दिन 69

मेरा मानवीय स्वभाव

बुद्धि नीतिवचन 6:30-35
नए करार मरकुस 14:43-72
जूना करार लैव्यव्यवस्था 19:1-20:27

परिचय

नोबल पुरस्कार विजेता और बीसवी सदी के दूसरे अर्ध सदी में रूस के सबसे महत्त्वपूर्ण साहित्यिक कलाकार, एलेक्जेंडर सोल्ज़ेनिसीन (1918-2008), जिन्हें स्टेलिन का अपमान करने के लिए आठ वर्षों तक कारावास में रखा गया था, उन्होंने लिखा है कि, 'भलाई और बुराई को अलग करने वाली रेखा ना ही राज्यों में से गुज़रती है और ना ही वर्गों में से और ना ही राजनीतिक दलों में से गुज़रती है….. बल्कि प्रत्येक मनुष्य के दिल में से – और सभी मानवीय दिलों में से गुज़रती है।'

हम सभी परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं। मनुष्य महान प्रेम, साहस और पराक्रम के काम करने में सक्षम है। फिर भी, हम में से एक भी (यीशु के अलावा) बिना पाप के नहीं है। क्या आप जानते हैं आपके दिल में क्या है?

बुद्धि

नीतिवचन 6:30-35

30-31 यदि कोई चोर कभी भूखों मरता हो,
 यदि यह भूख को मिटाने के लिये चोरी करे तो लोग उस से घृणा नहीं करेंगे।
फिर भी यदि वह पकड़ा जाये तो उसे सात गुणा भरना पड़ता है
 चाहे उससे उसके घर का समूचा धन चुक जाये।
32 किन्तु जो पर स्त्री से समागम करता है उसके पास तो विवेक का आभाव है।
 ऐसा जो करता है वह स्वयं को मिटाता है।
33 प्रहार और अपमान उसका भाग्य है।
 उसका कलंक कभी नहीं धुल पायेगा।
34 ईर्ष्या किसी पति का क्रोध जगाती है और
 जब वह इसका बदला लेगा तब वह उस पर दया नहीं करेगा।
35 वह कोई क्षति पूर्ति स्वीकार नहीं करेगा और कोई उसे कितना ही बड़ा प्रलोभन दे,
 उसे वह स्वीकारे बिना ठुकरायेगा!

समीक्षा

मानवीय स्वभाव और उसकी कमज़ोरियाँ

सभी पाप परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन करते हैं इसलिए ये गंभीर हैं। लेकिन पाप की श्रेणियाँ हैं। कुछ पाप अन्य पापों से बहुत ज़्यादा खराब हैं।

नीतिवचन के लेखक उस व्यक्ति का उदाहरण देते हुए इस बात को जाहिर करता है क्योंकि वह भूखा है। हाँ, यह भी गलत है और उसे इसकी कीमत देनी पड़ेगी (पद - 30-31)।

परंतु लेखक कहता है कि व्यभिचार का परिणाम इससे भी ज़्यादा गंभीर है। यह 'शर्मिंदगी' (पद - 33ब), 'ईर्ष्या' (पद - 34अ), 'बदले' (पद - 34ब) की ओर ले जाता है और जीवन को बरबाद कर देता है, खासकर के स्वयं व्यभिचारी जीवन का: ' प्राणों का नाश होगा…. और उसकी नामधराई कभी न मिटेगी' (पद - 32-33)।

लेखक कहता है, 'जलन से पुरूष बहुत ही क्रोधित हो जाता है, और पलटा लेने के दिन वह कुछ कोमलता नहीं दिखाता' (पद - 34)। हज़ारों वर्षों बाद भी मानवीय स्वभाव नहीं बदला है।

यौन-क्रिया या धन में कोई गलत नहीं है। लेकिन इन दोनों के चारों तरफ बहुत से प्रलोभन हैं। आज के पुराने नियम के लेखांश में अनेक नियम उनके चारों ओर से सीमित करने के लिए और उनके उचित उपयोग को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए थे।

प्रार्थना

प्रभु, मैं आपको उन वरदानों के लिए धन्यवाद देता हूँ जो आप हमें देते हैं और उन सीमाओं के लिए भी जो उनके उचित उपयोग के लिए हैं। मुझे परीक्षा में मत डालिये, बल्कि मुझे बुराई से दूर रखिये।

नए करार

मरकुस 14:43-72

यीशु का बंदी बनाया जाना

43 यीशु बोल ही रहा था कि उसके बारह शिष्यों में से एक यहूदा वहाँ दिखाई पड़ा। उसके साथ लाठियाँ और तलवारें लिए एक भीड़ थी, जिसे याजकों, धर्मशास्त्रियों और बुजुर्ग यहूदी नेताओं ने भेजा था।

44 धोखे से पकड़वाने वाले ने उन्हें यह संकेत बता रखा था, “जिसे मैं चूँमू वही वह है। उसे हिरासत में ले लेना और पकड़ कर सावधानी से ले जाना।” 45 सो जैसे ही यहूदा वहाँ आया, उसने यीशु के पास जाकर कहा, “रब्बी!” और उसे चूम लिया। 46 फिर तूरंत उन्होंने उसे पकड़ कर हिरासत में ले लिया। 47 उसके एक शिष्य ने जो उसके पास ही खड़ा था अपनी तलवार खींच ली और महायाजक के एक दास पर चला दी जिससे उसका कान कट गया।

48 फिर यीशु ने उनसे कहा, “क्या मैं कोई अपराधी हूँ जिसे पकड़ने तुम लाठी-तलवार ले कर आये हो? 49 हर दिन मन्दिर में उपदेश देते हुए मैं तुम्हारे साथ ही था किन्तु तुमने मुझे नहीं पकड़ा। अब यह हुआ ताकि शास्त्र का वचन पूरा हो।” 50 फिर उसके सभी शिष्य उसे अकेला छोड़ भाग खड़े हुए।

51 अपनी वस्त्र रहित देह पर चादर लपेटे एक नौजवान उसके पीछे आ रहा था। उन्होंने उसे पकड़ना चाहा 52 किन्तु वह अपनी चादर छोड़ कर नंगा भाग खड़ा हुआ।

यीशु की पेशी

53 वे यीशु को प्रधान याजक के पास ले गये। फिर सभी प्रमुख याजक, बुजुर्ग यहूदी नेता और धर्मशास्त्री इकटठे हुए। 54 पतरस उससे दूर-दूर रहते हुए उसके पीछे-पीछे महायाजक के आँगन के भीतर तक चला गया। और वहाँ पहरेदारों के साथ बैठकर आग तापने लगा।

55 सारी यहूदी महासभा और प्रमुख याजक यीशु को मृत्यु दण्ड देने के लिये उसके विरोध में कोई प्रमाण ढूँढने का यत्न कर रहे थे पर ढूँढ नहीं पाये। 56 बहुतों ने उसके विरोध में झूठी गवाहियाँ दीं, पर वे गवाहियाँ आपस में विरोधी थीं।

57 फिर कुछ लोग खड़े हुए और उसके विरोध में झूठी गवाही देते हुए कहने लगे, 58 “हमने इसे यह कहते सुना है, ‘मनुष्यों के हाथों बने इस मन्दिर को मैं ध्वस्त कर दूँगा और फिर तीन दिन के भीतर दूसरा बना दूँगा जो हाथों से बना नहीं होगा।’” 59 किन्तु इसमें भी उनकी गवाहियाँ एक सी नहीं थीं।

60 तब उनके सामने महायाजक ने खड़े होकर यीशु से पूछा, “ये लोग तेरे विरोध में ये क्या गवाहियाँ दे रहे हैं? क्या उत्तर में तुझे कुछ नहीं कहना?” 61 इस पर यीशु चुप रहा। उसने कोई उत्तर नहीं दिया।

महायाजक ने उससे फिर पूछा, “क्या तू पवित्र परमेश्वर का पुत्र मसीह है?”

62 यीशु बोला, “मैं हूँ। और तुम मनुष्य के पुत्र को उस परम शक्तिशाली की दाहिनी ओर बैठे और स्वर्ग के बादलों में आते देखोगे।”

63 महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़ते हुए कहा, “हमें और गवाहों की क्या आवश्यकता है? 64 तुमने ये अपमानपूर्ण बातें कहते हुए इसे सुना, अब तुम्हारा क्या विचार है?”

उन सब ने उसे अपराधी ठहराते हुए कहा, “इसे मृत्यु दण्ड मिलना चाहिये।” 65 तब कुछ लोग उस पर थूकते, कुछ उसका मुँह ढकते, कुछ घूँसे मारते और कुछ हँसी उड़ाते कहने लगे, “भविष्यवाणी कर!” और फिर पहरेदारों ने पकड़ कर उसे पीटा।

पतरस का यीशु को नकारना

66 पतरस अभी नीचे आँगन ही में बैठा था कि महायाजक की एक दासी आई। 67 जब उसने पतरस को वहाँ आग तापते देखा तो बड़े ध्यान से उसे पहचान कर बोली, “तू भी तो उस यीशु नासरी के ही साथ था।”

68 किन्तु पतरस मुकर गया और कहने लगा, “मैं नहीं जानता या मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि तू क्या कह रही है।” यह कहते हुए वह ड्योढ़ी तक चला गया, और मुर्गे ने बाँग दी।

69 उस दासी ने जब उसे दुबारा देखा तो वहाँ खड़े लोगों से फिर कहने लगी, “यह व्यक्ति भी उन ही में से एक है।” 70 पतरस फिर मुकर गया।

फिर थोड़ी देर बाद वहाँ खड़े लोगों ने पतरस से कहा, “निश्चय ही तू उनमें से एक है क्योंकि तू भी गलील का है।”

71 तब पतरस अपने को धिक्कारने और कसमें खाने लगा, “जिसके बारे में तुम बात कर रहे हो, उस व्यक्ति को मैं नहीं जानता।”

72 तत्काल, मुर्गे ने दूसरी बार बाँग दी। पतरस को उसी समय वे शब्द याद हो आये जो उससे यीशु ने कहे थे: “इससे पहले कि मुर्गा दो बार बाँग दे, तू मुझे तीन बार नकारेगा।” तब पतरस जैसे टूट गया। वह फूट-फूट कर रोने लगा।

समीक्षा

मानवीय स्वभाव और इसके परिणाम**

मनुष्य के पापमयी स्वभाव ने यीशु को मृत्यु तक पहुँचा दिया। अलग ढंग से जीने की चुनौती:

  1. प्रमाणिक रहें

यहूदा ने यीशु को चूमकर उन्हें धोखा दिया। उसने कहा, 'जिस को मैं चूमूं वही है, उसे पकड़ कर यतन से ले जाना' (पद - 44अ)। 'उसने आकर यीशु को बहुत चूमा' (पद - 45)। ग्रीक में कपट शब्द का अर्थ मुखौटा लगाने जैसा है (प्राचीन ग्रीस में कला प्रदर्शन के समय मुखौटे का उपयोग किया जाता था)। यहूदा बाहर से यीशु के लिए प्रेम को पहने हुए था। वास्तव में, क्रूस पर चढ़ाने के लिए वह उन्हें पकड़वाना चाहता था। चूमना घोखा देने की आखिरी क्रिया थी। जॉयस मेयर ने इस बारे में लिखा है जिसे 'यहूदा की चुंबन परीक्षा' कहा गया है – उस दोस्त द्वारा धोखा देने की परीक्षा जिसे हम प्यार करते हैं, आदर करते हैं और जिस पर हम ने भरोसा किया है। ज़्यादातर लोगों ने किसी न किसी समय इसका अनुभव किया होगा। आपको अपने अपराधी को क्षमा करना चाहिये और परमेश्वर ने आपको जो करने के लिए बुलाया है उसे किसी भी तरह से असफल करने या देरी करने का कारण नहीं बनने देना है।

  1. सच बोलें

क्योंकि यीशु के विरूद्ध कोई भी सबूत नहीं मिले थे इसलिए उन्हें गलत गवाह पर निर्भर होना पड़ा। फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि उनके विरूद्ध गवाही देने के लिए कई लोग तैयार थे (पद - 56)। वकील के रूप में काम करने के बाद मैंने देखा है कि न्यायालय में झूठी गवाही देने के लिए अब भी कई लोग तैयार रहते हैं।

  1. भ्रष्टाचार से लड़ें

आजकल की दुनिया में भ्रष्ट न्यायाधीश अब भी कार्य कर रहे हैं। वे जानते थे या उन्हें जानना ज़रूरी था कि यीशु पूरी तरह से निर्दोष हैं, फिर भी, 'उन सब ने कहा, यह वध के योग्य है' (पद - 64ब)। बिना नियम और कानून के समाज में रहना बहुत भयानक है, जहाँ न्यायाधीशों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

  1. यीशु के साथ पहचाने जाना

पतरस द्वारा यीशु का इंकार करने से मुझे पूरी तरह हमदर्दी है। ऐसा न करने के लिए उसने सच में निश्चय किया था, फिर भी वह असफल हो गया। मैं जानता हूँ मेरा मानवीय स्वभाव कितना कमज़ोर है। पतरस द्वारा इंकार करने की इच्छा स्वयं पतरस से आई होगी – जिसने असाधारण स्पष्टता और अति संवेदनशीलता से अपनी कमज़ोरी और असफलता को प्रकट किया। जब यीशु गंभीर परेशानी में थे, 'तब सब चेले उसे छोड़कर भाग गए' (पद - 50)। शायद मरकुस, सुसमाचार का लेखक, 'एक जवान अपनी नंगी देह पर चादर ओढ़े हुए उसके पीछे हो लिया; और लोगों ने उसे पकड़ा। पर वह चादर छोड़कर नंगा भाग गया' (पद - 51-52)। हालाँकि सब लोग भाग गए थे (पद - 50), फिर भी पतरस दूर ही से उसके पीछे पीछे महायाजक के आंगन के भीतर तक गया (पद - 54), और दूर से यीशु और उनके दु:ख को देखने लगा। मुझे शक है कि इस समय मैं बाकी के शिष्यों के साथ होता – गलील के आधे रास्ते पर! फिर भी महान प्रेरित पौलुस के असंयम के बारे में बार - बार याद आने वाले शब्द हैं। जबकि यीशु, उनके दोस्त और लीडर, पर मुकदमा चल रहा था, पतरस वहाँ आग ताप रहा था (पद - 54,67)। जब पतरस ने देखा कि यीशु के साथ क्या हो रहा है और उसे भी कितना सताया जा सकता है, पतरस ने यीशु से दूरी बनाई (पद - 54अ)। उस दिशा में उसका अगला कदम था इंकार करना। जिसमे झूठ बोलना शामिल था, और आखिर में उसने कहा, 'मैं उस मनुष्य को, जिस की तुम चर्चा करते हो, नहीं जानता' (पद - 71ब)। मुझे यकीन है यीशु से इतनी दूरी बनाते हुए पतरस का यहाँ तक आने का इरादा नहीं था, लेकिन हमारे लिए एक पाप दूसरी पाप की ओर ले जाता है, और इससे पहले कि हम इसे जान पाएं, हम ऐसी चीज़ें कर देते हैं जिसके लिए हमें पछताना पड़ता है। जब पतरस ने जाना कि उसने क्या किया है, 'तो वह टूट गया और रोने लगा' (पद - 72क)।

प्रार्थना

प्रभु, आपको धन्यवाद यह दिखाने के लिए कि महान प्रेरित पौलुस के गलती करने और बरबाद करने के बावजूद आपने उसे क्षमा किया, और उसे फिर से बहाल किया और सामर्थी रीति से उसका उपयोग किया। आपके अद्भुत अनुग्रह के लिए आपको धन्यवाद।

जूना करार

लैव्यव्यवस्था 19:1-20:27

इस्राएल परमेश्वर का है

19यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “इस्राएल के सभी लोगों से कहोः कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ मैं पवित्र हूँ! इसलिए तुम्हें पवित्र होना चाहिए!

3 “तुम में से हर एक व्यक्ति को अपने माता पिता का सम्मान करना चाहिए और मेरे विश्राम के विशेष दिनों को मानना चाहिए। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।

4 “मूर्तियों की उपासना मत करो। अपने लिए देवताओं की मूर्तियाँ धातु गला कर मत बाओ। मैं तुम लोगों का परमेश्वर यहोवा हूँ!

5 “जब तुम यहोवा को मेलबलि चढ़ाओ तो तुम उसे ऐसे चढ़ाओ कि तुम यहोवा द्वारा स्वीकार किए जा सको। 6 तुम इसे चढ़ाने के दिन खा सकोगे और अगले दिन भी । किन्तु यदि बलि का कुछ भाग तीसरे दिन भी बच जाए तो उसे तुम्हें आग में जला देना चाहिए। 7 किसी भी बलि को तीसरे दिन नहीं खाना चाहिए। यह अशुद्ध है । यह स्वीकार नहीं होगी। 8 यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो वह अपारधी होगा। क्यों? क्योंकि उसने यहोवा की पवित्र चीजों का सम्मान नहीं किया। उस व्यक्ति को अपने लोगों से अलग कर दिया जाना चाहिए।

9 “जब तुम कटनी के समय अपनी फ़सल काटो तो तुम सब ओर से खेत के कोनों तक मत काटो और यदि अन्न जमीन पर गिर जाता है तो तुम्हें उसे इकट्ठा नहीं करना चाहिए। 10 अपने अँगूर के बाग के सारे अंगूर न तोड़ो और जो जमीन पर गिर जाएँ उन्हें न उठाओ। क्यों? क्योंकि तुम्हें वे चीज़ें गरीब लोगों और जो तुम्हारे देश से यात्रा करेंगे, उनके लिए छोड़नी चाहिए। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ!

11 “तुम्हें चोरी नहीं करनी चाहिए। तुम्हें लोगों को ठगना नहीं चाहिए। तुम्हें आपस में झूठ नहीं बोलना चाहिए। 12 तुम्हें मेरे नाम पर झूठा वचन नहीं देना चाहिए। यदि तुन ऐसा करते हो तो तुम यह दिखाते हो कि तुम अपने परमेश्वर के नाम का सम्मान नहीं करते हो। मैं यहोवा हूँ!

13 “तुम्हें अपने पड़ोसी को धोखा नहीं देना चाहिए। तुम्हें उसकी चोरी नहीं करनी चाहिए। तुम्हें मजदूर की मजदूरी पूरी रात, सवेरे तक नही रोकनी चाहिए।

14 “तुम्हें किसी बहरे आदमी को अपशब्द नहीं कहना चाहिए। तुम्हें किसी अन्धे को गिराने के लिए उसके सामने कोई चीज नहीं रखनी चाहिए। किन्तु तुम्हें अपने परमेश्वर यहोवा का सम्मान करना चाहिए। मैं यहोवा हूँ!

15 “तुम्हें न्याय करने मै ईमानदार होना चाहिए। न तो तुम्हें ग़रीब के साथ विशेष पक्षपात करना चाहिए और न ही बड़े एवं धनी लोगों के प्रति कोई आदर दिखाना चाहिए। तुम्हें अपने पड़ोसी के साथ न्याय करते समय ईमानदार होना चाहिए। 16 तुम्हें अन्य लोगों के विरुद्ध चारों ओर अफवाहें फैलाते हुए नहीं चलना चाहिए। ऐसा कुछ न करो जो तुम्हारे पड़ोसी के जीवन को खतरे में डाले। मैं यहोव हूँ!

17 “तुम्हें अपने हृदय में अपने भाईयों से घृणा नहीं करनी चाहिए। यदि तुम्हारा पड़ोसी कुछ बुरा करता है तो इसके बारे में उसे समझाओ। किन्तु उसे क्षमा करो! 18 लोग, जो तुम्हारा बुरा करें, उसे भूल जाओ। उससे बदला लेने का प्रयत्न न करो। अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम करो जैसे अपने आप से करते हो। मैं यहोव हूँ!

19 “तुम्हें मेरे नियमों का पालन करना चाहिए। दो जातियों के पशुओं को प्रजनन के लिए आपस में मत मिलाओ। तुम्हें खेत में दो प्रकार के बीज नहीं बोने चाहिये। तुम्हें दो प्रकार सी चीज़ो को मिलावट से बने वस्त्रों को नहीं पहनना चाहिए।

20 “यह हो सकता है कि किसी दूसरे व्यक्ति की दासी से किसी व्यक्ति का यौन सम्बन्ध हो। यदि यह दासी न तो खरीदी गई है न ही स्वतन्त्र कराई गई है तो उन्हें दण्ड दिया जाना चाहिए। किन्तु वे मारे नहीं जाएंगे। क्यों? क्योंकि स्त्री स्वतन्त्र नहीं थी। 21 उस व्यक्ति को अपने अपराध के लिए मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा को बलि चढ़ानी चाहिए। व्यक्ति को एक मेढ़ा दोषबलि के रूप में लाना चाहिए। 22 याजक उस व्यक्ति के पापों के भुगतान करने के लिए उपासना करेगा। याजक यहोवा को दोषबलि के रूप में मेढ़े को चढ़ाएगा। यह व्यक्ति के किए हुए पापों के लिए होगा। तब व्यक्ति अपने किए पाप के लिए क्षमा किया जाएगा।

23 “भविष्य में तुम अपने प्रदेश में प्रवेश करोगे। उस समय भोजन के लिए तुम अनेकों प्रकार के पेड़ लगाओगे। पेड़ लगाने के बाद पेड़ के किसी फल का उपयोग करने के लिए तुम्हें तीन वर्ष तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। तुम्हें उससे पहले के फल का उपयोग नहीं करना चाहिए। 24 चौथे वर्ष उस पेड़ के फल यहोवा के होंगे। यह यहोवा की स्तुति के लिए पवित्र भेंट होगी। 25 तब, पाँचवें वर्ष तुम उस पेड़ का फल खासकते हो और पेड़ तुम्हारे लिए अधिक से अधिक फल पैदा करेगा। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ!

26 “तुम्हें कोई चीज़, उसमें खून रहते तक नहीं खानी चाहिए।

“तुम्हें भविष्यवाणी करने के लिये जादू या शगुन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।

27 “तुम्हें अपने सिर के बगल के बढ़े बालों को कटवाना नहीं चाहिए. तुम्हें अपनी दाढ़ी के किनारे नहीं कटवाने चाहिए। 28 किसी मरे व्यक्ति की याद को बनाए रखने के लिए तुम्हें अपने शरीर को काटना नहीं चाहिए। तुम्हें अपने ऊपर कोई चिन्ह गुदवाना नहीं चाहिए में यहोवा हूँ!

29 “तुम अपनी पुत्री को वेश्या मत बनने दो। इससे केवल यह पता चलता है कि तुम उसका आदर नहीं करते। तुम अपने देश में स्त्रियों को वेश्याएँ मत बनने दो। तुम अपने देश को इस प्रकार के पापों से मत भर जानेदो।

30 “तुम्हें मेरे विश्राम के विशेष दिनों में काम नहीं करना चाहिए। तुम्हें मेरे पवित्र स्थान का सम्मान करना चाहिए। मैं यहोवा हूँ!

31 “ओझाओं तथा भूतसिद्धियों के पास सलाह के लिए मत जाओ। उनके पास तुम मत जाओ, वे केवल तुम्हें अशुद्ध बनाएँगें। में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ!”

32 “बूढ़े लोगों का सम्मान करो। जब वे कमरे में आएँ तो खड़े हो जाओ। अपने परमेश्वर का सम्मान करो। मैं यहोवा हूँ!”

33 “अपने देश में रहने वाले विदेशियों के साथ बुरा व्यवहार मत करो! 34 तुम्हें विदेशियों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा तुम अपने नागरिकों के साथ करते हो। तुम विदेशियों से वैसा प्यार करो जैसा अपने से करते हो। क्यों? क्योंकि तुम भी एक समय मिस्र में विदेशी थे। मैं तुम्हारा परमेशवर यहोवा हूँ!

35 “तम्हें न्याय करते समय लोगों के प्रति ईमानदार होना चाहिए। तुम्हें चीज़ों के नापने और तौलने में ईमानदार होना चाहिए। 36 तुम्हारी टोकरियाँ ठीक माप की होनी चाहिए। तुम्हारे नापने के पात्रों में द्रव की उचित मात्रा आनी चाहिए। तुम्हारे तराजू और तुम्हारे बाट चीज़ों को ठीक तौलने वाले होने चाहिए। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ! मैं तुम्हें मिस्र देश से बाहर लाया!

37 “तुम्हें मेरे सभी नियमों और निर्णयों को याद रखना चाहिए और तुम्हें उनका पालन करना चाहिए। मैं यहोवा हूँ!”

मूर्ति पूजा के विरूद्ध चेतावनी

20यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “तुम्हें इस्राएल के लोगों से यह भी कहना चाहिए: तुम्हारे देश में कोई व्यक्ति अपने बच्चों में से किसी को झूठे देवता मोलेक को दे सकता है। उस व्यक्ति को मार डालना चाहिए। इससे अन्तर नहीं पड़ता कि वह इस्राएल का नागरिक है या इस्राएल में रहने वाला कोई विदेशी है, तुम्हें उसे पत्थर फेंक फेंक कर मार डालना चाहिए। 3 मैं उस व्यक्ति के विरुद्ध होऊँगा। मैं उसे उसके लोगों से अलग करूँगा। क्यों? क्योंकि उसने अपने बच्चों को मोलेक को दिया। उसने यह प्रकट किया कि वह मेरे पवित्र नाम का सम्मान नहीं करता। उसने मरे पवित्र स्थान को अशुद्ध किया। 4 सम्भव है साधारण लोग उस व्यक्ति की उपेक्षा करें। सम्भव है वे उस व्यक्ति को न मांरे जिसने बच्चों को मोलेक को दिया है। 5 किन्तु मैं उस व्यक्ति और उसके परिवार के विरुद्ध होऊँगा। मैं उसे उसके लोगों से अलग करुँगा मैं किसी भी ऐसे व्यक्ति को उसके लोगों से अलग करुँगा जो मेरे प्रति विश्वास नहीं रखता और मोलेक का अनुसरण करता है।

6 “मैं उस व्यक्ति के विरुद्ध होऊँगा जो किसी ओझा और भूतसिद्धि के पास सलाह के लिए जाता है। वह व्यक्ति मुझसे विश्वासघात करता है। इसलिए मैं उस व्यक्ति को उसके लोगों से अलग करूँगा।

7 “विशेष बनो। अपने को पवित्र बनाओ। क्यों? क्योंकि मैं पवित्र हूँ! मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ! 8 मेरे आज्ञाओं का पालन करो और उन्हें याद रखो। मैं योहवा हूँ और मैंने तुम्हें अपना विशेष लोग बनाया है।

9 “यदि कोई व्यक्ति अपने माता पिता के अनिष्ट की कामना करता है तो उस व्यक्ति को मार डालना चाहिए। उसने अपने पिता या माँ का अनिष्ट चाहा है, इसलिए उसे दण्ड देना चाहिए।

यौन पापों के दण्ड

10 “यदि कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी की पत्नी के साथ यौन सम्बन्ध करता है तो स्त्री और पुरुष दोनों अनैतिक सम्बन्ध के अपराधी हैं। इसलिए स्त्री और पुरुष दोनों को मार डालना चाहिए। 11 यदि कोई व्याक्ति अपनी विमाता से यौन सम्बन्ध करता है तो उस व्यक्ति को मार डालना चाहिए। उस व्यक्ति को और उसकी विमाता दोनों को मार डालना चाहिए। उस व्यक्ति ने अपने पिता के विरुद्ध पाप किया है।

12 “यदि कोई व्यक्ति अपनी पुत्रवधू के साथ यौनसम्बन्ध करता है तो दोनों को मार डालना चाहिए। उन्होंने बहुत बुरा यौन पाप किया है। उन्हें दण्ड अवश्य मिलना चाहिए।

13 “यदि कोई व्यक्ति किसी पुरुष के साथ स्त्री जैसा यौन सम्बन्ध करता है तो दोनों को मार डालना चाहिए। उन्होंने बहुत बुरा यौन पाप किया है। उन्हें दण्ड अवश्य मिलना चाहिए।

14 “यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री और उसकी माँ के साथ यौन सम्बन्ध करता है तो यह यौन पाप है। लोगों को उस व्यक्ति तथा दोनों स्त्रियों को आग में जला देना चाहिए। इस यौन पाप को अपने लोगों में मत होने दो।

15 “यदि कोई व्यक्ति किसी जानवर से यौन सम्बन्ध करे तो उस व्यक्ति को मार डालना चाहिए और तुम्हें उस जानवर को भी मार देना चाहिए। 16 यदि कोई स्त्री किसी जानवर से यौन सम्बन्ध करती है तो तुम्हें अवश्य मार देना चाहिए। उन्हें दण्ड अवश्य मिलना चाहिए।

17 “यह एक भाई और उसकी बहन के लिए लज्जाजनक है कि आपस में वे यौन सम्बन्ध करे। उन्हें सामाजिक रूप में दण्ड मिलना चाहिए। वे अपने लोगों से अलग कर दिए जाने चाहिए। वह व्यक्ति जिसने अपनी बहन के साथ यौन सम्बन्ध किया है, अपने पाप के लिए दण्ड पाएगा।

18 “यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री के साथ मासिकधर्म के रक्त स्राव के समय यौन सम्बन्ध करेगा तो स्त्री पुरुष दोनों को अपने लोगों से अलग कर देना चाहिए। उन्होंने पाप किया है क्योंकि उसने खून के स्रोत को उघाड़ा।

19 “तुम्हें योन स्म्बन्ध अपनी माँ की बहन या पिता की बहन के साथ नहीं करना चाहिए। यह गोत्रीय अनैतिकता का पाप है। उन्हें उनके पाप के लिए दण्ड मिलागा।

20 “किसी पुरुष को अपने चाचा मामा की पत्नी के सात नहीं सोना चाहिए। यह व्यक्ति तथा उसकी चाची व मामी को उनके पापों के लिए दण्ड मिलेगा। व बिना किसी सन्तान के मरेंगे।

21 “किसी व्यक्ति के लिए यह बुरा है कि वह अपने भाई की पत्नी के साथ यौन सम्बन्ध करे। उस व्यक्ति ने अपने भाई के विरुद्ध पाप किया है। उनकी कोई सन्तान नहीं होगी।

22 “तुम्हें मेरे सारे नियमों और निर्णयों को याद रखना चाहिए और तुम्हें उनका पालन अवश्य करना चाहिए। मैं तुम्हें तुम्हारे प्रदेश को ले जा रहा हूँ। तुम लोग उस प्रदेश में रहोगे। यदि तुम लोग मेरे नियमों और निर्णयों को मानते रहे तो वह प्रदेश तुम लोगों को निकाल बाहर नहीं करेगा। 23 मैं अन्य लोगों को उस प्रदेश को छोड़ने के लिए विवश कर रहा हूँ। क्यों? क्योंकि उन लोगों ने वे सभी पाप किए। मैं उन पापों से घृणा करता हूँ। इसलिए जिस प्रकार वे लोग रहे, उस तरह तुम नहीं रहोगे। 24 मैंने कहा है कि तुम उनका प्रदेश प्राप्त करोगे। मैं उनका प्रदेश तुमको दूँगा। यह तुम्हारा प्रदेश होगा। वह प्रदेश बहुत सुन्दर है। उसमें दूध व मधु की नदियाँ बहती हैं। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ!

“मैंने तुम्हें विशेष बनाया है। मैंने तुम्हारे साथ अन्य लोगों से भिन्न व्यवहार किया है। 25 इसलिए तुम्हें शुद्ध जानवरों के साथ अशुद्ध जानवरों से भिन्न व्यवहार करना चाहिए। तुम्हें शुद्ध पक्षियों के साथ अशुद्ध पक्षियों से भिन्न व्यवहार करना चाहिए। उन में से किसी भी अशुद्ध पक्षी, जानवर और कीट पतंग को मत खाओ जो भूमि पर रेंगते हैं। मैंने उन चीज़ों को अशुद्ध बनाया है। 26 मैंने तुम्हें अपना विशेष जन बनाया है। इसलिए तुम्हें मेरे लिए पवित्र होना चाहिए। क्यों? क्योंकि मैं यहोवा हूँ और मैं पवित्र हूँ!

27 “कोई पुरुष या कोई स्त्री जो ओझा हो या कोई भूतसिद्धि हो, तो उन्हें निश्चय ही मार दिया जाना चाहिए। लोगों को चाहिए कि वे उन्हें पत्थर मार मार कर मार दें। उन्हें मार ही दिया जाना चाहिए।”

समीक्षा

मानवीय स्वभाव और परमेश्वर का नियम

जॉयस मेयर लिखती हैं, 'परमेश्वर चाहते हैं कि हम शुद्धता से जीयें और पवित्रता से जीयें, जैसे कि शुद्ध पानी बहता है क्योंकि परमेश्वर ही आपका स्रोत है।' लैव्यव्यवस्था के इस भाग को 'पवित्रता संहिता' कहा गया है – 'तुम पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूँ' (19:2)।

क्योंकि मानवीय स्वभाव स्वच्छंद है इसलिए कानून की ज़रूरत पड़ती है। जैसा कि किसी भी समाज में नागरिक कानून और अपराधिक कानून होते हैं। इनमें से कुछ कानून प्राचीन इस्रायली समस्याओं पर विशेष और निर्देशित हैं। अन्य कानून ज़्यादातर समाजों में विस्तृत और सामान्य रूप से लागू करने योग्य हैं।

यीशु द्वारा आहार नियम उठा लिये जाने और उनकी मृत्यु के द्वारा बलिदान पूरा हो जाने पर अब रीति संबंधी कानून उठा लिये गए हैं। कोई ज़रूरी नहीं कि नागरिक कानून दूसरे देशों के लिए भी उचित हों। कुछ मानवीय थे और अन्य गंभीर थे। ऐसा प्रतीत होता है कि वे इस्रालियों के इतिहास की पहली अवस्थाओं के लिए थे, लेकिन ये सभी स्थायी या सार्वभौमिक वैधयता के नहीं थे।

नैतिक नियम, जैसा कि यीशु द्वारा विस्तृत और गंभीर किये गए थे, और जैसा कि प्रेरित की पत्री में इनका उल्लेख किया गया था – खासकर के निषेध के नियम के समानांतर – ये अब भी परमेश्वर के द्वारा उनके लोगों के लिए लागू किये गए हैं।

यीशु द्वारा नैतिक नियम को इस तरह से सारांशित किया गया है 'अपने प्रभु परमेश्वर से प्रेम करो…. और अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो' (लूका 10:27)। यह हमारे आज के लेखांश पर वापस जाता है, 'अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करो' (लैव्यव्यवस्था 19:18ब)। नैतिक नियम यह था कि परमेश्वर के लोगों को पवित्र रहना चाहिये (पद - 2ब)। बाकी के नियम हमें निर्देशित करते हैं कि हमें किस तरह से अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना चाहिये और किस तरह से हमें पवित्र रहना चाहिये।

इस समय जो नैतिक नियम लागू हैं उसमे गरीबों की रक्षा करना भी शामिल है (पद - 10), जाति मतभेद के विरूद्ध नियम (उदाहरण के लिए पद - 33-34), इसके साथ-साथ चोरी (पद - 11), धोखाधड़ी (पद - 11) और लूटपाट (पद - 13अ) आदि के बारे में ज़्यादा स्पष्ट।

अक्सर कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धांत होते हैं जिन्हें आजकल सच में लागू किया जाता है। उदाहरण के लिए, 'मज़दूर की मज़दूरी तेरे पास सारी रात बिहान तक न रहने पाए' (पद - 13ब) यह हमारे लिए निर्देश है कि हम अपने सारे बिल समय पर चुकता करें। बिल्स की देरी से भुगतान करने की आदत लोगों में बढ़ती जा रही है जब तक कि अंतिम चेतावनी न मिल जाए।

अपने हृदय को पवित्र रखने के लिए आपको उन बातों से फिरना होगा जो आपके जीवन को बरबाद करते हैं। यहाँ लिखी गई सबसे ज़्यादा होने वाले पापों की सूची में (पद - 3-31) 'एक दूसरे के लहू बहाने की युक्तियाँ बनाने' (पद - 16) और 'पलटा लेने' के बारे में है (पद - 18)। विश्वास बनाए रखिये और किसी के विरूद्ध असंतोष मत रखिए। किसी के विरूद्ध असंतोष रखना यानि किसी को अपने दिमाग में मुफ्त में रहने देना है।

जादू टोना के विरूद्ध चेतावनी भी दी गई है (पद - 26ब)। जन्मकुंडली पढ़ना, ज्योतिषियों से सलाह लेना, टैरोट कार्ड्स और हर तरह के काले जादू की गतिविधियों से दूर रहें (पद - 31)। यदि आप इनमें से किसी भी बात में शामिल हैं, तो आपको क्षमा मिल सकती है। पश्चाताप करें और इन से संबंधित सभी गतिविधियों से छुटकारा पाएं जैसे किताबें, ताबीज़, डीवीडी और पत्रिकाएं (प्रेरितों के कार्य 19:19)।

कानून का एक और पहलू यह है कि पाप को उजागर करें और पश्चाताप करें और परमेश्वर के अनुग्रह पर विश्वास करें। जब मैं इन सभी नियमों को पढ़ता हूँ, तो मैं देखता हूँ कि इनके अनुसार जीना कितना मुश्किल है, मैं परमेश्वर के मापदंड से कितना नीचे हूँ और मुझे उनके क्षमा की और उनके पवित्र आत्मा के मदद की कितनी ज़रूरत है।

प्रार्थना

प्रभु, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि मुझे व्यवस्था से छुड़ाने के लिए आपने अपने प्राण का बलिदान किया। आपको धन्यवाद कि अब जो मसीह में हैं उन पर कोई दोष नहीं है। मुझे अपनी पवित्र आत्मा से भर दें और पवित्र जीवन जीने में मेरी मदद करें।

पिप्पा भी कहते है

लैव्यव्यवस्था 19:10

'अपनी दाख की बारी का दाना दाना न तोड़ लेना, और अपनी दाख की बारी के झड़े हुए अंगूरों को न बटोरना; उन्हें दीन और परदेशी लोगों के लिये छोड़ देना;'

जब मैं छोटी थी तब मैं सेब के एक बड़े पेड़ के बगल में रहती थी। हम नियमित रूप से इसके पास से गुज़रते थे। फल तोड़ने के समय में ज़्यादातर पके हुए सेब तोड़ लिये जाते थे। उसके बाद, जो फल गिरते या कच्चे रह जाते उन्हें एक ढेर में इकठ्ठा कर लिया जाता था।

और गरीबों को इसमें से लेने दिया जाता था जिससे आमदनी में कुछ खास फर्क नहीं पड़ता था लेकिन बाइबल आधारित सिद्धांत यह है कि गरीबों को दिया जाना चाहिये और कोई भी भोजन बेकार नहीं जाना चाहिये।

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संदर्भ

नोट्स:

जॉयस मेयर, एवरीडे लाइफ बाइबल, न्यू यॉर्क: फेथवर्ड्स, 2013), पन्ने 189,1593**.**

एलेक्जेंडर इसेविक सोल्ज़ेंनिसीन, द गुलॅग, आर्कीपेलागो, भाग 1 और 2 (हारपर रो, 1974)

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है। कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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