दिन 347

डाँटे जाने के लाभ

बुद्धि भजन संहिता 141:1-10
नए करार प्रकाशित वाक्य 3:7-22
जूना करार एस्तेर 2:19-5:14

परिचय

किसी दूसरे के द्वारा डाँट खाने में मुझे कभी आनंद नहीं आता है, लेकिन समय बीतते-बीतते मैंने देखा है कि एक मित्र की वफादार डाँट का बड़ा महत्व है। वचन हमें बताते हैं कि सही प्रकार की डाँट एक महत्वपूर्ण तरीका है जिसमें परमेश्वर हमारी चिंता करते हैं, और जिसमें हम एक दूसरे की चिंता कर सकते हैं।

बुद्धि

भजन संहिता 141:1-10

दाऊद का एक स्तुति पद।

141हे यहोवा, मैं तुझको सहायता पाने के लिये पुकारता हूँ।
 जब मैं विनती करुँ तब तू मेरी सुन ले।
 जल्दी कर और मुझको सहारा दे।
2 हे यहोवा, मेरी विनती तेरे लिये जलती धूप के उपहार सी हो
 मेरी विनती तेरे लिये दी गयी साँझ कि बलि सी हो।

3 हे यहोवा, मेरी वाणी पर मेरा काबू हो।
 अपनी वाणी पर मैं ध्यान रख सकूँ, इसमें मेरा सहायक हो।
4 मुझको बुरी बात मत करने दे।
 मुझको रोके रह बुरों की संगती से उनके सरस भोजन से और बुरे कामों से।
 मुझे भाग मत लेने दे ऐसे उन कामों में जिन को करने में बुरे लोग रख लेते हैं।
5 सज्जन मेरा सुधार कर सकता है।
 तेरे भक्त जन मेरे दोष कहे, यह मेरे लिये भला होगा।
 मैं दुर्जनों कि प्रशंसा ग्रहण नहीं करुँगा।
 क्यों क्योंकि मैं सदा प्रार्थना किया करता हूँ।
 उन कुकर्मो के विरुद्ध जिनको बुरे लोग किया करते हैं।

6 उनके राजाओं को दण्डित होने दे
 और तब लोग जान जायेंगे कि मैंने सत्य कहा था।
7 लोग खेत को खोद कर जोता करते हैं और मिट्टी को इधर—उधर बिखेर देते हैं।
 उन दुष्टों कि हड्डियाँ इसी तरह कब्रों में इधर—उधर बिखरेंगी।

8 हे यहोवा, मेरे स्वामी, सहारा पाने को मेरी दृष्टि तुझ पर लगी है।
 मुझको तेरा भरोसा है। कृपा कर मुझको मत मरने दे।
9 मुझको दुष्टों के फँदों में मत पड़ने दे।
 उन दुष्टों के द्वारा मुझ को मत बंध जाने दे।
10 वे दुष्ट स्वयं अपने जालों में फँस जायें
 जब मैं बचकर निकल जाऊँ।
 बिना हानि उठाये।

समीक्षा

नम्र डाँट

मेरे जीवन में ऐसे समय रहे हैं जब लोगों ने नम्रता के कारण मुझे डाँटा है। उस समय यह कभी आसान नहीं होता। लेकिन, मैं उनके प्रति बहुत आभारी हूँ। दाऊद सत्यनिष्ठ व्यक्ति की डाँट को नम्रता से समझते हैं -यह मेरे सिर पर का तेल ठहरेगा“ (व.5), क्योंकि उनकी इच्छा है कि ना केवल उनका सिर, बल्कि उनके शरीर का हर अंग और उनका जीवन, परमेश्वर का सम्मान करेः

  1. अपने हाथों को उठाईये

’मेरा हाथ फैलाना, संध्याकाल का अन्नबलि ठहरे“ (व.2)। परमेश्वर के सामने हाथों को उठाना, परमेश्वर के सामने संपूर्ण शरीर को खोलने का प्रतीक है।

  1. अपने होठों पर नियंत्रण रखिए

’हे यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठाइए, मेरे होठों के द्वार की रखवाली करिए!“ (व.3)। एक भाषण देने से पहले या एक सभा में जाने से पहले मैं अक्सर यह प्रार्थना करता हूँ –कि कुछ भी व्यर्थ कहने से परमेश्वर मुझे बचा लेंगे, और मेरे वचन प्रोत्साहन के और आशीष के वचन होंगे।

  1. अपने हृदय की निगरानी कीजिए

’मेरा मन किसी बुरी बात की ओर फिरने न दे“ (व.4अ)। आपके विचार आपका कार्य बन जाते हैं। आपके कार्य आपकी आदतें बन जाते हैं। आपकी आदतें आपका चरित्र बन जाता है। आपका चरित्र आपका जीवन बन जाता है। इन सब की शुरुवात आपके हृदय से होती है।

  1. अपनी आँखो को केंद्रित करिए

’हे यहोवा प्रभु, मेरी आँखें आपकी ही ओर लगी हैं“ (व.8अ)। हमें ’अपनी आँखे यीशु पर केंद्रित करनी हैं“ (इब्रानियों 12:2)।

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं आराधना में अपने हाथों और आवाज को उठाता हूँ, और आप पर अपनी निगाहे लगाता हूँ। मेरे मुँह और होठों पर निगरानी रखिये, और मेरे हृदय को बुराई से बचाईये। होने दीजिए कि सत्यनिष्ठ की नम्र डाँट ’मेरे सिर पर तेल के समान ठहरे“ (भजनसंहिता 141:5)।

नए करार

प्रकाशित वाक्य 3:7-22

फिलादेलफिया की कलीसिया को मसीह का सन्देश

7 “फिलादेलफिया की कलीसिया के स्वर्गदूत को यह लिख:

“वह जो पवित्र और सत्य है तथा जिसके पास दाऊद की कुंजी है जो ऐसा द्वार खोलता है जिसे कोई बंद नहीं कर सकता, तथा जो ऐसा द्वार बंद करता है, जिसे कोई खोल नहीं सकता; इस प्रकार कहता है।

8 “मैं तुम्हारे कर्मों को जानता हूँ। देखो मैंने तुम्हारे सामने एक द्वार खोल दिया है, जिसे कोई बंद नहीं कर सकता। मैं जानता हूँ कि तेरी शक्ति थोड़ी सी है किन्तु तूने मेरे उपदेशों का पालन किया है तथा मेरे नाम को नकारा नहीं है। 9 सुनो कुछ ऐसे हैं जो शैतान की मण्डली के हैं तथा जो यहूदी न होते हुए भी अपने को यहूदी कहते हैं, जो मात्र झूठे हैं, मैं उन्हें यहाँ आने को विवश करके तेरे चरणों तले झुका दूँगा तथा मैं उन्हें विवश करूँगा कि वे यह जानें कि तुम मेरे प्रिय हो। 10 क्योंकि तुमने धैर्यपूर्वक सहनशीलता के मेरे आदेश का पालन किया है। बदले में मैं भी उस परीक्षा की घड़ी से तुम्हारी रक्षा करूँगा जो इस धरती पर रहने वालों को परखने के लिए समूचे संसार पर बस आने ही वाली है।

11 “मैं बहुत जल्दी आ रहा हूँ। जो कुछ तुम्हारे पास है, उस पर डटे रहो ताकि तुम्हारे विजय मुकुट को कोई तुमसे न ले ले। 12 जो विजयी होगा उसे मैं अपने परमेश्वर के मन्दिर का स्तम्भ बनाऊँगा। फिर कभी वह इस मन्दिर से बाहर नहीं जाएगा। तथा मैं अपने परमेश्वर का और अपने परमेश्वर की नगरी का नए यरूशलेम का नाम उस पर लिखूँगा, जो मेरे परमेश्वर की ओर से स्वर्ग से नीचे उतरने वाली है। उस पर मैं अपना नया नाम भी लिखूँगा। 13 जो सुन सकता है, वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कह रही है?

लौदीकिया की कलीसिया को मसीह के सन्देश

14 “लौदीकिया की कलीसिया के स्वर्गदूत को यह लिख:

“जो आमीन है, विश्वासपूर्ण है तथा सच्चा साक्षी है, जो परमेश्वर की सृष्टि का शासक है, इस प्रकार कहता है:

15 “मैं तेरे कर्मों को जानता हूँ और यह भी कि न तो तू शीतल होता है और न गर्म। 16 इसलिए क्योंकि तू गुनगुना है न गर्म और न ही शीतल, मैं तुझे अपने मुख से उगलने जा रहा हूँ। 17 तू कहता है, मैं धनी हो गया हूँ और मुझे किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है किन्तु तुझे पता नहीं है कि तू अभागा है, दयनीय है, दीन है, अंधा है और नंगा है। 18 मैं तुझे सलाह देता हूँ कि तू मुझसे आग में तपाया हुआ सोना मोल ले ले ताकि तू सचमुच धनवान हो जाए। पहनने के लिए श्वेत वस्त्र भी मोल ले ले ताकि तेरी लज्जापूर्ण नग्नता का तमाशा न बने। अपने नेत्रों में आँजने के लिए तू अंजन भी ले ले ताकि तू देख पाए।

19 “उन सभी को जिन्हें मैं प्रेम करता हूँ, मैं डाँटता हूँ और अनुशासित करता हूँ। तो फिर कठिन जतन और मनफिराव कर। 20 सुन, मैं द्वार पर खड़ा हूँ और खटखटा रहा हूँ। यदि कोई मेरी आवाज़ सुनता है और द्वार खोलता है तो मैं उसके घर में प्रवेश करूँगा तथा उसके साथ बैठकर खाना खाऊँगा और वह मेरे साथ बैठकर खाना खाएगा।

21 “जो विजयी होगा मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठने का गौरव प्रदान करूँगा। ठीक वैसे ही जैसे मैं विजयी बनकर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठा हूँ। 22 जो सुन सकता है सुने, कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कह रही है।”

समीक्षा

प्रेमी डाँट

यीशु आपसे प्रेम करते हैं। जब वह आपको डाँट, परीक्षा या अनुशासन की आग से गुजरने देते हैं, तब वह इसे प्रेम के कारण करते हैं। वह फिलदीफिया के चर्च से कहते हैं:’ मैंने तुझ से प्रेम रखा है ... तुझे परीक्षा के उस समय तक बचाए रखूँगा“ (वव.9-10, एम.एस.जी)। वह लौदीकिया की कलीसिया से कहते हैं:’ मैं जिन से प्रेम करता हूँ, उन सब को उलाहना और ताड़ना देता हूँ“ (व.19)। आपको कैसे उत्तर देना चाहिए?

  1. हर अवसर का लाभ लीजिए

यीशु पवित्र और सच्चे हैं और उनके पास ’चाबियाँ हैं...“ , जिसके खोले हुए को कोई बन्द नहीं कर सकता और बन्द किए हुए को कोई खोल नहीं सकता“ (व.7)। उदाहरण के लिए यदि आप एक नौकरी या संबंध के विषय में अनिश्चित हैं, तो परमेश्वर से माँगिये कि दरवाजे को बंद कर दें यदि यह सही नहीं है, या दरवाजा खोल दें यदि यह सही है।

मेरे जीवन में कम से कम दो बार परमेश्वर ने उस चीज के लिए दरवाजा बंद कर दिया जो मुझे बहुत चाहिए था, और मैं विश्वास करता था कि वह परमेश्वर की इच्छा थी। प्रार्थना करते हुए और संघर्ष करते हुए, मैंने बलपूर्वक दरवाजा खोलने की कोशिश की – लेकिन वे बंद रहे। मैं बहुत निराश हो गया था। लेकिन, सालों बाद, मैं बहुत आभारी हूँ और अब समझता हूँ कि क्यों उन्होंने वे दरवाजें बंद किए। किंतु, मैं नहीं जानता कि मैं कभी जानूँगा, स्वर्ग के इस पहलू को, क्यों परमेश्वर ने मेरे जीवन में दूसरे दरवाजे बंद किए।

आत्मा आगे कहते हैं,’ देख, मैं ने तेरे सामने एक द्वार खोल रखा है, जिसे कोई बन्द नहीं कर सकता“ (व.8)। कभी कभी परमेश्वर आपके सामने अवसर का एक दरवाजा रखते हैं। यदि वह दरवाजा खोलते हैं, तो कोई मनुष्य इसे बंद नहीं कर सकता है। शायद से आप बड़े प्रहार के अंतर्गत आ जाएँ, लेकिन यदि यीशु दरवाजा खोलते हैं, तो आप आश्वस्त होते हैं कि वह नियंत्रण में हैं।

इसका अर्थ निष्क्रिय रूप से दरवाजा खुलने का इंतजार करना नहीं है। अक्सर हमें विश्वास में पहला कदम उठाना पड़ता है। यह अपने आप खुलने वाले दरवाजे के सामने जाने की तरह है –आपको पहला एक कदम बढ़ाना पड़ेगा, इससे पहले कि आप देखें कि दरवाजा खुलता है या नहीं।

फिलदीफिया के चर्च की सामर्थ कम है, फिर भी इसने यीशु के वचन का पालन किया है और उनके नाम का इन्कार नहीं किया (व.8)। उन्होंने धीरज के साथ सहा है और यीशु उन्हें परीक्षा के समय बचाये रखने का वायदा करते हैं (व.10)।

मानवीय रूप से कहें तो, यह चर्च विशेषरूप से आकर्षक नहीं लगता है। फिर भी, यीशु इसके लिए आलोचना के कोई शब्द नहीं कहते हैं। अक्सर उनका दृष्टिकोण, हमारे दृष्टिकोण से बहुत अलग हो सकता है, और उनके लिए वफादारी, आकार या सामर्थ के बाहरी चिह्न से अधिक महत्वपूर्ण है।

उनका संदेश हैः जो तुम्हारे पास है उसे थामे रहो। वह वायदा करते हैं कि जो जय पायेगा वह परमेश्वर के राज्य में स्तंभ बना दिए जायेंगे। उनका नाम उन पर लिखा जाएगा (व.12)। आपका भविष्य पूरी तरह से सुरक्षित है।

  1. यीशु के लिए अपने हृदय को खोलिए

यीशु के कठोर शब्द लौदीकिया के चर्च के लिए आरक्षित हैं (वव.15-17)। लौदीकिया का चर्च, पश्चिम में चर्च के समान है। एक समय पर यह बहुत ही ’सफल“ था - लौदीकिया एक स्थान था जो इसके बैंक और उद्योग के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन आत्मिक रूप से वे घमंडी थे, ’अभागा“, ’तुच्छ“, ’कंगाल“, ’अंधा“ और ’नंगा“ (व.17)।

मुझे यह वचन बहुत चुनौती देते हैं।

फिर भी, यहाँ पर आशा है। अब भी परमेश्वर हमसे प्रेम करते हैं (व.19)। वह हमें चिताते हैं कि वास्तविक धन प्राप्त करे जो आग में शुद्ध किया गया है, ताकि हम आत्मिक रूप से धनी बन जाएँ (व.18अ)। ’ श्वेत वस्त्र ले ले कि पहन कर तुझे अपने नंगेपन की लज्जा न हो“ (व.18ब)। ’ अपनी आँखों में लगाने के लिये सुर्मा ले कि तू देखने लगे“ (व.18क)।

जैसे ही हम शुद्ध करने वाली आग से गुजरते हैं यह एक प्रकार का अनुशासन है (व.19)। इसका एक उद्देश्य है। वह चाहते हैं कि हम ’ सरगर्म हो और मन फिराये“ (व.19)।

इस संदर्भ में यह अद्भुत और प्रसिद्ध वचन मिलता हैः’ देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ“ (व.20)। साथ में खाना घनिष्ठ मित्रता का एक चिह्न है जो यीशु उन सभी को देते हैं जो अपने जीवन के दरवाजे को उनके लिए खोलते हैं।

वहाँ पर केवल एक दस्ता है और यह दरवाजे के अंदर है। दूसरे शब्दों में, आपको दरवाजा खोलना है ताकि यीशु को अपने हृदय में आने दे सकें। यीशु कभी बलपूर्वक अंदर नहीं आयेंगे। वह आपको चुनाव करने की स्वतंत्रता देते हैं। यह आप पर निर्भर है कि आप उनके लिए दरवाजा खोलते हैं या नहीं। यदि आप खोलते हैं, वह वायदा करते हैं,’मैं अंदर आऊँगा और उनके साथ भोजन करुँगा और वे मेरे साथ।“

प्रार्थना

परमेश्वर, मैं उन समयों के लिए पश्चाताप करता हूं जब मैं गुनगुना था, आधे-हृदय का था, आत्मसंतुष्ट और आत्मिक रूप से गरीब था। मैं आपके साथ महान घनिष्ठता की लालसा करता हूं। आइये और आज मुझे अपनी पवित्र आत्मा से भर दीजिए।

जूना करार

एस्तेर 2:19-5:14

मोर्दकै को एक बुरी योजना का पता चला

19 मोर्दकै उस समय राजद्वार के निकट ही बैठा था, जब दूसरी बार लड़कियों को इकट्ठा किया गया था। 20 एस्तेर ने अभी भी इस रहस्य को छुपाया हुआ था कि वह एक यहूदी थी। अपने परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में उसने किसी को कुछ नहीं बताया था, क्योंकि मोर्दकै ने उसे ऐसा करने से रोक दिया था। वह मोर्दकै की आज्ञा का अब भी वैसे ही पालन करती थी, जैसे वह तब किया करती थी, जब वह मोर्दकै की देख—रेख में थी।

21 उसी समय जब मोर्दकै राजद्वार के निकट बैठा करता था, यह घटना घटी: बिकतान और तेरेश जो राजा के द्वार रक्षक अधिकारी थे, राजा से अप्रसन्न हो गये थे। उन्होंने राजा क्षयर्ष की हत्या का षड़यन्त्र रचना शुरु कर दिया। 22 किन्तु मोर्दकै को उस षड़यन्त्र का पता चल गया और उसने उसे महारानी एस्तेर को बता दिया। फिर महारानी एस्तेर ने उसे राजा से कह दिया। उसने राजा को यह भी बता दिया कि मोर्दकै ही वह व्यक्ति है, जिसने इस षड़यन्त्र का पता चलाया है। 23 इसके बाद उस सूचना की जाँच की गयी और यह पता चला कि मोर्दकै की सूचना सही थी और उन दो पहरेदारों को जिन्होंने राजा को मार डालने का षड़यन्त्र बनाया था, एक खम्भे पर लटका दिया गया। राजा के सामने ही ये सभी बातें राजा के इतिहास की पुस्तक में लिख दी गयीं।

यहूदियों के विनाश के लिये हामान की योजना

3इन बातों के घटने के बाद महाराजा क्षयर्ष ने हामान का सम्मान किया। हामान अगागी हम्मदाता नाम के व्यक्ति का पुत्र था। महाराजा ने हामान की पदोन्नति कर दी और उसे दूसरे मुखियाओं से अधिक बड़ा, महत्वपूर्ण और आदर का पद दे दिया। 2 राजा के द्वार पर महाराजा के सभी मुखिया हामान के आगे झुक कर उसे आदर देने लगे। वे महाराजा की आज्ञा के अनुसार ही ऐसा किया करते थे। किन्तु मोर्दकै ने हामान के आगे झुकने अथवा उसे आदर देने को मना कर दिया। 3 इस पर राजा के द्वार के अधिकारियों ने मोर्दकै से पूछा, “तुम हामान के आगे झुकने की अब महाराजा की आज्ञा का पालन क्यों नहीं करते?”

4 राजा के वे अधिकारी प्रतिदिन मोर्दकै से ऐसा कहते रहे। किन्तु वह हामान के आगे झुकने के आदेश को मानने से इन्कार करता रहा। सो उन अधिकारियों ने हामान से इसके बारे में बता दिया। वे ये देखना चाहते थे कि हामान मोर्दकै का क्या करता है? मोर्दकै ने उन अधिकारियों को बता दिया था कि वह एक यहूदी था। 5 हामान ने जब यह देखा कि मोर्दकै ने उसके आगे झुकने और उसे आदर देने को मना कर दिया है तो उसे बहुत क्रोध आया। 6 हामान को यह पता तो चल ही चुका था कि मोर्दकै एक यहूदी है। किन्तु वह मोर्दकै की हत्या मात्र से संतुष्ट होने वाला नहीं था। हामान तो यह भी चाहता था कि वह कोई एक ऐसा रास्ता ढूंढ निकाले जिससे क्षयर्ष के समूचे राज्य के उन सभी यहूदियों को मार डाले जो मोर्दकै के लोग हैं।

7 महाराजा क्षयर्ष के राज्य के बारहवें वर्ष में नीसान नाम के पहले महीने में विशेष दिन और विशेष महीने चुनने के लिये हामान ने पासे फेंके और इस तरह अदार नाम का बारहवाँ महीना चुन लिया गया। (उन दिनों लाटरी निकालने के ये पासे, “पुर” कहलाया करते थे।) 8 फिर हामान महाराजा क्षयर्ष के पास आया और उससे बोला, “हे महाराजा क्षयर्ष तुम्हारे राज्य के हर प्रान्त में लोगों के बीच एक विशेष समूह के लोग फैले हुए हैं। ये लोग अपने आप को दूसरे लोगों से अलग रखते हैं। इन लोगों के रीतिरिवाज भी दूसरे लोगों से अलग हैं और ये लोग राजा के नियमों का पालन भी नहीं करते हैं। ऐसे लोगों को अपने राज्य में रखने की अनुमति देना महाराज के लिये अच्छा नहीं हैं।

9 “यदि महाराज को अच्छा लगे तो मेरे पास एक सुझाव है: उन लोगों को नष्ट कर डालने के लिये आज्ञा दी जाये। इसके लिये मैं महाराज के कोष में दस हजार चाँदी के सिक्के जमा कर दूँगा। यह धन उन लोगों को भुगतान के लिये होगा जो इस काम को करेंगे।”

10 इस प्रकार महाराजा ने राजकीय अंगूठी अपनी अंगुली से निकाली और उसे हामान को सौंप दिया। हामान अगागी हम्मदाता का पुत्र था। वह यहूदियों का शत्रु था। 11 इसके बाद महाराजा ने हामान से कहा, “यह धन अपने पास रखो और उन लोगों के साथ जो चाहते हो, करो।”

12 फिर उस पहले महीने के तेरहवें दिन महाराजा के सचिवों को बुलाया गया। उन्होंने हामान के सभी आदेशों को हर प्रांत की लिपि और विभिन्न लोगों की भाषा में अलग—अलग लिख दिया। साथ ही उन्होंने उन आदेशों को प्रत्येक कबीले के लोगों की भाषा में भी लिख दिया। उन्होंने राजा के मुखियाओं, विभिन्न प्रांतों के राज्यपालों अलग अलग कबीलों के मुखियाओं के नाम पत्र लिख दिये। ये पत्र उन्होंने स्वयं महाराजा क्षयर्ष की ओर से लिखे थे और आदेशों को स्वयं महाराजा की अपनी अंगूठी से अंकित किया गया था।

13 संदेशवाहक राजा के विभिन्न प्रांतों में उन पत्रों को ले गये। इन पत्रों में सभी यहूदियों के सम्पूर्ण विनाश, हत्या और बर्बादी के राज्यादेश थे। इसका आशा था कि युवा, वृद्ध, स्त्रियाँ और नन्हें बच्चे तक समाप्त कर दिये जायें। आज्ञा यह थी कि सभी यहूदियों को बस एक ही दिन मौत के घाट उतार दिया जाये। वह दिन था अदार नाम के बारहवें महीने की तेरहवीं तारीख़ को था और यह आदेश भी दिया गया था कि यहूदियों के पास जो कुछ भी हो, उसे ले लिया जाये।

14 इन पत्रों की प्रतियाँ उस आदेश के साथ एक नियम के रूप में दी जानी थीं। हर प्रांत में इसे एक नियम बनाया जाना था। राज्य में बसी प्रत्येक जाति के लोगों में इसकी घोषणा की जानी थी, ताकि वे सभी लोग उस दिन के लिये तैयार रहें। 15 महाराजा की आज्ञा से संदेश वाहक तुरन्त चल दिये। राजधानी नगरी शूशन में यह आज्ञा दे दी गयी। महाराजा और हामान तो दाखमधु पीने के लिए बैठ गये किन्तु शूशन नगर में घबराहट फैल गयी।

सहायता के लिये एस्तेर से मोर्दकै की विनती

4मोर्दकै ने, जो कुछ हो रहा था, उसके बारे में सब कुछ सुना। जब उसने यहूदियों के विरुद्ध राजा की आज्ञा सुनी तो अपने कपड़े फाड़ लिये। उसने शोक वस्त्र धारण कर लिये और अपने सिर पर राख डाल ली। वह ऊँचे स्वर में विलाप करते हुए नगर में निकल पड़ा। 2 किन्तु मोर्दकै बस राजा के द्वार तक ही जा सका क्योंकि शोक वस्त्रों को पहन कर द्वार के भीतर जाने की आज्ञा किसी को भी नहीं थी। 3 हर किसी प्रांत में जहाँ कहीं भी राजा का यह आदेश पहुँचा, यहूदियों में रोना—धोना और शोक फैल गया। उन्होंने खाना छोड़ दिया और वे ऊँचे स्वर में विलाप करने लगे। बहुत से यहूदी शोक वस्त्रों को धारण किये हुए और अपने सिरों पर राख डाले हुए धरती पर पड़े थे।

4 एस्तेर की दासियों और खोजों ने एस्तेर के पास जाकर उसे मोर्दकै के बारे में बताया। इससे महारानी एस्तेर बहुत दु:खी और व्याकुल हो उठी। उसने मोर्दकै के पास शोक वस्त्रों के बजाय दूसरे कपड़े पहनने को भेजे। किन्तु उसने वे वस्त्र स्वीकार नहीं किये। 5 इसके बाद एस्तेर ने हताक को अपने पास बुलाया। हताक एक ऐसा खोजा था जिसे राजा ने उसकी सेवा के लिये नियुक्त किया था। एस्तेर ने उसे यह पता लगाने का आदेश दिया कि मोर्दकै को क्या व्याकुल बनाये हुए है और क्यों? 6 सो हताक नगर के उस खुले मैदान में गया जहाँ राजद्वार के आगे मोर्दकै मौजूद था। 7 वहाँ मोर्दकै ने हताक से, जो कुछ हुआ था, सब कह डाला। उसने हताक को यह भी बताया कि हामान ने यहूदियों की हत्या के लिये राजा के कोष में कितना धन जमा कराने का वादा किया है। 8 मोर्दकै ने हताक को यहूदियों की हत्या के लिये राजा के आदेश पत्र की एक प्रति भी दी। वह आदेश पत्र शूशन नगर में हर कहीं भेजा गया था। मोर्दकै यह चाहता था कि वह उस पत्र को एस्तेर को दिखा दे और हर बात उसे पूरी तरह बता दे और उसने उससे यह भी कहा कि वह एस्तेर को राजा के पास जाकर मोर्दकै और उसके अपने लोगों के लिये दया की याचना करने को प्रेरित करे।

9 हताक एस्तेर के पास लौट आया और उसने एस्तेर से मोर्दकै ने जो कुछ कहने को कहा था, सब बता दिया।

10 फिर एस्तेर ने मोर्दकै को हताक से यह कह ला भेजा: 11 “मोर्दकै, राजा के सभी मुखिया और राजा के प्रांतों के सभी लोग यह जानते हैं कि किसी भी पुरुष अथवा स्त्री के लिए राजा का बस यही एक नियम है कि राजा के पास बिना बुलाये जो भी जाता है, उसे प्राणदण्ड दिया जाता है। इस नियम का पालन बस एक ही स्थिति में उस समय नहीं किया जाता था जब राजा अपने सोने के राजदण्ड को उस व्यक्ति की ओर बढ़ा देता था। यदि राजा ऐसा कर देता तो उस व्यक्ति के प्राण बच जाते थे किन्तु मुझे तीस दिन हो गये हैं और राजा से मिलने के लिये मुझे नहीं बुलाया गया है।”

12-13 इसके बाद एस्तेर का सन्देश मोर्दकै के पास पहुँचा दिया गया। उस सन्देश को पा कर मोर्दकै ने उसे वापस उत्तर भेजा: “एस्तेर, ऐसा मत सोच कि तू बस राजा के महल में रहती है इसीलिए बच निकलने वाली एकमात्र यहूदी होगी। 14 यदि अभी तू चुप रहती है तो यहूदियों के लिये सहायता और मुक्ति तो कहीं और से आ ही जायेगी किन्तु तू और तेरे पिता का परिवार सभी मार डाले जायेंगे और कौन जानता है कि तू किसी ऐसे ही समय के लिये महारानी बनाई गयी हो, जैसा समय यह है।”

15-16 इस पर एस्तेर ने मोर्दकै को अपना यह उत्तर भिजवाया: “मोर्दकै, जाओ और जाकर सभी यहूदियों को शूशन नगर में इकटठ करो और मेरे लिये उपवास रखो। तीन दिन और तीन रात तक न कुछ खाओ और न कुछ पीओ। तेरी तरह मैं भी उपवास रखूँगी और साथ ही मेरी दासियाँ भी उपवास रखेंगी। हमारे उपवास रखने के बाद मैं राजा के पास जाऊँगी। मैं जानती हूँ कि यदि राजा मुझे न बुलाए तो उसके पास जाना नियम के विरुद्ध है किन्तु चाहे मैं मर ही क्यों न जाऊँ, मेरी हत्या ही क्यों न कर दी जाये, जैसे भी बन पड़ेगा, ऐसा करूँगी।”

17 इस प्रकार मोर्दकै वहाँ से चला गया और एस्तेर ने उससे जैसा करने को कहा था उसने सब कुछ वैसा ही किया।

एस्तेर की राजा से विनती

5तीसरे दिन एस्तेर ने अपने विशेष वस्त्र पहने और राज महल के भीतरी भाग में जा खड़ी हुई। यह स्थान राजा की बैठक के सामने था। राजा दरबार में अपने सिंहासन पर बैठा था। राजा उसी ओर मुँह किये बैठा था जहाँ से लोग सिंहासन के कक्ष की ओर प्रवेश करते थे। 2 राजा ने महारानी एस्तेर को वहाँ दरवार में खड़े देखा। उसे देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसकी ओर अपने हाथ में थामें हुए सोने के राजदण्ड को आगे बढ़ा दिया। इस प्रकार एस्तेर ने उस कमरे में प्रवेश किया और वह राजा के पास चली गयी और उसने राजा के सोने के राजदण्ड के सिर को छू दिया।

3 इसके बाद राजा ने उससे पूछा, “महारानी एस्तेर, तुम बेचैन क्यों हो? तुम मुझसे क्या चाहती हो? तुम जो चाहो मैं तुम्हें वही दूँगा। यहाँ तक कि अपना आधा राज्य तक, मैं तुम्हें दे दूँगा।”

4 एस्तेर ने कहा, “मैंने आपके और हामान के लिये एक भोज का आयोजन किया है। क्या आप और हामान आज मेरे यहाँ भोज में पधारेंगे?”

5 इस पर राजा ने कहा, “हामान को तुरंत बुलाया जाये ताकि एस्तेर जो चाहती है, हम उसे पूरा कर सकें।”

महाराजा और हामान एस्तेर ने उनके लिये जो भोज आयोजित की थी, उसमें आ गये। 6 जब वे दाखमधु पी रहे थे तभी महाराजा ने एस्तेर से फिर पूछा, “एस्तेर, कहो अब तुम क्या माँगना चाहती हो? कुछ भी माँग लो, मैं तुम्हें वही दे दूँगा। कहो तो वह क्या है जिसकी तुम्हें इच्छा है? तुम्हारी जो भी इच्छा होगी, वही मैं तुम्हें दूँगा। अपने राज्य का आधा भाग तक।”

7 एस्तेर ने कहा, “मैं यह माँगना चाहती हूँ। 8 यदि मुझे महाराज अनुमति दें और यदि जो मैं चाहूँ, वह मुझे देने से महाराज प्रसन्न हों तो मेरी इच्छा यह है कि महाराज और हामान कल मेरे यहाँ आयें। कल मैं महाराजा और हामान के लिये एक और भोज देना चाहती हूँ और उसी समय में यह बताऊँगी कि वास्तव में मैं क्या चाहती हूँ।”

मोर्दकै पर हामान का क्रोध

9 उस दिन हामान राजमहल से अत्यधिक प्रसन्नचित्त हो कर विदा हुआ। किन्तु जब उसने राजा के द्वार पर मोर्दकै को देखा तो उसे मोर्दकै पर बहुत क्रोध आया। हामान मोर्दकै को देखते ही क्रोध से पागल हो उठा क्योंकि जब हामान वहाँ से गुजरा तो मोर्दकै ने उसके प्रति कोई आदर भाव नहीं दिखाया। मोर्दकै को हामान का कोई भय नहीं था, और इसी से हामान क्रोधित हो उठा था। 10 किन्तु हामान ने अपने क्रोध पर काबू किया और घर चला गया। इसके बाद हामान ने अपने मित्रों और अपनी पत्नी जेरेश को एक साथ बुला भेजा। 11 वह अपने मित्रों के आगे अपने धन और अनेक पुत्रों के बारे में डींग मारते हुए यह बताने लगा कि राजा उसका किस प्रकार से सम्मान करता है। वह बढ़ा चढ़ा कर यह भी बताने लगा कि दूसरे सभी हाकिमों से राजा ने किस प्रकार उसे और अधिक ऊँचे पद पर पदोन्नति दी है। 12 “इतना ही नहीं” हामान ने यह भी बताया। “एक मात्र मैं ही ऐसा व्यक्ति हूँ जिसे महारानी एस्तेर ने अपने भोज में राजा के साथ बुलाया था और महारानी ने मुझे कल फिर राजा के साथ बुला भेजा था। 13 किन्तु मुझे इन सब बातों से सचमुच कोई प्रसन्नता नहीं है। वास्तव में मैं उस समय तक प्रसन्न नहीं हो सकता जब तक राजा के द्वार पर मैं उस यहूदी मोर्दकै को बैठे हुए देखता हूँ।”

14 इस पर हामान की पत्नी जेरेश और उसके मित्रों ने उसे एक सुझाव दिया। वे बोले, “किसी से कह कर पचहत्तर फुट ऊँचा फाँसी देने का एक खम्भा बनवाओं! जिस पर उसे लटकाया जाये! फिर प्रातःकाल राजा से कहो कि वह मोर्दकै को उस पर लटका दे। फिर राजा के साथ तुम भोज पर जाना और आनन्द से रहना।”

हामान को यह सुझाव अच्छा लगा। सो उसने फाँसी का खम्भा बनवाने के लिए किसी को आदेश दे दिया।

समीक्षा

बुद्धिमान डाँट

गैर-सामीवाद हाल ही की उल्लेखनीय वस्तु नहीं है। यहाँ पर एस्तेर की पुस्तक में, पाँचवी शताब्दी बीसी में तैयार की गई, हमने गैर-सामीवाद के विषय में पढ़ा। एस्तेर ने अपनी जाति और कुल का पता नहीं दिया था (2:20)। हामान चाहता था कि ’ क्या जवान, क्या बूढ़ा, क्या स्त्री, क्या बालक, सब यहूदी मार डाले जाएं, नष्ट किए जाएं और उनका सत्यानाश किया जाए; और उनकी धन सम्पत्ति लूट ली जाए“ (3:13)।

’ तब मोर्दकै वस्त्र फाड़ टाट पहन कर, राख डालकर, नगर के मध्य जाकर उँचे और दुःखदभरे शब्द से चिल्लाने लगा“ (4:1)। परिणाम स्वरूप वह सहायता के लिए परमेश्वर को पुकार रहा था।

मोर्दकै ने समझा कि एस्तेर, उनकी दत्तक बेटी, ऐसी स्थिति में थी जहाँ से एक अंतर पैदा कर सकती थी। एस्तेर ने अपनी स्थिति की परेशानियों को बताना शुरु किया, और कैसे उसके लिए मदद करना बहुत ही कठिन होगा (व.व.9-11’~

मोर्दकै का उत्तर माता-पिता की बुद्धिमान डाँट थीः’तू मन ही मन यह विचार न कर कि मैं ही राजभवन में रहने के कारण और सब यहूदियों में से बची रहूँगी। क्योंकि जो तू इस समय चुपचाप रहे, तो किसी न किसी उपाय से यहूदियों का छुटकारा और उध्दार हो जाएगा, परन्तु तू अपने पिता के घराने समेत नष्ट होंगी। क्या जाने तुझे ऐसे ही कठिन समय के लिये राजपद मिल गया हो?“ (वव.13-14)।

एस्तेर ने समझा कि परमेश्वर ने एक उद्देश्य के लिए उसे उस स्थान में रखा था। आपके पास भी एक उद्देश्य है। बहुत से लोग जीवन में अर्थ या उद्देश्य के बिना जीते हैं, अपने ही लक्ष्य का पीछा करते हुए - यह नहीं समझते हुए कि परमेश्वर के उद्देश्य बहुत ही बेहतर हैं। इस पीढ़ी के लिए परमेश्वर के उद्देश्य को पूरा करने के लिए आज आप जीवित हैं। आप जिस किसी स्थान में हैं, विश्वास कीजिए कि आप वहाँ पर ’ऐसे ही समय के लिए हैं“।

एस्तेर ने मोर्दकै के बुद्धिमान वचनों को सुना। उन्होंने लोगों से कहा कि उसके लिए उपवास करें और कहा,’ मैं नियम के विरुध्द राजा के पास भीतर जाउँगी; और यदि नष्ट हो गई तो हो गई“ (व.16)। इसमें खतरा शामिल है। हमारे पास केवल एक जीवन है। हमें इसके लिए जाना पड़ेगा। यदि हम नष्ट होते हैं, तो हो जाएं। लेकिन कभी कोशिश न करने की अपेक्षा खतरा मोल लेना बेहतर है। हमें एस्तेर की तरह बनना है – पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भर और दूसरों के जीवन को बचाने के लिए अपने जीवन को खतरे में डालने के लिए तैयार।

प्रार्थना

परमेश्वर, बुद्धिमान और नम्र डाँट को सुनने में मेरी सहायता कीजिए। जैसे ही मैं शुद्ध करने वाली आग से गुजरता हूँ, मेरे हृदय को शुद्ध कीजिए ताकि मैं आपको और अधिक प्रेम करुं, जीवन के हर अवसर का लाभ लूं और पूरे हृदय से आपकी सेवा करुँ।

पिप्पा भी कहते है

एस्तेर 2:19-5:14

एस्तेर केवल सुंदर नहीं थी। वह सही स्थान में थी, अन्याय के विरूद्ध साहसी कदम उठाने के लिए तैयार थी। उसने यह अकेले नहीं किया और उसने जल्दबाजी नहीं की। उसने प्रार्थना की, योजना बनायी और सही समय पर इसे किया। उसने साहस, विश्वास और हुनर का शानदार मिश्रण इस्तेमाल किया।

अन्याय के विरूद्ध खड़े होने के लिए क्या आपके पास कोई अवसर है?

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संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट ऊ 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइडऍ बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट ऊ 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट ऊ 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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