दिन 66

सारा शोक आनंद में बदल गया

बुद्धि भजन संहिता 30:8-12
नए करार मरकुस 13:1-31
जूना करार लैव्यव्यवस्था 14:1-57

परिचय

'बिग जॉन' लंदन की सड़कों पर दस साल से भी ज़्यादा समय तक रह रहे थे। इससे पहले उन्होंने नौ साल कैद में गुज़रे थे। उनके ज़्यादातर दाँत टूट गए थे। वह मेथाडोन के व्यसनी थे। लंदन की सड़कों पर उनका उपनाम 'बिग जॉन' था, क्योंकि वह एक बड़ा व्यक्ति था जिसने कभी सेना के साथ मुक्केबाज़ी की थी।

'बिग जॉन' हमारे रात्रि आश्रालय में आया था जिसे एचटीबी में बनाया गया है। वह अपने दोस्त 'लिटिल जॉन' के साथ आया था। 'बिग जॉन' उससे प्यार करता था और उन सभी युवाओं की सराहना करता था जिन्होंने उसकी देखभाल की थी। वह चर्च में आने लगा। वह अल्फा में आया। वह व्यसन से बाहर निकला। परमेश्वर ने उसका जीवन – शोक से आनंद में - बदल दिया।

वह सड़कों पर लोगों को यीशु के बारे में बताने लगा। हर सप्ताह वह एक और दोस्त के साथ चर्च में आता था। सड़कों पर लोग उसे 'बिग जॉन' के बजाय 'जॉन द बॅप्टिस्ट' से पुकारने लगा।

सप्ताह के अंत में होने वाले अल्फा में वह एक व्यक्ति से मिला जो संपत्ति के व्यवसाय में था और उसे खुद के लिए रहने की जगह मिल गई। हमारी सभा में से एक दंत चिकित्सक ने उसके सभी टूटे हुए दाँतों को मुफ्त में बदल दिया। उसकी माँ और उसकी बेटी से उसका फिर से मेल मिलाप हुआ और अब उसके नाती-पोतों के साथ उसके अच्छे संबंध हैं, जिसे वह पहले कभी नहीं मिला था।

यीशु जीवन बदल देने वाले परमेश्वर हैं। वह लगातार लोगों का जीवन बदल रहे हैं। हमारे परमेश्वर, नई शुरूवात और नये परिवर्तन के परमेश्वर हैं। वह शोक को आनंद में बदल देते हैं (भजन संहिता 30:11)।

बुद्धि

भजन संहिता 30:8-12

8 हे परमेश्वर, मैं तेरी ओर लौटा और विनती की।
 मैंने मुझ पर दया दिखाने की विनती की।
9 मैंने कहा, “परमेश्वर क्या यह अच्छा है कि मैं मर जाऊँ
 और कब्र के भीतर नीचे चला जाऊँ
मरे हुए जन तो मिट्टी में लेटे रहते हैं,
 वे तेरे नेक की स्तुति जो सदा सदा बनी रहती है नहीं करते।
10 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन और मुझ पर करुणा कर!
 हे यहोवा, मेरी सहायता कर!”

11 मैंने प्रार्थना की और तूने सहायता की! तूने मेरे रोने को नृत्य में बदल दिया।
 मेरे शोक वस्त्र को तूने उतार फेंका,
 और मुझे आनन्द में सराबोर कर दिया।
12 हे यहोवा, मैं तेरा सदा यशगान करुँगा। मैं ऐसा करुँगा जिससे कभी नीरवता न व्यापे।
 तेरी प्रशंसा सदा कोई गाता रहेगा।

समीक्षा

उस परमेश्वर को पुकारें जो जीवन बदल देते हैं

परमेश्वर आपके जीवन को बदल सकते हैं। परमेश्वर ' विलाप को नृत्य में बदल डालते हैं' (पद - 11अ)। वह हमारे 'शोक' को 'आनंद' में बदल देते हैं (पद - 11ब)। यह तब होता है जब आप दया के लिए उन्हें पुकारते हैं (पद - 8-10)।

दाऊद ने परमेश्वर को पुकारा, 'हे परमेश्वर तू मेरा सहायक है!' (पद - 10)। परमेश्वर ने 'विलाप को नृत्य में बदल डाला परमेश्वर ने मेरा टाट उतरवाकर मेरी कमर में आनन्द का पटुका बान्धा है' (पद - 11)।

जीवन के बाद जीवन बदल देने वाली यीशु की कहानी सुनना अचंभित कर देने वाली और आश्चर्यजनक है, जिसमे सारा शोक आनंद में बदल जाता है, उन्हें व्यसन से मुक्त करना, उनके विवाह को बहाल करना और जीवनों को बदलना – विलाप को नृत्य में बदलना और टाट उतरवा कर कमर में आनन्द का पटुका बान्धना।

इसमे कोई आश्चर्य नहीं है इस भजन की समाप्ति यह कहते हुए होती है, 'हे मेरे परमेश्वर, मैं सर्वदा तेरा धन्यवाद करता रहूंगा' (पद - 12)।

प्रार्थना

प्रभु आपका धन्यवाद, जब मैं आपकी दया और सहायता के लिए आपको पुकारता हूँ, तो आप मुझे उत्तर देते हैं। मेरा जीवन पूरी तरह से बदल देने के लिए मैं आपको सदा धन्यवाद देता रहूँगा!

नए करार

मरकुस 13:1-31

यीशु द्वारा विनाश की भविष्यवाणी

13जब वह मन्दिर से जा रहा था, उसके एक शिष्य ने उससे कहा, “गुरु, देख! ये पत्थर और भवन कितने अनोखे हैं।”

2 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “तू इन विशाल भवनों को देख रहा है? यहाँ एक पत्थर पर दूसरा पत्थर टिका नहीं रहेगा। एक-एक पत्थर ढहा दिया जायेगा।”

3 जब वह जैतून के पहाड़ पर मन्दिर के सामने बैठा था तो उससे पतरस, याकूब यूहन्न और अन्द्रियास ने अकेले में पूछा, 4 “हमें बता, यह सब कुछ कब घटेगा? जब ये सब कुछ पूरा होने को होगा तो उस समय कैसे संकेत होंगे?”

5 इस पर यीशु कहने लगा, “सावधान! कोई तुम्हें छलने न पाये। 6 मेरे नाम से बहुत से लोग आयेंगे और दावा करेंगे ‘मैं वही हूँ।’ वे बहुतों को छलेंगे। 7 जब तुम युद्धों या युद्धों की अफवाहों के बारे में सुनो तो घबराना मत। ऐसा तो होगा ही किन्तु अभी अंत नहीं है। 8 एक जाति दूसरी जाति के विरोध में और एक राज्य दूसरे राज्य के विरोध में खड़े होंगे। बहुत से स्थानों पर भूचाल आयेंगे और अकाल पड़ेंगे। वे पीड़ाओं का आरम्भ ही होगा।

9 “अपने बारे में सचेत रहो। वे लोग तुम्हें न्यायालयों के हवाले कर देंगे और फिर तुम्हें उनके आराधनालयों में पीटा जाएगा और मेरे कारण तुम्हें शासकों और राजाओं के आगे खड़ा होना होगा ताकि उन्हें कोई प्रमाण मिल सके। 10 किन्तु यह आवश्यक है कि पहले सब किसी को सुसमाचार सुना दिया जाये। 11 और जब कभी वे तुम्हें पकड़ कर तुम पर मुकद्दमा चलायें तो पहले से ही यह चिन्ता मत करने लगना कि तुम्हें क्या कहना है। उस समय जो कुछ तुम्हें बताया जाये, वही बोलना क्योंकि ये तुम नहीं हो जो बोल रहे हो, बल्कि बोलने वाला तो पवित्र आत्मा है।

12 “भाई, भाई को धोखे से पकड़वा कर मरवा डालेगा। पिता, पुत्र को धोखे से पकड़वायेगा और बाल बच्चे अपने माता-पिता के विरोध में खड़े होकर उन्हें मरवायेंगे। 13 मेरे कारण सब लोग तुमसे घृणा करेंगे। किन्तु जो अंत तक धीरज रहेगा, उसका उद्धार होगा।

14 “जब तुम ‘भयानक विनाशकारी वस्तुओं को,’ जहाँ वे नहीं होनी चाहियें, वहाँ खड़े देखो” (पढ़ने वाला स्वयं समझ ले कि इसका अर्थ क्या है।) “तब जो लोग यहूदिया में हों, उन्हें पहाड़ों पर भाग जाना चाहिये और 15 जो लोग अपने घर की छत पर हों, वे घर में भीतर जा कर कुछ भी लाने के लिये नीचे न उतरें। 16 और जो बाहर मैदान में हों, वह पीछे मुड़ कर अपना वस्त्र तक न लें।

17 “उन स्त्रियों के लिये जो गर्भवती होंगी या जिनके दूध पीते बच्चे होंगे, वे दिन बहुत भयानक होंगे। 18 प्रार्थना करो कि यह सब कुछ सर्दियों में न हो। 19 उन दिनों ऐसी विपत्ति आयेगी जैसी जब से परमेश्वर ने इस सृष्टि को रचा है, आज तक न कभी आयी है और न कभी आयेगी। 20 और यदि परमेश्वर ने उन दिनों को घटा न दिया होता तो कोई भी नहीं बचता। किन्तु उन चुने हुए व्यक्तियों के कारण जिन्हें उसने चुना है, उसने उस समय को कम किया है।

21 “उन दिनों यदि कोई तुमसे कहे, ‘देखो, यह रहा मसीह!’ या ‘वह रहा मसीह’ तो उसका विश्वास मत करना। 22 क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यवक्ता दिखाई पड़ने लगेंगे और वे ऐसे ऐसे आश्चर्य चिन्ह दर्शाएगे और अद्भुत काम करेंगे कि हो सके तो चुने हुओं को भी चक्कर में डाल दें। 23 इसीलिए तुम सावधान रहना। मैंने समय से पहले ही तुम्हें सब कुछ बता दिया है।

24 “उन दिनों यातना के उस काल के बाद,

‘सूरज काला पड़ जायेगा,
चाँद से उसकी चाँदनी नहीं छिटकेगी।
25 आकाश से तारे गिरने लगेंगे
और आकाश में महाशक्तियाँ झकझोर दी जायेंगी।’

26 “तब लोग मनुष्य के पुत्र को महाशक्ति और महिमा के साथ बादलों में प्रकट होते देखेंगे। 27 फिर वह अपने दूतों को भेज कर चारों दिशाओं, पृथ्वी के एक छोर से आकाश के दूसरे छोर तक सब कहीं से अपने चुने हुए लोगों को इकट्ठा करेगा।

28 “अंजीर के पेड़ से शिक्षा लो कि जब उसकी टहनियाँ कोमल हो जाती हैं और उस पर कोंपलें फूटने लगती हैं तो तुम जान जाते हो कि ग्रीष्म ऋतु आने को है। 29 ऐसे ही जब तुम यह सब कुछ घटित होते देखो तो समझ जाना कि वह समय निकट आ पहुँचा है, बल्कि ठीक द्वार तक। 30 मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि निश्चित रूप से इन लोगों के जीते जी ही ये सब बातें घटेंगी। 31 धरती और आकाश नष्ट हो जायेंगे किन्तु मेरा वचन कभी न टलेगा।

समीक्षा

परमेश्वर के महान बदलाव के लिए तैयार रहें

परमेश्वर आपके जीवन में जो भी बदलाव ला रहे हैं, यह उस बात का पूर्वाभास है जो यीशु के वापस आने पर होने वाला है।

यीशु के समय में यरूशलेम का मंदिर प्राचीन विश्व का सबसे प्रभावशाली दृश्य था। फिर भी यीशु ने उस इमारत की सांसारिक महिमा के परे देखा और जान लिया कि इसकी महिमा क्षण भर की है। इस लेखांश में वह शिष्यों को वास्तु संबंधी महिमा के परे समझाते हैं और भविष्य के बारे में अनेक भविष्यवाणियाँ करते हैं:

  1. मंदिर का ढाया जाना
  • 'जब वह मन्दिर से निकल रहा था, तो उसके चेलों में से एक ने उस से कहा; हे गुरू, देख, कैसे - कैसे पत्थर और कैसे - कैसे भवन हैं!' (पद - 1)। 'यीशु ने उस से कहा; क्या तुम ये बड़े - बड़े भवन देखते हो: यहां पत्थर पर पत्थर भी बचा न रहेगा जो ढाया न जाएगा' (पद - 2)।
  • यीशु ने मंदिर के ढाये जाने के बारे में भविष्यवाणी की, जो कि सन् 70 में पूरी हुई। शायद वह इसी बारे में कह रहे थे, 'मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक ये सब बातें न हो लेंगी, तब तक यह पीढ़ि जाती न रहेगी' (पद - 30)।
  1. यीशु के वापस आने पर महान बदलाव (ढाया जाना)
  • मंदिर के ढाये जाने के बारे में यीशु की भविष्यवाणी किसी से छिपी नहीं है। ये उस दौरान की छवि है जब तक यीशु वापस नहीं आते और यह उस बात का पूर्वाभास है जो अंत समय में होने वाला है। इसलिए उन्होंने अपने शब्दों को नज़दीकी भविष्य तक सीमित नहीं रखा, बल्कि वह अंत समय के बारे में भविष्यवाणी करते रहे।
  • यीशु उनके वापस आने के समय में होने वाली घटनाओं का वर्णन करते हैं। यीशु हमें सावधान करते हैं कि जैसे - जैसे अंत समय निकट आएगा, चीज़ें और भी खराब होती जाएंगी। 'तब तुम लड़ाइयां, और लड़ाइयों की चर्चा सुनोगे' (पद - 7), 'हर कहीं भूईंडोल होंगे, और अकाल पड़ेंगे' (पद - 8ब) 'यह तो पीड़ाओं का आरम्भ ही होगा' (पद - 8क)। इससे भी खराब समय आने वाला है: 'उन दिनों में, उस क्लेश के बाद सूरज अन्धेरा हो जाएगा, और चाँद प्रकाश न देगा। और आकाश से तारागण गिरने लगेंगे: और आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएँगी’ (पद - 24-25)।
  • जैसे सुबह के पहले गहरा अंधेरा होता है। लेकिन सबसे अंधकार की घड़ी के बाद नई सुबह होती है। उसी तरह से परमेश्वर यीशु के वापस आने पर चीज़ों को नई कर देंगे: 'तब लोग मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ और महिमा के साथ बादलों में आते देखेंगे। उस समय वह अपने दूतों को भेजकर, पृथ्वी के इस छोर से आकाश की उस छोर तक चारों दिशा से अपने चुने हुए लोगों को इकट्ठा करेगा' (पद - 26-27)।

जब यीशु अंत समय में होने वाले महान बदलावों के बारे में बताते हैं, तब वह अपने मानने वालों के साथ उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए भी चर्चा करते हैं। वह शिष्यों को 'सावधान रहने' और 'चौकस रहने' के लिए तीन बार कहते हैं (पद - 5,9,23)। यीशु चाहते हैं कि हम गलत बातों पर से अपना ध्यान हटाकर इन तीन बातों पर ध्यान दें:

  1. भरमाया जाना

यीशु अपने शिष्यों को सावधान करते हैं कि कोई उन्हें झूठे मसीह के नाम से भरमाने न पाए, खासकर युद्ध, भूईंडोल और अकाल के समय में (पद - 5)।

  1. सताया जाना

यीशु कहते हैं कि उस समय बहुत ज़्यादा सताव होगा (पद - 9) ' मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे' (पद - 13)।

  1. विलाप

अंत के दिनों में भरमाए जाने और सताव के साथ - साथ 'वे दिन ऐसे क्लेश के होंगे, कि सृष्टि के आरम्भ से जो परमेश्वर ने सृजी है अब तक न तो हुए, और न कभी फिर होंगे' (पद - 19)।

इन सबके बीच, यीशु कहते हैं कि पहले से चिंता मत करो कि तुम क्या कहोगे। 'तो पहले से चिन्ता न करना, कि हम क्या कहेंगे; पर जो कुछ तुम्हें उसी घड़ी बताया जाए, वही कहना; क्योंकि बोलने वाले तुम नहीं हो, परन्तु पवित्र आत्मा है' (पद - 11)। यीशु के लोगों को सावधान रहने के लिए कहा जाता है और वे इस बात से आश्वस्त रहें कि इन सभी घटनाओं में परमेश्वर का नियंत्रण बना रहेगा और सभी चीज़ों को सही करने के लिए यीशु वापस आने वाले हैं।

प्रार्थना

यीशु आपका धन्यवाद कि, आप वापस आने वाले हैं। आपको धन्यवाद, हालाँकि पहले आप एक निर्बल और अपमान में आए थे, लेकिन अब आप 'महान सामर्थ और महिमा के साथ' वापस आने वाले हैं' (पद - 26)।

जूना करार

लैव्यव्यवस्था 14:1-57

भयानक चर्म रोगी को शुद्ध करने के नियम

14यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “ये उन लोगों के लिए नियम हैं जिन्हें भयानक चर्म रोग था और जो स्वास्थ हो गए। ये नियम उस व्यक्ति को शुद्ध बनाने के लिए है।

“याजक को उस व्यक्ति को देखान चाहिए जिसे भयानक चर्म रोग है। 3 याजक को उस व्यक्ति के पास डेरे के बाहर जाना चाहिए। याजक को यह देखने का प्रयत्न करना चाहिए कि वह चर्म रोग अच्छा हो गाय है। 4 यदि व्यक्ति स्वस्थ है तो याजक उसे यह करने को कहेगा: उसे दो जीवित शुद्ध पक्षी, एक देवदारू की लकड़ी, लाल कपड़े का एक टुकड़ा और एक जूफा का पौधा लाना चाहिए। 5 याजक को बहते हुए पानी के ऊपर मिट्टी के एक कटोरे में एक पक्षी को मारने का आदेश देना चाहिए। 6 तब याजक दूसरे पक्षी को ले, जो अभी जीवित है और देवदारू की लकड़ी, लाल कपड़े के टुकड़े और जूफा का पौधा ले। याजक को जीवित पक्षी और अन्य चीज़ों को बहते हुए पानी के ऊपर मारे गए पक्षी के खून में डूबाना चाहिए। 7 याजक उस व्यक्ति पर सात बार खून छिड़केगा जिसे भायनक चर्म रोग है। तब याजक को घोषित करना चाहिए कि वह व्यक्ति सुद्ध है। तब याजक को खुले मैदान में जाना चाहिए और जीवित पक्षी को उड़ा देना चाहिए।

8 “इसके बाद उस व्यक्ति को अपने वस्त्र धोने चाहिए। उसे अपने सारे बाल काट डालने चाहिए और पानी से नहाना चाहिए। वह शुद्ध हो जाएगा। तब वह व्यक्ति डेरे में जा सकेगा। किन्तु उस अपने खेमे के बाहर सात दिन तक रहना चाहिए। 9 सातवें दिन उसे अपने सारे बाल काट डालने चाहिए। उसे अपने सिर, दाढ़ी, भौंहों के सभी बाल कटवा लेने चाहिए। तब उसे अपने कपड़े धोने चाहिए और पानी से नहाना चाहिए। तब वह व्यक्ति शुद्ध होगा।

10 “आठवें दिन उस व्यक्ति को दो नर मेमने लेने चाहिए जिनमें कोई दोष न हो। उसे एक वर्ष की एक मादा मेमना भी लेनी चाहिए जिसमें कोई दोष न हो। उसे छ: र्क्वाट तेल मिला उत्तम महीन आटा लेना चाहिए। यह आटा अन्नबलि के लिए है। व्यक्ति को दो तिहाई पिन्ट जैतून का तेल लेना चाहिए। 11 (याजक को घोषणा करनी चाहिए कि वह व्यक्ति शुद्ध है।) याजक को उस व्यक्ति और उसकी बलि को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के सामने लाना चाहिए। 12 याजक नर मेमनों में से एक को दोषबलि के रूप में चढ़ाएगा। वह उस मेमनों और उस तेल को यहोवा के सामने उत्तोलन बलि के रूप में चढ़ाएगा। 13 तब याजक नर मेमने को उसी पवित्र स्थान पर मारेगा जहाँ वे पापबलि और होमबलि को मारते हैं। दोषबलि, पापबलि के समान है। यह याजक की है। यह अत्यन्त पवित्र है।

14 “याजक दोषबलि का कुछ खून लेगा और फिर याजक इसमें से कुछ खून शुद्ध किये जाने वाले व्यक्ति के दाएँ कान के निचले सिरे पर लागएगा। याजक कुछ खून उस व्यक्ति के हाथ के दाएँ अंगूठे और दाएँ पैर के अंगूठे पर लगाएगा। 15 याजक कुछ तेल भी लेगा और अपनी बाँयी हथेली पर डालेगा। 16 तब याजक अपने दाएँ हाथ की ऊँगलियाँ अपने बाएँ हाथ की हथेली में रखे हुये तेल में डुबाएगा। वह अपनी उँगली का उपयोग कुछ तेल यहोवा के सामने सात बार छिड़कने के लिए करेगा। 17 याजक अपनी हथेली का कुछ तेल शुद्ध किये जाने बा ले व्यक्ति के दाएँ कान के निचले सिरे पर लगाएगा। याजक कुछ तेल उस व्यक्ति के दाएँ हाथ के अंगूठे और दाएं पैर के अंगूठे पर लागाएगा। याजक कुछ तेल दोषबलि के खून पर लगाएगा। 18 याजक अपनी हथेली में बचा हुआ तेल शुद्ध किए जाने वाले व्यक्ति के सिर पर लगाएगा। इस प्रकार याजक उस व्यक्ति के पाप का यहोवा के सामने भुगतान करेगा। 19 “उसके बाद याजक पापबलि चढ़ाएगा और व्यक्ति के पापों का भुगतान करेगा जिससे वह शुद्ध हो जाएगा। इसके पश्चात याजक होमबलि के लिए जानवर को मारेगा। 20 तब याजक होमबलि और अन्नबलि को वेदी पर चढ़ाएगा। इस प्रकार याजक उस व्यक्ति के पापों का भुगतान करेगा और वह व्यक्ति शुद्ध हो जायेगा।

21 “किन्तु यदि व्यक्ति गरीब है और उन बलियों को देने में असमर्थ है तो उसे एक मेमना दोषबलि के रूप में लेना चाहिए। यह उत्तोलनबलि होगी जिससे याजक उसके पापों के भुगतान के लिए देगा। उसे दो क्वार्ट तेल मिला उत्तम महीन आटा लेना चाहिए। यह आटा अन्नबलि के रूप में उपयोग में आएगा। व्यक्ति को दो तिहाई पिन्ट जैतून का तेल 22 और दो फ़ाख्ते या दो कबूतर के बच्चे लेने चाहिए। इन चीज़ों को देने में गरीब लोग भी समर्थ होंगे। एक पक्षी पापबलि के लिए होगा और दूसरा होमबलि का होगा।

23 “आठवें दिन, वह व्यक्ति उन चीज़ों को याजक के पास मिलापवाले तम्बू के द्वार पर लाएगा। वे चीज़ें यहोवा के सामने बलि चढ़ाई जाएंगी जिससे व्यक्ति शुद्ध हो जाएगा। 24 याजक, दोषबलि के रूप में तेल और मेमने को लेगा। तथा यहोवा के सामने उत्तोलनबलि के रूप में चढ़ाएगा। 25 तब याजक दोषबलि के मेमने को मारेगा। याजक दोषबलि का कुछ खून लेगा याजक इस में से कुछ खून शुद्ध बनाए जाने वाले व्यक्ति के दाएँ कान के निचले सिरे पर लगाएगा। याजक इसमें से कुछ खून इस व्यक्ति के दाएँ हाथ के अंगूठे और दाएँ पैर के अंगूठे पर लगाएगा। 26 याजक इस तेल में से कुछ अपनी बायीं हथेली में भी डालेगा। 27 याजक अपने दाएँ हाथ की उँगली का उयोग अपनी हथेली के तेल को यहोवा के सामने सात बार छिड़कने के लिए करेगा। 28 तब याजक अपनी हथेली के कुछ तेल को शुद्ध बनाए जाने वाले व्यक्ति के दाएँ कान के सिरे पर लगाएगा। याजक इस तेल में से कुछ तेल व्यक्ति के दाएँ हाथ के अंगूठे और उसके दाएँ पैर के अंगूठ पर लगाएगा। याजक दोषबलि के खून लगे स्थान पर इसमें से कुछ तेल लगाएगा। 29 याजक को अपनी हथेली के बचे हुये तेल को शुद्ध किए जाने वाले व्यक्ति के सिर पर डालना चाहिए। इस प्रकार यहोवा के सामने याजक उस व्यक्ति के पापों का भुगतान करेगा।

30 “तब व्यक्ति फाख्तों में से एक या कबूतर के बच्चों में से एक की बलि चढ़ाएगा। गरीब लोग भी इन पक्षियों को भेंट करने में समर्थ होंगे। 31 व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार बलि चढ़ानी चाहिए। उसे पक्षियों में से एक को पापबलि के रूप में चढ़ाना चाहिए और दूसरे पक्षी को होमबलि के रूप में उसे उनकी अन्नबलि के साथ भेंट चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार याजक यहोवा के सामने उस व्यक्ति के पाप का भुगतान करेगा और वह व्यक्ति शुद्ध हो जाएगा।”

32 ये भयानक चर्मरोग के ठीक होने के बाद किसी एक व्यक्ति को शुद्ध करने का नियम हैं। ये नियम उन व्याक्ति यों के लिए हैं जो शुद्ध करने के नियम हैं। ये नियम उन व्यक्तियों के लिए हैं जो शुद्ध होने के लिए सामान्य बलियों का व्यय नहीं उठा सकते।

घर में लगी फफूँदी के लिए नियम

33 यहोवा ने मूसा और हारून से यह भी कहा, 34 “मैं तुम्हारे लोगों को कनान देश दे रहा हूँ। तुम्हारे लोग इस भूमि पर जाएंगे। उस समय मैं हो सकता है, कुछ लोगों के घरों में फफूँदी लगा दूँ। 35 तो उस घर के मालिक को याजक के पास आकर कहना चाहिए, ‘मैंने अपने घर में फफूँदी जैसी कोई चीज देखी है।’

36 “तब याजक को आदेश देना चाहिए कि घर को खाली कर दिया जाय। लोगों को याजक के फफूँदी देखने जाने से पहले ही यह करना चाहिए। इस तरह घर की सभी चीज़ों को याजक को असुद्ध नहीं कहना पड़ेगा। लोगों द्वारा घर खाली कर दिए जाने पर याजक घर में देखने जाएगा। 37 याजक फफूँदी को देखेगा। यदि फफूँदी ने घर की दीवारों पर हरे या लाल रंग के चकत्ते बना दिए हैं और फफूँदी दीवार की सतह पर बढ़ रही है, 38 तो याजक को घर से बाहर निकल आना चाहिए और सात दिन तक घर बन्द कर देना चाहिए।

39 “सातवें दिन, याजक को वहाँ लौटना चाहिए और घर की जाँच करनी चाहिए। यदि घर की दीवारों पर फफूँदी फैल गई हो 40 तो याजक को लोगों को आदेश देना चाहिए कि वे फफूँदी सहित पत्थरों को उखाड़ें और उन्हें दूर फेंग दें। उन्हें उन पत्थरों को नगर से बाहर विशेष अशुद्ध स्थान पर फेंकना चाहिए। 41 तब याजक को पूरे घर को अन्दर से खुरचवा डालना चाहिए। लोगों को उस लेप को जिसे उन्होंने खुरचा है, फेंक देना चाहिए। उन्हें उस लेप को नगर के बाहर विशेष अशुद्ध स्थान पर डालना चाहिए। 42 तब उस व्यक्ति को नए पत्थर दीवारों में लगाने चाहिए और उसे उन दीवारों को नए लेप से ढक देना चाहिए।

43 “सम्भव है कोई व्यक्ति पुराने पत्थरों और लेप को निकाल कर नेये पत्थरों और लेप को लगाए और सम्भव है वह फफूँदी उस घर में फिर प्रकट हो। 44 तब याजक को आकर उस घर की जाँच करनी चाहिए। यदि फफूँदी घर में फैल गई हो तो यह रोग है जो दूसरी जगहों में जल्दी से फैलता है। अत: घर अशुद्ध है। 45 उस व्यक्ति को वह घर गिरा देना चाहिए। उन्हें सारे पत्थर, लेप तथा अन्य लकड़ी के टुकड़ों को नगर से बाहर अशुद्ध स्थान पर ले जाना चाहिए 46 और कोई व्यक्ति जो उसमें जाता है, सन्ध्या तक अशुद्ध रहेगा। 47 यदि कोई व्यक्ति उसमें भोजन करता है या उसमें सोता है तो उस व्यक्ति को अपने वस्त्र धोने चाहिए।

48 “घर में नये पत्थर और लेप लगाने के बाद याजक को घर की जाँच करनी चाहिए। यदि फफूँदी घर में नहीं फैली है तो याजक घोषणा करेगा कि घर शुद्ध है। क्यों? क्योंकि फफूँदी समाप्त हो गई है!

49 “तब, घर को शुद्ध करने के लिए याजक को दो पक्षी, एक देवदारू की लकड़ी, एक लाल कपड़े का टुकड़ा और जूफा का पैधा लेना चाहिए। 50 याजक बहते पानी के ऊपर मिट्टी के कटोरे में एक पक्षी को मारेगा। 51 तब याजक देवदारू की लकड़ी, जूफा का पौधा, लाल कपड़े का टुकड़ा और जीवित पक्षी को लेगा। याजक बहते जल के ऊपर मारे गए पक्षी के खून में उन चीज़ों को डुबाएगा। तब याजक उस खून को उस घर पर सात बार छिड़केगा। 52 इस प्रकार याजक उन चीज़ों का उपयोग घर को शुद्ध करने के लिए करेगा। 53 याजक खुले मैदान में नगर के बाहर जाएगा और पक्षी को उड़ा देगा। इस प्रकार याजक घर को शुद्ध करेगा। घर शुद्ध हो जाएगा।”

54 वे नियम भयानक चर्मरोग के, 55 घर या कपड़े के टुकड़ों पर की फफूँदी के बारे में हैं। 56 वे नियम सूजन, फुंसियों या चर्मरोग पर सफेद दाग से सम्बन्धित हैं। 57 वे नियम सिखाते हैं कि चीजें कब अशुद्ध हैं तथा कब शुद्ध हैं। वे नियम उस प्रकार की बिमारियों से सम्बन्धित हैं।

समीक्षा

इतिहास के सबसे महान बदलाव के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दें

क्या परमेश्वर चर्च को फिर से मज़बूत करेंगे? क्या वह मानव जाति को बदल सकते हैं? क्या वह अपराध दर कम करके बंदीगृह को खाली कर सकते हैं? क्या वह विवाह और परिवार की स्थिति को बदल सकते हैं?

क्रूस पर इतिहास का सबसे बड़ा बदलाव हुआ जब उन्होंने हमारे लिए अपना लहू बहाया था। जो कि बड़ी पराजय के समान नज़र आ रहा था, परमेश्वर ने उसे सदा काल की महान विजय में बदल दिया। ऐसा करके उन्होंने हम सभी को हमारे समाज में दुनिया बदल देने वाली परमेश्वर की योजना का हिस्सा बनाया है।

आज के पुराने नियम के लेखांश में इन सभी घटनाओं को पहले से बताया जा चुका है। लैव्यव्यवस्था की पुस्तक में हम पाप और अपराध के कारण बार - बार शुद्धिकरण की आवश्यकता को पढ़ते हैं। बलिदान करना आवश्यक था (14:19)। प्रायश्चित करना ज़रूरी था (पद - 18,19,31)। निर्दोष मेमने का लहू (पद - 14,25,28) और (पद - 10,12,23-24) जो पाप से प्रायश्चित और शुद्धि लाता है (पद - 11,19,20,23,29,31)।

प्रेरित पौलुस समझाते हैं कि ये सभी किस तरह से यीशु के महान बदलाव को दर्शाते हैं ' जिस की गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं' (रोमियों 3:21)। आज हम लैव्यव्यवस्था में जो कुछ पढ़ते हैं उसे यीशु की 'गवाही' के लिए तैयार किया गया था। पौलुस आगे कहते हैं, ' परमेश्वर की वह धामिर्कता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये है….. उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है' (वपद - 22-24)।

इसके परिणाम स्वरूप आज हम विश्वास से परमेश्वर के पास पहुँच सकते हैं। लैव्यव्यवस्था के इस लेखांश में अहम पढ़ते हैं कि जल छिड़कने (लैव्यव्यवस्था 14:7-8) के साथ - साथ लहू छिड़कने (पद - 14,25,28) के द्वारा शुद्धिकरण किया जाता था। नये नियम में इसे पूर्वाभास के रूप में लिया गया है कि यीशु हमें किस तरह से शुद्ध करते हैं। तो इब्रानियों के लेखक कहते हैं कि, 'तो आओ; हम सच्चे मन, और पूरे विश्वास के साथ, और विवेक को दोष दूर करने के लिये हृदय पर छिड़काव लेकर, और देह को शुद्ध जल से धुलवा कर परमेश्वर के समीप जाएं' (इब्रानियों 10:22; 1 यूहन्ना 5:6 भी देखें)।

फिर वह अपना स्पष्टीकरण उस बलिदान की कल्पना से करते हैं जिसे हम अपने लेखांश में देखते हैं, यह समझाने के लिए कि इसे कैसे हासिल किया गया है: ' उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित्त ठहराया,' (रोमियों 3:25)।

इस तरह से इतिहास बदल गया। इस तरह से 'बिग जॉन' का जीवन बदल गया। इस तरह से मेरा जीवन भी बदल गया। इस तरह से विलाप, आनंद में बदल गया। यीशु के लिए परमेश्वर को धन्यवाद।

प्रार्थना

प्रभु, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपने पहले से ही इतिहास बदल दिया है। प्रभु, मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप हमारे देश को बदल देंगे। मैं प्रार्थना करता हूँ कि अपनी आत्मा ऊंडेलिये। अपने चर्च को मज़बूत कीजिये। वैवाहिक और पारिवारिक जीवन को बदल दीजिये। अपराध दर कम हो जाए। बंदीगृह खाली हो जाएं। हमारे शहर, कस्बे और गाँव बदल जाएं। आपका राज्य आए।

पिप्पा भी कहते है

ऐसा लगता है पुराने नियम में फफूँद एक बड़ी समस्या थी। इसके लिए इलाज काफी पेंचीदा था और जिसमें याजक भी शामिल थे। याजक के निवास स्थान में नमी होती थी, जो शायद एक जैसी हो। मैं खुश हूँ कि जब भी उनके घरों में फफूँद की समस्या होती है, तो निकी की सभा के सदस्य फोन नहीं करते। वह बहुत ज़्यादा व्यवहारिक नहीं है!

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संदर्भ

नोट्स:

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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