दिन 357

पवित्रता और सामर्थ

बुद्धि नीतिवचन 31:1-9
नए करार प्रकाशित वाक्य 14:1-13
जूना करार एज्रा 8:15-9:15

परिचय

प्रति वर्ष हमारी क्रिसमस सभाओं में, मैं अपने वादक समूह और भजन गाने वालों के दाहिनी ओर बैठता हूँ। हमेशा की तरह वादक समूह में तकरीबन पचास वादक और नब्बे सदस्य भजन मंडली में होते थे। सभा के सभी सदस्य स्वेच्छा से अपने समय और उपहारों से सेवा करते थे। हालांकि मैं हमेशा उनके संगीत और गाने की शानदार सुन्दरता से भौंचक्का रह जाता हूँ। यह तो स्वर्ग का पूर्वानुभव है।

प्रेरित यूहन्ना यों लिखते हैं ‘और स्वर्ग में मुझे एक ऐसा शब्द सुनाई दिया जो जल की बहुत धाराओं और बड़े गर्जन का सा शब्द था, और जो शब्द मैंने सुना वह ऐसा था मानो वीणा बजाने वाले वीणा बजा रहे हैं। और वे सिंहासन के सामने एक नया गीत गा रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 14:2-3) । स्वर्गीय वादक समूह और भजन गाने वाले स्वर्गीय श्रोतागण के सम्मुख एक नया गीत गाएँगें।

यूहन्ना एक संपूर्ण कलीसिया का वर्णन करता है जो स्वर्ग में है – उनकी पवित्रता और उनकी सामर्थ। यह दोनों एक दूसरे से संबंधित है। जैसे पासवान रिक वॉरेन ने कहा है “सेवकाई में व्यक्तिगत शुद्धता सार्वजनिक सामर्थ का स्रोत है।"

बुद्धि

नीतिवचन 31:1-9

राजा लमुएल की सूक्तियाँ

31ये सूक्तियाँ राजा लमूएल की, जिन्हें उसे उसकी माता ने सिखाया था।

2 तू मेरा पुत्र है वह पुत्र जो मुझ को प्यारा है। जिसके पाने को मैंने मन्नत मानी थी। 3 तू व्यर्थ अपनी शक्ति स्त्रियों पर मत व्यय करो स्त्री ही राजाओं का विनाश करती हैं। इसलिये तू उन पर अपना क्षय मत कर। 4 हे लमूएल! राजा को मधुपान शोभा नहीं देता, और न ही यह कि शासक को यवसुरा ललचाये। 5 नहीं तो, वे मदिरा का बहुत अधिक पान करके, विधान की व्यवस्था को भूल जायेगें और वे सारे दीन दलितों के अधिकारों को छीन लेंगे। 6 वे जो मिटे जा रहे हैं उन्हें यवसुरा, मदिरा उनको दे जिन पर दारूण दुःख पड़ा हो। 7 उनको पीने दे और उन्हें उनके अभावों को भूलने दे। उनका वह दारूण दुःख उन्हें नहीं याद रहे।

8 तू बोल उनके लिये जो कभी भी अपने लिये बोल नहीं पाते हैं; और उन सब के, अधिकारों के लिये बोल जो अभागे हैं। 9 तू डट करके खड़ा रह उन बातों के हेतू जिनको तू जानता है कि वे उचित, न्यायपूर्ण, और बिना पक्ष—पात के सबका न्याय कर। तू गरीब जन के अधिकारों की रक्षा कर और उन लोगों के जिनको तेरी अपेक्षा हो।

समीक्षा

पवित्रता और सामर्थहीन

‘अगुवे अपने आप को मूर्ख के सामान नहीं दर्शा सकते’ (व.4)। राजा शमुएल एक अगुवा था जिसे अपनी माता द्वारा अधिक ध्यानपूर्ण शिक्षा प्राप्त हुई थी। उसकी माता ने उसे अपवित्रता एवं नशे के विरूद्ध चेतावनी दी थी (व.3) (व.4-7)।

यह सब बातें आपका जीवन बर्बाद कर सकती हैं (व.3)। यह चीज़ें जो कार्य आपको करना चाहिए उन्हें भुला सकती हैं (व. 5)।

अपनी सामर्थ को अपने स्वार्थ की संतुष्टि के लिए इस्तेमाल करने के बजाय इसे भलाई के लिए इस्तेमाल करें: उन लोगों के लिए आवाज़ उठाएं जो खुद के लिए नहीं बोल सकते, उन सभी के हक़ के लिए जो बदहाल हैं आवाज़ उठाएँ और उनका ठीक ठीक न्याय करें; गरीबों और जरूरत मंदों के हक़ का समर्थन करें।

हमारे समाज में ऐसे कौन लोग हैं जो बेजुबान हैं और खुद के लिए बोल नहीं सकते? कौन हैं वे लोग जिनके लिए आपको और मुझे अपनी आवाज़ उठानी है? उनमें से कुछ ज़रूर ऐसे होगें:-

  1. गरीब या कंगाल

विश्व की तकरीबन 20% आबादी में से 1.2 अरब लोग प्रति दिन एक डॉलर से भी कम में गुजारा करते हैं। वे रात भूखे सोते हैं। हर चार क्षणों में, गरीबी एक शिशु का जीवन ले जाती है। आज और प्रतिदिन, जब तक हम इस पर कार्य ना करें, 22000 बच्चे या बीमारी के कारण या फिर गरीबी के कारण मरते हैं। करीब दो तिहाई बच्चों की मृत्यु उन कारणों से होती है जिन्हें बहुत ही साधारण और वहन योग्य तरीके से ठीक किया जा सकता था। ‘वे गरीब और बदहाल हैं’ (व-9)।

  1. दासत्व में रहने वाले

इसका अंदाजा लगाया जाता है कि मानव तस्करी ने दुनिया भर में करीब 3 करोड़ लोगों को अपना शिकार बनाया है। जिसमें से आधी संख्या अठारह वर्ष से कम आयु के बच्चों की है। दासत्व में यह घोर अन्याय है। ‘न्याय के लिए आवाज़ उठाएँ’ (व-9) अ)

  1. अजन्मा

जो गर्भ में हैं उनकी खुद कोई आवाज़ नहीं होती। एक पत्रकार निजेला लॉसन लिखती हैं कि यदि वास्तविक सबूत द्वारा जानने के लिए कुछ भी है (और मुझे संदेह है कि यह है), तो गर्भनिरोध के लिए \[गर्भपात\] ज्यादा से ज्यादा मूल्य-मुक्त विकल्प बनता जा रहा है। फिर भी सिर्फ कुछ लोग हिम्मत रखते हुए अजन्मे शिशु के समर्थन में आवाज़ उठाते हैं – जो बेजुबान हैं, (ब-8 अ)

  1. कैदी

संसार के कई क्षेत्रों में आज कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें अन्यायी तरीके से कैद में डाला गया है या फिर जो सच में कानूनन बंदीगृह में डाले गए हैं और उनके संग हैवानियत का बर्ताव हो रहा है। परन्तु बहुत से लोग खुद के लिए भी आवाज़ नहीं उठा सकते हैं (व-8अ) ।

प्रार्थना

प्रभु, मेरी सहायता कीजिये कि मैं बेजुबानों के लिए अपनी आवाज़ उठा सकूं, कि मैं ठीक ठीक न्याय कर सकूं और निराश्रितों के हक़ का समर्थन कर सकूं, जो गरीब और ज़रूरत मंद हैं।

नए करार

प्रकाशित वाक्य 14:1-13

मुक्त जनों का गीत

14फिर मैंने देखा कि मेरे सामने सिय्योन पर्वत पर मेमना खड़ा है। उसके साथ ही एक लाख चवालीस हज़ार वे लोग भी खड़े थे जिनके माथों पर उसका और उसके पिता का नाम अंकित था।

2 फिर मैंने एक आकाशवाणी सुनी, उसका महा नाद एक विशाल जल प्रपात के समान था या घनघोर मेघ गर्जन के जैसा था। जो महानाद मैंने सुना था, वह अनेक वीणा वादकों द्वारा एक साथ बजायी गई वीणाओं से उत्पन्न संगीत के समान था। 3 वे लोग सिंहासन, चारों प्राणियों तथा प्राचीनों के सामने एक नया गीत गा रहे थे। जिन एक लाख चवालीस हज़ार लोगों को धरती पर फिरौती देकर बन्धन से छुड़ा लिया गया था उन्हें छोड़ अन्य कोई भी व्यक्ति उस गीत को नहीं सीख सकता था।

4 वे ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने किसी स्त्री के संसर्ग से अपने आपको दूषित नहीं किया था। क्योंकि वे कुंवारे थे जहाँ कहीं मेमना जाता, वे उसका अनुसरण करते। सारी मानव जाति से उन्हें फिरौती देकर बन्धन से छुड़ा लिया गया था। वे परमेश्वर और मेमने के लिए फसल के पहले फल थे। 5 उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला था, वे निर्दोष थे।

तीन स्वर्गदूत

6 फिर मैंने आकाश में ऊँची उड़ान भरते एक और स्वर्गदूत को देखा। उसके पास धरती के निवासियों, प्रत्येक देश, जाति, भाषा और कुल के लोगों के लिए सुसमाचार का एक अनन्त सन्देश था। 7 ऊँचे स्वर में वह बोला, “परमेश्वर से डरो और उसकी स्तुति करो। क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ गया है। उसकी उपासना करो, जिसने आकाश, पृथ्वी, सागर और जल-स्रोतों की रचना की है।”

8 इसके पश्चात् उसके पीछे एक और स्वर्गदूत आया और बोला, “उसका पतन हो चुका है, महान नगरी बाबुल का पतन हो चुका है। उसने सभी जातियों को अपने व्यभिचार से उत्पन्न क्रोध की वासनामय मदिरा पिलायी थी।”

9 उन दोनों के पश्चात् फिर एक और स्वर्गदूत आया और ऊँचे स्वर में बोला, “यदि कोई उस पशु और उसकी मूर्ति की उपासना करता है और अपने हाथ या माथे पर उसका छाप धारण करता है, 10 तो वह परमेश्वर के प्रकोप की मदिरा पीएगा। ऐसी अमिश्रित तीखी मदिरा जो परमेश्वरके प्रकोप के कटोरे में तैयार की गयी है। उस व्यक्ति को पवित्र स्वर्गदूतों और मेमने से सामने धधकती हुई गंधक में यातनाएँ दी जायेंगी। 11 युग-युगान्तर तक उनकी यातनाओं से धूआँ उठता रहेगा। और जिस किसी पर भी पशु के नाम की छाप अंकित होगी और जो उसकी और उसकी मूर्ति की उपासना करता होगा, उन्हें रात-दिन कभी चैन नहीं मिलेगा।” 12 इसी स्थान पर परमेश्वर के उन संत जनों की धैर्यपूर्ण सहनशीलता की अपेक्षा है जो परमेश्वर की आज्ञाओं और यीशु में अपने विश्वास का पालन करती है।

13 फिर एक आकाशवाणी को मैंने यह कहते सुना, “इसे लिख अब से आगे वे ही लोग धन्य होगें जो प्रभु में स्थित हो कर मरे हैं।”

आत्मा कहती है, “हाँ, यही ठीक है। उन्हें अपने परिश्रम से अब विश्राम मिलेगा क्योंकि उनके कर्म, उनके साथ हैं।”

समीक्षा

पवित्रता और घोषणा

‘फिर मैं ने दृष्टि की, और देखा, वह मेमना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौवालीस हजार जन हैं, जिन के माथे पर उसका और उसके पिता का नाम लिखा हुआ त है' था (व-1)। वे एक संपूर्ण कलीसिया को दर्शाते हैं एक संग आराधना करते हुए। पांच गुना उल्लेख एक किस्म की संपूर्ण पवित्रता है। ये लोग:

  1. मेमने के लहू के द्वारा पृथ्वी पर से मोल लिए गए हैं (व. 3)

  2. जिन्होंने अपने को शुद्ध और दाग रहित रखा और किसी भी तरह का समझौता नहीं किया (व. 4अ)

  3. यीशु के पीछे चलें वह जहां भी जाएँ (व – 4ब)

  4. वे उसके पीछे हो लेते हैं: ये तो परमेश्वर के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं (व. 4क) जैसा संत पौलुस लिखते हैं “हम दाम दे कर मोल लिए गए हैं” (1कुरिंथियों 6:20)।

  5. उनके मुहँ से कभी झूठ नहीं निकला वे निर्दोष थे (प्रकाशितवाक्य 14:5)।

यह कोई संयोग की बात नहीं है कि पवित्र कलीसिया का दर्शन अनंत सुसमाचार की घोषणा के दर्शन द्वारा अनुसरित होता है। पृथ्वी पर के रहने वाले हर एक जाति और कुल और भाषा और लोगों को सुनाने के लिए सनातन सुसमाचार था (ब. 6)।

कलीसिया के लिए यही बुलाहट है – प्रभु यीशु मसीह के शुभ समाचार का प्रचार करना। यह पहले स्वर्गदूत द्वारा दर्शाया गया है। दूसरे और तीसरे स्वर्गदूत यह दिखाते हैं कि मानवता को किन चीज़ों से बचाए जाने की ज़रूरत है।

हर एक जन को ‘महान बेबीलोन’ के भष्टाचार के प्रभाव से बचाए जाने की अवश्यकता है। ‘जिसने अपनी कोपमय मदिरा से सारी जातियों को पिलाया है' (व.8)। ‘और उनको ‘उस पशु’ से भी बचने की आवश्यकता है जो अपनी छाप उनके माथों पर लगाना चाहता है’ (व.11) जिससे उन लोगों को रात दिन चैन न मिलेगा।

शुभ समाचार यह है कि किसी को उस छाप को लेने की ज़रूरत नहीं है। हम परमेश्वर के लोगों को यह चाहिए कि हम सुसमाचार का प्रचार करें ताकि हर व्यक्ति के पास यीशु और पिता के नाम की छाप उनके माथे पर हो। आपको धीरज से बाट जोहने के लिए बुलाया गया है, और आपको परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और यीशु के प्रति विश्वास योग्य बने रहने के लिए बुलाया गया है (व. 12)।

संदेश को बाहर ले जाएँ। बहुत से लोगों के पास शांति की कमी है। जो लोग उन पशु की छाप लेते हैं उन्हें रात दिन आराम न होगा, उन्हें चैन नहीं मिलेगा, जो उस पशु की या उसकी मूर्ती की पूजा करते हैं (व.11)। और दूसरी ओर इससे बड़ी और कोई आशीष नहीं कि हम उस मेमने के पीछे चलें। ‘फिर मैंने स्वर्ग से यह शब्द सुना, “लिख: जो मृतक प्रभु में मरते हैं, वे अब से धन्य हैं।" आत्मा कहता है, “हाँ क्योंकि वे अपने सारे परिश्रम से विश्राम पाएंगे, और उनके कार्य उनके साथ हो लेते हैं (व.13)।

प्रार्थना

प्रभु यीशु, हमारी सहायता कीजिये कि हम आपके पवित्र और शुद्ध अनुयायी बनें, सत्यनिष्ठा के लोग, जो यह जानते हैं कि हम दाम देकर मोल लिए गए हैं। हमारी सहायता कीजिये कि हम आपके सुसमाचार को हर राष्ट्र, जाति, भाषा और लोगों तक पहुचा सकें।

जूना करार

एज्रा 8:15-9:15

यरूशलेम को वापसी

15 मैंने (एज्रा) उन सभी लोगों को अहवा की और बहने वाली नदी के पास एक साथ इकट्ठा होने को बुलाया। हम लोगों ने वहाँ तीन दिन तक डेरा डाला। मुझे यह पता लगा कि उस समूह में याजक थे, किन्तु कोई लेवीवंशी नहीं था। 16 सो मैंने इन प्रमुखों को बुलाया: एलीएजेर, अरीएल, शमायाह, एलनातान, यारीब, एलनातान, नातान, जकर्याह और मशुल्लाम और मैंने योयारीब और एलनातान (ये लोग शिक्षक थे) को बुलाया। 17 मैंने उन व्यक्तियों को इद्दो के पास भेजा। इद्दो कासिप्या नगर का प्रमुख है। मैंने उन व्यक्ति को बताया कि वे इद्दो और उसके सम्बन्धियों से क्या कहें। उसके सम्बन्धि कासिप्या में मन्दिर के सेवक हैं। मैंने उन लोगों को इद्दो के पास भेजा जिससे इद्दो परमेश्वर के मन्दिर में सेवा करने के लिये हमारे पास सेवकों को भेजे। 18 क्योंकि परमेश्वर हमारे साथ था, इद्दो के सम्बन्धियों ने इन लोगों को हमारे पास भेजा: महली के वंशजों में से शेरेब्याह नामक बुद्धिमान व्यक्ति। महली लेवी के पुत्रों में से एक था। (लेवी इस्राएल के पुत्रों में से एक था।) उन्होंने हमारे पास शेरेब्याह के पुत्रों और बन्धुओं को भेज। ये सब मिलाकर उस परिवार से ये अट्ठारह व्यक्ति थे। 19 उन्होंने मरारी के वंशजों में से हशब्याह और यशायाह को भी उनके बन्धुओं और उनके पुत्रों के साथ भेजा। उस परिवार से कुल मिलाकर बीस व्यक्ति थे। 20 उन्होंने मन्दिर के दो सौ बीस सेवक भी भेजे। उनके पूर्वज वे लोग थे जिन्हें दाऊद और बड़े अधिकारियों ने लेवीवंशियों की सहायता के लिये चुना था। उन सबके नाम सूची में लिखे हुए थे।

21 वहाँ अहवा नदी के पास, मैंने (एज्रा) घोषणा की कि हमें उपवास रखना चाहिये। हमें अपने को परमेश्वर के सामने विनम्र बनाने के लिये उपवास रखना चाहिये। हम लोग परमेश्वर से अपने लिये, अपने बच्चों के लिये, और जो चीज़ें हमारी थीं, उनके साथ सुरक्षित यात्रा के लिये प्रार्थना करना चाहते थे। 22 राजा अर्तक्षत्र से, अपनी यात्रा के समय अपनी सुरक्षा के लिये सैनिक और घुड़सवारों को माँगने में मैं लज्जित था। सड़क पर शत्रु थे। मेरी लज्जा का कारण यह था कि हमने राजा से कह रखा था कि, “हमारा परमेश्वर उस हर व्यक्ति के साथ है जो उस पर विश्वास करता है और परमेश्वर उस हर एक व्यक्ति पर क्रोधित होता है जो उससे मुँह फेर लेता है।” 23 इसलिये हम लोगों ने अपनी यात्रा के बारे में उपवास रखा और परमेश्वर से प्रार्थना की। उसने हम लोगों की प्रार्थना सुनी।

24 तब मैंने याजकों में से बारह को नियुक्त किया जो प्रमुख थे। मैंने शेरेब्याह, हशब्याह और उनके दस भाईयों को चुना। 25 मैंने चाँदी, सोना और अन्य चीज़ों को तौला जो हमारे परमेश्वर के मन्दिर के लिये दी गई थीं। मैंने इन चीज़ों को उन बारह याजकों को दिया जिन्हें मैंने नियुक्त किया था। राजा अर्तक्षत्र, उसके सलाहकार, उसके बड़े अधिकारियों और बाबेल में रहने वाले सभी इस्राएलियों ने परमेश्वर के मन्दिर के लिये उन चीजों को दिया। 26 मैंने इन सभी चीज़ों को तौला। वहाँ चाँदी पच्चीस टन थी। वहाँ चाँदी के प्रात्र व अन्य वस्तुएं थी। जिन का भार पौने चार किलोग्राम था। वहाँ सोना पौने चार टन था। 27 और मैंने उन्हें बीस सोने के कटोरे दिये। कटोरों का वज़न लगभग उन्नीस पौंड था और मैंने उन्हें झलकाये गये सुन्दर काँसे के दो पात्र दिए जो सोने के बराबर ही कीमती थे। 28 तब मैंने उन बारह याजकों से कहा: “तुम और ये चीज़ें यहोवा के लिये पवित्र हैं। लोगों ने यह चाँदी और सोना यहोव तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर को दिया। 29 इसलिये इनकी रक्षा सावधानी से करो। तुम इसके लिए तब तक उत्तरदायी हो जब तक तुम इसे यरूशलेम में मन्दिर के प्रमुखो को नहीं दे देते। तुम इन्हें प्रमुख लेवीवंशियों को और इस्राएल के परिवर प्रमुखों को दोगे। वे उन चीज़ों को तौलेंगे और यरूशलेम में यहोवा की मन्दिर के कोठरियों में रखेंगे।”

30 सो उन याजकों और लेवियों ने चाँदी, सोने और उन विशेष वस्तुओं को ग्रहण किया जिन्हें एज्रा ने तौला था और उन्हें यरूशलेम में परमेश्वर के मन्दिर में ये वस्तुएं ले जाने के लिये कहा गया था।

31 पहले महीने के बारहवें दिन हम लोगों ने अहवा नदी को छोड़ा और हम यरूशलेम की ओर चल पड़े। परमेश्वर हम लोगों के साथ था और उसने हमरी रक्षा शत्रओं और डाकुओं से पूरे मार्ग भर की। 32 तब हम यरूशलेम आ पहुँचे। हमने वहाँ तीन दिन आराम किया। 33 चौथे दिन हम परमेश्वर के मन्दिर को गए और चाँदी, सोना और विशेष चीज़ों को तौला। हमने याजक ऊरीयाह के पुत्र मरेमोत को वे चीज़ें दीं। पीनहास का पुत्र एलीआजर मरेमोत के साथ था और लेवीवंशी येशू का पुत्र योजाबाद और बिन्तूई का पुत्र नोअद्याह भी उनके साथ थे। 34 हमने हर एक चीज़ गिनी और उन्हें तौला। तब हमने उस समय कुल वज़न लिखा।

35 तब उन यहूदी लोगों ने जो बन्धुवाई से आये थे, इस्राएल के परमेश्वर को होमबलि दी। उन्होंने बारह बैल पूरे इस्राएल के लिये छियानव मेंढ़े, सतहतर मेमने और बारह बकरे पाप भेंट के लिये चढ़ाये। यह सब यहोवा के लिये होमबलि थी।

36 तब उन लोगों ने राजा अर्तक्षत्र का पत्र, राजकीय अधिपतियों और फरात के पशिचम के क्षेत्र के प्रशासकों को दिया। तब उन्होंने इस्राएल के लोगों और मन्दिर को अपना समर्थन दिया।

विदेशी लोगों से विवाह के विषय में एज्रा की प्रार्थना

9जब हम लोग यह सब कर चुके तब इस्राएल के प्रमुख मेरे पास आए। उन्होंने कहा, “एज्रा इस्राएल के लोगों और याजकों तथा लेवीवंशियों ने अपने चारों ओर रहने वाले लोगों से अपने को अलग नहीं रखा है। इस्राएल के लोग कनानियों, हित्तियों, परिज्जियों, यबूसियों, अम्मोनियों, मोआबियों, मिस्र के लोगों और एमोरियों द्वारा की जाने वाली बहुत सी बुरी बातों से प्रभावित हुए हैं 2 इस्राएल के लोगों ने अपने चारों ओर रहने वाले अन्य जाति के लोगों से विवाह किया है। इस्राएल के लोग विशेष माने जाते हैं। किन्तु अब वे अपने चारों ओर रहने वाले अन्य लोगों से मिलकार दोगले हो गये हैं। इस्राएल के लोगों के प्रमुखों और बड़े अधिकारियों ने इस विषय में बुरे उदाहरण रखे हैं।” 3 जब मैंने इस विषय में सुना, मैंने अपना लबादा और अंगरखा यह दिखाने के लिये फाड़ डाला कि मैं बहुत परेशान हूँ। मैंने अपने सिर और दाढ़ी के बाल नोंच डाले। मैं दु:खी और अस्त व्यस्त बैठ गया। 4 तब हर एक व्यक्ति जो इस्राएल के परमेश्वर के नियमों का आदर करता था, भय से काँप उठा। वे डर गए क्योंकि जो इस्राएल के लोग बन्धुवाई से लौटे, वे परमेश्वर के भक्त नहीं थे। मुझे धक्का लगा और मैं घबरा गया। मैं वहाँ सन्ध्या की बलि भेंट के समय तक बैठा रहा और वे लोग मेरे चारों ओर इकट्ठे रहे।

5 तब, जब सन्ध्या की बलि भेंट का समय हुआ, मैं उठा। मैं बहुत लज्जित था। मेरा लबादा और अंगरखा दोनों फटे थे और मैंने घुटनों के बल बैठकर यहोव अपने परमेश्वर की और हाथ फैलाये। 6 तब मैंने यह प्रार्थना की:

“हे मेरे परमेश्वर मैं इतना लज्जित और संकोच में हूँ कि तेरी ओर मेरी आँखें नहीं उठतीं, हे मेरे परमेश्वर! मैं लाज्जित हूँ क्योंकि हमारे पाप हमारे सिर से ऊपर चले गये हैं। हमारे अपराधों की ढेरी इतनी ऊँची हो गई है कि वह आकाश तक पहुँच चुकी है। 7 हमारे पूर्वजों के समय से अब तक हम लोगों ने बहुत अधिक पाप किये हैं। हम लोगों ने पाप किये, इसलिये हम, हमारे राजा और हमारे याजक दण्डित हुए। हम लोग विदेशी राजाओं द्वारा तलवार से और बन्दीखाने में ठूंसे जाने तक दण्डित हुए हैं। वे राजा हमारा धन ले गए और हमें लज्जित किया। यह स्थिति आज भी वैसी ही है।

8 “किन्तु अन्त में अब तू हम पर कपालु हुआ है। तूने हम लोगों में से कुछ को बन्धुवाई से निकल आने दिया है और इस पवित्र स्थान में बसने दिया है। यहोवा, तूने हमें नया जीवन दिया है और हमारी दासता से मुक्त किया है। 9 हाँ, हम दास थे, किन्तु तू हमें सदैव के लिए दास नहीं रहने देना चाहता था। तू हम पर कृपालु था। तूने फारस के राजाओं को हम पर कृपालु बनाया। तेरा मन्दिर ध्वस्त हो गया था। किन्तु तूने हमें नया जीवन दिया जिससे हम तेरे मन्दिर को फिर बना सकते हैं और नये की तरह पक्का कर सकते हैं। परमेश्वर, तूने हमें यरूशलेम और यहूदा की रक्षा के लिये परकोटे बनाने में सहायता की।

10 “हमारे परमेश्वर, अब हम तुझसे क्या कह सकते हैं? हम लोगों ने तेरी आज्ञा का पालन करना फिर छोड़ दिया है। 11 हमारे परमेश्वर, तूने अपने सेवकों अर्थात् नबियों का उपयोग किया और उन आदेशों को हमें दिया। तूने कहा था: ‘जिस देश में तुम रहने जा रहे हो और जिसे अपना बनाने जा रहे हो, वह भ्रष्ट देश है। यह उन बहुत बुरे कामों से भ्रष्ट हुआ है जिन्हें वहाँ रहने वालों ने किया है। उन लोगों ने इस देश मे हर स्थान पर बहुत अधिक बुरे काम किये हैं। उन्होंने इस देश को अपने पापों से गंदा कर दिया है। 12 अत: इस्राएल के लोगों, अपने बच्चों को उनके बच्चों से विवाह मत करने दो। उनके साथ सम्बन्ध न रखो! और उनकी वस्तुओ की लालसा न करो! मेरे आदेशों का पालन करो जिससे तुम शाक्तिशाली होगे और इस देश की अच्छी चीज़ों का भोग करोगे। तब तुम इस देश को अपना बनाये रखोगे और अपने बच्चों को दोगे।’

13 “जो बुरी घटनायें हमारे साथ घटीं वे हमारी अपनी गलतियों से घटीं। हम लोगों ने पाप के काम किये हैं और हम लोग बहुत अपराधी हैं। किन्तु हमारे परमेश्वर, तूने हमें उससे बहुत कम दण्ड दिया है जितना हमें मिलना चाहिये। हम लोगों ने बड़े भयानक काम किये हैं और हम लोगों को इससे अधिक दण्ड मिलना चाहिये। ऐसा होते हुए भी तूने हमारे लोगों में से कुछ को बन्धुवाई से मुक्त हो जाने दिया है। 14 अत: हम जानते हैं कि हमें तेरे आदेशों को तोड़ना नहीं चाहिये। हमें उन लोगों के साथ विवाह नहीं करना चाहिए। वे लोग बहुत बुरे काम करते हैं। परमेश्वर यदि हम लोग उन बुरे लोगों के साथ विवाह करते रहे तो हम जानते हैं कि तू हमें नष्ट कर देगा। तब इस्राएल के लोगों में से कोई भी जीवित नहीं बच पाएगा।

15 “यहोवा, इस्राएल का परमेश्वर, तू अच्छा है! और तू अब भी हम में से कुछ को जीवित रहने देगा। हाँ, हम अपराधी हैं! और अपने अपराध के कारण हम में किसी को भी तेरे सामने खड़े होने नहीं दिया जाना चाहिये।”

समीक्षा

पवित्रता और प्रार्थना

क्या आप अपने जीवन में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं? एज्रा एक बहुत बड़ी चुनौती का सामना कर रहा था जब वह वापस यरूशलेम की यात्रा की अगुवाई कर रहा था और मंदिर के पुन:निर्माण की तैयारी आरंभ कर रहा था।

उसे 5000 लोगों के समूह की अगुवाई करनी थी जिसमे स्त्रियाँ और बच्चे शामिल थे। निर्जन इलाके में से होते हुए चार महीने का जोखिमभरा सफ़र, और वे अपने साथ भरपूर मात्रा में धन और बहुमूल्य वस्तुएं लिए हुए थे (8:15-27)।

एज्रा बहुत ही बुद्धिमानी से अपने अगुवों के संग चला “तो मैंने ......... नौ मुख्य पुरुष चुने ...... जो बुद्धिमान थे, (व.16)। उस दर्शन को पूरा करने के लिए अगुवाई एक कुंजी थी जो एज्रा ने मंदिर के पुन:निर्माण और वापसी के लिए देखा था।

परमेश्वर द्वारा दिये गए हरएक दर्शन की पूर्ति के लिए तीन चीज़ों की अवश्यकता होती है:

  1. सभी प्रार्थना करें

एज्रा प्रार्थना में लीन रहने वाला पुरुष था। इससे पहले कि वह इस यात्रा पर जाए उसने उपवास का एलान किया। उन सभी ने अपने आप को नम्र किया और परमेश्वर से एक सुरक्षित सफ़र की कामना की (व.21) परमेश्वर ने उनकी प्रार्थना सुनी। इसी विषय पर हम ने उपवास करके अपने परमेश्वर से प्रार्थना की और उसने हमारी सुनी' (व.23)।

  1. सभी सेवा करें

जो बंधुआई से आए थे, होमबलि चढाएँ.... तब उन्होंने राजा की आज्ञाएँ महानद के इस पार के अधिकारियों और अधिपतियों को दी और उन्होंने इस्राएल के लोगों की और परमेश्वर के भवन के काम में सहायता की (वव. 35-36)।

जो परमेश्वर के मंदिर का निर्माण करने में व्यस्त थे परमेश्वर ने उन्हें हर तरह से आशीष दी। लेकिन परमेश्वर के विश्वासयोग्य होने के बावजूद, वे लोग परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य न थे। उन्होंने अपने आप को पवित्र नहीं रखा। बात यह नहीं कि उन लोगों ने अंतर्विवाह किया बल्कि अपनी घिनौनी हरकतों से संपूर्ण राष्ट्र को दूषित किया (9:12)। हाकिमों और सरदारों ने उनके इस विश्वासघाती चलन में उनकी अगुवाई की (व. 2)।

एज्रा हमें एक बहुत बड़ा उदाहरण देता है कि हमें पाप को हल्के में नहीं लेना चाहिए। वह बहुत ही उजड़ा हुआ महसूस करता है: "यह सुन कर मैं ने अपने वस्त्र और वागे को फाड़ा और अपने सर और दाढ़ी के बाल नोचे, और विस्मित होकर बैठा रहा" (व.3)।

वह अपने घुटनों के बल झुका और अपने हाथ फैलाए हुए परमेश्वर से प्रार्थना की, जो कि हमारे और हमारी कलीसिया के लिए एक अच्छी प्रार्थना होगी। " हे मेरे परमेश्वर! मुझे तेरी ओर अपना मुंह उठाते हुए लाज आती है, और हे मेरे परमेश्वर! मेरा मुंह काला है; क्योंकि हम लोगों के अधर्म के काम सिर पर बढ़ गए हैं, और हमारा दोष बढ़ते बढ़ते आकाश तक पहुंचा है
7 अपने पुरखाओं के दिनों से लेकर आज के दिन तक हम बड़े दोषी हैं, और अपने अधर्म के कामों के कारण हम अपने राजाओं और याजकों समेत देश देश के राजाओं के हाथ में किए गए कि तलवार, बन्धुआई, लूटे जाने, और मुंह काला हो जाने की विपत्तियों में पड़ें जैसे कि आज हमारी दशा है" (व 6-7)।

एज्रा के समय में जैसे लोगों के साथ प्रभु रहा करता था वैसा ही आज भी कलीसियायोँ में है, हमारे परमेश्वर ने हमें वासत्व में नहीं छोडा है, (व-9)।

प्रार्थना

प्रभु, हमें एक पवित्र कलीसिया होने में सहायता कीजिये, जो यीशु ‘के लहू’ से शुद्ध हो, जो बेजुबानों की आवाज़ बने, जो आपके सनातन सुसमाचार का राष्ट्रों में प्रचार करे, और अपने शहरों और देशों में परमेश्वर की कलीसिया का निर्माण करे।

पिप्पा भी कहते है

एज्रा 9:1-2

दूसरे देशों के लोगों से विवाह करने के संबंध में यह बहुत ही मज़बूत प्रतिक्रिया लगती है। यह सिर्फ इसलिए नहीं कि वे विदेशी हैं जैसे रुत एक मोआबी स्त्री थी। वह विश्वास योग्यता का आदर्श उदाहरण है। और राजा दाऊद आठवे मोआबी थे। यह उनकी अनुचित चाल चलन की वजह से हो सकता है। जैसे सुलैमान अपनी पत्नियों द्वारा भ्रष्ट हुआ। एज्रा ने भी यह देखा होगा कि इन स्त्रियों के प्रभाव से परमेश्वर के लोगों का विश्वास नष्ट हो जाएगा।

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संदर्भ

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