दिन 285

और ज्यादा

बुद्धि नीतिवचन 24:23-34
नए करार 1 थिस्सलुनीकियों 4:1-18
जूना करार यिर्मयाह 23:9-25:14

परिचय

डेम एडना एवरेज (बॅरी हम्फरीज) की आत्मकथा का शीर्षक है ‘कृपया ज्यादा’। वह लिखते हैं कि ये दो शब्द, ‘कृपया ज्यादा’, उनके प्रथम तर्कसंगत शब्द थे।

वह आगे कहते हैं, ‘मैं हमेशा और ज्यादा चाहता था। मेरे पास कभी पर्याप्त दूध या पैसा या सॉक्स या यौन-संबंध या छुट्टियाँ या प्रथम प्रकाशन या अकेलापन या ग्रैमफोन रेकॉर्ड या मुफ्त भोजन या सच्चे मित्र या पछतावाहीन आनंद या नेकटाई या तालियाँ या निसंदेह प्रेम नहीं मिला। निश्चित ही, मेरे पास हमेशा इन चीजों में मेरे भाग से ज्यादा था लेकिन यह हमेशा मुझे अपरिपूर्णता का धुँधला एहसास देते था: विश्राम कहाँ था?’

अपने आपके लिए आनंद को खोजने का प्रयास करना हमेशा हमें ‘ अपरिपूर्णता का धुँधला एहसास’ देता है। आज के लेखांश में हम देखते हैं कि हमारी आत्मिक भूख और प्यास को क्या चीज तृप्त करेगी, और वे चीजे जिन्हें हमें ज्यादा से ज्यादा खोजने का प्रयास करना चाहिए। पौलुस विशेष रूप से दो चीजों के बारे में बताते हैं:’परमेश्वर को अधिकाधिक प्रसन्न करने’ के लिए जान (1 थिस्सलुनिकियो 4:1), और ‘एक दूसरे से अधिकाधिक प्रेम करना’ (वव.9-10)।

बुद्धि

नीतिवचन 24:23-34

कुछ अन्य सुक्तियाँ

23 ये सुक्तियाँ भी बुद्धिमान जनों की है:

 न्याय में पक्षपात करना उचित नहीं है।
24 ऐसा जन जो अपराधी से कहता है,
 “तू निरपराध है” लोग उसे कोसेंगे और जातियाँ त्याग देंगी।
25 किन्तु जो अपराधी को दण्ड देंगे,
 सभी जन उनसे हर्षित रहेंगे और उनपर आर्शीवाद की वर्षा होगी।

26 निर्मल उत्तर से मन प्रसन्न होता है,
 जैसे अधरों पर चुम्बन अंकित कर दे।

27 पहले बाहर खेतों का काम पूरा कर लो
 इसके बाद में तुम अपना घर बनाओ।

28 अपने पड़ोसी के विरुद्ध बिना किसी कारण साक्षी मत दो।
 अथवा तुम अपनी वाणी का किसी को छलने में मत प्रयोग करो।
29 मत कहो ऐसा, “उसके साथ मैं भी ठीक वैसा ही करूँगा,
 मेरे साथ जैसा उसने किया है; मैं उसके साथ जैसे को तैसा करूँगा।”

30 मैं आलसी के खेत से होते हुए गुजरा जो अंगूर के बाग के निकट था
 जो किसी ऐसे मनुष्य का था,
 जिसको उचित—अनुचित का बोध नहीं था।
31 कंटीली झाड़ियाँ निकल आयीं थी हर कहीं खरपतवार से खेत ढक गया था।
 और बाड़ पत्थर की खंडहर हो रही थी।
32 जो कुछ मैंने देखा, उस पर मन लगा कर सोचने लगा।
 जो कुछ मैंने देखा, उससे मुझको एक सीख मिली।
33 जरा एक झपकी, और थोड़ी सी नींद, थोड़ा सा सुस्ताना,
 धर कर हाथों पर हाथ। (दरिद्रता को बुलाना है)
34 वह तुझ पर टूट पड़ेगी जैसे कोई लुटेरा टूट पड़ता है,
 और अभाव तुझ पर टूट पड़ेगा जैसे कोई शस्त्र धारी टूट पड़ता है।

समीक्षा

परमेश्वर से और अधिक बुद्धि

‘बुद्धि’ परमेश्वर की ओर से आती है और यह बहुत ही प्रायोगिक है। ‘बुद्धिमानों के वचन’ (व.23) हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में बताते हैं। यहाँ पर हम कुछ उदाहरण देखते हैं:

1. न्याय में पक्षपात न करन

’न्याय में पक्षपात करना, किसी रीति भी अच्छा नहीं’ (व.23ब)। जो सही न्याय चुकाते हैं, ‘ उत्तम से उत्तम आशीर्वाद उन पर आता है’ (व.25)।

2. ईमानदारी से बोलिये

’जो सीधा उत्तर देता है, वह होठों को चूमता है’ (व.26)। कभी कभी प्रेम में सच बोलना मुश्किल होता है, लेकिन हमें एक दूसरे के प्रति ईमानदार बनने की आवश्यकता है।

3. ईमानदार बने रहिये

’व्यर्थ अपने पड़ोसी के विरुध्द साक्षी न देना, और न उसको फुसलाना’ (व.28, एम.एस.जी)। कोई भी आपके सामने सच्चा बना रह सकता है लेकिन जो लोग आपके पीछे सच्चे बने रहते हैं, उन्हीं से अंतर पड़ता है।

4. संयम दिखाईये

जिन्होंने हमें नुकसान पहुँचाया है, उनसे बदला लेने का बहुत प्रलोभन आता है। किंतु, नीतिवचन की पुस्तक हमें बदला लेने के विरूद्ध चेतावनी देती हैः’ मत कह, ‘जैसा उसने मेरे साथ किया वैसा ही मैं भी उसके साथ करूँगा; और उसको उसके काम के अनुसार बदला दूँगा’ (व.29)।

5. कठिन परिश्रम कीजिए

नीतिवचन की पुस्तक अक्सर आलसपन के विरूद्ध चेतावनी देती है। ‘ छोटी से नींद, एक और झपकी, थोड़ी देर हाथ पर हाथ रख के और लेटे रहना, तब तेरा कंगालपन डाकू के समान, और तेरी घटी हथियारबन्द मनुष्य के समान आ पड़ेगी ‘ (वव.33-34)।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि बुद्धि में बढूँ – पक्षपात न करने में, ईमानदारी, वफादारी, संयम में –ताकि अधिकाधिक मैं वह जीवन जीऊँ जिससे आप प्रसन्न होते हैं।

नए करार

1 थिस्सलुनीकियों 4:1-18

परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन

4हे भाईयों, अब मुझे तुम्हें कुछ और बातें बतानी हैं। यीशु मसीह के नाम पर हम तुमसे प्रार्थना एवं निवेदन करते हैं कि तुमने हमसे जिस प्रकार उपदेश ग्रहण किया है, तुम्हें परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए उसी के अनुसार चलना चाहिए। निश्चय ही तुम उसी प्रकार चल भी रहे हो। किन्तु तुम वैसे ही और अधिक से अधिक करते चलो। 2 क्योंकि तुम यह जानते हो कि प्रभु यीशु के अधिकार से हमने तुम्हें क्या निर्देश दिए हैं। 3 और परमेश्वर की यही इच्छा है कि तुम उससे पवित्र हो जाओ, व्यभिचारों से दूर रहो, 4 अपने शरीर की वासनाओं पर नियन्त्रण रखना सीखो-ऐसे ढंग से जो पवित्र है और आदरणीय भी। 5 न कि उस वासना पूर्ण भावना से जो परमेश्वर को नहीं जानने वाले अधर्मियों की जैसी है। 6 यह भी परमेश्वर की इच्छा है कि इस विषय में कोई अपने भाई के प्रति कोई अपराध न करे या कोई अनुचित लाभ न उठाये, क्योंकि ऐसे सभी पापों के लिए प्रभु दण्ड देगा जैसा कि हम तुम्हें बता ही चुके हैं और तुम्हें सावधान भी कर चुके हैं। 7 परमेश्वर ने हमें अपवित्र बनने के लिए नहीं बुलाया है बल्कि पवित्र बनने के लिए बुलाया है। 8 इसलिए जो इस शिक्षा को नकारता है वह किसी मनुष्य को नहीं नकार रहा है बल्कि परमेश्वर को ही नकार रहा है। उस परमेश्वर को जो तुम्हें अपनी पवित्र आत्मा भी प्रदान करता है।

9 अब तुम्हें तुम्हारे भाई बहनों के प्रेम के विषय में भी लिखा जाये, इसकी तुम्हें आवश्यकता नहीं है क्योंकि परमेश्वर ने स्वयं तुमको एक दूसरे के प्रति प्रेम करने की शिक्षा दी है। 10 और वास्तव में तुम अपने सभी भाईयों के साथ समूचे मकिदुनिया में ऐसा ही कर भी रहे हो। किन्तु भाइयों! हम तुमसे ऐसा ही अधिक से अधिक करने को कहते हैं।

11 शांतिपूर्वक जीने को आदर की वस्तु समझो। अपने काम से काम रखो। स्वयं अपने हाथों से काम करो। जैसा कि हम तुम्हें बता ही चुके हैं। 12 इससे कलीसिया से बाहर के लोग तुम्हारे जीने के ढंग का आदर करेंगे। इससे तुम्हें किसी भी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।

प्रभु का लौटना

13 हे भाईयों, हम चाहते हैं कोई जो चिर-निद्रा में सो गए हैं, तुम उनके विषय में भी जानो ताकि तुम्हें उन औरों के समान, जिनके पास आशा नहीं है, शोक न करना पड़े। 14 क्योंकि यदि हम यह विश्वास करते हैं कि यीशु की मृत्यु हो गयी और वह फिर से जी उठा, तो उसी प्रकार जिन्होंने उसमें विश्वास करते हुए प्राण त्याग दिए हैं, उनके साथ भी परमेश्वर वैसा ही करेगा। और यीशु के साथ वापस ले जायेगा।

15 जब प्रभु का फिर से आगमन होगा तो हम जो जीवित हैं और अभी यहीं हैं उनसे आगे नहीं निकल पाएँगे जो मर चुके हैं। 16 क्योंकि स्वर्गदूतों का मुखिया जब अपने ऊँचे स्वर से आदेश देगा तथा जब परमेश्वर का बिगुल बजेगा तो प्रभु स्वयं स्वर्ग से उतरेगा। उस समय जिन्होंने मसीह में प्राण त्यागे हैं, वे पहले उठेंगे। 17 उसके बाद हमें जो जीवित हैं, और अभी भी यहीं हैं उनके साथ ही हवा में प्रभु से मिलने के लिए बादलों के बीच ऊपर उठा लिए जायेंगे और इस प्रकार हम सदा के लिए प्रभु के साथ हो जायेंगे। 18 अतः इन शब्दों के साथ एक दूसरे को उत्साहित करते रहो।

समीक्षा

परमेश्वर को और ज्यादा प्रसन्न करना

‘केवल नंबर एक को खोजने’ – अपने आपके लिए अधिकाधिक आनंद चाहने के बजाय – हम ऐसा जीवन जीने के लिए बुलाए गए हैं जो परमेश्वर को प्रसन्न करता है (व.1)। ‘कृपया ज्यादा’ के बजाय, हमें ऐसा जीवन जीना चाहिए जो ‘परमेश्वर को और ज्यादा प्रसन्न करता हो।’ हम परमेश्वर से ‘अधिकाधिक’ प्रेम करने और दूसरों से ‘अधिकाधिक’ प्रेम करने के लिए बुलाए गए हैं (व.10)। आप यह कैसे करते हैं?

1. अपने देह का सम्मान कीजिए

परमेश्वर आपकी देह और आपकी आत्मा के बारे में चिंता करते हैं:’अपनी देह की सराहना करना और इसे सम्मान देना सीखो’ (व.4, एम.एस.जी)। पौलुस लिखते हैं,‘ और तुम में से हर एक पवित्रता और आदर के साथ अपनी पत्नी को प्राप्त करना जाने, और यह काम अभिलाषा से नहीं, और न उन जातियों के समान जो परमेश्वर को नहीं जानती’ (वव.4-5)।

2. एक सुंदर जीवन जीओ

’परमेश्वर ने हमें अशुध्द होने के लिये नहीं, परन्तु पवित्र होने के लिये बुलाया है’ (व.7) -’पवित्र और सुंदर –अंदर से और बाहर से सुंदर’ (व.7, एम.एस.जी)। सच्ची सुंदरता का रूप से कोई लेना-देना नहीं है। यह इसके विषय में है कि आप अंदर से कैसे हैं। पवित्र बनाए जाने की प्रक्रिया ‘पवित्र’ आत्मा के कार्य के द्वारा होती है। परमेश्वर ‘आपको उनका पवित्र आत्मा देते हैं’ (व.8) इस उद्देश्य के लिए।

3. एक दूसरे से प्रेम करो

पौलुस लिखते हैं, ‘ भाईचारे की प्रीति के विषय में यह आवश्यक नहीं कि मैं तुम्हारे पास कुछ लिखूँ, क्योंकि आपस में प्रेम रखना तुम ने आप ही परमेश्वर से सीखा है’ (व.9)। ‘इसमें बेहतर बनते जाओ’ (व.10, एम.एस.जी)।

4. अपने काम पर ध्यान दो

पौलुस लिखते हैं कि हमें ना केवल अभिलाषी होना है – परंतु हमें एक शांत जीवन जीने और परिश्रमी होने के लिए अभिलाषी होना है। यह पढ़ना चकित करता है, विशेषत: महान चीजें दी गई हैं, जो पौलुस ने परमेश्वर के लिए की हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि जीवन की छोटी दिखने वाली चीजों में एक गहरा महत्व है। पौलुस निश्चित रूप से हमें ‘अपना कामकाज’ करने के लिए कहते हैं (व.11)। कानाफूसी होती है जब आप जानकारी को बाँट रहे हैं और आप ना तो परेशानी का भाग है नाही समाधान का भाग है। निश्चित ही, ऐसा एक समय होता है जब हमें शामिल होने और दूसरों की सहायता करने की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन हमें दूसरों के काम में दखल देते हुए घूमने की आवश्यकता नहीं है।

5. यदि आप कर सकते हैं, तो एक नौकरी कीजिए

पौलुस लिखते हैं, ‘ जैसी हम ने तुम्हें आज्ञा दी है, वैसे ही चुपचाप रहने और अपना – अपना काम काज करने और अपने अपने हाथों से कमाने का प्रयत्न करो; ताकि बाहरवालो से आदर प्राप्त करो, और तुम्हें किसी वस्तु की घटी न हो’ (वव.11-12)। कुछ के लिए, जैसे कि घर पर रहने वाले माता-पिता, उनका काम घर में है। दूसरे घर से बाहर काम करते हैं, अपने परिवार की सहायता करने के लिए पैसे कमाते हुए। सामान्य नियम है कि यदि हो सके तो हमें एक नौकरी पाने की कोशिश करनी चाहिए और हमारी सहायता के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। शायद से कुछ लोग सहायता के लिए मसीह की देह पर निर्भर हो – जैसे कि वे जो बिना वेतन के पूर्ण समय सेवकाई में हैं। लेकिन यह अपवाद है, नियम के बजाय।

6. एक अनंत आशा का आनंद लें

कोई भी तब तक अच्छी तरह से नहीं जी सकते जब तक वे अच्छी तरह से मर नहीं सकते हैं। मृत्यु दूसरा विषय है, जिसके प्रति हम अलग व्यवहार रखने के लिए बुलाए गए हैं। निश्चित ही, हम शोक करते हैं जब कोई मरता है। लेकिन पौलुस कहते हैं कि हमें ‘बाकियों की तरह शोक नहीं करना चाहिए, जिनके पास कोई आशा नहीं है’ (व.13) क्योंकि ‘ यदि हम विश्वास करते हैं कि यीशु मरे और जी उठे, तो वैसे ही परमेश्वर उन्हें भी जो यीशु में सो गए हैं, उसी के साथ ले आएंगे’ (व.14, एम.एस.जी)।

मृत्यु अंत नहीं है। पौलुस कह रहे हैं कि जैसे यीशु मर गए और मृत्यु में से जी उठे, उसी तरह से हम विश्वास करते हैं कि पुनरुत्थान में परमेश्वर उनके साथ उन सभी को लायेंगे जो सो गए हैं। यहाँ पर पौलुस एक अलग शब्द का इस्तेमाल करते हैं –जबकि यीशु हमारे लिए मर गए, हम कभी मरेंगे नहीं, हम केवल ‘सो जाएँगे’ (वव.13,15)।

’प्रभु से मिलने के लिए’ हम यीशु के साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे (व.17अ) और हम एक दूसरे के साथ मिल जाएँगेः’उनके साथ उठा लिये जाएँगे’ (व.17अ) - ‘एक बड़े परिवार का पुनर्गठन’ (एम.एस.जी)। ना केवल आप सर्वदा के लिए प्रभु के साथ होंगे (व.17ब), लेकिन आप उनके साथ भी होंगे ‘जो मसीह में सो गए हैं’ (व.14)। बहुत से लोग केवल आशाहीन अंत देखते हैं, लेकिन आपके पास एक अनंत आशा है। ‘इन वचनो से एक दूसरे को उत्साहित करो और स्मरण दिलाओ’ (व.18)।

प्रार्थना

परमेश्वर, एक पवित्र जीवन जीने में मेरी सहायता कीजिए। आपके पवित्र आत्मा के लिए आपका धन्यवाद जो मुझमें काम करते हैं, और जो मेरी सहायता करते हैं कि ऐसा जीवन जीऊं जो आपको अधिकाधिक प्रसन्न करता है। मेरी दुर्बलता में मेरी सहायता कीजिए। मेरी सहायता कीजिए प्रेम, यौन-संबंध में शुद्धता, सही अभिलाषा और आशा और प्रोत्साहन का जीवन जीने में। होने दीजिए कि मैं मसीह की समानता में बदल जाऊँ।

जूना करार

यिर्मयाह 23:9-25:14

झूठे नबियों के विरुद्ध न्याय

9 नबियों के लिये सन्देश है:
“मैं बहुत दु:खी हूँ, मेरा हृदय विदीर्ण हो गया है।
मेरी सारी हड्डियाँ काँप रही हैं।
मैं (यिर्मयाह) मतवाले के समान हूँ।
क्यों यहोवा और उसके पवित्र सन्देश के कारण।
10 यहूदा देश ऐसे लोगों से भरा है
जो व्यभिचार का पाप करते हैं।
वे अनेक प्रकार से अभक्त हैं।
यहोवा ने भूमि को अभिशाप दिया और वह बहुत सूख गई।
पौधे चरगाहों में सूख रहे हैं और मर रहे हैं।
खेत मरुभूमि से हो गए हैं।
नबी पापी हैं, वे नबी अपने प्रभाव
और अपनी शक्ति का उपयोग गलत ढंग से करते हैं।
11 “नबी और याजक तक भी पापी हैं।
मैंने उन्हें अपने मन्दिर में पाप करते देखा है।”
यह सन्देश यहोवा का है।
12 अत: मैं उन्हें अपना सन्देश देना बन्द करुँगा।
यह ऐसा होगा मानो वे अन्धकार में चलने को विवश किये गए हों।
यह ऐसा होगा मानो नबियों और याजकों के लिये फिसलन वाली सड़क हो।
उस अंधेरी जगह में वे नबी और याजक गिरेंगे। मैं उन पर आपत्तियाँ ढाऊँगा।
उस समय मैं उन नबियों और याजकों को दण्ड दूँगा।”
यह सन्देश यहोवा का है।

13 “मैंने शोमरोन के नबियों को कुछ बुरा करते देखा।
मैंने उन नबियों को झूठे बाल देवता के नाम भविष्यवाणी करते देखा।
उन नबियों ने इस्राएल के लोगों को यहोवा से दूऱ भटकाया।
14 मैंने यहूदा के नबियों को यरूशलेम में बहुत भयानक कर्म करते देखा।
इन नबियों ने व्यभिचार करने का पाप किया।
उन्होंने झूठी शिक्षाओं पर विश्वास किया, और उन झूठे उपदेशों को स्वीकार किया।
उन्होंने दुष्ट लोगों को पाप करते रहने के लिये उत्साहित किया।
अत: लोगों ने पाप करना नहीं छोड़ा।
वे सभी लोग सदोम नगर की तरह हैं।
यरूशलेम के लोग मेरे लिये अमोरा नगर के समान हैं।”

15 अत: सर्वशक्तिमान यहोवा नबियों के बारे में ये बातें कहता है,
“मैं उन नबियों को दण्ड दूँगा।
वह दण्ड विषैला भोजन पानी खाने पीने जैसा होगा।
नबियों ने आध्यात्मिक बीमारी उत्पन्न की और वह बीमारी पूरे देश में फैल गई।
अत: मैं उन नबियों को दण्ड दूँगा।
वह बीमारी यरूशलेम में नबियों से आई।”

16 सर्वशक्तिमान यहोवा यह सब कहता है:
“वे नबी तुमसे जो कहें उसकी अनसुनी करो।
वे तुम्हें मूर्ख बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं।
वे नबी अर्न्तदर्शन करने की बात करते हैं।
किन्तु वे अपना अर्न्तदर्शन मुझसे नहीं पाते।
उनका अर्न्तदर्शन उनके मन की उपज है।
17 कुछ लोग यहोवा के सच्चे सन्देश से घृणा करते हैं।
अत: वे नबी उन लोगों से भिन्न भिन्न कहते हैं।
वे कहते हैं, ‘तुम शान्ति से रहोगे।
कुछ लोग बहुत हठी हैं।
वे वही करते हैं जो वे करना चाहते हैं।’
अत: वे नबी कहते हैं, ‘तुम्हारा कुछ भी बुरा नहीं होगा।’
18 किन्तु इन नबियों में से कोई भी स्वर्गीय परिषद में सम्मिलित नहीं हुआ है।
उनमें से किसी ने भी यहोवा के सन्देश को न देखा है न ही सुना है।
उनमें से किसी ने भी यहोवा के सन्देश पर गम्भीरता से ध्यान नहीं दिया है।
19 अब यहोवा के यहाँ से दण्ड आँधी की तरह आएगा।
यहोवा का क्रोध बवंडर की तरह होगा।
यह उन दुष्ट लोगों के सिरों को कुचलता हुआ आएगा।
20 यहोवा का क्रोध तब तक नहीं रूकेगा जब तक वे जो करना चाहते हैं, पूरा न कर लें।
जब वह दिन चला जाएगा तब तुम इसे ठीक ठीक समझोगे।
21 मैंने उन नबियों को नहीं भेजा।
किन्तु वे अपने सन्देश देने दौड़ पड़े।
मैंने उनसे बातें नहीं की।
किन्तु उन्होंने मेरे नाम के उपदेश दिये।
22 यदि वे मेरी स्वर्गीय परिषद में सम्मिलित हुए होते तो उन्होंने यहूदा के लोगों को मेरा सन्देश दिया होता।
उन्होंने लोगों को बुरे कर्म करने से रोक दिया होता।
उन्होंने लोगों को पाप कर्म करने से रोक दिया होता।”

23 यह सन्देश यहोवा का है।
“मैं परमेश्वर हूँ, यहाँ वहाँ और सर्वत्र।
मैं बहुत दूर नहीं हूँ।
24 कोई व्यक्ति किसी छिपने के स्थान में अपने को मुझसे छिपाने का प्रयत्न कर सकता है।
किन्तु उसे देख लेना मेरे लिये सरल है।
क्यों क्योंकि मैं स्वर्ग और धरती दोनों पर सर्वत्र हूँ!”

यहोवा ने ये बातें कहीं। 25 “ऐसे नबी हैं जो मेरे नाम पर झूठा उपदेश देते हैं। वे कहते हैं, ‘मैंने एक स्वप्न देखा है! मैंने एक स्वप्न देखा है!’ मैंने उन्हें वे बातें करते सुना है। 26 यह कब तक चलता रहेगा वे नबी झूठ ही का चिन्तन करते हैं और तब वे उस झूठ का उपदेश लोगों को देते हैं। 27 ये नबी प्रयत्न करते हैं कि यहूदा के लोग मेरा नाम भूल जायें। वे इस काम को, आपस में एक दूसरे से कल्पित स्वप्न कहकर कर रहे हैं। ये लोग मेरे लोगों से मेरा नाम वैसे ही भुलवा देने का प्रयत्न कर रहे हैं जैसे उनके पूर्वज मुझे भूल गए थे। उनके पूर्वज मुझे भूल गए और उन्होंने असत्य देवता बाल की पूजा की। 28 मूसा वह नहीं है जो गेहूँ है। ठीक उसी प्रकार उन नबियों के स्वप्न मेरे सन्देश नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने स्वप्नों को कहना चाहता है तो उसे कहने दो। किन्तु उस व्यक्ति को मेरे सन्देश को सच्चाई से कहने दो जो मेरे सन्देश को सुनता है। 29 मेरा सन्देश ज्वाला की तरह है। यह उस हथौड़े की तरह है जो चट्टान को चूर्ण करता है। यह सन्देश यहोवा का है।”

30 “इसलिए मैं झूठे नबियों के विरुद्ध हूँ। क्योंकि वे मेरे सन्देश को एक दूसरे से चुराने में लगे रहते हैं।” यह सन्देश यहोवा का है। 31 “वे अपनी बात कहते हैं और दिखावा यह करते हैं कि वह यहोवा का सन्देश है। 32 मैं उन झूठे नबियों के विरुद्ध हूँ जो झूठे स्वप्न का उपदेश देते हैं।” यह सन्देश यहोवा का है। “वे अपने झूठ और झूठे उपदेशों से मेरे लोगों को भटकाते हैं। मैंने उन नबियों को लोगों को उपदेश देने के लिये नहीं भेजा। मैंने उन्हें अपने लिये कुछ करने का आदेश कभी नहीं दिया। वे यहूदा के लोगों की सहायता बिल्कुल नहीं कर सकते।” यह सन्देश यहोवा का है।

यहोवा से दु:खपूर्ण सन्देश

33 “यहूदा के लोग, नबी अथवा याजक तुमसे पूछ सकते हैं, ‘यिर्मयाह, यहोवा की घोषणा क्या है?’ तुम उन्हें उत्तर दोगे और कहोगे, ‘तुम यहोवा के लिये दुर्वह भार हो और मैं यहोवा उस दुर्वह भार को नीचे पटक दूँगा।’ यह सन्देश यहोवा का है।

34 “कोई नबी या कोई याजक अथवा संभवत: लोगों में से कोई कह सकता है, ‘यह यहोवा से घोषणा है।’ उस व्यक्ति ने यह झूठ कहा, अत: मैं उस व्यक्ति और उसके पूरे परिवार को दण्ड दूँगा। 35 जो तुम आपस में एक दूसरे से कहोगे वह यह है: ‘यहोवा ने क्या उत्तर दिया?’ या ‘यहोवा ने क्या कहा?’ 36 किन्तु तुम पुन: इस भाव को कभी नहीं दुहराओगे। यहोवा की घोषणा (दुर्वह भार)। यह इसलिये कि यहोवा का सन्देश किसी के लिये दुर्वह भार नहीं होना चाहिये। किन्तु तुमने हमारे परमेश्वर के शब्द को बदल दिया। वह सजीव परमेश्वर है अर्थात् सर्वशक्तिमान यहोवा।

37 “यदि तुम परमेश्वर के सन्देश के बारे में जानना चाहते हो तब किसी नबी से पूछो, ‘यहोवा ने तुम्हें क्या उत्तर दिया?’ या ‘यहोवा ने क्या कहा?’ 38 किन्तु यह न कहो, ‘यहोवा के यहाँ से घोषणा (दुर्वह भार) क्या है?’ यदि तुम इन शब्दों का उपयोग करोगे तो यहोवा तुमसे यह सब कहेगा, ‘तुम्हें मेरे सन्देश को “यहोवा के यहाँ से घोषणा” (दुर्वह भार) नहीं कहना चाहिये था। मैंने तुमसे उन शब्दों का उपयोग न करने को कहा था। 39 किन्तु तुमने मेरे सन्देश को दुर्वह भार कहा, “अत: मैं तुम्हें एक दुर्वह भार की तरह उठाऊँगा और अपने से दूर पटक दूँगा। मैंने तुम्हारे पूर्वजों को यरूशलेम नगर दिया था। किन्तु अब मैं तुम्हें और उस नगर को अपने से दूर फेंक दूँगा। 40 मैं सदैव के लिए तुम्हें कलंकित बना दूँगा। तुम कभी अपनी लज्जा को नहीं भूलोगे।’”

अच्छे अंजीर और बुरे अंजीर

24यहोवा ने मुझे ये चीज़ें दिखाई: यहोवा के मन्दिर के सामने मैंने सजी दो अंजीर की टोकरियाँ देखीं। (मैंने इस अर्न्तदर्शन को बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर द्वारा यकोन्याह को बन्दी बना लिये जाने के बाद देखा। यकोन्याह राजा यहोयाकीम का पुत्र था। यकोन्याह और उसके बड़े अधिकारी यरूशलेम से दूर पहुँचा दिये गए थे। वे बाबुल पहुँचाये गए थे। नबूकदनेस्सर यहूदा के सभी बढ़इयों और धातुकारों को ले गया था।) 2 एक टोकरी में बहुत अच्छे अंजीर थे। वे उन अंजीरों की तरह थे जो मौसम के आरम्भ में पकते हैं। किन्तु दूसरी टोकरी में सड़े गले अंजीर थे। वे इतने अधिक सड़े गले थे कि उन्हें खाया नहीं जा सकता था।

3 यहोवा ने मुझसे कहा, “यिर्मयाह, तुम क्या देखते हो”

मैंने उत्तर दिया, “मैं अंजीर देखता हूँ। अच्छे अंजीर बहुत अच्छे हैं। और सड़े गले अंजीर बहुत ही सड़े गले हैं। वे इतने सड़े गले हैं कि खाये नहीं जा सकते।”

4 तब यहोवा का सन्देश मुझे मिला। 5 इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, ने कहा, “यहूदा के लोग अपने देश से ले जाए गए। उनका शत्रु उन्हें बाबुल ले गया। वे लोग इन अच्छे अंजीरों की तरह होंगे। मैं उन लोगों पर दया करुँगा। 6 मैं उनकी रक्षा करूँगा। मैं उन्हें यहूदा देश में वापस लाऊँगा। मैं उन्हें चीर कर फेंकूँगा नहीं, मैं फिर उनका निर्माण करुँगा। मैं उन्हें उखाड़ूँगा नहीं अपितु रोपूँगा जिससे वे बढ़े। 7 मैं उन्हें अपने को समझने की इच्छा रखने वाला बनाऊँगा। वे समझेंगे कि मैं यहोवा हूँ। वे मेरे लोग होंगे और मैं उनका परमेश्वर। मैं यह करूँगा क्योंकि वे बाबुल के बन्दी पूरे हृदय से मेरी शरण में आएंगे।

8 “किन्तु यहूदा का राजा सिदकिय्याह उन अंजीरों की तरह है जो इतने सड़े गले हैं कि खाये नहीं जा सकते। सिदकिय्याह उसके बड़े अधिकारी, वे सभी लोग जो यरूशलेम में बच गए है, और यहूदा के वे लोग जो मिस्र में रह रहें हैं उन सड़े गले अंजीरों की तरह होंगे।

9 “मैं उन लोगों को दण्ड दूँगा। वह दण्ड पृथ्वी के सभी लोगों का हृदय दहला देगा। लोग यहूदा के लोगों का मजाक उड़ायेंगे। लोग उनके विषय में हँसी उड़ाएंगे। लोग उन्हें उन सभी स्थानों पर अभिशाप देंगे जहाँ उन्हें मैं बिखेरुँगा। 10 मैं उनके विरुद्ध तलवारें, भूखमरी और बीमारियाँ भेजूँगा। मैं उन पर तब तक आक्रमण करुँगा जब तक कि वे सभी मर नहीं जाते। तब मे भविष्य में उस भूमि पर नहीं रहेंगे जिसे मैंने इनको तथा इनके पूर्वजों को दिया था।”

यिर्मयाह के उपदेश का सार

25यह वह सन्देश है, जो यहूदा के सभी लोगों से सम्बन्धित, यिर्मयाह को मिला। यह सन्देश यहोयाकीम के यहूदा में राज्यकाल के चौथे वर्ष में आया। यहोयाकीम योशिय्याह का पुत्र था। राजा के रूप में उसके राज्यकाल का चौथा वर्ष वही था जो बाबुल में नबूकदनेस्सर का पहला वर्ष था। 2 यह वही सन्देश है जिसे यिर्मयाह नबी ने यहूदा के लोगों और यरूशलेम के लोगों को दिया।

3 मैंने इन गत तेईस वर्षों में यहोवा के सन्देशों को तुम्हें बार—बार दिया है। मैं यहूदा के राजा आमोन के पुत्र योशिय्याह के राज्यकाल के तेरहवें वर्ष से नबी हूँ। मैंने उस समय से आज तक यहोवा के यहाँ से सन्देशों को तुम्हें दिया है। किन्तु तुमने उसे अनसुना किया है। 4 यहोवा ने अपने सेवक नबियों को तुम्हारे पास बार—बार भेजा है। किन्तु तुमने उन्हें अनसुना किया है। तुमने उनकी ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया है।

5 उन नबियों ने कहा, “अपने जीवन को बदलो। उन बुरे कामों को करना छोड़ो। यदि तुम बदल जाओगे, तो तुम उस भूमि पर वापस लौट और रह सकोगे जिसे यहोवा ने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को बहुत पहले दी थी। उसने यह भूमि तुम्हें सदैव रहने को दी। 6 अन्य देवताओं का अनुसरण न करो। उनकी सेवा या उनकी पूजा न करो। उन मूर्तियों की पूजा न करो जिन्हें कुछ लोगों ने बनाया है। वह मुझे तुम पर केवल क्रोधित करता है। यह करना तुम्हें केवल चोट पहुँचाता है।”

7 “किन्तु तुमने मेरी अनसुनी की।” यह सन्देश यहोवा का है। “तुमने उन मूर्तियों की पूजा की जिन्हें कुछ लोगों ने बनाया और उसने मुझे क्रोधित किया और उसने तुम्हें केवल चोट पहुँचाई।”

8 अत: सर्वशक्तिमान यहोवा यह कहता है, “तुमने मेरे सन्देश को अनसुना किया है। 9 अत: मैं उत्तर के सभी परिवार समूहों को शीघ्र बुलाऊँगा।” यह सन्देश यहोवा का है। “मैं शीघ्र ही बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को भेजूँगा। वह मेरा सेवक है। मैं उन लोगों को यहूदा देश और यहूदा के लोगों के विरुद्ध बुलाऊँगा। मैं उन्हें तुम्हारे चारों ओर के पड़ोसी राष्ट्रों के विरुद्ध भी लाऊँगा। मैं उन सभी देशों को नष्ट करुँगा। मैं उन देशों को सदैव के लिये सूनी मरुभूमि बना दूँगा। लोग उन देशों को देखेंगे और जिस बुरी तरह से वे नष्ट हुए हैं उस पर सीटी बजाएंगे। 10 मैं उन स्थानों पर सुख और आनन्द की किलोलों को बन्द कर दूँगा। वहाँ भविष्य में दुल्हा—दुल्हनों की उमंग भरी हँसी ठिठोली न होगी। मैं चक्की चलाने लोगों के गीतों को दूर कर दूँगा। मैं दीपकों का उजाला खत्म करूँगा। 11 वह सारा क्षेत्र ही सूनी मरुभूमि होगा। वे सारे लोग बाबुल के राजा के सत्तर वर्ष तक दास होंगे।

12 “किन्तु जब सत्तर वर्ष बीत जाएंगे तो मैं बाबुल के राजा को दण्ड दूँगा। मैं बाबुल राष्ट्र को दण्ड दूँगा।” यह सन्देश यहोवा का है। “मैं कसदियों के देश को उनके पाप के लिये दण्ड दूँगा। मैं उस देश को सदैव के लिये मरुभूमि बनाऊँगा। 13 मैंने कहा है कि बाबुल पर अनेक विपत्तियाँ आएंगी। वे सभी चीज़ें घटित होंगी। यिर्मयाह ने उन विदेशी राज्यों के बारे में उपदेश दिया और वे सभी चेतावनियाँ इस पुस्तक में लिखी हैं। 14 हाँ बाबुल के लोगों को कई राष्ट्रों और कई बड़े राजाओं की सेवा करनी पड़ेगी। मैं उन्हें उसके लिए उनको उचित दण्ड दूँगा जो सब वे करेंगे।”

समीक्षा

परमेश्वर से अधिक सुनना

परमेश्वर बोलते हैं। आप और मैं परमेश्वर के वचनो को सुनते हैं। यह बाईबल को बहुत शक्तिशाली बनाता है ‘ यहोवा की यह भी वाणी है, क्या मेरा वचन आग सा नहीं है? फिर क्या ऐसा हथौड़ा नहीं जो पत्थर को फोड़ डाले?’ (23:29)।

यिर्मयाह ने ‘पवित्र वचन’ कहे (व.9) परमेश्वर के लोगों से और उनके लीडर्स को डांटा क्योंकि वे पवित्र जीवन नहीं जी रहे थेः’यह देश व्यभिचारियों से भरा है’ और लीडर्स ‘जो अन्याय के साथ अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हैं’ (व.10)। वह उन पर व्यभिचार और पाखण्ड का आरोप लगाते हैं (व.14, एम.एस.जी)। वह उन्हें मन फिराने के लिए कहते हैं (25:5-6)।

उनकी परेशानी की जड़ है कि वे परमेश्वर की बात नहीं सुनते, ‘तुमने सुनना अस्वीकार कर दिया’ (व.7, एम.एस.जी)।

परमेश्वर यिर्मयाह के द्वारा पूछते हैं, ‘ भला कौन यहोवा की गुप्त सभा में खड़ा होकर उसका वचन सुनने और समझने पाया है, या किसने ध्यान देकर मेरा वचन सुना है?’ (23:18)। ‘ ये भविष्यवक्ता बिना मेरे भेजे दौड़ जाते और बिना मेरे कुछ कहे भविष्यवाणी करने लगते हैं। यदि ये मेरी शिक्षा में स्थिर रहते, तो मेरी प्रजा के लोगों को मेरे वचन सुनाते; और वे अपनी बुरी चाल और कामों से फिर जाते’ (वव.21-22, एम.एस.जी)।

यदि आप परमेश्वर के वचन को सुनते हैं और उन्हें बोलते हैं, तो वे एक बहुत ही शक्तिशाली प्रभाव बनायेंगेः’यदि किसी भविष्यवक्ता ने स्वप्न देखा हो, तो वह उसे बताए, परन्तु जिस किसी ने मेरा वचन सुना हो तो वह मेरा वचन सच्चाई से सुनाए। ...क्या मेरा वचन आग सा नहीं है? फिर क्या ऐसा हथौड़ा नहीं जो पत्थर को फोड़ डाले?’ (वव.28-29, एम.एस.जी)।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि ज्यादा से ज्यादा समय आपके वचन को सुनते हुए बिताऊँ। आपका धन्यवाद कि बाईबल के वचन बहुत शक्तिशाली हैं – आग की तरह और एक हथौड़े की तरह जो चट्टान को तोड़ देता है। आपका धन्यवाद क्योंकि जैसे ही मैं इसका अध्ययन करता हूँ, यह मेरे हृदय की चट्टान को तोड़ता है और बदलाव और शुद्धिकरण की प्रक्रिया को शुरु करता है। ऐसा एक जीवन जीने में मेरी सहायता कीजिए जो आपको अधिकाधिक भाता हो और अधिकाधिक प्रेमी और पवित्र हो।

पिप्पा भी कहते है

1 थिस्सलुनिकियो 4:11

‘ और जैसी हम ने तुम्हें आज्ञा दी है, वैसे ही चुपचाप रहने और अपना – अपना काम काज करने और अपने अपने हाथों से कमाने का प्रयत्न करो’।

‘एक शांत जीवन’ जीने के लिए यह एक व्यस्त दिन है, लेकिन मैं अपना सर्वश्रेष्ठ करुंगी!

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संदर्भ

बॅरी हम्फरीज, कृपया ज्यादाः एक आत्मकथा, (पेन्गविन बुक्स, 1993)।

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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