम का राजा हिजकिय्याह को परेशान करने का प्रयत्न करता है

32हिजकिय्याह ने ये सब कार्य जो विश्वासपूर्वक पूरे किये। अश्शूर का राजा सन्हेरीब यहूदा देश पर आक्रमण करने आया। सन्हेरीब और उसकी सेना ने किले के बाहर डेरा डाला। उसने यह इसलिये किया कि वह नगरों को जीतने की योजना बना सके। सन्हेरीब इन नगरों को अपने लिये जीतना चाहता था। 2 हिजकिय्याह जानता था कि वह यरूशलेम, इस पर आक्रमण करने आया है। 3 तब हिजकिय्याह ने अपने अधिकारियों और सेना के अधिकरियों से सलाह ली। वे एकमत हो गए कि नगर के बाहर के सोतों का पानी रोक दिया जाये। उन अधिकारियों और सेना के अधिकारियों ने हिजकिय्याह की सहायता की। 4 बहुत से लोग एक साथ आए और उन्होंने सभी सोतों और नालों को जो देश के बीच से होकर बहते थे, रोक दिया। उन्होंने कहा, “अश्शूर के राजा को यहाँ आने पर पर्याप्त पानी नहीं मिलेगा!” 5 हिजकिय्याह ने यरूशलेम को पहले से अधिक मजबूत बनाया। यह उसने इस प्रकार किया: उसने दीवार के टूटे भागों को फिर बनवाया। उसने दीवारों पर मीनारें बनाईं। उसने पहली दीवार के बाहर दूसरी दीवार बनाईं। उसने फिर पुराने यरूशलेम के पूर्व की ओर के स्थानों को मजबूत किया। उसने अनेकों हथियार और ढालें बनवाईं। 6-7 हिजकिय्याह ने युद्ध के अधिकारियों को लोगों का अधीक्षक होने के लिये चुना। वह इन अधिकारियों से नगर द्वार के बाहर खुले स्थान में मिला। हिजकिय्याह ने उन अधिकारियों से सलाह की और उन्हें उत्साहित किया। उसने कहा, “दृढ़ और साहसी बनो। अश्शूर के राजा या उसके साथ की विशाल सेना से मत डरना, न ही उससे परेशान होना। अश्शूर के राजा के पास जो शक्ति है उससे भी बड़ी शक्ति हम लोगों के साथ है! 8 अश्शूर के राजा के पास केवल व्यक्ति हैं। किन्तु हम लोगों के साथ यहोवा, अपना परमेश्वर है। हमारा परमेश्वर हमारी सहायता करेगा। वह हमारा युद्ध स्वयं लड़ेगा।” इस प्रकार यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने लोगों को उत्साहित किया और उन्हें पहले से अधिक शक्तिशाली होने का अनुभव कराया।

9 अश्शूर के राजा सन्हेरीब और उसकी सारी सेना लाकीश नगर के पास डेरा डाले पड़ी थी। ताकि वे इसे हरा सकें तब अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यरूशलेम में यहूदा के राजा हिजकिय्याह के पास और यहूदा के सभी लोगों के पास अपने सेवक भेजे। सन्हेरीब के सेवक हिजकिय्याह और यरूशलेम के सभी लोगों के लिये एक सन्देश ले गए।

10 उन्होंने कहा, “अश्शूर का राजा सन्हेरीब यह कहता है: ‘तुम किसमें विश्वास करते हो जो तुम्हें यरूशलेम में युद्ध की स्थिति में ठहरना सिखाता है? 11 हिजकिय्याह तुम्हें मूर्ख बना रहा है। तुम्हें यरूशलेम में ठहरे रखने के लिये धोखा दिया जा रहा है। इस प्रकार तुम भूख—प्यास से मर जाओगे। हिजकिय्याह तुमसे कहता है, “यहोवा, हमारा परमेश्वर हमें अश्शूर के राजा से बचायेगा।” 12 हिजकिय्याह ने स्वयं यहोवा के उच्चस्थानों और वेदियों को हटाया है। उसने यहूदा और इस्राएल के तुम लोगों से कहा कि तुम लोगों को केवल एक वेदी पर उपासना करनी और सुगन्धि चढ़ानी चाहिए। 13 निश्चय ही, तुम जानते हो कि मेरे पूर्वजों और मैंने अन्य देशों के लोगों के साथ क्या किया है? अन्य देशों के देवता अपने लोगों को नहीं बचा सके। वे देवता मुझे उनके लोगों को नष्ट करने से न रोक सके। 14 मेरे पूर्वजों ने उन देशों को नष्ट किया। कोई भी ऐसा देवता नहीं जो मुझसे अपने लोगों को नष्ट होने से बचा ले। फिर भी तुम सोचते हो कि तुम्हारा देवता तुम्हें मुझसे बचा लेगा 15 हिजकिय्याह को तुम्हें मूर्ख बनाने और धोखा देने मत दो। उस पर विश्वास न करो क्योंकि किसी राष्ट्र या राज्य का कोई देवता कभी हमसे या हमारे पूर्वजों से अपने लोगों को बचाने में समर्थ नहीं हुआ है। इसलिये यह मत सोचो कि तुम्हारा देवता मुझे तुमको नष्ट करने से रोक लेगा।’”

16 अश्शूर के राजा के सेवकों ने इससे भी बुरी बातें यहोवा परमेश्वर तथा परमेश्वर के सेवक हिजकिय्याह के विरुद्ध कहीं। 17 अश्शूर के राजा ने ऐसे पत्र भी लिखे जो इस्राएल के यहोवा परमेश्वर का अपमान करते थे। अश्शूर के राजा ने उन पत्रों में जो कुछ लिखा था वह यह है: “अन्य राज्यों के देवता मुझसे नष्ट होने से अपने लोगों को न बचा सके। उसी प्रकार हिजकिय्याह का परमेश्वर अपने लोगों को मेरे द्वारा नष्ट किये जाने से नहीं रोक सकता।” 18 तब अश्शूर के राजा के सेवक यरूशलेम के उन लोगों पर जोर से चिल्लाये जो नगर की दीवार पर थे। उन सेवकों ने उस समय हिब्रू भाषा का प्रयोग किया जब वे दीवार पर के लोगों के प्रति चिल्लाये। अश्शूर के राजा के उन सेवकों ने यह सब इसलिये किया कि यरूशलेम के लोग डर जायें। उन्होंने वे बातें इसलिये कहीं कि यरूशलेम नगर पर अधिकार कर सकें। 19 उन सेवकों ने उन देवताओं के विरुद्ध बुरी बातें कहीं जिनकी पूजा संसार के लोग करते थे। वे देवता सिर्फ ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें मनुष्यों ने अपने हाथ से बनाया है। इस प्रकार उन सेवकों ने वे ही बुरी बातें यरूशलेम के परमेश्वर के विरुद्ध कहीं।

20 राजा हिजकिय्याह और आमोस के पुत्र यशायाह नबी ने इस समस्या के बारे में प्रार्थना की। उन्होंने जोर से स्वर्ग को पुकारा। 21 तब यहोवा ने अश्शूर के राजा के खेमे में एक स्वर्गदूत को भेजा। उस स्वर्गदूत ने अश्शूर की सेना के सब अधिकारियों, प्रमुखों और सैनिकों को मार डाला। इसलिये अश्शूर का राजा अपने देश में अपने घर लौट गया और उसके लोग उसकी वजह से बहुत लज्जित हुए। वह अपने देवता के मन्दिर में गया और उसी के पुत्रों में से किसी ने उसे वहीं तलवार से मार डाला। 22 इस प्रकार यहोवा ने हिजकिय्याह और यरूशलेम के लोगों को अश्शूर के राजा सन्हेरीब और सभी अन्य लोगों से बचाया। यहोवा ने हिजकिय्याह और यरूशलेम के लोगों की देखभाल की। 23 बहुत से लोग यरूशलेम में यहोवा के लिये भेंट लाए। वे यहूदा के राजा हिजकिय्याह के पास बहुमूल्य चीज़ें ले आए। उस समय के बाद सभी राष्ट्रों ने हिजकिय्याह को सम्मान दिया।

24 उन दिनों हिजकिय्याह बहुत बीमार पड़ा और मृत्यु के निकट था। उसने यहोवा से प्रार्थना की। यहोवा हिजकिय्याह से बोला और उसे एक चिन्ह दिया। 25 किन्तु हिजकिय्याह का हृदय घमण्ड से भर गया इसलिये उसने परमेश्वर की कृपा के लिये परमेश्वर को धन्यवाद नहीं किया। यही कारण था कि परमेश्वर हिजकिय्याह और यरूशलेम तथा यहूदा के लोगों पर क्रोधित हुआ। 26 किन्तु हिजकिय्याह और यरूशलेम में रहने वाले लोगों ने अपने हृदय तथा जीवन को बदल दिया। वे विनम्र हो गये और घमण्ड करना छोड़ दिया। इसलिये जब तक हिजकिय्याह जीवित रहा यहोवा का क्रोध उस पर नहीं उतरा।

27 हिजकिय्याह को बहुत धन औऱ सम्मान प्राप्त था। उसने चाँदी, सोने, कीमती रत्न, मसालें, ढालें और सभी प्रकार की चीज़ों के रखने के लिये स्थान बनाए। 28 हिजकिय्याह के पास लोगों द्वारा भेजे गये अन्न, नया दाखमधु और तेल के लिये भंडारण भवन थे। उसके पास पशुओं के लिये पशुशालायें और भेड़ों के लिये भेड़शालायें थीं। 29 हिजकिय्याह ने बहुत से नगर भी बनाये और उसे अनेक पशुओं के झुँड और भेड़ों के रेवड़ें मिलीं। परमेश्वर ने हिजकिय्याह को बहुत अधिक धन दिया। 30 यह हिजकिय्याह ही था जिसने यरूशलेम में गिहोन सोते की ऊपरी जल धाराओं के उदगर्मो को रोका और उन जल धाराओं को दाऊद नगर के ठीक पश्चिम को बहाया और हिजकिय्याह उन सबमें सफल रहा जो कुछ उसने किया।

31 किसी समय बाबुल के प्रमुखों ने हिजकिय्याह के पास दूत भेजे। उन दूतों ने एक विचित्र दृश्य के विषय में पूछा जो राष्ट्रों में प्रकट हुआ था। जब वे आए तो परमेश्वर ने हिजकिय्याह को अकेले छोड़ दिया जिससे कि वह अपनी जाँच कर सके औऱ वह सब कुछ जान सके जो हिजकिय्याह के हृदय में था।

32 हिजकिय्याह का शेष इतिहास औऱ कैसे उसने यहोवा को प्रेम किया, का विवरण आमोस के पुत्र यशायाह नबी के दर्शन ग्रन्थ और यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में मिलता है। 33 हिजकिय्याह मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। लोगों ने हिजकिय्याह को उस पहाड़ी पर दफनाया जहाँ दाऊद के पुत्रों की कब्रें हैं। जब वह मरा तो यहूदा के सभी लोगों ने तथा यरूशलेम के रहने वालों ने हिजकिय्याह को सम्मान दिया। हिजकिय्याह के स्थान पर मनश्शे नया राजा हुआ। मनश्शे हिजकिय्याह का पुत्र था।

यहूदा का राजा मनशशे

33मनशशे जब यहूदा का राजा हुआ वह बारह वर्ष का था। वह यरूशलेम में पचपन वर्ष तक राजा रहा। 2 मनशशे ने वे सब कार्य किये जिन्हें यहोवा ने गलत कहा था। उसने अन्य राष्ट्रों के भयंकर और पापपूर्ण तरीकों का अनुसरण किया। यहोवा ने उन राष्ट्रों को इस्राएल के लोगों के सामने बाहर निकल जाने के लिये विवश किया था। 3 मनशशे ने फिर उन उच्च स्थानों को बनाया जिन्हें उसके पिता हिजकिय्याह ने तोड़ गिराया था। मनशशे ने बाल देवताओं की वेदियाँ बनाईं और अशेरा—स्तम्भ खड़े किये। वह नक्षत्र—समूह को प्रणाम करता था तथा उन्हें पूजता था। 4 मनश्शे ने यहोवा के मन्दिर में असत्य देवताओं के लिये वेदियाँ बनाईं। यहोवा ने मन्दिर के बारे में कहा था, “मेरा नाम यरूशलेम में सदैव रहेगा।” 5 मनश्शे ने सभी नक्षत्र—समूहों के लिये यहोवा के मन्दिर के दोनों आँगनों में वेदियाँ बनाईं। 6 मनश्शे ने अपने बच्चों को भी बलि के लिये हिन्नोम की घाटी में जलाया। मनश्शे ने शान्तिपाठ, दैवीकरण और भविष्य कथन के रूप में जादू का उपयोग किया। उसने ओझाओं और भूत सिद्धि करने वालों के साथ बातें कीं। मनशशे ने यहोवा की दृष्टि में बहुत पाप किया। मनशशे के पापों ने यहोवा को क्रोधित किया। 7 उसने एक देवता की मूर्ति बनाई और उसे परमेश्वर के मन्दिर में रखा। परमेश्वर ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से मन्दिर के बारे में कहा था, “मैं इस भवन तथा यरूशलेम में अपना नाम सदा के लिये अंकित करता हूँ। मैंने यरूशलेम को इस्राएल के सभी परिवार समूहों में से चुना। 8 मैं फिर इस्राएलियों को उस भूमि से बाहर नहीं करुँगा जिसे मैंने उनके पूर्वजों को देने के लिये चुना। किन्तु उन्हें उन नियमों का पालन करना चाहिए जिनका आदेश मैंने दिया है। इस्राएल के लोगों को उन सभी विधियों, नियमों और आदेशों का पालन करना चाहिए जिन्हें मैंने मूसा को उन्हें देने के लिये दिया।”

9 मनशशे ने यहूदा के लोगों और यरूशलेम में रहने वाले लोगों को पाप करने के लिये उत्साहित किया। उसने उन राष्ट्रों से भी बड़ा पाप किया जिन्हें यहोवा ने नष्ट किया था और जो इस्राएलियों से पहले उस प्रदेश में थे!

10 यहोवा ने मनश्शे और उसके लोगों से बातचीत की। किन्तु उन्होंने सुनने से इन्कार कर दिया। 11 इसलिये यहोवा ने यहूदा पर आक्रमण करने के लिये अश्शूर के राजा के सेनापतियों को वहाँ पहुँचाया। इन सेनापतियों ने मनश्शे को पकड़ लिया और उसे बन्दी बना लिया। उन्होंने उसको बेड़ियाँ पहना दीं और उसके हाथों में पीतल की जंजीरे डालीं। उन्होंने मनश्शे को बन्दी बनाया और उसे बाबुल देश ले गए।

12 मनश्शे को कष्ट हुआ। उस समय उसने यहोवा अपने परमेश्वर से याचना की। मनश्शे ने स्वयं को अपने पूर्वजों के परमेश्वर के सामने विनम्र बनाया। 13 मनश्शे ने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर से सहायता की याचना की। यहोवा ने मनश्शे की याचना सुनी और उसे उस पर दया आई। यहोवा ने उसे यरूशलेम अपने सिंहासन पर लौटने दिया। तब मनश्शे ने समझा कि यहोवा सच्चा परमेश्वर है।

14 जब यह सब हुआ तो मनश्शे ने दाऊद नगर के लिये बाहरी दीवार बनाई। बाहरी दीवार गिहोन सोते के पश्चिम की ओर घाटी (किद्रोन) में मछली द्वार के साथ थी। मनश्शे ने इस दीवार को ओपेल पहाड़ी के चारों ओर बना दिया। उसने दीवार को बहुत ऊँचा बनाया। तब उसने अधिकारियों को यहूदा के सभी किलों में रखा। 15 मनश्शे ने विचित्र देवमूर्तियों को हटाया। उसने यहोवा के मन्दिर से देवमूर्ति को बाहर किया। उसने उन सभी वेदियों को हटाया जिन्हें उसने मन्दिर की पहाड़ी पर और यरूशलेम में बनाया था। मनश्शे ने उन सभी वेदियों को यरूशलेम नगर से बाहर फेंका। 16 तब उसने यहोवा की वेदी स्थापित की और मेलबलि तथा धन्यवाद भेंट इस पर चढ़ाई। मनश्शे ने यहूदा के सभी लोगों को इस्राएल के यहोवा परमेश्वर की सेवा करने का आदेश दिया। 17 लोगों ने उच्च स्थानों पर बलि देना जारी रखा, किन्तु उनकी भेंटें केवल यहोवा उनके परमेश्वर के लिये थीं।

18 मनश्शे ने जो कुछ अन्य किया और उसकी परमेश्वर से प्रार्थनाऐं और उन दृष्टाओं के कथन जिन्होंने इस्राएल के यहोवा परमेश्वर के नाम पर उससे बातें की थीं, वे सभी इस्राएल के राजा नामक पुस्तक में लिखी हैं। 19 मनश्शे ने कैसे प्रार्थना की और परमेश्वर ने वह कैसे सुनी और उस पर दया की, यह दृष्टाओं की पुस्तक में लिखा है। मनश्शे के सभी पाप और बुराईयाँ जो उसने स्वयं को विनम्र करने से पूर्व कीं और वे स्थान जहाँ उसने उच्च स्थान बनाए और अशेरा—स्तम्भ खड़े किये, दृष्टाओं की पुस्तक में लिखे हैं। 20 अन्त में मनश्शे मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफना दिया गया। लोगों ने मनश्शे को उसके अपने राजभवन में दफनाया। मनश्शे के स्थान पर आमोन नया राजा हुआ। आमोन मनश्शे का पुत्र था।

समीक्षा

न्याय और सामना कराना

परमेश्वर भी सामना कराने से डरते नहीं हैं! इस लेखांश में हम देखते हैं कि कैसे, अपने प्रेम में, परमेश्वर ने महत्वपूर्ण रूप से अच्छे लीडर जो घमंडी बन गए थे, और एक बुरे लीडर जो पछता नहीं रहे थे, दोनों का सच से सामना करवाया।

एक अच्छे राजा के बारे में पढ़ना बहुत राहत देता है। हिजकिय्याह ने मंदिर में सुधार कार्य किया। उन्होंने उदाहरण रखा – उन्होंने अपनी संपत्ति में से योगदान दिया (31:3)। लोगों ने उदारता से उत्तर दिया (व.5)। परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी और उनके पास खाने पीने के लिए बहुतायत से उपलब्ध था (व.10)।

’(हिजकिय्याह) ने जिस किसी चीज को करने के लिए हाथ बढ़ाया...प्रार्थना भरी आराधना की आत्मा में उन्होंने अच्छी तरह से इसे किया। वह एक महान सफलता थे' (वव.20-21, एम.एस.जी)। उन्होंने एक ’उदाहरणीय रिकॉर्ड' रखा था (32:1, एम.एस.जी)।

इन सभी चीजों ने हिजकिय्याह को प्रहार का सामना करने से नहीं रोका। जब सन्हेरीब की ओर से आक्रमण हुआ, तब हिजकिय्याह ने लोगों को उत्साहित किया, 'साहस बाँधो और दृढ़ हो, तुम न तो अश्शूर के राजा से डरो और न उसके संग की सारी भीड़ से, और न तुम्हारा मन कच्चा हो; क्योंकि जो हमारे साथ हैं, वह उनके संगियों से बड़े हैं। अर्थात् उनका सहारा तो मनुष्य ही है; परन्तु हमारे साथ, हमारी सहायता और हमारी ओर से युध्द करने को, हमारे परमेश्वर यहोवा हैं।' इसलिये प्रजा के लोग यहूदा के राजा हिजकिय्याह की बातों पर भरोसा करते रहे' (32:7-8, एम.एस.जी)।

हमारे जीवन में हम कभी कभी पराजित कर देने वाली जैसी परेशानियों का सामना करते हैं। उदाहरण के लिए यू.के. में मसीह, एक छोटी सी संख्या जैसे दिखाई देते हैं जो परमेश्वर के विरूद्ध लौकिकता की बड़ी सेना और शत्रुता की भावना का सामना कर रहे हैं। लेकिन अच्छा समाचार यह है कि हमारे अंदर एक बडी सामर्थ है और उनके साथ केवल ’माँस के हथियार हैं'। हमारे साथ हमारे प्रभु परमेश्वर हैं ’हमारी सहायता करने के लिए और हमारी लडाई लड़ने के लिए' (व.8)।

यहाँ पर हमेशा एक खतरा बना रहता है कि सफलता घमंड लाती है। लोग लीडर्स की ओर देखते हैं। सच में, हमें हमारे लीडर्स का सम्मान करना चाहिए। लेकिन सभी लीडर्स को यह बात पता होनी चाहिए कि इस सम्मान के चारों ओर खतरा लिखा हुआ है। यदि घमंड अंदर आ जाता है, तो शीघ्र पछताईये और अपने आपको दीन कीजिए।

जितनी जल्दी हिजकिय्याह सफल हो गए, उतनी ही जल्दी अक्खड़पन अंदर आ गया। जब परमेश्वर ने उसे सच का सामना करवाया, धन्यवाद हो, 'वह अपने हृदय में घमंड से पछताया' (व.26) और परमेश्वर ने फिर से बहुत धन और सम्मान के साथ उसे आशीष दी (व.27)। जो कुछ वह करते थे वह सफल होता था (व.30)।

तब रहस्यमय रूप से, ' परमेश्वर ने उसको इसलिये छोड़ दिया, कि उसको परखकर उसके मन का सारा भेद जान लें' (व.31)। यह आत्मा की एक अंधेरी रात थी।

निराश मत होईएगा यदि ऐसा समय आए जब आप परमेश्वर की उपस्थिति को महसूस नहीं करते हैं। कभी कभी परमेश्वर चुप और imperceptible होते हैं। जब परमेश्वर आपके हृदय को जाँचते हैं, तब वफादार बने रहें। हिजकिय्याह का हृदय अच्छा था – उनका जीवन समर्पण के कामों से भरा हुआ था (व.32) और जब वह मरे तब उनका सम्मान किया गया (व.33)।

उनके पुत्र का जीवन उनसे बिल्कुल विपरीत दिखाई पड़ता है। मनश्शे ने वह किया जो परमेश्वर की दृष्टि में बुरा था (33:2)। असल में, ऐसे एक व्यक्ति के बारे में सोच पाना कठिन है जिसने मनश्शे से अधिक बुरा किया हो। ’उसने अपने बेटों को होम करके चढ़ाया, और वह शुभ-अशुभ मुहूर्तें को मानता, और टोना और तंत्र-मंत्र करता, और ओझों और भूत सिध्दि वालो से सम्बन्ध रखता था। वरन् उसने ऐसे बहुत से काम किए, जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं और जिनसे वह अप्रसन्न होते हैं।' (व.6, एम.एस.जी)।

लेकिन कोई भी छुटकारे के परे नहीं है। इससे अंतर नहीं पड़ता है कि हम कितना नीचे तक गिर गए हैं, यदि मनश्शे की तरह, हम पछताते हैं और परमेश्वर की ओर फिरते हैं तो हम क्षमा पा सकते हैं।

परमेश्वर ने मनश्शे का सामना सच से कराया, ' तब संकट में पड़कर वह अपने परमेश्वर यहोवा को मानने लगा, और अपने पूर्वजों के परमेश्वर के सामने बहुत दीन हुआ, और उनसे प्रार्थना की' (व.12, एम.एस.जी)।

यही कारण है कि क्यो मुझे बंदीगृह में जाकर लोगों से मिलना पसंद है। कोई भी छुटकारे के परे नहीं है। क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा यीशु ने इसे संभव बनाया, जॉन एडिसन के शब्दों में, 'प्रेम और न्याय मिश्रित होते हैं, सच्चाई और दया मिलते हैं।'

प्रार्थना

परमेश्वर आपका धन्यवाद क्योंकि क्रूस पर हम आपके प्रेम और न्याय दोनों को देखते हैं। आपका धन्यवाद कि आपने मुझ पर दया की। मेरी सहायता कीजिए कि विश्व में आपके प्रेम को दिखाऊँ और आपके न्याय को लाऊँ, यीशु के नाम में।

पिप्पा भी कहते है

नीतिवचन 21:9

’ लम्बे - चौड़े घर में झगडालू पत्नी के संग रहने से छत के कोने पर रहना उत्तम है।'

...या, शायद से, एक झगड़ालू पति!

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संदर्भ

क्लारा बार्टन उदाहरण लिया गया है जॉन सी. मॅक्सवेल, आपके अंदर के लीडर को विकसित करना, (थॉमस नेल्सन पब्लिशिंग, 2012) पी.105

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट ऊ 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

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