जीवन का क्या अर्थ है?
परिचय
‘क्या कोई जानता है कि हम क्यों जी रहे हैं?’ फ्रेडी मर्क्युरी ने पूछा, जो क्वीन के गायक हैं, उनके एल्बम इनुएंडो के अंतिम गीत के बोल में।
लाखों लोग अव्यक्त रूप से यह प्रश्न पूछ रहे हैं। जोनाथन गेबे, एक तीस वर्षीय पेशेवर लेखक रोजगार संबंधी चुनौती और तनाव का सामना कर रहे थे जब उन्होंने ठोकर खाई। वह जीवन के अर्थ के विषय में प्रश्न पूछने लगे। उन्होंने जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को लिखाः विश्व के लीडर्स, बेघर, ऑक्सर-विजेता अभिनेता, फिलोसोफर, कॉमेडियन, टैक्सी ड्राईवरन, शिक्षक, खोजकर्ता और मृत्यु की कगार पर कैदी। यहाँ तक कि उन्होंने मुझे लिखा!
हर एक से उन्होंने पूछा, ‘जीवन का क्या अर्थ है?’ गेबे ने हमारे उत्तर से एक पुस्तक को संग्रहित किया, उन दूसरों के साथ जो सालों से इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास कर रहे थे। उनमें ये निम्नलिखित शामिल हैं:
‘जीवन एक के बाद एक मुसीबत है।’ रिचार्ड निक्सन
‘जीवन, जो आपके साथ होता है, जब आप दूसरी योजनाएँ बनाने में व्यस्त हैं।’ जॉन लेनन
‘जीवन है जो आप इसे बनाते हैं –और मैं इसे असहनीय बना सकता हूँ!’ डेनिस द मेनस
‘एक व्यक्ति जो अपने जीवन को और अपने साथियों के जीवन को अर्थहीन समझता है, वह केवल दुखी नहीं किंतु जीवन के लिए तैयार नहीं है।’ एल्बर्ट आइंस्टाईन
अनेक लोगों ने लिखा कि जीवन का अर्थ और उद्देश्य यीशु मसीह में मिलता है। ना केवल मदर टेरेसा और बिली ग्राहम, लेकिन नायक, वैज्ञानिक और लॉर्ड चानसलर। बँक ऑफ इंग्लैड के मुख्य कैशियर, ग्राहम केंटफिल्ड (उस समय हर बैंकनोट पर उनके हस्ताक्षर थे) ने कहा, ‘मै जानता हूँ कि जीवन के अर्थ को उचित रीति से परमेश्वर के साथ हमारे संबंध के संदर्भ में समझा जा सकता है।’
भजन संहिता 117:1-2
117अरे ओ सब राष्ट्रों यहोवा कि प्रशंसा करो।
अरे ओ सब लोगों यहोवा के गुण गाओ।
2 परमेश्वर हमें बहुत प्रेम करता है!
परमेश्वर हमारे प्रति सदा सच्चा रहेगा!
यहोवा के गुण गाओ!
समीक्षा
जीवन प्रेम और आराधना के विषय में है
यह छोटा सा भजन, बहुत कुछ बताता है कि जीवन किस विषय में है। मुख्य चीज है परमेश्वर के साथ आपका संबंध। आपको परमेश्वर की ‘स्तुति’ और ‘प्रशंसा’ करनी चाहिए (व.1) आपके लिए उनके महान ‘प्रेम’ और आपके प्रति ‘वफादारी’ के कारण (व.2)। भजनसंहिता के लेखक हमें एक सुंदर सारांश देते हैं कि आपके प्रति परमेश्वर का व्यवहार कैसा है और उनके प्रति आपका व्यवहार कैसा होना चाहिए।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद कि यीशु ने मेरे लिए अपनी जान दी। आपका धन्यवाद कि मैं परमेश्वर की एक संतान हूँ। आपका धन्यवाद कि परमेश्वर का प्रेम पवित्र आत्मा के द्वारा मेरे हृदय में उँडेला गया है (रोमियों 5:5)। परमेश्वर आपका धन्यवाद कि मेरे लिए आपके प्रेम के अनुभव के द्वारा, मुझे मेरे जीवन का अर्थ मिलता है।
कुलुस्सियों 1:24-2:5
कलीसिया के लिये पौलुस का कार्य
24 अब देखो, मैं तुम्हारे लिये जो कष्ट उठाता हूँ, उनमें आनन्द का अनुभव करता हूँ और मसीह की देह, अर्थात् कलीसिया के लिये मसीह की यातनाओं में जो कुछ कमी रह गयी थी, उसे अपने शरीर में पूरा करता हूँ। 25 परमेश्वर ने तुम्हारे लाभ के लिये मुझे जो आदेश दिया था, उसी के अनुसार मैं उसका एक सेवक ठहराया गया हूँ। ताकि मैं परमेश्वर के समाचार का पूरी तरह प्रचार करूँ। 26 यह संदेश रहस्यपूर्ण सत्य है। जो आदिकाल से सभी की आँखों से ओझल था। किन्तु अब इसे परमेश्वर के द्वारा संत जनों पर प्रकट कर दिया गया है। 27 परमेश्वर अपने संत जनों को यह प्रकट कर देना चाहता था कि वह रहस्यपूर्ण सत्य कितना वैभवपूर्ण है। उसके पास यह रहस्यपूर्ण सत्य सभी के लिये है। और वह रहस्यपूर्ण सत्य यह है कि मसीह तुम्हारे भीतर ही रहता है और परमेश्वर की महिमा प्राप्त करने के लिये वही हमारी एक मात्र आशा है। 28 हमें जो ज्ञान प्राप्त है उस समूचे का उपयोग करते हुए हम हर किसी को निर्देश और शिक्षा प्रदान करते हैं ताकि हम उसे मसीह में एक परिपूर्ण व्यक्ति बनाकर परमेश्वर के आगे उपस्थित कर सकें। व्यक्ति को उसी की सीख देते हैं तथा अपनी समस्त बुद्धि से हर व्यक्ति को उसी की शिक्षा देते हैं ताकि हर व्यक्ति को मसीह में परिपूर्ण बना कर परमेश्वर के आगे उपस्थित कर सकें। 29 मैं इसी प्रयोजन से मसीह का उस शक्ति से जो मुझमें शक्तिपूर्वक कार्यरत है, संघर्ष करते हुए कठोर परिश्रम कर रहा हूँ।
2मैं चाहता हूँ कि तुम्हें इस बात का पता चल जाये कि मैं तुम्हारे लिए, लौदीकिया के रहने वालों के लिए और उन सबके लिए जो निजी तौर पर मुझसे कभी नहीं मिले हैं, कितना कठोर परिश्रम कर रहा हूँ 2 ताकि उनके मन को प्रोत्साहन मिले और वे परस्पर प्रेम में बँध जायें। तथा विश्वास का वह सम्पूर्ण धन जो सच्चे ज्ञान से प्राप्त होता है, उन्हें मिल जाये तथा परमेश्वर का रहस्यपूर्ण सत्य उन्हें प्राप्त हो वह रहस्यपूर्ण सत्य स्वयं मसीह है। 3 जिसमें विवेक और ज्ञान की सारी निधियाँ छिपी हुई हैं।
4 ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ कि कोई तुम्हें मीठी मीठी तर्कपूर्ण युक्तियों से धोखा न दे। 5 यद्यपि दैहिक रूप से मैं तुममें नहीं हूँ फिर भी आध्यात्मिक रूप से मैं तुम्हारे भीतर हूँ। मैं तुम्हारे जीवन के अनुशासन और मसीह में तुम्हारे विश्वास की दृढ़ता को देख कर प्रसन्न हूँ।
समीक्षा
जीवन का अर्थ यीशु मसीह में मिलता है
आपके जीवन का अर्थ यीशु मसीह में मिलता है। मसीहत है मसीह। यह लेखांश बताता है कि कैसे पौलुस का संपूर्ण जीवन, सोच और प्रचार यीशु मसीह पर केंद्रित हैं।
पौलुस बंदीगृह में हैं मसीह की देह के लिए कष्ट उठा रहे हैं, जो कि चर्च है (1:24)। पौलुस मसीह के एक सेवक हैं, ‘ उस भेद को जो समयों और पीढ़ियों से गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगों पर प्रकट हुआ है’ (व.26)। ‘ जिन पर परमेश्वर ने प्रकट करना चाहा कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है, और वह यह है कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है’ (व.27)।
आपके हृदय में हमेशा एक खालीपन होगा जब तक यह आपमें रहने वाले मसीह के द्वारा भर न दिया जाए। जिस क्षण आप उनमें विश्वास करते हैं, उसी क्षण वह अपनी आत्मा के द्वारा आपमें रहने के लिए आते हैं। आप अभी अनुभव करते हैं, ‘इस रहस्य के महिमामयी धन को’ और आपके पास ‘महिमा की आशा’ होती है (व.27)।
यीशु मसीह हमारी सारी शिक्षा और चर्च में प्रचार का केंद्र होना चाहिए। पौलुस लिखते हैं, ‘ जिसका प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को चेतावनी देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं, कि हम हर एक व्यक्ति को मसीह में सिध्द करके उपस्थित करें’ (व.28)।
ना केवल मसीह आपमें हैं, लेकिन आप भी ‘मसीह में’ हैं। पौलुस की इच्छा है कि हर कोई इस संबंध में बढ़े और वयस्क बने। यही उनकी प्रेरणा हैः’ इसी के लिये मैं उनकी उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ के साथ प्रभाव डालती है, तन मन लगाकर परिश्रम भी करता हूँ’ (व.29)।
यह पास्टर के द्वारा देखभाल, चेला बनाना और शिक्षा का एक श्रेष्ठ नमूना प्रदान करता हैः
- लक्ष्य
पौलुस का लक्ष्य था ‘हर व्यक्ति को मसीह में वयस्क बनाना’ (व.28, एम.एस.जी)।
पहला, हमें हर व्यक्ति की चिंता करनी चाहिए। एक अच्छे पासवान के रूप में, पौलुस अपनी किसी भी भेड़ को खोना नहीं चाहते हैं।
दूसरा, आत्मिक वयस्कता का लक्ष्य साधो। यह एक रात में नहीं होता है। इसमें समय लगता है।
तीसरा, मसीह में वयस्कता का लक्ष्य साधो। हम लोगों को अपने से नहीं, लेकिन मसीह से जोड़ना चाहते हैं। उसी तरह से जैसे अच्छे माता-पिता अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनने के लिए उत्साहित करते हैं, पौलुस ने विश्वासियों को आत्मनिर्भर बनने के लिए उत्साहित किया –उस पर निर्भर मत रहो, बल्कि मसीह को पकड़े रहने के लिए मजबूत हो जाओ।
- तरीका
हमारा तरीका होना चाहिए यीशु का प्रचार करना। पौलुस ने लिखा, ‘ जिसका प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को चेतावनी देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं’ (व.28)। यीशु मसीह आत्मिक वयस्कता की पूँजी हैं। जैसे ही यीशु के साथ आपकी घनिष्ठता और उनके बारें में आपका ज्ञान बढ़ता है, वैसे ही आप वयस्कता में बढ़ते हैं।
यही कारण है कि यह अति महत्वपूर्ण है कि अपने जीवन में उन चीजों को प्राथमिकता दें जो उस ज्ञान और घनिष्ठता को बढाते हैं - जैसे कि आराधना, प्रार्थना और बाईबल पढ़ना।
- कटिबद्धता
पौलुस लिखते हैं, ‘ इसी के लिये मैं उसकी उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ के साथ प्रभाव डालती है, तन मन लगाकर परिश्रम भी करता हूँ’ (व.29)। पौलुस की सेवकाई में, परमेश्वर के अनुग्रह और उनके खुद के उत्तरदायित्व में एक संतुलन था। वहाँ पर ‘परिश्रम’ और ‘संघर्ष’ का एक कारक था, जोकि हर प्रभावी मसीह सेवकाई में होता है। इसमें समय और प्रयास लगता है, निराशाओं और कठिनाईयों पर जय पाने में।
दूसरी ओर, आप इसे परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा कर सकते हैं। आप अपने आपसे ‘परिश्रम’ और ‘संघर्ष’ नहीं करते हैं। आप इसे ‘उनकी सामर्थ’ से करते हैं, जो शक्तिशाली रूप से (आपमें) काम करती है।’ हर एक काम के लिए आपको उनकी सहायता और उनकी सामर्थ की आवश्यकता है।
पौलुस को यह देखना भाता है कि कुलुस्सियों का ‘मसीह में विश्वास’ ‘कितना दृढ़’ है (2:5)। पौलुस के जीवन का संपूर्ण उद्देश्य यीशु के चारो ओर घूमता थाः’उनके मनों में शान्ति हो और वे प्रेम से आपस में बने रहें, और वे पूरी समझ का सारा धन प्राप्त करें, और परमेश्वर पिता के भेद को अर्थात् मसीह को पहचान लें। जिसमें बुध्दि और ज्ञान के सारे भण्डार छिपे हुए हैं’ (वव.2-3, एम.एस.जी)।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद कि मसीह में मुझे जीवन का अर्थ मिलता है। आपका धन्यवाद कि आप अपने आत्मा के द्वारा मुझमें रहने आये हैं। आपका धन्यवाद कि यीशु में मुझे बुद्धि और ज्ञान के सारे खजाने मिलते हैं। मेरी सहायता कीजिए कि यीशु मसीह का सुसमाचार सुनाऊँ और हर एक को मसीह में पूरी तरह से परिपक्व बनाऊँ।
यिर्मयाह 9:17-11:17
17 सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यह है:
“अब इन सबके बारे में सोचो।
अन्त्येष्टि के समय भाड़े पर रोने वाली स्त्रियों को बुलाओ।
उन स्त्रियों को बुलाओ जो विलाप करने में चतुर हों।”
18 लोग कहते हैं,
“उन स्त्रियों को जल्दी से आने और हमारे लिये रोने दो,
तब हमारी आँखे आँसू से भरेंगी
और पानी की धारा हमारी आँखों से फूट पड़ेगी।”
19 “जोर से रोने की आवाजें सिय्योन से सुनी जा रही हैं।
‘हम सचमुच बरबाद हो गए। हम सचमुच लज्जित हैं।
हमें अपने देश को छोड़ देना चाहिये,
क्योंकि हमारे घर नष्ट और बरबाद हो गये हैं।
हमारे घर अब केवल पत्थरों के ढेर हो गये हैं।’”
20 यहूदा की स्त्रियों, अब यहोवा का सन्देश सुनो।
यहोवा के मुख से निकले शब्दों को सुनने के लिये अपने कान खोल लो।
यहोवा कहता है अपनी पुत्रियों को जोर से रोना सिखाओ।
हर एक स्त्री को इस शोक गीत को सीख लेना चाहिये:
21 “मृत्यु हमारी खिड़कियों से चढ़कर आ गई है।
मृत्यु हमारे महलों में घुस गई है।
सड़क पर खेलने वाले हमारे बच्चों की मृत्यु आ गई है।
सामाजिक स्थानों में मिलने वाले युवकों की मृत्यु हो गई है।”
22 यिर्मयाह कहो, “जो यहोवा कहता है, ‘वह यह है:
मनुष्यों के शव खेतों में गोबर से पड़े रहेंगे।
उनके शव जमीन पर उस फसल से पड़े रहेंगे जिन्हें किसान ने काट डाला है।
किन्तु उनको इकट्ठा करने वाला कोई नहीं होगा।’”
23 यहोवा कहता है,
“बुद्धिमान को अपनी बुद्धिमानी की डींग नहीं मारनी चाहिए।
शक्तिशाली को अपने बल का बखान नहीं करना चाहिए।
सम्पत्तिशाली को अपनी सम्पत्ति की हवा नहीं बांधनी चाहिए।
24 किन्तु यदि कोई डींग मारना ही चाहता है तो उसे इन चीज़ों की डींग मारने दो:
उसे इस बैंत की डींग मारने दो कि वह मुझे समझता और जानता है।
उसे इस बात की डींग हाँकने दो कि वह यह समझता है कि मैं यहोवा हूँ।
उसे इस बात की हवा बांधने दो कि मैं कृपालु और न्यायी हूँ।
उसे इस बात का ढींढोरा पीटने दो कि मैं पृथ्वी पर अच्छे काम करता हूँ।
मुझे इन कामों को करने से प्रेम है।”
यह सन्देश यहोवा का है।
25 वह समय आ रहा है, यह सन्देश यहोवा का है, “जब मैं उन लोगों को दण्ड दूँगा जो केवल शरीर से खतना कराये हैं। 26 मैं मिस्र, यहूदा, एदोम, अम्मोन तथा मोआब के राष्ट्रों और उन सभी लोगों के बारे में बातें कर रहा हूँ जो मरुभूमि में रहते हैं जो दाढ़ी के किनारों के बालों को काटते हैं। उन सभी देशों के लोगों ने अपने शरीर का खतना नहीं करवाया है। किन्तु इस्राएल के परिवार के लोगों ने हृदय से खतना को नहीं ग्रहण किया है, जैसे कि परमेश्वर के लोगों को करना चाहिए।”
यहोवा और देवमूर्तियाँ
10इस्राएल के परिवार, यहोवा की सुनो। 2 जो यहोवा कहता है, वह यह है:
“अन्य राष्ट्रों के लोगों की तरह न रहो।
आकाश के विशेष संकेतों से न डरो।
अन्य राष्ट्र उन संकेतों से डरते हैं जिन्हें वे आकाश में देखते हैं।
किन्तु तुम्हें उन चीज़ों से नहीं डरना चाहिये।
3 अन्य लोगों के रीति रिवाज व्यर्थ हैं।
उनकी देव मूर्तियाँ जंगल की लकड़ी के अतिरिक्त कुछ नहीं।
उनकी देव मूर्तियाँ कारीगर की छैनी से बनी हैं।
4 वे अपनी देव मूर्तियों को सोने चाँदी से सुन्दर बनाते हैं।
वे अपनी देव मूर्तियों को हथौड़े और कील से लटकाते हैं
जिससे वे लटके रहें, गिर न पड़े।
5 अन्य देशों की देव मूर्तियों,
ककड़ी के खेत में खड़े फूस के पुतले के समान हैं।
वे न बोल सकती हैं, और न चल सकती हैं।
उन्हें उठा कर ले जाना पड़ता है क्योंकि वे चल नहीं सकते।
उनसे मत डरो। वे न तो तुमको चोट पहुँचा सकती हैं
और न ही कोई लाभ!”
6 यहोवा तुझ जैसा कोई अन्य नहीं है!
तू महान है! तेरा नाम महान और शक्तिपूर्ण है।
7 परमेश्वर, हर एक व्यक्ति को तेरा सम्मान करना चाहिए।
तू सभी राष्ट्रों का राजा है।
तू उनके सम्मान का पात्र है।
राष्ट्रों में अनेक बुद्धिमान व्यक्ति हैं।
किन्तु कोई व्यक्ति तेरे समान बुद्धिमान नहीं है।
8 अन्य राष्ट्रों के सभी लोग शरारती और मूर्ख हैं।
उनकी शिक्षा निरर्थक लकड़ी की मूर्तियों से मिली है।
9 वे अपनी मूर्तियों को तर्शीश नगर की चाँदी
और उफाज नगर के सोने का उपयोग करके बनाते हैं।
वे देवमूर्तियाँ वढइयों और सुनारो द्वारा बनाई जाती हैं।
वे उन देवमूर्तियों को नीले और बैंगनी वस्त्र पहनाते हैं।
निपुण लोग उन्हें “देवता” बनाते हैं।
10 किन्तु केवल यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है।
वह एकमात्र परमेश्वर है जो चेतन है।
वह शाश्वत शासक है।
जब परमेश्वर क्रोध करता है तो धरती काँप जाती है।
राष्ट्रों के लोग उसके क्रोध को रोक नहीं सकते।
11 यहोवा कहता है, “उन लोगों को यह सन्देश दो:
‘उन असत्य देवताओं ने पृथ्वी और स्वर्ग नहीं बनाए
और वे असत्य देवता नष्ट कर दिए जाएंगे,
और पृथ्वी और स्वर्ग से लुप्त हो जाएंगे।’”
12 वह परमेश्वर एक ही है जिसने अपनी शक्ति से पृथ्वी बनाई।
परमेश्वर ने अपने बुद्धि का उपयोग किया
और संसार की रचना कर डाली।
अपनी समझ के अनुसार परमेश्वर ने पृथ्वी के ऊपर आकाश को फैलाया।
13 परमेश्वर कड़कती बिजली बनाता है
और वह आकाश से बड़े जल की बाढ़ को गिराता है।
वह पृथ्वी के हर एक स्थान पर,
आकाश में मेघों को उठाता है।
वह बिजली को वर्षा के साथ भेजता है।
वह अपने गोदामों से पवन को निकालता है।
14 लोग इतने बेवकूफ हैं!
सुनार उन देवमूर्तियों से मूर्ख बनाए गये हैं
जिन्हें उन्होंने स्वयं बनाया है।
ये मूर्तियाँ झूठ के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं, वे निष्क्रिय हैं।
15 वे देवमूर्तियाँ किसी काम की नहीं।
वे कुछ ऐसी हैं जिनका मजाक उड़ाया जा सके।
न्याय का समय आने पर वे देवमूर्तियाँ नष्ट कर दी जाएंगी।
16 किन्तु याकूब का परमेश्वर उन देवमूर्तियों के समान नहीं है।
परमेश्वर ने सभी वस्तुओं की सृष्टि की,
और इस्राएल वह परिवार है जिसे परमेश्वर ने अपने लोग के रूप में चुना।
परमेश्वर का नाम “सर्वशक्तिमान यहोवा” है।
विनाश आ रहा है
17 अपनी सभी चीज़ें लो और जाने को तैयार हो जाओ।
यहूदा के लोगों, तुम नगर में पकड़ लिये गए हो
और शत्रु ने इसका घेरा डाल लिया है।
18 यहोवा कहता है,
“इस समय मैं यहूदा के लोगों को इस देश से बाहर फेंक दूँगा।
मैं उन्हें पीड़ा और परेशानी दूँगा।
मैं ऐसा करूँगा जिससे वे सबक सीख सकें।”
19 ओह, मैं (यिर्मयाह) बुरी तरह घायल हूँ।
घायल हूँ और मैं अच्छा नहीं हो सकता।
तो भी मैंने स्वयं से कहा, “यह मेरी बीमारी है,
मुझे इससे पीड़ित होना चाहिये।”
20 मेरा डेरा बरबाद हो गया।
डेरे की सारी रस्सियाँ टूट गई हैं।
मेरे बच्चे मुझे छोड़ गये।
वे चले गये।
कोई व्यक्ति मेरा डेरा लगाने को नहीं बचा है।
कोई व्यक्ति मेरे लिये शरण स्थल बनाने को नहीं बचा है।
21 गडेरिये (प्रमुख) मूर्ख हैं।
वे यहोवा को प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करते।
वे बुद्धिमान नहीं है,
अत: उनकी रेवड़ें (लोग) बिखर गई और नष्ट हो गई हैं।
22 ध्यान से सुनो! एक कोलाहल!
कोलाहल उत्तर से आ रहा है।
यह यहूदा के नगरों को नष्ट कर देगा।
यहूदा एक सूनी मरुभूमि बन जायेगा।
यह गीदड़ों की माँद बन जायेगा।
23 हे यहोवा, मैं जानता हूँ कि व्यक्ति सचमुच अपनी
जिन्दगी का मालिक नहीं है।
लोग सचमुच अपने भविष्य की योजना नहीं बना सकते हैं।
लोग सचमुच नहीं जानते कि कैसे ठीक जीवित रहा जाये।
24 हे यहोवा, हमें सुधार! किन्तु न्यायी बन!
क्रोध में हमे दण्ड न दे! अन्यथा तू हमें नष्ट कर देगा!
25 यदि तू क्रोधित है तो अन्य राष्ट्रों को दण्ड दे।
वे, न तुझको जानते हैं न ही तेरा सम्मान करते हैं।
वे लोग तेरी आराधना नहीं करते।
उन राष्ट्रों ने याकूब के परिवार को नष्ट किया।
उन्होंने इस्राएल को पूरी तरह नष्ट कर दिया।
उन्होंने इस्राएल की जन्मभूमि को नष्ट किया।
वाचा टूटी
11यह वह सन्देश है जो यिर्मयाह को मिला। यहोवा का यह सन्देश आया: 2 “यिर्मयाह इस वाचा के शब्दों को सुनो। इन बातों के विषय में यहूदा के लोगों से कहो। ये बातें यरूशलेम में रहने वाले लोगों से कहो। 3 यह वह है, जो इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘जो व्यक्ति इस वाचा का पालन नहीं करेगा उस पर विपत्ति आएगी। 4 मैं उस वाचा के बारे में कह रहा हूँ जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों के साथ की। मैंने वह वाचा उनके साथ तब की जब मैं उन्हें मिस्र से बाहर लाया। मिस्र अनेक मुसीबतों की जगह थी यह लोहे को पिघला देने वाली गर्म भट्टी की तरह थी।’ मैंने उन लोगों से कहा, ‘मेरी आज्ञा मानो और वह सब करो जिसका मैं तुम्हें आदेश दूँ। यदि तुम यह करोगे तो तुम मेरे लोग रहोगे और मैं तुम्हारा परमेश्वर होऊँगा।’
5 “मैंने यह तुम्हारे पूर्वजों को दिये गये वचन को पूरा करने के लिये किया। मैंने उन्हें बहुत उपजाऊ भूमि देने की प्रतिज्ञा की, ऐसी भूमि जिसमें दूध और शहद की नदी बहती हो और आज तुम उस देश में रह रहे हो।”
मैं (यिर्मयाह) ने उत्तर दिया, “यहोवा, आमीन।”
6 यहोवा ने मुझसे कहा, “यिर्मयाह, इस सन्देश की शिक्षा यहूदा के नगरों और यरूशलेम की सड़कों पर दो। सन्देश यह है, ‘इस वाचा की बातों को सुनो और तब उन नियमों का पालन करो। 7 मैंने तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र देश से बाहर लाने के समय एक चेतावनी दी थी। मैंने बार बार ठीक इसी दिन तक उन्हें चेतावनी दी। मैंने उनसे अपनी आज्ञा का पालन करने के लिये कहा। 8 किन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने मेरी एक न सुनी। वे हठी थे और वही किया जो उनके अपने बुरे हृदय ने चाहा। वाचा में यह कहा गया है कि यदि वे आज्ञा का पालन नहीं करेंगे तो विपत्तियाँ आएंगे। अत: मैंने उन सभी विपत्तियों को उन पर आने दिया। मैंने उन्हें वाचा को मानने का आदेश दिया, किन्तु उन्होंने नहीं माना।’”
9 यहोवा ने मुझसे कहा, “यिर्मयाह, मैं जानता हूँ कि यहूदा के लोगों और यरूशलेम के निवासियों ने गुप्त योजनायें बना रखी हैं। 10 वे लोग वैसे ही पाप कर रहे हैं जिन्हें उनके पूर्वजों ने किया था। उनके पूर्वजों ने मेरे सन्देश को सुनने से इन्कार किया। उन्होंने अन्य देवताओं का अनुसरण किया और उन्हें पूजा। इस्राएल के परिवार और यहूदा के परिवार ने उस वाचा को तोड़ा है जिसे मैंने उनके पूर्वजों के साथ की थी।”
11 अत: यहोवा कहता है: “मैं यहूदा के लोगों पर शीघ्र ही भयंकर विपत्ति ढाऊँगा। वे बचकर भाग नहीं पाएंगे और वे सहायता के लिये मुझे पुकारेंगे। किन्तु मैं उनकी एक न सुनूँगा। 12 यहूदा के नगरों के लोग और यरूशलेम नगर के लोग जाएंगे और अपनी देवमूर्तियों के प्रार्थना करेंगे। वे लोग उन देवमूर्तियों को सुगन्धि धूप जलाते हैं। किन्तु वे देवमूर्तियाँ यहूदा के लोगों की सहायता नहीं कर पाएंगी जब वह भयंकर विपत्ति का समय आयेगा।
13 “यहूदा के लोगों, तुम्हारे पास बहुत सी देवमूर्तियाँ हैं, वहाँ उतनी देवमूर्तियाँ हैं जितने यहूदा में नगर हैं। तुमने उस घृणित बाल की पूजा के लिये बहुत सी वेदियाँ बना रखी हैं यरूशलेम में जितनी सड़के हैं उतनी ही वेदियाँ हैं।
14 “यिर्मयाह, जहाँ तक तुम्हारी बात है, यहूदा के इन लोगों के लिये प्रार्थना न करो। उनके लिये याचना न करो। उनके लिये प्रार्थनायें न करो। मैं सुनूँगा नहीं। वे लोग कष्ट उठायेंगे और तब वे मुझे सहायता के लिये पुकारेंगे। किन्तु मैं सुनूँगा नहीं।
15 “मेरी प्रिया (यहूदा) मेरे घर (मन्दिर)
में क्यों है उसे वहाँ रहने का अधिकार नहीं है।
उसने बहुत से बुरे काम किये हैं,
यहूदा, क्या तुम सोचती हो कि विशेष प्रतिज्ञायें
और पशु बलि तुम्हें नष्ट होने से बचा लेंगी
क्या तुम आशा करती हो कि तुम मुझे बलि भेंट करके दण्ड पाने से बच जाओगी
16 यहोवा ने तुम्हें एक नाम दिया था।
उन्होंने तुम्हें कहा, “हरा भरा जैतून वृक्ष कहा था जिसकी सुन्दरता देखने योग्य है।”
किन्तु एक प्रबल आँधी के गरज के साथ, यहोवा उस वृक्ष में आग लगा देगा
और इसकी शाखायें जल जाएंगी।
17 सर्वशक्तिमान यहोवा ने तुमको रोपा,
और उसने यह घोषणा की है कि तुम पर बरबादी आएगी।
क्यों क्योंकि इस्राएल के परिवार
और यहूदा के परिवार ने बुरे काम किये हैं।
उन्होंने बाल को बलि भेंट करके
मुझको क्रोधित किया है!
समीक्षा
परमेश्वर को जानना, यह इसी विषय में है
आज, कुछ लोग मूर्ति की उपासना करते हैं। दूसरे एक अलग प्रकार की ‘मूर्ति’ की उपासना करते हैं। हमें सफलता, विवेक, पैसा, ताकत, सेलेब्रिटी या अतिसेवन की उपासना करने का प्रलोभन मिलता है। व्यक्तिगत रूप से, मैं कभी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिला जो केवल इन चीजों से खुश था। फिर भी, विज्ञापन देने वाले नियमित रुप से इन चीजों की ओर हमारी इच्छा को खींचते हैं, यद्यपि ये चीजें हमारे पास सच्ची खुशी नहीं लाती हैं।
यिर्मयाह बताते हैं कि परमेश्वर का न्याय उनके लोगों पर आ रहा है क्योंकि उन्होंने अपने जीवन के उद्देश्य को खो दिया है। वे ऐसी मूर्तियों की उपासना करते हैं जो बोल नहीं सकती और ना कुछ बुरा या अच्छा कर सकती हैं (10:5)।
तब भी परमेश्वर यह कहते हैः’’बुध्दिमान अपनी बुध्दि पर घमण्ड न करे, न वीर अपनी वीरता पर, न धनी अपने धन पर घमण्ड करे; परन्तु जो घमण्ड करे वह इसी बात पर घमण्ड करे, कि वह मुझे जानता और समझता है कि मैं ही वह यहोवा हूँ’ (9:23-24अ)।
दूसरे शब्दों में, यिर्मयाह कहते हैं कि जीवन में आपके मस्तिष्क (बुद्धि), आपके शरीर (शक्ति), नाही आपके बैंक खाते (धन) से अंतर पड़ता है। इनमें से कोई भी चीज आपके जीवन को उद्देश्य प्रदान नहीं करती है। आपके जीवन का उद्देश्य है परमेश्वर को जानना और समझना (व.24अ)। यदि आप परमेश्वर और उनकी करुणा, न्याय और सत्यनिष्ठा को जानते हैं; तो आप उनका अनुकरण करेंगे और उन्हें प्रसन्न करेंगे (व.24ब)।
परमेश्वर आपके हृदय के विषय में चिंता करते हैं। यह सच नहीं है कि पुराना नियम भौतिक खतना और नया नियम हृदय के खतने के विषय में चिंता करता था। परमेश्वर ने हमेशा हृदय को देखा है और इसे बाहरी चिह्न से कही अधिक महत्व दिया है (वव.25-26)।
परमेश्वर हमेशा उनके लोगों के लीडर्स को देख रहे हैं जो उन्हें जानते हैं और उनकी बात सुनते हैं:’चरवाहे पशु सरीखे हैं, और वे यहोवा को नहीं पुकारते’ (10:21, एम.एस.जी)। वे नहीं समझते कि ‘ मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं’ (व.23, एम.एस.जी)।
दूसरी ओर यिर्मयाह ने परमेश्वर की बात सुनी, नियमित रूप से घोषणा कीः’यहोवा का यह वचन यिर्मयाह के पास पहुँचा’ (11:1)।
यिर्मयाह और सभी शक्तिशाली प्रचारकों की महान सामर्थ यह है कि वे परमेश्वर की बाट जोहते हैं और वह प्रचार करते हैं जो परमेश्वर उनसे कहते हैं, मनुष्य की समझ पर निर्भर नहीं रहते हैं। परमेश्वर उनके द्वारा लोगों के सामने बोलते हैं, जो पहले निजी रूप से उनसे बात करते हैं। जैसा कि फादर रेनियरो कॅन्टालमेसा कहते हैं, ‘जितना अधिक आप बोलने के लिए बुलाए गए हैं, उतना ही अधिक आप सुनने के लिए बुलाए गए हैं।’
प्रार्थना
पिता, मेरी सहायता कीजिए कि आपके ज्ञान में वयस्कता तक बढूँ और मेरे लिए यीशु के वचनो को स्पष्ट रूप से सुनूं। मेरी सहायता कीजिए कि अधिकार और सामर्थ के साथ यीशु का प्रचार करुँ, ताकि बहुत से लोग यीशु में विश्वास करें और अपने जीवन के लिए उद्देश्य और अर्थ को पायें।
पिप्पा भी कहते है
कुलुस्सियों 1:29
‘ इसी के लिये मैं उसकी उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ के साथ प्रभाव डालती है, तन मन लगाकर परिश्रम भी करता हूँ।’
कभी कभी मैं कमजोर और थकी हुई महसूस करती हूँ और मैं नहीं जानती कि मैं ऐसे दबाब वाले समय से बाहर कैसे निकलूंगी। मैं एक ‘संघर्ष’ महसूस करती हूँ, लेकिन यह ‘उनकी सामर्थ’ के द्वारा जो शक्तिशाली रूप से मुझमें काम करती है।
App
Download The Bible with Nicky and Pippa Gumbel app for iOS or Android devices and read along each day.
Sign up now to receive The Bible with Nicky and Pippa Gumbel in your inbox each morning. You’ll get one email each day.
Podcast
Subscribe and listen to The Bible with Nicky and Pippa Gumbel delivered to your favourite podcast app everyday.
Website
Start reading today’s devotion right here on the BiOY website.
संदर्भ
जोनाथन गेबे, जीवन का अर्थः प्रकाशन, परावर्तन और जीवन के सभी क्षेत्रों से अंतर्ज्ञान (वर्जिन बुक, 1995)
क्वीन, ‘द शो मस्ट गो ऑन’ इनुनेंडो (पार्लोफोन 1991)
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।