रहस्य
परिचय
सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकार इस तरह से लिखने में सक्षम हैं कि जैसे ही आप एक कहानी को पढ़ते हैं, अंत रहस्यमय है, लेकिन जब आप अंत से पीछे की ओर देखते हैं, वहाँ पर संकेत थे।
आज के नये नियम के लेखांश में पौलुस प्रेरित हमें बताते हैं कि परमेश्वर ने मसीह के रहस्य को प्रकट किया है। वह लिखते हैं, ' यह कि वह भेद मुझ पर प्रकाशन के द्वारा प्रकट हुआ...जिससे तुम पढ़कर जान सकते हो कि मैं मसीह का वह भेद कहाँ तक समझता हूँ' (इफीसियो 3:3-4)।
पुराना नियम पढ़ना, एक अंधेरे कमरे में जाने जैसा है जो फर्नीचर से भरा हुआ है। सोफा, कुर्सी और चित्रों को महसूस करने के द्वारा हमें पता चलता है कि अंदर क्या है। लेकिन, जैसे ही हम नया नियम पढ़ते हैं, यह ऐसा है जैसे बत्ती जला दी गई हो और हम स्पष्ट रूप से कमरे को देखते हैं। यीशु पुराने नियम को नये प्रकाश में रखते हैं। सेंट अगस्टाईन के कथनों को दूसरे शब्दों में कहे तो, ' पुराने में नया छिपा हुआ है, नये में पुराना प्रकट है।'
यीशु विश्व के लिए परमेश्वर की महान योजना की पराकाष्ठा हैं। इसलिए पौलुस लिखते हैं, ' मुझ पर जो सब पवित्र लोगों में से छोटे से भी छोटा हूँ, यह अनुग्रह हुआ कि मैं अन्यजातियों को मसीह के अगम्य धन का सुसमाचार सुनाउँ, और सब पर यह बात प्रकाशित करूँ कि उस भेद का प्रबन्ध क्या है, जो सब के सृजनहार परमेश्वर में आदि से गुप्त था' (वव.8-9, एम.एस.जी)। जिस शब्द का पौलुस इस्तेमाल करते हैं ('फोटिसल') का अर्थ है 'प्रकाश जला देना ताकि लोग देख सकें।'
रहस्य जो परमेश्वर यीशु में प्रकट करते हैं, वह है मेलमिलाप ना केवल परमेश्वर के साथ लेकिन एक दूसरे के साथ भी। पौलुस हमें बताते हैं, ' यह कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजाती के लोग मीरास में साझी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं' (व.6)। यहूदी और अन्यजाति दोनों अब बराबर रूप से परमेश्वर के पास आ सकते हैं।
यदि हम मसीह में हैं, तो हम सभी के परमेश्वर और एक दूसरे के साथ मेलमिलाप हो चुका है –जाति या सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतिष्ठा के बावजूद। यह अवश्य ही चर्च पर लागू होना चाहिएः कॅथलिक, ऑर्थडॉक्स, प्रोटेस्टंट, पेंटाकोस्टल, और इत्यादि। पुराने नियम में, हमें केवल इसका संकेत मिलता है -यह कुछ हद तक छिपा हुआ था। किंतु, अब मसीह में रहस्य प्रकट कर दिया गया है।
भजन संहिता 111:1-10
111यहोवा के गुण गाओ!
यहोवा का अपने सम्पूर्ण मन से ऐसी उस सभा में धन्यवाद करता हूँ
जहाँ सज्जन मिला करते हैं।
2 यहोवा ऐसे कर्म करता है, जो आश्चर्यपूर्ण होते हैं।
लोग हर उत्तम वस्तु चाहते हैं, वही जो परमेश्वर से आती है।
3 परमेश्वर ऐसे कर्म करता है जो सचमुच महिमावान और आश्चर्यपूर्ण होते हैं।
उसका खरापन सदा—सदा बना रहता है।
4 परमेश्वर अद्भुत कर्म करता है ताकि हम याद रखें
कि यहोवा करूणापूर्ण और दया से भरा है।
5 परमेश्वर निज भक्तों को भोजन देता है।
परमेश्वर अपनी वाचा को याद रखता है।
6 परमेश्वर के महान कार्य उसके प्रजा को यह दिखाया
कि वह उनकी भूमि उन्हें दे रहा है।
7 परमेश्वर जो कुछ करता है वह उत्तम और पक्षपात रहित है।
उसके सभी आदेश पूरे विश्वास योग्य हैं।
8 परमेश्वर के आदेश सदा ही बने रहेंगे।
परमेश्वर के उन आदेशों को देने के प्रयोजन सच्चे थे और वे पवित्र थे।
9 परमेश्वर निज भक्तों को बचाता है।
परमेश्वर ने अपनी वाचा को सदा अटल रहने को रचा है, परमेश्वर का नाम आश्चर्यपूर्ण है और वह पवित्र है।
10 विवेक भय और यहोवा के आदर से उपजता है।
वे लोग बुद्धिमान होतेहैं जो यहोवा का आदर करते हैं।
यहोवा की स्तुति सदा गायी जायेगी।
समीक्षा
परमेश्वर की बुद्धि प्रकट की गई है
ज्ञान अच्छा हैः'यहोवा के काम बड़े हैं, जितने उनसे प्रसन्न रहते हैं, वे उन पर ध्यान लगाते हैं' (व.2, एम.एस.जी)। बुद्धि बेहतर है। बुद्धि है ज्ञान का सही इस्तेमाल।
भजनसंहिता के लेखक लिखते हैं कि, 'परमेश्वर का भय बुद्धि का आरंभ है' (व.10अ)। सच्ची बुद्धि की शुरुवात होती है परमेश्वर का सम्मान, आदर और आराधना करने के द्वाराः' उनका नाम पवित्र और भययोग्य है' (व.9, एम.एस.जी)।
पुराने नियम के दूसरे लेखकों की तरह, भजनसंहिता के लेखक ने इस बुद्धि की झलक प्राप्त की। उन्होंने उन चीजों की महानता देखी जो परमेश्वर ने किये थे (व.2)। उन्होंने देखा कि परमेश्वर अनुग्रही और करुणामयी हैं (व.4ब)। उन्होंने समझा कि परमेश्वर उनके लोगों से प्रेम करते थे और उन्हें छुड़ाना चाहते थे (व.9)। लेकिन 'दूसरे देशों' के प्रति उनका बर्ताव (व.6) मसीह के प्रकाशन और सुसमाचार के द्वारा अब तक विस्तारित नहीं हुआ है ('हमारे कोई पूर्वज भी इसे समझ नहीं पाये', इफीसियो 3:2, एम.एस.जी)।
मसीह में, इन देशों को परमेश्वर के प्रेम में समाविष्ट किया गया है और वे उनके चर्च के भाग बन गए हैं। जैसा कि हम आज के नये नियम के लेखांश में देखते हैं, इसी तरह से परमेश्वर की बहुमुखी बुद्धि प्रकट की गई है।
प्रार्थना
परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि चर्च में परमेश्वर की बहुमुखी बुद्धि को प्रकट करें, जैसे ही लोग आपके साथ और एक दूसरे के साथ मेलमिलाप करते हैं।
इफिसियों 3:1-21
ग़ैर यहूदियों में पौलुस का प्रचार-कार्य
3इसीलिए मैं, पौलुस तुम ग़ैर यहूदियों के लिये मसीह यीशु के हेतु बन्दी बना हूँ। 2 तुम्हारे कल्याण के लिए परमेश्वर ने अनुग्रह के साथ जो काम मुझे सौंपा है, उसके बारे में तुमने अवश्य ही सुना होगा। 3 कि वह रहस्यमयी योजना दिव्यदर्शन द्वारा मुझे जनाई गयी थी, जैसा कि मैं तुम्हें संक्षेप में लिख ही चुका हूँ। 4 और यदि तुम उसे पढ़ोगे तो मसीह विषयक रहस्यपूर्ण सत्य में मेरी अन्तर्दष्टि की समझ तुम्हें हो जायेगी। 5 यह रहस्य पिछली पीढ़ी के लोगों को वैसे नहीं जनाया गया था जैसे अब उसके अपने पवित्र प्रेरितों और नबियों को आत्मा के द्वारा जनाया जा चुका है। 6 यह रहस्य है कि यहूदियों के साथ ग़ैर यहूदी भी सह उत्तराधिकारी हैं, एक ही देह के अंग हैं और मसीह यीशु में जो वचन हमें दिया गया है, उसमें सहभागी हैं।
7 सुसमाचार के कारण मैं उस सुसमाचार का प्रचार करने वाला एक सेवक बन गया, जो उसकी शक्ति के अनुसार परमेश्वर के अनुग्रह के वरदान स्वरूप मुझे दिया गया था। 8 यद्यपि सभी संत जनों में मैं छोटे से भी छोटा हूँ किन्तु मसीह के अनन्त धन रूपी सुसमाचार का ग़ैर यहूदियों में प्रचार करने का यह अनुग्रह मुझे दिया गया 9 कि मैं सभी लोगों के लिए उस रहस्यपूर्ण योजना को स्पष्ट करूँ जो सब कुछ के सिरजनहार परमेश्वर में सृष्टि के प्रारम्भ से ही छिपी हुई थी। 10 ताकि वह स्वर्गिक क्षेत्र की शक्तियों और प्रशासकों को अब उस परमेश्वर के बहुविध ज्ञान को कलीसिया के द्वारा प्रकट कर सके। 11 यह उस सनातन प्रयोजन के अनुसार सम्पन्न हुआ जो उसने हमारे प्रभु मसीह यीशु में पूरा किया था। 12 मसीह में विश्वास के कारण हम परमेश्वर तक भरोसे और निर्भीकता के साथ पहुँच रखते है। 13 इसलिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हारे लिए मैं जो यातनाएँ भोग रहा हूँ, उन से आशा मत छोड़ बैठना क्योंकि इस यातना में ही तो तुम्हारी महिमा है।
मसीह का प्रेम
14 इसलिए मैं परमपिता के आगे झुकता हूँ। 15 उसी से स्वर्ग में या धरती पर के सभी वंश अपने अपने नाम ग्रहण करते हैं। 16 मैं प्रार्थना करता हूँ कि वह महिमा के अपने धन के अनुसार अपनी आत्मा के द्वारा तुम्हारे भीतरी व्यक्तित्व को शक्तिपूर्वक सुदृढ़ करे। 17 और विश्वास के द्वारा तुम्हारे हृदयों में मसीह का निवास हो। तुम्हारी जड़ें और नींव प्रेम पर टिकें। 18 जिससे तुम्हें अन्य सभी संत जनों के साथ यह समझने की शक्ति मिल जाये कि मसीह का प्रेम कितना व्यापक, विस्तृत, विशाल और गम्भीर है। 19 और तुम मसीह के उस प्रेम को जान लो जो सभी प्रकार के ज्ञानों से परे है ताकि तुम परमेश्वर की सभी परिपूर्णताओं से भर जाओ।
20 अब उस परमेश्वर के लिये जो अपनी उस शक्ति से जो हममें काम कर रही है, जितना हम माँग सकते हैं या जहाँ तक हम सोच सकते हैं, उससे भी कहीं अधिक कर सकता है, 21 उसकी कलीसिया में और मसीह यीशु में अनन्त पीढ़ियों तक सदा सदा के लिये महिमा होती रहे। आमीन।
समीक्षा
परमेश्वर की सामर्थ प्रकट की गई है
क्या आप परमेश्वर के लिए उपयोगी बनना चाहते हैं? क्या आप एक अंतर पैदा करना चाहते हैं – अपने परिवार में और अपने मित्रों के साथ, अपने विद्यालय में, यूनिवर्सिटी या काम पर, देश में और विश्व में? यह लेखांश ना केवल मसीह के रहस्य को प्रकट करता है, लेकिन यह आपको यह भी दिखाता है कि कैसे आपका जीवन एक प्रभाव बना सकता है।
पौलुस बताते हैं, ' अब जो ऐसा सामर्थी है कि हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्थ के अनुसार जो हम में कार्य करता है' (व.20, एम.एस.जी)। यह कैसे संभव है? पौलुस का उत्तर है कि यह संभव है 'उनकी सामर्थ के अनुसार जो हमारे अंदर काम करती है' (व.20)। यह सामर्थ कहाँ से आती है?
- सुसमाचार के संदेश में सामर्थ
सामर्थ आपके पद, शीर्षक या जीवन की परिस्थिति से नहीं आती है। पौलुस एक कैदी थे (व.1)। यह मानवीय महानता से नहीं आती है। पौलुस लिखते हैं, 'मै सब पवित्र लोगों में से छोटे से भी छोटा हूँ' (व.8)। सामर्थ लोगों के ऊपर प्रभुत्व करने से नहीं आती है। पौलुस लिखते हैं, 'मैं एक दास बना' (व.7)। इसके बजाय, सामर्थ सुसमाचार के संदेश से आती है जिसका वर्णन पौलुस वचन 2-13 में करते हैं (रोमियों 1:16 देखें)।
- एकता में सामर्थ
हम सह-उत्तराधिकारी, पिता परमेश्वर के पुत्र और पुत्रियाँ हैं। हम भाई और बहन हैं, यीशु मसीह की प्रतिज्ञा में सहभागी। हम मीरास में साझी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं (इफीसियो 3:6)। हम यीशु मसीह में एकत्व में ला दिए गए हैं, पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा के सहभागी।
यह एकता असाधारण रूप से शक्तिशाली है। ' ताकि अब कलीसिया के द्वारा, परमेश्वर का विभिन्न प्रकार का ज्ञान उन प्रधानों और अधिकारियों पर जो स्वर्गीय स्थानों में हैं, प्रकट किया जाए। उस सनातन मनसा के अनुसार जो उन्होंने हमारे प्रभु मसीह यीशु में की थी' (वव.10-11)।
यहाँ पर 'बहुमुखी' का इस्तेमाल का अर्थ परमेश्वर की बहुमुखी बुद्धि है। यह बहु-जातीय और बहु-सांस्कृतिक है। परमेश्वर ने अपने चर्च में सभी को एकसाथ ला दिया है। इसलिए, ना केवल फूट (चर्च और समुदाय में) सुसमाचार के विस्तार में हानिकारक है बल्कि एकता भी शक्तिशाली है।
लड़ाई 'स्वर्गीय स्थानों में प्रधानों और अधिकारियों के' विरूद्ध है (व.10)। यें ताकतें आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक संरचनाओं और मानवीय समाज की संस्थाओं के द्वारा काम करते हैं, और संपूर्ण ब्रह्मांड के परे। हर बार जब एक व्यक्ति परमेश्वर और मसीह में उनके भाईयों और बहनो के साथ मेलमिलाप करता है, तब शैतान चिल्लाते और स्वर्गदूत आनंद मनाते हैं। परमेश्वर की बहुमुखी बुद्धि प्रकट की गई है।
- पवित्र आत्मा की सामर्थ
पौलुस ने प्रार्थना की कि ' वह अपनी महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दें कि तुम उनकी आत्मा से अपने भीतरी मनुष्यत्व में सामर्थ पाकर बलवन्त होते जाओ; और विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे हृदय में बसे' (वव.16-17) और ' तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ' (व.19)।
- परमेश्वर के प्रेम की सामर्थ
अ .क्या आप अपने लिए परमेश्वर के प्रेम की पूर्ण सीमा को समझते हैं? पौलुस ने प्रार्थना की कि ' तुम प्रेम में जड़ पकड़कर और नेव डाल कर, सब पवित्र लोगों के साथ भली – भाँति समझने की शक्ति पाओ कि उनकी चौड़ाई, और लम्बाई, और उँचाई, और गहराई कितनी है, और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से परे है कि तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ' (वव.17-19, एम.एस.जी)।
प्रार्थना
परमेश्वर, आज मैं माँगता हूँ कि मैं परमेश्वर की परिपूर्णता से पूर्ण हो जाऊँ।
यशायाह 57:14-59:21
यहोवा अपने भक्तों की रक्षा करेगा
14 रास्ता साफ कर! रास्ता साफ करो!
मेरे लोगों के लिये राह को साफ करो!
15 वह जो ऊँचा है और जिसको ऊपर उठाया गया है,
वह जो अमर है,
वह जिसका नाम पवित्र है,
वह यह कहता है, “एक ऊँचे और पवित्र स्थान पर रहा करता हूँ,
किन्तु मैं उन लोगों के बीच भी रहता हूँ जो दु:खी और विनम्र हैं।
ऐसे उन लोगों को मैं नया जीवन दूँगा जो मन से विनम्र हैं।
ऐसे उन लोगों को मैं नया जीवन दूँगा जो मन से विनम्र हैं।
ऐसे उन लोगों को मैं नया जीवन दूँगा जो हृदय से दु:खी हैं।
16 मैं सदा—सदा ही मुकद्दमा लड़ता रहूँगा।
सदा—सदा ही मैं तो क्रोधित नहीं रहूँगा।
यदि मैं कुपित ही रहूँ तो मनुष्य की आत्मा यानी वह जीवन जिसे मैंने उनको दिया है,
मेरे सामने ही मर जायेगा।
17 उन्होंने लालच से हिंसा भरे स्वार्थ साधे थे और उसने मुझको क्रोधित कर दिया था।
मैंने इस्राएल को दण्ड दिया।
मैंने उसे निकाल दिया क्योंकि मैं उस पर क्रोधित था और इस्राएल ने मुझको त्याग दिया।
जहाँ कहीं इस्राएल चाहता था, चला गया।
18 मैंने इस्राएल की राहें देख ली थी।
किन्तु मैं उसे क्षमा (चंगा) करूँगा।
मैं उसे चैन दूँगा और ऐसे वचन बोलूँगा जिस से उसको आराम मिले और मैं उसको राह दिखाऊँगा।
फिर उसे और उसके लोगों को दु:ख नहीं छू पायेगा।
19 उन लोगों को मैं एक नया शब्द शान्ति सिखाऊँगा।
मैं उन सभी लोगों को शान्ति दूँगा जो मेरे पास हैं और उन लोगों को जो मुझ से दूर हैं।
मैं उन सभी लोगों को चंगा (क्षमा) करूँगा!”
ने ये सभी बातें बतायी थी।
20 किन्तु दुष्ट लोग क्रोधित सागर के जैसे होते हैं।
वे चुप या शांत नहीं रह सकते।
वे क्रोधित रहते हैं और समुद्र की तरह कीचड़ उछालते रहते हैं।
मेरे परमेश्वर का कहना है:
21 “दुष्ट लोगों के लिए कहीं कोई शांति नहीं है।”
लोगों से कहो कि वे परमेश्वर का अनुसरण करें
58जोर से पुकारो, जितना तुम पुकार सको! अपने को मत रोको!
जोर से पुकारो जैसे नरसिंगा गरजता है!
लोगों को उनके बुरे कामों के बारे में जो उन्होंने किये हैं, बताओ!
याकूब के घराने को उनके पापों के बारे में बताओ!
2 वे सभी प्रतिदिन मेरी उपासना को आते हैं
और वे मेरी राहों को समझना चाहते हैं
वे ठीक वैसा ही आचरण करते हैं जैसे वे लोग किसी ऐसी जाति के हों जो वही करती है जो उचित होता है।
जो अपने परमेश्वर का आदेश मानते हैं।
वे मुझसे चाहते हैं कि उनका न्याय निष्पक्ष हो।
वे चाहते हैं कि परमेश्वर उनके पास रहे।
3 अब वे लोग कहते हैं, “तेरे प्रति आदर दिखाने के लिये हम भोजन करना बन्द कर देते हैं। तू हमारी ओर देखता क्यों नहीं तेरे प्रति आदर व्यक्त करने के लिये हम अपनी देह को क्षति पहुँचाते हैं। तू हमारी ओर ध्यान क्यों नहीं देता”
किन्तु यहोवा कहता है, “उपवास के उन दिनों में उपवास रखते हुए तुम्हें आनन्द आता है किन्तु उन्हीं दिनों तुम अपने दासों का खून चूसते हो। 4 जब तुम उपवास करते हो तो भूख की वजह से लड़ते—झगड़ते हो और अपने दुष्ट मुक्कों से आपस में मारा—मारी करते हो। यदि तुम चाहते हो कि स्वर्ग में तुम्हारी आवाज सुनी जाये तो तुम्हें उपवास ऐसे नहीं रखना चाहिये जैसे तुम आज कल रखते हो। 5 तुम क्या यह सोचते हो कि भोजन नहीं करने के उन विशेष दिनों में बस मैं लोगों को अपने शरीरों को दु:ख देते देखना चाहता हूँ क्या तुम ऐसा सोचते हो कि मैं लोगों को दु:खी देखना चाहता हूँ क्या तुम यह सोचते हो कि मैं लोगों को मुरझाये हुए पौधों के समान सिर लटकाये और शोक वस्त्र पहनते देखना चाहता हूँ क्या तुम यह सोचते हो कि मैं लोगों को अपना दु:ख प्रकट करने के लिये राख में बैठे देखना चाहता हूँ यही तो वह सब कुछ है जो तुम खाना न खाने के दिनों में करते हो। क्या तुम ऐसा सोचते हो कि यहोवा तुमसे बस यही चाहता है
6 “मैं तुम्हें बताऊँगा कि मुझे कैसा विशेष दिन चाहिये—एक ऐसा दिन जब लोगों को आज़ाद किया जाये। मुझे एक ऐसा दिन चाहिये जब तुम लोगों के बोझ को उन से दूर कर दो। मैं एक ऐसा दिन चाहता हूँ जब तुम दु:खी लोगों को आज़ाद कर दो। मुझे एक ऐसा दिन चाहिये जब तुम उनके कंधों से भार उतार दो। 7 मैं चाहता हूँ कि तुम भूखे लोगों के साथ अपने खाने की वस्तुएँ बाँटो। मैं चाहता हूँ कि तुम ऐसे गरीब लोगों को ढूँढों जिनके पास घर नहीं है और मेरी इच्छा है कि तुम उन्हें अपने घरों में ले आओ। तुम जब किसी ऐसे व्यक्ति को देखो, जिसके पास कपड़े न हों तो उसे अपने कपड़े दे डालो। उन लोगों की सहायता से मुँह मत मोड़ो, जो तुम्हारे अपने हों।”
8 यदि तुम इन बातों को करोगे तो तुम्हारा प्रकाश प्रभात के प्रकाश के समान चमकने लगेगा। तुम्हारे जख्म भर जायेंगे। तुम्हारी “नेकी” (परमेश्वर) तुम्हारे आगे—आगे चलने लगोगी और यहोवा की महिमा तुम्हारे पीछे—पीछे चली आयेगी। 9 तुम तब यहोवा को जब पुकारोगे, तो यहोवा तुम्हें उसका उत्तर देगा। जब तुम यहोवा को पुकारोगे तो वह कहेगा, “मैं यहाँ हूँ।”
तुम्हें लोगों का दमन करना और लोगों को दु:ख देना छोड़ देना चाहिये। तुम्हें लोगों से किसी बातों के लिये कड़वे शब्द बोलना और उन पर लांछन लगाना छोड़ देना चाहिये। 10 तुम्हें भूखों की भूख के लिये दु:ख का अनुभव करते हुए उन्हें भोजन देना चाहिये। दु:खी लोगों की सहायता करते हुए तुम्हें उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिये। जब तुम ऐसा करोगे तो अन्धेरे में तुम्हारी रोशनी चमक उठेगी और तुम्हें कोई दु:ख नहीं रह जायेगा। तुम ऐसे चमक उठोगे जैसे दोपहर के समय धूप चमकती है।
11 यहोवा सदा तुम्हारी अगुवाई करेगा। मरूस्थल में भी वह तेरे मन की प्यास बुझायेगा। यहोवा तेरी हड्डियों को मज़बूत बनायेगा। तू एक ऐसे बाग़ के समान होगा जिसमें पानी की बहुतायत है। तू एक ऐसे झरने के समान होगा जिसमें सदा पानी रहता है।
12 बहुत वर्षों पहले तुम्हारे नगर उजाड़ दिये गये थे। इन नगरों को तुम नये सिरे से फिर बसाओगे। इन नगरों का निर्माण तुम इनकी पुरानी नीवों पर करोगे। तुम टूटे परकोटे को बनाने वाले कहलाओगे और तुम मकानों और रास्तों को बहाल करने वाले कहलाओगे।
13 ऐसा उस समय होगा जब तू सब्त के बारे में परमेश्वर के नियमों के विरूद्ध पाप करना छोड़ देगा और ऐसा उस समय होगा जब तू उस विशेष दिन, स्वयं अपने आप को प्रसन्न करने के कामों को करना रोक देगा। सब्त के दिन को तुझे एक खुशी का दिन कहना चाहिये। यहोवा के इस विशेष दिन का तुझे आदर करना चाहिये। जिन बातों को तू हर दिन कहता और करता है, उनको न करते हुए तुझे उस विशेष दिन का आदर करना चाहिये।
14 तब तू यहोवा में प्रसन्नता प्राप्त करेगा, और मैं यहोवा धरती के ऊँचे—ऊँचे स्थानों पर “मैं तुझको ले जाऊँगा। मैं तेरा पेट भरूँगा। मैं तुझको ऐसी उन वस्तुओं को दूँगा जो तेरे पिता याकूब के पास हुआ करती थीं।” ये बातें यहोवा ने बतायी थीं!
दुष्ट लोगों को अपना जीवन बदलना चाहिये
59देखो, तुम्हारी रक्षा के लिये यहोवा की शक्ति पर्याप्त है। जब तुम सहायता के लिये उसे पुकारते हो तो वह तुम्हारी सुन सकता है। 2 किन्तु तुम्हारे पाप तुम्हें तुम्हारे परमेश्वर से अलग करते हैं और इसीलिए वह तुम्हारी तरफ से कान बन्द कर लेता है। 3 तुम्हारे हाथ गन्दे हैं, वे खून से सने हुए हैं। तुम्हारी उँगलियाँ अपराधों से भरी हैं। अपने मुँह से तुम झूठ बोलते हो। तुम्हारी जीभ बुरी बातें करती है। 4 दूसरे व्यक्ति के बारे में कोई व्यक्ति सच नहीं बोलता। लोग अदालत में एक दूसरे के खिलाफ़ मुकद्दमा करते हैं। अपने मुकद्दमे जीतने के लिये वे झूठे तकर् पर निर्भर करते हैं। वे एक दूसरे के बारे में परस्पर झूठ बोलते हैं। वे कष्ट को गर्भ में धारण करते हैं और बुराईयों को जन्म देते हैं। 5 वे साँप के विष भरे अण्डों के समान बुराई को सेते हैं। यदि उनमें से तुम एक अण्डा भी खा लो तो तुम्हारी मृत्यु हो जाये और यदि तुम उनमें से किसी अण्डे को फोड़ दो तो एक ज़हरीला नाग बाहर निकल पड़े।
लोग झूठ बोलते हैं। यह झूठ मकड़ी के जालों जैसी कपड़े नहीं बन सकते। 6 उन जालों से तुम अपने को ढक नहीं सकते।
कुछ लोग बदी करते हैं और अपने हाथों से दूसरों को हानि पहुँचाते हैं। 7 ऐसे लोग अपने पैरों का प्रयोग बदी के पास पहुँचने के लिए करते हैं। ये लोग निर्दोष व्यक्तियों को मार डालने की जल्दी में रहते हैं। वे बुरे विचारों में पड़े रहते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं विनाश और विध्वंस फैलाते हैं। 8 ऐसे लोग शांति का मार्ग नहीं जानते। उनके जीवन में नेकी तो होती ही नहीं। उनके रास्ते ईमानदारी के नहीं होते। कोई भी व्यक्ति जो उनके जैसा जीवन जीता है, अपने जीवन में कभी शांति नहीं पायेगा।
इस्राएल के पापों से विपत्ति का आना
9 इसलिए परमेश्वर का न्याय और मुक्ति हमसे बहुत दूर है।
हम प्रकाश की बाट जोहते हैं।
पर बस केवल अन्धकार फैला है।
हमको चमकते प्रकाश की आशा है
किन्तु हम अन्धेरे में चल रहे हैं।
10 हम ऐसे लोग हैं जिनके पास आँखें नहीं है।
नेत्रहीन लोगों के समान हम दीवारों को टटोलते चलते हैं।
हम ठोकर खाते हैं और गिर जाते हैं जैसे यह रात हो।
दिन के प्रकाश में भी हम मुर्दों की भाँति गिर पड़ते हैं।
11 हम सब बहुत दु:खी हैं।
हम सब ऐसे कराहते हैं जैसे कोई रीछ और कोई कपोत कराहता हैं।
हम ऐसे उस समय की बाट जोह रहे हैं जब लोग निष्पक्ष होंगे किन्तु अभी तक तो कहीं भी नेकी नहीं है।
हम उद्धार की बाट जोह रहे हैं किन्तु उद्धार बहुत—बहुत दूर है।
12 क्यों क्योंकि हमने अपने परमेश्वर के विरोध में बहुत पाप किये हैं।
हमारे पाप बताते हैं कि हम बहुत बुरे हैं।
हमें इसका पता है कि हम इन बुरे कर्मों को करने के अपराधी हैं।
13 हमने पाप किये थे और हमने अपने यहोवा से मुख मोड़ लिया था।
यहोवा से हम विमुख हुए और उसे त्याग दिया। हमने बुरे कर्मों की योजना बनाई थी।
हमने ऐसी उन बातों की योजना बनाई थी जो हमारे परमेश्वर के विरोध में थी।
हमने वे बातें सोची थी और दूसरों को सताने की योजना बनाई थी।
14 हमसे नेकी को पीछे ढकेला गया।
निष्पक्षता दूर ही खड़ी रही।
गलियों में सत्य गिर पड़ा था
मानों नगर में अच्छाई का प्रवेश नहीं हुआ।
15 सच्चाई चली गई और वे लोग लूटे गये जो भला करना चाहते थे।
यहोवा ने ढूँढा था किन्तु कोई भी, कहीं भी अच्छाई न मिल पायी।
16 यहोवा ने खोज देखा किन्तु उसे कोई व्यक्ति नहीं मिला
जो लोगों के साथ खड़ा हो और उनको सहारा दे।
इसलिये यहोवा ने स्वयं अपनी शक्ति का और स्वयं अपनी नेकी का प्रयोग किया
और यहोवा ने लोगों को बचा लिया।
17 यहोवा ने नेकी का कवच पहना।
यहोवा ने उद्धार का शिरस्त्राण धारण किया।
यहोवा ने दण्ड के बने वस्त्र पहने थे।
यहोवा ने तीव्र भावनाओं का चोगा पहना था
18 यहोवा अपने शत्रु पर क्रोधित है सो यहोवा उन्हें ऐसा दण्ड देगा जैसा उन्हें मिलना चाहिये।
यहोवा अपने शत्रुओं से कुपित है सो यहोवा सभी दूर—दूर के देशों के लोगों को दण्ड देगा।
यहोवा उन्हें वैसा दण्ड देगा जैसा उन्हें मिलना चाहिये।
19 फिर पश्चिम के लोग यहोवा के नाम को आदर देंगे
और पूर्व के लोग यहोवा की महिमा से भय विस्मित हो जायेंगे।
यहोवा ऐसे ही शीघ्र आ जायेगा जैसे तीव्र नदी बहती हुई आ जाती है।
यह उस तीव्र वायु वेग सा होगा जिसे यहोवा उस नदी को तूफान बहाने के लिये भेजता है।
20 फिर सिय्योन पर्वत पर एक उद्धार कर्ता आयेगा।
वह याकूब के उन लोगों के पास आयेगा जिन्होंने पाप तो किये थे किन्तु जो परमेश्वर की ओर लौट आए थे।
21 यहोवा कहता है: “मैं उन लोगों के साथ एक वाचा करूँगा। मैं वचन देता हूँ मेरी आत्मा और मेरे शब्द जिन्हें मैं तेरे मुख में रख रहा हूँ तुझे कभी नहीं छोड़ेंगे। वे तेरी संतानों और तेरे बच्चों के बच्चों के साथ रहेंगे। वे आज तेरे साथ रहेंगे और सदा—सदा तेरे साथ रहेंगे।”
समीक्षा
परमेश्वर का प्रेम प्रकट किया गया है
पुराने नियम में (और विशेष रूप से यशायाह में), हम परमेश्वर के प्रेम के व्यापक प्रेम के संकेत को देखते हैं, और कैसे उनका प्रेम इस्राएल के लोगों के परे, पृथ्वी के सभी लोगों तक जाता है। आज के लेखांश में, हमें इस प्रेम की एक झलक मिलती है।
परमेश्वर कहते हैं, ' जो दूर और जो निकट हैं, (यहूदी और अन्यजाति) दोनों को पूरी शान्ति मिले' (57:19, ए.एम.पी; इफीसियो 2:17 भी देखें)। पौलुस यशायाह के इन लेखांशो का अर्थ बताते हैं, परमेश्वर के प्रेम में अन्यजातियों के शामिल होने की प्रत्याशा के रूप में (इफीसियो 2:17)।
फिर यशायाह आगे दिखाते हैं कि कैसे परमेश्वर के लोगों ने इस अद्भुत प्रेम को दर्शाना चाहिए, गरीबों और अपने आस-पास के पीड़ितों के साथ बर्ताव करने में। केवल धार्मिक गतिविधी से कोई लाभ नहीं। परमेश्वर ऐसे प्रेम को खोज रहे हैं जोः'अन्याय के बंधन को तोड़ दे, काम पर शोषण को दूर करे, सताये हुओं को छुड़ाये, कर्ज माफ करे' (यशायाह 58:6, एम.एस.जी)।
वह ऐसे एक प्रेम को खोज रहे हैं जो आपको यह करने पर विवश करे ' कि अपनी रोटी भूखों को बाँट देना, अनाथ और मारे – मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना?' (व.7, एम.एस.जी)।
यह एक प्रेम है जो सुनिश्चित करेगा कि आप ' उदारता से भूखे की सहायता करें और दीन दुःखियों को सन्तुष्ट करें ' (व.10)। हमारे पड़ोसी के लिए सच्चे प्रेम में सामाजिक न्याय के लिए एक जुनून भी शामिल होना चाहिए -'अन्याय के बंधनों को तोड़ दे' (व.6अ) – और सामाजिक कार्य। प्रेम का अर्थ है गरीबी, बेघर होना और भूख के विषय में कुछ करना। ये वचन आज हमें चुनौती देते हैं कि कैसे हम विश्व भर में होने वाले शरणार्थी संकट के प्रति उत्तर देते हैं; विशेष रूप से यूरोप में।
यशायाह वायदा करते हैं कि, ' यदि तू अन्धेर करना और उंगली उठाना, और दुष्ट बातें बोलना छोड़ दे, उदारता से भूखे की सहायता करे और दीन दुःखियों को सन्तुष्ट करे, तब अन्धियारे में मेरा प्रकाश चमकेगा, और तेरा घोर अन्धकार दोपहर का सा उजियाला हो जाएगा' (वव.9-10, एम.एस.जी)। प्रकाश चमक उठेगा। रहस्य प्रकट हो जाएगा।
प्रार्थना
परमेश्वर, होने दीजिए कि हम ऐसे एक चर्च बने जो परमेश्वर की बहुमुखी बुद्धि को प्रकट करते हैं हमारी एकता और प्रेम के द्वारा। हमें बुद्धि दीजिए कि कैसे शरणार्थीयों के संकट के प्रति उत्तर देना है। हम प्रार्थना करते हैं कि हम पर अपनी आत्मा ऊँडेल दीजिए। होने दीजिए कि मसीह का रहस्य हममें प्रकट हो।
पिप्पा भी कहते है
यशायाह 58:12ब
''तेरा नाम टूटे बाड़े का सुधारक और पथों का ठीक करने वाला पड़ेगा।'
मैं यही कहलाना चाहती हूँ।
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संदर्भ
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