दिन 268

आत्मा से शशक्त जीवन

बुद्धि नीतिवचन 23:19-28
नए करार इफिसियों 4:1-16
जूना करार यशायाह 60:1-62:12

परिचय

उद्धारकर्ता के बारे में बताने के लिए Wales की लंबाई और चौड़ाई से गुजरकर जाने की प्रज्वलित इच्छा मैंने महसूस कीः और यह संभव था, ऐसा करने के लिए मैं परमेश्वर को दाम चुकाने के लिए तैयार था।' इवान रॉबर्ट ने यह लिखा, 1904-1905 के वेल्श पुनर्जागरण के मुख्य मनुष्य। उन्होंने बताया कि कैसे परमेश्वर के आत्मा ने उन्हें परमेश्वर के प्रेम का एक प्रभावित करने वाला अनुभव कराया। वह दूसरों को यीशु के विषय में बताने के लिए करुणा और इच्छा से भर गए थे।

हम आत्मा के युग में रहते हैं। पुराने नियम में, पवित्र आत्मा विशेष लोगों पर, विशेष समय में, विशेष उद्देश्य के लिए आते थे। यशायाह के आज के लेखांश में हम इसका एक उदाहरण देखते हैं, जब पवित्र आत्मा भविष्यवक्ता पर आए (यशायाह 61)। यह घटना यीशु पर पवित्र आत्मा के उतरने की परछाई थी (लूका 4:14-18), साथ ही पिंतेकुस्त के दिन से, सभी मसीहों पर पवित्र आत्मा के ऊँडेले जाने की।

नीतिवचन की पुस्तक बताती है कि आत्मा से सशक्त जीवन कैसा होना चाहिए। फिर नये नियम में, हम आत्मा से सशक्त जीवन की परिपूर्णता को देखते हैं।

बुद्धि

नीतिवचन 23:19-28

कहावत 16

19 मेरे पुत्र, सुन! और विवेकी बनजा और अपनी मन को नेकी की राह पर चला। 20 तू उनके साथ मत रह जो बहुत पियक्कड़ हैं, अथवा ऐसे, जो ठूंस—ठूंस माँस खाते हैं। 21 क्योंकि ये पियक्कड़ और ये पेटू दरिद्र हो जायेंगे, और यह उनकी खुमारी, उन्हें चिथड़े पहनायेगी।

कहावत 17

22 अपने पिता की सुन जिसने तुझे जीवन दिया है, अपनी माता का निरादर मत कर जब वह वृद्ध हो जाये। 23 वह वस्तु सत्य है, तू इसको किसी भी मोल पर खरीद ले। ऐसे ही विवेक, अनुशासन और समझ भी प्राप्त कर; तू इनको कभी भी किसी मोल पर मत बेच। 24 नेक जन का पिता महा आनन्दित रहता और जिसका पुत्र विवेक पूर्ण होता है वह उसमें ही हर्षित रहता है। 25 इसलिये तेरी माता और तेरे पिता को आनन्द प्राप्त करने दे और जिसने तुझ को जन्म दिया, उसको हर्ष मिलता ही रहे।

कहावत 18

26 मेरे पुत्र, मुझमें मन लगा और तेरी आँखें मुझ पर टिकी रहें। मुझे आदर्श मान। 27 क्योंकि एक वेश्या गहन गर्त होती है। और मन मौजी पत्नी एक संकरा कुँआ। 28 वह घात में रहती है जैसे कोई डाकू और वह लोगों में विश्वास हीनों की संख्या बढ़ाती है।

समीक्षा

एक बुद्धिमान जीवन

एक बुद्धिमान जीवनशैली कैसी दिखाई देती है? आप कैसे 'बुद्धिमान बनते' हैं और अपने जीवन को 'सही दिशा में ' ले जाते हैं (व.19, एम.एस.जी)? पवित्र आत्मा बुद्धि के आत्मा हैं (यशायाह 11:2, इफीसियो 1:17)। बुद्धि और समझ की आत्मा के अनुसार जीवन जीने का अर्थ है इन चीजों पर ध्यान देनाः

  1. आप क्या खाते और पीते हैं

'दाखमधु के पीने वालों में न होना, न मांस के अधिक खाने वालों की संगति करना' (नीतिवचन 23:20, एम.एस.जी)? हमें ना तो 'पिय्यक्कड़' और ना 'पेटू' होना है (व.21, एम.एस.जी)।

  1. आप किसे सुनते हैं

'अपने जन्माने वाले पिता की सुनना, और जब तेरी माता बूढ़ी हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना' (व.22, एम.एस.जी)। माता-पिता के लिए सम्मान बुद्धि का चिह्न है। बुद्धिमान बच्चों के कारण माता-पिता को गर्व होता है (वव.24-25, एम.एस.जी)।

  1. आप कैसे सीखते हैं

एक जिज्ञासु दिमाग बुद्धि की आत्मा का चिह्न हैः' सच्चाई को मोल लेना, बेचना नहीं; और बुध्दि और शिक्षा और समझ को भी मोल लेना' (वव.23, एम.एस.जी)। बुद्धि का आत्मा आपको सच्चाई और ज्ञान की भूख देता है।

  1. आप किस बारे में सोचते हैं

अपने हृदय में जो आप सोचते हैं, वह आप बन जाते हैं। 'मेरे पुत्र, मुझे अपना हृदय दे' (व.26अ) -यही से हर चीज की शुरुवात होती है। अपने हृदय और अपने दिमाग की रक्षा कीजिए।

  1. आप क्या देखते हैं

'तेरी दृष्टि मेरे चालचलन पर लगी रहे' (व.26ब)। ध्यान देना कि आप क्या देखते हैं, यह तरीका है वेश्यागमन और दुराचार से बचे रहने का (वव.27-28)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आज मुझे बुद्धि के आत्मा से भर दीजिए। होने दीजिए कि मेरा जीवन यीशु को सम्मान दे।

नए करार

इफिसियों 4:1-16

एक देह

4इसलिए मैं, जो प्रभु का होने के कारण बंदी बना हुआ हूँ, तुम लोगों से प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हें अपना जीवन वैसे ही जीना चाहिए जैसा कि संतों के अनुकूल होता है। 2 सदा नम्रता और कोमलता के साथ, धैर्यपूर्वक आचरण करो। एक दूसरे की प्रेम से सहते रहो। 3 वह शांति, जो तुम्हें आपस में बाँधती है, उससे उत्पन्न आत्मा की एकता को बनाये रखने के लिये हर प्रकार का यत्न करते रहो। 4 देह एक है और पवित्र आत्मा भी एक ही है। ऐसे ही जब तुम्हें भी बुलाया गया तो एक ही आशा में भागीदार होने के लिये ही बुलाया गया। 5 एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास है और है एक ही बपतिस्मा। 6 परमेश्वर एक ही है और वह सबका पिता है। वही सब का स्वामी है, हर किसी के द्वारा वही क्रियाशील है, और हर किसी में वही समाया है।

7 हममें से हर किसी को उसके अनुग्रह का एक विशेष उपहार दिया गया है जो मसीह की उदारता के अनुकूल ही है। 8 इसलिए शास्त्र कहता है:

“उसने विजयी को ऊँचे चढ़,
बंदी बनाया और उसने लोगों को अपने आनन्दी वर दिये।”

9 अब देखो, जब वह कहता है, “ऊँचे चढ़” तो इसका अर्थ इसके अतिरिक्त क्या है? कि वह धरती के निचले भागों पर भी उतरा था। 10 जो नीचे उतरा था, वह वही है जो ऊँचे भी चढ़ा था इतना ऊँचा कि सभी आकाशों से भी ऊपर, ताकि वह सब कुछ को सम्पूर्ण कर दे। 11 उसने स्वयं ही कुछ को प्रेरित होने का वरदान दिया तो कुछ को नबी होने का तो कुछ को सुसमाचार के प्रचारक होने का तो कुछ को परमेश्वर के जनों की सुरक्षा और शिक्षा का। 12 मसीह ने उन्हें ये वरदान संत जनों की सेवा कार्य के हेतु तैयार करने को दिये ताकि हम जो मसीह की देह है, आत्मा में और दृढ़ हों। 13 जब तक कि हम सभी विश्वास में और परमेश्वर के पुत्र के ज्ञान में एकाकार होकर परिपक्क पुरुष बनने के लिए विकास करते हुए मसीह के सम्पूर्ण गौरव की ऊँचाई को न छू लें।

14 ताकि हम ऐसे बच्चे ही न बने रहें जो हर किसी ऐसी नयी शिक्षा की हवा से उछले जायें, जो हमारे रास्ते में बहती है, लोगों के छलपूर्ण व्यवहार से, ऐसी धूर्तता से, जो ठगी से भरी योजनाओं को प्रेरित करती है, इधर-उधर भटका दिये जाते हैं। 15 बल्कि हम प्रेम के साथ सत्य बोलते हुए हर प्रकार से मसीह के जैसे बनने के लिये विकास करते जायें। मसीह सिर है, 16 जिस पर समूची देह निर्भर करती है। यह देह उससे जुड़ती हुई प्रत्येक सहायक नस से संयुक्त होती है और जब इसका हर अंग जो काम उसे करना चाहिए, उसे पूरा करता है तो प्रेम के साथ समूची देह का विकास होता है और यह देह स्वयं सुदृढ़ होती है।

समीक्षा

एक 'स्वस्थ' जीवन

एक स्वस्थ चर्च की क्या विशेषताएँ हैं? पौलुस हमें बताते हैं कि कैसे चर्च 'परमेश्वर में अच्छी तरह से' बढ़ सकता है (व.16, एम.एस.जी)।

  1. एकता

एकता सिर्फ पवित्र आत्मा का कार्य नहीं बल्कि वह उपकरण है जिससे पवित्र आत्मा काम करते हैं।

पवित्र आत्मा चर्च में एकता लाते हैं (व.16)। चर्च एक हैः'एक ही देह है, और एक ही आत्मा; जैसे तुम्हें जो बुलाए गए थे अपने बुलाए जाने से एक ही आशा है। एक ही प्रभु हैं, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा, और सबके एक ही परमेश्वर और पिता हैं, जो सब के ऊपर और सब के मध्य में और सब में हैं' (वव.4-6)।

एकता संबंध बनाती है। सभी मसीह 'एक परमेश्वर और सभी के पिता' के पुत्र और पुत्रियाँ हैं। इसलिए हम भाई और बहन हैं। हम सभी 'एक प्रभु' यीशु से प्रेम करते हैं। हम सब में पवित्र आत्मा रहते हैं। यह परमेश्वर के साथ हमारा संबंध है; पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा जो हमें एकता में लाते हैं।

और फिर भी, एकता को काम पर लाना कठिन है। वाद-विवाद करना आसान बात है। अलग हो जाना सरल है। हमारे साथ सहमत होने वाले लोगों के साथ अपना अलग समूह बनाना आसान बात है। एकता में महान प्रयास लगता है। पौलुस हमें चिताते हैं ' मेल के बन्धन में आत्मा की एकता रखने का यत्न करो' (व.3)। हमें हर वह प्रयास करना चाहिए जो एक चर्च की अदृश्य एकता को हर स्तर में दृश्य करे, स्थानीय कलीसिया में, चर्च के बीच में और सभी समुदायों के बीच में।

क्रूस पर चढ़ाये जाने से पहले, यीशु ने प्रार्थना की कि चर्च एक हो जाए ताकि जगत विश्वास करे (यूहन्ना 17:21-23)। यह एकता परमेश्वर की एकता में बनती है, ताकि यह कभी भी सच्चाई से बाहर न हो (वव.17,23)। हमें अवश्य ही प्रेम में सच्चाई को बोलना चाहिए (इफीसियो 4:15)। जैसा कि जॉन स्टॉट लिखते हैं, 'सच्चाई कठोर हो जाती है यदि यह प्रेम के द्वारा नरम न की जाएं; प्रेम कोमल हो जाता है यदि सच्चाई के द्वारा इसे मजबूत न किया जाएँ।' किंतु, चर्च की दृश्य एकता हमेशा हमारा लक्ष्य होना चाहिए।

पौलुस उन विशेषताओं का वर्णन करते हैं जो इस एकता में सहायता करती हैः' सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो' (व.2)।

  1. विविधता

एकता का अर्थ एकरूपता नहीं है। पवित्र आत्मा एकता और विविधता दोनों को लाते हैं। पौलुस आगे कहते हैं, ' हम में से हर एक को मसीह के दान के परिणाम के अनुसार अनुग्रह मिला है' (व.7)।

यीशु ' सारे आकाश से ऊपर चले गए' (व.10)। लेकिन वह पवित्र आत्मा के रूप में पृथ्वी पर लौटे भी हैं, जिसके द्वारा विभिन्न वरदान चर्च में हममें से हर एक को अब दिया जाता है (वव.10-12)।

चर्च में हर व्यक्ति एक सेवक है (वव.11-12)। आप एक सेवक हैं। सेवा के लिए शब्द का अर्थ है 'सेवकाई।' हम सभी को विभिन्न वरदान दिए गए हैं।

  1. वयस्कता

इन वरदानों का उद्देश्य है कि मसीह की देह बढ़ जाएँ जब तक हम सभी विश्वास और परमेश्वर के पुत्र के ज्ञान में एक न हो जाएँ, वयस्क बन जाएँ, जैसे ही हम मसीह की परिपूर्णता से पूर्ण हो जाते हैं।

उम्र में बढ़ना काफी नहीं है; यीशु के साथ अपने संबंध में बढ़ने के द्वारा आत्मिक वयस्कता में बढ़ जाईये।

  1. वृद्धि

स्वस्थ बच्चे बढ़ते हैं। स्वस्थ चर्च गहराई में और संख्या में बढ़ते हैं। चर्च की वृद्धि स्वभाविक होनी चाहिए। यह एक सुंदर चित्र है कि कैसे हममें से हर एक मसीह की देह की वृद्धि में भूमिका निभाते हैं:'प्रेम में सच्चाई से चलते हुए सब बातों में उससें जो सिर है, अर्थात् मसीह में बढ़ते जाएँ। जिससे सारी देह, हर एक जोड़ की सहायता से एक साथ मिलकर और एक साथ गठकर, उस प्रभाव के अनुसार जो हर एक अंग के ठीक – ठीक कार्य करने के द्वारा उस में होता है, अपने आप को बढ़ाती है कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए' (वव.15-16)।

प्रार्थना

परमेश्वर, मुझे अपनी आत्मा से भर दीजिए और मेरी सहायता कीजिए कि एक स्वस्थ, एकता वाले और बढ़ने वाले चर्च में यीशु के परिपक्व ज्ञान में बढूं।

जूना करार

यशायाह 60:1-62:12

परमेश्वर आ रहा है

60“हे यरूशलेम, हे मेरे प्रकाश, तू उठ जाग!
 तेरा प्रकाश (परमेश्वर) आ रहा है!
 यहोवा की महिमा तेरे ऊपर चमकेगी।
2 आज अन्धेरे ने सारा जग
 और उसके लोगों को ढक रखा है।
 किन्तु यहोवा का तेज प्रकट होगा और तेरे ऊपर चमकेगा।
 उसका तेज तेरे ऊपर दिखाई देगा।
3 उस समय सभी देश तेरे प्रकाश (परमेश्वर) के पास आयेंगे।
 राजा तेरे भव्य तेज के पास आयेंगे।
4 अपने चारों ओर देख! देख, तेरे चारों ओर लोग इकट्ठे हो रहे हैं और तेरी शरण में आ रहे हैं।
 ये सभी लोग तेरे पुत्र हैं जो दूर अति दूर से आ रहे हैं और उनके साथ तेरी पुत्रियाँ आ रही हैं।

5 “ऐसा भविष्य में होगा और ऐसे समय में जब तुम अपने लोगों को देखोगे
 तब तुम्हारे मुख खुशी से चमक उठेंगे।
 पहले तुम उत्तेजित होगे
 किन्तु फिर आनन्दित होवोगे।
 समुद्र पार देशों की सारी धन दौलत तेरे सामने धरी होगी।
 तेरे पास देशों की सम्पत्तियाँ आयेंगी।
6 मिद्यान और एपा देशों के ऊँटों के झुण्ड तेरी धरती को ढक लेंगे।
 शिबा के देश से ऊँटों की लम्बी पंक्तियाँ तेरे यहाँ आयेंगी।
 वे सोना और सुगन्ध लायेंगे।
 लोग यहोवा के प्रशंसा के गीत गायेंगे।
7 केदार की भेड़ें इकट्ठी की जायेंगी
 और तुझको दे दी जायेंगी।
 नबायोत के मेढ़े तेरे लिये लाये जायेंगे।
 वे मेरी वेदी पर स्वीकर करने के लायक बलियाँ बनेंगे
 और मैं अपने अद्भुत मन्दिर
 और अधिक सुन्दर बनाऊँगा।
8 इन लोगों को देखो!
 ये तेरे पास ऐसी जल्दी में आ रहे हैं जैसे मेघ नभ को जल्दी पार करते हैं।
 ये ऐसे दिख रहे हैं जैसे अपने घोंसलों की ओर उड़ते हुए कपोत हों।
9 सुदूर देश मेरी प्रतिक्षा में हैं।
 तर्शीश के बड़े—बड़े जलयान जाने को तत्पर है।
 ये जलयान तेरे वंशजों को दूर—दूर देशों से लाने को तत्पर हैं
 और इन जहाजों पर उनका स्वर्ण उनके साथ आयेगा और उनकी चाँदी भी ये जहाज लायेंगे।
 ऐसा इसलिये होगा कि तेरे परमेश्वर यहोवा का आदर हो।
 ऐसा इसलिये होगा कि इस्राएल का पवित्र अद्भुत काम करता है।
10 दूसरे देशों की सन्तानें तेरी दीवारें फिर उठायेंगी
 और उनके शासक तेरी सेवा करेंगे।

 “ब मैं तुझसे क्रोधित हुआ था, मैंने तुझको दु:ख दिया
 किन्तु अब मेरी इच्छा है कि तुझ पर कृपालु बनूँ।
 इसलिये तुझको मैं चैन दूँगा।
11 तेरे द्वार सदा ही खुले रहेंगे।
 वे दिन अथवा रात में कभी बन्द नहीं होंगे।
 देश और राजा तेरे पास धन लायेंगे।
12 कुछ जाति और कुछ राज्य तेरी सेवा नहीं करेंगे किन्तु वे जातियाँ
 और राज्य नष्ट हो जायेंगे।
13 लबानोन की सभी महावस्तुएं तुझको अर्पित की जायेंगी।
 लोग तेरे पास देवदार, तालीशपत्र और सरों के पेड़ लायेंगे।
 यह स्थान मेरे सिहांसन के सामने एक चौकी सा होगा
 और मैं इसको बहुत मान दूँगा।
14 वे ही लोग जो पहले तुझको दु:ख दिया करते थे, तेरे सामने झुकेंगे।
 वे ही लोग जो तुझसे घृणा करते थे, तेरे चरणों में झुक जायेंगे।
 वे ही लोग तुझको कहेंगे, ‘यहोवा का नगर,’ ‘सिय्योन नगर इस्राएल के पवित्र का है।’

15 “फिर तुझको अकेला नहीं छोड़ा जायेगा।
 फिर कभी तुझसे घृणा नहीं होगी।
 तू फिर से कभी भी उजड़ेगी नहीं।
 तू महान रहेगी, तू सदा और सर्वदा आनन्दित रहेगी।
16 तेरी जरूरत की वस्तुएँ तुझको जातियाँ प्रदान करेंगी।
 यह इतना ही सहज होगा जैसे दूध मुँह बच्चे को माँ का दूध मिलता है।
 वैसे ही तू शासकों की सम्पत्तियाँ पियेगी।
 तब तुझको पता चलेगा कि यह मैं यहोवा हूँ जो तेरी रक्षा करता है।
 तुझको पता चल जायेगा कि वह याकूब का महामहिम तुझको बचाता है।

17 फिलहाल तेरे पास ताँबा है
 परन्तु इसकी जगह मैं तुझको सोना दूँगा।
 अभी तो तेरे पास लोहा है,
 पर उसकी जगह तुझे चाँदी दूँगा।
 तेरी लकड़ी की जगह मैं तुझको ताँबा दूँगा।
 तेरे पत्थरों की जगह तुझे लोहा दूँगा और तुझे दण्ड देने की जगह मैं तुझे सुख चैन दूँगा।
 जो लोग अभी तुझको दु:ख देते हैं
 वे ही लोग तेरे लिये ऐसे काम करेंगे जो तुझे सुख देंगे।
18 तेरे देश में हिंसा और तेरी सीमाओं में तबाही और बरबादी कभी नहीं सुनाई पड़ेगी।
 तेरे देश में लोग फिर कभी तेरी वस्तुएँ नहीं चुरायेंगे।
 तू अपने परकोटों का नाम ‘उद्धार’ रखेगा
 और तू अपने द्वारों का नाम ‘स्तुति’ रखेगा।

19 “दिन के समय में तेरे लिये सूर्य का प्रकाश नहीं होगा
 और रात के समय में चाँद का प्रकाश तेरी रोशनी नहीं होगी।
 क्यों क्योंकि यहोवा ही सदैव तेरे लिये प्रकाश होगा।
 तेरा परमेश्वर तेरी महिमा बनेगा।
20 तेरा ‘सूरज’ फिर कभी भी नहीं छिपेगा।
 तेरा ‘चाँद’ कभी भी काला नहीं पड़ेगा।
 क्यों क्योंकि यहोवा का प्रकाश सदा सर्वदा तेरे लिये होगा
 और तेरा दु:ख का समय समाप्त हो जायेगा।

21 “तेरे सभी लोग उत्तम बनेंगे।
 उनको सदा के लिये धरती मिल जायेगी।
 मैंने उन लोगों को रचा है।
 वे अद्भुत पौधे मेरे अपने ही हाथों से लगाये हुए हैं।
22 छोटे से छोटा भी विशाल घराना बन जायेगा।
 छोटे से छोटा भी एक शक्तिशाली राष्ट्र बन जायेगा।
 जब उचित समय आयेगा,
 मैं यहोवा शीघ्र ही आ जाऊँगा
 और मैं ये सभी बातें घटित कर दूँगा।”

यहोवा का मुक्ति सन्देश

61यहोवा का सेवक कहता है, “मेरे स्वामी यहोवा ने मुझमें अपनी आत्मा स्थापित की है। यहोवा मेरे साथ है, क्योंकि कुछ विशेष काम करने के लिये उसने मुझे चुना है। यहोवा ने मुझे इन कामों को करने के लिए चुना है: दीन दु:खी लोगों के लिए सुसमाचार की घोषणा करना; दु:खी लोगों को सुख देना; जो लोग बंधन में पड़े हैं, उनके लिये मुक्ति की घोषणा करना; बन्दी लोगों को उनके छुटकारे की सूचना देना; 2 उस समय की घोषणा करना जब यहोवा अपनी करूणा प्रकट करेगा; उस समय की घोषणा करना जब हमारा परमेश्वर दुष्टों को दण्ड देगा; दु:खी लोगों को पुचकारना; 3 सिय्योन के दु:खी लोगों को आदर देना (अभी तो उनके पास बस राख हैं); सिय्योन के लोगों को प्रसन्नता का स्नेह प्रदान करना; (अभी तो उनके पास बस दु:ख हैं) सिय्योन के लोगों को परमेश्वर की स्तुति के गीत प्रदान करना (अभी तो उनके पास बस उनके दर्द हैं); सिय्योन के लोगों को उत्सव के वस्त्र देना (अभी तो उनके पास बस उनके दु:ख ही हैं।) उन लोगों को ‘उत्तमता के वृक्ष’ का नाम देना; उन लोगों को यहोवा के अद्भुत वृक्ष की संज्ञा देना।”

4 उस समय, उन पुराने नगरों को जिन्हें उजाड़ दिया गया था, फिर से बसाया जायेगा। उन नगरों को वैसे ही नया बना दिया जायेगा जैसे वे आरम्भ में थे। वे नगर जिन्हें वर्षों पहले हटा दिया गया था, नये जैसे बना दिये जायेंगे।

5 फिर तुम्हारे शत्रु तुम्हारे पास आयेंगे और तुम्हारी भेड़ें चराया करेंगे। तुम्हारे शत्रुओं की संतानें तुम्हारे खेतों और तुम्हारे बगीचों में काम किया करेंगी। 6 तुम ‘यहोवा के याजक’ हलाओगे। तुम ‘हमारे परमेश्वर के सहायक’ कहलाओगे। धरती के सभी देशों से आई हुई सम्पत्ति को तुम प्राप्त करोगे और तुम्हें इस बात का गर्व होगा कि वह सम्पत्ति तुम्हारी है।

7 बीते समय में लोग तुम्हें लज्जित करते थे और तुम्हारे बारे में बुरी बुरी बातें बनाया करते थे। तुम इतने लज्जित थे जितना और कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था। इसलिए तुम्हें अपनी धरती में दूसरे लोगों से दुगुना हिस्सा प्राप्त होगा। तुम ऐसी प्रसन्नता पाओगे जिसका कभी अंत नहीं होगा। 8 ऐसा क्यों घटित होगा क्योंकि मैं यहोवा हूँ और मुझे नेकी से प्रेम है। मुझे चोरी से और हर उस बात से, जो अनुचित है, घृणा है। इसलिये लोगों को, जो उन्हें मिलना चाहिये, वह भुगतान मैं दूँगा। अपने लोगों के साथ सदा सदा के लिए मैं यह वाचा कर रहा हूँ कि 9 सभी देशों का हर कोई व्यक्ति मेरे लोगों को जान जायेगा। मेरी जाति के वंशजों को हर कोई जान जायेगा। हर कोई व्यक्ति जो उन्हें देखेगा, जान जायेगा कि यहोवा उन्हें आशीर्वाद देता है।

यहोवा का सेवक उद्धार और उत्तमता लाता है

10 यहोवा मुझको अति प्रसन्न करता है।
मेरा सम्पूर्ण व्यक्तित्व परमेश्वर में स्थिर है और प्रसन्नता में मगन है।
यहोवा ने उद्धार के वस्त्र से मुझको ढक लिया।
वे वस्त्र ऐसे ही भव्य हैं जैसे भव्य वस्त्र कोई पुरूष अपने विवाह के अवसर पर पहनता है।
यहोवा ने मुझे नेकी के चोगे से ढक लिया है।
यह चोगा वैसा ही सुन्दर है जैसा सुन्दर किसी नारी का विवाह वस्त्र होता है।
11 धरती पौधे उगाती है।
लोग बगीचों में बीज डालते हैं और वह बगीचा उन बीजों को उगाता है।
वैसे ही यहोवा नेकी को उगायेगा।
इस तरह मेरा स्वामी सभी जातियों के बीच स्तुति को बढ़ायेगा।

नया यरूशलेम: नेकी का एक नगर

62मुझको सिय्योन से प्रेम है
अत: मैं उसके लिये बोलता रहूँगा।
मुझको यरूशलेम से प्रेम है
अत: मैं चुप न होऊँगा।
मैं उस समय तक बोलता रहूँगा जब तक नेकी चमकती हुई ज्योति सी नहीं चमकेगी।
मैं उस समय तक बोलता रहूँगा जब तक उद्धार आग की लपट सा भव्य बन कर नहीं धधकेगा।
2 फिर सभी देश तेरी नेकी को देखेंगे।
तेरे सम्मान को सब राजा देखेंगे।
तभी तू एक नया नाम पायेगा।
स्वयं यहोवा तुम लोगों के लिये वह नया नाम पायेगा।
3 यहोवा को तुम लोगों पर बहुत गर्व होगा।
तुम यहोवा के हाथों में सुन्दर मुकुट के समान होगे।
4 फिर तुम कभी ऐसे जन नहीं कहलाओगे, ‘परमेश्वर के त्यागे हुए लोग।’
तुम्हारी धरती कभी ऐसी धरती नहीं कहलायेगी जिसे ‘परमेश्वर ने उजाड़ा।’
तुम लोग ‘परमेश्वर के प्रिय जन’ कहलाओगे।
तुम्हारी धरती ‘परमेश्वर की दुल्हिन’ कहलायेगी।
क्यों क्योंकि यहोवा तुमसे प्रेम करता है
और तुम्हारी धरती उसकी हो जायेगी।
5 जैसे एक युवक कुँवारी को ब्याहता है।
वैसे ही तेरे पुत्र तुझे ब्याह लेंगे।
और जैसे दुल्हा अपनी दल्हिन के संग आनन्दित होता है
वैसे ही तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे संग प्रसन्न होगा।

6 यरूशलेम की चारदीवारी मैंने रखवाले (नबी) बैठा दिये हैं कि उसका ध्यान रखें।
ये रखवाले मूक नहीं रहेंगे।
यह रखवाले यहोवा को तुम्हारी जरूरतों की याद दिलाते हैं।

हे रखवालों, तुम्हें चुप नहीं होना चाहिये।
तुमको यहोवा से प्रार्थना करना बन्द नहीं करना चाहिये।
तुमको सदा उसकी प्रार्थना करते ही रहना चाहिये।
7 जब तक वह फिर से यरूशलेम का निर्माण न कर दे, तब तक तुम उसकी प्रार्थना करते रहो।
यरूशलेम एक ऐसा नगर है जिसका धरती के सभी लोग यश गायेंगे।

8 यहोवा ने स्वयं अपनी शक्ति को प्रमाण बनाते हुए वाचा की
और यहोवा अपनी शक्ति के प्रयोग से ही उस वाचा को पालेगा।
यहोवा ने कहा था, “मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि मैं तुम्हारे भोजन को कभी तुम्हारे शत्रु को न दूँगा।
मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि तुम्हारी बनायी दाखमधु तुम्हारा शत्रु कभी नहीं ले पायेगा।
9 जो व्यक्ति खाना जुटाता है, वही उसे खायेगा और वह व्यक्ति यहोवा के गुण गायेगा।
वह व्यक्ति जो अंगूर बीनता है, वही उन अंगूरों की बनी दाखमधु पियेगा।
मेरी पवित्र धरती पर ऐसी बातें हुआ करेंगी।”

10 द्वार से होते हुए आओ!
लोगों के लिये राहें साफ करो!
मार्ग को तैयार करो!
राह पर के पत्थर हटा दो!
लोगों के लिये संकेत के रूप में झण्डा उठा दो!

11 यहोवा सभी दूर देशों के लिये बोल रहा है:
“सिय्योन के लोगों से कह दो:
देखो, तुम्हारा उद्धारकर्ता आ रहा है।
वह तुम्हारा प्रतिफल ला रहा है।
वह अपने साथ तुम्हारे लिये प्रतिफल ला रहा है।”
12 उसके लोग कहलायेंगे:
“पवित्र जन,” “यहोवा के उद्धार पाये लोग।”
यरूशलेम कहलायेगा: “वह नगर जिसको यहोवा चाहता है,”
“वह नगर जिसके साथ परमेश्वर है।”

समीक्षा

एक अभिषिक्त जीवन

यशायाह 61 से पढ़ने के द्वारा यू ने अपनी सेवकाई और राज्य के उद्देश्य का विवरण दिया। यह एक साहसी और क्रांतिकारी विवरण है – और इसे पूरा करने में आपको एक भूमिका निभानी है।

यीशु नासरत आराधनालय में गए और भविष्यवक्ता यशायाह की पुस्तक उन्हें पढ़ने के लिए दी गई। इसे खोलते हुए, उन्होंने वह स्थान निकाला जहाँ पर आज के लेखांश में यह लिखा है, ' 'प्रभु का आत्मा मुझ पर है, इसलिये कि उसने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिये भेजा है कि बन्दियों को छुटकारे का और अंधों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूँ और कुचले हुओं को छुड़ाऊँ, और प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष का प्रचार करूँ' (यशायाह 61:1-2; लूका 4:18-19)।

उन्होंने वहाँ उपस्थिति लोगों से कहा, 'आज ही यह लेख तुम्हारे सामने पूरा हुआ है' (व.21)। यीशु के उद्देश्य के विवरण में क्या था?

  1. जीवन को बदलना

जब आप यीशु से मिलते हैं, तब आपके जीवन में एक महान बदलाव आता है। वह आपके पाप को ले लेते है और आपको अपनी सत्यनिष्ठा देते हैं। वह कैदियों को मुक्त करते, अंधो को दृष्टि प्रदान करते और कुचले हुओं को छुड़ाते हैं (यशायाह 61:1-3)। वह ' सिर पर की राख दूर करके सुन्दर पगड़ी बाँध दूँ, कि उनका विलाप दूर करके हर्ष का तेल लगाउँ और उनकी उदासी हटाकर यश का ओढ़ना ओढ़ाउँ; जिस से वे सत्यनिष्ठ के बांजपेड़ और यहोवा के लगाए हुए कहलाएँ और जिससे उनकी महिमा प्रकट हो' (व.3)।

  1. संबंधो को बदलना

यीशु विवाह का उदाहरण देते हैं:' जैसे दूल्हा अपनी दुल्हन के कारण हर्षित होता है, वैसे ही तेरा परमेश्वर तेरे कारण हर्षित होगा' (62:5ब)। विवाह लोगों को उस नजदीकी, घनिष्ठ और प्रेमी संबंध में ले जाने के लिए, जो परमेश्वर हमारे साथ रखना चाहते हैं। एक मजबूत समाज मजबूत परिवार से बनता है। मजबूत परिवार, मजबूत विवाह से बनता है।

  1. संस्कृति को बदलना

शहर संस्कृति का स्त्रोत बनाते हैं। यशायाह घोषणा करते हैं, ' वे बहुत काल के उजड़े हुए स्थानों को फिर बसाएँगे, पूर्वकाल से पड़े हुए नगरों को जो पीढ़ी पीढ़ी से उजड़े हुए हों वे फिर नये सिरे से बसाएँगे' (61:4)। यीशु के उद्देश्य के विवरण में प्रभाव के पर्वतों के बदलाव शामिल हैः बाजार, सरकार, शिक्षा, मीडिया, कला और मनोरंजन।

  1. समाज को बदलना

समाज को बदलने में गरीबी के मामले से निपटना पड़ेगा। यीशु गरीबों को सुसमाचार सुनाने के लिए आए (व.1ब)। इसमें न्याय का मामला भी शामिल होगा। विश्व का बहुत सा कष्ट अन्याय के कारण है। ' मैं यहोवा न्याय से प्रीति रखता हूँ, मैं अन्याय और डकैती से घृणा करता हूँ' (व.8अ)।

  1. लीडरशिप को बदलना

किसी भी समाज में लीडरशिप एक मुख्य चीज हैः'तुम यहोवा के याजक कहलाओगे, वे तुम को हमारे परमेश्वर के सेवक कहेंगे' (व.6, एम.एस.जी)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आज मुझे अपनी पवित्र आत्मा से अभिषिक्त कीजिए ताकि गरीबों को सुसमाचार सुनाऊँ, टूटे हृदय को फिर से जोड़ू, शोक करने वालों को शांति दूं और लोगों के जीवन को राख से निकलकर सुंदर बनते हुए, शोक से आनंद में और उदासी से स्तुति में आते हुए देखूं।

पिप्पा भी कहते है

इफीसियो 4:2

'पूरी तरह से दीन बनो...'

अब यह एक चुनौती है।

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संदर्भ

जे. ऍडविन ओर, द पेमलमिंग टंग (शिकागोःमूडि, 1973) पी.5, निकी गंबल, हार्ट ऑफ रिवाईवल, (अल्फा इंटरनैशनल,1997) पी.151

जॉन स्कॉट, गुड न्युज सोसायटीः इफिसियों का संदेश (इंटर्वर्सिटी प्रेस, 1980) पी 156-7

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