आपकी शांतिपूर्ण सुंदरता
परिचय
'पवित्र जीवन की शांतिपूर्ण सुंदरता विश्व में सबसे शक्तिशाली प्रभाव है जो परमेश्वर की सामर्थ के बाद आती है, ' ब्लेस पास्कल के अनुसार। पवित्रता सुंदर है और बाहरी सुंदरता से इसका कोई लेना – देना नहीं है। यह एक सुंदरता है जो अंदर से चमकती है। इस तरह से विश्व बदल जाएगा। इसकी शुरुवात आपसे और मुझसे होती है। ऐसिसी के सेंट फ्रांसिस ने कहा, 'अपने आपको पवित्र करो और तब तुम समाज को पवित्र करोगे।'
पवित्रता एक अतिरिक्त विकल्प नहीं है। यह केवल संतो और विशेष मसीहों के लिए नहीं है। यह ऐसी चीज है जिसकी हम सब को अपने जीवन में अभिलाषा करनी चाहिए। पवित्रता तीव्रता के समांतर नहीं है। तीव्रता पवित्र आत्मा का एक फल नहीं है! अपने आप पर हँस सकने की योग्यता पवित्रता की पूंजी है। समझदारी, पवित्रता और दीनता के बीच की कड़ी है।
पवित्रता ऊबाऊ नहीं है। जैसा कि सी.एस.लेविस ने लिखा, 'लोग कितना कम जानते हैं जो सोचते हैं कि पवित्रता मंद है। जब कोई व्यक्ति वास्तविक चीज से मिलता है...इसे रोका नहीं जा सकता है।'
भजन संहिता 122:1-9
दाऊद का एक आरोहणगीत।
122जब लोगों ने मुझसे कहा,
“आओ, यहोवा के मन्दिर में चलें तब मैं बहुत प्रसन्न हुआ।”
2 यहाँ हम यरूशलेम के द्वारों पर खड़े हैं।
3 यह नया यरूशलेम है।
जिसको एक संगठित नगर के रूप में बनाया गया।
4 ये परिवार समूह थे जो परमेश्वर के वहाँ पर जाते हैं।
इस्राएल के लोग वहाँ पर यहोवा का गुणगान करने जाते हैं। वे वह परिवार समूह थे जो यहोवा से सम्बन्धित थे।
5 यही वह स्थान है जहाँ दाऊद के घराने के राजाओं ने अपने सिंहासन स्थापित किये।
उन्होंने अपना सिंहासन लोगों का न्याय करने के लिये स्थापित किया।
6 तुम यरूशलेम में शांति हेतू विनती करो।
“ऐसे लोग जो तुझसे प्रेम रखते हैं, वहाँ शांति पावें यह मेरी कामना है।
7 तुम्हारे परकोटों के भीतर शांति का वास है। यह मेरी कामना है।
तुम्हारे विशाल भवनों में सुरक्षा बनी रहे यह मेरी कामना है।”
8 मैं प्रार्थना करता हूँ अपने पड़ोसियों के
और अन्य इस्राएलवासियों के लिये वहाँ शांति का वास हो।
9 हे यहोवा, हमारे परमेश्वर के मन्दिर के भले हेतू
मैं प्रार्थना करता हूँ, कि इस नगर में भली बाते घटित हों।
समीक्षा
आप पवित्रता कहाँ पाते हैं:
भजनसंहिता के लेखक के लिए, उनके आनंद का स्रोत था मंदिर में परमेश्वर की आराधना करने का अवसर। यह वह स्थान था जहाँ पर लोग 'परमेश्वर के नाम की स्तुति करने के लिए' जाते थे (व.4ब)। यही कारण है कि परमेश्वर के लोगों के लिए यरूशलेम बहुत ही महत्वपूर्ण था और भजनसंहिता के लेखक शहर की शांति और सुरक्षा के विषय में बहुत जोश से भरे हुए थे (वव.6-9)।
यरूशलेम पवित्र शहर था। आज के लिए हमारे पुराने नियम के लेखांश में इसका वर्णन 'मेरा पवित्र पर्वत' के रूप में किया गया है (यहेजकेल 20:40)। मंदिर परमेश्वर का घर था। यही था जिसने इसे पवित्र बनाया।
अब, चर्च परमेश्वर का घर है। यह नया पवित्र स्थान है ' जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु स्वंय ही हैं, बनाए गए हो। जिसमें सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है, जिसमें तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्वर के निवासस्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो' (इफीसियों 2:20-22, एम.एस.जी)।
लोग नया स्थान हैं। यीशु के द्वारा, आप परमेश्वर के एक नये घर हैं – आप पवित्र आत्मा के मंदिर हैं।
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं आपकी पवित्र उपस्थिति की लालसा करता हूँ। मैं परमेश्वर के नाम की स्तुति करने की लालसा करता हूँ। उस शांति और सुरक्षा के लिए आपका धन्यवाद जो परमेश्वर के घर में आपकी उपस्थिति से आती है।
इब्रानियों 10:1-18
अंतिम बलिदान
10व्यवस्था का विधान तो आने वाली उत्तम बातों की छाया मात्र प्रदान करता है। अपने आप में वे बातें यथार्थ नहीं हैं। इसलिए उन्हीं बलियों के द्वारा जिन्हें निरन्तर प्रति वर्ष अनन्त रूप से दिया जाता रहता है, उपासना के लिए निकट आने वालों को सदा-सदा के लिए सम्पूर्ण सिद्ध नहीं किया जा सकता। 2 यदि ऐसा हो पाता तो क्या उनका चढ़ाया जाना बंद नहीं हो जाता? क्योंकि फिर तो उपासना करने वाले एक ही बार में सदा सर्वदा के लिए पवित्र हो जाते। और अपने पापों के लिए फिर कभी स्वयं को अपराधी नहीं समझते। 3 किन्तु वे बलियाँ तो बस पापों की एक वार्षिक स्मृति मात्र हैं। 4 क्योंकि साँड़ों और बकरों का लहू पापों को दूर कर दे, यह सम्भव नहीं है।
5 इसलिए जब यीशु इस जगत में आया था तो उसने कहा था:
“तूने बलिदान और कोई भेंट नहीं चाहा,
किन्तु मेरे लिए एक देह तैयार की है।
6 तू किसी होमबलि से न ही
पापबलि से प्रसन्न नहीं हुआ
7 तब फिर मैंने कहा था,
‘और पुस्तक में मेरे लिए यह भी लिखा है, मैं यहाँ हूँ।
हे परमेश्वर, तेरी इच्छा पूरी करने को आया हूँ।’”
8 उसने पहले कहा था, “बलियाँ और भेंटे, होमबलियाँ और पापबलियाँ न तो तू चाहता है और न ही तू उनसे प्रसन्न होता है।” (यद्यपि व्यवस्था का विधान यह चाहता है कि वे चढ़ाई जाएँ।) 9 तब उसने कहा था, “मैं यहाँ हूँ। मैं तेरी इच्छा पूरी करने आया हूँ।” तो वह दूसरी व्यवस्था को स्थापित करने के लिए, पहली को रद्द कर देता है। 10 सो परमेश्वर की इच्छा से एक बार ही सदा-सर्वदा के लिए यीशु मसीह की देह के बलिदान द्वारा हम पवित्र कर दिए गए।
11 हर याजक एक दिन के बाद दूसरे दिन खड़ा होकर अपने धार्मिक कर्त्तव्यों को पूरा करता है। वह पुनः-पुनः एक जैसी ही बलियाँ चढ़ाता है जो पापों को कभी दूर नहीं कर सकतीं। 12 किन्तु याजक के रूप में मसीह तो पापों के लिए, सदा के लिए एक ही बलि चढ़ाकर परमेश्वर के दाहिने हाथ जा बैठा, 13 और उसी समय से उसे अपने विरोधियों को उसके चरण की चौकी बना दिए जाने की प्रतीक्षा है। 14 क्योंकि उसने एक ही बलिदान के द्वारा, जो पवित्र किए जा रहे हैं, उन्हें सदा-सर्वदा के लिए सम्पूर्ण सिद्ध कर दिया।
15 इसके लिए पवित्र आत्मा भी हमें साक्षी देता है। पहले वह बताता है:
16 “यह वह वाचा है जिसे मैं उनसे करूँगा।
और फिर उसके बाद प्रभु घोषित करता है।
अपनी व्यवस्था उनके हृदयों में बसाऊँगा।
मैं उनके मनों पर उनको लिख दूँगा।”
17 वह यह भी कहता है:
“उनके पापों और उनके दुष्कर्मों को
और अब मैं कभी याद नहीं रखूँगा।”
18 और फिर जब पाप क्षमा कर दिए गए तो पापों के लिए किसी बलि की कोई आवश्यकता रह ही नहीं जाती।
समीक्षा
आप कब पवित्र बनते हैं?
यीशु के बलिदान के द्वारा और पवित्र आत्मा के उस उपहार के द्वारा अब पवित्रता आपके लिए संभव है, जो आपके हृदय में रहने के लिए आते हैं। एक तरह से, आप 'शीघ्र पवित्रता' का अनुभव कर सकते हैं। लेकिन, दूसरी ओर, पवित्रता एक बहुत ही लंबी प्रक्रिया है जो कभी भी इस जीवन में पूरी नहीं होगी।
अल्फा छोटे समूह में अक्सर पूछा जाने वाला एक प्रश्न है कि, 'उन लोगों के साथ क्या होगा जो यीशु के आने से पहले जीवित थे:' क्या यह अनुचित नहीं कि यीशु इतिहास में एक विशेष समय पर आये और क्षमा पाना संभव बनाया: प्रश्न के पीछे यह धारणा है कि क्रूस केवल समय में आगे की ओर काम कर सकता है और उन लोगों के लिए प्रभावी नहीं हो सकता जो यीशु के आने से पहले जीवित थे।
किंतु, इब्रानियों के लेखक कहते हैं, ' परन्तु यह व्यक्ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्वर के दाहिने ओर जा बैठा' (व.12)। यीशु का बलिदान सर्वदा के लिए प्रभावी है। क्रूस उनके लिए प्रभावी है जो यीशु के पहले जीएँ और जो उनके बाद जीते हैं।
इब्रानियों के लेखक लिखते हैं, ' क्योंकि व्यवस्था, जिसमें आने वाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है' (व.1अ, एम.एस.जी)। दूसरे शब्दों में, यह केवल उसका प्रतिबिंब थी जो आने वाला था।
व्यवस्था सिद्ध नहीं कर सकी (व.1ब)। यह प्रमाण कि यह लोगों को सिद्ध नहीं कर सकी, यह है कि लगातार बलिदानों को चढ़ाया जाना पड़ता था (व.2)। लोग अब भी अपने पापों के प्रति आत्मग्लानि महसूस करते हैं (व.2क) ' क्योंकि यह अनहोना है कि बैलों और बकरों का लहू पापों को दूर करे' (व.4, ए.एम.पी)। केवल मसीह का लहू आपके पापों को दूर कर सकता है। केवल वह सिद्ध बलिदान थे, क्योंकि केवल उन्होंने एक सिद्ध जीवन जीया था।
उनके बलिदान ने पुरानी व्यवस्था को समाप्त कर दिया और नये वाले को स्थापित किया (वव.5-9)। उनके बलिदान का परिणाम है कि ' उसी इच्छा से हम यीशु मसीह की देह के एक ही बार बलिदान चढ़ाए जाने के द्वारा पवित्र किए गए हैं' (व.10)।
यह नियम के बहुत विपरीत हैः'मसीह ने पाप के लिए एक ही बार बलिदान दिया और यह काफी था!...यह एक सिद्ध व्यक्ति के द्वारा एक सिद्ध बलिदान है, कुछ बहुत ही असिद्ध लोगों के लिए' (वव.12-14, एम.एस.जी)।
'वह जा बैठे' यह भाव बहुत ही महत्वपूर्ण है। हर एक याजक तो खड़े होकर प्रतिदिन सेवा करता है (व.11)। उनके बलिदान कभी पूरे नहीं होते। दूसरी ओर, यीशु ' परमेश्वर के दाहिने ओर जा बैठा' (व.12)। इसने दिखाया कि उनका काम पूरा हो चुका थाः'क्योंकि उसने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन्हें जो पवित्र किए जाते हैं, सर्वदा के लिये सिध्द कर दिया है' (व.14)।
यहाँ पर आप देख सकते हैं कि कैसे पवित्रता आपके जीवन में काम करती हैः
1. शीघ्र पवित्रता
जहाँ तक भूतकाल का संबंध है, पाप का दंड चुका दिया गया हैः'हम पवित्र बना दिए गए हैं...उसने हमें सर्वदा के लिए सिद्ध बनाया है' (वव.10-14)। यह निर्दोष ठहरना है। यीशु के बलिदान ने पूर्ण क्षमा और परमेश्वर के साथ एक सिद्ध संबंध को संभव बनाया। आप पूरी तरह से क्षमा किए गए हैं। इसलिए, दूसरों को क्षमा करें और सबसे कठिन बात, अपने आपको क्षमा करें। फिर पाप का बलिदान नहीं रहा (व.18)।
2. पवित्रता की प्रक्रिया
वर्तमान समय में, पाप की सामर्थ तोड़ दी गई है। शुद्धिकरण 'पवित्र बनाये जाने की' एक प्रक्रिया है (व.14)। कम से कम मेरे मामले में, यह बहुत ही धीमी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया लगती है। यीशु मुझे पाप की सामर्थ से मुक्त कर रहे हैं। पवित्रता पवित्र आत्मा का कार्य है, जो 'इस विषय में हमें गवाही देता है' (व.15)। आपमें रहने के लिए पवित्र आत्मा के आने के द्वारा, परमेश्वर के नियम आपके हृदय में और आपके दिमाग में होंगे (व.16)।
3. सिद्ध पवित्रता
अ.भविष्य में यहाँ तक कि पाप की उपस्थिति हटा दी जाएगी। एक दिन ऐसा होगा कि बुराई को पूरी तरह से हरा दिया जाएगा। ' उसी समय से इसकी बाट जोह रहा है, कि उसके बैरी उसके पाँवों के नीचे की पीढ़ी बनें' (व.13अ) और हमें 'पवित्र बनाये जाने की' प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगी (1यूहन्ना 3:2 देखें)।
प्रार्थना
परमेश्वर आपका धन्यवाद कि आपके बलिदान के द्वारा आप मुझे परमेश्वर के साथ एक पवित्र संबंध में लाते हैं। आपका धन्यवाद कि आपके पवित्र आत्मा के द्वारा मैं पवित्र बनाये जाने की प्रक्रिया में हूँ, और एक दिन सर्वदा के लिए सिद्ध पवित्रता होगी।
यहेजकेल 19:1-20:44
19यहोवा ने मुझसे कहा, “तुम्हें इस्राएल के प्रमुखों के विषय में इस करुण—गीत को गाना चाहिये।
2 “‘कैसी सिंहनी है तुम्हारी माँ
वह सिहों के बीच एक सिंहनी थी।
वह जवान सिंहों से घिरी रहती थी
और अपने बच्चों का लालन पालन करती थी।
3 उन सिंह—शावकों में से एक उठता है
वह एक शक्तिशाली युवा सिंह हो गया है।
उसने अपना भोजन पाना सीख लिया है।
उसने एक व्यक्ति को मारा और खा गया।
4 “‘लोगों ने उसे गरजते सुना
और उन्होंने उसे अपने जाल में फँसा लिया!
उन्होंने उसके मुँह में नकेल डालीं
और युवा सिंह को मिस्र ले गये।
5 “‘सिंह माता को आशा थी कि सिंह—शावक प्रमुख बनेगा।
किन्तु अब उसकी सारी आशायें लुप्त हो गई।
इसलिये अपने शावकों में से उसने एक अन्य को लिया।
उसे उसने सिंह होने का प्रशिक्षण दिया।
6 वह युवा सिंहों के साथ शिकार को निकला।
वह एक बलवान युवा सिंह बना।
उसने अपने भोजन को पकड़ना सीखा।
उसने एक आदमी को मारा और उसे खाया।
7 उसने महलों पर आक्रमण किया।
उसने नगरों को नष्ट किया।
जब वह उसका गरजना सुनता था।
8 तब उसके चारों ओर रहने वाले लोगों ने उसके लिये जाल बिछाया
और उन्होंने उसे अपने जाल में फँसा लिया।
9 उन्होंने उस पर नकेल लगाई और उसे बन्द कर दिया।
उन्होंने उसे अपने जाल में बन्द रखा।
इस प्रकार उसे वे बाबुल के राजा के पास ले गए।
अब, तुम इस्राएल के पर्वतों पर उसकी गर्जना सुन नहीं सकते।
10 “‘तुम्हारी माँ एक अँगूर की बेल जैसी थी,
जिसे पानी के पास बोया गया था।
उसके पास काफी जल था,
इसलिये उसने अनेक शक्तिशाली बेलें उत्पन्न कीं।
11 तब उसने एक बड़ी शाखा उत्पन्न की,
वह शाखा टहलने की छड़ी जैसी थी।
वह शाखा राजा के राजदण्ड जैसी थी।
बेल ऊँची, और ऊँची होती गई।
इसकी अनेक शाखायें थीं और वह बादलों को छूने लगी।
12 किन्तु बेल को जड़ से उखाड़ दिया गया,
और उसे भूमि पर फेंक दिया गया।
गर्म पुरवाई हवा चली और उसके फलों को सुखा दिया
शक्तिशाली शाखायें टूट गईं, और उन्हें आग में फेंक दिया गया।
13 “‘किन्तु वह अंगूर की बेल अब मरूभूमि में बोयी गई है।
यह बहुत सूखी और प्यासी धरती है।
14 विशाल शाखा से आग फैली।
आग ने उसकी सारी टहनियों और फलों को जला दिया।
अत: कोई सहारे की शक्तिशाली छड़ी नहीं रही।
कोई राजा का राजदण्ड न रहा।’
यह मृत्यु के बारे में करुण—गीत था और यह मृत्यु के बारे में करुणगीत के रूप में गाया गया था।”
20एक दिन इस्राएल के अग्रजों (प्रमुखों) में से कुछ मेरे पास यहोवा की राय पूछने आए। यह पाँचवें महीने (अगस्त) का दसवाँ दिन और देश—निकाले का सातवाँ वर्ष था। अग्रज (प्रमुख) मेरे सामने बैठे।
2 तब यहोवा का वचन मेरे पास आया। उसने कहा, 3 “मनुष्य के पुत्र, इस्राएल के अग्रजों (प्रमुखों) से बात करो। उनसे कहो, ‘मेरा स्वामी यहोवा, ये बातें बताता है: क्या तुम लोग मेरी सलाह मांगने आये हो यदि तुम लोग आए हो तो मैं तुम्हें यह नहीं दूँगा। मेरे स्वामी यहोवा ने यह बात कही।’ 4 क्या तुम्हें उनका निर्णय करना चाहिए मनुष्य के पुत्र क्या तुम उनका निर्णय करोगे तुम्हें उन्हें उन भयंकर पापों के बारे में बताना चाहिए जो उनके पूर्वजों ने किये थे। 5 तुम्हें उनसे कहना चाहिए, ‘मेरा स्वामी यहोवा यह कहता है: जिस दिन मैंने इस्राएल को चुना, मैंने अपना हाथ याकूब के परिवार के ऊपर उठाया और मैंने मिस्र देश में उनसे एक प्रतिज्ञा की। मैंने अपना हाथ उठाया और कहा: “मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।” 6 उस दिन मैंने तुम्हें मिस्र से बाहर लाने का वचन दिया था और मैं तुमको उस प्रदेश में लाया जिसे मैं तुम्हें दे रहा था। वह एक अच्छा देश था जो अनेक अच्छी चीजों से भरा था। यह सभी देशों से अधिक सुन्दर था!
7 “‘मैंने इस्राएल के परिवार से उनकी भयंकर देवमूर्तियों को फेंकने के लिये कहा। मैंने, उन मिस्र की गन्दी देवमूर्तियों के साथ उन्हें गन्दा न होने के लिये कहा। “मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।” 8 किन्तु वे मेरे विरुद्ध हो गये और उन्होंने मेरी एक न सुनी। उन्होंने अपनी भयंकर देवमूर्तियों को नहीं फेंका। उन्होंने अपनी गन्दी देवमूर्तियों को मिस्र में नहीं छोड़ा। इसलिये मैंने (परमेश्वर ने) उन्हें मिस्र में नष्ट करने का निर्णय किया अर्थात् अपने क्रोध की पूरी शक्ति का अनुभव कराना चाहा। 9 किन्तु मैंने उन्हें नष्ट नहीं किया। मैं लोगों से जहाँ वे रह रहे थे पहले ही कह चुका था कि मैं अपने लोगों को मिस्र से बाहर ले जाऊँगा। मैं अपने अच्छे नाम को समाप्त नहीं करना चाहता, इसलिये मैंने उन लोगों के सामने इस्राएलियों को नष्ट नहीं किया। 10 मैं इस्राएल के परिवार को मिस्र से बाहर लाया। मैं उन्हें मरूभूमि में ले गया। 11 तब मैंने उनको अपने नियम दिये। मैंने उनको सारे नियम बताये। यदि कोई व्यक्ति उन नियमों का पालन करेगा तो वह जीवित रहेगा। 12 मैंने उनको विश्राम के सभी विशेष दिनों के बारे में भी बताया। वे पवित्र दिन उनके और मेरे बीच विशेष प्रतीक थे। वे यह संकेत करते थे कि मैं यहोवा हूँ और मैं उन्हें अपने विशेष लोग बना रहा हूँ।
13 “‘किन्तु इस्राएल का परिवार मरूभूमि में मेरे विरुद्ध उठ खड़ा हुआ। उन्होंने मेरे नियमों का अनुसरण नहीं किया। उन्होंने मेरे नियमों का पालन करने से इन्कार किया और वे नियम अच्छे हैं। यदि कोई व्यक्ति उनका पालन करेगा तो वह जीवित रहेगा। उन्होंने मेरे विशेष विश्राम के दिनों के प्रति ऐसा व्यवहार किया मानो उनका कोई महत्व न हो। वे उन दिनों में अनेकों बार काम करते रहे। मैंने मरूभूमि में उन्हें नष्ट करने का निश्चय किया अर्थात् अपने क्रोध की पूरी शक्ति का अनुभव उन्हें कराना चाहा। 14 किन्तु मैंने उन्हें नष्ट नहीं किया। अन्य राष्ट्रों ने मुझे इस्राएल को मिस्र से बाहर लाते देखा। मैं अपने अच्छे नाम को समाप्त नहीं करना चाहता था, इसलिए मैंने उन राष्ट्रों के सामने इस्राएल को नष्ट नहीं किया। 15 मैंने मरूभूमि में उन लोगों को एक और वचन दिया। मैंने वचन दिया कि मैं उन्हें उस प्रदेश में नहीं लाऊँगा जिसे मैं उन्हें दे रहा हूँ। वह अनेक चीजों से भरा एक अच्छा प्रदेश था। यह सभी देशों से अधिक सुन्दर था।
16 “‘इस्राएल के लोगों ने मेरे नियमों का पालन करने से इन्कार किया। उन्होंने मेरे नियमों का अनुसरण नहीं किया। उन्होंने मेरे विश्राम के दिनों को ऐसे लिया मानो वे महत्व नहीं रखते। उन्होंने ये सभी काम इसलिये किये कि उनका हृदय उन गन्दी देवमूर्तियों का हो चुका था। 17 किन्तु मुझे उन पर करूणा आई, अत: मैंने उन्हें नष्ट नहीं किया। मैंने उन्हें मरुभूमि में पूरी तरह नष्ट नहीं किया। 18 मैंने उनके बच्चों से बाते कीं। मैंने उनसे कहा, “अपने माता—पिता जैसे न बनो। उनकी गन्दी देवमूर्तियों से अपने को गन्दा न बनाओ। उनके नियमों का अनुसरण न करो। उनके आदेशों का पालन न करो। 19 मैं यहोवा हूँ। मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ। मेरे नियमों का पालन करो। मेरे आदेशों को मानो। वह काम करो जो मैं कहूँ। 20 यह प्रदर्शित करो कि मेरे विश्राम के दिन तुम्हारे लिये महत्वपूर्ण हैं। याद रखो कि वे तुम्हारे और हमारे बीच विशेष प्रतीक हैं। मैं यहोवा हूँ और वे पवित्र दिन यह संकेत करते हैं कि मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ।”
21 “‘किन्तु वे बच्चे मेरे विरुद्ध हो गये। उन्होंने मेरे नियमों का पालन नहीं किया। उन्होंने मेरे आदेश नहीं माने। उन्होंने वे काम नहीं किये जो मैंने उनसे कहा वे अच्छे नियम थे। यदि कोई उनका पालन करेगा तो वह जीवित रहेगा। उन्होंने मेरे विश्राम के दिनों को ऐसे लिया मानों वे महत्व न रखते हों। इसलिये मैंने उन्हें मरूभूमि में पूरी तरह नष्ट करने का निश्चय किया जिससे वे मेरे क्रोध की पूरी शक्ति का अनुभव कर सकें। 22 लेकिन मैंने अपने को रोक लिया। अन्य राष्ट्रों ने मुझे इस्राएल को मिस्र से बाहर लाते देखा। जिससे मेरा नाम अपवित्र न हो। इसलिये मैंने उन अन्य देशों के सामने इस्राएल को नष्ट नहीं किया। 23 इसलिये मैंने मरुभूमि में उन्हें एक और वचन दिया। मैंने उन्हें विभिन्न राष्ट्रों में बिखेरने और दूसरे अनेकों देशों में भेजने की प्रतीज्ञा की।
24 “‘इस्राएल के लोगों ने मेरे आदेश का पालन नहीं किया। उन्होंने मेरे नियमों को मानने से इन्कार कर दिया। उन्होंने मेरे विशेष विश्राम के दिनों को ऐसे लिया मानो वे महत्व न रखते हों। उन्होंने अपने पूर्वजों की गन्दी देवमूर्तियों को पूजा। 25 इसलिये मैंने उन्हें वे नियम दिये जो अच्छे नहीं थे। मैंने उन्हें वे आदेश दिये जो उन्हें सजीव नहीं कर सकते थे। 26 मैंने उन्हें अपनी भेंटों से अपने आप को गन्दा बनाने दिया। उन्होंने अपने प्रथम उत्पन्न बच्चों तक की बलि चढ़ानी आरम्भ कर दी। इस प्रकार मैंने उन लोगों को नष्ट करना चाहा। तब वे समझे कि मैं यहोवा हूँ।’ 27 अत: मनुष्य के पुत्र, अब इस्राएल के परिवार से कहो। उनसे कहो, ‘मेरा स्वामी यहोवा ये बातें कहता है: इस्राएल के लोगों ने मेरे विरुद्ध बुरी बातें कहीं और मेरे विरुद्ध बुरी योजनायें बनाई। 28 किन्तु मैं इसके होते हुए भी, उन्हें उस प्रदेश में लाया जिसे देने का वचन मैंने दिया था। उन्होंने उन पहाड़ियों और हरे वृक्षों को देखा अत: वे उन सभी स्थानों पर पूजा करने गये। वे अपनी बलियाँ तथा क्रोध—भेंटें उन सभी स्थानों को ले गए। उन्होंने अपनी वे बलियाँ चढ़ाई जो मधुर गन्ध वाली थी और उन्होंने अपनी पेय—भेंटे उन स्थानों पर चढ़ाई। 29 मैंने इस्राएल के लोगों से पूछा कि वे उन ऊँचे स्थान पर क्यों जा रहे हैं। लेकिन वे ऊँचे स्थान आज भी वहाँ हैं।’
30 परमेश्वर ने कहा, “इस्राएल के लोगों ने उन सभी बुरे कामों को किया। अत: इस्राएल के लोगों से बात करो। उनसे कहो, ‘मेरा स्वामी यहोवा यह कहता है: तुम लोगों ने उन कामों को करके अपने को गन्दा बना लिया है जिन्हें तुम्हारे पूर्वजों ने किया। तुमने एक वेश्या की तरह काम किया है। तुमने उन भयंकर देवताओं के साथ मुझे छोड़ दिया है जिनकी पूजा तुम्हारे पूर्वज करते थे। 31 तुम उसी प्रकार की भेंट चढ़ा रहे हो। तुम अपने बच्चों को आग में (असत्य देवताओं की भेंट के रूप में) डाल रहे हो। तुम अपने को आज भी गन्दी देवमूर्तियों से गन्दा बना रहे हो! क्या तुम सचमुच सोचते हो कि मैं तुम्हें अपने पास आने दूँगा और अपनी सलाह मांगने दूँगा मैं यहोवा और स्वामी हूँ। मैं अपने जीवन की शपथ खाकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर नहीं दूँगा और तुम्हें सलाह नहीं दूँगा! 32 तुम कहते रहते हो कि तुम अन्य राष्ट्रों की तरह होओगे। तुन उन राष्ट्रों के लोगों की तरह रहते हो। तुम लकड़ी और पत्थर के खण्डों (देवमूर्तियों) की पूजा करते हो!’”
33 मेरा स्वामी यहोवा कहता है, “अपने जीवन की शपथ खाकर मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं तुम्हारे ऊपर राजा की तरह शासन करुँगा। मैं अपनी शक्तिशाली भुजाओं को उठाऊँगा और तुम्हें दण्ड दूँगा। मैं तुम्हारे विरुद्ध अपना क्रोध प्रकट करुँगा! 34 मैं तुम्हें इन अन्य राष्ट्रों से बाहर लाऊँगा। मैंने तुम लोगों को उन राष्ट्रों में बिखेरा। किन्तु मैं तुम लोगों को एक साथ इकट्ठा करुँगा और इन राष्ट्रों से वापस लौटाऊँगा। किन्तु मैं अपनी शक्तिशाली भुजाएं उठाऊँगा और तुम्हें दण्ड दूँगा। मैं तुम्हारे विरुद्ध अपना क्रोध प्रकट करुँगा। 35 मैं पहले की तरह तुम्हें मरुभूमि में ले चलूँगा। किन्तु यह वह स्थान होगा जहाँ अन्य राष्ट्र रहते हैं। हम आमने—सामने खड़े होंगे और मैं तुम्हारे साथ न्याय करुँगा। 36 मैं तुम्हारे साथ वैसा ही न्याय करुँगा जैसा मैंने तुम्हारे पूर्वजों के साथ मिस्र की मरुभूमि में किया था।” मेरे स्वामी यहोवा ने ये बातें कहीं।
37 “मैं तुम्हें अपराधी प्रमाणित करुँगा और साक्षीपत्र के अनुसार तुम्हें दण्ड दूँगा। 38 मैं उन सभी लोगों को दूर करुँगा जो मेरे विरुद्ध खड़े हुए और जिन्होंने मेरे विरुद्ध पाप किये। मैं उन लोगों को तुम्हारी जन्मभूमि से दूर करुँगा। वे इस्राएल देश में फिर कभी नहीं लौटेंगे। तब तुम जानोगे कि मैं यहोवा हूँ।”
39 इस्राएल के परिवार, अब सुनो, मेरा स्वामी यहोवा यह कहता है, “यदि कोई व्यक्ति अपनी गन्दी देवमूर्तियों की पूजा करना चाहता है तो उसे जाने दो और पूजा करने दो। किन्तु बाद में यह न सोचना कि तुम मुझसे कोई सलाह पाओगे! तुम मेरे नाम को भविष्य में और अधिक अपवित्र नहीं कर सकोगे! उस समय नहीं, जब तुम अपने गन्दी देवमूर्तियों को भेंट देना जारी रखते हो।”
40 मेरा स्वामी यहोवा कहता है, “लोगों को मेरी सेवा के लिये मेरे पवित्र—इस्राएल के ऊँचे पर्वत पर आना चाहिए! इस्राएल का सारा परिवार अपनी भूमि पर होगा वे वहाँ अपने देश में होंगे। यह वह ही स्थान है जहाँ तुम आ सकते हो और मेरी सलाह मांग सकते हो और तुम्हें उस स्थान पर मुझे अपनी भेंट चढ़ाने आना चाहिये। तुम्हें अपनी फसल का पहला भाग वहाँ उस स्थान पर लाना चाहिये। तुम्हें अपनी सभी पवित्र भेंटें वहीं लानी चाहिये। 41 तब तुम्हारी भेंट की मधुर गन्ध से प्रसन्न होऊँगा। यह सब होगा जब मैं तुम्हें वापस लाऊँगा। मैंने तुम्हें विभिन्न राष्ट्रों में बिखेरा था। किन्तु मैं तुम्हें एक साथ इकट्ठा करुँगा और तुम्हें फिर से अपने विशेष लोग बनाऊँगा और सभी राष्ट्र यह देखेंगे। 42 तब तुम समझोगे कि मैं यहोवा हूँ। तुम यह तब जानोगे जब मैं तुम्हें इस्राएल देश में वापस लाऊँगा। यह वही देश है जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दने का वचन दिया था। 43 उस देश में तुम उन बुरे पापों को याद करोगे जिन्होंने तुम्हें दोषी बनाया और तुम लज्जित होगे। 44 इस्राएल के परिवार! तुमने बहुत बुरे काम किये और तुम लोगों को उन बुरे कामों के कारण नष्ट कर दिया जाना चाहिए। किन्तु अपने नाम की रक्षा के लिये मैं वह दण्ड तुम लोगों को नहीं दूँगा जिसके पात्र तुम लोग हो। तब तुम जानोगे कि मैं यहोवा हूँ।” मेरे स्वामी यहोवा ने ये बातें कहीं।
समीक्षा
आप कैसे पवित्र बनते हैं?
पवित्रता की पूँजी परमेश्वर के साथ आपके संबंध में पायी जाती है। परमेश्वर कहते हैं, 'मैं पवित्र हूँ' (20:40, एम.एस.जी)। उनके साथ आपके संबंध के द्वारा, वह चाहते हैं कि आप उनकी तरह बने। वह कहते हैं,' मैं यहोवा उनका पवित्र करने वाला हूँ' (व.12, एम.एस.जी)।
यही कारण था 'पवित्र विश्राम दिन, ' सब्त का (व.19, एम.एस.जी)। यह परमेश्वर के साथ उनके संबंध को विकसित करने के लिए उन्हे समय देने के लिए था। सप्ताह का पहला दिन परमेश्वर को देना, हर उस वस्तु के ऊपर परमेश्वर को प्राथमिकता देने का प्रतीक था।
परमेश्वर की इच्छा हमेशा से रही है कि लोग पवित्र हो। इस लेखांश में, हम फिर से लोगों के पवित्र न होने पर उनकी निराशा को देखते हैं। परमेश्वर के लोग, परमेश्वर के पवित्र चरित्र के एक परावर्तन बनने के लिए बनाए गए हैं।
आज के लेखांश का आरंभ यहूदा के अंतिम राजा के लिए एक शोक के साथ शुरु होता है (19:1)। 'सिंह' का अर्थ यहूदा से है और अंतिम राजा का वर्णन सिंह के बच्चे के रूप में किया गया है।
अध्याय 19:10-14 में, चित्र बदलकर तट पर लगी हुई दाखलता बन जाता है, लेकिन शोक का संदेश नियमित बना रहता है। जिस किसी साम्राज्य को हम अपने लिए बनाते हैं, वह मजबूत लग सकता है, लेकिन यह आसानी से और शीघ्रता से नष्ट हो जाएगा।
बाकी का लेखांश समझाता है कि क्यों इस्राएल जड़ से उखाड़ दिया गया और इसे दंड दिया गया, और उनके कार्य कैसे होने चाहिए थे। परमेश्वर बताते हैं कि कैसे लोगों ने उनकी पवित्रता को 'अशुद्ध किया' और इसका 'अपमान किया', लेकिन वह उस समय की बाट जोहते हैं जब ऐसा नहीं होगा।
मुख्य चीज जो लोगों को पवित्र बनाती है या जो परमेश्वर के साथ उनके संबंध में झूठ नहीं बुलावाती है। उनके विरूद्ध परमेश्वर की शिकायत इस बात पर केंद्रित है कि वे दूसरे ईश्वरों के पीछे जाते हैं, और जिस तरह से उन्होंने अपने आपको अशुद्ध किया उस चित्र के द्वारा जिसकी ओर उन्होंने देखा (20:16; वव.7,24,28,30)। यह उसके बहुत विपरीत है जो कि परमेश्वर के साथ एक नजदीक संबंध होना चाहिए, था, जिसमें ' मैं यहोवा उनका पवित्र करने वाला हूँ' (व.12)।
हर तरफ से, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर चाहते हैं कि लोग पवित्र बने जो उनके चरित्र को दर्शायेंगे। उनके पास योजना थी कि इस प्रकार की पवित्रता को संभव बनाये। यीशु के बलिदान और पिंतेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा के ऊँडेले जाने के द्वारा वह क्षण आया।
आप पवित्र बनाये गए हैं। पवित्र आत्मा आपके अंदर रहते हैं। परमेश्वर को अपने जीवन में प्रथम स्थान दीजिए और हर उस चीज से दूर रहिये जो उनके साथ आपके संबंध को बिगाड़ती है। आपके पवित्र जीवन की शांतिपूर्ण सुंदरता प्रभावी होगी और इसे रोका नहीं जा सकेगा।
प्रार्थना
पिता, मैं आपको अपने जीवन में प्रथम स्थान देना चाहता हूँ और हर उस चीज को दूर करना चाहता हूँ जो आपके साथ मेरे संबंध को बिगाड़ती है। मेरी सहायता कीजिए कि एक पवित्र जीवन जीऊँ।
पिप्पा भी कहते है
इब्रानियों 10:14
'यह एक सिद्ध व्यक्ति के द्वारा एक सिद्ध बलिदान है, कुछ बहुत ही असिद्ध लोगों के लिए'
मैं उनमें से एक हूँ।
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संदर्भ
सी.एस. लेविस, एक अमेरिकन महिला को पत्र, (विलियम बी. अर्डमन्स पब्लिशिंग क.1971)
टोनि कैसल, द हॉडर बुक ऑफ क्रिश्चन कोटेशन, (हॉडर एण्ड सॉटन, 1982) पी.146
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