आगे की ओर देखना
परिचय
एक चार्ल्स डिकेंस के द्वारा एक क्रिसमस ईसाई गीत, एबनेंज़ेर स्क्रूज, एक दुखित, घटिया, और कंजूस बुज़ुर्ग व्यापारी थे जिसे उसका भूत, वर्तमान, तथा भविष्य काल दिखाया जाता है। वह पश्चाताप करता है और उदारता से देने की शरुआत करता है।
डिकिन्स उसके चरित्र में इस परिवर्तन को देखता है, वह गिरजाघर गया और सड़क पर टहलने लगा उसने इस पर कभी सोचा भी नहीं था कि पैदल चलने से या किसी और चीज से उसे इतनी खुशी मिल पाएगी।
पवित्र शास्त्र में ‘पश्चाताप’ एक बहुत ही सकारात्मक शब्द है । यूनानी भाषा में ‘मेटानोइया’, एक शब्द है जिसका अर्थ है, ‘मन बदलना’। इसका मतलब सबसे पहले तो यह है कि बुरी बातों से मन फिराएं। यही वे बातें हैं जो आपकी ज़िंदगी को बर्बाद करती हैं और आपके और परमेश्वर के बीच का संबंध टूट जाता है। पश्चाताप का मतलब इतना शर्मिन्दा होना है कि उस चीज़ को न दोहराया जाए। बुरी चीज़ों से छुटकारा पा कर ही आपके जीवन को उभारा जा सकता है। परन्तु यह तो सिर्फ पहला भाग है।
हृदय और मन का परिवर्तन केवल यही नहीं कि हम बुरी बातों को छोड़ दें, पर यह भी है कि हम परमेश्वर की ओर मुड़ें और भलाई करें। ‘पश्चाताप’ शब्द खुद से बहुत कम नजर देता है, पवित्र शास्त्र में सच्चा पश्चाताप अपने फलों से जाना जाता है। पश्चाताप काफी नहीं है। हृदय, मन और जीवन में बदलाव भी अवश्यक है। पश्चाताप कीजिये और विश्वास कीजिये। पश्चाताप कीजिये और अपना विश्वास प्रभु यीशु मसीह पर रखिये। बात सिर्फ यह नहीं कि हमें पीछे मुड़कर नहीं देखना है परंतु आगे की ओर देख कर बढ़ना भी है।
भजन संहिता 147:1-11
147यहोवा की प्रशंसा करो क्योंकि वह उत्तम है।
हमारे परमेश्वर के प्रशंसा गीत गाओ।
उसका गुणगान भला और सुखदायी है।
2 यहोवा ने यरूशलेम को बनाया है।
परमेश्वर इस्राएली लोगों को वापस छुड़ाकर ले आया जिन्हें बंदी बनाया गया था।
3 परमेश्वर उनके टूटे मनों को चँगा किया करता
और उनके घावों पर पट्टी बांधता है।
4 परमेश्वर सितारों को गिनता है
और हर एक तारे का नाम जानता है।
5 हमारा स्वामी अति महान है। वह बहुत ही शक्तिशाली है।
वे सीमाहीन बातें है जिनको वह जानता है।
6 यहोवा दीन जन को सहारा देता है।
किन्तु वह दुष्ट को लज्जित किया करता है।
7 यहोवा को धन्यवाद करो।
हमारे परमेश्वर का गुणगान वीणा के संग करो।
8 परमेश्वर मेघों से अम्बर को भरता है।
परमेश्वर धरती के लिये वर्षा करता है।
परमेश्वर पहाड़ों पर घास उगाता है।
9 परमेश्वर पशुओं को चारा देता है,
छोटी चिड़ियों को चुग्गा देता है।
10 उनको युद्ध के घोड़े और
शक्तिशाली सैनिक नहीं भाते हैं।
11 यहोवा उन लोगों से प्रसन्न रहता है। जो उसकी आराधना करते हैं।
यहोवा प्रसन्न हैं, ऐसे उन लोगों से जिनकी आस्था उसके सच्चे प्रेम में है।
समीक्षा
पश्चाताप कीजिये और आनंद मनाइए
भजन सहिंता के 147वे अध्याय में नहेमयाह जब यरूशलेम में परमेश्वर के भवन का निर्माण कर रहा था ‘यरूशलेम को बसा रहा है, तो वह निकलकर कुछ इस्रालियों को इकठ्ठा किया‘ (व.2)। इसकी शुरूआत (जैसे हम नहेमयाह 1-2 में देखते हैं)। यह खुद की ओर से और लोगों की ओर से नहेमयाह के द्वारा सच्चा पश्चाताप था।
सच्चा पश्चाताप ‘टूटे ह्रदय’ से आरंभ होता है (भजन 147:3) अच्छी खबर यह है कि परमेश्वर टूटे हुए मनों को अच्छा करता है और उनके घावों पर मलहम लगाता है (व.3) (यशायाह 61:1 भी देखें)।
पश्चाताप में एक और बात शामिल होती है कि परमेश्वर के सामने अपने आप को नम्र बनाएं। ‘जबकि वह दुष्टों को भूमि पर रौंद देता है’ (भजन 147:6ब) परंतु नम्र लोगों को संभालता है (व. 6अ)। परन्तु परमेश्वर आप को वहाँ पर छोड़ते नहीं हैं। वह नहीं चाहते कि आप पश्चाताप के साथ पीछे मुड़कर देखें बल्कि आप आनंद से आगे की ओर देखें।
परमेश्वर की प्रसन्नता पुरुष के पैरों में नहीं होती (व. 10)। वह शारीरिक बल से प्रसन्न नहीं होते। और न ही उनकी प्रसन्नता घोड़ों के बल में है। हमारी मांस पेशियों का आकार उनकी नज़रों में बहुत छोटा जान पड़ता है (व. 10)। इसके बजाय ‘यहोवा अपने डरवैयों ही से प्रसन्न होता है, अर्थात उनसे जो उसकी करुणा की आशा लगाए रहते हैं’ (व.11)।
संपूर्ण भजन सहिंता परमेश्वर की स्तुति से भरा हुआ है यह सिर्फ प्रभु में आनंदित होने के बारे मैं नहीं समझाती जो कि मनभावना होता है। आराधना आनंद और संतुष्टि को लाती है यह उस अदूभुत परमेश्वर के प्रति सबसे सही प्रतिक्रिया है।
प्रार्थना
प्रभु, आज मैं केवल पश्चाताप नहीं करना चाहता, बल्कि आप में आनंदित भी होना चाहता हूँ। आपको धन्यवाद क्योंकि आपने वायदा किया है कि यदि मैं आपका भय मानूँ तो मुझे किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है।
प्रकाशित वाक्य 16:1-21
परमेश्वर के प्रकोप के कटोरे
16फिर मैंने सुना कि मन्दिर में से एक ऊँचा स्वर उन सात दूतों से कह रहा है, “जाओ और परमेश्वर के प्रकोप के सातों कटोरों को धरती पर उँड़ेल दो।”
2 सो पहला दूत गया और उसने धरती पर अपना कटोरा उँड़ेल दिया। परिणामस्वरूप उन लोगों के, जिन पर उस पशु का चिन्ह अंकित था और जो उसकी मूर्ति को पूजते थे, भयानक पीड़ापूर्ण छाले फूट आये।
3 इसके पश्चात् दूसरे दूत ने अपना कटोरा समुद्र पर उँड़ेल दिया और सागर का जल मरे हुए व्यक्ति के लहू के रूप में बदल गया और समुद्र में रहने वाले सभी जीवजन्तु मारे गए।
4 फिर तीसरे दूत ने नदियों और जल झरनों पर अपना कटोरा उँड़ेल दिया। और वे लहू में बदल गए 5 तभी मैंने जल के स्वामी स्वर्गदूत को यह कहते सुना:
“वह तू ही है जो न्यायी है, जो था सदा-सदा से,
तू ही है जो पवित्र।
तूने जो किया है वह न्याय है।
6 उन्होंने संत जनों का और नबियों का लहू बहाया।
तू न्यायी है तूने उनके पीने को बस रक्त ही दिया,
क्योंकि वे इसी के योग्य रहे।”
7 फिर मैंने वेदी से आते हुए ये शब्द सुने:
“हाँ, हे सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर!
तेरे न्याय सच्चे और नेक हैं।”
8 फिर चौथे दूत ने अपना कटोरा सूरज पर उँड़ेल दिया। सो उसे लोगों को आग से जला डालने की शक्ति प्रदान कर दी गयी। 9 और लोग भयानक गर्मी से झुलसने लगे। उन्होंने परमेश्वर के नाम को कोसा क्योंकि इन विनाशों पर उसी का नियन्त्रण है। किन्तु उन्होंने कोई मन न फिराया और न ही उसे महिमा प्रदान की।
10 इसके पश्चात् पाँचवे दूत ने अपना कटोरा उस पशु के सिंहासन पर उँड़ेल दिया और उस का राज्य अंधकार में डूब गया। लोगों ने पीड़ा के मारे अपनी जीभ काट ली। 11 अपनी-अपनी पीड़ाओं और छालों के कारण उन्होंने स्वर्ग के परमेश्वर की भर्त्सना तो की, किन्तु अपने कर्मो के लिए मन न फिराया।
12 फिर छठे दूत ने अपना कटोरा फरात नामक महानदी पर उँडेल दिया और उसका पानी सूख गया। इससे पूर्व दिशा के राजाओं के लिए मार्ग तैयार हो गया। 13 फिर मैंने देखा कि उस विशालकाय अजगर के मुख से, उस पशु के मुख से और कपटी नबियों के मुख से तीन दुष्टात्माएँ निकलीं, जो मेंढक के समान दिख रहीं थी। 14 ये शैतानी दुष्ट आत्माएँ थीं और उनमें चमत्कार दिखाने की शक्ति थी। वे समूचे संसार के राजाओं को परम शक्तिमान परमेश्वर के महान दिन, युद्ध करने के लिए एकत्र करने को निकल पड़ीं।
15 “सावधान! मैं दबे पाँव आकर तुम्हें अचरज में डाल दूँगा। वह धन्य है जो जागता रहता है, और अपने वस्त्रों को अपने साथ रखता है ताकि वह नंगा न फिरे और लोग उसे लज्जित होते न देखें।”
16 इस प्रकार वे दुष्टात्माएँ उन राजाओं को इकट्ठा करके उस स्थान पर ले आईं, जिसे इब्रानी भाषा में हरमगिदोन कहा जाता है।
17 इसके बाद सातवें दूत ने अपना कटोरा हवा में उँड़ेल दिया और सिंहासन से उत्पन्न हुई एक घनघोर ध्वनि मन्दिर में से यह कहती निकली, “यह समाप्त हो गया।” 18 तभी बिजली कौंधने लगी, गड़गड़ाहट और मेघों का गर्जन-तर्जन होने लगा तथा एक बड़ा भूचाल भी आया। मनुष्य के इस धरती पर प्रकट होने के बाद का यह सबसे भयानक भूचाल था। 19 वह महान् नगरी तीन टुकड़ों में बिखर गयी तथा अधर्मियों के नगर ध्वस्त हो गए। परमेश्वर ने बाबुल की महानगरी को दण्ड देने के लिए याद किया था। ताकि वह उसे अपने भभकते क्रोध की मदिरा से भरे प्याले को उसे दे दे। 20 सभी द्वीप लुप्त हो गए। किसी पहाड़ तक का पता नहीं चल पा रहा था। 21 चालीस चालीस किलो के ओले, आकाश से लोगों पर पड़ रहे थे। ओलों के इस महाविनाश के कारण लोग परमेश्वर को कोस रहे थे क्योंकि यह एक भयानक विपत्ति थी।
समीक्षा
पश्चाताप और प्रतिक्रिया करिए
संपूर्ण पवित्र शास्त्र से यह सब से भयानक अध्याय हो सकता है जो परमेश्वर के अंतिम न्याय को दर्शाता है। इसमें हम अंतिम सात विपत्तियों को देखते हैं। (निर्गमन 7-10) यह सब एक अंतिम युद्ध में समाप्त होता है। इस आश्चर्य न्याय में चार बातें हैं जो आपको सांत्वना दे सकती हैं।
- यीशु वापस आने वाले हैं
जागते रहो। देखो मैं चोर के समान आता हूँ; धन्य है वह जो जागता रहता है; और अपने वस्त्र की चौकसी करता है कि नंगा न फिरे, और लोग उसका नंगा पन न देखें (व.15)। आगे हम उन सारी आशीषों को देखेंगे जो प्रभु यीशु हमें नई सृष्टी में दिखाएंगे।
- यीशु ने आपका न्याय स्वंय अपने ऊपर लिया है
‘पूरा हुआ’ (व.17) यह वचन हमें बताता है कि अंतिम न्याय पूरा हो जाएगा, क्रूस पर कहा गया यीशु का वचन ‘पूरा हुआ’ (यूहन्ना 19:30) हमें यह याद दिलाता है कि यीशु ने हमारी खातिर क्रूस पर परमेश्वर का सारा क्रोध अपने ऊपर ले लिया। परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने अपने एकलौते पुत्र को भेजा, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो परन्तु अनंत जीवन पाए। परन्तु अनंत जीवन की सारी आशीषें प्राप्त करे।
- **न्याय करने में देरी की जा रही है। **
न्याय केवल उन लोगों पर आएगा जो ‘पश्चाताप करने और उनकी महिमा करने से इंकार करेंगे’ (प्रकाशितवाक्य 16:9)। फिरौन की तरह परमेश्वर उन्हें अनेक अवसर दे रहे हैं, “लेकिन उन्होंने किया उससे पश्चाताप करने से उन्होंने इंकार किया” (व.11)। परमेश्वर की इच्छा यह है कि सभी लोग पश्चाताप करें (2 पतरस 3:9)। वह कई अवसर दे रहे हैं। उनके न्याय के अंतर्गत केवल वही लोग आएंगे जिन्होंने मन फिराने से पूरी तरह इंकार कर दिया है।
- पूरी तरह से सच्चा न्याय होगा
बाइबल में इस तरह के लेखांश को लेकर कई लोग चिंतित हैं। मगर परमेश्वर का न्याय पूरी तरह से सच्चा और न्यायपूर्ण होगा। जैसाकि एचटीबी के पूर्व पादरी जॉन कॉलिन्स हमेशा कहते हैं, “उस दिन हम कहेंगे, ‘कि यह पूरी तरह से सही है।”
यीशु के दोबारा आगमन की आशा कीजिये। अपना जीवन सही कीजिये। इस बात का ध्यान रखिए कि आपके हृदय में पश्चाताप के प्रति कोई इंकार न हो। इन चेतावनियों के प्रति सही तरह से प्रतिक्रिया करें और ऐसा करने के लिए दूसरों की भी मदद करें।
प्रार्थना
प्रभु, आपको धन्यवाद कि आपने क्रूस पर मेरे पापों को ले लिया ताकि मुझे यहाँ पर उल्लेखित किसी भी दंड का सामना कभी न करना पड़े। आपको धन्यवाद कि आप वापस आने वाले हैं और यह कि आप सबकुछ सही कर देंगे। मैं जो कुछ भी करूँ उससे आपको महिमा मिले।
नहेमायाह 1:1-2:20
नहेमायाह की विनती
1ये हकल्याह के पुत्र नहेमायाह के वचन हैं: मैं, नहेमायाह, किसलवे नाम के महीने में शूशन नाम की राजधानी नगरी में था। यह वह समय था जब अर्तक्षत्र नाम के राजा के राज का बीसवाँ वर्ष चल रहा था। 2 मैं जब अभी शूशन में ही था तो हनानी नाम का मेरा एक भाई और कुछ अन्य लोग यहूदा से वहाँ आये। मैंने उनसे वहाँ रह रहे यहूदियों के बारे में पूछा। ये वे लोग थे जो बंधुआपन से बच निकले थे और अभी तक यहूदा में रह रहे थे। मैंने उनसे यरूशलेम नगरी के बारे में भी पूछा था।
3 हनानी और उसके साथ के लोगों ने बताया, “हे नहेमायाह, वे यहूदी जो बंधुआपन से बच निकले थे और जो यहूदा में रह रहे हैं, गहन विपत्ति में पड़े हैं। उन लोगों के सामने बहुत सी समस्याएँ हैं और वे बड़े लज्जित हो रहे हैं। क्यों? क्योंकि यरूशलेम का नगर—परकोटा ढह गया है और उसके प्रवेश द्वार आग से जल कर राख हो गये हैं।”
4 मैंने जब यरूशलेम के लोगों और नगर परकोटे के बारे मैं वे बातें सुनीं तो में बहुत व्याकुल हो उठा। मैं बैठ गया और चिल्ला उठा। मैं बहुत व्याकुल था। बहुत दिन तक मैं स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए उपवास करता रहा। 5 इसके बाद मैंने यह प्रार्थना की:
“हे यहोवा, हे स्वर्ग के परमेश्वर, तू महान है तथा तू शक्तिशाली परमेश्वर है। तू ऐसा परमेश्वर है जो उन लोगों के साथ अपने प्रेम की वाचा का पालन करता है जो तुझसे प्रेम करते हैं और तेरे आदेशों पर चलते हैं।
6 “अपनी आँखें और अपने कान खोल। कृपा करके तेरे सामने तेरा सेवक रात दिन जो प्रार्थना कर रहा है, उस पर कान दे। मैं तेरे सेवक, इस्राएल के लोगों के लिये विनती कर रहा हूँ। मैं उन पापों को स्वीकार करता हूँ जिन्हें हम इस्राएल के लोगों ने तेरे विरूद्ध किये हैं। मैंने तेरे विरूद्ध जो पाप किये हैं, उन्हें मैं स्वीकार कर रहा हूँ तथा मेरे पिता के परिवार के दूसरे लोगों ने तेरे विरूद्ध जो पाप किये हैं, मैं उन्हें भी स्वीकार करता हूँ। 7 हम इस्राएल के लोग तेरे लिये बहुत बुरे रहे हैं। हमने तेरे उन आदेशों, अध्यादेशों तथा विधान का पालन नहीं किया है जिन्हें तूने अपने सेवक मूसा को दिया था।
8 “तूने अपने सेवक मूसा को जो शिक्ष दी थी, कृपा करके उसे याद कर। तूने उससे कहा था, ‘यदि इस्राएल के लोगों ने अपना विश्वास नहीं बनाये रखा तो मैं तुम्हें तितर—बितर करके दूसरे देशों में फैला दूँगा। 9 किन्तु यदि इस्राएल के लोग मेरी ओर लौटे और मेरे आदेशों पर चले तो मैं ऐसा करूँगा: मैं तुम्हारे उन लोगों को, जिन्हें अपने घरों को छोड़कर धरती के दूसरे छोरों तक भागने को विवश कर दिया गया था, वहाँ से मैं उन्हें इकट्ठा करके उस स्थान पर वापस ले आऊँगा जिस स्थान को अपनी प्रजा के लिये मैंने चुना है।’
10 “इस्राएल के लोग तेरे सेवक हैं और वे तेरे ही लोग हैं। तू अपनी महाशक्ति का उपयोग करके उन लोगों को बचा कर सुरक्षित स्थान पर ले आया है। 11 इसलिए हे यहोवा, कृपा करके अब मेरी विनती सुन। मैं तेरा सेवक हूँ और कृपा करके अपने सेवकों की विनती पर कान दे जो तेरे नाम को मान देना चाहते हैं। कृपा करके आज मुझे सहारा दे। जब मैं राजा से सहायता माँगू तब तू मेरी सहायता कर। मुझे सफल बना। मुझे सहायता दे ताकि मैं राजा के लिए प्रसन्नतादायक बना रहूँ।”
उस समय मैं राजा के दाखमधु सेवक था।
राजा अर्तक्षत्र का नहेमायाह को यरूशलेम भेजना
2राजा अर्तक्षत्र के बीसवें वर्ष के नीसान नाम के महीने में राजा के लिये थोड़ी दाखमधु लाई गयी। मैंने उस दाखमधु को लिया और राजा को दे दिया। मैं जब पहले राजा के साथ था तो दु:खी नहीं हुआ था किन्तु अब मैं उदास था। 2 इस पर राजा ने मुझसे पूछा, “क्या तू बीमार है? तू उदास क्यों दिखाई दे रहा है? मेरा विचार है तेरा मन दु:ख से भरा है।”
इससे मैं बहुत अधिक डर गया। 3 किन्तु यद्यपि मैं डर गया था किन्तु फिर भी मैंने राजा से कहा, “राजा जीवित रहें! मैं इसलिए उदास हूँ कि वह नगर जिसमें मेरे पूर्वज दफनाये गये थे उजाड़पड़ा है तथा उस नगर के प्रवेश् द्वार आग से भस्म हो गये हैं।”
4 फिर राजा ने मुझसे कहा, “इसके लिये तू मुझसे क्या करवाना चाहता है?”
इससे पहले कि मैं उत्तर देता, मैंने स्वर्ग के परमेश्वर से विनती की। 5 फिर मैंने राजा को उत्तर देते हुए कहा, “यदि यह राजा को भाये और यदि मैं राजा के प्रति सच्चा रहा हूँ तो यहूदा के नगर यरूशलेम में मुझे भेज दिया जाये जहाँ मेरे पूर्वज दफनाये हुए हैं। मैं वहाँ जाकर उस नगर को फिर से बसाना चाहता हूँ।”
6 रानी राजा के बराबर बैठी हुई थी, सो राजा और रानी ने मुझसे पूछा, “तेरी इस यात्रा में कितने दिन लगेंगे? यहाँ तू कब तक लौट आयेगा?”
राजा मुझे भेजने के लिए राजी हो गया। सो मैंने उसे एक निश्चित समय दे दिया। 7 मैंने राजा से यह भी कहा, “यदि राजा को मेरे लिए कुछ करने में प्रसन्नता हो तो मुझे यह माँगने की अनुमति दी जाये। कृपा करके परात नदी के पश्चिमी क्षेत्र के राज्यपालों को दिखाने के लिये कुछ पत्र दिये जायें। ये पत्र मुझे इसलिए चाहिए ताकि वे राज्यपाल यहूदा जाते हुए मुझे अपने—अपने इलाकों से सुरक्षापूर्वक निकलने दें। 8 मुझे द्वारों, दीवारों, मन्दिरों के चारों ओर के प्राचीरों और अपने घर के लिये लकड़ी की भी आवश्यकता है। इसलिए मुझे आपसे आसाप के नाम भी एक पत्र चाहिए, आसाप आपके जंगलात का हाकिम है।”
सो राजा ने मुझे पत्र और वह हर वस्तु दे दी जो मैंने मांगी थी। क्योंकि परमेश्वर मेरे प्रति दयालु था इसलिए राजा ने यह सब कर दिया था।
9 इस तरह मैं परात नदी के पश्चिमी क्षेत्र के राज्यपालों के पास गया और उन्हें राजा के द्वारा दिये गये पत्र दिखाये। राजा ने सेना के अधिकारी और घुड़सवार सैनिक भी मेरे साथ कर दिये थे। 10 सम्बल्लत और तोबियाह नाम के दो व्यक्तियों ने मेरे कामों के बारे में सुना। वे यह सुनकर बहुत बेचैन और क्रोधित हुए कि कोई इस्राएल के लोगों की मदद के लिये आया है। सम्बल्लत होरोन का निवासी था और तोबियाह अम्मोनी का अधिकारी था।
नहेमायाह द्वारा यरूशलेम के परकोटे का निरीक्षण
11-12 मैं यरूशलेम जा पहुँचा और वहाँ तीन दिन तक ठहरा और फिर कुछ लोगों को साथ लेकर मैं रात को बाहर निकल पड़ा। परमेश्वर ने यरूशलेम के लिये कुछ करने की जो बात मेरे मन में बसा दी थी उसके बारे में मैंने किसी को कुछ भी नहीं बताया था। उस घोड़े के सिवा, जिस पर मैं सवार था, मेरे साथ और कोई घोड़े नहीं थे। 13 अभी जब अंधेरा ही था तो मैं तराई द्वार से होकर गुज़रा। अजगर के कुएँ की तरफ़ मैंने अपना घोड़ा मोड़ दिया तथा मैं उस द्वार पर भी घोड़े को ले गया, जो कूड़ा फाटक की ओर खुलता था। मैं यरूशलेम के उस परकोटे का निरीक्षण कर रहा था जो टूटकर ढह चुका था। मैं उन द्वारों को भी देख रहा था जो जल कर राख हो चुके थे। 14 इसके बाद मैं सोते के फाटक की ओर अपने घोड़े को ले गया और फिर राजसरोवर के पास जा निकला। किन्तु जब मैं निकट पहुँचा तो मैंने देखा कि वहाँ मेरे घोड़े के निकलने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है। 15 इसलिए अन्धेरे में ही मैं परकोटे का निरीक्षण करते हुए घाटी की ओर ऊपर निकल गया और अन्त में मैं लौट पड़ा और तराई के फाटक से होता हुआ भीतर आ गया। 16 उन अधिकारियों और इस्राएल के महत्वपूर्ण लोगों को यह पता नहीं चला कि मैं कहाँ गया था। वे यह नहीं जान पाये कि मैं क्या कर रहा था। मैंने यहूदियों, याजकों, राजा के परिवार, हाकिमों अथवा जिन लोगों को वहाँ काम करना था, अभी कुछ भी नहीं बताया था।
17 इसके बाद मैंने उन सभी लोगों से कहा, “यहाँ हम जिन विपत्तियों में पड़े हैं, तुम उन्हें देख सकते हो। यरूशलेम खण्डहरों का ढेर बना हुआ है तथा इसके द्वार आग से जल चुके हैं। आओ, हम यरूशलेम के परकोटे का फिर से निर्माण करें। इससे हमें भविष्य में फिर कभी लज्जित नहीं रहना पड़ेगा।”
18 मैंने उन लोगों को यह भी कहा कि मुझ पर परमेश्वर की कृपा है। राजा ने मुझसे जो कुछ कहा था, उन्हें मैंने वे बातें भी बतायीं। इस पर उन लोगों ने उत्तर देते हुए कहा, “आओ, अब हम काम करना शुरु करें!” सो उन्होंने उस उत्तम कार्य को करना आरम्भ कर दिया। 19 किन्तु होरोन के सम्बल्लत अम्मोनी के अधिकारी तोबियाह और अरब के गेशेम ने जब यह सुना कि फिर से निर्माण कर रहे हैं तो उन्होंने बहुत भद्दे ढंग से हमारा मजाक उड़ाया और हमारा अपमान किया। वे बोले, “यह तुम क्या कर रहे हो? क्या तुम राजा के विरोध में हो रहे हो?”
20 किन्तु मैंने तो उन लोगों से बस इतना ही कहा: “हमें सफल होने में स्वर्ग का परमेश्वर हमारी सहायता करेगा। हम परमेश्वर के सेवक हैं औऱ हम इस नगर का फिर से निर्माण करेंगे। इस काम में तुम हमारी मदद नहीं कर सकते। यहाँ यरूशलेम में तुम्हारा कोई भी पूर्वज पहले कभी भी नहीं रहा। इस धरती का कोई भी भाग तुम्हारा नहीं है। इस स्थान में बने रहने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है!”
समीक्षा
पश्चाताप करें और फिर से बनाएं
नहेम्याह की परिस्थिति हमसे कुछ अलग नहीं थी। इस देश में कलीसिया बड़े संकट और बदनामी में थी (1:3)। यह एक उजाड़ और काँटों से भरी हुई परिस्थिति जान पड़ती है।
445 ईसा पूर्व, नहेम्याह भी इस बात से शर्मसार था कि परमेश्वर के नाम का सम्मान नहीं हो रहा है। परमेश्वर के लोग बुरे हाल में थे और वे बड़ी दुर्दशा में पड़े थे क्योंकि यरुशलेम की शहरपनाह टूटी हुई थी और उस के फाटक जले हुए थे’ (व.3)।
नहेम्याह फारसी शासन काल के दौरान एक सरकारी कर्मचारी था जो एक ऊँची पदवी पर नियुक्त था। वह तो राजा का पियाऊ था (व.11)। यह महत्वपूर्ण कार्य था कि वह राजा के प्याले को चखे और राजमहल की निगरानी करें।
नहेम्याह की प्रतिक्रिया हमारे लिए एक बहुत बड़ा उदाहरण है। वह एक क्रियाशील मनुष्य था, परन्तु उसने प्रार्थना से आरंभ किया। उसकी प्रतिक्रिया गिडगिडाना, विलाप कारना, उपवास करना और प्रार्थना करना था (व.4) । उसकी प्रार्थना परमेश्वर को अपना प्रेम याद दिलाते हुए आरंभ होती है (व.5)। वह अपना और अपने लोगों के पापों का पश्चाताप करता रहता था। मैं इस्रालियों के पापों को जो हम लोगों ने तेरे विरुद्ध किए हैं, मान लेता हूँ (व 6ब)।
वह अपनी प्रार्थना यह कहते हुए समाप्त करता है कि परमेश्वर उसे सफलता दें (व.11) और कई बार ऐसा होता है उसकी प्रार्थना का जवाब उसी कार्य में रहता है जो वह करने जा रहा था। उसने मुसीबत को देखा और सामना किया। उसने अपना भविष्य खतरे, संघर्ष और बलिदान देने वाले जीवन के रूप में दे दिया। ऐसा करने से वह स्वंय ही अपनी प्रार्थना का उत्तर बन जाता है।
अर्तक्षत्र ने नहेम्याह की उदासी देखी और उससे पूछा “कि तू क्या मांगता है?” (व.4) फिर से नहेम्याह की तीर जैसी प्रार्थना (मेरी श्वास के भीतर की प्रार्थना) (व.4) यह एक अच्छा उदाहरण है। ऐसी किसी भी परिस्थिति में जब आप को लगे कि आपके पास बस एक ही क्षण है निर्णय लेने के लिए, तो यह प्रार्थना करें: ‘ तब मैंने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्थना की और राजा से कहा’ (व.4-5) उसने अपनी गंभीर रूप से की जाने वाली प्रार्थना की थी अब उसे सिर्फ सिर उठाकर एक झलक देखना था।
उसकी माँग को पूरा किया गया और उसे यह अनुमति मिली कि यरूशलेम जाकर मंदिर का निर्माण करे (व.8) । पहले उसने दीवारों की गुप्त रीति से जांच की फिर लोगों को इकठ्ठा किया और अपनी योजनाओं का एलान किया। उसने अपनी प्रार्थना के साथ-साथ कार्य भी किया (व.11-18) ।
इन सभी कार्यों में नहेम्याह ने परमेश्वर को लगातार याद किया और स्मरण किया कि वह परमेश्वर ऐसे हैं जिसने उसे यह कार्य करने के लिए प्रेरित किया है, ‘क्योंकि उस परमेश्वर का अनुग्रहकारी हाथ मुझ पर था कि राजा ने मेरी विनती स्वीकार की’ (व.8 और व.12-18) यह बहुत ही सरल बात है कि हम किसी चीज़ के लिए प्रार्थना तो करें पर जब सारी शुरुआत अच्छी हो गई हो तो उसे स्मरण करना भूल जाएँ। परन्तु नहेम्याह इस वक्त परमेश्वर के ऊपर अपनी निर्भरता को लेकर और बहुत ही फुर्ती से सारा आदर परमेश्वर को देने में सक्रीय था।
परमेश्वर पर भरोसा रखिए कि वह आप को हिम्मत दें अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए तब भी जब आप मुसीबत का सामना कर रहे हों। हर अच्छे और बुरे समय में नहेम्याह ने परमेश्वर की ओर देखा: ‘स्वर्ग का परमेश्वर हमारा काम सफल करेगा; इसलिए हम उसके दास कमर बांधकर बनाएँगें।‘ (व.20) रुकावटों को अनुमति न दें कि वह परमेश्वर द्वारा दिए गए कार्य को रोकें। परमेश्वर पर भरोसा रखें और कार्य में लग जाएँ। परमेश्वर की ओर आगे बढ़ कर देखें कि वह आपको सफलता की सीढ़ी तक कैसे पहुंचाते हैं।
प्रार्थना
प्रभु आप हमें निर्माण करने के लिए बुलाइये। हमें सफलता दीजिये। तेरी कलीसिया विनाश में जी रही है। दीवारें टूट चुकी हैं। ऐसा हो कि इस देश की कलीसियाएं उठ खड़ी हों और कहें ‘आओ हम निर्माण करें ....... स्वर्ग के परमेश्वर
पिप्पा भी कहते है
नहेम्याह 2:2
जब उसे अवसर मिला तब नहेयाह ने यह स्वीकार किया, हालांकि वह बहुत घबराया हुआ था। सही बात को बोलने के लिए हिम्मत की अवश्यकता होती है। बात ऐसी नहीं कि नहेम्याह को डर नहीं लगा, पर उसके डर के बावजूद भी उसने आवाज़ उठाने की हिम्मत की।

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संदर्भ
चार्ल्स डिकम्स, ए क्रिसमस कॅरल एंड अदर क्रिसमस बुक्स (ऑक्सफर्ड युनिवर्सिटी प्रेस, 1988), पन्ना 88
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
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