मेरे जीवन का सबसे बड़ा निर्णय
परिचय
फरवरी 1974 में, मैं अपने जीवन में सबसे बड़े निर्णय के सामने खड़ा था। नया नियम पढ़ने के द्वारा मैं आश्वस्त था कि यीशु सच में परमेश्वर के पुत्र हैं। लेकिन मैं एक मसीह नहीं बनना चाहता था क्योंकि मुझे डर था कि मैं अपनी स्वतंत्रता को खो दूंगा। विश्वास के साथ जो अंतिम चीज़ मैंने जोड़ी वह प्रेम और स्वतंत्रता थी। मैंने विश्वास को मेरी स्वतंत्रता के खो देने से जोड़ा। मैंने सोचा कि परमेश्वर चाहेंगे कि मैं उन सभी चीज़ों को करना बंद करुं जो मजेदार थी और जिनका मैं आनंद लेता था। असल में, विश्वास का वह आरंभिक कार्य, जो मेरे जीवन का सबसे बड़ा निर्णय था, इसने स्वतंत्रता और प्रेम के एक जीवन को लाया। प्रेम, विश्वास और स्वतंत्रता अलग ना किये जा सकने वाले रूप में जुड़े हुए हैं।
भजन संहिता 119:41-48
वाव्
41 हे यहोवा, तू सच्चा निज प्रेम मुझ पर प्रकट कर।
मेरी रक्षा वैसे ही कर जैसे तूने वचन दिया।
42 तब मेरे पास एक उत्तर होगा। उनके लिये जो लोग मेरा अपमान करते हैं।
हे यहोवा, मैं सचमुच तेरी उन बातों के भरोसे हूँ जिनको तू कहता है।
43 तू अपनी शिक्षाएँ जो भरोसे योग्य है, मुझसे मत छीन।
हे यहोवा, तेरे विवेकपूर्ण निर्णयों का मुझे भरोसा है।
44 हे यहोवा, मैं तेरी शिक्षाओं का पालन सदा
और सदा के लिये करूँगा।
45 सो मैं सुरक्षित जीवन जीऊँगा।
क्यों मैं तेरी व्यवस्था को पालने का कठिन जतन करता हूँ।
46 यहोवा के वाचा की चर्चा मैं राजाओं के साथ करूँगा
और वे मुझे संकट में कभी न डालेंगे।
47 हे यहोवा, मुझे तेरी व्यवस्थाओं का मनन भाता है।
तेरी व्यवस्थाओं से मुझको प्रेम है।
48 हे यहोवा, मैं तेरी व्यवस्थाओं के गुण गाता हूँ,
वे मुझे प्यारी हैं और मैं उनका पाठ करूँगा।
समीक्षा
परमेश्वर के वचन पर भरोसा कीजिए
‘ हे यहोवा, आपकी करुणा और आपका किया हुआ उध्दार, आपके वचन के अनुसार, मुझ को भी मिले’ (व.41अ), भजनसंहिता के लेखक चिल्ला उठते हैं जैसे ही वह भजनसंहिता 119 के इस भाग की शुरुवात करते हैं। ‘आपके प्रेम को, मेरे जीवन को आकार देने दें’ (व.41अ, एम.एस.जी)। प्रेम की एक प्रतिक्रिया के साथ इसका अंत होता हैः’क्योंकि मैं आपकी आज्ञाओं से प्रीति रखता हूँ। मैं आपकी आज्ञाओं की ओर जिनसे मैं प्रीति रखता हूँ, हाथ फैलाउँगा, और आपकी विधियों पर ध्यान करूँगा’ (वव.47-48, एम.एस.जी)।
इसी बीच, वह परमेश्वर के वचन में अपने विश्वास के बारे में बताते हैं। वह कहते हैं, ‘ तब मैं अपनी नामधराई करने वालो को कुछ उत्तर दे सकूँगा, क्योंकि मेरा भरोसा, आपके वचन पर है’ (व.42)। भरोसा और विश्वास लगभग समानार्थी हैं।
आज विश्वास के लोगों को ताना मारा जाता है, जैसा कि हमेशा से होता आया है। लेकिन, चाहे जो हो, परमेश्वर के वचन में निरंतर भरोसा करते रहिए। यह भरोसा हमें सक्षम करता है कि निर्भीकता के साथ तानो का जवाब दें।
परमेश्वर से माँगिये कि आप पर उनके असफल न होने वाले प्रेम को अधिकाधिक प्रकट करें (व.41)। प्रेम में उत्तर दीजिए (वव.47-48), भरोसा, आशा और आज्ञाकारिता में उत्तर दें (वव.42-44)। बाईबल के द्वारा परमेश्वर के मार्गो को खोजिये और आप सच्ची स्वतंत्रता को पायेंगे और कह पायेंगे, ‘ और मैं चौड़े स्थान में चला फिरा करूँगा, क्योंकि मैंने आपके उपदेशों की सुधि रखी है’ (व.45, एम.एस.जी)।
प्रार्थना
परमेश्वर, होने दीजिए कि आज मैं आपके असफल न होने वाले प्रेम का अनुभव करुँ और उन सभी को प्रेम के साथ उत्तर दूं जिनसे मैं मिलता हूँ और जिनसे मैं बात करता हूँ। जैसे ही मैं आपमें और आपके वचन पर भरोसा करता हूँ, होने दीजिए कि मै स्वतंत्रता में चलूं।
1 तीमुथियुस 1:1-20
1पौलुस की ओर से, जो हमारे उद्धार करने वाले परमेश्वर और हमारी आशा मसीह यीशु के आदेश से मसीह यीशु का प्रेरित बना है,
2 तीमुथियुस को जो विश्वास में मेरा सच्चा पुत्र है,
परम पिता परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह, दया और शांति प्राप्त हो।
झूठे उपदेशों के विरोध में चेतावनी
3 मकिदुनिया जाते समय मैंने तुझसे जो इफिसुस में ठहरे रहने को कहा था, मैं अब भी उसी आग्रह को दोहरा रहा हूँ। ताकि तू वहाँ कुछ लोगों को झूठी शिक्षाएँ देते रहने, 4 काल्पनिक कहानियों और अनन्त वंशावलियों पर जो लड़ाई-झगड़ों को बढ़ावा देती हैं और परमेश्वर के उस प्रयोजन को सिद्ध नहीं होने देती, जो विश्वास पर टिका है, ध्यान देने से रोक सके। 5 इस आग्रह का प्रयोजन है वह प्रेम जो पवित्र हृदय, उत्तम चेतना और छल रहित विश्वास से उत्पन्न होता है। 6 कुछ लोग तो इन बातों से छिटक कर भटक गये हैं और बेकार के वाद-विवादों में जा फँसे हैं। 7 वे व्यवस्था के विधान के उपदेशक तो बनना चाहते हैं, पर जो कुछ वे कह रहे हैं या जिन बातों पर वे बहुत बल दे रहे हैं, उन तक को वे नहीं समझते।
8 हम अब यह जानते हैं कि यदि कोई व्यवस्था के विधान का ठीक ठीक प्रकार से प्रयोग करे, तो व्यवस्था उत्तम है। 9 अर्थात् यह जानते हुए कि व्यवस्था का विधान धर्मियों के लिये नहीं बल्कि उद्दण्डों, विद्रोहियों, अश्रद्धालुओं, पापियों, अपवित्रों, अधार्मिकों, माता-पिता के मार डालने वालों हत्यारों, 10 व्यभिचारियों, समलिंग कामुको, शोषण कर्ताओं, मिथ्या वादियों, कसम तोड़ने वालों या ऐसे ही अन्य कामों के लिए हैं, जो उत्तम शिक्षा के विरोध में हैं। 11 वह शिक्षा परमेश्वर के महिमामय सुसमाचार के अनुकूल है। वह सुधन्य परमेश्वर से प्राप्त होती है। और उसे मुझे सौंपा गया है।
परमेश्वर के अनुग्रह का धन्यवाद
12 मैं हमारे प्रभु यीशु मसीह का धन्यवाद करता हूँ। मुझे उसी ने शक्ति दी है। उसने मुझे विश्वसनीय समझ कर अपनी सेवा में नियुक्त किया है। 13 यद्यपि पहले मैं उसका अपमान करने वाला, सताने वाला तथा एक अविनीत व्यक्ति था किन्तु मुझ पर दया की गयी क्योंकि एक अविश्वासी के रूप में यह नहीं जानते हुए कि मैं क्या कुछ कर रहा हूँ, मैंने सब कुछ किया 14 और प्रभु का अनुग्रह मुझे बहुतायत से मिला और साथ ही वह विश्वास और प्रेम भी जो मसीह यीशु में है।
15 यह कथन सत्य है और हर किसी के स्वीकार करने योग्य है कि यीशु मसीह इस संसार में पापियों का उद्धार करने के लिए आया है। फिर मैं तो सब से बड़ा पापी हूँ। 16 और इसलिए तो मुझ पर दया की गयी। कि मसीह यीशु एक बड़े पापी के रूप में मेरा उपयोग करते हुए आगे चल कर जो लोग उसमें विश्वास ग्रहण करेंगे, उनके लिए अनन्त जीवन प्राप्ति के हेतु एक उदाहरण के रूप में मुझे स्थापित कर अपनी असीम सहनशीलता प्रदर्शित कर सके। 17 अब उस अनन्द सम्राट अविनाशी अदृश्य एक मात्र परमेश्वर का युग युगान्तर तक सम्मान और महिमा होती रहे। आमीन!
18 मेरे पुत्र तीमुथियुस, भविष्यवक्ताओं के वचनों के अनुसार बहुत पहले से ही तेरे सम्बन्ध में जो भविष्यवाणीयाँ कर दी गयी थीं, मैं तुझे ये आदेश दे रहा हूँ, ताकि तू उनके अनुसार 19 विश्वास और उत्तम चेतना से युक्त हो कर नेकी की लड़ाई लड़ सके। कुछ ऐसे हैं जिनकी उत्तम चेतना और विश्वास नष्ट हो गये हैं। 20 हुमिनयुस और सिकंदर ऐसे ही हैं। मैंने उन्हें शैतान को सौंप दिया है ताकि उन्हें परमेश्वर के विरोध में परमेश्वर की निन्दा करने से रोकने का पाठ पढ़ाया जा सके।
समीक्षा
अपने सच्चे विश्वास को पकड़े रहिये
पौलुस प्रेरित तीमुथियुस को यीशु मसीह में विश्वास में लाने के लिए उत्तरदायी थे और इस तरह से, तीमुथि के आत्मिक पिता थे। किसी भी अच्छे पिता की तरह, पौलुस तिमुथी के बारे में चिंता करते हैं और उनके लिए सर्वश्रेष्ठ चाहते हैं। उन्होंने तीमुथी का वर्णन किया, जिसके लिए यह पत्र लिखा गया है, ‘विश्वास में अपने सच्चे पुत्र’ के रूप में (व.2)।
तीमुथी एक लीडर, पास्टर और शिक्षक भी बन गए थे। पौलुस उन्हें लीडरशिप के विषय में निर्देश देते हैं और कैसे चर्च में परेशानियों से निपटना है। आज हमारे लिए इन सबका बड़ा महत्व है।
परमेश्वर का कार्य विश्वास के द्वारा है (व.4): ‘ आज्ञा का सारांश यह है कि शुध्द मन और अच्छे विवेक, और कपटरहित विश्वास से प्रेम उत्पन्न हो’ (व.5)। प्रेम और विश्वास को हमेशा एक साथ जाना चाहिए।
पौलुस विभिन्न पापों के बारे में बताते हैं जिन्हें किसी भी कीमत पर दूर रखना चाहिए (वव.8-11)। इनमें हैं दास का व्यापार करना (व.10)। दासत्व स्वतंत्रता का विरूद्धार्थी है और लोगों की तस्करी करना एक घिनौना काम है।
पौलुस अपनी खुद की गवाही बताते हैं जिसमें विश्वास, प्रेम और स्वतंत्रता मिले हुए हैं। ‘ मैं तो पहले निन्दा करने वाला, और सताने वाला, और अन्धेर करने वाला था’ (व.13)। वह अपने आपको ‘बड़ा पापी’ कहते हैं (व.16)।
यह बात मुझे आकर्षित करती है कि कैसे पौलुस प्रेरित अपना वर्णन करते हैं:
सबसे पहले, उन्होंने अपना वर्णन किया, ‘ मैं प्रेरितों में सब से छोटा हूँ, वरन प्रेरित कहलाने के योग्य भी नहीं’ (1कुरिंथियो 15:9)।
बाद में, वह कहते हैं, ‘ मैं जो सब पवित्र लोगों में से छोटे से भी छोटा हूँ’ (इफीसियो 3:8)।
अब, वह अपने आपको ‘सबसे बड़ा पापी’ कहते हैं (1तीमुथियुस 1:16)।
ऐसा लगता है कि जितना अधिक वह परमेश्वर के साथ अपने संबंध में बढ़ते हैं और मसीह के प्रकाश के समीप आते हैं, उतना ही अधिक वह अपनी अयोग्यता को देखते हैं। मैं सोचता हूँ कि यह अक्सर सच है कि जैसे ही हम मसीह जीवन में आगे बढ़ते हैं, पाप के प्रति हमारी जागरुकता बढ़ती है और परमेश्वर की क्षमा, प्रेम और दया के प्रति हमारी सराहना बढ़ती है।
सच्ची आत्मग्लानि एक बुरी भावना नहीं है - यह मन फिराव और क्षमा से आती है। पी.टी. फार्सिथ ने एक बार कहा, ‘हमारे चर्च अच्छे, दयालु लोगों से भरे हुए हैं जिन्होंने आत्मग्लानि के दुख या क्षमा के आश्चर्य को कभी नहीं जाना है।’
यीशु मसीह हमें मुक्त करते हैं:’ मसीह यीशु पापियों का उध्दार करने के लिये जगत में आए, जिनमें सब से बड़ा मैं हूँ’ (व.15)। उद्धार का अर्थ है स्वतंत्रता; यह अनुग्रह के कारण आया। अपने भूतकाल में मत भटकिये। इसके बजाय अपनी वर्तमान स्वतंत्रता और अनुग्रह का उत्सव मनाईये, जिसने इसने लाया हैः’ और हमारे प्रभु का अनुग्रह उस विश्वास और प्रेम के साथ जो मसीह यीशु में है, बहुतायत से हुआ’ (व.14, एम.एस.जी)।
मसीह प्रेम हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम में से उमड़ता है, जो कि पवित्र आत्मा के द्वारा आपके हृदय में ऊंडेला गया है (रोमियो 5:5)। फिर भी यह एक भावना से बढ़कर है। मसीह प्रेम हमारी भावनाओं का शिकार नहीं बल्कि हमारी इच्छा का सेवक है।
पौलुस दूसरों के लिए एक उदाहरण बन गए जो यीशु मसीह में विश्वास करेंगे और अनंत जीवन ग्रहण करेंगे (1तीमुथियुस 1:16)। ‘उनमें विश्वास करना’ विश्वास का एक कार्य है।
विश्वास के इस आरंभिक कार्य में विश्वास के एक जीवन की आवश्यकता है। इसलिए, पौलुस तीमुथी को चिताते हैं कि ‘अच्छी कुश्ती लड़, विश्वास को पकड़े रह’ (वव.18-19)। वह दूसरों को चेतावनी देते हैं जिनके ‘विश्वास रूपी जहाज डूब गए’ (व.19)। यह सलाह हम सभी के लिए इस महत्व को याद दिलाती है कि ‘पौलुस के चालचलन पर चले’ और ‘एक तीमुथी को प्रशिक्षित करें’।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद कि यद्यपि पौलुस ‘सबसे बड़े पापी’ थे, आपने उन्हें स्वतंत्र किया कि प्रेम का एक जीवन जीएँ। आपका धन्यवाद कि आप इसे मेरे लिए भी कर सकते हैं और उन सभी के लिए जो यीशु में विश्वास करते हैं।
यिर्मयाह 32:26-34:22
26 तब यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला: 27 “यिर्मयाह, मैं यहोवा हूँ। मैं पृथ्वी के हर एक व्यक्ति का परमेश्वर हूँ। यिर्मयाह, तुम जानते हो कि मेरे लिये कुछ भी असंभव नहीं है।” 28 यहोवा ने यह भी कहा, “मैं शीघ्र ही यरूशलेम नगर को बाबुल की सेना और बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को दे दूँगा। वह सेना नगर पर अधिकार कर लेगी। 29 बाबुल की सेना पहले से ही यरूशलेम नगर पर आक्रमण कर रही है। वे शीघ्र ही नगर में प्रवेश करेंगे और आग लगा देंगे। वे इस नगर को जला कर राख कर देंगे। इस नगर में ऐसे मकान हैं जिनमें यरूशलेम के लोगों ने असत्य देवता बाल को छतों पर बलि भेंट दे कर मुझे क्रोधित किया है और लोगों ने अन्य देवमूर्तियों को मदिरा भेंट चढ़ाई। बाबुल की सेना उन मकानों को जला देगी। 30 मैंने इस्राएल और यहूदा के लोगों पर नजर रखी है। वे जो कुछ करते हैं, बुरा है। वे तब से बुरा कर रहे हैं जब से वे युवा थे। इस्राएल के लोगों ने मुझे बहुत क्रोधित किया। उन्होंने मुझे क्रोधित किया क्योंकि उन्होंने उन देवमूर्तियों की पूजा की जिन्हें उन्होंने अपने हाथों से बनाया।” यह सन्देश यहोवा का है। 31 “जब से यरूशलेम नगर बसा तब से अब तक इस नगर के लोगों ने मुझे क्रोधित किया है। इस नगर ने मुझे इतना क्रोधित किया है कि मुझे इसे अपनी नजर के सामने से दूर कर देना चाहिये। 32 यहूदा और इस्राएल के लोगों ने जो बुरा किया है, उसके लिये, मैं यरूशलेम को नष्ट करुँगा। जनसाधारण उनके राजा, प्रमुख, उनके याजक और नबी यहूदा के पुरुष और यरूशलेम के लोग, सभी ने मुझे क्रोधित किया है।
33 “उन लोगों को सहायता के लिये मेरे पास आना चाहिये था। लेकिन उन्होंने मुझसे अपना मुँह मोड़ा। मैंने उन लोगों को बार—बार शिक्षा देनी चाही किन्तु उन्होंने मेरी एक न सुनी। मैंने उन्हें सुधारना चाहा किन्तु उन्होंने अनसुनी की। 34 उन लोगों ने अपनी देवमूर्तियाँ बनाई हैं और मैं उन देवमूर्तियों से घृणा करता हूँ। वे उन देवमूर्तियों को उस मन्दिर में रखते हैं जो मेरे नाम पर है। इस तरह उन्होंने मेरे मन्दिर को अपवित्र किया है।
35 “बेनहिन्नोम की घाटी में उन लोगों ने असत्य देवता बाल के लिये उच्च स्थान बनाए। उन्होंने वे पूजा स्थान अपने पुत्र—पुत्रियों को शिशु बलिभेंट के रूप में जला सकने के लिये बनाए। मैंने उनको कभी ऐसे भयानक काम करने के लिये आदेश नहीं दिये। मैंने यह कभी सोचा तक नहीं कि यहूदा के लोग ऐसा भयंकर पाप करेंगे।
36 “तुम सभी लोग कहते हो, “बाबुल का राजा यरूशलेम पर अधिकार कर लेगा। वह तलवार, भुखमरी और भयंकर बीमारी का उपयोग इस नगर को पराजित करने के लिये करेगा।” किन्तु यहोवा इस्राएल के लोगों का परमेश्वर कहता है, 37 “मैंने इस्राएल और यहूदा के लोगों को अपना देश छोड़ने को विवश किया है। मैं उन लोगों पर बहुत क्रोधित था। किन्तु मैं उन्हें इस स्थान पर वापस लाऊँगा। मैं उन्हें उन देशों से इकट्ठा करुँगा जिनमें जाने के लिये मैंने उन्हें विवश किया। मैं उन्हें इस देश में वापस लाऊँगा। मैं उन्हें शान्तिपूर्वक और सुरक्षित रहने दूँगा। 38 इस्राएल और यहूदा के लोग मेरे अपने लोग होंगे और मैं उनका परमेश्वर होऊँगा। 39 वे एक उद्देश्य रखेंगे सच ही, जीवन भर मेरी उपासना करना चाहेंगे। उनके लिये शुभ होगा और उनके बाद उनके परिवारों के लिये भी शुभ होगा।
40 “‘मैं इस्राएल और यहूदा के लोगों के साथ एक वाचा करूँगा। यह वाचा सदैव के लिये रहेगी। इस वाचा के अनुसार मैं लोगों से कभी दूर नहीं जाऊँगा। मैं उनके लिये सदैव अच्छा रहूँगा। मैं उन्हें, अपना आदर करने के लिये इच्छुक बनाऊँगा। तब वे मुझसे कभी दूर नहीं हटेंगे। 41 वे मुझे प्रसन्न करेंगे। मैं उनका भला करने में आनन्दित होऊँगा और मैं, निश्चय ही, उन्हें इस धरती में बसाऊँगा और उन्हें बढ़ाऊँगा। यह मैं अपने पूरे हृदय और आत्मा से करूँगा।’”
42 यहोवा जो कहता है, वह यह है, “मैंने इस्राएल और यहूदा के लोगों पर यह बड़ी विपत्ति ढाई है। इसी तरह मैं उन्हें अच्छी चीज़ें दूँगा। मैं उन्हें अच्छी चीज़ें करने का वचन देता हूँ। 43 तुम लोग यह कहते हो, “यह देश सूनी मरूभूमि है। यहाँ कोई व्यक्ति और कोई जानवर नहीं है। बाबुल की सेना ने इस देश को पराजित किया।” किन्तु भविष्य में लोग फिर इस देश में भूमि खरीदेंगे। वे अपनी वाचाओं पर हस्ताक्षर के साक्षी होंगे। लोग उस प्रदेश में फिर खेत खरीदेंगे जिसमें बिन्यामीन परिवार समूह के लोग रहते हैं। 44 लोग अपने धन का उपयोग करेंगे और खेत खरीदेंगे। वे यरूशलेम क्षेत्र के चारों ओर खेत खरीदेंगे। वे यहूदा प्रदेश के नगरों, पहाड़ी प्रदेश, पश्चिमी पर्वत चरण, और दक्षिणी मरुभूमि के क्षेत्र में खेत खरीदेंगे। यह होगा, क्योंकि मैं तुम्हारे लोगों को वापस लाऊँगा।” यह सन्देश यहोवा का है।
परमेश्वर की प्रतिज्ञा
33यिर्मयाह को दूसरी बार यहोवा का सन्देश मिला। यिर्मयाह अभी भी रक्षक प्रांगण में ताले के अन्दर बन्दी था। 2 “यहोवा ने पृथ्वी को बनाया और उसकी वह रक्षा करता है। उसका नाम यहोवा है। यहोवा कहता है, 3 ‘यहूदा, मुझसे प्रार्थना करो और मैं उसे पूरा करूँगा। मैं तुम्हें महत्वपूर्ण रहस्य बताऊँगा। तुमने उन्हें कभी पहले नहीं सुना है।’ 4 इस्राएल का परमेश्वर यहोवा है। यहोवा यरूशलेम के मकानों और यहूदा के राजाओं के महलों के बारे में यह कहता है। ‘शत्रु उन मकानों को ध्वस्त कर देगा। शत्रु नगर की चहारदीवारियों के ऊपर तक ढाल बनायेगा। शत्रु तलवार का उपयोग करेगा और इन नगरों के लोगों के साथ युद्ध करेगा।’”
5 “‘यरूशलेम के लोगों ने बहुत बुरे काम किये हैं। मैं उन लोगों पर क्रोधित हूँ। मैं उनके विरुद्ध हो गया हूँ। इसलिये वहाँ मैं असंख्य लोगों को मार डालूँगा। बाबुल की सेना यरूशलेम के विरुद्ध लड़ने के लिये आएगी। यरूशलेम के घरों में असंख्य शव होंगे।
6 “‘किन्तु उसके बाद मैं उस नगर में लोगों को स्वस्थ बनाऊँगा। मैं उन लोगों को शान्ति और सुरक्षा का आनन्द लेने दूँगा। 7 मैं इस्राएल और यहूदा में फिर से सब कुछ अच्छा घटित होने दूँगा। मैं उन लोगों को अतीत की तरह शक्तिशाली बनाऊँगा। 8 उन्होंने मेरे विरुद्ध पाप किये, किन्तु मैं उस पाप को धो दूँगा। वे मेरे विरुद्ध लड़े, किन्तु मैं उन्हें क्षमा कर दूँगा। 9 तब यरूशलेम आश्चर्यचकित करने वाला स्थान हो जायेगा। लोग सुखी होंगे और अन्य राष्ट्रों के लोग इसकी प्रशंसा करेंगे। यह उस समय होगा जब लोग यह सुनेंगे कि वहाँ सब अच्छा हो रहा है। वे उन अच्छे कामों को सुनेंगे जिन्हें मैं यरूशलेम के लिये कर रहा हूँ।’
10 “तुम लोग यह कह रहे हो, ‘हमारा देश सूनी मरुभूमि है। वहाँ कोई व्यक्ति या कोई जानवर जीवित नहीं रहे।’ अब यरूशलेम की सड़कों और यहूदा के नगरों में निर्जन शान्ति है। किन्तु वहाँ शीघ्र ही चहल—पहल होगी। 11 वहाँ सुख और आनन्द की किलोलें होंगी। वहाँ वर—वधु की उमंग भरी चुहल होगी। वहाँ यहोवा के मन्दिर में अपनी भेंट लाने वाले की मधुर वाणी होगी। वे लोग कहेंगे, सर्वशक्तिमान यहोवा की स्तुति करो! यहोवा दयालु है! यहोवा की दया सदा बनी रहती है! लोग ये बातें कहेंगे क्योंकि मैं फिर यहूदा के लिये अच्छे काम करुँगा। यह वैसा ही होगा जैसा आरम्भ में था।” ये बातें यहोवा ने कही।
12 सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “यह स्थान अब सूना है। यहाँ कोई लोग या जानवर नहीं रह रहें। किन्तु अब यहूदा के सभी नगरों में लोग रहेंगे। वहाँ गडरिये होंगे और चरागाहें होंगी जहाँ वे अपनी रेवड़ों को आराम करने देंगे। 13 गडरिये अपनी भेड़ों को तब गिनते हैं जब भेड़ें उनके आगे चलती हैं। लोग अपनी भेड़ों को पूरे देश में चारों ओर पहाड़ी प्रदेश, पश्चिमी पर्वत चरण, नेगव और यहूदा के सभी नगरों में गिनेंगे।”
अच्छी शाखा
14 यह सन्देश यहोवा का है: “मैंने इस्राएल और यहूदा के लोगों को विशेष वचन दिया है। वह समय आ रहा है जब मैं वह करूँगा जिसे करने का वचन मैंने दिया है। 15 उस समय मैं दाऊद के परिवार से एक अच्छी शाखा उत्पन्न करुँगा। वह अच्छी शाखा वह सब करेगी जो देश के लिये अच्छा और उचित होगा। 16 इस शाखा के समय यहूदा के लोगों की रक्षा हो जाएगी। लोग यरूशलेम में सुरक्षित रहेंगे। उस शाखा का नाम ‘यहोवा हमारी धार्मिकता (विजय) हैं।’”
17 यहोवा कहता है, “दाऊद के परिवार का कोई न कोई व्यक्ति सदैव सिंहासन पर बैठेगा और इस्राएल के परिवार पर शासन करेगा 18 और लेवी के परिवार से याजक सदैव होंगे। वे याजक मेरे सामने सदा रहेंगे और मुझे होमबलि, अन्नबलि और बलिभेंट करेंगे।”
19 यहोवा का यह सन्देश यिर्मयाह को मिला। 20 यहोवा कहता है, “मैंने रात और दिन से वाचा की है। मैंने वाचा की कि वह सदैव रहेगी। तुम उस वाचा को बदल नहीं सकते। दिन और रात सदा ठीक समय पर आएंगे। यदि तुम उस वाचा को बदल सकते हो 21 तो तुम दाऊद और लेवी के साथ की गई मेरी वाचा को भी बदल सकते हो। तब दाऊद और लेवी के परिवार के वंशज राजा और पुरोहित नहीं हो सकेंगे। 22 किन्तु मैं अपने सेवक दाऊद को और लेवी के परिवार समूह को अनेक वंशज दूँगा। वे उतने होंगे जितने आकाश में तारे हैं, और आकाश के तारों को कोई गिन नहीं सकता और वे इतने होंगे जितने सागर तट पर बालू के कण होते हैं और उन बालू के कणों को कोई गिन नहीं सकता।”
23 यहोवा का यह सन्देश यिर्मयाह ने प्राप्त किया: 24 “यिर्मयाह, क्या तुमने सुना है कि लोग क्या कह रहे हैं वे लोग कह रहे हैं: ‘यहोवा ने इस्राएल और यहूदा के दो परिवारों को अस्वीकार कर दिया है। यहोवा ने उन लोगों को चुना था, किन्तु अब वह उन्हें राष्ट्र के रूप में भी स्वीकार नहीं करता।’”
25 यहोवा कहता है, “यदि मेरी वाचा दिन और रात के साथ बनी नहीं रहती, और यदि मैं आकाश और पृथ्वी के लिये नियम नहीं बनाता तभी संभव है कि मैं उन लोगों को छोड़ूँ। 26 तभी यह संभव होगा कि मैं याकूब के वंशजों से दूर हट जाऊँ और तभी यह हो सकता है कि मैं दाऊद के वंशजों को इब्राहीम, इसहाक और याकूब के वंशजों पर शासन करने न दूँ। किन्तु दाऊद मेरा सेवक है और मैं उन लोगों पर दया करूँगा और मैं फिर उन लोगों को उनकी धरती पर वापस लौटा लाऊँगा।”
यहूदा के राजा सिदकिय्याह को चेतावनी
34यहोवा का यह सन्देश यिर्मयाह को मिला। यह सन्देश उस समय मिला जब बाबुल का राजा नबूकदनेस्सर यरूशलेम और उसके चारों ओर के सभी नगरों से युद्ध कर रहा था। नबूकदनेस्सर अपने साथ अपनी सारी सेना और शासित राज्यों तथा साम्राज्य के लोगों को मिलाये हुए था।
2 सन्देश यह था: “यहोवा इस्राएल के लोगों का परमेश्वर जो कहता है, वह यह है: यिर्मयाह, यहूदा के राजा सिदकिय्याह के पास जाओ और उसे यह सन्देश दो: ‘सिदकिय्याह, यहोवा जो कहता है, वह यह है: मैं यरूशलेम नगर को बाबुल के राजा को शीघ्र ही दे दूँगा और वह उसे जला डालेगा। 3 सिदकिय्याह, तुम बाबुल के राजा से बचकर निकल नहीं पाओगे। तुम निश्चय ही पकड़े जाओगे और उसे दे दिये जाओगे। तुम बाबुल के राजा को अपनी आँखों से देखोगे। वह तुमसे आमने—सामने बातें करेगा और तुम बाबुल जाओगे। 4 किन्तु यहूदा के राजा सिदकिय्याह यहोवा के दिये वचन को सुनो। यहोवा तुम्हारे बारे में जो कहता है, वह यह है: तुम तलवार से नहीं मारे जाओगे। 5 तुम शान्तिपूर्वक मरोगे। तुम्हारे राजा होने से पहले जो राजा राज्य करते थे तुम्हारे उन पूर्वजों के सम्मान के लिये लोगों ने अग्नि तैयार की। उसी प्रकार तुम्हारे सम्मान के लिये लोग अग्नि बनायेंगे। वे तुम्हारे लिये रोएंगे। वे शोक में डूबे हुए कहेंगे, “हे स्वामी,” मैं स्वयं तुम्हें यह वचन देता हूँ।’” यह सन्देश यहोवा का है।
6 अत: यिर्मयाह ने यहोवा का सन्देश यरूशलेम में सिदकिय्याह को दिया। 7 यह उस समय हुआ जब बाबुल के राजा की सेना यरूशलेम के विरुद्ध लड़ रही थी। बाबुल की सेना यहूदा के उन नगरों के विरुद्ध भी लड़ रही थी जिन पर अधिकार नहीं हो सका था। वे लाकीश और अजेका नगर थे। वे ही केवल किलाबन्द नगर थे जो यहूदा प्रदेश में बचे थे।
लोगों ने वाचाओं में से एक को तोड़ा
8 सिदकिय्याह ने यरूशलेम के सभी निवासियों से यह वाचा की थी कि मैं सभी यहूदी दासों को मुक्त कर दूँगा। जब सिदकिय्याह ने वह वाचा कर ली, उसके बाद यिर्मयाह को यहोवा का सन्देश मिला। 9 हर व्यक्ति से आशा की जाती है कि वह अपने यहूदी दासों को स्वतन्त्र करे। सभी यहूदी दास—दासी स्वतन्त्र किये जाने थे। यहूदा के परिवार समूह के किसी भी व्यक्ति के दास रखने की संभावना किसी भी व्यक्ति से नहीं की जा सकती थी। 10 अत: सभी प्रमुखों और यहूदा के सभी लोगों ने इस वाचा को स्वीकार किया था। हर एक व्यक्ति अपने दास—दासियों को स्वतन्त्र कर देगा और उन्हें और अधिक समय तक दास से रूप में नहीं रखेगा। हर एक व्यक्ति सहमत था और इस प्रकार सभी दास स्वतन्त्र कर दिये गए। 11 किन्तु उसके बाद उन लोगों ने जिनके पास दास थे, अपने निर्णय को बदला दिया। अत: उन्होंने स्वतन्त्र किये गये लोगों को फिर पकड़ लिया और उन्हें दास बनाया।
12 तब यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला: 13 “यिर्मयाह, यहोवा इस्राएल के लोगों का परमेश्वर जो कहता है वह यह है: ‘मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर लाया जहाँ वे दास थे। जब मैंने ऐसा किया तब मैंने उनके एक वाचा की। 14 मैंने तुम्हारे पूर्वजों से कहा, “हर एक सात वर्ष के अन्त में प्रत्येक व्यक्ति को अपने यहूदी दासों को स्वतन्त्र कर देना चाहिये। यदि तुम्हारे यहाँ तुम्हारा ऐसा यहूदी साथी है जो अपने को तुम्हारे हाथ बेच चुका है तो तुम्हें उसे छ: महीने सेवा के बाद स्वतन्त्र कर देना चाहिये।” किन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने न तो मेरी सुनी, न ही उस पर ध्यान दिया। 15 कुछ समय पहले तुमने अपने हृदय को, जो उचित है, उसे करने के लिये बदला। तुममें से हर एक ने अपने उन यहूदी साथियों को स्वतन्त्र किया जो दास थे और तुमने मेरे सामने उस मन्दिर में जो मेरे नाम पर है एक वाचा भी की। 16 किन्तु अब तुमने अपने इरादे बदल दिये हैं। तुमने यह प्रकट किया है कि तुम मेरे नाम का सम्मान नहीं करते। तुमने यह कैसे किया तुम में से हर एक ने अपने दास दासियों को वापस ले लिया है जिन्हें तुमने स्वतन्त्र किया था। तुम लोगों ने उन्हें फिर दास होने के लिये विवश किया है।’
17 “अत: जो यहोवा कहता है, वह यह है: ‘तुम लोगों ने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया है। तुमने अपने साथी यहूदियों को स्वतन्त्रता नहीं दी है। क्योंकि तुमने यह वाचा पूरी नहीं की है, इसलिये मैं स्वतन्त्रता दूँगा। यह यहोवा का सन्देश है। तलवार से, भयंकर बीमारी से और भूख से मारे जाने की स्वतन्त्रता मैं दूँगा। मैं तुम्हें कुछ ऐसा कर दूँगा कि जब वे तुम्हारे बारे में सुनेंगे तो पृथ्वी के सारे राज्य भयभीत हो उठेंगे। 18 मैं उन लोगों को दूसरों के हाथ दूँगा जिन्होंने मेरी वाचा को तोड़ा है और उस प्रतिज्ञा का पालन नहीं किया है जिसे उन्होंने मेरे सामने की है। इन लोगों ने मेरे सामने एक बछड़े को दो टुकड़ों में काटा और वे दोनों टुकड़ों के बीच से गुजरे। 19 ये वे लोग हैं जो उस समय बछड़े के टुकड़ों के बीच से गुजरे जब उन्होंने मेरे साथ वाचा की थी: यहूदा और यरूशलेम के प्रमुख, न्यायालयों के बड़े अधिकारी, याजक और उस देश के लोग। 20 अत: मैं उन लोगों को उनके शत्रुओं और उन व्यक्तियों को दूँगा जो उन्हें मार डालना चाहते हैं। उन व्यक्तियों के शव हवा में उड़ने वाले पक्षियों और पृथ्वी पर के जंगली जानवरों के भोजन बनेंगे। 21 मैं यहूदा के राजा सिदकिय्याह और उसके प्रमुखों को उनके शत्रुओं एवं जो उन्हें मार डालना चाहते हैं, को दूँगा। मैं सिदकिय्याह और उनके लोगों को बाबुल के राजा की सेना को तब भी दूँगा जब वह सेना यरूशलेम को छोड़ चुकी होगी। 22 किन्तु मैं कसदी सेना को यरूशलेम में फिर लौटने का आदेश दूँगा। यह सन्देश यहोवा का है। वह सेना यरूशलेम के विरुद्ध लड़ेगी। वे इस पर अधिकार करेंगे, इसमें आग लगायेंगे तथा इसे जला डालेंगे और मैं यहूदा के नगरों को नष्ट कर दूँगा। वे नगर सूनी मरुभूमि हो जायेंगे। वहाँ कोई व्यक्ति नहीं रहेगा।’”
समीक्षा
यीशु में विश्वास करिए
‘जिस किसी चीज से आप सबसे ज्यादा प्रेम करते हो, चाहे यह खेल, आनंद, व्यवसाय, या परमेश्वर हो, यह आपका ईश्वर है!’बिली ग्राहम ने लिखा। विश्व का नियमित प्रलोभन होता है कि हमारे हृदय को भटकाये। लेकिन परमेश्वर ऐसे लोगों को खोज रहे हैं जिनके दिमाग स्थिर हैं। ‘ मैं बड़ी प्रसन्नता के साथ उनका भला करता रहूँगा, और सचमुच उन्हें इस देश में अपने सारे मन और प्राण से बसा दूँगा’ (32:41)। निश्चित ही, हम अपने संपूर्ण मन और प्राण से उनकी सेवा करने के द्वारा उनके प्रेम को लौटा सकते हैं – एक हृदय और एक कार्य के साथ?
परमेश्वर का प्रेम सर्वदा बना रहता है (33:11)। वह आपसे प्रेम करते हैं। वह चाहते हैं कि आप उनके साथ एक नजदीकी संबंध में चले। वह बहुत निराश हुए कि उनके लोग ‘उन्होंने मेरी ओर मुँह नहीं वरन् पीठ ही फेर दी है’ (32:33, एम.एस.जी)। वह ऐसे एक समय की इच्छा कर रहे थे जब वे उनके साथ ‘एक हृदय और एक चाल के साथ’ संबंध रखेंगे (व.39)।
आपके लिए अपने प्रेम के कारण परमेश्वर आपके साथ बातचीत करना चाहते हैः’ मुझ से प्रार्थना कर और मैं तेरी सुनकर तुझे बड़ी- बड़ी और कठिन बातें बताउँगा जिन्हें तू अभी नहीं समझता’ (33:3)। वह आपके पास स्वास्थय और चंगाई लाना चाहते हैं (व.6अ)। वह चाहते हैं कि आप शांति और सुरक्षा का आनंद ले (व.6ब)। वह आपके सभी पापों से आपको शुद्ध करना चाहते हैं और आपको पूरी तरह से क्षमा करना चाहते हैं (व.8)।
वह चाहते हैं कि आप दासत्व से स्वतंत्रता का आनंद ले (व.7)। वह आपको आनंद और प्रसन्नता देना चाहते हैं (व.11)। यह सब परमेश्वर को आनंद, स्तुति और सम्मान देंगे (व.9)। यह धन्यवादिता लायेगाः’ सेनाओं के यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि यहोवा भले हैं, और उनकी करूणा सदा की है’ (व.11)।
परमेश्वर चाहते हैं कि उनके लोग मुक्त हो। यिर्मयाह को बंदी बनाया गया था (व.1), जोकि परमेश्वर के लोगों के लिए परमेश्वर के उद्देश्य के विरोध में था। परमेश्वर अपने लोगों को निर्वासन के बंधन से मुक्त करना चाहते थे, जिसमें वे जाने वाले थे। नये नियम के अनुसार, यह सुधार कार्य, निवार्सन से यह छुटकारा, यीशु में विश्वास के द्वारा पूरा हुआ और उस स्वतंत्रता से जो वह पाप के बंधन से करते हैं।
परमेश्वर भौतिक बंधन के विषय में निरंतर चिंता करते हैं। यही कारण है कि दास बनाना एक भयानक बुराई है। पुराने नियम में, हम दासत्व के प्रति परमेश्वर की असहमति के कुछ संकेतों को देखते हैं। वह यिर्मयाह से कहते हैं कि ‘दासों को स्वतंत्रता का समाचार सुनाओ’ (34:8)। आरंभ में, लोगों ने अपने दासों को स्वतंत्र किया, लेकिन बाद में उन्होंने अपना मन बदल दिया और उन्हें फिर दास बना लिया (वव.10-11)। परमेश्वर उनके कार्य से बहुत असहमत हुए।
परमेश्वर कहते हैं, ‘ तुम ने जो मेरी आज्ञा के अनुसार अपने अपने भाई के स्वतंत्र होने का प्रचार नहीं किया, अत: यहोवा का यह वचन है, सुनो, मैं तुम्हारे इस प्रकार से स्वतंत्र होने का प्रचार करता हूँ कि तलवार, मरी और महँगी में पड़ोंगे’ (व.17)। यह ‘स्वतंत्रता’ झूठी स्वतंत्रता है जिसे हम अक्सर देखते हैं कि आज विश्व में इसका अनुभव किया जाता है। पाप करने की स्वतंत्रता विनाश की ओर ले जाती है। जो स्वतंत्रता परमेश्वर आपके जीवन में लाना चाहते हैं, वह विश्वास और प्रेम के एक जीवन की ओर ले जाती है। यह सच्ची स्वतंत्रता है।
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद उस स्वतंत्रता के लिए जो आप मेरे जीवन में लाते हैं। आज मैं आपकी ओर अपना मुंह फेरता हूँ। मैं आपको पुकारना और आपकी आवाज सुनना चाहता हूँ – महान और खोजी ना जा सकने वाली चीजों को समझने के लिए। मेरी सहायता कीजिए कि आज एक मन और एक चाल के साथ आपकी सेवा करुँ, आपकी सारी भलाई और आपके प्रेम के लिए आपका धन्यवाद दूं, जो सर्वदा बनी रहती है।
पिप्पा भी कहते है
यिर्मयाह 32:27
जब जीवन में बड़ी चीज का सामना करते हैं, तब यह पढ़कर उत्साह मिलता हैः’क्या परमेश्वर के लिए कोई बात कठिन है?’
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संदर्भ
पी.टी. फोर्सिथ, प्रेरितों के काम पर एक टिप्पणी, (ऍन्कर रिकॉर्डिंग, 2014) पी.47
स्टिफन नेल, द सुप्रिमसि ऑफ जीसस, (वर्ड पब्लिशिंग, 1984) पी.जी.47
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
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जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।