दिन 282

हार में महिमा दिए गए

बुद्धि भजन संहिता 118:17-29
नए करार कुलुस्सियों 4:2-18
जूना करार यिर्मयाह 16:1-17:27

परिचय

फादर रेनियरो कॅन्टालमेसा के साथ की गई बातचीत को मैं कभी नहीं भूलूंगा, जो कि फ्रांसीसी भीक्षु और पापल घराने के लिए प्रचारक थे। ईटली में किसी ‘नये नास्तिक’ के साथ वह एक सामूहिक वादविवाद में शामिल होने वाले थे।

मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि वह वाद – विवाद में जीतेंगे। उनका जवाब था कि वह नहीं जानते। उन्होंने कहा कि शायद वह हार जाएँ।‘लेकिन’ उन्होंने आगे कहा, ‘वादविवाद में परमेश्वर की महिमा हो सकती है।’

यीशु ने विश्व को उलट पुलट कर दिया। उन्होंने विश्व के मूल्य को उलट दिया। मुख्य रूप से, क्रूस पर, यीशु ने विश्व को ऊपर से नीचे कर दिया। अपमान और दिखने वाली हार के एक कार्य में, उन्होंने महानतम विजय को लाया जो विश्व ने कभी भी नहीं जाना था।

उनके चेलों के बारे में कहा जाता था कि वे ‘जिन्होंने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है’ (प्रेरितों के काम 17:6, एन.आर.एस.व्ही)। आज के हर लेखांश में हम देखते हैं कि यह कैसे काम करता है, और कैसे हार में परमेश्वर को महिमा दी जा सकती है।

बुद्धि

भजन संहिता 118:17-29

17 मैं जीवित रहूँगा, मैं मरूँगा नहीं,
 और जो कर्म यहोवा ने किये हैं, मैं उनका बखान करूँगा।
18 यहोवा ने मुझे दण्ड दिया
 किन्तु मरने नहीं दिया।
19 हे पुण्य के द्वारों तुम मेरे लिये खुल जाओ
 ताकि मैं भीतर आ पाऊँ और यहोवा की आराधना करूँ।
20 वे यहोवा के द्वार है।
 बस केवल सज्जन ही उन द्वारों से होकर जा सकते हैं।
21 हे यहोवा, मेरी विनती का उत्तर देने के लिये तेरा धन्यवाद।
 मेरी रक्षा के लिये मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ।

22 जिसको राज मिस्त्रियों ने नकार दिया था
 वही पत्थर कोने का पत्थर बन गया।
23 यहोवा ने इसे घटित किया
 और हम तो सोचते हैं यह अद्भुत है!
24 यहोवा ने आज के दिन को बनाया है।
 आओ हम हर्ष का अनुभव करें और आज आनन्दित हो जाये!

25 लोग बोले, “यहोवा के गुण गाओ!
 यहोवा ने हमारी रक्षा की है!

26 उस सब का स्वागत करो जो यहोवा के नाम में आ रहे हैं।”
 याजकों ने उत्तर दिया, “यहोवा के घर में हम तुम्हारा स्वागत करते हैं!
27 यहोवा परमेश्वर है, और वह हमें अपनाता है।
 बलि के लिये मेमने को बाँधों और वेदी के कंगूरों पर मेमने को ले जाओ।”

28 हे यहोवा, तू हमारा परमेश्वर है, और मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ।
 मैं तेरे गुण गाता हूँ!
29 यहोवा की प्रशंसा करो क्योंकि वह उत्तम है।
 उसकी सत्य करूणा सदा बनी रहती है।

समीक्षा

दिखने वाली असफलता में परमेश्वर सफलता को ला सकते हैं

जैसे ही मैं अपने जीवन में पीछे की ओर देखता हूँ, परमेश्वर ने कठिनाईयों और हार का इस्तेमाल किसी दिखने वाली सफलता से अधिक किया है।

स्पष्ट रूप से भजनसंहिता के लेखक एक कठिन समय से गुजरे थे। वह लिखते हैं, ‘ परमेश्वर ने मेरी बड़ी ताड़ना तो की है’ (व.18अ, एम.एस.जी)। फिर भी वह धन्यवादिता, स्तुति और आनंद से भरे हुए हैं:’मैं परमेश्वर को धन्यवाद दूँगा’ (व.19)। ‘ आज वह दिन है जो यहोवा ने बनाया है; हम इसमें मगन और आनन्दित हों’ (व.24)।

वह धन्यवादिता से भरे हुए हैं क्योंकि वह देखते हैं कि परमेश्वर दिखने वाली हार में से सफलता लाने में सक्षम हैं। वह लिखते हैं, ‘ राजमिस्त्रियों ने जिस पत्थर को निकम्मा ठहराया था वही कोने का सिरा हो गया है’ (व.22, ए.एम.पी)।

यीशु परमेश्वर के सर्वोच्च उदाहरण हैं जो दिखने वाली असफलता में से सफलता को बाहर निकालते हैं। वे वह पत्थर हैं जिसे मिस्त्रियों ने ठुकरा दिया था, जो अब चर्च के सिरे का पत्थर बन गया है। भजनसंहिता 118 में अपने आपका उल्लेख करते हुए यीशु इस वचन को दोहराते हैं (मरकुस 12:10)। पतरस भी इसे लगाते हैं (1पतरस 2), यह बताते हुए कि यीशु ‘जीवित पत्थर हैं – जिसे मनुष्यों ने नकार दिया और लेकिन परमेश्वर के द्वारा चुना गया था’ (व.4)। अब यीशु चर्च में सिरे का पत्थर हैं, जिस पर संपूर्ण चर्च टिका हुआ है।

भजनसंहिता के लेखक की तरह हमारा उत्तर होना चाहिएः ‘ यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करुणा सदा बनी रहेगी’ (भजनसंहिता 118:29)।

प्रार्थना

परमेश्वर, आपका बहुत धन्यवाद कि आप दिखने वाली असफलता में से सफलता लाते हैं। ‘ हे यहोवा, तू मेरा परमेश्वर है, मैं तेरा धन्यवाद करूँगा; तू मेरा परमेश्वर है, मैं तुझ को सराहूँगा’ (व.28)।

नए करार

कुलुस्सियों 4:2-18

पौलुस की मसीहियों के लिये सलाह

2 प्रार्थना में सदा लगे रहो। और जब तुम प्रार्थना करो तो सदा परमेश्वर का धन्यवाद करते रहो। 3 साथ ही साथ हमारे लिये भी प्रार्थना करो कि परमेश्वर हमें अपने संदेश के प्रचार का तथा मसीह से सम्बन्धित रहस्यपूर्ण सत्य के प्रवचन का अवसर प्रदान करे क्योंकि इसके कारण ही मैं बन्दीगृह में हूँ। 4 प्रार्थना करो कि मैं इसे ऐसे स्पष्टता के साथ बता सकूँ जैसे मुझे बताना चाहिए।

5 बाहर के लोगों के साथ विवेकपूर्ण व्यवहार करो। हर अवसर का पूरा-पूरा उपयोग करो। 6 तुम्हारी बोली सदा मीठी रहे और उससे बुद्धि की छटा बिखरे ताकि तुम जान लो कि किस व्यक्ति को कैसे उत्तर देना है।

पौलुस के साथियों के समाचार

7 हमारा प्रिय बन्धु तुखिकुस जो एक विश्वासी सेवक और प्रभु में स्थित साथी दास है, तुम्हें मेरे सभी समाचार बता देगा। 8 मैं उसे तुम्हारे पास इसलिए भेज रहा हूँ कि तुम्हें उससे हमारे हालचाल का पता चल जाये वह तुम्हारे हृदयों को प्रोत्साहित करेगा। 9 मैं अपने विश्वासी तथा प्रिय बन्धु उनेसिमुस को भी उसके साथ भेज रहा हूँ जो तुम्हीं में से एक है। वे, यहाँ जो कुछ घट रहा है, उसे तुम्हें बतायेंगे।

10 अरिस्तरखुस का जो बन्दीगृह में मेरे साथ रहा है तथा बरनाबास के बन्धु मरकुस का तुम्हें नमस्कार, (उसके विषय में तुम निर्देश पा ही चुके हो कि यदि वह तुम्हारे पास आये तो उसका स्वागत करना), 11 यूसतुस कहलाने वाले यीशु का भी तुम्हें नमस्कार पहुँचे। यहूदी विश्वासियों में बस ये ही परमेश्वर के राज्य के लिये मेरे साथ काम कर रहे हैं। ये मेरे लिये आनन्द का कारण रहे हैं।

12 इपफ्रास का भी तुम्हें नमस्कार पहुँचे। वह तुम्हीं में से एक है और मसीह यीशु का सेवक है। वह सदा बड़ी वेदना के साथ तुम्हारे लिये लगनपूर्वक प्रार्थना करता रहता है कि तुम आध्यात्मिक रूप से सम्पूर्ण बनने के लिये विकास करते रहो। तथा विश्वासपूर्वक परमेश्वर की इच्छा के अनुकूल बने रहो। 13 मैं इसका साक्षी हूँ कि वह तुम्हारे लिये और लौदीकिया तथा हियरापुलिस के रहने वालों के लिये सदा कड़ा परिश्रम करता रहा है। 14 प्रिय चिकित्सक लूका तथा देमास तुम्हें नमस्कार भेजते हैं।

15 लौदीकिया में रहने वाले भाइयों को तथा नमुफास और उस कलीसिया को जो उसके घर में जुड़ती है, नमस्कार पहुँचे। 16 और देखो, पत्र जब तुम्हारे सम्मुख पढ़ा जा चुके, तब इस बात का निश्चय कर लेना कि इसे लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़वा दिया जाये। और लौदीकिया से मेरा जो पत्र तुम्हें मिले, उसे तुम भी पढ़ लेना। 17 अखिप्पुस से कहना कि वह इस बात का ध्यान रखे कि प्रभु में जो सेवा उसे सौंपी गयी है, वह उसे निश्चय के साथ पूरा करे।

18 मैं पौलुस स्वयं अपनी लेखनी से यह नमस्कार लिख रहा हूँ। याद रखना मैं कारागार में हूँ, परमेश्वर का अनुग्रह तुम्हारे साथ रहे।

समीक्षा

आपकी परिस्थितियों के बावजूद परमेश्वर आपका इस्तेमाल कर सकते हैं

कई बार हम बहुत से ‘यदि केवल’ के द्वारा भ्रमित हो जाते हैं। यदि केवल हमारी शादी हो जाती। यदि केवल गलत व्यक्ति से हमारी शादी नहीं होती। यदि केवल हम सही नौकरी में होते। यदि केवल हमें काम पर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। यदि केवल हमारे बच्चे होते। यदि केवल हमारे बहुत सारे बच्चे नहीं होते। यदि केवल हम सही स्थान में रहते...लेकिन परमेश्वर ने पौलुस का इस्तेमाल किया, उनकी परिस्थितियों के बावजूद, और उनके कारण!

पौलुस लिखते हैं, ‘ अवसर को बहुमूल्य समझकर ‘ (व.5, एम.एस.जी)। हम सभी ‘सफल’ नहीं बन सकते हैं लेकिन हम सभी अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकते हैं, हर उस स्थिति में जिसमें हम अपने आपको पाते हैं। पौलुस लिखते हैं कि वे अर्खिप्पुस से कहें, ‘ जो सेवा प्रभु में तुझे सौंपी गई है, उसे सावधानी के साथ पूरी करना’ (व.17, एम.एस.जी)।

पौलुस को असाधारण रीति से वरदान दिए गए थे। विश्व को सुनाने के लिए उनके पास एक महत्वपूर्ण संदेश था। हमने आशा की होती कि परमेश्वर उन्हें अधिकार और सामर्थ के स्थान में रखें ताकि वह सर्वश्रेष्ठ तरीके से अपने वरदान का इस्तेमाल कर सकें और उनके संदेश का प्रचार करें।

किंतु, परमेश्वर ने अंत में उन्हें बंदीगृह में जाने दिया। वह पत्र के अंत में लिखते हैं, ‘ मेरी जंजीरों को स्मरण रखना’ (व.18, ए.एम.पी)। तब भी उनकी दिखने वाली हार में परमेश्वर की महिमा हुई। परमेश्वर ने पौलुस की स्थिति को ऊपर से नीचे कर दिया। लगभग 2000 साल बाद हम उन वचनो को पढ़ रहे हैं जो पौलुस ने लिखे, जब वह बंदीगृह में थे। विश्व को बदलने के लिए परमेश्वर ने उनके वचनो का इस्तेमाल किया।

आपके वचन शक्तिशाली हैं। पौलुस लिखते हैं, ‘ तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए’ (व.6, ए.एम.पी)। यह जानने के लिए बुद्धि के लिए प्रार्थना करें कि कब बोलना है, क्या बोलना है और इसे कैसे बोलना है।

परमेश्वर ने विश्व को बदलने के लिए पौलुस की प्रार्थना का भी इस्तेमाल किया। यहाँ पर हमारी प्राथमिकताओं के विषय में दूसरी चुनौती है। वह लिखते हैं, ‘ प्रार्थना में लगे रहो’। विश्व प्रार्थना को समय बरबाद करने के रूप में देखता है। पौलुस ने इसे हमारे जीवन की उच्च प्राथमिकता के रूप में देखा। वह इपफ्रास की प्रशंसा करते हैं क्योंकि वह ‘ सदा तुम्हारे लिये प्रार्थनाओं में प्रयत्न करता है, ताकि तुम सिध्द होकर पूर्ण विश्वास के साथ परमेश्वर की इच्छा पर स्थिर रहो’ (व.12)।

वह चाहते हैं कि उनके पढ़ने वाले प्रार्थना करें कि ‘ इसके साथ ही साथ हमारे लिये भी प्रार्थना करते रहो कि परमेश्वर हमारे लिये वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल दें, कि हम मसीह के उस भेद का वर्णन कर सकें जिसके कारण मैं कैद में हूँ, और उसे ऐसा प्रकट करूँ, जैसा मुझे करना उचित है’ (वव.3-4)।

यहाँ पर हमारी प्राथमिकता के विषय में दूसरी चुनौती है। पौलुस नहीं चाहते कि वह बड़ी भीड़ के लिए प्रार्थना करें कि वे आए और उन्हें सुने – इसके बजाय वह प्रार्थना करते हैं कि वह स्पष्ट रूप से संदेश का चार कर सकें।

पौलुस नहीं चाहते कि वे बंदीगृह से खुले दरवाजे के लिए प्रार्थना करें, बल्कि सुसमाचार का प्रचार करने के लिए खुले दरवाजे के लिए। भविष्य को देखने के बजाय, जब आप शायद से परमेश्वर की सेवा करने के लिए एक बेहतर स्थिति में होंगे, इस बात पर ध्यान दीजिए कि कैसे आप वर्तमान स्थिति में परमेश्वर की सेवा कर सकते हैं।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि मेरी प्राथमिकताओं को सही से समझूँ –अपने आपको प्रार्थना और सुसमाचार प्रचार के लिए समर्पित करुँ, परिस्थिति चाहे जो भी हो। आज यह जानने के लिए मुझे बुद्धि दीजिए कि कब बोलना है, क्या बोलना है और इसे कैसे बोलना है।

जूना करार

यिर्मयाह 16:1-17:27

विनाश का दिन

16यहोवा का सन्देश मुझे मिला। 2 “यिर्मयाह, तुम्हें विवाह नहीं करना चाहिये। तुम्हें इस स्थान पर पुत्र या पुत्री पैदा नहीं करना चाहिये।”

3 यहूदा देश में जन्म लेने वाले पुत्र—पुत्रियों के बारे में यहोवा यह कहता है, और उन बच्चों के माता—पिता के बारे में जो यहोवा कहता है, वह यह है: 4 “वे लोग भयंकर मृत्यु के शिकार होंगे। उन लोगों के लिये कोई रोएगा नहीं। कोई भी व्यक्ति उन्हें दफनायेगा नहीं। उनके शव जमीन पर गोबर की तरह पड़े रहेंगे। वे लोग शत्रु की तलवार के घाट उतरेंगे या भूखों मरेंगे। उनके शव आकाश के पक्षियों और भूमि के जंगली जानवरों का भोजन बनेंगे।”

5 अत: यहोवा कहता है, “यिर्मयाह, उन घरों में न जाओ जहाँ लोग अन्तिम क्रिया की दावत खा रहे हैं। वहाँ मरे के लिये रोने या अपना शोक प्रकट करने न जाओ। ये सब काम न करो। क्यों क्योंकि मैंने अपना आशीर्वाद वापस ले लिया है। मैं यहूदा के इन लोगों पर दया नहीं करूँगा। मैं उनके लिये अफसोस नहीं करूँगा।” यह सन्देश यहोवा का है।

6 “यहूदा देश में महत्वपूर्ण लोग और साधारण लोग मरेंगे। कोई व्यक्ति उन लोगों को न दफनायेगा न ही उनके लिये रोएगा। इन लोगों के लिये शोक प्रकट करने को न तो कोई अपने को काटेगा और न ही अपने सिर के बाल साफ करायेगा। 7 कोई व्यक्ति उन लोगों के लिये भोजन नहीं लाएगा जो मरे के लिए रो रहे होंगे। जिनके माता पिता मर गए होंगे उन लोगों को कोई व्यक्ति समझाये बुझायेगा नहीं। जो मरे के लिये रो रहे होंगे उन्हें शान्त करने के लिये कोई व्यक्ति दाखमधु नहीं पिलायेगा।”

8 “यिर्मयाह, उस घर में न जाओ जहाँ लोग दावत खा रहे हो। उस घर में न जाओ और उनके साथ बैठकर न खाओ न दाखमधु पीओ। 9 इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिशाली यहोवा यह कहता है: ‘मजा उड़ाने वाले लोगों के शोर को शीघ्र ही मैं बन्द कर दूँगा। विवाह की दावत में लोगों के हँसी मजाक की किलकारियों को मैं बन्द कर दूँगा। यह तुम्हारे जीवनकाल में होगा। मैं ये काम शीघ्रता से करूँगा।’

10 “यिर्मयाह, तुम यहूदा के लोगों को ये बातें बताओगे और लोग तुमसे पूछेंगे, ‘यहोवा ने हम लोगों के लिये इतनी भयंकर बातें क्यों कही हैं हमने क्या गलत काम किया है हम लोगों ने यहोवा अपने परमेश्वर के विरुद्ध कौन सा पाप किया है?’ 11 तुम्हें उन लोगों से यह कहना चाहिये, ‘तुम लोगों के साथ भयंकर घटनायें घटेंगी क्योंकि तुम्हारे पूर्वजों ने मेरा अनुसरण करना छोड़ा और अन्य देवताओं का अनुसरण करना तथा सेवा करना आरम्भ किया। उन्होंने उन अन्य देवताओं की पूजा की। तुम्हारे पूर्वजों ने मुझे छोड़ा और मेरे नियमों का पालन करना त्यागा। 12 किन्तु तुम लोगों ने अपने पूर्वजों से भी अधिक बुरे पाप किये हैं। तुम लोग बहुत हठी हो और तुम केवल वही करते हो जिसे तुम करना चाहते हो। तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं कर रहे हो। 13 अत: मैं तुम्हें इस देश से बाहर निकाल फेंकूँगा। मैं तुम्हें विदेश में जाने को विवश करुँगा। तुम ऐसे देश में जाओगे जिसे तुमने और तुम्हारे पूर्वजों ने कभी नहीं जाना। उस देश में तुम उन सभी असत्य देवताओं की पूजा कर सकते हो जिन्हें तुम चाहते हो। मैं न तो तुम्हारी सहायता करूँगा और न ही तुम्हारे प्रति कोई सहानुभूति दिखाऊँगा।’ यह सन्देश यहोवा का है।

14 “लोग प्रतिज्ञा करते हैं और कहते हैं, ‘यहोवा निश्चय ही शाश्वत है। केवल वही है जो इस्राएल के लोगों को मिस्र देश से बाहर लाया’ किन्तु समय आ रहा है,” जब लोग ऐसा नहीं कहेंगे। यह सन्देश यहोवा का है। 15 लोग कुछ नया कहेंगे। वे कहेंगे, ‘निश्चय ही यहोवा शाश्वत है। वह ही केवल ऐसा है जो इस्राएल के लोगों को उत्तरी देश से ले आया। वह उन्हें उन सभी देशों से लाया जिनमें उसने उन्हें भेजा था।’ लोग ये बातें क्यों कहेंगे क्योंकि मैं इस्राएल के लोगों को उस देश में वापस लाऊँगा जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था।

16 “मैं शीघ्र ही अनेकों मछुवारों को इस देश में आने के लिये बुलाऊँगा।” यह सन्देश यहोवा का है। “वे मछुवारे यहूदा के लोगों को पकड़ लेंगे। यह होने के बाद मैं बहुत से शिकारियों को इस देश में आने के लिये बुलाऊँगा। वे शिकारी यहूदा के लोगों का शिकार हर एक पहाड़, पहाड़ी और चट्टानों की दरारों में करेंगे। 17 मैं वह सब जो वे करते हैं, देखता हूँ। यहूदा के लोग उन कामों को मुझसे छिपा नहीं सकते जिन्हें वे करते हैं। उनके पाप मुझसे छिपे नहीं हैं। 18 मैं यहूदा के लोगों ने जो बुरे काम किये हैं, उसका बदला चुकाऊँगा। मैं हर एक पाप के लिये दो बार उनको दण्ड दूँगा। मैं यह करुँगा क्योंकि उन्होंने मेरे देश को ‘गन्दा’ बनाया है। उन्होंने मेरे देश को भयंकर मूर्तियों से गन्दा किया है। मैं उन देवमूर्तियों से घृणा करता हूँ। किन्तु उन्होंने मेरे देश को अपनी देवमूर्तियों से भर दिया है।”

19 हे यहोवा, तू मेरी शक्ति और गढ़ है।
विपत्ति के समय भाग कर बचने की तू सुरक्षित शरण है।
सारे संसार से राष्ट्र तेरे पास आएंगे।
वे कहेंगे, “हमारे पिता असत्य देवता रखते थे।
उन्होंने उन व्यर्थ देवमूर्तियों की पूजा की,
किन्तु उन देवमूर्तियों ने उनकी कोई सहायता नहीं की।
20 क्या लोग अपने लिये सच्चे देवता बना सकते हैं नहीं,
वे मूर्तियाँ बना सकते हैं, किन्तु वे मूर्तियाँ सचमुच देवता नहीं है।”

21 “अत: मैं उन लोगों को सबक सिखाऊँगा,
जो देवमूर्तियों को देवता बनाते हैं।
अब मैं सीधे अपनी शक्ति और प्रभुता के बारे में शिक्षा दूँगा।
तब वे समझेंगे कि मैं परमेश्वर हूँ। वे जानेंगे कि मेरा नाम यहोवा है।

हृदय पर लिखा अपराध

17“यहूदा के लोगों का पाप वहाँ लिखा है जहाँ से उसे मिटाया नहीं जा सकता।
वे पाप लोहे की कलम से पत्थरों पर लिखे गये थे।
उनके पाप हीरे की नोकवाली कलम से लिखे गए थे,और वह पत्थर उनका हृदय है।
वे पाप उनकी वेदी के सींगों के बीच काटे गए थे।
2 उनके बच्चे असत्य देवताओं को अर्पित की गई वेदी को याद रखते हैं।
वे अशेरा को अर्पित किये गए लकड़ी के खंभे को याद रखते हैं।
वे उन चीज़ों को हरे पेड़ों के नीचे
और पहाड़ियों पर याद करते हैं।
3 वे उन चीजों को खुले स्थान के पहाड़ों पर याद करते हैं।
यहूदा के लोगों के पास सम्पत्ति और खजाने हैं।
मैं उन चीज़ों को दूसरे लोगों को दूँगा।
मैं तुम्हारे देश के सभी उच्च स्थानों को नष्ट करुँगा।
तुमने उन स्थानों पर पूजा करके पाप किया है।
4 तुम उस भूमि को खोओगे जिसे मैंने तुम्हें दी।
मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हें उनके दास की तरह
उस भूमि में ले जाने दूँगा जिसके बारे में तुम नहीं जानते।
क्यों क्योंकि मैं बहुत क्रोधित हूँ।
मेरा क्रोध तप्त अग्नि सा है,
और तुम सदैव के लिये जल जाओगे।”

जनता में विश्वास एवं परमेश्वर में विश्वास

5 यहोवा यह सब कहता है,
“जो लोग केवल दूसरे लोगों में विश्वास करते हैं
उनका बुरा होगा।
जो शक्ति के लिये केवल दूसरों के सहारे रहते हैं
उनका बुरा होगा।
क्यों क्योंकि उन लोगों ने यहोवा पर विश्वास करना छोड़ दिया है।
6 वे लोग मरुभूमि की झाड़ी की तरह हैं।
वह झाड़ी उस भूमि पर है जहाँ कोई नहीं रहता।
वह झाड़ी गर्म और सूखी भूमि में है।
वह झाड़ी खराब मिट्टी में है।
वह झाड़ी उन अच्छी चीज़ों को नहीं जानती जिन्हें परमेश्वर दे सकता हैं।

7 “किन्तु जो व्यक्ति यहोवा में विश्वास करता है,
आशीर्वाद पाएगा।
क्यों क्योंकि यहोवा उसको ऐसा दिखायेगा कि
उन पर विश्वास किया जा सके।
8 वह व्यक्ति उस पेड़ की तरह शक्तिशाली होगा
जो पानी के पास लगाया गया हो।
उस पेड़ की लम्बी जड़ें होती हैं जो पानी पाती हैं।
वह पेड़ गर्मी के दिनों से नहीं डरता
इसकी पत्तियाँ सदा हरी रहती हैं।
यह वर्ष के उन दिनों में परेशान नहीं होता जब वर्षा नहीं होती।
उस पेड़ में सदा फल आते हैं।

9 “व्यक्ति का दिमाग बड़ा कपटी होता है।
दिमाग बहुत बीमार भी हो सकता है
और कोई भी व्यक्ति दिमाग को ठीक ठीक नहीं समझता।
10 किन्तु मैं यहोवा हूँ और मैं व्यक्ति के हृदय को जान सकता हूँ।
मैं व्यक्ति के दिमाग की जाँच कर सकता हूँ।
अत: मैं निर्णय कर सकता हूँ कि हर एक व्यक्ति को क्या मिलना चाहिये
मैं हर एक व्यक्ति को उसके लिये ठीक भुगतान कर सकता हूँ जो वह करता है।

11 कभी कभी एक चिड़िया उस अंडे से बच्चा निकालती है
जिसे उसने नहीं दिया।
वह व्यक्ति जो धन के लिये ठगता है,
उस चिड़िया के समान है।
जब उस व्यक्ति की आधी आयु समाप्त होगी
तो वह उस धन को खो देगा।
अपने जीवन के अन्त में यह स्पष्ट हो जाएगा कि
वह एक मूर्ख व्यक्ति था।”

12 आरम्भ ही से हमारा मन्दिर परमेश्वर के लिये
एक गौरवशाली सिंहासन था।
यह एक बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है।
13 हे यहोवा, तू इस्राएल की आशा है।
हे यहोवा, तू अमृत जल के सोते के समान है।
यदि कोई तेरा अनुसरण करना छोड़ेगा
तो उसका जीवन बहुत घट जाएगा।

यिर्मयाह की तीसरी शिकायत

14 हे यहोवा, यदि तू मुझे स्वस्थ करता है,
मैं सचमुच स्वस्थ हो जाऊँगा।
मेरी रक्षा कर, और मेरी सचमुच रक्षा हो जायेगी।
हे यहोवा, मैं तेरी स्तुति करता हूँ!
15 यहूदा के लोग मुझसे प्रश्न करते रहते हैं।
वे पूछते रहते हैं, “यिर्मयाह, यहोवा के यहाँ का सन्देश कहाँ है?
हम लोग देखें कि सन्देश सत्य प्रमाणित होता है”

16 हे यहोवा, मैं तुझसे दूर नहीं भागा,
मैंने तेरा अनुसरण किया है।
तूने जैसा चाहा वैसा गडेरिया मैं बना।
मैं नहीं चाहता कि भयंकर दिन आएं।
यहोवा तू जानता है जो कुछ मैंने कहा।
जो हो रहा है, तू सब देखता है।
17 हे यहोवा, तू मुझे नष्ट न कर।
मैं विपत्ति के दिनों में तेरा आश्रित हूँ।
18 लोग मुझे चोट पहुँचा रहे हैं।
उन लोगों को लज्जित कर।
किन्तु मुझे निराश न कर।
उन लोगों को भयभीत होने दो।
किन्तु मुझे भयभीत न कर।
मेरे शत्रुओं पर भयंकर विनाश का दिन ला उन्हें तोड़ और उन्हें फिर तोड़।

सब्त दिवस को पवित्र रखना

19 यहोवा ने मुझसे ये बातें कहीं, “यिर्मयाह, जाओ और यरूशलेम के जन—द्वार पर खड़े हो जाओ, जहाँ से यहूदा के राजा अन्दर आते और बाहर जाते हैं। मेरे लोगों को मेरा सन्देश दो और तब यरूशलेम के अन्य सभी द्वारों पर जाओ और यही काम करो।”

20 उन लोगों से कहो: “यहोवा के सन्देश को सुनो। यहूदा के राजाओं, सुनो। यहूदा के तुम सभी लोगों, सुनो। इस द्वार से यरूशलेम में आने वाले सभी लोगों, मेरी बात सुनो। 21 यहोवा यह बात कहता है: इस बात में सावधान रहो कि सब्त के दिन सिर पर बोझ लेकर न चलो और सब्त के दिन यरूशलेम के द्वारों से बोझ न लाओ। 22 सब्त के दिन अपने घरों से बोझ बाहर न ले जाओ। उस दिन कोई काम न करो। मैंने यही आदेश तुम्हारे पूर्वजों को दिया था। 23 किन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने मेरे इस आदेश का पालन नहीं किया। उन्होंने मेरी ओर ध्यान नहीं दिया। तुम्हारे पूर्वज बहुत हठी थे। मैंने उन्हें दण्ड दिया किन्तु इसका कोई अच्छा फल नहीं निकला। उन्होंने मेरी एक न सुनी। 24 किन्तु तुम्हें मेरी आज्ञा का पालन करने में सावधान रहना चाहिये।” यह सन्देश यहोवा का है। “तुम्हें सब्त के दिन यरूशलेम के द्वारों से बोझ नहीं लाना चाहिये। तुम्हें सब्त के दिन को पवित्र दिन बनाना चाहिये। तुम, उस दिन कोई भी काम नहीं करोगे।

25 “‘यदि तुम इस आदेश का पालन करोगे तो राजा जो दाऊद के सिंहासन पर बैठेंगे, यरूशलेम के द्वारों से आएंगे। वे राजा अपने रथों और घोड़ों पर सवार होकर आएंगे। यहूदा और इस्राएल के लोगों के प्रमुख उन राजाओं के साथ होंगे। यरूशलेम नगर में सदैव रहने वाले लोग यहाँ होंगे। 26 यहूदा के नगरों से लोग यरूशलेम आएंगे। लोग यरूशलेम को उन छोटे गाँवों से आएंगे जो इसके चारों ओर हैं। लोग उस प्रदेश से आएंगे जहाँ बिन्यामीन का परिवार समूह रहता है। लोग पश्चिमी पहाड़ की तराइयों तथा पहाड़ी प्रदेशों से आएंगे और लोग नेगव से आएंगे। वे सभी लोग होमबलि, बलि, अन्नबलि, सुगन्धि और धन्यवाद भेंट लेकर आएंगे। वे उन भेंटों और बलियों को यहोवा के मन्दिर को लाएंगे।

27 “‘किन्तु यदि तुम मेरी बात नहीं सुनते और मेरे आदेश को नहीं मानते तो बुरी घटनायें होंगी। यदि तुम सब्त के दिन यरूशलेम के द्वार से बोझ ले जाते हो तब तुम उसे पवित्र दिन नहीं रखते। इस दशा में मैं ऐसे आग लगाऊँगा जो बुझाई नहीं जा सकती। वह आग यरूशलेम के द्वारों से आरम्भ होगी और महलों को भी जला देगी।”

समीक्षा

परमेश्वर ‘बदतर समय’ को ‘सर्वश्रेष्ठ’ समय बना सकते हैं

‘यह सर्वश्रेष्ठ समय था, यह बदतर समय था।’ यह चार्ल्स डिकेन के नॉवेल के आरंभिक वचन थे, जिसका नाम था, ‘दो शहरों की कहानी’ (1859), फ्रेंच क्रांति के पहले और इसके दौरान लंदन और पेरिस में स्थापित।

फिर से, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर दिखने वाली हार में महिमा पा सकते हैं। ‘सूखे का वर्ष’ ‘फलदायी वर्ष’ बन सकता है (17:8)। बुरे समय चर्च के लिए अच्छे समय बन सकते हैं। अच्छा समाचार चमकता रहता है जैसे ही समाज अंधकार में जाता रहता है।

रिक वॉरन बताते हैं कि, ‘1930 की (महंगाई) में, दो चीजें बढ़ गईः थिएटर में लोगों की संख्या और चर्च में लोगों की संख्या।’ लोग पलायन करने का प्रयास कर रहे थे और वे अर्थ को खोज रहे थे। अभी अर्थव्यवस्था बहुत कठिन है। यह सच में एक अच्छी वस्तु है। यह समय है कि हम विस्तारित हो और आगे बढ़े, नाकि हम पीछे हट जाए।

यह इस लेखांश में व्यक्त की गई है। यिर्मयाह आने वाले न्याय के बारे में चेतावनी देते हैं क्योंकि लोग परमेश्वर की आज्ञा मानने के बजाय अपने बुरे हृदय की उद्दंडता के पीछे चल रहे थे (16:12)। वह हमें अपने आपको धोखा देने के विरूद्ध चिताते हैं:’ मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है’ (17:9)।

हम आसानी से अपने आपको धोखा दे सकते हैं। यदि हमें कुछ चाहिए, तो हमारा दिमाग अनेक कारण बताता है कि क्यों हमारे पास यह होना चाहिए। हम आसानी से अपने आपको निर्दोष ठहरा सकते हैं यहाँ तक कि जब हम गलत कर रहे होते हैं।

यही कारण है कि हमें परमेश्वर के करीब रहने की आवश्यकता है (व.7, एम.एस.जी)। हमें नियमित रूप से परमेश्वर के वचन और मसीह समुदाय की बुद्धि से अपने आपको जाँचने की आवश्यकता है, वरना हम गलत स्थानों में भरोसा करना शुरु कर सकते हैं। परमेश्वर कहते हैं, ‘श्रापित है वह पुरुष जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, और उसका सहारा लेता है, जिसका मन यहोवा से भटक जाता है’ (व.5)।

दूसरी ओर, वह कहते हैं, ‘ धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्वर को अपना आधार माना हो। वह उस पेड़ के समान होगा जो नदी के किनारे लगा हो और उसकी जड़ जल के पास फैली हो; जब धूप होगी तब उसको न लगेगी, उसके पत्ते हरे रहेंगे,और सूखे वर्ष में भी उनके विषय में कुछ चिन्ता न होगी, क्योंकि वह तब भी फलता रहेगा’ (वव.7-8)।

फिर से, परमेश्वर चीजों को ऊपर से नीचे कर देते हैं। ‘जब गरमी आती है’ हम आशा करते हैं कि पेड़ के पत्ते सूख जाएँगे और भूरे हो जाएँगे। फिर भी क्योंकि पेड़ नदी के किनारे लगाया गया है इसकी जड़े पानी की धारा में फैलती हैं और इसके पत्ते हमेशा हरे रहते हैं। भजनसंहिता के लेखक बताते हैं यह उस व्यक्ति की तरह है जो परमेश्वर पर भरोसा रखता है, जो उन पर निर्भर रहता है, वह व्यक्ति न तो डरेगा नाही चिंता करेगा, जब परेशानी आती है।

आपके जीवन में ऐसे समय होते हैं, जब ‘कठिनाई’ बढ़ जाती है। कठिन परिस्थितियों और चुनौतियों के द्वारा आप जाँचे जाते हैं। यदि आप परमेश्वर के नजदीक रहेंगे, उनमें भरोसा करते हुए, तो परमेश्वर चीजों को ऊपर से नीचे कर सकते हैं। ‘धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्वर को अपना आधार माना हो’ (व.7)।

प्रार्थना

प्रभु यीशु, आपने दिखने वाली हार में से सफलता को लाया। आपका धन्यवाद कि मैं आप पर भरोसा कर सकता हूँ यहाँ तक कि जब परिस्थितियाँ मेरे विरूद्ध दिखाई देती हैं। मैं आज आपमें भरोसा रखता हूँ और आपको अपना आधार मानता हूँ।

पिप्पा भी कहते है

यिर्मयाह 17:7

‘धन्य है वह पुरुष जो यहोवा पर भरोसा रखता है, जिसने परमेश्वर को अपना आधार माना हो ‘

भरोसा है अपने आपको या किसी स्थिति को परमेश्वर को देने की क्षमता, कुछ भी अपने पास रखे बिना। यह एक माता-पिता की बाँहों में एक बच्चे की तरह है, जो कभी कभी संदेह नहीं करते कि वे सुरक्षित हैं या नहीं।

चार्ल्स डिकन, दो शहरों की कहानी (पेन्गुविन क्लासिक, 2003)

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संदर्भ

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