परमेश्वर के साथ घनिष्ठ संबंध को कैसे विकसित करें
परिचय
अमेरिका के पास्टर, जॉन विंबर के जीवन और सेवकाई ने मेरे जीवन पर, हमारे चर्च पर और विश्व भर में बहुत से दूसरे चर्च पर महान प्रभाव बनाया है.
उन्होंने कहा, 'परमेश्वर जो कह रहे हैं उसे सुनने की योग्यता, परमेश्वर जो कर रहे हैं उसे देखने की योग्यता, और चमत्कारिता के स्तर में जीने की योग्यता आती है, जैसे ही एक व्यक्ति पिता के साथ वही घनिष्ठ संबंध और निर्भरता को विकसित करता है (जैसा कि यीशु ने किया). यीशु ने जो किया वह कैसे किया? इसका उत्तर पिता के साथ उसके संबंध में मिलता है. हम 'इनसे भी महान वस्तुओं को' कैसे करेंगे जिसका वायदा यीशु ने किया (यूहन्ना 14:12)? घनिष्ठता, साधारणता और आज्ञाकारिता के संबंध को खोजने के द्वारा.
परमेश्वर आपको आत्मियता से प्रेम करते हैं जो कि आपके सभी सपनों के परे हैं. वह चाहते हैं कि आप उनके साथ आत्मियता, साधारणता और आज्ञाकारिता के साथ व्यक्तिगत संबंध रखें. यह एक असाधारण सम्मान और सुविधा है. मूसा, दाऊद और निश्चित ही यीशु का परमेश्वर के साथ एक घनिष्ठ संबंध था. लेकिन आप परमेश्वर के साथ घनिष्ठ संबंध को कैसे विकसित करते हैं?
भजन संहिता 35:11-18
11 एक झूठा साक्षी दल मुझको दु:ख देने को कुचक्र रच रहा है।
ये लोग मुझसे अनेक प्रश्न पूछेंगे। मैं नहीं जानता कि वे क्या बात कर रहे हैं।
12 मैंने तो बस भलाई ही भलाई की है। किन्तु वे मुझसे बुराई करेंगे।
हे यहोवा, मुझे वह उत्तम फल दे जो मुझे मिलना चाहिए।
13 उन पर जब दु:ख पड़ा, उनके लिए मैं दु:खी हुआ।
मैंने भोजन को त्याग कर अपना दु:ख व्यक्त किया।
जो मैंने उनके लिए प्रार्थना की, क्या मुझे यही मिलना चाहिए?
14 उन लोगों के लिए मैंने शोक वस्त्र धारण किये। मैंने उन लोगों के साथ मित्र वरन भाई जैसा व्यवहार किया। मैं उस रोते मनुष्य सा दु:खी हुआ, जिसकी माता मर गई हो।
ऐसे लोगों से शोक प्रकट करने के लिए मैंने काले वस्त्र पहन लिए। मैं दु:ख में डूबा और सिर झुका कर चला।
15 पर जब मुझसे कोई एक चूक हो गई, उन लोगों ने मेरी हँसी उड़ाई।
वे लोग सचमुच मेरे मित्र नहीं थे।
मैं उन लोगोंको जानता तक नहीं। उन्होंने मुझको घेर लिया और मुझ पर प्रहार किया।
16 उन्होंने मुझको गालियाँ दीं और हँसी उड़ायी।
अपने दाँत पीसकर उन लोगों ने दर्शाया कि वे मुझ पर क्रुद्ध हैं।
17 मेरे स्वामी, तू कब तक यह सब बुरा होते हुए देखेगा ये लोग मुझे नाश करने का प्रयत्न कर रहे हैं।
हे यहोवा, मेरे प्राण बचा ले। मेरे प्रिय जीवन की रक्षा कर। वे सिंह जैसे बन गए हैं।
18 हे यहोवा, मैं महासभा में तेरी स्तुति करुँगा।
मैं बलशाली लोगों के संग रहते तेरा यश बखानूँगा।
समीक्षा
खुलापन, असुरक्षितता और ईमानदारी
ऐसे समय थे जब दाऊद दुखी थे; उनका प्राण खाली महसूस कर रहा था (व.12, एम.एस.जी.). वह ईमानदार और पर्याप्त खुले हुए थे अपनी चुनौतियों को बताने में
1. विरोध
- दाऊद ने बहुत विरोध का सामना किया उन लोगों से जिन्होंने भलाई के बदले बुराई की और उन पर प्रहार किया. शायद से आप भी बहुत विरोध का सामना करें उन लोगों से जो भलाई के बदले बुराई करते हैं और आप पर प्रहार करते हैं (वव.12, 15ब). शायद से वे झूठी निंदा करें (व.15 क), या द्वेष पूर्ण रूप से ठट्ठा करें (व.16 अ). विरोध केवल विश्व से नहीं आता है -यह परमेश्वर के लोगों से भी आ सकता है (व.16).
2. प्रार्थना 'जिनका उत्तर नहीं मिला है'
- ऐसे समय हो सकते हैं जब लगता है कि आपकी प्रार्थनाएँ सुनी नहीं जा रही है. 'मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं आया' (व.13). वह परमेश्वर से कहते हैं, 'हे प्रभु, तू कब तक देखता रहेगा?' (व.17, एम.एस.जी.).
3. असफलता
- हम सभी डगमगाते हैं (व.15अ). हम महसूस कर सकते हैं कि हम खुशी से परमेश्वर के साथ चल रहे हैं और फिर अचानक से हम डगमगा जाते हैं. हो सकता है कि ऐसे समय हो जब हम अपनी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाते हैं, परमेश्वर की अपेक्षा तो दूर की बात है.
दाऊद की तरह इन सभी चुनौतियों के विषय में परमेश्वर से बातें करे. ढ़ोंग मत करिए कि सबकुछ अच्छा है. अपने हृदय की गहराई से बताईये. वह आपकी बातों से आश्चर्यचकित नहीं होंगे. यह खुलापन, असुरक्षितता और ईमानदारी है जो आपको परमेश्वर के साथ एक घनिष्ठ संबंध में ले जाती है.
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि आप मेरे हृदय की पुकार सुनते हैं. आपका धन्यवाद क्योंकि आप मुझे बचाते हैं और मुझे यह कहने में सक्षम करते हैं कि, 'मैं बड़ी सभा में आपका धन्यवाद करुँगा; बहुत लोगों के बीच में मैं आपकी स्तुति करुँगा' (व.18).
लूका 2:41-52
बालक यीशु
41 फ़सह पर्व पर हर वर्ष उसके माता-पिता यरूशलेम जाया करते थे। 42 जब वह बारह साल का हुआ तो सदा की तरह वे पर्व पर गये। 43 जब पर्व समाप्त हुआ और वे घर लौट रहे थे तो यीशु वहीं यरूशलेम में रह गया किन्तु माता-पिता को इसका पता नहीं चल पाया। 44 यह सोचते हुए कि वह दल में कहीं होगा, वे दिन भर यात्रा करते रहे। फिर वे उसे अपने संबन्धियों और मित्रों के बीच खोजने लगे। 45 और जब वह उन्हें नहीं मिला तो उसे ढूँढते ढूँढते वे यरूशलेम लौट आये।
46 और फिर हुआ यह कि तीन दिन बाद वह उपदेशकों के बीच बैठा, उन्हें सुनता और उनसे प्रश्न पूछता मन्दिर में उन्हें मिला। 47 वे सभी जिन्होंने उसे सुना था, उसकी सूझबूझ और उसके प्रश्नोत्तरों से आश्चर्यचकित थे। 48 जब उसके माता-पिता ने उसे देखा तो वे दंग रह गये। उसकी माता ने उससे पूछा, “बेटे, तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? तेरे पिता और मैं तुझे ढूँढते हुए बुरी तरह व्याकुल थे।”
49 तब यीशु ने उनसे कहा, “आप मुझे क्यों ढूँढ रहे थे? क्या तुम नहीं जानते कि मुझे मेरे पिता के घर में ही होना चाहिये?” 50 किन्तु यीशु ने उन्हें जो उत्तर दिया था, वे उसे समझ नहीं पाये।
51 फिर वह उनके साथ नासरत लौट आया और उनकी आज्ञा का पालन करता रहा। उसकी माता इन सब बातों को अपने मन में रखती जा रही थी। 52 उधर यीशु बुद्धि में, डील-डौल में और परमेश्वर तथा मनुष्यों के प्रेम में बढ़ने लगा।
समीक्षा
बुद्धि में बढ़िये
यहाँ तक कि एक बालक के रूप में यीशु में चकित कर देने वाली बुद्धि थीः'जितने उनकी सुन रहे थे, वे सब उनकी समझ और उनके उत्तरों से चकित थे.' (व.47, ए.एम.पी.).
जैसा कि किसी ने कहा है, 'ज्ञान यह जानना है कि टमाटर एक फल है. बुद्धि यह है कि इसे फलों के सलाद में नहीं मिलाना चाहिये.' ज्ञान तिरछी दिशा में है. बुद्धि सीधी दिशा में है. यह ऊपर से आती है. बुद्धि में बढ़ना धन-संपत्ति में बढ़ने से अधिक महत्वपूर्ण बात है. बुद्धि धन से बढ़कर है. पिता के साथ घनिष्ठ संबंध बुद्धि में बढ़त को लाता है.
जब यीशु के माता-पिता उसे मंदिर में ढूंढ़ लेते हैं, तब वह उनसे कहते हैं, 'क्या आप नहीं जानते थे कि मुझे अपने पिता के भवन में होना आवश्यक है?' (व.49ब). या जैसा कि मैसेज अनुवाद इसे बताता है, 'मुझे अवश्य ही अपने पिता के कामों को करना है' (व.49ब, एम.एस.जी.).
एक तरफ, अपने पिता के साथ यीशु का संबंध अद्वितीय था. दूसरी तरफ, वह आपको भी सक्षम बनाता है ताकि परमेश्वर को आप पिता कह सकें. उन्होने परमेश्वर से प्रार्थना की 'अब्बा' कहकर (अपने पिता के साथ घनिष्ठ संबंध को बताने के लिए बच्चों के द्वारा इस्तेमाल किया गया शब्द), और उन्होंने अपने चेलो को भी ऐसा करना सिखाया (11:2).
संत पौलुस, पवित्र आत्मा के विषय में लिखते हुए, बताते हैं, 'क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली कि फिर भयभीत हो, परंतु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिससे हम 'हे अब्बा, हे पिता' कहकर पुकारते हैं' (रोमियो 8:15).
पिता के साथ घनिष्ठ संबंध से आने वाली बुद्धि के विषय में हम चार चीजें सीख सकते हैं, इन वचनों में यीशु के उदारहण का निरीक्षण करने के द्वारा.
1. बुद्धि आती है सुनने से
बुद्धि है दूसरों की सुनने में इच्छुक होना और दूसरों से सीखना. 'यीशु शिक्षकों के बीच बैठे हुए थे उनकी बातें सुनते हुए और उनसे प्रश्न पूछते हुए' (लूका 2:46).
सर आइजिक न्युटन ने कहा, 'मुझे लगता है कि समझदारी का पता तब चलता है जब पूछे गए प्रश्न का विश्लेषण किया जाए, इसके बजाए कि दिए गए उत्तर का विश्लेषण किया जाए.
अक्सर, जो ज्यादा जानते हैं वे अंत में बोलते हैं. जब हम बात करते हैं, हम सामान्य रूप से उसे दोहरा रहे हैं जो हमें पहले से ही पता है. जब हम सुन रहे होते हैं, हम कुछ नया सीख सकते हैं.
अच्छे प्रश्नों को पूछना अच्छी बातचीत करने वाला बनने की कुँजी है. प्रेसीडेंट जे.एफ. केनेडी के विषय में कहा जाता था कि वह आपको सोचने पर मजबूर कर देते थे कि आपके उत्तरों के प्रति असाधारण ध्यान के साथ, आपसे प्रश्न पूछने और सुनने के अलावा उनके पास दूसरा कोई काम नहीं है. आप जानते थे कि थोड़े समय के लिए उन्होंने भूतकाल और भविष्यकाल दोनों को आपके लिए दे दिया है.
2. बुद्धि आसान बनाती है
- बुद्धि स्पष्टता को लाती है. यीशु जानते थे कि उन्हें कहाँ पर होना चाहिए और क्या करना चाहिए. उन्होंने घोषणा की, 'क्या तुम नहीं जानते थे कि मुझे अवश्य ही अपने पिता के घर में होना चाहिए?' (व.49). ज्ञान हमें सरल से लेकर जटिल में ले जाता है; बुद्धि हमें जटिल से लेकर सरलता में ले जाती है.
3. बुद्धि सर्वांगीण है.
- बुद्धि न केवल हमारी बातों में दिखाई देती है, लेकिन हमारे जीवन जीने के तरीके में भी दिखती हैः'तब वह उनके साथ नासरत लौट गए और उनकी आज्ञा मानते थे' (व.51). बुद्धि आपके संपूर्ण जीवन के विषय में है, केवल हमारे विवेक या हमारे शब्दों के बजाय.
4. बुद्धि को बढ़ना चाहिए
- पिता के साथ अपने घनिष्ठ संबंध के द्वारा, 'यीशु बुद्धि में और डील-डौल में, और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ते गए' (व.52) –ऐसा ही एक वर्णन शमुएल के लिए इस्तेमाल किया गया है (1शमुएल 2:26).
- बुद्धि को बढ़ना चाहिए जैसे ही हम बड़े होते हैं. ऐसी बात नहीं है कि यीशु कि बुद्धि में त्रुटि या असिद्धता थी, लेकिन जैसे ही वह बड़े होते गए वैसे ही बुद्धि बढ़ती गई, जैसा कि यह हमारे साथ होना चाहिए.
- यह एक प्रार्थना है जिसे हमने अक्सर अपने बच्चों के लिए की है – कि वे बुद्धि में और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों से अनुग्रह में बढ़े.
इन सबसे अधिक, यीशु की बुद्धि परमेश्वर के साथ उनके घनिष्ठ संबंध से आयी थी. परमेश्वर उनके पिता थे. वह जानते थे कि उन्हें अपने पिता के घर में अवश्य ही होना चाहिए और पिता के साथ उनका घनिष्ठ संबंध उनकी बुद्धि की नींव थी.
प्रार्थना
पिता, आपका धन्यवाद क्योंकि आपने मुझे लेपालकपन की आत्मा दी है जिसके द्वारा मैं 'अब्बा, पिता' कह सकता हूँ. आपका धन्यवाद क्योंकि आपने मुझे उसी घनिष्ठ संबंध में बुलाया है जो यीशु का आपके साथ था. मेरी सहायता कीजिए कि आत्मियता, साधारणता और आज्ञाकारिता के इस संबंध में बढ़ सकूँ. और बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों से अनुग्रह में बढ़ सकूँ.
गिनती 7:66-9:14
12-83 बारह नेताओं में से प्रत्येक नेता अपनी—अपनी भेंटें लाया। वे भेंटें ये हैं:
प्रत्येक नेता चाँदी की एक थाली लाया जिसका वजन था एक सौ तीस शेकेल। प्रत्येक नेता चाँदी का एक कटोरा लाया जिसका वजन सत्तर शेकेल था इन दोनों ही उपहारों को पवित्र अधिकृत भार से तोला गया था हर कटोरे और हर थाली में तेल मिला बारीक आटा भरा हुआ था। यह अन्नबलि के रुप में प्रयोग में लाया जाना था प्रत्येक नेता सोने की एक बड़ी करछी भी लेकर आया जिसका भार दस शेकेल था। इस करछी में धूप भरी हुई थी।
प्रत्यके नेता एक बछड़ा, एक मेढ़ा और एक वर्ष का एक मेमना भी लाया। ये पशु होमबलि के लिए थे। प्रत्येक नेता पापबलि के रूप में इस्तेमाल किये जाने के लिए एक बकरा भी लाया। प्रत्येक नेता दो गाय, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक एक वर्ष के पाँच मेमने लाया। इन सभी की मेलबलि दी गयी। अम्मीनादाब का पुत्र नहशोम, जो यहूदा के परिवार समूह से था, पहले दिन अपनी भेंटें लाया। दूसरे दिन सूआर का पुत्र नतनेल जो इस्साकार का नेता था, अपनी भेंटें लाया। तीसरे दिन हेलोन का पुत्र एलीआब जो जबूलूनियों का नेता था, अपनी भेंटें लाया। चौथे दिन शदेऊर का पुत्र एलीसूर जो रूबेनियों का नेता था, अपनी भेटें लाया। पाँचवे दिन सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल जो शमौनियों का नेता था, अपनी भेंटें लाया। छठे दिन दूएल का पुत्र एल्यासाप जो गादियों का नेता था, अपनी भेंटें लाया। सातवें दिन अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा जो एप्रैम के लोगों का नेता था, अपनी भेंटें लाया। आठवें दिन पदासूर का पुत्र गम्लीएल जो मनश्शे के लोगों का नेता था, अपनी भेंटे लाया। नवें दिन गिदोनी का पुत्र अबीदान जो बिन्यामिन के लोगों का नेता था, अपनी भेंटे लाया। दसवें दिन अम्मीशद्दै का पुत्र आखीआजर जो दान के लोगों का नेता था, अपनी भेंटे लाया। ग्यारहवें दिन ओक्रान का पुत्र पजीएल जो आशेर के लोगों का नेता था, अपनी भेंटे लाया।
और फिर बारहवें दिन एनान का पुत्र अहीरा जो नप्ताली के लोगों का नेता था, अपनी भेंटें लेकर आया।
84 इस प्रकार ये सभी चीज़ें इस्राएल के लोगों के नेताओं की भेंटें थी। ये चीज़ें तब लाई गई जब मूसा ने वेदी को विशेष तेल डालकर समर्पित किया। वे बारह चाँदी की तश्तरियाँ, बारह चाँदी के कटोरे और बारह सोने के चम्मच लाए। 85 चाँदी की हर एक तश्तरी का वजन लगभग सवा तीन पौंड़ था और हर एक कटोरे का वजन लगभल पौने दो पौंड़ था। चाँदी की तश्तरियों और चाँदी के कटोरों का कुल अधिकृत भार साठ पौंड था। 86 सुगन्धि से भरे सोने के चम्मचों में से प्रत्येक का अधिकृत भार दस शेकेल था। बारह सोने के चम्मचों का कुल वजन लगभग तीन पौंड था।
87 होमबलि के लिए जानवरों की कुल संख्या बारह बैल, बारह मेढ़े और बारह एक बर्ष के मेमने थे। वहाँ अन्नबलि भी थी। यहोवा को पापबलि के रुप में उपयोग में आने वाले बारह बकरे भी थे। 88 नेताओं ने मेलबलि के रुप में उपयोग और मारे जाने के लिए भी जानवर दिए। इन जानवरों की संख्या थी चौबीस बैल, साठ मेढ़े, साठ बकरे और साठ एक वर्ष के मेमने थे। वेदी के समर्पण काल में ये चीज़ें भेंट के रुप में दी गईं। यह मूसा द्वारा अभीषेक का तेल उन पर डालने के बाद हुआ।
89 मूसा मीलापवाले तम्बू में यहोवा से बात करने गया। उस समय उसने अपने से बात करती हुई यहोवा की वाणी सुनी। वह वाणी साक्षीपत्र के सन्दूक के ऊपर के विशेष ढक्कन पर के दोनों करूबों के मध्य से आ रही थी। इस प्रकार परमेश्वर ने मूसा से बातें कीं।
दीपाधार
8यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “हारून से बात करो और उससे कहो, उन स्थानों पर सात दीपकों को रखो जिन्हें मैंने तुम्हें दिखाया था। वे दीपक दीपाधार के सामने के क्षेत्र को प्रकाशित करेंगे।”
3 हारून ने यह किया। हारून ने दीपकों को उचित स्थान पर रखा और उनका रुख ऐसा कर दिया कि उससे दीपाधार के सामने का क्षेत्र प्रकाशित हो सके। उसने मूसा को दिये गए यहोवा के आदेश का पालन किया। 4 दीपाधार सोने की पट्टियों से बना था। सोने का उपयोग आधार से आरम्भ हुआ था और ऊपर सुनहरे फूलों तक पहुँचा हुआ था। यह सब उसी प्रकार बना था जैसा कि यहोवा ने मूसा को दिखाया था।
लेबीवंशियों का समर्पण
5 यहोवा ने मूसा से कहा, 6 “लेवीवंश के लोगों को इस्राएल के अन्य लोगों से अलग ले जाओ। उन लेवीवंशी लोगों को शुद्ध करो। 7 यह तुम्हें पवित्र बनाने के लिए करना होगा। पापबलि से विशेष पानी उन पर छिड़को। यह पानी उन्हें पवित्र करेगा। तब वे अपने शरीर के बाल कटवायेंगे तथा अपने कपड़ों को धोएंगे। यह उनके शरीर को शुद्ध करेगा।
8 “तब वे एक नया बैल और उसके साथ उपयोग में आने वाली अन्नबलि लेंगे। यह अन्नबलि, तेल मिला हुआ आटा होगा। तब अन्य बैल को पापबलि के रूप में लो। 9 लेवीवंश के लोगों को मिलापवाले तम्बू के सामने के क्षेत्र में लाओ। तब इस्राएल के सभी लोगों को चारों ओर से इकट्ठा करो। 10 तब तुम्हें लेवीवंश के लोगों को यहोवा के सामने लाना चाहिए और इस्राएल के लोग अपना हाथ उन पर रखेंगे। 11 तब हारून लेवीवंश के लोगों को यहोवा के सामने लाएगा वे परमेस्वर के लिए भेंट के रूप में होंगे। इस ढंग से लेवीवंश के लोग यहोवा का विशेष कार्य करने के लिए तैयार होंगे।
12 “लेवीवंश के लोगों से कहो कि वे अपना हाथ बैलों के सिर पर रखें। एक बैल यहोवा को पापबलि के रूप में होगा। दूसरा बैल यहोवा को होमबलि के रूप में काम आएगा। ये भेंटे लेवीवंश के लोगों को शुद्ध करेंगी। 13 लेवीवंश के लोगों से कहो कि वे हारून और उसके पुत्रों के सामने खड़े हों। तब यहोवा के सामने लेवीवंश के लोगों को उत्तोलन भेंट के रूप में प्रस्तुत करो। 14 यह लेवीवंश के लोगों को पवित्र बनायेगा। यह दिखायेगा कि वे परमेस्वर के लिये विशेष रीति से इस्तेमाल होंगे। वे इस्राएल के अन्य लोगों से भिन्न होंगे और लेवीवंश के लोग मेरे होंगे।
15 “इसलिए लेवीवंश के लोगों को शुद्ध करो और उन्हें यहोवा के सामने उत्तोलन भेंट के रूप में प्रस्तुत करो। जब यह पूरा हो जाए तब वे आ सकते हैं और मिलापवाले तम्बू में अपना काम कर सकते हैं। 16 ये लेवीवंशी इस्राएल के वे लोग हैं जो मुझको दिये गए हैं। मैंने उन्हें अपने लोगों के रूप में स्वीकार किया है। बीते समय में हर एक इस्राएल के परिवार में पहलौठा पुत्र मुझे दिया जाता था किन्तु मैंने लेवीवंशी के लोगों को इस्रएल के अन्य परिवारों के पहलौठे पुत्रों के स्थान पर स्वीकार किया है। 17 इस्राएल का हर पुरुष जो हर एक परिवार में पहलौठा है, मेरा है। यदि यह पुरुष या जानवर है तो भी मेरा है। मैंने मिस्र में सभी पहलौठे बच्चों और जानवरों को मार डाला था। इसलिए मैंने पहलौठे पुत्रों को अलग किया जिससे वे मेरे हो सकें। 18 अब मैंने लेवीवंशी लोगों को ले लिया है। मैंने इस्राएल के अन्य लोगों के परिवारों में पहलौठे बच्चों के स्थान पर इनको स्वीकार किया है। 19 मैंने इस्राएल के सभी लोगों में से लेवीवंश के लोगों को चुना है। मैंने उन्हें हारुन और उसके पुत्रों को इन्हें भेंट के रूप में दिया है। मैं चाहता हूँ कि वे मिलापवाले तम्बू में काम करें। वे इस्राएल के सभी लोगों के लिए सेवा करेंगे और वे उन बलिदानों को करने में सहायता करेंगे जो इस्राएल के लोगों के पापों को ढकने में सहायता करेंगी। तब कोई बड़ा रोग या कष्ट इस्राएल के लोगों को नहीं होगा जब वे पवित्र स्थान के पास आएंगे।”
20 इसलिए मूसा, हारून और इस्राएल के सभी लोगों ने यहोवा का आदेश माना। उन्होंने लेवीवंशियों के प्रति वैसा ही किया जैसा उन के प्रति करने का यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था। 21 लेवीयों ने अपने को शुद्ध किया और अपने वस्त्रों को धोया। तब हारून ने उन्हें यहोवा के सामने उत्तोलन भेंट के रूप में प्रस्तुत किया। हारून ने वे भेंटें भी चढ़ाई जिन्होंने उनके पापों को नष्ट करके उन्हें शुद्ध किया था। 22 उसके बाद लेवीवंश के लोग अपना काम करने के लिए मिलापवाले तम्बू में आए। हारून और उसके पुत्रों ने उनकी देखभाल की। वे लेवीवंश के लोगों के कार्य के लिए उत्तरदायी थे। हारून और उसके पुत्रों ने उन आदेशों का पालन किया जिन्हें यहोवा ने मूसा को दिया था।
23 यहोवा ने मूसा से कहा, 24 “लेवीवंश के लोगों के लिए यह विशेष आदेश हैः हर एक लेवीवंशी पुरुष को, जो पच्चीस वर्ष या उससे अधिक उम्र का है, अवश्य आना चाहिए और मिलापवाले तम्बू के कामों में हाथ बटाना चाहिए। 25 जब कोई व्यक्ति पचास वर्ष का हो जाए तो उसे नित्य के कामों से छुट्टी लेनी चाहिए। उसे पून: काम करने की आवश्यकता नहीं है। 26 पचास वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोग मिलापावाले तम्बू में अपने भाईयों को उनके काम में सहायता दे सकते हैं। किन्तु वे लोग स्वयं काम नहीं करेंगे।उन्हें सेवा—निवृत्त होने की स्वीकृति दी जाएगी। इसलिए उस समय लेवीवंश के लोगों से यह कहना याद रखो जब तुम उन्हें उनका सेवा—कार्य सौंपो।”
फसह पर्व
9यहोवा ने मूसा को सीनै की मरूभूमि में कहा। उस समय से एक वर्ष और एक महीना हो गया जब इस्राएल के लोग मिस्र से निकले थे। यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “इस्राएल के लोगों से कहो कि वे निश्चित समय पर फसह पर्व की दावत को खाना याद रखें। 3 वह निश्चित समय इस महीने का चौदहवाँ दिन है। उन्हें संध्या के समय दावत खानी चाहिए और दावत के बारे में मैंने जो नियम दिए हैं उनको उन्हें याद रखना चाहिए।”
4 इसलिए मूसा ने इस्राएल के लोगों से फसह पर्व की दावत खाने को याद रखने के लिए कहा 5 और लोगों ने चौदहवें दिन संध्या के समय सीनै की मरुभूमि में वैसा ही किया। यह पहले महीने में था। इस्राएल के लोगों ने हर एक काम वैसे ही किया जैसे यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था।
6 किन्तु कुछ लोग फसह पर्व की दावत उसी दिन नहीं खा सके। वे एक शव के कारण शुद्ध नहीं थे। इसलिए वे उस दिन मूसा और हारून के पास गए। 7 उन लोगों ने मूसा से कहा, “हम लोग एक शव छूने के कारण अशुद्ध हुए हैं। याजकों ने हमें निश्चित समय पर यहोवा को चढ़ाई जाने वाली भेंट देने से रोक दिया है। अतः हम फसह पर्व को अन्य इस्राएली लोगों के साथ नहीं मना सकते। हमें क्या करना चाहिए”
8 मूसा ने उनसे कहा, “मैं यहोवा से पूछूंगा कि वह इस सम्बन्ध में क्या कहता है।”
9 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 10 “इस्राएल के लोगों से ये बातें कहोः यह हो सगता है कि तुम ठीक समय पर फसह पर्व न मना सको क्योंकि तुम या तुम्हारे परिवार का कोई व्यक्ति शव को स्पर्श करने के कारण अशुद्ध हो या संभव है कि तुम किसी यात्रा पर गए हुए हो। 11 तो भी तुम फसह पर्व मना सकते हो। तुम फसह पर्व को दूसरे महीने के चौदहवें दिन संध्या के समय मनाओगे। उस समय तुम मेमना, अखमीरी रोटी और कड़वा सागपात खाओगे। 12 अगली सुबह तक के लिए तुम्हें उसमें से कोई भी भोजन नहीं छोड़ना चाहिए। तुम्हें मेमने की किसी हड्डी को भी नहीं तोड़ना चाहिए। उस व्यक्ति को फसह पर्व के सभी नियमों का पालन करना चाहिए। 13 किन्तु कोई भी व्यक्ति जो समर्थ है, फसह पर्व की दावत को ठीक समय पर ही खाये। यदि वह शुद्ध है और किसी यात्रा पर नहीं गया है तो उसके लिए कोई बहाना नहीं है। यदि वह व्यक्ति फसह पर्व को ठीक समय पर नहीं खाता है तो उसे अपने लोगों से अलग भेज दिया जायेगा। वह अपराधी है! क्योंकि उसने यहोवा को ठीक समय पर अपनी भेंट नहीं चढ़ाई सो उसे दण्ड अवश्य दिया जाना चाहिए।
14 “तुम लोगों के साथ रहने वाला कोई भी व्यक्ति जो इस्राएलि लोगों का सदस्य नहीं है, यहोवा के फसह पर्व में तुम्हारे साथ भाग लेना चाह सकता है। यह स्वीकृत है, किन्तु उस व्यक्ति को उन नियमों का पालन करना होगा। जो तुम्हें दिए गए हैं. तुम्हें अन्य लोगों के लिए भी वे ही नियम रखने होंगे जो तुम्हारे लिए हैं।”
समीक्षा
स्थिर खड़े रहे और सुनें
परमेश्वर के साथ बातचीत करने के लिए समय निकाले उनके बिना आप उनके साथ एक घनिष्ठ संबंध विकसित नहीं कर सकते हैं. 'जब मूसा यहोवा से बातें करने के लिए मिलापवाले तंबू में गया...और उसने उनसे बातें की. यहोवा ने मूसा से कहा...' (7:89-8:1).
परमेश्वर ने मूसा से बातें की (8: 9:1). मूसा ने परमेश्वर से बातें की (7:89). यह दो तरफा बातचीत थी. परमेश्वर ने आमने –सामने मूसा से बातें की, जैसा कि एक व्यक्ति अपने मित्र के साथ बातें करता है (12:8) – एक ही समय में बोलना और सुनना, एक-दूसरे की प्रतिक्रिया को देखना.
पवित्र आत्मा के समय में आप मूसा से अधिक बेहतर अवस्था में हैं. अब आपको मूसा की तरह किसी निश्चित स्थान में जाने की जरुरत नहीं है, किंतु जहाँ कही आप हैं वहॉं पर आप परमेश्वर के साथ हो सकते हैं. लेपालकपन की आत्मा के द्वारा आप पिता परमेश्वर के साथ एक घनिष्ठ संबंध और अनंत बातचीत में ला दिए गए हैं (रोमियो 8:15-17,26-27).
यह नमूना थाः 'परमेश्वर ने मूसा से बातें की...इसलिए मूसा ने इस्रालियों को बताया...इस्रालियों ने ठीक वैसा ही किया जैसा कि परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी थी' (गिनती 9:1-5). इस्रालियों का जीवन जीने का संपूर्ण तरीका इस बात के प्रति आज्ञाकारिता पर आधारित था कि आत्मियता के स्थान में परमेश्वर ने मूसा से क्या कहा. परमेश्वर के साथ आपके घनिष्ठ संबंध को आपके जीवन जीने के तरीके में प्रवाहित होना चाहिए. आपको उन चीजों का अभ्यास करना चाहिए जो परमेश्वर आपको आत्मियता के स्थान में दिखाते हैं.
ऐसे समय होते हैं जब यह हमेशा स्पष्ट नहीं होता है कि परमेश्वर किस तरह से हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं. दुबारा, मूसा का उदारहण अच्छा है. जब लोगों ने मूसा से एक कठिन प्रश्न पूछा, जिसका उत्तर उसे नहीं पता था, तब उसने जवाब दिया, 'ठहरे रहो, मैं सुन लूँ कि यहोवा तुम्हारे विषय में क्या आज्ञा देते हैं' यह आपको प्रार्थना करने का समय देता है और परमेश्वर से पता लगाने का समय कि आगे जाने के लिए कौन सा रास्ता सही है.
युजिन पिटरसन अनुवाद बताता है, 'मुझे थोड़ा समय दो; मैं पता लगाऊँगा कि तुम्हारी परिस्थितियों में परमेश्वर क्या कहते हैं' (व.8, एम.एस.जी.). एम्प्लीफाईब बाईबल कहती है, 'रुके रहो और मैं सुनता हूँ कि तुम्हारे विषय में परमेश्वर की आज्ञा क्या है.' जीवन की व्यस्तता में रुकिये और सुनिये कि परमेश्वर क्या चाहते हैं कि आप करें.
प्रार्थना
परमेश्वर, आपका धन्यवाद क्योंकि हर दिन मैं आपसे मिल सकता हूँ, आपसे बातें कर सकता हूँ और आपसे सुन सकता हूँ. मेरी सहायता कीजिए ताकि मैं सुन सकूँ कि आप मुझसे क्या कह रहे हैं और आज आत्मियता, सरलता और आज्ञाकारिता के इस संबंध में जी सकूं.
पिप्पा भी कहते है
लूका 2:43
मैंने हमेशा आश्चर्य किया है कि कैसे मरियम और युसूफ ने पूरे एक दिन यात्रा कर ली थी और तब जाकर उन्हें पता चला कि उनका बेटा उनके साथ नहीं था. यद्यपि मुझे बताना पड़ेगा कि एक बार हम अपने मित्रों के साथ भोज के लिए बाहर गए और अपनी मंजिल तक पहुँचने पर हमें पता चला कि हमारा एक बच्चा हमारे साथ नहीं था. मुझे अपने मेजबान को यह बताने में शर्म महसूस हुई और मैं बहुत चिंतित भी था कि हमारा बच्चा सुरक्षित हैं या नहीं. मैं आश्चर्य करता हूँ कि क्या मरियम और युसूफ भी वापस लौटते समय ऐसे ही बातचीत कर रहे थे, जैसे कि हम कर रहे थे कि यह किसकी गलती थी. दोनों ही मामलो में, धन्यवाद हो परमेश्वर का कि बच्चे सुरक्षित थे. यीशु मंदिर में थे और धार्मिक लीडर्स से बातें कर रहे थे और हमारा बच्चा टी.व्ही. देख रहा था!
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संदर्भ
नोट्स:
जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।
जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)
जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।