सिंह और मेमना
परिचय
कुछ लोग सिंह जैसे होते हैं। वे निर्भिक, फौलादी और साहसी होते हैं। दूसरे मेमने की तरह होते हैं। वे नम्र, दीन और समर्पित रहनेवाले होते हैं। हमसब को दोनों का एक भक्तिमय मिश्रण होना चाहिए, और जानना चाहिए कि हमें कब एक सिंह की तरह बनना है और कब एक मेमने की तरह बनना है।
लेकिन एक व्यक्ति सिंह और मेमना दोनों कैसे बन सकता है?
सी.एस. लेविस की नार्निया पुस्कत में, सिंह असलन, यीशु को दर्शाते हैं। इन पुस्तकों सबसे लोकप्रिय, द लायन, द विच एण्ड द वार्डरोब में असलन को घात कर दिया जाता हैः
“सफेद चुड़ैल ने कहा, उसे बाँध दो...” “पहले उसके बाल काट दो...” असलन का चेहरा...साहसी, और अधिक सुंदर, और अधिक धैर्यवान दिख रहा था।” चुड़ैल ने कहा, “इसका मुँह बाँध दो...” प्राणियों की सभी भीड़ उसे लात मार रहे थे, उसे घूसे मार रहे थे, उस पर थूक रहे थे, उसका मजाक उड़ा रहे थे...उन्होंने बंधे हुए सिंह को पत्थर की मेज तक खींचना शुरु कर दिया।”
बाद में, “उनके पीछे से एक ऊँचा शोर हुआ – एक बड़ी दरार, बहरा कर देनेवाली आवाज... पत्थर की मेज उस दरार के द्वारा दो डुकड़ों में टूट गई थी जो एक कोने से दूसरे कोने तक फैली हुई थी। वहाँ पर सूर्यादय में चमकते हुए, अपने गले के बाल को हिलाते हुए (क्योंकि यह फिर से बढ़ चूके थे) असलन फिर से खड़ा हो गया।” असलन उन्हें बताता है कि “जब एक शिकार जिसने कोई विश्वासघात नहीं किया हो, उसे विश्वासघाती के स्थान पर घात किया जाए, तब मेज टूट जाएगी और स्वयं मृत्यु पीछे हटना शुरु कर देगी।”
प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में, हम देखते हैं कि यीशु स्वर्ग के सिंहासन के केंद्र में खड़े हैं। वह सिंह और मेमना है। वह विजयी (“जय पाए हुए”, 5:5) और घात किए गए है (“घात किए गए,” व.9)। एक कल्पनायुक्त और शक्तिशाली तरीक से सी.एस.लेविस दर्शाते हैं कि, कैसे यीशु “यहूदा गोत्र के सिंह” (प्रकाशितवाक्य 5:5) और “घात किये गए मेमना” (व.6) दोनों हो सकते हैं।
नीतिवचन 30:11-23
11 ऐसे भी होते हैं जो अपने पिता को कोसते है,
और अपनी माता को धन्य नहीं कहते हैं।
12 होते हैं ऐसे भी, जो अपनी आँखों में तो पवित्र बने रहते
किन्तु अपवित्रता से अपनी नहीं धुले होते हैं।
13 ऐसे भी होते हैं जिनकी आँखें सदा तनी ही रहती,
और जिनकी आँखों में घृणा भरी रहती है।
14 ऐसे भी होते हैं जिनके दाँत कटार हैं और जिनके जबड़ों में खंजर जड़े रहते हैं
जिससे वे इस धरती के गरीबों को हड़प जायें, और जो मानवों में से अभावग्रस्त हैं उनको वे निगल लें।
15 जोंक की दो पुत्र होती हैं वे सदा चिल्लाती रहती, “देओ, देओ।”
तीन वस्तु ऐसी हैं जो तृप्त कभी न होती और चार ऐसी जो कभी बस नहीं कहती।
16 कब्र, बांझ—कोख और धरती जो जल से कभी तृप्त नहीं होती
और अग्नि जो कभी बस नहीं कहती।
17 जो आँख अपने ही पिता पर हँसती है, और माँ की बात मानने से घृणा करती है,
घाठी के कौवे उसे नोंच लेंगे और उसको गिद्ध खा जायेंगे।
18 तीन बातें ऐसी हैं जो मुझे अति विचित्र लगती, और चौथी ऐसी जिसे में समझ नहीं पाता।
19 आकाश में उड़ते हुए गरूड़ का मार्ग, और लीक नाग की जो चट्टान पर चला;
और महासागर पर चलते जहाज़ की राह और उस पुरुष का मार्ग जो किसी कामिनी के प्रेम में बंधा हो।
20 चरित्रहीन स्त्री की ऐसी गति होती है,
वह खाती रहती और अपना मुख पोंछ लेती और कहा करती है, मैंने तो कुछ भी बुरा नहीं किया।
21 तीन बातें ऐसी हैं जिनसे धरा काँपती है और एक चौथी है जिसे वह सह नहीं कर पाती।
22 दास जो बन जाता राजा, मूर्ख जो सम्पन्न,
23 ब्याह किसी ऐसी से जिससे प्रेम नहीं हो;
और ऐसी दासी जो स्वामिनी का स्थान ले ले।
समीक्षा
घात किए गए मेमने के द्वारा शुद्ध हो जाएं
हमें अपने पाप से शुद्ध होने की आवश्यकता है – अपनी “गंदगी से, “जैसा कि नीतिवचन के लेखक इसका वर्णन करते हैं (व.12)। पाप की यह “गंदगी” बहुत से रूप और भेष में आती हैः
हमारे माता-पिता को धन्य नहीं कहते और उनकी आज्ञा नहीं मानते (वव.11-12,17)
घमंड, “घमंड से भरी हुई दृष्टि” और “चढ़ी हुई आँखे” (व.13)। अपने आपको दूसरों से बेहतर समझना (व.13, एम.एस.जी)
“गरीब और दरिद्रों” पर ध्यान नहीं देना (व.14)
व्यभिचार, जो अपने आपको यह कहते हुए निर्दोष बतलाता है कि, “मैंने कुछ गलत नहीं किया” (व.20)
शुद्ध होने की जरूरत को न पहचानना, यह स्थिति रहने के लिए बुरी है (व.12)। अपने पापों से शुद्ध होना एक अद्भुत बात है।
आज के लिए नये नियम के लेखांश में हम देखते हैं कि सारी सृष्टि मेमने की आराधना करती है जो कि घात किया गया था क्योंकि “तू ने वध होकर अपने लहू से हर एक कुल और भाषा और लोग और जाति में से परमेश्वर के लिये लोगों को मोल लिया है” (प्रकाशितवाक्य 5:9)। यह यीशु का लहू है जो हमें “सारे पापों से शुद्ध करता है” (1यूहन्ना 1:7)।
प्रार्थना
परमेश्वर, मैं केवल “अपनी दृष्टि” में “शुद्ध” न ठहरूँ (व.12)। कृपया मुझे मेमने के लहू से शुद्ध किजिए, जिसने मुझे परमेश्वर के लिए मोल लिया।
प्रकाशित वाक्य 5:1-14
पुस्तक कौन खोल सकता है?
5फिर मैंने देखा कि जो सिंहासन पर विराजमान था, उसके दाहिने हाथ में एक लपेटा हुआ पुस्तक अर्थात् एक ऐसी पुस्तक जिसे लिखकर लपेट दिया जाता था। जिस पर दोनों ओर लिखावट थी। तथा उसे सात मुहर लगाकर मुद्रित किया हुआ था। 2 मैंने एक शक्तिशाली स्वर्गदूत की ओर देखा जो दृढ़ स्वर से घोषणा कर रहा था, “इस लपेटे हुए पुस्तक की मुहरों को तोड़ने और इसे खोलने में समर्थ कौन है?” 3 किन्तु स्वर्ग में अथवा पृथ्वी पर या पाताल लोक में कोई भी ऐसा नहीं था जो उस लपेटे हुए पुस्तक को खोले और उसके भीतर झाँके। 4 क्योंकि उस पुस्तक को खोलने की क्षमता रखने वाला या भीतर से उसे देखने की शक्ति वाला कोई भी नहीं मिल पाया था इसलिए मैं सुबक-सुबक कर रो पड़ा। 5 फिर उन प्राचीनों में से एक ने मुझसे कहा, “रोना बन्द कर। सुन, यहूदा के वंश का सिंह जो दाऊद का वंशज है विजयी हुआ है। वह इन सातों मुहरों को तोड़ने और इस लपेटे हुए पुस्तक को खोलने में समर्थ है।”
6 फिर मैंने देखा कि उस सिंहासन तथा उन चार प्राणियों के सामने और उन पूर्वजों की उपस्थिति में एक मेमना खड़ा है। वह ऐसे दिख रहा था, मानो उसकी बलि चढ़ाई गयी हो। उसके सात सींग थे और सात आँखें थीं जो परमेश्वर की सात आत्माएँ हैं। जिन्हें समूची धरती पर भेजा गया था। 7 फिर वह आया और जो सिंहासन पर विराजमान था, उसके दाहिने हाथ से उसने वह लपेटा हुआ पुस्तक ले लिया। 8 जब उसने वह लपेटा हुआ पुस्तक ले लिया तो उन चारों प्राणियों तथा चौबीसों प्राचीनों ने उस मेमने को दण्डवत प्रणाम किया। उनमें से हरेक के पास वीणा थी तथा वे सुगन्धित सामग्री से भरे सोने के धूपदान थामे थे; जो संत जनों की प्रार्थनाएँ हैं। 9 वे एक नया गीत गा रहे थे:
“तू यह पुस्तक लेने को समर्थ है,
और जो इस पर लगी मुहर खोलने को
क्योंकि तेरा वध बलि के रूप कर दिया,
और अपने लहू से तूने परमेश्वर के हेतु
जनों को हर जाति से, हर भाषा से, सभी कुलों से, सब राष्ट्रों से मोल लिया।
10 और तूने उनको रूप का राज्य दे दिया। और हमारे परमेश्वर के हेतु उन्हें याजक बनाया।
वे धरती पर राज्य करेंगे।”
11 तभी मैंने देखा और अनेक स्वर्गदूतों की ध्वनियों को सुना। वे उस सिंहासन, उन प्राणियों तथा प्राचीनों के चारों ओर खड़े थे। स्वर्गदूतों की संख्या लाखों और करोड़ों थी 12 वे ऊँचे स्वर में कह रहे थे:
“वह मेमना जो मार डाला गया था, वह पराक्रम, धन, विवेक, बल, आदर,
महिमा और स्तुति प्राप्त करने को योग्य है।”
13 फिर मैंने सुना कि स्वर्ग की, धरती पर की, पाताल लोक की, समुद्र की, समूची सृष्टि — हाँ, उस समूचे ब्रह्माण्ड का हर प्राणी कह रहा था:
“जो सिंहासन पर बैठा है और मेमना का स्तुति,
आदर, महिमा और पराक्रम सर्वदा रहें!”
14 फिर उन चारों प्राणियों ने “आमीन” कहा और प्राचीनों ने नत मस्तक होकर उपासना की।
समीक्षा
मेमने की आराधना किजिए जो एक सिंह भी है
कभी कभी मैं अपने आपको एक मेमने की तरह कार्य करते हुए पाता हूँ, जबकि मुझे एक सिंह होना चाहिए। मैं नम्रता से कार्य करता हूँ जबकि मुझे निर्भिक, फौलादी और साहसी होना चाहिए। दूसरे समय पर, मैं एक सिंह की तरह कार्य करता हूँ जबकि मुझे और अधिक मेमने सरीखा होना चाहिए। मैं बहुत उग्र हो जाता हूँ जबकि मुझे नम्र, दीन और समर्पित होना चाहिए।
यीशु ने सिंह जैसे साहस से शक्तिशाली विरोधीयों पर जय पाई उदाहरण के लिए, मंदिर में से व्यापारियों को बाहर निकालना। दूसरी ओर, व्यभिचार करते हुए पकड़ी गई महिला (यूहन्ना 8:1-11) के साथ वह कठोर हो सकते थे, लेकिन इसके बजाय वह अनुग्रही और नम्र थे एक मेमने की तरह। हमारे लिए चुनौती यह है कि हम उनके आदर्श पर चलें, जिनकी हम आराधना करते हैं।
अभी स्वर्ग में क्या हो रहा है? यूहन्ना हमें बताते हैं कि जब वह स्वर्ग की झलक देखते हैं, तो वह लाखों लोगों को यीशु की आराधना करते हुए देखते हैः (“सिंह” की जो एक “मेमना” भी हैं)। इतिहास और उद्धार को समझने के लिए यीशु कुँजी है।
पृथ्वी पर, हमें यह समझने में कठिनाई होती है कि क्या हो रहा है। इतिहास और उद्धार के लिए परमेश्वर की योजनाएँ और उद्देश्य क्या है? आपके जीवन और मेरे जीवन के लिए उनकी योजनाएँ और उद्देश्य क्या हैं? पुस्तक जो “सात मुहरों से बंद” है (प्रकाशितवाक्य 5:1) वह शायद परमेश्वर की योजनाएँ और उद्देश्यें को दर्शाता है।
स्वर्ग में और पृथ्वी पर, या पृथ्वी के नीचे, पुस्तक को खोलने या इसके अंदर देखने के योग्य कोई नहीं पाया गया, केवल यीशुः “यहूदा का सिंह” जिसने “जय पायी है” (वव.2-5)।
यहाँ पर यीशु अपने संपूर्ण ऐश्वर्य और राजवैभव में खड़े हैं। केवल यीशु इतिहास के रहस्यों को खोल सकते हैं, उद्धार के लिए परमेश्वर की योजना को और हम सभी के जीवन के लिए उनके उद्देश्य को।
सिंह एक मेमना भी हैः “तब मैं ने उस सिंहासन और चारों प्राणियों और उन प्राचीनों के बीच में, मानो एक वध किया हुआ मेम्ना खड़ा देखा... उसने आकर उसके दाहिने हाथ से जो सिंहासन पर बैठा था, वह पुस्तक ले ली। जब उसने पुस्तक ले ली, तो वे चारों प्राणी और चौबीसों प्राचीन उस मेमने के सामने गिर पड़े।” (वव.6-7, एम.एस.जी)।
संपूर्ण सृष्टि मेमने की आराधना करती है और संपूर्ण चर्च उनके सामने झुकता है।
यहाँ पर एक अद्भुत तथ्य है। पृथ्वी पर आपकी प्रार्थनाएँ स्वर्ग की आराधना को प्रभावित करते हैः” उनमें से हर एक के हाथ में वीणा और धूप, जो पवित्र लोगों की प्रार्थनाएँ हैं, से भरे हुए सोने के कटोरे थे” (व.8, एम.एस.जी)। आपकी प्रार्थनाएँ स्वर्ग के सोने के कटोरो को भरती है। आपकी प्रार्थनाएँ सच में एक परिवर्तन लाती है।
वे यह नया गीत गाने लगे, “... तू ने वध होकर अपने लहू से हर एक कुल और भाषा और लोग और जाति में से परमेश्वर के लिये लोगों को मोल लिया है, और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिये एक राज्य और याजक बनाया है; और वे पृथ्वी पर राज्य करते हैं” (वव.9-10)।
“जब मैं ने देखा, तो उस सिंहासन और उन प्राणियों और उन प्राचीनों के चारों ओर बहुत से स्वर्गदूतों का शब्द सुना, जिन की गिनती लाखों और करोड़ों में थी” (व.11अ)। लाखों करोड़ो से भी ज्यादा स्वर्गदूत यीशु की आराधना करते हैः
“वध किया हुआ मेमना ही सामर्थ्य और धन और ज्ञान और शक्ति और आदर और महिमा और धन्यवाद के योग्य है!” (व.12, एम.एस.जी)।
बड़ी भीड़ जो यीशु की आराधना करते हैं, उनके विषय में कुछ असाधारण रूप से शक्तिशाली बात है।
यही एक कारण है कि मैं अल्फा ग्लोबल वीक पसंद करता हूँ, जब सैकड़ों देशों और अनगिनत भाषाओं से लोग – यानि लोग और गोत्र - यीशु की आराधना करते हैं, यह स्वर्ग का पूर्वाभास है।
यहाँ हम देखते हे कि स्वर्ग की गतिविधी है - यीशु की आराधना करना। आप छुटकारे के गीत गाएंगे। संपूर्ण स्वर्ग स्तुति करता है (व.13)। यहाँ पर महान ओर्केस्ट्रा और भव्य क्वायर और हर प्रकार के गीत तालमेल में हैं। आप परमेश्वर की महिमा की आराधना करने के लिए सृजे गए हैं, जो कि यीशु मसीह में प्रगट किया गया था – सिंह जो मेमना भी है।
प्रार्थना
परमेश्वर, यहूदा के गोत्र के सिंह के रूप में मैं आपकी आराधना करता हूँ जिसने जय पायी है, और मेमना जो वध हुआ है। परमेश्वर, मैं यीशु का तरह और ज्यादा बनना चाहता हूँ और जानना चाहता हूँ कि मुझे एक सिंह के समान कब निर्भिक और साहसी बनना है और कब मेमने के समान नम्र और दीन बनना है।
एस्तेर 9:1-10:3
यहूदियों की विजय
9लोगों को (अदार) नाम के बारहवें महीने की तेरह तारीख को राजा की आज्ञा को पूरा करना था। यह वही दिन था जिस दिन यहूदियों के विरोधियों को उन्हें पराजित करने की आशा थी। किन्तु अब तो स्थिति बदल चुकी थी। अब तो यहूदी अपने उन शत्रुओं से अधिक प्रबल थे जो उन्हें घृणा किया करते थे। 2 महाराजा क्षयर्ष के सभी प्रांतों के नगरों में यहूदी परस्पर एकत्र हुए। यहूदी आपस में इसलिए एकजुट हो गये कि जो लोग उन्हें नष्ट करना चाहते हैं, उन पर आक्रमण करने के लिये वे पर्याप्त सशस्त्र हो जायें। इस प्रकार उनके विरोध में कोई भी अधिक शक्तिशाली नहीं रहा। लोग यहूदियों से डरने लगे। 3 प्रांतों के सभी हाकिम, मुखिया, राज्यपाल और राजा के प्रबन्ध अधिकारी यहूदियों की सहायता करने लगे। वे सभी अधिकारी यहूदियों की सहायता इसलिए किया करते थे कि वे मोर्दकै से डरते थे। 4 राजा के महल में मोर्दकै एक अति महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गया। सभी प्रांतों में हर कोई उसका नाम जानता था और जानता था कि वह कितना महत्वपूर्ण है। सो मोर्दकै अधिक शक्तिशाली होता चला गया।
5 यहूदियों ने अपने सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया। अपने शत्रुओं को मारने और नष्ट करने के लिए वे तलवारों का प्रयोग किया करते थे। जो लोग यहूदियों से घृणा करते थे, उनके साथ यहूदी जैसा चाहते, वैसा व्यवहार करते। 6 शूशन की राजधानी नगरी में यहूदियों ने पाँच सौ लोगों को मार कर नष्ट कर दिया। 7 यहूदियों ने जिन लोगों की हत्या की थी उनमें ये लोग भी शामिल थे: पर्शन्दाता, दल्पोन, अस्पाता, 8 पोराता, अदल्या, अरीदाता, 9 पर्मशता, अरीसै, अरीदै और वैजाता। 10 ये दस लोग हामान के पुत्र थे। हम्मदाता का पुत्र हामान यहूदियों का बैरी था। यहूदियों ने उन सभी पुरुषों को मार तो दिया किन्तु उन्होंने उनकी सम्पत्ति नहीं ली।
11 जब राजा ने शूशन की राजधानी नगरी में मारे गये पाँच सौ व्यक्तियों के बारे में सुना तो 12 उसने महारानी एस्तेर से कहा, “शूशन नगर में यहूदियों ने पाँच सौ व्यक्तियों को मार डाला है तथा उन्होंने शूशन में हामान के दस पुत्रों की भी हत्या कर दी है। कौन जाने राजा के अन्य प्रांतों में क्या हो रहा है? अब मुझे बताओ तुम और क्या कराना चाहती हो? जो कहो मैं उसे पूरा कर दूँगा।”
13 एस्तेर ने कहा, “यदि ऐसा करने के लिये महाराज प्रसन्न हैं तो यहूदियों को यह करने की अनुमति दी जाये: शूशन में कल भी यहूदियों को राजा की आज्ञा पूरी करने दी जाये, और हामान के दसों पुत्रों को फाँसी के खम्भे पर लटका दिया जाये।”
14 सो राजा ने यह आदेश दे दिया कि शूशन में कल भी राजा का यह आदेश लागू रहे और उन्होंने हामान के दसों पुत्रों को फाँसी पर लटका दिया। 15 आदार महीने की चौदहवीं तारीख को शूशन में यहूदी एकत्रित हुए। फिर उन्होंने वहाँ तीन सौ पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया किन्तु उन्होंने उन तीन सौ लोगों की सम्पत्ति को नहीं लिया।
16 उसी अक्सर पर राजा के अन्य प्रांतों में रहने वाले यहूदी भी परस्पर एकत्र हुए। वे इसलिए एकत्र हुए कि अपना बचाव करने के लिये वे पर्याप्त बलशाली हो जायें और इस तरह उन्होंने अपने शत्रुओं से छुटकारा पा लिया। यहूदियों ने अपने पचहत्तर हजार शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया। किन्तु उन्होंने जिन शत्रुओं की हत्या की थी, उनकी किसी भी वस्तु को ग्रहण नहीं किया। 17 यह अदार नाम के महीने की तेरहवीं तारीख को हुआ और फिर चौदहवीं तारीख को यहूदियों ने विश्राम किया। यहूदियों ने उस दिन को एक खुशी भरे छुट्टी के दिन के रूप में बना दिया।
पूरीम का त्यौहार
18 आदार महीने की तेरहवीं तारीख को शूशन में यहूदी परस्पर एकत्र हुए। फिर पन्द्रहवीं तारीख को उन्होंने विश्राम किया। उन्होंने पन्द्रहवीं तारीख को फिर एक खुशी भरी छुट्टी का दिन बना दिया। 19 इसी कारण उस ग्राम्य प्रदेश के छोटे छोटे गाँवों में रहने वाले यहूदियों ने चौदहवीं तारीख को खुशियों भरी छुट्टी के रूप में रखा। उस दिन उन्होंने आपस में एक दूसरे को भोज दिये।
20 जो कुछ घटा था, उसकी हर बात को मोर्दकै ने लिख लिया और फिर उसे महाराजा क्षयर्ष के सभी प्रांतों में बसे यहूदियों को एक पत्र के रूप में भेज दिया। दूर पास सब कहीं उसने पत्र भेजे। 21 मोर्दकै ने यहूदियों को यह बताने के लिए ऐसा किया कि वे हर साल अदार महीने की चौदहवीं और पन्द्रहवीं तारीख को पूरीम का उत्सव मनाया करें। 22 यहूदियों को इन दिनों को पर्व के रूप में इसलिए मनाना था कि उन्हीं दिनों यहूदियों ने अपने शत्रुओं से छुटकारा पाया था। उन्हें उस महीने को इसलिए भी मनाना था कि यही वह महीना था जब उनका दु:ख उनके आनन्द में बदल गया था। वही यह महीना था जब उनका रोना—धोना एक उत्सव के दिन के रूप में बदल गया था। मोर्दकै ने सभी यहूदियों को पत्र लिखा। उसने उन लोगों से कहा कि वे उन दिनों को उत्सव के रूप में मनाएँ। यह समय एक ऐसा समय हो जब लोग आपस में एक दूसरे को उत्तम भोजन अर्पित करें तथा गरीब लोगों को उपहार दें।
23 इस प्रकार मोर्दकै ने यहूदियों को जो लिखा था, वे उसे मानने को तैयार हो गये। वे इस बात पर सहमत हो गये कि उन्होंने जिस उत्सव का आरम्भ किया है, वे उसे मनाते रहेंगे।
24 हम्मदाता अगागी का पुत्र हामान यहूदियों का शत्रु था। उसने यहूदियों के विनाश के लिए एक षड़यन्त्र रचा था। हामान ने यहूदियों को नष्ट और बर्बाद कर डालने के लिए कोई एक दिन निश्चित करने के वास्ते पासा भी फेंका था। उन दिनों इस पासे को “पुर” कहा जाता था। इसीलिए इस उत्सव का नाम “पूरीम” रखा गया। 25 किन्तु एस्तेर राजा के पास गयी और उसने उससे बातचीत की। इसीलिये राजा ने नये आदेश जारी कर दिये। यहूदियों के विरुद्ध हामान ने जो षड़यन्त्र रचा था, उसे रोकने के लिये राजा ने अपने आदेश पत्र जारी किये। राजा ने उन ही बुरी बातों को हामान और उसके परिवार का साथ घटा दिया। उन आदेशों में कहा गया था कि हामान और उसके पुत्रों को फाँसी पर लटका दिया जाये।
26-27 इसलिये ये दिन “पूरीम” कहलाये। “पूरीम” नाम “पूर” शब्द से बना है (जिसका अर्थ है लाटरी) और इसलिए यहूदियों ने हर वर्ष इन दो दिनों को उत्सव के रूप में मनाने की शुरुआत करने का निश्चय किया। उन्होंने यह इसलिए किया ताकि अपने साथ होते हुए जो बातें उन्होंने देखी थीं, उन्हें याद रखने में उनको मदद मिले। यहूदियों और उन दूसरे सभी लोगों को, जो यहूदियों में आ मिले थे, हर साल इन दो दिनों को ठीक उसी रीति और उसी समय मनाना था जिसका निर्देश मोर्दकै ने अपने आदेशपत्र में किया था। 28 ये दो दिन हर पीढ़ी को और हर परिवार को याद रखने चाहिए और मनाये जाना चाहिए। इन्हें हर प्रांत और हर नगर में निश्चयपूर्वक मनाया जाना चाहिए। यहूदियों को इन्हें मनाना कभी नहीं छोड़ना चाहिए। यहूदियों के वंशजों को चाहिए कि वे पूरीम के इन दो दिनों को मनाना सदा याद रखें।
29 पूरीम के बारे में सुनिश्चित करने के लिये महारानी एस्तेर और यहूदी मोर्दकै ने यह दूसरा पत्र लिखा। एस्तेर अबीहैल की पुत्री थी। वह पत्र सच्चा था, इसे प्रमाणित करने के लिये उन्होंने इसे राजा के सम्पूर्ण अधिकार के साथ लिखा। 30 सो महाराजा क्षयर्ष के राज्य के एक सौ सत्ताईस प्रांतों में सभी यहूदियों के पास मोर्दकै ने पत्र भिजवाये। मोर्दकै ने शांति और सत्य का एक सन्देश लिखा। 31 मोर्दकै ने पूरीम के उत्सव को शुरु करने के बारे में लिखा। इन दिनों को उनके निश्चित समय पर ही मनाया जाना था। यहूदी मोर्दकै और महारानी एस्तेर ने इन दो दिन के उत्सव को अपने लिये और अपनी संतानों के लिए निर्धारित किया। उन्होंने ये दो दिन निश्चित किये ताकि यहूदी उपवास और विलाप करें। 32 एस्तेर के पत्र ने पूरीम के विषय में इन नियमों की स्थापना की और पूरीम के इन नियमों को पुस्तकों में लिख दिया गया।
मोर्दकै का सम्मान
10महाराजा क्षयर्ष ने लोगों पर कर लगाये। राज्य के सभी लोगों यहाँ तक कि सागर तट के सुदूर नगरों को भी कर चुकाने पड़ते थे। 2 राजा क्षयर्ष ने जो महान कार्य अपनी शक्ति और सामर्थ्य से किये थे वे मादै और फारस के राजाओं की इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। उन इतिहास की पुस्तकों में मोर्दकै ने जो कुछ किया था, वह सब कुछ भी लिखा है। राजा ने मोर्दकै को एक महान व्यक्ति बना दिया। 3 महाराजा क्षयर्ष के यहाँ यहूदी मोर्दकै महत्व की दृष्टि से दूसरे स्थान पर था। मोर्दकै यहूदियों में अत्यन्त महत्वपूर्ण पुरुष था। तथा उसके साथी यहूदी उसका बहुत आदर करते थे। वे मोर्दकै का आदर इसलिए करते थे कि उसने अपने लोगों के भले के लिए काम किया था। मोर्दकै सभी यहूदियों के कल्याण की बातें किया करता था।
समीक्षा
यहूदा के गोत्र के सिंह की विजय का उत्सव मनाये
यीशु सिंह हैं जो हमारे आत्मिक शत्रुओं की योजना को निष्फल करते हैं। उनके विरूद्ध कोई खड़ा नहीं हो सकता। वह दावत और आनंद और उत्सव के कारण हैं। आखिर में, उनके कारण हम क्रिसमस के दिन उपहार देते हैं, उनके आगमन और उनकी विजय का उत्सव मनाते हुए।
एस्तेर मसीह का एक “प्रकार” है – इसका अर्थ है उसका जीवन यीशु का रूप और पूर्वाभास था। मानवीय रूप से कहा जाए तो, यदि उसका हस्तक्षेप न होता, तो यहूदी देश नष्ट हो जाता। उसके कार्य ने बुराई को हरा दिया – हामान – और उसने परमेश्वर के लोगों के लिए मुक्ति, आनंद और विजय को दिलाया। “बाजी पलट गई....उनके विरूद्ध कोई खड़ा न रह पाता था” (9:1-2)।
परमेश्वर पर भरोसा किजिए कि अंत में, आपके विरूद्ध की गई हर योजना और दुष्टता निष्फल हो जाएगी। यीशु में परमेश्वर ने आपको पूर्ण विजय देने का वादा किया है।
इस दौरान, एस्तेर और मोर्दकाई की तरह सिंह समान साहस रखें और उनकी तरह मेमने के समान परमेश्वर के उद्देश्य की आज्ञा मानने के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की इच्छा रखें।
इस कारण से परमेश्वर के लोग “अत्याचार से छूट गए”। उन्होंने “भोज और खुशी के साथ उत्सव मनाया... हँसते हुए और भोज करते हुए.. उत्सव मनाते हुए और उपहार देते हुए” (वव.17-19, एम.एस.जी)।
यें घटनाएँ उनकी विजय की महान घटना का पूर्वाभास थी “यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है” (प्रकाशितवाक्य 5:5) - यीशु के जीवन, मृत्यु और पुनरूत्थान के द्वारा।
उन्होंने यह सब लायाः “शोक, आनन्द में और विलाप, खुशी में बदल गया; (माना करें) और उनको जेवनार और आनन्द और एक दूसरे के पास भोजन सामग्री भेजने और कंगालों को दान देने के दिन मानें” (एस्तेर 9:22, एम.एस.जी)। यह भी हमारे उत्सव का भाग होना चाहिए।
प्रार्थना
परमेश्वर, सिंह की संपूर्ण विजय के लिए आपका धन्यवाद, जो मेमना भी है और जो घात भी हुआ। “जो सिंहासन पर बैठा है उसका और मेमने का धन्यवाद और उनका आदर और महिमा और राज्य युगानुयुग तक बना रहे!” (प्रकाशितवाक्य 5:13)।
पिप्पा भी कहते है
प्रकाशितवाक्य 5:8ब
“उनमें से हर एक के हाथ में वीणा और धूप, सोने के कटोरे थे जो पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं से भरे हुए थे”।
मुझे यह तथ्य पसंद है कि कटोरे सोने से बने हैं। यह दर्शाता है कि हमारी प्रार्थनाएँ बहूमूल्य है। और, हमारी सारी प्रार्थनाएँ यहाँ तक कि मेरी भी प्रार्थनाएं अंदर जाती हैं।
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संदर्भ
सी.एस. लेविस, द लायन, द विच एंड द वार्डरोब में. (लंदन: हार्पर कॉलिन्स) पन्ने 138-140. 146-148, 166
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट ऊ 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी”, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।